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View Full Version : चिंतनीय एवम सोचनीय प्रश्न


dipu
04-09-2013, 08:01 PM
दो दिन पहले मेरी गर्भवती पत्नी का अल्ट्रासाउंड हुआ और डॉक्टर ने ये बताया की मेरे घर में नन्ही परी का आगमन हो रहा है। मैं और मेरी पत्नी खुश थे, हम लोग अपनी बिटिया के लालन – पालन की योजनाये बनाने लगे। कई बार मैं और मेरी पत्नी आपस में तर्क भी करते की बेटी को ऐसे बड़ा करना है, वैसे बड़ा करना है। कुछ समय बाद हम सो गए, रात में अचानक मेरी नीद खुली, न जाने क्या डर सताने लगा अपनी नन्ही पारी की सुरक्षा को लेकर। चारो तरफ लडकियों के खिलाफ हो रही हिंसा, और उससे जुडी बाते एक-एक करके मेरे मन में आने लगीं। कभी निर्भया का ख्याल आया, कभी फलक का, कभी मुंबई के फोटो पत्रकार का। मैं डर रहा था, मैं अपनी नन्ही परी को कैसे सुरक्षित रखूंगा, कहीं उसके साथ कोई अनहोनी न हो जाये। तरह -तरह के डरावने ख्याल आने लगे, मैं सोचने लगा क्या मैं अपनी बेटी को सुरक्षित नहीं रख सकता ? क्या मेरे हाथ में कुछ नहीं है? ऐसा क्या है की महान कहे जाने वाले इस देश में आज बेटियां सुरक्षित नहीं है? कई बार सोचता दक्षिण कोरिया से भारत वापस ही न जाऊं यहाँ ज्यादा सुरक्षा है। फिर सोचता अपनी मातृभूमि कैसे छोड़ दूं। मैं रात भर सोचता रहा जब सोया तो सपने में भी वही देखा। मेरी बिटिया को कोई राक्षस छीने ले जा रहा है, मैं उसे बचने के लिए दौड़ रहा हूँ, पर उसतक पहुँच नहीं पा रहा हूँ, रो रहा हूँ, गिड़गिडा रहा हूँ। अचानक मेरी ही चीख से मेरी नीद खुली आंसू से तकिया भींग चुका था।
तब तक मेरी पत्नी की नीद भी खुल चुकी थी, मैं उसे ऐसे समेट कर छुपाने लगा जैसे अपनी बेटी को इस संसार की नज़रों से छुपाना चाहता हूँ। मेरी आँखों से आंसू की धार रुकने का नाम नहीं ले रही थी। बेटी की सुरक्षा को लेकर मन व्यथित था। असहाय था।
फिर अचानक सोचने लगा, जब आज मैं उस बेटी के लिए इतना चिंतित हूँ, जिसका अभी जनम तक नहीं हुआ, तो उन माँ-बाप के ऊपर क्या बीत रही होगी जिनकी बेटियों के साथ सही में दुर्घटना घटित होती है। इस सोच मात्र से मेरी रूह कॉप जाती है।
तो क्या हम अपने देश को कन्याओं के लिए सुरक्षित नहीं बना सकते? क्या हम यूँ ही कन्याओं को कटते पिसते देखते रहेंगे और कुछ नहीं करेंगे?
क्या हमारी सरकार, हमारा प्रशासन, हमारा समाज इन परियों की रक्षा करने में समर्थ नहीं है? या करना नहीं चाहता?
इन सब का उत्तर कभी हाँ में तो कभी न में मिला
फिर कवि के हृदय से ये पंक्तिया फूट पड़ी:

करें सुता को आज सुरक्षित
एक भी दुहिता ना हो पीड़ित,
सारी बिटियाँ तो हैं तेरी
फिर काहे का भेद रे पगले,
हर -एक बेटी की चीखों का,
भरो दर्द तुम अपने हिरदय,
गला काट दे उन दत्यों का,
शपथ है तेरी माँ की पगले,
गर है मानव चेतन तुझमे,
रक्त धार है बहती तुझमे
बेटी को कर निर्भय पगले,
दैत्य नहीं तू नर है पगले,
बेटी तो होती है बेटी,
अपनी हो या और किसी की,
कर हर बेटी का सम्मान,
पशु न बन तू ऐ इंसान,
हे माँ !
Jugunoo

internetpremi
04-09-2013, 09:46 PM
मार्मिक!

dipu
05-09-2013, 08:07 AM
मार्मिक!

:thinking::thinking: