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View Full Version : ~ अनमोल मोती ~


Sikandar_Khan
28-10-2010, 03:24 PM
कोई भी मनुष्य जन्म से महान नही होता
उसके द्वारा किये गए अच्छे कार्य उसे महान बनाते हैँ

Sikandar_Khan
28-10-2010, 03:27 PM
सच्चा प्रयास कभी विफल नही होता है

Sikandar_Khan
28-10-2010, 03:30 PM
ज्ञान वो पंखा है
जिसके द्वारा हम स्वर्ग की ओर उडते हैँ

Sikandar_Khan
28-10-2010, 03:33 PM
जीवन एक फूल है
और प्रेम उसका मधू है ।

Sikandar_Khan
28-10-2010, 03:35 PM
धर्म का बन्धन कडा
होता है ।

Sikandar_Khan
28-10-2010, 03:37 PM
अच्छी नसीहत अमूल्य
निधि है ।

Sikandar_Khan
28-10-2010, 03:39 PM
निरुत्साह होने से भाग्य भी नष्ट हो जाता है ।

Sikandar_Khan
28-10-2010, 03:41 PM
ईश्वर एक है और वह एकता को पसंद करता है ।

Sikandar_Khan
28-10-2010, 03:42 PM
ज्यादा बोलने से ज्यादा सुनना बेहतर है ।

Sikandar_Khan
28-10-2010, 03:43 PM
परमात्मा पूजा का नही
प्रेम का भूखा है ।

Sikandar_Khan
28-10-2010, 03:45 PM
प्रेम मानवता का दूसरा
नाम है ।

aksh
28-10-2010, 03:49 PM
प्रेम मानवता का दूसरा
नाम है ।

क्या बात है सिकंदर भाई तुसी तो आते ही छा गए. भाई वाह !

aksh
28-10-2010, 03:52 PM
आपके सिग्नेचर में जो वाक्य लिखा है उसी से प्रेरित होकर मैंने भी अपने सिग्नेचर में ये वाक्य जो को रहीम दास जी का दोहा है जोड़ा है.

Sikandar_Khan
28-10-2010, 04:04 PM
क्या बात है सिकंदर भाई तुसी तो आते ही छा गए. भाई वाह !

अनिल भाई
सब आप मित्रो की संगत
का असर है

aksh
28-10-2010, 04:05 PM
रीति, प्रीति सबसौं भली, बैर न हित मित गोत।
रहिमन याहि जनम की, बहुरि न संगत होत।।

इसका अर्थ है कि प्रेम से हिल मिल कर रहना ही अच्छा होता है खास तौर पर अपने हितेषी, मित्रों और गोत्र वालों से कभी भी बैर नहीं रखना चाहिए. ये एक ही तो जनम मिला है फिर पता नहीं ये शरीर मिले या ना मिले.

aksh
28-10-2010, 04:08 PM
कदली, सीप, भुजंग मुख, स्वाति एक गुन तीन।
जैसी संगति बैठिये, तसोई फल दीन ।।

इसका अर्थ ये है कि स्वाति नक्षत्र की बूँद एक ही जैसी होने के वाबजूद अगर केले पर पड़ती है तो कपूर बन जाती है, सीप में गिरे तो मोती और अगर सर्प के मुंह में गिरे तो विष बन जाती है. अर्थात संगत से ही आपकी गति तय होती है.

aksh
28-10-2010, 04:12 PM
अनिल भाई
सब आप मित्रो की संगत
का असर है

संगत के ऊपर ये सूक्ति कैसी लगी बताएं मित्र ?

Sikandar_Khan
28-10-2010, 04:17 PM
नित्य , सर्वव्यापक , अचल , स्थिर और शाश्वत आत्मा को आग जला नही सकती पानी गीला नही कर सकता
वायु उडा नही सकती
शस्त्र काट नही सकते
यह आत्मा नि:सन्देह शाश्वत है ।

jalwa
28-10-2010, 04:19 PM
सिकंदर भाई, स्वागतम. आप आए बहार आई. बाकी भी आते ही होंगे. हा हा हा.
धन्यवाद.:cheers:

Sikandar_Khan
28-10-2010, 04:20 PM
अंगूठे के परिमाण वाली अति लघू स्वरूप और सूक्ष्म आत्मा मनुष्य के भीतर सदा विद्यामान रहती है ।

Sikandar_Khan
28-10-2010, 04:22 PM
सिकंदर भाई, स्वागतम. आप आए बहार आई. बाकी भी आते ही होंगे. हा हा हा.
धन्यवाद.:cheers:

मित्र
आपका बुलावा मिला हम दौडे चले आए

aksh
28-10-2010, 04:26 PM
मित्र
आपका बुलावा मिला हम दौडे चले आए

सिकंदर भाई, स्वागतम. आप आए बहार आई. बाकी भी आते ही होंगे. हा हा हा.
धन्यवाद.:cheers:

आज शाम की चौपाल की चार पांच टिकट बुक करा लो मित्र आज चौपाल पर रौनक लगने वाली है. चौपाल के लिए कुछ नियम भी तय करो अनुज जलवा.

Sikandar_Khan
28-10-2010, 04:28 PM
संगत के ऊपर ये सूक्ति कैसी लगी बताएं मित्र ?

मित्र बहुत ही अच्छी सूक्ति और उसका अर्थ
धन्यवाद

Sikandar_Khan
28-10-2010, 04:29 PM
आज शाम की चौपाल की चार पांच टिकट बुक करा लो मित्र आज चौपाल पर रौनक लगने वाली है. चौपाल के लिए कुछ नियम भी तय करो अनुज जलवा.
मित्र
क्या नियम होने चाहिए
प्रबंधन की भी राय ले लेते

abhishek
28-10-2010, 05:36 PM
मित्र
क्या नियम होने चाहिए
प्रबंधन की भी राय ले लेते


आप लोग नियम बनाओ हम लोग भी उसमे कुछ अगर होगा तो सुजाव दे देंगे..

aksh
28-10-2010, 06:35 PM
आप लोग नियम बनाओ हम लोग भी उसमे कुछ अगर होगा तो सुजाव दे देंगे..

जरूर भाई अभिषेक जी. आपका सहयोग भी अपेक्षित रहेगा.

abhishek
28-10-2010, 07:47 PM
मेरे सहयोग हमेशा आपके साथ है.. वैसे मेरे मुताबिक यह thread Readers Zone में ज्यादा सही रहेगा..

Sikandar_Khan
28-10-2010, 09:41 PM
मेरे सहयोग हमेशा आपके साथ है.. वैसे मेरे मुताबिक यह thread readers zone में ज्यादा सही रहेगा..

जैसा आपको उचित लगे
हमे आपकी राय से सहमत हैँ

Hamsafar+
28-10-2010, 10:15 PM
सिकंदर भाई उत्तम प्रस्तुति !

jai_bhardwaj
28-10-2010, 10:38 PM
अंगूठे के परिणाम वाली अति लघू स्वरूप और सूक्ष्म आत्मा मनुष्य के भीतर सदा विद्यामान रहती है ।

मुझे प्रतीत होता है कि "परिणाम" के स्थान पर "परिमाण" होना चाहिए | शेष जो उचित हो ......
प्रेरणादायी सूत्र के लिए सिकंदर भाई आपका हार्दिक अभिनंदन |:hi:

मनुष्य की योग्यता का पुरस्कार वह सामग्री नहीं है जो उसे उसकी उपलब्धि पर प्राप्त हुयी है बल्कि उत्तम पुरस्कार यह है कि वह व्यक्ति उस उपलब्धि से क्या बना सका है |

jalwa
28-10-2010, 10:45 PM
मुझे प्रतीत होता है कि "परिणाम" के स्थान पर "परिमाण" होना चाहिए | शेष जो उचित हो ......
प्रेरणादायी सूत्र के लिए सिकंदर भाई आपका हार्दिक अभिनंदन |:hi:

मनुष्य की योग्यता का पुरस्कार वह सामग्री नहीं है जो उसे उसकी उपलब्धि पर प्राप्त हुयी है बल्कि उत्तम पुरस्कार यह है कि वह व्यक्ति उस उपलब्धि से क्या बना सका है |

मित्र भाई जी, आपका कहना बिलकुल सही है .. यहाँ "परिमाण" शब्द ही सटीक रहेगा. शायद सिकंदर भाई से कोई मात्र की गलती हो गई होगी और फिर गलती इंसान से ही तो होती है. बाकी ध्यान दिलाने के लिए आपका शुक्रिया.
मित्र, क्या मैं आपका परिचय जान सकता हूँ? क्या आप हमारे कोई पुराने मित्र हैं या फिर नए? जो भी हों आप से मित्रता करके मुझे ख़ुशी होगी. धन्यवाद.

Sikandar_Khan
29-10-2010, 10:31 AM
भाग्य को वही कोसते हैँ
जो कर्महीन होते हैँ

Sikandar_Khan
29-10-2010, 10:33 AM
प्रतिरोध से बडी शक्तियां रुकती नही हैँ
बल्कि उनका वेग और भी बढ जाता है ।

khalid
30-10-2010, 11:18 AM
ज्ञानी होते हुए जो ज्ञान ना दे वो बेकार हैँ

ABHAY
30-10-2010, 01:22 PM
यो मोहन्मन्यते मुदो रक्त्ये मयि कामिनी !
स तस्या भुत्बो नत्येत् क्रीडाशकुन्तावत् !!
अर्थात ,
जो मुर्ख यह समझता है कि अमुक कामनी उस पर मोहित हो गयी है ,
वह उसके वस में पड़कर खिलौने की तरह नाचा करता है !

Sikandar_Khan
30-10-2010, 05:31 PM
ज्ञान वो सागर है
जो कभी नही भरता है
लेकिन ये बांटने से और अधिक भरता है ।

Sikandar_Khan
01-11-2010, 09:57 AM
अतिथि सत्कार से
इनकार करना सबसे
बड़ी गरीबी हैँ ।

Sikandar_Khan
01-11-2010, 10:00 AM
मै यह दुआ नही करता कि दुश्मन मर जाएं ।
मै यह दुआ करता हूं कि
दोस्त जिन्दा हो जाएं ।

Sikandar_Khan
03-11-2010, 10:59 AM
वार्तालाव बुद्धि को मूल्यवान बना देता है
परन्तु एकान्त प्रतिभा की पाठशाला है ।

munneraja
03-11-2010, 04:46 PM
ऐसे मत चलो कि देर हो जाये
ऐसे मत खाओ कि मर्ज हो जाये
ऐसे मत सोचो कि चिंता हो जाये
ऐसे मत बोलो कि क्लेश हो जाये
ऐसे मत कमाओ कि पाप हो जाये
ऐसे मत खर्चो कि कर्ज हो जाये

khalid
03-11-2010, 05:00 PM
नालायक पुत्र होने सेँ
अच्छा हैँ
पुत्र विहीन होना

Sikandar_Khan
04-11-2010, 09:18 AM
जैसे मनुष्य पुराने वस्त्र त्याग कर दूसरे नए वस्त्रोँ को ग्रहण करता है
वैसे ही जीव की आत्मा पुराने शरीर त्याग कर नया शरीर ग्रहण कर लेती है ।

Sikandar_Khan
05-11-2010, 08:38 AM
आत्मा का परमात्मा मे मिलन ही जीव कल्याण
का परम कारक है ।

Sikandar_Khan
06-11-2010, 11:01 AM
कर्म करने मे तुम्हारा अधिकार है
लेकिन फल मे नही ।

Sikandar_Khan
11-11-2010, 07:44 AM
सच्चाई ही तुम्हे बुराईयोँ से रोक सकती है ।

jai_bhardwaj
20-11-2010, 10:07 PM
जिस तरह से घोंसला चिड़िया के लिए आश्रय है उसी प्रकार मौन वाणी को आश्रय देता है .................. रवीन्द्रनाथ ठाकुर /

:gm:
मुहब्बत त्याग की माँ है / वह जहाँ भी जाती है अपने बेटे के साथ ही जाती है ......................... सुदर्शन /
:gm:

jai_bhardwaj
20-11-2010, 10:11 PM
ज्ञानी जन विवेक से सीखते हैं , साधारण लोग अनुभव से सीखते हैं, अज्ञानी पुरुष आवश्यकता से और पशु स्वभाव से ............... कौटिल्य /

:bravo:

संतोष का वृक्ष कडवा है किन्त्तु इसमें लगने वाले फल बहुत मीठे होते हैं .................... स्वामी शिवानन्द /
:cheers:

jai_bhardwaj
20-11-2010, 10:14 PM
विचारकों को जो भाव आज स्पष्ट दीखता है , दुनिया उस पर कल अमल करती है ............. विनोबा भावे /
:think:

हज़ार योद्धाओं पर विजय प्राप्त करना आसान किन्तु जो स्वयं पर विजय प्राप्त कर ले वही सच्चा विजयी है .............. गौतम बुद्ध /
:party:

jai_bhardwaj
20-11-2010, 10:18 PM
जब तक भारत का राजकाज अपनी भाषा में नहीं होता तब तक हम यह नहीं कह सकते कि देश में स्वराज है ............. मोरार जी देसाई /
:hi::hi::hi:

मुट्ठी भर संकल्पवान लोग जिनके अपने लक्ष्य में दृढ आस्था है, वे इतिहास की धारा बदल सकते हैं ............. महात्मा गाँधी /
:hi::hi::hi:

jai_bhardwaj
21-11-2010, 11:22 PM
सत्याग्रह बलप्रयोग के विपरीत होता है / हिंसा के सम्पूर्ण त्याग में ही सत्याग्रह की कल्पना की गयी है ................. महात्मा गांधी /
:hi::hi:

धन उत्तम कर्मों से उत्पन्न होता है, साहस, योग्यता और दृढ निश्चय से निरंतर बढ़ता है , चतुराई से तेजी से बढ़ता है और संयम से सुरक्षित रहता है ......... विदुर /
:party::party:

दूसरों पर किये गए व्यंग्य पर हम हँसते हैं पर अपने ऊपर किये गए व्यंग्य पर हम झगड़ने को तत्पर हो जाते हैं ..... आचार्य राम चन्द्र शुक्ल /
:bang-head::bang-head:

jai_bhardwaj
21-11-2010, 11:24 PM
असत्य फूस के ढेर की तरह है जो सत्य की एक चिंगारी से जल कर भस्म हो जाता है ............. हरिभाऊ उपाध्याय /
:bravo:

समय परिवर्तन का धन है / किन्तु घड़ी उसे केवल परिवर्तन के रूप में दिखाती है, धन के रूप में नहीं ........... रवीन्द्रनाथ ठाकुर /
:hi::hi:

जो कार्य घड़ों जल से नहीं होता उसे दवा की दो बूंदे संपन्न कर देती हैं / जो कार्य तलवार नहीं कर सकती है उसे काँटा कर देता है / प्रकृति की हर तुच्छ वस्तु की उपयोगिता है ....... सुदर्शन /
:iagree::iagree::iagree:

ABHAY
21-11-2010, 11:32 PM
जब भी किसी को दान दे तो खुसी मन से उदास होके नहीं

Sikandar_Khan
03-12-2010, 08:55 AM
जैसे पहाड़ की ऊंची चोटियोँ पर बसता हुआ जल पर्वत से होता हुआ नीचे के देशोँ मे बह
जाता है ।
वैसे ही एक ही आत्मा
अनेक आत्माओँ के रूप मे अनेक शरीरोँ के रूप मे प्रतीत होती है ।

Hamsafar+
03-12-2010, 12:24 PM
यदि बड़ा आदमी बनना हैं तो पहले छोटा आदमी बनो।

Hamsafar+
03-12-2010, 12:25 PM
सकारात्मक सोचने की कला-सोचे वही जो बोला जा सके और बोले वही जिसके नीचे हस्ताक्षर किये जा सके।

Hamsafar+
03-12-2010, 12:34 PM
जो लोग सुबह उगता हुआ सूरज देखते हैं, वे उगते हुए भाग्य के मालिक बनते हैं।

Hamsafar+
03-12-2010, 12:36 PM
हमें स्वयं को केवल एक मिनट के लिये बूढ़ा बनाना चाहिये। कब ? जब सामने मौत आने वाली हो।

Hamsafar+
03-12-2010, 12:36 PM
असफलता की ट्रेन आमतौर पर अनिर्णय की पटरी पर दौड़ती हैं।

Hamsafar+
03-12-2010, 12:37 PM
99 फीसदी मामलों में वही लोग असफल होते हैं, जिनमें बहाने बनाने की आदत होती हैं।

Hamsafar+
03-12-2010, 12:37 PM
इन्सान को सद् इन्सान केवल विचारों के माध्यम से बनाया जा सकता है।

Hamsafar+
03-12-2010, 12:37 PM
मालिक बारह घण्टे काम करता हैं, नौकर आठ घण्टे काम करता हैं, चोर चार घण्टे काम करता हैं। हम सब अपने आप से पूछे कि हम तीनों में से क्या है।

Hamsafar+
03-12-2010, 01:48 PM
भगवान की दुकान प्रात: चार बजे से छ: बजे तक ही खुलती है।

Hamsafar+
03-12-2010, 01:48 PM
परिवर्तन से डरोगे तो तरक्की कैसे करोगे ?

Hamsafar+
03-12-2010, 01:48 PM
सबसे अधिक खराब दिन वे हैं जब हम एक बार भी हँसी के ठहाके नहीं लगाते हैं।

Hamsafar+
03-12-2010, 01:49 PM
सद्विचार सत्य को लक्ष्य करके छोड़ा हुआ तीर है।

Hamsafar+
03-12-2010, 01:50 PM
आप ढूँढे तो परेशानी का आधा कारण अपने में ही मिल जाता है।

Hamsafar+
03-12-2010, 01:50 PM
यदि जीने की कला हाथ लग जाये तो जीवन बांस का टुकड़ा नहीं, आनन्द देने वाली बांसुरी बन जाती है

Hamsafar+
03-12-2010, 01:53 PM
कई लोग जिंदगी में सही निशाना तो साध लेते हैं, पर ट्रिगर नहीं दबा पाते हैं, जिंदगी में निर्णय लेना बेहद जरूरी हैं।

Hamsafar+
03-12-2010, 01:54 PM
प्रेम दूरबीन से देखता हैं और ईश्र्या माइक्रोस्कोप से।

Hamsafar+
03-12-2010, 01:54 PM
बीते समय में हमने भविष्य की चिन्ता की, आज भी हम भविष्य के लिये सोच रहे हैं और शायद कल भी यही करेंगे। फिर हम वर्तमान का आनन्द कब लेंगे ?।

Hamsafar+
03-12-2010, 01:56 PM
किसी में कमी तलाश करने वालों की मिसाल उस मक्खी की तरह हैं जो पूरा सुन्दर जिस्म छोड़कर सिर्फ जख्म पर ही बैठती हैं।

Hamsafar+
03-12-2010, 01:57 PM
जीतने वाले कोई अलग काम नहीं करते हैं, वे तो बस हर काम को अलग अन्दाज से करते हैं।

Hamsafar+
03-12-2010, 01:57 PM
जिन्दगी में कभी किसी के ऊपर निर्भर नहीं रहना, चाहे वह आपकी परछाया ही क्यो न हो, अंधेरे में वह भी आपका साथ छोड़ देगी।

Hamsafar+
03-12-2010, 01:58 PM
एक ध्येय वाक्य-``यह भी बीत जायेगा।´´ ये चार शब्द चार वेदों का काम कर सकते हैं।

Sikandar_Khan
06-12-2010, 08:57 AM
मनुष्य की आत्मा ही साक्षी या दृष्टाभाव से जगत की घटनाओ को देखती है
और शरीर सुख दुःख का अनुभव करता है ।

SHASHI
06-12-2010, 11:05 AM
एक ध्येय वाक्य-``यह भी बीत जायेगा।´´ ये चार शब्द चार वेदों का काम कर सकते हैं।

सही में अनमोल वचन है. परिस्थितियों को देखने का नजरिया ही इंसान को उसमे से निकालने की प्रेरणा देता है.

naman.a
06-12-2010, 01:17 PM
भाग्य के सहारे कमजोर लोग जीते हैं. भाग्य केवल एक कल्पना मात्र हैं - योगवशिस्ठ

ABHAY
06-12-2010, 07:05 PM
कभी भी अपनी दिल की मत सुनो और न ही दिमाग की

Sikandar_Khan
10-12-2010, 03:13 PM
जब हम दूसरोँ की भलाई का काम करते हैँ
तो प्रभु के काफी नजदीक
होते हैँ |

Sikandar_Khan
10-12-2010, 03:13 PM
जब हम दूसरोँ की भलाई का काम करते हैँ
तो प्रभु के काफी नजदीक
होते हैँ |
स्वामी रामसुखदास जी

ajaypathak
10-12-2010, 03:46 PM
कभी भी अपनी दिल की मत सुनो और न ही दिमाग की

to phir kis ki sune bhai..............:party:

naman.a
15-12-2010, 03:08 PM
परहित सरिस धरम नहीं भाई
परपीड़ा सम नहीं अधमाई

दुसरो की सेवा और उनका हित करने के सामान कोई धर्म नहीं हैं
दुसरो को पीड़ा पहुचने के सामान कोई अधर्म नहीं हैं

naman.a
15-12-2010, 03:12 PM
to phir kis ki sune bhai..............:party:

अपनी आत्मा की आवाज सुनो क्योंकि आत्मज्ञान ही सर्वोच्च ज्ञान हैं . क्योकि आत्मा में परमेश्वर का निवास हैं अत: आत्म वाणी परमेश्वर की वाणी हैं

Hamsafar+
15-12-2010, 03:26 PM
अपनी आत्मा की आवाज सुनो क्योंकि आत्मज्ञान ही सर्वोच्च ज्ञान हैं . क्योकि आत्मा में परमेश्वर का निवास हैं अत: आत्म वाणी परमेश्वर की वाणी हैं

:bravo::bravo::bravo::bravo:

naman.a
22-12-2010, 10:03 AM
चिंता से चतुराई घटे दुःख: से घटे शरीर
और पाप से घटे लक्ष्मी कह गए दास कबीर

कबीर दास जी कह गए हैं कि व्यर्थ कि चिंता से बुद्धि को और व्यर्थ के दुःख से शरीर को हानि पहुचती हैं
और पाप कर्म से धन वैभव का नाश होता हैं
तो मनुष्यों को इन तीनो को अपने जीवन से दूर रखना चाहिए

pankaj bedrdi
27-12-2010, 09:18 PM
वाह वाह क्या बात है

ABHAY
28-12-2010, 06:25 AM
पोथी पढ़ने से सब ज्ञानी होता है मगर सामाजिक नहीं क्योकि समाज में रहने से सामाजिक ज्ञान होता है ! पोथी पढ़ने से नहीं

EGALLOVE
29-12-2010, 12:35 PM
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिनु निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल॥
अँग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन।
पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन॥

Sikandar_Khan
25-01-2011, 01:44 PM
भक्त्ति को कितना भी छुपाओ,
परन्तु उसकी सुगन्ध तो फैलती है !
भक्त्ति की सुगन्ध वासनाओं की दुर्गन्ध को
एक एक कर के ख़तम कर देती है !

Sikandar_Khan
25-01-2011, 02:57 PM
सूर्यं कभी नही पूछता कि अन्धकार कितना पुराना है !
अन्धकार आज का है या वर्षो पुराना है ?
सूर्य की किरणे तो अंधकार के पास पहुँचते ही उसे मिटा देती है !

ऐसे ही प्रभु की कृपा कभी यह नही पूछती कि सामने बाला कितना बड़ा पापी है !
प्रभु की कृपा होते ही जीव के समस्त पाप व् कष्ट मिट जाते है !

Sikandar_Khan
06-02-2011, 08:37 AM
आत्मसाक्षात्कार द्वारा आत्मानुभूति को प्राप्त कर साधक,
सिद्धि होकर पूर्णता को प्राप्त करता है।
फिर उसके लिए सुख कैसा, दुख कैसा, सुख कहां, दुख कहां ?

Sikandar_Khan
06-02-2011, 08:39 AM
स्थूल हाथी से लेकर वनस्पति तक पशु-पक्षियों
तथा वन्य प्राणियों और क्षुद्र कीट पतंगों से
लेकर मनुष्य तक सभी में आत्मा की अभिव्यक्ति का विस्तार है।

-वेदांत दर्शन

Sikandar_Khan
06-02-2011, 08:40 AM
ब्रह्मज्ञानी, आत्मसाक्षात्कार कर जब अतीन्द्रिय
अवस्था को प्राप्त कर पूर्ण होता है,
तब वह अपने शरीर का बोझ अपने कंधों पर ढोता है।

-आनंदमूर्ति मां

Nitikesh
06-02-2011, 04:57 PM
सम्मान कभी मुफ्त में नहीं मिलती है/
इसे अपने कर्मों के द्वारा कमाया जाता है/

Sikandar_Khan
07-02-2011, 07:15 PM
काम, क्रोध तथा लोभ यह तीन प्रकार के नरक द्वारा आत्मा मलिन हो जाता है। इसलिए इन तीनों का त्याग कर देना चाहिए गीता

Sikandar_Khan
09-02-2011, 10:31 AM
मनुष्य परिस्थितियोँ का दास नही , वह उनका निर्माता ,नियंत्रणकर्ता और स्वामी है | श्रीराम शर्मा आचार्य

Sikandar_Khan
09-02-2011, 10:34 AM
आदमी काम की अधिकता से नहीँ वरन् उसे भार समझकर अनियमित रूप से करने पर थकता है | श्रीराम शर्मा आचार्य

Sikandar_Khan
13-02-2011, 09:40 AM
आत्मवान व्यक्ति सभी को अपनी आत्मा में
और स्वयं को सभी की आत्मा में एकत्व परमात्व भाव से देखता है।

अद्वैत वेदान्त

Sikandar_Khan
13-02-2011, 09:41 AM
आत्म तत्त्व के दर्शन, जागरण और समुन्नयन के लिए चार सोपान आवश्यक हैं—आत्म-निरीक्षण, आत्म-सुधार, आत्म-निर्माण और आत्म-विकास।

-स्वामी अवधेशानंद गिरी

Sikandar_Khan
14-02-2011, 08:08 AM
जो स्वयं को चैतन्यस्वरूप आत्माराम मानता है,
वह बादशाह है। कल्पनाओं और चिंताओं में मग्न मनसाराम सदा दुख प्राप्त करता है।

-आसाराम बापू जी

Sikandar_Khan
14-02-2011, 08:09 AM
आत्मस्वरूप का बोध होने पर जगत तमाशा दीखने लगेगा और फिर आप दुख में भी हंसने लगोगे।

-स्वामी सत्यमित्रानंद जी

Sikandar_Khan
15-02-2011, 09:19 AM
जीवन एक अंतहीन यात्रा है—जन्म-मरण, सायुज्य-ज्ञालोक्य, सामीप्य इसके पड़ाव हैं।
परंतु यात्रा का अंत है—स्वयं आत्मा को उपलब्ध हो जाना।

-स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज

Sikandar_Khan
16-02-2011, 11:08 AM
क्षुधा, पिपासा, शोक, मोह, जरा, मृत्यु से परे है, वही आत्मा है।

-याज्ञवलक्य

Sikandar_Khan
20-02-2011, 10:41 AM
वह आत्मा बिना पैरोँ के चलता है , बिना ही कान के सुनता है, वह कुछ न करके सभी कर्म करता है |

-रामचरितमानस

Bhuwan
21-02-2011, 04:59 AM
वाह सिकंदर भाई, सच में अनमोल वचन कहें हैं आपने.

Sikandar_Khan
25-02-2011, 03:21 PM
सतत आराधना करने का फल धन दौलत नही है,
अपितु चित की निर्मलता है !

Sikandar_Khan
27-02-2011, 12:55 AM
प्रभु तो सतत हमारे साथ है, सिर्फ़ हमे देखना सीखना है !

Sikandar_Khan
10-03-2011, 08:14 AM
यदि प्रभु जीव को कुछ ना दे तो, उसमे भी प्रभु की कृपा ही है !
प्रभु का अनुगृह तथा निगृह दोनों ही प्रभु की कृपा है !

A-TO-Z
11-03-2011, 10:44 AM
प्रजा के सुख में ही राजा का सुख और प्रजा के हित में ही राजा को अपना हित समझना चाहिये । आत्मप्रियता में राजा का हित नहीं है, प्रजा की प्रियता में ही राजा का हित है। — चाणक्य

Sikandar_Khan
14-03-2011, 10:21 AM
यह आत्मा ही सुनने, चिंतन करने और ध्यान करने योग्य है,
अन्य सभी सांसारिक कर्म तो व्यर्थ हैं।

-उपनिषद्

Sikandar_Khan
21-03-2011, 09:09 PM
जिस प्रकार दूध में मिलकर दूध, तैल में मिलकर तैल और जल में मिलकर जल एक ही हो जाते हैं, वैसे ही आत्मज्ञानी आत्मा में लीन होने पर आत्मस्वरूप ही हो जाते हैं।

विवेकचूड़ामणि

Sikandar_Khan
24-03-2011, 09:13 AM
यह जो ज्ञानस्वरूप इन्द्रियों से घिरा हुआ हृदय के अंदर ज्योति पुरुष है, यही आत्मा है।

-बृहदारण्यक उपनिषद्

Sikandar_Khan
01-04-2011, 05:12 PM
एकांत में रहना महान आत्माओं का भाग्य है।

-शोपेनहार

naman.a
01-04-2011, 10:42 PM
परत्रिय मात समान समज, परधन धुरी समान
इतने मे हरि ना मिले तो तुलसीदास जमान

गोस्वामी तुलसीदास जी ने ये बड़ी विलक्षण बात कही है उन्होने कहा है कि

पराई स्त्री को माता के समान और पराये धन को धुल के समान समजो जिस मनुष्य मे ये दोनो गुण आ गये और उसे परमेश्वर ना मिले तो उसकी वो खुद जमानत देने को तैयार है ।

मित्रो रावण मे ये दो ही अवगुण थे इसलिये उसकी दुर्गती हुई ।

किसी एक मेरे मित्र ने मुझे कहा था कि रावण के 10 सिर और बीस आखे थी और उसने एक पराई स्त्री पर बुरी नजर डाली तो उसकी दशा क्या हुई। पर आज हमारे तो 1 सिर और 2 आंखे है और ना जाने हम दिन मे कितने बार पराई स्त्री को वासना की निगाहो से देखते है तो हमारी हालत किया होगी ।:bang-head::bang-head:

Sikandar_Khan
03-04-2011, 11:57 AM
सृष्टि उसी (आत्मा) का खेल है, वही खिलाड़ी है, वही क्रीड़ास्थल है।
ये सारी अभिव्यक्तियां उसके आनन्द रूप की ही अभिव्यक्तियां हैं।

अरविंद

Bholu
06-04-2011, 12:56 AM
राम न मारे काहू को ऐसे भोले राम आपउ से मर जायेँगेँ कर कर खोटे काम

Sikandar_Khan
06-04-2011, 08:01 PM
आत्मा की प्राथमिक विधा यह है कि आत्मा न ही कोई विषय है, न ही विषयरूप है।

-कृष्णचन्द्र भट्टाचार्य

Sikandar_Khan
07-04-2011, 01:59 PM
प्रभु तो सतत हमारे साथ है, सिर्फ़ हमे देखना सीखना है !

Bholu
07-04-2011, 02:11 PM
सबका मालिक एक

Sikandar_Khan
10-04-2011, 10:35 AM
अमरता आत्मा में निहित सभी शक्तियों की परिणति है।

-मुहम्मद इकबाल

Sikandar_Khan
26-06-2011, 03:37 PM
प्रसन्न रहने के दो ही उपाय हैँ ,
आवश्यकताएं कम करेँ और परिस्थितियोँ से तालमेल बिठाएं |

श्रीराम आर्चाय

Sikandar_Khan
26-06-2011, 04:01 PM
उन्हे मत सराहो, जिनने अनितिपूर्वक सफलता पाई और सम्पत्ति कमाई |

श्रीराम शर्मा आर्चाय

Sikandar_Khan
03-08-2011, 07:59 AM
भगवान किसी को कर्म, ज्ञान, या साधन से नही मिलेंगे !
भगवान तो केवल लगन से मिलेंगे !

Sikandar_Khan
10-08-2011, 11:12 AM
हर स्थिति में समता ही ज्ञान है, और विषमता ही अज्ञान है !

Sikandar_Khan
10-08-2011, 11:34 AM
भक्त्ति में तर्क नही चलता !

Sikandar_Khan
04-09-2011, 12:14 PM
अल्फाज वो फूल हैँ जो कभी नही मुरझाते और आने वाली नस्लोँ को रूह की ताजगी बख्शते हैँ !

Sikandar_Khan
24-09-2011, 10:02 AM
कई विषयों के बारे में थोडा थोडा ज्ञान होने से बेहतर है कि केवल कुछ या केवल एक विषय में ही मनुष्य निपुण यानि निष्णात हो ! तात्पर्य यह कि बहुत विषयों के कुछ कुछ ज्ञान से केवल कुछ विषय का पूरा ज्ञान होना अच्छा है !

Bholu
24-09-2011, 10:20 AM
कई विषयों के बारे में थोडा थोडा ज्ञान होने से बेहतर है कि केवल कुछ या केवल एक विषय में ही मनुष्य निपुण यानि निष्णात हो ! तात्पर्य यह कि बहुत विषयों के कुछ कुछ ज्ञान से केवल कुछ विषय का पूरा ज्ञान होना अच्छा है !

सत्य बचन सिकन्दर भैय्या
मै भी इस बात पर अमल करता हूँ
और भी कुछ लिखे
मजा आ गया
आप प्लीज कुछ और भी लिखे

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:19 PM
सारा जगत स्वतंत्रता के लिए लालायित रहता है फिर भी प्रत्येक जीव अपने बंधनो को प्यार करता है। यही हमारी प्रकृति की पहली दुरूह ग्रंथि और विरोधाभास है।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:19 PM
सत्याग्रह की लड़ाई हमेशा दो प्रकार की होती है। एक ज़ुल्मों के खिलाफ़ और दूसरी स्वयं की दुर्बलता के विरुद्ध।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:19 PM
कष्ट ही तो वह प्रेरक शक्ति है जो मनुष्य को कसौटी पर परखती है और आगे बढ़ाती है।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:20 PM
तप ही परम कल्याण का साधन है। दूसरे सारे सुख तो अज्ञान मात्र हैं।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:22 PM
संयम संस्कृति का मूल है। विलासिता निर्बलता और चाटुकारिता के वातावरण में न तो संस्कृति का उद्भव होता है और न विकास।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:22 PM
जो सत्य विषय हैं वे तो सबमें एक से हैं झगड़ा झूठे विषयों में होता है।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:23 PM
जिस तरह एक दीपक पूरे घर का अंधेरा दूर कर देता है उसी तरह एक योग्य पुत्र सारे कुल का दरिद्र दूर कर देता है

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:23 PM
सही स्थान पर बोया गया सुकर्म का बीज ही महान फल देता है।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:24 PM
चाहे गुरु पर हो या ईश्वर पर, श्रद्धा अवश्य रखनी चाहिए। क्यों कि बिना श्रद्धा के सब बातें व्यर्थ होती हैं।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:24 PM
यदि असंतोष की भावना को लगन व धैर्य से रचनात्मक शक्ति में न बदला जाए तो वह ख़तरनाक भी हो सकती है।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:24 PM
प्रजा के सुख में ही राजा का सुख और प्रजाओं के हित में ही राजा को अपना हित समझना चाहिए। आत्मप्रियता में राजा का हित नहीं है, प्रजाओं की प्रियता में ही राजा का हित है।
- चाणक्य

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:24 PM
द्वेष बुद्धि को हम द्वेष से नहीं मिटा सकते, प्रेम की शक्ति ही उसे मिटा सकती है।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:24 PM
साहित्य का कर्तव्य केवल ज्ञान देना नहीं है परंतु एक नया वातावरण देना भी है।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:25 PM
लोकतंत्र के पौधे का, चाहे वह किसी भी किस्म का क्यों न हो तानाशाही में पनपना संदेहास्पद है।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:25 PM
बाधाएँ व्यक्ति की परीक्षा होती हैं। उनसे उत्साह बढ़ना चाहिए, मंद नहीं पड़ना चाहिए।
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Gaurav Soni
30-09-2011, 04:25 PM
जिस प्रकार रात्रि का अंधकार केवल सूर्य दूर कर सकता है, उसी प्रकार मनुष्य की विपत्ति को केवल ज्ञान दूर कर सकता है।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:27 PM
धर्म करते हुए मर जाना अच्छा है पर पाप करते हुए विजय प्राप्त करना अच्छा नहीं।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:27 PM
दंड द्वारा प्रजा की रक्षा करनी चाहिए लेकिन बिना कारण किसी को दंड नहीं देना चाहिए।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:27 PM
शाश्वत शांति की प्राप्ति के लिए शांति की इच्छा नहीं बल्कि आवश्यक है इच्छाओं की शांति।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:28 PM
धर्म का अर्थ तोड़ना नहीं बल्कि जोड़ना है। धर्म एक संयोजक तत्व है। धर्म लोगों को जोड़ता है।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:28 PM
त्योहार साल की गति के पड़ाव हैं, जहाँ भिन्न-भिन्न मनोरंजन हैं, भिन्न-भिन्न आनंद हैं, भिन्न-भिन्न क्रीडास्थल हैं।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:28 PM
दुखियारों को हमदर्दी के आँसू भी कम प्यारे नहीं होते।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:28 PM
अधिक हर्ष और अधिक उन्नति के बाद ही अधिक दुख और पतन की बारी आती है।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:28 PM
अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से
उन्हें सींच-सींच कर महाप्राण शक्तियाँ बनाते हैं।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:29 PM
जंज़ीरें, जंज़ीरें ही हैं, चाहे वे लोहे की हों या सोने की, वे समान रूप से तुम्हें गुलाम बनाती हैं।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:29 PM
जैसे अंधे के लिए जगत अंधकारमय है और आँखों वाले के लिए प्रकाशमय है वैसे ही अज्ञानी के लिए जगत दुखदायक है और ज्ञानी के लिए आनंदमय।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:30 PM
नम्रता और मीठे वचन ही मनुष्य के आभूषण होते हैं। शेष सब नाममात्र के भूषण हैं।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:30 PM
वही उन्नति करता है जो स्वयं अपने को उपदेश देता है।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:31 PM
अपने विषय में कुछ कहना प्राय: बहुत कठिन हो जाता है क्यों कि अपने दोष देखना आपको अप्रिय लगता है और उनको अनदेखा करना औरों को।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:31 PM
करुणा में शीतल अग्नि होती है जो क्रूर से क्रूर व्यक्ति का हृदय भी आर्द्र कर देती है।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:31 PM
हताश न होना ही सफलता का मूल है और यही परम सुख है।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:31 PM
मित्रों का उपहास करना उनके पावन प्रेम को खंडित करना है।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:31 PM
नेकी से विमुख हो जाना और बदी करना नि:संदेह बुरा है, मगर सामने हँस कर बोलना और पीछे चुगलखोरी करना उससे भी बुरा है।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:32 PM
जय उसी की होती है जो अपने को संकट में डालकर कार्य संपन्न करते हैं। जय कायरों की कभी नहीं होती।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:32 PM
कवि और चित्रकार में भेद है। कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:32 PM
जीवन का महत्व तभी है जब वह किसी महान ध्येय के लिए समर्पित हो। यह समर्पण ज्ञान और न्याययुक्त हो।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:32 PM
तलवार ही सब कुछ है, उसके बिना न मनुष्य अपनी रक्षा कर सकता है और न निर्बल की।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:32 PM
मनुष्य क्रोध को प्रेम से, पाप को सदाचार से लोभ को दान से और झूठ को सत्य से जीत सकता है।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:33 PM
स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है!

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:36 PM
सच्चे साहित्य का निर्माण एकांत चिंतन और एकांत साधना में होता है।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:36 PM
कुटिल लोगों के प्रति सरल व्यवहार अच्छी नीति नहीं।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:36 PM
अनुभव, ज्ञान उन्मेष और वयस् मनुष्य के विचारों को बदलते हैं।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:36 PM
जो अपने ऊपर विजय प्राप्त करता है वही सबसे बड़ा विजयी हैं।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:36 PM
अधिक अनुभव, अधिक सहनशीलता और अधिक अध्ययन यही विद्वत्ता के तीन महास्तंभ हैं।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:36 PM
जो दीपक को अपने पीछे रखते हैं वे अपने मार्ग में अपनी ही छाया डालते हैं।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:37 PM
जहाँ प्रकाश रहता है वहाँ अंधकार कभी नहीं रह सकता।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:37 PM
मनुष्य का जीवन एक महानदी की भाँति है जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओं में राह बना लेती है।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:37 PM
प्रत्येक बालक यह संदेश लेकर आता है कि ईश्वर अभी मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:38 PM
कविता का बाना पहन कर सत्य और भी चमक उठता है।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:38 PM
हताश न होना सफलता का मूल है और यही परम सुख है। उत्साह मनुष्य को कर्मो में प्रेरित करता है और उत्साह ही कर्म को सफल बनता है।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:38 PM
अनुराग, यौवन, रूप या धन से उत्पन्न नहीं होता। अनुराग, अनुराग से उत्पन्न होता है।

Gaurav Soni
30-09-2011, 04:38 PM
जैसे जल द्वारा अग्नि को शांत किया जाता है वैसे ही ज्ञान के द्वारा मन को शांत रखना चाहिए।

Sikandar_Khan
30-10-2011, 09:27 AM
हर स्थिति में समता ही ज्ञान है, और विषमता ही अज्ञान है !

Sikandar_Khan
28-03-2012, 08:02 PM
शिक्षक कभी साधारण नही होते
प्रलय और निर्माण उसकी गोद मे पलते हैँ |

Sikandar_Khan
08-04-2012, 09:50 PM
ह्रदय की निकटता ही सबसे बड़ी निकटता है !

Sikandar_Khan
04-12-2012, 05:38 PM
अमरता आत्मा में निहित सभी शक्तियों की परिणति है।

मुहम्मद इकबाल