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View Full Version : चोटों पे चोट देते ही जाने का शुक्रिया!!!


Rahul.jha
10-09-2013, 03:20 PM
चोटों पे चोट देते ही जाने का शुक्रिया ,पत्थर को बुत की शक्ल में लाने का शुक्रिया !

जागा रहा तो मैंने नए काम कर लिए ,ऐ नींद आज तेरे न आने का शुक्रिया !

सूखा पुराना जख्म नए को जगह मिली ,स्वागत नए का और पुराने का शुक्रिया !

आती न तुम तो क्यों मैं बनाता ये सीढ़ियाँ ,दीवारों, मेरी राह में आने का शुक्रिया !

आँसू-सा माँ की गोद में आकर सिमट गया ,नजरों से अपनी मुझको गिराने का शुक्रिया !

अब यह हुआ कि दुनिया ही लगती है मुझको घर ,यूँ मेरे घर में आग लगाने का शुक्रिया !

गम मिलते हैं तो और निखरती है शायरी ,यह बात है तो सारे जमाने का शुक्रिया !

अब मुझको आ गए हैं मनाने के सब हुनर ,यूँ मुझसे `कुँअर' रूठ के जाने का शुक्रिया !

==============
By - कुँअर बेचैन

internetpremi
10-09-2013, 04:07 PM
कुँवर बेचैन की इस पठनीय रचना को यहाँ पेश करने के लिए आपका शुकरिया

jai_bhardwaj
11-09-2013, 06:24 PM
चोटों पे चोट देते ही जाने का शुक्रिया ,
पत्थर को बुत की शक्ल में लाने का शुक्रिया !
जागा रहा तो मैंने नए काम कर लिए ,
ऐ नींद आज तेरे न आने का शुक्रिया !
सूखा पुराना जख्म नए को जगह मिली ,
स्वागत नए का और पुराने का शुक्रिया !
आती न तुम तो क्यों मैं बनाता ये सीढ़ियाँ ,
दीवारों, मेरी राह में आने का शुक्रिया !
आँसू-सा माँ की गोद में आकर सिमट गया ,
नजरों से अपनी मुझको गिराने का शुक्रिया !
अब यह हुआ कि दुनिया ही लगती है मुझको घर ,
यूँ मेरे घर में आग लगाने का शुक्रिया !
गम मिलते हैं तो और निखरती है शायरी,
यह बात है तो सारे जमाने का शुक्रिया !
अब मुझको आ गए हैं मनाने के सब हुनर,
यूँ मुझसे `कुँअर' रूठ के जाने का शुक्रिया !

by - कुँअर बेचैन
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पत्थर को बुत की शक्ल में लाने का शुक्रिया

मैं ग़ज़ल की उपरोक्त पंक्ति में ही विंध कर रह गया ....निकलने के अनथक प्रयासों के बाद सफल होने पर बाहर निकला भी तो हृदय वहीं का वहीं छूट गया ......

स्तरीय ग़ज़ल को साझा करने के लिए हार्दिक आभार बन्धु।

rajnish manga
11-09-2013, 09:02 PM
वरिष्ठ कवि कुंवर बैचेन की उत्कृष्ट ग़ज़ल को फोरम पर प्रस्तुत करने के लिये धन्यवाद. ग़ज़ल का एक एक शे'र सारगर्भित है.

dipu
11-09-2013, 09:14 PM
nice :bravo:

Advo. Ravinder Ravi Sagar'
11-09-2013, 11:51 PM
वाह वाह बहुत खूब.