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View Full Version : भूले से आया है वो


alfaaz
11-09-2013, 10:09 AM
प्रस्तूत कविता किसी जिवीत या मृत व्यक्ति पे आधारित नही है बल्कि एक ऐसे वर्ग पे आधारित है जिसका ये तय होना खतरे में पड गया है कि वो जिवीत है या मृत ! कविता की लंबाई के लिये माफ़ी चाहूंगा. गौरतलब है की ये कसीदा पढते पढते मैं खुद लंबा हो चुका हूं ! तो जनाब पेशे खिदमत है...भूले से आया है वो

भूले से आया है वो

इक नेता पहूंचा पागलखाने में
दहशत फ़ैली वंहा के पागलों में
फ़िर वंहा के इक बूजुर्ग शायर ने समझाया
डरों मत, भूले से आया है वो
संसद समझ के पागलखाने में

फ़िर इक दिन पहूंचा सब्जी मंडी में
ह्डकंप मच गई आलुगोबी में बैंगनकरेले में
फ़िर इक पके हूऎ दूधी ने समझाया
डरों मत, भूले से आया है वो
वोट खरीद्ने सब्जी मंडी में

और किसी दिन पहूंचा मंदिर में
हैरान परेशान सारे मंदिर में
अपने उस्ताद को देख इक जूतेचोर ने समझाया
डरों मत, भूले से आया है वो
काला पैसा जमा करने मंदिर में

इक दिन पहूंचा समशान में
वंहा के भूत-प्रेत भी आ गये टेन्शन में
फ़िर उसीके एक मौसी डायन ने समझाया
डरों मत, भूले से आया है वो
अपना बंगला बनवाने समशान में


आखिर जनाब पहूंचे मैकदे में
साखी मैकश सारे आ गये सक्ते में
"राज" ने अपने तपस्वियों को समझाया
डरों मत, सही आया है वो
अब इसका नशा हम उतारेंगे मैकदे में

Advo. Ravinder Ravi Sagar'
11-09-2013, 11:55 PM
वाह वाह बहुत खूब.