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View Full Version : गोर से देखना अपना ही घर जला है.!!


Advo. Ravinder Ravi Sagar'
12-09-2013, 05:03 PM
कौन कहता है के खुदा सिर्फ़ तेरा है.!
कौन कहता है के ईश्वर बस मेरा है.!!
नानक की नगरी है बुद्द की बस्ती.!
इशू ने सराहा है इंसानो की धरती.!!
राम-रहीम में फ़र्क करने वाला इंसान नहीं.!
इंसानियत को जो माने मानव वही है.!!
कौन कहता है मैने खुदा देखा है.!
हक़ीक़त में उसने इंसान इंससानो में देखा है.!!!!
सुना है कहीं धुआँ उठा मज़हब के नाम पर.!
गोर से देखना अपना ही घर जला है.!!
जो खून बहा हिंदू-मुसलमान का नहीं.!
अपने ही वतन की रूह को घायल किया है.!!
नासमझ है वो जो तेरा-मेरा करता है.!
मंदिर-मस्जिद में बाँट मालिक को देखता है.!!
कौन कहता है माँ अलग-अलग होती है.!
गोर से देखो हर माँ में ममता बस्ती है.!!!!

Koun kehata hai ke Khuda sirf tera hai.!
Koun kehata hai ke Ishwar bus mera hai.!!
Nanak ki Nagari hai Budd ki Basti.!
Ishu ne saraha hai Insaano ki Dharti.!!
Ram-Rahim mein phark karne wala Insaan nahin.!
Insaaniyat ko jo maane Manav wahi hai.!!
Koun kehata hai Maine Khuda dekha hai.!
Haqeeqat mein usne Insaan Inssano mein dekha hai.!!!!
Suna hai kahin Dhuan utha Majhab ke Naam par.!
Gor se dekhna Apna hi Ghar Jala hai.!!
Jo khoon baha Hindu-Musalmaan ka nahin.!
Apne hi Watan ki Ruh ko Ghayal kiya hai.!!
Nasamajh hai wo jo tera-mera karta hai.!
Mandir-Masjid mein Baant Maalik ko dekhta hai.!!
Koun kehata hai Maan Alag-Alag hoti hai.!
Gor se Dekho har Maan mein Mamata Basti hai.!!!!

sombirnaamdev
13-09-2013, 11:05 PM
सुना है कहीं धुआँ उठा मज़हब के नाम पर.!
गोर से देखना अपना ही घर जला है.!!

बेहतरीन और बढ़िया देनी वाली एक उत्तम कविता धन्यवाद advocate sahab

Advo. Ravinder Ravi Sagar'
14-09-2013, 05:28 PM
शुक़रिया!!!!!!!!!!!!

rajnish manga
14-09-2013, 07:24 PM
कौन कहता है के खुदा सिर्फ़ तेरा है.!
कौन कहता है के ईश्वर बस मेरा है.!!
नानक की नगरी है बुद्द की बस्ती.!
इशू ने सराहा है इंसानो की धरती.!!
राम-रहीम में फ़र्क करने वाला इंसान नहीं.!
इंसानियत को जो माने मानव वही है.!!
कौन कहता है मैने खुदा देखा है.!
हक़ीक़त में उसने इंसान इंससानो में देखा है.!!!!
सुना है कहीं धुआँ उठा मज़हब के नाम पर.!
गोर से देखना अपना ही घर जला है.!!
जो खून बहा हिंदू-मुसलमान का नहीं.!
अपने ही वतन की रूह को घायल किया है.!!
नासमझ है वो जो तेरा-मेरा करता है.!
मंदिर-मस्जिद में बाँट मालिक को देखता है.!!
कौन कहता है माँ अलग-अलग होती है.!
गोर से देखो हर माँ में ममता बस्ती है.!!!!



आज के हालात की पृष्ठभूमि में यह बहुत प्रभावशाली रचना है, रवि जी. लोगों की हिप्पोक्रिसी पर करारी चोट की गयी है. धन्यवाद.

Advo. Ravinder Ravi Sagar'
14-09-2013, 09:28 PM
आपका बहुत बहुत शुक़रिया!!