Dr. Rakesh Srivastava
14-09-2013, 12:14 PM
डायन राजनीति के जब से गाँव में साये हैं ;
घर - घर लोगों ने फिर से सुख चैन गंवाये हैं .
अच्छे ख़ासे रहते थे सब मिल जुल बस्ती में ;
कुछ सम्मोहन कर्ताओं ने चित भरमाये हैं .
मरहम दिन में बांट रहे हर इक ज़ख़्मी को वो ;
रात जिन्होंने बस्ती में बारूद बिछाये हैं .
असुरक्षित अनुभव कर जिनके पीछे उमड़े लोग ;
उन्हें वहम है , अब ये सब उनके हमसाये हैं .
कट मर कर , उन्माद उतरने पर समझेंगे लोग ;
हम सब प्यादे उनके , जो शतरंज बिछाये हैं .
रंगे हाथ का सबब अगर मुन्सिफ़ ने पूछा भी ;
क़ातिल देंगे तर्क , जश्न था , हिना रचाये हैं .
पता है , कुर्सी नंगा नाच दिखा सकती , फिर भी ;
क्यों हम सबने ख़ुद चुन के नकटे बैठाये हैं !
रचयिता ~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव , गोमती नगर , लखनऊ .
घर - घर लोगों ने फिर से सुख चैन गंवाये हैं .
अच्छे ख़ासे रहते थे सब मिल जुल बस्ती में ;
कुछ सम्मोहन कर्ताओं ने चित भरमाये हैं .
मरहम दिन में बांट रहे हर इक ज़ख़्मी को वो ;
रात जिन्होंने बस्ती में बारूद बिछाये हैं .
असुरक्षित अनुभव कर जिनके पीछे उमड़े लोग ;
उन्हें वहम है , अब ये सब उनके हमसाये हैं .
कट मर कर , उन्माद उतरने पर समझेंगे लोग ;
हम सब प्यादे उनके , जो शतरंज बिछाये हैं .
रंगे हाथ का सबब अगर मुन्सिफ़ ने पूछा भी ;
क़ातिल देंगे तर्क , जश्न था , हिना रचाये हैं .
पता है , कुर्सी नंगा नाच दिखा सकती , फिर भी ;
क्यों हम सबने ख़ुद चुन के नकटे बैठाये हैं !
रचयिता ~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव , गोमती नगर , लखनऊ .