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View Full Version : ग़ज़ल: आबो-दाना इस शहर से


rajnish manga
30-09-2013, 12:50 AM
ग़ज़ल: आबो-दाना इस शहर से

दो कदम हम हमकदम रह कर जुदा हो जायेंगे
हमको पता क्या था कि ऐसे सानिहा हो जायेंगे

उठ गया जब अपनी बातों से हमारा इख्तियार
दोस्त फिर क्या दोस्ती की इन्तिहा हो जायेंगे

आबो दाना इस शहर से उठ गया जब दोस्तो
सिलसिले मिलने मिलाने के रफा हो जायेंगे

दो दिलों की धड़कने, थी एक किसको था पता
कभी फासले दोनों दिलों के दरमियां हो जायेंगे

ऐसा भी होना लिखा था दोस्ती के नाम पर
दोस्त मिल बैठेंगे बरहम, फिर जुदा हो जायेंगे

कब मिलेंगे कौन जाने इन मुलाकातों के बाद
जब सभी हमसाये यूं इन्सांनुमां हो जायेंगे

वो हमारे ख्वाब जितने थे तुम्हारे भी तो थे
किसने सोचा था कि सब के सब हवा हो जायेंगे

अपनी अनां को भूल जब एका करेंगे सारे लोग
मिलजुल के हम अहले-वफ़ा हिन्दोस्तां हो जायेंगे

अपने अपने रंग हों और जब हमाहंगी भी हो
क्यों न दस्तो-पा-ओ-दिल रंगे-हिना हो जायेंगे

sombirnaamdev
01-10-2013, 12:23 AM
आबो दाना इस शहर से उठ गया जब दोस्तो
सिलसिले मिलने मिलाने के रफा हो जायेंगे

बहुत ही सुंदर कविता रजनीश जी धन्यावाद

rajnish manga
01-10-2013, 11:45 AM
आबो दाना इस शहर से उठ गया जब दोस्तो
सिलसिले मिलने मिलाने के रफा हो जायेंगे

बहुत ही सुंदर कविता रजनीश जी धन्यावाद




आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, भाई सोमबीर जी.