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View Full Version : हे बापू


rajnish manga
01-10-2013, 06:04 PM
2 अक्टूबर महात्मा गांधी की जयंती के अवसर पर
हे बापू


http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=30747&stc=1&d=1380644643

(एक)
आज फिर
तुम्हारा निराकार अस्तित्व
सबको याद आया है
आज फिर एक सलीब
सजाया जा रहा है.
आज फिर
रोशनी की तलाश में
भटकेंगे लोग
आज फिर
तुम्हारे बुत से
तुम्हारी आँखें चुरायी जायेंगी.
यूँ तो यह सब
कई दफा तुमने भी
देखा होगा
फिर भी बताये देता हूँ
पिछली बार की तरह
एक षड़यंत्र है
तुम्हें पूजते पूजते
मार देने का.
तुम्हारे सामने हाथ जोड़
खड़े जब हों
तुम्हारे प्यारे शिष्य
और ऊच्चारण करें तुम्हारे नाम का
अतीव कातर स्वरों में
समझ लेना
बगल की छुरियों से
कोई राम छला जाएगा.

rajnish manga
01-10-2013, 06:06 PM
(दो)

दो पीढ़ियाँ खड़ी हैं
आमने – सामने
फैंसले के नाम पर
फिर भी फासला है एक
फिर भी एक खाई है
जिसको पूरा जा नहीं सकता.
एक रीतापन है सम्मुख
जिसे कम से कम वर्तमान तो
भर नहीं ही पायेगा.
इस समस्या का हल तो नहीं
हल का धोखा अवश्य उपजाया गया है
अनेक बार.

एक पीढ़ी उन्मादिनी है
दूसरी दिग्भ्रमित.
उन्मादिनी पीढ़ी
योजनाबद्ध तरीके से
हँसते हँसते रो पड़ती है
और रोते रोते रो देती है
कपड़े फाड़ लेती है
नए वस्त्रों के लिये.
नए नए मुखौटे लगा कर
सोचती है किसी ने देखा नहीं.
इसके उपरांत होता है
नयी नयी विकृतियों का नाच
अर्थहीन किन्तु स्वार्थवान.

rajnish manga
01-10-2013, 06:07 PM
(तीन)

उन्मादिनी पीढ़ी के लोग
सोचते रहते
आयु भर पर्दा उठाने गिराने को छोड़
नाटकों में कोई सार्थक भूमिका
न जुटा पाये
किसी न किसी नाटक में
नायक बनें तो बात बने.
जन सेवा के स्थान पर
अपनी तूतियाँ बुलवा सकते हैं
अथवा
जूतियाँ चलवा सकते हैं
शोर मचवा सकते हैं
दिशाभ्रम फैला सकते हैं
व्यवस्था के नाम पर अव्यवस्था का
नंगा नाच भी दिखा सकते हैं.

rajnish manga
01-10-2013, 09:04 PM
(चार)

दूसरी है दिग्भ्रमित पीढ़ी.
उन्मादिनी पीढ़ी की छाया
पूर्ण ग्रहण की भांति जिस पर
गिरती है
अपने आपको पहचानने की
कष्टप्रद यात्रा से चूर हो
सो रही सी जागती है जागती सी सो रही.
क्या मिला इसको
विरासत में
चंद एक नाम सिजदे के लिये
चंद एक दलाल जिन्होंने
तमाम दिशा सूचक यंत्र
समुद्र में फिकवा दिए
और घोषणा कर दी
सूर्य जिधर से उगता है
उधर अँधेरा है
बहुत अँधेरा है.
उन्मादिनी पीढ़ी के लोग
दिशाओं का भ्रम फ़ैलाने लगे.

रहनुमाओं की ज़िम्मेदारी का
लबादा ओढ़ कर
दूसरी पीढ़ी का आयाम ज्ञान
नोच नोच कर चट करने लगे.
ताकि दिग्भ्रमित पीढ़ी
अंधी गलियों में
अफीमचियों की तरह भटकते हुये
उन्मादिनी पीढ़ी द्वारा
छोड़े गए पद चिन्हों को
दिशा संकेत मान कर
आतशी शीशे से
देखती रहे
डगमगाती रहे.

rajnish manga
01-10-2013, 09:06 PM
(पाँच)

विष तो मारक है
तोड़ करने पर भी
असर उसका
पूर्णतः मिटता नहीं.
दिग्भ्रमित पीढ़ी ने अपने
स्वाभाविक तेवरों को पा लिया होता
किन्तु अब उन तेवरों में
तेजी कहाँ ?
तेज कहाँ ?
जर हैं, कुंठाएं भी,
अविश्वास का वातावरण
विकसित हुआ, विस्तृत हुआ है.
संशय औ’ शंकाओं का रथ
सवार जिस पर है
एक पीढ़ी का भविष्य
दिशाओं की धुंध में
प्रविष्ट हो कर अग्रसर हुआ
अग्रसर हुआ.

rajnish manga
01-10-2013, 09:08 PM
(छः)

इन दोनों की आतंरिक गुत्थम गुत्था
ले बेठी है उन चरखों को
जिन पर काता जाना था
तुम्हारे आदर्शों का सूत.
सादेपन को तुम्हारे
बेमानी समझ कर
लोगों ने
फुंके हुये चुरुट सा
जूते के नीचे दबा दिया .
तुम्हारा नाम ले कर ये
अपने विरोधियों को
करते हैं नंगा
लेकिन तथ्य कड़वा है
दूसरों को नंगा करने के लिये
जब जब लोग
तुम्हारे नाम का
निरंकुश प्रयोग करते हैं
एक बेगैरत स्पर्धा
एक पिशाच लीला
स्टेज पर
किसी अघोषित कार्यक्रम के समान
खेली जाती है.
हर बार इस खेल के बाद
लोग करते है तुम्हें नंगा
अपनी वहशत में.
उभरने लगते हैं
तुम्हारी देह पर
नीले निशान
ज़हर बुझे तीरों के
घाव नुमायाँ जैसे,
हे राम ....
हे बापू ....

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