PDA

View Full Version : शादी के बाद नौकरी


neha
31-10-2010, 09:10 AM
मुझे यह देखकर काफी हर्ष हो रहा है की इस फोरम पर हिंदी को उचित सम्मान दिया गया है| युवाओ के लिए भी अलग से मंच बनाया गया है.

तो इस युवा मंच पर में पहला थ्रेड बनाते हुआ एक ज्वलंत सामाजिक मुद्दे पर बहस आरम्भ करवाना चाहती हूँ..

मुद्दा है..

क्या आज की युवतियों को पुरूषो के साथ कंधे से कन्धा मिलाता हुआ शादी के बाद नौकरी करनी चाहिए की नहीं? फोरम के सदस्यों का इस बारे में क्या ख्याल है? और अगर नौकरी करनी चाहिए तो वोह अपने घर परिवार की जिम्मेदारी कैसे निभाए?

इस विषय पर अपने विचार रखे|

munneraja
31-10-2010, 12:39 PM
यदि आज के युग में महंगाई और आवश्यकता को देखें तो महिलाओं को नौकरी करनी चाहिए.
बिना दोनों के कमाई के आज खर्चे निकलना और अच्छी जिन्दगी जीना दुश्वार होता जा रहा है.
यदि स्त्रियों की पढाई की तरफ ध्यान दिया जा रहा है तो उनकी पढाई को विशेष महत्व देते हुए उसको उपयोग में भी लेना चाहिए.

घरेलु काम काज में पुरुष भी महिलाओं का हाथ बंटाएं
मुझे ये कहने में कोई झिझक नहीं है कि मेरी पत्नी हाउस वाइफ होते हुए भी सुबह सब्जी आदि काटने का कार्य मैं कर देता हूँ, खाना भी कभी कभार बना देता हूँ.
और कभी कपडे भी धो दिया करता हूँ.

jalwa
31-10-2010, 09:23 PM
मुझे यह देखकर काफी हर्ष हो रहा है की इस फोरम पर हिंदी को उचित सम्मान दिया गया है| युवाओ के लिए भी अलग से मंच बनाया गया है.

तो इस युवा मंच पर में पहला थ्रेड बनाते हुआ एक ज्वलंत सामाजिक मुद्दे पर बहस आरम्भ करवाना चाहती हूँ..

मुद्दा है..

क्या आज की युवतियों को पुरूषो के साथ कंधे से कन्धा मिलाता हुआ शादी के बाद नौकरी करनी चाहिए की नहीं? फोरम के सदस्यों का इस बारे में क्या ख्याल है? और अगर नौकरी करनी चाहिए तो वोह अपने घर परिवार की जिम्मेदारी कैसे निभाए?

इस विषय पर अपने विचार रखे|

नेहा जी, आपका फोरम के प्रति उत्साह देख कर मुझे अपार हर्ष हो रहा है.
मित्र, आपका या विषय आज के समाज के लिए एक बहुत चिंतन करने वाली बात है. आज के समाज में जहाँ स्त्री को एक और घर सँभालने की जिम्मेदारी होती है वहीँ दूसरी और पति के साथ घर चलने की भी. यहाँ देखा जाए तो यदि स्त्री घर चलने के साथ नौकरी भी करे तो उसकी जिम्मेदारी पति की अपेक्षा अधिक हो जाती है. फिर भी समाज वाले कई बार कामकाजी महिलाओं को गलत नजरिये से भी देखते हैं. जबकि उनको उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखना चाहिए.
मेरे ख्याल से महिलाओं को नौकरी करें या न करें ये उनकी स्वेच्छा पर छोड़ देना चाहिए.
धन्यवाद.

jai_bhardwaj
01-11-2010, 01:48 AM
विचारोत्तेजक प्रष्ठभूमि पर निर्मित इस सूत्र के लिए सूत्रधार का अभिनन्दन /

पढी लिखी लडकी
रोशनी घर की //

कन्याओं को शिक्षित करने के लिए सरकार द्वारा प्रचारित इस सरल 'स्लोगन' के नीचे की पंक्ति बहुत कुछ कह रही है / बस बात है तो इसके समझ पाने की /
रोशनी घर की
अर्थात जिस घर में वह रहे उस घर में प्रकाश की तरह रहे /
प्रकाश की आवश्यकता कब होती है ?
जब घर में अंधकार होता है /
कैसा अंधकार ?
अशिक्षा का अंधकार /
कुरीतियों का अंधकार /
पिछड़ेपन का अंधकार /
आर्थिक कमी का अंधकार /
सामाजिक तिरस्कार का अंधकार /
क्या यह सत्य नहीं है कि ऐसे ही बहुत से अंधकारों को नष्ट करने के लिए मात्र एक शिक्षित कन्या की आवश्यकता होती है ?
यदि विपन्नता के अंधकार को नष्ट करना है तो एक शिक्षित कन्या को घर से बाहर निकलकर अपनी प्रतिभा का उपयोग करना ही होगा / आज विश्व की सौ विशिष्ट महिलाओं में जब भारत की चार महिलाओं का नाम आता है तो यह देख कर गर्व होता है / किन्तु क्या यह गर्व की बात है ? नहीं / कदापि नहीं / गर्व तो तब होगा जब इन सौ महिलाओं में भारत की आधी महिलाओं का नाम हो /
यह सत्य है कि एक कामकाजी (मेरा तात्पर्य है देहरी से बाहर निकल कर नौकरी करने वाली) महिला के कन्धों पर कई बोझ आ जाते हैं जैसे कार्यालय में न केवल अधिकारी के कदमों पर कदम रखते हुए आगे पढ़ना है बल्कि आधीनास्थ और सह कर्मियों से बेहतर तालमेल भी बनाए रखना होता है ; गृह कार्यों की जिम्मेदारी भी उसी पर होती है ; बच्चों के अध्ययन से सम्बंधित क्रिया कलापों की जिम्मेदारी के साथ साथ पति की दैहिक संतुष्टि प्रदान करना भी उसकी जिम्मेदारी है /
आज समाज में पर्याप्त परिवर्तन हो चुके हैं / युवक स्वयं कामकाजी युवतियों से विवाह करना चाहते हैं ताकि उन्हें बेहतर आर्थिक प्रष्ठभूमि मिल सके और वे अपनी संतान को उचित संसाधन उपलब्ध करा सकें / युवक आज घरेलु कार्यों में भी सहयोग करते हैं / बच्चों के लिए भी समय देते हैं / उन्हें पता है कि एक कंधे पर अधिक बोझ डालने से जीवन सुखद नहीं रह सकता है / बाहर के झंझावातों से मुक्ति पाने का उत्तम स्थान है अपने परिवार के साथ हंसी खुशी कुछ पल बिताने वाला घर /
अंत में: मेरी राय में महिला यदि बाहर कार्य करती है तो उसके घर के लोग तत्संबंधित कार्यों को आपस में बाँट कर व्यवस्थित कर लेते हैं / हाँ, बच्चों के एकाकी रहने पर माता और पिता में से किसे उनके साथ रहना है यह नौकरी के प्रकार और आर्थिक उपलब्धता पर विचार करके दोनों को ही निर्णय लेना चाहिये / धन्यवाद /

ndhebar
01-11-2010, 06:47 PM
एक बेहद ज्वलंत विषय उठाने और उसपर सूत्र निर्माण करने हेतु सूत्रधार को बधाई

शादी के बाद नौकरी

आज के सन्दर्भ में बहुत कम लोग होंगे जो इसे गलत मानते होंगे, मेरी राय भी उनसे अलग नहीं है/ मेरे ख्याल से भी शादी के पहले हो या बाद महिलाओं को नौकरी करने में कोई परेशानी नहीं है/ पर असली परेशानी तब शुरू होती है जब बात बच्चों की आती है/ आज के सामाजिक परिवेश में संयुक्त परिवार बस कल्पना की बात रह गयी है और एकाकी परिवार जिसमें पति पत्नी और बच्चों के अलावा बस आया होती है/ उसमें दोनों का(पति और पत्नी) कामकाजी होना बच्चों की परवरिश पर असर डालता है और शहरी परिवेश में एक की कमाई से घर चलाना असंभव की हद तक मुश्किल होता है/ फिर सिलसिला शुरू होता है अंतहीन उथल पुथल, दौड़ भाग का जो आजीवन चलता रहता है/

khalid
03-11-2010, 01:39 PM
इतने अच्छे सुत्र के लिए सुत्रधार को बधाई
लेकिन कुछ बातेँ भी हैँ जैसे अगर पति पत्नी को शादी के बाद नौकरी की इजाजत अगर दे देता हैँ तो उन्हेँ भी चाहिए की पति के इजाजत के बगैर किसी पराऐँ मर्द के साथ घुमने फिरने ना जाऐँ और अपने पति को इस बात का एहसास नहीँ होने दे की मैँ भी कमाती हुँ तभी तुम्हारा घर चलता हैँ अन्यथा तुम्हारे कमाई से घर का आधा खर्च भी नहीँ चलता
अगर आँफिस मेँ कोई दिक्कत हो तो अपने पति से भी सलाह जरुर लेँ

ABHAY
21-11-2010, 10:44 AM
हा हा हा आ पहले तो मैं पेट फार के हसना चाहता हू सूत्र या सूत्र धार पे नहीं उन लोगो पे जो शादी के बाद नौकरी ये शादी से पहले नौकरी करने पे लड़की को बुरी नजर से देखते है , कुछ हद तक मैं सही भी मानत हू इन लोगो को मगर देखा जाये तो आज के ज़माने में ये जरुरी है की पति और पत्नी दोनों काम करे तभी घर का खर्च सही से चल सकता है , मैं शादी सुदा तो नहीं हू और ण ही मुझे इसकी जानकारी है मगर एक बात जरुर कहना चाहता हू की ! इस देस में सबसे बरी परेशानी का कारन है , दहेज ,( समाज से जुरे कुछ अनपढ़ लोग और ण उनके पास नए ख्याल है और ण ही पुराने वो तो इन दोनों का मिक्स है इन लोगो से तो दूर ही रहना ठीक है) , अगर दहेज को हटा दिया जाये और उसके जगह पे लड़की को पढ़ा के नोकरी दे दी जाये वो भी शादी से पहले तो कोई भी लड़का वाला दहेज की रासी कम लेगा या नहीं भी ले सकता है ! मगर ये कभी नहीं होने वाला ! हमारे देस के कानून बनाने वाले ही कानून तोरते है सरकार अबतक छोटे लोगो को ही दहेज बढ़ावा देने का जिमेदार मानती है मगर है इसका उल्टा , यहाँ पे ये सोचा जाता है की बड़े लोग के बेटे को इतना दहेज मेला क्यों भाई तो वो बड़े लोग है , अगर हमें भी दहेज मिल जाये तो हम भी बड़े बन सकते है समाज के नजरो में ! ये सब बकबास है !
एक ही बात है आ दहेज को बढ़ावा देने में दो लोगो का ही हात है १. बड़े लोग (नेता , फिल्म स्टार और भी जो इस में आते है ) २. समाज (ये सबसे बड़ा दहेज का कारन है यहाँ लोग दहेज सिर्फ इसलिए लेते है की कोई भी हमें समाज में ण हसे , यहाँ तो ये चलता है की अगर परोसी का लड़का को १ लाख मिला तो अब हमें २ ये उससे भी ज्यादा मिलना चाहिए तभी हमारी इज्जत रहेगी हा हा हा हा आ आ सब के सब गधे है )
और आज यही कारण है की लड़कियों को इतना छुट मिलने के बाद भी वो नहीं पढ़ पा रही है ये उनके पिता उन्हें नहीं पढ़ा रहे है दहेज का रुपया जमा करे ये पढाये ! सबसे बड़ा मुद्दा यही है और जब लड़की पढेगी नहीं तो नोकरी खाक मिलेगी ! मेरे पास बहुतो जानकारी है पढ़े लिखे लोगो की और अनपढ़ लोगो की जो समाज को गन्दा और मजाक बना रहा है और कुछ पढ़े लिखे बुधू की सब का जिमेदार सरकार ही है और यहाँ का कानून ! इस लिए यहाँ पे बात करने से कुछ भी नहीं होने वाला अगर ये बात पुरे जोर शोर से उखारा जाये तो कुछ हो !

uncle
22-11-2010, 08:14 PM
लड़की के पढ़ी लिखी होने का मतलब सिवाय नौकरी के और कुछ नहीं है क्या? लड़की नौकरी करेगी तो घर में ज्यादा आमदनी होगी , ज्यादा खर्च करने की क्षमता होगी , ज्यादा आरामदायक जीवन जी सकेंगे , घर में ज्यादा साजो सामान होगा , परन्तु कभी सोचा है की बच्चों की देखभाल कौन करेगा , उन्हें संस्कार कौन देगा , उन्हें सही और गलत कौन बताएगा , क्योंकि माँ बाप के पास तो उनके लिए समय ही नहीं होता है या फिर अगर माँ बाप बच्चों की देख भाल करते है तो वे अपने कार्य पर पूरा ध्यान नहीं दे पते है , आप देख सकते है जो कामकाजी महिलाये है वे कितना समय कार्य को व् कितना समय घर को देती है बल्कि उन्हें दोहरी जिन्दगी जिनी पड़ती है तो इन सबकी जगह अगर वे सिर्फ अपने घर ही ध्यान दे व् पढ़ लिख कर अपने घर को ही बेहतर ढंग से चलायें तो घर परिवार भी खुश व् महिला भी अपना जो कार्य इश्वर ने उन्हें सोंपा है वे उसे बेहतर तरीके से कर सकती है
एक पहलु और भी है ( यह सिर्फ मेरा मत है ) महिला को नौकरी उसी शर्त में करनी चाहिए जब उसे अकेले घर चलाने के लिए मजबूर होना पड़े अर्थात जब पति न हो वर्ना एक महिला के नौकरी नहीं करने से एक जगह बचती है और वह एक लड़के को मिलती है तो उससे एक परिवार का पेट पलता है जबकि एक महिला का नौकरी करने से सिर्फ ( जहाँ पति पत्नी दोनों नौकरी करते है ) घर में मात्र सुख सुविधा बढती है उधर एक परिवार पलने से वंचित हो जाता है , हमारा देश अभी बहुत बेरोजगारी से जूझ रहा है ऐसे में सिर्फ जरुरत मंद महिलायों को ही नौकरी देनी चाहिए .

aksh
22-11-2010, 11:04 PM
लड़की के पढ़ी लिखी होने का मतलब सिवाय नौकरी के और कुछ नहीं है क्या? लड़की नौकरी करेगी तो घर में ज्यादा आमदनी होगी , ज्यादा खर्च करने की क्षमता होगी , ज्यादा आरामदायक जीवन जी सकेंगे , घर में ज्यादा साजो सामान होगा , परन्तु कभी सोचा है की बच्चों की देखभाल कौन करेगा , उन्हें संस्कार कौन देगा , उन्हें सही और गलत कौन बताएगा , क्योंकि माँ बाप के पास तो उनके लिए समय ही नहीं होता है या फिर अगर माँ बाप बच्चों की देख भाल करते है तो वे अपने कार्य पर पूरा ध्यान नहीं दे पते है , आप देख सकते है जो कामकाजी महिलाये है वे कितना समय कार्य को व् कितना समय घर को देती है बल्कि उन्हें दोहरी जिन्दगी जिनी पड़ती है तो इन सबकी जगह अगर वे सिर्फ अपने घर ही ध्यान दे व् पढ़ लिख कर अपने घर को ही बेहतर ढंग से चलायें तो घर परिवार भी खुश व् महिला भी अपना जो कार्य इश्वर ने उन्हें सोंपा है वे उसे बेहतर तरीके से कर सकती है
एक पहलु और भी है ( यह सिर्फ मेरा मत है ) महिला को नौकरी उसी शर्त में करनी चाहिए जब उसे अकेले घर चलाने के लिए मजबूर होना पड़े अर्थात जब पति न हो वर्ना एक महिला के नौकरी नहीं करने से एक जगह बचती है और वह एक लड़के को मिलती है तो उससे एक परिवार का पेट पलता है जबकि एक महिला का नौकरी करने से सिर्फ ( जहाँ पति पत्नी दोनों नौकरी करते है ) घर में मात्र सुख सुविधा बढती है उधर एक परिवार पलने से वंचित हो जाता है , हमारा देश अभी बहुत बेरोजगारी से जूझ रहा है ऐसे में सिर्फ जरुरत मंद महिलायों को ही नौकरी देनी चाहिए .


लगभग यही विचार पिछले फोरम पर मैंने किसी सूत्र पर पेश किये थे. और यहाँ पर भी में इन विचारों का पूरी तरह से समर्थन करना चाहता हूँ. धन्यवाद.

kuram
29-11-2010, 04:30 PM
जरूर करनी चाहिए शादी के बाद अगर लडकिया नौकरी करती है तो बहुत अच्छा है मेरा मानना है इससे झगडे कम हो जायेंगे क्योंकि दिन भर की थकान के बाद पत्निया इस लायक नहीं रहेगी की पति के साथ लट्ठ बजा सके. और दूसरा पतिदेव का पर्स भी तीस तारीख तक सकारात्मक जवाब ही देगा. दोनों कमाएंगे तो कोई किसी का अहसान मंद नहीं होगा और थोड़ी आजादी भी रहेगी. और तो और आप में कुछ एब या लत है तो चोरी छुपे चालु रख सकते है नहीं तो बीवी को कोई काम तो रहेगा नहीं और सारे दिन सर्लक होम्स की तरह जासूसी करेगी. और सबसे ज्यादा फायदा तो ये होगा की आपको अलग से मौजे में पैसे छुपाकर नहीं रखने पड़ेंगे.

amit_tiwari
29-11-2010, 05:12 PM
जरूर करनी चाहिए शादी के बाद अगर लडकिया नौकरी करती है तो बहुत अच्छा है मेरा मानना है इससे झगडे कम हो जायेंगे क्योंकि दिन भर की थकान के बाद पत्निया इस लायक नहीं रहेगी की पति के साथ लट्ठ बजा सके. और दूसरा पतिदेव का पर्स भी तीस तारीख तक सकारात्मक जवाब ही देगा. दोनों कमाएंगे तो कोई किसी का अहसान मंद नहीं होगा और थोड़ी आजादी भी रहेगी. और तो और आप में कुछ एब या लत है तो चोरी छुपे चालु रख सकते है नहीं तो बीवी को कोई काम तो रहेगा नहीं और सारे दिन सर्लक होम्स की तरह जासूसी करेगी. और सबसे ज्यादा फायदा तो ये होगा की आपको अलग से मौजे में पैसे छुपाकर नहीं रखने पड़ेंगे.

भोलेनाथ के तीसरे बैल की कसम हमें तो लगा गुरु ये सूत्र आपने बना डाला यह बताने को की शादी के बाद नौकरी करना कैसा होता है :gm::gm:

एक बार नए सिरे से सोच कर देखिये सभी !!! क्या इस सब की जरुरत है ? मेरा मतलब है की जब हम कहते हैं स्त्री पुरुष एकसमान तो फिर नौकरी को अपवाद क्यूँ बनाते हैं |
भाई वो भी इंसान है, उसे सोचने दो की करना है या नहीं |||

भाई कैलकुलेटर पर भी आंकड़ा लगाओ तो एक व्यक्ति (पुरुष/स्त्री) की काम करने की आयु २५-६० होती है (सामान्यतया अन्यथा स्वयं के बिजनेस आदि में तो कोई लिमिट ही नहीं) और इस ३५ साल के दरमियान बच्चों को पालने और अधिक सँभालने की जरुरत मात्र ५ साल ही होती है | ३-४ साल से ही बच्चे स्कूल जाने लगते हैं फिर कहाँ उनके पास दिन भर पंचोप्देश की कहानियाँ सुनने का समय होता है | तो सिर्फ पांच साल की आंशिक व्यस्तता के सदके एक व्यक्ति का पूरा जीवन स्वाहा !!!
और फिर बाद में नारे लगवाओ की लड़का लड़की एक समान !

amit_tiwari
29-11-2010, 05:18 PM
इतने अच्छे सुत्र के लिए सुत्रधार को बधाई
लेकिन कुछ बातेँ भी हैँ जैसे अगर पति पत्नी को शादी के बाद नौकरी की इजाजत अगर दे देता हैँ तो उन्हेँ भी चाहिए की पति के इजाजत के बगैर किसी पराऐँ मर्द के साथ घुमने फिरने ना जाऐँ और अपने पति को इस बात का एहसास नहीँ होने दे की मैँ भी कमाती हुँ तभी तुम्हारा घर चलता हैँ अन्यथा तुम्हारे कमाई से घर का आधा खर्च भी नहीँ चलता
अगर आँफिस मेँ कोई दिक्कत हो तो अपने पति से भी सलाह जरुर लेँ

खालिद बंधू आपकी इस पोस्ट पे क्रोध मिश्रित दुःख है और आखिरी रक्तवर्णी लाइन का तो सिर पैर भी नहीं मिला | आज कितने विभाग/कार्य/क्षेत्र हैं की शायद एक को दुसरे के वर्क कल्चर का भी पता नहीं होता |

मैं ऋणात्मक अंक प्रेषित करना चाहता हूँ किन्तु हाल ही में आपको सकारात्मक प्रोत्साहन दिया था अतः तकनीकी कारणों से नहीं कर सकता

YUVRAJ
29-11-2010, 05:27 PM
यह बहुत ही पुरानी सोच है।
आज के वर्तमान समय में ऐसा सोचना सही नहीं लगता। नौकरी के लिए दस से पाँच या छः बजे तक का ही वक्त होता है और दिन में चौबीस घंटे। घर में कैद और पारिवारिक रिश्तों को नाटकीय रूप में दिखाने वाले टेली-सीरियल को देख कर लड़की क्या सिखाएँगी ? बल्कि उल्टा जो सीखा होगा वो भूल जायेंगी। नौकरीपेशा होने पर खुद की स्वतंत्रता और परिवार की खुशी दोनो ही कायम होगी।
आप भी सोचो यदि गाड़ी के दोनों पहिये सही न हो तो गाड़ी का क्या हाल होगा ?
नौकरीपेशा होने से बच्चों को अच्छी शिक्षा {जो की सस्ती नहीं है} और वर्तमान आधुनिक युग की जानकारियाँ और परिवेश का ज्ञान देनेयोग्य आमदनी होगी। वंशानुगत संस्कार तो बच्चों को नौकरी से बचे खाली वक्त में आराम से दिये जा सकते हैं।

लड़की के पढ़ी लिखी होने का मतलब सिवाय नौकरी के और कुछ नहीं है क्या? लड़की नौकरी करेगी तो घर में ज्यादा आमदनी होगी , ज्यादा खर्च करने की क्षमता होगी , ज्यादा आरामदायक जीवन जी सकेंगे , घर में ज्यादा साजो सामान होगा , परन्तु कभी सोचा है की बच्चों की देखभाल कौन करेगा , उन्हें संस्कार कौन देगा , उन्हें सही और गलत कौन बताएगा , क्योंकि माँ बाप के पास तो उनके लिए समय ही नहीं होता है या फिर अगर माँ बाप बच्चों की देख भाल करते है तो वे अपने कार्य पर पूरा ध्यान नहीं दे पते है , आप देख सकते है जो कामकाजी महिलाये है वे कितना समय कार्य को व् कितना समय घर को देती है बल्कि उन्हें दोहरी जिन्दगी जिनी पड़ती है तो इन सबकी जगह अगर वे सिर्फ अपने घर ही ध्यान दे व् पढ़ लिख कर अपने घर को ही बेहतर ढंग से चलायें तो घर परिवार भी खुश व् महिला भी अपना जो कार्य इश्वर ने उन्हें सोंपा है वे उसे बेहतर तरीके से कर सकती है
एक पहलु और भी है ( यह सिर्फ मेरा मत है ) महिला को नौकरी उसी शर्त में करनी चाहिए जब उसे अकेले घर चलाने के लिए मजबूर होना पड़े अर्थात जब पति न हो वर्ना एक महिला के नौकरी नहीं करने से एक जगह बचती है और वह एक लड़के को मिलती है तो उससे एक परिवार का पेट पलता है जबकि एक महिला का नौकरी करने से सिर्फ ( जहाँ पति पत्नी दोनों नौकरी करते है ) घर में मात्र सुख सुविधा बढती है उधर एक परिवार पलने से वंचित हो जाता है , हमारा देश अभी बहुत बेरोजगारी से जूझ रहा है ऐसे में सिर्फ जरुरत मंद महिलायों को ही नौकरी देनी चाहिए .

amit_tiwari
29-11-2010, 05:37 PM
यह बहुत ही पुरानी सोच है।
आज के वर्तमान समय में ऐसा सोचना सही नहीं लगता। नौकरी के लिए दस से पाँच या छः बजे तक का ही वक्त होता है और दिन में चौबीस घंटे। घर में कैद और पारिवारिक रिश्तों को नाटकीय रूप में दिखाने वाले टेली-सीरियल को देख कर लड़की क्या सिखाएँगी ? बल्कि उल्टा जो सीखा होगा वो भूल जायेंगी। नौकरीपेशा होने पर खुद की स्वतंत्रता और परिवार की खुशी दोनो ही कायम होगी।
आप भी सोचो यदि गाड़ी के दोनों पहिये सही न हो तो गाड़ी का क्या हाल होगा ?
नौकरीपेशा होने से बच्चों को अच्छी शिक्षा {जो की सस्ती नहीं है} और वर्तमान आधुनिक युग की जानकारियाँ और परिवेश का ज्ञान देनेयोग्य आमदनी होगी। वंशानुगत संस्कार तो बच्चों को नौकरी से बचे खाली वक्त में आराम से दिये जा सकते हैं।

साधु साधु |||
:bravo::bravo:
:majesty::majesty:
ज़बरदस्त लिखा :hi:

khalid
29-11-2010, 06:13 PM
खालिद बंधू आपकी इस पोस्ट पे क्रोध मिश्रित दुःख है और आखिरी रक्तवर्णी लाइन का तो सिर पैर भी नहीं मिला | आज कितने विभाग/कार्य/क्षेत्र हैं की शायद एक को दुसरे के वर्क कल्चर का भी पता नहीं होता |

मैं ऋणात्मक अंक प्रेषित करना चाहता हूँ किन्तु हाल ही में आपको सकारात्मक प्रोत्साहन दिया था अतः तकनीकी कारणों से नहीं कर सकता

भाई मेरा इरादा कुछ गलत लिखने का नहीँ था
बस दिल मेँ आया लिख दिया
अगर कुछ गलत हैँ तो कृप्या आप बता देँ

YUVRAJ
29-11-2010, 08:27 PM
किस आधार पर समर्थन हो सकता है इन दकियानूसी :bang-head: सोच का कृपया उजागर करने का कष्ट करें।
लगभग यही विचार पिछले फोरम पर मैंने किसी सूत्र पर पेश किये थे. और यहाँ पर भी में इन विचारों का पूरी तरह से समर्थन करना चाहता हूँ. धन्यवाद.

YUVRAJ
29-11-2010, 08:49 PM
थैक्स बड्डी… :)
साधु साधु |||
:bravo::bravo:
:majesty::majesty:
ज़बरदस्त लिखा :hi:

amit_tiwari
29-11-2010, 08:58 PM
भाई मेरा इरादा कुछ गलत लिखने का नहीँ था
बस दिल मेँ आया लिख दिया
अगर कुछ गलत हैँ तो कृप्या आप बता देँ

बंधू जैसा आपने लिखा कि लड़की यदि नौकरी करे तो पति कि इच्छा से, बाहर जाये तो बता कर, ऑफिस में समस्या हो तो पति से सलाह ले, मेरे विचार से यह लड़की के लिए स्वैच्छिक हो तो ही सही है, बाध्य नहीं होना चाहिए | यदि एक शिक्षित पुरुष अपनी परेशानी से स्वयं निबटने के लिए सक्षम माना जाता है तो शिक्षित स्त्री क्यूँ नहीं ?
थोड़ी देर में लिए खुद को एक लड़की मान कर अपने विचारों को परखें, क्या सर्वयोग्य होने पर भी आपको अपने जीवनसाथी कि सहमती सिर्फ इसलिए लेनी पड़े क्यूंकि वो पुरुष है तो क्या आपके आत्मसम्मान को चोट नहीं लगेगी? क्या एक बार भी विचार मन में नहीं आएगा?

YUVRAJ
29-11-2010, 09:07 PM
बी हैप्पी खालिद भाई जी…:)
भाई मेरा इरादा कुछ गलत लिखने का नहीँ था
बस दिल मेँ आया लिख दिया
अगर कुछ गलत हैँ तो कृप्या आप बता देँ
बहुत ही सही बातें कही आपने अमित भाई जी …:)
दिवंगत कल्पना चावला क्या राकेश शर्मा से कम थी।
विषय से हट कर लिख रहा हूँ…
यदि हम जायज़ या नाजायज कर सकते हैं तो विपरीत लिंगी के ऐसा करने पर किस बात का विरोध !!!

बंधू जैसा आपने लिखा कि लड़की यदि नौकरी करे तो पति कि इच्छा से, बाहर जाये तो बता कर, ऑफिस में समस्या हो तो पति से सलाह ले, मेरे विचार से यह लड़की के लिए स्वैच्छिक हो तो ही सही है, बाध्य नहीं होना चाहिए | यदि एक शिक्षित पुरुष अपनी परेशानी से स्वयं निबटने के लिए सक्षम माना जाता है तो शिक्षित स्त्री क्यूँ नहीं ?
थोड़ी देर में लिए खुद को एक लड़की मान कर अपने विचारों को परखें, क्या सर्वयोग्य होने पर भी आपको अपने जीवनसाथी कि सहमती सिर्फ इसलिए लेनी पड़े क्यूंकि वो पुरुष है तो क्या आपके आत्मसम्मान को चोट नहीं लगेगी? क्या एक बार भी विचार मन में नहीं आएगा?

Bond007
03-12-2010, 04:56 AM
मेरे वरिष्ठजन काफी कुछ कह चुके हैं|

मैं बस इतना कहना चाहूँगा कि काम वो करो जो दिल को सुकून दे| एकदम नहीं तो धीरे-धीरे ही सही; साथ देने वाले और होंसला बढाने वाले राह में मिल ही जाते हैं|

बात सिर्फ महंगाई या घर के खर्चों की नहीं है| अब शादी के बाद लड़की सिर्फ शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति और बच्चे पैदा करने का साधन मात्र नहीं रह गई है|
अब वो कोई सिर्फ झाडू-पूंछा, बर्तन-सरतन और बच्चो कि साफ़-सफाई तक सीमित बाई नहीं है|
मौका मिलने पर वो पति, बच्चो समेत पूरे परिवार को संभालती है|

उसे किसी कार्य के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता| थोड़ी बहुत परेशानी परिवार कि तरफ से आती ही हैं;
लेकिन उनके साथ मित्रवत व्यवहार करके, उन्हें समझाकर, फायदे-नुक्सान बताकर सब कुछ सामान्य किया जा सकता है|

ये न भूलो कि वे मानसिक रूप से हम से ज्यादा ताकतवर होती हैं. नारी ही है जो मुसीबत में परिवार कि नैय्या पार लगा देती है|
उनसे ज्यादा हमें उनकी जरूरत होती है. तो उनपर किसीभी बात के लिए पाबन्दी क्यों|

Bond007
03-12-2010, 04:58 AM
पति-पत्नि का रिश्ता विश्वास का रिश्ता होता है|
जब एक दुसरे पर विश्वास ही नहीं है तो क्या फायदा होगा दूसरे मर्दों से मिलने पर रोक लगाने का?


हम आदमी कितने भी अफेयर करले...कुछ नहीं......., कितनी भी गर्लफ्रेंड बना लें कुछ नहीं; उन्हें ही क्यों बांध कर रहना पड़े?
बात रही कमाई के इगो कि तो वो पुरुषों कि ही छुद्र सोच के कारण पैदा होता है| सबसे पहले हमारी ही नजर में उनकी कमाई खटकती है|

आपसी सामंजस्य नहीं होगा तो ही ये बातें होंगी कि मैं भी कमाती हूँ.......................

YUVRAJ
03-12-2010, 07:15 AM
Great thoughts !

:clap::clap::clap:...........:bravo:
पति-पत्नि का रिश्ता विश्वास का रिश्ता होता है|
जब एक दुसरे पर विश्वास ही नहीं है तो क्या फायदा होगा दूसरे मर्दों से मिलने पर रोक लगाने का?


हम आदमी कितने भी अफेयर करले...कुछ नहीं......., कितनी भी गर्लफ्रेंड बना लें कुछ नहीं; उन्हें ही क्यों बांध कर रहना पड़े?
बात रही कमाई के इगो कि तो वो पुरुषों कि ही छुद्र सोच के कारण पैदा होता है| सबसे पहले हमारी ही नजर में उनकी कमाई खटकती है|

आपसी सामंजस्य नहीं होगा तो ही ये बातें होंगी कि मैं भी कमाती हूँ.......................

Kumar Anil
02-01-2011, 10:08 AM
हा हा हा आ पहले तो मैं पेट फार के हसना चाहता हू सूत्र या सूत्र धार पे नहीं उन लोगो पे जो शादी के बाद नौकरी ये शादी से पहले नौकरी करने पे लड़की को बुरी नजर से देखते है , कुछ हद तक मैं सही भी मानत हू इन लोगो को मगर देखा जाये तो आज के ज़माने में ये जरुरी है की पति और पत्नी दोनों काम करे तभी घर का खर्च सही से चल सकता है , मैं शादी सुदा तो नहीं हू और ण ही मुझे इसकी जानकारी है मगर एक बात जरुर कहना चाहता हू की ! इस देस में सबसे बरी परेशानी का कारन है , दहेज ,( समाज से जुरे कुछ अनपढ़ लोग और ण उनके पास नए ख्याल है और ण ही पुराने वो तो इन दोनों का मिक्स है इन लोगो से तो दूर ही रहना ठीक है) , अगर दहेज को हटा दिया जाये और उसके जगह पे लड़की को पढ़ा के नोकरी दे दी जाये वो भी शादी से पहले तो कोई भी लड़का वाला दहेज की रासी कम लेगा या नहीं भी ले सकता है ! मगर ये कभी नहीं होने वाला ! हमारे देस के कानून बनाने वाले ही कानून तोरते है सरकार अबतक छोटे लोगो को ही दहेज बढ़ावा देने का जिमेदार मानती है मगर है इसका उल्टा , यहाँ पे ये सोचा जाता है की बड़े लोग के बेटे को इतना दहेज मेला क्यों भाई तो वो बड़े लोग है , अगर हमें भी दहेज मिल जाये तो हम भी बड़े बन सकते है समाज के नजरो में ! ये सब बकबास है !
एक ही बात है आ दहेज को बढ़ावा देने में दो लोगो का ही हात है १. बड़े लोग (नेता , फिल्म स्टार और भी जो इस में आते है ) २. समाज (ये सबसे बड़ा दहेज का कारन है यहाँ लोग दहेज सिर्फ इसलिए लेते है की कोई भी हमें समाज में ण हसे , यहाँ तो ये चलता है की अगर परोसी का लड़का को १ लाख मिला तो अब हमें २ ये उससे भी ज्यादा मिलना चाहिए तभी हमारी इज्जत रहेगी हा हा हा हा आ आ सब के सब गधे है )
और आज यही कारण है की लड़कियों को इतना छुट मिलने के बाद भी वो नहीं पढ़ पा रही है ये उनके पिता उन्हें नहीं पढ़ा रहे है दहेज का रुपया जमा करे ये पढाये ! सबसे बड़ा मुद्दा यही है और जब लड़की पढेगी नहीं तो नोकरी खाक मिलेगी ! मेरे पास बहुतो जानकारी है पढ़े लिखे लोगो की और अनपढ़ लोगो की जो समाज को गन्दा और मजाक बना रहा है और कुछ पढ़े लिखे बुधू की सब का जिमेदार सरकार ही है और यहाँ का कानून ! इस लिए यहाँ पे बात करने से कुछ भी नहीं होने वाला अगर ये बात पुरे जोर शोर से उखारा जाये तो कुछ हो !

कहीँ का ईट कहीँ का रोड़ा , भानुमती ने कुनबा जोड़ा ।
मुझे आश्चर्य है कि अमित तिवारी जैसे बौद्धिक नियामक ने अपने ' साहित्य प्रभारी ' की प्रविष्टि पर अभी तक दृष्टिपात क्यूँ नहीँ किया ? इतने संजीदा विषय पर ऐसी टिप्पणी ?

Kumar Anil
02-01-2011, 10:36 AM
अगर पति पत्नी को शादी के बाद नौकरी की इजाजत अगर दे देता हैँ @
इस पुरुष प्रधान समाज का वास्तविक आईना है ये पँक्ति । उसकी सामंती सोच उसे सहजतापूर्वक मालिक होने का बोध कराती है । @
तो उन्हेँ भी चाहिए की पति के इजाजत के बगैर किसी पराऐँ मर्द के साथ घुमने फिरने ना जाऐँ @
यह अधिकार केवल पतियोँ को ही है । @
और अपने पति को इस बात का एहसास नहीँ होने दे की मैँ भी कमाती हुँ @

दुधारु गाय की तरह अपने मालिक के खूँटे मेँ बँधी रहे ।
@
अगर आँफिस मेँ कोई दिक्कत हो तो अपने पति से भी सलाह जरुर लेँ

@
सारी बुद्धि का ठेका पतियोँ को ही मिला है । ईश्वर ने बुद्धि बाँटते वक्त उसे पुरुषोँ के लिए ही आरक्षित कर दिया था ?

aditi
02-01-2011, 05:37 PM
@
सारी बुद्धि का ठेका पतियोँ को ही मिला है । ईश्वर ने बुद्धि बाँटते वक्त उसे पुरुषोँ के लिए ही आरक्षित कर दिया था ?

ऐसा नहीं है कुमार साहब, आजकल महिलायों का ज़माना है, और आपको तो पता ही होगा इस देश की सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति एक महिला है, देश के सबसे बड़े प्राइवेट बैंक की chairperson ही महिला है, दुनिया के सबसे बड़े कोल्ड ड्रिंक कंपनी एक महिला चला रही है.

मगर एक समस्या यह है की अभी भी कुछ मर्द औरत को अपने से तुच्छ और कम अकलमंद मानते है. ऐसा खास तौर पर ग्रामीण और पिछड़े इलाके में पाया गया है.

Kumar Anil
02-01-2011, 06:57 PM
ऐसा नहीं है कुमार साहब, आजकल महिलायों का ज़माना है, और आपको तो पता ही होगा इस देश की सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति एक महिला है, देश के सबसे बड़े प्राइवेट बैंक की chairperson ही महिला है, दुनिया के सबसे बड़े कोल्ड ड्रिंक कंपनी एक महिला चला रही है.

मगर एक समस्या यह है की अभी भी कुछ मर्द औरत को अपने से तुच्छ और कम अकलमंद मानते है. ऐसा खास तौर पर ग्रामीण और पिछड़े इलाके में पाया गया है.

सर्वप्रथम आपका स्वागत है । शायद मेरा मन्तव्य आप तक नहीँ पहुँच सका । मैँने तो स्वयं ही पुरुषोँ की मानसिकता पर कटाक्ष किया था और आपने मुझे ही आरोपी बनाते हुए अपने कठघरे मेँ खड़ा कर दिया । यह कैसा न्याय है ? मेरी प्रविष्टि के सन्दर्भ पर दृष्टिपात करके मुझे दोषमुक्त कीजिए ।

aditi
02-01-2011, 07:13 PM
सर्वप्रथम आपका स्वागत है । शायद मेरा मन्तव्य आप तक नहीँ पहुँच सका । मैँने तो स्वयं ही पुरुषोँ की मानसिकता पर कटाक्ष किया था और आपने मुझे ही आरोपी बनाते हुए अपने कठघरे मेँ खड़ा कर दिया । यह कैसा न्याय है ? मेरी प्रविष्टि के सन्दर्भ पर दृष्टिपात करके मुझे दोषमुक्त कीजिए ।

माफ़ कीजियेगा अनिल जी मैंने आपके वाक्य में प्रश्न चिन्न को नहीं देखा, स्वागत के लिए धन्यवाद.

Kumar Anil
02-01-2011, 07:58 PM
माफ़ कीजियेगा अनिल जी मैंने आपके वाक्य में प्रश्न चिन्न को नहीं देखा, स्वागत के लिए धन्यवाद.

शुक्रिया मुझे बरी करने का । सूत्र के समस्त पृष्ठोँ का अवलोकन कीजिये , काफी संजीदा और सामयिक विषय है ।

Harshita Sharma
27-01-2011, 04:14 PM
मेरे वरिष्ठजन काफी कुछ कह चुके हैं|

मैं बस इतना कहना चाहूँगा कि काम वो करो जो दिल को सुकून दे| एकदम नहीं तो धीरे-धीरे ही सही; साथ देने वाले और होंसला बढाने वाले राह में मिल ही जाते हैं|

बात सिर्फ महंगाई या घर के खर्चों की नहीं है| अब शादी के बाद लड़की सिर्फ शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति और बच्चे पैदा करने का साधन मात्र नहीं रह गई है|
अब वो कोई सिर्फ झाडू-पूंछा, बर्तन-सरतन और बच्चो कि साफ़-सफाई तक सीमित बाई नहीं है|
मौका मिलने पर वो पति, बच्चो समेत पूरे परिवार को संभालती है|

उसे किसी कार्य के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता| थोड़ी बहुत परेशानी परिवार कि तरफ से आती ही हैं;
लेकिन उनके साथ मित्रवत व्यवहार करके, उन्हें समझाकर, फायदे-नुक्सान बताकर सब कुछ सामान्य किया जा सकता है|

ये न भूलो कि वे मानसिक रूप से हम से ज्यादा ताकतवर होती हैं. नारी ही है जो मुसीबत में परिवार कि नैय्या पार लगा देती है|
उनसे ज्यादा हमें उनकी जरूरत होती है. तो उनपर किसीभी बात के लिए पाबन्दी क्यों|

पति-पत्नि का रिश्ता विश्वास का रिश्ता होता है|
जब एक दुसरे पर विश्वास ही नहीं है तो क्या फायदा होगा दूसरे मर्दों से मिलने पर रोक लगाने का?


हम आदमी कितने भी अफेयर करले...कुछ नहीं......., कितनी भी गर्लफ्रेंड बना लें कुछ नहीं; उन्हें ही क्यों बांध कर रहना पड़े?
बात रही कमाई के इगो कि तो वो पुरुषों कि ही छुद्र सोच के कारण पैदा होता है| सबसे पहले हमारी ही नजर में उनकी कमाई खटकती है|

आपसी सामंजस्य नहीं होगा तो ही ये बातें होंगी कि मैं भी कमाती हूँ.......................
मैं आपसे सहमत हूँ Bond जी!
चलो कहीं तो पुरुषों की नज़र भी धीरे-धीरे हमारे प्रति सकारात्मक हो रही है. मुझे उम्मीद है फोरम का ये सूत्र इस मामले में जागरूकता फैलाने के लिए छोटा ही सही मगर कुछ तो योगदान देगा.
देखकर अच्छा लगा की दुनिया में सभी पुरुष संकीर्ण एवं पुरुषवादी सोच के नहीं हैं. कुछ ऐसे भी हैं जो सच्चाई के पक्षधर हैं.

Bond007
30-01-2011, 12:49 AM
मैं आपसे सहमत हूँ bond जी!
चलो कहीं तो पुरुषों की नज़र भी धीरे-धीरे हमारे प्रति सकारात्मक हो रही है. मुझे उम्मीद है फोरम का ये सूत्र इस मामले में जागरूकता फैलाने के लिए छोटा ही सही मगर कुछ तो योगदान देगा.
देखकर अच्छा लगा की दुनिया में सभी पुरुष संकीर्ण एवं पुरुषवादी सोच के नहीं हैं. कुछ ऐसे भी हैं जो सच्चाई के पक्षधर हैं.

सच्चाई तो सभी कहना चाहते हैं; बस परेशानी यह है कि जो सच बोलता है उसे लोग यूँ ही दबा लेते हैं| जीने ही नहीं देते|

harigupta
30-01-2011, 05:46 PM
mere vichar se ladkiyon ko naukri ek hee sthiti mein karnee chaahiye. jab unke ghar mein koi aur kamaane walaa naa ho. varna ek purush ko naukri milegi to ek parivaar chalega. ab chaahe shadi ke baad ho yaa shadi se pahle usse kya fark padta hai.

sulekha
30-01-2011, 05:55 PM
मैं समझती हूँ को महिलाओ को शादी के बाद नौकरी करनी चाहिए, अगर उनके पास सही योग्यता है तो वो क्यों चूल्हे चौके में अपनी ज़िन्दगी बर्बाद करे. आज का दौर कड़ी प्रतियोगिता का दौर है जिसमे आज आगे बदने के लिए पति और पत्नी दोनो को ही कंधे से कंधा मिला कर काम करना चाहिए. अब वो दिन गये जब एक कमाने वाला और 8 खाने वाले होते थे.

harigupta
30-01-2011, 05:59 PM
bilkul wo din chale gaye hain par gaaon mein jaakar dekh lein abhi isse bhi jyaada buri haalat hai.

Bholu
30-01-2011, 11:17 PM
lakin piche jina vi bekaar hai aur jo nakaami se dosti kartey hai wo kabhi jeet ko hasil nahi kar pate

Ranveer
05-03-2011, 10:07 PM
मै इस फोरम पर नया आया हूँ ....इसीलिए कुछ कहूँ और किसी को अच्छा न लगे तो कृपया माफ़ करें .
मेरे कुछ प्रश्नों पर गौर करें
१ .जीवन का उद्देश्य क्या है ...हम क्यूँ हैं इस संसार में ...पैसे के लिए या संतुष्टि के लिए ..(वैसे पैसे के की कोई सीमा नहीं है और न संतुष्टि की ) ..तो फिर मुलभुत आवश्यकता की बात आती है ..तो हम ये विचार क्यूँ नहीं रखते की जितनी आवश्यकता है उतना करें ..अर्थात अगर आवश्यकता की नारी को नौकरी को तो करें .
२ .अगर केवल ये ये सोचके नौकरी किया जाता है की हम भी पुरुषो के बराबर हैं तो क्या गलत नहीं है ?
३.इस प्रतिस्पर्धा में वैवाहिक सुख क्षीण नहीं होता ?
४.क्या भावी पीढ़ी की मानसिकता का अंदाज़ लगाया जा सकता है ...क्या उनमे अकेलापन ..कुंठा ..आदि नहीं आ सकता ?
धन्यवाद ..

Bholu
07-03-2011, 01:22 PM
मै इस फोरम पर नया आया हूँ ....इसीलिए कुछ कहूँ और किसी को अच्छा न लगे तो कृपया माफ़ करें .
मेरे कुछ प्रश्नों पर गौर करें
१ .जीवन का उद्देश्य क्या है ...हम क्यूँ हैं इस संसार में ...पैसे के लिए या संतुष्टि के लिए ..(वैसे पैसे के की कोई सीमा नहीं है और न संतुष्टि की ) ..तो फिर मुलभुत आवश्यकता की बात आती है ..तो हम ये विचार क्यूँ नहीं रखते की जितनी आवश्यकता है उतना करें ..अर्थात अगर आवश्यकता की नारी को नौकरी को तो करें .
२ .अगर केवल ये ये सोचके नौकरी किया जाता है की हम भी पुरुषो के बराबर हैं तो क्या गलत नहीं है ?
३.इस प्रतिस्पर्धा में वैवाहिक सुख क्षीण नहीं होता ?
४.क्या भावी पीढ़ी की मानसिकता का अंदाज़ लगाया जा सकता है ...क्या उनमे अकेलापन ..कुंठा ..आदि नहीं आ सकता ?
धन्यवाद ..

अच्छी शुरूआत है

Kumar Anil
27-03-2011, 12:29 PM
मै इस फोरम पर नया आया हूँ ....इसीलिए कुछ कहूँ और किसी को अच्छा न लगे तो कृपया माफ़ करें .
मेरे कुछ प्रश्नों पर गौर करें
१ .जीवन का उद्देश्य क्या है ...हम क्यूँ हैं इस संसार में ...पैसे के लिए या संतुष्टि के लिए ..(वैसे पैसे के की कोई सीमा नहीं है और न संतुष्टि की ) ..तो फिर मुलभुत आवश्यकता की बात आती है ..तो हम ये विचार क्यूँ नहीं रखते की जितनी आवश्यकता है उतना करें ..अर्थात अगर आवश्यकता की नारी को नौकरी को तो करें .
२ .अगर केवल ये ये सोचके नौकरी किया जाता है की हम भी पुरुषो के बराबर हैं तो क्या गलत नहीं है ?
३.इस प्रतिस्पर्धा में वैवाहिक सुख क्षीण नहीं होता ?
४.क्या भावी पीढ़ी की मानसिकता का अंदाज़ लगाया जा सकता है ...क्या उनमे अकेलापन ..कुंठा ..आदि नहीं आ सकता ?
धन्यवाद ..

आपका पहला प्रश्न अध्यात्म एवं जीवन दर्शन से प्रभावित है । प्रत्येक व्यक्ति का अपना दर्शन होता है । आवश्यकतायेँ मानवजनित है , उनका कोई सार्वभौमिक मानक नहीँ होता । सामाजिक स्तर मेँ क्रमिक सुधार की लालसा , व्यक्ति विशेष की महत्वाकांक्षा अपने अनुरूप आवश्यकताओँ का निर्धारण करती हैँ । यदि मानव मूलभूत आवश्यकताओँ तक ही सीमित होता तो हम निरन्तर प्रगति की ओर अग्रसर न होते और मानव सभ्यता का विकास बाधित रहता । भिन्न भिन्न लोगोँ की पृथक आवश्यकताएँ ही विकास की अनवरत् श्रृँखला मेँ फलीभूत् होती गयीँ और परिणामतः आधुनिक दुनिया हमारे सम्मुख हैँ , अन्यथा हम आदिम युग मेँ जी रहे होते । अब जहाँ तक नारी के नौकरी करने का प्रश्न है तो वह उसकी आवश्यकताओँ , इच्छाओँ , विवेक , पारिवारिक स्थितियोँ पर निर्भर करता है ।
2- क्या पुरुषोँ से प्रतिस्पर्धा अनुचित है ? आख़िर वे आधी दुनिया का प्रतिनिधित्व करतीँ हैँ । क्या स्त्री इस पुरुषप्रधान समाज मेँ पुरुषोँ के लिये उनकी इच्छाओँ की पूर्ति के लिये निमित्त मात्र हैँ , उनके लिये श्रमिक मात्र हैँ ? क्या उनका कोई वज़ूद नहीँ है ? क्या उनकी भावनाओँ का सम्मान नहीँ किया जाना चाहिये ? क्या उनके सपनोँ को उड़ान नहीँ मिलनी चाहिये ? क्या पुरुषोँ को चुनौती स्वीकार्य नहीँ है ? क्या आज के इस आधुनिक युग मेँ भी तमाम पुरुष उसी आदिम मानसिकता मेँ नहीँ जी रहे ? आख़िर यह विरोधाभास क्योँ ?
3 - मेरा दाम्पत्य एक कामकाजी महिला के साथ अत्यन्त सुखद , आनन्ददायी व्यतीत हो रहा है । हमारे मध्य किसी गृहिणी की तुलना मेँ बहुत शानदार तरीके से अण्डरस्टैँडिँग है । मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि गृहिणी की तुलना मेँ कामकाजी महिला का दृष्टिकोण व्यापक और उदार होता है ।
4 - अगली पीढ़ी की बिन्दु पर मैँ भी चिँतामग्न रहता हूँ परन्तु इसमेँ भी केवल एकल परिवारीय व्यवस्था मेँ ही दिक्क़त आ रही है । संयुक्त परिवारोँ मेँ बड़े मजे से गाड़ी चल रही है , वहाँ न एकाकीपन का बोध है और न ही कुंठाग्रस्त बच्चे । संस्कारोँ से पोषित करने वाले बाबा , दादी , चाचा , बुआ के सुरक्षित हाथोँ मेँ भावी पीढ़ी सुनहरे कल के लिये आगे बढ़ रही है ।

Ranveer
27-03-2011, 06:30 PM
मित्र मै जो भी लिखूंगा वो एक सामान्य प्राणी को ध्यान में रखकर देखिएगा न की बौधिक प्राणी को .....
१ आपका कहना सही है यदि मानव मूलभूत आवश्यकताओँ तक ही सीमित होता तो हम निरन्तर प्रगति की ओर अग्रसर न होते परन्तु मैंने ये भी कहा था की इसकी कोई सीमा नहीं है तो ये बात यहाँ पर आकर ख़त्म हो जाती है की यह आवश्यकताओँ , इच्छाओँ , विवेक , पारिवारिक स्थितियोँ पर निर्भर करता है /
२ एक सामान्य स्त्री का केवल और केवल इसीलिए प्रतिस्पर्धा करना की वो पुरुष के बराबर है मेरी नज़र में तो उचित नहीं है क्यूंकि यहाँ पर आवश्यकताओँ , पारिवारिक स्थितियोँ को छोड़ दे तो केवल अहम् की संतुष्टि एकमात्र कारण दीखता है (और मुझे लगता है की वजूद ,चुनौती ,इसी अहम् का एक रूप है )
जहां तक सम्मान की बात है तो वो केवल नौकरी से मिलती है ऐसा मुझे नहीं लगता .समाज में शिक्षित महिलाए हर जगह सम्मानित की जाती है चाहे वो नौकरी करें अथवा नहीं ...और नौकरी करते हुए भी महिलाए अपमानित होती हैं /
३ आपके दाम्पत्य जीवन के लिए मेरी और से शुभकामनाएं परन्तु मैंने पूर्व में कहा है की मै सामान्य को मानकर चलूँगा और सामान्य रूप से undarstanding नहीं बैठती ये तो आप जानते ही होंगे /
जहां तक व्यापक दृष्टिकोण और उदारता का सवाल है तो कोई भी शिक्षित(या कभी कभी अशिक्षित ) नारी में ये गुण हो सकता है /
४ आज संयुक्त परिवार की क्या स्तिथि है ये तो देखा जा सकता है /
अंत में मै कहूँगा की मै व्यक्तिगत रूप से इसका विरोधी नहीं हूँ परन्तु मैंने इसकी एक सीमा मान रखी है (वैसे मै अभी कुंवारा हूँ ),...मेरी नज़र में केवल और केवल अहम् की संतुष्टि के लिए नौकरी करना गलत है /
आप चाहें तो इसे संकीर्ण मानसिकता समझ सकतें हैं /

ndhebar
27-03-2011, 08:14 PM
4 - अगली पीढ़ी की बिन्दु पर मैँ भी चिँतामग्न रहता हूँ परन्तु इसमेँ भी केवल एकल परिवारीय व्यवस्था मेँ ही दिक्क़त आ रही है । संयुक्त परिवारोँ मेँ बड़े मजे से गाड़ी चल रही है , वहाँ न एकाकीपन का बोध है और न ही कुंठाग्रस्त बच्चे । संस्कारोँ से पोषित करने वाले बाबा , दादी , चाचा , बुआ के सुरक्षित हाथोँ मेँ भावी पीढ़ी सुनहरे कल के लिये आगे बढ़ रही है ।

अनिल भाई आप डायनाशोर की बात कर रहे हैं अंतर बस इतना है की वो ६००० करोड़ वर्ष पहले विलुप्त हुए और ये पिछले कुछ वर्षों में

ndhebar
27-03-2011, 08:20 PM
जहां तक सम्मान की बात है तो वो केवल नौकरी से मिलती है ऐसा मुझे नहीं लगता .समाज में शिक्षित महिलाए हर जगह सम्मानित की जाती है चाहे वो नौकरी करें अथवा नहीं ...और नौकरी करते हुए भी महिलाए अपमानित होती हैं /

बहुत सटीक बात है
इस बात से मैं ही क्या सभी सहमत होंगें

Bholu
28-03-2011, 05:13 AM
मेरे हिसाब से तेजी से रूख बदल रहा हे पहले सुनने थे औरत मर्द के कन्धे से कन्धा मिला के चलती हे पर आज आखे बही देख रही है और रही बात नौकरी की तो मनुष्य को शादी के बाद नौकरी एक मजबूत नी का काम करती ह

Kumar Anil
28-03-2011, 07:35 AM
अनिल भाई आप डायनाशोर की बात कर रहे हैं अंतर बस इतना है की वो ६००० करोड़ वर्ष पहले विलुप्त हुए और ये पिछले कुछ वर्षों में

लेकिन यह प्रजाति पूरी तरह से विलुप्त नहीँ हुई केवल पंख ही कतरे गये हैँ और उसके पीछे ( शादी के बाद नौकरी ) की कोई भूमिका नहीँ है । क्या संयुक्त परिवार के विखण्डन के लिये आप केवल कामकाजी महिलाओँ को उत्तरदायी ठहरायेँगे ?

Kumar Anil
28-03-2011, 07:49 AM
बहुत सटीक बात है
इस बात से मैं ही क्या सभी सहमत होंगें

जी हाँ , इससे सभी सहमत होँगे । शिक्षा एक ऐसा अलंकार है जो सभी को सम्मान दिलवाने मेँ महती भूमिका अदा करता है , फिर चाहे वो स्त्री हो अथवा पुरुष ।

ndhebar
28-03-2011, 01:09 PM
लेकिन यह प्रजाति पूरी तरह से विलुप्त नहीँ हुई केवल पंख ही कतरे गये हैँ और उसके पीछे ( शादी के बाद नौकरी ) की कोई भूमिका नहीँ है । क्या संयुक्त परिवार के विखण्डन के लिये आप केवल कामकाजी महिलाओँ को उत्तरदायी ठहरायेँगे ?
बिल्कुल नहीं
वैसे भी किसी खास पर जिम्मेदारी डालने से हम अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते
संयुक्त परिवार के विखंडन में पुरुष और महिलाएं समान रूप से उत्तरदायी हैं चाहे वो कामकाजी हो या नहीं