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View Full Version : भोजपुरी कविता bhojpuri kavita नवरातन मेँ बकरा काटे...


आकाश महेशपुरी
11-10-2013, 11:17 AM
नवरातन मेँ बकरा...
...
भगली दुर्गा अउरी उनकर बघवो भागि पराइल
नवरातन मेँ बकरा काटे जब लोग मन्दिर आइल
कहलसि बघवा हे देवी हम त तहरे अंश हईँ
बाघ तरे बा रूपवा बाकिर ना बाघे के वंश हईँ
हम त एगो बिम्ब हईँ ना कुछ खाईँ ना पीयेनी
तहरे जस हे माई हमहूँ धरम के बल पर जीयेनी
बाकिर देखऽ कइसे लोगवा करत हमेँ बदनाम हवेँ
पाप करेँ खुद बाकिर काहेँ लेत बाघ के नाम हवेँ
किसिम किसिम के अधर्मी लो बा मन्दिर पर आइल
बकरा केहू ले आइल बा कटवइयो उपराइल
मास अउर अण्डा के उँहवा दोकनियो बा लागल
येही से हे माई हमहूँ आवत बानी भागल
बाकिर समझ ना आवे हमके काहेँ ना बतलवलू ह
उबड़ खाबड़ रस्ता ध के पैदल पैदल अइलू ह
झर झर लोर झरे अखियन से बोल न मुँह से फूटेला
बाकिर मन के भाव जवन बा सगरी बघवा बूझेला
धरती जवन पवित्र रहे खूने से आजु नहाइल बा
पूजा करे आइल आ कि पाप करे सब आइल बा
मन्दिर त हमरे ह बाकिर बात सही बतलाईले
रक्तबीज से डरनी ना पर मानव से घबराईले
हमरे मन्दिर मेँ पशुवन के बलि जब लोग चढ़ावेला
लागे जइसे हमरे गरदन पर फरसा बरसावेला
येही से ये निर्जन मेँ हम भागि-परा के अइनी हँ
जाइबि ना ओइजा हम कहियो अइसन किरिया खइनी हँ
...
रचना - आकाश महेशपुरी
Aakash maheshpuri
पता-
वकील कुशवाहा उर्फ आकाश महेशपुरी
ग्रा- महेशपुर, पो- कुबेरस्थान, ज- कुशीनगर
09919080399

rajnish manga
11-10-2013, 12:12 PM
[QUOTE=आकाश महेशपुरी;389140]
नवरातन मेँ बकरा...
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भगली दुर्गा अउरी उनकर बघवो भागि पराइल
नवरातन मेँ बकरा काटे जब लोग मन्दिर आइल
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मन्दिर त हमरे ह बाकिर बात सही बतलाईले
रक्तबीज से डरनी ना पर मानव से घबराईले
हमरे मन्दिर मेँ पशुवन के बलि जब लोग चढ़ावेला
लागे जइसे हमरे गरदन पर फरसा बरसावेला
येही से ये निर्जन मेँ हम भागि-परा के अइनी हँ
जाइबि ना ओइजा हम कहियो अइसन किरिया खइनी हँ
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रचना - आकाश महेशपुरी
Aakash maheshpuri

बहुत सुन्दर कविता है, महेश जी. देवी को प्रसन्न करने के नाम पर पशुओं की बलि देने का विधान सदियों से निर्बाध चला आ रहा है. क्या इस पर कभी रोक लग सकेगी?

आकाश महेशपुरी
11-10-2013, 02:37 PM
आदरणीय रजनीश जी सादर धन्यवाद्।