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View Full Version : सवाल-ए-इश्क़


dipu
20-10-2013, 12:37 PM
सवाल-ए-इश्क़, रुख़ पे, क्या असर लाये, सुभान’अल्लाह,
झुकी नज़रेँ उठेँ, उठ कर झुकेँ, हाए, सुभान’अल्लाह.

पलक से वक़्त बे-क़ाबू, हवा मोड़े जो, चाल ऐसी,
खुले जो ज़ुल्फ, मौज आये, घटा छाये, सुभान’अल्लाह.

तेरी खुशबू से, हर मौसम हुआ रंगीँ, बहारेँ हैँ,
तेरी आवाज़ पर, कोयल भी फरमाये, ‘सुभान’अल्लाह’.

क्षितिज, ये हुस्न, माथा आसमाँ, बिन्दी तेरी, सूरज,
सितारा, बन तेरी नथनी, चमक पाये, सुभान’अल्लाह.

सुराहीदार गर्दन, जिस्म मै’ख़ाना, कमर प्याला,
गुलाबी होँट अंगूरी, नशा छाये, सुभान’अल्लाह.

अदा-शोख़ी क़यामत, सादगी-शर्म-ओ-हया ऐसी,
हक़ीक़त क्या, तसव्वुर भी मचल जाये, सुभान’अल्लाह.

है चेहरा, ईद का वो चाँद, जिस को देख कर, यारोँ,
झुका सजदे मेँ, हर काफिर, सदा आये, ‘सुभान’अल्लाह’.

तेरी हस्ती मेरी साँसेँ, दवा-‘आब-ए-हयात’ आँखेँ,
हँसी तेरी, गुलिस्ताँ की सुबह लाये, सुभान’अल्लाह.

यही यादेँ, मेरे दिन-रात, सागर हैँ, किनारा हैँ,
“बशर” की डूबती कश्ती, ग़ज़ल गाये, ‘’सुभान’अल्लाह’’___ सन्दीप सिंह "बशर"

* मौज / मै’ख़ाना = लहर / शराब’ख़ाना, मदिरालय
* तसव्वुर = कल्पना
* काफिर / सदा = नास्तिक / आवाज़
* हस्ती / गुलिस्ताँ = ज़िन्दगी / बाग, बगीचा
* आब-ए-हयात = अमृत

rajnish manga
20-10-2013, 04:33 PM
'बशर' साहब की उपरोक्त ग़ज़ल अपनी भाषा, विचार, अभिव्यक्ति, रवानी और दृश्य-चित्रण के मामले में किसी भी अच्छे शायर के कलाम के समकक्ष रखी जा सकती है. इसे फोरम पर प्रस्तुत करने के लिये धन्यवाद. शब्दार्थ में कुछ गड़बड़ हो गयी है जिसका संपादित रूप निम्न प्रकार है:

* मौज = लहर / मै’ख़ाना = शराब’ख़ाना, मदिरालय
* तसव्वुर = कल्पना
* काफिर = नास्तिक / सदा = आवाज़
* हस्ती = ज़िन्दगी या अस्तित्व / गुलिस्ताँ = बाग, बगीचा
* आब-ए-हयात = अमृत

dipu
05-11-2013, 02:04 PM
thanks for reply