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View Full Version : वृद्ध किसी काम के नहीं होते ?.................


Dr.Shree Vijay
27-10-2013, 10:21 PM
क्या वाकई बड़े बुजुर्ग किसी काम के नहीं होते ?.................

Dr.Shree Vijay
28-10-2013, 11:43 AM
क्या वाकई घर में या समाज में बड़े बुजुर्ग किसी काम के नहीं होते ?.......

एक बार एक देश में यह निर्णय लिया गया कि वृद्ध किसी काम के नहीं होते, अकसर बीमार रहते हैं, और वे अपनी उम्र जी चुके होते हैं अतः उन्हें मृत्यु दे दी जानी चाहिए। देश का राजा भी जवान था तो उसने यह आदेश देने में देरी नहीं की कि पचास वर्ष से ऊपर के उम्र के लोगों को खत्म कर दिया जाए।

और इस तरह से सभी अनुभवी, बुद्धिमान बड़े बूढ़ों से वह देश खाली हो गया. उनमें एक जवान व्यक्ति था जो अपने पिता से बेहद प्रेम करता था। उसने अपने पिता को अपने घर के एक अंधेरे कोने में छुपा लिया और उसे बचा लिया।

कुछ साल के बाद उस देश में भीषण अकाल पड़ा और जनता दाने दाने को मोहताज हो गई। बर्फ के पिघलने का समय आ गया था, परंतु देश में बुआई के लिए एक दाना भी नहीं था. सभी परेशान थे। अपने बच्चे की परेशानी देख कर उस वृद्ध ने, जिसे बचा लिया गया था, अपने बच्चे से कहा कि वो सड़क के किनारे किनारे दोनों तरफ जहाँ तक बन पड़े हल चला ले।

उस युवक ने बहुतों को इस काम के लिए कहा, परंतु किसी ने सुना, किसी ने नहीं. उसने स्वयं जितना बन पड़ा, सड़क के दोनों ओर हल चला दिए। थोड़े ही दिनों में बर्फ पिघली और सड़क के किनारे किनारे जहाँ जहाँ हल चलाया गया था, अनाज के पौधे उग आए।

लोगों में यह बात चर्चा का विषय बन गई, बात राजा तक पहुँची. राजा ने उस युवक को बुलाया और पूछा कि ये आइडिया उसे आखिर आया कहाँ से? युवक ने सच्ची बात बता दी।

राजा ने उस वृद्ध को तलब किया कि उसे यह कैसे विचार आया कि सड़क के किनारे हल चलाने से अनाज के पौधे उग आएंगे। उस वृद्ध ने जवाब दिया कि जब लोग अपने खेतों से अनाज घर को ले जाते हैं तो बहुत सारे बीच सड़कों के किनारे गिर जाते हैं. उन्हीं का अंकुरण हुआ है।

राजा प्रभावित हुआ और उसे अपने किए पर पछतावा हुआ. राजा ने अब आदेश जारी किया कि आगे से वृद्धों को ससम्मान देश में पनाह दी जाती रहेगी....................

Dr.Shree Vijay
02-11-2013, 07:07 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=31428&stc=1&d=1383401202

rajnish manga
02-11-2013, 08:56 PM
बहुत सुन्दर, मित्र. अपने बुजुर्गों की अवहेलना कर के कोई समाज तरक्की नहीं कर सकता.

Dr.Shree Vijay
02-11-2013, 09:32 PM
बहुत सुन्दर, मित्र. अपने बुजुर्गों की अवहेलना कर के कोई समाज तरक्की नहीं कर सकता.




शतप्रतिशत सही बात कही आपने........

Dr.Shree Vijay
12-11-2013, 05:38 PM
सूरज की पहली किरण.........

प्राचीन काल मे प्रथा थी की जब कोई व्यक्ति साठ वर्ष का हो जाता था तो उसे राज्य से बाहर जंगल में भेज दिया जाता था ताकि समाज में केवल स्वस्थ्य और युवा लोग ही जीवित रहें।

एक व्यक्ति शीघ्र ही साठ वर्ष का होने वाला था। उसका एक जवान बेटा था जो अपने पिता से बहुत प्रेम करता था। बेटा नहीं चाहता था की उसके पिता को भी अन्य वृद्धों की भांति जंगल में भेज दिए जाएं इसलिए उसने अपने पिता को घर के तहखाने में छुपा दिया और उनकी हर सुविधा का ध्यान रखा।

लड़के ने एक बार अपने पड़ोसी से इस बात की शर्त लगाई कि सुबह होने पर सूरज की पहली किरण कौन देखेगा? उसने अपने पिता को शर्त लगाने के बारे में बताया। उसके पिता ने उसे सलाह दी, ‘ध्यान से सुनो- जिस जगह पर तुम सूरज की किरण दिखने के लिए इंतजार करो वहां सभी लोग पूरब की तरफ ही देखेंगे लेकिन तुम उसके विपरीत पश्चिम की ओर देखना। पश्चिम दिशा में तुम सुदूर पहाडों की चोटियों पर नजर रखोगे तो तुम शर्त जीत जाओगे।’

लडके ने वैसा ही किया जैसा उसके पिता ने उसे कहा था और उसने ही सबसे पहले सूरज की किरण देखी। जब लोगों ने उससे पूछा कि उसे ऐसा करने की सलाह किसने दी तो उसने सबको बता दिया कि उसने अपने पिता को सुरक्षित तहखाने में रखा हुआ था और पिता उसे हमेशा उपयोगी सलाह देते है।

यह सुनकर सब लोग इस बात को समझ गए कि बुजुर्ग अधिक परिपक्व और अनुभवी होते हैं और उनका सम्मान करना चाहिए। इसके बाद से राज्य से वृद्ध व्यक्तियों को जंगल में भेजना बंद कर दिया गया.........

Dr.Shree Vijay
26-11-2013, 05:12 PM
वृद्धावस्था का मूल्य :.........

संकलन: त्रिलोक चंद्र जैन, अगस्त 5, 2008 नवभारत टाइम्स में प्रकाशित,

एक राजकुमार को वृद्धों से घृणा थी। वह कहा करता था, ‘बूढ़ों की बुद्धि कुंठित हो जाती है। वे सदा बेतुकी बातें किया करते हैं। वे किसी काम के नहीं होते।’ उसके दरबारी भी उसकी हां में हां मिलाते रहते थे। एक बार राजकुमार अपने कुछ सैनिकों के साथ शिकार खेलने गया। युवराज का स्पष्ट निर्देश था कि किसी बुजुर्ग व्यक्ति को साथ न ले जाया जाए।

राजकुमार ने जंगल में एक जगह पड़ाव डाला। सभी लोग शिविर में ठहरे। उन्हें आशा थी कि पास में ही कहीं पानी मिलेगा लेकिन बहुत ढूंढने पर भी कहीं पानी नहीं मिला। राजकुमार प्यास से व्याकुल हो गया। सैनिकों का भी गला सूख रहा था। समस्या का कोई हल न निकलता देख एक सैनिक ने कहा, ‘काश, कोई वृद्ध अभी हमारे साथ होता। वह जरूर कोई न कोई रास्ता निकालता।’ राजकुमार ने भी महसूस किया कि इससे कोई लाभ हो सकता है। उसने किसी बुजुर्ग को खोज लाने का आदेश दिया। तभी एक शिविर से एक युवक अपने वृद्ध पिता को लेकर सामने आया और बोला, ‘युवराज, घर पर मेरे पिता की सेवा करने वाला कोई नहीं था। इसलिए पितृभक्ति ने मुझे विवश किया कि मैं इन्हें अपने साथ लेकर चलूं। वैसे तो यह आपके आदेश का उल्लंघन था पर क्या करता और कोई रास्ता न था।’

यह कहकर उस युवक ने अपने पिता से निवेदन किया, ‘पिताजी कृपया हमारी समस्या का हल सुझाएं।’ वृद्ध ने कहा, ‘चरते हुए गधे जिस भूमि को सूंघें वहां थोड़ी ही गहराई पर पानी अवश्य मिलेगा।’ सैनिकों ने खोज की। जंगल में घास चरते हुए गधों को जहां की भूमि सूंघते हुए देखा, वहां की खुदाई की गई। खोदते ही जल निकला। लोगों की खुशी का ठिकाना न रहा। सब पानी पीकर तृप्त हुए। उस वृद्ध ने राजकुमार से कहा, ‘युवराज, क्षमा करें। हर आयु के व्यक्ति की अपनी भूमिका है। हर उम्र के लोग एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं। किसी के महत्व को नकारा नहीं जा सकता।’ राजकुमार लज्जित हो गया.........

Dr.Shree Vijay
15-12-2013, 08:41 PM
वृद्धों को कभी कम ना समझें :.........

शहर के सबसे बडे बैंक में एक बार एक वृद्धा आई ।
उसने मैनेजर से कहा - "मुझे इस बैंक मे कुछ रुपये जमा करने हैं" ।
मैनेजर ने पूछा - कितने हैं, वृद्धा बोली - होंगे कोई दस लाख ।
मैनेजर बोला - वाह क्या बात है, आपके पास तो काफ़ी पैसा है, आप करती क्या हैं ?
वृद्धा बोली - कुछ खास नहीं, बस शर्तें लगाती हूँ ।
मैनेजर बोला - शर्त लगा-लगा कर आपने इतना सारा पैसा कमाया है ? कमाल है...

वृद्धा बोली - कमाल कुछ नहीं है बेटा,
मैं अभी एक लाख रुपये की शर्त लगा सकती हूँ कि तुमने अपने सिर पर विग लगा रखा है ।
मैनेजर हँसते हुए बोला - नहीं माताजी मैं तो अभी जवान हूँ, और विग नहीं लगाता ।

वृद्धा बोली - तो शर्त क्यों नहीं लगाते ?
मैनेजर ने सोचा यह पागल बुढिया खामख्वाह ही एक लाख रुपये गँवाने पर तुली है,
तो क्यों न मैं इसका फ़ायदा उठाऊँ...
मुझे तो मालूम ही है कि मैं विग नहीं लगाता ।
मैनेजर एक लाख की शर्त लगाने को तैयार हो गया ।

वृद्धा बोली - चूँकि मामला एक लाख रुपये का है
इसलिये मैं कल सुबह ठीक दस बजे अपने वकील के साथ आऊँगी
और उसी के सामने शर्त का फ़ैसला होगा ।
मैनेजर ने कहा - ठीक है बात पक्की...
मैनेजर को रात भर नींद नहीं आई..
वह एक लाख रुपये और वृद्धा के बारे में सोचता रहा !

अगली सुबह ठीक दस बजे वह वृद्धा अपने वकील के साथ
मैनेजर के केबिन में पहुँची और कहा, क्या आप तैयार हैं ?
मैनेजर ने कहा - बिलकुल, क्यों नहीं ?
वृद्धा बोली- लेकिन चूँकि वकील साहब भी यहाँ मौजूद हैं
और बात एक लाख की है अतः मैं तसल्ली करना चाहती हूँ
कि सचमुच आप विग नहीं लगाते,
इसलिये मैं अपने हाथों से आपके बाल नोचकर देखूँगी !

मैनेजर ने पल भर सोचा और हाँ कर दी, आखिर मामला एक लाख का था ।
वृद्धा मैनेजर के नजदीक आई और धीर-धीरे आराम से मैनेजर के बाल नोचने लगी ।

उसी वक्त अचानक पता नहीं क्या हुआ, वकील साहब अपना माथा दीवार पर ठोंकने लगे ।
मैनेजर ने कहा - अरे.. अरे.. वकील साहब को क्या हुआ ?
वृद्धा बोली - कुछ नहीं, इन्हें सदमा लगा है,
मैंने इनसे पाँच लाख रुपये की शर्त लगाई थी कि आज सुबह दस बजे मैं
शहर से सबसे बडे बैंक के मैनेजर के बाल दोस्ताना माहौल में नोचकर दिखाऊँगी ।

इसलिये वृद्धों को कभी कम ना समझें.........

Dr.Shree Vijay
19-12-2013, 04:57 PM
http://hindisamay.com/lekhak/image/leo_tolisay.jpg

: दो वृद्ध पुरुष :

: तोल्सतोय :

: अनुवाद - प्रेमचंद :

Dr.Shree Vijay
19-12-2013, 05:02 PM
: दो वृद्ध पुरुष :

: तोल्सतोय : : परिचय :

मूल नाम : लेव निकोलायविच तोलस्तॉय,

जन्म : 9 सितम्बर 1828, यास्नाया पौल्याना, रूस,

भाषा : रूसी,

मुख्य कृतियाँ :

उपन्यास : War and Peace, Anna Karenina, Resurrection, Kazzak

कहानी संग्रह : How Much Land Does a Man Need?, The Kreutzer Sonata and Other Stories इत्यादि

अन्य : My Confession, The Law of Love and the Law of Violence, A Confession and Other Religious Writings, Tolstoy's Diaries , What is Art?

Dr.Shree Vijay
19-12-2013, 05:08 PM
http://hindisamay.com/lekhak/image/leo_tolisay.jpg

: दो वृद्ध पुरुष :

: तोल्सतोय :

: अनुवाद - प्रेमचंद :

एक गांव में अजुर्न और मोहन नाम के दो किसान रहते थे। अजुर्न धनी था, मोहन साधारण पुरुष था। उन्होंने चिरकाल से बद्रीनारायण की यात्रा का इरादा कर रखा था।

अजुर्न बड़ा सुशील, सहासी और दृ़ था। दो बार गांव का चौधरी रहकर उसने बड़ा अच्छा काम किया था। उसके दो लड़के तथा एक पोता था। उसकी साठ वर्ष की अवस्था थी, परन्तु दाढ़ी अभी तक नहीं पकी थी।

मोहन परसन्न बदन, दयालु और मिलनसार था। उसके दो पुत्र थे, एक घर में था, दूसरा बाहर नौकरी पर गया हुआ था। वह खुद घर में बैठाबैठा ब़ई का काम करता था।

बद्रीनारायण की यात्रा का संकल्प किए उन्हें बहुत दिन हो चुके थे। अजुर्न को छुट्टी ही नहीं मिलती थी। एक काम समाप्त होता था कि दूसरा आकर घेर लेता था। पहले पोते का ब्याह करना था, फिर छोटे लड़के का गौना आ गया, इसके पीछे मकान बनना परारम्भ हो गया। एक दिन बाहर लकड़ी पर बैठकर दोनों बुजुर्गो में बातें होने लगी।

Dr.Shree Vijay
19-12-2013, 05:11 PM
: दो वृद्ध पुरुष :
: तोल्सतोय :
: अनुवाद - प्रेमचंद :
मोहन-क्यों भाई, अब यात्रा करने का विचार कब है?

अजुर्न-जरा ठहरो। अब की वर्ष अच्छा नहीं लगा। मैंने यह समझा था कि सौ रुपये में मकान तैयार हो जाएगा। तीन सौ रुपये लगा चुके हैं अभी दिल्ली दूर है। अगले वर्ष चलेंगे।

मोहन-शुभ कार्य में देरी करना अच्छा नहीं होता। मेरे विचार में तो तुरंत चल देना ही उचित है, दिन बहुत अच्छे हैं।

अजुर्न-दिन तो अच्छे हैं, पर मकान को क्या करुं! इसे किस पर छोडूं?

मोहन-क्या कोई संभालने वाला ही नहीं, बड़े लड़के को सौंप दो।

अजुर्न-उसका क्या भरोसा है।

मोहन-वाहवाह, भला बताओ तो कि मरने पर कौन संभालेगा? इससे तो यह अच्छा है कि जीतेजी संभाल लें। और तुम सुख से जीवन व्यतीत करो।

अजुर्न-यह सत्य है, पर किसी काम में हाथ लगाकर उसे पूरा करने की इच्छा सभी की होती है।

मोहन-तो काम कभी पूरा नहीं होता, कुछ न कुछ कसर रह ही जाती है। कल ही की बात है कि रामनवमी के लिए स्त्रियां कई दिन से तैयारी कर रही थीं-कहीं लिपाई होती थी, कहीं आटा पीसा जाता था। इतने में रामनवमी आ पहुंची। बहू बोली, परमेश्वर की बड़ी कृपा है कि त्योहार बिना बुलाए ही आ जाते हैं, नहीं तो हम अपनी तैयारी ही करती रहें।

Dr.Shree Vijay
19-12-2013, 05:13 PM
: दो वृद्ध पुरुष :
: तोल्सतोय :
: अनुवाद - प्रेमचंद :
अजुर्न-एक बात और है, इस मकान पर मेरा बहुत रुपया खर्च हो गया है। इस समय रुपये का भी तोड़ा है। कमसे-कम सौ रुपये तो हों, नहीं तो यात्रा कैसे होगी।

मोहन-(हंसकर) अहा हा! जो जितना धनवान होता है, वह उतना ही कंगाल होता है तुम और रुपये की चिंता! जाने दो। मैं सच कहता हूं, इस समय मेरे पास एक सौ रुपये भी नहीं, परन्तु जब चलने का निश्चय हो जायेगा, तो रुपया भी कहीं न कहीं से अवश्य आ ही जाएगा। बस, यह बतलाओ कि चलना कब है?

अजुर्न-तुमने रुपये जोड़ रखे होंगे, नहीं तो कहां से आ जाएगा, बताओ तो सही।

मोहन-कुछ घर में से, कुछ माल बेचकर। पड़ोसी कुछ चौखट आदि मोल लेना चाहता है, उसे सस्ती दे दूंगा।

अजुर्न-सस्ती बेचने पर पछतावा होगा।

मोहन-मैं सिवाय पाप के और किसी बात पर नहीं पछताता। आत्मा से कौन चीज़ प्यारी है!

अजुर्न-यह सब ठीक है, परन्तु घर के कामकाज बिसराना भी उचित नहीं।

मोहन-और आत्मा को बिसारना तो और भी बुरा है। जब कोई बात मन में ठान ली तो उसे बिना पूरा किए न छोड़ना चाहिए।

Dr.Shree Vijay
19-12-2013, 05:14 PM
: दो वृद्ध पुरुष :
: तोल्सतोय :
: अनुवाद - प्रेमचंद :
अन्त में चलना निश्चय हो गया। चार दिन पीछे जब विदा होने का समय आया, तो अजुर्न बड़े लड़के को समझाने लगा कि मकान पर छत इस परकार डालना, भूसी बखार में इस भांति जमा कर देना, मंडी में जाकर अनाज इस भाव से बेचना, रुपये संभालकर रखना, ऐसा न हो खो जावें, घर का परबन्ध ऐसा रखना कि किसी परकार की हानि न होने पावे। उसका समझाना समाप्त ही न होता था।

इसके परतिकूल मोहन ने अपनी स्त्री से केवल इतना ही कहा कि तुम चतुर हो, सावधानी से काम करती रहना।

मोहन तो घर से परसन्न मुख बाहर निकला और गांव छोड़ते ही घर के सारे बखेड़े भूल गया। साथी को परसन्न रखना, सुखपूर्वक यात्रा कर घर लौट आना उसका मन्तव्य था। राह चलता था तो ईश्वरसम्बन्धी कोई भजन गाता था या किसी महापुरुष की कथा कहता। सड़क पर अथवा सराय में जिस किसी से भेंट हो जाती, उससे बड़ी नमरता से बोलता।

अजुर्न भी चुपकेचुपके चल तो रहा था, परन्तु उसका चित्त व्याकुल था। सदैव घर की चिंता लगी रहती थी। लड़का अनजान है, कौन जाने क्या कर बैठे। अमुक बात कहना भूल आया। ओहो, देखू, मकान की छत पड़ती है या नहीं। यही विचार उसे हरदम घेरे रहते थे यहां तक कि कभीकभी लौट जाने को तैयार हो जाता था।

Dr.Shree Vijay
19-12-2013, 05:15 PM
: दो वृद्ध पुरुष :
: तोल्सतोय :
: अनुवाद - प्रेमचंद :
चलतेचलते एक महीना पीछे वे पहाड़ पर पहुंच गए। पहाड़ी बड़े अतिथिसेवक होते हैं अब तक यह मोल का अन्न खाते रहे थे। अब उनकी खातिरदारी होने लगी।

आगे चलकर वे ऐसे देश में पहुंचे, जहां दुर्घट अकाल पड़ा हुआ था। खेतियां सब सूख गई थीं, अनाज का एक दाना भी नहीं उगा था। धनवान कंगाल हो गए थे धनहीन देश को छोड़कर भीख मांगने बाहर भाग गए थे।

यहां उन्हें कुछ कष्ट हुआ, अन्न कम मिलता था और वह भी बड़ा महंगा। रात को उन्होंने एक जगह विश्राम किया। अगले दिन चलतेचलते एक गांव मिला। गांव के बाहर एक झोंपड़ा था। मोहन थक गया था, बोला-मुझे प्यास लगी है। तुम चलो, मैं इस झोंपड़े से पानी पीकर अभी तुम्हें आ मिलता हूं। अजुर्न बोला-अच्छा, पी आओ। मैं धीरेधीरे चलता हूं।

Dr.Shree Vijay
19-12-2013, 05:19 PM
: दो वृद्ध पुरुष :
: तोल्सतोय :
: अनुवाद - प्रेमचंद :
झोंपड़े के पास जाकर मोहन ने देखा कि उसके आगे धूप में एक मनुष्य पड़ा है। मोहन ने उससे पानी मांगा, उसने कोई उत्तर नहीं दिया। मोहन ने समझा कि कोई रोगी है।

समीप जाने पर झोंपड़े के भीतर एक बालक के रोने का शब्द सुनायी दिया। किवाड़ खुले हुए थे। वह भीतर चला गया।

उसने देखा कि नंगे सिर केवल एक चादर ओढ़े एक बूढी धरती पर बैठी है, पास में भूख का मारा हुआ एक बालक बैठा रोटी, रोटी, पुकार रहा है। चूल्हे के पास एक स्त्री तड़प रही है, उसकी आंखें बन्द हैं, कंठ रुका हुआ है।

मोहन को देखकर बूढी ने पूछा-तुम कौन हो? क्या मांगते हो? हमारे पास कुछ नहीं हैं।

मोहन-मुझे प्यास लगी है, पानी मांगता हूं।

बूढी-यहां न बर्तन है, न कोई लाने वाला। यहां कुछ नहीं। जाओ, अपनी राह लो।

मोहन-क्या तुममें से कोई उस स्त्री की सेवा नहीं कर सकता?

बूढी-कोई नहीं। बाहर मेरा लड़का भूख से मर रहा है, यहां हम भूख से मर रहे हैं।

Dr.Shree Vijay
19-12-2013, 05:21 PM
: दो वृद्ध पुरुष :
: तोल्सतोय :
: अनुवाद - प्रेमचंद :
यह बातें हो ही रही थीं कि बाहर से वह मनुष्य भी गिरतापड़ता भीतर आया और बोला-काल और रोग दोनों ने हमें मार डाला। यह बालक कई दिन से भूखा है क्या करुं-यह कहकर रोने लगा और उसकी हिचकी बंध गई।

मोहन ने तुरन्त अपने थैले में से रोटी निकालकर उनके आगे रख दी।

बुयि बोली-इनके कंठ सूख गए हैं, बाहर से पानी ले आओ। मोहन बुयि से कुएं का पता पूछकर बाहर गया और पानी ले आया। सबने रोटी खाकर पानी पिया, परन्तु चूल्ळें के पास वाली स्त्री पड़ी तड़पती रही। मोहन गांव में जाकर कुछ दाल, चावल मोल ले आया और खिचड़ी पाकर सबको खिलायी।

तब बुयि बोली-भाई, क्या सुनाऊं, निर्धन तो हम पहले ही थे, उस पर पड़ा अकाल। हमारी और भी दुर्गति हो गई। पहलेपहल तो पड़ोसी अन्न उधार देते रहे, परन्तु वे क्या करते। वे आप भूखों मरने लगे, हमें कहां से देते।

मनुष्य ने कहा-मैं मजूरी करने निकला, दोतीन दिन तो कुछ मिला, फिर किसी ने नौकर न रखा बुयि और लड़की भीख मांगने लगीं। अन्न का अकाल था, कोई भीख भी न देता था। बहुतेरे यत्न किए, कुछ न बन सका। भूख के मारे घास खाने लगे, इसी कारण यह मेरी स्त्री चूल्हे के पास पड़ी तड़प रही है।

Dr.Shree Vijay
19-12-2013, 05:22 PM
: दो वृद्ध पुरुष :
: तोल्सतोय :
: अनुवाद - प्रेमचंद :
बुयि-पहले कई दिनों तक तो मैं चलफिरकर कुछ धंधा करती रही, परन्तु कहां तक? भूख और रोग ने जान ले ली। जो हाल है, तुम अपने नेत्रों से देख रहे हो।

उनकी बिथा सुनकर मोहन ने विचारा कि आज रात यहीं रहना उचित हैं साथी से कल मिल लेंगे।

परातःकाल उठकर वह गांव में गया और खानेपीने की जिन्स ले आया। घर में कुछ न था। वह वहां ठहरकर इस तरह काम करने लगा कि मानो अपना ही घर है। दोतीन दिन पीछे सब चलनेफिरने लगे और वह स्त्री उठ बैठी।

चौथे दिन एकादशी थी। मोहन ने विचारा कि आज सन्ध्या को इन सबके साथ बैठकर फलाहार करके कल परातःकाल चल दूंगा।

वह गांव में जाकर दूध, फल सब सामगरी लाकर बुयि को दे, आप पूजापाठ करने मन्दिर में चला गया। इन लोगों ने अपनी जमीन एक जमींदार के यहां गिरवी रखकर अकाल के समय अपना निवार्ह किया था। मोहन जब मन्दिर गया, तब किसान युवक जमींदार के पास पहुंचा और विनयपूर्वक बोला-चौधरी जी, इस समय रुपये देकर खेत छुड़ाना मेरे काबू के बाहर है। यदि आप इस चौमासे में मुझे खेत बोने की आज्ञा दे दें, तो मेहनतमजदूरी करके आपका ऋण चुका दे सकता हूं।

Dr.Shree Vijay
19-12-2013, 05:23 PM
: दो वृद्ध पुरुष :
: तोल्सतोय :
: अनुवाद - प्रेमचंद :
परन्तु चौधरी कब मानता था? वह बोला-बिना रुपये दिए खेत नहीं बो सकते जाओ, अपना काम करो। वह निराश होकर घर लौट आया। इतने में मोहन भी पहुंच गया। जमींदार की बात सुनकर वह मन में विचार करने लगा कि जब यह जमींदार खेत नहीं बोने देता, तो इन किसानों की पराणरक्षा क्या करेगा! यदि मैं इन्हें इसी दशा में छोड़कर चल दिया, तो यह सब काल के कौर बन जायेंगे कल नहीं परसों जाऊंगा।

मोहन अब बड़ी दुविधा में पड़ा था। न रहते ही बनता था, न जाते ही बनता था। रात को पड़ापड़ा सोचने लगा, यह तो अच्छा बखेड़ा फैला। पहले अन्नपानी, अब खेत छुड़ाना, फिर गाय और बैलों की जोड़ी मोल लेना। मोहन तुम किस जंजाल में फंस गए?

जी चाहता था कि वह उन्हें ऐसे ही छोड़कर चल दे, परन्तु दया जाने न देती थी। सोचतेसोचते आंख लग गई। स्वप्न में देखता क्या है कि वह जाना चाहता है, किसी ने उसे पकड़ लिया है। लौटकर देखा तो बालक रोटी मांग रहा है। वह तुरन्त उठ बैठा और मन में कहने लगा-नहीं, अब मैं नहीं जाता। यह स्वप्न शिक्षा देता है कि मुझे इनका खेत छुड़ाना, गायबैल मोल लेना और सारा परबन्ध करके जाना उचित है।

परातःकाल उठकर जमींदार के पास गया और रुपया देकर उनका खेत छुड़ा दिया। जब एक किसान से एक गाय और दो बैल मोल लेकर लौट रहा था कि राह में स्त्रियों को बातें करते सुना।

Dr.Shree Vijay
19-12-2013, 05:28 PM
: दो वृद्ध पुरुष :
: तोल्सतोय :
: अनुवाद - प्रेमचंद :
'बहन, पहले तो हम उसे साधारण मनुष्य जानते थे। वह केवल पानी पीने आया था, पर अब सुना है कि खेत छुड़ाने और गायबैल मोल लेने गया है। ऐसे महात्मा के दर्शन करने चाहिए।' मोहन अपनी स्तुति सुनकर वहां से टल गया। गायबैल लेकर जब झोंपड़े पर पहुंचा तो किसान ने पूछा-पिताजी, यह कहां से लाये?

मोहन-अमुक किसान से यह बड़े सस्ते मिल गए हैं। जाओ, पशुशाला में बांधकर इनके आगे कुछ भूसा डाल दो।

उसी रात जब सब सो गए, तो मोहन चुपके से उठकर घर से बाहर निकल बद्रीनारायण की राह ली।

तीन मील चलकर मोहन एक वृक्ष के नीचे बैठकर बटुआ निकाल, रुपये गिनने लगा तो थोड़े ही रुपये बाकी थे। उसने सोचा-

इतने रुपयों में बद्रीनाराण पहुंचना असम्भव है, भीख मांगना पाप है। अजुर्न वहां अवश्य पहुंचेगा और आशा है कि मेरे नाम पर कुछ च़ावा भी च़ा ही देगा। मैं तो अब इस जीवन में यह यात्रा करने का संकल्प पूरा नहीं कर सकता। अच्छा, परमात्मा की इच्छा, वह बड़ा दयालु है। मुझजैसे पापियों को निस्संदेह क्षमा कर देगा।

यह विचार करके गांव का चक्कर काटकर कि कोई देख न ले, वह घर की ओर लौट पड़ा।

Dr.Shree Vijay
19-12-2013, 05:30 PM
: दो वृद्ध पुरुष :
: तोल्सतोय :
: अनुवाद - प्रेमचंद :
गांव में पहुंचा जाने पर घर वाले उसे देखकर अति परसन्न हुए और पूछने लगे कि लौट क्यों आये? मोहन ने यही उत्तर दिया कि अजुर्न से साथ छूट गया और रुपये चोरी हो गए, इस कारण लौट आना पड़ा। घर में कुशलक्षेम थी। कोई कष्ट न था।

मोहन का आना सुनकर अजुर्न के घर वाले उससे पूछने लगे कि अजुर्न को कहां छोड़ा उनसे भी उसने यही कहा कि बद्रीनारायण पहुंचने से तीन दिन पहले मैं अजुर्न से पिछड़ गया, रुपया किसी ने चुरा लिया, बद्रीनारायण जाना असम्भव था, मुझे लौटना ही पड़ा।

सब लोग मोहन की बुद्धि पर हंसने लगे कि बद्रीनारायण पहुंचा ही नहीं, रास्ते में रुपये खो दिए। मोहन घर के धंधे में लग गया, बात बीत गई।

अब उधर का हाल सुनिए-

मोहन जब पानी पीने चला गया तब थोड़ी दूर जाकर अजुर्न बैठ गया और साथी की बाट देखने लगा। सन्ध्या हो गई, पर मोहन न आया।

अजुर्न सोचने लगा-क्या हुआ, साथी क्यों नहीं आया? मेरी आंखें लग गई थीं। कहीं आगे न निकल गया हो। पर यहां से जाता तो क्या दिखायी नहीं देता? पीछे लौटकर देखूं, कहीं आगे न चला गया हो, फिर तो मिलना ही असम्भव है। आगे ही चलो, रात को चट्टी पर अवश्य भेंट हो जाएगी।

Dr.Shree Vijay
19-12-2013, 05:32 PM
: दो वृद्ध पुरुष :
: तोल्सतोय :
: अनुवाद - प्रेमचंद :
रास्ते में अजुर्न ने कई मनुष्यों से पूछा कि तुमने कोई नाटा, सांवले रंग का आदमी देखा है? परन्तु कुछ पता न चला। रात चट्टी पर भी मोहन से भेंट न हुई। अगले दिन यह विचार कर कि वह देवपरयाग पर अवश्य मिल जाएगा, वह आगे चल दिया।

रास्ते में अजुर्न को एक साधु मिल गया। वह जगन्नाथ की यात्रा करके आया था। अब दूसरी बार बद्रीनारायण के दर्शन को जा रहा था। रात को चट्टी में वे दोनों इकट्ठे ही रहे और फिर एक साथ यात्रा करने लगे।

देवपरयाग में पहुंचकर अजुर्न ने मोहन के विषय में पंडे से बहुत पूछताछ की, कुछ पता न चला। यहां सब यात्री एकत्र हो गए। देवपरयाग से आगे चलकर सब लोग रात को एक चट्टी में ठहरे। वहां मूसलाधार मेंह बरसने लगा। बिजली की कड़क, बादल की गरज से सब कांप गए। सारी रात जागते कटी। त्राहित्राहि करते दिन निकला।

अन्त को दोपहर के समय सब लोग बद्रीनारायण पहुंच गए। पंडे देवपरयाग से ही साथ हो लिये थे। बद्रीनारायण में यही रीति है कि पहले दिन यात्रियों को मन्दिर की ओर से भोजन कराया जाता है और उसी दिन यात्रियों को अटका अथवा च़ावा बतला देना पड़ता है कि कौन कितना च़ाएगा, कम से कम सवा रुपया नियत है। उस समय तो सबने पंडों के घरों में जाकर विश्राम किया। दूसरे दिन परातःकाल उठकर दर्शनपरसन में लग गए। अजुर्न और साधु एक ही स्थान में टिके थे। सांझ की आरती के दर्शन करके लौटकर जब घर आये, तब साधु बोला कि मेरा तो किसी ने रुपये का बटुआ निकाल लिया।

Dr.Shree Vijay
19-12-2013, 05:33 PM
: दो वृद्ध पुरुष :
: तोल्सतोय :
: अनुवाद - प्रेमचंद :
अजुर्न के मन में यह पाप उत्पन्न हुआ कि यह साधु झूठा है। किसी ने इसका रुपया नहीं चुराया। इसके पास रुपया था ही नहीं।

लेकिन तुरन्त ही उसको पश्चाताप हुआ कि किसी पुरुष के विषय में ऐसी कल्पना करना महापाप है। उसने मन को बहुतेरा समझाया, परंतु उसका ध्यान साधु में ही लगा रहा। पवित्र स्थान में रहने पर भी चित्त की मलिनता दूर नहीं हुई। इतने में शयन की आरती का घंटा बजा। दोनों दर्शनार्थ मन्दिर में चले गए। भीड़ बहुत थी, अजुर्न नेत्र मूंदकर भगवान की स्तुति करने लगा, परंतु हाथ बटुए पर था, क्योंकि साधु के रुपये खो जाने से संस्कार चित्त में पड़े हुए थे। अन्तःकरण का शुद्ध हो जाना क्या कोई सहज बात है!

स्तुति समाप्त करके नेत्र खोलकर अजुर्न जब भगवान के दर्शन करने लगा, तब देखता क्या है कि मूर्ति के अति समीप मोहन खड़ा है। ऐ-मोहन! नहींनहीं, मोहन यहां कैसे पहुंच सकता है? सारे रास्ते तो ढूँढता आया हूं।

मोहन को साष्टांग दण्डवत करते देखकर अजुर्न को निश्चय हो गया कि मोहन ही है। स्यात किसी दूसरी राह से यहां आ पहुंचा है। चलो, अच्छा हुआ, साथी तो मिल गया।

Dr.Shree Vijay
19-12-2013, 05:34 PM
: दो वृद्ध पुरुष :
: तोल्सतोय :
: अनुवाद - प्रेमचंद :
आरती हो गई। यात्री बाहर निकलने लगे। अजुर्न का हाथ बटुए पर था कि कोई रुपये न चुरा ले। वह मोहन को खोजने लगा, पर उसका कहीं पता नहीं चला।

दूसरे दिन परातःकाल मन्दिर में जाने पर अजुर्न ने फिर देखा कि मोहन हाथ जोड़े भगवान के सम्मुख खड़ा है। वह चाहता था कि आगे ब़कर मोहन को पकड़ ले, परन्तु ज्योंही वह आगे ब़ा, मोहन लोप हो गया।

तीसरे दिन भी अजुर्न को वही दृश्य दिखाई दिया। उसने विचारा कि चलकर द्वार पर खड़े हो जाओ। सब यात्री वहीं से निकलेंगे, वहीं मोहन को पकड़ लूंगा। अतएव उसने ऐसा ही किया, लेकिन सब यात्री निकल गए, मोहन का कहीं पता ही नहीं।

एक सप्ताह बद्रीनारायण में निवास करके अजुर्न घर लौट पड़ा।

राह चलते अजुर्न के चित्त में वही पुराने घर के झमेले बारबार आने लगे। सालभर बहुत होता है। इतने दिनों में घर की दशा न जाने क्या हुई हो। कहावत है-छाते लगे छः मास और छिन में होय उजाड़। कौन जाने लड़के ने क्या कर छोड़ा हो? फसल कैसी हो? पशुओं का पालनपोषण हुआ है कि नहीं?

चलतेचलते अजुर्न जब उस झोपड़े के पास पहुंचा, जहां मोहन पानी पीने गया था, तो भीतर से एक लड़की ने आकर उसका कुरता पकड़ लिया और बोली-बाबा, बाबा भीतर चलो।

Dr.Shree Vijay
19-12-2013, 05:36 PM
: दो वृद्ध पुरुष :
: तोल्सतोय :
: अनुवाद - प्रेमचंद :
अजुर्न कुरता छुड़ाकर जाना चाहता था कि भीतर से एक स्त्री बोली-महाशय! भोजन करके रात्रि को यहीं विश्राम कीजिए। कल चले जाना। वह अंदर चला गया और सोचने लगा कि मोहन यहीं पानी पीने आया था। स्यात इन लोगों से उसका कुछ पता चल जाए।

स्त्री ने अजुर्न के हाथपैर धुलाकर भोजन परस दिया। अजुर्न उसको आशीष देने लगा।

स्त्री बोली-दादा, हम अतिथिसेवा करना क्या जानें? यह सब कुछ हमें एक यात्री ने सिखाया है। हम परमात्मा को भूल गए थे। हमारी यह दशा हो गई थी कि यदि वह बू़ा यात्री न आता तो हम सबके-सब मर जाते। वह यहां पानी पीने आया था। हमारी दुर्दशा देखकर यहीं ठहर गया। हमारा खेत रेहन पड़ा था, वह छुड़ा दिया। गायबैल मोल ले दिए और सामगरी जुटाकर एक दिन न जाने कहां चला गया।

इतने में एक बुयि आ गई और यह बात सुनकर बोल उठी-वह मनुष्य नहीं था, साक्षात देवता था। उसने हमारे ऊपर दया की, हमारा उद्घार कर दिया, नहीं तो हम मर गए होते वह पानी मांगने आया। मैंने कहा, जाओ, यहां पानी नहीं। जब मैं वह बात स्मरण करती हूं, तो मेरा शरीर कांप उठता है।

छोटी लड़की बोल उठी-उसने अपनी कांवर खोली और उसमें से लोटा निकाला कुएं की ओर चला।

Dr.Shree Vijay
19-12-2013, 05:37 PM
: दो वृद्ध पुरुष :
: तोल्सतोय :
: अनुवाद - प्रेमचंद :
इस तरह सबके-सब मोहन की चचार करने लगे। रात को किसान भी आ पहुंचा और वही चचार करने लगा-निस्संदेह उस यात्री ने हमें जीवनदान दिया। हम जान गए कि परमेश्वर क्या है और परोपकार क्या। वह हमें पशुओं से मनुष्य बना गया।

अजुर्न ने अब समझा कि बद्रीनारायण के मंदिर में मोहन के दिखायी देने का कारण क्या था। उसे निश्चय हो गया कि मोहन की यात्रा सफल हुई।

कुछ दिनों पीछे अजुर्न घर पहुंच गया। लड़का शराब पीकर मस्त पड़ा था। घर का हाल सब गड़बड़ था। अजुर्न लड़के को डांटने लगा। लड़के ने कहा-तो यात्रा पर जाने को किसने कहा था? न जाते। इस पर अजुर्न ने उसके मुंह पर तमाचा मारा।

दूसरे दिन अजुर्न जब चौधरी से मिलने जा रहा था, तो राह में मोहन की स्त्री मिल गई।

स्त्री-भाई जी, कुशल से तो हो? बद्रीनारायण हो आये?

अजुर्न-हां, हो आया। मोहन मुझसे रास्ते में बिछुड़ गए थे। कहो, वह कुशल से घर तो पहुंच गए?

Dr.Shree Vijay
19-12-2013, 05:39 PM
: दो वृद्ध पुरुष :
: तोल्सतोय :
: अनुवाद - प्रेमचंद :
स्त्री-उन्हें आये तो कई महीने हो गए। उनके बिना हम सब उदास रहा करते थे। लड़के को तो घर काटे खाता था। स्वामी बिना घर सूना होता है।

अजुर्न-घर में हैं कि कहीं बाहर गये हैं?

स्त्री-नहीं, घर में हैं।

अजुर्न भीतर चला गया और मोहन से बोला-रामराम, भैया मोहन, रामराम!

मोहन-राम-राम! आओ भाई! कहो, दर्शन कर आये!

अजुर्न-हां, कर तो आया, पर मैं यह नहीं कह सकता कि यात्रा सफल हुई अथवा नहीं। लौटते समय मैं उस झोंपड़े में ठहरा था, जहां तुम पानी पीने गये थे।

मोहन ने बात टाल दी और अजुर्न भी चुप हो गया, परंतु उसे दृ़ विश्वास हो गया कि उत्तम तीर्थयात्रा यही है कि पुरुष जीवन पर्यन्त परत्येक पराणी के साथ परेमभाव रखकर सदैव उपकार में तत्पर रहे।


इस स्रोत का लिंक:......... (http://hindisamay.com/contentDetail.aspx?id=461&pageno=1)

Dr.Shree Vijay
22-01-2014, 11:37 AM
http://rakeshmishra.jagranjunction.com/files/2011/05/old-lady-case.jpg

Dr.Shree Vijay
22-01-2014, 11:40 AM
http://3.bp.blogspot.com/-A_XqFariXRM/Um4g6VH8WxI/AAAAAAAABEY/5LGLwRHIYsA/s1600/Page%2B61.jpg

Dr.Shree Vijay
22-01-2014, 12:17 PM
http://4.bp.blogspot.com/-c7OitRjzlQ8/UqsU_4WORyI/AAAAAAAAEHY/SviZQf-dg_k/s1600/D28521202.JPG

Dr.Shree Vijay
19-02-2014, 09:53 PM
बुजुर्गो का मनुष्यता के विकास में उनका महत्वपूर्ण स्थान :...

लंदन :
अगर आपके घर में बुजुर्ग हैं, तो उन्हें ईश्वर की आप पर कृपा समझिए। वैज्ञानिक शोध लगातार यह बात कह रहे हैं कि नाना-नानी और दादा-दादी की भूमिका बच्चों के लाड-दुलार तक ही सीमित नहीं है, बल्कि मनुष्यता के विकास में उनका महत्वपूर्ण स्थान है। वैज्ञानिक ढंग से किए गए कई अध्ययनों में यह बात सामने है कि घर के बुजुर्गो ने मनुष्य के प्रारंभिक विकास में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

वास्तव में, नाना-नानी और दादा-दादी बच्चों के साथ खेलते ही नहीं हैं, बल्कि वे बच्चों में कई गुण विकसित करते हैं और सबसे खास मानवीय रिश्तों की अहम समझ देते हैं। ब्रिटिश अखबार डेली मेल में प्रकाशित खबर में यह बात कही गई है। लंदन के नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम के शोध में इस बात पर जोर दिया गया है कि सभ्यता के शुरुआती दिनों में बुजुर्गो ने ही बताया कि कौन से पदार्थ खाने योग्य हैं और कौन से जहरीले।

शोध से जुड़े प्रो. क्रिस स्टिंजर के अनुसार, बुजुर्गो ने अगली पीढ़ी तक यह ज्ञान पहुंचाया। इसी प्रकार जल कुंड के पते और औजार बनाने का ज्ञान भी नई नस्ल को देने का काम उन्होंने किया। सबसे खास बात, उन्होंने अपनी और दूसरी जनजातियों की पहचान अगली पीढ़ी को बताई। रिश्तों के महत्व समझाए।

यूनिवर्सिटी ऑफ उटाह की क्रिस्टेन हॉक्स ने तंजानियाई शिकारी जातियों पर अपने शोध में कहा कि दादियों और नानियों ने भोजन इकट्ठा करने से लेकर उसे सहेज कर रखने की तमाम तकनीकें नई पीढि़यों को सिखाई।

सेंट्रल मिशिगन यूनिवर्सिटी की प्रो. राशेल कैस्परी ने 30 हजार वर्ष पूर्व मानव सभ्यता के विकास और मनुष्य की बढ़ती जीवन प्रत्याशा पर अध्ययन किया और कहा कि जब मनुष्य की जीवन प्रत्याशा ने 30 वर्ष की सीमा को पार किया, तब उसने अपने-अपने क्षेत्रों से निकल कर दूसरी जगहों पर कदम रखे।

यहीं से मानव सभ्यता के विकास में तेज रफ्तार कामयाबी के पंख लगे।

तंजानिया की जनजातीय प्रजाति हडजा पर किए अध्ययन के अनुसार दादी और नानी बच्चों की खानपान की आदतों और उसकी सेहत बेहतरीन करने में अहम भूमिका निभाती हैं। वैज्ञानिकों ने कहा कि 30 हजार साल पहले मानव जाति की आबादी एकाएक बढ़ने और उनकी उम्र बढ़ने का यही कारण था कि तब तक विभिन्न समुदाय संयुक्त परिवारों में रहते थे जिसमें तीन पीढि़यां होती थीं।

आज भी सबसे कम उम्र की पीढ़ी और सबसे उम्रदराज पीढ़ी पूरे परिवार को बांधे रखने का काम करती है :.........

साभार :......... (http://www.pressnote.in/Life--Style_132283.html#.UwTu32KSxGY)

Dr.Shree Vijay
28-02-2014, 03:17 PM
बुजुर्गों की समस्याएँ :.........

http://www.thehindu.com/multimedia/dynamic/00032/IN16_SENIOR_CITIZENS_32042f.jpg

अशक्त शरीर :

प्रत्येक जीवधारी उत्पन्न होने के पश्चात् कृमशः,बाल्यावस्था, किशोरावस्था, युवावस्था, अधेड़ावस्था , एवं वृद्धावस्था से गुजरता है। वृद्धावस्था को जीवन संध्या भी कहा जाता है, क्योंकि यह जीवन का अंतिम पड़ाव होता है। इस अवस्था तक आते आते मानव शरीर थकने लगता है, शारीरिक क्रियाएं उम्र के साथ साथ शरीर को शिथिल करने लगती हैं। जो झुर्रियों के रूप में स्पष्ट होने लगती हैं।

वर्तमान समय में जहाँ चिकित्सा सेवाएं उत्कृष्ट हुई हैं, वहीँ बनावटी रहन -सहन, एवं मिलावटी खानपान तथा फास्ट फ़ूड के चलन ने मानव स्वास्थ्य को प्रभावित किया है, और अधेड़ अवस्था तक आते आते अनेक बीमारियों का प्रवेश हो जाता है।

आज सभी बीमारियों का इलाज भी अप्राकृतिक तौर पर एलोपेथिक दवाइयों द्वारा किया जाने लगा है जो अपना नकारात्मक प्रभाव भी शरीर पर छोडती रहती हैं, और कालांतर में शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डालती हैं। अतः वृद्धावस्था प्रभावित होती है, शरीर क्षीण होता जाता है। अशक्त शरीर बुढ़ापे को कष्टकारी बनता है :.........

साभार :......... (http://seniorcitizensofindia.blogspot.in/)

Dr.Shree Vijay
28-02-2014, 03:20 PM
बुजुर्गों की समस्याएँ :.........

http://cseindiaportal.files.wordpress.com/2012/11/seniorcitizen2.jpg

अशक्त शरीर :

यह तो सत्य है जो जीव पैदा होता है उसका अंत भी निश्चित है। परन्तु जब तक इन्सान जीवित रहे, स्वस्थ्य रहे और अपने दैनिक कार्यों के लिए किसी अन्य पर निर्भर न रहना पड़े अथवा बिस्तर पर पड़े रह कर समय न बिताना पड़े। यह इच्छा प्रत्येक इन्सान की होती है। परन्तु बिरला ही कोई व्यक्ति ऐसा होता है जिसका इतना सुखद अंत हो, जो बिना किसी अन्य व्यक्ति की मदद के अपना जीवन यापन करते करते चला जाये। अतः वृद्धावस्था में शरीर अशक्त हो जाना, क्षीण हो जाना बुजुर्ग की प्रमुख समस्या होती है।

जो बुजुर्ग अपने युवा काल में अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहते आए हैं, आवश्यकता अनुरूप व्यायाम, खानपान, एवं बीमारियों से बचाव करते रहे हैं, उनका बुढ़ापा अपेक्षाकृत सुखमय व्यतीत होता है। वृद्धावस्था में आकर शरीर की प्राथमिकतायें बदल जाती हैं। कुछ विशेष सावधानियों को ध्यान में रख कर चलना पड़ता है। आगे के अध्याय में कुछ महत्त्व पूर्ण सुझाव उपलब्ध कराये गए हैं, जो किसी भी बुजुर्ग को अपने स्वास्थ्य की तरफ से कम कष्टकारी जीवन बना सकता है :.........

साभार :......... (http://seniorcitizensofindia.blogspot.in/)

Dr.Shree Vijay
28-02-2014, 03:22 PM
बुजुर्गों की समस्याएँ :.........

http://www.swankpets.com/images/senior%20citizen%20couple.jpg

अशक्त शरीर :

यह बात तो सत्य है की वृद्धावस्था में परिजनों से तालमेल रख कर ही संतोषप्रद जीवन संभव हो सकता है। अशक्त शरीर का सहारा बनना परिजनों द्वारा ही संभव है। अतः परिवार के महत्त्व को समझना होगा। अपनी कटू वाणी को विराम लगाना होगा, परिजनों के कार्यों में दखलंदाजी से बचना होगा। तानाशाही व्यवहार से तौबा करनी होगी |

धनाभाव के साथ गंभीर बीमारी हो जाना :

यद्यपि चिकत्सा जगत में आश्चर्य जनक प्रगति हुई है, परन्तु बढ़ते जीवन मूल्यों के कारण चिकत्सा खर्च आम व्यक्ति की सामर्थ्य से बाहर होता जा रहा है। विशेष तौर पर गंभीर रोग जैसे केंसर, एड्स, टी। बी। डायबिटीस, हृदय रोग इत्यादि के इलाज के लिए अत्यधिक व्यय होता है। यदि कोई बुजुर्ग आर्थिक रूप से पराधीन है अथवा निम्न स्रोत का उपभोक्ता है, तो निश्चित तौर पर उसके लिए रोग का निदान कर पाना असंभव हो जाता है, सरकारी अस्पताल जहाँ सरकार के सहयोग से निशुल्क इलाज संभव है, परन्तु अस्पतालों में व्याप्त भ्रष्टाचार, लापरवाही, संवेदन हीनता, किसी बीमार को आश्रय और सुकून देने में सक्षम नहीं हैं।

अतः कोई भी वहां जाकर इलाज कराना अपने को नरक में धकेल देने के बराबर पाता है। अर्थात सरकारी अस्पतालों में जाकर भी बुजुर्ग के लिए संतोषप्रद इलाज कराना असंभव है। हमारे देश में चिकत्सा बीमा अभी कोई विशेष लोकप्रिय नहीं हो पाया है। वृद्धावस्था में बीमा कराना भी लाभप्रद नहीं है, क्योंकि बुजुर्गों से बीमा प्रीमियम अधिक बसूला जाता है। बीमा यौवनावस्था में कराया जाय तो ही लाभप्रद सिद्ध हो सकता है :.........

साभार :......... (http://seniorcitizensofindia.blogspot.in/)

Dr.Shree Vijay
28-02-2014, 03:29 PM
बुजुर्गों की समस्याएँ :.........

http://c.tadst.com/gfx/600x400/un-intday-older-persons.jpg?1

अशक्त शरीर :

वृद्धावस्था में शरीर अशक्त हो जाने के कारण बीमारियाँ जल्दी पकड़ लेता है। परन्तु कार्यमुक्त होने के कारण अधिकतर बुजुर्गों के पास धन का अभाव होता है और बीमारियाँ बुढ़ापे की मुश्किलों का पार्यप्त कारण बन जाती हैं।

एकाकीपन :

यह तो सत्य है की प्रत्येक इन्सान को मौत आनी है, परन्तु यह भी सत्य है ऐसा कोई निश्चित नहीं है की पति और पत्नी एक साथ दुनिया से विदा लें, अर्थात दोनों की मृत्यु एक समय पर हो। किसी एक को पहले जाना होता है। दाम्पत्य जीवन में अकेला रहने वाला व्यक्ति एकाकी पन का शिकार होता है। किसी भी व्यक्ति को अपने जीवन साथी की सबसे अधिक आवश्यकता प्रौढ़ अवस्था में होती है। प्रौढ़ावस्था में अपने विचारों के आदान प्रदान का एक मात्र मध्यम जीवन साथी ही बनता है।

प्रौढ़ावस्था में बीमारी एवं दुःख दर्द में सेवा, सहानुभूति, सहयोग मुख्यतः जीवन साथी से प्राप्त होता है। प्रौढ़ावस्था आते आते अपने अनेकों मित्र एवं संगी साथी, बिछड़ चुके होते हैं। अथवा इस अवस्था में होते हैं की वे आपस में मिल नहीं सकते अथवा विचार विनिमय नहीं कर पाते, कारण आर्थिक भी हो सकता है। शारीरिक अक्षमता हो सकता है अथवा अन्य परिस्थितियां। यह इंसानी स्वभाव है की अपने आयु वर्ग के साथ हे भावनाओं का आदान प्रदान करने, विचार विनिमय करने तथा उसके साथ समय व्यतीत करने में सर्वाधिक सहज अनुभव करता है :.........

साभार :......... (http://seniorcitizensofindia.blogspot.in/)

Dr.Shree Vijay
28-02-2014, 03:33 PM
बुजुर्गों की समस्याएँ :.........

http://us.123rf.com/400wm/400/400/stylephotographs/stylephotographs1002/stylephotographs100200139/6375730-two-happy-senior-citizens-holding-their-thumbs-up.jpg

एकाकीपन :

इसलिए प्रौढ़ व्यक्ति को भी अपनी भावनाएं व्यक्त करने के लिए वृद्ध व्यक्ति ही चाहिए। उसका बेटा, बेटी अथवा कोई अन्य परिजन उसके लिए संतोष जनक व्यक्ति साबित नहीं हो सकता। अतः जीवन साथी का बिछडाव व्यक्ति की जीवन संध्या का अंतिम अध्याय बन जाता है। एकाकी पन उसे मौत की प्रतीक्षा के लिए प्रेरित करने लगता है। यदि घर में नाती पोते बाल्यावस्था में हैं तो अवश्य उसका मन बहलाने एवं समय बिताने का अवसर मिल जाता है।

यदि प्रौढ़ स्त्री है तो उसका एकाकीपन कम व्यथित करता है। क्योंकि उसका कार्यक्षेत्र घर परिवार का कामकाज ही रहा है। अतः अपनी क्षमतानुसार घरेलु कार्यों में समय व्यतीत कर सकती है। परन्तु प्रौढ़ पुरुष के लिए ऐसा संभव नहीं होता। उसका एकाकीपन उसके जीवन को नीरस कर देता है। उसके लिए प्रत्येक दिन पुरानी यादों का पिटारा खोल कर दुःख के अतिरिक्त कुछ नहीं दे पाता।

जीवन साथी का अभाव अधेड़ावस्था में हो अथवा प्रौढ़ावस्था में हो किसी भी व्यक्ति के जीवन को संकुचित कर देता है। वह अपेक्षतया शीघ्र मौत को गले लगा लेता है :.........

साभार :......... (http://seniorcitizensofindia.blogspot.in/)

Dr.Shree Vijay
28-02-2014, 03:35 PM
बुजुर्गों की समस्याएँ :.........

http://www.marionilseniorcitizenscenter.com/wp-content/themes/superclean/images/main1.jpg

आर्थिक पर निर्भरता :

प्रत्येक वृद्ध इतना सौभाग्य शाली नहीं होता, की वह जीवन के अंतिम पड़ाव तक आत्मनिर्भर बना रहे, अर्थात उसका आए स्रोत उसके भरण पोषण के लायक जीवन पर्यंत बने रहें। जैसे, पेंशन प्राप्त करना, मकान दुकान या जायदाद का किराया, अपनी पूँजी पर बैंक ब्याज की आए, रोयल्टी से आए, या किसी अन्य प्रकार से आने वाली आए। प्रत्येक वृद्ध के लिए संभव नहीं होता की वह अपने जीवन भर की बचत से अथवा उसके ब्याज से शेष जीवन का निर्वाह कर सके।

अतः अनेक वृद्धों को आर्थिक रूप से अपने परिजनों जैसे पुत्र। पुत्री। भाई इत्यादि पर निर्भर रहना पड़ता है। उसके व्यक्तिगत खर्चे परिजनों की आए से पूरे होते हैं। जिसमे अनेक बार असहज स्थितियों का सामना करना पड़ता है। व्यक्ति का आत्म सम्मान भी दांव पर लग जाता है। कभी कभी आवश्यकताएं पूर्ण भी नहीं हो पातीं। बीमारी, इत्यादि में साधनों का अभाव कचोटता है। उसे मानसिक वेदनाओं का शिकार होना पड़ता है। कभी कभी उसे आत्मग्लानी होती है, उसे अपना जीवन निरर्थक लगने लगता है :.........

साभार :......... (http://seniorcitizensofindia.blogspot.in/)

Dr.Shree Vijay
28-02-2014, 03:37 PM
बुजुर्गों की समस्याएँ :.........

http://www.medindia.net/patients/insurance/images/HealthInsurance-Sr-Citizen6.jpg

आर्थिक पर निर्भरता :

महिला वृद्ध जो पहले गृहणी रही है के लिए आर्थिक परनिर्भरता कोई व्यथा का कारण नहीं बनती क्योंकि वह पहले भी अपने पति पर निर्भर थी उसके पश्चात् अन्य परिजन पर निर्भर हो जाती है। अतः उसके लिए सिर्फ निर्भरता का स्रोत बदल जाता है। परन्तु पुरुष जिसका पहले पूरे परिवार पर बर्चस्व था, परिवार का पालनहार था और अब, उसे स्वयं किसी अन्य परिजन की आए पर आधारित होना पड़ता है। यह स्थिति उसके आत्म सम्मान के लिए कष्टकारी होती है कभी कभी आत्मग्लानी का अहसास होता है।

जीवन संध्या में वृद्ध का आत्मनिर्भर होना उसके लम्बे जीवन के लिए वरदान होता है। परन्तु प्रत्येक वृद्ध के लिए संभव नहीं होता, सरकारी सहायता उसका जीवन निर्वाह का बोझ नहीं उठा पातीं। अतः आर्थिक परनिर्भरता प्रौढ़ पुरुष की मुख्य समस्या रहती है :.........

साभार :......... (http://seniorcitizensofindia.blogspot.in/)

Dr.Shree Vijay
28-02-2014, 03:44 PM
बुजुर्गों की समस्याएँ :.........

http://www.berryhilleyecare.com/wp-content/uploads/2012/09/Berryhill-Eye-Care-Senior-Citizens.jpg

सुरक्षा की समस्या :

समय के साथ परिवर्तित हो रही सामाजिक व्यवस्था ने बुजुर्गों के लिए अपनी सुरक्षा को लेकर चिंता बढा दी है। संयुक्त परिवार बिखर कर एकल परिवार बन चुके हैं। बढती जनसँख्या की समस्या, बढ़ता जीवन स्तर एवं बढती प्रतिस्पर्द्धा के कारण प्रत्येक समझदार दम्पति के लिए सीमित परिवार की अवधारणा को स्वीकार करना आवश्यक हो गया है। क्योंकि प्रत्येक माता पिता की इच्छा होती है, वह अपने बच्चे को जीवन की सारी खुशियाँ उपलब्ध करा पायें। अच्छी से अच्छी शिक्षा देकर उन्हें जीवन की ऊंचाइयों तक पहुंचा पायें।

यह सब सीमित परिवार के होते हुए ही संभव है। जैसे जैसे पुत्र, पुत्री बड़े होते हैं, शिक्षित होते हैं, युवावस्था में प्रवेश करते हैं, पुत्री को विवाह कर ससुराल विदा करना होता है और पुत्र को अपने अच्छे भविष्य की तलाश में अपने परिवार, अपने शहर से दूर जाना पड़ता है। अंत में परिवार में रह जाते हैं सिर्फ बुजुर्ग पति और पत्नी। यदि बेटा विदेश चला जाता है तो उसे लौटने में भी साल साल भर लग जाता है। अपने देश में कार्य करते रहने पर भी साप्ताहिक अवकाश में घर पर आ जाना हमेशा संभव नहीं होता। अतः बुजुर्ग दम्पति को अपने स्वास्थ्य की देख भाल स्वयं ही करनी पड़ती है, अपनी सुरक्षा को लेकर चिंता सताने लगती है :.........

साभार :......... (http://seniorcitizensofindia.blogspot.in/)

Dr.Shree Vijay
28-02-2014, 03:46 PM
बुजुर्गों की समस्याएँ :.........

http://www.lawisgreek.com/wp-content/uploads/2010/05/senior-Citizen-Act-LIG.gif

सुरक्षा की समस्या :

हमारे देश की सुरक्षा व्यवस्था जर जर हालत में होने के कारण आए दिन अपराधी बुजुर्ग दंपत्ति को अपना शिकार बनाते रहते हैं। उनके साथ लूट पाट करना, उनकी हत्या कर देना नित्य अख़बार की सुर्खिया बनती हैं। अनेकों बार तो घर के नौकर ही बुजुर्गों की कमजोरी का लाभ उठा कर अपराधों को अंजाम दे देते हैं। कई बार कोई पडोसी बदमाश या करीबी व्यक्ति उनकी जायदाद को हड़पने का प्रयास करते हैं। अथवा उन्हें अनेक प्रकार से परेशान कर बेदखल करने या निवास छोड़ने को मजबूर करते हैं।

यह भी संभव नहीं की, युवा संतान परिवार के साथ रह सके और अपने भविष्य को दांव पर लगा दे। सुरक्षा व्यवस्था कमजोर होने के कारण बुजुर्गों के मन में असुरक्षा का भाव बना रहता है। यदि सभी बुजुर्ग सामूहिक रूप से एक दुसरे की सुरक्षा की जिम्मेदारी उठायें तो शायद कुछ हद तक इस समस्या से मुक्त हुआ जा सकता है, शेष जीवन को सुरक्षित एवं निश्चिन्त बनाया जा सकता है :.........

साभार :......... (http://seniorcitizensofindia.blogspot.in/)

rajnish manga
28-02-2014, 10:26 PM
वृद्धों से जुड़े सामाजिक सरोकारों पर अच्छी सामग्री दी जा रही है. यह सब को सचेत भी करती है.

Dr.Shree Vijay
16-10-2014, 05:53 PM
प्रिय रजनीशजी,
सुंदर संशिप्त टिप्पणी व्यक्त करने के लिए आपका हार्दिक आभार.........

soni pushpa
16-10-2014, 11:13 PM
[/color][/size][/left][/b][/QUOTE]
बहुत बहुत धन्यवाद डॉ श्री विजय कुमार जी ,...आपकी इस कहानी को पढ़कर मै कुछ लिखना चाहूंगी ...
बहुत ही सही बात , और आज के समय की मांग है की इस विषय पर लिखा जाय और इसपर सोचा जाय ...इस कहानी का भावार्थ इस बात की अनुभूति कराती है की समाज में बुजुर्गो की अवहेलना आज समाज की एक बड़ी समस्या कही जा सकती है . आजकल कई जगह देखने मिला है खासकरके बड़े शहरो में और विदेशमे, विदेशी हिन्दुस्तानी याने की n र i में की जब भी किसी वर कन्या के विवाह की बात होती है, तब एक पक्ष ये पहले पूछते हैं की घर में कितने पुराने फर्नीचर हैं ... पुराने फर्नीचर कहा जाता है बुजुर्गो को... बहुत गलत है समाज का ये विचार क्यूंकि जिन्होंने बच्चों को पालपोसकर बड़ा किया है उन्हें फर्नीचर कहना और आज कई vridhdhashram कई एइसी दुखद कहानियो से भरे पड़े हैं की आँखे भर आती हैं . और लोग बूढ़े माँ बाप को वृध्धाश्रम में फेंक देते है कचरे के सामान की तरह, तब दिल रो उठता है क्यों आज के बच्चे ये भूल जाते हैं, की वो भी कभी तो बूढ़े होंगे ही और उनके साथ भी जब एइसा कुछ हुआ तो ? क्या बीतेगी उनपर. क्यूँ खुद को अपने माता पिता के स्थान पर नही रख के देख्तेकी दिल में कितना दर्द होता हैजब खुद की संतान ये कहे की आपके लिए हमारे घर में जगह नही ...

Dr.Shree Vijay
14-11-2014, 01:55 PM
प्रिय पुष्पा जी,
आपकी टिप्पणियाँ मुझे सदैव प्रोत्साहित करती हैं,
जिनके लिये मैं आपका हार्दिक आभार प्रकट करता हूँ..........

Dr.Shree Vijay
14-11-2014, 02:07 PM
बुजुर्गों की समस्याएँ :.........

https://pbs.twimg.com/media/Bz88IjtCMAAZLz-.jpg:large

अशक्त शरीर :

एक विधवा वृद्धा माँ को काफी समय से बहुत कम सुनाई दे रहा था l

उसने अपने बेटे को बताया तो बेटे ने कहा-
माँ बुढापे मे ये सब बीमारियाँ हो जाती है काम तो चल रहा है l
पता है आपको कान वाली मशीन कितनी मँहगी आती है l

एक दिन शहर के बड़े चिकित्सालय मे हेल्थ कैम्प लगा
जहाँ सभी बीमारियो का नि:शुल्क इलाज हो रहा था l

यह बात उस माँ को पता चली तो वह अपनी सहेली के साथ हेल्थ केम्प
गयी और वहाँ जाँच करने के बाद उसे एक श्रवण यँत्र दिया गया l

खुश होकर जब वो घर पँहुची ओर उसने बहु और बेटे की बातचीत सुनी
बहु कह रही थी-क्या आफत है माँजी को अब साफ सुनाई देने लग जाएगा
मै तो मम्मी से फोन पर खुलकर बात भी नही कर सकुंगी
पहले तो हम सबकुछ फ्री स्टाइल मे बोल लेते थे ओर मनमानी कर लेते थे
बेटा:- हाँ यार एक ओर नयी मुसीबत

दोनो की बात सुनकर माँ सन्न रह
गयी उसने श्रवण यँत्र उतार कर फेँक दिया और फिर से बहरी हो गयी...

दोस्तो ये कैसा इत्फाक है :
हर बार माँ-बाप ही अपनी औलाद के लिए कितना कुछ त्याग करते है !!!
क्या औलाद का कोई फर्ज नही बनता ??? :.........

soni pushpa
30-11-2014, 10:28 AM
[QUOTE=Dr.Shree Vijay;

एक दिन शहर के बड़े चिकित्सालय मे हेल्थ कैम्प लगा
जहाँ सभी बीमारियो का नि:शुल्क इलाज हो रहा था


बहुत बहुत धन्यवाद डॉ श्री विजय जी ,... एक अच्छी कहानी देने के लिए और मन से दुखी बुजुर्गो की आप बीती बताने के लिए ..

ये सिर्फ कहानी नही, किसी न किसी बुजुर्ग के साथ हो रही समाज के किसी एक घर में होने वाली घटना है ये . न जाने क्यों संतान अपने माँ बाप के लिए इतने संकीर्ण विचार बना लेती है न जाने keise उनका दिल लोहे का हो जाता है, जिसमे जनम से लेकर उनका घर बसने के बाद तक याने की जीवन पर्यंत माँ बाप का जो प्यार है उसे संताने भूल जाती है ... ये भूल जाते हैं बच्चे की यदि माँ बाप न होते तो वो खुद इस संसार में न होते यदि बेटे को पढाया लिखाया न होता , शादी न की होती तो जिस बीवी की वजह से माँ को मुसीबत वो कहने लगे हैं वो बीवी ही ना आती उसके पास. .

बहुत मन विचलित होता है जब कोई वृद्ध माँ ता पिता को यू मन से दुखी किया जाता है काश बच्चे समझ सकते आपने माँ बाप के सच्चे प्यार को ...