PDA

View Full Version : अन्ज़ामे इश्क़ अक्सर


Dr. Rakesh Srivastava
08-11-2013, 03:35 PM
ये न समझ कि तुझसे मोहब्बत नहीं रही ; हाँ इसमें पहले जैसी इबादत नहीं रही।
कट तो रही है ज़िन्दगी तेरे बग़ैर भी ; पर तेरे संग वाली हरारत नहीं रही।
दुनयावी मस,अलों में यूँ मसरूफ़ हो गया ; दिन रात याद करने कि आदत नहीं रही।
उफ़ तेरी बेरुख़ी से दिल के ज़ख्म भर चले ; पहले - सी तेरी मुझपे इनायत नहीं रही।
मुद्दत से हिचकियों के लुत्फ़ को तरस गया ; तुझको तो याद करने कि फ़ुर्सत नहीं रही।
बाहों से दूर यूँ गये , दिखते नहीं कभी ; अब तेरी ख़्वाब तक में भी सोहबत नहीं रही।
बिस्तर पे करवटों कि सिलवटें हैं नदारद ; आँखों कि नींद से भी अदावत नहीं रही।
अब याद तेरी आने पे बढ़ती नहीं धड़कन ; मेरे भी दिल की पहले - सी फ़ितरत नहीं रही।
ख़्वाबों के मुताबिक़ तेरे मैं ढल तो रहा था ; तुझमें ही इन्तज़ार की क़ुव्वत नहीं रही।
दोनों ही बेकसूर थे , दुनिया के थे सितम ; दोनों के सामने कोई सूरत नहीं रही।

रचयिता ~~ डॉ. राकेश श्रीवास्तव , गोमती नगर , लखनऊ।

शब्दार्थ > हरारत = गुनगुनापन / गर्माहट , मस,अलों = समस्याओं , मसरूफ़ = व्यस्त , इनायत = कृपा ,
लुत्फ़ = आनन्द , सोहबत = साथ / मिलन , नदारद = ग़ायब , अदावत = शत्रुता ,फ़ितरत = स्वभाव ,
मुताबिक़ = अनुरूप , कुव्वत = क्षमता / योग्यता , सितम = ज़ुल्म , सूरत = उपाय / रास्ता।

internetpremi
08-11-2013, 08:13 PM
अच्छा लगा।
शब्दार्थ के लिए विशेष धन्य्वाद।
नहीं तो हम जैसे लोग (जो बहुत कम उर्दू जानते हैं) समझ नहीं सकेंगे।
लिखते रहिए
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ

abhisays
09-11-2013, 05:31 PM
Bahut Dino ke Dr Saahab ki nayi rachna padhne ko mili. Padh kar Accha Laga. :bravo:

dipu
10-11-2013, 08:29 AM
:bravo::bravo::bravo:

rajnish manga
12-11-2013, 08:57 AM
इस नायाब ग़ज़ल को शेयर करने के लिये आपका धन्यवाद. एक शे'र याद आ गया. मुलाहिज़ा करें:


तुम्हें गैरों से कब फुरसत, हम अपने ग़म से कब खाली
चलो बस हो गया मिलना, न तुम खाली न हम खाली