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View Full Version : ये कैसा मर्ज़ है मुझको


dipu
14-11-2013, 05:22 PM
ये कैसा मर्ज़ है मुझको मैं कुछ-कुछ भूल जाता हूँ,
मोहब्बत याद रखता हूँ मैं नफ़रत भूल जाता हूँ.

मग़र न छेड़ो मुझको यूँ लहू आँखों से बह निकले,
कोई जब दिल दुखाता है नफ़ासत भूल जाता हूँ.

शरार नज़रों से उड़ता है रगों में आग बहती है,
इन्तहा-ए-ज़ुल्म जब देखूँ मोहब्बत भूल जाता हूँ.

मिले जो धोखे पर धोखे वजह बस एक ठहरी है,
कोई नम आँखों से आये तो हिमाक़त भूल जाता हूँ.

तालीम-ओ-तर्बियत 'साहिल' ऐसी है नहीं पायी,
मग़र कोई नाहक सताए तो शराफ़त भूल जाता हूँ.___संदीप सिंह साहिल