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View Full Version : अक्सर तुम ही याद आती हो


vaibhav srivastava
19-12-2013, 06:35 PM
चाँदनी रात में सितारों के बीच में,
अक्सर तुम नजर आती हो

शाम की तन्हाइयों में,धूमिल होते रास्तों में
अक्सर तुम ही याद आती हो

होती है जब तेरी खुमारी सीमाओं से परे

तो तुम सहज ही मेरी कविता में उतर जाती हो।


चाँदनी की शीतलता में या पुर्वहिया की मधुरता में
बसंत की बेला में या सावन की चंचलता मे

प्रकृति के हर प्रेम अनुभावों,
हमेशा तुम ही मुस्कुराती नजर आती हो

मिलता हूँ जब मैं तेरे इन मनोहर रूपों से

तो तुम सहज ही मेरी कविता का श्रृंगार बन जाती हो ।

internetpremi
19-12-2013, 06:55 PM
उत्तम।
अच्छी लगी।

vaibhav srivastava
19-12-2013, 06:58 PM
शुक्रिया सर....... बस थोड़ी सी कोशिश की थी अच्छा लिखने की।

rajnish manga
19-12-2013, 08:16 PM
मित्र, आपकी रचना-प्रक्रिया में बहुत संभावनाएं दिखाई देती हैं. परन्तु प्रस्तुत रचना के बारे में कुछ कहना चाहता हूँ. यह रचना आपकी पूर्ववर्ती रचना का ही एक अंश मालूम होती है और कहीं कहीं पर पुनरावृत्ति भी है. रचना में बिखराव है. रचना में एक ही पात्र के लिए कहीं तू और कहीं तुम का सम्बोधन उचित नहीं जान पड़ता. इनके अतिरिक्त निम्नलिखित दिशा में ध्यान दिया जाना चाहये:-

1. पुर्वहिया = पुरबैया (वर्तनी)

2. प्रकृति के हर प्रेम अनुभावों,
हमेशा तुम ही मुस्कुराती नजर आती हो

(उपरोक्त दोनों पंक्तियों का आशय स्पष्ट नहीं है)


मेरा आपसे निवेदन है कि रचना पोस्ट करने से पहले उसके हर पहलु पर भली प्रकार विचार कर लें. इससे आपकी रचना का शिल्प व सौन्दर्य भी सुनिश्चित हो सकेगा और फोरम पर प्रस्तुत रचनाओं की गुणवत्ता भी. धन्यवाद.

vaibhav srivastava
19-12-2013, 08:28 PM
Rajnish ji..... यहाँ पुर्वहिया का अर्थ पूर्व की ओर से आने वाली मधुर हवाओं से है।
हमारे उत्तर प्रदेश में इसका विशेष स्थान है।


edit note:-
जी, मैं आपसे सहमत हूँ. मुझसे भी लिखने में त्रुटि हुई. मेरे विचार से इस प्रकार की हवाओं को हम लोग 'पुरवा' 'पुरवाई' या 'पुरवैया' (जो पछुआ पवन का विपरीत है) के नाम से पुकारते हैं.

vaibhav srivastava
19-12-2013, 08:39 PM
इसके अतिरिक्त
प्रकृति के हर प्रेम अनुभावों,
से आशय यह है कि कई बार प्रकृति के कुछ विशेष दृश्यों को देखकर मन में किसी विशेष के लिए प्यार उमड़ने लगता है ये उन्ही सब दृश्यों के लिए कहा गया है।