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View Full Version : बलात्कार के मुकद्दमे से बरी मगर ....


rajnish manga
21-12-2013, 04:52 PM
बलात्कार के मुकद्दमे में बरी
मगर सम्मान बहाली कैसे होगी?
(साभार: अंशुल राजपूत)

बलात्कार की शिकार युवती के लिए उसका जीवन एक अभिशाप बनकर रह जाता है. वह ना सिर्फ इस दाग को ताउम्र अपने साथ लेकर जीती है बल्कि उसे समाज की क्रूर नजरों का भी सामना करना पड़ता है. कोई उसे बेचारी अबला, पीड़िता के तौर पर देखता है तो कोई उसे ऐसी वस्तु समझने लगता है जिसका उपभोग कभी भी किया जा सकता है. खैर यह तो बात हुई उस लड़की कि जो एक वहशी की हवस का शिकार बनी लेकिन उस इंसान का क्या जिसे मात्र संदेह के आधार पर बलात्कारी बता दिया जाता है, उसका जुर्म साबित हुए बिना ही उसे समाज की नजरों में एक दरिंदा करार दे दिया जाता है, उससे उसका सम्मान छीन लिया जाता है जिसकी वजह से हर समय उसके चारों ओर घृणित नजरें ही घूमती रहती हैं. उस व्यक्ति के सम्मान की फिक्र कोई नहीं करता जिसने कभी कोई गुनाह नहीं किया लेकिन बलात्कार के सिर्फ एक आरोप ने उसकी जिंदगी ही बदल दी.ऐसा ही एक व्यक्ति, जिसे बलात्कार के आरोप में कई बरस जेल में गुजारने पड़े, आज सुप्रीम कोर्ट से यह गुहार लगा रहा है कि अब जबकि यह साफ हो गया है कि उसने कोई गुनाह नहीं किया था तो उसका खोया सम्मान उसे वापस दिलवाया जाए.साल 2006 में दिल्ली के मायापुरी में एक चलती कार में हुए दुष्कर्म के बाद निरंजन मंडल नामक एक व्यक्ति को आरोपी करार दिया गया था. वर्ष 2006 से लेकर 2010 तक वह उस जुर्म के लिए जेल में रहा जो उसने कभी किया ही नहीं था. लेकिन अब जब उसे द्वारका कोर्ट ने बलात्कार के आरोप से बरी कर दिया है तो उसका कहना है कि इस आरोप की वजह से उसका समाज में रहना तक मुश्किल हो गया है, उसके गांव के लोग उसे अभी भी निंदनीय नजरों से ही देखते हैं. इसीलिए अब उसने सुप्रीम कोर्ट से यह गुहार लगाई है कि उसे उसका खोया हुआ सम्मान वापस दिलवाया जाए.उल्लेखनीय है कि वर्ष 2006 में एक गर्भवती महिला का चलती कार में रेप किया गया था. बलात्कार के इस मामले में निरंजन मंडल को आरोपी करार देते हुए उसे चार साल की कैद की सजा सुनाई गई थी लेकिन पुख्ता सबूत ना होने की वजह से उसे रिहा कर दिया गया. इतना ही नहीं इस केस की पड़ताल और कवरेज के तरीकों को भी आड़े हाथों लेते हुए मंडल ने मीडिया की कार्यवाही पर भी सवाल उठाए हैं कि मीडिया ने वह खबरें नहीं दिखाईं जिससे उसकी बेगुनाही को साबित किया जा सके.बलात्कार के मामले में अधिकांशत: महिलाओं का ही पक्ष लिया जाता है, कुछ हद तक यह सही भी है. लेकिन ऐसे मामलों में उस व्यक्ति के हित को नजरअंदाज कर दिया जाता है जिसे बेवजह ही इस आरोप में घसीटकर बदनाम किया गया. हम चाहे लाख कोशिशें कर ले लेकिन बलात्कार जैसी घटना को झेलने के बाद पीड़िता को उसका खोया सम्मान वापस दिलवाना नामुमकिन हो जाता है. इतना ही नहीं बलात्कारी को सामाजिक अवहेलना और बदनामी का सामना करना पड़ता है, ऐसे में जाहिर है जिस आरोपी को इस मामले में झूठा फंसाया गया होता है उसके तो सम्मान को गहरा धक्का लगा ही होगा.

जांच-पड़ताल में कोताही और झूठी बयानबाजी के चलते एक युवक का सम्मान उससे छीन लिया गया और अब वह उसी सम्मान को वापिस पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा रहा है. यह मात्र एक घटना है लेकिन एक बड़ा उदाहरण है कि जहां एक तरफ महिलाओं के हितों के लिए चारों ओर से आवाजें उठने लगी हैं वहीं पुरुषों को बिना सोचे-समझे दोषी ठहराकर उनके हितों को नजरअंदाज किए जाने की जो प्रथा अब शुरू हो चुकी है वह वाकई बड़ी समस्याओं को जन्म दे सकती है.