rajnish manga
25-12-2013, 09:33 PM
दस दोहे
(रचना: रघुविन्द्र यादव)
बरगद रोया फूटकर, घुट-घुट रोया नीम।
बेटों ने जिस दिन किये, मात-पिता तकसीम।।
ममता पर तो आपने, बहुत लिखे हैं लेख।
तड़प रही माँ गाँव में, कभी उसे भी देख।।
घुट-घुट कर माँ मर गई, पूछा कभी न हाल।
देवी माँ का जागरण, करते हैं हर साल।।
मातृभक्त सबसे बड़े, उनकी कहाँ मिसाल।
‘मातृसदन’ घर पर लिखा, माँ को दिया निकाल।।
सहकर जिसने वेदना, बाँटा केवल प्यार।
हिस्से अब उस मात के, बच्चों की फटकार।।
तब तक मैं बेफौफ था, थे जब तक तुम साथ।
तात आपकी मौत ने, मुझको किया अनाथ।।
मेरे तो माँ-बाप ही, हैं देवों के देव।
पत्थर की पूजा मुझे, लगती सदा कुटेव।।
तड़प रहा है खाट में, बूढ़ा बाप गरीब।
बेटे सुध लेते नहीं, कैसा मिला नसीब।।
बापू संत समान थे, अम्मा जल की धार।
दोनों ने बाँटा सदा, प्यार-प्यार बस प्यार।।
कष्ट उठा माँ-बाप ने, दिए सभी सुख-चैन।
आहत उनको कर रहे, कड़वे तेरे बैन।।
(रचना: रघुविन्द्र यादव)
बरगद रोया फूटकर, घुट-घुट रोया नीम।
बेटों ने जिस दिन किये, मात-पिता तकसीम।।
ममता पर तो आपने, बहुत लिखे हैं लेख।
तड़प रही माँ गाँव में, कभी उसे भी देख।।
घुट-घुट कर माँ मर गई, पूछा कभी न हाल।
देवी माँ का जागरण, करते हैं हर साल।।
मातृभक्त सबसे बड़े, उनकी कहाँ मिसाल।
‘मातृसदन’ घर पर लिखा, माँ को दिया निकाल।।
सहकर जिसने वेदना, बाँटा केवल प्यार।
हिस्से अब उस मात के, बच्चों की फटकार।।
तब तक मैं बेफौफ था, थे जब तक तुम साथ।
तात आपकी मौत ने, मुझको किया अनाथ।।
मेरे तो माँ-बाप ही, हैं देवों के देव।
पत्थर की पूजा मुझे, लगती सदा कुटेव।।
तड़प रहा है खाट में, बूढ़ा बाप गरीब।
बेटे सुध लेते नहीं, कैसा मिला नसीब।।
बापू संत समान थे, अम्मा जल की धार।
दोनों ने बाँटा सदा, प्यार-प्यार बस प्यार।।
कष्ट उठा माँ-बाप ने, दिए सभी सुख-चैन।
आहत उनको कर रहे, कड़वे तेरे बैन।।