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View Full Version : कन्या का जन्म एक त्रासदी नहीं


rajnish manga
27-12-2013, 07:12 PM
कन्या का जन्म एक त्रासदी नहीं

हमारी संस्कृति और धर्म में कन्या को देवी का रूप माना जाता है, उसे पूजनीय माना जाता है. लेकिन वास्तविकता क्या है? हम अपनी और से कुछ न कह कर विभिन्न समाचार पत्रों और अन्य स्रोतों से संकलित की हुयी सुर्खियाँ प्रस्तुत कर रहे हैं जो कुछ और ही कह रही है. इसे पढ़ कर आपकी आँखें फटी की फटी रह जायेंगी. यह पढ़ कर समाज की दोहरी मानसिकता का पर्दाफ़ाश हो जाता है - वह समाज जिसमें हिन्दू भी हैं, मुस्लिम भी हैं, सिख भी हैं और अन्य धर्मों को मानने वाले भी. इनकी सोच में धार्मिंक मामलों पर भले ही दुनिया भर के विरोधाभास हों, किन्तु परिवार में कन्या के जन्म को लेकर कमोबेश समानता पायी जाती है. एक बानगी:

1. कल्याण पश्चिम (महाराष्ट्र) में एक महिला कोलड़की पैदाहोने पर नाराज उसके पति ने बच्ची समेत उसे घर से निकाल दिया। खास बात यह है ऐसा कारनामा एक पढ़े-लिखे कंप्यूटर ऑपरेटर ने काम किया.

2. लड़कीके जन्म पर ससुराल वालों से 10 लाख रूपये दहेज मांगने का मामला सामने आया है। इतना ही नहीं दस लाख रूपये न देने पर नवविवाहिता के साथ मारपीट भी की गई है।

3. प्रबल चाहत होने के बावजूद पुत्रीपैदाहोने की जानकारी पर भी क्षण भर के लिए मुझे कोई ख़ुशी महसूस नहीं हुयी l उस वक्त मैं शून्यता में थाl सगे-सम्बन्धियों को दूरभाष पर सूचना देते समय ह्रदय से ख़ुशी गायब थीl

4. नगर के मोहल्ला गोविंद देव निवासी एक विवाहिता को कन्यापैदाहोने पर घर से निकाल दिया गया। पीड़िता ने दुध-मुंही बच्ची के साथ कोतवाली जाकर घर वापसी के लिए गुहार लगाई।

5. अमृतसर में एक महिला की उसी के पति ने इसलिए हत्या कर दी क्योंकि उसने तीसरी बार एक लड़की को जन्म दिया।

6. दहेज की मांग पूरी न करने औरलड़की पैदाहोने की सजा के तौर पर पानीपत की देसराज कॉलोनी में एक विवाहिता को जहरीला पदार्थ खिलाकर उसकी हत्या कर दी गई।

7. नवजात बेटी और पत्नी की हत्या की साजिश.

मोगा: मोगा की आरा रोड के किनारे स्थित एक नर्सिग होम में रविवार की दोपहर उस समय हंगामा खड़ा हो गया जब अस्पताल में एक बेटी को जन्म दे चुकी महिला से उसके पति समेत ससुराल वालों ने उससे मार-पीट की.

8. फर्रुखाबाद: थाना कमालगंज क्षेत्र के ग्राम अजमदपुर निवासी नौशाद पुत्र लाल मोहम्मद की पत्नी नाजमा बानो ने घटियाघाट स्थित टोलटैक्स रूम के सामने रोड पर ही एक लड़की को जन्म दिया। जिस पर साथ जा रहे पति नौशाद लड़की पैदा होने से पत्नी नाजमा वानो व बच्ची को रोड पर ही छोड़कर चला गया। महिला को घटियाघाट निवासी ही महिलायें हामिदा व मजदा वानो ने प्रसव कराया व उसकी देखरेख की।

9. लड़की पैदाहोते ही घर वाले डर जाते हैं-हाय! अब क्या करें। इसके ब्याह का क्या होगा? इस चक्कर में वे चाहते हैं कि घर मेंलड़की पैदाही न हो। लड़की जब स्कूल, कालेज जाने लगती है बाप-भाई डरने लगते हैं।

(क्रमशः)

rajnish manga
27-12-2013, 07:14 PM
अब कुछ उत्साहवर्धक सुर्खियाँ

उपरोक्त नकारात्मक सुर्ख़ियों के बाद अब हम आपके सामने कुछ ऐसी सुर्खियाँ रखना चाहते हैं जिनसे आशा बंधती है कि परिस्थिति इतनी खराब नहीं जितनी दिखाई देती है. हम ऐसे सभी लोगों को सलाम करते हैं जो मजबूती से खड़े हो कर दकियानूसी ताकतों और ऐसी ही परम्पराओं का विरोध करते हैं और मानसिकता में बदलाव लाने के लिये कटिबद्ध रहते हैं:

1. लड़की पैदा होने पर पैसे नहीं लेता यह अस्पताल कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के प्रयासों के तहत एक अनूठी मिसाल पेश की है पुणे के एक अस्पताल ने. पुणे के पास के ही इस जनरल ऐंड मेटरनिटी हॉस्पिटल चलाने वाले डॉक्टर गणेश रक बच्ची पैदा होने पर फीस नहीं लेते। ऐडमिशन फी से लेकर चेकअप चार्जेज तक कुछ भी नहीं लिया जाता। इतना ही नहीं, बच्ची के जन्म का उत्सव मनाने के लिए उनके परिवार जनों को आर्थिक सहयोग भी दिया जाता है.

2. 'लड़की पैदा करने वालों को सम्मानित करेगी खाप' - देशवाल खाप की महापंचायत में निर्णय लिया गया कि एक से अधिक बेटी पैदा करने वाले परिवार को देशवाल खाप सम्मानित करेगी।

Dr.Shree Vijay
27-12-2013, 08:02 PM
जों इंसान कन्या के जन्म कों एक त्रासदी समझता हें,
वह इंसान कहलाने के लायक भी नही हें वह पशुओं से भी
निम्न कोटि का हें, वह यह क्यों भूल जाता हें की उसकी जन्मदात्री
माँ भी स्वयं एक कन्या ही हें उसकी पत्नीः भी एक कन्या ही हैं.........

ऐसे व्यक्तियों कों पशु या राक्षस कहना यह पशुओं एवं राक्षसों का अपमान करना हें |

उत्तम सूत्र................................

rafik
23-07-2014, 03:47 PM
आखिर कबतक ऐसे अपराध होते रहेगे ,एक पढ़ा लिखा इन्सान केसे हेवान बन सकता !
समाज कब समझेगा कि लडकी अनमोल होती है !
लडकी को तो भगवान ने भी समझा तभी तो भगवान के नाम से पहले लड़की का नाम लगा जेसे सीताराम ,राधाकृष्ण
मुस्लिम समाज में भी लडकी होने पर घर में बरकत मानी जाती है ,और कुछ भी काम शुरू करने से पहले बिस्स्मिल्लाह बोला जाता है ये भी लड़की का नाम होता है
अगर लडकी पैदा नहीं होगी तो ,बरकत कहा से आयेगी

rajnish manga
23-07-2014, 10:31 PM
बहुत सुन्दर विचार. ज़रुरत इस बात की है कि यह विचार 120 करोड़ जनता के दिलो-दिमाग में इस प्रकार समा जाये, जिस प्रकार हम सांस लेते हैं पर इसका हमें आभास तक नहीं होता. ठीक इसी प्रकार परिवार व समाज के लिये कन्या के महत्व को समझें और आत्मसात कर लें. हृदय में धड़कन और धमनियों में रक्त के प्रवाह की तरह ही समाज में कन्या का होना अनिवार्य है. कोई किन्तु-परन्तु नहीं चाहिये.

Dr.Shree Vijay
26-07-2014, 05:31 PM
एक स्त्री एक दिन एक स्त्रीरोग विशेषज्ञ के
पास के गई और बोली,
" डाक्टर मैँ एक गंभीर समस्या मेँ हुँ और मेँ
आपकीमदद चाहती हुँ । मैं गर्भवती हूँ,
आप किसी को बताइयेगा नही मैने एक जान
पहचान के सोनोग्राफी लैब से यह जान लिया है
कि मेरे गर्भ में एक बच्ची है । मै पहले से
एकबेटी की माँ हूँ और मैं किसी भी दशा मे
दो बेटियाँ नहीं चाहती ।"
डाक्टर ने कहा ,"ठीक है, तो मेँ
आपकी क्या सहायता कर सकता हु ?"
तो वो स्त्री बोली," मैँ यह चाहती हू कि इस
गर्भ को गिराने मेँ मेरी मदद करें ।"
डाक्टर अनुभवी और समझदार था।
थोडा सोचा और फिर बोला,"मुझे लगता है कि मेरे
पास एक और सरल रास्ता है जो आपकी मुश्किल
को हल कर देगा।" वो स्त्री बहुत खुश हुई..
डाक्टर आगे बोला, " हम एक काम करते है
आप दो बेटियां नही चाहती ना ?? ?
तो पहली बेटी को मार देते है जिससे आप इस
अजन्मी बच्ची को जन्मदे सके और
आपकी समस्या का हल भी हो जाएगा. वैसे
भी हमको एक बच्ची को मारना है तो पहले
वाली को ही मार देते है ना.?"
तो वो स्त्री तुरंत बोली"ना ना डाक्टर.".!!!
हत्या करनागुनाह है पाप है और वैसे भी मैं
अपनी बेटी को बहुत चाहती हूँ । उसको खरोंच
भी आती है तो दर्द का अहसास मुझे होता है
डाक्टर तुरंत बोला, "पहले
कि हत्या करो या अभी जो जन्मा नही
उसकी हत्या करो दोनो गुनाह
है पाप हैं ।"
यह बात उस स्त्री को समझ आ गई । वह स्वयं
की सोच पर लज्जित हुई और पश्चाताप करते हुए
घर चली गई ।

क्या आपको समझ मेँ आयी ?
अगर आई हो तो SHARE करके दुसरे
लोगो को भी समझाने मे मदद कीजिये
ना महेरबानी. बडी कृपा होगी ।
हो सकता है आपका ही एक
shareकिसी की सोच बदल दे..
और एक कन्या भ्रूण सुरक्षित, पूर्ण विकसित
होकर इस संसारमें जन्म ले.....

rajnish manga
26-07-2014, 08:36 PM
इस सुन्दर प्रसंग का संदेश यही है कि कन्या भ्रूण हत्या महापाप है और ईश्वर की बनाई हुई इस प्यारी सृष्टि के सिद्धांतों के प्रति सबसे बड़ा अपराध है. हम चाहते हैं कि यह महत्वपूर्ण संदेश जन जन तक न सिर्फ पहुंचे बल्कि प्रत्येक नर-नारी द्वारा मन, वचन तथा कर्म में उतारा जाये.

rafik
30-07-2014, 03:22 PM
क्या बेटियां पराई होती हैं? अपने विचार ज़रूर बताएं - आदतन ही सही, लेकिन अक्सर बेटियों को अपने ही पैरंट्स के मुंह से यह सुनने को मिल जाता है कि... भई दूसरे की अमानत है... या... बेटियां तो पराई होती हैं... मेहमान होती हैं वगैरह-वगैरह। सुनकर कैसा लगता है, हर बेटी जानती है। कभी-कभी मम्मी की झिड़की में भी यह उलाहना होता है कि कुछ काम-काज सीख ले, दूसरे घर जाएगी तो लोग क्या कहेंगे? बेटी बहू बनकर ससुराल पहुंची तो वहां भी उसका पहला इंट्रोडक्शन कुछ ऐसे होता है, देखो, अब तुम इस घर... खानदान की बहू हो। मतलब यहां भी वही आइडेंटिटी क्राइसिस, ना वो घर मेरा था, ना यह घर मेरा है। क्या क्या आप इससे सहमत हैं? क्या सच में बेटी पराई होती है? अधिक से अधिक share करें!

rafik
30-07-2014, 03:26 PM
क़ानून को हाथ में लिए खड़ी है ,
आँखों पर काली पट्टी चडी है
हर पुरुष उसके आगे नतमस्तक है
वो गंगा है , यमुना है , सरस्वती है
सब का पाप धोने के लिए बहती है
हर पुरुष उनके आगे नतमस्तक है
वो वैष्णो देवी मै है , वो काली है , अम्बे है,
वो शेरो वाली है , वो माँ संतोषी है
हर पुरुष उनके आगे नतमस्तक है
वो ही तो है , जिस के आँचल के नीर से पल कर"जग"बड़ा हुआ है
आज हर पुरुष अपने पैरों पर खड़ा हुआ है
हर पुरुष उनके आगेभीनतमस्तक है |
फिर जब तुम स्त्री की इतनी इज्जत करते हो
उसे मंदिर में पूजते हो , उसके पानी में पाप धोते हो
उसके आँचल में पल कर बड़े होते हो ...|
फिर क्यूँ ... सरे आम उसी स्त्री को नोचतें हो ?
क्यूँ उसके जिस्म की इतनी भूख है तुम्हे ?
क्यूँ जर्रा जर्रा कर देना चाहते हो "स्त्रीत्व" को तुम ?
क्यूँ "हर दिन" , "हर अखबार" , का "हर पन्ना"
स्त्री के आसूं से सजा होता है ?
क्यूँ स्त्री के लिए मंदिर के बाहर होना
इतनी बड़ी "सजा" होता है ?
आखिर कब तक चलेगी ये दानवता
आखिर कब तक शर्मसार होती रहेगी मानवता ???
जवाब मत दीजिये , वरन अपने अंदर जवाब खोजिये

rafik
30-07-2014, 03:43 PM
https://fbcdn-sphotos-g-a.akamaihd.net/hphotos-ak-xap1/t1.0-9/p403x403/1476657_619076418138662_1613373540_n.jpg

rajnish manga
19-08-2014, 02:44 PM
http://bkneelam.files.wordpress.com/2014/04/01.jpg?w=450 (http://www.google.co.in/url?sa=i&source=images&cd=&cad=rja&uact=8&docid=aBpQNtfQun5UgM&tbnid=7rY0toArPrJlmM:&ved=0CAgQjRw4eQ&url=http%3A%2F%2Fbkneelam.wordpress.com%2Fmaa-13%2F&ei=yhvzU8r4KIiLuAT__YHoBg&psig=AFQjCNGJNDAdQfUnz2NoNAZ2WX92Z8kGrA&ust=1408527690816333)

Dr.Shree Vijay
22-08-2014, 10:17 PM
कन्याभ्रूण की हत्या करने वाले हत्यारों कों बेटियां देना महापाप हें,
और जों बेटियां देते हें वे भी हत्यारे हें........

rafik
25-08-2014, 11:14 AM
बेशकीमती हैं बच्चियां

कन्या भ्रूण हत्या की त्रासदी से निपटने के लिए पूरे समाज की मानसिकता बदलने पर बल दे रहे हैं आमिर खान

लड़कों अथवा पुरुषों में ऐसा क्या है जो हमें इतना अधिक आकर्षित करता है कि हम एक समाज के रूप में सामूहिक तौर पर कन्याओं को गर्भ में ही मिटा देने पर आमादा हो गए हैं। क्या लड़के वाकई इतने खास हैं या इतना अधिक अलग हैं कि उनके सामने लड़कियों की कोई गिनती नहीं। हमने जब यह पता लगाने के लिए अपने शोध की शुरुआत की कि क्यों वे अपनी संतान के रूप में लड़की के बजाय लड़का चाहते हैं तो मुझे जितने भी कारण बताए गए उनमें से एक भी मेरे गले नहीं उतरा। उदाहरण के लिए किसी ने कहा कि यदि हमारे लड़की होगी तो हमें उसकी शादी के समय दहेज देना होगा, किसी की दलील थी कि एक लड़की अपने माता-पिता अथवा अन्य परिजनों का अंतिम संस्कार नहीं कर सकती। किसी ने कहा कि लड़की वंश अथवा परिवार को आगे नहीं ले जा सकती आदि-आदि। ये सभी हमारे अपने बनाए हुए कारण हैं। हमने खुद दहेज की प्रथा रची और अब यह इस तरह लड़कियों को मार रहे हैं जैसे इसके लिए वही जिम्मेदार हैं। हमने खुद ही तय किया कि लड़कियां अंतिम संस्कार नहीं कर सकतीं और अब कहते हैं कि हमें लड़कियां इसलिए नहीं चाहिए, क्योंकि वे अपने माता-पिता का क्रिया-कर्म नहीं कर सकतीं।

https://encrypted-tbn0.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcTr_sf2cQh9Dz4RaC_isWt8FJXh66AFS 1S4Pu1POgp9MHZzxf0fvg वास्तव में वंश आगे कैसे चलेगा का तर्क सबसे अधिक खोखला और मूर्खतापूर्ण है, क्योंकि ये महिलाएं ही हैं जो मानव जाति को आगे ले जाती हैं। पुरुष गर्भधारण नहीं कर सकते। परिवार को आगे ले जाना वाला यदि कोई है तो वह एक महिला ही है। फिर इतने विकृत विचार आ कहां से रहे हैं? हमें इस मसले पर बैठकर गंभीरता से सोचने की जरूरत है-न केवल इस बीमारी के बारे में, बल्कि इस पर भी कि लड़कियां कितनी खास होती हैं। एक लड़की हमारे जीवन में खुशी और सुगंध लाती है। उसके पास जैसी संवेदनशीलता होती है वैसी शायद लड़के प्रदर्शित नहीं कर सकते। लड़कियां इतनी देखभाल करने वाली होती हैं कि जिस घर में उनकी मौजूदगी हो उसमें अपने आप जान आ जाती है। मेरे घर में मेरी बेटी इरा हमारे जीवन में जो मिठास, कोमलता, गरिमा, सुंदरता और चमक लाती है वह मेरा बेटा जुनैद कभी नहीं ला सकता। जुनैद के अपने गुण हैं, जो उसे खास बनाते हैं और हम सब उसे उतना ही प्यार करते हैं, लेकिन इरा की बात निराली है। एक लड़की हमारे जीवन में जो खुशियां लाती हैं वह एक लड़का कभी नहीं ला सकता और इसी तरह लड़के से मिलने वाली खुशियों की तुलना लड़कियों से नहीं की जा सकती। सच यह है कि लड़के और लड़की, दोनों ही अनोखे हैं। इससे कोई इन्कार नहीं कर सकता कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में कहीं अधिक दूसरों की परवाह करने वाली होती हैं। उनमें पुरुषों की अपेक्षा लचीलापन भी अधिक होता है।


सच तो यह है कि महिलाओं और पुरुषों में जो अंतर है उसे न केवल सराहने की, बल्कि संजोने-सहेजने की भी जरूरत है। रीति-रिवाज, परंपराएं, रस्में हमारी अपनी बनाई हुई हैं। हम उन्हें बदल सकते हैं, बदलना भी चाहिए। जब मैं पूरे देश की उन अनगिनत महिलाओं के बारे में सोचता हूं जो अपनी कोख से एक बेटी को जन्म देने के लिए खुद को अपर्याप्त-साधारण मानने के लिए विवश हैं और जिन्हें इस अहसास के साथ जीना पड़ता है कि किन्हीं कारणों से वे अन्य लोगों से कमतर हैं तो मेरा दिल कचोटने लगता है। ऐसा लगता है कि उन्हें एक काम करने के लिए दिया गया था और वे उसे नहीं कर सकीं। इसलिए नहीं कर सकीं, क्योंकि वे उस काम को करने में अक्षम थीं। एक बच्चे का जन्म अथवा एक महिला द्वारा अपनी कोख में नौ माह तक एक नन्हीं जान का पालना प्रकृति का चमत्कार ही है। गर्भधारण की इस अवधि में औरत को अपने विशेष होने का अहसास कराने की जरूरत है-ठीक उसी तरह जैसे कोई महारानी खुद को खास मानती है। उस समय महिला ईश्वर के, प्रकृति के सबसे अधिक नजदीक होती है-एक ऐसे स्थान पर जहां कोई व्यक्ति कभी नहीं पहुंच सकता। अगर हममें तनिक भी समझ है तो उस समय हमें प्रकृति की सबसे खास चीज के रूप में औरत की कद्र करनी चाहिए। वह एक नए जीवन को जन्म देने वाली है, जो किसी पुरुष के वश की बात नहीं। उसे खास होने का अहसास कराने के बजाय हम उसे छोटा महसूस करने के लिए विवश कर देते हैं। इससे बड़ी विडंबना और कोई नहीं हो सकती कि एक महिला को उसके लिए दंडित किया जाता है जिस पर उसका कोई नियंत्रण नहीं। हम सभी जानते हैं कि सच्चाई यह है कि बच्चे के लिंग का निर्धारण पुरुष के शुक्राणु के आधार पर होता है। फिर बेटी के जन्म लेने पर आखिर महिलाओं को दोषी को क्यों ठहराया जाता है।


विज्ञान और दवाओं का इस्तेमाल कम से कम होना चाहिए। केवल तभी इसकी मदद ली जानी चाहिए जब कोई आपात स्थिति उभरने पर जीवन बचाने का प्रश्न हो। अपने बच्चे का लिंग जानने के लिए विज्ञान का दुरुपयोग न केवल भारतीय कानून के लिहाज से एक अपराध है, बल्कि समाज पर पड़ने वाले प्रभाव की दृष्टि से बहुत बड़ी मूर्खता भी है। इस सबसे अधिक भ्रूण हत्या करके आप उस जादू भरे क्षण से वंचित हो जाते हैं जब एक नया जीवन आपकी दुनिया में आने वाला होता है। मेरे तीनों बच्चों के जन्म से पहले जब डॉक्टर ने हमसे कहा कि बधाई हो, आप एक स्वस्थ संतान के माता-पिता बनने वाले हैं तो वह हमारे लिए इतना खास क्षण था जिसे मैं कभी भूल नहीं सकता। हमारे लिए वह खुशी का सबसे बड़ा क्षण था। कन्या भू्रण हत्या हर हाल में रुकनी चाहिए। मेरा सुझाव यह है कि एक समाज के रूप में हमें लड़कियों के स्वाभिमानी माता-पिता के प्रति उच्चतम सम्मान, प्रेम और सराहना का भाव प्रदर्शित करना चाहिए। हमें उन परंपराओं से छुटकारा पा लेना ही बेहतर है जो लड़कियों की गरिमा घटाने वाली हैं। हर बार जब आपके घर में, पड़ोस में, दोस्तों के यहां कोई बच्ची जन्म ले तो आप उसके माता-पिता के प्रति आपके प्यार और सम्मान की भावना इतनी मजबूत होनी चाहिए कि कन्याओं को हेयदृष्टि से देखने वाली बीमारी का असर कम हो सके। मुझे पूरा विश्वास है कि हम इस बीमारी को जड़ से मिटाने में कामयाब होंगे। हमारे सामने एक निश्चित लक्ष्य होना चाहिए-2021 की जनगणना। सत्यमेव जयते!


इस आलेख के लेखक आमिर खान हैं

rajnish manga
04-11-2014, 10:04 PM
बेटी
डॉ. नग़मा जावेद मलिक

बेटी ने जन्म लिया है
माँ अकेली
अस्पताल में पड़ी है
बाप
बच्ची का मुंह देखने
नहीं आया है
पूरे पांच दिन बीत गए हैं
जच्चा के टाकें भी पक्क गए हैं
दर्द के,
आहों के सिलसिले भी
अब उसकी आखों में
थक गए हैं

मासूम चेहरे पर बच्ची के
लिखा एक ही सवाल है
माँ, क्या मेरा जन्म लेना
इतना बड़ा बवाल है ?
माँ, क्या मेरा जन्म लेना
इतना बड़ा बवाल है ???

rajnish manga
03-02-2015, 05:32 PM
बेटी बचाने की हकीकत और हमारी संवेदनहीनता
आलेख आभार: डॉ. मोनिका शर्मा

जिस समाज की सोच इतनी असंवेदनशील है कि बेटियों को जन्म ही ना लेने दे वहां उन्हें शिक्षित, सशक्त और सुरक्षित रखनेे के दावे तो दावे भर ही रह जाते हैं। हाल ही में आई एक रिर्पोट ने इस ज़मीनी हकीकत से हमें फिर रूबरू करवा दिया है कि हम लिंग अनुपात के संतुलन को बनाये रखने के लिए कितने चिंतित हैं? महिलाओं को लेकर हमारी सोच और संवेदनशीलता में क्या बदला है ? संम्भवत कुछ भी नहीं । तभी तो देश के सबसे बड़े सर्वे के नतीजों में यही परिणाम सामने आया हैै कि भारत में चार साल तक की लड़कियों का ताज़ा लिंगानुपात मात्र 914 है । समय-समय पर सामने वाली ऐसी रिपोर्ट्स और आँकड़े पढ़कर- देखकर मन मस्तिष्क सोचने को विवश हो जाता है । ना जाने क्यों ऐसा लगता है कि मानसिकता वहीँ की वहीँ है । बेटियों का जीवन सुरक्षित हो और वे सशक्त बनें यह समग्र रूप से देखा जाये तो हकीकत काम फ़साना ज़्यादा लगता है ।

rajnish manga
03-02-2015, 05:34 PM
विचारणीय बात ये भी है कि जिन्हें जीवन पाने और जीने का सम्मान ही नहीं मिल रहा उन्हें शक्ति सम्पन्न बंनाने के लिए अनगिनत कानून कायदे बना भी दिए जाएँ, तो क्या लाभ? विकराल रूप धरती जा रही भ्रूणहत्या की समस्या इस तरह तो पूरी सृष्टि के विकास पर ही प्रश्नचिन्ह लगाती नज़र आ रही है। साथ सवालिया निशान लगा रही है हमारी पूरी सामाजिक-पारिवारिक व्यवस्था पर। मानवीय मूल्यों की परंपरा लिए हमारी पारिवारिक व्यवस्था का यह वीभत्स चेहरा बताता है कि आज भी बेटियाँ बोझ ही लगती हैं। जिसकी जिम्मेदार हमारी सामाजिक-पारिवारिक व्यवस्था है । तभी तो हर बार यही महसूस होता है कि बहुत कुछ बदल कर भी कुछ नहीं बदला ।

आज भी समाज में बेटियाँ जन्म लेने से लेकर परवरिश पाने तक हर तरह के भेदभाव का शिकार हैं। बदलाव आया ज़रूर है पर इतना नहीं कि उसके विषय में चिंता करनी छोड़ दी जाये ।वास्तविकता इसलिए भी चौंकाने वाली है क्योंकि बीते कुछ बरसों में कई योजनाएं और कानून बेटियों के सर्मथन में अस्तित्व में आए हैं। ना जाने कितने ही सरकारी और गैर सरकारी संगठन जनजागरूकता लाने के लिए प्रयासरत हैं। ऐसे में बालिकाओं की घटती संख्या तो पूरे समाज के लिए चेतावनी है ही भ्रूणहत्या के बार बार गर्भपात करवाने के चलते मांओं के स्वास्थ्य के साथ किया जाने वाला खिलवाड़ भी भविष्य में डराने वाला परिदृश्य ही प्रस्तुत करेगा। क्योंकि माँ हो या बिटिया सेहत ही ना रही सशक्तीकरण कैसा ? सवाल ये भी है कि जिन बेटियों का दुनिया सम्मानपूर्वक आने और अपना जीवन जीने का अधिकार ही नहीं मिल रहा है उन्हें सशक्त और सफल बनाने की सारी कवायदें ही बेमतलब हैं।

सच तो ये है कि बेटियों को बचाना है तो दिखावा नहीं कुछ ठोस कदम उठाये जाने आवश्यक हैं। जिसकी शुरूआत इसी विचार से हो सकती है कि किसी भी घर-परिवार में बिटिया का जन्म बाधित ना हो । उन्हें संसार में आने दिया जाए। उनके पालन पोषण में कोई भेदभाव ना बरता जाए। निश्चित रूप से ऐसा करने के लिए कोई कानून और योजना काम नहीं कर सकती। हमारी अपनी मानसिकता और बेटियों के प्रति स्नेह और सम्मान का भाव ही यह परिवर्तन ला सकता है। जो कि हमारी अपनी भागीदारी के बिना संभव नहीं ।

**

rafik
05-05-2015, 09:08 AM
Jb akलड़का पैदा होता है तो अल्लाह पाक

फरमाते है जा तु दुनीया में और अपने वालिद की मद्दद कर

और जब कोई लड़की पैदा होती है तो

अल्लाह पाक फरमाते है जा तु दुनिया में मै तेरे वालिद की मद्दद करुga

manishsqrt
07-06-2015, 07:17 PM
Agar bahut gaur se aur dharm ke nazariye se dekha jae to paenge ki nari ka beti wala roop hi vastavikta me dhan hai, laxmi ji ka roop hai, jo log patni mata athwa bahan me laxmi dekhte hai we thode galat hai, bahan roop me saraswati ji, mata ke roop me dharti maiya athwa parvati ji ko dekh sakte hai, parantu beti ka roop hi laxmi hai aisa is liye kah raha hu kyuki dhan ka sabse bada adhikari kayde se vyapari hi mana jata hai jo purusharth karta hai uske liye apna vyavsay beti ke samaan hi hai jo use marte waqt daan karna padta hai aur jiwan bhar wo use palta posta hai, aisi laxmi rupi betiyo se samaj ke vyavahar grinit karm hai, shayad kahi na kahi hum sabme shakuni aur duryodhan ghar kar gae hai jiske chalte aisa hua hai, ishwar hame aisi niyati se bachae.