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View Full Version : लघुकथाएँ


bindujain
11-01-2014, 08:27 PM
प्रेरक लघुकथा : बड़ी सोच
http://hindi.webdunia.com/articles/1310/16/images/img1131016041_1_1.jpg

एक बार एक आदमी ने देखा कि एक गरीब फटेहाल बच्चा बड़ी उत्सुकता से उसकी महंगी ऑडी कार को निहार रहा था। गरीब बच्चे पर तरस खा कर अमीर आदमी ने उसे अपनी कार में बैठा कर घुमाने ले गया।

लड़के ने कहा : साहब आपकी कार बहुत अच्छी है, यह तो बहुत कीमती होगी न...।

अमीर आदमी ने गर्व से कहा : हां, यह लाखों रुपए की है।

गरीब लड़का बोला : इसे खरीदने के लिए तो आपने बहुत मेहनत की होगी?

अमीर आदमी हंसकर बोला : यह कार मुझे मेरे भाई ने उपहार में दी है।

गरीब लड़के ने कुछ सोचते हुए कहा : वाह! आपके भाई कितने अच्छे हैं।

अमीर आदमी ने कहा : मुझे पता है कि तुम सोच रहे होंगे कि काश तुम्हारा भी कोई ऐसा भाई होता जो इतनी कीमती कार तुम्हे गिफ्ट देता!!

गरीब लड़के की आंखों में अनोखी चमक थी, उसने कहा : नहीं साहब, मैं तो आपके भाई की तरह बनना चाहता हूं...

सार : अपनी सोच हमेशा ऊंची रखो, दूसरों की अपेक्षाओं से कहीं अधिक ऊंची, तो तुम्हें बड़ा बनने से कोई रोक नहीं सकता।

bindujain
11-01-2014, 08:32 PM
मेजबान

http://2.bp.blogspot.com/_z9Yli6bRxOo/TM7O_m8HfmI/AAAAAAAAAcw/0crRlnZ-2hE/s320/%E0%A4%AD%E0%A5%87%E0%A4%A11.jpg

'कभी हमारे घर को भी पवित्र करो।' करूणा से भीगे स्वर में भेड़िये ने भोली-भाली भेड़ से कहा।

'मैं जरूर आती बशर्ते तुम्हारे घर का मतलब तुम्हारा पेट न होता।' भेड़ ने नम्रतापूर्वक जवाब दिया।

bindujain
11-01-2014, 08:34 PM
मोती

एक बार, एक सीप ने अपने पास पड़ी हुई दूसरी सीप से कहा, “मुझे अंदर ही अंदर अत्यधिक पीड़ा हो रही है। इसने मुझे चारों ओर से घेर रखा है और मैं बहुत कष्ट में हूँ।”

http://1.bp.blogspot.com/_z9Yli6bRxOo/TM7PAMZsTOI/AAAAAAAAAdA/gHCLpLbOsRU/s320/%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%AA1.jpg

दूसरी सीप ने अंहकार भरे स्वर में कहा, “शुक्र है. भगवान का और इस समुद्र का कि मेरे अंदर ऐसी कोई पीड़ा नहीं है । मैं अंदर और बाहर सब तरह से स्वस्थ और संपूर्ण हूँ।”

उसी समय वहाँ से एक केकड़ा गुजर रहा था । उसने इन दोनों सीपों की बातचीत सुनकर उस सीप से, जो अंदर और बाहर से स्वस्थ और संपूर्ण थी, कहा, “हाँ, तुम स्वस्थ और संपूर्ण हो; किन्तु तुम्हारी पड़ोसन जो पीड़ा सह रही है वह एक नायाब मोती है।”

bindujain
11-01-2014, 08:37 PM
अब राम राज्य आएगा

http://1.bp.blogspot.com/-q_PefqoUIaE/TZqEwHDckbI/AAAAAAAAAZk/KDRmc-ynTvY/s320/untitled.bmp

बापू के तीनों बंदर बापू की मुसकुराती प्रतिमा के सामने जा कर खड़े हो गये। तीनों की आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे। कान बंद किये हुए बंदर बोला-‘बापू बहुत समय हो गया। कान बंद करके भले ही बुरा न सुना हो, पर जो न चाहा था उसे मजबूरी से देखना पड़ रहा है, बहुत कहा किंतु किसी ने उस पर अमल नहीं किया। अब सहा नहीं जाता। कहते जबान थक चली है। असहनीय इतना है कि अब देखा भी नहीं जाता।'
मुँह बंद किये हुए बंदर की आपबीती कान बंद किये बंदर ने सुनाई। बोला-‘बापू इतना कुछ देखने के बाद तो अब इससे बोले बिना नहीं रहा जाता, बहुत विचलित रहता है। सुना इतना कि अब तो कान भी पक गये हैं।'
आँखे बंद किये तीसरा बंदर बोला- ‘बापू, ये सच बोल रहे हैं, मैं भी जो सुन रहा हूँ, असहनीय होता जा रहा है। बोलने की क्या कहूँ, मुझे कायर तक समझने लगते हैं, व्यंग्य करते हैं। देखने और सुनने से जब ये इतने व्यथित हैं, तो मैंने भी यदि देखा, तो मैं भी सह नहीं पाउँगा। क्या हो गया है मेरे देश को? आपने राम राज्य का सपना देखा था, हम तीनों आपके लिए कुछ नहीं कर सके।'
तीनों ने हाथ नीचे करते हुए कहा- हमें क्षमा करें बापू, इतने समय से हम यह बात नहीं समझ पाये कि हमारे हाथ बँधे हुए थे। आपने हाथ बाँधने के लिए तो नहीं कहा था !हमें अपने हाथ खोलने होंगे बापू। अब समय आ गया है,हमें अब इन हाथों से कुछ कर गुजरना होगा,तब ही देश के हालात बदलेंगे।
बापू अब भी मुसकुरा रहे थे। ऐसा लगा, वे कह रहे हों-‘अब राम राज्य आएगा !!
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bindujain
11-01-2014, 08:39 PM
भ्रष्टाचार मिट सकता है

दो साहित्यकार घर पर मिले। एक बहुत चिन्तित थे। दूसरे ने पहले साहित्यकार से कहा-‘क्या बात है, बहुत चिन्तित दिखाई दे रहे हो। घर में सब ठीक तो है। पहले साहित्यकार ने कहा-‘घर में तो सब ठीक है, पर देश में कुछ ठीक नहीं चल रहा। अब तो विदेशों में भी अपने देश के भ्रष्टाचार के बारे में जानने लगे हैं लोग। पिछले दिनों ही अखबार में पढ़ा था कि एशिया प्रशांत में अपना देश भ्रष्ट देशों में चौथे नम्बर पर है।'

'हाँ, मैंने भी पढ़ा था।' क्या कर सकते हैं, कैंसर की तरह फैल चुका है यह रोग। कैसे मिटेगा यह लाइलाज रोग?'

पहले साहित्*यकार ने कहा-‘मैं आजकल इसी विचार में रहता हूँ। भ्रष्*टाचार की जड़ है यह रुपया। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि पहले के राजा महाराजाओं की तरह देश में शासन करने वाली सरकार के ही नोट चलन में आयें और सरकार बदलने पर वे नोट चलन से बाहर हो जायें। इतिहास गवाह है, चमड़े के सिक्के चले, जॉर्ज पंचम के बाद महारानी के चित्र वाले नोट चले। फिर क्यों नहीं हमारे राष्ट्रपिता को इस मुद्रागार से मुक्त कर स्वच्छंद मुस्कुराने दें। डाक घर में देखो तो इनकी टिकिट पर ठप्पे से चोट पर चोट लगती है, शादी विवाह, पार्टियों में नोट उड़ाये जाते हैं। नोटों की कालाबाजारी, भ्रष्टाचारी, सट़टेबाजी में बापू को खुले आम शर्मसार किया जाता है। जो सरकार आये उसके चुनाव चिह्न वाले या सरकार के प्रमुख प्रधानमंत्री के चित्र वाले नोट छपें और सरकार के बदलते ही उनके नोट चलन से बाहर हो जायें। इससे कालाबाजारी, जमाखोरी भी कम होगी। करोड़ों अरबों के भ्रष्टाचार भी कम होंगे। कहो कैसी रही?’

दूसरे साहित्यकार अट्टहास करते हुए कहा-‘खूब रही।'

rajnish manga
11-01-2014, 10:01 PM
मनोरंजन और शिक्षा देने वाली लघुकथाएं.

bindujain
16-01-2014, 04:58 AM
अनुताप
“बाबूजी आइए---मैं पहुँचाए देता हूँ।”एक रिक्शेवाले ने उसके नज़दीक आकर कहा, “असलम अब नहीं आएगा।” “क्या हुआ उसको ?” रिक्शे में बैठते हुए उसने लापरवाही से पूछा। पिछले चार-पाँच दिनों से असलम ही उसे दफ्तर पहुँचाता रहा था।
“बाबूजी, असलम नहीं रहा---”
“क्या?” उसे शाक-सा लगा, “कल तो भला चंगा था।”
“उसके दोनों गुर्दों में खराबी थी, डाक्टर ने रिक्शा चलाने से मना कर रखा था,” उसकी आवाज़ में गहरी उदासी थी, “कल आपको दफ्तर पहुँचा कर लौटा तो पेशाब बंद हो गया था, अस्पताल ले जाते समय उसने रास्ते में ही दम तोड़ दिया था---।”
आगे वह कुछ नहीं सुन सका। एक सन्नाटे ने उसे अपने आगोश में ले लिया---कल की घटना उसकी आँखों के आगे सजीव हो उठी। रिक्शा नटराज टाकीज़ पार कर बड़े डाकखाने की ओर जा रहा था। रिक्शा चलाते हुए असलम धीरे-धीरे कराह रहा था।बीच-बीच में एक हाथ से पेट पकड़ लेता था। सामने डाक बंगले तक चढ़ाई ही चढ़ाई थी।एकबारगी उसकी इच्छा हुई थी कि रिक्शे से उतर जाए। अगले ही क्षण उसने खुद को समझाया था-‘रोज का मामला है---कब तक उतरता रहेगा---ये लोग नाटक भी खूब कर लेते हैं, इनके साथ हमदर्दी जताना बेवकूफी होगी--- अनाप-शनाप पैसे माँगते हैं, कुछ कहो तो सरेआम रिक्शे से उतर पड़ा था, दाहिना हाथ गद्दी पर जमाकर चढ़ाई पर रिक्शा खींच रहा था। वह बुरी तरह हाँफ रहा था, गंजे सिर पर पसीने की नन्हीं-नन्हीं बूंदें दिखाई देने लगी थीं---।
किसी कार के हार्न से चौंककर वह वर्तमान में आ गया। रिक्शा तेजी से नटराज से डाक बंगले वाली चढ़ाई की ओर बढ़ रहा था।
“रुको!” एकाएक उसने रिक्शे वाले से कहा और रिक्शे के धीरे होते ही उतर पड़ा।
रिक्शे वाला बहुत मज़बूत कद काठी का था। उसके लिए यह चढ़ाई कोई खास मायने नहीं रखती थी। उसने हैरानी से उसकी ओर देखा। वह किसी अपराधी की भाँति सिर झुकाए रिक्शे के साथ-साथ चल रहा था।

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bindujain
16-01-2014, 05:02 AM
ऑक्सीजन
वह सड़क पर नज़रें गड़ाए बहुत ही सुस्त चाल से चल रहा था। मजबूरी में मुझे बहुत धीरे-धीरे कदम बढ़ाने पड़ रहे थे।
“भाई साहब---दो मिनट सुस्ता लें?” उसने पुलिया के नज़दीक रुकते हुए पूछा।
“हाँ---हाँ, जरूर ।” मैंने कहा।
“बहुत जल्दी थक जाता हूँ, लगता है जैसे शरीर में जान ही नहीं है।” वह निराशा से बुदबुदाया। फिर उसने एक सिगरेट सुलगा ली।
सुबह की सैर पर निकले लोग उसके सिगरेट पीने की हैरानी से देख रहे थे। तभी कुछ फौजी दौड़ते हुए हमारे सामने से गुज़रे।
“मैं आपको भी इन फौजियों की तरह दौड़ लगाते देखा करता था,” उसने कहा, “मेरी वजह से आप दौड़ नहीं पाते----।”
“नहीं---नहीं, आप गलत सोच रहे हैं,” मैंने उसकी बात काटते हुए जल्दी से कहा, “मुझे तो आपका साथ बहुत पसंद है।”
उसने मेरी ओर देखा। उसकी दाढ़ी बढ़ी हुई थी, आँखों से जीवन के प्रति घोर निराशा झाँक रही थी। चार दिन पहले गाँधी पार्क में टहलते हुए मेरा और उसका साथ हो गया था। ज़िदगी कुछ लोगों के साथ कितना क्रूर मज़ाक करती है, एक के बाद एक हादसों ने उसे तोड़कर रख दिया था।
हम फिर टहलने लगे थे, वह लगातार निराशाजनक बातें कर रहा था।
“मुझे थकान-सी महसूस हो रही है।” थोड़ी देर बाद मैंने उससे झूठ बोलते हुए कहा।
“आप थक गए? इतनी जल्दी!---मैं तो नहीं थका!!” उसकें मुँह से निकला।
“फिर भी दो मिनट बैठिए---मेरी खातिर!!”
“क्यों नहीं---क्यों नहीं!” इन चार दिनों में पहली बार उसके होंठों पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान रेंगती दिखाई दी।
इस बार उसने सिगरेट नहीं सुलगाई बल्कि दो-तीन बार लंबी साँस खींचकर फेफड़ों में ताजी हवा भरने का प्रयास किया। थोड़ा सुस्ताने के बाद जब हम चले तो मैंने देखा, उसकी चाल में पहले जैसी सुस्ती नहीं थी।

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bindujain
16-01-2014, 05:13 AM
आखिरी तारीख

“वर्माजी !”उसने पुकारा।
बड़े बाबू की मुद्रा में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। उनकी आँखें बंद थीं और दाँतों के बीच एक बीड़ी दबी हुई थी। ऐश-ट्रे माचिस की तीलियाँ और बीड़ी के अधजले टुकड़ों से भरी पड़ी थी।
सुरेश को आश्चर्य हुआ। द्फ्तर के दूसरे भागों से भी लड़ने-झगड़ने की आवाज़ें आ रही थीं। बड़े बाबू की अपरिवर्तित मुद्रा देखकर वह सिर से पैर तक सुलग उठा। उसकी इच्छा हुई एक मुक्का उनके जबड़े पर जड़ दे ।
“वर्माजी, आपने आज बुलाया था!” अबकी उसने ऊँची आवाज में कहा।
बड़े बाबू ने अपनी लाल सुर्ख आँखें खोल दीं। सुरेश को याद आया---पहली दफा वह जब यहाँ आया था तो बड़े बाबू के व्यवहार से बहुत प्रभावित हुआ था। तब बड़े बाबू ने आदर के साथ उसे बिठाया था और उसके पिता की फाइल ढ़ूँढ़कर सारे कागज़ खुद ही तैयार कर दिए थे। दफ्तर के लोग भी एकाग्रचित् हो काम कर रहे थे।
बड़े बाबू अभी भी उसकी उपस्थिति की परवाह किए बिना टेबल कैलेंडर पर एक तारीख के इर्द-गिर्द पेन से गोला खींच रहे थे। उसने बड़े बाबू द्वारा दायरे में तारीख को ध्यान से देखा तो उसे ध्यान आया, आज महीने का आखिरी दिन है और पिछली दफा जब वह यहाँ आया था, तब महीने का प्रथम सप्ताह था। बड़े बाबू के तारीख पर चलते हाथ से ऐसा लग रहा था मानो वे इकतीस तारीख को ठेलकर आज ही पहली तारीख पर ले आना चाहते थे।
एकाएक उसका ध्यान आज सुबह घर के खर्चे को लेकर पत्नी से हुए झगड़े की तरफ चला गया। पत्नी के प्रति अपने क्रूर व्यवहार के बारे में सोचकर उसे हैरानी हुई। अब उसके मन में बड़े बाबू के प्रति गुस्सा नहीं था बल्कि वह अपनी पत्नी के प्रति की गई ज्यादती पर पछतावा हुआ।वह कार्यालय से बाहर आ गया।

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Greenlandzone
16-01-2014, 10:56 AM
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rajnish manga
16-01-2014, 10:57 AM
सभी लघुकथाएं एक संवेदनशील व्यक्ति को झकझोर कर रख देती हैं. कृपया इस सिलसिले को जारी रखें.

bindujain
17-03-2014, 12:44 PM
भूख
( लघु कथा)
एक भिखारिन नाबालिग लड़की फटेहाल कपड़ों में सड़क के किनारे बैठ कर आते-जाते लोगों से भीख मांग रही थी . कोई उसे दुत्कार के चला जाता ,तो कोई तरस खा के 1-2 के सिक्के उसकी झोली में फैंक कर चला जाता . मगर उसे तो बड़ी भूख लगी थी .उसका तो यह जी चाह रहा था की उसे कुछ खाने को देदे। पिछले दो दिनों से वो भूखी थी ,और कुछ बीमार भी लग रही थी . कमजोरी के मारे ऊससे बोल भी नहीं जा रहा था। मगर किसी को उसकी इस हालत से कोई सरोकार नहीं था .हां ! अगर था भी तो उसके तार -तार कपड़ो से झांकते नव- यौवन से . विकृत मानसिकता से लबरेज़ घूरती निगाहों का वोह निशाना बनी हुई थी ,वहीँ सभ्रांत महिलायों की आँखों से छलकती नफरत की भी .
उस मजबूर और बेसहारा लड़की की हालत पर तमाशबीन बने लोगों में एक अधेड़ उम्र का शख्स भी वहीँ मौजूद था ,वोह दिखने में कुछ सभ्य , सुशिक्षित और सज्जन लग रहा था . उस लड़की के पास आया ,उसे आँखों से टटोला और धीरे से फुफुसाते हुए बोल ,” ऐ लड़की! तू यहाँ कब तक बैठी रहेगी ? चल उठ मेरे साथ चल . ” वोह लड़की सवालिया निगाहों से उसकी तरफ दिखने लगी .
” देख क्या रही है ! चल ,हां ! हां ! मैं तुझे कुछ खाने को देता हूँ , तुझे बड़ी भूख लगी है ,है ना !’
वोह मासूम लड़की ख़ुशी से उठ खड़ी हुई और चहकते हुए बोली ,” सच साब जी ! आप मुझे खाने को दोगे ? ”
अधेड़ शख्स ,” हां बाबा हां ! खाना भी और पहनने को कपड़े भी ,मगर तुझे मुझे खुश करना होगा ”
लड़की -” अ -आप को खुश ! कैसे ?
अधेड़ शख्स -” अब कैसे ,क्या ! बाद में बताता हूँ ,तू चल तो सही ”
वोह मासूम लड़की उसके साथ चल दी।

bindujain
17-03-2014, 12:47 PM
गैरज़रूरी


‘‘क्यों सता रखा है उसे तुमने ?’’ बेटे ने माँ से नई-नवेली पत्नी के विषय में आक्रोश से भरकर कहा।
अत्यंत संवेदनशील वह नारी जो चींटी भी नहीं मार सकती थी किसी का दिल दुखाने सताने की तो दूर की बात। हैरत से पहले तो बेटे को देखती रही। फिर कुछ न बोल अपने भीतर उतरती चली गई।
बहू कुछ रोज के लिए मायके गई थी। अब घर में सिर्फ माँ और बेटा ही थे। जो माँ बेटे की पीड़ा की कल्पना मात्र से काँपने लगती। हर समय अपनी ममता का सागर उस पर लुटाती। न जाने किस सूत्र से बेटे के अंदर का सब कुछ जान लेने वाली माँ अब जैसे राख हो गई थी। बेटे के एक वाक्य ने उस पर कहर ढा दिया था। अब बेटे की उपस्थिति को नकारती-छुपाती..अपने ऊपर विश्वास मानो खो चुकी थी। उसके भीतर जैसे सब चूक गया था। वह बीमार रहने लगी।
जिसकी किसी को ज़रूरत नहीं उसका मर जाना ही अच्छा माँ के हृदय से आवाज आती रही और एक दिन वह सचमुच मर गई।

bindujain
17-03-2014, 12:50 PM
माँ के गाल


‘‘पापा माँ के गालों पर लाल गुलाब खिलते हैं न ?’’
‘‘कौन कहता है’’ पापा शक से चौकन्ने हुए आँखों में हरापन और गहरा गया।
माँ के गालों के लाल गुलाब पीले गुलाबों में परिवर्तित होने लगे। मगर मुन्नी इससे बेखबर चहकते हुए बोली, ‘‘मैडम डिसूजा और कौन !’’ पापा की आँखों का भूरापन लौट आया और पीले गुलाब फिर लाल हो गए।

bindujain
17-03-2014, 12:54 PM
मुखौटे


‘‘पापाऽऽ पापाऽऽ वो देखिए कितने फनीमास्क हैं। पपा हम मास्क लेंगे, प्लीज ले दीजिए ना पापा !’’ नन्हें शोमू ने दशहरे पर बिक रहे राम और रावण के मुखौटों को देखकर जिद की।
‘‘भैया कैसे दिये ये मुखौटे ?’’
‘‘कौन सा चाहिए साहब, राम का या रावण का ?’’
‘‘शोमू कौन-सा लोगे बेटे ?’’
‘‘वो डरावना वाला। उसे पहनकर मैं दोस्तों को डराऊँगा।’’
‘‘बेटे रामजीवाला मास्क ले लो। देखो तो कितना सुंदर है !’’ मम्मी ने शोमू को समझाया।
‘‘नहीं ! हमतो डरावना वाला ही लेंगे।’’ शोमू अपनी बात मनवाने पर अड़ा था।
पापा ने उदारता बरतते हुए कहा, अच्छा दोनों ही ले लो।
भैया दोनों कितने-कितने के है ?
‘‘एक ही दाम है दोनों का दस-दस रुपैया साहब।’’
‘‘दोनों का एक ही दाम ?’’ मम्मी के प्रश्न में आश्चर्य था।’’
‘‘भला इसमें आश्चर्य की क्या बात है !’’ पापा का व्यावहारिकता पूर्ण जवाब था।

bindujain
17-03-2014, 12:59 PM
जरूरत

”चलो पीछे करों भाई इन सबको, दरवाजे पर भीड़ क्*यों इकट्ठा कर रखी है।“ मरीजों को देखते हुए डॉ. प्रशांत ने अपने कम्*पाउंडर से कहा। उसने डॉ. का इशारा पाते ही मरीजों को सरकारी डिस्*पेंसरी के दरवाजे से बाहर धकेल दिया। उनमें से एक मरीज को डॉ. प्रशांत के पास लाते हुए वह बोला, ”सर, इसका इलाज तत्*काल करना पड़ेगा। यह बहुत ही सीरियस है। यदि कहीं यह इलाज के बिना मर गया तो गांव की राजनीति को एक नया मुद्*दा मिल जायेगा साथ ही आपकी बड़ी फजीहत होगी। अतः इसे जरूर देख लें।“

”ठीक है, बुलाओ उसे। मैं देख लेता हूँ।“

कम्*पाउंडर ने मरीज को डिस्*पेंसरी के अंदर ठेल दिया।

”क्*या नाम है तुम्*हारा?“

”जी रामू , रामू बल्*द घिस्*सू।“

”हूं , क्*या तकलीफ है ?“

”डागदर साब, कब्*ज बनी रहवे है।“

”अच्*छा, कल शाम को क्*या खाया था?“

”जी , कुछ नहीं।“

”कल सुबह?“

”जी कुछ नहीं।“

”परसों दोनो टाईम?“

”जी कुछ नहीं।“

डॉ. प्रशांत ने गर्मी और भारी उमस में पसीना पौछते हुए कहा, ”क्*या करते हो?“

”जी कुछ नहीं।“

डॉ. ने आश्*चर्य से प्रतिप्रश्*न किया, ”गुजारा कैसे होता है?“

”साब, बहुत गरीब आदमी हूँ। जब से फसल कटाई के लिए मशीनें आई हैं, भूखे मरने की नौबत आ गई है।“

डॉ. प्रशांत ने उसका मर्ज ज्ञात कर लिया था। उन्*होंने कम्*पाउंडर को पचास रूपये का नोट देते हुए कहा, ”इसे ले जाओ भरपेट खाना खिलाओ, इसे दवा की नहीं भोजन की जरूरत है।“

bindujain
17-03-2014, 01:01 PM
बेवजह


रात के बारह बज रहे हैं। शैफाली आज फिर सफेद रंग की मारुति में आई है। सरल ने देखा उसके बॉस पी.के. उसे सहारा देकर सीढ़ियों तक पहुँचा गए हैं।
पत्नी के कमरे में घुसते ही वह उस पर बरस पड़ा, ‘‘क्या तुमने मुझे भड़ुवा समझ रखा है जो मैं यह सब खामोशी से बर्दाश्त करता रहूँगा। नहीं करवानी मुझे तुमसे नौकरी। कल से घर बैठो।’’
‘‘नौकरी तो मैं छोड़ने से रही।’’
‘‘मतलब ?’’
‘‘मतलब साफ है उसके लिए मैं तुम्हें छोड़ सकती हूँ।’’
‘‘अब नौबत यहाँ तक आ पहुँची है ?’’
‘‘ये तो तुम्हें पहले ही सोच लेना था जब तुमने प्रमोशन के लिए मुझे इस्तेमाल किया था। अब सिर्फ मैं अपने लिए अपने को इस्तेमाल कर रही हूँ। तुम्हारा गुस्सा बेवजह है।’’ शैफाली ने ठंडे लहजे में कहा और सिंक में चेहरा धोने लगी।

bindujain
17-03-2014, 01:07 PM
परिश्रम का फल

एक था कौआ। बिलकुल उस प्राचीन कथा वाले कौए के समान। जिसमें प्*यासा कौआ पानी पीने के लिए मिट्*टी के बर्तन में स्*थित पानी ऊपर लाने के लिए चोंच में कंकड़ दबाकर लाता है। कंकड़ बर्तन में डालता है। अपने अथक परिश्रम के पश्*चात पानी ऊपर आने पर पीकर उड़ जाता है।

लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। गाँव के गरीब भोले भाले एक कौये ने अपने परिश्रम के द्वारा मिट्*टी के बर्तन को छोटे-छोटे कंकड़ो से भरा। बर्तन में पानी ऊपर आने पर एक अन्*य राजनीति के ज्ञाता, चालाक और तिकड़मी कौये ने बल पूर्वक उसे डरा धमका कर बर्तन को अपने कब्*जे में ले लिया। उसका पूरा जल पीकर अपनी प्*यास बुझाई।

उड़ने से पूर्व मिट्*टी के पात्र को तिपाई से गिराकर टुकड़े-टुकड़े कर दिया।

पहले कौआ अब भी प्*यास से तड़प रहा है।

rajnish manga
17-03-2014, 03:09 PM
एक बार फिर ये कथाएं कलेवर में लघु होते हुये भी अपने में बड़े संदेश समेटे हैं. कई स्थानों पर तो बिना कहे पात्र बहुत कुछ कह जाता है. धन्यवाद आपका.

bindujain
06-04-2014, 07:42 AM
एक बालक अपनी दादी मां को एक पत्र लिखते हुए देख रहा था। अचानक उसने अपनी दादी मां से पूंछा, "दादी मां !" क्या आप मेरी शरारतों के बारे में लिख रही हैं ? आप मेरे बारे में लिख रही हैं, ना"
यह सुनकर उसकी दादी माँ रुकीं और बोलीं, "बेटा मैं लिख तो तुम्हारे बारे में ही रही हूँ, लेकिन जो शब्द मैं यहाँ लिख रही हूँ उनसे भी अधिक महत्व इस पेन्सिल का है जिसे मैं इस्तेमाल कर रही हूँ। मुझे पूरी आशा है कि जब तुम बड़े हो जाओगे तो ठीक इसी पेन्सिल की तरह होगे।"
यह सुनकर वह बालक थोड़ा चौंका और पेन्सिल की ओर ध्यान से देखने लगा, किन्तु उसे कोई विशेष बात नज़र नहीं आयी। वह बोला, "किन्तु मुझे तो यह पेन्सिल बाकी सभी पेन्सिलों की तरह ही दिखाई दे रही है।"
इस पर दादी माँ ने उत्तर दिया, "बेटा ! यह इस पर निर्भर करता है कि तुम चीज़ों को किस नज़र से देखते हो। इसमें पांच ऐसे गुण हैं, जिन्हें यदि तुम अपना लो तो तुम सदा इस संसार में शांतिपूर्वक रह सकते हो।"
"पहला गुण : तुम्हारे भीतर महान से महान उपलब्धियां प्राप्त करने की योग्यता है, किन्तु तुम्हें यह कभी भूलना नहीं चाहिए कि तुम्हे एक ऐसे हाथ की आवश्यकता है जो निरन्तर तुम्हारा मार्गदर्शन करे। हमारे लिए वह हाथ ईश्वर का हाथ है जो सदैव हमारा मार्गदर्शन करता रहता है।"
"दूसरा गुण : बेटा ! लिखते, लिखते, लिखते बीच में मुझे रुकना पड़ता है और फ़िर कटर से पेन्सिल की नोक बनानी पड़ती है। इससे पेन्सिल को थोड़ा कष्ट तो होता है, किन्तु बाद में यह काफ़ी तेज़ हो जाती है और अच्छी चलती है। इसलिए बेटा ! तुम्हें भी अपने दुखों, अपमान और हार को बर्दाश्त करना आना चाहिए, धैर्य से सहन करना आना चाहिए। क्योंकि ऐसा करने से तुम एक बेहतर मनुष्य बन जाओगे।"
"तीसरा गुण : बेटा ! पेन्सिल हमेशा गलतियों को सुधारने के लिए रबर का प्रयोग करने की इजाज़त देती है। इसका यह अर्थ है कि यदि हमसे कोई गलती हो गयी तो उसे सुधारना कोई गलत बात नहीं है। बल्कि ऐसा करने से हमें न्यायपूर्वक अपने लक्ष्यों की ओर निर्बाध रूप से बढ़ने में मदद मिलती है।"
"चौथा गुण : बेटा ! एक पेन्सिल की कार्य प्रणाली में मुख्य भूमिका इसकी बाहरी लकड़ी की नहीं अपितु इसके भीतर के 'ग्रेफाईट' की होती है। ग्रेफाईट या लेड की गुणवत्ता जितनी अच्छी होगी, लेख उतना ही सुन्दर होगा। इसलिए बेटा ! तुम्हारे भीतर क्या हो रहा है, कैसे विचार चल रहे हैं, इसके प्रति सदा सजग रहो।"
"अंतिम गुण : बेटा ! पेन्सिल सदा अपना निशान छोड़ देती है। ठीक इसी प्रकार तुम कुछ भी करते हो तो तुम भी अपना निशान छोड़ देते हो। अतः सदा ऐसे कर्म करो जिन पर तुम्हें लज्जित न होना पड़े अपितु तुम्हारा और तुम्हारे परिवार का सिर गर्व से उठा रहे। अतः अपने प्रत्येक कर्म के प्रति सजग रहो।

bindujain
06-04-2014, 07:43 AM
डर के आगे जीत है।

एक लड़की कार चला रही थी और पास में उसके पिताजी बैठे थे। राह में एक भयंकर तूफ़ान आया। और लड़की ने पिता से पूछा -- "अब हम क्या करें?" पिता ने जवाब दिया -- "कार चलाते रहो।" तूफ़ान में कार चलाना बहुत ही मुश्किल हो रहा था और तूफ़ान और भयंकर होता जा रहा था।
"अब मैं क्या करू ?" -- लड़की ने पुनः पूछा।
"कार चलाते रहो।" -- पिता ने पुनः कहा।
थोड़ा आगे जाने पर लड़की ने देखा की राह में कई वाहन तूफ़ान की वजह से रुके हुए थे। उसने फिर अपने पिता से कहा -- "मुझे कार रोक देनी चाहिए। मैं मुश्किल से देख पा रही हूँ। यह भयंकर है और प्रत्येक ने अपना वाहन रोक दिया है।" उसके पिता ने फिर निर्देशित किया -- "कार रोकना नहीं. बस चलाते रहो।"
अब तूफ़ान ने बहुत ही भयंकर रूप धारण कर लिया था किन्तु लड़की ने कार चलाना नहीं रोका और अचानक ही उसने देखा कि कुछ साफ़ दिखने लगा है। कुछ किलो मीटर आगे जाने के पश्चात लड़की ने देखा कि तूफ़ान थम गया और सूर्य निकल आया। अब उसके पिता ने कहा -- "अब तुम कार रोक सकती हो और बाहर आ सकती हो।" लड़की ने पूछा -- "पर अब क्यों?" पिता ने कहा -- "जब तुम बाहर आओगी तो देखोगी कि जो राह में रुक गए थे, वे अभी भी तूफ़ान में फंसे हुए हैं। चूँकि तुमने कार चलाने के प्रयत्न नहीं छोड़ा, तुम तूफ़ान के बाहर हो।"
शिक्षा: यह किस्सा उन लोगों के लिए एक प्रमाण है जो कठिन समय से गुजर रहे हैं। मजबूत से मजबूत इंसान भी प्रयास छोड़ देते हैं। किन्तु प्रयास कभी भी छोड़ना नहीं चाहिए। निश्चित ही जिन्दगी के कठिन समय गुजर जायेंगे और सुबह के सूर्य की भांति चमक आपके जीवन में पुनः आयेगी। इसीलिए कहते है "डर के आगे जीत है।

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bindujain
06-04-2014, 07:45 AM
अक्ल का इस्तेमाल

एक गाँव में एक बढ़ई रहता था। वह शरीर और दिमाग से बहुत मजबूत था। एक दिन उसे पास के गाँव के एक अमीर आदमी ने फर्नीचर फिट करने के लिए बुलाया। जब वहाँ का काम खत्म हुआ तो लौटते वक्त शाम का हो गई तो उसने काम के मिले पैसों की एक पोटली बगल मे दबा ली और ठंड से बचने के लिए कंबल ओढ़ लिया। वह चुपचाप सुनसान रास्ते से घर की और रवाना हुआ।
कुछ दूर जाने के बाद अचानक उसे एक लुटेरे ने रोक लिया। वह शरीर से तो बढ़ई से कमजोर था पर उसकी कमजोरी को उसकी बंदूक ने ढक रखा था। अब बढ़ई ने उसे सामने देखा तो लुटेरा बोला, "जो कुछ भी तुम्हारे पास है सभी मुझे दे दो नही तो मैं तुम्हें गोली मार दूँगा।" यह सुनकर बढ़ई ने पोटली
उस लुटेरे को थमा दी और बोला, "ठीक है यह रुपये तुम रख लो मगर मैं घर पहुँच कर अपनी बीवी को क्या कहुंगा। वो तो यही समझेगी कि मैने पैसे जुए मे उड़ा दिए होंगे। तुम एक काम करो, अपने बंदूक की गोली से मेरी टोपी मे एक छेद कर दो ताकि मेरी बीवी को लूट का यकीन हो जाए।" लुटेरे ने बड़ी शान से बंदूक से गोली चलाकर टोपी मे छेद कर दिया। अब लुटेरा जाने लगा तो बढ़ई बोला, "एक काम और कर दो, जिससे बीवी को यकीन हो जाए कि लुटेरों के गैंग ने मिलकर लुटा हो। वरना मेरी बीवी मुझे कायर समझेगी। तुम इस कंबल मे भी चार-पाँच छेद कर दो।" लुटेरे ने खुशी खुशी कंबल मे गोलियाँ चलाकर छेद कर दिए। इसके बाद बढ़ई ने अपना कोट भी निकाल दिया और बोला, "इसमें भी एक दो छेद कर दो ताकि सभी गॉंव वालों को यकीन हो जाए कि मैंने बहुत संघर्ष किया था।"
इस पर लुटेरा बोला, "बस कर अब। इस बंदूक मे गोलियां भी खत्म हो गई हैं।' यह सुनते ही बढ़ई आगे बढ़ा और लुटेरे को दबोच लिया और बोला, "यही तो मैं चाहता था। तुम्हारी ताकत सिर्फ ये बंदूक थी। अब ये भी खाली है। अब तुम्हारा कोई जोर मुझ पर नही चल सकता है। चुपचाप मेरी पोटली मुझे वापस दे दो वरना …।" यह सुनते ही लुटेरे की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई और उसने तुरंत ही पोटली बढई को वापिस दे दी और अपनी जान बचाकर वहाँ से भागा। आज बढ़ई की ताकत तब काम आई जब उसने अपनी अक्ल का सही ढंग से इस्तेमाल किया। इसलिए कहते है कि मुश्किल हालात मे अपनी अक्ल का ज्यादा इस्तेमाल करना चाहिए तभी आप मुसीबतों से आसानी से निकल सकते हैं

bindujain
06-04-2014, 07:50 AM
पंडित का एक वैश्या से प्रश्न ......

एक पंडित जी कई वर्षों तक काशी में शास्त्रों का अध्ययन करने के बाद अपने गांव लौटे। गांव के एक किसान ने उनसे पूछा, पंडित जी आप हमें यह बताइए कि पाप का गुरु कौन है? प्रश्न सुन कर पंडित जी चकरा गए, क्योंकि भौतिक व आध्यात्मिक गुरु तो होते हैं, लेकिन पाप का भी गुरु होता है, यह उनकी समझ और अध्ययन के बाहर था। पंडित जी को लगा कि उनका अध्ययन अभी अधूरा है, इसलिए वे फिर काशी लौटे। फिर अनेक गुरुओं से मिले। मगर उन्हें किसान के सवाल का जवाब नहीं मिला। अचानक एक दिन उनकी मुलाकात एक वेश्या से हो गई। उसने पंडित जी से उनकी परेशानी का कारण पूछा, तो उन्होंने अपनी समस्या बता दी। वेश्या बोली, पंडित जी..! इसका उत्तर है तो बहुत ही आसान, लेकिन इसके लिए कुछ दिन आपको मेरे पड़ोस में रहना होगा। पंडित जी के हां कहने पर उसने अपने पास ही उनके रहने की अलग से व्यवस्था कर दी। पंडित जी किसी के हाथ का बना खाना नहीं खाते थे, नियम-आचार और धर्म के कट्टर अनुयायी थे। इसलिए अपने हाथ से खाना बनाते और खाते। इस प्रकार से कुछ दिन बड़े आराम से बीते, लेकिन सवाल का जवाब अभी नहीं मिला।
एक दिन वेश्या बोली, पंडित जी...! आपको बहुत तकलीफ होती है खाना बनाने में। यहां देखने वाला तो और कोई है नहीं। आप कहें तो मैं नहा-धोकर आपके लिए कुछ भोजन तैयार कर दिया करूं। आप मुझे यह सेवा का मौका दें, तो मैं दक्षिणा में पांच स्वर्ण मुद्राएं भी प्रतिदिन दूंगी।
स्वर्ण मुद्रा का नाम सुन कर पंडित जी को लोभ आ गया। साथ में पका-पकाया भोजन। अर्थात दोनों हाथों में लड्डू। इस लोभ में पंडित जी अपना नियम-व्रत, आचार-विचार धर्म सब कुछ भूल गए। पंडित जी ने हामी भर दी और वेश्या से बोले, ठीक है, तुम्हारी जैसी इच्छा। लेकिन इस बात का विशेष ध्यान रखना कि कोई देखे नहीं तुम्हें मेरी कोठी में आते-जाते हुए। वेश्या ने पहले ही दिन कई प्रकार के पकवान बनाकर पंडित जी के सामने परोस दिया। पर ज्यों ही पंडित जी खाने को तत्पर हुए, त्यों ही वेश्या ने उनके सामने से परोसी हुई थाली खींच ली। इस पर पंडित जी क्रुद्ध हो गए और बोले, यह क्या मजाक है? वेश्या ने कहा, यह मजाक नहीं है पंडित जी, यह तो आपके प्रश्न का उत्तर है।
यहां आने से पहले आप भोजन तो दूर, किसी के हाथ का भी नहीं पीते थे,मगर स्वर्ण मुद्राओं के लोभ में आपने मेरे हाथ का बना खाना भी स्वीकार कर लिया।
यह लोभ ही पाप का गुरु है।

bindujain
06-04-2014, 07:54 AM
स्व मूल्यांकन (Self Appraisal)

एक चौदह पंद्रह साल का लड़का एक टेलीफोन बूथ पर जाकर एक नंबर लगाता है और किसी के साथ बात करता है, बूथ मालिक उस लड़के की बात को ध्यान से सुनता रहता है ;
लड़का : किसी महिला से कहता है कि, मैंने बैंक से कुछ क़र्ज़ लिया है और मुझे उसका क़र्ज़ चुकाना है, इस कारण मुझे पैसों की बहुत जरुरत है, मैडम क्या आप मुझे अपने बगीचे की घास काटने की नौकरी दे सकती हैं..? महिला : (दूसरी तरफ से) मेरे पास तो पहले से ही घास काटने वाला माली है..
लड़का : परन्तु मैं वह काम आपके माली से आधी तनख्वाह पर कर दूंगा..
महिला : तनख्वाह की बात ही नहीं है मैं अपने माली के काम से पूरी तरह संतुष्ट हूँ..
लड़का : (और निवेदन करते हुए) घास काटने के साथ साथ मैं आपके घर की साफ़ सफाई भी कर दूंगा वो भी बिना पैसे लिए..
महिला : धन्यवाद और ना करके फोन काट दिया..लड़का चेहरे पर विस्मित भाव लिए फोन रख देता है..
बूथ मालिक जो अब तक लड़के की सारी बातों को सुन चूका होता है,लड़के को अपने पास बुलाता है..
दुकानदार : बेटा मेरे को तेरा स्वभाव बहुत अच्छा लगा, मेरे को तेरा सकारात्मक बात करने का तरीका भी बहुत पसंद आया..अगर मैं तेरे को अपने यहाँ नौकरी करने का ऑफ़र दूं तो क्या तू मेरे यहाँ काम करेगा..??
लड़का : नहीं, धन्यवाद.
दुकानदार : पर तेरे को नौकरी की सख्त जरुरत है और तू नौकरी खोज भी रहा है.
लड़का : नहीं श्रीमान मुझे नौकरी की जरुरत नहीं है मैं तो नौकरी कर ही रहा हूँ, वो तो मैं अपने काम का मूल्यांकन कर रहा था..मैं वही माली हूँ जिसकी बात अभी वो महिला फोन पर कर रही थी..!!!

bindujain
06-04-2014, 07:57 AM
दृष्टिकोण का फ़र्क...

बहुत समय पहले की बात है ,किसी गाँव में एक किसान रहता था . वह रोज़ भोर में उठकर दूर झरनों से स्वच्छ पानी लेने जाया करता था . इसकाम के लिए वह अपने साथ दो बड़े घड़े ले जाता था , जिन्हें वो डंडे में बाँध कर अपने कंधे पर दोनों ओर लटका लेता था .

उनमे से एक घड़ा कहीं से फूटा हुआ था, और दूसरा एक दम सही था . इस वजह से रोज़ घर पहुँचते -पहुचते किसान के पास डेढ़ घड़ा पानी ही बच पाता था .ऐसा दो सालों से चल रहा था .

सही घड़े को इस बात का घमंड था कि वो पूरा का पूरा पानी घर पहुंचता है और उसके अन्दर कोई कमी नहीं है, वहीँ दूसरी तरफ फूटा घड़ा इस बात से शर्मिंदा रहता था कि वो आधा पानी ही घर तक पंहुचा पाता है और किसान की मेहनत बेकार चली जाती है . फूटा घड़ा ये सब सोच कर बहुत परेशान रहने लगा और एक दिन उससे रहा नहीं गया ,

उसने किसान से कहा , “ मैं खुद पर शर्मिंदा हूँ और आपसे क्षमा मांगना चाहता हूँ?”

“क्यों ? “ , किसान ने पूछा , “ तुम किस बात से शर्मिंदा हो ?”

“शायद आप नहीं जानते पर मैं एक जगह से फूटा हुआ हूँ , और पिछले दो सालों से मुझे जितना पानी घर पहुँचाना चाहिए था बस उसका आधा ही पहुंचा पाया हूँ , मेरे अन्दर ये बहुत बड़ी कमी है , और इस वजह से आपकी मेहनत बर्बाद होती रही है .”, फूटे घड़े ने दुखी होते हुए कहा.

किसान को घड़े की बात सुनकर थोडा दुःख हुआ और वह बोला , “ कोई बात नहीं , मैं चाहता हूँ कि आज लौटते वक़्त तुम रास्ते में पड़ने वाले सुन्दर फूलों को देखो .” घड़े ने वैसा ही किया , वह रास्ते भर सुन्दर फूलों को देखता आया , ऐसा करने से उसकी उदासी कुछ दूर हुई पर घर पहुँचते – पहुँचते फिर उसके अन्दर से आधा पानी गिर चुका था, वो मायूस हो गया और किसान से क्षमा मांगने लगा .

किसान बोला ,” शायद तुमने ध्यान नहीं दिया पूरे रास्ते में जितने भी फूल थे वो बस तुम्हारी तरफ ही थे , सही घड़े की तरफ एक भी फूल नहीं था . ऐसा इसलिए क्योंकि मैं हमेशा से तुम्हारे अन्दर की कमी को जानता था , और मैंने उसका लाभ उठाया . मैंने तुम्हारे तरफ वाले रास्ते पर रंग - बिरंगे फूलों के बीज बो दिए थे , तुम रोज़ थोडा- थोडा कर के उन्हें सींचते रहे और पूरे रास्ते को इतना खूबसूरत बना दिया .

आज तुम्हारी वजह से ही मैं इन फूलों को भगवान को अर्पित कर पाता हूँ और अपना घर सुन्दर बना पाता हूँ . तुम्ही सोचो अगर तुम जैसे हो वैसे नहीं होते तो भला क्या मैं ये सब कुछ कर पाता ?”

दोस्तों हम सभी के अन्दर कोई ना कोई कमी होती है , पर यही कमियां हमें अनोखा बनाती हैं . उस किसान की तरह हमें भी हर किसी को वो जैसा है वैसे ही स्वीकारना चाहिए और उसकी अच्छाई की तरफ ध्यान देना चाहिए, और जब हम ऐसा करेंगे तब “फूटा घड़ा” भी “अच्छे घड़े” से मूल्यवान हो जायेगा.

rajnish manga
06-04-2014, 04:26 PM
स्व मूल्यांकन (self appraisal)

....
लड़का : नहीं श्रीमान मुझे नौकरी की जरुरत नहीं है मैं तो नौकरी कर ही रहा हूँ, वो तो मैं अपने काम का मूल्यांकन कर रहा था..मैं वही माली हूँ जिसकी बात अभी वो महिला फोन पर कर रही थी..!!!



काश! हर व्यक्ति स्व-मूल्यांकन की प्रणाली को अपना सकता- किसी भी रूप में.

bindujain
07-04-2014, 08:10 AM
अच्छे में बुरा और बुरे में अच्छा छुपा है..


परियां भेस बदलकर घूमने निकली थीं। उन्होंने बुजुर्ग महिलाओं का रूप धर लिया था। घूमते घमते रात हो गई, तो वे सामने दिख रहे एक आलीशान मकान के दरवाजो पर पहुंच गईं। वह एक अमीर का घर था। वृद्धाओं के वेश में परियों ने उससे रात के लिए आश्रय मांगा। वह जमाना समाज में अतिथि देवा भव: की भावना वाला था। इसलिए अमीर चाहकर भी मना न कर सका। लेकिन उसने उन्हें घर के किसी कमरे में ठहराने की बजाय तहख़ाने में ठहरा दिया। परियों ने वहां किसी तरह रात काटी। सुबह एक परी की नजर तहख़ाने की टूटती दीवाल पर पड़ी, तो उसने जादू से उसकी मरम्मत कर दी। अलगी रात वे एक ग़रीब के घर पहुंचे। वह परिवार भले ही ग़रीब था, लेकिन सभी सदस्य परियों की खातिर के लिए आतुर हो उठे।

उन्होंने उन्हें अपने हिस्से का खाना खिलाया और सबसे अच्छे कमरे में सुलाया। सुबह जब परियां जाने लगीं, तो उन्होंने देखा कि उस ग़रीब की पत्नी रो रही थी। पूछने पर पता चला कि उस परिवार की आय का बड़ा सहारा, एक बकरी रात को अचानक मर गई। दूसरी परी ने पहली को मुस्कराते हुए देखा, तो समझ गई कि यह उसी की करतूत है। उसने पूछा कि तुमने र्दुव्*यवहार करने वाले अमीर की दीवार बिना कहे सुधार दी, जबकि इस सज्जन परिवार की आय का सहारा ही छीन लिया! पहली परी ने बताया, ‘दरअसल, तहख़ाने की दीवार में सोने की सैकड़ों मुहरें दबी थीं। अगर दीवार जरा और उखड़ती, तो मुहरें बाहर झांकने लगतीं। इसलिए मैंने दीवार की मरम्मत कर दी, ताकि मुहरें हमेशा वहीं दबी रहें। दूसरी तरफ़, कल इस ग़रीब परिवार की स्त्री पर मौत आई थी, लेकिन मैंने उसे बकरी की तरफ़ मोड़ दिया था।’


सबक- चीजें या घटनाएं जैसी दिखती हैं, वैसी होती नहीं हैं। सो, कोई भी धारणा तात्कालिक नहीं, अंतिम परिणाम के आधार पर बनाई जानी चाहिए। अक्सर बुराई में भी अच्छाई छुपी होती है

rajnish manga
07-04-2014, 11:17 AM
>>>>
सबक-

चीजें या घटनाएं जैसी दिखती हैं, वैसी होती नहीं हैं। सो, कोई भी धारणा तात्कालिक नहीं, अंतिम परिणाम के आधार पर बनाई जानी चाहिए। अक्सर बुराई में भी अच्छाई छुपी होती है.


:bravo:
लघुकथा बहुत रोचक तथा शिक्षाप्रद है.

bindujain
09-04-2014, 09:54 PM
अपना-पराया

किसी होटल के मालिक ने एक लड़का नौकर रखा| उसकी उम्र अधिक नहीं थी| वह लड़का बड़ा भला और भोला था, बहुत ही ईमानदार और मेहनती था| एक दिन वह लड़का शीशे के गिलास धो रहा था| संयोग से एक गिलास उसके हाथ से फिसल गया और फर्श से टकराकर चूर-चूर हो गया| मालिक ने गिलास के गिरने और टूटने की आवाज सुनी तो दौड़ता हुआ आया और लाल-पिला होकर बोला - "क्यों रे बदमाश, यह क्या हुआ?"

बेचारा बालक वैसे ही डर रहा था, मालिक की भाव-भंगिमा देखकर उसके रहे-सहे होश भी गायब हो गए| अपने बचाव में वह कुछ कहे कि उससे पहले ही मालिक ने एक हाथ से कसकर उसका कान उमेठा और दूसरे से तड़ातड़ पांच-सात चांटे लगा दिए| बालक के मुंह से दबी हुई एक चीख निकलने को हुई, पर वह पी गया और कोई चारा भी तो नहीं था| मालिक ने दांत पीसते हुए उसे और उसकी सारी जमात को चुन-चुनकर गालियां दीं और जी भरकर उसे कोसा| फिर वह ज्योंही जाने को मुड़ा कि उसका लड़का आ गया| पिता के तमतमाए हुए चेहरे को देखकर वह उलटे पैरों लौटने को हुआ कि घबराहट में उसका पैर फिसल गया और प्लेटों की अलमारी पर गिरा| कई कीमती प्लेटें नीचे गिरकर टुकड़े-टुकड़े हो गईं| पिता ने दौड़कर अपने उस इकलौते बेटे को उठा लिया और प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोला - "क्यों बेटे, तुम्हें चोट तो नहीं लगी?"

फिर प्लेटों के टुकड़ों की ओर देखकर बेटे को सांत्वना देते हुए कहा - "कोई बात नहीं है, ऐसा तो हो ही जाता है|"

कुछ कदम पर खड़े नौकर ने मालिक के चेहरे पर व्याप्त ममता को देखा और अपनी उम्र के उस लड़के पर निगाह डाली| अचानक उसने पाया कि उसके गालों पर पड़ी चांटों की मार जोर से कसक उठी है और रोकते-रोकते भी उसकी आंखों से आंसुओं की कई बड़ी-बड़ी बूंदें टपक पड़ीं| उसे भगवान ने छोटी उम्र में ही अपने पराए का भेद समझा दिया था|

bindujain
09-04-2014, 09:55 PM
असली मर्द

अरब देश की बात है| एक राजा था| उसके बड़े-ठाठ-बाट थे| उसके पास किसी चीज की कमी न थी|

एक दिन वह राजा लड़ाई पर गया| उसके पास खाने-पीने का सामन इतना था कि उसे लादने के लिए तीन सौ ऊंटों की जरूरत पड़ी|

दुर्भाग्य से वह दुश्मन से हार गया और बंदी बना लिया गया| उसके पास उसका रसोइया खड़ा था|

राजा ने कहा - "मुझे भूख लगी है| कुछ खाने को तैयार कर दो|"

रसोइए के पास मांस का एक टुकड़ा बचा था| उसने उसे देगची में डालकर उबलने को रख दिया| कहीं कुछ साग-सब्जी मिल जाए तो अच्छा होगा, यह सोचकर वह खोज में निकल पड़ा|

इतने में एक कुत्ता वहां आया| मांस की गंध से उसने अपना मुंह देगची में डाल दिया| संयोग से देगची में उसका मुंह अटक गया|

उसने मुंह निकालने की बहुत कोशिश की| जब मुंह न निकला तो देगची को लेकर ही वह वहां से भागा|

राजा ने वह दृश्य देखा तो जोर से हंस पड़ा| पास में एक संतरी खड़ा था| उसने राजा की हंसी सुनी तो उसे बड़ा अचरज हुआ| उसने कहा - "आप इतनी मुसीबत में हैं तब भी हंस रहे हैं| क्या बात है?"

राजा ने जवाब दिया - "मुझे यह सोचकर हंसी आ रही है कि कल तक मेरे रसोई के सामान को ले जाने के लिए तीन सौ ऊंटों की जरूरत होती थी, अब उसके लिए एक कुत्ता ही काफी है|"

किसी ने ठीक ही कहा है कि सुख में तो सभी खुश रहते हैं, लेकिन असली मर्द तो वह है जो मुसीबत में भी हंस सके|

bindujain
09-04-2014, 09:56 PM
तोड़ो नहीं, जोड़ो

अंगुलिमाल नाम का एक बहुत बड़ा डाकू था| वह लोगों को मारकर उनकी उंगलियां काट लेता था और उनकी माला बनाकर पहनता था| इसी कारण उसका यह नाम पड़ा था| मुसाफिरों को लूट लेना उनकी जान ले लेना, उसके बाएं हाथ का खेल था| लोग उससे बहुत डरते थे| उसका नाम सुनते ही उनके प्राण सूख जाते थे|

संयोग से एक बार भगवान बुद्ध उपदेश देते हुए उधर आ निकले| लोगों ने उनसे प्रार्थना की कि वे वहां से चले जाएं| अंगुलिमाल ऐसा डाकू है, जो किसी के भी आगे नहीं झुकता|

बुद्ध ने लोगों की बात सुनी, पर उन्होंने अपना इरादा नहीं बदला| वे बेधड़क वन में घूमने लगे|

जब अंगुलिमाल को इसका पता चला तो वह झुंझलाकर बुद्ध के पास आया| वह उन्हें मार डालना चाहता था, लेकिन जब उसने बुद्ध को मुस्कराकर प्यार से उसका स्वागत करते देखा तो उसका पत्थर का दिल कुछ मुलायम हो गया|

बुद्ध ने उससे कहा - "सुनो भाई, सामने के पेड़ से चार पत्ते तोड़ लाओगे?"

अंगुलिमाल के लिए यह क्या मुश्किल था! वह दौड़कर गया और जरा-सी देर में पत्ते तोड़कर ले आया|

बुद्ध ने कहा - "अब एक काम और करो| जहां से इन पत्तों को तोड़कर लाए हो, वहीं इन्हें लगा आओ|"

अंगुलिमाल बोला - "यह कैसे हो सकता है?"

बुद्ध ने कहा - "भैया! जब तुम जानते हो कि टूटा जुड़ता नहीं तो फिर तोड़ने का काम क्यों करते हो?"

इतना सुनते ही अंगुलिमाल को बोध हो गया और वह उस दिन से अपना धंधा छोड़कर बुद्ध की शरण में आ गया|

bindujain
10-05-2014, 07:46 AM
पैरों के निशान

जन्म से ठीक पहले एक बालक भगवान से कहता है,” प्रभु आप मुझे नया जन्म मत दीजिये , मुझे पता है पृथ्वी पर बहुत बुरे लोग रहते है…. मैं वहाँ नहीं जाना चाहता …” और ऐसा कह कर वह उदास होकर बैठ जाता है ।

भगवान् स्नेह पूर्वक उसके सर पर हाथ फेरते हैं और सृष्टि के नियमानुसार उसे जन्म लेने की महत्ता समझाते हैं , बालक कुछ देर हठ करता है पर भगवान् के बहुत मनाने पर वह नया जन्म लेने को तैयार हो जाता है।

” ठीक है प्रभु, अगर आपकी यही इच्छा है कि मैं मृत लोक में जाऊं तो वही सही , पर जाने से पहले आपको मुझे एक वचन देना होगा। ” , बालक भगवान् से कहता है।

भगवान् : बोलो पुत्र तुम क्या चाहते हो ?

बालक : आप वचन दीजिये कि जब तक मैं पृथ्वी पर हूँ तब तक हर एक क्षण आप भी मेरे साथ होंगे।

भगवान् : अवश्य, ऐसा ही होगा।

बालक : पर पृथ्वी पर तो आप अदृश्य हो जाते हैं , भला मैं कैसे जानूंगा कि आप मेरे साथ हैं कि नहीं ?

भगवान् : जब भी तुम आँखें बंद करोगे तो तुम्हे दो जोड़ी पैरों के चिन्ह दिखाइये देंगे , उन्हें देखकर समझ जाना कि मैं तुम्हारे साथ हूँ।

फिर कुछ ही क्षणो में बालक का जन्म हो जाता है।

जन्म के बाद वह संसारिक बातों में पड़कर भगवान् से हुए वार्तालाप को भूल जाता है| पर मरते समय उसे इस बात की याद आती है तो वह भगवान के वचन की पुष्टि करना चाहता है।

वह आखें बंद कर अपना जीवन याद करने लगता है। वह देखता है कि उसे जन्म के समय से ही दो जोड़ी पैरों के निशान दिख रहे हैं| परंतु जिस समय वह अपने सबसे बुरे वक़्त से गुजर रहा था उस समय केवल एक जोड़ी पैरों के निशान ही दिखाइये दे रहे थे , यह देख वह बहुत दुखी हो जाता है कि भगवान ने अपना वचन नही निभाया और उसे तब अकेला छोड़ दिया जब उनकी सबसे अधिक ज़रुरत थी।

मरने के बाद वह भगवान् के समक्ष पहुंचा और रूठते हुए बोला , ” प्रभु ! आपने तो कहा था कि आप हर समय मेरे साथ रहेंगे , पर मुसीबत के समय मुझे दो की जगह एक जोड़ी ही पैर दिखाई दिए, बताइये आपने उस समय मेरा साथ क्यों छोड़ दिया ?”

भगवान् मुस्कुराये और बोले , ” पुत्र ! जब तुम घोर विपत्ति से गुजर रहे थे तब मेरा ह्रदय द्रवित हो उठा और मैंने तुम्हे अपनी गोद में उठा लिया , इसलिए उस समय तुम्हे सिर्फ मेरे पैरों के चिन्ह दिखायी पड़ रहे थे। “

दोस्तों, बहुत बार हमारे जीवन में बुरा वक़्त आता है , कई बार लगता है कि हमारे साथ बहुत बुरा होने वाला है , पर जब बाद में हम पीछे मुड़ कर देखते हैं तो पाते हैं कि हमने जितना सोचा था उतना बुरा नहीं हुआ ,क्योंकि शायद यही वो समय होता है जब ईश्वर हम पर सबसे ज्यादा कृपा करता है। अनजाने में हम सोचते हैं को वो हमारा साथ नहीं दे रहा पर हकीकत में वो हमें अपनी गोद में उठाये होता है।


Prakash Dwivedi

bindujain
10-05-2014, 08:05 AM
तीसरी भूल, जब उस युवती ने कह दिया 'कपड़ों को क्यों देखते हो'
सुधांशु जी महाराज / अध्यात्मिक गुरु

मानव जीवन घटनाओं की एक अद्भुत घाटी है। जीवनयात्रा में अनेक घटनाएं घटती हैं, घटनाओं का प्रवाह इंसान को जगाने के लिए आता है, झकझोरने के लिए आता है। जीवन में घटने वाली छोटी-छोटी घटनाएं इतनी प्रेरणादायक होती हैं कि व्यक्ति का जीवन बदल जाता है। संवेदनशील व्यक्ति बहुत बार स्वयं से ही लज्जित हो जाता है और अपने आप से लज्जित होना अच्छी बात होती है।
एक यहूदी फकीर हुसैन साहिब हुए हैं-उन्होंने कहा मैं अपनी जिन्दगी में तीन बार बड़ा शर्मिन्दा हुआ। वह कहते हैं मैंने एक बार एक व्यक्ति को देखा जो शराब पिए हुआ था, उसको कीचड़ में फिसलते हुए, गिरते हुए संभलने की कोशिश करते मैंने देखा, यह देखते ही मैंने उसे आवाज दी, सम्भल भाई! नशे में हो। अगर गिर जाओगे तो उठना मुश्किल हो जाएगा।

इतना सुनते ही वह शराबी व्यक्ति मेरी तरफ देखकर बोला, मैं तो नशे में पागल हूं, कीचड़ में गिर जाउंगा तो कपड़ों में लगा हुआ कीचड़ तो धोकर ठीक हो जाएगा, लेकिन तुम तो धर्मिक इंसान हो, ईश्वर के नेक बन्दे हो, तुम न गिर जाना, अगर तुम गिर गए तो तुम्हारा मन स्वच्छ होने वाला नहीं। क्योंकि मन पर लगा कीचड़ कभी साफ नहीं हो पाएगा। हुसैन साहिब कहते हैं कि उस समय मुझे बहुत शर्मिन्दगी हुई कि एक शराब के नशे में बेहोश आदमी जो कह गया, वह होश वाला भी नहीं कह सकता।

फकीर आगे कहते हैं कि दूसरी बार मैं एक बच्चे को देखकर लज्जित हुआ। वह बच्चा हाथ में जलता हुआ दीपक लेकर आ रहा था, मैंने उससे पूछा कि इस दीये में प्रकाश कहां से आया है? मेरे इतना कहते ही एक हवा का तेज झोंका आया और दीपक बुझ गया। बच्चे ने उत्तर दिया कि यह बाद में पूछना कि प्रकाश कहां से आया, पहले आप यह बताओ कि प्रकाश गया कहां? तो फिर मैं आपको बताऊं कि प्रकाश आया कहां से था। बच्चे का उत्तर सुनकर हुसैन साहिब लज्जित होकर सोचेन लगे कि कहां से आता है प्रकाश और कहां समाहित हो जाता है?

हुसैन कहते हैं कि जीवन में मुझे तीसरी बार शर्मिन्दगी उस समय हुई जब एक युवति ने मेरे पास आकर कहा कि मेरा पति निर्मोही है, घर-गृहस्थी पर बिल्कुल ध्यान नहीं देता। मैंने उस महिला को डांटते हुए कहा, पहले अपना आंचल तो ठीक कर, बाद में पति के लिए शिकायत करना। यह सुनकर वह महिला बोली, मैं तो अपने पति के लिए पागल हूं, मुझे तो अपना होश नहीं, लेकिन तू तो अपने मालिक के प्यार में पागल है, तब भी तुझे दूसरों के कपड़ों का ही ध्यान आता है।

अगर तू सच में मालिक का प्यारा है तो देख सारी दुनिया में सर्वत्र तुझे प्यार करने वाला तेरा परमात्मा तेरे सामने है, तू उसका ध्यान कर। हुसैन साहिब कहते हैं कि मैं उसकी इस बात से बहुत शर्मिन्दा हुआ

bindujain
14-05-2014, 01:58 PM
अमीर कौन?

महिला पिकनिक के दौरान 3 स्टार होटल में ठहरी थी. उसके साथ उसका एक छोटा सा बच्चा था. बच्चा भूख से रोये जा रहा था.
सर एक कप दूध मिलेगा क्या...?
8 माह के बच्चे की माँ ने 3 स्टार होटल मैनेजर से पूछा...
मैनेजर "हाँ, 100 रू. में मिलेगा"...
महिला ने कहा - "ठीक है दे दो"
वह सुबह जब गाड़ी में जा रहे थे ...
बच्चे को फिर भूख लगी...., बच्चा रोए जा रहा था ..
गाडी को टूटी झोपड़ी वाली पुरानी सी चाय की दुकान पर रोका…
बच्चे को दूध पिला कर शांत किया...
दूध के पैसे पूछने पर बूढा दुकान मालिक बोला...
"बेटी! मैं इस बच्चे के दूध के पैसे नहीं ले सकता " यदि रास्ते के लिए चाहिए तो लेती जाओ...
"अब बच्चे की माँ के दिमाग मे एक सवाल बार बार घूम रहा था कि अमीर कौन 3 स्टार होटल वाला या टूटी झोपड़ी वाला...?

bindujain
14-05-2014, 02:00 PM
अपना अपना स्थान

एक राजा था. वह दिन- रात यही देखता रहता कि कौन वस्तु उपयोगी है और कौन अनुपयोगी. एक बार उसने यह फरमान दिया कि पता करो कौन -कौन से प्राणी, वनस्पति, जीव -जंतु उपयोगी हैं और कौन अनुपयोगी. राजा के मंत्रियों -दरवारियों ने इसके लिए समिति बनाई जिसे एक महीने बाद अपनी रिपोर्ट देनी थी. एक महीने बाद समिति के प्रतिनिधि राजा से मिलने आये. उन्होंने राजा को बताया कि दो कीड़े- मकड़ी और मक्खी बेकार हैं. ये किसी भी तरह से उपयोगी नहीं हैं. राजा ने सोचा- क्यों न हम इन दोनों कीड़ों को बिलकुल नष्ट करवा दें. तभी एक सैनिक दौड़ता हुआ आया और बोला - महाराज! हमारे ऊपर पडोसी राजा ने आक्रमण कर दिया है. दोनों में युद्ध हुआ और राजा हार गया और जंगल की और जान बचाने के लिए भागा. राजा थक गया था इसलिए एक पेड़ के नीचे सो गया.
तभी एक जंगली मक्खी ने उसकी नाक पर डंक मार दिया जिससे राजा की नींद खुल गई. राजा ने सोचा इस तरह खुले में सोना सुरक्षित नहीं और एक गुफा में छिप गया. उस गुफा में बहुत मकड़ी रहती थी. मकड़ियों ने गुफा के द्वार पर जाल बन दिया. जब राजा को खोजते हुए सैनिक आये और उस गुफा की तरफ़ा देखा तो बोले - इसमें नहीं गया होगा. अगर गया होता तो मकड़ी का जाला नष्ट हो गया होता. गुफा में छिपा राजा यह सब सुन रहा था. सैनिक चले गए. राजा ने सोचा- प्रकृति में सभी जीव -जंतुओं का अपना अपना स्थान होता है. सबकी अपनी उपयोगिता होती है. अब राजा की आँखें खुल चुकी थी.

bindujain
14-05-2014, 02:02 PM
बंधन

कमरुद्दीन और उसका मालिक खैरातीचंद 50 ऊटों का काफिला लिए
मरुभूमि में बढ़ता चला जा रहा था. सूर्य देव को अस्ताचल में छिपता देख सेठ ने कमरुद्दीन को आवाज लगाई - देख सामने सराय है आज यहीं रुक जाते हैं. कमरुद्दीन ने उनचास ऊंटों को जमीन में खूंटियां गाड़कर रस्सियों से बांध दिया. एक ऊंट के लिए रस्सी थी ही नहीं, न ही खूंटा था. काफी खोजा लेकिन इंतजाम न हो सका. उस सराय के बुजुर्ग मालिक ने एक सलाह दी - सुनो तुम ऐसा करो जिससे लगे कि तुम खूंटी गाड़ रहे हो और ऊंट को रस्सी से बांध रहे हो. इसका अहसास ऊंट को करवाओ.
यह सुनकर कमरुद्दीन और उसका मालिक खैरातीचंद हैरानी में पड़ गया, पर दूसरा कोई उपाय था, इसलिए कमरुद्दीन ने वैसा ही किया.
झूठीमुठी खूंटी गाड़ी गई, ताकि उसकी आवाज ऊंट सुन सके. झूठ मुठ की रस्सी बांधी गयी ताकि ऊंट को लगे कि उसे बांधा जा चुका है. ऊंट ने आवाज सुनीं और समझ लिया कि वह बंध चुका है. वह भी अन्य ऊँटों कि तरह बैठ गया और जुगाली करने लगा.
सुबह उनचास ऊंटों की खूटियां उखाड़ीं गयी और रस्सियां खोलीं गयी. सारे ऊंट उठ गए और चलने लगे. लेकिन एक ऊंट बैठा ही रहा. कमरुद्दीन को आश्चर्य हुआ - अरे, इसे तो बाँधा भी नहीं है, फिर भी यह उठ क्यों नहीं रहा है?
फिर उस सराय के बुजुर्ग मालिक ने समझाया - तुम यह देख रहे हो कि ऊंट बंधा नहीं है लेकिन ऊंट स्वयं को बंधन में महसूस कर रहा है. जैसे रात को तुमने झूठ मुठ का खूंटी गाड़ने और बाँधने का एहसास कराया वैसे ही अभी उसे उखाड़ने और रस्सी खोलने का एहसास कराओ तभी यह ऊंट उठेगा.
कमरुद्दीन ने खूंटी उखाड़ने और रस्सी खोलने का नाटक किया और ऊंट उठकर चल पड़ा.

यही हम सबके साथ भी होता है हम भी ऐसी ही काल्पनिक खूंटियों और रस्सियों के बंधन में जकड़े होते हैं. और वह है हमारा नजरिया या गलत दृष्टिकोण, गलत सोच, नकारत्मक विचार. किसी भी काम के प्रति जैसा हमारा दृष्टिकोण होगा, हमारी सफलता भी उसी पर निर्भर करेगी. इसलिए हम चिंतन करें और अपने विचार या दृष्टिकोण पर अवश्य विचार करें.

Dr.Shree Vijay
14-05-2014, 05:13 PM
ज्ञानवर्धक लघुकथाओं का भंडार.........

rafik
15-05-2014, 11:13 AM
एक आदमी जंगल से गुजर रहा था


एक आदमी जंगल से गुजर रहा था । उसे
चार स्त्रियां मिली ।
उसने पहली से पूछा - बहन तुम्हारा नाम क्या हैं ?
उसने कहा -: "बुद्धि "!
तुम कहां रहती हो?
... उसने कहा-: मनुष्य के दिमाग में।
दूसरी स्त्री से पूछा - बहन तुम्हारा नाम क्या हैं ?
" लज्जा "।
तुम कहां रहती हो ?
उसने कहा-: आंख में ।
तीसरी से पूछा - तुम्हारा क्या नाम हैं ?
"हिम्मत"
कहां रहती हो ?
उसने कहा-: दिल में ।
चौथी से पूछा - तुम्हारा नाम क्या हैं ?
"तंदुरूस्ती"
कहां रहती हो ?
उसने कहा-: पेट में।
वह आदमी अब थोडा आगे बढा तों फिर उसे चार पुरूष मिले।
उसने पहले पुरूष से पूछा - तुम्हारा नाम क्या हैं ?
" क्रोध "
कहां रहतें हो ?
दिमाग में,
दिमाग में तो बुद्धि रहती हैं,
तुम कैसे रहते हो?
उसने कहा-: जब मैं वहां रहता हुं तो बुद्धि वहां से विदा हो जाती हैं।
दूसरे पुरूष से पूछा - तुम्हारा नाम क्या हैं?
उसने कहां -" लोभ"।
कहां रहते हो?
आंख में।
आंख में तो लज्जा रहती हैं तुम कैसे रहते हो।
उसने कहा-: मेरे रहते लज्जा का कोई ठिकाना नहीं है
मै कुछ भी करवा सकता हूँ ..चोरी ,डकैती, हत्या आदि
तीसरें से पूछा - तुम्हारा नाम क्या हैं ?
जबाब मिला "भय"।
कहां रहते हो?
दिल में तो हिम्मत रहती हैं तुम कैसे रहते हो?
उसने कहा-: जब मैं आता हूं तो हिम्मत भाग जाती है ..!!
चौथे से पूछा - तुम्हारा नाम क्या हैं ?
उसने कहा - "रोग"।
कहां रहतें हो?
पेट में।
पेट में तो तंदरूस्ती रहती हैं,
उसने कहा-: तुम जैसे सहनशील व्यक्ति जब अपना संतुलन खो देते हो
तब मैं आता हूँ और तन्दरुस्ती को भगा कर तुम्हारे शरीर में राज
करता हूँ ...!!

NAND KISHOR GUPTA (https://plus.google.com/111360744366130413193)

rafik
20-05-2014, 11:15 AM
https://lh3.ggpht.com/MpdW4kHe8wngts2VeEGhyUQqCSKlDHapr591QBvOv11FOGzhGr i8sNtQ89VcRnbLioE=h900

Arvind Shah
20-05-2014, 12:42 PM
बंधन

कमरुद्दीन और उसका मालिक खैरातीचंद 50 ऊटों का काफिला लिए
मरुभूमि में बढ़ता चला जा रहा था. सूर्य देव को अस्ताचल में छिपता देख सेठ ने कमरुद्दीन को आवाज लगाई - देख सामने सराय है आज यहीं रुक जाते हैं. कमरुद्दीन ने उनचास ऊंटों को जमीन में खूंटियां गाड़कर रस्सियों से बांध दिया. एक ऊंट के लिए रस्सी थी ही नहीं, न ही खूंटा था. काफी खोजा लेकिन इंतजाम न हो सका. उस सराय के बुजुर्ग मालिक ने एक सलाह दी - सुनो तुम ऐसा करो जिससे लगे कि तुम खूंटी गाड़ रहे हो और ऊंट को रस्सी से बांध रहे हो. इसका अहसास ऊंट को करवाओ.
यह सुनकर कमरुद्दीन और उसका मालिक खैरातीचंद हैरानी में पड़ गया, पर दूसरा कोई उपाय था, इसलिए कमरुद्दीन ने वैसा ही किया.
झूठीमुठी खूंटी गाड़ी गई, ताकि उसकी आवाज ऊंट सुन सके. झूठ मुठ की रस्सी बांधी गयी ताकि ऊंट को लगे कि उसे बांधा जा चुका है. ऊंट ने आवाज सुनीं और समझ लिया कि वह बंध चुका है. वह भी अन्य ऊँटों कि तरह बैठ गया और जुगाली करने लगा.
सुबह उनचास ऊंटों की खूटियां उखाड़ीं गयी और रस्सियां खोलीं गयी. सारे ऊंट उठ गए और चलने लगे. लेकिन एक ऊंट बैठा ही रहा. कमरुद्दीन को आश्चर्य हुआ - अरे, इसे तो बाँधा भी नहीं है, फिर भी यह उठ क्यों नहीं रहा है?
फिर उस सराय के बुजुर्ग मालिक ने समझाया - तुम यह देख रहे हो कि ऊंट बंधा नहीं है लेकिन ऊंट स्वयं को बंधन में महसूस कर रहा है. जैसे रात को तुमने झूठ मुठ का खूंटी गाड़ने और बाँधने का एहसास कराया वैसे ही अभी उसे उखाड़ने और रस्सी खोलने का एहसास कराओ तभी यह ऊंट उठेगा.
कमरुद्दीन ने खूंटी उखाड़ने और रस्सी खोलने का नाटक किया और ऊंट उठकर चल पड़ा.

यही हम सबके साथ भी होता है हम भी ऐसी ही काल्पनिक खूंटियों और रस्सियों के बंधन में जकड़े होते हैं. और वह है हमारा नजरिया या गलत दृष्टिकोण, गलत सोच, नकारत्मक विचार. किसी भी काम के प्रति जैसा हमारा दृष्टिकोण होगा, हमारी सफलता भी उसी पर निर्भर करेगी. इसलिए हम चिंतन करें और अपने विचार या दृष्टिकोण पर अवश्य विचार करें.



बिल्कुल सही कहा मित्र !
...और कहा भी है—
1. जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि ।
2. सावन के अन्धे को हरा ही हरा नजर आता है ।
3. या दृषि भावना भवती ता दृषि कार्याणां सिद्धयती ।
4. मन के हारे हार है मन के जिते जित ।
5. कौन कहता है कि आंसमा में सुराख नहीं हो सकता ? तबियत से एक पत्थर तो उछालो यारों !

ये और इसी तरह के वक्तव्य हमारे दृष्टिकोण से फलित होने वाले कार्यो को दर्शाते है

Arvind Shah
20-05-2014, 12:46 PM
एक आदमी जंगल से गुजर रहा था


एक आदमी जंगल से गुजर रहा था । उसे
चार स्त्रियां मिली ।
उसने पहली से पूछा - बहन तुम्हारा नाम क्या हैं ?
उसने कहा -: "बुद्धि "!
तुम कहां रहती हो?
... उसने कहा-: मनुष्य के दिमाग में।
दूसरी स्त्री से पूछा - बहन तुम्हारा नाम क्या हैं ?
" लज्जा "।
तुम कहां रहती हो ?
उसने कहा-: आंख में ।
तीसरी से पूछा - तुम्हारा क्या नाम हैं ?
"हिम्मत"
कहां रहती हो ?
उसने कहा-: दिल में ।
चौथी से पूछा - तुम्हारा नाम क्या हैं ?
"तंदुरूस्ती"
कहां रहती हो ?
उसने कहा-: पेट में।
वह आदमी अब थोडा आगे बढा तों फिर उसे चार पुरूष मिले।
उसने पहले पुरूष से पूछा - तुम्हारा नाम क्या हैं ?
" क्रोध "
कहां रहतें हो ?
दिमाग में,
दिमाग में तो बुद्धि रहती हैं,
तुम कैसे रहते हो?
उसने कहा-: जब मैं वहां रहता हुं तो बुद्धि वहां से विदा हो जाती हैं।
दूसरे पुरूष से पूछा - तुम्हारा नाम क्या हैं?
उसने कहां -" लोभ"।
कहां रहते हो?
आंख में।
आंख में तो लज्जा रहती हैं तुम कैसे रहते हो।
उसने कहा-: मेरे रहते लज्जा का कोई ठिकाना नहीं है
मै कुछ भी करवा सकता हूँ ..चोरी ,डकैती, हत्या आदि
तीसरें से पूछा - तुम्हारा नाम क्या हैं ?
जबाब मिला "भय"।
कहां रहते हो?
दिल में तो हिम्मत रहती हैं तुम कैसे रहते हो?
उसने कहा-: जब मैं आता हूं तो हिम्मत भाग जाती है ..!!
चौथे से पूछा - तुम्हारा नाम क्या हैं ?
उसने कहा - "रोग"।
कहां रहतें हो?
पेट में।
पेट में तो तंदरूस्ती रहती हैं,
उसने कहा-: तुम जैसे सहनशील व्यक्ति जब अपना संतुलन खो देते हो
तब मैं आता हूँ और तन्दरुस्ती को भगा कर तुम्हारे शरीर में राज
करता हूँ ...!!

nand kishor gupta (https://plus.google.com/111360744366130413193)

बहुत ही उत्तम और शिक्षाप्रद कथा ।

rafik
20-05-2014, 03:56 PM
17 हाथी (http://www.sahityakunj.net/LEKHAK/V/VijayVikkrant/17_haathi_Lok_katha.htm)




सेठ घनश्याम दास बहुत बड़ी हवेली में रहता था। उसके तीन लड़के थे। पैसा, नौकर, चाकर, घोड़ा गाड़ी तो थी ही, मगर उसे अपने ख़ज़ाने में सबसे अधिक प्यार अपने 17 हाथियों से था। हाथियों की देखरेख में कोई कसर न रह जाए, इस बात का उसे बहुत ख़्याल था। उसे सदा यही फ़िक्र रहता था कि उसके मरने के बाद उसके हाथियों का क्या होगा। समय ऐसे ही बीतता चला गया और सेठ को महसूस हुआ कि उसका अंतिम समय अब अधिक दूर नहीं है।
उसने अपने तीनों बेटों को अपने पास बुलाया और कहा कि मेरा समय आ गया है। मेरे मरने के बाद मेरी सारी जायदाद को मेरी वसीयत के हिसाब से आपस में बाँट लेना। एक बात का ख़ास ख़्याल रखना कि मेरे हाथियों को किसी भी किस्म की कोई भी हानि न हो।
कुछ दिन बाद सेठ स्वर्ग सिधार गया। तीनों लड़कों ने जायदाद का बंटवारा पिता की इच्छा अनुसार किया, मगर हाथियों को लेकर सब परेशान हो गए। कारण था कि सेठ ने हाथियों के बंटवारे में पहले लड़के को आधा, दूसरे को एक तिहाई और तीसरे को नौवाँ हिस्सा दिया था। 17 हाथियों को इस तरह बाँटना एकदम असम्भव लगा। हताश होकर तीनों लड़के 17 हाथियों को लेकर अपने बाग में चले गए और सोचने लगे कि इस विकट समस्या का कैसे समाधान हो।
तभी तीनों ने देखा कि एक साधू अपने हाथी पर सवार, उनकी ही ओर आ रहा है। साधू के पास आने पर लड़कों ने प्रणाम किया और अपनी सारी कहानी सुनाई। साधू ने कहा कि अरे इस में परेशान होने की क्या बात है। लो मैं तुम्हें अपना हाथी दे देता हूँ। सुनकर तीनों लड़के बहुत खुश हुए। अब सामने 18 हाथी खड़े थे। साधू ने पहले लड़के को बुलाया और कहा कि तुम अपने पिता की इच्छा अनुसार आधे यानि नौ हाथी ले जाओ। दूसरे लड़के को बुलाकर उसने एक तिहाई यानि छ: हाथी दे दिए। छोटे लड़के को उसने बुलाकर कहा कि तुम भी अपना नौंवाँ हिस्सा यानि दो हाथी ले जाओ। नौ जमा छ: जमा दो मिलाकर 17 हाथी हो गए और एक हाथी फिर भी बचा गया। लड़कों की समझ में यह गणित बिलकुल नहीं आया और तीनों साधू महाराज की ओर देखते ही रहे। उन सब को इस हालत में देखकर साधू महाराज मुस्काए और आशीर्वाद देकर तीनों से विदा ले, अपने हाथी पर जिस दिशा से आए थे, उसी दिशा में चले गए। इधर यह तीनों सोच रहे थे कि साधू महाराज ने अपना हाथी देकर कितनी सरलता और भोलेपन से एक जटिल समस्या को सुलझा दिया।


विजय विक्रान्त (http://www.sahityakunj.net/LEKHAK/V/VijayVikkrant/VijayVikkrant_main.htm)

bindujain
20-05-2014, 04:34 PM
कुत्ता [लघुकथा] - आशीष रस्तौगी

शाम का समय था। ठेकेदार साहब अपने घर पर बैठकर चाय का मजा ले रहे थे। तभी गेट पर घंटी बजी। दुबला-पतला एक व्यक्ति गेट पर खड़ा था। गेट खुला हुआ ही था।

“साहब, मुझे गुप्ताजी ने आपके पास भेजा है।” पूछने पर उसने बताया।

ठेकेदार ने उसे अन्दर बुला लिया। अन्दर पहुँचकर वह ठेकेदार से कुछ दूरी बनाते हुए जमीन पर बैठ गया।

“घरेलू कामकाज के लिए हम लोगों को एक नौकर की तलाश है। घर में सिर्फ तीन प्राणी हैं—मैं, मेरी पत्नी और विदेशी नस्ल का हमारा रूमी।”

जमीन पर बैठे आदमी की समझ में वह तीसरा प्राणी एकाएक ही नहीं आया कि कौन है। वह ठेकेदार से उसके बारे में पूछने ही वाला था कि सुती-सी कमर वाला एक कुत्ता वहाँ आया और उसे घूरता हुआ ठेकेदार के समीप सोफे पर बैठ गया।


“साहब, मेरे को घर का सारा काम आता है।” सारी बात समझकर व्यक्ति बोला।

“नाम क्या है तुम्हारा?” ठेकेदार ने उससे पूछा।

“जी, गरीबू।” वह बोला।

“तुम्हारे परिवार में कितने लोग हैं?”

“पाँच लोग हैं साहब—मैं, मेरी बीवी और तीन बच्चे…।”

ये बातें चल ही रही थीं कि गेट की घंटी पुन: बजी। देखा—ठेकेदार का एक अन्य मित्र सोहन सिंह घर में घुस रहा था। वह आया और उसी सोफे पर बैठकर कुत्ते से खेलने लगा।

“घर और बाजार का सारा काम करना होगा।” ठेकेदार गरीबू से बोला,“पगार तीन हजार रुपए महीना यानी कि सौ रुपए रोज। जिस दिन भी छुट्टी करोगे—सौ रुपया काट लिया जाएगा।”

“जी।” गरीबू ने गरदन हिलाई।

“आने-जाने वालों का भी पूरा ध्यान रखना होगा—मंजूर है?” ठेकेदार ने पकाया।

“जी।” उसने पुन: गरदन हिलाई।

“यार ऐसा ही एक पीस मैं भी घर में रखना चाहता हूँ।” बातचीत के बीच में ही सोहन सिंह ठेकेदार से बोला,“माहवार कितना खर्चा आ जाता होगा?”

“ठीक-ठाक चलता रहे तो यही करीब दस हजार…।” ठेकेदार बोला।

गरीबू की हसरत भरी नजरें ठेकेदार का जवाब सुनते ही रूमी पर जा टिकीं।

bindujain
20-05-2014, 04:47 PM
दाव पेंच [लघुकथा] - मुकेश पोपली


‘यह बहुत गलत बात है कि इतने सालों तक कल्*पतरु जी को मान्*यता ही नहीं दी गई, वह तो ईश्*वर के घर के वो अवतार हैं जो पृथ्*वी पर केवल कविता रचने के लिए ही आए हैं, मगर हम सबकी आंखों पर मोह-माया का पर्दा इस तरह पड़ा हुआ था कि हम अपने बीच में उपस्थित इस अवतार द्वारा रची गई लीला को पहचान ही नहीं पाए। आज इस समारोह में इनकी कविता के सम्*मान के यह क्षण इतिहास रच रहे हैं और आज का दिन साहित्*यकारों के लिए स्*वर्णिम दिन कहलाया जाएगा, मेरी ओर से इन्*हें बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं।’ तालियों की गड़गड़ाहट के बीच मुख्*य अतिथि मेहता जी द्वारा कल्*पतरु जी को श्रीफल और एक लाख रुपए का चैक शॉल ओढ़ाकर प्रदान किया गया ।

कल तक कल्*पतरु के घोर विरोधी और बात-बात पर उनका अपमान करने वाले मेहता जी द्वारा तारीफों के पुल बांधे जाने से कल्*पतरु के अन्*य विरोधियों के साथ-साथ उनकी खास मित्र-मंडली भी हैरान थी ।

‘प्*यारे साथियो, पुरस्*कार कब्*जे में बर लेने के बाद इस मेहता को मैंने दस हजार रुपए में खरीद लिया और मनचाहा भाषण उसके सामने रख दिया,’ कल्*पतरु जी बंद कमरे में अपने खास दोस्*तों की जिज्ञासा शांत कर रहे थे, ‘इसके अतिरिक्*त हमारी समिति के सभी लेखकों की किताबों की खरीद के लिए भी उससे अनुशंसा प्राप्*त कर ली है, जिससे पिछले तीन वर्षों में छपी हम सबकी किताबें खरीद ली जाएंगी और प्रकाशक द्वारा रॉयल्*टी के तौर पर हम लोग तीस प्रतिशत कमीशन पाने के अधिकारी होंगे ।’

‘वाह-वाह’, ‘बहुत बढि़या’, जैसे जुमलों के बीच पुरस्*कार हथियाने और मेहता को खरीदे जाने की खुशी में जाम आपस में टकराने लगे थे ।’
**********

rafik
21-05-2014, 03:32 PM
http://1.bp.blogspot.com/-mbhseDFF_-k/T7RrQpzIoyI/AAAAAAAACp0/D0sHuGgVSz0/s1600/Copy+of+IMAGE0115.jpg

bindujain
11-07-2014, 06:52 AM
17 हाथी (http://www.sahityakunj.net/LEKHAK/V/VijayVikkrant/17_haathi_Lok_katha.htm)
.......
इधर यह तीनों सोच रहे थे कि साधू महाराज ने अपना हाथी देकर कितनी सरलता और भोलेपन से एक जटिल समस्या को सुलझा दिया।
**
गरीब मजदूर के जूतों में सिक्के और कृतज्ञता के आँसू

रोचक तथा शिक्षाप्रद लघुकथाओं को पाठकों के साथ शेयर करने के लिये रफीक जी और बिंदु जी का हार्दिक धन्यवाद.

rafik
11-07-2014, 02:53 PM
:bravo::hello::bravo::hello::bravo:

bindujain
14-07-2014, 05:40 PM
अदभुत कथा- ईमानदारी
अदभुत कथा-

लिखने वाले व्यक्ति को तहे दिल से नमन.......कहानी कुछ यूँ है--------

.................................................. .......................................
इस साल मेरा सात वर्षीय बेटा दूसरी कक्षा मैं प्रवेश पा गया ....क्लास मैं हमेशा से अव्वल आता रहा है !

पिछले दिनों तनख्वाह मिली तो मैं उसे नयी स्कूल ड्रेस और जूते दिलवाने के लिए बाज़ार ले गया !

बेटे ने जूते लेने से ये कह कर मना कर दिया की पुराने जूतों को बस थोड़ी-सी मरम्मत की जरुरत है वो अभी इस साल काम दे सकते हैं!

अपने जूतों की बजाये उसने मुझे अपने दादा की कमजोर हो चुकी नज़र के लिए नया चश्मा बनवाने को कहा !

मैंने सोचा बेटा अपने दादा से शायद बहुत प्यार करता है इसलिए अपने जूतों की बजाय उनके चश्मे को ज्यादा जरूरी समझ रहा है !

खैर मैंने कुछ कहना जरुरी नहीं समझा और उसे लेकर ड्रेस की दुकान पर पहुंचा.....दुकानदार ने बेटे के साइज़ की सफ़ेद शर्ट निकाली ...डाल कर देखने पर शर्ट एक दम फिट थी.....फिर भी बेटे ने थोड़ी लम्बी शर्ट दिखाने को कहा !!!!

मैंने बेटे से कहा :बेटा ये शर्ट तुम्हें बिल्कुल सही है तो फिर और लम्बी क्यों ?

बेटे ने कहा :पिता जी मुझे शर्ट निक्कर के अंदर ही डालनी होती है इसलिए थोड़ी लम्बी भी होगी तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा.......लेकिन यही शर्ट मुझे अगली क्लास में भी काम आ जाएगी ......पिछली वाली शर्ट भी अभी नयी जैसी ही पड़ी है लेकिन छोटी होने की वजह से मैं उसे पहन नहीं पा रहा !

मैं खामोश रहा !!

घर आते वक़्त मैंने बेटे से पूछा :तुम्हे ये सब बातें कौन सिखाता है बेटा ?

बेटे ने कहा: पिता जी मैं अक्सर देखता था कि कभी माँ अपनी साडी छोड़कर तो कभी आप अपने जूतों को छोडकर हमेशा मेरी किताबों और कपड़ो पैर पैसे खर्च कर दिया करते हैं !

गली- मोहल्ले में सब लोग कहते हैं के आप बहुत ईमानदार आदमी हैं और हमारे साथ वाले राजू के पापा को सब लोग चोर, कुत्ता, बे-ईमान, रिश्वतखोर और जाने क्या क्या कहते हैं, जबकि आप दोनों एक ही ऑफिस में काम करते हैं.....

जब सब लोग आपकी तारीफ करते हैं तो मुझे बड़ा अच्छा लगता है.....मम्मी और दादा जी भी आपकी तारीफ करते हैं !

पिता जी मैं चाहता हूँ कि मुझे कभी जीवन में नए कपडे, नए जूते मिले या न मिले
लेकिन कोई आपको चोर, बे-ईमान, रिश्वतखोर या कुत्ता न कहे !!!!!

मैं आपकी ताक़त बनना चाहता हूँ पिता जी, आपकी कमजोरी नहीं !

बेटे की बात सुनकर मैं निरुतर था! आज मुझे पहली बार मुझे मेरी ईमानदारी का इनाम मिला था !!

आज बहुत दिनों बाद आँखों में ख़ुशी, गर्व और सम्मान के आंसू थे

bindujain
14-07-2014, 05:44 PM
प्रभु, तूने सही समय पर मुझे थाम लिया


एक नगर मे रहने वाले एक पंडित जी की ख्यातिदूर दूर तक थी पास ही के गाँव मे स्थित मंदिर के पुजारी का आकस्मिक निधन होने की वजह से उन्हें वहाँ का पुजारी नियुक्त किया गया था...
एक बार वह अपने गंतव्य की और जानेके लिए बस मे चढ़े उन्होंने कंडक्टर को किराए के रुपये दिए और सीट पर जाकर बैठ गए
कंडक्टर ने जब किराया काटकर रुपये वापस दिए तो पंडित जी ने पाया की कंडक्टर ने दस रुपये ज्यादा उन्हें दे दिए है।
पंडित जी ने सोचा कि थोड़ी देर बाद कंडक्टर को रुपये वापस कर दूँगा
कुछ देर बाद मन मे विचार आया की बेवजह दस रुपये जैसी मामूली रकम को लेकर परेशान हो रहे है आखिर ये बस कंपनी वाले भी तो लाखों कमाते है बेहतर है इन रूपयो को भगवान की भेंट समझकर अपने पास ही रख लिया जाए वह इनका सदुपयोग ही करेंगे।
मन मे चल रहे विचार के बीच उनका गंतव्य स्थल आ गया बस मे उतरते ही उनके कदम अचानक ठिठके उन्होंने जेब मे हाथ डाला और दस का नोट निकाल कर कंडक्टर को देते हुए कहा भाई तुमने मुझे किराए के रुपये काटने के बाद भी दस रुपये ज्यादा दे दिए थे।
कंडक्टर मुस्कराते हुए बोला क्या आप ही गाँव के मंदिर के नए पुजारी हो?
पंडित जी को हामी भरने पर कंडक्टर बोला मेरे मन मे कई दिनों से आपके प्रवचन सुनने की इच्छा है आपको बस मे देखातो ख्याल आया कि चलो देखते है कि मैं ज्यादा पैसे लौटाऊँ तो आप क्या करते हो, अब मुझे पता चल गया की आपके प्रवचन जैसा ही आपका आचरण है जिससे सभी को सिख लेनी चाहिए।
ये बोलकर कंडक्टर ने गाड़ी आगे बड़ा दी

पंडित जी बस से उतरकर पसीना-पसीना थे उन्होंने दोनों हाथ जोड़कर भगवान से कहा है प्रभु तेरा लाख-लाख शुक्र है जो तूने मुझे बचा लिया मैने तो दस रुपये के लालच मे तेरी शिक्षाओ की बोली लगा दी थी पर तूने सही समय पर मुझे थाम लिया....!

rafik
15-07-2014, 03:06 PM
अदभुत कथा- ईमानदारी
अदभुत कथा-

लिखने वाले व्यक्ति को तहे दिल से नमन.......कहानी कुछ यूँ है--------

.................................................. .......................................
इस साल मेरा सात वर्षीय बेटा दूसरी कक्षा मैं प्रवेश पा गया ....क्लास मैं हमेशा से अव्वल आता रहा है !




माँ-बाप, बच्चो के पहले गुरू माने जाते, माँ-बाप जेसा आचरण करेगे बच्चे वैसा ही सिखगे
बहुत अच्छी कहानी प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद मित्र

rafik
15-07-2014, 03:11 PM
प्रभु, तूने सही समय पर मुझे थाम लिया


एक नगर मे रहने वाले एक पंडित जी की ख्यातिदूर दूर तक थी पास ही के गाँव मे स्थित मंदिर के पुजारी का आकस्मिक निधन होने की वजह से उन्हें वहाँ का पुजारी नियुक्त किया गया था...



बहुत ही अच्छी कहानी

:bravo::bravo::bravo::bravo::bravo:

rafik
16-07-2014, 03:36 PM
एक यात्री अपने घोड़े और कुत्ते के
साथ सड़क पर चल रहा था. जब वे एक
विशालकाय पेड़ के पास से गुज़र रहे थे
तब उनपर आसमान से
बिजली गिरी और वे तीनों तत्क्षण
मर गए. लेकिन उन तीनों को यह
प्रतीत नहीं हुआ कि वे अब जीवित
नहीं है और वे चलते ही रहे. कभी-
कभी मृत
प्राणियों को अपना शरीरभाव
छोड़ने में समय लग जाता है.
उनकी यात्रा बहुत लंबी थी.
आसमान में सूरज ज़ोरों से चमक
रहा था. वे पसीने से तरबतर और बेहद
प्यासे थे. वे पानी की तलाश करते
रहे. सड़क के मोड़ पर उन्हें एक भव्य
द्वार दिखाई
दिया जो पूरा संगमरमर
का बना हुआ था. द्वार से होते हुए वे
स्वर्ण मढ़ित एक अहाते में आ पहुंचे.
अहाते के बीचोंबीच एक फव्वारे से
आईने की तरह साफ़ पानी निकल
रहा था.
यात्री ने द्वार
की पहरेदारी करनेवाले से कहा:
“नमस्ते, यह सुन्दर जगह क्या है?
“यह स्वर्ग है”.
“कितना अच्छा हुआ कि हम चलते-
चलते स्वर्ग आ पहुंचे. हमें बहुत प्यास
लगी है.”
“तुम चाहे जितना पानी पी सकते
हो”.
“मेरा घोड़ा और कुत्ता भी प्यासे
हैं”.
“माफ़ करना लेकिन
यहाँ जानवरों को पानी पिलाना मना है”
यात्री को यह सुनकर बहुत
निराशा हुई. वह खुद बहुत
प्यासा था लेकिन
अकेला पानी नहीं पीना चाहता था.
उसने पहरेदार को धन्यवाद
दिया और अपनी राह चल पड़ा. आगे
और बहुत दूर तक चलने के बाद वे एक
बगीचे तक पहुंचे
जिसका दरवाज़ा जर्जर था और
भीतर जाने का रास्ता धूल से
पटा हुआ था.
भीतर पहुँचने पर उसने देखा कि एक पेड़
की छाँव में एक आदमी अपने सर
को टोपी से ढंककर सो रहा था.
“नमस्ते” – यात्री ने उस आदमी से
कहा – “मैं, मेरा घोड़ा और
कुत्ता बहुत प्यासे हैं.
क्या यहाँ पानी मिलेगा?”
उस आदमी ने एक ओर इशारा करके
कहा – “वहां चट्टानों के बीच
पानी का एक सोता है. जाओ
जाकर पानी पी लो.”
यात्री अपने घोड़े और कुत्ते के साथ
वहां पहुंचा और तीनों ने जी भर के
अपनी प्यास बुझाई. फिर
यात्री उस आदमी को धन्यवाद कहने
के लिए आ गया.
“यह कौन सी जगह है?”
“यह स्वर्ग है”.
“स्वर्ग? इसी रास्ते में पीछे हमें एक
संगमरमरी अहाता मिला, उसे
भी वहां का पहरेदार स्वर्ग
बता रहा था!”
“नहीं-नहीं, वह स्वर्ग नहीं है. वह नर्क
है”.
यात्री अब अपना आपा खो बैठा.
उसने कहा – “भगवान के लिए ये सब
कहना बंद करो! मुझे कुछ भी समझ में
नहीं आ रहा है कि यह सब क्या है!”
आदमी ने मुस्कुराते हुए कहा –
“नाराज़ न हो भाई, संगमरमरी स्वर्ग
वालों का तो हमपर बड़ा उपकार है.
वहां वे सभी लोग रुक जाते हैं
जो अपने भले के लिए अपने सबसे अच्छे
दोस्तों को भी छोड़ सकते हैं.”

rajnish manga
16-07-2014, 05:02 PM
:bravo:

दिल को छू लेने वाली लघु कथा प्रस्तुत करने के लिये धन्यवाद, रफ़ीक जी. वो लोग धन्य हैं जो मुसीबत पड़ने पर भी अपने प्रियजनों को नहीं छोड़ते.

rafik
18-07-2014, 04:58 PM
:bravo:

दिल को छू लेने वाली लघु कथा प्रस्तुत करने के लिये धन्यवाद, रफ़ीक जी. वो लोग धन्य हैं जो मुसीबत पड़ने पर भी अपने प्रियजनों को नहीं छोड़ते.






:thanks::thanks::thanks:

rafik
30-07-2014, 02:59 PM
बहुत समय पहले की बात है , किसी गाँव में
एक किसान रहता था .उसके पास बहुत सारे जानवर थे ,उन्ही में से एक गधा भी था .
एक दिन वह चरते चरते खेत में बने एक पुराने सूखे हुए कुएं के पास जा पहुचा और अचानक ही उसमे फिसल कर गिर गया .गिरते ही उसने जो...र -जोर से चिल्लाना शुरू किया -” ढेंचू- ढेंचू
….ढेंचू-ढेंचू ….” उसकी आवाज़ सुन कर खेत में काम कर रहे लोग कुएं के पास पहुचे, किसान
को भी बुलाया गया . किसान ने स्थिति का जायजा लिया ,उसे गधे पर दया तो आई लेकिन उसने
मन में सोचा कि इस बूढ़े गधे को बचाने से कोई लाभ नहीं है और इसमें मेहनत भी बहुत
लगेगी और साथ ही कुएं की भी कोई ज़रुरत नहीं है ,फिर उसने बाकी लोगों से कहा ,
“मुझे नहीं लगता कि हम किसी भी तरह इस गधे को बचा सकते हैं अतः आप सभी अपने-अपने काम पर लग जाइए, यहाँ समय गंवाने से कोई लाभ नहीं.”और ऐसा कह कर वह आगे बढ़ने
को ही था की एक मजदूर बोला, ” मालिक , इस गधे ने सालों तक आपकी सेवा की है ,
इसे इस तरह तड़प- तड़प के मरने देने से अच्छा होगा की हम उसे इसी कुएं में
दफना दें .” किसान ने भी सहमती जताते हुए उसकी हाँ में हाँ मिला दी. ” चलो हम सब मिल कर इस कुएं में मिटटी डालना शुरू करते हैं और गधे को यहीं दफना देते हैं”,किसान बोला.
गधा ये सब सुन रहा था और अब वह और भी डर गया , उसे लगा कि कहाँ उसके मालिक को उसे बचाना चाहिए तो उलटे वो लोग उसे दफनाने की योजना बना रहे हैं . यह सब सुन कर वह
भयभीत हो गया , पर उसने हिम्मत नहीं हारी और भगवान् को याद कर वहां से निकलने के बारे में
सोचने लगा …. अभी वह अपने विचारों में खोया ही था कि अचानक उसके ऊपर मिटटी की बारिश होने लगी, गधे ने मन ही मन सोचा कि भले कुछ हो जाए वह अपना प्रयास नहीं छोड़ेगा और आसानी से हार नहीं मानेगा। और फिर वह पूरी ताकत से उछाल मारने लगा . किसान ने भी औरों की तरह मिटटी से भरी एक बोरी कुएं में झोंक दी और उसमे झाँकने लगा , उसने देखा की जैसे ही मिटटी गधे के ऊपर पड़ती वो उसे अपने शरीर से झटकता और उछल कर उसके ऊपर चढ़ जाता . जब भी उसपे मिटटी डाली जाती वह यही करता ….झटकता और ऊपर चढ़ जाता …. झटकता और ऊपर चढ़ जाता …. किसान भी समझ चुका था कि अगर वह यूँ ही मिटटी डलवाता रहा तो गधे की जान बच सकती है . फिर क्या था वह मिटटी डलवाता गया और देखते- देखते गधा कुएं के मुहाने तक पहुँच गया, और अंत में कूद कर बाहर आ गया. मित्रों, हमारी ज़िन्दगी भी इसी तरह होती है ,
हम चाहे जितनी भी सावधानी बरतें कभी न कभी मुसीबत रुपी गड्ढे में गिर ही जाते हैं . पर गिरना प्रमुख नहीं है, प्रमुख है संभलना . बहुत से लोग बिना प्रयास किये ही हार मान लेते हैं , पर जो प्रयास करते हैं भगवान् भी किसी न किसी रूप में उनके लिए मदद भेज देता है

bindujain
02-08-2014, 09:55 PM
A Mother was reading a magazine and her cute little daughter every now and then distracted her. To keep her busy, she tore one page on which was printed the map of the world. She tore it into pieces and asked her to go to her room and put them together to make the map again.

She was sure her daughter would take a lot more time and probably whole of day to get it done. But the little one came back within minutes with perfect map.

When he asked how she could do it so quickly, she said, "Oh Mom, there is a man's face on the other side of the paper. I made the face perfect to get the map right." she ran outside to play leaving the mother surprised.�

Moral :

Perhaps there is always the other side to whatever you experience in this world. This story indirectly teaches a lesson. That is, whenever we come across a challenge or a puzzling situation, look at the other side...and will be surprised to see an easy way to tackle the problem or an acute difficulty.

rajnish manga
05-08-2014, 11:02 PM
हम चाहे जितनी भी सावधानी बरतें कभी न कभी मुसीबत रुपी गड्ढे में गिर ही जाते हैं . पर गिरना प्रमुख नहीं है, प्रमुख है संभलना . बहुत से लोग बिना प्रयास किये ही हार मान लेते हैं , पर जो प्रयास करते हैं भगवान् भी किसी न किसी रूप में उनके लिए मदद भेज देता है


moral :

perhaps there is always the other side to whatever you experience in this world. This story indirectly teaches a lesson. That is, whenever we come across a challenge or a puzzling situation, look at the other side...and will be surprised to see an easy way to tackle the problem or an acute difficulty.


रफ़ीक जी और बिंदु जी दोनों के द्वारा प्रस्तुत कहानियाँ अत्यंत रोचक हैं और बहुत प्रेरक व शिक्षाप्रद हैं. आप दोनों महानुभाव का हार्दिक धन्यवाद.

Dr.Shree Vijay
05-09-2014, 06:05 PM
http://3.bp.blogspot.com/-PfV79Ienu9w/UhOQn5-LjvI/AAAAAAAABx4/BfRIfBmVZC0/s530/Fabulous_story_about_kilethins.JPG

jai_bhardwaj
05-09-2014, 06:35 PM
आत्मचिंतन के लिए विवश कर देने वाली उत्तम कथाओं का उत्कृष्ट संग्रह। प्रस्तोताओं का हार्दिक अभिनन्दन है। आभार।

bindujain
05-09-2014, 09:29 PM
पागल - ख़्लील जिब्रान



आप मुझसे पूछते हैं कि मैं पागल कैसे हुआ? यह सब तरह हुआ, एक दिन मैं गहरी नींद से जागा तो देखा कि मेरे सभी मुखौटे चोरी हो गए थे, वे सभी सात मुखौटे, जिन्हें मैंने सात जीवन जीते हुए बड़े शौक से पहना था। मैं पहली बार बिना किसी मुखौटे के भीड़ भरी गलियों में चिल्लाता हुआ दौड़ पड़ा, ‘‘चोर! चोर! चोट्टे!!’’

आदमी, औरतें मुझे देखकर हँसने लगे और कुछ तो मारे डर के घरों में जा घुसे।

जब मैं भरे बाजार में पहुँचा तो एक युवक छत पर से चिल्लाया,‘‘पागल है!’’ मैंने उसकी ओर देखा तो सूर्य ने पहली बार मेरे नंगे चेहरे को चूमा और मेरी आत्मा सूर्य के प्रेम से अनुप्राणित हो उठी। अब मुझे अपने मुखौटों की कोई आवश्यकता नहीं रह गई थी। मैं स्तब्ध -सा चिल्ला पड़ा, ‘‘भला हो! मेरे मुखौटे चुराने वालों का भला हो!’’

इस तरह मैं पागल बन गया।

अपने इस पागलपन में मुझे आजादी और सुरक्षा दोनों ही महसूस हुई–अकेलेपन की आजादी और दूसरों द्वारा समझे जाने से सुरक्षा। क्योंकि जो लोग हमारी कमजोरियों को जान जाते हैं, वे हमारे भीतर किसी न किसी अंश को गुलाम बना लेते हैं।

bindujain
05-09-2014, 09:31 PM
प्राणी रक्षक
पवित्रा अग्रवाल

सपेरा रामू लुटा पिटा सा घर पहुँचा ।उसे देखते ही उसका बेटा चहका - "अरे बाबा आज तो नाग पंचमी हैं खूब कमाई हुई होगी ...आज तो पेट भर अच्छा खाना मिलेगा न ?'
सपेरा चुप रहा ।
"बाबा आप चुप क्यों हैं ? ...साँप की पिटारी भी आपके हाथ में नहीं है,क्या हुआ बाबा ?'
"आज का दिन बहुत खराब गया बेटा ।साँप की पिटारी प्राणी रक्षक समिति के सदस्यों ने छीन ली ।'
"क्यों बाबा ....वो उसका क्या करेंगे ?'
"वो सांपों को जंगल में ले जा कर छोड़ देंगे ।वो कह रहे थे हम अपने धंधे के लिये सांपों को कष्ट देते हैं, जो गलत है ।'
"उनकी यह बात तो गलत है बाबा।आपने उनसे कहा नहीं कि जानवरों पर इतनी दया आती है तो बकरीद पर कटने वाले उन लाखों निरीह बकरों को कटने से रोक कर दिखायें जिन्हें उस दिन काटा जाता है ।...सांप तो फिर भी काट कर आदमी की जान ले लेता है पर ये बकरे तो ..।'
"क्या कहता बेटा उन्हों ने कुछ बोलने ही नहीं दिया वो तो पुलिस बुलाने की धमकी दे रहे थे "

bindujain
05-09-2014, 09:40 PM
झापड़
पवित्रा अग्रवाल

मैके आयी रंजना का अपनी भाभी चंदा से किसी बात पर झगड़ा हो गया।दोनो ने एक दूसरे को खरी खोटी सुनाई । विधवा माँ ने दोनो को शान्त करने की कई बार कोशिश की किन्तु दोनो ही उलझती रहीं ।''
शाम को पति गिरीश के घर लौटने पर चंदा ने रो-रो कर उस से रंजना की शिकायत की।
गिरीश को बहुत गुस्सा आया -"अच्छा ,कहाँ है रंजना ...उसे यहाँ बुला कर ला ।''
- "पर वह तो वापस चली गई ।'
गुस्से में भुनभुनाता हुआ वह माँ के पास गया -"माँ तुम्हारे सामने, तुम्हारी बेटी ने चंदा को इतना उल्टा सीधा कहा... उस की इंसल्ट की और तुम चुपचाप देखती रहीं ?'
-" तो मैं क्या करती ?''
" भाभी से इस तरह बोलने की उस की हिम्मत कैसे हुई....तुमने उस को एक झापड़ क्यों नही मारा ?'
"चंदा ने भी उस से कुछ कम नही कहा...फिर बेटी को ही झापड़ क्यों मारती ?'
"घर में छोटे-बड़े का भी कुछ लिहाज करना चाहिए कि नहीं ? चंदा उसकी बड़ी भाभी है, कुछ कह भी दिया तो क्या लौट कर जवाब देना जरूरी था ?'
"चंदा उस से बड़ी थी पर मैं तो शायद इस घर में तुम सब से छोटी हूँ ... तभी चंदा की तरफ ले कर मुझ से इस तरह बोल रहा है और अक्सर बोलता है,तेरी इस बद्तमीजी के लिये तुझे झापड़ मारने को किस से कहूँ ?...''

-------

bindujain
05-09-2014, 09:41 PM
जन्नत

पवित्रा अग्रवाल


"सलीम भाई इतनी जल्दी में कहाँ जा रहे हो ?'
"साहब से छुट्टी लेने जा रहा हूँ।'
"कोई खास बात ?'
"हाँ अभी घर से फोन आया है,हमारी सास का इंतकाल हो गया है।'
"बीमार थीं ?'
"नहीं बीमार तो नहीं थीं,पेगनेन्ट थीं।बच्चा बच गया, सास की मौत हो गई।'
"तुम्हारी बीबी भी पेगनेन्ट है न ?'
"हाँ माँ-बेटी दोनो पेगनेन्ट थीं।'
"तुम्हारी बीबी के कितने बहन-भाई हैं ?'
"हमारी बीबी को मिला कर तेरह बहन भाई हैं ।हमारी बीबी सब से बड़ी है और अभी सब कुवाँरे हैं।..अल्ला जाने उन बच्चों का क्या होगा अब ।'
"मतलब ये चौदवाँ बच्चा पैदा हुआ है ?...इस जमाने में इतने साधन होते हुए भी ..
"हाँ मैडम,हमारे ससुर बहुत पुराने ख्यालात के हैं,पिछली दो जच्चगी में भी हमारी सास बहुत मुश्किल से बची थीं फिर भी उनको अक्ल नहीं आई,बोलते थे जच्चगी में मौत हुई तो सीधे जन्नत मिलेगी।'

---------

bindujain
05-09-2014, 09:45 PM
लघुकथा- ईमानदार



रोज शाम बगीचे में घूमने जाना मेरी आदत में शामिल था | फाटक के पास ही शर्माजी मिल गए |
वहां रुक कर कुछ देर उनसे बतियाने लगा | सावन का पहला सोमवार था | आज कुछ विशेष रौनक थी | कुछ एक गुब्बारे-कुल्फी वाले भी आ जुटे थे |
शर्माजी से जैरामजी कर आगे बढ़ने लगा तो पास में खड़े कुल्फी वाले ने कुरते की बाह पकड़ कर कहा : "बाबूजी पैसे" ?
मैं हतप्रभ: "कैसे पैसे" ?
उसने पास खड़े कुल्फी खाते एक बच्चे की तरफ़ इशारा कर के कहा : "आपका नाम ले कुल्फी ले गया है, पैसे तो आपको देने ही पड़ेंगे" |
मुझे गुस्सा आ गया बच्चे के पास गया और दो थप्पड़ जड़ दिए और कहा "मुफ्त की कुल्फी खाते शर्म नही आती" ?
वह बोला : "मुफ्त की कहाँ ? इसके बदले थप्पड़ खाने के लिए तो आपके पास खड़ा था वरना भाग ना जाता"?


--विनय के जोशी

rajnish manga
05-09-2014, 10:56 PM
प्राणी रक्षक
पवित्रा अग्रवाल

झापड़
पवित्रा अग्रवाल

जन्नत
पवित्रा अग्रवाल

लघुकथा- ईमानदार
--विनय के जोशी
......
और कहा "मुफ्त की कुल्फी खाते शर्म नही आती" ?
वह बोला : "मुफ्त की कहाँ ? इसके बदले थप्पड़ खाने के लिए तो आपके पास खड़ा था वरना भाग ना जाता"?



उपरोक्त कघु कथाएं रोचक भी है और शिक्षाप्रद भी. साथ ही मानव प्रकृति के बारे में बहुत कुछ कहने में सक्षम हैं.

rafik
31-10-2014, 02:18 PM
बोध कथा

एक बार एक महात्मा ने अपने शिष्यों से अनुरोध किया कि वे कल से प्रवचन में आते समय अपने साथ एक

थैली में बडे़ आलू साथ लेकर आयें, उन आलुओं पर उस व्यक्ति का नाम लिखा होना चाहिये जिनसे वे ईर्ष्या

करते हैं । जो व्यक्ति जितने व्यक्तियों से घृणा करता हो, वह उतने आलू लेकर आये । अगले दिन सभी लोग

आलू लेकर आये, किसी पास चार आलू थे, किसी के पास छः या आठ और प्रत्येक आलू पर उस व्यक्ति का नाम

लिखा था जिससे वे नफ़रत करते थे । अब महात्मा जी ने कहा कि, अगले सात दिनों तक ये आलू आप सदैव

अपने साथ रखें, जहाँ भी जायें, खाते-पीते, सोते-जागते, ये आलू आप सदैव अपने साथ रखें । शिष्यों को कुछ

समझ में नहीं आया कि महात्मा जी क्या चाहते हैं, लेकिन महात्मा के आदेश का पालन उन्होंने अक्षरशः किया

। दो-तीन दिनों के बाद ही शिष्यों ने आपस में एक दूसरे से शिकायत करना शुरू किया, जिनके आलू ज्यादा थे,


वे बडे कष्ट में थे । जैसे-तैसे उन्होंने सात दिन बिताये, और शिष्यों ने महात्मा की शरण ली । महात्मा ने कहा,

अब अपने-अपने आलू की थैलियाँ निकालकर रख दें, शिष्यों ने चैन की साँस ली । महात्माजी ने पूछा – विगत

सात दिनों का अनुभव कैसा रहा ? शिष्यों ने महात्मा से अपनी आपबीती सुनाई, अपने कष्टों का विवरण दिया,

आलुओं की बदबू से होने वाली परेशानी के बारे में बताया, सभी ने कहा कि बडा हल्का महसूस हो रहा है…

महात्मा ने कहा – यह अनुभव मैने आपको एक शिक्षा देने के लिये किया था… जब मात्र सात दिनों में ही

आपको ये आलू बोझ लगने लगे, तब सोचिये कि आप जिन व्यक्तियों से ईर्ष्या या नफ़रत करते हैं, उनका

कितना बोझ आपके मन पर होता होगा, और वह बोझ आप लोग तमाम जिन्दगी ढोते रहते हैं, सोचिये

कि आपके मन और दिमाग की इस ईर्ष्या के बोझ से क्या हालत होती होगी ? यह ईर्ष्या तुम्हारे मन पर

अनावश्यक बोझ डालती है, उनके कारण तुम्हारे मन में भी बदबू भर जाती है, ठीक उन आलुओं की तरह….

इसलिये अपने मन से इन भावनाओं को निकाल दो, यदि किसी से प्यार नहीं कर सकते तो कम से कम

नफ़रत मत करो, तभी तुम्हारा मन स्वच्छ, निर्मल और हल्का रहेगा, वरना जीवन भर इनको ढोते-ढोते

तुम्हारा मन भी बीमार हो जायेगा ।

vijaysr76
29-01-2016, 03:32 PM
मन की शांति
महात्मा बुद्ध एक शिष्य के साथ वन में कहीं जा रहे थे। काफी चलने से वे दोनों थक गए और दोपहर में एक पेड़ के नीचे आराम के लिए रुके। उन्हें प्यास भी लग रही थी। वहां पास ही एक पहाड़ी थी, जहां झरना भी था। शिष्य झरने के पास पानी लेने के लिए गया। जब शिष्य झरने तक पहुंचा तो उसने देखा कि अभी-अभी कुछ जानवर दौड़कर पानी से निकले हैं, जिनसे पानी गंदा हो गया है। झरने के पानी में कीचड़ और कचरा ऊपर आ गया है। पानी पीने लायक नहीं दिख रहा था।
गंदा पानी देखकर शिष्य पानी लिए बिना ही बुद्ध के पास वापस आ गया। शिष्य ने बुद्ध को पूरी बात बताई और कहा कि वह अब नदी से पानी लेकर आएगा। नदी वहां से काफी दूर थी, इसलिए बुद्ध ने कहा कि उसी झरने से पानी ले आओ।
शिष्य वापस झरने के पास गया तो उसने देखा कि पानी में अभी भी गंदगी है। वह वापस बुद्ध के पास लौट आया। महात्मा बुद्ध ने शिष्य को फिर से उसी झरने से पानी लाने के लिए कहा।
एक बार फिर शिष्य झरने के पास गया तो उसने देखा कि अब पानी एकदम शांत और साफ हो चुका है। शुद्ध पानी लेकर वह बुद्ध के पास लौट आया। महात्मा बुद्ध ने इस प्रसंग के जरिए शिष्य को समझाया कि जीवन की भाग-दौड़ से हमारा मन भी झरने के पानी की तरह अशांत हो जाता है, जिससे क्रोध, मानसिक तनाव बढ़ता है। यदि शांति चाहते हैं तो हमें भी कुछ देर मन को एकांत में छोड़ देना चाहिए यानी हर रोज ध्यान करना चाहिए। ध्यान करते समय किसी प्रकार के विचार और सुख-दुख का स्मरण न करें। जब रोज ध्यान करेंगे तो कुछ समय बाद हमें भी मन की शांति महसूस होने लगेगी।

vijaysr76
29-01-2016, 03:32 PM
सबसे बड़ा मूर्ख
बादशाह अकबर घुड़सवारी के इतने शौकीन थे कि पसंद आने पर घोड़े का मुंहमांगा दाम देने को तैयार रहते थे। दूर-दराज के मुल्कों, जैसे अरब, पर्शिया आदि से घोड़ों के विक्रेता मजबूत व आकर्षक घोड़े लेकर दरबार में आया करते थे। बादशाह अपने इस्तेमाल के लिए चुने गए घोड़े की अच्छी कीमत दिया करते थे। जो घोड़े बादशाह की रुचि के नहीं होते थे उन्हें सेना के लिए खरीद लिया जाता था।
अकबर के दरबार में घोड़े के विक्रेताओं का अच्छा व्यापार होता था। एक दिन घोड़ों का एक नया विक्रेता दरबार में आया। अन्य व्यापारी भी उसे नहीं जानते थे। उसने दो बेहद आकर्षक घोड़े बादशाह को बेचे और कहा कि वह ठीक ऐसे ही सौ घोड़े और लाकर दे सकता है, बशर्ते उसे आधी कीमत पेशगी दे दी जाए।
बादशाह को चूंकि घोड़े बहुत पसंद आए थे, सो वैसे ही सौ और घोड़े लेने का तुरंत मन बना लिया।बादशाह ने अपने खजांची को बुलाकर व्यापारी को आधी रकम अदा करने को कहा। खजांची उस व्यापारी को लेकर खजाने की ओर चल दिया, लेकिन किसी को भी यह उचित नहीं लगा कि बादशाह ने एक अनजान व्यापारी को इतनी बड़ी रकम बतौर पेशगी दे दी, लेकिन विरोध जताने की हिम्मत किसी के पास न थी।
सभी चाहते थे कि बीरबल यह मामला उठाए। बीरबल भी इस सौदे से खुश न था। वह बोला, हुजूर कल मुझे आपने शहर भर के मूर्खों की सूची बनाने को कहा था। मुझे खेद है कि उस सूची में आपका नाम सबसे ऊपर है। बादशाह अकबर का चेहरा मारे गुस्से के सुर्ख हो गया। उन्हें लगा कि बीरबल ने भरे दरबार में विदेशी मेहमानों के सामने उनका अपमान किया है।
गुस्से से भरे बादशाह चिल्लाए, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमें मूर्ख बताने की, क्षमा करें बादशाह सलामत।बीरबल अपना सिर झुकाते हुए सम्मानित लहजे में बोला आप चाहें तो मेरा सर कलम करवा दें। यदि आप के कहने पर तैयार की गई मूर्खों की फेहरिस्त में आपका नाम सबसे ऊपर रखना आपको गलत लगे।
दरबार में ऐसा सन्नाटा छा गया कि सुई गिरे तो आवाज सुनाई दे जाए। अब बादशाह अकबर अपना सीधा हाथ उठाए, तर्जनी को बीरबल की ओर ताने आगे बढ़े। दरबार में मौजूद सभी लोगों की सांस जैसे थम सी गई थी। उत्सुक्ता व उत्तेजना सभी के चेहरों पर नृत्य कर रही थी। उन्हें लगा कि बादशाह सलामत बीरबल का सिर धड़ से अलग कर देंगे। इससे पहले किसी की इतनी हिम्मत न हुई थी कि बादशाह को मूर्ख कहे।
लेकिन बादशाह ने अपना हाथ बीरबल के कंधे पर रख दिया। वह कारण जानना चाहते थे। बीरबल समझ गया कि बादशाह क्या चाहते हैं। वह बोला, आपने घोड़ों के ऐसे व्यापारी को बिना सोचे-समझे एक मोटी रकम पेशगी दे दी, जिसका अता-पता भी कोई नहीं जानता। वह आपको धोखा भी दे सकता है। इसलिए मूर्खों की सूची में आपका नाम सबसे ऊपर है। हो सकता है कि अब वह व्यापारी वापस ही न लौटे। वह किसी अन्य देश में जाकर बस जाएगा और आपको ढूढ़े नहीं मिलेगा। किसी से कोई भी सौदा करने के पूर्व उसके बारे में जानकारी तो होनी ही चाहिए। उस व्यापारी ने आपको मात्र दो घोड़े बेचे और आप इतने मोहित हो गए कि मोटी रकम बिना उसको जाने-पहचाने ही दे दी। यही कारण है बस।

तुरंत खजाने में जाओ और रकम की अदायगी रुकवा दो।अकबर ने तुरंत अपने एक सेवक को दौड़ाया। बीरबल बोला, अब आपका नाम उस सूची में नहीं रहेगा। बादशाह अकबर कुछ क्षण तो बीरबल को घूरते रहे, फिर अपनी दृष्टि दरबारियों पर केंद्रित कर ठहाका लगाकर हंस पड़े। सभी लोगों ने राहत की सांस ली कि बादशाह को अपनी गलती का अहसास हो गया था। हंसी में दरबारियों ने भी साथ दिया और बीरबल की तारीफ की।

vijaysr76
08-02-2016, 03:48 PM
सकारात्मक सोच

सुख पाने के लिए सभी तरह-तरह के प्रयास करते हैं। कुछ लोग धन, सुविधाएं आने से सुखी हो जाते हैं और इनके जाने से दुखी हो जाते हैं। यदि हम दोनों ही परिस्थितयों के अनुसार अपनी सोच बदल लें तो धन न होने पर भी सुखी रह सकते हैं।
इस किस्से से समझे सुखी रहने का सीधा तरीका...
एक आश्रम में संत अपने शिष्य के साथ रहते थे। एक दिन शिष्य ने संत से कहा कि गुरुजी एक भक्त ने आश्रम के लिए गाय दान की है।
संत ने कहा कि अच्छा है। अब रोज ताजा दूध पीने के लिए मिलेगा। संत और शिष्य ने गाय के दूध का सेवन करने लगे।
कुछ दिन बाद शिष्य ने संत के कहा कि गुरुजी जिस भक्त ने गाय दी थी, वह अपनी गाय वापस ले गया है।
संत ने कहा कि अच्छा है। अब रोज-रोज गोबर उठाने की परेशानी खत्म हो गई।
इस किस्से की सीख यही है कि परिस्थितयों के अनुसार हमें अपनी सोच बदल लेनी चाहिए। हमेशा सकारात्मक सोचना चाहिए। यही सुखी रहने का सीधा तरीका है।

rajnish manga
10-02-2016, 10:32 PM
उक्त तीनों प्रसंग रोचक भी हैं और प्रेरक भी हैं. धन्यवाद, विजय जी.

soni pushpa
11-02-2016, 10:52 AM
[QUOTE=vijaysr76;557355]सकारात्मक सोच

सुख पाने के लिए सभी तरह-तरह के प्रयास करते हैं। कुछ लोग धन, सुविधाएं आने से सुखी हो जाते हैं और इनके जाने से दुखी हो जाते हैं। यदि हम दोनों ही परिस्थितयों के अनुसार अपनी सोच बदल लें तो धन न होने पर भी सुखी रह सकते हैं।
इस किस्से से समझे सुखी रहने का सीधा तरीका...
एक आश्रम में संत अपने शिष्य के साथ रहते थे। एक दिन शिष्य ने संत से कहा कि गुरुजी एक भक्त ने आश्रम के लिए गाय दान की है।
संत ने कहा कि अच्छा है। अब रोज ताजा दूध पीने के लिए मिलेगा। संत और शिष्य ने गाय के दूध का सेवन करने लगे।
कुछ दिन बाद शिष्य ने संत के कहा कि गुरुजी जिस भक्त ने गाय दी थी, वह अपनी गाय वापस ले गया है।
संत ने कहा कि अच्छा है। अब रोज-रोज गोबर उठाने की परेशानी खत्म हो गई।
इस किस्से की सीख यही है कि परिस्थितयों के अनुसार हमें अपनी सोच बदल लेनी चाहिए। हमेशा सकारात्मक सोचना चाहिए। यही सुखी रहने का सीधा तरीका है।


लघु कथाएं समाज के लिए दृष्टान्त हैं जिससे समाज ने बहुत कुछ सिखा है आपकी तीनो कथाएं सामाजिक विचारधारा के लिए सराहनीय है .. सुन्दर साहित्य सुन्दर समाज का निर्माण करता है आपने बहुत अछि लघु कथाएं यहाँ दी हाँ धन्यवाद

rajnish manga
29-02-2016, 09:20 PM
सकारात्मक सोच
(इन्टरनेट से)

ये कहानी आपके जीने की सोच बदल देगी!
एक दिन एक किसान का बैल कुएँ में गिर गया।
वह बैल घंटों ज़ोर -ज़ोर से रोता रहा और किसान सुनता रहा और विचार करता रहा कि उसे क्या करना चाहिऐ और क्या नहीं।
अंततः उसने निर्णय लिया कि चूंकि बैल काफी बूढा हो चूका था अतः उसे बचाने से कोई लाभ होने वाला नहीं था और इसलिए उसे कुएँ में ही दफना देना चाहिऐ।।
किसान ने अपने सभी पड़ोसियों को मदद के लिए बुलाया सभी ने एक-एक फावड़ा पकड़ा और कुएँ में मिट्टी डालनी शुरू कर दी।
जैसे ही बैल कि समझ में आया कि यह क्या हो रहा है वह और ज़ोर-ज़ोर से चीख़ चीख़ कर रोने लगा और फिर ,अचानक वह आश्चर्यजनक रुप से शांत हो गया।
सब लोग चुपचाप कुएँ में मिट्टी डालते रहे तभी किसान ने कुएँ में झाँका तो वह आश्चर्य से सन्न रह गया..
अपनी पीठ पर पड़ने वाले हर फावड़े की मिट्टी के साथ वह बैल एक आश्चर्यजनक हरकत कर रहा था वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को नीचे गिरा देता था और फिर एक कदम बढ़ाकर उस पर चढ़ जाता था।
जैसे-जैसे किसान तथा उसके पड़ोसी उस पर फावड़ों से मिट्टी गिराते वैसे -वैसे वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को गिरा देता और एक सीढी ऊपर चढ़ आता जल्दी ही सबको आश्चर्यचकित करते हुए वह बैल कुएँ के किनारे पर पहुंच गया और फिर कूदकर बाहर भाग गया ।
ध्यान रखे आपके जीवन में भी बहुत तरह से मिट्टी फेंकी जायेगी बहुत तरह की गंदगी आप पर गिरेगी जैसे कि ,
आपको आगे बढ़ने से रोकने के लिए कोई बेकार में ही आपकी आलोचना करेगा
कोई आपकी सफलता से ईर्ष्या के कारण आपको बेकार में ही भला बुरा कहेगा
कोई आपसे आगे निकलने के लिए ऐसे रास्ते अपनाता हुआ दिखेगा जो आपके आदर्शों के विरुद्ध होंगे...
ऐसे में आपको हतोत्साहित हो कर कुएँ में ही नहीं पड़े रहना है बल्कि साहस के साथ हर तरह की गंदगी को गिरा देना है और उससे सीख ले कर उसे सीढ़ी बनाकर बिना अपने आदर्शों का त्याग किये अपने कदमों को आगे बढ़ाते जाना है।
सकारात्मक रहे.. सकारात्मक जिए!
इस संसार में....
सबसे बड़ी सम्पत्ति "बुद्धि "
सबसे अच्छा हथियार "धैर्य"
सबसे अच्छी सुरक्षा "विश्वास"
सबसे बढ़िया दवा "हँसी" है
और आश्चर्य की बात कि "ये सब निशुल्क हैं "
सदा मुस्कुराते रहें। सदा आगे बढ़ते रहें!

Deep_
29-12-2016, 06:59 PM
भ्रष्टाचार मिट सकता है

दो साहित्यकार घर पर मिले। एक बहुत चिन्तित थे। दूसरे ने पहले साहित्यकार से कहा-‘क्या बात है, बहुत चिन्तित दिखाई दे रहे हो। घर में सब ठीक तो है। पहले साहित्यकार ने कहा-‘घर में तो सब ठीक है, पर देश में कुछ ठीक नहीं चल रहा। अब तो विदेशों में भी अपने देश के भ्रष्टाचार के बारे में जानने लगे हैं लोग। पिछले दिनों ही अखबार में पढ़ा था कि एशिया प्रशांत में अपना देश भ्रष्ट देशों में चौथे नम्बर पर है।'

'हाँ, मैंने भी पढ़ा था।' क्या कर सकते हैं, कैंसर की तरह फैल चुका है यह रोग। कैसे मिटेगा यह लाइलाज रोग?'

पहले साहित्*यकार ने कहा-‘मैं आजकल इसी विचार में रहता हूँ। भ्रष्*टाचार की जड़ है यह रुपया। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि पहले के राजा महाराजाओं की तरह देश में शासन करने वाली सरकार के ही नोट चलन में आयें और सरकार बदलने पर वे नोट चलन से बाहर हो जायें। इतिहास गवाह है, चमड़े के सिक्के चले, जॉर्ज पंचम के बाद महारानी के चित्र वाले नोट चले। फिर क्यों नहीं हमारे राष्ट्रपिता को इस मुद्रागार से मुक्त कर स्वच्छंद मुस्कुराने दें। डाक घर में देखो तो इनकी टिकिट पर ठप्पे से चोट पर चोट लगती है, शादी विवाह, पार्टियों में नोट उड़ाये जाते हैं। नोटों की कालाबाजारी, भ्रष्टाचारी, सट़टेबाजी में बापू को खुले आम शर्मसार किया जाता है। जो सरकार आये उसके चुनाव चिह्न वाले या सरकार के प्रमुख प्रधानमंत्री के चित्र वाले नोट छपें और सरकार के बदलते ही उनके नोट चलन से बाहर हो जायें। इससे कालाबाजारी, जमाखोरी भी कम होगी। करोड़ों अरबों के भ्रष्टाचार भी कम होंगे। कहो कैसी रही?’

दूसरे साहित्यकार अट्टहास करते हुए कहा-‘खूब रही।'

नोटबंदी की याद दिलवा दी ।

mukeshpandit
09-09-2017, 09:58 PM
Nice Collection

rajnish manga
10-09-2017, 08:22 AM
nice collection

हार्दिक धन्यवाद, मित्र.

rajnish manga
21-11-2017, 12:19 PM
अहंकार से मुक्ति

एक बार एक नवाब की राजधानी में एक फकीर आया। फकीर की प्रसिद्धि सुनकर पूरे नवाबी ठाठ के साथ भेंट के भेंट देने के लिए कीमती चीजो से भरे थाल ले कर फकीर के पास पहुंचा। तब फकीर कुछ लोगों से बातचीत कर रहे थे। बिना ध्यान दिए उन्होंने नवाब को बैठने का निर्देश दिया। जब नवाब का नंबर आया तो फकीर नवाब से मुखातिब हुआ। नवाब ने हीरे-जवाहरातों को भरे थाल को फ़कीर की तरफ़ बढ़ा दिया.

फकीर ने उस थाल को छुआ तक नहीं, हां बदले में एक सूखी रोटी नवाब को दी और कहां कि इसे खा लो। रोटी सख्त थी, नवाब से चबायी नहीं गई। तब फकीर ने कहा जैसे आपकी दी हुई वस्तु मेरे काम की नहीं उसी तरह मेरी दी हुई वस्तु आपके काम की नहीं।

हमें वही लेना चाहिए जो हमारे काम का हो। अपने काम का श्रेय भी नहीं लेना चाहिए। नवाब फकीर की इन बातों को सुनकर काफी प्रभावित हुआ। नवाब जब जाने के लिए हुआ तो फकीर भी दरवाजे तक उसे छोड़ने आया। नवाब ने पूछा, मैं जब आया था तब आपने देखा तक नहीं था, अब छोड़ने आ रहे हैं?

फकीर बोला, बेटा जब तुम आए थे तब तुम्हारे साथ तुम्हारा अहंकार था। अब वो चोला तुमने उतार दिया है तुम इंसान बन गए हो। हम इंसानियत का आदर करते हैं। नवाब नतमस्तक हो गया।

vijaysr76
28-06-2019, 04:28 PM
हमेशा प्रसन्न रहने के लिए जरूरी है मन में सुविधाओं के त्याग का भाव भी हो


एक बौद्ध कथा है। भगवान बुद्ध के पास एक राजा आए और पूछा कि हमारे राजकुमार, जिन्हें हर तरह की सुविधाएं हैं, जो बड़े महल में रहते हैं, जिनके साथ नौकर-चाकरों की पूरी फौज है, वे खुश नहीं रहते। हमेशा तनाव और परेशानी से घिरे दिखते हैं। हमने हर तरह की सुविधा देकर देख ली। वे प्रसन्न नहीं रह पा रहे। जबकि, आपके ये भिक्षु जो पदयात्रा करते हैं, खाने को जैसा मिल जाता है, खा लेते हैं, रहने को जो कुटिया मिल जाए वहां रह लेते हैं, इनके चेहरे पर हमेशा इतनी खुशी रहती है। इसका कारण क्या है?
भगवान बुद्ध ने उत्तर दिया, खुशियां खोजनी हो तो जिसके पास कुछ भी न हो, उस में खोजो। जिसने संकल्प करके सब कुछ छोड़ दिया, वही खुश रह सकता है। जो स्वेच्छा से चीजों का त्याग करता है, वो ही हमेशा प्रसन्न रह सकता है। भिखारी कभी ख्रुश नहीं होगा, क्योंकि उसने छोड़ा नहीं है। वह तो अभाव में ही जीवन जी रहा है। अभाव का जीवन जीने वाला कभी खुश नहीं रह सकता। चिंताएं उसे हर समय घेरे रहती हैं। जिसने जानबूझ कर छोड़ा है, वह खुश रह सकता है। ये दो बातें हैं- एक छोड़ना और एक छूटना। ऐसे ही आपके राजकुमार सारी सुविधाओं से परिपूर्ण हैं लेकिन उनके मन में उन सुविधाओं के छूट जाने का डर रहता है। छूट जाना और छोड़ देना, दोनों में अंतर है, छूट जाना या छूट जाने की सोच हमें डरना सिखाती है, जबकि छोड़ देना या छोड़ने का संकल्प लेना आपको आत्मविश्वास और प्रसन्नता से भर देता है।
जिसे कोई चीज मिली नहीं तो उसका त्याग नहीं किया जा सकता है। त्यागी वह होता है, जो अपने स्वतंत्र मन से त्याग कर दे। साधन, सुविधा संपन्न व्यक्ति भी खुश नहीं रह सकता। उसे पैसे की सुरक्षा की चिंता सताती है। वह हमेशा भयभीत रहता है। निडर सिर्फ वही हो सकता है, जिसने स्वेच्छा से त्याग किया है। राजा को अपने प्रश्न का समाधान मिल गया।

vijaysr76
28-06-2019, 04:31 PM
भगवद गीता की 18 ज्ञान की बातें
भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने न केवल ज्ञान की बातें बताई हैं बल्कि जीवन जीने की कलाओं के बारे में भी बताया है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो गीता का उपदेश दिया है, वह हर मनुष्य के लिए प्रेरणास्रोत साबित हो सकता है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हैं कि जो भी मनुष्य भगवद गीता की अठारह बातों को अपनाकर अपने जीवन में उतारता है वह सभी दुखों से, वासनाओं से, क्रोध से, ईर्ष्या से, लोभ से, मोह से, लालच आदि के बंधनों से मुक्त हो जाता है। आगे जानते हैं भगवद गीता की 18 ज्ञान की बातें।
1. आनंद मनुष्य के भीतर ही निवास करता है। परंतु मनुष्य उसे स्त्री में, घर में और बाहरी सुखों में खोज रहा है।
2. श्रीकृष्ण कहते हैं कि भगवान उपासना केवल शरीर से ही नहीं बल्कि मन से करनी चाहिए। भगवान का वंदन उन्हें प्रेम-बंधन में बांधता है।
3. मनुष्य की वासना ही उसके पुनर्जन्म का कारण होती है।
4. इंद्रियों के अधीन होने से मनुष्य के जीवन में विकार और परेशानियां आती है।
5. संयम यानि धैर्य, सदाचार, स्नेह और सेवा जैसे गुण सत्संग के बिना नहीं आते हैं।
6. श्रीकृष्ण कहते हैं कि मनुष्य को वस्त्र बदलने की आवश्यकता नहीं है। आवश्यकता हृदय परिवर्तन की है।
7. जवानी में जिसने ज्यादा पाप किए हैं उसे बुढ़ापे में नींद नहीं आती।
8. भगवान ने जिसे संपत्ति दी है उसे गाय अवश्य रखनी चाहिए।
9. जुआ, मदिरापान, परस्त्रीगमन (अनैतिक संबंध), हिंसा, असत्य, मद, आसक्ति और निर्दयता इन सब में कलियुग का वास है।
10. अधिकारी शिष्य को सद्गुरु (अच्छा गुरु) अवश्य मिलता है।
11. श्रीकृष्ण कहते हैं कि मनुष्य को अपने मन को बार-बार समझाना चाहिए कि ईश्वर के सिवाय उसका कोई नहीं है। साथ ही यह विचार करना चाहिए कि उसका कोई नहीं है। साथ ही वह किसी का नहीं है।
12. भोग में क्षणिक (क्षण भर के लिए) सुख है। साथ ही त्याग में स्थायी आनंद है।
13. श्रीकृष्ण कहते हैं कि सत्संग ईश्वर की कृपा से मिलता है। परंतु कुसंगति में पड़ना मनुष्य के अपने ही हाथों में है।
14. लोभ और ममता (किसी से अधिक लगाव) पाप के माता-पिता हैं। साथ ही लोभ पाप का बाप है।
15. श्रीकृष्ण कहते हैं कि स्त्री का धर्म है कि रोज तुलसी और पार्वती का पूजन करें।
16. मनुष्य को अपने मन और बुद्धि पर विश्वास नहीं करना चाहिए। क्योंकि ये बार-बार मनुष्य को दगा देते हैं। खुद को निर्दोष मानना बहुत बड़ा दोष है।
17. यदि पति-पत्नी को पवित्र जीवन बिताएं तो भगवान पुत्र के रूप में उनके घर आने की इच्छा रखते हैं।
18. भगवान इन सभी कसौटियों पर कसकर, जांच-परखकर ही मनुष्य को अपनाते हैं।