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View Full Version : फोरम की चटनी, प्रविष्टि का मुरब्बा


arvind
09-11-2010, 03:39 PM
फोरम गीत


सूत्र पे सूत्र बनाते चलो -२
पीठ-दर-पीठ थप-थपाते चलो
समझ की झोली भरे ना भरे -२
'वाह' 'वाह' का झोला उठाते चलो
सूत्र पे सूत्र बनाते चलो

कुछ भी लिख दो, कहीं भी लिख दो
टिप्पणी तो मिल जाएँ
सांझ ढले जब, सूत्र खुले तब
मन हर्षित हो जाए
क्या सीखाsssssss
क्या सीखा, क्या पाया तूने
सोच के सर बस खुजाते चलो
पीठ-दर-पीठ थप-थपाते चलो

अब तुम मेरे सूत्र में आओ
मैं तेरे सूत्र में जाऊं
तुम अब मेरी पीठ खुजाओ
अब मैं तेरी खुजाऊं
रचनाssssssss
रचना पल्ले पड़े न पड़े
वाहक की भीड़ में समाते चलो
पीठ-दर-पीठ थप-थपाते चलो

कौन है उम्दा, कौन है घटिया
यहाँ तो सारे बराबर
अभिव्यक्ति का माध्यम है ये
टीपो छापो धडा-धड़
ज्ञान शिखाssssss
ज्ञान शिखा जले ना जले
'वाह' पताका फहराते चलो
पीठ-दर-पीठ थप-थपाते चलो

सूत्र पे सूत्र बनाते चलो -२
पीठ-दर-पीठ थप-थपाते चलो
समझ की झोली भरे ना भरे -२
'वाह' 'वाह' का झोला उठाते चलो
सूत्र पे सूत्र बनाते चलो

malethia
09-11-2010, 03:43 PM
मित्र, पता नहीं ये प्रशंसा है या कटाक्ष ...........
लेकिन है सवा सोलह आने खरा.....:hi:
:iagree:

abhisays
09-11-2010, 03:49 PM
मित्र, पता नहीं ये प्रशंसा है या कटाक्ष ...........
लेकिन है सवा सोलह आने खरा.....:hi:
:iagree:


जो भी है.. काफी अच्छा है.. आपकी बातो को ध्यान में रखा जायेगा..

munneraja
09-11-2010, 04:50 PM
अरविन्द जी
जैसा कि मैं आपकी क्षमता से वाकिफ हूँ और आशा करता हूँ कि आप अपनी कलम का जादू यहाँ चला कर फोरम को एक गति प्रदान करेंगे
क्या आप मेरी आशाओं को जीवंत रखेंगे ??

ndhebar
09-11-2010, 07:58 PM
ही ही ही ही
ये नहीं चलेगा बंधू
चलो वो माल दिखाओ जो अलग बांध रखा है

jai_bhardwaj
09-11-2010, 09:44 PM
ही ही ही ही
ये नहीं चलेगा बंधू
चलो वो माल दिखाओ जो अलग बांध रखा है

वो माल इधर है निशांत भाई ..............
देखो.............

फोरम है एक सभा निराली
घूघट पगड़ी गोरी काली
नीली पीली लाल सुनहरी
श्वेत गुलाबी औ हरियाली

चार यार हो गए इकट्ठे
दुबले पतले हट्टे कट्टे
चित्र,व्यंग्य, आलेख,चुटकुले
शब्दों की भी भरी दुनाली

राम जुहारी पाँय पैंलगी
हाल चाल फिर बात बतकही
देश विदेश प्रदेश की बातें
लगे ठहाका बजती ताली

ध्यान ज्ञान विज्ञान वार्ता
सरस कहानी किस्से यात्रा
इन्टरनेट और ब्लॉग कथाएं
जहाँ चाह वहाँ राह निकाली

डूबे को बन जाएँ सहारा
लड़खडायें तो कंधा वारा
बिना अर्थ 'जय' बने सहायक
दे कर के मुस्कराहट खाली

arvind
10-11-2010, 09:10 AM
अरविन्द जी
जैसा कि मैं आपकी क्षमता से वाकिफ हूँ और आशा करता हूँ कि आप अपनी कलम का जादू यहाँ चला कर फोरम को एक गति प्रदान करेंगे
क्या आप मेरी आशाओं को जीवंत रखेंगे ??
आलमपनाह, मै अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूंगा।
ही ही ही ही
ये नहीं चलेगा बंधू
चलो वो माल दिखाओ जो अलग बांध रखा है
गाँव मे जब नाच पार्टी आती है, तो शुरुआत इस गीत से होता है -
"निमियाँ के डाढ़ मैया झूले ली झूलनवा ..... "
हीहीही..... समझ गए ना.... :party:

arvind
10-11-2010, 09:13 AM
वो माल इधर है निशांत भाई ..............
देखो.............

फोरम है एक सभा निराली
घूघट पगड़ी गोरी काली
नीली पीली लाल सुनहरी
श्वेत गुलाबी औ हरियाली
.............
डूबे को बन जाएँ सहारा
लड़खडायें तो कंधा वारा
बिना अर्थ 'जय' बने सहायक
दे कर के मुस्कराहट खाली
सुभान अल्लाह....... ,
जय भाई, छा गए गुरु।

ndhebar
10-11-2010, 10:46 AM
वो माल इधर है निशांत भाई ..............
देखो.............

फोरम है एक सभा निराली
घूघट पगड़ी गोरी काली
नीली पीली लाल सुनहरी
श्वेत गुलाबी औ हरियाली

अतिसुन्दर जय भाई
:bravo::bravo:

ndhebar
10-11-2010, 10:47 AM
आलमपनाह, मै अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूंगा।

गाँव मे जब नाच पार्टी आती है, तो शुरुआत इस गीत से होता है -
"निमियाँ के डाढ़ मैया झूले ली झूलनवा ..... "
हीहीही..... समझ गए ना.... :party:

पर हमरे यहाँ तो
"गणपति नंदन" से शुरू होता है
:cry::cry:

arvind
10-11-2010, 10:52 AM
पर हमरे यहाँ तो
"गणपति नंदन" से शुरू होता है
:cry::cry:
हम गाँव के बारे मे कहे थे राम पकावन भाई, शहर का नहीं।

arvind
10-11-2010, 11:12 AM
मै लूट गया, बर्बाद हो गया.... ,
मेरे सूत्र के साथ इमोश्नल अत्याचार हुआ है..... ,
मैंने तो "फोरम की चटनी" बनाई थी, ये "प्रविष्टि का मुरब्बा" कौन चेप गया......
बहूहूहूहु...... ।

arvind
10-11-2010, 11:57 AM
आप सूत्र पर सूत्र बनाए जा रहे है और आपका सूत्र फ्लाप पे फ्लाप होता जा रहा है। इतनी मेहनत से बनाई गयी सूत्रो और प्रविष्टियों पर कोई ध्यान नहीं देता है, सोचिए उस समय आपको कितना बुरा लगता होगा। मेरे साथ भी ऐसा ही होता था। इस विषय पर मैंने बहुत ही गहन अध्ययन किया और फिर मैंने तैयार किया बीस सूत्री नुस्खा, जिसे आपका सूत्र जबरदस्त हिट होगा।

चेतावनी: इन नुस्खों का प्रयोग सूत्रधार/प्रविष्टिकर्ता अपने रिस्क पर करें। किसी भी प्रकार के सामाजिक, आर्थिक, अथवा मानसिक नुकसान के लिये लेखक किसी भी प्रकार से जिम्मेदार नहीं है। आपको इन नुस्खों पर भरोसा नहीं तो लेखक को पत्र लिखें या मिलें. नाम गुप्त रखे जाने की सौ फीसद गारंटी ।

arvind
10-11-2010, 11:59 AM
1. टिप्पणी करना छोड़ें

अगर आप हर जगह यहां वहां टिप्पणी करते हैं तो सावधान। अपने आप को सर्वश्रेष्ठ समझें। आपको सब ज्ञान है। अब जब आप सर्वज्ञानी हैं तो दूसरों की अज्ञान से भरी बातें न तो आप पढ़ें और न ही टिप्पणी करें। दूसरों के सूत्रो/प्रविष्टियों को पढ़ने लायक ही न मानें और यदा कदा इस बात की घोषणा भी करते रहें। इससे लोग आपको सर्वज्ञानी मानने लगेंगे और लाइन लगा कर आपके यहां हिट्स पर हीट्स मिलने लगेंगे। हमारे यहां बाबाओं और स्वामियों के यहां जो भीड़ लगती है वो तो आपने देखी ही होगी।

arvind
10-11-2010, 12:01 PM
2. हवा बाजी करें

अपने सूत्रो/प्रविष्टियों पर हवा बाजी करें। जमीन से जुड़े लोगों को आजकल पिछड़ा माना जाता है। हवाबाजी से लोग अवाक हो कर आपको देखते रह जायेंगे और आप पूरे फोरम का मंच लूट कर ले जायेंगे।

arvind
10-11-2010, 12:03 PM
3. टैक्नोराटी? वो के होवे है

आपका सूत्र इन टोटकों से ऊपर है। आप अच्छा लिखेंगे तो आपको नारद की भी जरूरत नहीं। लोग अपने आप पढ़ने आयेंगे आपको। अरे जो आप का लिखा न पढ़े सोचिये वो अपना कितना नुकसान कर रहा है?

arvind
10-11-2010, 12:05 PM
4. जटिल मुद्दे

जटिल से जटिल मुद्दे उठाइये। साधारण मुद्दे आप साधारण लोगों के लिखने के लिये छोड़ दें। जितना आप जटिल मुद्दों पर लिखेंगे उतनी ही आपकी और आपके सूत्र की महानता बढ़ेगी। इसके लिए आप नियमित सर्च करें और लगातार टीपते रहें|

arvind
10-11-2010, 12:07 PM
5. जटिल भाषा

अपनी भाषा को इतना जटिल रखें कि अच्छा भला पढ़ा लिखा पाठक भी हीनभावना का शिकार हो जाये। संस्कृत के शब्दों का खुल कर प्रयोग करें। चाइनीस शब्दों का प्रयोग भी कर सकते हैं। अब आप तो जानते ही हैं कि चाइना ने कितनों को हीनभावना का शिकार बनाया हुआ है। आप जितने कम लोगों की समझ में आएंगे आपको विशेष समझने वाले व्यत्क्रमानुपात में बढ़ते जाएंगे.

arvind
10-11-2010, 12:09 PM
6. विवाद खड़े करें

अपने सूत्र को हिट करने का यह आम और सर्वाधिक इस्तेमाल में लाया जाने वाला नुस्खा है। अब आपको विवाद खड़े करने के कुछ नये नुस्खे लाने होंगे जैसे की सांस लेने से कैंसर हो सकता है या पानी पीने से कैंसर हो सकता है। अब यदि कोइ इस बात का प्रतिकार करे तो पलट कर उसी पर वार करें और कहें कि तुम्ही हो जिसकी वजह से हवा और पानी की यह हालत हुई है।

arvind
10-11-2010, 12:10 PM
7. आला तबके के लिये लिखें

आम आदमी की भाषा में आम आदमी के बारे में कभी न लिखें नहीं तो आपका सूत्र भी आम बन कर रह जायेगा। हमेशा आला तबके को ध्यान में रख कर लिखें।

arvind
10-11-2010, 12:12 PM
8. ललकारें

अपने पाठकों को यदा-कदा ललकारते रहें। “हिम्मत है तो मुझे झूठा साबित करें।” “हिम्मत है तो टिप्पणी करें।” “मेरा साथ देने वाला कोइ मर्द नहीं है क्या?” इस तरह के वाक्य उछालते रहें। ग़ैरों को तुच्छ साबित करें. अपनी लाइन बड़ी करने की बजाय दूसरों की लाइन छोटी करें. जगह भरती जा रही है नयी लाइनें बनाने या बढ़ाने के लिए स्पेस कहां है?

arvind
10-11-2010, 12:13 PM
9. दुश्मन बनायें

सफल आदमी के बहुत से दुश्मन होते हैं। आप भी अपने अधिक से अधिक दुश्मन बनायें और सफल होने का अहसास प्राप्त करें।

arvind
10-11-2010, 12:15 PM
10. अपनी दुनिया में मस्त रहें

अपनी दुनिया में मस्त रहें, दूसरे जो भी लिख रहे हैं कान न धरें। अपने आप को हाथी समझ कर सबके बीच में से निकल जायें।

arvind
10-11-2010, 12:17 PM
11. आपने सूत्रो का विज्ञापन दें

अपने सूत्रो का सिग्नेचर अवश्य बनायें और जहा-तहा टीपते रहे।

arvind
10-11-2010, 12:18 PM
12. विवादों से बैकलिंक

विवादों में रहने से आपको बैकलिंक मिलता है। लोग जब आपकी पोस्ट के जवाब में कुछ लिखेंगे तो आपका लिंक भी देंगे। तो आप जितने विवाद खड़े करेंगे उतनी ही आपके सूत्र मे प्रविष्टियाँ जायेगी।

arvind
10-11-2010, 12:20 PM
13. टिप्पणी में सवाल करें

अव्वल तो दूसरों के सूत्रो पर जाने से बचें. यदि चले भी गए तो दूसरों के यहां जब भी टिप्पणी करें तो पहली लाईन में पोस्ट को बेकार बतायें। फिर लिखें कि आपके बस का कुछ है नहीं। और अंत में कुछ सवाल पूछें जैसे की “बड़ी बड़ी बातें कर रहे हो कभी अपने बच्चों को होमवर्क भी करवाया है।” या “तुमने कौनसे तीर मार लिये?” टाईप। इससे वो तिलमिलाएगा क्योंकि ऐसा कहने का अधिकार अब तक सिर्फ़ उसकी पत्नी को था. अब देखिये वो जवाब देने आपके सूत्र पर जरूर आयेगा।

arvind
10-11-2010, 12:22 PM
14. दिन में दो सौ पोस्ट करें, फोरम पर छा जायें:

पहली से पांचवीं तक आते आते बात से पलट जायें| यानि अगर पहली पोस्ट में आपने लिखा है कि कोकाकोला पीना पूंजीवाद को बढ़ावा देता है तो पहली पोस्ट में आक्रामक तरीके से लिखें, लोगों पर हमला करें। जब माहोल गरम हो जाये तो अगली पोस्ट में थोड़ा नरम हो जायें। दिन की आखिरी पोस्ट तक आते आते सिद्ध कर दें की किस तरह कोकाकोला पीना समाजवाद को बढ़ाता है। अब पाठकों को आपस में भिड़नें दें। आपके पास अपनी पोस्टों में हर तरह के तर्क होंगे। जहां जैसा चाहें वैसा उद्धरण दिखाते हुए दूसरों को पछाड़ दें।

arvind
10-11-2010, 12:23 PM
15. समुदाय को तोड़ो

फोरम सामुदायिकता की भावना से की जाये तो ज्यादा सफल होती है। आप पहले से बने समुदाय में फूट डालें और उसी से अपने लिये नया समुदाय तैयार करें। नए गुट बनाने के लिए कई सूत्रधारों के बीच लगाई-बुझाई की बातें करें। हो सके तो व्यक्तिगत मेल करें और बाद मे बदनाम करने के लिए उसका व्यक्तिगत मेल अपने सूत्र पर प्रकाशित कर दें।

arvind
10-11-2010, 12:26 PM
16. दूसरों की पोस्ट में नुस्ख निकालें

एक सूत्र बनाकर पिछले 10 सूत्रो को बेकार सूत्र बतायें। दूसरों के लिखे को बकवास बतायें और उनका मजाक उड़ायें।

arvind
10-11-2010, 12:27 PM
17. भूल जायें कि पहले क्या कहा था

समय के साथ साथ आपके विचार भी बदलते रहने चाहियें। यकीन मानिये पाठकों की यादाश्त बहुत कम होती है। वो अकसर भूल जाते हैं कि किसी मुद्दे पर आपने पहले क्या विचार प्रगट किये थे। अपनी बात से पलट जायें कौन आपकी पिछली पोस्ट सर्च करेगा सोचिये भला?

arvind
10-11-2010, 12:28 PM
18. टिप्पणियां चोरी करें

टिप्पणियां न मिलें तो चुरा कर छापें। कहीं से भी माल उड़ा कर अपने यहां टिप्पणी के रूप में छाप लें। जाने अनजाने नामों से या बेनामों के नाम से खुद टिप्पणियां करें। बेनाम घटिया टिप्पणियां कभी न मिटायें। जितनी हो सके सहानुभूती बटोरें।

arvind
10-11-2010, 12:29 PM
19. गाली गलौच की भाषा में लिखें

सूत्र हिट करने का सबसे आसान तरीका। इंटेरनेट पर सबकुछ चलता है । नामर्द और हिजड़ा कहना तो आम है। आजकल गाली भी काफी डिमांड में है। आप अपनी भी कोई मजेदार गाली बना सकते हैं। इससे आप ज़मीन से जुड़े आम आदमी की श्रेणी में दिखाई पड़ते हैं।

arvind
10-11-2010, 12:30 PM
20. शीर्षक का कमाल

अपने सूत्र का नाम ‘म’ से शुरू करें। एक और तरीका है कोई चरित्र बनायें ‘म’ नाम से और उसके बारे में लिखना शुरू करें। जैसे ‘क’ से शुरू होने वाले सीरियल टीवी पर बहुत हिट होते हैं वैसे ही ‘म’ से शुरू होने वाले सूत्र शर्तिया हिट होते हैं।

arvind
10-11-2010, 12:31 PM
इतना कुछ करने पर भी यदि आपका सूत्र न चले तो समझ लें आपके विचार ‘निशब्द’ फिल्म की तरह आज से बीस वर्ष बाद के लिये हैं, आपकी सोच को समझने वाले अभी पैदा ही नहीं हुए हैं। सूत्र अजर अमर है, आज अगर कोई नहीं पढ़ेगा तो बीस साल बाद आप ही का सूत्र सुपर हिट होने वाला है।

abhisays
10-11-2010, 01:05 PM
बहुत ही शानदार मज़ा आ गया.. :bravo::bravo:

khalid
10-11-2010, 01:14 PM
वाह हीरो भाई बहुत बढिया चटनी मुरब्बे के साथ मिर्च भी तेज हैँ

munneraja
10-11-2010, 04:07 PM
यहाँ तो ५६ मसालों वाला आचार भी अपना स्वाद दे रहा है .......

gulluu
10-11-2010, 06:38 PM
अरविन्द भाई शब्दों के बहुत शानदार खिलाडी है ,उनको इस सूत्र की रचना की बहुत बधाई .
:party:

jai_bhardwaj
10-11-2010, 10:52 PM
आया आया रे निठल्ला आया
संग चटनी मुरब्बा लाया

अलग अलग स्वादों में रोचक अचार है
हास्य की चासनी में व्यंग्य का बघार है
सत्य की मिर्चियों की तीखी फुहार है
बड़ी मोहक प्रविष्टियाँ लाया
आया आया रे निठल्ला आया

मुन्ना भाई, खालिद, सिकंदर ने खाया
अभिषेक, अनिल और शाम जी ने पाया
जीत,गुल्लू, जलवा,ढेबर ने पचाया
भाईजी के हिस्से मसाला ही आया
आया आया रे निठल्ला आया

जिसने जिसने खाया है वो मुस्कुराया
लेकिन सुबह फारिग होके बाहर ना आया
जिसने न खाया वो बड़ा ललचाया
लुके छिपे वह इस सूत्र पे आया
आया आया रे निठल्ला आया
संग चटनी मुरब्बा लाया

arvind
11-11-2010, 01:20 PM
कम्प्यूटराईजड आशिक

कल जब मिले थे ……………..
तो दिल मे हुवा एक साऊंड
और आज मिले है तो कहते है
यौर फाइल नॉट फाउन्ड.

जो मुदत से होता आया है
ओः रीपीट कर दूँगा.
तू न मिले तो अपनी
जिंदगी clt+alt+delect कर दूँगा.

शायद मेरे प्यार को
टेस्ट करना भूल गए.
दिल से ऐसा कट किया
की पेस्ट करना भूल गए.

लाखो होंगे निगाहों मे.
कभी मुझे भी पिक करो.
मेरे प्यार के आइकन पे
कभी तो डबल क्लिक करो.

रोज सुबह करते है हम
प्यार से उनको गुड मोर्निंग .
ओः ऐसे घुर के देखते है.
जैसे हो एरर और ५५० वार्निंग ॥

ऐसा भी नही है की
आए डोंट लाइक यौर फेश .
पर दिल के स्टोरेज मे
नो मोर डिस्क स्पेस।

घर से जब तुम निकले
पहिन के रेशमी गावुन
जाने कितने दिलो का हो गया
सर्वर सट डाउन।

jitendragarg
11-11-2010, 06:16 PM
:majesty:

बस इस के बाद कहने के लिए कोई शब्द ही नहीं बचा. आपने तो सभी लोगों को नए नए रास्ते सुझा दिए, बेचारे moderators को परेशां करने के लिए. :lol:

khalid
11-11-2010, 06:43 PM
:majesty:

बस इस के बाद कहने के लिए कोई शब्द ही नहीं बचा. आपने तो सभी लोगों को नए नए रास्ते सुझा दिए, बेचारे moderators को परेशां करने के लिए. :lol:

कोई बात नहीँ जितेन्द्र जी अब तो अरविन्द भैया भी फँस गऐ हैँ

jitendragarg
11-11-2010, 06:58 PM
@खालिद

किये का फल तो भुगतना ही पड़ेगा ना!:giggle::laughing:

khalid
11-11-2010, 07:50 PM
@खालिद

किये का फल तो भुगतना ही पड़ेगा ना!:giggle::laughing:

हा हा हा
बिल्कुल ठीक कहा आपने मित्र

sam_shp
11-11-2010, 09:43 PM
अरविंदभाई बहुत अच्छा सूत्र बनाया है...निरंतरता बनाये रखियेगा.....धन्यवाद.

aksh
11-11-2010, 09:51 PM
वाकई बहुत अच्छा सूत्र है. बहुत बहुत मजा आया. धन्यवाद.........

:hi: :hi: :hi:

Video Master
11-11-2010, 10:08 PM
अरविन्द भाई इस सूत्र को को पढ़ कर तो मन गद गद हो गया ..मजा आ गया

munneraja
12-11-2010, 09:38 AM
अनुज अरविन्द
आज खाना खिलाने का मूड नहीं है क्या !!..??..

arvind
15-11-2010, 03:41 PM
अनुज अरविन्द
आज खाना खिलाने का मूड नहीं है क्या !!..??..
आलमपनाह, सोच ही रहा था की क्या खिलाऊं आपको.....
फोरम पर तो शब्दो की चाशनी ही दे सकता हूँ।

दरअसल, आजकल मै कुछ का इस्तेमाल करने लगा हूँ.... जी हाँ - आजकल मै दिल का इस्तेमाल करने लगा हूँ। क्यों? - अरे भाई जो रहेगा उसी का इस्तेमाल किया जा सकता है ना। और सच है कि मेरा ऊपरी तल्ला बिलकुल खाली है। अपवाद भी है - कुछ उल्लूक और बैशाखनंदन वहां बिना किराया दिये रहते है। क्यों रहते है? - अरे बंधु, अब क्या बताए, दूर के रिश्तेदार जो ठहरे।

हाँ तो मै बता रहा था कि मेरे दिल ने कहा कि क्यों ना फोरम मे प्रविष्टियाँ ऐसी कि जाये कि लोग उत्सुकता वश ही सही, भ्रमण तो करे। कुछ न कुछ तो पसंद कर ही लेंगे। और ना भी करे तो मेरी बला से। क्या फर्क पड़ता है? कौन सी रोयालटी मिलनेवाली है। मेरी प्रविष्टियाँ तो बस जी अजर-अमर है, अब कोई माने या ना माने। बस किसी महान कवि कि ये पंक्तिया याद आ गई -

नापसन्दी का जो चटका है हमारा
इतना तगड़ा ये फटका है हमारा

दूसरा और कोई यहाँ क्यूँ रहे
मेरी ही पोस्ट के दरमियां क्यूँ रहे
हाँ यहाँ क्यूँ रहे
ये यहाँ क्यूँ रहे
हां जी हां क्यूँ रहे
ये जो हाट लिस्ट है, बाप का है हमारा
नहीं दिख सकता, कभी पोस्ट तुम्हारा
नापसन्दी का जो चटका है हमारा

कैसे दीदार सूत्रधार तुम्हारा करे
रूखे पोस्ट का कोई कैसे नज़ारा करे
हां नज़ारा करे
क्या बेचारा करे, बस पुकारा करे
नापसन्दी का चटका है दे मारा
नहीं आने दूंगा तुमको मैं दोबारा
नापसन्दी का जो चटका है हमारा

रुख से परदा कभी तो सरक जाएगा
तब वो कम्बख्त चेहरा नज़र आएगा
हाँ नज़र आएगा
फिर किधर जाएगा हां जी मर जाएगा,
तेरे चटके से बड़े हैं मेरे पाठक
संग मेरे तो खड़े मेरे पाठक हो. हो..हो..
नापसन्दी का जो चटका है हमारा
इतना तगड़ा ये फटका है हमारा

kamesh
15-11-2010, 04:49 PM
20. शीर्षक का कमाल

अपने सूत्र का नाम ‘म’ से शुरू करें। एक और तरीका है कोई चरित्र बनायें ‘म’ नाम से और उसके बारे में लिखना शुरू करें। जैसे ‘क’ से शुरू होने वाले सीरियल टीवी पर बहुत हिट होते हैं वैसे ही ‘म’ से शुरू होने वाले सूत्र शर्तिया हिट होते हैं।
वह भेइया वह
क्या बात है
कितना मस्त मस्त
मादक
मनमोहक
मनचला
मंत्रमुग्ध करने वाला
मोहनी
सूत्र बनाया मासूम बधाई स्वीकारें

arvind
15-11-2010, 04:52 PM
वह भेइया वह
क्या बात है
कितना मस्त मस्त
मादक
मनमोहक
मनचला
मंत्रमुग्ध करने वाला
मोहनी
सूत्र बनाया मासूम बधाई स्वीकारें

कामेश भाई, मैंने तो "म" से सूत्र बनाने की सलाह दी है, और आपने तो 'म' से मान्यता भी प्रदान कर दी....
धन्यवाद।

jalwa
19-11-2010, 10:46 PM
अरविन्द भाई, शुरुआत में तो उलझन भरा लगा लेकिन जब पढना शुरू किया तो पूरा सूत्र पढ़ कर ही दम लिया है. बहुत दिनों के बाद एक मौलिक सूत्र देखने को मिला है. आप बधाई के पात्र हैं. इस सूत्र का नाम आपको "मुरब्बा सूत्रों का" रखना चाहिए था.. (आपके पसंदीद शब्द म के अनुसार)
कुल मिला कर मिर्च मसालेदार चटपटा मुरब्बा आपकी और से तथा खट्टी मीठी चटनी का मिश्रण जय भैया द्वारा.
अंत में मेरी और से....
फोरम... ना होता बेचारा,
सूत्र.....ना होते आवारा.
जो सूत्रधार कोई अपना....
"अरविन्द जी " सा होता.

arvind
20-11-2010, 11:20 AM
अरविन्द भाई, शुरुआत में तो उलझन भरा लगा लेकिन जब पढना शुरू किया तो पूरा सूत्र पढ़ कर ही दम लिया है. बहुत दिनों के बाद एक मौलिक सूत्र देखने को मिला है. आप बधाई के पात्र हैं. इस सूत्र का नाम आपको "मुरब्बा सूत्रों का" रखना चाहिए था.. (आपके पसंदीद शब्द म के अनुसार)
कुल मिला कर मिर्च मसालेदार चटपटा मुरब्बा आपकी और से तथा खट्टी मीठी चटनी का मिश्रण जय भैया द्वारा.
अंत में मेरी और से....
फोरम... ना होता बेचारा,
सूत्र.....ना होते आवारा.
जो सूत्रधार कोई अपना....
"अरविन्द जी " सा होता.
धन्यवाद जलवा जी, मै अपने तरफ से पूरी कोशिश करूंगा और भी स्वादिस्ट रचनाए देने की।

munneraja
20-11-2010, 11:32 AM
धन्यवाद जलवा जी, मै अपने तरफ से पूरी कोशिश करूंगा और भी स्वादिस्ट रचनाए देने की।
मेरे
मन
में
मुरब्बे
मचलते हैं

arvind
20-11-2010, 11:42 AM
मेरे
मन
में
मुरब्बे
मचलते हैं
जी आपके लिए मुरब्बे तैयार हो रहे है, तब तक आप नहा-धो लीजिये।

arvind
20-11-2010, 01:03 PM
प्यारे दोस्तो, अगर आप सुरापानी (पियक्कड़ बनने) की ठान चुके है तो मै इसमे आपकी भरपूर मदद कर सकता हूँ। आखिर आप इस फोरम के निष्ठावान सदस्य है तो मेरा भी फर्ज बनता है कि मै अपने अनुभव आपके साथ बाट सकूँ।

तो दोस्तो, सुरापान के बाद अगर आप वास्तविक सुराप्रेमी लगाना चाहते है तो इसके लिए निम्नलिखित सुवचनो को कंठस्थ कर ले।

1) तू मेरा भाई है भाई… (अक्सर ये भाई… टुन्न होने के बाद, “बाई” सुनाई देता है)
2) यू नो आय एम नॉट ड्रन्क!!! (पीने के बाद अंग्रेजी भी सूझने लगती है कभी-कभी)
3) हट बे गाड़ी मैं चलाऊँगा…
4) तू बुरा मत मानना भाई… (साथ में पीने के बाद सब आपस में भाई-भाई होते हैं)
5) मैं दिल से तेरी इज्जत करता हूँ…
6) अबे बोल डाल आज उसको दिल की बात, आर या पार… (चने के झाड़ पर चढ़ाकर जूते खिलवाने का प्रोग्राम)
7) आज साली चढ़ ही नहीं रही, पता नहीं क्या बात है? (चौथे पैग के बाद के बोल…)
8) तू क्या समझ रहा है, मुझे चढ़ गई है?
9) ये मत समझना कि पी के बोल रहा हूँ…
10) अबे यार कहीं कम तो नहीं पड़ेगी आज इतनी? (खामखा की फ़ूँक दिखाने के लिये…)
11) चल यार निकलने से पहले एक-एक छोटा सा और हो जाये…
12) अपने बाप को मत सिखाओ बेटा…
13) यार मगर तूने मेरा दिल तोड़ दिया… (पाँचवे पैग के बाद का बोल…)
14) कुछ भी है पर साला भाई है अपना, जा माफ़ किया बे…
15) तू बोल ना भाई क्या चाहिये, जान हाजिर है तेरे लिये तो… (ये भी पाँचवे पैग के बाद वाला ही है…)
16) अबे मेरे को आज तक नहीं चढ़ी, शर्त लगा ही ले साले आज तो तू…
17) चल आज तेरी बात करा ही देता हूँ उससे, मोबाइल नम्बर दे उसका… क्या अपने-आपको माधुरी दीक्षित समझती है साली…
18) अबे साले तेरी भाभी है वो, भाभी की नज़र से देखना उसको आज के बाद…
19) यार तू समझा कर, वो तेरे लायक नहीं है… (यानी कि मेरे लायक ही है…)
20) तुझे क्या लगता है मुझे चढ़ गई है, अबे एक फ़ुल और खतम कर सकता हूँ…
21) यार आज उसकी बहुत याद आ रही है…

और सबसे खास और सम्भवतः हर बार बोला जाने वाला वाक्य…
22) बस…बहुत हुआ, आज से साली दारू बन्द… (तगड़ी बहस और लगभग झगड़े की पोजीशन बन जाने पर)

arvind
20-11-2010, 01:09 PM
आजकल टेलीमार्केटिंग कम्पनियों का जमाना है, रोज-ब-रोज कोई ना कोई बैंक, इंश्योरेंस, फ़ाईनेंस एजेन्सी आदि-आदि फ़ोन कर-कर के आपकी नींद खराब करते रहते हैं, ब्लडप्रेशर बढाते रहते हैं, और आप हैं कि मन-ही-मन कुढते रहते हैं, कभी-कभी फ़ोन करने वाले को गालियाँ भी निकालते हैं, लेकिन अब पेश है कुछ नये आईडिया इन टेलीमार्केटिंग कम्पनियों से प्रभावी बचाव का - इनको आजमा कर देखिये कम से कम चार तो आपको पसन्द आयेंगे ही -

(१) जैसे ही टेलीमार्केटर बोलना बन्द करे, उसे तत्काल शादी का प्रस्ताव दे दीजिये, यदि वह लड़की है तो दोबारा फ़ोन नहीं आयेगा, और यदि वह लड़का है तो शर्तिया नहीं आयेगा ।
(२) टेलीमार्केटर से कहें कि आप फ़िलहाल व्यस्त हैं, तुम्हारा फ़ोन नम्बर, पता, घर-ऑफ़िस का नम्बर दो, मैं अभी वापस कॉल करता हूँ..
(३) उसे, उसी की कही तमाम बातों को दोहराने को कहें, कम से कम चार बार..
(४) उसे कहें कि आप लंच कर रहे हैं, कृपया होल्ड करें, फ़िर फ़ोन को प्लेट के पास रखकर ही चपर-चपर खाते जायें, जब तक कि उधर से फ़ोन ना कट जाये..
(५) उससे कहिये कि मेरी सारे हिसाब-किताब मेरा अकाऊंटेंट देखता है, लीजिये उससे बात कीजिये और अपने सबसे छोटे बच्चे को फ़ोन पकडा़ दीजिये...
(६) उससे कहिये आप ऊँचा सुनते हैं, जरा जोर से बोलिये (ऐसा कम से कम चार बार करें)..
(७) उसका पहला वाक्य सुनते ही जोर से चिल्लाईये - "अरे पोपटलाल, तुम... ! माय गॉड, कितन दिनों बाद फ़ोन किया,,,, और,,,,, और,,,,,, बहुत कुछ लगातार बोलिये... फ़िर वह कहेगा कि मैं पोपटलाल नहीं हूँ, फ़िर भी मत मानिये, कहिये "अरे मजाक छोड़ यार...." । अगली बार फ़ोन आ जाये तो गारंटी...
(८) उससे कहिये कि एकदम धीरे-धीरे बोले, क्योंकि आप सब कुछ हू-ब-हू लिखना चाहते हैं, फ़िर भी यदि वह पीछा ना छोडे, तो एक बार और उसी गति से रिपीट करने को कहें....
(९) यदि icici से फ़ोन है तो उसे कहिये कि मेरे ऑफ़िस के नम्बर पर बात करें और उसे hsbc का नम्बर दे दें...

आजमा कर देखिये

arvind
20-11-2010, 01:13 PM
हमेशा उत्सुकता होती है कि किसी प्रोफ़ेशन को लेकर बीबियाँ कैसे अपने-अपने पतियों को धमकाती होंगी ?

पायलट को : उडा़कर रख दूँगी
मन्त्री को : बस बहुत हुए आश्वासन
शिक्षक को : मुझे मत सिखाओ
पेंटर को : चेहरा लाल कर दूँगी
कारपेंटर को : ठोक कर सीधा कर दूँगी
डेंटिस्ट को : दाँत निकालकर हाथ में दे दूँगी
अभिनेता को : बस बहुत हुआ तुम्हारा नाटक
किराने वाले को : मुझे पुडिया मत दो, मैं तुम्हें खूब समझती हूँ
कम्प्यूटर वाले को : खबरदार, सारी हार्ड डिस्क फ़ॉरमेट कर दूँगी
ठेकेदार को : क्या मैंने तुम्हारा ठेका लिया है
मैकेनिक को : सारे नट-बोल्ट कस के रख दूँगी
धोबी को : ज्यादा चूं-चपड की तो धोकर रख दूँगी

और अन्त में...
सूत्रधार को : तुम्हारा कच्चा चिठ्ठा खोलकर रख दूँगी..

munneraja
20-11-2010, 01:35 PM
हमेशा उत्सुकता होती है कि किसी प्रोफ़ेशन को लेकर बीबियाँ कैसे अपने-अपने पतियों को धमकाती होंगी ?

और अन्त में...
सूत्रधार को : तुम्हारा कच्चा चिठ्ठा खोलकर रख दूँगी..


और अन्त में...
सूत्रधार को : भगवान करे तुम्हारे की बोर्ड का तार चूहे खा जाएँ

ndhebar
20-11-2010, 05:13 PM
*तू क्या समझ रहा है, मुझे चढ़ गई है?
*ये मत समझना कि पी के बोल रहा हूँ…

मेरी पसंदीदा पंक्ति

arvind
20-11-2010, 06:28 PM
*तू क्या समझ रहा है, मुझे चढ़ गई है?
*ये मत समझना कि पी के बोल रहा हूँ…

मेरी पसंदीदा पंक्ति
टुन्न होने के पहले या बाद?:rolling:

munneraja
20-11-2010, 06:38 PM
अरे सालों ...... हिच .....
अरे किसको बोल रहा है दारूबाज .... हि ... च ....
मैंने कभी ... दारु को हा.... थ नहीं लगाया ...
पी ...ने की बात तो sssssss दूर कीई है
ये बोतल.... अरे ये तो sss मैं ने यूँ हि ... ले ... (फेंक दी..) छान्न्नक
बस..
आगे से कब्ब्ब्बी दारू बाज बोला तो देख लेना..
छोडूंगा नहीं ... हाँ
मुझे जान....ता हिच ... नहीं .. कौन हिच .... मैं ...

(दारुबाज शायद ऐसा ही होता है)

ndhebar
21-11-2010, 08:03 AM
टुन्न होने के पहले या बाद?:rolling:
इ लो कर लो बाद
बोतल देख कर थोड़े ना नशा आता है, वो तो जब जब अन्दर जाती है तब अपना रंग दिखाती है

Kumar Anil
22-11-2010, 04:08 PM
आजकल टेलीमार्केटिंग कम्पनियों का जमाना है, रोज-ब-रोज कोई ना कोई बैंक, इंश्योरेंस, फ़ाईनेंस एजेन्सी आदि-आदि फ़ोन कर-कर के आपकी नींद खराब करते रहते हैं, ब्लडप्रेशर बढाते रहते हैं, और आप हैं कि मन-ही-मन कुढते रहते हैं, कभी-कभी फ़ोन करने वाले को गालियाँ भी निकालते हैं, लेकिन अब पेश है कुछ नये आईडिया इन टेलीमार्केटिंग कम्पनियों से प्रभावी बचाव का - इनको आजमा कर देखिये कम से कम चार तो आपको पसन्द आयेंगे ही -

(१) जैसे ही टेलीमार्केटर बोलना बन्द करे, उसे तत्काल शादी का प्रस्ताव दे दीजिये, यदि वह लड़की है तो दोबारा फ़ोन नहीं आयेगा, और यदि वह लड़का है तो शर्तिया नहीं आयेगा ।
(२) टेलीमार्केटर से कहें कि आप फ़िलहाल व्यस्त हैं, तुम्हारा फ़ोन नम्बर, पता, घर-ऑफ़िस का नम्बर दो, मैं अभी वापस कॉल करता हूँ..
(३) उसे, उसी की कही तमाम बातों को दोहराने को कहें, कम से कम चार बार..
(४) उसे कहें कि आप लंच कर रहे हैं, कृपया होल्ड करें, फ़िर फ़ोन को प्लेट के पास रखकर ही चपर-चपर खाते जायें, जब तक कि उधर से फ़ोन ना कट जाये..
(५) उससे कहिये कि मेरी सारे हिसाब-किताब मेरा अकाऊंटेंट देखता है, लीजिये उससे बात कीजिये और अपने सबसे छोटे बच्चे को फ़ोन पकडा़ दीजिये...
(६) उससे कहिये आप ऊँचा सुनते हैं, जरा जोर से बोलिये (ऐसा कम से कम चार बार करें)..
(७) उसका पहला वाक्य सुनते ही जोर से चिल्लाईये - "अरे पोपटलाल, तुम... ! माय गॉड, कितन दिनों बाद फ़ोन किया,,,, और,,,,, और,,,,,, बहुत कुछ लगातार बोलिये... फ़िर वह कहेगा कि मैं पोपटलाल नहीं हूँ, फ़िर भी मत मानिये, कहिये "अरे मजाक छोड़ यार...." । अगली बार फ़ोन आ जाये तो गारंटी...
(८) उससे कहिये कि एकदम धीरे-धीरे बोले, क्योंकि आप सब कुछ हू-ब-हू लिखना चाहते हैं, फ़िर भी यदि वह पीछा ना छोडे, तो एक बार और उसी गति से रिपीट करने को कहें....
(९) यदि icici से फ़ोन है तो उसे कहिये कि मेरे ऑफ़िस के नम्बर पर बात करें और उसे hsbc का नम्बर दे दें...

आजमा कर देखिये

इन फँदेबाजोँ से बचने के लिए बहुत अच्छी टिप्स दी हैँ ।वास्तव मेँ ये **** खून पीने मेँ माहिर होते हैँ । लेकिन गुरुदेव आपने ये जो कछुवा छाप बनायी है उससे ये डेँगू मच्छर शर्तिया भाग जायेँगे ।आपका मुरीद हो गया हूँ ।

arvind
22-11-2010, 04:12 PM
आज मुड खराब है।

पता नहीं आज क्या हो गया है? हम जब कभी कुछ लिखते है तो चाहे उसे पढने वालों को बेशक आनन्द न आए लेकिन हमें लिखने में तो खूब आता है। आज तो लगता है कि मानो शब्द हडताल पर उतर आए हों.....एकदम विचार शून्यता की स्थिति.

अब देखिये न, बेमन से लिखने बैठे भी तो ऎसा कोई विषय ही नहीं सुझाई दे रहा है कि जिसपर कुछ देर खिटरपिटर की जा सके। न जाने कितनी देर यूँ ही बैठे बैठे कभी डैशबोर्ड को देखता हूँ, कभी की-बोर्ड की ओर तो कभी मूषक महाराज की ओर लेकिन तीनों ढाक के तीन पात की तरह अलग ही नजर आते है . इन तीनों का अस्तित्व मुझे बिल्कुल ही विरोधी जान पडने लगा है। मैनें कीबोर्ड से कईं बार हाथों का स्पर्श कराया; पर कुछ काम न बना.

न जाने देवी, देवता, पितर वगैरह किन किन का स्मरण करके देख लिया लेकिन किसी को भी तरस न आया. कम से कम एक घंटा यूँ ही कभी माऊस, कभी की-बोर्ड तो कभी डैशबोर्ड को देखते बीत गया, लेकिन जैसा कि न तो कुछ लिखा जाना था, ओर न ही लिखा गया. उल्टे इस एक घंटे की अवधि में चार कप चाय और तीन गिलास पानी जरूर गटक लिए, सोचा कि शायद किसी तरह से दिमाग की अकर्मन्यता दूर हो; पर सब उपचार व्यर्थ गए। परेशान होकर एक दो बार सोचा भी कि छोडो यार! कम्पयूटर बन्द कर देते है... क्या रखा है इस झंझट में; पर "जब तक साँस तब तक आस" ने वो भी न करने दिया।

कहते हैं कि जब मनुष्य निरूपाय हो जाता है तो फिर वो मूर्खता पर कमर कसता है। कभी कभी ऎसा भी समय आ जाता है कि जब अच्छे अच्छे विद्वानों की बुद्धि मात खा जाती है, तो भला हमारी क्या बिसात। हम तो यूँ भी कभी अपने आपको कोई खास समझदार नहीं समझते।

मैने जब अच्छी तरह देख लिया कि अब कोई चारा नहीं, दिमाग में कैसा भी कोई आईडिया आ ही नहीं रहा तो अब एक ही हल है कि नैट से कोई एक ऊलजलूल सी तस्वीर खोजकर, उसका कोई आलतू फालतू सा शीर्षक देकर ही एक पोस्ट ठेल दी जाए। ज्यों ज्यों मैं गौर करता गया, मुझे एक यही विचार समायोजित और उपयुक्त जान पडने लगा। कारण ये कि इसमें नुक्सान तो कुछ था ही नहीं; टिप्पणियाँ तो अपने को उस पर भी मिल ही जानी है। आखिर अपने भी तो कुछ बन्धे बँधाए ग्राहक हैं ही.......भले ही बेशक भाई लोग झूठमूठ की वाह! वाह्! बहुत बढिया! जैसी टिप्पणियाँ चिपका के चलते बने ओर बाद में मन ही मन कुढते रहें ओर पोस्ट को बकवास करार देकर जी भर गालियाँ निकालें या कि टिप्पणी देने की मजबूरी को कोसें.......क्या फर्क पडने वाला है! वैसे भी अपना काम तो हो गया.......एक पोस्ट ठेलनी थी, ठेल दी..बस! चलते हैं---

जै राम जी की!

amit_tiwari
22-11-2010, 05:17 PM
बस प्रभु बस आप जैसे कर्मवीरों के भरोसे शेषनाग के फन टिके हैं |:cheers:

लेकिन बढियां, शून्य को सजाने की कला पसंद आई |

kamesh
22-11-2010, 05:35 PM
आज मुड खराब है।

पता नहीं आज क्या हो गया है? हम जब कभी कुछ लिखते है तो चाहे उसे पढने वालों को बेशक आनन्द न आए लेकिन हमें लिखने में तो खूब आता है। आज तो लगता है कि मानो शब्द हडताल पर उतर आए हों.....एकदम विचार शून्यता की स्थिति.

अब देखिये न, बेमन से लिखने बैठे भी तो ऎसा कोई विषय ही नहीं सुझाई दे रहा है कि जिसपर कुछ देर खिटरपिटर की जा सके। न जाने कितनी देर यूँ ही बैठे बैठे कभी डैशबोर्ड को देखता हूँ, कभी की-बोर्ड की ओर तो कभी मूषक महाराज की ओर लेकिन तीनों ढाक के तीन पात की तरह अलग ही नजर आते है . इन तीनों का अस्तित्व मुझे बिल्कुल ही विरोधी जान पडने लगा है। मैनें कीबोर्ड से कईं बार हाथों का स्पर्श कराया; पर कुछ काम न बना.

न जाने देवी, देवता, पितर वगैरह किन किन का स्मरण करके देख लिया लेकिन किसी को भी तरस न आया. कम से कम एक घंटा यूँ ही कभी माऊस, कभी की-बोर्ड तो कभी डैशबोर्ड को देखते बीत गया, लेकिन जैसा कि न तो कुछ लिखा जाना था, ओर न ही लिखा गया. उल्टे इस एक घंटे की अवधि में चार कप चाय और तीन गिलास पानी जरूर गटक लिए, सोचा कि शायद किसी तरह से दिमाग की अकर्मन्यता दूर हो; पर सब उपचार व्यर्थ गए। परेशान होकर एक दो बार सोचा भी कि छोडो यार! कम्पयूटर बन्द कर देते है... क्या रखा है इस झंझट में; पर "जब तक साँस तब तक आस" ने वो भी न करने दिया।

कहते हैं कि जब मनुष्य निरूपाय हो जाता है तो फिर वो मूर्खता पर कमर कसता है। कभी कभी ऎसा भी समय आ जाता है कि जब अच्छे अच्छे विद्वानों की बुद्धि मात खा जाती है, तो भला हमारी क्या बिसात। हम तो यूँ भी कभी अपने आपको कोई खास समझदार नहीं समझते।

मैने जब अच्छी तरह देख लिया कि अब कोई चारा नहीं, दिमाग में कैसा भी कोई आईडिया आ ही नहीं रहा तो अब एक ही हल है कि नैट से कोई एक ऊलजलूल सी तस्वीर खोजकर, उसका कोई आलतू फालतू सा शीर्षक देकर ही एक पोस्ट ठेल दी जाए। ज्यों ज्यों मैं गौर करता गया, मुझे एक यही विचार समायोजित और उपयुक्त जान पडने लगा। कारण ये कि इसमें नुक्सान तो कुछ था ही नहीं; टिप्पणियाँ तो अपने को उस पर भी मिल ही जानी है। आखिर अपने भी तो कुछ बन्धे बँधाए ग्राहक हैं ही.......भले ही बेशक भाई लोग झूठमूठ की वाह! वाह्! बहुत बढिया! जैसी टिप्पणियाँ चिपका के चलते बने ओर बाद में मन ही मन कुढते रहें ओर पोस्ट को बकवास करार देकर जी भर गालियाँ निकालें या कि टिप्पणी देने की मजबूरी को कोसें.......क्या फर्क पडने वाला है! वैसे भी अपना काम तो हो गया.......एक पोस्ट ठेलनी थी, ठेल दी..बस! चलते हैं---

जै राम जी की!
होता है अयसा होता है कभी कभी धकम पेल से भी काम चलाना पड़ता है आप ने आज बाउंसर मार के निकल गए बल्लेबाज ( पढने वाले) सभी चाकर घिनी हो गए आज आप के बाउंसर से

malethia
22-11-2010, 06:37 PM
आज मुड खराब है।

पता नहीं आज क्या हो गया है? हम जब कभी कुछ लिखते है तो चाहे उसे पढने वालों को बेशक आनन्द न आए लेकिन हमें लिखने में तो खूब आता है। आज तो लगता है कि मानो शब्द हडताल पर उतर आए हों.....एकदम विचार शून्यता की स्थिति.

अब देखिये न, बेमन से लिखने बैठे भी तो ऎसा कोई विषय ही नहीं सुझाई दे रहा है कि जिसपर कुछ देर खिटरपिटर की जा सके। न जाने कितनी देर यूँ ही बैठे बैठे कभी डैशबोर्ड को देखता हूँ, कभी की-बोर्ड की ओर तो कभी मूषक महाराज की ओर लेकिन तीनों ढाक के तीन पात की तरह अलग ही नजर आते है . इन तीनों का अस्तित्व मुझे बिल्कुल ही विरोधी जान पडने लगा है। मैनें कीबोर्ड से कईं बार हाथों का स्पर्श कराया; पर कुछ काम न बना.

न जाने देवी, देवता, पितर वगैरह किन किन का स्मरण करके देख लिया लेकिन किसी को भी तरस न आया. कम से कम एक घंटा यूँ ही कभी माऊस, कभी की-बोर्ड तो कभी डैशबोर्ड को देखते बीत गया, लेकिन जैसा कि न तो कुछ लिखा जाना था, ओर न ही लिखा गया. उल्टे इस एक घंटे की अवधि में चार कप चाय और तीन गिलास पानी जरूर गटक लिए, सोचा कि शायद किसी तरह से दिमाग की अकर्मन्यता दूर हो; पर सब उपचार व्यर्थ गए। परेशान होकर एक दो बार सोचा भी कि छोडो यार! कम्पयूटर बन्द कर देते है... क्या रखा है इस झंझट में; पर "जब तक साँस तब तक आस" ने वो भी न करने दिया।

कहते हैं कि जब मनुष्य निरूपाय हो जाता है तो फिर वो मूर्खता पर कमर कसता है। कभी कभी ऎसा भी समय आ जाता है कि जब अच्छे अच्छे विद्वानों की बुद्धि मात खा जाती है, तो भला हमारी क्या बिसात। हम तो यूँ भी कभी अपने आपको कोई खास समझदार नहीं समझते।

मैने जब अच्छी तरह देख लिया कि अब कोई चारा नहीं, दिमाग में कैसा भी कोई आईडिया आ ही नहीं रहा तो अब एक ही हल है कि नैट से कोई एक ऊलजलूल सी तस्वीर खोजकर, उसका कोई आलतू फालतू सा शीर्षक देकर ही एक पोस्ट ठेल दी जाए। ज्यों ज्यों मैं गौर करता गया, मुझे एक यही विचार समायोजित और उपयुक्त जान पडने लगा। कारण ये कि इसमें नुक्सान तो कुछ था ही नहीं; टिप्पणियाँ तो अपने को उस पर भी मिल ही जानी है। आखिर अपने भी तो कुछ बन्धे बँधाए ग्राहक हैं ही.......भले ही बेशक भाई लोग झूठमूठ की वाह! वाह्! बहुत बढिया! जैसी टिप्पणियाँ चिपका के चलते बने ओर बाद में मन ही मन कुढते रहें ओर पोस्ट को बकवास करार देकर जी भर गालियाँ निकालें या कि टिप्पणी देने की मजबूरी को कोसें.......क्या फर्क पडने वाला है! वैसे भी अपना काम तो हो गया.......एक पोस्ट ठेलनी थी, ठेल दी..बस! चलते हैं---

जै राम जी की!
आपकी यही अदा तो काबिल-ऐ-तारीफ़ है

arvind
24-11-2010, 11:35 AM
दोस्तों आज मैं जिस विषय को लेकर आपके दरबार में हाज़िर हुआ जाता हूँ, वोह फोरम के हम सभी सदस्यो के जीवन का एक बहुत ही अहम हिस्सा है। इसके बिना 99% सदस्य किसी भी सूत्र मे प्रविष्टि करने की कल्पना भी नहीं है कर सकते। और वोह है हम सबका प्यारा, दुलारा और चहेता – कमेन्ट। और हो भी क्यों ना? इसी से तो हम सबको कुछ नया करने का और बेहतर ढंग से लिखने की उर्जा मिला करती है। यहाँ पे बार-बार आने का एक आकर्षण फीचर्ड सूत्र के साथ-साथ कमेन्ट भी है।

मैं खुद अपनी प्रविष्टि करने के बाद कम से कम दो बार बहुत ही धड़कते हुए दिल से देखा करता हूँ कि किसने मेरे बारे में क्या कहा है। इनमे ही तो हमारी जान बसती है। इसके बिना कौन जीना चाहता है। यह गर ना हो तो जीवन कितना नीरस हो जाएगा। इसकी कितनी अहमियत है, यह निम्नलिखित बातो से ही पता लग जाता है :-

arvind
24-11-2010, 11:37 AM
1. कई बार ऐसे रहस्योदघाटन भी हुए है की फला सदस्य ने दूसरी आई . डी . से खुद पे ही कमेन्ट किये है।

arvind
24-11-2010, 11:38 AM
2. दूसरों के सूत्र पर जाकर उनसे गुज़ारिश की जाती है की मेरी अमुक रचना पर अपना कीमती कमेन्ट कर मुझको कृतार्थ करे, अगर सीधे से मान गए तो ठीक है, वर्ना अप्रत्यक्ष रूप से धमकी भी दी जाती है। और मैं तो ठहरा निहायत ही कमज़ोर आदमी, इसीलिए मैं तो धमकी की नौबत आने ही नहीं देता बल्कि उससे पहले ही गुज़ारिश पर ही कमेन्ट करने पहुँच जाया करता हूँ। अरे भाई अपनी इज्ज़त अपने ही हाथ में रहे तो ठीक रहता है।

arvind
24-11-2010, 11:39 AM
3. यहाँ का एक अलिखित और सर्वमान्य सिद्धांत है, जो कि बिल्कुल नेता जी सुभाष चन्द्र बोस जी के स्टाइल में अमल में लाया जाता है, और वोह है – "तुम मुझको कमेन्ट दो , बदले में मैं भी तुमको कमेन्ट दूँगा"। अब यार लोग तो ठहरे आज़ाद तबियत के और ख्यालात के, लेकिन जब यहाँ पर रहना है तो यहाँ के कायदे कानून भी तो मानने होंगे ना हमको, तो इसके लिए मैंने यह बीच का रास्ता निकाला है कि अपनी हर प्रविष्टि करने के बाद लगभग चौबीस घंटे तक में किसी के भी सूत्र मे कोई भी कमेन्ट नहीं करता हूँ, कयोंकि मुझको सौदेबाजी या ब्लैकमेलिंग कतई भी पसंद नहीं है।

arvind
24-11-2010, 11:40 AM
4. कुछेक सदस्य कमेन्ट पाने के लिए दूसरों कि भावनायों का शोषण भी करते देखे जाते है। अक्सर इसी फेर में दोस्तिया गांठी जाती है, या फिर व्यक्तिगत संबंघों का तानाबाना बुना जाता है, ताकि हम कैसा भी क्यों ना लिखे कमेन्ट तो हमको मिलता ही रहे, यहा तक कि "चौपाल" मे हाय, हल्लों, नमस्कार इत्यादि। इसीलिए यह अक्सर ही देखने को मिलता है जब सदस्य कहते है कि :-

>आपका कमेन्ट इस बार देर से मिला, या फिर –
>आपने मेरी अमुक प्रविष्टि पर कोई कमेन्ट नहीं दिया,
>अपने विचारों से हमको अवगत करवाइए

अरे भाई अगर मुझ से कोई ऐसा वेसा कमेन्ट करवाना है तो पहले मेरे खाता नम्बर 420420420420 में अच्छी खासी रकम जमा करवाइए।

arvind
24-11-2010, 11:41 AM
5. कुछेक चुनिंदा सदस्य अपने पर ज़ुल्म और सितम कि झूठी और सच्ची कहानिया सुंदर शब्दों में पिरो कर पेश किया करते है, ताकि सहानभूति कि नौका पर सवार हो कर कमेन्ट रूपी चप्पुओं का सहारा ले कर इस फोरम कि वैतरिणी को पार किया जा सके। उनकी काठ कि हांडी अक्सर चूल्हे पे चढ़ी ही रहती है, और पप्पू पास होते रहते / रहती है, ना जाने हम कब समझेंगे? और हमको कब अक्ल आएगी ?

arvind
24-11-2010, 11:43 AM
6. अब तो अक्सर मैं खुद भी नाम देख कर कमेन्ट किया करता हूँ... कि फला सदस्य कि प्रविष्टि आई है तो उसपे तो कमेन्ट करना ही है। कयोंकि अगर हम दूसरों को इज्जत नहीं देंगे तो दूसरे हम पर काहे को लानत डालेंगे भाई !

शुक्र है की नियामक और प्रबन्धक भी मेरी तरह सिर्फ नाम को देख कर ही सूत्र को फीचर्ड नहीं है करते। फिर तो यार लोगो का आजतक एक भी सूत्र फीचर्ड ना हो पाता।

arvind
24-11-2010, 11:45 AM
यह कमेन्ट भी अजीब शह है यारो, सबसे पहले तो इस बात कि चिंता कि मुझको कोई पड़ता भी है कि नहीं, उसके बाद यह शिकायत कि इतने लोगो ने पढा लेकिन कमेन्ट के वक्त ज्यादातर लोग कन्नी काट गए और कमेन्ट मिल गए तो फिर अगर कोई उनमे ऐसा वेसा हुआ तो उसकी अलग से परेशानी कि इस गन्दी मछली को टोकरे से निकाल के कैसे बाहर करे?

और अंत में सबसे अहम बात जो मैं आप सबसे कहना चाहता हूँ कि अक्सर ही हम किसी भी अच्छी प्रविष्टि को देख कर झट से कमेन्ट जड़ देते है कि – अच्छी पोस्ट , बहुत -२ बधाई ! हो बधाई !! मेरी उस पाक परवरदिगार से यही प्रार्थना है कि खुदा ऐसे सभी सदस्यो को अगले सात जन्मो तक फोरम का सदस्य बनाए रखे.....

मेरे इस लेख को सभी पढ़ने वालो से.... पहले तो कमेन्ट कि गुज़ारिश..... नहीं तो बाद में कमेन्ट दे देने कि धमकी के साथ.....

अंत में सभो सदस्यो से इसी इल्तजा के साथ विदाई लेता हूँ कि यह दुनिया है ! होता है ! चलता है ! दिल पे मत लेना मेरे यार !!

जरूरी नोट :-
अगर किसी की भी मेरे इस लेख को पढ़ कर भावनाए आहत हुई हो ..या फिर दिल पे कोई ठेस लगी हो तो आप सभी से निवेदन है की मुझसे माफ़ी मंगवा कर मुझको शर्मिन्दा करने की जहमत मत उठाए, कयोंकि यह तो आप लोगो का हर बार का शुगल हो गया है, और अब तो आप सभी को मुझ को बर्दाश्त करने की आदत ड़ाल ही लेनी चाहिए, कयोंकि हमारा तो पेशा ही यही है। अगर घोड़ा घास से यारी करेगा तो फिर खायेगा क्या ?

jalwa
24-11-2010, 10:27 PM
1. कई बार ऐसे रहस्योदघाटन भी हुए है की फला सदस्य ने दूसरी आई . डी . से खुद पे ही कमेन्ट किये है।


मित्र, लेकिन आप चिंता मत कीजिये.. क्योंकि आपके सूत्र को लगातार अन्य सदस्यों के कमेंट्स भी मिल रहे हैं और तारीफें भी.
कृपया जारी रखें. हा हा .. मजेदार है.

ndhebar
26-11-2010, 02:02 PM
देख लो अरविन्द भाई
मुझे सन्देश भेजा और मैं कमेन्ट करने आ गया
आखिर हमें भी इसी फोरम पर रहना है भाई
:giggle::giggle::giggle::giggle::giggle::giggle:

Mask
28-11-2010, 12:25 AM
nisant ji hallo kaise hu aap

amit_tiwari
28-11-2010, 10:18 AM
5. कुछेक चुनिंदा सदस्य अपने पर ज़ुल्म और सितम कि झूठी और सच्ची कहानिया सुंदर शब्दों में पिरो कर पेश किया करते है, ताकि सहानभूति कि नौका पर सवार हो कर कमेन्ट रूपी चप्पुओं का सहारा ले कर इस फोरम कि वैतरिणी को पार किया जा सके। उनकी काठ कि हांडी अक्सर चूल्हे पे चढ़ी ही रहती है, और पप्पू पास होते रहते / रहती है, ना जाने हम कब समझेंगे? और हमको कब अक्ल आएगी ?

:bravo::bravo::dance:
मुनिवर आपने तो बलात्कार को चमत्कार बता कर कर डाला |
इस विभाग में थोडा कम आना होता है सो देर से पढ़ पाए पन धांसू है |:bravo:

kamesh
28-11-2010, 02:20 PM
4. कुछेक सदस्य कमेन्ट पाने के लिए दूसरों कि भावनायों का शोषण भी करते देखे जाते है। अक्सर इसी फेर में दोस्तिया गांठी जाती है, या फिर व्यक्तिगत संबंघों का तानाबाना बुना जाता है, ताकि हम कैसा भी क्यों ना लिखे कमेन्ट तो हमको मिलता ही रहे, यहा तक कि "चौपाल" मे हाय, हल्लों, नमस्कार इत्यादि। इसीलिए यह अक्सर ही देखने को मिलता है जब सदस्य कहते है कि :-

>आपका कमेन्ट इस बार देर से मिला, या फिर –
>आपने मेरी अमुक प्रविष्टि पर कोई कमेन्ट नहीं दिया,
>अपने विचारों से हमको अवगत करवाइए

अरे भाई अगर मुझ से कोई ऐसा वेसा कमेन्ट करवाना है तो पहले मेरे खाता नम्बर 420420420420 में अच्छी खासी रकम जमा करवाइए।
नो कमेंट्स

prashant
24-12-2010, 10:44 AM
1. कई बार ऐसे रहस्योदघाटन भी हुए है की फला सदस्य ने दूसरी आई . डी . से खुद पे ही कमेन्ट किये है।


:iagree:

अब कोई क्या करे जब कोई दूसरा भाव नहीं देता तो ................ अपने मुंह मिया मिठ्ठूराम जो जाते हैं.........शायद प्रविष्ठी बढ़ाने पर कोई भाव देदे................

arvind
17-01-2011, 04:09 PM
कम्प्युटर आधारित कहावते और लोकोक्तियाँ।

साथियों अभी तक आपने ट्रेडीशनल कहावते और लोकोक्तियाँ सुनी होंगी, अब नए आविष्कार हुये कुछ कहावते और लोकोक्तियाँ बताने जा रहा हूँ। अगर आपको इसका मतलब या सार समझ ना आए तो मुझसे पुछ कर मुझे शर्मिंदा ना करे।

arvind
17-01-2011, 04:12 PM
"1f u c4n r34d th1s u r r34lly gr8"

"हेल्पडेस्क: आपके कंप्यूटर पर एक आइकन होगा - "मेरा कंप्यूटर". उस पर डबल क्लिक करें.

उपयोगकर्ता: आपका कंप्यूटर मेरे कंप्यूटर पर क्या कर रहा है? "

"मुझे लगता है कि माइक्रोसॉफ्ट ने .net का नाम जानबूझ कर रखा ताकि वो यूनिक्स की डिरेक्ट्री लिस्टिंग में न दिखाई दे."

"अगर डिबगिंग बग को दूर करने की प्रक्रिया है, तो प्रोग्रामिंग उन्हें अंदर डालने की प्रक्रिया होनी चाहिए"

शुक्र है कि कम्प्यूटरों के पास आर्टीफ़िशियल इंटेलिजेंस होता है. ओरिजिनल होता तो क्या होता?

"कोई भी बेवकूफ कंप्यूटर का उपयोग कर सकता है. कई करते हैं. "

"हार्डवेयर: कम्प्यूटर की एक प्रणाली है जहाँ पर लात मारी जा सकता है."

"जिस प्रोग्राम की मदद फ़ाइलें अच्छी और बड़ी हैं, तो यकीनन वो प्रोग्राम यूजरफ्रेंडली नहीं होगा."

"आप एक गीक हैं यदि ... आप अपने माउस संकेतक से मच्छर मारने की कोशिश करते हैं. ऐसा मेरे साथ हो चुका है. बड़ा भयंकर अनुभव था वो."

"कम्प्यूटर भाषा डिजाइन करना तो किसी पार्क में टहलने जैसा है. बस, वो पार्क जुरासिक पार्क होता है"

arvind
17-01-2011, 04:15 PM
"मैं असामाजिक नहीं हूँ, मैं बस यूजर फ्रेंडली नहीं हूँ"

दुनिया का अंत आ रहा है ... बैकअप ले लें अभी ही! "

"यदि आप नहीं चाहते कि कंपनी में आपकी जगह कोई कंप्यूटर ले ले, तो कंप्यूटर की तरह काम मत करें, कतई मत करें."

"एक मूर्ख के बजाए एक गीकी दिखना ज्यादा अच्छा है."

"मैं एक सज्जन के साइबर कैफे में गया – वहाँ मुझे 'लैपटॉप नृत्य' की पेशकश की गई."

"पर्ल के बाद बाकी सब कुछ एसेम्बली भाषा है."

"इंटरनेट: जहां लोग पुरुष, पुरुष हैं, महिलाएँ, महिलाएँ हैं, परंतु बच्चे जासूसी एजेंट हैं."

"दुनिया में 10 तरह के लोग हैं: १ जो बाइनरी समझते हैं, और ० जो नहीं समझते हैं."

वायरस और विंडोज के बीच अंतर? " वायरस शायद ही कभी असफल होता हो. "

"हैकिंग प्यार की तरह है. आप प्यार में पड़ते हैं और बाहर निकल आते हैं, और उम्मीद करते हैं कि वापस आते समय आपने ऐसा कोई सुराग नहीं छोड़ा है जिससे आप तक पहुँचा जा सके. "

arvind
17-01-2011, 04:18 PM
"समस्या निवारण के साथ समस्या यह है कि कभी कभी समस्या ही हल होता है."

बकवास "... किसी ने मेरी रीसायकल बिन पर दस्तक दिया है ... वहाँ मेरे डेस्कटॉप पर प्रतीक चिह्न भरे पड़े हैं ... "

"आराम से, यहाँ पर एक और शून्य के अलावा और कुछ भी नहीं है!"

"rm-rf / bin / laden"

"मुझे परवाह नहीं है कि आप इसमें पीएचडी कर रहे हैं! जरा कंप्यूटर से दूर हो जाओ और थोड़ा घूम-फिर आओ! "

"ऑब्जैक्ट ओरिएंटेड कोड के बारे में बड़ी बात ये है कि यह छोटे, साधारण समस्याओं को विशाल, जटिल दिखने लायक बना सकता है."

"जानवरों की तरह जुतने से भी अगर आपकी समस्याओं का समाधान नहीं हो रह है, तो इसका मतलब है कि आप अपने सामर्थ्य का पर्याप्त प्रयोग नहीं कर रहे हैं."

"प्रोग्रामिंग तो प्यार की तरह है, एक गलती हुई और आपको इसे ताजिंदगी सहारा देते रहना होगा."

"लिनक्स यूजर फ्रेंडली है. समस्या ये है कि ये खुद चुनता है कि इसका फ्रेंड कौन हो सकता है. "

Microsoft: "आपके पास प्रश्न हैं. हमारे पास नृत्य करते पेपर क्लिप हैं. " (टीप -माइक्रोसॉफ़्ट ऑफिस के एक पूर्व संस्करण में मदद के लिए पेपर क्लिप एनीमेशन लगाया शामिल किया गया था.)

arvind
17-01-2011, 04:20 PM
"आखिर किसलिए हमें बुद्धिमान टर्मिनलों की आवश्यकता है जब इधर इतने बेवकूफ उपयोगकर्ता हैं?"

"मैं इसे अनइंस्टाल नहीं कर पा रहा. यहाँ तो कोई अनइंस्टाल-शील्ड है."

"आपने देखा? सभी कुंजियाँ अब वर्णमाला क्रम में हैं. "

"अरे! यह कम्पाइल हो गया! इसे बाजार में भेज दो '!

"सुपर कंप्यूटर: जब तक कि आप इसे खरीद नहीं लेते"

"एचटीएमएल मोटे व्यक्ति की तरह है: छोटा सा सिर, भारी शरीर."

"विंडोज विस्ता:. यह कोड़ा से सोरेन की तरह के अपग्रेड जैसा है"

जितना ज्यादा आईसी (i c )", उतना कम यू सी."

"जीवन बहुत आसान होता अगर हमारे पास स्रोत कोड होता."

"मेरे सॉफ्टवेयर में बग नहीं हैं. उनमें तो बस रेंडम सुविधाएँ उत्पन्न हो गई हैं. "

arvind
17-01-2011, 04:22 PM
"कुछ चीजों का मतलब मनुष्य को कभी पता करने की जरूरत ही नहीं है. और बाकी सबकुछ के लिए, अपने इधर तो गूगल है. "

असफलता "कोई विकल्प नहीं है - यह विंडोज के साथ बंडल में आता है."

"कंप्यूटर खेल बच्चों को प्रभावित नहीं करते हैं, मेरा मतलब है, अगर हम अपने बचपने में पैक-मेन द्वारा प्रभावित हुए होते, तो हम सब अंधेरे कमरे में चारों ओर दौड़ते हुए जादुई गोलियाँ निगलते और बारंबार दोहराए जाते एक ही इलेक्ट्रॉनिक संगीत सुनते रहते होते."

"आप कोबोल प्रोग्रामर हैं तो समझ सकते हैं कि महिलाओं को पीरियड्स से नफरत क्यों होती है."

'कृत्रिम बुद्धि, प्राकृतिक मूर्खता को आमतौर पर हरा देती है. "

गलती तो मानव स्वभाव है... भयंकर गलती के लिए रूट पासवर्ड चाहिए होता है."

"कार दुर्घटनाओं की तरह, अधिकतर हार्डवेयर समस्याओं के पीछे हार्डवेयर ड्राइवर की त्रुटियों का ही हाथ होता है"

"यदि आप पहली बार में सफल नहीं होते हैं, तो इसे संस्करण १.० बीटा कह दें"

"अगर पायथन निष्पादन योग्य स्यूडोकोड है, तो पर्ल निष्पादन योग्य लाइन नॉइस है."

"प्रोग्रामर तो बस कैफीन को कोड में परिवर्तित करने के लिए उपकरण मात्र हैं."

abhisays
17-01-2011, 10:34 PM
Great innovation, must read for all IT folks. One more masterpiece from arvind ji.

On mobile.

amit_tiwari
18-01-2011, 09:55 AM
शुक्र है कि कम्प्यूटरों के पास आर्टीफ़िशियल इंटेलिजेंस होता है. ओरिजिनल होता तो क्या होता?

"कम्प्यूटर भाषा डिजाइन करना तो किसी पार्क में टहलने जैसा है. बस, वो पार्क जुरासिक पार्क होता है"




"मैं असामाजिक नहीं हूँ, मैं बस यूजर फ्रेंडली नहीं हूँ"

दुनिया का अंत आ रहा है ... बैकअप ले लें अभी ही! "


"इंटरनेट: जहां लोग पुरुष, पुरुष हैं, महिलाएँ, महिलाएँ हैं, परंतु बच्चे जासूसी एजेंट हैं."

"दुनिया में 10 तरह के लोग हैं: १ जो बाइनरी समझते हैं, और ० जो नहीं समझते हैं."

वायरस और विंडोज के बीच अंतर? " वायरस शायद ही कभी असफल होता हो. "

"हैकिंग प्यार की तरह है. आप प्यार में पड़ते हैं और बाहर निकल आते हैं, और उम्मीद करते हैं कि वापस आते समय आपने ऐसा कोई सुराग नहीं छोड़ा है जिससे आप तक पहुँचा जा सके. "





"आराम से, यहाँ पर एक और शून्य के अलावा और कुछ भी नहीं है!"




"लिनक्स यूजर फ्रेंडली है. समस्या ये है कि ये खुद चुनता है कि इसका फ्रेंड कौन हो सकता है. "

Microsoft: "आपके पास प्रश्न हैं. हमारे पास नृत्य करते पेपर क्लिप हैं. " (टीप -माइक्रोसॉफ़्ट ऑफिस के एक पूर्व संस्करण में मदद के लिए पेपर क्लिप एनीमेशन लगाया शामिल किया गया था.)




"आखिर किसलिए हमें बुद्धिमान टर्मिनलों की आवश्यकता है जब इधर इतने बेवकूफ उपयोगकर्ता हैं?"


"अरे! यह कम्पाइल हो गया! इसे बाजार में भेज दो '!

"सुपर कंप्यूटर: जब तक कि आप इसे खरीद नहीं लेते"

"एचटीएमएल मोटे व्यक्ति की तरह है: छोटा सा सिर, भारी शरीर."

"विंडोज विस्ता:. यह कोड़ा से सोरेन की तरह के अपग्रेड जैसा है"


"मेरे सॉफ्टवेयर में बग नहीं हैं. उनमें तो बस रेंडम सुविधाएँ उत्पन्न हो गई हैं. "




"कुछ चीजों का मतलब मनुष्य को कभी पता करने की जरूरत ही नहीं है. और बाकी सबकुछ के लिए, अपने इधर तो गूगल है. "

असफलता "कोई विकल्प नहीं है - यह विंडोज के साथ बंडल में आता है."


गलती तो मानव स्वभाव है... भयंकर गलती के लिए रूट पासवर्ड चाहिए होता है."

"कार दुर्घटनाओं की तरह, अधिकतर हार्डवेयर समस्याओं के पीछे हार्डवेयर ड्राइवर की त्रुटियों का ही हाथ होता है"

"यदि आप पहली बार में सफल नहीं होते हैं, तो इसे संस्करण १.० बीटा कह दें"


"प्रोग्रामर तो बस कैफीन को कोड में परिवर्तित करने के लिए उपकरण मात्र हैं."


:bravo::bravo::bravo::bravo::bravo:


साधु साधु | अगर हम 65 साल के होते तो निःशब्द हो जाते और अगर ये लीप इयर होता तो साहित्य का नोबल आपको दे देते किन्तु हाय रे प्रारब्ध !!!! चलिए धन्यवाद से काम चलिए :cheers::party::party:

जबरदस्त जबरदस्त जबरदस्त लिखा है गुरु |

VIDROHI NAYAK
18-01-2011, 11:05 AM
"कुछ चीजों का मतलब मनुष्य को कभी पता करने की जरूरत ही नहीं है. और बाकी सबकुछ के लिए, अपने इधर तो गूगल है. "

असफलता "कोई विकल्प नहीं है - यह विंडोज के साथ बंडल में आता है."

"कंप्यूटर खेल बच्चों को प्रभावित नहीं करते हैं, मेरा मतलब है, अगर हम अपने बचपने में पैक-मेन द्वारा प्रभावित हुए होते, तो हम सब अंधेरे कमरे में चारों ओर दौड़ते हुए जादुई गोलियाँ निगलते और बारंबार दोहराए जाते एक ही इलेक्ट्रॉनिक संगीत सुनते रहते होते."

"आप कोबोल प्रोग्रामर हैं तो समझ सकते हैं कि महिलाओं को पीरियड्स से नफरत क्यों होती है."

'कृत्रिम बुद्धि, प्राकृतिक मूर्खता को आमतौर पर हरा देती है. "

गलती तो मानव स्वभाव है... भयंकर गलती के लिए रूट पासवर्ड चाहिए होता है."

"कार दुर्घटनाओं की तरह, अधिकतर हार्डवेयर समस्याओं के पीछे हार्डवेयर ड्राइवर की त्रुटियों का ही हाथ होता है"

"यदि आप पहली बार में सफल नहीं होते हैं, तो इसे संस्करण १.० बीटा कह दें"

"अगर पायथन निष्पादन योग्य स्यूडोकोड है, तो पर्ल निष्पादन योग्य लाइन नॉइस है."

"प्रोग्रामर तो बस कैफीन को कोड में परिवर्तित करने के लिए उपकरण मात्र हैं."

आनंद आ गया अरविन्द जी ! क्या इसे कहीं और प्रकाशित कर सकते हैं ?

arvind
18-01-2011, 11:20 AM
आनंद आ गया अरविन्द जी ! क्या इसे कहीं और प्रकाशित कर सकते हैं ?
शौक से प्रकाशित कीजिये.....

ndhebar
18-01-2011, 05:31 PM
"कुछ चीजों का मतलब मनुष्य को कभी पता करने की जरूरत ही नहीं है. और बाकी सबकुछ के लिए, अपने इधर तो गूगल है. "


मुझ पर ये कथन पूरी तरह से लागू होता है
मुझे लगता है आज की पीढ़ी को खुद से ज्यादा गूगल देव पर विश्वास है

khalid
18-01-2011, 06:34 PM
मुझ पर ये कथन पूरी तरह से लागू होता है
मुझे लगता है आज की पीढ़ी को खुद से ज्यादा गूगल देव पर विश्वास है

जय गूगल देव जी की
.....?

arvind
09-02-2011, 04:25 PM
लिखन पांडे और टिपन पांडे बचपन के लंगोटिया यार थे। इनकी दोस्ती पूरे कस्बे मे एक मिशाल थी। जब बड़े हुये तो कमाने के दोनों अलग-अलग शहर मे चले गए थे और अब करीब दस सालो के बाद चौपाल पर मिले मिले थे और मिलते ही दोनों एक दूसरे को पहचान गए।

टिपन पांडे: नमस्कार लिखन भाई।
लिखन पांडे: नमस्काऽऽर! आइये आइये टिपन भाई!"
टिपन पांडे: सुनाइये क्या चल रहा है?
लिखन पांडे: चलना क्या है? अभी अभी एक पोस्ट लिखकर डाला है अपने सूत्र में और अब हम फोरम पर अन्य मित्रों के पोस्टों को देख रहे हैं।
टिपन पांडे: अच्छा यह बताइये लिखन भाई, आप इतने सारे पोस्ट लिख कैसे लेते हैं? भइ हम तो बड़ी मुश्किल से सिर्फ टिप्पणी ही लिख पाते हैं, पोस्ट लिखना तो सूझ ही नहीं पाता हमें।
लिखन पांडे: अरे टिपन भाई! पोस्ट लिखना कौन सा कठिन काम है, कोई भी लिख सकता है।
टिपन पांडे: कैसे?
लिखन पांडे: बताता हूँ पर पहले आप यह बताइये कि दया करना पुण्य और क्रोध करना पाप होता है कि नहीं?
टिपन पांडे: जी हाँ, ऐसा ही है, बिल्कुल सही कह रहे हैं आप!
लिखन पांडे: अब मान लीजिये कि आप कहीं जा रहे हैं और रास्ते में देखते हैं कि एक आदमी किसी मासूम बच्चे को पीट रहा है और बहुत से लोग चुपचाप देख रहे हैं। आपके पूछने पर लोग बताते हैं कि बच्चे को मारने वाला वह आदमी बच्चे से भीख मँगवाता है। आज बच्चे ने भीख में कुछ भी नहीँ लाया इसीलिये वह बच्चे को मार रहा है। ऐसे में आप क्या करेंगे? आप तो हट्टे-कट्टे आदमी हैं, क्या आप उस आदमी को छोड़ देंगे?
टिपन पांडे: अजी, मैं तो मार मार कर कचूमर निकाल दूँगा। इतना मारूँगा स्साले को कि फिर कभी बच्चे को पीटना ही भूल जायेगा।
लिखन पांडे: क्यों मारेंगे उसे आप? क्योंकि उस मासूम बच्चे पर दया आई आपको इसीलिये ना?
टिपन पांडे: जी हाँ!
लिखन पांडे: तो बच्चे पर दया करके आपने पुण्य किया कि नहीं?
टिपन पांडे: बिल्कुल किया जी!
लिखन पांडे: अच्छा अब बताइये उस आदमी को मारने के लिये क्रोध भी किया था ना आपने? बिना क्रोध किये तो किसी को मारा नहीं जा सकता!
टिपन पांडे: हाँ जी, बहुत गुस्सा आया मुझे।
लिखन पांडे: तो क्रोध करके आपने पाप किया कि नहीं?
टिपन पांडे: अजी आप फँसाने वाली बात कर रहे हैं।
लिखन पांडे: आप तो बस इतना बताइये कि क्रोध करके आपने पाप किया कि नहीं?
टिपन पांडे: हाँ जी किया?
लिखन पांडे: तो मुझे बताइये कि वास्तव में आपने क्या किया? दया किया कि क्रोध? पुण्य किया कि पाप?
टिपन पांडे: अब मैं क्या बताऊँ जी! मेरा तो दिमाग ही घूम गया।
लिखन पांडे: देखिये टिपन भाई! वास्तव में आपने बच्चे पर दया किया किन्तु सिर्फ दया करके आप उस बच्चे को बचा नहीं सकते थे। उसे बचाने के लिये आपको बच्चे को उस दुष्ट आदमी से छुटकारा नहीं दिला सकते थे, बच्चे को उस जालिम से बचाने के लिये उसको मारना भी जरूरी था जो कि बिना क्रोध किये हो ही नहीं सकता। है कि नहीं?
टिपन पांडे: जी, बिल्कुल!
लिखन पांडे: तो इसका मतलब यह हुआ कि दया करने के लिये क्रोध का सहारा लेना जरूरी है। पुण्य करने के लिये पाप भी करना पड़ता है। पाप और पुण्य का एक दूसरे के बिना काम ही नहीं चल सकता। याने कि पाप और पुण्य एक दूसरे के पूरक हैं।
टिपन पांडे: आप की बात सुनने के बाद मुझे भी ऐसा ही लगने लगा है कि पाप और पुण्य एक दूसरे के पूरक हैं।
लिखन पांडे: अब हम दोनों के बीच अभी जो बातें हुई हैं उसी को यदि मैं 'पुण्य करने के लिये पाप भी करना पड़ता है' शीर्षक देकर अपना एक सूत्र बना बना दु तो हो गया एक सूत्र मेरे नाम।
टिपन पांडे: बिल्कुल बन गई जी!
लिखन पांडे: तो जब मैं कहता हूँ कि 'पोस्ट लिखना कौन सा कठिन काम है, कोई भी लिख सकता है' तो क्या गलत कहता हूँ?
टिपन पांडे: बिल्कुल सही कहते हैं जी आप!
लिखन पांडे: चाय पियेंगे आप? मँगवाऊँ?
टिपन पांडे: नहीं लिखन भाई, फिर कभी पी लूँगा, आज जरा जल्दी में हूँ। चलता हूँ, नमस्कार!
लिखन पांडे: नमस्कार!

ndhebar
09-02-2011, 04:55 PM
बहुते खूब, तोहार लेखनी खातिर

अगर आपके पाप करने से किसी का भला होता है तो वो पाप, पाप नहीं पुण्य है

arvind
09-02-2011, 05:04 PM
बहुते खूब, तोहार लेखनी खातिर

अगर आपके पाप करने से किसी का भला होता है तो वो पाप, पाप नहीं पुण्य है
बहुतों का भला किया, अब आपकी बारी है,
अब तो मान लो, तुम्हारी गर्ल फ्रेंड अब हमारी है।

ndhebar
09-02-2011, 05:19 PM
बहुतों का भला किया, अब आपकी बारी है,
अब तो मान लो, तुम्हारी गर्ल फ्रेंड अब हमारी है।
शुभस्य शीघ्रम बंधू
ले जाओ, ले जाओ
ससुरी पीछा ही नहीं छोड़ती, इसी बहाने बरी तो हो पाऊंगा

arvind
21-02-2011, 11:17 AM
आज-कल बिना कुछ "लिए दिये" कोई काम नहीं होता है, ये बात मै अच्छी तरह से जानता हूं पर मानने के समय ये फॉर्मूला भूल जाता हूं। क्या करू... मै तो ऐसा ही हूं। अब देखिये ना, मेरे इस सूत्र पर बहुत कम लोग आते है। निशांत जी, अमित जी जैसे, दो चार कर्जदार है जो मजबूरीवश यहा चले आते है।

आज सुबह जैसे ही अपने सूत्रो को देखा तो आधे से ज्यादा संगी लोग जो कि हमारी फोलोवर्स की लिस्ट में शामिल थे, गायब दिखाई दिए। भई, कमाल है? हमसे ऎसी भी क्या खता हो गई कि सभी पल्लू छुडा कर भाग लिए। फिर सोचा कि पिछले कईं दिनों से कोई नयीं पोस्ट नहीं लिखी जा रही थी, शायद भाईलोग इसी लिए गधे के सिर से सींग की माफिक खिसक लिए हैं।

अब तो कुछ जुगाड़ लगाना ही पड़ेगा, ताकि लोग हमारे सूत्रो पर भी नजारे-इनायत करे। सोचता हूं एक बंदर रख लू और उसपर रिसर्च शुरू कर दु, और रिसर्च के तरीको को हर दिन पोस्ट मे लिखता जाऊ, शायद कुछ मशाला का जुगाड़ तो ही जाएगा।

आप लोग भी अपनी राय जरूर बताए..... हीहीही।

bhoomi ji
21-02-2011, 05:22 PM
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति अरविन्द जी:bravo:

क्या बात है
"पुण्य करने के लिए पाप भी करने पड़ते हैं"

वैसे क्या आप बताएँगे की आपके साथ कोई ऐसी स्थिति आई है?
जब आपने पुण्य के लिए पहले पाप किया हो:crazyeyes:

amit_tiwari
21-02-2011, 05:33 PM
शुभस्य शीघ्रम बंधू
ले जाओ, ले जाओ
ससुरी पीछा ही नहीं छोड़ती, इसी बहाने बरी तो हो पाऊंगा

रुको हम गर्लफ्रेंड, ससुरी और ससुरे को भी ले जायेंगे | कभी कभी टेस्ट चेंज हो जायेगा :lovedinner:

आज-कल बिना कुछ "लिए दिये" कोई काम नहीं होता है, ये बात मै अच्छी तरह से जानता हूं पर मानने के समय ये फॉर्मूला भूल जाता हूं। क्या करू... मै तो ऐसा ही हूं। अब देखिये ना, मेरे इस सूत्र पर बहुत कम लोग आते है। निशांत जी, अमित जी जैसे, दो चार कर्जदार है जो मजबूरीवश यहा चले आते है।

आज सुबह जैसे ही अपने सूत्रो को देखा तो आधे से ज्यादा संगी लोग जो कि हमारी फोलोवर्स की लिस्ट में शामिल थे, गायब दिखाई दिए। भई, कमाल है? हमसे ऎसी भी क्या खता हो गई कि सभी पल्लू छुडा कर भाग लिए। फिर सोचा कि पिछले कईं दिनों से कोई नयीं पोस्ट नहीं लिखी जा रही थी, शायद भाईलोग इसी लिए गधे के सिर से सींग की माफिक खिसक लिए हैं।

अब तो कुछ जुगाड़ लगाना ही पड़ेगा, ताकि लोग हमारे सूत्रो पर भी नजारे-इनायत करे। सोचता हूं एक बंदर रख लू और उसपर रिसर्च शुरू कर दु, और रिसर्च के तरीको को हर दिन पोस्ट मे लिखता जाऊ, शायद कुछ मशाला का जुगाड़ तो ही जाएगा।

आप लोग भी अपनी राय जरूर बताए..... हीहीही।

एक ठो करेक्सन गुरु | बन्दर रखो, फिर उससे फोरम में पोस्ट करवाओ और फिर सबसे रिसर्च करवाओ की उसने लिखा क्या !!!:cheers::cheers:

ndhebar
21-02-2011, 10:57 PM
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति अरविन्द जी:bravo:

क्या बात है
"पुण्य करने के लिए पाप भी करने पड़ते हैं"

वैसे क्या आप बताएँगे की आपके साथ कोई ऐसी स्थिति आई है?
जब आपने पुण्य के लिए पहले पाप किया हो:crazyeyes:
अजी छोडिए मोहतरमा काहे अरविन्द भाई की "ऐसी की तैसी" करने पर तुली हैं

ndhebar
21-02-2011, 11:02 PM
रुको हम गर्लफ्रेंड, ससुरी और ससुरे को भी ले जायेंगे | कभी कभी टेस्ट चेंज हो जायेगा :lovedinner:

इ स्पेशल ऑफर था लिमिटेड टाइम और लिमिटेड मानुख के लिए
तोहार जैसन लम्पट के लिए नाही :crazyeyes::crazyeyes:


एक ठो करेक्सन गुरु | बन्दर रखो, फिर उससे फोरम में पोस्ट करवाओ और फिर सबसे रिसर्च करवाओ की उसने लिखा क्या !!!:cheers::cheers:

कहीं बंदरों की संख्या इतनी ना बढ़ जाये की संसद भवन की तरह यहाँ भी लंगूर को तनख्वाह देनी पड़े

arvind
19-03-2011, 02:14 PM
दुनियां बनाने वाले,
क्या तेरे मन मे समाई
तूने, काहे को "मार्च" बनाई......?

अब का बताए भाई, "मार्च" ना हुआ, मुआ लड़ाई का "मोर्चा" हो गया। सब परेशान है, पूछो तो कहेंगे - मत पूछो, बहुत टेंशन है, मार्च का महिना चल रहा है ना। क्लोसिंग करना है।

कभी रात के दस बजे लौटेंगे तो कभी बारह बजे। इत्ता काम करके भी पिछले दो महीने से वेतन के लाले पड़े हुये है - ससुरी पूरा का पूरा वेतन इंकम टैक्स मे कट जाता है। फिर अगले महीने अगर वेतन मिला भी तो बच्चो की सालाना फीस और किताब-कापियों मे चला जाएगा। फिर भी मार्च का टशन कम नहीं होता। ये टशन बिलकुल वैसा ही होता है, जैसे युद्ध के समय बार्डर पर सैनिको को होता है। कोई छुट्टी नहीं, कोई संवेदना नहीं। बस युद्ध-स्तर पर सिर्फ काम, काम और काम। ये कंपनी वाले भी ना - साल भर फोकटिया नवाब बने रहेंगे और मार्च आते है पड़ जाएँगे बच्चे की जान के पीछे।

अब ऐसे मे कोई क्या पोस्ट लिखेगा। आज-कल मेरा बंदर भी मार्च के टशन मे दुबला हुआ जा रहा है। कहता है - मुझे शादी करनी है। एक बंदरिया पर उसका दिल आ गया है।

मैंने कहा - अभी मार्च चल रहा है, बहुत व्यस्त हूं - अगले महीने देखता हूं।
इसपर वो मुझे तो पहले कसाई की तरह घूरा, फिर बोला - नहीं मुझे अभी करना है, फिर अगले 2 साल तक शादी का मुहूर्त नहीं है। क्या मुझे कुवारा ही मार डालोगे?

मैंने उसे बहुत समझाने की कोशिश की, मगर वो नहीं माना। भागकर बंदरिया से शादी रचा ली। और अब तो जब मै उसे पोस्ट लिखने को कहता हूं तो इंकार कर देता है, कहता है - तुम्हें पोस्ट की पड़ी है, देखते नहीं - मै हनीमून पर हूं।

अब क्या कहु......? मार्च मे पोस्ट लिखना कितना असंभव कार्य है।

MANISH KUMAR
19-03-2011, 02:33 PM
आज-कल मेरा बंदर भी मार्च के टशन मे दुबला हुआ जा रहा है। कहता है - मुझे शादी करनी है। एक बंदरिया पर उसका दिल आ गया है।



होगा क्यों नहीं, आखिर इंसान का पूर्वज ही तो है, :bravo:

Sikandar_Khan
23-03-2011, 08:46 PM
सही मायने मे देखा जाए तो आज हुई है फोरम की चटनी और प्रविष्टियोँ का मुरब्बा

arvind
14-09-2011, 04:27 PM
बहुत दिन से मन बड़ा फीका-फीका लग रहा था, सोच रहे थे कि आखिर बात क्या है? फिर अपना सूत्र का लिस्ट देखा..... धत्त तेरे कि..... ई सूत्र तो बहुत दिन से अपडेट नहीं हुआ है, मतलब बहुत दिन से फोरम पर चटनी और मुरब्बा नहीं बना है। एकदम दिमाग में बिना करेंट के 440 वॉट का सीएफ़एल बल्ब जल उठा, दिमाग मे उजाला चा गया। तुरंत एक ठो आइडिया आया - फोरम पर बहूत दिन से कुछ हँगामा नहीं हुआ हैं - सो क्यो न कुछ हँगामा किया जाय......

अरे भाई.... इससे अपने फोरम की टीआरपी बहुत ज्यादा बढ़ जाती है..... धड़ाधड़ पोस्ट होने लगते है..... अगर मै गलत बोल रहा हूँ तो मुझे बताईएगा। लेकिन इसके लिए कुछ मुद्दा भी तो होना चाहिये। साथ में फोकट में वाह-वाह करने वाले भी। वैसे कुछ मित्र तो उपलब्ध है और कुछ अनुपलब्ध..... तो सोचता हूँ कि क्यों ना पहले एक मुद्दा ढूंढ लिया जाय?

आप लोग क्या कहते है?

abhisays
14-09-2011, 04:44 PM
sahi baat hai aajkal trp ka zamana hai....

bhavna singh
14-09-2011, 05:03 PM
बहुत दिन से मन बड़ा फीका-फीका लग रहा था, सोच रहे थे कि आखिर बात क्या है? फिर अपना सूत्र का लिस्ट देखा..... धत्त तेरे कि..... ई सूत्र तो बहुत दिन से अपडेट नहीं हुआ है, मतलब बहुत दिन से फोरम पर चटनी और मुरब्बा नहीं बना है। एकदम दिमाग में बिना करेंट के 440 वॉट का सीएफ़एल बल्ब जल उठा, दिमाग मे उजाला चा गया। तुरंत एक ठो आइडिया आया - फोरम पर बहूत दिन से कुछ हँगामा नहीं हुआ हैं - सो क्यो न कुछ हँगामा किया जाय......

अरे भाई.... इससे अपने फोरम की टीआरपी बहुत ज्यादा बढ़ जाती है..... धड़ाधड़ पोस्ट होने लगते है..... अगर मै गलत बोल रहा हूँ तो मुझे बताईएगा। लेकिन इसके लिए कुछ मुद्दा भी तो होना चाहिये। साथ में फोकट में वाह-वाह करने वाले भी। वैसे कुछ मित्र तो उपलब्ध है और कुछ अनुपलब्ध..... तो सोचता हूँ कि क्यों ना पहले एक मुद्दा ढूंढ लिया जाय?

आप लोग क्या कहते है?

अब कौन सी चटनी बनाने का इरादा है महाशय ?

malethia
14-09-2011, 07:01 PM
बहुत दिन से मन बड़ा फीका-फीका लग रहा था, सोच रहे थे कि आखिर बात क्या है? फिर अपना सूत्र का लिस्ट देखा..... धत्त तेरे कि..... ई सूत्र तो बहुत दिन से अपडेट नहीं हुआ है, मतलब बहुत दिन से फोरम पर चटनी और मुरब्बा नहीं बना है। एकदम दिमाग में बिना करेंट के 440 वॉट का सीएफ़एल बल्ब जल उठा, दिमाग मे उजाला चा गया। तुरंत एक ठो आइडिया आया - फोरम पर बहूत दिन से कुछ हँगामा नहीं हुआ हैं - सो क्यो न कुछ हँगामा किया जाय......

अरे भाई.... इससे अपने फोरम की टीआरपी बहुत ज्यादा बढ़ जाती है..... धड़ाधड़ पोस्ट होने लगते है..... अगर मै गलत बोल रहा हूँ तो मुझे बताईएगा। लेकिन इसके लिए कुछ मुद्दा भी तो होना चाहिये। साथ में फोकट में वाह-वाह करने वाले भी। वैसे कुछ मित्र तो उपलब्ध है और कुछ अनुपलब्ध..... तो सोचता हूँ कि क्यों ना पहले एक मुद्दा ढूंढ लिया जाय?

आप लोग क्या कहते है?
मित्र, हमारे देश मुद्दों की क्या कमी है ...............
अन्ना से लेकर खन्ना तक ,
मंत्री से लेकर संतरी तक ..........
गीता ज्ञान से लेकर विज्ञानं तक
यहाँ से लेकर वहां तक,
और पता नहीं कहाँ से लेकर कहाँ तक ........:beating::beating:

arvind
14-09-2011, 07:31 PM
मित्र, हमारे देश मुद्दों की क्या कमी है ...............
अन्ना से लेकर खन्ना तक ,
मंत्री से लेकर संतरी तक ..........
गीता ज्ञान से लेकर विज्ञानं तक
यहाँ से लेकर वहां तक,
और पता नहीं कहाँ से लेकर कहाँ तक ........:beating::beating:
तारा बाबू....
आपकी बात तो सही है, लेकिन इस सूत्र में सिर्फ "फोरम", "सूत्र", "प्रविष्टियों" और "सदस्यो" का ही "चटनी" और "मुरब्बा" बनता है। अत: मुद्दे पर लटक कर बात करे।

malethia
14-09-2011, 08:05 PM
तारा बाबू....
आपकी बात तो सही है, लेकिन इस सूत्र में सिर्फ "फोरम", "सूत्र", "प्रविष्टियों" और "सदस्यो" का ही "चटनी" और "मुरब्बा" बनता है। अत: मुद्दे पर लटक कर बात करे।
और आपकी चटनी नहीं बने इस लिए आप हमेशा घोडा लेकर भागते रहते हो .............

ndhebar
14-09-2011, 08:49 PM
आप लोग क्या कहते है?

:thinking::thinking::thinking::thinking:

abhisays
14-09-2011, 10:24 PM
:cheers: अरविन्द जी, अब इस सूत्र में जान फूँक ही दीजिये..

arvind
15-09-2011, 10:11 AM
और आपकी चटनी नहीं बने इस लिए आप हमेशा घोडा लेकर भागते रहते हो .............
तारा बाबू....
चटनी नहीं बने, इसीलिए हम घोड़े से नहीं भाग रहे है, उ तो हम चटनी के लिए धनियाँ पत्ता और टमाटर लाने जा रहे है.....

arvind
15-09-2011, 10:12 AM
:thinking::thinking::thinking::thinking:
ज्यादा मत सोचिए, नहीं तो किडनी पंचर हो जाएगा। :beating::beating:

ndhebar
16-09-2011, 02:30 PM
ज्यादा मत सोचिए, नहीं तो किडनी पंचर हो जाएगा। :beating::beating:
कोई समस्या नहीं, आप जो हैं पंक्चर ठीक करने के लिए

MANISH KUMAR
24-09-2011, 02:13 PM
बहुत दिन से मन बड़ा फीका-फीका लग रहा था, सोच रहे थे कि आखिर बात क्या है? फिर अपना सूत्र का लिस्ट देखा..... धत्त तेरे कि..... ई सूत्र तो बहुत दिन से अपडेट नहीं हुआ है, मतलब बहुत दिन से फोरम पर चटनी और मुरब्बा नहीं बना है। एकदम दिमाग में बिना करेंट के 440 वॉट का सीएफ़एल बल्ब जल उठा, दिमाग मे उजाला चा गया। तुरंत एक ठो आइडिया आया - फोरम पर बहूत दिन से कुछ हँगामा नहीं हुआ हैं - सो क्यो न कुछ हँगामा किया जाय......

अरे भाई.... इससे अपने फोरम की टीआरपी बहुत ज्यादा बढ़ जाती है..... धड़ाधड़ पोस्ट होने लगते है..... अगर मै गलत बोल रहा हूँ तो मुझे बताईएगा। लेकिन इसके लिए कुछ मुद्दा भी तो होना चाहिये। साथ में फोकट में वाह-वाह करने वाले भी। वैसे कुछ मित्र तो उपलब्ध है और कुछ अनुपलब्ध..... तो सोचता हूँ कि क्यों ना पहले एक मुद्दा ढूंढ लिया जाय?

आप लोग क्या कहते है?

तो फटाफट मुद्दा ढूंढ लीजिए, वाह-वाह करने वाले एक फोकटिये हम भी उपलब्ध हैं. जहाँ कहोगे वही वाह ठोक देंगे. :cheers:

arvind
27-10-2011, 06:32 PM
तो फटाफट मुद्दा ढूंढ लीजिए, वाह-वाह करने वाले एक फोकटिये हम भी उपलब्ध हैं. जहाँ कहोगे वही वाह ठोक देंगे. :cheers:
मनीष भाई, आपका यह पोस्ट नहीं देख पाये, इसीलिए देरी वाली गुस्ताखी हो गई। चलो कौनों बात नहीं है बंधु।

हमको एक ठो मुद्दा तो मिल गया है। इसे मुद्दा के बजाय "कैटरीना बम" कहे तो ज्यादा सही होगा। क्योंकि जब ई बम फूटेगा, तब "मुन्नी ब्रांड झंडू बाम" से भी कोई फायदा नहीं होने वाला है और साथ मे हमार नियमकगीरी जाने का भी खतरा है। तो अगर आप सभी लोग तैयार है तो मै भी सूली पर चढ़ने को तैयार हूँ, आखिर अंत में तो राम भली करेंगे ही।

arvind
31-10-2011, 02:19 PM
क्या कोई मेरी मदद कर सकता है?

prashant
31-10-2011, 02:27 PM
क्या कोई मेरी मदद कर सकता है?

क्या हुआ अरविन्द जी धनिया और पुदीना नहीं मिली क्या?:giggle:

Sikandar_Khan
31-10-2011, 02:27 PM
क्या कोई मेरी मदद कर सकता है?

क्या मदद चाहिए भाई ?

arvind
31-10-2011, 02:29 PM
क्या हुआ अरविन्द जी धनिया और पुदीना नहीं मिली क्या?:giggle:

क्या मदद चाहिए भाई ?
चलो इस गरीब की सहायता के लिए दो लोग तो आगे आए।

arvind
31-10-2011, 02:40 PM
प्रशांत भाई, और सिकंदर भाई, (और कोई सहायता करना चाहता है, उसका भी स्वागत है) आपलोग तो जानते ही है कि कुछ दिनो पहले मैंने पोस्ट लिखने के लिए एक बंदर को नियुक्त किया था। मगर वो मुआ एक बंदरिया के चक्कर मे पड़ गया और भागकर उससे शादी कर ली। अब ऐसे मे मेरे लेखन का काम नहीं हो पा रहा है।

लेकिन अभी कुछ दिन पहले वो बंदर फोन करके मुझसे माफी मांग रहा था और वापिस आने के लिए कह रहा था। मै तो मन-ही-मन खुश भी हो गया था। मगर उसने एक शर्त रख दी है कि उसके साथ-साथ उसकी बंदरिया भी ऑफिस में आएगी।

अब मुझे क्या करना चाहिए?

prashant
31-10-2011, 03:11 PM
तो फिर दिक्कत क्या है भाई..
एक से भले दो..
बंदर का भी काम में मन लगा रहेगा और आपका लेखन कार्य भी हो जायेगा.

arvind
31-10-2011, 03:35 PM
तो फिर दिक्कत क्या है भाई..
एक से भले दो..
बंदर का भी काम में मन लगा रहेगा और आपका लेखन कार्य भी हो जायेगा.
प्रशांत भाई, आपने बहुत ही उचित सलाह दी है।

मगर अभी पूरी बात जानेंगे तो आप भी सोच में पड़ जाएँगे।

दरअसल, ये बंदर एक दिन अपनी बंदरिया से बात कर रहा था, जिससे मैंने सुन लिया था। बात-चित का आंखो देखा हाल इस प्रकार है -

बंदर - हाय कैट.....
बंदरिया - अरे हम तो मंकाईन है, आप हमको कैट काहे बुला रहे है?
बंदर - कैट.... माने कैटरीना कैफ.... तुम हमार कैटरीना कैफ हो।
बंदरिया - कौन बंदरिया का नाम ले लिए.... खबरदार जो हमको कैट कह के बुलाया तो।
बंदर - अच्छा ठीक है, सोर्री..... गुस्सा मत कर ड्रार्लिंग।
बंदरिया - अच्छा चलो ठीक है, एक बात बताओ, तुम काम-वाम पर काहे नहीं जाते हो।
बंदर - हाँ, जाना तो चाहता हूँ, एक बार बॉस से बात करके देखता हूँ।
बंदरिया - हाँ कुछ करो, दिन भर निट्ठल्ला बैठे खाली रोमांस करते रहते हो।
बंदर - एक तो दिमाग में आइडिया आया है। बॉस के लिए लिखते है हम, और उ खाली उसको फोरम पर चिपका देते है और और सब वाहवाही लूट लेते है। हमको खाली दु ठो केला पकड़ा देते है। अब तो हमलोग एक से दो हो गए है - दु केला से भी नहीं चलेगा। आमदनी बढ़ाना पड़ेगा।
बंदरिया - तो क्या सोच रहे हो?
बंदर - सोच रहे है कि एक ठो फोरम शुरू कर देते है। तुम उसका नियामक बन जाना और हम प्रशासक। फोरम पर कुछ ऍड दाल देंगे तो, अपने केले का व्यस्था तो हो ही जाएगा।
बंदरिया - लेकिन सदस्यो का क्या होगा?
बंदर - अरे सिम्पल है ड्रालिंग...... 150-200 तो मै फर्जी ID बना लूँगा और उछल-कूद करने वाले जान-पहचान वाले कुछ बंदर है, जिनको बुला लूँगा। बस कोई प्रोब्लेम नहीं है। मैंने तो नाम भी सोच लिया है अपने फोरम का।
बंदरिया - क्या नाम सोचा है?
बंदर - uchalkudhdharpakad.com

अब आपलोग खुद सोचिए कि इस बंदर का मै क्या करू?

bhavna singh
31-10-2011, 04:29 PM
अति सुन्दर चटनी बनायीं है आपने अरविन्द जी ....करना क्या है उसके लिए एक फोरम खुलवा दीजिए वो अपनी खुद की बिरादरी के सारे बंदरों को अपने फोरम से जोड़ लेगा ........
आखिर चोर चोर मौसेरे भाई तो होते हैं .........!
और उसका स्लोगन कुछ यूँ होगा ....हम उछाल कूद धड पकड़ वाले हैं, कुछ कर के दिखा देंगे. हम उछाल कूद धड पकड़ वाले हैं, कुछ जलवा दिखा देंगे.
हम उछाल कूद धड पकड़ वाले हैं, अब उल्हास जगा देंगे. हम उछाल कूद धड पकड़ वाले हैं, अब अपनी बन्दर सेना का इतिहास बना देंगे.

arvind
09-04-2012, 12:12 PM
..... तो सभी जिजमान (जो झक मार कर मेरी रचनाये पढ़ते और दाद देते है) लोग, क्या आपलोग नहीं जानना चाहेंगे कि फिर आगे क्या हुआ?
:elephant::elephant::elephant::elephant::elephant:

abhisays
09-04-2012, 12:51 PM
अरे जनाब बताइये बताइये.. नेकी और पूछ पूछ

jitendragarg
09-04-2012, 06:46 PM
..... तो सभी जिजमान (जो झक मार कर मेरी रचनाये पढ़ते और दाद देते है) लोग, क्या आपलोग नहीं जानना चाहेंगे कि फिर आगे क्या हुआ?
:elephant::elephant::elephant::elephant::elephant:


नहीं! :giggle:

चलो खैर, इतनी जिद कर रहे तो सुन ही लेते है. आप भी क्या याद करोगे! :hug:

Sikandar_Khan
09-04-2012, 08:06 PM
..... तो सभी जिजमान (जो झक मार कर मेरी रचनाये पढ़ते और दाद देते है) लोग, क्या आपलोग नहीं जानना चाहेंगे कि फिर आगे क्या हुआ?
:elephant::elephant::elephant::elephant::elephant:


श्रीमान रसगुल्ला सामने रखकर पूँछते हो ! खाओगे क्या ?

abhisays
16-04-2012, 01:37 PM
arvind ji.. kuch aage to post kariye..

ndhebar
16-04-2012, 05:14 PM
..... तो सभी जिजमान (जो झक मार कर मेरी रचनाये पढ़ते और दाद देते है) लोग, क्या आपलोग नहीं जानना चाहेंगे कि फिर आगे क्या हुआ?
:elephant::elephant::elephant::elephant::elephant:


अरे जनाब बताइये बताइये.. नेकी और पूछ पूछ

नहीं! :giggle:

चलो खैर, इतनी जिद कर रहे तो सुन ही लेते है. आप भी क्या याद करोगे! :hug:

श्रीमान रसगुल्ला सामने रखकर पूँछते हो ! खाओगे क्या ?

arvind ji.. Kuch aage to post kariye..

बंदरिया और बनरवा का ब्रेकअप
आजकल दूनहूँ अलग अलग व्यस्त है

arvind
19-04-2012, 06:38 PM
अब हमारे बंदर जी काफी तरक्की कर चुके है। आपलोगो की जानकार आश्चर्य होगा की अब वो श्री बंदर से डॉ बंदर हो गए है। जी हां, अब वो पीएचडी कर चुके है। पीएचडी मे शोध का विषय था "फोरम को वाट कैसे लगाए - एक तुलनात्मक अध्ययन"। अब वो सारे फोरमो की वाट लगा रहा है..... सॉरी, लगा रहे है। अब तो अकेले ही काफी है किसी भी फोरम की वाट लगाने के लिए। अब उनकी बंदरिया भी किसी और के बंदर के साथ "फरार" हो चुकी है, लेकिन इसकी उनको कौनों चिंता नहीं है। बस फोरम की वाट लगाने मे मशगूल है।

इसके लिए सबसे पहले उन्होने अपनी ही एक फोरम खोली है। फोरम का नाम है - uchhalkud.com। बहुत सारे सदस्य भी बन गए है उनके फोरम पर। पोस्ट भी 50,000 से ज्यादा हो चुका है। इसके पीछे का सच एक दिन डॉ बंदर जी ने मुझे बताया। सच जानकार मै ताज्जुब मे पड़ गया। फोरम के सारे सदस्य, वो खुद ही थे और सारे पोस्ट उन्होने अकेले के बूते किए थे।

डॉ बंदर जी ने मुझे ये भी बताया कि अभी वो 4-5 फोरमो के admin भी है और इसके लिए उन्हे सैलरी भी मिलता है। मगर सच किसी और सूत्र से पता चला कि सैलरी देने वाले और कोई नहीं, बल्कि डॉ बंदर ही है।

:cheers:बड़े दमखम वाले है डॉ बंदर जी, सोचता हूँ कि उनके शागिर्द बन जाये, मगर हाय रे मेरी घटिया सोच - भला अपने शागिर्द का शागिर्द कैसे बन सकता हूँ? आप लोग ही कोई उपाय बताये।

वैसे अभिषेक जी का परेशानी भी इलाज़ भी हमारे डॉ बंदर जी के पास है।:gm:

abhisays
19-04-2012, 07:52 PM
मेरी परेशानी का इलाज़ बन्दर के पास कैसे है.

Sikandar_Khan
19-04-2012, 10:03 PM
मेरी परेशानी का इलाज़ बन्दर के पास कैसे है.

भावनाओँ को समझिए हुजूर |

ndhebar
20-04-2012, 04:06 PM
इसके लिए सबसे पहले उन्होने अपनी ही एक फोरम खोली है। फोरम का नाम है - uchhalkud.com। बहुत सारे सदस्य भी बन गए है उनके फोरम पर। पोस्ट भी 50,000 से ज्यादा हो चुका है। इसके पीछे का सच एक दिन डॉ बंदर जी ने मुझे बताया। सच जानकार मै ताज्जुब मे पड़ गया। फोरम के सारे सदस्य, वो खुद ही थे और सारे पोस्ट उन्होने अकेले के बूते किए थे।



ये वाला सबसे बढ़िया है :giggle::giggle:

MANISH KUMAR
24-04-2012, 03:52 PM
अब हमारे बंदर जी काफी तरक्की कर चुके है। आपलोगो की जानकार आश्चर्य होगा की अब वो श्री बंदर से डॉ बंदर हो गए है। जी हां, अब वो पीएचडी कर चुके है। पीएचडी मे शोध का विषय था "फोरम को वाट कैसे लगाए - एक तुलनात्मक अध्ययन"। अब वो सारे फोरमो की वाट लगा रहा है..... सॉरी, लगा रहे है। अब तो अकेले ही काफी है किसी भी फोरम की वाट लगाने के लिए। अब उनकी बंदरिया भी किसी और के बंदर के साथ "फरार" हो चुकी है, लेकिन इसकी उनको कौनों चिंता नहीं है। बस फोरम की वाट लगाने मे मशगूल है।

इसके लिए सबसे पहले उन्होने अपनी ही एक फोरम खोली है। फोरम का नाम है - uchhalkud.com। बहुत सारे सदस्य भी बन गए है उनके फोरम पर। पोस्ट भी 50,000 से ज्यादा हो चुका है। इसके पीछे का सच एक दिन डॉ बंदर जी ने मुझे बताया। सच जानकार मै ताज्जुब मे पड़ गया। फोरम के सारे सदस्य, वो खुद ही थे और सारे पोस्ट उन्होने अकेले के बूते किए थे।

डॉ बंदर जी ने मुझे ये भी बताया कि अभी वो 4-5 फोरमो के admin भी है और इसके लिए उन्हे सैलरी भी मिलता है। मगर सच किसी और सूत्र से पता चला कि सैलरी देने वाले और कोई नहीं, बल्कि डॉ बंदर ही है।

:cheers:बड़े दमखम वाले है डॉ बंदर जी, सोचता हूँ कि उनके शागिर्द बन जाये, मगर हाय रे मेरी घटिया सोच - भला अपने शागिर्द का शागिर्द कैसे बन सकता हूँ? आप लोग ही कोई उपाय बताये।

वैसे अभिषेक जी का परेशानी भी इलाज़ भी हमारे डॉ बंदर जी के पास है।:gm:

ये तो सर के ऊपर से उतर गया............:bang-head::bang-head:
:tomato::tomato:

arvind
11-11-2012, 11:05 AM
तो फोरम पर लटके हुये सभी जलचरो से निवेदन है है कि अपने-अपने वालेट चेक कर ले, कही आप मे से किसी का कोई लोमड़ी मिसिंग तो नहीं है। क्योंकि थोड़ी ही देर मे डॉ॰ बंदर पुनर्विवाह करके फोरम पर वापसी करने वाले है।

तो इसी बात पर बोलो.......

बजरंग बली कि......


जय। । ।

rajnish manga
20-11-2012, 09:20 PM
[QUOTE=jai_bhardwaj;12547]वो माल इधर है निशांत भाई ..............
देखो.............

फोरम है एक सभा निराली
घूघट पगड़ी गोरी काली
नीली पीली लाल सुनहरी
श्वेत गुलाबी औ हरियाली

:cheers:
अरविन्द जी तो छुपे रुस्तम निकले जिन्होंने ‘पीठ दर पीठ थपथपाते चलो’ लिख कर फोरम के लेखकों पाठकों हास्य रस की रेवडियाँ बांटने का काम हाथ में लिया है. किन्तु आप की भी दाद देनी पड़ेगी कि इसी सूत्र में आपने अपनी दो सुन्दर रचनाओं से रू-ब-रू करवाया. बहुत बहुत धन्यवाद और बधाई. :gm:

bhavna singh
21-11-2012, 08:46 AM
अब हमारे बंदर जी काफी तरक्की कर चुके है। आपलोगो की जानकार आश्चर्य होगा की अब वो श्री बंदर से डॉ बंदर हो गए है। जी हां, अब वो पीएचडी कर चुके है। पीएचडी मे शोध का विषय था "फोरम को वाट कैसे लगाए - एक तुलनात्मक अध्ययन"। अब वो सारे फोरमो की वाट लगा रहा है..... सॉरी, लगा रहे है। अब तो अकेले ही काफी है किसी भी फोरम की वाट लगाने के लिए। अब उनकी बंदरिया भी किसी और के बंदर के साथ "फरार" हो चुकी है, लेकिन इसकी उनको कौनों चिंता नहीं है। बस फोरम की वाट लगाने मे मशगूल है।

इसके लिए सबसे पहले उन्होने अपनी ही एक फोरम खोली है। फोरम का नाम है - uchhalkud.com। बहुत सारे सदस्य भी बन गए है उनके फोरम पर। पोस्ट भी 50,000 से ज्यादा हो चुका है। इसके पीछे का सच एक दिन डॉ बंदर जी ने मुझे बताया। सच जानकार मै ताज्जुब मे पड़ गया। फोरम के सारे सदस्य, वो खुद ही थे और सारे पोस्ट उन्होने अकेले के बूते किए थे।

डॉ बंदर जी ने मुझे ये भी बताया कि अभी वो 4-5 फोरमो के admin भी है और इसके लिए उन्हे सैलरी भी मिलता है। मगर सच किसी और सूत्र से पता चला कि सैलरी देने वाले और कोई नहीं, बल्कि डॉ बंदर ही है।

:cheers:बड़े दमखम वाले है डॉ बंदर जी, सोचता हूँ कि उनके शागिर्द बन जाये, मगर हाय रे मेरी घटिया सोच - भला अपने शागिर्द का शागिर्द कैसे बन सकता हूँ? आप लोग ही कोई उपाय बताये।

वैसे अभिषेक जी का परेशानी भी इलाज़ भी हमारे डॉ बंदर जी के पास है।:gm:

इस बन्दर को मै भी जानती हूँ ....सभी फोरम पर उछलकूद करता रहता है .......!