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View Full Version : निट्ठल्ला चिन्तन


arvind
10-11-2010, 01:35 PM
जागो निट्ठल्लों जागो......

हसने वाले -
रोना शुरू कर दो.....
मिले हुए - खो जाओ
जागे हुये - सो जाओ,

क्योंकि आपको जगाने के लिए आ गया है ....

सबसे बड़ा निट्ठल्ला।

arvind
10-11-2010, 01:46 PM
कट-पेस्टीय तकनीक से लँबी पोस्ट का जुगाड़..क्या मैं छायावादी कहलाऊँगा यदि मैं इसकी तुलना भारतीय राजनीतिज्ञ से करूँ, तो ? हमें टिप्पणी चाहिये.. और उन्हें वोट ! हमने भी जहाँ अलाव जलती देखी, लपक कर हाथ सेंक लिये, बस फ़र्क़ इतना है, कि वह पहले आग लगा देते हैं, बाद में हाथ सेंकते हैं।

हाँ, अलबत्ता मुद्दे उठाने की कट पेस्ट में हम दोनों ही ईमानदार हैं, वह मुद्दों की वोट वैल्यू हेरते फिरते हैं, और हम कमेन्ट वल्यू ! अरे, बस दो मिनट में एक पोस्ट का जुगाड़ भाँप कर आया था, उल्टे मैं अपना खुद का ही लिखने लग पड़ा ? बस यही फ़र्क़ है, हममें और उनमें.. वह याने के नेता जी अवामखोरी करके फल फूल सकते हैं, और हम हरामखोरी करके चैन से जी भी नहीं पाते ! मुई आत्मा कचोटने लगती है, उनका क्या ? वह तो पहले ही अपने हृदय परिवर्तन की घोषणा करके पार्टी में आते हैं, पालिटिक्स खेलते हैं, और इस प्रकार जनता के कष्टों का सतत उद्धार होता रहता है ! यही राजनीति का नियम है । प्रविष्टि का नियम क्या होता है, आगे कभी यह भी खोजेंगे !

आर्रे धुत्त ! कुछ नहीं, आप पोस्ट पढ़ते जाइये, निट्ठल्ला डिस्टर्ब करने का प्रयास कर रहा था । यही तो होता है , कुछ भी अच्छा करने चलो ये निट्ठल्ले छींक देते हैं ! अब ई सब बात का पूछने का क्या तुक, कि नेता राजनितियै काहे करता है, उनको जनता-नीति करने का कउन सा परहेज ?

arvind
10-11-2010, 01:47 PM
अब निट्ठल्ला अँग्रेज़ी बूझने का काबलियत रखता त उसको समझा देते, रे बुरबक भूखी प्यासी कलपती जनता, तू अपने “ परित्राणानाम या साधुनामों “ का तमाशा देख, तू अभागा इसी के लिये जन्मा है ! समझ होती .. कोई तुम्हें जनवासे में जयमाल से पहले ही समझा देता, कि लल्लू जी

“ Before you marry, you must know the bride well !’
Divorce is a painful dent in One’s experiences with the life !”

आप लोग सोच रहे हैं, कि आज डाक्टर ने फिर दिखाया मदारी का खेल ! तब से मेहरबान कद्रदान किये जा रहा है, कूदना है तो कूद.. दुवन्नी की टिप्पणी ले और फूट ! तब से जनता.. अवामखोरी… आत्मा.. का कबाड़ सब ईहाँ फैलाये पड़ा है । सीधे से अपना “ कट – पेस्ट दिखा और जो भी मामला है, नक्की कर ! निट्ठल्ला सबका टाइम खोटी किया करता है, कबाड़ी कहीं का ! ठीक है, भाई हम अपना ही घर फूँक लेते हैं ।

ठीक तो है.. नक्सलियों को नाहक ही क्यों तक़लीफ़ दिया जाय ? जनता होय या नेता होय .. राष्ट्रीय नारा यही होना चाहिये.. “ आओ अपना घर बारि दें ।“ लगता है, कि मैं सीरियस हो रहा हूँ.. चँडूखाने की बातें करने का अपना अलग ही मजा है.. पर एक मैं हूँ, कि सीरियस हो रहा हूँ ! प्रविष्टि क्या खाक होगी ?

एक ठियाँ स्वयं को प्रस्तुत कर दिया.. “ लेयो पुरजापति जी, हमका दुई जूता मारि लेयो.. तनि हमारे झँडवा का शान रखो ! ठीक है, बिलैती भशा में कम्पूटरगिरी करते हो.. लेकिन दुनिया को दिखाने भर को सही .. .. “ झँडा ऊँचा रहे हमारा ..” के सुर में सुर तो मिलाओ ! चल भाई, तू बेसुरा सही.. सरम आती है, त तनि लिप मूवमेन्ट ही देते रहो… भले महतारी का गरियायो ! जईसे हमरी महतारी.. वईसे तुम्हरी भी महतारी ! जोर से बोलो जै माता दी… सारे बोलो धत्त माता की.. जय फोरमर्र माता की.. क्या यार ?

arvind
10-11-2010, 02:12 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=2801&stc=1&d=1289383917

arvind
10-11-2010, 02:42 PM
क्या होगा देश का?

हरतरफ़ चर्चा है, कि देश मुसीबत में हैं, आतंकी इसे रौंद रहे हैं, घोटाले इसे लील रहे हैं ! सत्यम भी आख़िरकार असत्यम साबित हो रहा है । अब, भला आप ही बताइये, मैं अकेला क्या कर सकता हूँ ? कल जोड़ने बैठा तो .. देश की आबादी निकली : 120 करोड़
जिसमें 9 करोड़ तो सेवानिवृत हैं, जिनसे शायद ही कोई उम्मीद हो
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=2802&stc=1&d=1289385044
नौकरीपेशा वर्ग में केन्द्रीय कर्मचारी ठहरे 17 करोड़ और राज्य कर्मचारी हैं 30 करोड़ इनमें शायद ही कोई काम करता हो ?
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=2803&stc=1&d=1289385044
और.. हमारे यहाँ हैं 1 करोड़ आई० टी० प्रोफ़ेशनल !
इनमें अपने देश के लिये कौन काम करता है, जी ?
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=2804&stc=1&d=1289385044
18 करोड़ तो बेचारे अभी स्कूलों में ही हैं, इनसे क्या होना है ?
इन 8 करोड़ दुधमुँहों को, जो अभी 5 वर्ष भी पार नहीं कर पायें हैं..तो अलग ही रखिये !
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=2805&stc=1&d=1289385044
यह 15 करोड़ बेरोज़ग़ार अपनी ही चिन्ता में हैं… देश के लिये… बाद में देखा जायेगा !
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=2806&stc=1&d=1289385045
और यह 1.2 करोड़ बीमार तो अस्पतालों में कभी भी देखे जा सकते हैं, आतंकवादी इन्हें भले न बख़्शें, पर यह बेचारे अभी कुछ करने लायक ही नहीं हैं , सो इनको तो आप फ़िलहाल बख़्श ही दो !

जरा जोड़िये तो… कितने हुये ? 98 करोड़.. ठीक !
अब…हमरी न मानों,तो अभि भाई या आलमपनाह जी से पूछो,

पिछले माह तक 79,99,998 विचाराधीन या सज़ायाफ़्ता ज़ेलों में थे !

बचे केवल दो व्यक्ति.. यानि कि आप और हम !

आप तो इस समय मेरी पोस्ट पर टिप्पणी करने जा रहे हो, और… मैं ?

मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि, चल के आपकी पोस्ट पर टिप्पणी चुकता करूँ या देश की चिन्ता करूँ ? यही तो रोना है.. कि,
इतना विशाल देश.. क्या अकेले मेरे बस में है ?

arvind
10-11-2010, 03:22 PM
स्वागत है निट्ठल्ले की मज़लिस में. मज़लिस में सभी पधारने वालों का मैं इस्तकबाल करता हूँ. और उम्मीद करता हूँ आप मेरी निट्ठल्लेपन की बातों से उबेंगे नहीं, घबराएंगे नहीं. आप इस निट्ठल्लई में मेरा पूरा साथ देंगे. वैसे शाब्दिक तौर पर निट्ठल्ला मैं हूँ नहीं, लेकिन इस ज़माने में हर कोई कही न कही निट्ठल्ला ही है. क्योंकि मैं मानता हूँ जब आप अपने अंदर के भरे मानसिक हलचल और दुःख दर्द को, जिनकी प्राप्ति कहीं से भी क्यों न हुई हो, जब हम उन्हें कह नहीं पाते, बतला नहीं पाते, अपने से बाहर नहीं निकाल पाते हैं, वो अंतर्मन में सिकुड़ कर जगह घेर लेते है. तब हम निट्ठल्ले हो जाते हैं...

अंततः मैं भी अपनी निट्ठलई दूर करने के लिए हाज़िर हूँ. आप सभी श्रद्धेय मित्रजनों, बंधुओं और बुजुर्गों सभी मेरा साथ दें ............

munneraja
10-11-2010, 03:49 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=2801&stc=1&d=1289383917

बहुत खाली खाली है ये सरजमीं
कितनी न्यारी है ये सरजमीं
बहुत से चिंतन यहाँ हुए हैं
बहुत से अविष्कार यहाँ बने हैं
यदि जमाने में रहना है
जिन्दगी की रवानगी बनाये रखना है
तो ये जमीं है गुणों से भरपूर
इस से होना ना कभी दूर

arvind
10-11-2010, 06:01 PM
एक छोटे शहर में कुछ चंद आपस में पहचान वाले लोग रहते थे, जो शहर के पार्क में रोज इकट्ठा हो हँसी ठ्ठा करते थे। एक दिन उनमें से एक व्यक्ति ने सबसे पूछा, अच्छा अगर भगवान सबको एक तीसरी आँख देने को तैयार हो जाये तो आप शरीर के किस अंग में उसे लगवान पसंद करोगे। एक ने कहा, माथे में शिवजी की तीसरे नेत्र वाली जगह पर, दूसरे ने कहा सिर के पीछे, कोई बोला पीठ पर तो किसी ने कहा छाती पर। निठल्ला चुपचाप सब सुन रहा था तो उस व्यक्ति ने कहा क्यूँ रे निठल्ले तू कहाँ चाहेगा। निठल्ला बोला, मैं तो इंडेक्स फिंगर (की नोक) पर मांगूँगा, सब के मुँह से एक साथ निकला, वो भला क्यों। निठल्ला बोला, जिससे मैं इसके कान में अँगुली डाल के देख सकूँ कि इसके दिमाग में कौन सा कीड़ा काट रहा है, जो ये इस तरह का सवाल कर रहा है।

munneraja
10-11-2010, 07:29 PM
जिससे मैं इसके कान में अँगुली डाल के देख सकूँ कि इसके दिमाग में कौन सा कीड़ा काट रहा है, जो ये इस तरह का सवाल कर रहा है।

हा हा हा हा हा
जरा अपना कान इधर तो लाना ......

jai_bhardwaj
10-11-2010, 10:42 PM
निठल्ला चिंतन

हमारे घर के बाजू में
तुम्हारा घर अगर होता //
तुम्हारा घर ना घर रहता
हमारा घर ना घर होता //

हमारे घर जो होते तो
दर-ओ-दीवार ना होते
छतों से चांदनी आती
समाँ भी पुरअसर होता //

किसी के भी बुलाने पर
किवाड़ो तक ना जाते हम
मकाँ के हर सिरे से वह
हमें साबुत नज़र होता //

जहाँ पर बैठ जाते हम
वहीं सब काम हो जाते
खाना भी नहाना भी
व दरबार-ए-सदर होता //

हमें ताले व चाभी की
कभी चिंता नहीं होती
मरम्मत रंग-ओ-रोगन के
खर्चों का न डर होता //

हमें तुमसे जो मिलना हो
तो अन्दर से ही मिल लेते
गले मिलने के दरम्याँ 'जय'
खिसकने का सफ़र होता //

arvind
15-11-2010, 01:01 PM
गाली पुराण


अमंत्रं अक्षरं नास्ति , नास्ति मूलं अनौषधं ।
अयोग्यः पुरुषः नास्ति, योजकः तत्र दुर्लभ: ॥

(कोई अक्षर ऐसा नही है जिससे (कोई) मन्त्र न शुरु होता हो , कोई ऐसा मूल (जड़) नही है , जिससे कोई औषधि न बनती हो और कोई भी आदमी अयोग्य नही होता , उसको काम मे लेने वाले (मैनेजर) ही दुर्लभ हैं ।)

ऐसा कोई अक्षर नहीं जिससे किसी मंत्र की शुरुआत न होती हो। अब देखने वाली बात है कि गाली शब्द दो अक्षरों ‘गा’ और ‘ली’ के संयोग से बना है। जो कि खुद ‘ग’ तथा ‘ल’ से बनते हैं। अब जब ‘ग’ व ‘ल’ से कोई मंत्र बनेगा तो ‘गा’ और ‘ली’ से भी जरूर बनेगा। अब आज के धर्मपारायण, धर्मनिरपेक्ष देश में किस माई के लाल की हिम्मत है जो कह सके कि मंत्र का सामाजिक महत्व नहीं होता? लिहाजा निर्विरोध तय पाया गया कि ‘गा’ तथा ’ली’ से बनने वाले मंत्रों का सामाजिक महत्व होता है। जब अलग-अलग शब्दों से बनने वाले मंत्रों का है तो मिल जाने पर भी कैसे नहीं होगा? होगा न! हां तो यह तय पाया गया कि गालियों का सामाजिक महत्व होता है।

arvind
15-11-2010, 01:03 PM
जैसे कुछ अरब देशों में तमाम लोगों का काम केवल एक पत्नी से नहीं चल पाता या जैसे अमेरिकाजी में केवल एक जीवन साथी से मजा नहीं आता वैसे ही ये दिल मांगे मोर की तर्ज पर हम और सबूत खोजने पर जुट ही गये। इतना पसीना बहा दिया जितना अगर तेज टहलते हुये बहाता तो साथ में कई किलो वजन भी बह जाता साथ में। अरविंदकुमार द्वारा संपादित हिंदी थिसारस समांतर कोश में गालियां खोजीं। जो मिला उससे हम खुश हो गये । मुस्कराने तक लगे । अचानक सामने दर्पण आ गया । हमने मुस्कराना स्थगित कर दिया। दर्पण का खूबसूरती इंडेक्स सेंसेक्स से होड़ लेने लगा।

हिंदी थिसारस में बताया गया है कि गाली देना का मतलब हुआ कोसना। अब अगर विचार करें तो पायेंगे कि दुनिया में कौन ऐसा मनुष्य होगा जो कभी न कभी कोसने की आदत का शिकार न हुआ हो? अब चूंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है लिहाजा उसके द्वारा किये जाने वाले कर्मों के सामाजिक महत्व की बात से कौन इन्कार कर सकता है? लिहाजा गाली देना एक सामाजिक महत्व का कार्य है।

arvind
15-11-2010, 01:04 PM
इसी दिशा में अपने मन को आर्कमिडीज की तरह दौडा़ते हुये हमने अपनी स्मृति-गूगल पर खोज की कि सबसे पहले कोसने का कार्य किसने किया? पहली गाली किसने दी? पता चला कि हमारे आदि कवि वाल्मीकि ने पहली बार किसी को कोसा था। दुनिया जानती है कि काममोहित मैथुनरत क्रौंच पक्षी के जोडे़ में से नर पक्षी को बहेलिये ने मार गिराया था। इस पर मादा क्रौंच पक्षी का विलाप सुन कर वाल्मीकि जी ने बहेलिये को कोसा:-

मां निषाद प्रतिष्ठाम् त्वम् गम: शाश्वती शमा,
यत् क्रौंच मिथुनादेकम् वधी: काममोहितम् ।

(अरे बहेलिये तुमने काममोहित मैथुनरत कौंच पक्षी को मारा है। जा तुझे कभी प्रतिष्ठा न मिले)

इससे सिद्ध हो गया कि पहली बार जिसने कोसा था वह हमारे आदिकवि थे। एक के साथ एक फ़्री के अंदाज में यह भी तय हुआ कि जो पहली कविता के रूप में विख्यात है वह वस्तुत: कोसना ही था। अब चूंकि कोसना मतलब गाली देना तय हो चुका है लिहाजा यह मानने के अलावा कोई चारा नहीं बचता कि पहली कविता और कुछ नहीं वाल्मीकिजी द्वारा हत्यारे बहेलिये को दी गयी गाली थी ।

arvind
15-11-2010, 01:09 PM
वियोगी होगा पहला कवि,आह से उपजा होगा गान को नये अर्थ-वस्त्र धारण करवाकर मेरा मनमयूर उसी तरह नाचने लगा जिस तरह अपने सूत्र का टेम्पलेट एक बार फ़िर बदलकर किसी सूत्रधार का नाचने लगता है तथा वो तारीफ़ की बूंद के लिये तरसने लगता है। अचानक हमारे मनमयूर को अपने भद्दे पैर दिखे और उसने नाचना बंद कर दिया तथा राष्ट्र्गान मुद्रा में खडा़ हो गया । हमने मुगलिया अंदाज में गरजकर पूछा- कौन है वो कम्बख्त जिसने मेरे आराम में दखल देने की गुस्ताखी की? सामने आ?

मन के कोने में दुबके खडे़ सेवक ने फ़र्शी सलाम बजाकर कहा -हुजूरे आला आपका इंकलाब बुलंद रहे । इस नाचीज की गुजारिश है कि आपने जो यह गाली के मुतल्लिक उम्दा बात सबित की है जिसे आजतक कोई सोच तक न पाया उसे आप कानूनी जामा पहनाने के किये किसी गाली विशेषज्ञ से मशवरा कर लें।

हमारे मन-शहंशाह ने कहा-तो गोया हालात इस कदर बेकाबू हो गये हैं कि अब माबदौलत को अपनी सोच को सही साबित करने के लिये मशवरा करना पडे़गा ?

सेवक ने थरथराने का मुजाहिरा करते हुये अपनी आवाज कंपकपाई- गुस्ताखी माफ़, हूजूरे आला ! खुदा आपके इकबाल को बुलंद रखे। गुलाम की इल्तिजा इसलिये है ताकि आपके इस ऊंचे ख्याल को दुनिया भी समझे। आम अवाम की जबान में आपकी बात रखी जायेगी तो दुनिया समझ जायेगी । इसीलिये अर्ज किया है कि इस ख्याल के बारे में किसी काबिल शख्स से गुफ़्तगू कर लें।

शहंशाह बोले- हम खुश हुये तुम्हारी समझ से। आगे से जो भी बाहियात ख्याल आयेगा माबदौलत उस पर तुमसे मशविरा लेंगे। बताओ किस शख्स से गुफ़्तगू की जाये?

सेवक उवाचा- गाली-गलौज के मामले में मुझे बबाली गुरु से काबिल जानकार कोई नहीं दिखा। यह बताकर सेवक उसी तरह लुप्त हो गया जिस तरह तीस सेकेंड बीत जाने पर कौन बनेगा करोड़पति के फ़ोनोफ़्रेन्ड विकल्प का सहायक जवाब देने वाला गायब हो जाता है। मन के बादशाह भी समझदार प्रतियोगी की तरह हाट-सीट त्यागकर ठंडे हो गये।

arvind
15-11-2010, 01:10 PM
हमारे मन से बादशाहत तो हवा हो गयी लेकिन जेहन में बवाली गुरु का नाम उसी तरह अटका रहा जैसे रजवाडे़ खत्म होने के बावजूद उनके वंशजों में राजसी अकड़ बनी रहती है। या फ़िर वर्षों विदेश में रहने के बाद भी भाइयों के मन में मक्खी,मच्छर नाले अटके रहते हैं।

लिहाजा हम बवाली गुरु की खोज में निकल पडे़। बवाली गुरु के बारे में कुछ कहना उनकी शान में गुस्ताखी करना होगा। उनका वर्णन किया ही नहीं जा सकता । वे वर्णनातीत हैं । संक्षेप में जैसे हर बीमार उद्योग का इलाज विनिवेश माना जाता है,देश मे हुयी हर गड़बडी़ में बाहरी हाथ होता है उसी तरह बवाली गुरु हर सामाजिक समस्या की जड़ में गाली-गलौज में असुंतलन बताते हैं । वे शांति-सुकून के कितने ही घने अंधकार को सूर्य की तरह अपनी गाली की किरणॊं से तितर-बितर कर देते हैं।

बवाली गुरु के बारे में ज्यादा कुछ और बताने का लालच त्यागकर मैं बिना किसी भूमिका के बवाली गुरु से हुयी बातचीत आपके सामने पेश करता हूं।

arvind
15-11-2010, 01:12 PM
बवाली गुरु,गाली शब्द का क्या मतलब है ?

अर्थ तो आपके ऊपर है आप क्या लगाना चाहते हैं। मेरे हिसाब से तो गाली दो लोगों के बीच का वार्तालाप है। ज्यादा ‘संस्किरत’ तो हम नहीं जानते लेकिन लोग कहते हैं कि ‘गल्प’ माने बातचीत होती है। उसी में ‘प’ को पंजाबी लोगों ने धकिया के ‘ल’ कर दिया । ‘गल्प’ से ‘गल्ल’हो गया। ‘गल्ल’ माने बातचीत होती है । यही बिगडते-बिगडते गाली बन गया होगा । तो मेरी समझ में तो गाली बोलचाल का एक अंदाज है। बस्स। गाली देने वाले का मन तमाम विकार से मुक्त रहता है।

arvind
15-11-2010, 01:13 PM
अगर यह बोलचाल का अंदाज है तो लोग इसे इतनी बुरी चीज क्यों बताते हैं?

अब भइया, बताने का हम क्या बतायें? अइसा समझ लो कि जिसको अंग्रेजी नहीं आती वही कोसने लगता है अंग्रेजी को। ऐसे ही जो गाली नहीं दे पाता वही कहने लगता है कि बहुत बुरी चीज है। गाली देना बहुत मेहनत का काम है। शरीफ़ों के बस की बात नहीं।

arvind
15-11-2010, 01:15 PM
क्या यह स्थापना सच है कि पहली कविता जो है वही पहली गाली भी था?

हां तब क्या ? अरे वाल्मीकि जी में अगर दम होता तो वहीं टेटुआ दबा देते बहेलिये का। मगर उसके हाथ में था तीर-कमान इनके हाथ में था कमंडल । ये कमजोर थे। कमजोर का हथियार होता है कोसना सो लगे कोसने वाल्मीकिजी। वही पहली गाली थी। और चूंकि श्लोक भी था अत: वही पहली कविता भी बन गया।

arvind
15-11-2010, 01:16 PM
लोग कहते हैं कि वाल्मीकि जी ने दिया वह शाप था। गाली नहीं।

कैसा शाप ? अरे जब उसी समय बहेलिये को दंड न दे पाये तो क्या शाप ? शाप न हो गया कोई भारत की अदालत हो गयी।आज के अपराध के लिये किसी को दिया हुआ शाप सालों बाद फले तो शाप का क्या महत्व? शाप होता है जैसे गौतम ने अपनी बीबी को दिया । अपनी पत्नी अहिल्या को इंद्र से लटपटाते पकड़ लिया और झट से पानी छिड़ककर बना दिया पत्थर अहल्या को। वे अपनी बीबी से तो जबर थे तो इशू कर दिया शाप । लेकिन इंद्र का कुछ नहीं बिगाड़ पाये। तो उनको शाप नहीं दे पाये । कोस के रह गये होंगे। अब ये क्या कि आप बहेलिये को दीन हीन बन के कोस रहे हैं और बाद मे बतायें कि हमने शाप दे दिया । बाद में बताया भी लोगों ने (आह से उपजा होगा गान/उमड़कर आखों से चुपचाप)। ये रोना धोना कमजोरों के लक्षण हैं जो कि कुछ नहीं कर सकता सिवाय कोसने के।

arvind
15-11-2010, 01:17 PM
गाली का सबसे बडा़ सामाजिक महत्व क्या है?

मेरे विचार में तो गाली अहिंसा को बढा़वा देती है। यह दो प्राणियों की कहासुनी तथा मारपीट के बीच फैला मैदान है। कहासुनी की गलियों से निकले प्राणी इसी मैदान में जूझते हुये इतने मगन हो जाते हैं कि मारपीट की सुधि ही बिसरा देते हैं। अगर किसी जोडे़ के इरादे बहुत मजबूत हुये और वह कहासुनी से शुरु करके मारपीट की मंजिले मकसूद तक अगर पहुंच भी जाता है तो भी उसकी मारपीट में वो तेजी नहीं रहती जो बिना गाली-गलौज के मारपीट करते जोडे़ में होती है। इसके अलावा गाली आम आदमी के प्रतिनिधित्व का प्रतीक है। आप देखिये ‘मानसून वेडिंग’ पिक्चर। उसमें वो जो दुबेजी हैं न ,जहां वो जहां मां-बहन की गालियां देते हैं पब्लिक बिना दिमाग लगाये समझ जाती है कि ‘ही बिलांग्स टु कामन मैन’ ।

arvind
15-11-2010, 01:20 PM
ऐसा किस आधार पर कहते हैं आप? गाली-गलौज करते हुये मारपीट की तेजी कैसे कम हो जाती है?

देखो भाई यहां कोई रजनीति तो हो नहीं रही जो हम कहें कि यह कुछ-कुछ एक व्यक्ति एक पद वाला मामला है । लेकिन जैसा कि मैंने बताया कि मारपीट और गालीगलौज मेहनत का काम है। दोनो काम एक साथ करने से दोनों की गति गिरेगी। जिस क्षण तुमने गाली देने के लिये सीनें में हवा भरी उसी क्षण यदि मारपीट का काम अंजाम करोगे तो कुछ हवा और निकल जायेगी ।फिर मारपीट में तेजी कहां रहेगी? इसका विपरीत भी सत्य है। अब चूंकि तुम सूत्र के चोचले में पडे़ हो आजकल तो ऐसा समझ लो जब "जय" भाई लिखते हैं तो पोस्ट छो॔टी हो जाती है। जब नहीं लिखते तो लेख बडा़ हो जाता है। तो सब जगह कुछ न कुछ संरक्षण का नियम चलता रहता है। कहीं शब्द संरक्षण कहीं ऊर्जा संरक्षण।

arvind
15-11-2010, 01:22 PM
देखा गया है कि कुछ लोग गाली-गलौज होते ही मारपीट करने लगते हैं। यहां गाली-गलौज हिंसा रोकने का काम क्यों नहीं कर पाती?

जैसे आपने देखा होता है कि कुछ पियक्कड़ बोतल का ढक्कन सूंघ कर ही लुढ़कने लगते हैं। वैसे ही कुछ लोग मारपीट का पूरा पेट्रोल भरे होते हैं दिमाग की टंकी में। बस एक स्पार्क चाहिये होता है स्टार्ट करने के लिये । गाली-गलौज यही स्पार्क उपलब्ध कराता है। वैसे अध्ययन से यह बात सामने आयी है कि जो जितनी जल्दी शुरु होते हैं उतनी ही जल्दी खलास भी हो जाते हैं।

arvind
15-11-2010, 01:25 PM
गाली-गलौज में आमतौर पर गुप्त अंगों का ही जिक्र क्यों किया जाता है?

मुझे लगता है कि पहली बार जब गाली का प्रयोग हुआ उस समय मैथुन प्रक्रिया चल रही थी । लिहाजा गुप्त अंगो के विवरण की बहुतायत है गालियों में। दूसरे इसलिये भी कि मनुष्य अपने गुप्त अंगों को ढकता है। गाली गलौज में इन्ही बातों का उल्लेखकर भांडा फोड़ने जैसी उपलब्धि का सुख मिलता है ।

arvind
15-11-2010, 01:28 PM
गाली में मां-बहन आदि स्त्री पात्रों का उल्लेख क्यों बहुतायत में होता है?

मेरे विचार में पुरुष प्रधान समाज में मां-बहन आदि स्त्री पात्रों का उल्लेख करके गालियां दी जाती हैं। क्योंकि मां-बहन आदि आदरणीय माने जाते हैं लिहाजा जिसको आप गाली देना चाहते हैं उसकी मां-बहन आदि स्त्री पात्रों का उल्लेख करके आप उसको आशानी से मानसिक कष्ट पहुंचा सकते हैं। स्त्री प्रधान समाज में गालियों का स्वरूप निश्चित तौर पर भिन्न होगा।

arvind
15-11-2010, 01:29 PM
स्त्री पात्रों को संबोधित करते समय गालियों की बात से यह सवाल उठता है कि पत्नी या प्रेमिका को संबोधित गालियां बहुत कम मात्रा में पायी जाती हैं?

तुम भी यार पूरे बुड़बक हो। दुनिया में लोग ककहरा बाद में सीखते हैं गाली पहले। तो लोग बाग क्या किसी को गरियाने के लिये उसके जवान होने और प्रेमिका तथा पत्नी हासिल करने का इंतजार करें। कुछ मिशनरी गाली देने वालों को छोड़ कर बाकी लोग प्रेमी या पति बनते ही गालियां देना छोड़कर गालियां खाना शुरु कर देते हैं। लिहाजा होश ही नहीं रहता इस दिशा में सोचने का। वैसे भी आमतौर पर पाया गया है कि मानव की नई गालियों की सृजनशीलता उसके जवान होने तक चरम पर रहती। बचपने में प्रेमी-पति से संबंधित मौलिक जानकारी के अभाव में इस दिशा में कुछ खास प्रगति नहीं हो पाती ।

arvind
15-11-2010, 01:30 PM
एकतरफ़ा गाली-गलौज के बाद मनुष्य शान्त क्यों हो जाता है?

एक तो थक जाता है अकेले गाली देते-देते मनुष्य। दूसरे अकेले गरियाते-गरियाते आदमी ऊब जाता है। तीसरे जाने किन लोगों ने यह भ्रम फ़ॆला रखा है कि गाली बुरी चीज है इसीलिये आदमी अकेले पाप का भागी होने में संकोच करता है। जैसे भ्रष्टाचार है । इसे अगर कोई अकेला आदमी करे तो थककर ,ऊबकर ,डरकर बंद कर दे लेकिन सब कर रहे हैं इसलिये दनादन हो रहा है धकापेल।

arvind
15-11-2010, 01:32 PM
कुछ लोगों के चेहरे पर गाली के बाद दिव्य शान्ति रहती है ऐसा क्यों है?

ऐसे लोग पहुंचे हुये सिद्ध होते हैं। गाली-गलौज को भजन-पूजन की तरह करते हैं। जैसे अलख निरंजन टाइप औघड संत।ये गालियां देते हैं तो लगता है देवता पुष्पवर्षा कर रहे हैं। शेफाली के फूल झर रहे हैं। इनके चेहरे पर गाली देने के बाद की शान्ति की उपमा केवल किसी कब्ज के मरीज के दिव्य निपटान के बाद की शान्ति से दी जा सकती है। जैसे किसी सीवर लाइन से कचरा निकल जाता है तो अंदर सफाई हो जाती है वैसे ही गालियां मन के विकार को दूर करके दिव्य शांति का प्रसार करती हैं। गाली वह साबुन है जो मन को साफ़ करके निर्मल कर देती है। फेफडे़ मजबूत होते हैं।

arvind
15-11-2010, 01:33 PM
लेकिन गाली को बुरा माना जाता है इससे आप कैसे इन्कार कर सकते हैं?

भैया अब हम क्या बतायें ? तुम तो दुनिया सहित अमेरिका बने हो और हमें बनाये हो इराक। जबरियन गाली को बुरा बता रहे हो। वर्ना देख लो हिंदी थिसारस फ़िर से । गाली गीत (बधाईगीत, विवाहगीत, विदागीत, सोहरगीत, बन्नी-बन्ना गीत के साथ) मंगल कार्यों की सूची में शामिल हैं। केवल मृत्युगीत को अमंगल कार्य में शामिल किया गया है । जब गाली का गीत मंगल कार्य है तो गाली कैसे बुरी हो गयी?

arvind
15-11-2010, 01:34 PM
वहां गाली गीत हो गई इसलिये ऐसा होता होगा शायद !

तुम भी यार अजीब अहमक हो। ये तो कुछ वैसा ही हुआ कि कोई वाहियात बात गाकर कह दें तो वह मांगलिक हो जायेगी। या कोई दो कौडी़ का मुक्तक लय ताल में आकर महान हो जाये ।

arvind
15-11-2010, 01:36 PM
क्या महिलायें भी गाली देती हैं? अगर हां तो कैसी? कोई अनुभव?

हम कोई जानकारी नहीं है इसबारे में। लेकिन सुना है कि वे आपस में सौन्दर्य चेतना को विस्तार देने वाली बाते करती हैं।सुनने में यह भी आया है ज्यादातर प्रेम संबंधों की शुरुआत मादा पात्र द्वारा "ईडियट”, "बदतमीज”, "बेशरम’ जैसी प्रेमपूर्ण बातें करने से हुयी। हमें तो कुछ अनुभव है नहीं पर सुना है कि कोई लड़की अपनी सहेली पूछ्ती है कि जब लड़के लोग बाते करते हैं तो क्या बाते करते होते होंगे? सहेली ने बताया -करते क्या होंगे जैसे हमलोग करते हैं वैसे ही करते होंगे। सहेली ने शरम से लाल होते हुये कहा -बडे़ बेशरम होते हैं लड़के।

arvind
15-11-2010, 01:38 PM
लेकिन फिर भी यह कैसे मान लिया जाये कि गालियों की सामाजिक महत्ता है?

एक कड़वा सच है कि हमारी आधी आबादी अनपढ़ है। जो पढी़ लिखी भी है उसको यौन संबंधों के बारे में जानकारी उतनी ही है जैसे अमेरिका को ओसामा बिन लादेन की। गालियां समाज को यौन संबंधों की (अधकचरी ही सही) प्राथमिक जानकारी देने वाले मुफ्त साफ्ट्वेयर है। गालियां आदिकाल से चली आ रही हैं । कहीं धिक्कार के रूप में ,कहीं कोसने के रूप में कहीं आशीर्वाद के रूप में। हमारे चाचा जब बहुत लाड़-प्यार के मूड में होते हैं, एके ४७ की स्पीड से धाराप्रवाह गालियां बकते हैं। जिस दिन चुप रहते हैं लगता है- घर नहीं मरघट है। यह तो अभिव्यक्ति का तरीका है। आपको पसंद हो अपनाऒ न पसंद हो न अपनाऒ। लेकिन यह तय है कि दुनिया में तमाम बर्बादी और तबाही के जो भी आदेश दिये गये होंगे उनमें गाली का एक भी शब्द शामिल नहीं रहा होगा। निश्चित तौर पर सहज रूप में दी जाने वाली गालियों के दामन में मानवता के खून के बहुत कम दाग होंगे बनिस्बद तमाम सभ्य माने जाने वाले शब्दों के मुकाबले।

arvind
15-11-2010, 01:39 PM
महाभारत के कारणों में से एक वाक्य है जिसमें दौप्रदी दुर्योधन का उपहास करती हुई कहती है -अंधे का पुत्र अंधा ही होता है। इन सात शब्दों में कोई भी शब्द ऐसा नहीं है जिसे गाली की पात्रता हासिल हो। फिर भी इनको जोड़कर बना वाक्य महाभारत का कारण बना।

इतना कहकर बवाली गुरु मौन हो गये। मैं लौट आया। मैं अभी भी सोच रहा हूं कि क्या सच में गालियों का कोई सामाजिक महत्व नहीं होता ?

मुझे जो कहना था वह काफ़ी कुछ कह चुका। अब आप बतायें कि क्या लगता है आपको?

abhisays
15-11-2010, 01:59 PM
महाभारत के कारणों में से एक वाक्य है जिसमें दौप्रदी दुर्योधन का उपहास करती हुई कहती है -अंधे का पुत्र अंधा ही होता है। इन सात शब्दों में कोई भी शब्द ऐसा नहीं है जिसे गाली की पात्रता हासिल हो। फिर भी इनको जोड़कर बना वाक्य महाभारत का कारण बना।

इतना कहकर बवाली गुरु मौन हो गये। मैं लौट आया। मैं अभी भी सोच रहा हूं कि क्या सच में गालियों का कोई सामाजिक महत्व नहीं होता ?

मुझे जो कहना था वह काफ़ी कुछ कह चुका। अब आप बतायें कि क्या लगता है आपको?



गालियों पर शायद पहली बार किसी ने इतना विस्तृत चिंतन और टिपण्णी की है| बहुत ही रोचक और विचारोतेजक|

lovemaker1
15-11-2010, 02:06 PM
क्या महिलायें भी गाली देती हैं? अगर हां तो कैसी? कोई अनुभव?

हम कोई जानकारी नहीं है इसबारे में। लेकिन सुना है कि वे आपस में सौन्दर्य चेतना को विस्तार देने वाली बाते करती हैं।सुनने में यह भी आया है ज्यादातर प्रेम संबंधों की शुरुआत मादा पात्र द्वारा "ईडियट”, "बदतमीज”, "बेशरम’ जैसी प्रेमपूर्ण बातें करने से हुयी। हमें तो कुछ अनुभव है नहीं पर सुना है कि कोई लड़की अपनी सहेली पूछ्ती है कि जब लड़के लोग बाते करते हैं तो क्या बाते करते होते होंगे? सहेली ने बताया -करते क्या होंगे जैसे हमलोग करते हैं वैसे ही करते होंगे। सहेली ने शरम से लाल होते हुये कहा -बडे़ बेशरम होते हैं लड़के।


अरविन्द भाई , गालियों की विस्तृत व्याख्या के लिए रेपुतेसन स्वीकार करे

:bravo:

munneraja
15-11-2010, 02:09 PM
बवाली गुरु,गाली शब्द का क्या मतलब है ?

अर्थ तो आपके ऊपर है आप क्या लगाना चाहते हैं। मेरे हिसाब से तो गाली दो लोगों के बीच का वार्तालाप है। ज्यादा ‘संस्किरत’ तो हम नहीं जानते लेकिन लोग कहते हैं कि ‘गल्प’ माने बातचीत होती है। उसी में ‘प’ को पंजाबी लोगों ने धकिया के ‘ल’ कर दिया । ‘गल्प’ से ‘गल्ल’हो गया। ‘गल्ल’ माने बातचीत होती है । यही बिगडते-बिगडते गाली बन गया होगा । तो मेरी समझ में तो गाली बोलचाल का एक अंदाज है। बस्स। गाली देने वाले का मन तमाम विकार से मुक्त रहता है।


अनुज अरविन्द को मैंने एक महत्त्व वाला व्यक्ति माना
लेकिन ये अपनी प्रतिभा को कहाँ छिपा कर रखे रखे हुए थे.... मैं नहीं जान पाया था....
इन्होने मेरी बात का सम्मान किया कि अपनी कलम का जादू यहाँ बिखेरे
तो इन्होने अपनी कलम जो चलाई है कि सर चढ़ कर जादू बोलने लगा है

लगे रहो अनुज
आपकी प्रतिभा कभी किसी के सर से नहीं उतरे .........
भगवान् से दुआ है ..........

arvind
15-11-2010, 02:20 PM
गालियों पर शायद पहली बार किसी ने इतना विस्तृत चिंतन और टिपण्णी की है| बहुत ही रोचक और विचारोतेजक|


अरविन्द भाई , गालियों की विस्तृत व्याख्या के लिए रेपुतेसन स्वीकार करे

:bravo:

अनुज अरविन्द को मैंने एक महत्त्व वाला व्यक्ति माना
लेकिन ये अपनी प्रतिभा को कहाँ छिपा कर रखे रखे हुए थे.... मैं नहीं जान पाया था....
इन्होने मेरी बात का सम्मान किया कि अपनी कलम का जादू यहाँ बिखेरे
तो इन्होने अपनी कलम जो चलाई है कि सर चढ़ कर जादू बोलने लगा है

लगे रहो अनुज
आपकी प्रतिभा कभी किसी के सर से नहीं उतरे .........
भगवान् से दुआ है ..........
आप सभी लोगो का बहुत-बहुत धन्यवाद।

ndhebar
15-11-2010, 07:52 PM
वाह गुरु वाह
का खूब टीपा है
मजा आय गवा
वाह

jai_bhardwaj
15-11-2010, 10:03 PM
'कमल' बाबू, गालियों पर लिखा हुआ यह समग्र लेख सचमुच बहुत ही सारगर्भित है / बहुत से स्थिर और ठोस तत्व इसमें समाहित हैं / मित्र , यह मात्र निठल्ला चिंतन नहीं है वरन यह एक 'गहन चिंतन' है / एक एक प्रविष्टि पर मन गदगद हो गया / प्रविष्टि संख्या २९ के क्या कहने ? वाह ! वाह !! वाह !!!
लेख पढ़ कर मेरे मन में आपको गाली देने का विकार (विचार) उत्पन्न हो चुका है ... नहीं नहीं वह रुक नहीं रहा है / जितना रोक रहा हूँ उतना ही प्रबल होता जा रहा है / मेरे सब्र का बाँध टूट ही गया .........
.... जा तेरे नाम के आगे 'स्वामी' जुड़ जाए (अरविन्द स्वामी) /
.... जा तेरा घर घर ना होकर आश्रम बन जाए /
.... जा तेरे भारतीय बैंकों के खातों में एक भी पैसा ना बचे /(स्विस बैंक की कोई बात नहीं है )/
.... जा तेरी पदवी 'चित्र प्रभारी' से 'विचित्र प्रभारी' हो जाए /
.... जा तेरे (भक्तों) मित्रों की संख्या इतनी बढ़ जाए कि तुझे नित्यकर्मों के लिए भी समय ना मिले और पेट की बड़ी हलचल को कठोरता से छिपाते हुए अधरों में प्लास्टिक की हंसी चिपकाए रहें /
धन्यवाद /

aksh
15-11-2010, 10:14 PM
क्या महिलायें भी गाली देती हैं? अगर हां तो कैसी? कोई अनुभव?

हम कोई जानकारी नहीं है इसबारे में। लेकिन सुना है कि वे आपस में सौन्दर्य चेतना को विस्तार देने वाली बाते करती हैं।सुनने में यह भी आया है ज्यादातर प्रेम संबंधों की शुरुआत मादा पात्र द्वारा "ईडियट”, "बदतमीज”, "बेशरम’ जैसी प्रेमपूर्ण बातें करने से हुयी। हमें तो कुछ अनुभव है नहीं पर सुना है कि कोई लड़की अपनी सहेली पूछ्ती है कि जब लड़के लोग बाते करते हैं तो क्या बाते करते होते होंगे? सहेली ने बताया -करते क्या होंगे जैसे हमलोग करते हैं वैसे ही करते होंगे। सहेली ने शरम से लाल होते हुये कहा -बडे़ बेशरम होते हैं लड़के।


मित्र आपने जिक्र किया है गालियों का. और क्या खूबसूरत वर्णन किया है. मजा आ गया. में भी एक दो गालियाँ आपके साथ बांटना चाहता हूँ.

क्या कोई शब्द गाली और प्यार दोनों ही रूपों में इस्तेमाल किया जा सकता है ?

जी हाँ ऐसे भी शब्द हैं जो प्यार और दुलार में भी इस्तेमाल होते हैं और गाली के तौर पर भी इस्तेमाल होता है. जैसे की मामा, चाचा, साला, दारी और ससुरी.

"दारी" शब्द को ब्रज क्षेत्र में औरतों के बीच में प्यार के संबोधन के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है जैसे कि उदाहरण के तौर पर

" अरे दारी बता ना कल तेरा भाई क्या लेकर आया था ?"

और अगर झगडे में इस्तेमाल हो तो एक बानगी देखिये " दारी तू मत बोलना, तू ही सारी आफत की जड़ है. "

इसी तरह "ससुरी" को अत्यंत प्यार और गाली दोनों के रूप में इस्तेमाल किया जाता है ब्रज क्षेत्र में.

मामा चाचा और साला तो एक रिश्ता है और इनके भी गाली के तौर पर इस्तेमाल होता है.

" अब लेले मामा क्या लेगा ? बड़ा तीस मार खां बन रहा था "

" हां हां चाचा तेरे लिए ही तो बैठा हूँ. और कोई काम धाम नहीं है मेरे पास "

इसी तरह ताऊ और मौसी शब्द का भी मनोरंजक इस्तेमाल होता है.

कल्पना करो एक कुतिया किसी ग्रामीण के घर में चुपके से घुस कर कुछ खाने के चक्कर में है और एक औरत ने जो उस घर की सदस्य है, उस कुतिया को देख लिया तो वो उससे क्या कहती है ?

" हाँ हाँ मौसी ! आजा तेरे लिए ही सब बना कर रखा है. "

arvind
16-11-2010, 12:12 PM
'कमल' बाबू, गालियों पर लिखा हुआ यह समग्र लेख सचमुच बहुत ही सारगर्भित है / बहुत से स्थिर और ठोस तत्व इसमें समाहित हैं / मित्र , यह मात्र निठल्ला चिंतन नहीं है वरन यह एक 'गहन चिंतन' है / एक एक प्रविष्टि पर मन गदगद हो गया / प्रविष्टि संख्या २९ के क्या कहने ? वाह ! वाह !! वाह !!!
लेख पढ़ कर मेरे मन में आपको गाली देने का विकार (विचार) उत्पन्न हो चुका है ... नहीं नहीं वह रुक नहीं रहा है / जितना रोक रहा हूँ उतना ही प्रबल होता जा रहा है / मेरे सब्र का बाँध टूट ही गया .........
.... जा तेरे नाम के आगे 'स्वामी' जुड़ जाए (अरविन्द स्वामी) /
.... जा तेरा घर घर ना होकर आश्रम बन जाए /
.... जा तेरे भारतीय बैंकों के खातों में एक भी पैसा ना बचे /(स्विस बैंक की कोई बात नहीं है )/
.... जा तेरी पदवी 'चित्र प्रभारी' से 'विचित्र प्रभारी' हो जाए /
.... जा तेरे (भक्तों) मित्रों की संख्या इतनी बढ़ जाए कि तुझे नित्यकर्मों के लिए भी समय ना मिले और पेट की बड़ी हलचल को कठोरता से छिपाते हुए अधरों में प्लास्टिक की हंसी चिपकाए रहें /
धन्यवाद /
आपकी गालियां सुनकर मै धन्य हुआ..... :gm:

arvind
16-11-2010, 12:15 PM
मित्र आपने जिक्र किया है गालियों का. और क्या खूबसूरत वर्णन किया है. मजा आ गया. में भी एक दो गालियाँ आपके साथ बांटना चाहता हूँ.

क्या कोई शब्द गाली और प्यार दोनों ही रूपों में इस्तेमाल किया जा सकता है ?

जी हाँ ऐसे भी शब्द हैं जो प्यार और दुलार में भी इस्तेमाल होते हैं और गाली के तौर पर भी इस्तेमाल होता है. जैसे की मामा, चाचा, साला, दारी और ससुरी.

"दारी" शब्द को ब्रज क्षेत्र में औरतों के बीच में प्यार के संबोधन के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है जैसे कि उदाहरण के तौर पर

" अरे दारी बता ना कल तेरा भाई क्या लेकर आया था ?"

और अगर झगडे में इस्तेमाल हो तो एक बानगी देखिये " दारी तू मत बोलना, तू ही सारी आफत की जड़ है. "

इसी तरह "ससुरी" को अत्यंत प्यार और गाली दोनों के रूप में इस्तेमाल किया जाता है ब्रज क्षेत्र में.

मामा चाचा और साला तो एक रिश्ता है और इनके भी गाली के तौर पर इस्तेमाल होता है.

" अब लेले मामा क्या लेगा ? बड़ा तीस मार खां बन रहा था "

" हां हां चाचा तेरे लिए ही तो बैठा हूँ. और कोई काम धाम नहीं है मेरे पास "

इसी तरह ताऊ और मौसी शब्द का भी मनोरंजक इस्तेमाल होता है.

कल्पना करो एक कुतिया किसी ग्रामीण के घर में चुपके से घुस कर कुछ खाने के चक्कर में है और एक औरत ने जो उस घर की सदस्य है, उस कुतिया को देख लिया तो वो उससे क्या कहती है ?

" हाँ हाँ मौसी ! आजा तेरे लिए ही सब बना कर रखा है. "
अक्स भाई, क्या जमा पूंजी लुटाई है आपने...... :majesty:

kamesh
16-11-2010, 03:11 PM
वाह कभी सोचा भी नहीं था के गालियों का भी अद्भुत संसार है और ये भी अच्छे और बुरे दोनों कार्यो में यूज होती है
अरविन्द भेइया जान डाल दी आप ने तो इस सूत्र में

munneraja
16-11-2010, 04:41 PM
वास्तव में "गाली" अद्भुत उर्जा का भंडार होती है
सुनते ही मनुष्य में आग लगा देती है
यदि आग धीमे लगी तो भी निष्क्रिय व्यक्ति में एक बरगी हरकत हो ही जाती है
इस अद्भुत उर्जा स्रोत को अपने में समाहित कर व्यक्ति रातों रात मीडिया में छा जाता है
कोई अनजान व्यक्ति रातों रात किसी भी सितारे से अधिक महत्व पा जाता है
इश्वर करे इस उर्जा का कभी ह्रास नहीं हो ...
सतत .. निरंतर जग में प्रवाह बना रहे ताकि ये जगत उर्जामय गतिमान रहे

aksh
17-11-2010, 12:53 PM
अक्स भाई, क्या जमा पूंजी लुटाई है आपने...... :majesty:

धन्यवाद मित्र. में ब्रज क्षेत्र का रहने वाला हूँ और वहां पर शादियों में औरतें रतजगा करती हैं और उस रतजगे में जो होता है कि बड़े बुजुर्गों के तो कान पाक जाएँ. वैसे इस रतजगे ( रात्री जागरण ) को "खोइया" के नाम से जाना जाता है. घर के सभी बुजुर्ग जिस दिन बारात लेकर चले जाते हैं दुल्हन को लाने के लिए उस दिन रात को घर में बस औरतों का ही राज होता है. मोहल्ले और बिरादरी के सभी घरों की खिल्ली उड़ाई जाती है और बस टोटल धमाल होता है. गालियाँ एक से एक रसीली और उत्कृष्ट किस्म की इस्तेमाल की जातीं हैं. और नहीं उम्र की औरतों और लड़कियों के लिए ये सब देखना और सुनना एक बहुत बड़ा अनुभव होता है.

धीरे धीरे तरक्की के रस्ते पर बढ़ने का एक नुक्सान तो यही है कि अब इन सब चीजों के लिए किसी के पास टाइम नहीं है.

arvind
17-11-2010, 12:57 PM
धन्यवाद मित्र. में ब्रज क्षेत्र का रहने वाला हूँ और वहां पर शादियों में औरतें रतजगा करती हैं और उस रतजगे में जो होता है कि बड़े बुजुर्गों के तो कान पाक जाएँ. वैसे इस रतजगे ( रात्री जागरण ) को "खोइया" के नाम से जाना जाता है. घर के सभी बुजुर्ग जिस दिन बारात लेकर चले जाते हैं दुल्हन को लाने के लिए उस दिन रात को घर में बस औरतों का ही राज होता है. मोहल्ले और बिरादरी के सभी घरों की खिल्ली उड़ाई जाती है और बस टोटल धमाल होता है. गालियाँ एक से एक रसीली और उत्कृष्ट किस्म की इस्तेमाल की जातीं हैं. और नहीं उम्र की औरतों और लड़कियों के लिए ये सब देखना और सुनना एक बहुत बड़ा अनुभव होता है.

धीरे धीरे तरक्की के रस्ते पर बढ़ने का एक नुक्सान तो यही है कि अब इन सब चीजों के लिए किसी के पास टाइम नहीं है.


यह रिवाज हमारे यहाँ "डमकच" के नाम से जाना जाता है।

aksh
17-11-2010, 02:03 PM
यही तो है असली भारत. हम अपनी परम्पराओं को जो हम सभी को आपस में जोडती थीं भूलते जा रहे हैं और एकाकी जीवन शैली और पश्चिमी सभ्यता को बढ़ावा दे रहे हैं जिसमें कि आकर्षण तो है पर गहराई बिलकुल भी नहीं है और गंदगी ही गंदगी है. आपके कहे अनुसार, मैंने भी अपना एक चित्र अवतार में लगा दिया है.

Kumar Anil
20-11-2010, 09:26 PM
वास्तव में "गाली" अद्भुत उर्जा का भंडार होती है
सुनते ही मनुष्य में आग लगा देती है
यदि आग धीमे लगी तो भी निष्क्रिय व्यक्ति में एक बरगी हरकत हो ही जाती है
इस अद्भुत उर्जा स्रोत को अपने में समाहित कर व्यक्ति रातों रात मीडिया में छा जाता है
कोई अनजान व्यक्ति रातों रात किसी भी सितारे से अधिक महत्व पा जाता है
इश्वर करे इस उर्जा का कभी ह्रास नहीं हो ...
सतत .. निरंतर जग में प्रवाह बना रहे ताकि ये जगत उर्जामय गतिमान रहे
अद्भुत , अकल्पनीय कितनी सुन्दर व्याख्या । गाली जैसे तिरस्कृत शब्द का ऐसा कल्पनातीत् विशद वर्णन कोई बिरला ही कर सकता है ।ऐसे उपेक्षित शब्द का महिमामण्डन शब्दोँ को गुनने वाला उन्हेँ जीने वाला ही कर सकता है ।

ndhebar
21-11-2010, 08:06 AM
आप लोगों के इस बागीचे से कुछ फूल मैंने भी चुन कर रख लिए हैं
क्या पता कब पूजा हेतु आवश्यकता पड़ जाये

jai_bhardwaj
22-11-2010, 01:30 AM
एक मरियल से कुत्ते को बचाने का असफल प्रयास करते हुए एक स्वनामधन्य नेता जी की कार सड़क के किनारे विशाल वटवृक्ष के गले क्या मिली नेता जी का कायाकल्प हो गया // वे परेशान कि मैं बाहर खडा हूँ तो यह मेरे जैसा कौन है जो पेड़ से चिपकी हुयी कार जैसी किसी डिबिया के अन्दर रक्त रंजित लेटा हुआ है !! कई लोग दौड़ते हुए आये और अन्दर फंसे शरीर को निकलने का प्रदर्शन करते हुए उसके कपड़ो से सब कुछ निकाल रहे थे / कार के नीचे पड़े कराहते हुए कुत्ते की तरह किसी का ध्यान नहीं जा रहा था / मोबाइल पर मोबाइल खड़कने लगे / पूं .... पीं .. करती हुयी नीले और लाल रंग का सिन्दूर लगाए हुए सरकारी गाड़ियां वहाँ एकत्र होने लगी / कुछ देर में ही वहाँ पर नेता जी के परिवार वाले आ पहुंचे तो अपने बेटे और पत्नी को रोते हुए देख कर तने के पास खड़े हुए नेता जी जोर जोर से चीखते हुए उनकी ओर लपके किन्तु यह क्या उनका शरीर लोगों की भीड़ में ऐसे गुम हो रहा था जैसे कभी उनकी तिजोरी में काला धन गुम हो जाता था / उन्हें आश्चर्य हो रहा था कि लोग उनकी आवाज क्यों नहीं सुन रहे हैं ? उनके सामने ही उनके जैसे शरीर से लिपट कर उनकी पत्नी रोये जारही थी .. भला क्यों ? तभी उन्हें अपने पीछे किसी के खड़े होने का आभास हुआ तो पलटे / दो भयंकर सूरत वाले जीव खड़े थे और अपने साथ चलने का संकेत कर रहे थे / नेता जी ने अपनी पिस्तौल को हाथ लगाया ... उफ़.. कंधे से पट्टा गायब था !! उन्होंने भीड़ में देखा कि उनका बेटा उस कार वाले शरीर से रिवाल्वर निकलकर सहेज रहा था / कोई और विकल्प ना पाकर वे उनके साथ पैदल ही चल पड़े /
शहर के बाहर होते ही वे उठने लगे और कुछ देर में ही आकाशी हो चले / ऊपर से वे नीचे हो रहे अपने श्रृद्धांजलि कार्यक्रम का आनंद लेने लगे / तभी उन्हें राह में एक सुन्दर सा विमान मिला / उन्होंने उन दोनों हिंसक जीवों से कहा कि उस विमान में लिफ्ट ले लें / दोनों ने उन्हें घूर कर देखा और कहा , ' सारे जीवन आपने 'राहजनी' की है / भाग्य ऐसा बना कि वर्दी के सहयोग से शहर के मोहल्ले के नेता बन गए / फिर नेतागीरी चमकी .. खूब चमकी और संसद तक पहुँच गए थे / मंत्री भी बने / पर कुछ अच्छा किया हो तो बोलो /' नेता जी ने अपने छोटे से मस्तिष्क जैसे सर के ऊपरी हिस्से को पतले कपडे से छाना किन्तु उन्हें कोई भी अच्छा कार्य हाथ ना लगा तो उनका मुंह लटक गया / वे फिर कुछ देर बाद बोले, ' भाई मैं थक गया हूँ . कुछ देर ठहर तो जाओ कहीं /'
'चलो थोड़ी दूर और चलो ! आगे एक करील (जिसमे एक भी पत्ता नहीं होता) का पेड़ है उसकी छाया में ही विश्राम होगा /'
आगे एक विशाल छायादार पेड़ था उसके नीचे वह विमान भी रुका हुआ था / उसके साथ दो भव्य पुरुष भी थे / वही पास में एक करील का छोटा सा पेड़ था / उन दोनों खबीसो ने नेताजी को उसके पास ले जाकर खडा कर दिया और कहा कि वे कुछ पल विश्राम कर लें / पसीने से लथपथ नेता जी ने करील के पेड़ को देखा जिसमे छाया नहीं थी/ उन्होंने छायादार पेड़ की तरफ लालच भरी दृष्टि से देखा किन्तु वह तो उनसे उतनी ही दूर था जितनी विपक्षी नेता से प्रधानमंत्री की कुर्सी /
अब विमान चलने को था / तभी उनकी दृष्टि उस पर पडी और उसमे बैठे जीव को देख कर वे चौंक गए / वे किसी की परवाह किये बिना उसकी तरफ ऐसे लपके जैसे गरीब की कुटिया की तरफ बाढ़ का पानी / विमान में वही मरियल सा कुत्ता बैठा था / वे फट पड़े ...
- अबे साल्ले! खजहे कुत्ते ! तेरी हिम्मत कैसे हुयी इस विमान में बैठने की ! उट्ठ .. साले उट्ठ !!
दोनों खबीस और वे दिव्य पुरुष नेता जी तरफ लपके मानो राहत सामग्री लेने के लिए सोमालिया के लोग लपकें हों /
कुत्ते ने उन चारों को रोका और कहा, ' भाई लोगो, आप लोग मेरे और नेता जी के वार्तालाप के मध्य कोई व्यवधान ना बने / हम दोनों लगोटिया यार हैं / ' फिर वह विमान से नीचे उतारा और दिव्य पुरुषों से बोला, ' भाई, मैं अपने मित्र के साथ कुछ दूर पैदल चलूँगा /' इतना कह कर उसने नेता जी से कहा ,' महोदय आप व्यर्थ ही क्रोध कररहे हैं ! आखिर मेरा क्या दोष है ! हमने तो आपको बचपन से देखा है जब आप को अपना नाड़ा बाँधना नहीं आता था और एक हाथ से ढीला कच्छा पहने हुए गली के कुत्तों के साथ खेला करते थे / मैं भी उनमे से एक हूँ / यह बात अलग है कि अब आप सब भूल चुके हैं /'
- अबे कुत्ते, साले अपनी औकात देख , साले मरियल .. मैंने तेरे साथ कौन सा गुल्ली डंडा खेला है जो यहाँ पर बखान कर रहा है / दिन रात गली गली में टुकड़ों के लिए घूमने वाले नालियों का पानी पीने वाले नंगे जानवर तेरा मेरा क्या साथ ... ?
- महोदय आपका कथन किसी सीमा तक उचित ही है कि हम नंगे हैं / किन्तु क्या करें हम नंगे ही पैदा हुए हैं इसीलिये नंगे हैं /
- अबे तो क्या हम सूट पहन कर पैदा हुए थे ? नंगे तो सभी पैदा होते हैं किन्तु हम उसके बाद वस्त्र पहनने लगते हैं तेरी तरह सारी ज़िन्दगी ढकने के लिए दी हुयी पूंछ को भी ऊपर की तरफ उठाकर नंगे नहीं रहते हैं /
- ठीक ही है महोदय ! आप अपनी 'नंगई' के कारण इज्जतदार बन गए हैं अपनी इज्जत (पूंछ) के कारण नंगे हो गए !
- अबे तू चुप रह/ मेरे मुंह मत लग / मुझे ताव आ गया तो बस एक इशारे में तेरा काम तमाम.....
- अरे रे रे ! व्यर्थ में आप अपनी पोल पट्टी खोल रहे हैं यह कार्य तो चित्रगुप्त जी को करना है / हमने तो सदैव ही आज जैसों की गुलामी की है / जब भी किसी पर लुलुहा दिया, हम दौड़ पड़े उसे काटने के लिए /
नेता जी कुछ डरे और कुछ संतुष्ट भी हुए / तभी एक गरजदार आवाज उभरी , ' यह क्या हो रहा है ?'
नेता जी बोले, ' तू कौन है रे / दिखता भी नहीं है ?'
- मैं यमराज '
- ....................... नेता जी की सिट्टी पिट्टी गुम हो गयी जैसे किसी मंत्री के जाते ही कानपुर की बिजली गुम हो जाती है /
- श्वान जी !! आप अपने विमान में चले / और इस नेता नामक अधम पशु को घसीटते हुए तत्काल मेरे समीप लाओ /' कह कर वह आवाज बंद हो गयी /
नेता जी ने बड़ी कातर और कुत्ती दृष्टि से कुत्ते की ओर देखा किन्तु कुत्ते ने उन्हें वैसे नजरंदाज किया जैसे वे मंत्री बनने के बाद मोहल्ले के नेताओं को करते थे /

arvind
22-11-2010, 01:46 PM
एक मरियल से कुत्ते को बचाने का असफल प्रयास करते हुए एक स्वनामधन्य नेता जी की कार सड़क के किनारे विशाल वटवृक्ष के गले क्या मिली नेता जी का कायाकल्प हो गया // वे परेशान कि मैं बाहर खडा हूँ तो यह मेरे जैसा कौन है जो पेड़ से चिपकी हुयी कार जैसी किसी डिबिया के अन्दर रक्त रंजित लेटा हुआ है !! कई लोग दौड़ते हुए आये और अन्दर फंसे शरीर को निकलने का प्रदर्शन करते हुए उसके कपड़ो से सब कुछ निकाल रहे थे / कार के नीचे पड़े कराहते हुए कुत्ते की तरह किसी का ध्यान नहीं जा रहा था / मोबाइल पर मोबाइल खड़कने लगे / पूं .... पीं .. करती हुयी नीले और लाल रंग का सिन्दूर लगाए हुए सरकारी गाड़ियां वहाँ एकत्र होने लगी / कुछ देर में ही वहाँ पर नेता जी के परिवार वाले आ पहुंचे तो अपने बेटे और पत्नी को रोते हुए देख कर तने के पास खड़े हुए नेता जी जोर जोर से चीखते हुए उनकी ओर लपके किन्तु यह क्या उनका शरीर लोगों की भीड़ में ऐसे गुम हो रहा था जैसे कभी उनकी तिजोरी में काला धन गुम हो जाता था / उन्हें आश्चर्य हो रहा था कि लोग उनकी आवाज क्यों नहीं सुन रहे हैं ? उनके सामने ही उनके जैसे शरीर से लिपट कर उनकी पत्नी रोये जारही थी .. भला क्यों ? तभी उन्हें अपने पीछे किसी के खड़े होने का आभास हुआ तो पलटे / दो भयंकर सूरत वाले जीव खड़े थे और अपने साथ चलने का संकेत कर रहे थे / नेता जी ने अपनी पिस्तौल को हाथ लगाया ... उफ़.. कंधे से पट्टा गायब था !! उन्होंने भीड़ में देखा कि उनका बेटा उस कार वाले शरीर से रिवाल्वर निकलकर सहेज रहा था / कोई और विकल्प ना पाकर वे उनके साथ पैदल ही चल पड़े /
शहर के बाहर होते ही वे उठने लगे और कुछ देर में ही आकाशी हो चले / ऊपर से वे नीचे हो रहे अपने श्रृद्धांजलि कार्यक्रम का आनंद लेने लगे / तभी उन्हें राह में एक सुन्दर सा विमान मिला / उन्होंने उन दोनों हिंसक जीवों से कहा कि उस विमान में लिफ्ट ले लें / दोनों ने उन्हें घूर कर देखा और कहा , ' सारे जीवन आपने 'राहजनी' की है / भाग्य ऐसा बना कि वर्दी के सहयोग से शहर के मोहल्ले के नेता बन गए / फिर नेतागीरी चमकी .. खूब चमकी और संसद तक पहुँच गए थे / मंत्री भी बने / पर कुछ अच्छा किया हो तो बोलो /' नेता जी ने अपने छोटे से मस्तिष्क जैसे सर के ऊपरी हिस्से को पतले कपडे से छाना किन्तु उन्हें कोई भी अच्छा कार्य हाथ ना लगा तो उनका मुंह लटक गया / वे फिर कुछ देर बाद बोले, ' भाई मैं थक गया हूँ . कुछ देर ठहर तो जाओ कहीं /'
'चलो थोड़ी दूर और चलो ! आगे एक करील (जिसमे एक भी पत्ता नहीं होता) का पेड़ है उसकी छाया में ही विश्राम होगा /'
आगे एक विशाल छायादार पेड़ था उसके नीचे वह विमान भी रुका हुआ था / उसके साथ दो भव्य पुरुष भी थे / वही पास में एक करील का छोटा सा पेड़ था / उन दोनों खबीसो ने नेताजी को उसके पास ले जाकर खडा कर दिया और कहा कि वे कुछ पल विश्राम कर लें / पसीने से लथपथ नेता जी ने करील के पेड़ को देखा जिसमे छाया नहीं थी/ उन्होंने छायादार पेड़ की तरफ लालच भरी दृष्टि से देखा किन्तु वह तो उनसे उतनी ही दूर था जितनी विपक्षी नेता से प्रधानमंत्री की कुर्सी /
अब विमान चलने को था / तभी उनकी दृष्टि उस पर पडी और उसमे बैठे जीव को देख कर वे चौंक गए / वे किसी की परवाह किये बिना उसकी तरफ ऐसे लपके जैसे गरीब की कुटिया की तरफ बाढ़ का पानी / विमान में वही मरियल सा कुत्ता बैठा था / वे फट पड़े ...
- अबे साल्ले! खजहे कुत्ते ! तेरी हिम्मत कैसे हुयी इस विमान में बैठने की ! उट्ठ .. साले उट्ठ !!
दोनों खबीस और वे दिव्य पुरुष नेता जी तरफ लपके मानो राहत सामग्री लेने के लिए सोमालिया के लोग लपकें हों /
कुत्ते ने उन चारों को रोका और कहा, ' भाई लोगो, आप लोग मेरे और नेता जी के वार्तालाप के मध्य कोई व्यवधान ना बने / हम दोनों लगोटिया यार हैं / ' फिर वह विमान से नीचे उतारा और दिव्य पुरुषों से बोला, ' भाई, मैं अपने मित्र के साथ कुछ दूर पैदल चलूँगा /' इतना कह कर उसने नेता जी से कहा ,' महोदय आप व्यर्थ ही क्रोध कररहे हैं ! आखिर मेरा क्या दोष है ! हमने तो आपको बचपन से देखा है जब आप को अपना नाड़ा बाँधना नहीं आता था और एक हाथ से ढीला कच्छा पहने हुए गली के कुत्तों के साथ खेला करते थे / मैं भी उनमे से एक हूँ / यह बात अलग है कि अब आप सब भूल चुके हैं /'
- अबे कुत्ते, साले अपनी औकात देख , साले मरियल .. मैंने तेरे साथ कौन सा गुल्ली डंडा खेला है जो यहाँ पर बखान कर रहा है / दिन रात गली गली में टुकड़ों के लिए घूमने वाले नालियों का पानी पीने वाले नंगे जानवर तेरा मेरा क्या साथ ... ?
- महोदय आपका कथन किसी सीमा तक उचित ही है कि हम नंगे हैं / किन्तु क्या करें हम नंगे ही पैदा हुए हैं इसीलिये नंगे हैं /
- अबे तो क्या हम सूट पहन कर पैदा हुए थे ? नंगे तो सभी पैदा होते हैं किन्तु हम उसके बाद वस्त्र पहनने लगते हैं तेरी तरह सारी ज़िन्दगी ढकने के लिए दी हुयी पूंछ को भी ऊपर की तरफ उठाकर नंगे नहीं रहते हैं /
- ठीक ही है महोदय ! आप अपनी 'नंगई' के कारण इज्जतदार बन गए हैं अपनी इज्जत (पूंछ) के कारण नंगे हो गए !
- अबे तू चुप रह/ मेरे मुंह मत लग / मुझे ताव आ गया तो बस एक इशारे में तेरा काम तमाम.....
- अरे रे रे ! व्यर्थ में आप अपनी पोल पट्टी खोल रहे हैं यह कार्य तो चित्रगुप्त जी को करना है / हमने तो सदैव ही आज जैसों की गुलामी की है / जब भी किसी पर लुलुहा दिया, हम दौड़ पड़े उसे काटने के लिए /
नेता जी कुछ डरे और कुछ संतुष्ट भी हुए / तभी एक गरजदार आवाज उभरी , ' यह क्या हो रहा है ?'
नेता जी बोले, ' तू कौन है रे / दिखता भी नहीं है ?'
- मैं यमराज '
- ....................... नेता जी की सिट्टी पिट्टी गुम हो गयी जैसे किसी मंत्री के जाते ही कानपुर की बिजली गुम हो जाती है /
- श्वान जी !! आप अपने विमान में चले / और इस नेता नामक अधम पशु को घसीटते हुए तत्काल मेरे समीप लाओ /' कह कर वह आवाज बंद हो गयी /
नेता जी ने बड़ी कातर और कुत्ती दृष्टि से कुत्ते की ओर देखा किन्तु कुत्ते ने उन्हें वैसे नजरंदाज किया जैसे वे मंत्री बनने के बाद मोहल्ले के नेताओं को करते थे /
जय भाई, नेता महिमा के क्या कहने। नेताओ के बारे मे बस यही कह सकता हूँ -
हरि अनंत, हरी कथा अनंता।
जब हमने आपका परिचय खंड देखा तो उसमे location के सामने लिखा पाया - "श्मशान की राह मे" - तब से मै सोच रहा था कि आपने ऐसा क्यों लिखा है? एक बार मन मे आया भी कि चलो पूछ लेता हूँ, परंतु उपरोक्त दृष्टांत पढ़ कर इसका कारण पता चल गया।

arvind
22-11-2010, 02:15 PM
उफ्फ, बहुत टेंशन है।


आप अपनी गाड़ी से चले जा रहे है, अचानक एक बहुत ही खूबसूरत लड़की आपसे लिफ्ट मांगती है। आप उसे लिफ्ट दे देते है - वो आपके बगल मे आकर बैठ जाती है। अचानक उसकी तबीयत खराब हो जाती है और वो बेहोश हो जाती है - लो हो गई टेंशन।
आप उसे अस्पताल लेकर जाते है - वहाँ डॉक्टर चेक-अप करने के बाद बताते है कि वो लड़की माँ बनने वाली है - लो आपको फिर हो गई ना टेंशन।
लड़की के होश मे आने पर जब उसे पूछताछ की जाती है तो वो आपको अपना पति बताती है और उस होने वाले बच्चे का बाप - लो फिर टेंशन।
आपके इंकार करने पर हॉस्पिटल वाले पुलिस को बुला लेते है - लो फिर टेंशन।
पुलिस अब आपका मेडिकल जांच करवाती तो पता चलता है कि आप तो बाप बन ही नहीं सकते है - चलो इस मुसीबत से पीछा छूटा।
अगर ऐसा है तो जो घर पर आपके दो बच्चे है - वो किसके है? - लो फिर हो गई ना टेंशन।

Kumar Anil
23-11-2010, 08:42 PM
सोचता हूँ ये शहरी सीमाएँ विषकन्याओँ जैसी हैँ जो अपने कलुषित अधरोँ से हौले से अबोध गाँवोँ का चुम्बन करती हैँ और हमारे गाँव सहमते , झिझकते भयभीत होकर पीछे हटते फिर सिकुड़ कर दबते जा रहे हैँ और किसी आदिवासी मानसिकता की तरह सँज्ञाशून्य होते जा रहे हैँ । ये आधुनिक विषकन्या किसी सुरसा की तरह अपनी असीम क्षुधा की पूर्ति के लिए सभ्यता की भट्टी मेँ गाँव रूपी ईधन झोँककर उन्हेँ निगल कर आगे बढ़ती ही चली जा रही है । ये विषकन्या मित्रता का जाल बिछाकर गाँवोँ से दुरभिसन्धि करती है और अपने शहरी विष का गाँवोँ के कुछ हिस्सोँ पर वमन कर देती है । इस विष के प्रभाव मेँ वे भी उसके जैसा हो जाते हैँ और गाँव का अवशेष भाग किँकर्तव्यविमूढ़ होकर अपना वजूद खोकर ये शहरी ताण्डव देखकर अपनी त्रासद स्थिति पर जार - जार रो रहा है । ये शहरी नँगा नाच सभ्यता के नाम पर अनवरत जारी है । ये निश्छल ग्रामीण कम खा कर भी मस्त था पर तृप्त शहरी अतृप्त होकर गाँवोँ को लील रहा है ।

Kumar Anil
28-11-2010, 01:28 PM
कोल्हू के बैल की तरह / दिन-रात खटते रहते हैँ / चलते रहते हैँ / बस एक ही जगह / बेजुबाँ / लाचार/ बेबस / घिसटते हुए अस्थियोँ के असँख्य पिँजर / गरीबी का दीमक चाट चुका है जिनका माँस / फिर भी / गिने जाते हैँ सरकारी आँकड़ोँ मेँ इन्सान / आँकड़ोँ पर बोझ बन जाते हैँ / समाज से कटे ये लोग / समाजशास्त्र का सिर्फ एक अध्याय रह जाते हैँ / मगर / अर्थशास्त्र मेँ बखूबी गिने जाते हैँ / इनकी भूख / गरीबी / बदहाली / बेबसी / कितनी स्वाभाविक लगती है बुद्धिजीवियोँ को / उनकी निश्छल सरलता की बैठकोँ मेँ चर्चा होती है / जो प्रबुद्ध लोगोँ की खुराक होती है ।

kamesh
28-11-2010, 03:07 PM
हमारे देश में आदमी कितना फुरसतिया है की पुछो मत

बस उसे बातो का बतंगड़ करने के लिए मूद्दे चाहिए

मिडिया को सब कुछ सूंघना है

नेता को सब कुछ चूमना है(कुर्सी से ले के पैर तक)

अफसरों को घुमने का( सरकारी पेसो से)

किसानो को मरने का ( लोन ना चुकाने पर)

जनता को महंगाई डायन से डरने का (क्यों की उसे भी बाद में मरना है)

स्टुडेंट को फ़ीस भरने का (क्यों की उसे पढना है)

इमानदारों को नोकरी नहीं मिलने का (घुस की कमी)

मुदे ही मुदे तो है

मगर हम आप जरा रुक के सोचें

क्या मुदों की चर्चा ही होनी चाहिए बस चर्चा

अरे शर्म करो देशवासियों अब वक्त वो नहीं की मुद्दों पे चर्चा हो

अब वक्त है मुद्दों को हल करो अपने अपने जीवन में

सुरु अपने आप से करो मुदे ख़त्म हो जायेंगे

और हाँ शुरुवात आज से कर देना अपने आप से ....................

Kumar Anil
29-11-2010, 07:02 PM
हमारे देश में आदमी कितना फुरसतिया है की पुछो मत

बस उसे बातो का बतंगड़ करने के लिए मूद्दे चाहिए

मिडिया को सब कुछ सूंघना है

नेता को सब कुछ चूमना है(कुर्सी से ले के पैर तक)

अफसरों को घुमने का( सरकारी पेसो से)

किसानो को मरने का ( लोन ना चुकाने पर)

जनता को महंगाई डायन से डरने का (क्यों की उसे भी बाद में मरना है)

स्टुडेंट को फ़ीस भरने का (क्यों की उसे पढना है)

इमानदारों को नोकरी नहीं मिलने का (घुस की कमी)

मुदे ही मुदे तो है

मगर हम आप जरा रुक के सोचें

क्या मुदों की चर्चा ही होनी चाहिए बस चर्चा

अरे शर्म करो देशवासियों अब वक्त वो नहीं की मुद्दों पे चर्चा हो

अब वक्त है मुद्दों को हल करो अपने अपने जीवन में

सुरु अपने आप से करो मुदे ख़त्म हो जायेंगे

और हाँ शुरुवात आज से कर देना अपने आप से ....................


जी हाँ कामेश आप दुरुस्त फरमा रहेँ हैँ ।मुद्दोँ पर नहीँ अलबत्ता उनके समाधान पर हमेँ गौर करना होगा क्योँकि समस्याएँ चर्चाओँ से नहीँ समाधान से दूर होती हैँ जिसका ज्वलन्त उदाहरण समस्याग्रस्त बिहार प्रान्त मेँ नीतीश कुमार जी ने प्रस्तुत किया है ।

Kumar Anil
28-12-2010, 08:00 AM
मौलिक चिन्तन के धनी रचनाधर्मी भाई अरविन्द आपका सूत्र अर्थहीनता के सैलाब मेँ अपनी हीनता , बेचारगी और नियति पर आँसू बहाता किसी कोने मेँ अवश्य सिमटा दुबका होगा । इस सोच के वशीभूत ढ़ूँढ़कर ले आया हूँ ताकि कुन्द हो गये मेरे दिमाग को सार्थक चिन्तन करने पर विवश होना पड़े । आप और अमित दोनोँ मिलकर इसकी दशा और दिशा तय करेँगे , ऐसा मेरा विश्वास है ।

arvind
30-12-2010, 01:43 PM
मौलिक चिन्तन के धनी रचनाधर्मी भाई अरविन्द आपका सूत्र अर्थहीनता के सैलाब मेँ अपनी हीनता , बेचारगी और नियति पर आँसू बहाता किसी कोने मेँ अवश्य सिमटा दुबका होगा । इस सोच के वशीभूत ढ़ूँढ़कर ले आया हूँ ताकि कुन्द हो गये मेरे दिमाग को सार्थक चिन्तन करने पर विवश होना पड़े । आप और अमित दोनोँ मिलकर इसकी दशा और दिशा तय करेँगे , ऐसा मेरा विश्वास है ।
अनिल भाई, पिछले कुछ दिनो से इंटरनेट ससुरी सठिया गया था, इसीलिए आना नहीं हो पाया।

अपने बड़ी गहरी बात कह दी, समय के गर्त मे अच्छे-अच्छे राजाओ, महाराजाओ, लेखको, गुनिजनों, विद्वानो के भी निशान धूमिल पड़ गए। मुंशी प्रेमचंद, फणीश्वर नाथ "रेणु", रवीद्र नाथ टैगोर, जैसे लोगो की कृतिया भी आज किसी पुराने जमाने के किसी पुस्तकालय मे अपनी हीनता, बेचारगी और नियति ओर आँसू बहता किसी कोने मे पड़ा होगा, फिर ये तो एक अदने से प्राणी का कोरा सा बकवास ही तो है। हाँ, आप जैसे दो-चार कद्रदान की वजह से ही की बोर्ड को थोड़ा कष्ट देते रहते है।

Kumar Anil
30-12-2010, 03:07 PM
अनिल भाई, पिछले कुछ दिनो से इंटरनेट ससुरी सठिया गया था, इसीलिए आना नहीं हो पाया।

अपने बड़ी गहरी बात कह दी, समय के गर्त मे अच्छे-अच्छे राजाओ, महाराजाओ, लेखको, गुनिजनों, विद्वानो के भी निशान धूमिल पड़ गए। मुंशी प्रेमचंद, फणीश्वर नाथ "रेणु", रवीद्र नाथ टैगोर, जैसे लोगो की कृतिया भी आज किसी पुराने जमाने के किसी पुस्तकालय मे अपनी हीनता, बेचारगी और नियति ओर आँसू बहता किसी कोने मे पड़ा होगा, फिर ये तो एक अदने से प्राणी का कोरा सा बकवास ही तो है। हाँ, आप जैसे दो-चार कद्रदान की वजह से ही की बोर्ड को थोड़ा कष्ट देते रहते है।

यद्यपि निशान धूमिल तो हो सकते हैँ तथापि लुप्तता की सम्भावना क्षीण ही होती है और फिर विचारोँ को शब्द देने से कैसा गुरेज । भावनाओँ को यदि अभिव्यक्ति न मिले तो उसके क्या मायने । भले ही नक्कारखाने मेँ तूती हो लेकिन उसका वजूद तो कायम ही है । इस देश के अधिसँख्य मतदाता सठियाए हुए हैँ बावजूद इसके सबसे बड़े लोकतन्त्र को स्थापित रखने का गौरव भी प्रदान किये हैँ । इस समाज मेँ बने रहने के लिए धोबी से लेकर अफसर तक सबको लेकर चलना होगा बशर्ते नंगा नाच न हो । किसी भी समाज मेँ मौलिकता और वैचारिकता से सम्पन्न चन्द लोग ही होते हैँ । नेतृत्व की कमान किसी एक के ही पास होती है शेष तो अनुसरण करने वाले होते हैँ । अब यदि इन चन्द लोगोँ के विचारोँ का प्रवाह नहीँ होगा तो समाज संज्ञाहीन होकर जड़ हो जायेगा और एक विराट शून्य स्थापित हो जायेगा और आने वाली पीढ़ियाँ किसको उत्तरदायी सिद्ध करेँगी , सहज अनुमान लगाया जा सकता है । गत डेढ़ माह मेँ मेरे देखते - देखते मूल्योँ मेँ जो गिरावट आयी है उसका समाधान तो खोजना ही पड़ेगा , नियन्त्रण को और अधिक प्रभावी करने की आवश्यकता समय की माँग होती जा रही है । अनेक अवसरोँ पर क्षोभ उत्पन्न हुआ , आक्रोश ने भीतर ही फुफकारा पर विवादोँ से दूर रहने के परामर्श ने राजमार्ग छोड़कर पगडंडी का रास्ता पकड़ा दिया । हाँ . आप गुरुजनोँ से एक बात अवश्य कहना चाहूँगा कि आप आकाशधर्मिता का आचरण किया कीजिये न कि शिलाधर्मी बनकर अपने ज्ञान को रोशन करेँ । गुरु यदि अपने ज्ञान की शिला शिष्य पर रख देगा तो शिष्य उसके बोझ तले अपना विकास कैसे कर सकेगा ।

arvind
30-12-2010, 04:52 PM
मै लिखता क्यों हूँ?


अचानक मेरे दिमाग मे एक बात आई की आखिर मै लिखता क्यों हूँ? क्या मुझे कोई तगमा मिलने वाला है? क्या इससे मेरी गृहस्थी चलने वाली है? क्या इतिहास मे मेरा भी नाम लिखा जाएगा? क्या मेरे लिखने से किसी का कोई भला होने वाला है? लोग कहते है की मै अच्छा लिखता हूँ तो सुनकर मन थोड़ा फुल कर कुप्पा हो जाता है, लेकिन फिर भी लिखने का मकसद समझ मे नहीं आता है। क्यों आता हूँ मै फोरम पर? कौन मुझे यहा जानता है? सच तो यह है कि मै और मेरा पड़ोसी, हम दोनों एक दूसरे को नहीं जानते है, तो फिर यहा नेट पर बैठकर एक फोरम ज्वाईन करके मैंने कौन सा तीर मार लिया? किसी अच्छी साहित्यिक पत्रिका अगर मेरी कोई दो-चार रचनाए छप जाती तो कोई बात थी। फिर मै काहे को लेखक बना फिर रहा हूँ, अब प्यार, संस्कार, साहित्य, समाज सेवा, देश-भक्ति आदि कि बाते सुनकर तो लोग नाक-भौ सिकोड़ते है, इसकी जगह अगर अश्लीलता, शराब, और फिल्मी बाते करू तो अपना एक अच्छा-खासा ग्रुप बन जाएगा। "कैटरीना कैफ, प्रियंका चोपड़ा, "ऐश्वर्या राय" की तस्वीरे नेट से उठाकर भी यहा चिपका दु तो भी मुझे जबर्दस्त टिप्पणिया और रेपुटेशन मिल जाएगी साथ ही साथ मेरा कोई विरोधी भी नहीं होगा।

अब तो मैंने बहुत सारे विरोधी भी बना लिए है। जो मेरे किसी भी सूत्र या प्रविष्टि पर मेरी "ऐसी की तैसी" कर देते है। इस कार्य के लिए, कुछ लोग तो कई-कई छद्म आईडी बनाकर प्रोक्सी साईट का भी इस्तेमाल कर लेते है। कुछ लोगो को मेरी मानसिकता पर तरस भी आने लगा है और मुझे घर मे बैठने की सलाह भी दे चुके है और उदाहरण तो ऐसे-ऐसे देंगे की पूछिए मत। मगर मजे की बात तो देखिये की अपनी पहचान तक छिपाये रखते है। कुछ लोग तो एडवांस मे भी माफी मांग कर "ऐसी की तैसी" कर देते है।

फिर भी मै लिखता हूँ, क्योंकि इससे मुझे आत्मसंतुष्टि मिलती है, मुझे अपने मन के विचारो को कम्प्युटर के की-बोर्ड से शब्द मे पिरोना अच्छा लगता है। मेरे विचार, मेरी निजी संपत्ति है, इसे कोई मुझसे छिन नहीं सकता। हो सकता है, मेरे विचारो से कुछ लोग असहमत भी हो, मुझे इसकी कोई परवाह नहीं, क्योंकि मै भी बहुत से लोगो के विचारो से सहमत नहीं होता। हा, जिन लोगो के विचारो से मै सहमत नहीं होता, उनसे मै दूर ही रहता हूँ।
:):):):):)

Kumar Anil
30-12-2010, 09:41 PM
मै लिखता क्यों हूँ?


अचानक मेरे दिमाग मे एक बात आई की आखिर मै लिखता क्यों हूँ? क्या मुझे कोई तगमा मिलने वाला है? क्या इससे मेरी गृहस्थी चलने वाली है? क्या इतिहास मे मेरा भी नाम लिखा जाएगा? क्या मेरे लिखने से किसी का कोई भला होने वाला है? लोग कहते है की मै अच्छा लिखता हूँ तो सुनकर मन थोड़ा फुल कर कुप्पा हो जाता है, लेकिन फिर भी लिखने का मकसद समझ मे नहीं आता है। क्यों आता हूँ मै फोरम पर? कौन मुझे यहा जानता है? सच तो यह है कि मै और मेरा पड़ोसी, हम दोनों एक दूसरे को नहीं जानते है, तो फिर यहा नेट पर बैठकर एक फोरम ज्वाईन करके मैंने कौन सा तीर मार लिया? किसी अच्छी साहित्यिक पत्रिका अगर मेरी कोई दो-चार रचनाए छप जाती तो कोई बात थी। फिर मै काहे को लेखक बना फिर रहा हूँ, अब प्यार, संस्कार, साहित्य, समाज सेवा, देश-भक्ति आदि कि बाते सुनकर तो लोग नाक-भौ सिकोड़ते है, इसकी जगह अगर अश्लीलता, शराब, और फिल्मी बाते करू तो अपना एक अच्छा-खासा ग्रुप बन जाएगा। "कैटरीना कैफ, प्रियंका चोपड़ा, "ऐश्वर्या राय" की तस्वीरे नेट से उठाकर भी यहा चिपका दु तो भी मुझे जबर्दस्त टिप्पणिया और रेपुटेशन मिल जाएगी साथ ही साथ मेरा कोई विरोधी भी नहीं होगा।

अब तो मैंने बहुत सारे विरोधी भी बना लिए है। जो मेरे किसी भी सूत्र या प्रविष्टि पर मेरी "ऐसी की तैसी" कर देते है। इस कार्य के लिए, कुछ लोग तो कई-कई छद्म आईडी बनाकर प्रोक्सी साईट का भी इस्तेमाल कर लेते है। कुछ लोगो को मेरी मानसिकता पर तरस भी आने लगा है और मुझे घर मे बैठने की सलाह भी दे चुके है और उदाहरण तो ऐसे-ऐसे देंगे की पूछिए मत। मगर मजे की बात तो देखिये की अपनी पहचान तक छिपाये रखते है। कुछ लोग तो एडवांस मे भी माफी मांग कर "ऐसी की तैसी" कर देते है।

फिर भी मै लिखता हूँ, क्योंकि इससे मुझे आत्मसंतुष्टि मिलती है, मुझे अपने मन के विचारो को कम्प्युटर के की-बोर्ड से शब्द मे पिरोना अच्छा लगता है। मेरे विचार, मेरी निजी संपत्ति है, इसे कोई मुझसे छिन नहीं सकता। हो सकता है, मेरे विचारो से कुछ लोग असहमत भी हो, मुझे इसकी कोई परवाह नहीं, क्योंकि मै भी बहुत से लोगो के विचारो से सहमत नहीं होता। हा, जिन लोगो के विचारो से मै सहमत नहीं होता, उनसे मै दूर ही रहता हूँ।

अब आयेगा मजा ! जब निठल्ले को भी दशा और दिशा मिल जायेगी । निठल्ले के पास आखिर और है ही क्या ? मुख्यधारा से अलग , बहिष्कृत , खाली बैठकर दो टके के दिमाग से मगजमारी करके कुछ ऐसा फितूर सोचे जिससे किसी और का भला तो होने से रहा । हाँ , खुद को तुष्ट कर लिया और फूल कर कुप्पा हो गये । अरस्तू , प्लेटो की वंशावली मेँ खुद को एडजस्ट करने की जद्दोजहद करने लगा । अजीब बेवकूफी है खाली - मूली दिमाग की बात करते हो । पिद्दी न पिद्दी , पिद्दी का शोरबा । अमां इत्ते बड़े शरीर मेँ दिमाग के ही पीछे लठ्ठ लेकर क्योँ पड़े हो । दिमाग को ताख पर रख कर देखो कितना मजा आता है । ये ससुरा दिमाग बहुत टेँशन देता है । भरी जवानी मेँ बाल झड़ने लगते हैँ और मुन्नी बिना दिमाग वाले चिकने के साथ बदनाम होने के लिए परेशान होने लगती है । वहाँ नैन मटक्का चलता है और आप अपने टकले को खुजलाते हुए ऊँगली चलाते रहते हैँ । अरे अब वो जमाना नहीँ रहा कि ऊँगली की बोर्ड पर लपलपाये । अरे भैया ऊँगली करने मेँ क्या आनन्द आता है हमसे पूछो ।

amit_tiwari
31-12-2010, 01:06 AM
@arvind ji : भाई गुलाब का मोल उसे सूंघने वाले गंधी को पता होता है ना कि उसे खाने वाले गधे को |
आपके लिखने का मोल ये है कि जब आप लिखते हैं तो कुछ और अच्छा लिखने वालों को प्रतिक्रिया करने का बहाना मिल जाता है |
फिर अगर एक प्रोग्रामर के दिमाग से लेखन बाहर आ रहा है तो निरर्थक तो कतई नहीं हो सकता | बहने दें |

arvind
31-12-2010, 09:53 AM
@arvind ji : भाई गुलाब का मोल उसे सूंघने वाले गंधी को पता होता है ना कि उसे खाने वाले गधे को |
आपके लिखने का मोल ये है कि जब आप लिखते हैं तो कुछ और अच्छा लिखने वालों को प्रतिक्रिया करने का बहाना मिल जाता है |
फिर अगर एक प्रोग्रामर के दिमाग से लेखन बाहर आ रहा है तो निरर्थक तो कतई नहीं हो सकता | बहने दें |
सोचता हूँ - अब अकेले कम्प्युटर जी को काहे पकाया जाये? अब if, else और endif से बाहर सोचेंगे तो सब को कुछ ना कुछ तो समझ आएगा ही, तो कम से कम मेरे जैसे कुछ और भी निट्ठल्ले को कुछ ना कुछ काम भी मिल जाएगा, तो बुरा क्या है? जैसे एक निट्ठल्ला अभी ताजा-ताजा "नियामक" बन गया - बधाई हो......
:gm::gm::gm::gm:

ndhebar
31-12-2010, 12:27 PM
मै लिखता क्यों हूँ?


मै लिखता हूँ, क्योंकि इससे मुझे आत्मसंतुष्टि मिलती है, मुझे अपने मन के विचारो को कम्प्युटर के की-बोर्ड से शब्द मे पिरोना अच्छा लगता है। मेरे विचार, मेरी निजी संपत्ति है, इसे कोई मुझसे छिन नहीं सकता। हो सकता है, मेरे विचारो से कुछ लोग असहमत भी हो, मुझे इसकी कोई परवाह नहीं, क्योंकि मै भी बहुत से लोगो के विचारो से सहमत नहीं होता। हा, जिन लोगो के विचारो से मै सहमत नहीं होता, उनसे मै दूर ही रहता हूँ।
:):):):):)

परवाह करनी भी नहीं चाहिए बंधू
"मस्त रहो मस्ती में चाहे आग लग जाय सारी की सारी बस्ती में"
हुण की फर्क पैंदा है :gm::gm:

r@j@1974
31-12-2010, 01:06 PM
हर व्यक्ति की विशेषताओ को देखे और अपनी कमजोरियों को दूर करने की कोशिश करे

abhisays
07-02-2011, 08:49 AM
सारे निट्ठल्ले कहा गए. :bike::bike::bike:

Sikandar_Khan
07-02-2011, 08:57 AM
सारे निट्ठल्ले कहा गए. :bike::bike::bike:

लगता है सब छुट्टियाँ मनाने गए हैं

jitendragarg
07-02-2011, 05:54 PM
निठल्ले है, पोस्ट क्यूँ करेंगे!
निठल्ले पड़े रहते हैं, घर के सामने वाली चाय की दूकान के बाहर चबूतरे पर पैर लटका कर, एक हाथ में सांध्य समाचार का पन्ना पकडे, और दुसरे हाथ में आधी कट चाय!
:bakar::explosive:

arvind
07-02-2011, 05:56 PM
सारे निट्ठल्ले कहा गए. :bike::bike::bike:

लगता है सब छुट्टियाँ मनाने गए हैं

निठल्ले है, पोस्ट क्यूँ करेंगे!
निठल्ले पड़े रहते हैं, घर के सामने वाली चाय की दूकान के बाहर चबूतरे पर पैर लटका कर, एक हाथ में सांध्य समाचार का पन्ना पकडे, और दुसरे हाथ में आधी कट चाय!
:bakar::explosive:
चलिये कुछ और निट्ठले शामिल हो गए है.... आप सभी निट्ठलों का स्वागत है। :gm::gm:

Sikandar_Khan
07-02-2011, 06:44 PM
आज मैं कटाई छँटाई कर रहा था अपनी ईमेल के इनबॉक्स में, एक मेल देखकर एक पुराना गीत याद आ गया। डाकिया डाक लाया, डाक लाया, डाकिया डाक लाया, साथ ही याद आया पुराना जमाना, ईमेल से पहले का जमाना। तब अगर डाकिया गलती से शर्माजी की चिट्ठी पड़ोस में वर्माजी को दे जाये तो ज्यादा बड़ी समस्या नही होती क्योंकि शराफत के मारे वर्माजी बंद चिट्ठी पढ़ तो नही सकते, इसलिये जाहिर है शर्माजी को दे आयेंगे और इसी बहाने चाय के साथ कुछ गपशप हो जायेगी। हाँ अगर वो पड़ोसी शराफत के दुश्मन छुट्टन उस्ताद हुए तो समझ लो कोई चिट्ठी आयी नही।

अब इस ईमेल के जमाने में वर्माजी और छुट्टन उस्ताद दोनों में चिट्ठी को लेकर शराफत की मात्रा लगभग एक समान ही है क्योंकि अगर वो ईमेल आपके बॉक्स में आयी तो आपकी ही हुई, किसी और को संबोधित है तो शायद आपको लगे गलत आ गयी फिर भी आप पूरी पढ़ ही लेंगे। असली समस्या तब होती है जब ईमेल में कोई खास नाम का संबोधन नही होता।

अगर धैर्य रखकर आप यहाँ तक पढ़ने का साहस कर चुके तो मैं दावे से कह सकता हूँ कि आप को शायद कुछ समझ ना आ रहा हो कि पिया का नाम टाईटिल में देकर ये चल क्या रहा है? तो ज्यादा मगजमारी ना करते हुए पूरे किस्से को हिंदी में अनुवाद करके आपके सामने रख देता हूँ, आपको टाईटिल का मर्म सब समझ आ जायेगा।

एक आदमी किसी होटल में दाखिल हुआ, चेक-इन करने के बाद जब वो अपने कमरे में पहुँचा तो उसने पाया कि कमरे में एक अदद कंप्यूटर रखा हुआ है, उसने सोचा क्यों ना बीबी को ईमेल कर दूँ। एस एम एस के आदी हो चुके उस पतिनुमा प्राणी ने जल्दीबाजी में गलती से गलत ईमेल का पता टाईप कर दिया और गलती में ध्यान दिये बिना ही ईमेल भेज भी दी।

उसी समय, अमेरिका के एक शहर ह्यूस्टन में एक विधवा अपने पति के अंतिम संस्कार (यानि क्रियाकर्म यानि दफनाने के बाद) करने के बाद घर पहुँची। एस एम एस और ईमेल की महामारी का शिकार उस विधवा ने सोचा क्यों ना ईमेल चेक कर लूँ शायद किसी परिचित या दोस्त का कोई सांत्वना संदेश आया हो।

लेकिन पहली ईमेल में लिखा संदेश पढ़ते ही वो विधवा बेहोश होकर गिर पड़ी। आवाज सुनते ही विधवा का बेटा दौड़ता हुआ आया, आकर देखता है कि माँ जमीन में बेहोश पड़ी है और कंप्यूटर में एक ईमेल खुली है जिसका मजमून कुछ यूँ है -

टूः मेरी प्यारी बीबी
विषयः मैं पहुँच गया हूँ
तारीखः <उसी दिन की>

मैं जानता हूँ कि तुम मेरी ये ईमेल पाकर आश्चर्य कर रही होगी। इन्होंने यहाँ कंप्यूटर लगाये हुए हैं और हम अपने चाहने वालों को ईमेल भेज सकते हैं।

मैंने अभी अभी पहुँच कर बस चेक-इन ही किया है। लेकिन मैं देख रहा हूँ कि इन्होंने तुम्हारे कल (टूमोरो) आने की पूरी व्यवस्था अभी से कर रखी है।

कल के दिन तुम से मिलने की बेताबी से राह देखता

तुम्हारा
प्यारा पति

तो देखा आपने किसी और के पिया का संदेश गलती से अगर किसी और को आ जाये तो क्या हो सकता है।

amit_tiwari
08-02-2011, 09:27 AM
सिकन्दर महान वैसन ये वाली चिट्ठी किसके नाम थी ?

Sikandar_Khan
26-03-2011, 05:29 PM
सिकन्दर महान वैसन ये वाली चिट्ठी किसके नाम थी ?

बंधू किसी की भी हो लेकिन निशाना तो सही लग गया

Sikandar_Khan
26-03-2011, 05:31 PM
ठीक होली के दिन ब्रम्भ मुहूर्त में जब थाने के लाउडस्पीकर पर ढोलक की थाप पर ” मुन्नी टकसाल हुयी डार्लिंग तेरे लिए ” गाना शुरू हुआ तो मै समझ गया कि
भारतीय पुलिस होरिया गयी है | महीने भर से ठोके जा रहा था पर पुलिस थी कि कान में उगली डाल सो रही थी | खैर
कुछ भी हो हुकुम सिंह ने आखिर मेरा मन रख ही लिया |
मैंने श्रीमती जी को जगाने का दुस्साहस कर दिखया | यु तो अमूमन नीद खुलने पर नित्य शंकाओ के निवारण के उपरांत चाय का
विधान खुद ही निपटता हु ,सोचा आज होली है शायद वे पसीज जाय और चाय का प्याला बिना मशक्कत हाथ लग ही जाय | पर नहीं …..
जो कभी नहीं होता भला आज कैसे हो जाता ?
अभी कुछ करता कि दरवाजे पर दस्तक हुयी ” कौन होगा भला “?
तब तक जोर का प्रहार दरवाजे पर हुआ | मै घबरा कर जल्दी बाहर निकला |
“सो रहे थे जी , पुलिस जागे जनता सोये वाह ,,, अब यह सब नहीं चलेगा … मै आ गया हु ..अब सुधर जाओ | क्या खा के सोये थे हा ?
बोलते क्यों नहीं , पुलिस को सहयोग न करने का मतबल …. मतबल …. जानते हो दफा ,,,,, दफा इतनी ..बिना जमानत
पर सरकार बोलने का मौका तो मिले मेरा मतलब …..
फिर मतबल …हमको .. मतबल समझा रहे हो ,,, नाम बोलो …..
नाम तो सरकार रमेश .. हुआ ..
“किसी बाजपेयी को जानते हो ससुरे के चलते सुबह सुबह थाना छोड़ना पड़ा ,बोहनी तक नहीं हुयी ”
” जी ,,, जनता हू हजूर जनता हू हुजुर मै ही हू …..
तुम ….. आ आप …ही हो … तो प्रणाम सर गोड़ लगी हाकिम … हवलदार जी का निम्तरन है होरी हुरदन्ग आपै के
सनरकक्षन में होगा सरकार मैंने पहिचाना नहीं ,थाने पर इस भूल का जीकर न होय ‘
खैर मै थाने पंहुचा तो वहा का माहौल बिलकुल होरियाना ही था |सब लोग अपने अपने हिसाब काफी से व्यस्त थे | मुन्सी जी ने झकाझक कुरता
पहन रखा था |वे सिलबट्टे पर ठंढाई को रोजनामचे कि तर्ज पर रागरवा रहे थे |अनुभवों से तपे तपाये मुन्सी जी फरियादी को एक बार में जितनी दफाए लगाने कि धमकी दे डालते थे उतनी देर में तो आम आदमी उतनी बार साँस भी नहीं ले सकता |
हवलदार हुकुम सिंह हर आने वाले से गले मिल रहे थे साथ ही साथ वायरलेस पर लोकेशन व हंसी मजाक भी निपटा रहे थे | एक आरक्षी को माइक पर जनता को” होली मुबारक “देने का आदेश हुआ |
उसने दैनिक जीवन में बहुओ को जला कर थाने को गुलजार रखने वाली माँ ,बहनों को धन्यवाद देकर उनका उत्साह वर्धन किया | हवालात में आने जाने वाले भाइयो के उज्जवल भविष्य की कामना की ,पुलिश और अपराधियों के अओसी ताल मेल को सामाजिक सदभाव का प्रतीक बताया तथा इसे अधिक प्रगाढ़ करने की आवश्यकता पर बल दिया | कुल मिला कर उसके होली मुबारक से मजा आगया देखना यह रंगरूट एक दिन पुलिस विभाग का नाम जरुर रोशन करेगा |
मुझे वहा खड़ा देख कर एक ने डपट दिया ” क्या है ? चल उधर दरी में बैठ | वह तो मुझे धकिया कर बैठने वाला कार्य भी संपन कर डालता की उस से पहले ही किसी ने मुझे पहचान लिया | मुझे फूलो का हर पहनकर मुख्य अतिथि के आगमन की घोषणा के साथ कार्यक्रम शुरू हुआ |
अब हुकुम सिंह ने माइक सभाला ” भैया पुलिस तो त्योहारों को बहुत जिन्दादिली से मानना चाहती है पर ऊपर से आदेश मिले तब न | वैसे हम हर दिन होली मना भी नहीं सकते , रंग ,गुलाल ,शरबत में तो खर्च लगता है | आज काम तो चल गया | चौक का ठेले वाला रंग गुलाल दे गया , भाँग-
ठंडाई ठेके से आ गयी , शरबत पानी का भी जुगाड़ हो गया | कुल मिला कर सब ठीक हो गया | अब होली की मौके पर सतिया जी कुछ गीत गाएगी ,आप शरबत के साथ साथ गीतों का आनंद ले | मुन्सी जी ने भाँग मिला गिलास हवलदार को पकडाया , गुलाल मला जाने लगा | गिलास चढ़ने लगे| फिर पुलिस और भाँग के मिलन का जादू ……. छाने लगा | तिस पर सतिया की टेर……..|
” हमरी न मानो सिपहिया से पूछो , दरोगवा से पूछो ,, पंडित ने लई लीन्हा दुपट्टा मेरा , भरि ,फागुन मोहे घेरा ,,, जी .. घेरा ‘
वह कुछ और गाती इससे पहले ही मै सबकी नजर बचा कर बाहर निकल आया | ये भागा ….वो गया ,,,,

ndhebar
26-03-2011, 06:36 PM
अब फगुआ खतम होय गवा सरकार
अब त चैता होई

"चैत मासे राम जी जनम ले हो रामा
चैत शुभ दिनमा"

Kumar Anil
03-04-2011, 07:06 PM
आज मेरे मुहल्ले से हिन्दू वाहिनी के मोटरसाईकिल सवार तकरीबन 500 ब्रेनवॉश कर दिये गये युवा सैनिकोँ का जत्था कहीँ कूच कर रहा था जिसे पूर्वी उत्तरप्रदेश के स्वनामधन्य तथाकथित धर्मगुरु / सांसद धर्म की अफ़ीम चटाकर अपने हितोँ के संरक्षण के लिये भगवा चोला पहनकर इस्तेमाल कर रहे थे । आम जनता को शासित करने , उसे भयभीत करने के लिये । धर्म को साधन बनाकर सत्ताहरण हो रहा था । वाणी के ओज का दुरुपयोग हो रहा था । उसमेँ से एक लड़के से हुये कुछ पलोँ के संवादोँ से मेरी आँखे फटी रह गयीँ । आने वाले समय के डाईनामाईट दिख रहे थे जिसका रिमोट उन्हीँ महागुरु के हाथोँ मेँ था । इन सैनिकोँ की कट्टरता ही तो महागुरु की ताजपोशी करवाती है । विवेकशील गुरु के धर्मान्ध , विवेकहीन शिष्य । पॉवर के लिये आवश्यक कॉम्बीनेशन । यह युवाशक्ति पूरे राष्ट्र मेँ अपने गुरु को प्रतिष्ठापित करना चाहती है । धर्म की बैसाखी से राजनीति की नैया पार लगाने की जुगत । कुछ ऐसे ही धर्म के ठेकेदार पावन नगरी हरिद्धार मेँ दुकानेँ सजाकर बैठते है , शुद्ध व्यवसायिक दृष्टिकोण है इनका । माथे पर तिलक , मुँह से क़िताबी उपदेश बाँचने वाले इन महागुरुओँ की जीवनशैली राजाओँ तक को मात कर दे । माया से दूर रहने का उपदेश देने वाले , माया के फेर मेँ । कैसा अजब विरोधाभास है ? माया देकर माया से दूर रहने का उपदेश सुनो । ये गुरुघँटाल सयाने कितने हैँ कि अगरबत्ती , साबुन , अपने नाम का पट्टा भी बेचकर बिना किसी विज्ञापन के मुनाफा कमाकर बड़े बड़े उद्योगपतियोँ , प्रबन्धकोँ की थ्योरी भी फेल कर दे रहे हैँ । आरती से लेकर कथा तक सब भुगतान और बिक्रीयोग्य हैँ ।

Kumar Anil
03-04-2011, 07:24 PM
उपरोक्त टिप्पणी से आहत हुई भावनाओँ के लिये क्षमा चाहूँगा ।

ndhebar
05-04-2011, 10:24 AM
शुद्ध व्यवसायिक दृष्टिकोण है इनका । माथे पर तिलक , मुँह से क़िताबी उपदेश बाँचने वाले इन महागुरुओँ की जीवनशैली राजाओँ तक को मात कर दे । माया से दूर रहने का उपदेश देने वाले , माया के फेर मेँ । कैसा अजब विरोधाभास है ? माया देकर माया से दूर रहने का उपदेश सुनो । ये गुरुघँटाल सयाने कितने हैँ कि अगरबत्ती , साबुन , अपने नाम का पट्टा भी बेचकर बिना किसी विज्ञापन के मुनाफा कमाकर बड़े बड़े उद्योगपतियोँ , प्रबन्धकोँ की थ्योरी भी फेल कर दे रहे हैँ । आरती से लेकर कथा तक सब भुगतान और बिक्रीयोग्य हैँ ।

सब माया है
अर्थात माया ही संसार में एक मात्र सत्य है और सभी मिथ्या

Kumar Anil
05-04-2011, 10:55 AM
सब माया है
अर्थात माया ही संसार में एक मात्र सत्य है और सभी मिथ्या

वाह रे आधुनिक बुद्ध ! पूरा निचोड़ कर एक ही वाक्य मेँ सार तत्व प्रस्तुत कर दिया , जय हो । हा हा हा हा

MANISH KUMAR
05-04-2011, 03:00 PM
इधर भी निठल्ला, उधर भी निठल्ला!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
अभी कितने निठल्ले हैं फोरम में. :bang-head::bang-head:

Kumar Anil
11-04-2011, 07:56 AM
जंतर मंतर से लेकर गली कूचोँ तक , फेसबुक से लेकर कैँडिलमार्च तक उमड़े इस जनसमूह मेँ क्या वास्तव मेँ ईमानदार लोग ही अन्ना की जगायी अलख मेँ शरीक हुये ? क्या अन्ना जैसी ईमानदारी मनमोहन सिँह मेँ नहीँ है ? बिल्कुल है जनाब , सोलह आना है । लेकिन मनमोहन सिँह की निठ्ल्ली ईमानदारी का क्या किया जाये जिसमेँ सक्रियता नहीँ है । भ्रष्टाचार को अनदेखा करने वाली ईमानदारी का क्या अचार डालेँ ? शायद सत्ता का चरित्र ही कुछ ऐसा है जिसमेँ अनदेखा करने की विवशता निहित है । तभी तो जनता का एक ईमानदार आदमी और सत्ता का एक ईमानदार आदमी आमने सामने खड़े थे । डा. कलाम जैसा महान व्यक्तित्व , विचारक जो न जाने कितने भारतीयोँ के आदर्श हैँ , जब सत्ता को अंगीकार करते हैँ तो सामान्य राष्ट्रपतियोँ की ही तरह अपना कार्यकाल निपटा देते हैँ । अपनी विशिष्ट छाप नहीँ छोड़ पाते । इन महान विभूतियोँ के विचार न जाने कहाँ गुम हो जाते हैं । शायद विचारोँ के क्रियान्वन के लिये सत्ता माकूल जगह है ही नहीँ । यहाँ बहुत सी चीजोँ को अनदेखा करने की विवशता अपरिहार्य है । मुझे निशांत जी के नेता बनाम आदमी मेँ इसका रहस्य छिपा लगता है जो आचार्य श्रीराम शर्मा के हम सुधरेँगे , युग सुधरेगा के निकट ही मडँरा रहा है । अन्ना के साथ खड़ी लाखोँ की भीड़ जिसमेँ मैँ भी शामिल हूँ , कोई दूध के धुले नहीँ हैँ । चलिये एक बारगी मान भी लिया जाये कि यह विनाशकारी पेड़ मैँने नहीँ लगाया , लेकिन इससे कैसे इंकार करूँ कि मैँने उसको खाद पानी नहीँ दिया । तुलसीदास की समरथ को नहीँ दोष गुसाई को आधुनिक कसौटी पर समरथ को ही सब दोष गुसाई मानकर अपने आप को इस जंजाल से मुक्त कर प्रमाणपत्र दे डालते हैँ ।

ndhebar
14-04-2011, 09:28 PM
जंतर मंतर से लेकर गली कूचोँ तक , फेसबुक से लेकर कैँडिलमार्च तक उमड़े इस जनसमूह मेँ क्या वास्तव मेँ ईमानदार लोग ही अन्ना की जगायी अलख मेँ शरीक हुये ?

लाख टेक का सवाल डाल दिया है गुरु बल्कि करोड़ का कहो तो भी कम है
अब ये निठल्ला सारी रात यही चिंतन करेगा शायद कौनो नतीजा निकले
:thinking::thinking::thinking:

Kumar Anil
15-04-2011, 08:05 AM
लाख टेक का सवाल डाल दिया है गुरु बल्कि करोड़ का कहो तो भी कम है
अब ये निठल्ला सारी रात यही चिंतन करेगा शायद कौनो नतीजा निकले
:thinking::thinking::thinking:

हे रात्रिचर प्राणी ! रात्रि की गहन बेला के घनघोर , घटाटोप चिन्तन मेँ क्या खोया क्या पाया ? क्या हाथ तेरे कुछ आया ? सुन बोधकथा इक जो बन्द दिमाग़ के कपाट खोले । अन्ना के अनशन मेँ मरणासन्न उस युवक की माँ रोयी चिल्लायी , अन्ना से उसने बच्चे की सलामती की खूब गुहार लगायी । अन्ना के भीतर बैठा बुद्ध जगा और बोला , जा जिसने कभी न भ्रष्टाचार किया हो उससे एक कटोरी चावल ले आ । कल रात को मेरे द्वार से बुढ़िया निराश लौट गयी । मुई बुदबुदा रही थी कि मेरे लाल के जीवनदान की अन्ना ने कैसी शर्त लगा दी । हजारोँ , लाखोँ घरोँ से भी एक कटोरी चावल नसीब नहीँ हुआ ।

ndhebar
15-04-2011, 02:01 PM
मतलब नतीजा सिफर ही निकला

Kumar Anil
15-04-2011, 04:28 PM
मतलब नतीजा सिफर ही निकला

अरे हट पगले ! अभी निशांत ढेबर के घर पर वो बुढ़िया पहुँची ही कहाँ ? शायद एक कटोरी चावल मिल जाये ।

ndhebar
16-04-2011, 05:29 AM
अरे हट पगले ! अभी निशांत ढेबर के घर पर वो बुढ़िया पहुँची ही कहाँ ? शायद एक कटोरी चावल मिल जाये ।

निठ्ठले को चंद पंक्तियाँ याद आ रही है

किसी पे एतबार मत करना,
स्वप्न को तार-तार मत करना
ये तो दुनिया ही एक छलावा है,
बंद आँखों से प्यार मत करना।

Kumar Anil
17-04-2011, 10:27 AM
निठ्ठले को चंद पंक्तियाँ याद आ रही है

किसी पे एतबार मत करना,
स्वप्न को तार-तार मत करना
ये तो दुनिया ही एक छलावा है,
बंद आँखों से प्यार मत करना।

प्यार तो बंद आँखोँ से ही होता है , गुरु । खुली आँखोँ से तो बस व्यापार होता है ।

ndhebar
22-04-2011, 10:27 AM
प्यार तो बंद आँखोँ से ही होता है , गुरु । खुली आँखोँ से तो बस व्यापार होता है ।
प्यार हो या व्यापार
बंद आँख से कीजियेगा तो धोखे की ९९.९% गारंटी

arvind
25-04-2011, 03:18 PM
अकेलापन ये,
क्यों मन को यूँ
कचोटता है
उम्रभर कौन किस के
साथ होता है...
फिर भी न जाने क्यों ये
अकेलापन दिमाग में
रह रह के आ जाता है...

दिल से तो कभी कोई
अकेला होता ही नहीं...
यादे..वेदनाये..तन्हाई.विरह..
धड़कन के साथ होते है
प्रतिपल दिल के पास होते है

ये जो अकेलापन है...
वो इस निट्ठले दिमाग की सडन है
सब कुछ जानते -समजते हुए भी
सोचता ये बार बार बस ये ही...
ओह्ह...मुझमे कितना अकेलापन है....

Kumar Anil
26-04-2011, 09:50 AM
अकेले हैँ वो और झुँझला रहे हैँ /
मेरी याद से जंग फरमा रहे हैँ /
इलाही मेरे दोस्त होँ ख़ैरियत से /
ये क्यूँ घर मेँ पत्थर नहीँ आ रहे हैँ /
बहुत ख़ुश हैँ गुस्ताख़ियोँ पर हमारी /
बज़ाहिर जो बरहम नज़र आ रहे हैँ /
ये कैसी हवा ए तरक्की चली है /
दीये तो दीये , दिल बुझे जा रहे हैँ /
बहारोँ मेँ भी मय से परहेज़ तौबा /
" ख़ुमार " आप काफ़िर हुये जा रहे हैँ ।

ndhebar
27-04-2011, 10:25 PM
निट्ठल्ले लोग अगर ऐसा सोचते और लिखते है तो अब वो दिन दूर नहीं जब चारो और इन निट्ठल्लो का साम्राज्य होगा
संसार निट्ठल्लो का गुणगान करेगा, हर जगह बस इनकी ही चर्चा होगी
ऊऊऊऊऊउह ..................................
ये पानी किसने डाला
अबे उठ
भुनभुनाते हुए : १० बज चुके हैं और इनको सपने देखने से फुर्सत ही नहीं
यही हैं हमारे देश के कर्णधार, निट्ठल्ला .....................

Kumar Anil
06-05-2011, 07:53 AM
राजीव कटारा कहते हैँ कि आख़िर ज़िंदगी मेँ हँसी से बेहतर क्या है ? वह हँसी आख़िर ख़ुशी के बिना नहीँ आ सकती । लेकिन कुछ ऐसी हँसी ख़ुशी भी होती हैँ जो दूसरोँ के दुःख दर्द को देखकर आती है । यह जलन और ईर्ष्या की ख़ुशी है । यह हमारे अचानक " लिलिपुट " हो जाने की ख़ुशी है । कुढ़न या जलन हमेँ कभी बड़ा नहीँ बनातीँ । हम जब भी बड़े होते हैँ तो किसी के गिरने पर ख़ुश नहीँ होते । हम अपनी क़ामयाबी का जश्न मनाते हैँ । लेकिन दूसरे की नाक़ामयाबी पर ख़ुश नहीँ होते ।
लोग कहते हैँ कि कि जलन और ईर्ष्या हमारे स्वभाव मेँ होती है । लेकिन क्या आपने कभी किसी की तक़लीफ मेँ ख़ुश होने वाले को फख़्र करते देखा है । शायद नहीँ । उस ख़ुशी को हासिल करने वाले मेँ भी फख़्र का भाव क्योँ नहीँ आता ? इसलिये कि कोई छोटे होने का सपना नहीँ देखता । यानि जलन और कुढ़न हम ख़ुद लाद लेते हैँ । यही वज़ह है कि इन निगेटिव चीजोँ को हम अपने से दूर कर सकते हैँ । अब जिन चीजोँ को हम लाद सकते हैँ आख़िर उन्हेँ उतार भी तो सकते हैँ । एक ग़लतफ़हमी हमेँ असल ख़ुशी नहीँ दे सकती । वह हमेँ नीचे और नीचे की ओर ले जाती है । क्या हम नीचे जाना चाहते हैँ ? ? ? ? ?

Kumar Anil
09-05-2011, 09:22 AM
कट पेस्ट करा लो , कट पेस्ट । बाबू जी , कट पेस्ट करा लो । गूगल शहर मेँ नेपथ्य से कुछ आवाजेँ आ रहीँ थीँ । गूगल देवता को जब चुन्ने तेजी से काटने लगे तब उन्होँने सिपाहियोँ को उन आवाज़ोँ के मालिकोँ को बुला लाने का हुक्म तामील किया । पृथ्वी पर तो सिपाही डंडा बजाते हुये फरमान पूरा करते है परन्तु गूगल सिटी के सिपाही ससम्मान उन आवाजोँ के मालिक को ले आये । मरियल से कुछ घिसे पिटे , नैराश्य मेँ विलोड़ित कुछ जाने अनजाने को देखकर गूगलदेव ने एक रहस्यमयी मुस्कान अपने चेहरे पर ओढ़ ली और कहा क्योँ भाई तुम्हारा परिचय ? बड़े ही दार्शनिक अंदाज मेँ एक किकियाया , परिचय इतना इतिहास यही , उमड़ी कल थी मिट आज चली । गूगलदेव ने कहा , अच्छा ठीक है , मैँ तुम्हेँ नाम दूँगा लल्लू , जगधर , गजोधर , मनोहर , दुलारे , प्यारे । जब तुम्हारा कोई वज़ूद है ही नहीँ तब इन्हीँ नामोँ मेँ अपनी तलाश जारी रखो । गूगलदेव ने फिर मन्नू भंडारी की डेढ़ इंच मुस्कान अपने चेहरे पर सजाकर कहा , हाँ कुछ अपने बारे मेँ बताओ । पुनः सभी रेँकने लगे कट पेस्ट करा लो कट पेस्ट । गूगलदेव ने कहा , अबे तुम्हारे पास कुछ नहीँ है , तुम्हारी कोई आवाज़ नहीँ है ? लल्लू ने कहा , साहब हमारी यही आवाज़ है । हमारी रोजी रोटी इसी से चलती है । एक ससुरे के पास अपनी आवाज़ है पर आजकल वो भी सिड़िया गया है । तब तक गजोधर बीच मेँ टपक पड़े और बोले महाराज , लल्लू की अम्मा ने मरते वक्त इसको देशी नुस्खे की किताब पकड़ायी थी , बड़ी अनमोल है । जगधर बोला , साहब कार्टून के चक्कर मेँ मैट्रिक फेल हो गये पर ढेर सारा संग्रह है , समझ लो काँरू का खजाना है । प्यारे अपनी काँख मेँ कविता संग्रह दबाये बिलबिला रहे थे और दुलारे अपना एंटीना सेट करते हुये अनमोल साहित्य के दर्शन करा रहे थे । सबकी सुन गूगलदेव बोले , ठीक है किताब खोलकर टीपो पर स्पीड जरा तेज रखना क्योँकि यहाँ स्पीडी लोगोँ की ही कीमत है और हाँ टुकड़े टुकड़े मेँ ही टीपना । धाराप्रवाह से मुझे नफरत है और सुनो पैसे वैसे नहीँ मिलेँगे । समवेत स्वरोँ मेँ सभी चिल्लाये , अरे साहब कैसी बात करते हौ । ये काम कोई पैसे के लिये थोड़ी न करते हैँ अरे हमारी चुल्ल है , कीड़े काटते हैँ ।
बगल मेँ ऊँघ रहे चित्रगुप्त को गूगलदेव ने जब जोर से गरियाया तब जाकर ये सारा वृत्तांत कलमबंद हो सका ।

Kumar Anil
30-05-2011, 06:49 PM
कल सहसा युवी दि ग्रेट से कुछ सीखने को मिला कि लोग एक दूसरे से जुड़ना तो चाहते हैँ पर कमबख़्त शब्द आड़े आ जाते हैँ । शब्दोँ के द्वारा किया गया संवाद बुद्धि से होता है । शब्दोँ की जड़ेँ बुद्धि मेँ समायी होती हैँ । मगर ह्रदय की भाषा अलग होती है , उसकी अभिव्यक्ति अलग होती है । इसकी भाषा ईमानदार होती है क्योँकि ये किसी स्कूल मेँ नहीँ सिखायी जाती अपितु इसे अंतरंगता सिखाती है । संबंध जितना गहरा होता है , उतना कम बोलने की जरूरत होती है । बस हमारे अंग प्रत्यंग बोलते हैँ । हमारी आँखेँ बोलती हैँ जो कभी धोखा नहीँ देतीँ । हमारे ह्रदय से निकली तरंगेँ सीधे हमारे प्रियजन , आत्मीय के ह्रदय मेँ अपने मौन की अभिव्यक्ति को उकेर डालती है और यह संवाद शब्दोँ के संवाद से कई गुना शक्तिशाली , प्रभावशाली होता है क्योँकि ये खोखले शब्द हमारे संबंधोँ की गहराई खोने के लिये बड़े वाचाल , व्यग्र रहते हैँ ।

ndhebar
30-05-2011, 06:57 PM
मगर ह्रदय की भाषा अलग होती है , उसकी अभिव्यक्ति अलग होती है । इसकी भाषा ईमानदार होती है क्योँकि ये किसी स्कूल मेँ नहीँ सिखायी जाती अपितु इसे अंतरंगता सिखाती है । संबंध जितना गहरा होता है , उतना कम बोलने की जरूरत होती है ।

बहुत गहरी बात कही है बड़े भाई "संबंध जितना गहरा होता है , उतना कम बोलने की जरूरत होती है"
बच्चे को माँ से भोजन मांगने की आवश्यकता नहीं होती, माँ बच्चे का चेहरा देखकर ही समझ जाती है की बच्चे को भूख लगी है

YUVRAJ
31-05-2011, 06:50 AM
बड़े भाई ....:)

बहुत ही सही और गंभीर बात कही आपने...:bravo: पहले तो समझ ही नहीं पाया और जब दो-चार बार पढ़ा तो समझा और जब समझा तो क्या लिखूँ यही नहीं समझा पा रहा हूँ ....क़माल है आपकी कलम में ...:majesty::grouphug:कल सहसा युवी दि ग्रेट से कुछ सीखने को मिला कि लोग एक दूसरे से जुड़ना तो चाहते हैँ पर कमबख़्त शब्द आड़े आ जाते हैँ । शब्दोँ के द्वारा किया गया संवाद बुद्धि से होता है । शब्दोँ की जड़ेँ बुद्धि मेँ समायी होती हैँ । मगर ह्रदय की भाषा अलग होती है , उसकी अभिव्यक्ति अलग होती है । इसकी भाषा ईमानदार होती है क्योँकि ये किसी स्कूल मेँ नहीँ सिखायी जाती अपितु इसे अंतरंगता सिखाती है । संबंध जितना गहरा होता है , उतना कम बोलने की जरूरत होती है । बस हमारे अंग प्रत्यंग बोलते हैँ । हमारी आँखेँ बोलती हैँ जो कभी धोखा नहीँ देतीँ । हमारे ह्रदय से निकली तरंगेँ सीधे हमारे प्रियजन , आत्मीय के ह्रदय मेँ अपने मौन की अभिव्यक्ति को उकेर डालती है और यह संवाद शब्दोँ के संवाद से कई गुना शक्तिशाली , प्रभावशाली होता है क्योँकि ये खोखले शब्द हमारे संबंधोँ की गहराई खोने के लिये बड़े वाचाल , व्यग्र रहते हैँ ।

Kumar Anil
31-05-2011, 07:36 PM
बड़े भाई ....:)

बहुत ही सही और गंभीर बात कही आपने...:bravo: पहले तो समझ ही नहीं पाया और जब दो-चार बार पढ़ा तो समझा और जब समझा तो क्या लिखूँ यही नहीं समझा पा रहा हूँ ....क़माल है आपकी कलम में ...:majesty::grouphug:

कमाल तो आपका है जो विचारोँ को जन्म देता है । विचार आपके मोहताज हो गये , अब भला इससे बड़ा और क्या कमाल हो सकता है । विचारोँ की पृष्ठभूमि मेँ जाईये , वहाँ आपको मौन मिलेगा । कभी मौन को ख़ामोशी से सुनकर देखिये , कितना आनंद आता है । आप अपने स्व मेँ विलीन होने लगते हैँ । मौन के साथ तादात्म्य एक ऐसी दुनिया मेँ ले जाता है जहाँ खुशियाँ आपके साथ एकाकार होने के लिये मचलती हैँ , एक अजब सुखद अनुभूति भीतर ही भीतर अँगड़ाई लेने लगती है । पर ये शब्द बड़े बेवफ़ा होते हैँ । अपनोँ को भी पराया करने मेँ कोई कोर कसर नहीँ छोड़ते । इन शब्दोँ का कोलाहल तो सुन ही रहे हैँ न । इनका कोलाहल ह्रदय विदीर्ण करने के लिये प्रतिध्वनित होता रहता है और हम उस प्रतिध्वनि के चक्रव्यूह मेँ फँसे रह जाते हैँ , लक्ष्य से दूर बहुत दूर ।

YUVRAJ
01-06-2011, 10:36 AM
सच है कुमार भाई ...शब्द तो बेवफ़ा हैं ही और ये ही आपको मान सम्मान और असम्मान दोनों दिलाते हैं .... जब तक कोई बोलता नहीं तब तक उसकी काबिलियत पता नहीं चलती...
जब कभी भी पहाड़ों की शान्त वादियों में होता हूँ ....इसे महशूस किया है ...आप स्व में लीन होते हैं पर कभी-कभी स्व भी नुकशान पहुचाता है ...यहा स्व से मेरा तात्पर्य घमंड से भी है ... कभी-कभी कलयुग का कोलाहल हृदय पर बहुत ही भारी जो पड़ता है ...बहुतों का मानना है कि प्रतिध्वनि के चक्रव्यूह में फसना या निकलना हम पर स्वयं निर्भर करता है ....कमाल तो आपका है जो विचारोँ को जन्म देता है । विचार आपके मोहताज हो गये , अब भला इससे बड़ा और क्या कमाल हो सकता है । विचारोँ की पृष्ठभूमि मेँ जाईये , वहाँ आपको मौन मिलेगा । कभी मौन को ख़ामोशी से सुनकर देखिये , कितना आनंद आता है । आप अपने स्व मेँ विलीन होने लगते हैँ । मौन के साथ तादात्म्य एक ऐसी दुनिया मेँ ले जाता है जहाँ खुशियाँ आपके साथ एकाकार होने के लिये मचलती हैँ , एक अजब सुखद अनुभूति भीतर ही भीतर अँगड़ाई लेने लगती है । पर ये शब्द बड़े बेवफ़ा होते हैँ । अपनोँ को भी पराया करने मेँ कोई कोर कसर नहीँ छोड़ते । इन शब्दोँ का कोलाहल तो सुन ही रहे हैँ न । इनका कोलाहल ह्रदय विदीर्ण करने के लिये प्रतिध्वनित होता रहता है और हम उस प्रतिध्वनि के चक्रव्यूह मेँ फँसे रह जाते हैँ , लक्ष्य से दूर बहुत दूर ।

Ranveer
02-06-2011, 12:26 AM
कल सहसा युवी दि ग्रेट से कुछ सीखने को मिला कि लोग एक दूसरे से जुड़ना तो चाहते हैँ पर कमबख़्त शब्द आड़े आ जाते हैँ । शब्दोँ के द्वारा किया गया संवाद बुद्धि से होता है । शब्दोँ की जड़ेँ बुद्धि मेँ समायी होती हैँ । मगर ह्रदय की भाषा अलग होती है , उसकी अभिव्यक्ति अलग होती है । इसकी भाषा ईमानदार होती है क्योँकि ये किसी स्कूल मेँ नहीँ सिखायी जाती अपितु इसे अंतरंगता सिखाती है । संबंध जितना गहरा होता है , उतना कम बोलने की जरूरत होती है । बस हमारे अंग प्रत्यंग बोलते हैँ । हमारी आँखेँ बोलती हैँ जो कभी धोखा नहीँ देतीँ । हमारे ह्रदय से निकली तरंगेँ सीधे हमारे प्रियजन , आत्मीय के ह्रदय मेँ अपने मौन की अभिव्यक्ति को उकेर डालती है और यह संवाद शब्दोँ के संवाद से कई गुना शक्तिशाली , प्रभावशाली होता है क्योँकि ये खोखले शब्द हमारे संबंधोँ की गहराई खोने के लिये बड़े वाचाल , व्यग्र रहते हैँ ।

अनिल जी
क्या कहूँ ...आपकी शैली का मै पहले से कायल हूँ |

बस एक ही शब्द है वो भी अंगेजी में - perfect

prashant
03-06-2011, 06:10 AM
अनिल जी
क्या कहूँ ...आपकी शैली का मै पहले से कायल हूँ |

बस एक ही शब्द है वो भी अंगेजी में - perfect

और दूसरा शब्द है
ultimate

abhisays
05-06-2011, 08:46 AM
और दूसरा शब्द है
ultimate

तीसरा शब्द है..

awesome :cheers:

Kumar Anil
08-06-2011, 03:44 PM
तीसरा शब्द है..

Awesome :cheers:

आप सभी का शुक्रिया । बात भाषा की चल निकली है तो सोचने पर विवश करती है कि कोई भी भाषा किसी की जागीर नहीँ हो सकती क्योँकि भाषा तो एक सेतु है जो दो अभिव्यक्तियोँ को परस्पर जोड़ता है । भावनाओँ को मूर्त रूप प्रदान करने के लिये उसे एक नाद की , एक लिपि की आवश्यकता पड़ती है और भाषा माध्यम के रूप मेँ सम्मुख आ जाती है । दो लोग अपने वैचारिक समागम , अपने उद्गारोँ के लिये यदि किसी भी भाषा को अपना माध्यम बना रहे हैँ तो इसमेँ भला किसी को क्या आपत्ति ? हम क्योँ दूसरोँ के लिये दुराग्रह पालेँ । जब हमारी संस्कृति वसुधैव कुटुम्बकम की भावना से परिपूर्ण है , जब हम परदेशियोँ से रिश्ता बनाने मेँ गुरेज नहीँ करते तो भला उनकी भाषा के लिये कैसी अस्वीकार्यता ? हम गले मिल सकते हैँ पर भाषा को सम्मान नहीँ , यह कैसा विरोधाभास ?
हाँ , पर हम चूँकि अपनी संस्कृति के संवाहक है । इस माटी की गोद मेँ हमने अपना शैशव बिताया है , अपनी माँ से लोरियाँ सुनकर हम मातृभाषा के ऋणी हो गये हैँ । तो हमारा भी दायित्व बनता है कि हम इससे उऋण होँ , अपनी संस्कृति को निरन्तर पुष्पित पल्लवित करते हुये अपनी मातृभाषा की पताका फहराते रहेँ । प्रयत्नशील रहेँ उसके मान सम्मान के लिये । न कि झूठे दंभ , वैशिष्टय मेँ किसी अन्य संस्कृति के छद्म पोषक बन अपनी भाषा को अनजाने ही हाशिये पर डालते जायेँ और कालान्तर मेँ अपनी ही भाषा के लिये हीन ग्रन्थि का शिकार हो जायेँ ।

Sakshi.R
08-06-2011, 03:57 PM
आप सभी का शुक्रिया । बात भाषा की चल निकली है तो सोचने पर विवश करती है कि कोई भी भाषा किसी की जागीर नहीँ हो सकती क्योँकि भाषा तो एक सेतु है जो दो अभिव्यक्तियोँ को परस्पर जोड़ता है । भावनाओँ को मूर्त रूप प्रदान करने के लिये उसे एक नाद की , एक लिपि की आवश्यकता पड़ती है और भाषा माध्यम के रूप मेँ सम्मुख आ जाती है । दो लोग अपने वैचारिक समागम , अपने उद्गारोँ के लिये यदि किसी भी भाषा को अपना माध्यम बना रहे हैँ तो इसमेँ भला किसी को क्या आपत्ति ? हम क्योँ दूसरोँ के लिये दुराग्रह पालेँ । जब हमारी संस्कृति वसुधैव कुटुम्बकम की भावना से परिपूर्ण है , जब हम परदेशियोँ से रिश्ता बनाने मेँ गुरेज नहीँ करते तो भला उनकी भाषा के लिये कैसी अस्वीकार्यता ? हम गले मिल सकते हैँ पर भाषा को सम्मान नहीँ , यह कैसा विरोधाभास ?
हाँ , पर हम चूँकि अपनी संस्कृति के संवाहक है । इस माटी की गोद मेँ हमने अपना शैशव बिताया है , अपनी माँ से लोरियाँ सुनकर हम मातृभाषा के ऋणी हो गये हैँ । तो हमारा भी दायित्व बनता है कि हम इससे उऋण होँ , अपनी संस्कृति को निरन्तर पुष्पित पल्लवित करते हुये अपनी मातृभाषा की पताका फहराते रहेँ । प्रयत्नशील रहेँ उसके मान सम्मान के लिये । न कि झूठे दंभ , वैशिष्टय मेँ किसी अन्य संस्कृति के छद्म पोषक बन अपनी भाषा को अनजाने ही हाशिये पर डालते जायेँ और कालान्तर मेँ अपनी ही भाषा के लिये हीन ग्रन्थि का शिकार हो जायेँ ।

:bravo::bravo::bravo:

Kumar Anil
12-06-2011, 08:26 PM
कमाल तो आपका है जो विचारोँ को जन्म देता है । विचार आपके मोहताज हो गये , अब भला इससे बड़ा और क्या कमाल हो सकता है । विचारोँ की पृष्ठभूमि मेँ जाईये , वहाँ आपको मौन मिलेगा । कभी मौन को ख़ामोशी से सुनकर देखिये , कितना आनंद आता है । आप अपने स्व मेँ विलीन होने लगते हैँ । मौन के साथ तादात्म्य एक ऐसी दुनिया मेँ ले जाता है जहाँ खुशियाँ आपके साथ एकाकार होने के लिये मचलती हैँ , एक अजब सुखद अनुभूति भीतर ही भीतर अँगड़ाई लेने लगती है । पर ये शब्द बड़े बेवफ़ा होते हैँ । अपनोँ को भी पराया करने मेँ कोई कोर कसर नहीँ छोड़ते । इन शब्दोँ का कोलाहल तो सुन ही रहे हैँ न । इनका कोलाहल ह्रदय विदीर्ण करने के लिये प्रतिध्वनित होता रहता है और हम उस प्रतिध्वनि के चक्रव्यूह मेँ फँसे रह जाते हैँ , लक्ष्य से दूर बहुत दूर ।

मेरे लिये सुख का विषय है कि इस प्रविष्टि के माध्यम से जो संदेश देना चाहा था , वो अपने गन्तव्य पर पहुँच गया है । चिँतन का विषय है कि शब्द तोड़ते भी हैँ और जोड़ते भी हैँ पर कमबख़्त ज़ुबां ख़ामोश रह जाती है और शब्द बेअसर रह जाते हैँ । इस झिझक पर क्या कहूँ सिवाए इसके -
पाँव झिझके ,बढ़े फिर सहम कर रुके
पाँव मेँ बेरहम बेड़ियां पड़ गयीँ ।

jai_bhardwaj
13-06-2011, 11:48 PM
-
पाँव झिझके ,बढ़े फिर सहम कर रुके
पाँव मेँ बेरहम बेड़ियां पड़ गयीँ ।
हाथ लपके, बढे कि गले से लगाएं
बहुत दिन से बिछड़े को दिल से लगाएं
हो सच्चे इरादे और बेहतर प्रयास
तो हथकड़ियां टूटे और बेडी कट जाएँ

Kumar Anil
15-06-2011, 10:22 AM
हाथ लपके, बढे कि गले से लगाएं
बहुत दिन से बिछड़े को दिल से लगाएं
हो सच्चे इरादे और बेहतर प्रयास
तो हथकड़ियां टूटे और बेडी कट जाएँ

गुस्ताख़ी माफ़ हो , आपकी तरह आशुकवि तो नहीँ हूँ पर एक क़ोशिश अवश्य की है । आशा है अन्यथा न लेँगे ........
हाथ लपके , बढ़े कि गले से लगेँ ।
दिन बीते बहुत , बिछुड़ोँ से मिलेँ ।
गर इरादेँ हो अच्छे औ क़ोशिश करेँ ।
हथकड़ी भी टूटे औ बेड़ियाँ भी कटेँ ।।

arvind
11-07-2011, 05:35 PM
बड़े दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि अब मै निट्ठल्ला नहीं रहा। अब मै काम का आदमी बन गया हूँ। थोड़ी बहुत जो निट्ठल्लाई बची हुई है, उसमे कभी कुछ "जीवन के अनमोल मुसीबत" के पाले पड़ जाता है, तो कभी "जीवन को चलाने" कि कोशिश भी कर लेता हूँ। वैसे चौपाल तो एवर ग्रीन है ही। सो फिकर काहे का? इनसे भी निट्ठलाई खत्म नहीं होती, तो भैया रोजी रोटी का जुगाड़। अब का बताए - एक जीव, हजार काम। सांस लेने की फुर्सत नहीं। अब बीवी और बच्चो को चिकचिक कौन सुने। सो निट्ठला गिरि से कुछ आमद भी हो जाती है (ये मत पूछिएगा - कैसे? क्योंकि ये ट्रेड सीक्रेट हम किसी को नहीं बताने वाले)। भगवान इतनी छोटी जिंदगी क्यों दी?

उम्रे दराज मांग के लाये थे चार दिन....
दो सोने मे कट गए, दो निट्ठलाई में।

ndhebar
12-07-2011, 02:02 PM
फिर तो मेरी और से बधाई टिकाओ
आखिर आप कामकाजी जो हो गए हो

arvind
22-07-2011, 12:18 PM
भगवान की लाश

कहानी है सृष्टि के प्रारम्भ की। पृथ्वी पर मनुष्य था, मनुष्य में हृदय था, हृदय में पूजा की भावना थी, पर देवता न थे। वह सूर्य को अर्घ्यदान देता था, अग्नि को हविष् समर्पित करता था, पर इतने से ही सन्तुष्ट न था। वह कुछ और चाहता था।

उसने ऊपर की ओर हाथ उठाकर प्रार्थना की, ‘हे स्वर्ग, तूने हमारे लिए पृथ्वी पर सब सुविधाएँ दीं, पर तूने हमारे लिए कोई देवता नहीं दिया। तू देवताओं से भरा हुआ है, हमारे लिए एक देवता भेज दे जिसे हम अपनी भेंट चढ़ा सकें, जो हमारी भेंट पाकर मुस्करा सके, जो हमारे हृदय की भावनाओं को समझ सके। हमें एक साक्षात् देवता भेज दे।’

पृथ्वी के बाल-काल के मनुष्य की उस प्रार्थना में इतनी सरलता थी, इतनी सत्यता कि स्वर्ग पसीज उठा। आकाशवाणी हुई, ‘जा, मंदिर बना, शरद् ऋतु की पूर्णिमा को जिस समय चंद्रबिंब क्षितिज के ऊपर उठेगा उसी समय मंदिर में देवता प्रकट होंगे। जा, मंदिर बना।’ मनुष्य का हृदय आनन्द से गद्गद हो उठा। उसने स्वर्ग को बारंबार प्रणाम किया।

पृथ्वी पर देवता आएँगे ! इस प्रत्याशा ने मनुष्य के जीवन में अपरिमित स्फूर्ति भर दी। अल्पकाल में ही मंदिर का निर्माण हो गया। चंदन का द्वार लग गया। पुजारी की नियुक्ति हो गई। शरत् पूर्णिमा भी आ गई। भक्तगण सवेरे से ही जलपात्र और फूल अक्षत के थाल ले-लेकर मंदिर के चारों ओर एकत्रित होने लगे। संध्या तक अपार जन-समूह इकट्ठा हो गया। भक्तों की एक आंख पूर्व क्षितिज पर थी और दूसरी मंदिर के द्वार पर। पुजारी को आदेश था कि देवता प्रकट होते ही वह शंख-ध्वनि करे और मंदिर-द्वार खोल दे।

पुजारी देवता की प्रतीक्षा में बैठा था-अपलक नेत्र, उत्सुक मन। सहसा देवता प्रकट हो गए। वे कितने सुन्दर थे, कितने सरल थे, कितने सुकुमार थे, कितने कोमल ! देवता देवता ही थे। बाहर भक्तों ने चंद्रबिंब देख लिया था। अगणित कंठों ने एक-साथ नारे लगाए। देवता की जय, देवता की जय ! इस महारव से दसों दिशाएं गूंज उठीं, पर मंदिर से शंखध्वनि न सुन पड़ी !
पुजारी ने झरोखे से एक बार अपार जन-समूह को देखा और एक बार सुन्दर, सरल सुकुमार, कोमल देवता को। पुजारी काँप उठा। समस्त जन-समूह क्रुद्ध कंठस्वर से एक साथ चिल्लाने लगा, ‘मन्दिर का द्वार खोलो, खोलो !’ पुजारी का हाथ कितनी बार सांकल तक जा-जाकर लौट आया।

हजारों हाथ एक साथ मन्दिर के कपाट को पीटने लगे धक्के देन लगे। देखते ही देखते चन्दन का द्वार टूटकर गिर पड़ा; भक्तगण मंदिर में घुस पड़े। पुजारी अपनी आँखें मूंदकर एक कोने में खड़ा हो गया।

देवता की पूजा होने लगी। बात की बात में देवता फूलों से लद गए, फूलों में छिप गए, फूलों से दब गए। रात भर भक्तगण इस पुष्प राशि को बढ़ाते रहे।

और सबेरे जब पुजारी ने फूलों को हटाया तो उसके नीचे थी देवता की लाश।

arvind
22-07-2011, 12:21 PM
हिमालय की चिंता।

अब भी पृथ्वी पर मनुष्य था, मनुष्य में हृदय था, हृदय में पूजा की भावना थी, पर देवता न थे। वह सूर्य को अर्घ्यदान देता था, अग्नि को हविष् समर्पित करता था, पर अब उसका असंतोष पहले से कहीं अधिक था। एक बार देवता की प्राप्ति ने उसकी प्यास जगा दी थी, उसकी चाह बढ़ा दी थी। वह कुछ और चाहता था।

मनुष्य ने अपराध किया था और इस कारण वह लज्जित था। देवता की प्राप्ति स्वर्ग से ही हो सकती थी, पर वह स्वर्ग के सामने जाए किस मुँह से। उसने सोचा, स्वर्ग का हृदय महान् है, मनुष्य के एक अपराध को भी क्या वह क्षमा न करेगा ?

उसने सिर नीचा करके कहा, ‘हे स्वर्ग, हमारा अपराध क्षमा कर अब हमसे ऐसी भूल न होगी, हमारी फिर वही प्रार्थना है पहले वाली।’मनुष्य उत्तर की प्रत्याशा में खड़ा रहा। उसे कुछ भी उत्तर न मिला।

बहुत दिन बीत गए। मनुष्य ने सोचा समय सब कुछ भुला देता है, स्वर्ग से फिर प्रार्थना करनी चाहिए।

उसने हाथ जोड़कर विनय की, ‘हे स्वर्ग, तू अगणित देवताओं का आवास है, हमें केवल एक देवता का प्रसाद और दे, हम उन्हें बहुत सँभाल-कर रक्खेंगे।’

मनुष्य का ही स्वर दिशाओं से प्रतिध्वनित हुआ। स्वर्ग मौन रहा।

बहुत दिन फिर बीत गए। मनुष्य हार नहीं मानेगा। उसका यत्न नहीं रुकेगा। उसकी आवाज स्वर्ग को पहुँचती होगी।

उसने दृढ़ता के साथ खड़े होकर कहा, हे स्वर्ग, जब हमारे हृदय में पूजा की भावना है तो देवता पर हमारा अधिकार है। तू हमारे अधिकार हमें क्यों नहीं देता ?’

आकाश से गड़गड़ाहट का शब्द हुआ और कई शिलाखंड पृथ्वी पर आ गिरे।

मनष्य ने बड़े आश्चर्य से उन्हें देखा और मत्था ठोंककर बोला, ‘‘वाह रे स्वर्ग, हमने तुझसे माँगा था देवता और तूने हमें भेजा है पत्थर ! पत्थर !!’

स्वर्ग बोला, ‘हे महान् मनुष्य, जब से मैंने तेरी प्रार्थना सुनी तब से मैं एक गाँव से देवताओं के द्वार-द्वार घूमता रहा हूँ। मनुष्य की पूजा स्वीकार करने का प्रस्ताव सुनकर देवता थर-थर काँपते हैं। तेरी पूजा देवताओं को अस्वीकृत नहीं, असह्य है। तेरा एक पुष्प जब तेरे आत्म-समर्पण की भावना को लेकर देवता पर चढ़ता है तब उसका भार समस्त ब्रह्माण्ड के भार को हल्का कर देता है। तेरा एक बूँद अर्घ्यजल जब तेरे विगलित हृदय के अश्रुओं का प्रतीक बनकर देवताओं को अर्पित होता है तब सागर अपनी लघुता पर हाहाकार कर उठता है। छोटे देवों ने मुझसे क्या कहा, उसे क्या बताऊँ ! देवताओं में सबसे अधिक तेजःपुंज सूर्य ने कहा था-मनुष्य पृथ्वी से मुझे जल चढ़ाता है, मुझे भय है किसी न किसी दिन मैं अवश्य ठण्डा पड़ जाऊँगा और मनुष्य किसी अन्य सूर्य की खोज करेगा !-हे विशाल मानव, तेरी पूजा को सह सकने की शक्ति केवल इन पाषाणों में है !’

उसी दिन से मनु्ष्य ने पत्थरों को पूजना आरम्भ किया था और यह जानकर हिमालय सिहर उठा !

abhisays
08-10-2011, 11:49 AM
यह आजकल निठल्ले कहा चले गए.. :help::help::help:

singhtheking
08-10-2011, 04:13 PM
अगर किसी लडके ने किसी लड़की से "हाय/हैलो" कहा है तो वो इसे केवल "हाय/हैलो" ही समझती है | इसके उल्टे अगर किसी लड़की ने किसी लडके को "हैलो" कहा तो लड़का इसको केवल "हैलो" नहीं समझेगा |
२) अगर लड़का "हैलो" को केवल "हैलो" समझना भी चाहेगा तो उसके दोस्त ऐसा नहीं होने देंगे, आख़िर दोस्त होते ही किस दिन के लिए हैं :-)
३) लड़के जिनकी गर्ल फ्रेंड होती है और जिनकी नहीं होती है, में केवल एक फर्क होता है, पहले वाले लोग "लड़कियों से बात करते हैं" और दूसरे वाले "लड़कियों के बारे में बात करते हैं" |
४) इंजीनियरिंग कालेज छोड़ दिए जाएँ तो संसार में सुन्दर लड़कियों की कोई कमी नहीं है |
५) जो इंजीनियरिंग कालेज जितना अच्छा होगा वहाँ लड़कियों कि गुणवत्ता कालेज की रैंक के व्युत्क्रमानुपाती होगी |
६) आपके मित्र कभी नहीं चाहते कि आपकी कोई गर्ल फ्रेंड बने, वरना वो कैंटीन में किसके साथ बैठ कर मौज करेंगे |
७) कालेज में लड़कियों के पीछे पंजीकरण बिल्कुल मुफ्त होता है, बन्दा साल में दो बार लड़की से बात नहीं करेगा लेकिन कैंटीन में हमेशा "मेरी वाली"/"तेरी

bhoomi ji
13-10-2011, 09:29 PM
अगर किसी लडके ने किसी लड़की से "हाय/हैलो" कहा है तो वो इसे केवल "हाय/हैलो" ही समझती है | इसके उल्टे अगर किसी लड़की ने किसी लडके को "हैलो" कहा तो लड़का इसको केवल "हैलो" नहीं समझेगा |
२) अगर लड़का "हैलो" को केवल "हैलो" समझना भी चाहेगा तो उसके दोस्त ऐसा नहीं होने देंगे, आख़िर दोस्त होते ही किस दिन के लिए हैं :-)
३) लड़के जिनकी गर्ल फ्रेंड होती है और जिनकी नहीं होती है, में केवल एक फर्क होता है, पहले वाले लोग "लड़कियों से बात करते हैं" और दूसरे वाले "लड़कियों के बारे में बात करते हैं" |
४) इंजीनियरिंग कालेज छोड़ दिए जाएँ तो संसार में सुन्दर लड़कियों की कोई कमी नहीं है |
५) जो इंजीनियरिंग कालेज जितना अच्छा होगा वहाँ लड़कियों कि गुणवत्ता कालेज की रैंक के व्युत्क्रमानुपाती होगी |
६) आपके मित्र कभी नहीं चाहते कि आपकी कोई गर्ल फ्रेंड बने, वरना वो कैंटीन में किसके साथ बैठ कर मौज करेंगे |
७) कालेज में लड़कियों के पीछे पंजीकरण बिल्कुल मुफ्त होता है, बन्दा साल में दो बार लड़की से बात नहीं करेगा लेकिन कैंटीन में हमेशा "मेरी वाली"/"तेरी




काफी रिसर्च की हुई लगती है आपकी..............
बहुत ही अच्छे और मजाकिया लेकिन सत्य तथ्य बताए हैं आपने..........:bravo::bravo::bravo:

singhtheking
14-10-2011, 03:04 PM
काफी रिसर्च की हुई लगती है आपकी..............
बहुत ही अच्छे और मजाकिया लेकिन सत्य तथ्य बताए हैं आपने..........:bravo::bravo::bravo:


धन्यवाद भूमि जी

Dark Saint Alaick
22-10-2011, 04:31 PM
बन्धु अरविन्द ! यह शीर्षक आपके मस्तिष्क में कहां से आया ? अरसे पहले मैं एक सांध्य समाचार पत्र में इस शीर्षक से व्यंग्य स्तम्भ लिखा करता था, और अब उसे इस फोरम पर प्रस्तुत करने की सोच रहा था ! कर दिया न कबाड़ा !

:giggle: :giggle: :giggle:

खैर, सूत्र बेहतरीन है ! बधाई स्वीकारें !

arvind
22-10-2011, 05:17 PM
बन्धु अरविन्द ! यह शीर्षक आपके मस्तिष्क में कहां से आया ? अरसे पहले मैं एक सांध्य समाचार पत्र में इस शीर्षक से व्यंग्य स्तम्भ लिखा करता था, और अब उसे इस फोरम पर प्रस्तुत करने की सोच रहा था ! कर दिया न कबाड़ा !

:giggle: :giggle: :giggle:

खैर, सूत्र बेहतरीन है ! बधाई स्वीकारें !
हे तमस ऋषि - इसके पीछे की कहानी बड़ी ही अप्रत्याशित है।

इस फोरम पर जुडने के पूर्व, मै एक अन्य फोरम पर भी विराजमान था (आप भी विराजमान थे) लिखने का थोड़ा बहुत शौक और हिन्दी के लगाव के वजह से दिमाग में कुछ चिंतन चलता ही रहता था। संयोग से कई बार खुद अपने ही चिंतन पर हंसी आ जाती थी। चुकी ये चिंतन तभी हो पाता था, जब मै निट्ठल्ला रहता था।

तभी पूर्व वाले फोरम पर इसी शीर्षक से एक सूत्र को आरंभ किया, और उन्ही चिंतन को परोसना शुरू किया, और पाया कि कुछ लोगो को मेरा ये चिंतन भी दिल को भा गया। फिर एक दिन वो फोरम क्रस हो गया। फिर हमारा पदार्पण वर्तमान फोरम पर हुआ। यहा भी हमने इस नुस्खे को आजमाया।

बस इतनी सी कहानी है।

Dark Saint Alaick
22-10-2011, 06:16 PM
आपके द्वारा प्रदत्त नाम अति श्रेष्ठ लगा ! इस नामकरण के लिए आभार ! आपके चिंतन की परिस्थितियां तो वाकई चिंतनीय हैं, किन्तु मैं आपके लिए चिंताग्रस्त हूं ! :giggle:

ndhebar
24-10-2011, 01:04 PM
निट्ठल्ला प्रतियोगिता

दीपावली के अवसर पर जमा हुई निट्ठल्लों की भीड़
सभी निट्ठल्ले चिंतन पर जुट गए की इस वार दीपावली को कैसे यादगार बनाया जाये
एक से एक धांसू आइडिये आने लगे, अब चूँकि सारे ही पहुंचे हुए निट्ठल्ले थे तो आइडिये की भला कहाँ कमी थी
किसी ने सोते हुए जुलुम चाचा की चारपाई गायब करने का आइडिया दिया तो किसी ने भीखू हलवाई की भट्ठी में पठाखे डालने का
पर ये सारे आइडिये तो आजमाए हुए और बासी हैं,जरूरत है कुछ नया करने की इसलिए ये प्रतियोगिता आयोजित की जा रही है
जो भी निट्ठल्ला सबसे अनोखा और सबसे अलग आइडिया देगा उसे "निट्ठल्ला श्रेष्ठ" की उपाधि से सम्मानित किया जायेगा
नोट :- इस प्रतियोगिता में सभी निट्ठल्ले सादर आमंत्रित हैं

arvind
24-10-2011, 01:10 PM
निट्ठल्ला प्रतियोगिता

दीपावली के अवसर पर जमा हुई निट्ठल्लों की भीड़
सभी निट्ठल्ले चिंतन पर जुट गए की इस वार दीपावली को कैसे यादगार बनाया जाये
एक से एक धांसू आइडिये आने लगे, अब चूँकि सारे ही पहुंचे हुए निट्ठल्ले थे तो आइडिये की भला कहाँ कमी थी
किसी ने सोते हुए जुलुम चाचा की चारपाई गायब करने का आइडिया दिया तो किसी ने भीखू हलवाई की भट्ठी में पठाखे डालने का
पर ये सारे आइडिये तो आजमाए हुए और बासी हैं,जरूरत है कुछ नया करने की इसलिए ये प्रतियोगिता आयोजित की जा रही है
जो भी निट्ठल्ला सबसे अनोखा और सबसे अलग आइडिया देगा उसे "निट्ठल्ला श्रेष्ठ" की उपाधि से सम्मानित किया जायेगा
नोट :- इस प्रतियोगिता में सभी निट्ठल्ले सादर आमंत्रित हैं
उपाधि का पूर्ण विवरण इस प्रकार है - श्री श्री 108 दिन टेलु काम टेलु तन दुर्गंध दूरस्थ नियंत्रण चिपकू महान ठेलुया जी महाराज।

arvind
16-11-2011, 10:39 AM
सचिन के शतक और ऐश्वर्या के बच्चे का जितना इंतेजार हो रहा है उतना तो भारत की आजादी का भी नहीं हुआ होगा। ऐसा लग रहा है जैसे ऐश्वर्या का बच्चा एक नए युग की शुरुआत करेगा और सचिन का शतक भारत से कुपोषण गरीबी सब दूर कर देगा........................ओर तो ओर इसमे मीडिया भी ................अपने t .r .p के ...................

ndhebar
16-11-2011, 11:48 AM
ऐश्वर्या का बच्चा एक नए युग की शुरुआत करेगा और सचिन का शतक भारत से कुपोषण गरीबी सब दूर कर देगा

:fantastic::fantastic:

ndhebar
16-11-2011, 09:00 PM
बम कृति है, भूकंप प्रकृति है और हड़कंप निवृत्ति है

बम में अगर दम है तो वह फूटेगा ही,
लुटेरे में दम होगा तो वह लूटेगा ही,
नसीब कमज़ोर होगा,फूटेगा ही ।


बम कृति है, भूकंप प्रकृति है और हडकंप निवृत्ति है। बम जान लेता है पर उसकी मौजूदगी जनता जान नहीं पाती है। भूकंप नहीं जाना जाता, पर वो जान नहीं ले जाता। मकान भी नहीं गिराता। बशर्ते कि वो घनघोर रूप से क्रोधित न हो। क्रोधित होने पर वो ऐसा तांडव मचाता है, जितना सृष्टि पर मौजूद सभी बम एक साथ मिलकर भी नहीं मचा सकते हैं। कह सकते हैं कि बम नीयत है और भूकंप नियति है। बम पंप है, जिसे आतंकवादी हवा देते हैं और जनता के प्राण हवा हो जाते हैं। भूकंप प्रकृति का जंप है पर वो रैम्प नहीं है। जिसके पधारते ही सब सतर्क और सावधान हो जाते हैं। ऐसे निहारते हैं मानो दिखलाई दे रहा हो। जबकि आभास होता है, दिखती उसकी विनाशलीला ही है। भूकंप जोरदार है जबकि बम कमजोरों का हथियार है। भूकंप को बुलाया नहीं जाता और बम को ले जाकर सजाया जाता है। जिससे निरपराध अवश्य ही सजा पाते हैं। स्थल कोर्ट हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता, जरूरी नहीं है। पृथ्वी को शरीर मान लें तो बम उस पर फुंसी, फोड़े और नासूर हैं। भूकंप प्रकृति की गर्मी है जो पृथ्वी खुद ही हिल हिलाकर निष्कासित कर देती है।
सुप्रीम कोर्ट हो या हाई कोर्ट कितनी भी हाई हो या वाई फाई हो। पर बम की मार से नहीं बची रह सकती। ताजा मिसाल देखिए, मिसाइल की तरह घाव दे गई जो रिसते रहेंगे। जब अमेरिका के ट्विन टॉवर नहीं बचे, आतंक की मार से, बमों के प्रहार से, हवाई दुलार से, तो कच्चे बम की ललकार से हम ही कैसे बच जाते, इसलिए मर गए और घायल हो गए। बम चाहे कच्चा था, कच्चा था इसलिए ही तो फट गया। पक्का होता तो नहीं फटता। कई पके हुए बम पब्लिक ने नहीं खाए हैं। बम चाहे कच्चा हो पर कितनी भी हाई सुरक्षा हो, कोर्ट हो या रिक्शा हो, सबको भेद देता है, पर अपना भेद नहीं देता है। सारे सुरक्षा चक्र तोड़ देता है। इंसानी जीवन को गुब्बारे के माफिक फोड़ देता है। बम की जद में जो आया है, इससे नहीं बच पाया है। या तो बम पक्का होगा, कच्चा होगा तो जरूर चलेगा और जब बम चलता है तो बाकी सब रुक जाते हैं। बम की रफ्तार के आगे, सबके पीछे तार बंध जाते हैं और सब अपनी गति गंवाते हैं और दुर्गति को पाते हैं, स्लो हो जाते हैं। बम का कोलेब्रेशन सीधे यमराज से है। सब एक साथ हमला बोल देते हैं, सबको सुननी पड़ती है बम की दहाड़। खूब बजाते हैं पायल और इंसान गिरते जाते हैं हो होकर घायल।
बम के लिए कोई दीवार हाई नहीं है, खाई कितनी भी गहरी हो, इसके लिए बेखाई नहीं रहती है। चबाता नहीं है, पीता नहीं है फिर भी इसके चंगुल में जो आता है, वो जीता नहीं है। न जीना चढ़ पाता है, न जीवन से लड़ पाता है। अस्पताल पहुंच जाए तब भी ढेर हो जाता है। कह सकते हैं बम के काम आता है। बम में है दम चाहे कच्चा हो, पक्का हो, रास्ता हो, पगडंडी हो, खुली सड़क हो, बंद आसमां अथवा तारों की छांव हो।
स्टेशन कोई भी हो, जहाज हवाई हो, रेल दौड़ रही हो, जहाज तैर रहा हो, बस घूम रही हो, कार खड़ी हो, स्कूटर स्टार्ट हो – बम कहीं भी सक्रिय हो उठता है, उसके सक्रिय होते ही, बाकी सब निष्क्रिय हो जाते हैं। इसलिए ही तो बम है। जिसके सामने निकलता बड़े बड़े छप्पनमारखांओं और सरकारों का दम है। सरकारें निढाल हो जाती हैं। कोई कितना भी फन्ने खां हो, तुर्रम खां या शेख चिल्ली हो, बम से भीग भीग जाते हैं और भीगी बिल्ली तथा सहमे कबूतर नजर आते हैं। बम के आगे चल नहीं पाई पार है, चाहे कितनी भी ताकतवर सरकार है। अमेरिका ने जरूर किया बंटाढार, पर उसकी भी बज गई खड़ताल। लहक गई उसकी चाल। अब उससे चला भी नहीं जा रहा है। घिसट घिसट कर आगे बढ़ रहा है, जितना आगे बढ़ता है, उससे तेजी से पीछे फिसलता है। इतनी शक्ति नहीं पाई है इंसान ने कि धरती को धकेल दे या दे दे सिर्फ एक जोरदार धक्का, चाहे खाएं हो खूब सारे मुनक्का अथवा मक्का। समझ लीजिए बिल्कुल बतला रहा हूं पक्का। संशय मत पालिए इसके पीछे किसी की शै भी मत जानिए।

arvind
17-11-2011, 04:32 PM
बम कृति है, भूकंप प्रकृति है और हड़कंप निवृत्ति है

बम में अगर दम है तो वह फूटेगा ही,
लुटेरे में दम होगा तो वह लूटेगा ही,
नसीब कमज़ोर होगा,फूटेगा ही ।


बम कृति है, भूकंप प्रकृति है और हडकंप निवृत्ति है। बम जान लेता है पर उसकी मौजूदगी जनता जान नहीं पाती है। भूकंप नहीं जाना जाता, पर वो जान नहीं ले जाता। मकान भी नहीं गिराता। बशर्ते कि वो घनघोर रूप से क्रोधित न हो। क्रोधित होने पर वो ऐसा तांडव मचाता है, जितना सृष्टि पर मौजूद सभी बम एक साथ मिलकर भी नहीं मचा सकते हैं। कह सकते हैं कि बम नीयत है और भूकंप नियति है। बम पंप है, जिसे आतंकवादी हवा देते हैं और जनता के प्राण हवा हो जाते हैं। भूकंप प्रकृति का जंप है पर वो रैम्प नहीं है। जिसके पधारते ही सब सतर्क और सावधान हो जाते हैं। ऐसे निहारते हैं मानो दिखलाई दे रहा हो। जबकि आभास होता है, दिखती उसकी विनाशलीला ही है। भूकंप जोरदार है जबकि बम कमजोरों का हथियार है। भूकंप को बुलाया नहीं जाता और बम को ले जाकर सजाया जाता है। जिससे निरपराध अवश्य ही सजा पाते हैं। स्थल कोर्ट हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता, जरूरी नहीं है। पृथ्वी को शरीर मान लें तो बम उस पर फुंसी, फोड़े और नासूर हैं। भूकंप प्रकृति की गर्मी है जो पृथ्वी खुद ही हिल हिलाकर निष्कासित कर देती है।
सुप्रीम कोर्ट हो या हाई कोर्ट कितनी भी हाई हो या वाई फाई हो। पर बम की मार से नहीं बची रह सकती। ताजा मिसाल देखिए, मिसाइल की तरह घाव दे गई जो रिसते रहेंगे। जब अमेरिका के ट्विन टॉवर नहीं बचे, आतंक की मार से, बमों के प्रहार से, हवाई दुलार से, तो कच्चे बम की ललकार से हम ही कैसे बच जाते, इसलिए मर गए और घायल हो गए। बम चाहे कच्चा था, कच्चा था इसलिए ही तो फट गया। पक्का होता तो नहीं फटता। कई पके हुए बम पब्लिक ने नहीं खाए हैं। बम चाहे कच्चा हो पर कितनी भी हाई सुरक्षा हो, कोर्ट हो या रिक्शा हो, सबको भेद देता है, पर अपना भेद नहीं देता है। सारे सुरक्षा चक्र तोड़ देता है। इंसानी जीवन को गुब्बारे के माफिक फोड़ देता है। बम की जद में जो आया है, इससे नहीं बच पाया है। या तो बम पक्का होगा, कच्चा होगा तो जरूर चलेगा और जब बम चलता है तो बाकी सब रुक जाते हैं। बम की रफ्तार के आगे, सबके पीछे तार बंध जाते हैं और सब अपनी गति गंवाते हैं और दुर्गति को पाते हैं, स्लो हो जाते हैं। बम का कोलेब्रेशन सीधे यमराज से है। सब एक साथ हमला बोल देते हैं, सबको सुननी पड़ती है बम की दहाड़। खूब बजाते हैं पायल और इंसान गिरते जाते हैं हो होकर घायल।
बम के लिए कोई दीवार हाई नहीं है, खाई कितनी भी गहरी हो, इसके लिए बेखाई नहीं रहती है। चबाता नहीं है, पीता नहीं है फिर भी इसके चंगुल में जो आता है, वो जीता नहीं है। न जीना चढ़ पाता है, न जीवन से लड़ पाता है। अस्पताल पहुंच जाए तब भी ढेर हो जाता है। कह सकते हैं बम के काम आता है। बम में है दम चाहे कच्चा हो, पक्का हो, रास्ता हो, पगडंडी हो, खुली सड़क हो, बंद आसमां अथवा तारों की छांव हो।
स्टेशन कोई भी हो, जहाज हवाई हो, रेल दौड़ रही हो, जहाज तैर रहा हो, बस घूम रही हो, कार खड़ी हो, स्कूटर स्टार्ट हो – बम कहीं भी सक्रिय हो उठता है, उसके सक्रिय होते ही, बाकी सब निष्क्रिय हो जाते हैं। इसलिए ही तो बम है। जिसके सामने निकलता बड़े बड़े छप्पनमारखांओं और सरकारों का दम है। सरकारें निढाल हो जाती हैं। कोई कितना भी फन्ने खां हो, तुर्रम खां या शेख चिल्ली हो, बम से भीग भीग जाते हैं और भीगी बिल्ली तथा सहमे कबूतर नजर आते हैं। बम के आगे चल नहीं पाई पार है, चाहे कितनी भी ताकतवर सरकार है। अमेरिका ने जरूर किया बंटाढार, पर उसकी भी बज गई खड़ताल। लहक गई उसकी चाल। अब उससे चला भी नहीं जा रहा है। घिसट घिसट कर आगे बढ़ रहा है, जितना आगे बढ़ता है, उससे तेजी से पीछे फिसलता है। इतनी शक्ति नहीं पाई है इंसान ने कि धरती को धकेल दे या दे दे सिर्फ एक जोरदार धक्का, चाहे खाएं हो खूब सारे मुनक्का अथवा मक्का। समझ लीजिए बिल्कुल बतला रहा हूं पक्का। संशय मत पालिए इसके पीछे किसी की शै भी मत जानिए।

तो आप भी निट्ठले हो ही गए। लगे रहो। अच्छा चेपे हो भाई।

arvind
22-11-2011, 10:20 AM
यूपी विभाजन प्रस्ताव पारित, विस अनिश्चत काल के लिए स्थगित.......

Up के चार हिस्से कर दो.
एक पर माया का राज....,
दुसरे पर कांग्रेस.....,
तीसरे पर बीजेपी और.....
चौथे पर समाजवादी पार्टी.....
सब को राज............ सब खुश............

सत्ता का लालच है. सभी लोग राज करना चाहते है कोई विकास कार्य करना नहीं चाहता.
यह तो एक गेम प्लान है जिसमे आओ मिलकर खाओ की पालिसी है........!!!!

ndhebar
26-11-2011, 10:04 PM
अपनी डफली अपना राग
आत्मा के प्रमाद से जीव दुःख पाते हैं। आकाश में वन नहीं होता और चन्द्रमा के मंडल में ताप नहीं होता, वैसे ही आत्मा में देह या इन्द्रियाँ कभी नहीं हैं। सब जीव आत्मरूप हैं। वृक्ष में बीज का अस्तित्व छुपा हुआ है, ऐसे ही जीव में ईश्वर का और ईश्वर में जीव का अस्तित्व है फिर भी जीव दुःखी है, कारण की जानता नहीं है। चित्त में आत्मा का अस्तित्व है और आत्मा में चित्त का, जैसे बीज में वृक्ष-वृक्ष में बीज। जैसे बालू से तेल नहीं निकल सकता, वन्ध्या स्त्री का बेटा संतति पैदा नहीं कर सकता, आकाश को कोई बगल में बाँध नहीं सकता, ऐसे ही आत्मा के ज्ञान के सिवाय सारे बंधनों से कोई नहीं छूट सकता। आत्मा का ज्ञान हो जाय, उसमें टिक जाय तो फिर व्यवहार करे चाहे समाधि में रहे, उपदेश करे चाहे मौन रहे, अपने आत्मा में वह मरत है। फिर राज्य भी कर सकते हैं और विश्रांति भी कर सकते हैं।

arvind
10-12-2011, 03:42 PM
गप्पलॉजी

गप्पें लड़ाना पूरी दुनिया में टाइम पास का सबसे बढ़िया तरीका है. औरतों के बारे में इस बात को पहले से ही बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता रहा है. लेकिन मर्द भी इसके अपवाद नहीं हैं. अपने देश में चौपालों, पुल-पुलियाओं, चाय की दुकानों, पान गुमटियों, कॉलेज कैंटिनों से लेकर दरवाजे की चौखट और दालान पर जुटने वाली अपने-परायों की मंडली टाइम पास करने के लिए गप्पे लड़ाती रही है. या कहिए कि हमारे यहां तो बतकही करने की पुरानी परंपरा रही है. अपने यहां बात हांकने वालों को टॉपिक की कमी भी कभी नहीं पड़ती. एक बार के लिए दुनिया की बहुप्रतिष्ठित टाइम मैग्जिन को अपने कवर पेज की स्टोरी डिसाइड करने के लिए कई दिनों तक मशक्कत करनी पड़ सकती है, लेकिन अपने यहां अंटी-बंटी या बबलू की चाय दुकान पर पांचों वक्त की चाय पीने वाले भइया, चाचा या बाबा को अपनी बतकही का टॉपिक तलाशने में नैनो सेकेंड जितना टाइम भी नहीं लगता. बात मौसम से शुरू होगी तो पड़ोसी की बीवी से होते हुए अमरीका के बराक ओबामा तक कब पहुंच जाएगी इसका पता भी नहीं चलेगा. लगेगा कि कितने विचारशील और जागरूक लोग हैं. ऐसी मंडलियों में ऐसा भी नहीं कि एक ही आदमी बोलता हो और बाकि के लोग चुपचाप उसकी हां में हां मिलाते हों. बतकट लोगों की भी यहां कोई कमी नहीं दिखाई देती. इसलिए मौके की नजाकत देखते हुए सम-समायिक विषय पर ही किसी बतक्कड़ को मुंह खोलने की इजाज़त होती है. उपर से मंडली में जुटने वाले लोग हर तबके के होते हैं. किसी कि जाति अलग, किसी का धर्म अलग. किसी की उम्र अलग, किसी का मिजाज़ अलग. इस वजह से भी यहां काफी सोच समझ कर बोलना पड़ता था. पता नहीं कौन सी बात किसे नागवार लग जाए. मतलब कई वजहों से यहां भी बोलने की पूरी आजादी नहीं थी. फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन का टोटा यहां भी था. इधर, प्रोफेशनल व्यस्तता बढ़ने की वजह से टाइम ही कम पड़ने लगा.

रेडियो और टीवी के बाद इंटरनेट टाइम पास का जरिया बन गया. टाइम निकले तो कहां से. अब गप्प हांकने की नैचुरल आदत तो छूटने से रही. जैसे कि किसी भी नैचुरल चीज को नजरअंदाज करना नामुमकिन होता है (इनक्लूडिंग नेचुरल कॉल) उसी तरह गप्पबाजी की चूल भी जब उठती है, तो उसे कहीं न कहीं विसर्जित करना ही पड़ता है. भला हो परदेसियों का जिन्होंने सोशल नेटवर्क साइटों की रचना कर डाली. इसके बाद अब कोई डर नहीं रह गया. कुछ भी पेट में पचा जाने की मजबूरी नहीं रह गई. किसी की भी चुगली खुलेआम करने की आजादी मिल गई. किसी को कोई बात अच्छी लगेगी या बुरी, इसकी टेंशन भी खत्म हो गई. इन साइटों ने अपना अनलिमिटेड स्पेस हमारी अनलिमिटेड बतकही (ज्यादातर लोग प्रत्यय के रूप में च वर्ड का इस्तेमाल करते हैं) के लिए खोल दिया. जो चीज पहले भूले-बिसरे-बिछड़े दोस्तों की खोज करने के लिए बनी थी, वह बतकही करने का जरिया कब बन गई पता ही नहीं चला. अगर नौकरी के आवेदनों को छोड़ दिया जाए तो कमोबेश लड़कों का चैट और ई-मेल किसी फी-मेल तक ही सीमित हुआ करता था. पर सोशल नेटवर्क ने तो पूरा माजरा ही बदल कर रख दिया. अब तो बतकही में तल्लीनता इतनी ज्यादा बढ़ चुकी है कि लोग इसके चक्कर में अपने-अपनो की भी परवाह नहीं करते. काम तो वैसे भी सेकेंड्री चीज रहा है.

हालत यह है कि अब ख़बरे न्यूज़ चैनल पर नहीं सोशल नेटवर्किंग साइटों पर सबसे पहले अपडेट होती हैं. कोई चीज बाजार में पॉपुलर नहीं होती, इन्हीं साइटों की बदौलत पॉपुलर होती है. कहां-कहां तो सरकारें भी गिर गईं. ऐसे में कपिल सिब्बल जी का डरना या उनकी भाषा में चिंता व्यक्त करना लाजमी है. यहां तो हर बात के वजन का ऑन द स्पॉट फैसला हो जाता है. कितने लोगों ने लाइक किया इस पर बात कि वैल्यू डिपेंड करती है.

अब सोनिया-मनमोहन के मनमोहक किस्से और तस्वीरें अगर लोगों को इतनी पसंद आ रही हैं, तो इसमें भला कौन क्या कर सकता है. छवि है बिगड़ती-सुधरती रहती है. कभी एप्पल वाले स्टीव भगवान बन जाते हैं, तो कभी मंहगाई बढ़ाने वाली कांग्रेस शैतान. अच्छा कर्म कीजिए तो फल भी अच्छा मिलेगा. हमारा तो काम ही है बातें बनाना. आप जैसा मौका दीजिएगा, हम वैसी बातें बनाएंगे. वैसे नेकनामी कमाने में असरा लगता है लेकिन बदनामी कमाने में पलक झपकने जितना समय भी नहीं लगता. इस सुनी-सुनाई सच्चाई को इन साइटों ने नए सिरे से साबित कर दिया है. वैसे इन साइटों पर पॉपुलर होने वाली हर चीज को तवज्जो देने की भी जरूरत नहीं है. भेड़िया धंसान चाल का ट्रेंड यहां भी सब ओर दिखाई देता है. अब अनलाइक करने का ऑप्शन तो है नहीं कि सही-सही बताया जा सके कि फलां तस्वीर-वीडियो या विचार के इतने समर्थक हैं, तो इतने विरोधी भी हैं. अगर सरकार हमारी बतकही को रेगुलेट करना भी चाहती है, तो इस तरह का प्रावधान उठाकर कर सकती है. लोगों में भी सही मैसेज जाएगा और सरकार को भी अपने अच्छे कर्मों की बदौलत भविष्य में खुद को सही साबित करने का मौका मिलेगा. वर्ना डिकटेटरी से तो यहां कुछ होने जाने वाला नहीं है. बहुत लोग आए और गए...पर पब्लिक को शटअप कोई नहीं करवा सका.

arvind
10-12-2011, 03:48 PM
कपिल सिब्बल के झूठ का एक घंटे मे ही पर्दाफाश किया गूगल इंडिया और याहू इंडिया के सीओओ ने .. सरकार जिस तरह चुपचाप इस देश मे कांग्रेस के खिलाफ उठ रहे आवाजो को चुपचाप दबाने की कोशिश कर रही है ..उसका खुलासा होने के बाद सिब्बल ने किसी लाल “तशरीफ” वाले बंदर की तरह गुलाट मारते हुए कहा कि सरकार सिर्फ आपत्तिजनक तश्वीरें और धार्मिक भावना वाले कंटेंट के ही खिलाफ है .. दरअसल अब पुरे मिडिया और तमाम बुद्धिजीवी इस कदम की घोर निंदा कर रहे है .. सीएनबीसी के सम्पादक संजय पुगलिया ने तो यहाँ तक कह दिया कि आने वाले पांच राज्यों मे युवा कांग्रेस को इसका सबक जरूर सिखान्येंगे .. लेकिन एक घंटे के बाद ही गूगल इंडिया और याहू इंडिया के सीओओ ने अपना बयान जारी कर महाधुर्त कपिल सिबल की पोल खोल दी ,, उन्होंने कहा कि पुरे मीटिंग मे कपिल ने सिर्फ सोनिया गाँधी और मनमोहन सिंह और कांग्रेस पार्टी के खिलाफ लिखे जाने वाले चीजों की ही बात की ..कपिल सिब्बल ने मीटिंग मे लोगो को सोनिया गाँधी के खिलाफ लिखे गए तीन लेख भी पढाये ...और गूगल के सीओओ से तो वो बहुत ही ज्यादा गुस्से से बात कर रहे थे ..क्योकि सिब्बल ने गूगल से चार महीने पहले ही सोनिया गाँधी और उनके पुरे खानदान की असलियत बयाँ करती सुब्रमण्यम स्वामी के वीडियो को हटाने का आदेश दिया था .जिसे गूगल ने ये कहकर ठुकरा दिया था कि पहले आप किसी अदालत का आदेश लाइए फिर ये हटेंगे

prashant
25-12-2011, 11:57 AM
सिब्बल की तो क्लास हो गयी!

arvind
27-03-2012, 06:02 PM
सात का अंक धोनी के लिए शुभ है....... शायद इसलिए अपने जन्मदिन और शादी के दिन बाप बनेंगे भारतीय क्रिकेट टीम के कैप्टन कुल महेंद्र सिंह धोनी...... यानि की 7 जुलाई (7 -7 ) को दादा बनेंगे पान सिंह और चाचा बनेंगे नरेंद्र ...... अगर मेरे आंकड़ों पर गौर करें तो 7 -7 -12 का दिन जब धोनी बाप bअनेंगे। चलो बढियां है.... वैसे भी ऐशवर्या के बिग बेबी की चर्चा सुन-सुन कर पक चुके थे... अब तो कम से कम धोनी बाप बनेगा ! "

अब धोनी के बाप बनने की खबर से स्पोर्ट्स बीट वाले पत्रकारों को तो घर बैठे खबर ही खबर नज़र आने लगी है .... धोनी के घर जाने वाले सब्जी से लेकर घर के पीछे से निकलने वाले पानी तक पर पैनी नज़र है..... अगर किसी ने चाची को गाजर ले जाते देख लिया तो मत पूछिए...... हेडलाइन कुछ इस प्रकार होगी.... प्राकृतिक विटामिन दिया रहा है साक्षी को....... विदेश में धो रहे हैं धोनी और घर में पी रही है साक्षी.......

जब धोनी के बाप बनने का दिन निर्धारित हो गया तो सवाल यह भी उठने लगा है की आखिर धोनी के घर लड़का होगा या लड़की........ इस सवाल का जवाब देते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा कहते हैं चूँकि झारखण्ड बिटिया वर्ष मना रहा है इसलिए धोनी को बेटी ही होगी...... झारखण्ड सरकार ने तो यहाँ तक कह दिया है की धोनी की बेटी को बिटिया वर्ष का ब्रांड अम्बेसडर बनाया जायेगा..... यानि की जन्म के साथ ही बेटी बाप के क़दमों पर चलना शुरू कर देगी.......

अगर धोनी के घर लक्ष्मी आती है तो सवाल यह उठने लगेंगे की क्या धोनी उसे सानिया मिर्ज़ा बनायेंगे.... क्या धोनी अपनी बेटी की शादी पाकिस्तान में करेंगे..... अरे नहीं नहीं नहीं...... अगर नहीं तो क्या धोनी की बेटी भी साक्षी की तरह पढ़ लिख कर किसी रेस्तरां की ताज बनेगी..... या फिर सुमेराय टेटे और दीपिका की तरह झारखण्ड का मान बढाएगी....

अब पुरे देश को धोनी के जीत के साथ साथ साक्षी के रहन सहन का भी पूरा ख्याल रहेगा..... सड़क पर सब्जी बेचने वाली से लेकर किट्टी पार्टी वाली महिलाएं साक्षी को सलाह देते दिखेगी की गर्भ के दिनों में साक्षी ये खाए वो न खाए.....

बहरहाल धोनी के बाप बनने की खबर से सबसे ज्यादा खुश मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ही हैं...... वे कहते फिर रहे हैं की यह उनके सफल नेतृत्व का ही परिणाम है..... पंचायत चुनाव.... नेशनल गेम के बाद अब बिटिया वर्ष में झारखण्ड की धरती पुत्री का जन्म होना हमारे भाजपा गठबंधन के साथ साथ पुरे झारखण्ड वासियों के लिए गर्व की बात है....

ndhebar
27-03-2012, 06:08 PM
अब धोनी के बाप बनने की खबर से स्पोर्ट्स बीट वाले पत्रकारों को तो घर बैठे खबर ही खबर नज़र आने लगी है .... धोनी के घर जाने वाले सब्जी से लेकर घर के पीछे से निकलने वाले पानी तक पर पैनी नज़र है..... अगर किसी ने चाची को गाजर ले जाते देख लिया तो मत पूछिए...... हेडलाइन कुछ इस प्रकार होगी.... प्राकृतिक विटामिन दिया रहा है साक्षी को....... विदेश में धो रहे हैं धोनी और घर में पी रही है साक्षी.......

बहरहाल धोनी के बाप बनने की खबर से सबसे ज्यादा खुश मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ही हैं...... वे कहते फिर रहे हैं की यह उनके सफल नेतृत्व का ही परिणाम है..... पंचायत चुनाव.... नेशनल गेम के बाद अब बिटिया वर्ष में झारखण्ड की धरती पुत्री का जन्म होना हमारे भाजपा गठबंधन के साथ साथ पुरे झारखण्ड वासियों के लिए गर्व की बात है....



:nocomment::nocomment:

arvind
04-08-2012, 03:38 PM
इंदिरा गांधी के दो बेटे थे
एक को देश चलाने का शौक था
उसने प्लेन चलाया और उसे गिरा दिया

दूसरे को प्लेन चलाने का शौक था
उसने देश चलाया और उसे गिरा दिया

इसी तरह उनकी दो बहुएं थीं
एक को जानवर पालने का शौक था
पर वो मिनिस्टर बन गई

दूसरी को मिनिसटर बनाने का शौक था
उसने सिब्बल, मनीष, दिग्िविजय
वगैरह वगैरह पाल लिए ...

arvind
04-08-2012, 03:49 PM
करप्सन मिटाने का तरीका

अन्*ना भी हैं खुश
क्योंकि उन्होने तोड़ दिया है अपना अनशन

पी एम ने बतलाया है
अभी अभी उनका संदेश
मेरे मोबाइल पर आया है

संदेश में लिखा है
कंप्*यूटर प्रत्*येक मर्ज की दवा है
टाइप करो corruption

कर्सर को वहीं मटकने दो
कंट्रोल प्*लस ए दबाओ
फिर तुरंत डी दबाओ
कंट्रोल पर से
न ऊंगली हटाओ

देखना हुआ न चमत्*कार
डिलीट हो गया
सारा भ्रष्*टाचार

लेकिन इतनी जल्*दी
मत खुश हो अन्*ना
अभी रिसाइकिल में
जाकर बीन बजानी है
वहां से एम्*पटी जगह
तुरंत खाली करानी है

उसके बाद न रहेगा भ्रष्*टाचार
न मिलेगा करप्*शन
चाहे करना सर्च
चाहे करना फाइंड
कितना ही लगाना माइंड

देखा मिट गया करप्*शन
इसीलिए अन्*ना ने तोड़ दिया अपना अनशन

खाओ भरपेट राशन
अब मैं झाडूंगा भाषण
अगर नहीं आता कंप्*यूटर चलाना
तो सीखकर आओ अन्*ना, क्*यों
इकट्ठा कर लिया है जमाना

जाओ अन्*ना कंप्*यूटर सीख कर आओ
यूं ही मत विश्*वभर में कोहराम मचाओ
जाओ अन्*ना कंप्*यूटर सीख कर आओ

सारे विश्*व का भ्रष्*टाचार खुद अकेले मिटाओ
और सच कह रहा हं कि खूब ख्*याति पाओ।

Dark Saint Alaick
04-08-2012, 04:06 PM
इंदिरा गांधी के दो बेटे थे
एक को देश चलाने का शौक था
उसने प्लेन चलाया और उसे गिरा दिया

दूसरे को प्लेन चलाने का शौक था
उसने देश चलाया और उसे गिरा दिया

इसी तरह उनकी दो बहुएं थीं
एक को जानवर पालने का शौक था
पर वो मिनिस्टर बन गई

दूसरी को मिनिसटर बनाने का शौक था
उसने सिब्बल, मनीष, दिग्िविजय
वगैरह वगैरह पाल लिए ...


बहुत ही अच्छा सृजन है, अरविन्दजी ! हास्य में लिपटी गूढ़ बात कहने के तरीके ने दिल जीत लिया ! धन्यवाद !

arvind
04-08-2012, 04:09 PM
बहुत ही अच्छा सृजन है, अरविन्दजी ! हास्य में लिपटी गूढ़ बात कहने के तरीके ने दिल जीत लिया ! धन्यवाद !
निट्ठल्ला और करेगा क्या.....? :india::india:

Dark Saint Alaick
04-08-2012, 04:16 PM
निट्ठल्ला और करेगा क्या.....? :india::india:

... लेकिन ज़ाहिर है कि आपका मस्तिष्क निठल्ला नहीं है ! :clapping:

agyani
17-02-2013, 02:12 PM
अच्छा और मजेदार सूत्र ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

agyani
17-02-2013, 02:14 PM
निठ्ठल्लेपन का बेहतर सदूपयोग

bheem
17-02-2013, 04:46 PM
बड़ा हि गजब का सूत्र है

emptymind
20-01-2015, 10:51 PM
बहुत खाली खाली है ये सरजमीं
कितनी न्यारी है ये सरजमीं
बहुत से चिंतन यहाँ हुए हैं
बहुत से अविष्कार यहाँ बने हैं
यदि जमाने में रहना है
जिन्दगी की रवानगी बनाये रखना है
तो ये जमीं है गुणों से भरपूर
इस से होना ना कभी दूर
वाह-वाह, क्या बात है। :bravo:

emptymind
20-01-2015, 10:52 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=2801&stc=1&d=1289383917

सत्य वचन।

emptymind
20-01-2015, 10:54 PM
निट्ठल्ला और करेगा क्या.....? :india::india:
:egyptian:
आप तो अपनी ही बिरादरी के लगते हो भाई।
:think: