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View Full Version : रामराज्य कब आएगा?


rajnish manga
05-03-2014, 04:06 PM
रामराज्य कब आएगा?

बहुत दिनों से सुनते आ रहे है कि हर काली रात के बाद सुबह जरुर होती है. हर वक़्त यह कहा जाता है कि ‘हमेशा सत्य की जीत होती है’ अन्धकार के बादल छंटते जरुर है, पर कब? यह नहीं बताया जाता है. क्या यह पलायनवादी सोच है या हम उन चीजों से भागते है जिन का हमारे जीवन में महत्व है. यदि लोग कहते है कि सच्चाई की जीत होती है और फिर भी हम हार जाते है तो क्या कहा जाएगा? या तो हम सच नहीं थे या झूठ ने सच को दबा दिया. सबेरा होने की लालसा में उम्र निकल जाती है - तो उस सबेरे का क्या करेंगे ? कब सबेरा होगा और कौन खुश किस्मत होगा जिनके नसीव में यह सबेरा होगा. दूसरी तरफ यह भी कहा जाता है समय से पहिले और तकदीर से ज्यादा कभी नहीं मिलता?

एक कथा है कि एक तवायफ के यहाँ एक सन्यासी जी पधारे. तवायफ ने साधु का खूब आदर सत्कार किया. साधु तवायफ के आदर सत्कार से खुश हुए और कहा कि में तुम्हारी सेवा से खुश हूँ. तुम एक वरदान मांग सकती हो. तवायफ सिर्फ मुस्करा दी. साधु ने मुस्कराने की बजह पूछी तो बोली रहने दीजिये. साधु ने जिद की तो तवायफ बोल पड़ी कि मैंने भी धर्म ग्रंथो को पढ़ा है कि समय से पहले और मुकद्दर से जयादा कभी नहीं मिलता तो आप वरदान दे कर भी क्या करोगे और में ले कर भी क्या करूंगी ? साधु चुप हो गया क्योंकि कोई जवाब साधु के पास नहीं था.

rajnish manga
05-03-2014, 04:08 PM
हमने काम, क्रोध, धन, मद और लोभ की परिभाषा भी रामायण में पढ़ी. कहा गया कि यदि भक्ति के मार्ग पर चलना है तो इन सभी चीजों दूर रहना होगा. तभी भक्ति की उपयोगिता सार्थक हो सकती है. दूसरी तरफ यह भी कहा जाता है कि हानि- लाभ, यश-अपयश, जीवन-मरण यह सब प्रभु के हाथ में हैं ? आप भी सोच रहे होंगे कि आध्यात्मिक बाते कहाँ से लेकर बैठ गया. पर बात निकली है तो दूर तलक जायेगी. सोच यही है - यह सब सार्थक विश्लेषण है जिनका अमल कठिन है, बाधाये हैं. उनको ऋषि मुनि भी आत्मसात नहीं कर पाए तो हम तो इंसान है. गलतियो की गठरी. फिर भी हम प्रवचन में जाते है और अपने कर्मो की गलतियो को मात्र भक्ति से दूर भागने का प्रयास करते है यह जानते हुए भी कि जो व्यक्ति हमें परमपिता परमेश्वर की उपासना का सन्देश दे रहा है, वह इन सभी बाधाओ से दूर है यदि नहीं है? तो उसकी बात से हम सहमत क्यों हो गए? और इसका ज्ञान उसके पास कहाँ से आ गया?

मेरा मकसद यह कतई नहीं है कि किसी वर्ग विशेष की भावना को ठेस पहुंचे. उसके लिए हम पहिले से ही माफी मांग कर चल रहे है. हम सब माटी के पुतले है. उनमे गलती हो सकती है पर साधु तो जन्म से भगवान् की पूजा अर्चना में लीन है. तो उसके पास तो भगवान् का दिया सब कुछ होगा ही अब भक्त को कुछ चाहिए तो शरण में जाना ही होगा. सच है. पर कौन मानेगा कि भगवान् अगर सुनी अनसुनी करके ही भक्त की परीक्षा ले रहे है तो कौन रोकेगा उनके चक्र को? यही पर तुलसी दास की पक्तिया याद आती है ” पर उपदेश कुशल बहुतेरे” यानी जब समाज को देने को है तो यह उदाहरण दिए जाते है. पर जब खुद पर अमल की बारी आती है तो मुकर जाते है. कई करोड़ भक्त भगवान् से प्रार्थना करते हैं तो भगवन को मान ही जाना चाहिए. पर भगवान् भी उन्ही की सुनता है जो समर्थ है. और समर्थ कुछ भी देकर भगवान को खुश कर ही देता है. जब कि एक कंगले के पास पांच रुपये भी नहीं होते कि वह चढ़ावा चढ़ा सके. तो भगवान् क्यों कर उस कंगले से खुश हो सकता है. पुजारी भी उसी की अर्चना की अर्जी पहिले लगाएगा जो मोटी दक्षिणा दे कर पुजारी को खुश करेगा.

rajnish manga
05-03-2014, 04:09 PM
श्रद्धा भाव की जाग्रति तभी होती है जब जेव में रकम हो. खूब कंगाल है तो यह माना जाएगा कि उसके भाग्य में धन नहीं है और धनवान के साथ यह जोड़ दिया जाएगा कि इस पर लक्ष्मी जी मेहरबान है. तो यह सच है कि हमारे भाग्य में लक्ष्मी है ही नहीं तो पूजा जप ताप करके भी क्या करें? धनवान चढ़ावा इस लिए चढ़ाता है कि उसके पास और धन आ जाये. पर वह धन आने का कोई तो माध्यम होगा या तो खूब मेहनत कर सकता है या किसी को लूट सकता है इसी बात को हम आम कर देते है तो समर्थक हमें छोड़ेगा नहीं. कहने का मतलब साफ़ है कि दोहरी व्यवस्था के चलते हमें रामराज्य मिल सकता है? हमारी सोच किधर जा रही है हम किसी का आदर भी नहीं कर सकते है और कुछ दे भी नहीं सकते है लेकिन फिर भी हम यह कल्पना करते है कि सुबह जरुर होगी केसे ?

सुबह सुबह पूजा अर्चना करना और मनोकामना की लिस्ट भगवान् को दे देना ही हमारा मकसद हो रहा है. कुछ लोग शोर्ट कट से धन कमाने में लगे है. शोर्ट कट वालों पर भी भगवान् मेहरवान और जो मेहनत करके जीवन को जी रहे है उनका भी भगवान्. यदि कोई जेब कतरा या डाकू भी अपने काम पर जाता होगा तो भगवान् का नमन करके निकलता होगा कि वह कामयाव हो गया तो चढ़ावा, नहीं तो और मारा गया तो उसकी नियति ही कही जायेगी? हर आदमी में भगवान् है तो गलत काम करने वाला भी भगवान् और सही काम करने वाला भी भगवान् तो क्या फर्क है? एक को सजा और एक को मज़ा दोहरी नीति के चलते हर जगह भ्रम है! है कोई निदान कभी राहू कभी शनि के प्रभाव से आम आदमी मुक्त ही नहीं हो पा रहा है. तो किस पर विश्वास करे, समझ से परे है. शायद मुक्ति मिल सकती है जब वह इस दुनिया में नहीं होगा? फिर पूजा अर्चना का क्या मतलब? जब आदमी मर जाता है तो अर्थी के साथ चलने वाले बोलते है राम राम सत्य है पर वह तो सुन नहीं सकता और वह खुद शमशान घाट से निकल कर छल-प्रपंच करने से बाज आने वाले नहीं तो भी हम कहते है कि “सुबह होगी .... राम राज्य आयेगा" .... पर कब?
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