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View Full Version : क्या आप महंगी दवाओं से परेशान हैं ? :.........


Dr.Shree Vijay
08-04-2014, 11:30 PM
World health day: महंगी दवाओं से परेशान हैं ?
तो जानें option क्या है ..? :.........

Dr.Shree Vijay
08-04-2014, 11:35 PM
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स्वास्थ्य का सीधा संबंध जिंदगी से हैं। इंसान के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ उसके जीने के अधिकार का घोर उल्लंघन है। आज बड़ी तादाद में दवाइयों के दामों में इजाफा करके उसके इस जीने के अधिकार को छीना जा रहा है। मुनाफाखोरी, बाजारीकरण और लाभ से वशीभूत दवाई कंपनियां गरीबों को स्वास्थ्य के अधिकार से वंचित रखने की साजिश में लिप्त हैं। ब्रांड के नाम पर मरीजों से मनमाफिक पैसा वसूला जा रहा है। ऐसे में दवाइयों में होने वाले खर्च से परेशान होकर कई मरीज इलाज बीच में ही छोड़ने पर मजबूर हैं। यहां सवाल उठता है कि क्या ब्रांडेड दवाइयों की खरीद के अलावा हमारे पास कोई विकल्प है। इसका जवाब है- हां, विकल्प जेनरिक दवाइयां हैं।

जेनरिक दवाइयां क्या है ? :

जेनरिक दवाइयों को लेकर अभी लोगों में काफी भम्र है। वो इसे मूल दवा से अलग समझते हैं, जबकि ऐसा कुछ नहीं है। दवा का सॉल्ट वही होता है, बस कंपनी का नाम बदल जाता है। इसके अलावा, इसे इस तरह भी समझा जा सकता है जो दवाइयां पेटेंट फ्री होती हैं वो जेनरिक दवाइयां हैं।

नोट : हर साल 7 अप्रैल को वर्ल्ड हेल्थ डे मनाया जाता है। इसकी शुरुआत वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) ने 1948 में की थी :.........



दैनिक भास्कर के सौजन्य से :......... (http://www.bhaskar.com)

Dr.Shree Vijay
08-04-2014, 11:37 PM
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जेनरिक दवाइयों और ब्रांडेडे के सॉल्ट में कोई अंतर नहीं होता है। अमेरिका की फूड एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन का भी मानना है कि जेनरिक दवाइयां भी उतनी ही प्रभावी और सेफ होती हैं जितनी की ब्रांडेड दवाइयां। जनेरिक दवाइयों पर अनेक सेमिनार कर चुके प्रतिभा जननी सेवा संस्थान के राष्ट्रीय समन्वयक आशुतोष कुमार का कहना है- ‘हिंदुस्तान के बाजारों में जो कुछ बिक रहा है अथवा बेचा जा रहा है, उसकी मार्केटिंग का एक बेहतरीन फार्मूला है भ्रम फैलाओ, लोगों को डराओ और मुनाफा कमाओ। जो जितना भ्रमित होगा, जितना डरेगा उससे पैसा वसूलने में उतनी ही सहुलियत होगी।‘

दवाइयों की कॉस्ट तब बढ़ती है जब उसे ब्रांड का नाम देकर उसकी मार्केटिंग की जाती है। कंपनियां दवाई की लागत से मार्केटिंग तक के खर्च को उपभोक्ता से वसूलती हैं। दवाई के लागत मूल्य से कई सौ गुना ज्यादा में उसे उपभोक्ता को बेचा जाता है। जितना बड़ा ब्रांड उतनी ही महंगी दवाई। ये फॉर्मूला इस दिशा में बेहद कारगर है। ऐसा नहीं है कि सरकार जेनरिक दवाइयों के महत्व को नहीं समझती है। इस वक्त देश में सवा सौ के आसपास जेनरिक दवाइयों की दुकानें हैं, जो मरीजों को सस्ते दामों पर दवाई उपलब्ध करा रही हैं। 2011 में बॉलीवुड एक्टर आमिर खान ने अपने शो ‘सत्यमेव जयते’ में महंगी दवाइयों के विकल्प के रूप में उभरी जेनरिक दवाइयों को चर्चा में लाकर इस दिशा में एक महत्वपूर्ण काम किया :.........



दैनिक भास्कर के सौजन्य से :......... (http://www.bhaskar.com)

Dr.Shree Vijay
08-04-2014, 11:39 PM
http://i9.dainikbhaskar.com/thumbnail/655x588/web2images/www.bhaskar.com/2014/04/07/4766_11.jpg


ब्रांड के नाम पर मनमानी कीमत वसूलने के खिलाफ संघर्ष करने वाली ' प्रतिभा जननी सेवा संस्थान' का कहना है कि भारत जैसे देश में 32-35 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं। ऐसे में दवाइयों को ब्रांड के नाम पर बेचने की जरूरत क्या है। संस्था के समन्वयक आशुतोष कुमार का कहना है कि इस देश को दवा की ज़रूरत है न की ब्रांड की।

भारत में दवाइयों के मूल्य का निर्धारण एनपीपीए करती है। इसके लिए भारत सरकार ने 348 सॉल्ट का नाम निर्धारित किया है। पहले इनकी संख्या 74 थी। यहां एक बात ध्यान रखने योग्य है कि भारत में वैसे भी 12-13 दवाइयों पर ही रिसर्च हुई है, बाकि की रिसर्च सब विदेशों में ही होती है। हालांकि, कई बार किसी खास दवा की ज़्यादा ज़रूरत को देखते हुए सरकार उसकी जेनरिक बनाने का आदेश भी देती है।

वैसे भी आज जेनरिक और ब्रांड के बीच इतनी धांधली हो चुकी है कि आम जेनरिक दवाइयों को भी ब्रांड के नाम से बेचा जा रहा है। सरकार का कहना है कि दवाई कंपनियों की दवाइयों पर 1126 प्रतिशत का फायदा होता है जबकि समाजसेवी संस्थाओं का मानना है कि यह फायदा तीन हजार प्रतिशत तक होता है। सरकार का भी कहना है कि अगर दवाई का कॉस्ट ऑफ प्रोडक्शन एक रुपया है तो उसका एमआरपी दो रुपए हो सकता है, जबकि ऐसा नहीं होता है कॉस्ट से कई गुना ज़्यादा की कीमत पर दवाइयों को बेचा जाता है :.........



दैनिक भास्कर के सौजन्य से :......... (http://www.bhaskar.com)

Dr.Shree Vijay
08-04-2014, 11:41 PM
http://i5.dainikbhaskar.com/thumbnail/655x588/web2images/www.bhaskar.com/2014/04/07/4957_genericpills1111.jpg


देश में कई राज्य ऐसे हैं जहां राज्य सरकार के आदेश से जेनरिक दवाइयां बेची जाती हैं। राजस्थान में साल 2008 से ही जेनरिक दवाइयां बेची जा रही हैं। इस मामले में तमिलनाडू सबसे सजग राज्य है। यहां सन् 1995 से ही राज्य सरकार के आदेश पर जेनरिक दवाइयां बेची जा रही हैं।

यहीं नहीं, आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत से हर साल विदेशों में 45,000 करोड़ रुपए की जेनरिक दवाइयों का निर्यात होता है। अमेरिका में ब्रांड नाम की कोई चीज नहीं है। वहां जनेरिक दवाइयां ही बेची जाती हैं। जेनरिक की तुलना में ब्रांडेड दवाइयां कितनी महंगी बेची जाती हैं, इसे ऐसे समझा जा सकता है। एंटीबायटिक के रूप में प्रयोग होने वाली दवा एजीथ्रोमाइसिन सामान्य तौर पर 58 रुपए( 10 टेबलेट ) में मिलती है, लेकिन ब्रांडेड की कीमत 200-300 रुपए है।

दवा के पेंटेंट के संबंध में अलग-अलग देशों में भिन्न-भिन्न समय सीमा तय है। भारत में बाजार में आने के 20 वर्षों के बाद उस दवा के उस फार्मूले का स्वामित्व खत्म हो जाता है :.........



दैनिक भास्कर के सौजन्य से :......... (http://www.bhaskar.com)

Dr.Shree Vijay
19-04-2014, 10:49 PM
http://www.offshorerx.com/images/genericflow.jpg

Dr.Shree Vijay
19-04-2014, 10:52 PM
http://www.timescontent.com/photos/preview/129675/Generic-drugs.jpg

Dr.Shree Vijay
19-04-2014, 10:54 PM
http://www.hindustantimes.com/Images/popup/2012/9/01-10-12-pg-01b.jpg

Dr.Shree Vijay
19-05-2014, 07:36 PM
http://prompttimes.com/NewsPhoto/Big/d103fe9c-1d2b-4889-89af-9456a10e1be5_1686_untitled-6.jpg

एलोपैथी दवाओं से केवल रोग दब जाते हैं :

आज आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा तथा अन्य कुछ पध्दतियों को पीछे छोड़कर एलोपैथी दवाओं का प्रचलन अत्यधिक बढ़ गया है। लोगों के पास समय नहीं, जल्दी से जल्दी ठीक हो जाना चाहते हैं। वे यह नहीं जानते कि इन अंग्रेजी दवाओं से रोग दबते हैं, जड़ से नहीं जाते। साइड इफैक्ट भी परेशान करते हैं।

* अंग्रेजी दवा महंगी होती है। डाक्टर की फीस भी दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। यह इलाज गरीब आदमी की पहुंच से बाहर हो चुका है। अस्पतालों में भी छोटी-मोटी सस्ती दवा भले ही मिल जाए, महंगी नहीं मिलती।

* क्योंकि इन दवाओं की कीमत बहुत होती है, गरीब आदमी अपना उपचार भी नहीं करवा सकता। वह अपने इलाज को बीच में छोड़ने पर विवश होता है। ऐसे में उसे लेने के देने पड़ जाते हैं। रोग बिगड़ जाता है।

* यह भी सत्य है कि एलोपैथी की महंगी दवाएं तुरंत परिणाम सामने ले आती है। रोगी ठीक हो जाता है, किन्तु रोग जड़ से नहीं जाता। किसी न किसी रूप में बना रहता है। मौका पाकर सिर उठा लेता है। भले ही रोग एक नये रूप में प्रकट हो। इस बार यह होता है अधिक गंभीर तथा दु:खदायी।

* प्राकृतिक उपचार सबसे उत्तम है, सस्ता है, सुलभ है। घर में उपलब्ध सब्जियां, फल, मसाले, दालें, अनाज, वृक्षों के पत्ते, फूलों से ये इलाज किए जा सकते हैं। ऐसे इलाज में भले ही समय लगे अगर रोग जड़ से उखड़ जाता है।

* प्राकृतिक चिकित्सा में कोई साइड इफैक्ट नहीं होता। यह बहुत बड़ी बात है।

* प्राकृतिक तथा घरेलू उपचारों में प्रयोग होने वाली हर वस्तु रोग को तो मल से उखाड़ती ही है, साथ में शरीर को शक्ति देती है। रोगों से लड़ने योग्य बनाती है। शरीर के अंगों को मजबूती देती है। इस प्रकार निरोगता तो मिलती ही है, अच्छा स्वास्थ्य भी प्राप्त हो जाता है। अपने जीवन की सुखद बनाना संभव हो जाता है।

गंभीर रोग होने पर, असाध्य रोग से परेशानी होने पर, चोट लगने पर आपरेशन आदि कराना पड़े तो एलोपैथी जरूरी हैं पर सामान्य रोगों में नहीं :.........



रांची एक्सप्रेस के सौजन्य से :......... (http://ranchiexpress.com/111845)

Arvind Shah
20-05-2014, 12:45 AM
बढीया जानकारी !

bindujain
20-05-2014, 06:29 AM
:bravo::bravo::bravo::bravo::bravo::bravo:

rafik
20-05-2014, 03:36 PM
https://encrypted-tbn3.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcQItXiR96ADFiu-TivAg02Lakc7ev-8-YjBIAOgpcrYDiCMpfLp
:bravo::bravo::bravo::bravo::bravo::bravo::bravo:: bravo::bravo::bravo::bravo::bravo::bravo:

Dr.Shree Vijay
20-05-2014, 05:00 PM
:bravo::bravo::bravo::bravo::bravo::bravo:

बढीया जानकारी !

https://encrypted-tbn3.gstatic.com/images?q=tbn:and9gcqitxir96adfiu-tivag02lakc7ev-8-yjbiaogpcrydicmpflp
:bravo::bravo::bravo::bravo:



आपका हार्दिक आभार.........

Suraj Shah
20-05-2014, 07:01 PM
अची जानकारिया पस्तुत की हें

Arvind Shah
21-05-2014, 12:59 AM
नमस्कार विजयजी !

मुझे एक दवाई का जेनरिक वर्जन जानना है क्या आप बता पायेंगे?
ये केप्स्युल मुझे डॉ. ने अल्सर होने पर लिखे थे । जो लगभग 20 रूपये का एक पड़ता है मुझे इसका जेनरिक वर्जन जानना है कि वो किस नाम से बाजार में मिलता है ?

केप्स्यूल का नाम — गेनाटोन टोटल

Dr.Shree Vijay
23-05-2014, 08:46 PM
नमस्कार विजयजी !

मुझे एक दवाई का जेनरिक वर्जन जानना है क्या आप बता पायेंगे?
ये केप्स्युल मुझे डॉ. ने अल्सर होने पर लिखे थे । जो लगभग 20 रूपये का एक पड़ता है मुझे इसका जेनरिक वर्जन जानना है कि वो किस नाम से बाजार में मिलता है ?

केप्स्यूल का नाम — गेनाटोन टोटल


आपको पर्सनल उत्तर भेज दिया हें....

Suraj Shah
10-06-2014, 12:57 PM
क्या सभी ब्रांडेड दवाईया जेनरिक में भी आती हें ?

Dr.Shree Vijay
12-06-2014, 04:21 PM
क्या सभी ब्रांडेड दवाईया जेनरिक में भी आती हें ?

नही मित्र सभी ब्रांडेड दवाईया जेनरिक में नही आती हें,
फिलहाल 85% जेनरिक में मिल रही हें.....

Dr.Shree Vijay
05-07-2014, 06:15 PM
http://people.opposingviews.com/DM-Resize/photos.demandstudios.com/getty/article/117/132/87753812.jpg?w=600&h=600&keep_ratio=1

डायबिटीज की सस्ती दवा पर बैन क्यों? :

नई दिल्ली।। भारत में डायबिटीज की दवा पियोग्लीटाजोन पर बैन से डॉक्टर हैरान हैं। अपने देश में इसके पेशंट की संख्या काफी ज्यादा है और इसे डायबिटीज का कैपिटल कहा जाता है। डॉक्टरों का कहना है कि यह बिना सोचे समझे दबाव में लिया गया फैसला लगता है। सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि इस दवा का जो अल्टरनेट है उसकी कीमत इससे कई गुना ज्यादा है। डॉक्टर्स अब सरकार से इस फैसले को वापस लेेने की मांग करते हुए पत्र लिखने की तैयारी में है। बता दें कि हाल ही में स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस दवा पर बैन लगा दिया है।

दिल्ली डायबिटीज असोसिएशन के प्रेजिडेंट डॉ . ए . के . झिंगन का कहना है कि सरकार ने इसके सभी कम्पोजिशन पर बैन लगा दिया है। हालांकि , सरकार ने इस दवा के बढ़ते साइड इफेक्ट को देखते हुए यह फैसला लिया है , किंतु भारत के लोगों के लिए यह बैन सही नहीं है। क्योंकि , इस दवा का साइड इफेक्ट भारत में नहीं देखा गया है और अभी भी अमेरिका सहित 32 देशों मंे यह दवा बेची जा रही है।

इतना जरूर है कि वहां की सरकार ने इस दवा पर वॉर्निंग जारी करते हुए यह जरूर कहा है कि इसके डोज पर कंट्रोल रखें। डॉक्टर झिंगन का कहना था कि आमतौर पर इस दवा का साइड इफेक्ट तब होता है जब डॉक्टर इसके डोज के साथ छेड़छाड़ करते हैं। आमतौर पर इसका असर 4 से 6 सप्ताह के बाद दिखता है। पेशंट डॉक्टर से दवा के असर के बारे में बात करते हैं और फिर डॉक्टर डोज बढ़ा देता है। विदेशों में इस दवा का डोज 7.5 एमएल तक दे दिया जाता है , जबकि इस दवा का नॉर्मल डोज 3 से 4 एमएल प्रतिदिन है और भारत में डॉक्टर इससे भी नीचे डोज पर दवा देते हैं :.........



नवभारत टाइम्स के सौजन्य से :......... (http://navbharattimes.indiatimes.com/metro/delhi/other-news/why-cheap-diabetes-drug-ban/articleshow/20848671.cms)

Dr.Shree Vijay
05-07-2014, 06:17 PM
http://d1435t697bgi2o.cloudfront.net/wp-content/uploads/2013/01/pillsinhand.jpg

डायबिटीज की सस्ती दवा पर बैन क्यों? :

फोर्टिस अस्पताल के सीडीओसी सेंटर फॉर डायबिटीज के चेयरमैन डॉ . अनूप मिश्रा का कहना है बैन लगाने के पीछे सरकार का फैसला साफ नजर नहीं आ रहा है। यह अच्छी दवा है और कम डोज में काफी कारगर है। बिना ठोस वजह से इस पर बैन लगाने से महंगी दवा का मार्केट बढ़ेगा। यह पेशंट के लिए परेशानी की बात है। सरकार के इस फैसले का हम विरोध कर रहे हैं और सभी डॉक्टर जल्द ही एक ड्रॉफ्ट बनाकर ड्रग्स कंट्रोलर ऑफ इंडिया और हेल्थ मिनिस्ट्री को इस बारे में लिखेंगे। यह बैन हर हाल में वापस होना चाहिए , इसका सीधा असर पेशंट पर पड़ने वाला है।

डायबिटीज के स्पेशलिस्ट डॉ . राजीव आर्डे का कहना है इस दवा का साइड इफेक्ट फ्रांस में देखा गया है , जिसमें ब्लैडर कैंसर की बात सामने आई है। जब अमेरिका ने सिर्फ वॉर्निंग दी है तो भारत में इस पर बैन क्यों लगाया गया है। उन्होंने कहा कि इसके बदले में जो दवा बाजार में है , वह इससे कई गुना महंगी है। यह दवा जहां 5 से 7 रुपये में मिल जाती थी , वहीं दूसरी दवा की कीमत 50 रुपये से भी ज्यादा है :.........



नवभारत टाइम्स के सौजन्य से :......... (http://navbharattimes.indiatimes.com/metro/delhi/other-news/why-cheap-diabetes-drug-ban/articleshow/20848671.cms)