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View Full Version : हिन्दु - मुसलमान - क्रिश्चियन - शीख - जैन - बौध्


Deep_
15-04-2014, 04:45 PM
जो कभी नहि जाती वही जाति है! (फिल्म 'स्वदेश' का डायलोग )

कई बार आप सब को अनुभव हुआ होगा कि धर्म-जाति के नाम पर आज भी लोगो के मन में ज़हर भरा हुआ है! अगर अपने भारत के ईतिहास में देखे तो पाएगें की हमें सबसे ज्यादा नुकसान ईन्ही कारणों से हुआ। हम अंदर-अंदर ही लडते/झगडते रहे और शासन करनेवालों ने ईसी का भरपुर फायदा उठाया...उठा रहें है!
अगर जरा ध्यान से सोचें तो हमे अपनी व्यस्त रोजाना जींदगी से ईतना समय ही नहिं मील पाता की ईस बारे में सोचें या बात/अमल कर पाए।
सोचिए हम जीस धर्म को ले कर ईतने कट्टरवादी बन जातें है, वह धर्म और बाकी सारे धर्म एक जैसी ही बात हमें क्युं सीखाते है? स्वर्ग,नर्क, जन्न्त, दोजख सभी सिस्टम एक जैसी ही तो है!

खेर,
मेरा आज का विचार यह था की मान लो की पुरे विश्व में सिर्फ एक धर्म ही बाकी रहा....तो आप को क्या लगता है, अमन और शांति छा जाएगी?

शायद नहि! ईन्सानी फितरत ही कुछ एसी है!

:think:

Deep_
16-04-2014, 11:23 AM
मतलब यह नहिं की हम लड़ मरेंगे, लेकिन जब ईन्सान की सारी प्राथमिक आवश्यकताओ की पूर्ति अगर हो जाती है फिर वह जीवन में तरह तरह के आनंद एवं लुफ्त उठाना चाहता है। अपनी सारी ढंगी-बेढंगी मंशा वह पुरी करना चाहता है, एकदुसरे उपर विजय पाने की कोशिश करता रहेता है। ईससे उल्टा यही हार जाने का डर, परिवार की रक्षा करने का ज़ुनुन, कुछ खो देने का भय ईन्सान को और लडाकु बना देता है।

आप सब के क्या विचार है?

rajnish manga
16-04-2014, 10:52 PM
मैं आपके विचारों से सहमत हूँ. यदि संसार में फैले इतने सारे धर्मों की जगह सिर्फ एक ही धर्म होता तो भी ऊंच-नीच, छोटे-बड़े, अमीर-गरीब, काले-गोरे, अपने-पराये, तेरे-मेरे के भेदभाव समाप्त नहीं होते. परिणामस्वरूप, मनुष्य-मनुष्य के बीच प्रतिस्पर्धा तथा लड़ाई-झगड़े चलते रहते. मुझे एक गीत की पंक्ति याद आ रही है:

ये न होता तो कोई दूसरा ग़म होना था;
मैं तो वो हूँ जिसे हर हाल में बस रोना था.

आदमी के सामने सर्वप्रथम अस्तित्व बनाए रखने का सवाल होता है यानि रोजी रोटी का सवाल होता है. उसके बाद शुरू होती है supremacy की लड़ाई. अपने आपको अन्य लोगों से बेहतर तथा शक्तिशाली समझना और यह सिद्ध करने के लिये फिर लड़ाई, फिर झगड़ा होना स्वाभाविक है. सृष्टि के आरम्भ से ही यह स्थिति बरकरार है. बल्कि मैं तो यह मानता हूँ कि अलग अलग धर्मों का अभ्युदय भी प्राचीन धर्मों की तुलना में अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के उद्देष्य से ही हुआ है.

rafik
17-04-2014, 04:37 PM
आपके विचार अच्छे है और सभी धर्म की एकता देखनी है तो हिंदी फोरम पड़े क्योकि (हिंदी है हम)

Deep_
18-04-2014, 01:33 PM
रफीक जी धन्यवाद!
मैं आपके विचारों से सहमत हूँ..........................अलग अलग धर्मों का अभ्युदय भी प्राचीन धर्मों की तुलना में अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के उद्देष्य से ही हुआ है.

मैं आपकी बात से सहमत तो हुं। लेकिन यह भी बाद की बात है, पहेले तो छोटे छोटे पंथो में भी अपनी श्रेष्ठता साबित करने हेतु लडाई होती थी। रजनीश जी, मैने कहीं सुना था की राम पंथ और कृष्ण पंथ दोनो के बीच भी लडाईयां हुई थी। क्या यह सच है?

Dr.Shree Vijay
18-04-2014, 11:05 PM
इन्सान सिर्फ इन्सान ही बन जाये तो बहुत हैं,
फिलहाल तो हैवानियत की हद भी पार कर दी हैं,

किसी फिल्म में शायद यह गाना था :

तू हिन्दू बनेंग या मुसलमान बनेंगा,
शैतान की औलद हैं हैवान बनेंगा,

अच्छा और गंभीर विषय चुनने के लिए हार्दिक धन्यवाद.........

Deep_
04-10-2014, 11:19 AM
धर्म की रचना

जब किसी धर्म की रचना होती होगी तो उस प्रदेश-विस्तार, वातावरण, लोग, उनका रहन-सहन ईत्यादि को ध्यान में रख कर की जाती होगी।

साफ साफ है, अगर में किसी कबीले या छोटे गांव का मुखिया हुं, तो में चाहुंगा की सबसे पहेले हमारे पुर्वजो की पुजा हो, उनको याद किया जाए, उनकी जीवनी को 'फोलो' किया जाए। मेरे लोगो की संख्या बढती रहे, ताकी ओर लोग हमारा सफाया न कर दे!

एसे ही बेज़िक मुद्दे रहें होंगे जब किसी भी धर्म कि शुरुआत हुई होगी। आगे चल कर एक जैसे समुदाय एक दुसरें मे जुड़ कर बडा ढांचा तैयार हुआ होगा!