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View Full Version : !! गीता सार !!


Hamsafar+
17-11-2010, 05:20 PM
!! गीता सार !!

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=3475&stc=1&d=1289999990

Hamsafar+
17-11-2010, 05:21 PM
क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सक्ता है? आत्मा ना पैदा होती है, न मरती है।

Hamsafar+
17-11-2010, 05:21 PM
जो हुआ, वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है, जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप न करो। भविष्य की चिन्ता न करो। वर्तमान चल रहा है।

Hamsafar+
17-11-2010, 05:22 PM
तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर आए, जो लिया यहीं से लिया। जो दिया, यहीं पर दिया। जो लिया, इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसी को दिया।

Hamsafar+
17-11-2010, 05:22 PM
खाली हाथ आए और खाली हाथ चले। जो आज तुम्हारा है, कल और किसी का था, परसों किसी और का होगा। तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो। बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दु:खों का कारण है।

Hamsafar+
17-11-2010, 05:23 PM
परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो!

Hamsafar+
17-11-2010, 05:23 PM
न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसी में मिल जायेगा। परन्तु आत्मा स्थिर है - फिर तुम क्या हो?

Hamsafar+
17-11-2010, 05:24 PM
तुम अपने आपको भगवान के अर्पित करो। यही सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारे को जानता है वह भय, चिन्ता, शोक से सर्वदा मुक्त है!

Hamsafar+
17-11-2010, 05:27 PM
भगवान हम सब को बुद्धि दें की हम उन के इस अचिंतनीय अलौकिक ज्ञान को अपने जीवन में उतार पायें। जैसे भगवान हरि के चरण कमलों से निकल कर गँगा सारे संसार को पवित्र करती है, उसी प्रकार भगवान हरि के यह वचन हमारे जीवन को पवित्र करते हैं। श्रीमद भगवद गीता मनुष्य जीवन की गाथा है। जीवन क्या है, जीवन का उद्देश्य क्या है, जीव का धर्म क्या है, क्या प्राप्तव्य है, कैसे संकटों से मनुष्य छूटता है - यह सब भगवान हरि के इन वाक्यों द्वारा सपष्ट होता है। इस संसार के परम गुरु, भगवान जनार्दन को प्रणाम है।

ॐ नमः भगवते वासुदेवाय।

prashant
18-11-2010, 06:49 PM
आगे भी ऐसे ही गीता का पाठ करते रहें और हमें गीता की अमृत वाणी से हमारा ज्ञानवर्धन करते रहें.

prashant
20-11-2010, 08:07 PM
भाई आप ने आज इस सूत्र को गति नहीं दी.
कृपया नियमित रूप से इस सूत्र को गति देते रहें.
धन्यवाद.