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View Full Version : लोकसभा चुनाव/ बदलाव की परिकल्पना


rajnish manga
27-04-2014, 02:14 PM
लोकसभा चुनाव/ बदलाव की परिकल्पना
आलेख: विवेकानंद सिंह

कुछ दिनों बाद देश को नये-नये वजीर मिलेंगे और जनता फिर उनकी ओर आशा भरी निगाहों से देखेगी। आज बदलाव की इच्छा पूरे देश की आवाज़ बनती जा रही है, लेकिन सिर्फ सत्ता बदलाव से मौजूदा हालात में बदलाव आ जाएगा यह कहाँ स्पष्ट है? यह देश स्वयं में समस्या का एक पिटारा है, जिस ओर नजर दौड़ाओ मुद्दे और चिंताएँ ही दिखती हैं।

जनसंख्या के हिसाब से संसाधन का अभाव इस देश में बेरोजगारी को बढ़ा रहा है, हर साल युवाओं की फौज तैयार हो रही है जिसे नौकरी चाहिए, तरक्की के लिए समुचित अवसर चाहिए। हमारे देश में रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए कृषि क्षेत्र और किसानों को आर्थिक मदद, उचित वैज्ञानिक प्रशिक्षण एवं सुविधाओं की आवश्यकता है, लेकिन जिस प्रकार से देश की कृषि को हाशिये पर धकेला जा रहा है, यह देश के लिए एक समस्या बनती जा रही है। खेती को आज के समय में बढ़िया और मुनाफाबख्श पेशे के रूप में नहीं देखा जाता है।

एक किसान कैसी जिन्दगी जीने के लिए मजबूर है? इसकी खबरें भी इक्का-दुक्का समाचार पत्रों तक ही सीमित है। देश की ऐसी आबादी जो देश का पेट भरती है, उसकी जिन्दगी पर कोई चर्चा तक नहीं करना चाहता है। आखिर क्यों देश की मीडिया भी उसके प्रति उदासीन रवैया अपनाती है? कारण शायद खेतिहर लोगों का मीडिया उपभोक्ता नहीं होना हो सकता है। मीडिया में एक आंकड़े के मुताबिक लगभग तीन प्रतिशत ही ग्रामीण क्षेत्रों की खबरें होती हैं। मानों सारी समस्या सिर्फ महानगरों में ही हो, छोटे शहरों, गाँवों में जैसे समस्या हो ही नहीं। एक वरिष्ठ पत्रकार से जब मैंने इस संदर्भ में पूछा तो उन्होंने कहा "मीडिया पहले कमजोर आदमी का आवाज था, आज मीडिया मजबूत आदमी का बयान है।"

एक चर्चित कहावत है कि जब भी राजनीतिक व्यवस्था में परिवर्तन हुआ है उसके पीछे आर्थिक वजह जिम्मेदार रही है। आज देश में भ्रष्ट्राचार सबसे अधिक सुना और बोला जाने वाला शब्द हो गया है। ऐसा नहीं है कि भ्रष्ट्राचार कोई नई खोज है ये तो तबसे हमारे बीच है, जब यह पहली बार शब्दकोश में आया होगा, हाँ इसकी मात्रा और प्रवृति में बढ़ोत्तरी अवश्य हुई है। जिस तरह से देश के नेताओं के राजनीतिक चरित्र और व्यावहारिक व्यक्तित्व में अंतर है उससे तो साफ लगता है कि सत्ता मूल रूप से पूंजीपतियों की रखैल है।

इन सारी समस्या के बाद भी विश्वपटल पर हमारे देश का जो इतना सम्मान है, उसका कारण हमारे देश का दुनिया में सबसे बड़ा लोकतंत्र होना है। आजादी के बाद से हमने और हमारे पुरखों ने इसकी लाज रखी है, लेकिन गरीबी से निजात, शिक्षा, बेरोजगारी से निजात और आधी आबादी यानि महिलाओं का सशक्तिकरण जब तक नहीं हो जाता है तब तक बदलाव की परिकल्पना पूरी नहीं हो सकती है।

ndhebar
27-04-2014, 05:08 PM
भर्ष्ट तो हम खुद हैं बस इल्जाम दूसरों पर डालने की आदत हो गयी है. जब तक हम अपने अन्दर के भर्ष्ट व्यक्ति को नहीं सुधारेंगे तब तक किसी और से उम्मीद करना बेमानी ही होगी.

rajnish manga
28-04-2014, 02:39 PM
ठीक कहते हैं, मित्र. जिस प्रकार ईश्वर प्राप्ति के बारे में जिस प्रकार हमारे चिन्तक मनीषियों ने कहा है कि उसे बाहर कहाँ ढूंढ रहे हो. वह तो तुम्हारे अन्दर ही विद्यमान है. केवल तलाश की दिशा बदलने की जरूरत है. इसी प्रकार यदि भ्रष्टाचार से मुक्ति चाहिए तो शुरूआत स्वयं से क्यों न की जाये?