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View Full Version : विज्ञान विश्व


sam_shp
22-11-2010, 09:02 AM
आशीष श्रीवास्तव नाम के विज्ञान प्रेमी के सहयोग से यह जानकारिया उपलब्ध हुयी है.......मै इन जानकारियों को यहाँ प्रस्तुत करने का माध्यम मात्र हूँ.
आशीषजी का संदेश भी मै यहाँ प्रस्तुत करना चाहूँगा....

यह चिठ्ठा विज्ञान की नयी पुरानी जानकारी इंद्रजाल पर उपलब्ध कराने का एक प्रयास है। विज्ञान से जुडे हर विषय पर मैं लिखने का प्रयास करुंगा लेकिन मेरे पसंदीदा विषय जैसे ब्रह्माण्ड और उसकी उत्पत्ती , भौतिकी से जुडे लेख ज्यादा होने की संभावना है।
इस चिठ्ठे मे मैं मौलिकता का दावा नही करता हूं, अधिकतर सामग्री इंद्रजाल पर उपलब्ध जानकारी या मेरे द्वारा पढ़ी गयी पुस्तकों, लेखो से ली गयी होगी। मेरा योगदान उन्हे अनुवाद और संपादन कर प्रकाशन करना मात्र होगा। (आशीष श्रीवास्तव)


धन्यवाद.

sam_shp
22-11-2010, 09:08 AM
निहारिका मे सितारों का जन्म

ब्रम्हाण्डीय नर्सरी जहाँ तारों का जन्म होता है एक धूल और गैसों का बादल होता है जिसे हम निहारीका (Nebula) कहते है। सभी तारों का जन्म निहारिका से होता है सिर्फ कुछ दुर्लभ अवसरो को छोड़कर जिसमे दो न्यूट्रॉन तारे एक श्याम विवर बनाते है। वैसे भी न्यूट्रॉन तारे और श्याम विवर को मृत तारे माना जाता है।
निहारिका दो अलग अलग कारणों से बनती है। एक तो ब्रह्माण्ड की उतपत्ती से ही है। ब्रह्माण्ड के जन्म के बाद ब्रह्माण्ड मे परमाणुओं का निर्माण हुआ और इन परमाणुओं से धूल और गैस के बादलों का निर्माण हुआ। इसका मतलब यह है कि गैस और धूल जो इस तरह से बनी है उसका निर्माण तारे से नही हुआ है बल्कि यह ब्रह्माण्ड के निर्माण के साथ निर्मित मूल पदार्थ है।
निहारिका के निर्माण का दूसरा तरीका किसी विस्फोटीत तारे से बने सुपरनोवा से है। इस दौरान सुपरनोवा से जो पदार्थ उत्सर्जित होता है उससे भी निहारिका बनती है। इस दूसरे तरीके से बनी निहारिका का उदाहरण वेल(Veil) और कर्क (Crab) निहारिकाये है। ध्यान रखे कि निहारिकाओ का निर्माण इन दोनो तरीकों के मिश्रण से भी हो सकता है।
निहारिकाओ के प्रकार
उत्सर्जन निहारिका (Emission): इस तरह की निहारिकाये सबसे सुंदर और रंग बिरंगी होती है। ये नये बन रहे तारों से प्रकाशित होती है। विभिन्न तरह के रंग भिन्न तरह की गैसों और धूल की संरचना के कारण पैदा होते है। सामान्यतः एक बड़ी दूरबीन (8+ इंच) से उत्सर्जन निहारीका के लगभग सभी रंग देखे जा सकते है। तस्वीर मे सभी रंगो को देखने के लिये लम्बे-एक्स्पोजर से तस्वीर लेनी पढ़ती है।
चील निहारिका(M16) और झील निहारिका (Lagoon या M8) इस तरह की निहारिका के उदाहरण है। M16 मे तीन अलग अलग गैसों के स्तंभ देखे जा सकते है। यह तस्वीर हब्बल से ली गयी है और इसे साधारण दूरबीन से इतना स्पष्ट नही देखा जा सकता। इस स्तंभो के अंदर नये बने तारे है, जिनसे बहने वाली सौर वायु आसपास की गैस और धूल को दूर बहा रही है। इसमे सबसे बड़ा स्तंभ १० प्रकाश वर्ष उंचा और १ प्रकाश वर्ष चौड़ा है। इसकी खोज १७६४ मे हुयी थी और यह हमसे ७००० प्रकाश वर्ष दूर है।

ABHAY
22-11-2010, 09:11 AM
हा सैम जी आप लिखे और आपसे एक अनुरोध भी है क्या इस प्रस्तुती को हम अपने ब्लॉग में दाल सकते है

sam_shp
22-11-2010, 09:19 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=3849&stc=1&d=1290402582

चील निहारिका

निचे दी गयी M 8 की तस्वीर भी हब्बल दूरबीन से ली गयी है। यह ५२०० प्रकाश वर्ष दूर है। इसकी खोज १७४७ मे हुयी थी। इसका आकार १४०X६० प्रकाश वर्ष है।


http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=3850&stc=1&d=1290402582

M8 निहारिका


परावर्तन निहारिका (Reflection): यह वह निहारीकाये है जो तारों के प्रकाश को परावर्तित करती है, ये तारे या तो निहारिका के अंदर होते है या पास मे होते है। प्लेइडेस निहारिका इसका एक उदाहरण है। इसके तारों का निर्माण लगभग १००० लाख वर्ष पूर्व हुआ होगा। हमारे सूर्य का निर्माण ५०,००० लाख वर्ष पूर्व हुआ था। ये सितारे धीरे धीरे निहारिकाओ से बाहर आ रहे है।


http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=3851&stc=1&d=1290402582

NGC 1333 – परावर्तन निहारीका


श्याम निहारिका (Dark): ऐसे तो सभी निहारिकाये श्याम होती है क्योंकि ये प्रकाश उत्पन्न नही करती है। लेकिन विज्ञानी उन निहारिकाओ को श्याम कहते है जो अपने पीछे से आने वाले प्रकाश को एक दीवार की तरह रोक देती है। यही एक कारण है कि हम अपनी आकाशगंगा से बहुत दूर तक नही देख सकते है।
आकाशगंगा मे बहुत सारी श्याम निहारीकाये है, इसलिये विज्ञानियों को प्रकाश के अन्य माध्यमों का(x किरण, CMB) सहारा लेना होता है।
निचले चित्र मे प्रसिद्ध घोड़े के सर के जैसी निहारिका दिखायी दे रही है। यह निहारिका एक अन्य उत्सर्जन निहारिका IC434 के सामने स्थित है।

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=3852&stc=1&d=1290402582

घोडे के सर जैसी निहारिका

sam_shp
22-11-2010, 09:28 AM
ग्रहीय निहारिका (Planetary): इन निहारिकाओ का निर्माण उस वक्त होता है जब एक सामान्य तारा एक लाल दानव (red gaint)तारे मे बदल कर अपने बाहरी तहों को उत्सर्जित कर देता है। इस वजह से इनका आकार गोल होता है। चित्र मे बिल्ली की आंखो जैसी निहारिका(Cat’s Eye NGC 6543) दिखायी दे रही है। इस तस्वीर मे तारे के बचे हुये अवशेष भी दिखायी दे रहे है।




http://antwrp.gsfc.nasa.gov/apod/image/0611/catseye_hst.jpg


बिल्ली की आंखो वाली निहारिका
दूसरी तस्वीर नयनपटल निहारिका(Retina IC 4406) मे वृताकार चक्र उसके बाजु मे दिखायी दे रहा है। तारे का घूर्णन और चुम्बकिय क्षेत्र इसे वृताकार बना रहा है ना कि एक गोलाकार।
ग्रहीय यह शब्द निहारिकाओ के लिये सही नही है। यह शब्द उस समय से उपयोग मे आ रहा है जब युरेनस और नेप्च्यून की खोज जारी थी। उस समय हमारी आकाशगंगा के बाहर किसी और आकाशगंगा के अस्तित्व की भी जानकारी नही थी।


http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=3854&stc=1&d=1290403261

नयनपटल निहारिका

सुपरनोवा अवशेष: ये निहारिकाये सुपरनोवा विस्फोट के बाद बचे हुये अवशेष है। सुपरनोवा किसी विशाल तारे की मृत्यु के समय उनमें होने वाले भयानक विस्फोट की स्थिति को कहते है। कर्क (Crab) निहारीका इसका एक उदाहरण है।


http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=3855&stc=1&d=1290403261

कर्क निहारिका


सितारों के जन्म की प्रक्रिया

सितारों के जन्म के पहली स्थिति है , इंतजार और एक लम्बा इंतजार। धूल और गैस के बादल उस समय तक इंतजार करते है जब तक कोई दूसरा तारा या भारी पिंड इसमे कुछ हलचल ना पैदा कर दे! यह इंतजार हजारों लाखों वर्ष का हो सकता है।

जब कोई भारी पिंड निहारीका के पास से गुजरता है वह अपने गुरुत्वाकर्षण से इसमे लहरे और तरंगे उत्पन्न करता है। कुछ उसी तरह से जैसे किसी प्लास्टिक की बड़ी सी चादर पर कुछ कंचे बिखेर देने के बाद चादर मे एक किनारे पर से या बीच से एक भारी गेंद को लुढका दिया जाये। सारे कंचे भारी गेंद के पथ की ओर जमा होना शुरु हो जायेंगे। धीरे धीरे ये सारे कंचे चादर मे एक जगह जमा हो जाते है।

ठीक इसी तरह निहारिका मे धूल और गैस के कण एक जगह पर संघनित होना शुरु हो जाते है। पदार्थ का यह ढेर उस समय तक जमा होना जारी रहता है जब तक वह एक महाकाय आकार नही ले लेता।

इस स्थिति को पुर्वतारा( protostar) कहते है। जैसे जैसे यह पुर्वतारा बड़ा होता है गुरुत्वाकर्षण इसे छोटा और छोटा करने की कोशिश करता है, जिससे दबाव बढते जाता है, पुर्वतारा गर्म होने लगता है। जैसे साईकिल के ट्युब मे जैसे ज्यादा हवा भरी जाती है ट्युब गर्म होने लगता है।

जैसे ही अत्यधिक दबाव से तापमान १०,०००,००० केल्विन तक पहुंचता है नाभिकिय संलयन(Hydrogen Fusion) की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है। अब पुर्वतारा एक तारे मे बदल जाता है। वह अपने प्रकाश से प्रकाशित होना शुरू कर देता है। सौर हवाये बचे हुये धूल और गैस को सुदूर अंतरिक्ष मे धकेल देती है।

sam_shp
22-11-2010, 09:39 AM
काल-अंतराल (space-time) अवधारणा
श्याम विवर की गहराईयो मे जाने से पहले भौतिकि और सापेक्षतावाद के कुछ मूलभूतसिद्धांतो की चर्चा कर ली जाये !

काल-अतंराल(Space-Time) की अवधारणा

सामान्यतः अंतराल को तिन अक्षो मे मापा जाता है। सरल शब्दो मेलम्बाई, चौडाई और गहराई, गणीतिय शब्दो मे x अक्ष, y अक्ष और z अक्ष। यदि इसमे एक अक्ष समय को चौथे अक्ष के रूप मे जोड दे तब यह काल-अंतराल का गंणितिय माडल बन जाता है।
भौतिकि मे काल-अंतराल का अर्थ है काल और अंतराल संयुक्त गणितिय माडल। काल और अंतराल को एक साथ लेकर भौतिकि के अनेको गुढ रहस्यो को समझाया जा सका है जिसमे भौतिकब्रह्माण्डविज्ञान तथा क्वांटम भौतिकि शामिल है।
सामान्ययांत्रिकी मे काल-अंतराल की बजाय अंतराल का प्रयोग किया जाता रहा है, क्योंकि काल अतराल के तिनो अक्षो मे यांत्रिकि गति से स्वतंत्र है। लेकिन सापेक्षतावाद के सिद्धांत के अनुसार काल को अंतराल के तिनो अक्षो से अलग नही किया जा सकता क्योंकि , काल किसी पिंड की प्रकाशगति के सापेक्ष गति पर निर्भर करता है।

काल-अंतराल की अवधारणा ने बहुआयामी सिद्धांतो(higher-dimensional theories) की अवधारणा को जन्म दिया है। ब्रम्हांड के समझने के लिये कितने आयामो की आवश्यकता होगी यह एक यक्ष प्रश्न है। स्ट्रींग सिद्धांत जहां १० से २६ आयामो का अनुमान करता है वंही M सिद्धांत ११ आयामो(१० आकाशीय(spatial) और १ कल्पित(temporal)) का अनुमान लगाता है। लेकिन ४ से ज्यादा आयामो का असर केवल परमाणु के स्तर पर ही होगा।

काल-अतंराल(Space-Time) की अवधारणा का इतिहास

काल-अतंराल(Space-Time) की अवधारणा आईंस्टाईन के १९०५ के विशेष सापेक्षतावाद के सिद्धांत के फलस्वरूप आयी है। १९०८ मेआईंस्टाईन के एक शिक्षक गणितज्ञ हर्मन मिण्कोवस्कीआईंस्टाईन के कार्य को विस्तृत करते हुये काल-अतंराल(Space-Time) की अवधारणा को जन्म दिया था। ‘मिंकोवस्की अंतराल‘ की धारणा यह काल और अंतराल को एकीकृत संपुर्ण विशेष सापेक्षतावाद के दो मूलभूत आयाम के रूप मे देखे जाने का प्रथम प्रयास था। ‘मिंकोवस्की अंतराल‘ की धारणा यह विशेष सापेक्ष्तावाद को ज्यामितिय दृष्टी से देखे जाने की ओर एक कदम था, सामान्य सापेक्षतावाद मे काल अंतराल का ज्यामितिय दृष्टीकोण काफी महत्वपूर्ण है।

(१)

sam_shp
22-11-2010, 09:40 AM
मूलभूत सिद्धांत
काल अंतराल वह स्थान है जहां हर भौतिकि घटना होती है : उदाहरण के लिये ग्रहो का सुर्य की परिक्रमा एक विशेष प्रकार के काल अंतराल मे होती है या किसी घुर्णन करते तारे से प्रकाश का उत्सर्जन किसी अन्य काल-अंतराल मे होना समझा जा सकता है। काल-अंतराल के मूलभूत तत्व घटनायें(Events) है। किसी दिये गये काल-अंतराल मे कोई घटना(Event), एक विशेष समय परएक विशेष स्थिति है। इनघटनाओ के उदाहरण किसी तारे का विस्फोट या ड्रम वाद्ययंत्र पर किया गया कोई प्रहार है।
काल-अंतरालयह किसी निरिक्षक के सापेक्ष नही होता। लेकिन भौतिकि प्रक्रिया को समझने के लिये निरिक्षक कोई विशेष आयामो काप्रयोग करता है।किसी आयामी व्यवस्था मे किसी घटना को चार पुर्ण अंको(x,y,z,t) से निर्देशीत किया जाता है। प्रकाश किरण यह प्रकाश कण की गति का पथ प्रदर्शित करती है या दूसरे शब्दो मे प्रकाश किरण यह काल-अंतराल मे होनेवाली घटना है और प्रकाश कण का इतिहास प्रदर्शित करती है। प्रकाश किरण को प्रकाश कण की विश्व रेखा कहा जा सकता है। अंतराल मे पृथ्वी की कक्षा दिर्घ वृत्त(Ellpise) के जैसी है लेकिन काल-अंतराल मे पृथ्वी की विश्वरेखा हेलि़क्स के जैसी है।
सरल शब्दो मे यदि हम x,y,z इन तिन आयामो के प्रयोग से किसी भी पिंड की स्थीती प्रदर्शीत कर सकते है। एक ही प्रतल मे दो आयाम x,y से भी हम किसी पिंड की स्थिती प्रदर्शित हो सकती है। एक प्रतल मे x,y के प्रयोग से,पृथ्वी की कक्षा एक दिर्घ वृत्त के जैसे प्रतित होती है। अब यदि किसी समय विशेष पर पृथ्वी की स्थिती प्रदर्शित करना हो तो हमे समय t आयाम x,y के लंब प्रदर्शित करना होगा। इस तरह से पृथ्वी की कक्षा एक हेलिक्स या किसी स्प्रींग के जैसे प्रतित होगी। सरलता के लिये हमे z आयाम जो गहरायी प्रदर्शित करता है छोड दिया है।
काल और समय के एकीकरण मे दूरी को समय की ईकाइ मे प्रदर्शित किया जाता है, दूरी को प्रकाशगति से विभाजित कर समय प्राप्त किया जाता है।
काल-अंतरालअन्तर(Space-time intervals)
काल-अंतराल यह दूरी की एक नयी संकल्पना को जन्म देता है। सामान्य अंतराल मे दूरी हमेशा धनात्मक होनी चाहिये लेकिन काल अंतराल मे किसी दो घटनाओ(Events) के बीच की दूरी(भौतिकी मे अंतर(Interval)) वास्तविक , शुन्य या काल्पनिक(imaginary) हो सकती है। ‘काल-अंतराल-अन्तर‘ एक नयी दूरी को परिभाषीत करता है जिसे हम कार्टेशियन निर्देशांको मे x,y,z,t मे व्यक्त करते है।

s2=r2-c2t2
s=काल-अंतराल-अंतर(Space Time Interval)
c=प्रकाश गति
r2=x2+y2+z2

काल-अंतराल मेकिसी घटनायुग्म (pair of event) को तिन अलग अलग प्रकार मे विभाजित किया जा सकता है
१.समय के जैसे(Time Like)- दोनो घटनाओ के मध्य किसी प्रतिक्रिया के लियेजरूरत से ज्यादा समय व्यतित होना; s2 <0)
२.प्रकाश के जैसे(Light Like)-(दोनो घटनाओ के मध्य अंतराल और समत समान है;s2=0)
३.अंतराल के जैसे (दोनो घटनाओ के मध्य किसी प्रतिक्रिया के लिये जरूरीसमय से कम समय का गुजरना; s2 >0)

घटनाये जिनकाकाल-अंतराल-अंतरऋणात्मक है, एक दूसरे के भूतकाल और भविष्य मे है,
================================================== ============
विश्व रेखा(World Line) : भौतिकि के अनुसार किसी पिंड का काल-अंतराल के चतुर्यामी तय किये गये पथ को विश्व रेखा कहा जाता है।
हेलि़क्स : स्प्रिंग या स्क्रू के जैसा घुमावदार पेंचदार आकार।

(२)

sam_shp
23-11-2010, 05:14 AM
श्याम पदार्थ (DARK MATTER)


भौतिकशास्त्र मे श्याम पदार्थ उस पदार्थ को कहते है जो विद्युत चुंबकियविकिरण(प्रकाश, क्षकिरण) का उत्सर्जन या परावर्तन पर्याप्त मात्रा मे नही करता जिससे उसे महसूस किया जा सके किंतु उसकी उपस्थिति साधारण पदार्थ पर उसके गुरुत्विय प्रभावसे महसूस की जा सकती है।श्याम पदार्थ की उपस्थिती के लिये किये गये निरिक्षणो मे प्रमुख है, आकाशगंगाओ की घुर्णनगति, किसी आकाशगंगाओ के समुहमे आकाशगंगा की कक्षा मे गति और आकाशगंगा या आकाश्गंगा के समुह मे गर्म गैसो मे तापमानका वितरण है। श्याम पदार्थ की ब्रम्हाण्ड के आकार ग्रहण प्रक्रिया(१)तथा महाविस्फोट केन्द्रीय संश्लेषण(Big Bang Ncleosynthesis)(२)प्रमुख भूमिका रही है।श्याम पदार्थ का प्रभाव ब्रम्हांडीय विकीरण के फैलाव और वितरण मे भी रहा है। यह सभी सबूत हमे यह बताते है कि आकाशगंगाये, आकाशगंगा समुह(Cluster) और ब्रम्हांड मे पदार्थ की मात्रा निरक्षित मात्रा से कही ज्यादा है, जो कि मुख्यतः श्याम पदार्थ है जिसे देखा नही जा सकता।
श्याम पदार्थ का संयोजन(३)अभी तक अज्ञात है लेकिन यह नये मुलभूत कणो जैसे विम्प (WIMP)(४) और एक्सीआन(Axions)(५), साधारण और भारी न्युट्रीनो , ड्वार्फ तारो और ग्रहो(MACHO)(६) तथा गैसो के बादल से बना हो सकता है। हालिया सबूतो के अनुसार श्याम पदार्थ की संरचना नये मूलभूत कणो जिसे नानबायरोनिक श्याम पदार्थ(nonbaryonic dark matter) कहते है से होना चाहिये।
श्याम पदार्थ की मात्रा और द्रव्यमान साधारण दिखायी देने ब्रम्हाण्ड से कही ज्यादा है। अभी तक की खोजो मे ब्रम्हाण्ड मेबायरान और विकीरण का घन्त्व लगभग १ हायड्रोजन परमाणु प्रति घन मिटर है। इसकालगभग ४% उर्जा घन्तव देखा जा सकता है। लगभग २२% भाग श्याम पदार्थ का है ,बचा ७४% भाग श्याम उर्जा का है। कुछ मुश्कील से जांचे जा सकने वाले बायरानीक पदार्थ भी श्याम पदार्थ बनाते है लेकिन इसकी मात्रा काफी कम है। इस लापता द्रव्यमान की खोज भौतिकी और ब्रम्हाण्ड विज्ञान के सबसे बडे अनसुलझे रहस्यो मे से एक है।

सबसे पहले श्याम पदार्थ के बारे मे सबूत देने वाले कैलीफोर्निया ईन्स्टीट्युट आफ टेक्नालाजी केएक स्वीस विज्ञानी फ्रीटज झ्वीस्की थे। उन्होने कोमा आकाशगंगा समुह पर वाइरियल प्रमेय(७) का उपयोग किया और उन्हे लापता द्र्व्यमान का ज्ञान हुआ।झ्वीस्की ने कोमाआकाशगंगा समुह के किनारे कीआकाशगंगाओ की गति के आधार पर कोमा आकाशगंगा समुह के द्रव्यमान की गणना की। जब उन्होने इस द्रव्यमान की तुलना आकाशगंगाओ और उनकी आकाश गंगा समुह (Cluster) की कुल प्रकाशदिप्ती के आधार पर ज्ञात द्रव्यमान से की तो उन्हे पता चला कि वहां पर अपेक्षा से ४०० गुना ज्यादा द्रव्यमान है। इस आकाशगंगा समुह मेदिखायी देने वाली आकाशगंगाओ का गुरुत्व इतनी तेज कक्षा के कारण काफी कम होना चाहिये, इन आकाशगंगाओ के पास अपने संतुलन के लिये कुछ औरद्रव्यमान होना चाहिये। इसे लापता द्रव्यमान रहस्य(Missisng Mass Problem) कहा जाता है।झ्वीस्की ने इन अनुमानो के आधार पर कहा कि वहां पर कुछ अदृश्य पदार्थ होना चाहीये जो इस आकाशगंगा समुह को उचित द्रव्यमान और गुरुत्व प्रदान कर रहा है जिससे यह आकाशगंगा समुह का विखण्डन नही हो रहा है।
श्याम पदार्थ के बारे मे और सबुत आकाशगंगाओ की गति के अध्यन से प्राप्त हुये। इनमे से काफी आकाशगंगा एकसार है, इन पर वाइरियल प्रमेय लगाने पर इनकी कुल गतिज उर्जा(Kinetic Energy) इनके कुल गुरुत्व उर्जा का आधा होना चाहीये। प्रायोगिक नतिजो के अनुसार गतिज उर्जा इससे कहीं ज्यादा पायी गयी। आकाशगंगा केदृश्य द्रव्यमान के गुरुत्व को ही लेने पर , आकाशगंगा के केन्द्र से दूर तारो की गति वाइरियल्ल प्रमेय द्बारा गणित गति से कहीं ज्यादा पायी गयी। गैलेटीक घुर्णन वक्र कक्षा(८)जो घुर्णन गति और आकाशगंगा केन्द्र की व्याख्या करती है, इसे दृश्य द्रव्यमान से समझाया नही जा सकता। दृश्य पदार्थ आकाशगंगा समुह का एक एक छोटा सा ही हिस्सा है मान लेने पर इसकी व्याख्या की जा सकती है। आकाशगंगाये एक लगभगगोलाकार श्याम पदार्थ से बनी प्रतित होती है जिनके मध्य मे एक तश्तरी नुमा दृश्य पदार्थ है। कम चमकदार सतह वाली ड्वार्पह आकाशगंगाये श्याम पदार्थ के अध्यन के लिये जरूरी सुचनाओ का महत्वपूर्ण श्रोत है क्योंकि इनमे असाधारण रूप से साधारण पदार्थ और श्याम पदार्थ का अनुपात कम है और इनके केन्द्र मे कुछ ऐसेचमकिले तारे है जो बाहरी छोर पर स्थित तारो की कक्षा को विकृत कर देते है।http://static.flickr.com/109/287687767_6c8f5b8c84.jpg
अगस्त २००६ मे प्रकाशित परिणामो के आधार पर श्याम पदार्थ , साधारण पदार्थ से अलग पाया गया है। यह परिणाम बुलेट आकाशगंगा समुह (Bullet Cluster) जो दो अलग अलग आकाशगंगा समुह की १५०० लाख वर्ष पहले हुयी भिडंत से बना है के अध्यन से मिले है।
(१)

sam_shp
23-11-2010, 05:15 AM
आकाशगंगा की घुर्णन वक्रकक्षा
झ्वीस्की के निरिक्षण के ४० वर्षो बाद तक ऐसा कोई निरिक्षण नही मिला जिसमे प्रकाश और द्रव्यमान का अनुपात ईकाई से अलग हो। अधिक प्रकाश और द्रव्यमान का अनुपात श्याम पदार्थ की उपस्थिती दर्शाता है। १९७० के दशक की शुरूवात मे कार्नेगी इन्सीट्युट आफ वाशिण्गटन के एक विज्ञानी वेरा रूबीन ने एक नये ज्यादा संवेदनशील स्पेक्ट्रोग्राफ (जो कुंड्ली नुमा आकाशगंगा के सीरे की गति कक्षा को ज्यादा सही तरीके से माप सकता था) की मदद से कुछ नये परिणाम प्राप्त किये। इस विस्यमयकारी परिणाम के अनुसार किसी कुंडली नुमा आकाशगंगा के अधिकतरतारे एक जैसी गति से आकाशगंगा केकेन्द्र की परिक्रमा करते है। इसका अर्थ यह था कि द्रव्यमान घनत्व अधिकतर तारो(आकाशगंगा केन्द्र) से दूर भी एकसार था। इसका एक अर्थ यह भी था कि यातोन्युटन का गुरुत्व नियम हर अवस्था मे लागु नही किया जा सकता या इन आकाशगंगा का ५०% से अधिक द्रव्यमान श्याम पदार्थ से बना है। इस परिणाम की पहले खिल्ली उडायी गयी लेकिन बाद मे ये मान लिया गया कि आकाशगंगा का अधिकतर भाग श्याम पदार्थ से बना है।
बाद मे इसी तरह के परिणाम इलीप्स के आकार की आकाशगंगाओ मे भी पाये गये। रूबीन के द्वारा ५०% प्रतिशत द्रव्यमान की गणना अब बडकर ९५% हो गयी है।
कुछ ऐसे भी आकाशगंगा समुह है जो श्याम उर्जा की उपस्थिती नकारते है। ग्लोबुलर आकाशगंगा समुह एक ऐसा ही आकाशगंगा समुह है। हाल ही मे कार्डीफ विद्यापिठ के विज्ञानीयो ने एक श्याम उर्जा की बनी हुयी आकाशगंगा की खोज की है। यह कन्या आकाशगंगा समुह (Virgo Cluster) से ५० प्रकाशवर्ष दूर है, इस आकाशगंगा का नाम VIRGOHI21 है। इस आकाशगंगा मे तारे नही है। इसकी खोज हायड्रोजन की रेडीयो तरण्गो के निरिक्षण से हुयी है। इसके घुर्णन कक्षा के अध्यन से वैज्ञानिको का अनुमान है कि इसमे हायडोजन के द्रव्यमान से १००० गुना ज्यादा श्याम पदार्थ है। इसका कुल द्रव्यमान हमारी आकाशगंगा मंदाकिनी के द्रव्यमान का दंसवा भाग है। हमारी आकाशगंगा मंदाकिनी मे भी दृस्य पदार्थ के द्रव्यमान से १० गुना ज्यादा श्याम पदार्थ मौजुद है।
श्याम पदार्थ आकाशगंगा समुह पर भी प्रभाव डालता है। एबेल २०२९ आकाशगंगा समुह जो की हजारो आकाशगंगाओ से बना है, इसके आसपास चारो ओर गरम गैसो और श्याम पदार्थ का आवरण फैला हुआ है। इस श्याम पदार्थ का द्रव्यमान १०१४सुर्यो के द्रव्यमान के बराबर है। इस आकाशगंगा समुह के केन्द्र मे एक इलीप्स के आकार की आकाशगंगा (जो कुछ आकाशगंगाओ के मिलन से बनी है) है। इस आकाशगगां समुह की कक्षा की गति श्याम उर्जा निरिक्षणो के अनुरूप है।http://static.flickr.com/115/287687762_cb531389da.jpg
श्याम उर्जा के निरिक्षण के लिये दूसरा साधन गुरुत्विय वक्रता (gravitational lensing)(९)है। यह प्रक्रिया सापेक्षतावाद के सिद्धांत के द्रव्यमान गणनापर आधारित है जो गतिज उर्जा पर निर्भर नही करती है। यह पूरी तरह श्याम उर्जा के द्रव्यमान की गणना के लिये स्वतण्त्र सिद्धांत है। एबेल १६८९ के आसपासप्रबलगुरुत्विय वक्रता पायी गयी है। इस वक्रता को माप कर उस आकासगंगा समुह का द्रव्यमान ज्ञात किया जा सकता है। द्रव्यमान और प्रकाश के अनुपात से स्याम पदार्थ की उपस्थिती जांची जा सकती है।
(२)

sam_shp
23-11-2010, 05:16 AM
श्याम पदार्थ की संरचना
अगस्त २००६ मे श्याम पदार्थ को प्रकाशीय पद्धती से जांच लिया गया है लेकिन अभी भी यह अटकलो के घेरे मे है। आकाशगंगा घुर्णन वक्र कक्षा, गुरुत्विय वक्रता, ब्रम्हांडीय पदार्थ का विभीन्न आकार बनाना(Structure Formation), आकाश गंगा समुह मेबायरान की अल्प उपस्थिती जैसे सबुत यह बताते है कि ८५-९०% पदार्थ विद्युत चुंबकिय बल से प्रतिक्रिया नही करता है। यह श्याम पदार्थ अपने गुरुत्विय बल से अपनी मौजुदगी दर्शाता है। इस श्याम पदार्थ की निम्नलिखित श्रेणीया हो सकती है।
बायरानीक श्याम पदार्थ
अबायरानीक श्याम पदार्थ (यह तिन तरह का हो सकता है)
१.अत्याधिकगर्म श्याम पदार्थ
२.गर्म श्याम पदार्थ
३.शितल श्याम पदार्थ
http://static.flickr.com/108/287687766_ca532da32c.jpg
अत्याधिक गर्म श्याम पदार्थ मे कण सापेक्ष गति(relativistic velocities)(१०) से गतिमान रहते है। न्युट्रीनो इस तरह का कण है। इस कण का द्रव्यमान कम होता है और इस पर विद्युत चुम्बकिय बल और प्रबल आणवीक बल का प्रभाव नही पड्ता है। इनकी जांच एक दूष्कर कार्य है। यह भी श्याम उर्जा के जैसा है। लेकिन प्रयोग यह बताते है कि न्युट्रीनो श्याम पदार्थ का एक बहुत ही छोटा हिस्सा है। गर्म श्याम पदार्थ महाविस्फोट के सिद्धांत पर खरे नही उतरते है लेकिन इनका आस्तित्व है।
शितल श्याम पदार्थ जिसके कण सापेक्ष गति नही करते है। बडे द्रव्यमान वाले पिंड जैसे आकाशगंगा के आकार के श्याम विवरो को गुरूतविय वक्रता के आधार पर अलग कर सकते है। संभव उम्मीदवारो मे सामान्य बायरोनिक पदार्थ वाले पिड जैसे भूरे ड्वार्फ या माचो (MACHO भारी तत्वो के अत्यंत घन्तव वाले पिंड) भी है। लेकिन महाविस्फोट के आणविक संयुग्मन (big bang nucleosynthesis ) प्रक्रिया ने विज्ञानीयो को यह विश्वास दिला दिया है कि MACHO जैसे बायरानिक पदार्थ कुल श्याम पदार्थ के द्रव्यमान का एक बहुत ही छोटा हिस्सा हो सकते है।

आज की स्थिती मे श्याम पदार्थ की संरचना अबायरानिक कणो, इलेक्ट्रान, प्रोटान, न्युट्रान, न्युट्रीनो जैसे कणो के अलावा, एक्सीआन, WIMP(Weakly Interacting Massive Particles कमजोर प्रतिक्रिया वाले भारी कण जिसमे न्युट्रलिनो भी शामील है), अचर न्युट्रीनो (sterile neutrinos)(१०)से बनी हुयीमानी जाती है। इनमे से कोई भी कण साधारण भौतिकी की आधारभूत संरचना का कण नही है।

श्याम पदार्थ की संरचना के उम्मीदवार कणो की खोज के लिये प्रयोग जारी है।
(३)

sam_shp
23-11-2010, 05:21 AM
श्याम विवर
(१)आकार ग्रहण प्रक्रिया(Structure Formation)- यह ब्रम्हांड निर्माण भौतिकि का एक मुलभूत अनसुलझा रहस्य है। ब्रम्हाण्ड जैसा की हम ब्रम्हांडीय विकीरण(Cosmic Microvave Background Radiation) के अध्यन से जानते है, एक अत्यंत घने , अत्यंत गर्म बिन्दू के महाविस्फोट से बना है। लेकिन आज की स्थिती मे हर आकार के आकाशिय पिंड मौजूद है, ग्रह से लेकर आकाशगंगाओ से आकार से गैसो के बादल (Cluster) के दानवाकार तक के है। एक शुरूवाती दौर केसमांगी ब्रम्हांड से आज का ब्रम्हांड कैसे बना ?
(२) महाविस्फोट केन्द्रीय संश्लेषण(Big Bang Ncleosynthesis) : हायड्रोजन(H1) को छोडकर अन्य तत्वो के परमाणू केन्द्रक निर्माण की प्रक्रिया।
(३) साधारण पदार्थ(Byaronic Matter) मुख्यतः इलेक्ट्रान, न्युट्रान और प्रोटान से बना होता है।इलेक्ट्रान, न्युट्रान और प्रोटान को बायरान भी कहते है।
(४) विम्प(WIMP:weakly interacting massive particles): अभी तक ये कालप्नीककण है। ये कण कमजोर आणविक बल और गुरूत्वाकर्षण बल से ही प्रतिक्रिया करते है। इनका द्रव्यमान साधारण कणो(बायरान) की तुलना मे काफी अधिक होता है। ये साधारण पदार्थ से प्रतिक्रिया नही करते जिससे इन्हे देखा और महसूस नही किया जा सकता।
(५)एक्सीआन(Axions): यह भी एक कालप्नीक मूलभूतकण है, इन पर कोई विद्युतिय आवेश नही होता है और इनकाद्रव्यमान काफी कम १०-६ से १०-२ eV/c2 के बीच होना चाहिये। मजबूत चुम्बकिय बलो की उपस्थिती मे इन्हे फोटान मे बदल जाना चाहिये।
(६) माचो(अत्यंत विशाल सघन प्रकाशितपिंड)(MACHO: Massive compact halo object): ये उन पिण्डो के लिये दिया गया नाम है जो श्याम पदार्थ की उपस्थिती को समझने मे मदद कर सकते है। ये श्याम वीवर (Black Hole) , न्युट्रान तारे, सफेद ड्वार्फ या लाल ड्वार्फ भी हो सकते है।
(७)वाइरियल प्रमेय अदिक जानकारे के लिये देखें : http://en.wikipedia.org/wiki/Virial_theorem
(८) देखें http://en.wikipedia.org/wiki/Galactic_rotation_curve
(९)गुरुत्विय वक्र (gravitational lensing) :प्रकाश किरणो के मे उस समयआई वक्रता होती है जब ये किसी गुरुत्विय लेंस से गुजरती है। ये गुरुत्विय लेंस श्याम विवर भी हो सकता है।
(१०)अचर न्युट्रीनो (sterile neutrinos): जिन न्युट्रीनो पर कीसी भी मूलभूत बलो का प्रभाव नही होता है।

(४)

sam_shp
23-11-2010, 05:34 AM
श्याम उर्जा (DARK ENERGY)
यह विषय एक विज्ञान फैटंसी फिल्म की कहानी के जैसा है। श्याम उर्जा(Dark Energy), एक रहस्यमय बल जिसे कोई समझ नही पाया है, लेकिन इस बल के प्रभाव से ब्रम्हाण्ड के पिंड एक दूसरे से दूर और दूर होते जा रहे है।
यह वह काल्पनिक बल है जिसका दबाव ऋणात्मक है और सारे ब्रम्हाण्ड मे फैला हुआ है। सापेक्षतावाद के सिद्धांत के अनुसार , इस ऋणात्मक दबाव का प्रभाव गुरुत्वाकर्षण के विपरीत प्रभाव के समान है।
श्याम उर्जा १९९८ मे उस वक्त प्रकाश मे आयी , जब अंतरिक्ष विज्ञानीयो के २ समुहो ने विभीन्न आकाशगंगाओ मे विस्फोट की प्रक्रिया से गुजर रहे सितारो(सुपरनोवा)(१) पर एक सर्वे किया। उन्होने पाया की ये सुपरनोवा की प्रकाश दिप्ती अपेक्षित प्रकाश दिप्ती से कम है, इसका मतलब यह कि उन्हे जितने पास होना चाहिये थी , वे उससे ज्यादा दूर है। इसका एक ही मतलब हो सकता था कि ब्रम्हांड के विस्तार की गति कुछ काल पहले की तुलना मे बढ गयी है!(लाल विचलन भी देंखे (http://vigyan.wordpress.com/2006/08/29/doplarredshift/))
इसके पहले तक यह माना जाता था कि ब्रम्हांड के विस्तार की गति धीरे धीरे गुरूत्वाकर्षण बल के कारण कम होते जा रही है। लेकिन सुपरनोवा के विश्लेषण से ज्ञात हुआ कि कोई रहस्यमय बल गुरूत्वाकर्षण बल ले विपरीत कार्य कर ब्रम्हाण्ड के विस्तार को गति दे रहा है। यह एक आश्चर्यजनक , विस्यमयकारी खोज थी।
पहले तो वैज्ञानिको को इस प्रयोग के परिणामो की विश्वनियता पर ही शक हुआ। उन्हे लगा की सुपरनोवा की प्रकाशदिप्ती किसी गैस या धूल के बादल के कारण कम हो सकती है या यह भी हो सकता है कि सुपरनोवा की प्रकाश दिप्ती के बारे मे वैज्ञानिको का अनुमान ही गलत हो। लेकिन उपलब्ध आंकडो को सावधानी पुर्वक जांचने के बाद पता चला कि कोई रहस्यमय बल का आस्तित्व जरूर है जिसे आज हम श्याम उर्जा (Dark Energy) कहते है।
वैसे यह विचार एकदम नया नही है। आईंस्टाईन ने अपने सापेक्षतावाद के सिद्धांत(Theory of Relativity) मे एक प्रति गुरुत्वाकर्षण प्रभाव को दर्शाने वाला बल ब्रम्हांडिय स्थिरांक (Cosmological Constant) का समावेश किया है। लेकिन आईन्स्टाईन खुद और बाद मे अन्य विज्ञानी भी मानते थे कि यह ब्रम्हांडिय स्थिरांक (Cosmological Constant) एक गणितिय सरलता के लिये ही है जिसका वास्तविकता से काफी कम रिश्ता है। १९९० तक किसी ने भी नही सोचा था कि यह ब्रम्हांडिय स्थिरांक एक सच्चाई भी हो सकता है।
दक्षिण केलीफोर्निया विश्वविद्यालय की वर्जीनिया ट्रीम्बल कहती है “श्याम उर्जा को प्रति गुरुत्वाकर्षण कहना सही नही है। यह बल गुरुत्वाकर्षण के विपरीत कार्य नही करता है। यह ठिक वैसे ही व्यव्हार करता है जैसे सापेक्षकतावाद के सिद्धांत के उसे अनुसार उसे करना चाहिये। सापेक्षतवाद के सिद्धांत के अनुसार इस बल का दबाव ऋणात्मक है।“
उनके अनुसार ” मान लिजिये ब्रम्हाण्ड एक बडा सा गुब्बारा है। जब यह गुब्बारा फैलता है, तब विस्तार से इस श्याम उर्जा का घनत्व कम होता है और गुब्बारा थोडा और फैलता है। ऐसा इसलिये कि श्याम उर्जा से ऋणात्मक दबाव(२) उत्पन्न होता है। जबकि गुब्बारे के अंदर यह गुब्बारे को खिंचने की कोशीश कर रहा है, घनत्व जितना कम होगा यह गुब्बारे को अंदर की ओर कम खिंच पायेगा जिससे विस्तार और ज्यादा होगा। यही प्रक्रिया ब्रम्हाण्ड के विस्तार मे हो रही है।”
सुपरनोवा का उदाहरण यह बताता है कि ब्रम्हांड के विस्तार का त्वरण(acceleration) ५ खरब वर्ष पहले शूरू हुआ था। उस समय आकाशगंगाये इतनी दूरी पर जा चुकी थी कि गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव से श्याम उर्जा का प्रभाव ज्यादा हो चुका था।(ध्यान रहे गुरुत्वाकर्षण बल विभिन्न पिण्डो अपनी तरफ खिंचता है, श्याम उर्जा वही उन्हे एक दूसरे से दूर ले जाती है।) उस समय के पश्चात श्याम उर्जा के प्रभाव से ब्रम्हांड के विस्तार की गति बढते जा रही है। अब ऐसा प्रतित हो रहा है कि यह गति अनिश्चित काल के लिये बढते जायेगी। इसका मतलब यह है कि आज की तुलना मे खरबो वर्षो बाद हर आकाशिय पिंड एक दूसरे तेज और तेज दूर होते जायेगा और हम अकेले रह जायेंगे।
श्याम उर्जा के इस नये सिद्धांत ने वैज्ञानिको को थोडा निराश किया है, उन्हे एक अप्रत्याशीत और एकदम नये ब्रम्हांड की अवधारणा को स्विकारना पडा है। वे पहले ही एक श्याम पदार्थ(Dark Matter) की अवधारणा को मान चुके है। आज की गणना के अनुसार यह श्याम पदार्थ , वास्तविक पदार्थ से कहीं ज्यादा है। यह एक ऐसा पदार्थ है जिसे आज तक किसी प्रयोगशाला मे महसूस नही किया गया है लेकिन इसके होने के सबुत पाये गये है। अब श्याम उर्जा का आगमन जख्मो पर नमक छिडकने के समान है।
अंतरिक्ष विज्ञानीयो के अनुसार ब्रम्हांड तिन चिजो से बना है साधारण पदार्थ , श्याम पदार्थ और श्याम उर्जा। हम सिर्फ साधारण पदार्थ के बारे मे जानते है। ब्रम्हाडं का ९०-९५% भाग ऐसे दो पदार्थो से बना है जिसके बारे मे कोई नही जानता , यह सुनकर आप कैसा महसूस करते है ?
क्वांटम भौतिकी को समझने के लिये दो पिढीया लग गयी। यह समय उस विज्ञान के बारे मे था जिसे हम प्रयोगशाला मे प्रयोग कर के सिद्ध कर सकते थे। एक ऐसे पदार्थ और उर्जा को समझना जिसे देखा नही जा सकता, प्रयोगशाला मे बनाया नही जा सकता कितना कठीन है ?
लेकिन श्याम उर्जा ने एक ऐसे रहस्य को सुलझा दिया है जो ब्रम्हांडिय विकीरण ने उत्पन्न किया था। ब्रम्हाण्डीय विकीरण की तिव्रता के विचलन पर हाल ही के प्रयोगो से प्राप्त आंकडे ब्रम्हांड के अनंत विस्तार के सिद्धांत का प्रतिपादन करते हैं। लेकिन वैज्ञानिको के लिये इस विस्तार के पिछे कारणीभूत बल एक पहेली था, श्याम उर्जा शायद इसी का हल है।
श्याम उर्जा का आस्तित्व चाहे किसी भी रूप मे गणना की गयी ब्रम्हांड की ज्यामिती और ब्रम्हांड के कुल पदार्थ की मात्रा के संतुलन के लिये जरूरी है। ब्रम्हांडीय विकीरण (cosmic microwave background (CMB)), की गणना यह संकेत देती है की ब्रम्हांड लगभग सपाट(Flat) है। ब्रम्हाण्ड के इस आकार के लिये , द्रव्यमान और उर्जा का अनुपात एक निश्चित क्रान्तिक घनत्व(Critical Density) के बराबर होना चाहिये। ब्रम्हाण्ड के कुल पदार्थ की मात्रा (बायरान और श्याम पदार्थ को मिला कर), ब्रम्हांडीय विकीरण की गणना के अनुसार क्रान्तिक घनत्व का सिर्फ ३०% ही है। इसका मतलब यह है कि श्याम उर्जा ब्रम्हांड के कुल द्रव्यमान का ७०% होना चाहीये।
हाल के अध्यन से ज्ञात हुआ है कि ब्रम्हांड का निर्माण ७४% प्रतिशत श्याम उर्जा से, २२% श्याम पदार्थ से और सिर्फ ४% साधारण पदार्थ से हुआ है। और हम इसी ४% साधारण पदार्थ के बारे मे जानते है।
श्याम उर्जा की प्रकृती एक सोच का विषय है। यह समांगी, कम घन्तव का बल है जो गुरुत्वाकर्षण के अलावा किसी और मूलभूत बलो(३) से कोई प्रतिक्रिया नही करता है। इसका घन्तव काफी कम है लगभग १०-२९ g/cm3 ।इसकी प्रयोगशाला मे जांच लगभग असंभव ही है।
(१)

sam_shp
23-11-2010, 05:35 AM
श्याम उर्जा को समझाने के लिये सबसे ज्यादा मान्य सिद्धांत है ब्रम्हाण्डिय स्थिरांक सिद्धांत:
यह आईन्स्टाईन द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत है। यह एक दम सरल है, इसके अनुसार अंतराल मे (Volume of Space) मे एक अंतस्थ मूलभूत उर्जा होती है। यह एक ब्रम्हाण्डिय स्थिरांक है जिसे लैम्डा कहते है। द्रव्यमान और उर्जा का ये आईन्सटाईन के समीकरण e=mc2 के द्वारा संबधीत है, इससे यह साबीत होता है कि ब्रम्हाण्डिय स्थिरांक पर गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव होना चाहिये। इसे कभी कभी निर्वात उर्जा (Vacuum Energy) भी कहते है क्योंकि यह निर्वात की उर्जा का घनत्व है। वैज्ञानिको की गणना के अनुसार ब्रम्हाण्डिय स्थिरांक का मूल्य १०-२९ g/cm3 है।
ब्रम्हाण्डिय स्थिरांक एक ऋणात्मक दबाव वाला बल है जो अपने उर्जा घन्तव के बराबर होता है, इसी वजह से यह ब्रम्हांड के विस्तार को त्वरण देता है।
श्याम उर्जा का ब्रम्हांड के भविष्य पर प्रभाव
जैसा कि हम पहले देख चुके है सुपरनोवा का उदाहरण यह बताता है कि ब्रम्हांड के विस्तार का त्वरण(acceleration) ५ खरब वर्ष पहले शूरू हुआ था। इसके पहले यह सोचा जाता था कि ब्रम्हांड के विस्तार की गति बायरानीक और श्याम पदार्थ के गुरुत्वाकर्षण के फलस्वरूप कम हो रही है। विस्तारीत होते ब्रम्हांड मे श्याम पदार्थ का घन्तव का श्याम उर्जा की तुलना मे ज्यादा तिव्रता से ह्रास होता है। जिससे श्याम उर्जा का पलडा भारी रहता है। जब ब्रम्हाण्ड का आकार दूगुणा हो जाता है श्याम पदार्थ का घन्तव आधा हो जाता है जबकी श्याम उर्जा का घनत्व ज्यों का त्यों रहता है। सापेक्षतावाद के सिद्धांत के अनुसार तो यह ब्रम्हांडिय स्थिरांक (Cosmological Constant) है।
यदि विस्तार की गति इस तरह से बढती रही तो आकाशगंगाये ब्रम्हांडीय क्षितीज के पार चली जायेंगी और दिखायी देना बंद हो जायेंगी। ऐसा इसलिये होगा कि उनकी गति प्रकाश की गति से ज्यादा हो जायेगी। यह सापेक्षतावाद के नियम का उलंघन नही है। पृथ्वी, अपनी आकाशगंगा मंदाकिनी को कोई असर नही पडेगा लेकिन बाकि का सारा ब्रम्हांड दूर चला जायेगा।
ब्रम्हांड के अंत के बारे कुछ कल्पनाये है जिसमे से एक है कि श्याम उर्जा का प्रभाव बढते जायेगा, और एक समय यह केन्द्रीय बलो और अन्य मूलभूत बलो से भी ज्यादा हो जायेगा। इस स्थिती मे श्याम उर्जा सौर मंडल, आकाशगंगा, कोई भी पिंड से लेकर अणु परमाणु सभी को विखंडीत कर देगी। यह स्थिती महाविच्छेद (Big Rip) की होगी।
दूसरी कल्पना महासंकुचन(Big Crunch)की है, इसमे श्याम उर्जा का प्रभाव एक सीमा के बाद खत्म हो जायेगा और गुरुत्वाकर्षण उस पर हावी हो जायेगा। यह एक संकुचन की प्रक्रिया को जन्म देगा। अंत मे एक महासंकुचन से सारा ब्रम्हाण्ड एक बिंदू मे तब्दिल हो जायेगा| यह बिंदू एक महाविस्फोट से एक नये ब्रम्हांड को जन्म देगा।
श्याम पदार्थ

(१)सुपरनोवा- कुछ तारो के जिवन काल के अंत मे जब उनके पास का सारा इण्धन (हायड्रोजन) जला चुका होता है,उनमे एक विस्फोट होता है। यह विस्फोट उन्हे एक बेहद चमकदार तारे मे बदल देता है जिसे सुपरनोवा या नोवा कहते है।
(२)ऋणात्मक दबाव – यह वह दबाव को कहते जो आसपास के द्रव (जैसे वायु) के दबाव कम होता है।
(३) मूलभूत बल : गुरुत्वाकर्षण, विद्युत चुंबकिय बल, कमजोर केन्द्रीय बल, मजबूत केन्द्रीय बल
(२)

sam_shp
23-11-2010, 05:37 AM
डाप्लर प्रभाव तथा लाल विचलन


डाप्लर प्रभाव डापलर प्रभाव यह किसी तरंग(Wave) की तरंगदैधर्य(wavelength) और आवृत्ती(frequency) मे आया वह परिवर्तन है जिसे उस तरंग के श्रोत के पास आते या दूर जाते हुये निरीक्षक द्वारा महसूस किया जाता है। यह प्रभाव आप किसी आप अपने निकट पहुंचते वाहन की ध्वनी और दूर जाते वाहन की ध्वनी मे आ रहे परिवर्तनो से महसूस कर सकते है।
http://static.flickr.com/65/228146436_ce87269d1d_m.jpg
इसे वैज्ञानिक रूप से देंखे तो होता यह है कि आप से दूर जाते वाहन की ध्वनी तरंगो(Sound waves) का तरंगदैधर्य(wavelength)बढ जाती है, और पास आते वाहन की ध्वनी तरंगो(Sound waves) का तरंगदैधर्य कम हो जाती है। दूसरे शब्दो मे जब तरंगदैधर्य(wavelength) बढ जाती है तब आवृत्ती कम हो जाती है और जब तरंगदैधर्य(wavelength) कम हो जाती है आवृत्ती बढ जाती है।

एक आसान उदाहरण लेते है, मान लिजीये एक खिलाडी दूसरे खिलाडी की ओर हर सेकंड एक गेंद फेंक रहा है। दूसरा खिलाडी यदि अपनी जगह पर ही खडा हो तो वह हर सेकंड एक गेंद प्राप्त करेगा। यदि गेंद झेलने वाला खिलाडी फेंकने वाले खिलाडी से दूर जाये तो उसे प्राप्त होने वाली गेंदो के अंतराल मे बढोत्तरी होगी यानी उसे हर सेकंड प्राप्त होने वाली गेंदो मे कमी आयेगी। विज्ञान की भाषा मे गेंद प्राप्त करने की आवृत्ती (frequency) मे कमी आयेगी। यदि गेंद झेलने वाला खिलाडी फेंकने वाले खिलाडी के पास आये तो गेंद प्राप्त करने की आवृत्ती मे बढोत्तरी होगी। ध्यान दिजिये श्रोत की गेंद फेंकने की आवृत्ती मे कोई बदलाव नही आ रहा है

यही प्रभाव कीसी भी तरंग (ध्वनी/प्रकाश/क्ष किरण/गामा किरण) पर होता है। तरंग श्रोत से दूर जाने पर उसकी आवृत्ती मे कमी आती है अर्थात तरंगदैधर्य मे बढोत्तरी होते है। तरंग श्रोत के पास आने पर उसकी आवृत्ती मे बढोत्तरी होती है अर्थात तरंगदैधर्य मे कमी आती है।

लाल विचलन (Red Shift)
http://static.flickr.com/58/228143571_f189423732_m.jpg
लाल विचलन यह वह प्रक्रिया जिसमे किसी पिंड से उत्सर्जीत प्रकाश वर्णक्रम मे लाल रंग की ओर विचलीत होता है। वैज्ञानिक तौर से यह उत्सर्जीत प्रकाश किरण की तुलना मे निरिक्षित प्रकाश किरण के तरंग दैधर्य मे हुयी बढोत्तरी या उसकी आवृती मे कमी है। दूसरे शब्दो मे प्रकाश श्रोत से प्रकाश के पहुंचने तक प्रकाश किरणो के तरंग दैधर्य मे हुयी बढोत्तरी या उसकी आवृती मे कमी होती है।
प्रकाश किरणो मे लाल रंग की प्रकाश किरणो का तरंग दैधर्य सबसे ज्यादा होता है, इसलिये किसी भी रंग की किरण का वर्णक्रम मे लाल रंग की ओर विचलन ‘लाल विचलन‘ कहलाता है। यह प्रक्रिया अप्रकाशिय किरणो (गामा किरणे, क्ष किरणे, पराबैगनी किरणे) के लिये भी लागु होती है और इसी नाम से जानी जाती है। किरणे जिनका तरंग दैधर्य लाल रंग की किरणो से भी ज्यादा होता है(अवरक्त किरणे(infra red), सुक्षम तरंग तरंगे(Microwave), रेडीयो तरंगे) यह विचलन लाल रंग से दूर होता है।

सामान्यतः लाल विचलन उस समय होता है जब प्रकाश श्रोत प्रकाश निरिक्षक से दूर जाता है, बिलकुल ध्वनी किरणो के डाप्लर सिद्धांत की तरह ! यह सिद्धांत खगोल शास्त्र मे आकाशिय पिंडो की गति और दूरी को मापने के लिये उपयोग मे लाया जाता है।

laddi
23-11-2010, 11:34 PM
मुझे ब्लैक होल के बारे में जानना है
यह कैसे बनते हैं कैसे किसी को निगल जाते है सब कुछ !!!!!!!!!!!

sam_shp
24-11-2010, 08:57 AM
मुझे ब्लैक होल के बारे में जानना है
यह कैसे बनते हैं कैसे किसी को निगल जाते है सब कुछ !!!!!!!!!!!
जरुर ....जरुर .लेकिन थोडा सा इंतजार करना पड़ेगा....इस टोपिक के बाद इस विषय के रिलेटेड टोपिक होंगे.......और फ़िलहाल मै भारत के दौरे पर भी हूँ फिर भी मै कोशिश करूँगा की आपको ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ेगा....
धन्यवाद.

munneraja
24-11-2010, 04:49 PM
ब्लैक होल के बारे में संक्षिप्त में मैं बता देता हूँ
किसी भी तारे का गुरुत्वाकर्षण इतना बढ़ जाता है कि वो अपने गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में आने वाली सभी चीजों को अपने में समां लेता है या निगल जाता है. यहाँ तक कि प्रकाश की किरणे तक इसके गुरुत्वाकर्षण से बहार नहीं आ पाती इसलिए ये काले दिखाई देते हैं अर्थात सिर्फ अहसास होता है कि यहाँ कुछ है जहां से प्रकाश बाहर नहीं आ पा रहा है.
गुरुत्वाकर्षण के अत्यधिक बढ़ जाने से हर वस्तु अपने स्वरूप से कहीं छोटी हो जाती है क्योंकि द्रव्य एकदम सिकुड़ जाता है, उसमे कहीं कोई खाली स्थान शेष ही नहीं रहता है.

munneraja
24-11-2010, 04:54 PM
ये बनते कैसे हैं - इसका अभी तक कोई स्पष्ट कारण तो ज्ञात नहीं है लेकिन फिर भी तारे की साइज का बड़ा होना और या फिर दो बड़े तारों का पास आना एक कारण माना जाता है. क्योंकि गुरुत्वाकर्षण के बल अधिक हो जाने से ये अन्य द्रव्य को अपनी ओर खींचने लगते हैं.

आप एक बात को स्पष्ट कर पाएंगे कि इसमें समां जाने वाला द्रव्यमान कितना हो जाता होगा अर्थात इसमें समां जाने वाले द्रव्य का साइज क्या हो जाता होगा ?
हर वस्तु में से खाली स्थान का गायब होना फिर अणु और परमाणु में बदल जाना और फिर इलेक्ट्रोंस में .......
एक बार सोचिये और बताइए
फिर इस पर और चर्चा करते हैं.......:thinking:

munneraja
24-11-2010, 05:08 PM
http://www.youtube.com/watch?v=hoLvOvGW3Tk&feature=player_embedded#!

चलिए आपको एक हिंट देता हूँ
ऊपर लिंक दिया है
उसको देखकर आप क्या कहते हैं ??

laddi
25-11-2010, 12:03 AM
येही तो मैं भी जानना चाहता हूँ की मान लो अगर धरती किसी ब्लैक होल में जाती है उस का क्या होगा??????????
लोग कहाँ जायेंगे????????????
क्या किसी दूसरी और दरवाज़ा खुलेगा या सब कुछ जल जायेगा ????????????????

amit_tiwari
25-11-2010, 08:31 AM
येही तो मैं भी जानना चाहता हूँ की मान लो अगर धरती किसी ब्लैक होल में जाती है उस का क्या होगा??????????
लोग कहाँ जायेंगे????????????
क्या किसी दूसरी और दरवाज़ा खुलेगा या सब कुछ जल जायेगा ????????????????

जलने के लिए कुछ बचेगा तब ना भाई !!!

ब्लैक होल वो टूटे तारे हैं जिनकी गुरुत्वाकर्षण शक्ति और घनत्व बहुत अधिक होती है, गुरुत्वाकर्षण शक्ति इतना अधिक की प्रकाश को भी खीच लेते हैं और घनत्व इतना अधिक की किसी ब्लैक हो की एक चम्मच मिटटी का भार ७.८ टन तक हो सकता है |
एक छोटे से उदाहरण से यह बात शायद स्पष्ट हो जाये की यदि प्रथ्वी जैसे बड़े गोले को हम दबा दबा कर एक कंचे के जितना बना सकें तब यह ब्लैक होल बनेगा |

आपके प्रश्न का उत्तर : यदि किसी समय ऐसा वास्तव में हो जाये की सौर मंडल किसी ब्लैक होल की चपेट में आ जाये तो .... ब्लैक होल के एक प्रकाशवर्ष दूर होने पर भी मौसम बदलने लगेगा | सूर्य अपने अधिक भार के कारण अधिक गति से ब्लैक होल की तरफ खिचेगा, जिससे सारे ग्रहों का संतुलन बिगड़ जायेगा प्रथ्वी पर या तो १००-२०० डिग्री की गर्मी होगी या फिर -२०० डिग्री की सर्दी | इससे भी मानव बच गए तो जल्दी ही सूरज अपनी अतिरेकी प्रतिक्रियाओं से हमारे ओजोन मंडल और मैग्नेटिक फील्ड को ख़त्म कर देगा | नतीजा सारी आबादी स्किन कैंसर से मारी जाएगी | अभी भी कोई बच गया तो समाप्त होता हुआ वायुमंडल दम घोट देगा | यदि फिर भी कोई बच गया तो जल्दी ही धरती का गुरुत्वाकर्षण बल हमें धरती पर थामें रखने में असमर्थ हो जायेगा और हर चीज सीधे ब्रम्हांड में उड़ जाएगी जहां -२७० डिग्री की सर्दी हर चीज जमा देगी |
तो अच्छी बात ये है की हम ब्लैक होल में नहीं जायेंगे और बुरी बात ये है की हम बचेंगे भी नहीं |

और एक सबसे अच्छी बात ये है की अभी निकट १०,००० साल तक ऐसा कुछ होने के आसार बहुत बहुत कम हैं ( यदि वैज्ञानिकों के अन्वेषण सही हैं तो )

-अमित

laddi
25-11-2010, 05:12 PM
बहुत बहुत शुक्रिया अमित भाई आप ने मेरे सवाल का उतर दिया अब मैं सब कुछ समझ गया हूँ
पर फिर भी और जानने की मेरी तमना है विज्ञान में मेरी हमेशा से रूचि रही है
क्लास के किताब नहीं सिर्फ जेनरल नोलेज के लिए

amit_tiwari
25-11-2010, 05:44 PM
बहुत बहुत शुक्रिया अमित भाई आप ने मेरे सवाल का उतर दिया अब मैं सब कुछ समझ गया हूँ
पर फिर भी और जानने की मेरी तमना है विज्ञान में मेरी हमेशा से रूचि रही है
क्लास के किताब नहीं सिर्फ जेनरल नोलेज के लिए


लड्डी भाई ये ऐसा विषय है जिस पर मैंने अपने जीवन का सबसे अधिक समय लगाया है | यद्यपि यह ना तो मेरे कोलेज का विषय था ना ही मेरे कार्य से जुदा है फिर भी बस रूचि के कारण तो आप जो भी जानना चाहते हैं निःसंकोच पूछे मुझे बताने में ख़ुशी होगी | :cheers::cheers:

sam_shp
01-01-2011, 09:25 PM
क्या समय यात्रा संभव है ?
एच जी वेल्स के उपन्यास "ध टाईम मशीन"मे नायक एक विशेष कुर्सी पर बैठता है जिसपर कुछ जलते बुझते बल्ब लगे होते है,कुछ डायल होते है , नायक डायल सेट करता है, कुछ बटन दबाता है और अपने आपको भविष्य के हजारो वर्षो बाद मे पाता है।

http://vigyan.files.wordpress.com/2010/12/timemachine.jpg?w=223&h=226 (http://vigyan.files.wordpress.com/2010/12/timemachine.jpg)
समय यान (Time Machine)- २००२ मे बनी हालीवुड की फिल्म मे दिखाया समय यान


उस समय तक इंग्लैड नष्ट हो चुका होता है और वहां पर मार्लाक और एलोई नामक नये प्राणीयो का निवास होता है। यह विज्ञान फतांसी की एक महान कथा है लेकिन वैज्ञानिको ने समय यात्रा की कल्पना या अवधारणा पर कभी विश्वास नही किया है। उनके अनुसार यह सनकी,रहस्यवादी और धुर्तो के कार्यक्षेत्र की अवधारणा है , उनके पास ऐसा मानने के लिये ठोस कारण भी है। लेकिन क्वांटम गुरुत्व (Quantum Gravity)मे आश्चर्यजनक रूप से प्रगति इस अवधारणा की चूलो को हिला रही है।
समय यात्रा की अवधारणा की राह मे सबसे बड़ा रोड़ा इससे जुड़े पहेलीयो जैसे ढेर सारे विरोधाभास(Paradox) है। उदाहरण के लिये एक विरोधाभास है जिसके अनुसार कोई व्यक्ति बिना माता पिता के भी हो सकता है। क्या होगा जब कोई व्यक्ति भूतकाल मे जाकर अपने पैदा होने से पहले अपने माता पिता की हत्या कर दे ? प्रश्न यह है कि यदि उसके मातापिता उसके जन्म से पहले मर गये तो उनकी हत्या करने के लिये वह व्यक्ति पैदा कैसे हुआ ? ऐसा ही एक विरोधाभास है जिसमे एक व्यक्ति का कोई भूतकाल नही है। उदाहरण के लिये मान लेते है कि एक युवा अविष्कारक अपने गैराज मे बैठकर समययान मशीन बनाने की कोशीश कर रहा है। अचानक एक वृद्ध व्यक्ति उसके सामने प्रकट होता है और उसे समययान बनाने की विधी देकर अदृश्य हो जाता है। युवा आविष्कारक समय यात्रा से प्राप्त जानकारीयो से शेयर मार्केट, घुड़्दौड़, खेलो के सट्टे से काफी सारा पैसा कमाकर अरबपति बन जाता है। जब वह बूढा हो जाता है तब वह समययात्रा कर भूतकाल मे जाकर अपने ही युवावस्था को समययान बनाने की विधी देकर आता है। प्रश्न यह है कि समययान बनाने की विधी कहां से आयी ?
एक और विरोधाभास है जिसमे एक व्यक्ति अपनी ही माता है। ’जेन’ को एक अनाथालय मे एक अजनबी छोड़ गया था। जब जेन युवा होती है उसकी मुलाकात एक अजनबी से होती है, उस अजनबी के संसर्ग से जेन गर्भवती हो जाती है। उस समय एक दुर्घटना घटती है। जेन एक बच्ची को जन्म देते समय मरते मरते बचती है लेकिन बच्ची का रहस्यमय तरिके से अपहरण हो जाता है। जेन की जान बचाते समय डाक्टरो को पता चलता है कि जेन के पुरुष और महिला दोनो जननांग है। डाक्टर जेन को बचाने के लिये उसे पुरुष बना देते है। अब जेन बन जाती है “जिम”।इसके बाद जिम शराबी बन जाता है। एक दिन उसे भटकते हुये एक शराबखाने मे एक बारटेंडर मिलता है जो कि एक समययात्री होता है। जिम उस समययात्री के साथ भूतकाल मे जाता है वहां उसकी मुलाकात एक लड़की से होती है। वह लड़की जिम के संसर्ग मे गर्भवती हो जाती है और एक बच्ची को जन्म देती है। अपराध बोध मे जिम उस नवजात बच्ची का अपहरण कर उसे एक अनाथालय मे छोड़ देता है। बाद मे जिम समययात्रीयो के दल मे शामिल हो जाता है और भटकती जिन्दगी जिता है। कुछ वर्षो बाद उसे एक दिन उसे सपना आता है कि उसे बारटेंडर बनकर भूतकाल मे एक जिम नामके शराबी से मिलना है। प्रश्न : जेन की मां, पिता, भाई, बहन, दादा, दादी, बेटा,बेटी, नाती, पोते कौन है?

इन्ही सभी विरोधाभासो के चलते समययात्रा को असंभव माना जाता रहा है। न्यूटन ने समय को एक बाण के जैसा माना था, जिसे एक बार छोड़ दिया तब वह एक सीधी रेखा मे चलता जाता है। पृथ्वी पर एक सेकंड, मंगल पर एक सेकंड के बराबर था। ब्रम्हाण्ड मे फैली हुयी घड़ीयां एक गति से चलती थी। आइंसटाईन ने एक नयी क्रांतिकारी अवधारणा को जन्म दिया। उनके अनुसार समय एक नदी के प्रवाह के जैसे है जो सितारो, आकाशगंगाओ के घुमाओ से बहता है, इसकी गति इन पिंडो के पास से बहते हुये कम ज्यादा होती रहती है। पृथ्वी पर एक सेकंड मंगल पर एक सेकंड के बराबर नही है। ब्रम्हाण्ड मे फैली हुयी घड़ीयां अपनी अपनी गति से चलती है। आइंस्टाईन की मृत्यु से पहले उन्हे एक समस्या का सामना करना पडा था। आइंस्टाइन के प्रिंसटन के पड़ोसी कर्ट गोएडल (जो शायद पिछले ५०० वर्षो के सर्वश्रेष्ठ गणितिय तर्क शास्त्री है) ने आईन्स्टाईन के समिकरणो का एक ऐसा हल निकाला जो समय यात्रा को संभव बनाता था। समय की इस नदी के प्रवाह मे अब कुछ भंवर आ गये थे जहां समय एक वृत्त मे चक्कर लगाता था ! गोयेडल का हल शानदार था, वह हल एक ऐसे ब्रम्हांड की कल्पना करता था जो एक घुर्णन करते हुये द्रव से भरा है। कोई भी इस द्रव के घुर्णन की दिशा मे चलता जायेगा अपने आपको प्रारंभिक बिन्दू पर पायेगा लेकिन भूतकाल मे !
अपने वृत्तांत मे आईन्स्टाईन ने लिखा है कि वे अपने समिकरणो के हल मे समययात्रा की संभावना से परेशान हो गये थे। लेकिन उन्होने बाद मे निष्कर्ष निकाला कि ब्रम्हाण्ड घुर्णन नही करता है, वह अपना विस्तार करता है(महाविस्फोट – Big Bang Theory)। इस कारण गोएडल के हल को माना नही जा सकता। स्वाभाविक है कि यदि महाविस्फोट घुर्णन करता होता तब समय यात्रा सारे ब्रम्हाण्ड मे संभव होती।
१९६३ मे न्युजीलैंड के एक गणितज्ञ राय केर ने घुर्णन करते हुए ब्लैक होल के लिये आइंसटाईन के समिकरणो का हल निकाला। इस हल के कुछ विचित्र गुणधर्म थे। इसके अनुसार घुर्णन करता हुआ ब्लैक होल एक बिन्दू के रूप मे संकुचित ना होकर एक न्युट्रान के घुमते हुये वलय के रूप मे होगा। यह वलय इतनी तेजी से घुर्णन करेगा कि अपकेन्द्री बल(centrifugal force) इसे एक बिन्दू के रूप मे संकुचित नही होने देगा। यह वलय एक तरह से एलीस के दर्पण के जैसे होगा। इस वलय मे से जानेवाला यात्री मरेगा नही बल्कि एक दूसरे ब्रम्हाण्ड मे चला जायेगा। इसके पश्चात आईन्सटाईन के समीकरणॊ के ऐसे सैंकड़ो हल खोजे जा चूके है जो समय यात्रा या अंतंरिक्षिय सूराखो(Wormholes)की कल्पना करते है।

http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/a/af/Worm3.jpg/275px-Worm3.jpgअंतरिक्षिय सूराख (Wormhole)

ये अंतरिक्षिय सूराख ना केवल अंतरिक्ष के दो स्थानो को जोड़ते है बल्कि दो समय क्षेत्रो को भी जोड़ते है। तकनिकि रूप से इन्हे समय यात्रा के लिये प्रयोग किया जा सकता है। हाल ही मे क्वांटम सिद्धांत मे गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को जोड़ने के जो प्रयास हुये है उपर दिये गये विरोधाभासो के बारे मे कुछ और जानकारी दी है। क्वांटम भौतिकि मे किसी भी वस्तु की एक से ज्यादा अवस्था हो सकती है। उदाहरण के लिये एक इलेक्ट्रान एक समय मे एक से ज्यादा कक्षा मे हो सकता है(इसी तथ्य पर ही सारे रासायनिक सिद्धांत आधारित है)। क्वांटम भौतिकि के अनुसार स्क्राडिंगर की बिल्ली एक साथ दो अवस्था मे हो सकती है, जिवित और मृत। इस सिद्धांत के अनुसार भूतकाल मे जाकर उसमे परिवर्तन करने पर जो परिवर्तन होगे उससे एक समानांतर ब्रम्हाण्ड बनेगा। मौलिक ब्रम्हाण्ड वैसा ही रहेगा।

यदि हम भूतकाल मे जाकर महात्मा गांधी को बचाते है तब हम किसी और के भूतकाल को बचा रहे होंगे, हमारे गांधी फिर भी मृत ही रहेंगे। महात्मा गांधी को हत्यारे से बचाने पर ब्रम्हाण्ड दो हिस्सो मे बंट जायेगा, एक ब्रम्हाण्ड जहां गाधींजी की हत्या नही हुयी होगी, दूसरा हमारा मौलिक ब्रम्हाण्ड जंहा गांधीजी की हत्या हुयी है। इसका मतलब यह नही कि हम एच जी वेल्स के समय यान मे प्रवेश कर समय यात्रा कर सकते है! अभी भी कई रोड़े है !

पहली, मुख्य समस्या है उर्जा ! एक कार के लिये जिस तरह पेट्रोल चाहीये उसी तरह समययान के लिये काफी सारी मात्रा मे उर्जा चाहिये! इतनी मात्रा मे उर्जा प्राप्त करने के लिये हमे किसी तारे की संपूर्ण उर्जा का उपयोग करने के तरिके सीखने होगें या असाधारण पदार्थ जैसे ऋणात्मक पदार्थ (Negative Matter) (ऐसा पदार्थ जो गुरुत्वाकर्षण से उपर जाये, निचे ना गिरे) खोजना होगा या ऋणात्मक उर्जा(Negative Energy) का श्रोत खोजना होगा। (ऐसा माना जाता था कि ऋणात्मक उर्जा असंभव है लेकिन अल्प मात्रा मे ऋणात्मक उर्जा का प्रयोगिक सत्यापन कैसिमिर प्रभाव (Casimir effect)[/URL] से हो चूका है।) ऋणात्मक उर्जा का बड़े पैमाने पर उत्पादन कम से कम अगली कुछ शताब्दीयो तक संभव नही है। ऋणात्मक पदार्थ अभी तक खोजा नही गया है। ध्यान दे ऋणात्मक पदार्थ प्रतिपदार्थ (Antimatter) (http://en.wikipedia.org/wiki/Casimir_effect) या श्याम पदार्थ (Dark matter)नही है।
इसके अलावा समस्या स्थायित्व की भी है। केर का ब्लैक होल अस्थायी हो सकता है, यह किसी के प्रवेश करने से पहले ही बंद हो सकता है। क्वांटम भौतिकि के अंतिरिक्षिय सूराख भी किसी के प्रवेश करने से पहले बंद हो सकते है। दुःर्भाग्य से हमारी गणित इतनी विकसित नही हुयी है कि वह इन अंतिरिक्षिय सूराखो(Wormholes) के स्थायित्व की गणना कर सके क्योंकि इसके लिये हमे “थ्योरी आफ एवरीथिंग(Theory of Everything)” चाहिये जो गुरुत्व और क्वांटम भौतिकि के सिद्धांतो का एकीकरण कर सके। अभी तक थ्योरी आफ एवरीथिंग का एक ही पात्र सिद्धांत है सुपरस्ट्रिंग थियरी (Super String Theory)। यह एक ऐसा सिद्धांत है जो अच्छी तरह से परिभाषित अवश्य है लेकिन इसका हल अभी तक किसी के पास नही है।

http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/5/5e/BH_LMC.png/300px-BH_LMC.pngस्याम विवर (Black Hole)

मजेदार बात यह है कि स्टीवन हान्किंग ने समय यात्रा की अवधारणा का विरोध किया था। उन्होने यह भी कहा था कि उनके पास इसके अनुभवजन्य प्रमाण है। उनके अनुसार यदि समय यात्रा संभव है, तब भविष्य से आने वाले समय यात्री कहां है ? भविष्य से कोई यात्री नही है, इसका अर्थ है समय यात्रा संभव नही है। लेकिन पिछले कुछ वर्षो मे[U] सैधांतिक भौतिकी मे काफी नयी खोज हुयी है ,जिससे प्रभावित होकर हाकिंग ने अपना मत बदल दिया है। अब उनके अनुसार समय यात्रा संभव है लेकिन प्रायोगिक(practical) नही !
हमारे पास भविष्य से यात्री इस कारण नही आते होंगे क्योंकि हम इतने महत्वपूर्ण नही है। समय यात्रा कर सकने में सफल सभ्यता काफी विकसीत होगी, वह किसी तारे की सम्पूर्ण ऊर्जा के दोहन में सक्षम होगी। जो भी सभ्यता किसी तारे की उर्जा पर नियंत्रण कर सकती है उनके लिये हम एक आदिम सभ्यता से बढकर कुछ नही है। क्या आप चिंटीयो को अपना ज्ञान, औषधी या उर्जा देते है ? आपके कुछ दोस्तो को तो शायद उनपर पैर रख कर कुचलने की ईच्छा होती होगी।
कल कोई आपके दरवाजे पर दस्तक दे और कहे कि वह भविष्य से आया है और आपके पोते के पोते का पोता है तो दरवाजा बंद मत करिये। हो सकता है कि वह सही हो।