PDA

View Full Version : विभिन्न ब्रतकथा,आरती,चालीसा


ABHAY
22-11-2010, 05:06 PM
श्री शनि चालीसा
स्तुति


ऊ शत्रो देवीरभिष्ट आहो भवन्तु पीतये।
शं योरभिःस्त्रवन्तु नः॥

दोहा

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।???
दीनन के दुख दूर करि,। कीजै नाथ निहाल॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥

जयति जयति शनिदेव दयाला। करत यदा भक्तन प्रतिपाला॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै। माथे रतन मुकुट छवि छाजै॥

परम विशाल मनोहर भाला। टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला।
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके। हिये माल मुक्तत मणि दमके॥
कर में गदा त्रिशुल कुठारा। पल विच करैं आरिहिं संहारा॥
पिंगल, कृष्णों, छाया, नन्दन। यम कोणस्थ, रौद्र, दुःखभंजन॥
सौरी, मन्द, शनि दशनामा। भानु पुत्र पूजहिं सब कामा।
जा पर प्रभु प्रसन्न है जाहीं। रकंहुं राव करै क्षण माहीं॥
पर्वतहू तृण होई निहारत। तृणहू को पर्वत करि डारत॥
राज मिलत बन रामहिं दीन्हो। कैकेइहुं की मति हरि लीन्हों॥
बनहूं में मृग कपट दिखाई। मातु जानकी गई चतुराई॥
लखनहिं शक्ति विकल करि डारा। मचिंगा दल में हाहाकारा॥
रावण की गति मति बौराई। रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥
दियो कीट करि कंचन लंका। बजि बजरंग बीर की डांका॥
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा। चित्र मयूर निगलि गै हारा॥
हार नौलाखा लाग्यो चोरी। हाथ पैर डरवायो तोरी॥
भारी दशा निकृष्ट दिखायो। तेलिहिं घर कोल्हू चनवायो॥
विनय राग दीपक महं कीन्हों। तब प्रसन्न प्रभु हवै सुख दीन्हों॥
हरिश्रचन्द् नृप नारि बिकानी। आपहु भरे डोम घर पानी॥
तैसे नल पर दशा सिरानी। भूजी मीन कूद गई पानी॥
श्री शंकरहि गहयो जब जाई। पार्वती को सती कराई॥
तनिक विलोकत ही करि रीसा। नभ ठडि गयो गौरिसुत सीसा॥
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी। बची द्रौपदी होति उघारी॥
कौरव के भी गति मारयो। युद्ध महाभारत करि डारयो॥
रवि कहं मुख महं धरि तत्काला। लेकर कूदि परयो पाताला॥

ABHAY
22-11-2010, 05:08 PM
शेष देव-लखि विनती लाई। रवि को मुख ते दियो छुड़ई॥
वाहन प्रभु के सात सुजाना। जग दिग्ज गर्दभ मृग स्वाना॥
जम्बुक सिंह आदि नखधारी। सो फल जज्योतिष कहत पुकारी॥
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवै। हय ते सुख सम्पत्ति उपजावैं॥
गर्दभ हानि करै बहु नष्ट कर डारै। मृग दे कष्ट प्रण संहारै॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी। चोरी आदि होय डर भारी॥
तैसहि चारि चरण यह नामा। स्वर्ण लौह चांजी अरु तामा॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं। धन जन सम्पत्ति नष्ट करावै॥
समता ताम्र रजत शुभकारी। र्स्वण सर्व सुख मंगल कारी॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै। कबहु न दशा निकृष्ट समावै॥
अदभुत नाथ दिखावैं लीला। करै शत्रु के नशि बलि ढीला॥


जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई। विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत। दीप दान दे बहु सुख पावत॥
कहत रामसुन्दर प्रभु दासा। शनि सुमिरत सुख होत प्रकाश॥

दोहा
पाठ शनिचर देव को की विमल तैयार।
करत पाठ चालिस दिन हो भवसागर पार॥

ABHAY
22-11-2010, 05:09 PM
शनि ग्रह के कारकत्व

शनि ग्रह सामान्यतया जिन वस्तुओं का कारक है वे हैं : जड़ता, आलस्य, रुकावट, घोड़ा, हाथी, चमड़ा, बहुत कष्ट, रोग, विरोध, दुःख, मरण, दासी, गधा, अथवा खच्चर, चांडाल, विकृत अंगों वाले व्यक्ति, वनों में भ्रमण करने वाले, डरावनी सूरत, दान, स्वामी, आयु, नपुंसक, दासता का कर्म, अधार्मिक कृत्य, पौरुषहीन, मिथ्या, भाषण, वृद्धावस्था, नसें, परिश्रम, नीच जन्मा, गन्दा कपड़ा, घर, बुरे विचार, दुष्ट व्यक्तियों से मित्रता, काला गन्दा रंग, पाप कर्म, क्रूर कर्म, राख, काले धान्य, मणि, लोहा, उदारता, शूद्र, वैश्य, पिता, प्रतिनिधि, दूसरे कुल की विद्या सीखना, लंगड़ापन, उग्र, कम्बल, जिलाने के उपाय, नीचा दिखाना, कृषि द्वारा जीवन-यापन, शस्त्रागार, जाति से बाहर स्थान वाले, नागलोक, पतन, युद्ध, भ्रमण, शल्य विद्या, सीसा धातु, शक्ति का दुरुपयोग, पुराना तेल, लकड़ी, तामस गुण, विष, भूमि पर भ्रमण, कठोरता, डर, अटपटे बाल, सार्वभौम सत्ता, बकरा, भैंस आदि, वस्त्रों से सजाना, यमराज का पुजारी, कुत्ता, चोरी, चित्त की कठोरता आदि। शनि ग्रह जन्मकुंडली, में शुभ स्थिति में हो तो वह व्यक्ति को दीर्घायु, कठोर और लम्बे समय तक परिश्रम करने की क्षमता देने वाला, धनवान, कुशल राजनीतिज्ञ, धार्मिक विचारों वाला, पैतृक सम्पत्ति व वाहनों से युक्त, गंभीर, शत्रुनाशक, आविष्कारक और गुप्त विद्याओं का ज्ञाता बनाता है।

ABHAY
22-11-2010, 05:13 PM
शुभ शनि के लिए उपाय

शुभ तथा सम शनि ग्रह के प्रभाव में वृद्धि करने के लिए निम्नलिखित उपाय करें।

१. शनिवार को नीलम रत्न धारण करें। नीलम रत्न चांदी अथवा लोहे की अंगूठी में मध्यमा अंगुली में धारण करना चाहिए। अंगूठी इस प्रकार बनवाएं कि नीलम नीचे से आपकी त्वचा को छूता रहे। नीलम धारण करने से पहले नीलम की अंगूठी अथवा लॉकेट को गंगा जल अथवा कच्चे दूध से धोकर सामने रखकर धूप-दीप आदि दिखाएं और १०८ बार इस मंत्र का जाप करें: क्क शं शनैश्चराय नमः। १०८ बार शिवजी के मंत्र क्क नमः शिवाय का जाप कर लेना भी बहुत लाभदायक माना गया है।

२. शनिवार को नीले वस्त्र धारण करें।

३. घर में नीली चद्दरों तथा पर्दों आदि का प्रयोग करें।

४. शनि ग्रह से संबंधित वस्तुओं का व्यापार करें। शनि ग्रह से संबंधित वस्तुएं हैं :- लोहा, काली उड़द, काला तिल, कुलथी, तेल, भैंस काला कुत्ता, काला घोड़ा, काला कपड़ा, तथा लोहे से बने बर्तन व मशीनरी आदि।

५. साबुत माल की दाल घर में बनाएं।

६. शनिवार को काले घोड़े की नाल की अंगूठी अथवा कड़ा धारण करें।

७. अपने इष्टदेव के सामने सरसों के तेल का दीपक जलाएं।

८. २७ शनिवार सरसों के तेल की मालिश करें।

९. चारपाई अथवा बेड के चारों पायों में लोहे का एक-एक कील लगााएं।

१०. मकान के चारों कोनों में लोहे का एक-एक कील लगाएं।

११. दस मुखी, ग्यारह मुखी, अथवा तेरह मुखी रुद्राक्ष धारण करें।

१२. शिंगणापुर शनिदेव का एक बार दर्शन अवश्य करें।

१३. गीदड़ सिंही अपने घर में रखें।

१४. घर में काला कुत्ता पालें।

१५. शनि ग्रह के प्रभाव में वृद्धि करने के लिए हत्था जोड़ी की जड़ धारण की जाती है। इसे आप शनि की होरा में शनिवार के दिन उखाड़ कर लाएं और सुखाने के उपरान्त शनिवार के दिन स्वच्छ वस्त्र में बांध कर ताबीज के रूप में धारण करें।

ABHAY
22-11-2010, 05:15 PM
अशुभ शनि की पहचान

जन्मकुंडली में शनि ग्रह अशुभ प्रभाव में होने पर व्यक्ति को निर्धन, आलसी, दुःखी, कम शक्तिवान, व्यापार में हानि उठाने वाला, नशीले पदार्थों का सेवन करने वाला, अल्पायु निराशावादी, जुआरी, कान का रोगी, कब्ज का रोगी, जोड़ों के दर्द से पीड़ित, वहमी, उदासीन, नास्तिक, बेईमान, तिरस्कृत, कपटी, अधार्मिक तथा मुकदमें व चुनावों में पराजित होने वाला बनाता है।

शनि ग्रह के अशुभ प्रभावों को दूर करने के लिए निम्नलिखित उपाय करने चाहिएं :
१. शनि ग्रह के तांत्रिक मंत्र का प्रतिदिन १०८ बार पाठ करें। मंत्र है क्क प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः। शनि मन्त्र के अनुष्ठान की मन्त्र जाप संख्या है २३,००० है।

२. शनि ग्रह का यंत्र गले में धारण करें।

३. शनि ग्रह का यंत्र अपने पूजास्थल अथवा घर के मुख्य द्वार पर स्थापित करें।

४. शनि ग्रह की वस्तुओं का दान करें। शनि ग्रह की वस्तुएं हैं काला उड़द, तेल, नीलम, काले तिल, कुलथी, लोहा तथा लोहे से बनी वस्तुएं, काला कपड़ा, सुरमा आदि।

५. शनिवार को कीड़े-मकोड़ों को काले तिल डालें।

६. शनिवार को काली माह (काले उड़द) की दाल पीस कर उसके आटे की गोलियां बनाकर मछलियों को खिलाएं।

७. शनिवार को श्मशान घाट में लकड़ी दान करें।
८. सात शनिवार सरसों का तेल सारे शरीर में लगाकर और मालिश करके साबुन लगााकर नहाएं।

९. शनिवार को शनि ग्रह की वस्तुएं न दान में लें और न ही बाजार से खरीदें।

१०. सात शनिवार को सात बादाम तथा काले उड़द की दाल धर्म स्थान में दान करें।

११. शराब तथा सिगरेट का प्रयोग न करें।

१२. सपेरे को सांप को दूध पिलाने के लिए पैसे दान करें।

ABHAY
22-11-2010, 05:18 PM
१३. शनिवार को व्रत करें। व्रत की विधि इस प्रकार है :
(क) शनिवार को व्रत किसी भी मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से शुरु करें।
(ख) शनि ग्रह का व्रत प्रत्येक शनिवार को ही रखें।
(ग) शनि ग्रह के व्रतों की संख्या कम-से-कम १८ होनी चाहिए। तथापि पूर्ण लाभ के लिए लगातार एक वर्ष तक व्रत रखें।
(घ) भोजन के रूप में उड़द के आटे का बना भोजन, तेल में पकी वस्तु शनिदेव को भोग लगााकर या काले कुत्ते या गरीब को देकर रोज वस्तु का सेवन करें।
(ड़) भोजन का सेवन शनि का दान देने के पश्चात्* ही करें। शनि ग्रह के दान में काले उड़द, सरसों का तेल, तिल, कुलथी, लोहा या लोहे से बनी कोई वस्तु, नीलम रत्न या उसका उपरत्न, भैंस, काले कपड़े सम्मिलित हैं। यह दान दोपहर को या सांयकाल के समय किसी गरीब भिखारी को दें।
(च) भोजन से पूर्व एक बर्तन में भोजन तथा काले तिल या लौंग मिलाकर पश्चिम की ओर मुंह करके पीपल के पेड़ की जड़ में डाल दें।
(छ) व्रत के दिन नमक वर्जित है।
(ज) व्रत के दिन शनि के बीज मंत्र का २३,००० जाप करें या कम-से-कम ८ माला जाप करें।
(झ) व्रत के दिन सिर पर भष्म का तिलक करें तथा काले रंग के कपड़े पहनें।
(ञ) जब व्रत का अन्तिम शनिवार हो तो शनि मंत्र से हवन कराकर भिखारियों या गरीब व्यक्तियों को दान दें।
१४. घर में रोटी बनाकर काली गाय या काले कुत्ते को खिलाएं।

ABHAY
22-11-2010, 05:19 PM
१५. शनि ग्रह की पीड़ा के निवारण के लिए शनि से संबंधित जड़ी बूटियों व औषधियों से स्नान करने का विधान है। यह स्नान सप्ताह में एक बार किया जाता है। औषधियों को अभीष्ट दिन से पूर्व रात्रि में शुद्ध जल में भिगो दें तथा अगले दिन उन्हें छान कर छने हुए द्रव्य को स्नान के जल में मिला कर स्नान करें। शनि ग्रह के लिए काले तिल, शतपुष्पी, काले उड़द, लौंग, लोधरे के फूल तथा सुगन्धित फूलों को औषधियों के रूप में प्रयोग किया जाता है। मानसिक व शारीरिक शांति तथा अनिष्ट फल के निवारण के लिए विधिवत्* स्नान से बहुत लाभ होता है। स्नान से पूर्व जल को इस मंत्र से अभिमंत्रित कर लेना चाहिए :क्कँ द्द्वीं शं शनैश्चराय नमः।

ABHAY
22-11-2010, 05:27 PM
शनिदेव प्रार्थना

हे शनिदेव, तेरी महिमा अपरमपार है।
मेरी तुमसे यही प्रार्थना है मेरे से कभी भी अन्याय,
अत्याचार, दूराचार, पापाचार, व्यभिचार ना हो।
दुःख और सुख जीवन का हिस्सा हैं।


सुख में अभिमान ना करूँ।
दुःख के समय मुझे इतनी शक्ति दो कि मैं उसका सामना कर सकूँ।
हे शनिदेव ! मैं तेरी सन्तान हूँ।
मुझे एक ऐसी राह दिखा, जहाँ मैं तेरी सच्चे रास्ते की राह सबको दिखा सकूँ।


जय शनिदेव। जय शनिदेव। जय शनिदेव।

ABHAY
22-11-2010, 05:28 PM
शनि की साढ़ेसाती
जन्म राशि (चन्द्र राशि) से गोचर में जब शनि द्वादश, प्रथम एवं द्वितीय स्थानों में भ्रमण करता है, तो साढ़े -सात वर्ष के समय को शनि की साढ़ेसाती कहते हैं।

एक साढ़ेसाती तीन ढ़ैया से मिलकर बनती है। क्योंकि शनि एक राशि में लगभग ढ़ाई वर्षों तक चलता है।
प्रायः जीवन में तीन बार साढ़ेसाती आती है। प्राचीन काल से सामान्य भारतीय जनमानस में यह धारणा प्रचलित है कि शनि की साढ़ेसाती बहुधा मानसिक, शारीरिक और आर्थिक दृष्टि से दुखदायी एवं कष्टप्रद होती है। शनि की साढ़ेसाती सुनते ही लोग चिन्तित और भयभीत हो जाते हैं। साढ़ेसाती में असन्तोष, निराशा, आलस्य, मानसिक तनाव, विवाद, रोग-रिपु-ऋण से कष्ट, चोरों व अग्नि से हानि और घर-परिवार में बड़ों-बुजुर्गों की मृत्यु जैसे अशुभ फल होते हैं।

अनुभव में पाया गया है कि सम्पूर्ण साढ़े-सात साल पीड़ा दायक नहीं होते। बल्कि साढ़ेसाती के समय में कई लोगों को अत्यधिक शुभ फल जैसे विवाह, सन्तान का जन्म, नौकरी-व्यवसाय में उन्नति, चुनाव में विजय, विदेश यात्रा, इत्यादि भी मिलते हैं।

ABHAY
22-11-2010, 05:33 PM
शनि की साढ़ेसाती व ढ़ैया के उपाय
व्रत
शनिवार का व्रत रखें। व्रत के दिन शनिदेव की पूजा (कवच, स्तोत्र, मन्त्र जप) करें। शनिवार व्रतकथा पढ़ना भी लाभकारी रहता है। व्रत में दिन में दूध, लस्सी तथा फलों के रस ग्रहण करें, सांयकाल हनुमान जी या भैरव जी का दर्शन करें। काले उड़द की खिचड़ी (काला नमक मिला सकते हैं) या उड़द की दाल का मीठा हलवा ग्रहण करें।
दान
शनि की प्रसन्नता के लिए उड़द, तेल, इन्द्रनील (नीलम), तिल, कुलथी, भैंस, लोह, दक्षिणा और श्याम वस्त्र दान करें।
रत्न/धातु
शनिवार के दिन काले घोड़े की नाल या नाव की सतह की कील का बना छल्ला मध्यमा में धारण करें।
मन्त्र
(क) महामृत्युंजय मंत्र का सवा लाख जप (नित्य १० माला, १२५ दिन) करें-
ऊँ त्रयम्बकम्* यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योमुर्क्षिय मामृतात्*।
(ख) शनि के निम्नदत्त मंत्र का २१ दिन में २३ हजार जप करें -
ऊँ शत्रोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।
शंयोभिरत्रवन्तु नः। ऊँ शं शनैश्चराय नमः।
(ग) पौराणिक शनि मंत्र :
ऊँ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्*।
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्*।

ABHAY
22-11-2010, 05:37 PM
स्तोत्र
शनि के निम्नलिखित स्तोत्र का ११ बार पाठ करें या दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करें।
कोणरथः पिंगलो बभ्रुः कृष्णो रौद्रोन्तको यमः
सौरिः शनिश्चरो मन्दः पिप्पलादेन संस्तुतः॥
तानि शनि-नमानि जपेदश्वत्थसत्रियौ।
शनैश्चरकृता पीडा न कदाचिद् भविष्यति॥

साढ़साती पीड़ानाशक स्तोत्र - पिप्पलाद उवाच -
नमस्ते कोणसंस्थय पिड्.गलाय नमोस्तुते।
नमस्ते बभ्रुरूपाय कृष्णाय च नमोस्तु ते॥
नमस्ते रौद्रदेहाय नमस्ते चान्तकाय च।
नमस्ते यमसंज्ञाय नमस्ते सौरये विभो॥
नमस्ते यंमदसंज्ञाय शनैश्वर नमोस्तुते॥
प्रसादं कुरु देवेश दीनस्य प्रणतस्य च॥
औषधि
प्रति शनिवार सुरमा, काले तिल, सौंफ, नागरमोथा और लोध मिले हुए जल से स्नान करें।
अन्य उपाय
(क) शनिवार को सांयकाल पीपल वृक्ष के चारों ओर ७ बार कच्चा सूत लपेटें, इस समय शनि के किसी मंत्र का जप करते रहें। फिर पीपल के नीचे सरसों के तेल का दीपक प्रज्वलित करें, तथा ज्ञात अज्ञात अपराधों के लिए क्षमा मँiगें।
(ख) शनिवार को अपने हाथ की नाप का १९ हाथ काला धागा माला बनाकर पहनें।
(ग) टोटका - शनिवार के दिन उड्रद, तिल, तेल, गुड़ लिकी लड्डू बना लें और जहाँ हल न चला हो वहां गाड़ दें।
(घ) शनि की शान्ति के लिए बिच्छू की जड़ शनिवार को काले डोरे में लपेट कर धारण करें।

ABHAY
22-11-2010, 05:41 PM
शनिदेव
शनैश्चर की शरीर-कान्ति इन्द्रनीलमणि के समान है। इनके सिर पर स्वर्ण मुकुट गले में माला तथा शरीर पर नीले रंग के वस्त्र सुशोभित हैं। इनका वर्ण कृष्ण, वाहन गीध तथा रथ लोहे का बना हुआ है। शनि भगवान्* सूर्य तथा संज्ञा (प्रजापति की पुत्री) के पुत्र हैं। शनि के अधिदेवता प्रजापति ब्रह्मा और प्रत्यधिदेवता यम हैं। यह एक-एक राशि में तीस-तीस महीने रहते हैं। यह मकर और कुम्भ राशि के स्वामी हैं तथा इनकी महादशा १९ वर्ष की होती है। इनका प्रभाव एक राशि पर ढ़ाई वर्ष और साढ़े साती के रूप में लंबी अवधि तक भोगना पढ़ता है। शनिदेव भगवान शिव के अत्यन्त भगत है।

शनिदेव का रंग काला क्यो हैं, इस बारे में एक कथा प्रचलित है, जब शनिदेव माता के गर्भ में थे, तब शिव भक्तिनी माता ने घोर तपस्या की, धूप-गर्मी की तपन में शनि का रंग काला हो गया। लेकिन मां के इसी तप ने उन्हे आपार शक्ति दी।
शनिदेव की गति अन्य सभी ग्रहों से मंद होने का कारण इनका लंगड़ाकर चलना है। वे लंगड़ाकर क्यों चलते हैं, इसके संबंध में सूर्यतंत्र में एक कथा है - एक बार सूर्य देव का तेज सहन न कर पाने की वजह से संज्ञा देवी ने अपने शरीर से अपने जैसी ही एक प्रतिमूर्ति तैयार की औेर उसका नाम स्वर्णा रखा। उसे आज्ञा दी कि तुम मेरी अनुपस्थिति में मेरी सारी संतानों की देखरेख करते हुए सूर्य देव की सेवा करो और पत्नी सुख भोगो। ये आदेश देकर वह अपने पिता के घर चली गई। स्वर्णा ने भी अपने आप को इस तरह ढ़ाला कि सूर्य देव भी यह रहस्य न जान सके। इस बीच सूर्य देव से स्वर्णा को पांच पुत्र और दो पुत्रियां हुई। स्वर्णा अपने बच्चों पर अधिक और संज्ञा की संतानों पर कम ध्यान देने लगी।
एक दिन संज्ञा के पुत्र शनि को तेज भूख लगी, तो उसने स्वर्णा से भोजन मांगा। तब स्वर्णा ने कहा कि अभी ठहरो, पहले मैं भगवान्* का भोग लगा लूं और तुम्हारे छोटे भाई - बहनों को खिला दूं, फिर तुम्हें भोजन दूंगी। यह सुनकर शनि को क्रोध आ गया और उन्होंने माता को मारने के लिए अपना पैर उठाया, तो स्वर्णा ने शनि को श्राप दिया कि तेरा पांव अभी टूट जाए। माता का श्राप सुनकर शनिदेव डरकर अपने पिता के पास गए और सारा किस्सा कह सुनाया। सूर्यदेव तुरन्त समझ गए कि कोई भी माता अपने पुत्र को इस तरह का शाप नही दे सकती। इसीलिए उनके साथ अपनी पत्नी नही कोई और हैं। सूर्य देव ने क्रोध में आकर पूछा कि बताओ तुम कौन हो, सूर्य का तेज देखकर स्वर्णा घबरा गई और सारी सच्चाई उन्हे बता दी। तब सूर्यदेव नें शनि को समझाया कि स्वर्णा तुमारी माता नही हैं, लेकिन मां समान हैं। इसीलिए उनका दिया शाप व्यर्थ तो नही होगा, परन्तु यह इतना कठोर नही होगा कि टांग पूरी तरह से अलग हो जाए। हां, तुम आजीवन एक पाँव से लंगडाकर चलते रहोगे।

ABHAY
22-11-2010, 05:42 PM
शनि देव पर तेल चढाया जाता हैं, इस संबंध में आनंद रामायण में एक कथा का उल्लेख मिलता हैं। जब भगवान की सेना ने सागर सेतु बांध लिया, तब राक्षस इसे हानि न पहुंचा सकें, उसके लिए पवन सुत हनुमान को उसकी देखभाल की जिम्मेदारी सौपी गई। जब हनुमान जी शाम के समय अपने इष्टदेव राम के ध्यान में मग्न थे, तभी सूर्य पुत्र शनि ने अपना काला कुरूप चेहरा बनाकर क्रोधपूर्ण कहा- हे वानर मैं देवताओ में शक्तिशाली शनि हूँ। सुना हैं, तुम बहुत बलशाली हो। आँखें खोलो और मेरे साथ युद्ध करो, मैं तुमसे युद्ध करना चाहता हूँ। इस पर हनुमान ने विनम्रतापूर्वक कहा- इस समय मैं अपने प्रभु को याद कर रहा हूं। आप मेरी पूजा में विघन मत डालिए। आप मेरे आदरणीय है। कृपा करके आप यहा से चले जाइए। जब शनि देव लड़ने पर उतर आए, तो हनुमान जी ने अपनी पूंछ में लपेटना शुरू कर दिया। फिर उन्हे कसना प्रारंभ कर दिया जोर लगाने पर भी शनि उस बंधन से मुक्त न होकर पीड़ा से व्याकुल होने लगे। हनुमान ने फिर सेतु की परिक्रमा कर शनि के घमंड को तोड़ने के लिए पत्थरो पर पूंछ को झटका दे-दे कर पटकना शुरू कर दिया। इससे शनि का शरीर लहुलुहान हो गया, जिससे उनकी पीड़ा बढ़ती गई। तब शनि देव ने हनुमान जी से प्रार्थना की कि मुझे बधंन मुक्त कर दीजिए। मैं अपने अपराध की सजा पा चुका हूँ, फिर मुझसे ऐसी गलती नही होगी। इस पर हनुमान जी बोले-मैं तुम्हे तभी छोडूंगा, जब तुम मुझे वचन दोगे कि श्री राम के भक्त को कभी परेशान नही करोगे। यदि तुमने ऐसा किया, तो मैं तुम्हें कठोर दंड दूंगा। शनि ने गिड़गिड़ाकर कहा -मैं वचन देता हूं कि कभी भूलकर भी आपके और श्री राम के भक्त की राशि पर नही आऊँगा। आप मुझे छोड़ दें। तभी हनुमान जी ने शनिदेव को छोड़ दिया। फिर हनुमान जी से शनिदेव ने अपने घावो की पीड़ा मिटाने के लिए तेल मांगा। हनुमान जी ने जो तेल दिया, उसे घाव पर लगाते ही शनि देव की पीड़ा मिट गई। उसी दिन से शनिदेव को तेल चढ़ाया जाता हैं, जिससे उनकी पीडा शांत हो जाती हैं और वे प्रसन्न हो जाते हैं।

ABHAY
22-11-2010, 05:43 PM
शनिदेव जी की दृष्टि में जो क्रूरता है, वह इनकी पत्नी के शाप के कारण है। ब्रह्मपुराण में इनकी कथा इस प्रकार आयी है- बचपन से ही शनि देवता भगवान्* श्रीकृष्ण के परम भक्त थे। वे श्रीकृष्ण के अनुराग में निमग्न रहा करते थे। वयस्क होने पर इनके पिता ने चित्ररथ की कन्या से इनका विवाह कर दिया। इनकी पत्नी सती-साध्वी और परम तेजस्विनी थी। एक रात वह ऋतु-स्नान करके पुत्र- प्राप्ति की इच्छा से इनके पास पहुँची, पर यह श्रीकृष्ण के ध्यान में निमग्न थे। इन्हें बाह्य संसार की सुधि ही नहीं थी। पत्नी प्रतीक्षा करके थक गयी। उसका ऋतुकाल निष्फल हो गया। इसलिये उसने क्रुद्ध होकर शनिदेव को शाप दे दिया कि आज से जिसे तुम देख लोगे, वह नष्ट हो जायगा। ध्यान टूटने पर शनिदेव ने अपनी पत्नी को मनाया। पत्नी को भी अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ, किन्तु शाप के प्रतीकार की शक्ति उसमें न थी, तभी से शनि देवता अपना सिर नीचा करके रहने लगे। क्योंकि यह नहीं चाहते थे कि इनके द्वारा किसी का अनिष्ट हो।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि ग्रह यदि कहीं रोहिणी-शकट भेदन कर दे तो पृथ्वी पर बारह वर्ष घोर दुर्भिक्ष पड़ जाय और प्राणियों का बचना ही कठिन हो जाय। शनि ग्रह जब रोहिणी का भेदन कर बढ़ जाता है, तब यह योग आता है। यह योग महाराज दशरथ के समय में आने वाला था। जब ज्योतिषियों ने महाराज दशरथ से बताया कि यदि शनि का योग आ जायेगा तो प्रजा अन्न-जल के बिना तड़प-तड़प कर मर जायगी। प्रजा को इस कष्ट से बचाने के लिये महाराज दशरथ अपने रथ पर सवार होकर नक्षत्र मण्डल में पहुँचे। पहले तो महाराज दशरथ ने शनि देवता को नित्य की भाँति प्रणाम किया और बाद में क्षत्रिय-धर्म के अनुसार उनसे युद्ध करते हुए उन पर संहारास्त्र का संधान किया। शनि देवता महाराज की कर्तव्यनिष्ठा से परम प्रसन्न हुए और उनसे वर माँगने के लिए कहा। महाराज दशरथ ने वर माँगा कि जब तक सूर्य, नक्षत्र आदि विद्यमान हैं, तब तक आप शकट-भेदन न करें। शनिदेव ने उन्हें वर देकर संतुष्ट कर दिया।

अतः कहा गया है, शनिदेव क्रुर ग्रह नहीं हैं, वो न्यायकर्ता है। व्यक्ति पाप करता रहता है, और जब उस व्यक्ति पर शनि की साढ़ेसाती आती है, तो उसके पापो का हिसाब स्वयं शनिदेव करते है। जब आप लोभ, हवस, गुस्सा, मोह से प्रभावित होकर अन्याय, अत्याचार, दूराचार, अनाचार, पापाचार, व्यभिचार को सहारा लेते है, जब सब से छिप कर कोई पाप करते है, तब भी शनिदेव सब देख रहे होते हैं और समय आने पर आपको दंड भी देते हैं। साढे-साति ही होती है, जो राजा का रंक बना देती है। लेकिन यदि साढे-साती दशा के दौरान भी आप सत्य को नहीं छोड़ेगे, पुनः, दया और न्याय का सहारा लेगें, सब बहुत ही अच्छे से व्यतीत हो जायेगा।

ABHAY
22-11-2010, 05:44 PM
उपरोक्त के अनुसार :
शनि की अत्यन्त सूक्ष्म दृष्टि है ।
शनि अच्छे कर्मो के फलदाता भी है।
शनि बुर कर्मो का दंड भी देते है।

अतः ठीक ही कहा गया है :
जीवन के अच्छे समय में शनिदेव का गुणगान करो।
आपतकाल में शनिदेव के दर्शन करो।
मुश्किल पीड़ादायक समय में शनिदेव की पूजा करो।
दुखद प्रसंग में भी शनिदेव पर विश्वास करो।
जीवन के हर पल शनिदेव की प्रति कृतज्ञता प्रकट करो।

ABHAY
22-11-2010, 11:13 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=3896&stc=1&d=1290452989

ABHAY
22-11-2010, 11:18 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=3897&stc=1&d=1290453079

ABHAY
22-11-2010, 11:20 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=3898&stc=1&d=1290453209

ABHAY
22-11-2010, 11:32 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=3900&stc=1&d=1290454123

ABHAY
22-11-2010, 11:33 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=3902&stc=1&d=1290454112

ABHAY
22-11-2010, 11:34 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=3904&stc=1&d=1290454242

ABHAY
22-11-2010, 11:36 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=3905&stc=1&d=1290454289

ABHAY
22-11-2010, 11:48 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=3909&stc=1&d=1290455224

ABHAY
22-11-2010, 11:49 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=3910&stc=1&d=1290455005

ABHAY
22-11-2010, 11:50 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=3911&stc=1&d=1290455211

ABHAY
22-11-2010, 11:50 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=3912&stc=1&d=1290455297

ABHAY
22-11-2010, 11:56 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=3913&stc=1&d=1290455693

ABHAY
22-11-2010, 11:59 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=3914&stc=1&d=1290455642

ABHAY
23-11-2010, 12:00 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=3915&stc=1&d=1290455686

ABHAY
23-11-2010, 12:00 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=3916&stc=1&d=1290455760

ABHAY
23-11-2010, 12:04 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=3917&stc=1&d=1290456242

ABHAY
07-12-2010, 09:01 AM
मंगल
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4734&stc=1&d=1291697920

ABHAY
07-12-2010, 09:10 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4740&stc=1&d=1291698357

ABHAY
07-12-2010, 09:11 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4741&stc=1&d=1291698342

ABHAY
07-12-2010, 09:12 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4745&stc=1&d=1291698460

ABHAY
07-12-2010, 09:13 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4746&stc=1&d=1291698559

ABHAY
07-12-2010, 09:22 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4757&stc=1&d=1291699315

ABHAY
07-12-2010, 09:23 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4760&stc=1&d=1291699033

ABHAY
07-12-2010, 09:24 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4763&stc=1&d=1291699231

ABHAY
07-12-2010, 09:26 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4764&stc=1&d=1291699304

ABHAY
07-12-2010, 09:32 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4778&stc=1&d=1291699913

ABHAY
07-12-2010, 09:38 AM
बुधबार
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4784&stc=1&d=1291700082

ABHAY
07-12-2010, 09:38 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4789&stc=1&d=1291700132

ABHAY
07-12-2010, 09:39 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4791&stc=1&d=1291700219

ABHAY
07-12-2010, 09:40 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4792&stc=1&d=1291700264

ABHAY
07-12-2010, 09:46 AM
बिफे
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4797&stc=1&d=1291700728

ABHAY
07-12-2010, 09:48 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4799&stc=1&d=1291700677

ABHAY
07-12-2010, 09:50 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4804&stc=1&d=1291700712

ABHAY
07-12-2010, 09:52 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4805&stc=1&d=1291700804

ABHAY
07-12-2010, 09:58 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4815&stc=1&d=1291701430

ABHAY
07-12-2010, 09:58 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4821&stc=1&d=1291701418

ABHAY
07-12-2010, 09:59 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4822&stc=1&d=1291701466

ABHAY
07-12-2010, 10:07 AM
शुक्रबार
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4831&stc=1&d=1291701803

ABHAY
07-12-2010, 10:08 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4832&stc=1&d=1291701892

ABHAY
07-12-2010, 10:09 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4838&stc=1&d=1291701997

ABHAY
07-12-2010, 10:09 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4839&stc=1&d=1291702065

ABHAY
07-12-2010, 10:18 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4845&stc=1&d=1291702336

ABHAY
07-12-2010, 10:19 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4846&stc=1&d=1291702419

ABHAY
07-12-2010, 10:19 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4847&stc=1&d=1291702484

ABHAY
07-12-2010, 10:20 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4848&stc=1&d=1291702660

ABHAY
07-12-2010, 10:26 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4852&stc=1&d=1291703001

ABHAY
07-12-2010, 10:27 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4858&stc=1&d=1291703065

ABHAY
07-12-2010, 10:27 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4859&stc=1&d=1291703163

ABHAY
07-12-2010, 10:28 AM
शनि बार यहाँ क्लिक करे (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=1336)

ABHAY
07-12-2010, 10:34 AM
रबीबार

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4865&stc=1&d=1291703499

ABHAY
07-12-2010, 10:35 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4866&stc=1&d=1291703539

ABHAY
07-12-2010, 10:36 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4867&stc=1&d=1291703597

ABHAY
07-12-2010, 10:37 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4868&stc=1&d=1291703652

ABHAY
07-12-2010, 10:39 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4874&stc=1&d=1291703923

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4877&stc=1&d=1291703989

ABHAY
07-12-2010, 10:46 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4881&stc=1&d=1291704180

ABHAY
07-12-2010, 10:47 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4887&stc=1&d=1291704168

ABHAY
07-12-2010, 10:47 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4888&stc=1&d=1291704317

ABHAY
07-12-2010, 10:47 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4889&stc=1&d=1291704343

ABHAY
07-12-2010, 10:52 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4890&stc=1&d=1291704595

ABHAY
07-12-2010, 10:53 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4891&stc=1&d=1291704648

ABHAY
07-12-2010, 10:54 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4892&stc=1&d=1291704696

ABHAY
07-12-2010, 10:54 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4893&stc=1&d=1291704745

ABHAY
07-12-2010, 11:03 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4895&stc=1&d=1291705289

ABHAY
07-12-2010, 11:03 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4900&stc=1&d=1291705224

jitendragarg
07-12-2010, 11:04 AM
waise to main bhagwaan ko nahi maanta, par phir bhi ye thread ke liye thanks. kam se kam diwali wagerah pe puja karne me logo ko aasaani rahegi.

ABHAY
07-12-2010, 11:05 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4901&stc=1&d=1291705277

ABHAY
07-12-2010, 11:06 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4907&stc=1&d=1291705363

ABHAY
07-12-2010, 11:12 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4916&stc=1&d=1291705728

ABHAY
07-12-2010, 11:13 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4919&stc=1&d=1291705716

ABHAY
07-12-2010, 11:13 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4920&stc=1&d=1291705781

ABHAY
07-12-2010, 11:14 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4922&stc=1&d=1291705886

ABHAY
07-12-2010, 11:17 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4924&stc=1&d=1291706228

ABHAY
07-12-2010, 03:47 PM
इतने लोग है यहाँ पे किसी को पसंद नहीं आया !:party:कोई बात नहीं भाई आपसभी का शुक्रिया

Hamsafar+
28-12-2010, 01:12 PM
नि:संदेह भारतीय व्रत एवं त्योहार हमारी सांस्कृतिक धरोहर है। हमारे सभी व्रत-त्योहार चाहे वह करवाचौथ का व्रत हो या दिवाली पर्व, कहीं न कहीं वे पौराणिक पृष्ठभूमि से जुड़े हुए हैं और उनका वैज्ञानिक पक्ष भी नकारा नहीं जा सकता।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:12 PM
करवा-चौथ

क्यों किया जाता है करवा-चौथ का व्रत

‘करवा चौथ’ के व्रत से तो हर भारतीय स्त्री अच्छी तरह से परिचित है! यह व्रत महिलाओं के लिए ‘चूड़ियों का त्योहार’ नाम से भी प्रसिद्ध है।
कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रखा जाने वाला यह करवा चौथ का व्रत, अन्य सभी व्रतों से कठिन माना जा सकता है। सुहागिन स्त्रियाँ पति पत्नी के सौहार्दपूर्ण मधुर संबंधों के साथ-साथ अपने पति की दीर्घायु की कामना के उद्देश्य से यह व्रत रखती है। इस व्रत में सुहागिन महिलाएं करवा रूपी वस्तु या कुल्हड़ अपने सास-ससुर या अन्य स्त्रियों से बदलती हैं।
विवाहित महिलाएं पति की सुख-समपन्नता की कामना हेतु गणेश, शिव-पार्वती की पूजा-अर्चना करती हैं। सूर्योदय से पूर्व तड़के ‘सरघी’ खाकर सारा दिन निर्जल व्रत किया जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार व्रत का फल तभी है जब यह व्रत करने वाली महिला भूलवश भी झूठ, कपट, निंदा एवँ अभिमान न करे। सुहागन महिलाओं को चाहिए कि इस दिन सुहाग-जोड़ा पहनें, शिव द्वारा पार्वती को सुनाई गई कथा पढ़े या सुनें तथा रात्रि में चाँद निकलने पर चन्द्रमा को देखकर अर्घ्य दें, दोपरांत भोजन करें।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:13 PM
करवा-चौथ व्रत कथा


एक समय की बात है। पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी पर्वत पर चले गए। किंही कारणों से वे वहीं रूक गये। उधर पांडवों पर गहन संकट आ पड़ा। शोकाकुल, चिंतित द्रौपदी ने श्रीकृष्ण का ध्यान किया। भगवान के दर्शन होने पर अपने कष्टों के निवारण हेतु उपाय पूछा। कृष्ण बोले- हे द्रौपदी! तुम्हारी चिंता एवं संकट का कारण मैं जानता हूँ, उसके लिए तुम्हें एक उपाय बताता हूँ। कार्तिक कृष्ण चतुर्थी आने वाली है, उस दिन तुम करवा चौथ का व्रत रखना। शिव गणेश एवं पार्वती की उपासना करना, सब ठीक हो जाएगा। द्रोपदी ने वैसा ही किया। उसे शीघ्र ही अपने पति के दर्शन हुए और उसकी सब चिंताएं दूर हो गईं। कृष्ण ने दौपदी को इस कथा का उल्लेख किया था:
भगवती पार्वती द्वारा पति की दीर्घायु एवं सुख-संपत्ति की कामना हेतु उत्तम विधि पूछने पर भगवान शिव ने पार्वती से ‘करवा चौथ’ का व्रत रखने के लिए जो कथा सुनाई, वह इस प्रकार है –
एक समय की बात है कि एक करवा नाम की पतिव्रता धोबिन स्त्री अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के किनारे के गाँव में रहती थी। उसका पति बूढ़ा और निर्बल था। करवा का पति एक दिन नदी के किनारे कपड़े धो रहा था कि अचानक एक मगरमच्छ उसका पाँव अपने दाँतों में दबाकर उसे यमलोक की ओर ले जाने लगा। वृद्ध पति से कुछ नहीं बन पड़ा तो वह करवा...करवा.... कह के अपनी पत्नी को पुकारने लगा।
अपने पति की पुकार सुन जब करवा वहां पहुंची तो मगरमच्छ उसके पति को यमलोक पहुँचाने ही वाला था। करवा ने मगर को कच्चे धागे से बाँध दिया। मगरमच्छ को बाँधकर यमराज के यहाँ पहुँची और यमराज से अपने पति की रक्षा व मगरमच्छ को उसकी धृष्टता का दंड देने का आग्रह करने लगी- हे भगवन्! मगरमच्छ ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है। उस मगरमच्छ को उसके अपराध के दंड-स्वरूप आप अपने बल से नरक में भेज दें।
यमराज करवा की व्यथा सुनकर बोले- अभी मगर की आयु शेष है, अतः मैं उसे यमलोक नहीं पहुँचा सकता। इस पर करवा बोली, "अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो मैं आप को श्राप देकर नष्ट कर दूँगी।" उसका साहस देखकर यमराज डर गए और उस पतिव्रता करवा के साथ आकर मगरमच्छ को यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु दी। यमराज करवा की पति-भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हुए और उसे वरदान दिया कि आज से जो भी स्त्री कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को व्रत रखेगी उसके पति की मैं स्वयं रक्षा करूंगा। उसी दिन से करवा-चौथ के व्रत का प्रचलन हुआ।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:14 PM
करवा चौथ की महत्ता


करवा चौथ भारत में मुख्यत: उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान और गुजरात में मनाया जाता है। इस पर्व पर विवाहित औरतें अपने पति की लम्बी उम्र के लिये पूरे दिन का व्रत रखती हैं और शाम को चांद देखकर पति के हाथ से जल पीकर व्रत समाप्त करती हैं। इस दिन भगवान शिव, पार्वती जी, गणेश जी, कार्तिकेय जी और चांद की पूजा की जाती हैं।
शुरूआत और महतव : इस पर्व की शुरूआत एक बहुत ही अच्छे विचार पर आधारित थी। मगर समय के साथ इस पर्व का मूल विचार कहीं खो गया और आज इसका पूरा परिदृश्य ही बदल चुका है।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:14 PM
पुराने जमाने में लड़कियों की शादी बहुत जल्दी कर दी जाती थी और उन्हें किसी दूसरे गांव में अपने ससुराल वालों के साथ रहना पड़ता था। अगर उसे अपने पति या ससुराल वालों से कोई परेशानी होती थी तो उसके पास कोई ऐसा नहीं होता था जिससे वो अपनी बात कह सके या मदद मांग सके। उसके अपने परिवार वाले और रिश्तेदार उसकी पहुंच से काफी दूर हुआ करते थे। उस जमाने में ना तो टेलीफोन होता था, ना बस और ना ही ट्रेन।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:15 PM
इस तरह एक रिवाज की शुरुआत हुई कि शादी के समय जब दुल्हन अपने ससुराल पहुंचेगी तो उसे वहां एक दूसरी औरत को दोस्त बनाना होगा जो उम्र भर उसकी बहन या दोस्त की तरह रहेगी। ये धर्म-सखी या धर्म-बहन के जैसा होगा। उनकी मित्रता एक छोटे से हिन्दू पूजन समारोह द्वारा शादी के समय ही प्रमाणित की जायेगी। एक बार दुल्हन और इस औरत के धर्म-सखी या धर्म-बहन बन जाने के बाद जिन्दगी भर इस रिश्ते को निभायेंगी। वे आपस में सगी बहनों जैसा बर्ताव करेंगी।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:15 PM
बाद में किसी तरह की परेशानी होने पर, चाहे वो पति या ससुराल वालों की तरफ से हो, ये दोनों औरतें आपस में बात कर सकती हैं या एक दूसरे की मदद कर सकती हैं। एक दुल्हन और उसकी धर्म-सखी (धर्म-बहन) के बीच इस मित्रता (सम्बन्ध) को एक पर्व के रूप में मनाया जाने लगा।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:15 PM
इस तरह करवा चौथ की शुरुआत हुई। पति की भलाई के लिए पूजा और व्रत इसके बहुत बाद में शुरु हुआ। ऐसी आशा है कि इस पर्व की महत्ता को और बढ़ाने के लिए इसे पुरानी कथाओं के साथ जोड़ दिया गया।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:16 PM
मूलत: करवा चौथ इस धर्म-सखी (धर्म-बहन) के रिश्ते को फिर से नवीन रूप देने और मनाने का सालाना पर्व है। ये उस समय की एक सर्वश्रेष्ठ सामाजिक और सांस्कृतिक महानता थी जब दुनिया में बातचीत के तरीकों की कमी थी और आना-जाना इतना आसान नहीं था।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:16 PM
परम्परागत कथा (रानी वीरवती की कहानी): बहुत समय पहले वीरवती नाम की एक सुन्दर लड़की थी। वो अपने सात भाईयों की इकलौती बहन थी। उसकी शादी एक राजा से हो गई। शादी के बाद पहले करवा चौथ के मौके पर वो अपने मायके आ गई। उसने भी करवा चौथ का व्रत रखा लेकिन पहला करवा चौथ होने की वजह से वो भूख और प्यास बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। वह बेताबी से चांद के उगने का इन्तजार करने लगी। उसके सातों भाई उसकी ये हालत देखकर परेशान हो गये। वे अपनी बहन से बहुत ज्यादा प्यार करते थे। उन्होंने वीरवती का व्रत समाप्त करने की योजना बनाई और पीपल के पत्तों के पीछे से आईने में नकली चांद की छाया दिखा दी। वीरवती ने इसे असली चांद समझ लिया और अपना व्रत समाप्त कर खाना खा लिया। रानी ने जैसे ही खाना खाया वैसे ही समाचार मिला कि उसके पति की तबियत बहुत खराब हो गई है।
रानी तुरंत अपने राजा के पास भागी। रास्ते में उसे भगवान शंकर पार्वती देवी के साथ मिले। पार्वती देवी ने रानी को बताया कि उसके पति की मृत्यु हो गई है क्योंकि उसने नकली चांद देखकर अपना व्रत तोड़ दिया था। रानी ने तुरंत क्षमा मांगी। पार्वती देवी ने कहा, ''तुम्हारा पति फिर से जिन्दा हो जायेगा लेकिन इसके लिये तुम्हें करवा चौथ का व्रत कठोरता से संपन्न करना होगा। तभी तुम्हारा पति फिर से जीवित होगा।'' उसके बाद रानी वीरवती ने करवा चौथ का व्रत पूरी विधि से संपन्न किया और अपने पति को दुबारा प्राप्त किया।
इस पर्व से संबंधित अनेक कथाएं प्रसिध्द हैं जिनमें सत्यवान और सावित्री की कहानी भी बहुत प्रसिध्द है।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:17 PM
अहोई अष्टमी व्रत कथा(1)


प्राचीन काल में किसी नगर में एक साहूकार रहता था। उसके सात लड़के थे। दीपावली से पहले साहूकार की स्त्री घर की लीपापेती हेतु मिट्टी लेने खदान में गई और कुदाल से मिट्टी खोदने लगी। दैवयोग से उसी जगह एक सेह की मांद थी। सहसा उस स्त्री के हाथ से कुदाल से के बच्चे को लग गई जिससे सेह का बच्चा तत्काल मर गया। अपने हाथ से हई हत्या को लेकर साहूकार की पत्नी को बहुत दुख हुआ परन्तु अब क्या हो सकता था! वह शोकाकुल पश्चाताप करती हुई अपने घर लौट आई।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:17 PM
कुछ दिनों बाद उसका बेटे का निधन हो गया। फिर अकस्मात् दूसरा, तीसरा और इस प्रकार वर्ष भर में उसके सभी बेटे मर गए। महिला अत्यंत व्यथित रहने लगी। एक दिन उसने अपने आस-पड़ोस की महिलाओं को विलाप करते हुए बताया कि उसने जानबूझ कर कभी कोई पाप नहीं किया। हाँ, एक बार खदान में मिट्टी खोदते हुए अंजाने में उससे एक सेह के बच्चे की हत्या अवश्य हुई है और तत्पश्चात मेरे सातों बेटों की मृत्यु हो गई।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:17 PM
यह सुनकर पास-पड़ोस की वृद्ध औरतों ने साहूकार की पत्नी को दिलासा देते हुए कहा कि यह बात बताकर तुमने जो पश्चाताप किया है उससे तुम्हारा आधा पाप नष्ट हो गया है। तुम उसी अष्टमी को भगवती माता की शरण लेकर सेह और सेह के बच्चों का चित्र बनाकर उनकी अराधना करो और क्षमा-याचना करो। ईश्वर की कृपा से तुम्हारा पाप धुल जाएगा। साहूकार की पत्नी ने वृद्ध महिलाओं की बात मानकर कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को उपवास व पूजा-याचना की। वह हर वर्ष नियमित रूप से ऐसा करने लगी। बाद में उसे सात पुत्र रत्नों की प्राप्ती हुई। तभी से अहोई व्रत की परम्परा प्रचलित हो गई।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:17 PM
विधि-विधान: अहोई व्रत के दिन प्रात: उठकर स्नान करें और पूजा पाठ करके अपनी संतान की दीर्घायु एवं सुखमय जीवन हेतु कामना करते हुए, मैं अहोई माता का व्रत कर रही हूं, ऐसा संकल्प करें। अहोई माता मेरी संतान को दीर्घायु, स्वस्थ एवं सुखी रखे। अनहोनी को होनी बनाने वाली माता देवी पार्वती हैं इसलिए माता पर्वती की पूजा करें। अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाएं और साथ ही सेह और उसके सात पुत्रों का चित्र बनाएं। संध्या काल में इन चित्रों की पूजा करें। अहोई पूजा में एक अन्य विधान यह भी है कि चांदी की अहोई बनाई जाती है जिसे सेह या स्याहु कहते हैं। इस सेह की पूजा रोली, अक्षत, दूध व भात से की जाती है। पूजा चाहे आप जिस विधि से करें लेकिन दोनों में ही पूजा के लिए एक कलश में जल भर कर रख लें। पूजा के बाद अहोई माता की कथा सुने और सुनाएं।

पूजा के पश्चात सासु-मां के पैर छूएं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। इसके पश्चात व्रती अन्न जल ग्रहण करें।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:18 PM
अहोई अष्टमी कथा-2


बहुत समय पहले झाँसी के निकट एक नगर में चन्द्रभान नामक साहूकार रहता था। उसकी पत्नी चन्द्रिका बहुत सुंदर, सर्वगुण सम्पन्न, सती साध्वी, शिलवन्त चरित्रवान तथा बुद्धिमान थी। उसके कई पुत्र-पुत्रियां थी परंतु वे सभी बाल अवस्था में ही परलोक सिधार चुके थे। दोनो पति-पत्नी संतान न रह जाने से व्यथित रहते थे। वे दोनों प्रतिदिन मन में सोचते कि हमारे मर जाने के बाद इस अपार धन-संपदा को कौन संभालेगा! एकबार उन दोनों ने निश्चय किया कि वनवास लेकर शेष जीवन प्रभु-भक्ति में व्यतीत करें। इस प्रकार वे दोनों अपना घर-बार त्यागकर वनों की ओर चल दिए। रास्ते में जब थक जाते तो रुक कर थोड़ा विश्राम कर लेते और फिर चल पड़ते। इस प्रकार धीरे-धीरे वे बद्रिका आश्रम के निकट शीतल कुण्ड जा पहुंचे। वहां पहुंचकर दोनों ने निराहार रह कर प्राण त्यागने का निश्चय कर लिया। इस प्रकार निराहार व निर्जल रहते हुए उन्हें सात दिन हो गए तो आकाशवाणी हुई कि तुम दोनों प्राणी अपने प्राण मत त्यागो। यह सब दुख तुम्हें तुम्हारे पूर्व पापों से भोगना पड़ा है। यदि तुम्हारी पत्नी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली अहोई अष्टमी को अहोई माता का व्रत और पूजन करे तो अहोई देवी प्रसन्न होकर साक्षात दर्शन देगी। तुम उससे दीर्घायु पुत्रों का वरदान मांग लेना। व्रत के दिन तुम राधाकुण्ड में स्नान करना।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:18 PM
चन्द्रिका ने आकाशवाणी के बताए अनुसार विधि-विधान से अहोई अष्टमी को अहोई माता का व्रत और पूजा-अर्चना की और तत्पश्चात राधाकुण्ड में स्नान किया। जब वे स्नान इत्यादि के बाद घर पहुँचे तो उस दम्पत्ति को अहोई माता ने साक्षात दर्शन देकर वर मांगने को कहा। साहूकार दम्पत्ति ने हाथ जोड़कर कहा, “हमारे बच्चे कम आयु में ही प्रलोक सिधार जाते है। आप हमें बच्चों की दीर्घायु का वरदान दें।

“तथास्तु!” कहकर अहोई माता अंतर्ध्यान हो गई।

कुछ समय के बाद साहूकार दम्पत्ति को दीर्घायु पुत्रों की प्राप्ति हुई और वे सुख पूर्वक अपना गृहस्थ जीवन व्यतीत करने लगे।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:18 PM
आरती श्री अहोई माता की आरती

जय अहोई माता, जय अहोई माता!
तुमको निसदिन ध्यावत हर विष्णु विधाता। टेक।।
ब्राहमणी, रुद्राणी, कमला तू ही है जगमाता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता।। जय।।
माता रूप निरंजन सुख-सम्पत्ति दाता।।
जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता।। जय।।
तू ही पाताल बसंती, तू ही है शुभदाता।
कर्म-प्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता।। जय।।
जिस घर थारो वासा वाहि में गुण आता।।
कर न सके सोई कर ले मन नहीं धड़काता।। जय।।
तुम बिन सुख न होवे न कोई पुत्र पाता।
खान-पान का वैभव तुम बिन नहीं आता।। जय।।
शुभ गुण सुंदर युक्ता क्षीर निधि जाता।
रतन चतुर्दश तोकू कोई नहीं पाता।। जय।।
श्री अहोई माँ की आरती जो कोई गाता।
उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता।। जय।।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:19 PM
रक्षा-बंधन


रक्षा-बंधन या राखी हमारे प्रमुख त्यौहारों में से एक है। यह श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह भाई-बहन के स्नेह-पर्व के रुप में प्रसिद्ध व प्रतिष्ठित है। इस दिन बहन भाई की कलाई पर राखी बाँधकर माथे पर तिलक लगाती है और उनकी दीर्घ आयु की कामना करती है। भाई अपनी बहन की रक्षा पर वचनबद्ध रहते हुए उसे स्नेहाशीष देता है।
श्रावण पूर्णिमा की प्रात: रक्षा-बंधन का विधान सम्पन्न किया जाता है।
रक्षा-बंधन से कई पौराणिक, धार्मिक व ऐतिहासिक कथाएं जुड़ी हुई हैं।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:19 PM
वामनावतार कथा

एक सौ यज्ञ पूर्ण कर लेने पर दानवेन्द्र राजा बलि के मन में स्वर्ग का प्राप्ति की इच्छा बलवती हो गई तो का सिंहासन डोलने लगा। इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से रक्षा की प्रार्थना की। भगवान ने वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेष धारण कर लिया और राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुँच गए। उन्होंने बलि से तीन पग भूमि भिक्षा में मांग ली।

बलि के गु्रु शुक्रदेव ने ब्राह्मण रुप धारण किए हुए विष्णु को पहचान लिया और बलि को इस बारे में सावधान कर दिया किंतु दानवेन्द्र राजा बलि अपने वचन से न फिरे और तीन पग भूमि दान कर दी।

वामन रूप में भगवान ने एक पग में स्वर्ग और दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लिया। तीसरा पैर कहाँ रखें? बलि के सामने संकट उत्पन्न हो गया। यदि वह अपना वचन नहीं निभाता तो अधर्म होता। आखिरकार उसने अपना सिर भगवान के आगे कर दिया और कहा तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख दीजिए। वामन भगवान ने वैसा ही किया। पैर रखते ही वह रसातल लोक में पहुँच गया।

जब बाली रसातल में चला गया तब बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया और भगवान विष्णु को उनका द्वारपाल बनना पड़ा। भगवान के रसातल निवास से परेशान कि यदि स्वामी रसातल में द्वारपाल बन कर निवास करेंगे तो बैकुंठ लोक का क्या होगा? इस समस्या के समाधान के लिए लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय सुझाया। लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षाबन्धन बांधकर अपना भाई बनाया और उपहार स्वरुप अपने पति भगवान विष्णु को अपने साथ ले आयीं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी यथा रक्षा-बंधन मनाया जाने लगा।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:20 PM
भविष्य पुराण की कथा


भविष्य पुराण की एक कथा के अनुसार एक बार देवता और दैत्यों (दानवों ) में बारह वर्षों तक युद्ध हुआ परन्तु देवता विजयी नहीं हुए। इंद्र हार के भय से दु:खी होकर देवगुरु बृहस्पति के पास विमर्श हेतु गए। गुरु बृहस्पति के सुझाव पर इंद्र की पत्नी महारानी शची ने श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिन विधि-विधान से व्रत करके रक्षासूत्र तैयार किए और स्वास्तिवाचन के साथ ब्राह्मण की उपस्थिति में इंद्राणी ने वह सूत्र इंद्र की दाहिनी कलाई में बांधा जिसके फलस्वरुप इन्द्र सहित समस्त देवताओं की दानवों पर विजय हुई।
रक्षा विधान के समय निम्न लिखित मंत्रोच्चार किया गया था जिसका आज भी विधिवत पालन किया जाता है:
"येन बद्धोबली राजा दानवेन्द्रो महाबल: ।
तेन त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल ।।"

इस मंत्र का भावार्थ है कि दानवों के महाबली राजा बलि जिससे बांधे गए थे, उसी से तुम्हें बांधता हूँ। हे रक्षे! (रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो।
यह रक्षा विधान श्रवण मास की पूर्णिमा को प्रातः काल संपन्न किया गया यथा रक्षा-बंधन अस्तित्व में आया और श्रवण मास की पूर्णिमा को मनाया जाने लगा।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:20 PM
महाभारत संबंधी कथा


महाभारत काल में द्रौपदी द्वारा श्री कृष्ण को तथा कुन्ती द्वारा अभिमन्यु को राखी बांधने के वृत्तांत मिलते हैं।
महाभारत में ही रक्षाबंधन से संबंधित कृष्ण और द्रौपदी का एक और वृत्तांत मिलता है। जब कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तब उनकी तर्जनी में चोट आ गई। द्रौपदी ने उस समय अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उँगली पर पट्टी बाँध दी। यह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था।
श्रीकृष्ण ने बाद में द्रौपदी के चीर-हरण के समय उनकी लाज बचाकर भाई का धर्म निभाया था।।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:21 PM
ऐतिहासिक प्रसंग


राजपूत जब लड़ाई पर जाते थे तब महिलाएं उनको माथे पर कुमकुम तिलक लगाने के साथ साथ हाथ में रेशमी धागा भी बांधती थी। इस विश्वास के साथ कि यह धागा उन्हे विजयश्री के साथ वापस ले आएगा।
राखी के साथ एक और प्रसिद्ध कहानी जुड़ी हुई है।
मुगल काल के दौर में जब मुगल बादशाह हुमायूँ चितौड़ पर आक्रमण करने बढ़ा तो राणा सांगा की विधवा कर्मवती ने हुमायूँ को राखी भेजकर रक्षा वचन ले लिया। हुमायूँ ने इसे स्वीकार करके चितौड़ पर आक्रमण का ख़्याल दिल से निकाल दिया और कालांतर में मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज निभाने के लिए चितौड़ की रक्षा हेतु बहादुरशाह के विरूद्ध मेवाड़ की ओर से लड़ते हुए कर्मावती और मेवाड़ राज्य की रक्षा की।
सुभद्राकुमारी चौहान ने शायद इसी का उल्लेख अपनी कविता, 'राखी' में किया है:

मैंने पढ़ा, शत्रुओं को भी
जब-जब राखी भिजवाई
रक्षा करने दौड़ पड़े वे
राखी-बन्द शत्रु-भाई॥
सिकंदर की पत्नी ने अपने पति के हिंदू शत्रु पुरूवास को राखी बांध कर अपना मुंहबोला भाई बनाया और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन लिया । पुरूवास ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी राखी का और अपनी बहन को दिये हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवदान दिया।
ऐतिहासिक युग में भी सिंकदर व पोरस ने युद्ध से पूर्व रक्षा-सूत्र की अदला-बदली की थी। युद्ध के दौरान पोरस ने जब सिकंदर पर घातक प्रहार हेतु अपना हाथ उठाया तो रक्षा-सूत्र को देखकर उसके हाथ रूक गए और वह बंदी बना लिया गया। सिकंदर ने भी पोरस के रक्षा-सूत्र की लाज रखते हुए और एक योद्धा की तरह व्यवहार करते हुए उसका राज्य वापस लौटा दिया।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:25 PM
सप्तवार-कथा

सोमवार की कथा

बहुत समय पहले एक नगर में एक धनाढ्य व्यापारी रहता था। दूर-दूर तक उसका व्यापार फैला हुआ था। नगर में उस व्यापारी का सभी लोग मान-सम्मान करते थे। इतना सब कुछ होने पर भी वह व्यापारी अंतर्मन से बहुत दुखी था क्योंकि उस व्यापारी का कोई पुत्र नहीं था। दिन-रात उसे एक ही चिंता सताती रहती थी। उसकी मृत्यु के बाद उसके इतने बडे़ व्यापार और धन-संपत्ति को कौन संभालेगा!

Hamsafar+
28-12-2010, 01:25 PM
पुत्र पाने की इच्छा से वह व्यापारी प्रति सोमवार भगवान शिव की व्रत-उपासना किया करता था। सायंकाल को व्यापारी शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव के सामने घी का दीपक जलाया करता था। उस व्यापारी की भक्ति देखकर एक दिन पार्वतीजी ने भगवान शिव से कहा- 'हे प्राणनाथ, यह व्यापारी आपका सच्चा भक्त है। कितने दिनों से यह नियमित सोमवार का व्रत और पूजा कर रहा है। भगवान, आप इस व्यापारी की मनोकामना अवश्य पूर्ण करें।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:25 PM
भगवान शिव ने मुस्कराते हुए कहा- 'हे पार्वती! इस संसार में सबको उसके कर्म के अनुसार फल की प्राप्ति होती है। प्राणी जैसा कर्म करते हैं, उन्हें वैसा ही फल प्राप्त होता है। इसके बावजूद पार्वतीजी नहीं मानीं। उन्होंने आग्रह करते हुए कहा- 'नहीं प्राणनाथ! आपको इस व्यापारी की इच्छा पूरी करनी ही पडे़गी। यह आपका अनन्य भक्त है। प्रति सोमवार आपका विधिवत व्रत रखता है और पूजा-अर्चना के बाद आपको भोग लगाकर एक समय भोजन ग्रहण करता है। आपको इसकी पुत्र-प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण करनी ही होगी।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:25 PM
पार्वती का इतना आग्रह देखकर भगवान शिव ने कहा- 'तुम्हारे आग्रह पर मैं इस व्यापारी को पुत्र-प्राप्ति का वरदान देता हूँ, लेकिन इसका पुत्र 16 वर्ष से अधिक जीवित नहीं रहेगा। उसी रात भगवान शिव ने स्वप्न में उस व्यापारी को दर्शन देकर उसे पुत्र-प्राप्ति का वरदान दिया और उसके पुत्र के 16 वर्ष तक जीवित रहने की बात भी बताई।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:25 PM
भगवान के वरदान से व्यापारी को खुशी तो हुई, लेकिन पुत्र की अल्पायु की चिंता ने उस खुशी को नष्ट कर दिया। व्यापारी पहले की तरह सोमवार का विधिवत व्रत करता रहा। कुछ महीने पश्चात उसके घर अति सुंदर पुत्र-रत्न ने जन्म लिया। पुत्र जन्म से व्यापारी के घर में खुशियाँ भर गईं। बहुत धूमधाम से पुत्र-जन्म का समारोह मनाया गया। लेकिन व्यापारी को पुत्र-जन्म की अधिक खुशी नहीं हुई क्योंकि उसे पुत्र की अल्प आयु के रहस्य का पता था। यह रहस्य घर में किसी को नहीं मालूम था। विद्वान ब्राह्मणों ने उसके पुत्र का नाम अमर रखा।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:26 PM
जब अमर 12 वर्ष का हुआ तो शिक्षा के लिए उसे वाराणसी भेजने का निश्चय हुआ। व्यापारी ने अमर के मामा को बुलाया और कहा कि अमर को शिक्षा प्राप्त करने के लिए वाराणसी छोड़ आओ। अमर अपने मामा के साथ शिक्षा प्राप्त करने के लिए चल दिया। रास्ते में जहाँ भी अमर और उसके मामा रात्रि विश्राम के लिए ठहरते, वहीं यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते थे।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:26 PM
लंबी यात्रा के बाद अमर और उसके मामा एक नगर में पहुँचे। उस नगर के राजा की कन्या के विवाह की खुशी में पूरे नगर को सजाया गया था। निश्चित समय पर बारात आ गई लेकिन वर का पिता अपने बेटे के एक ऑंख से काने होने के कारण बहुत चिंतित था। उसे इस बात का भय सता रहा था कि राजा को इस बात का पता चलने पर कहीं वह विवाह से इनकार न कर दे। इससे उसकी बदनामी होगी।
वर के पिता ने अमर को देखा तो उसके मस्तिष्क में एक विचार आया। उसने सोचा क्यों न इस लडके को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूँ। विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूँगा और राजकुमारी को अपने नगर में ले जाऊँगा।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:26 PM
वर के पिता ने इसी संबंध में अमर और उसके मामा से बात की। मामा ने धन मिलने के लालच में वर के पिता की बात स्वीकार कर ली। आमर को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से उसका विवाह कर दिया गया। राजा ने बहुत-सा धन देकर राजकुमारी को विदा किया।
अमर जब लौट रहा था तो सच नहीं छिपा सका और उसने राजकुमारी की ओढनी पर लिख दिया- 'राजकुमारी, तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ था, मैं तो वाराणसी में शिक्षा प्राप्त करने जा रहा हूँ। अब तुम्हें जिस नवयुवक की पत्नी बनना पडे़गा, वह काना है।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:26 PM
जब राजकुमारी ने अपनी ओढनी पर लिखा हुआ पढ़ा तो उसने काने लड़के के साथ जाने से इनकार कर दिया। राजा ने सब बातें जानकर राजकुमारी को महल में रख लिया। उधर अमर अपने मामा के साथ वाराणसी पहुँच गया। अमर ने गुरुकुल में पढ़ना शुरू कर दिया।
जब अमर की आयु 16 वर्ष पूरी हुई तो उसने एक यज्ञ किया। यज्ञ की समाप्ति पर ब्राह्मणों को भोजन कराया और खूब अन्न, वस्त्र दान किए। रात को अमर अपने शयनकक्ष में सो गया। शिव के वरदान के अनुसार शयनावस्था में ही अमर के प्राण-पखेरू उड़ गए। सूर्योदय पर मामा अमर को मृत देखकर रोने-पीटने लगा। आस-पास के लोग भी एकत्र होकर दु:ख प्रकट करने लगे।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:27 PM
मामा के रोने, विलाप करने के स्वर समीप से गुजरते हुए भगवान शिव और माता पार्वती ने भी सुने। पार्वतीजी ने भगवान से कहा- 'प्राणनाथ! मुझसे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहे। आप इस व्यक्ति के कष्ट अवश्य दूर करें। भगवान शिव ने पार्वतीजी के साथ अदृश्य रूप में समीप जाकर अमर को देखा तो पार्वतीजी से बोले- 'पार्वती! यह तो उसी व्यापारी का पुत्र है। मैंने इसे 16 वर्ष की आयु का वरदान दिया था। इसकी आयु तो पूरी हो गई।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:27 PM
पार्वतीजी ने फिर भगवान शिव से निवेदन किया- 'हे प्राणनाथ! आप इस लड़के को जीवित करें। नहीं तो इसके माता-पिता पुत्र की मृत्यु के शौक में रो-रोकर अपने प्राणों का त्याग कर देंगे। इस लड़के का पिता तो आपका परम भक्त है। वर्षों से सोमवार का व्रत करते हुए आपको भोग लगा रहा है। पार्वती के आग्रह करने पर भगवान शिव ने उसे जीवित होने का वरदान दिया और कुछ ही पल में अमर जीवित होकर उठ बैठा।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:27 PM
शिक्षा समाप्त करके अमर मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दिया। दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुँचे, जहाँ अमर का विवाह हुआ था। उस नगर में भी अमर ने यज्ञ का आयोजन किया। समीप से गुजरते हुए नगर के राजा ने यज्ञ का आयोजन देखा। राजा ने अमर को तुरंत पहचान लिया। यज्ञ समाप्त होने पर राजा अमर और उसके मामा को महल में ले गया और कुछ दिन उन्हें महल में रखकर बहुत-सा धन, वस्त्र देकर राजकुमारी के साथ विदा किया।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:27 PM
रास्ते में सुरक्षा के लिए राजा ने बहुत से सैनिकों को भी साथ भेजा। अमर के मामा ने नगर में पहुँचते ही एक दूत को घर भेजकर अपने आगमन की सूचना भेजी। अपने बेटे अमर के जीवित वापस लौटने की सूचना से व्यापारी बहुत प्रसन्न हुआ। व्यापारी ने अपनी पत्नी के साथ स्वयं को एक कमरे में बंद कर रखा था। भूखे-प्यासे रहकर व्यापारी और उसकी पत्नी बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने प्रतिज्ञा कर रखी थी कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो दोनों अपने प्राण त्याग देंगे।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:28 PM
व्यापारी अपनी पत्नी और मित्रों के साथ नगर के द्वार पर पहुँचा। अपने बेटे के विवाह का समाचार सुनकर, पुत्रवधू राजकुमारी चंद्रिका को देखकर उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा- 'हे श्रेष्ठी! मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लंबी आयु प्रदान की है। व्यापारी बहुत प्रसन्न हुआ।
सोमवार का व्रत करने से व्यापारी के घर में खुशियाँ लौट आईं। शास्त्रों में लिखा है कि जो स्त्री-पुरुष सोमवार का विधिवत व्रत करते और व्रतकथा सुनते हैं उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:33 PM
मंगलवार व्रत कथा

ॠषिनगर में केशवदत्त ब्राह्मण अपनी पत्नी अंजलि के साथ रहता था। केशव दत्त के घर में धन-सम्पत्ति की कोई कमी नहीं थी। नगर में सभी केशवदत्त का सम्मान करते थे, लेकिन केशवदत्त सन्तान नहीं होने से बहुत चिन्तित रहता था। उसकी पत्नी अंजलि भी सन्तान की चिन्ता में बहुत कमजोर हो गई थी। दोनों पति-पत्नी प्रति मंगलवार को मंदिर में जाकर हनुमान जी की पूजा किया करते थे। मंगलवार का विधिवत व्रत करते हुए उन्हें कई वर्ष बीत गए थे। ब्राह्मण बहुत निराश हो गया था, लेकिन उसने व्रत करना नहीं छोड़ा था। कुछ दिनों के बाद केशवदत्त हनुमानजी की पूजा करने के लिए जंगल में चला गया। उसकी पत्नी अंजलि घर में रहकर मंगलवार का व्रत करने लगी। दोनों पति-पत्नी पुत्र-प्राप्ति के लिए मंगलवार का विधिवत व्रत करने लगे।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:33 PM
कुछ दिनों बाद अंजलि ने अगले मंगलवार का व्रत किया, लेकिन किसी कारणवश उस दिन अंजलि हनुमानजी का भोग नहीं लगा सकी। हनुमानजी को भोग लगाए बिना वह स्वयं भी भोजन कैसे करती? सो उस दिन अंजलि सूर्य छिप जाने पर भूखी ही सो गई। अगले मंगलवार को हनुमानजी को भोग लगाए बिना उसने भोजन नहीं करने का प्रण कर लिया। छ: दिन तक अंजलि भूखी-प्यासी रही। सातवें दिन मंगलवार को अंजलि ने हनुमानजी की पूजा की, लेकिन तभी भूख-प्यास के कारण अंजलि बेहोश हो गई। हनुमानजी ने उसे स्वप्न में दर्शन देते हुए कहा, उठो पुत्री! मैं तुम्हारे पूजा-पाठ से बहुत प्रसन्न हूं। तुम्हें सुंदर व सुयोग्य पुत्र होने का आशीर्वाद देता हूं। जब यह कहकर हनुमान जी अंतर्धान हो गए। तभी अंजलि की बेहोशी दूर हो गई। उसने जल्दी से उठ कर हनुमानजी को भोग लगाया और स्वयं भी भोजन किया।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:33 PM
हनुमान जी की अनुकंपा से नौ महीने के पश्चात अंजलि ने एक सुंदर शिशु को जन्म दिया। मंगलवार को जन्म लेने के कारण उस बच्चे का नाम मंगल प्रसाद रखा गया। कुछ दिनों बाद अंजलि का पति केशवदत्त भी घर को लौट आया। उसने आंगन में खेलते मंगल को देखा तो अंजलि से पूछा, च्यह सुंदर बच्चा किसका है? अंजलि ने खुश होते हुए हनुमानजी के दर्शन देने और पुत्र प्राप्त होने का वरदान देने की सारी कथा सुना दी। लेकिन केशव दत्त को उसकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ। उसके मन में पता नहीं कैसे यह कलुषित विचार आ गया कि अंजलि ने उसके साथ विश्वासघात किया है। अपने पापों को छिपाने के लिए अंजलि झूठ बोल रही है।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:34 PM
केशवदत्त ने उस बच्चे को मार डालने का संकल्प किया। एक दिन घर से बाहर कुछ दूरी पर बने हुए कुंए पर केशवदत्त स्नान के लिए गया। मंगल भी उसके पीछे-पीछे कुंए पर पहुंच गया। केशवदत्त ने स्नान के बाद मंगल को उठाकर उस कुंए में डाल दिया और चुपचाप घर लौट आया। अंजलि ने उस के साथ मंगल को नहीं देखा तो उससे पूछा, च् मैंने मंगल को आपके पीछे जाते देखा था। वह आपके साथ लौटकर क्यों नहीं आया? केशवदत्त ने कहा, मंगल तो मेरे पास कुंए पर पहुंचा ही नहीं। वह कहीं खेलने लग गया होगा. अभी केशवदत्त ने यह कहा ही था कि तभी मंगल दौड़ता हुआ घर लौट आया।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:34 PM
केशवदत्त मंगल को देखकर बुरी तरह हैरान हो उठा। उसी रात हनुमान जी ने केशवदत्त को स्वप्न में दर्शन देते हुए कहा, तुम दोनों के मंगलवार के व्रत करने से प्रसन्न होकर, पुत्र-जन्म का वर दिया था। फिर तुम अपनी पत्नी को कुलटा क्यों समझते हो? यह कहकर हनुमानजी अंतर्धान हो गए। तभी बिस्तर से उठकर केशवदत्त ने दीपक जलाकर रोशनी की और अंजलि को जगाकर उससे क्षमा मांगते हुए स्वप्न में हनुमानजी के दर्शन देने की सारी कहानी सुनाई। केशवदत्त ने अपने बेटे को हृदय से लगाकर प्यार किया। उस दिन के बाद सभी आनंदपूर्वक रहने लगे। मंगलवार का विधिवत व्रत करने से उनके घर के सभी कष्ट नष्ट हो गए। इस तरह जो स्त्री-पुरुष विधिवत मंगल वार का व्रत करके, व्रत कथा सुनते हैं, हनुमानजी उनके सभी कष्ट दूर करके घर में धन-सम्पत्ति का भण्डार भर देते हैं। शरीर के सभी रक्त विकार के रोग भी नष्ट हो जाते हैं।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:35 PM
हनुमान जी की आरती (भोजपुरी )


आरती कर हनुमान लला के ,
दुष्ट दलन रघुनाथ कला के॥
आरती कर हनुमान लला के....
जेकरा बल से गिरिवर कांपेला,
रोग द्वेष जेकरा निकट ना आवेला॥
अंजनी पुत्र महा बल्वाले,
संतानं के सदा सुहालें॥
देके बीरा रघुनाथ जी के सेव्लें,
लंका जरैलें, सीता के सुधि लाइलें॥
लंका किनारे रहल समुन्दर ओरो खाई,
गैलें पवनसुत वापस ना आइलें॥
लंका जरैलें असुरन के मर्लें,
श्री रामजी के काम सम्भल्लें॥
लक्ष्मण मूर्छित भैलें,
संजीवन लाके जान बचैलें॥
पैठ रहल पताल, यम् लोक सारे,
अहिरावन के भुजा उखार्लें॥
बायें हाँथ से असुरन के मर्लें,
दाहिने हाँथ से संत लोगन के तर्लें॥
सुर नर मुनि सभे आरती उतर्लस,
जय जय जय हनुमान उच्चार्लस॥
कंचन थाली कपूर लौ लगावल रहे,
आरती कैली अंजना माई॥
जे हनुमान जी के आरती गावे,
बैकुंठ जाके परम पद पावे॥
आरती..

Hamsafar+
28-12-2010, 01:36 PM
हनुमान जी की आरती (hindi )

आरती की जय हनुमान लला की,
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की । आरती .....



जाके बल से गिरिधर काम्पें,
रोग द्वेष जाके निकट ना झाम्पें॥
अंजनी पुत्र महा बल दाई ,
संतन के प्रभु सदा सहाई॥
दे बीरा रघुनाथ पठाए,
लंका जारी सिया सुधि लाये॥
लंका सो कोट समुन्द्र सी खाई,
जात पवनसुत बार ना लाई॥
लंका जारी असुर संहारे,
सिया राम जी के काज संवारे॥
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे,
आनी संजीवन प्राण उबारे॥
पैठी पताल तोरी जम कारे,
अहिरावन के भुजा उखारे॥
बायें भुजा असुर दल मरे,
दहीने भुजा संतजन तारे॥
सुर ,नर, मुनि आरती उतारे,
जय जय जय हनुमान उचारे॥
कंचन थार कपूर लौ छाई,
आरती करत अंजना माई॥
जो हनुमान जी की आरती गावे,
बसी बैकुंठ परम पद पावे॥ आरती....

Hamsafar+
28-12-2010, 01:36 PM
हे प्रभु, आप हमें बुद्धि विवेक शक्ति दें
और समस्त प्राणियों को आप अपनी भक्ति दें..

दीन दुखियों का, आप करें बेडा पार
आपके प्रताप सुखी हो हर परिवार..

स्वार्थ और अंहकार, आप मिटा दें सारे जग से
प्रेम का उद्भव हो, हर जीव के रग- रग से ..

सभी आपने कार्यों को, निस्वार्थ पूरा कर पाएं
द्वेष और कलह से, कोई कष्ट नहीं पाए....

सभी धर्मं मिलकर' हो जाये एक धर्मं
सभी मानव जानें मानवता का मर्म...

किसी भी कारण से ना हो, कोई किसी से रूष्ट
अग्रजों को सम्मान देकर, सभी अनुज बनें शिष्ट...

अनुजों को प्रेम देकर, सभी बढाएं अपना मान
भक्ति भाव से सभी, करें आपका ही गुणगान...

सभी जीवों के दिल से हो, आपकी जय-जयकार
आपकी करूणा से, सुखी हो समस्त संसार..

Hamsafar+
28-12-2010, 01:38 PM
" शनि की महत्ता "

एक समय स्वर्गलोक में सबसे बड़ा कौन के प्रश्न को लेकर सभी देवताओं में वाद-विवाद प्रारम्भ हुआ और फिर परस्पर भयंकर युद्ध की स्थिति बन गई। सभी देवता देवराज इंद्र के पास पहुंचे और बोले, हे देवराज! आपको निर्णय करना होगा कि नौ ग्रहों में सबसे बड़ा कौन है? देवताओं का प्रश्न सुनकर देवराज इंद्र उलझन में पड़ गए। और कुछ देर सोच कर बोले, हे देवगणों! मैं इस प्रश्न का उत्तर देने में असमर्थ हूं। पृथ्वीलोक में उज्ज्यिनी नगरी में राजा विक्रमादित्य का राज्य है। हम राजा विक्रमादित्य के पास चलते हैं क्योंकि वह न्याय करने में अत्यंत लोकप्रिय हैं। उनके सिंहासन में अवश्य ही कोई जादू है कि उस पर बैठकर राजा विक्रमादित्य दूध का दूध और पानी का पानी अलग करने का न्याय करते हैं।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:39 PM
देवराज इंद्र के आदेश पर सभी देवता पृथ्वी लोक में उज्ज्यिनी नगरी में पहुंचे। देवताओं के आगमन का समाचार सुनकर स्वयं राजा विक्रमादित्य ने उनका स्वागत किया। महल में पहुंचकर जब देवताओं ने उनसे अपना प्रश्न पूछा तो राजा विक्रमादित्य भी कुछ देर के लिए परेशान हो उठे। क्योकि सभी देवता अपनी-अपनी शक्तियों के कारण महान शक्तिशाली थे। किसी को भी छोटा या बड़ा कह देने से उनके क्रोध के प्रकोप से भयंकर हानि पहुंच सकती थी। तभी राजा विक्रमादित्य को एक उपाय सूझा और उन्होंने विभिन्न धातुओं- स्वर्ण, रजत, कांसा, तांबा, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक, व लोहे के नौ आसन बनवाए।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:39 PM
धातुओं के गुणों के अनुसार सभी आसनों को एक-दूसरे के पीछे रखवा कर उन्होंने देवताओं को अपने-अपने सिंहासन पर बैठने को कहा। सब देवताओं के बैठने के बाद राजा विक्रमादित्य ने कहा, आपका निर्णय तो स्वयं हो गया। जो सबसे पहले सिंहासन पर विराजमान है, वही सबसे बड़ा है। राजा विक्रमादित्य के निर्णय को सुनकर शनि देवता ने सबसे पीछे आसन पर बैठने के कारण अपने को छोटा जानकर क्रोधित होकर कहा, राजन! तुमने मुझे सबसे पीछे बैठाकर मेरा अपमान किया है। तुम मेरी शक्तियों से परिचित नहीं हो। मैं तुम्हारा सर्वनाश कर दूंगा!

Hamsafar+
28-12-2010, 01:39 PM
सूर्य एक राशि पर एक महीने, चंद्रमा सवा दो दिन, मंगल डेढ़ महीने, बुध और शुक्र एक महीने, वृहस्पति तेरह महीने रहते हैं लेकिन मैं किसी राशि पर साढ़े सात वर्ष रहता हूं। बड़े-बड़े देवताओं को मैंने अपने प्रकोप से पीड़ित किया है। राम को साढ़े साती के कारण ही वन में जाकर रहना पड़ा और रावण को साढ़े साती के कारण ही युद्ध में मृत्यु का शिकार बनना पड़ा। उसके वंश का सर्वनाश हो गया। राजा! अब तू भी मेरे प्रकोप से नहीं बच सकेगा। राजा विक्रमादित्य शनि देवता के प्रकोप से थोड़ा भयभीत तो हुए, लेकिन उन्होंने मन में विचार किया, मेरे भाग्य में जो लिखा होगा, ज्यादा से ज्यादा वही तो होगा। फिर शनि के प्रकोप से भयभीत होने की आवश्यकता क्या है?

Hamsafar+
28-12-2010, 01:40 PM
उसके बाद अन्य ग्रहों के देवता तो प्रसन्नता के साथ वहां से चले गए, लेकिन शनिदेव बड़े क्रोध के साथ वहां से विदा हुए।
राजा विक्रमादित्य पहले की तरह ही न्याय करते रहे। उनके राज्य में सभी स्त्री पुरुष बहुत आनंद से जीवन-यापन कर रहे थे। कुछ दिन ऐसे ही बीत गए। उधर शनिदेवता अपने अपमान को भूले नहीं थे। विक्रमादित्य से बदला लेने के लिए एक दिन शनिदेव ने घोड़े के व्यापारी का रूप धारण किया और बहुत से घोड़ों के साथ उज्ज्यिनी नगरी में पहुंचे।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:40 PM
राजा विक्रमादित्य ने राज्य में किसी घोड़े के व्यापारी के आने का समाचार सुना तो अपने अश्वपाल को कुछ घोड़े खरीदने के लिए भेजा। अश्वपाल ने वहां जाकर घोड़ों को देखा तो बहुत खुश हुआ। लेकिन घोड़ों का मूल्य सुन कर उसे बहुत हैरानी हुई। घोड़े बहुत कीमती थे। अश्वपाल ने जब वापस लौटकर इस संबंध में बताया तो राजा ने स्वयं आकर एक सुंदर व शक्तिशाली घोड़े को पसंद किया। घोड़े की चाल देखने के लिए राजा उस घोड़े पर सवार हुआ तो वह घोड़ा बिजली की गति से दौड़ पड़ा। तेजी से दौड़ता हुआ घोड़ा राजा को दूर एक जंगल में ले गया और फिर राजा को वहां गिराकर जंगल में कहीं गायब हो गया। राजा अपने नगर को लौटने के लिए जंगल में भटकने लगा। लेकिन उसे लौटने का कोई रास्ता नहीं मिला। राजा को भूख-प्यास लग आई। बहुत घूमने पर उसे एक चरवाहा मिला। राजा ने उससे पानी मांगा। पानी पीकर राजा ने उस चरवाहे को अपनी अंगूठी दे दी। फिर उससे रास्ता पूछकर वह जंगल से बाहर निकलकर पास के नगर में पहुंचा।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:40 PM
राजा ने एक सेठ की दुकान पर बैठकर कुछ देर आराम किया। उस सेठ ने राजा से बातचीत की तो राजा ने उसे बताया कि मैं उज्ज्यिनी से आया हूं। राजा के कुछ देर दुकान पर बैठने से सेठजी की बहुत बिक्री हुई। सेठ ने राजा को बहुत भाग्यवान समझा और उसे अपने घर भोजन के लिए ले गया। सेठ के घर में सोने का एक हार खूंटी पर लटका हुआ था। राजा को उस कमरे में अकेला छोड़कर सेठ कुछ देर के लिए बाहर गया। तभी एक आश्चर्यजनक घटना घटी। राजा के देखते-देखते सोने के उस हार को खूंटी निगल गई। सेठ ने कमरे में लौटकर हार को गायब देखा तो चोरी का सन्देह राजा पर ही किया, क्योंकि उस कमरे में राजा ही अकेला बैठा था। सेठ ने अपने नौकरों से कहा कि इस परदेसी को रस्सियों से बांधकर नगर के राजा के पास ले चलो।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:40 PM
राजा ने विक्रमादित्य से हार के बारे में पूछा तो उसने बताया कि उसके देखते ही देखते खूंटी ने हार को निगल लिया था। इस पर राजा ने क्रोधित होकर चोरी करने के अपराध में विक्रमादित्य के हाथ-पांव काटने का आदेश दे दिया। राजा विक्रमादित्य के हाथ-पांव काटकर उसे नगर की सड़क पर छोड़ दिया गया। कुछ दिन बाद एक तेली उसे उठाकर अपने घर ले गया और उसे अपने कोल्हू पर बैठा दिया। राजा आवाज देकर बैलों को हांकता रहता। इस तरह तेली का बैल चलता रहा और राजा को भोजन मिलता रहा।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:41 PM
शनि के प्रकोप की साढ़े साती पूरी होने पर वर्षा ॠतु प्रारम्भ हुई। राजा विक्रमादित्य एक रात मेघ मल्हार गा रहा था कि तभी नगर के राजा की लड़की राजकुमारी मोहिनी रथ पर सवार उस तेली के घर के पास से गुजरी। उसने मेघ मल्हार सुना तो उसे बहुत अच्छा लगा और दासी को भेजकर गानेवाले को बुला लाने को कहा। दासी ने लौटकर राजकुमारी को अपंग राजा के बारे में सब कुछ बता दिया। राजकुमारी उसके मेघ मल्हार पर बहुत मोहित हुई थी। अत:उसने सब कुछ जानकर भी अपंग राजा से विवाह करने का निश्चय कर लिया। राज कुमारी ने अपने माता-पिता से जब यह बात कही तो वे हैरान रह गये।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:41 PM
राजा को लगा कि उसकी बेटी पागल हो गई है। रानी ने मोहिनी को समझाया, च्बेटी! तेरे भाग्य में तो किसी राजा की रानी होना लिखा है। फिर तू उस अपंग से विवाह करके अपने पांव पर कुल्हाड़ी क्यों मार रही है?ज् राजा ने किसी सुंदर राजकुमार से उसका विवाह करने की बात कही। लेकिन राजकुमारी ने अपनी जिद नहीं छोड़ी। अपनी जिद पूरी कराने के लिए उसने भोजन करना छोड़ दिया और प्राण त्याग देने का निश्चय कर लिया। आखिर राजा, रानी को विवश होकर अपंग विक्रमादित्य से राजकुमारी का विवाह करना पड़ा।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:42 PM
विवाह के बाद राजा विक्रमादित्य और राजकुमारी तेली के घर में रहने लगे। उसी रात स्वप्न में शनिदेव ने राजा से कहा,च्राजा! तुमने मेरा प्रकोप देख लिया। मैंने तुम्हें अपने अपमान का दण्ड दिया है।ज् राजा ने शनिदेव से क्षमा करने को कहा और प्रार्थना की,च्हे शनिदेव! आपने जितना दु:ख मुझे दिया है, अन्य किसी को न देना l शनिदेव ने कुछ सोचते हुए कहा,राजा ! मैं तेरी प्रार्थना स्वीकार करता हूं। जो कोई स्त्री-पुरुष मेरी पूजा करेगा, शनिवार को व्रत कर के मेरी कथा सुनेगा, उस पर मेरी अनुकम्पा बनी रहेगी। उसे कोई दुख नहीं होगा। शनिवार को व्रत करने और चींटियों को आटा डालने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:42 PM
प्रात:काल राजा विक्रमादित्य की नींद खुली तो अपने हाथ-पांव देखकर राजा को बहुत खुशी हुई। उसने मन-ही-मन शनिदेव को प्रणाम किया। राजकुमारी भी राजा के हाथ-पांव सही सलामत देखकर आश्चर्य में डूब गई। तब राजा विक्रमादित्य ने अपना परिचय देते हुए शनिदेव के प्रकोप की सारी कहानी कह सुनाई। सेठ को जब इस बात का पता चला तो दौड़ता हुआ तेली के घर पहुंचा और राजा के चरणों में गिरकर क्षमा मांगने लगा। राजा ने उसे क्षमा कर दिया, क्याकि यह सब तो शनिदेव के प्रकोप के कारण हुआ था। सेठ राजा को अपने घर ले गया और उसे भोजन कराया। भोजन करते समय वहां एक आश्चर्यजनक घटना घटी। सबके देखते-देखते उस खूंटी ने वह हार उगल दिया। सेठजी ने अपनी बेटी का विवाह भी राजा के साथ कर दिया और बहुत से स्वर्ण-आभूषण, धन आदि देकर राजा को विदा किया।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:42 PM
राजा विक्रमादित्य राजकुमारी मोहिनी और सेठ की बेटी के साथ उज्ज्यिनी पहुंचे तो नगरवासियों ने हर्ष से उनका स्वागत किया। उस रात उज्ज्यिनी नगरी में दीप जलाकर लोगों ने दीवाली मनाई। अगले दिन राजा विक्रमादित्य ने पूरे राज्य में घोषणा करवाई, शनी देव सब देवों में सर्वश्रेष्ठ हैं। प्रत्येक स्त्री पुरुष शनिवार को उनका व्रत करें और व्रत कथा अवश्य सुनें। राजा विक्रमादित्य की घोषणा से शनिदेव बहुत प्रसन्न हुए। शनिवार का व्रत करने और कथा सुनने के कारण सभी लोगों की मनोकामनाएं शनिदेव की अनुकम्पा से पूरी होने लगीं। सभी लोग आनन्दपूर्वक रहने लगे।

Hamsafar+
28-12-2010, 01:53 PM
http://myhindiforum.com/showthread.php?t=1769

इस सूत्र को यहाँ जोड़ लें...

Hamsafar+
28-12-2010, 01:54 PM
http://myhindiforum.com/showthread.php?t=1770

इस सूत्र को भी यहाँ स्थान दें.

Hamsafar+
28-12-2010, 01:55 PM
इतने लोग है यहाँ पे किसी को पसंद नहीं आया !:party:कोई बात नहीं भाई आपसभी का शुक्रिया
जय हो सत्यनारायण प्रभु की...

Hamsafar+
28-12-2010, 02:01 PM
http://myhindiforum.com/showthread.php?t=1769

इस सूत्र को यहाँ जोड़ लें...

http://myhindiforum.com/showthread.php?t=1770

इस सूत्र को भी यहाँ स्थान दें.
धन्यवाद सूत्र को जोड़ने के लिए !:bravo::bravo:

ABHAY
28-12-2010, 02:16 PM
यौग्दान के लिए शुक्रिया भाई माफ करे मै मोव नहीं कर पाया काम से निकल गया था

Hamsafar+
28-12-2010, 02:17 PM
यौग्दान के लिए शुक्रिया भाई माफ करे मै मोव नहीं कर पाया काम से निकल गया था
पर हो तो गया न. अब ठीक हे
:bravo::bravo:

ABHAY
28-12-2010, 02:24 PM
पर हो तो गया न. अब ठीक हे
:bravo::bravo:

:bravo: बधाई हो !:bravo:

Hamsafar+
28-12-2010, 02:48 PM
फिलहाल चलना होगा. ब्रेक के बाद मतलब १ से २ घंटे लग सकते हे. आप कवरिंग करो ! गुड ल़क!:bravo:

EGALLOVE
29-12-2010, 12:38 PM
माता वैष्णों के दरबार में दोनों समय होने वाली आरती


हे मात मेरी...........हे मात मेरी
कैसे ये देर लगाई है दुर्गे, हे मात मेरी हे मात मेरी ।
भवसागर में गिरा पड़ाहूँ, काम आदि गह में घिरा पड़ा हूँ
मोह आदि जाल में जकड़ा हँ
हे मात मेरी, हे मात मेरी................

न मुझमें बल है न मुझमें विघा
न मुझमें भक्ति न मुझमें शक्ति
शरण तुम्हारी गिरा पड़ा हूँ । । हे मात मेरी ।। 2 ।।

न कोई मेरा कुटुम्बी साथी, ना ही मेरा शरीर साथी
चरण कमल की नौका बनाकर,
मैं पार हूँगा खुशी मनाकर
यमदूतों को मार भगाकर ।। 2 ।।

सदा ही तेरे गुणो को गाऊँ, सदा ही तेरे स्वरुप को ध्याऊँ
नित्य प्रति तेरे गुणों को गाऊँ ।। हे मात मेरी ।। 2।।

न मैं किसी का न कोई मेरा, छाया है चारों तरफ अँधेरा
पकड़ के ज्योति दिखा दो रास्ता हे मात मेरी ।।
शरण में पड़े है हम तुम्हारी, करो ये नैया पार हमारी
कैसे से देर लगाई है दुर्गे हे मात मेरी..........

EGALLOVE
29-12-2010, 12:39 PM
सोमवार की आरती
जय शिव ओंकारा, भज शिव ओंकारा।

ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव अद्र्धागी धारा॥ \हर हर हर महादेव॥

एकानन, चतुरानन, पंचानन राजै।

हंसासन, गरुड़ासन, वृषवाहन साजै॥ \हर हर ..

दो भुज चारु चतुर्भुज, दशभुज ते सोहे।

तीनों रूप निरखता, त्रिभुवन-जन मोहे॥ \हर हर ..

अक्षमाला, वनमाला, रुण्डमाला धारी।

त्रिपुरारी, कंसारी, करमाला धारी। \हर हर ..

श्वेताम्बर, पीताम्बर, बाघाम्बर अंगे।

सनकादिक, गरुड़ादिक, भूतादिक संगे॥ \हर हर ..

कर मध्ये सुकमण्डलु, चक्र शूलधारी।

सुखकारी, दुखहारी, जग पालनकारी॥ \हर हर ..

ब्रह्माविष्णु सदाशिव जानत अविवेका।

प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका। \हर हर ..

त्रिगुणस्वामिकी आरती जो कोई नर गावै।

कहत शिवानन्द स्वामी मनवान्छित फल पावै॥ \हर हर ..

EGALLOVE
29-12-2010, 12:39 PM
हर हर हर महादेव।

सत्य, सनातन, सुन्दर शिव! सबके स्वामी।

अविकारी, अविनाशी, अज, अन्तर्यामी॥ हर हर .

आदि, अनन्त, अनामय, अकल कलाधारी।

अमल, अरूप, अगोचर, अविचल, अघहारी॥ हर हर..

ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर, तुम त्रिमूर्तिधारी।

कर्ता, भर्ता, धर्ता तुम ही संहारी॥ हरहर ..

रक्षक, भक्षक, प्रेरक, प्रिय औघरदानी।

साक्षी, परम अकर्ता, कर्ता, अभिमानी॥ हरहर ..

मणिमय भवन निवासी, अति भोगी, रागी।

सदा श्मशान विहारी, योगी वैरागी॥ हरहर ..

छाल कपाल, गरल गल, मुण्डमाल, व्याली।

चिताभस्मतन, त्रिनयन, अयनमहाकाली॥ हरहर ..

प्रेत पिशाच सुसेवित, पीत जटाधारी।

विवसन विकट रूपधर रुद्र प्रलयकारी॥ हरहर ..

शुभ्र-सौम्य, सुरसरिधर, शशिधर, सुखकारी।

अतिकमनीय, शान्तिकर, शिवमुनि मनहारी॥ हरहर ..

निर्गुण, सगुण, निर†जन, जगमय, नित्य प्रभो।

कालरूप केवल हर! कालातीत विभो॥ हरहर ..

सत्, चित्, आनन्द, रसमय, करुणामय धाता।

प्रेम सुधा निधि, प्रियतम, अखिल विश्व त्राता। हरहर ..

हम अतिदीन, दयामय! चरण शरण दीजै।

सब विधि निर्मल मति कर अपना कर लीजै। हरहर ..

EGALLOVE
29-12-2010, 12:40 PM
शीश गंग अर्धग पार्वती सदा विराजत कैलासी।

नंदी भृंगी नृत्य करत हैं, धरत ध्यान सुखरासी॥

शीतल मन्द सुगन्ध पवन बह बैठे हैं शिव अविनाशी।

करत गान-गन्धर्व सप्त स्वर राग रागिनी मधुरासी॥

यक्ष-रक्ष-भैरव जहँ डोलत, बोलत हैं वनके वासी।

कोयल शब्द सुनावत सुन्दर, भ्रमर करत हैं गुंजा-सी॥

कल्पद्रुम अरु पारिजात तरु लाग रहे हैं लक्षासी।

कामधेनु कोटिन जहँ डोलत करत दुग्ध की वर्षा-सी॥

सूर्यकान्त सम पर्वत शोभित, चन्द्रकान्त सम हिमराशी।

नित्य छहों ऋतु रहत सुशोभित सेवत सदा प्रकृति दासी॥

ऋषि मुनि देव दनुज नित सेवत, गान करत श्रुति गुणराशी।

ब्रह्मा, विष्णु निहारत निसिदिन कछु शिव हमकू फरमासी॥

ऋद्धि सिद्ध के दाता शंकर नित सत् चित् आनन्दराशी।

जिनके सुमिरत ही कट जाती कठिन काल यमकी फांसी॥

त्रिशूलधरजी का नाम निरन्तर प्रेम सहित जो नरगासी।

दूर होय विपदा उस नर की जन्म-जन्म शिवपद पासी॥

कैलाशी काशी के वासी अविनाशी मेरी सुध लीजो।

सेवक जान सदा चरनन को अपनी जान कृपा कीजो॥

तुम तो प्रभुजी सदा दयामय अवगुण मेरे सब ढकियो।

सब अपराध क्षमाकर शंकर किंकर की विनती सुनियो॥

EGALLOVE
29-12-2010, 12:41 PM
अभयदान दीजै दयालु प्रभु, सकल सृष्टि के हितकारी।

भोलेनाथ भक्त-दु:खगंजन, भवभंजन शुभ सुखकारी॥

दीनदयालु कृपालु कालरिपु, अलखनिरंजन शिव योगी।

मंगल रूप अनूप छबीले, अखिल भुवन के तुम भोगी॥

वाम अंग अति रंगरस-भीने, उमा वदन की छवि न्यारी। भोलेनाथ

असुर निकंदन, सब दु:खभंजन, वेद बखाने जग जाने।

रुण्डमाल, गल व्याल, भाल-शशि, नीलकण्ठ शोभा साने॥

गंगाधर, त्रिसूलधर, विषधर, बाघम्बर, गिरिचारी। भोलेनाथ ..

यह भवसागर अति अगाध है पार उतर कैसे बूझे।

ग्राह मगर बहु कच्छप छाये, मार्ग कहो कैसे सूझे॥

नाम तुम्हारा नौका निर्मल, तुम केवट शिव अधिकारी। भोलेनाथ ..

मैं जानूँ तुम सद्गुणसागर, अवगुण मेरे सब हरियो।

किंकर की विनती सुन स्वामी, सब अपराध क्षमा करियो॥

तुम तो सकल विश्व के स्वामी, मैं हूं प्राणी संसारी। भोलेनाथ ..

काम, क्रोध, लोभ अति दारुण इनसे मेरो वश नाहीं।

द्रोह, मोह, मद संग न छोड़ै आन देत नहिं तुम तांई॥

क्षुधा-तृषा नित लगी रहत है, बढ़ी विषय तृष्णा भारी। भोलेनाथ ..

तुम ही शिवजी कर्ता-हर्ता, तुम ही जग के रखवारे।

तुम ही गगन मगन पुनि पृथ्वी पर्वतपुत्री प्यारे॥

तुम ही पवन हुताशन शिवजी, तुम ही रवि-शशि तमहारी। भोलेनाथ

पशुपति अजर, अमर, अमरेश्वर योगेश्वर शिव गोस्वामी।

वृषभारूढ़, गूढ़ गुरु गिरिपति, गिरिजावल्लभ निष्कामी।

सुषमासागर रूप उजागर, गावत हैं सब नरनारी। भोलेनाथ ..

महादेव देवों के अधिपति, फणिपति-भूषण अति साजै।

दीप्त ललाट लाल दोउ लोचन, आनत ही दु:ख भाजै।

परम प्रसिद्ध, पुनीत, पुरातन, महिमा त्रिभुवन-विस्तारी। भोलेनाथ ..

ब्रह्मा, विष्णु, महेश, शेष मुनि नारद आदि करत सेवा।

सबकी इच्छा पूरन करते, नाथ सनातन हर देवा॥

भक्ति, मुक्ति के दाता शंकर, नित्य-निरंतर सुखकारी। भोलेनाथ ..

महिमा इष्ट महेश्वर को जो सीखे, सुने, नित्य गावै।

अष्टसिद्धि-नवनिधि-सुख-सम्पत्ति स्वामीभक्ति मुक्ति पावै॥

श्रीअहिभूषण प्रसन्न होकर कृपा कीजिये त्रिपुरारी। भोलेनाथ .

ABHAY
30-12-2010, 11:32 AM
अभयदान दीजै दयालु प्रभु, सकल सृष्टि के हितकारी।


.

इस यौग्दान के लिए शुक्रिया मित्र :bravo::bravo:
+ कबुल करे

chhotu
05-01-2011, 06:15 PM
यदि कोई मन्त्र या आरती वगेरा मैं भी लिख दूं तो क्या मैं यहाँ लिख सकता हूँ i

YUVRAJ
05-01-2011, 08:28 PM
निसंकोच … सहयोगपूर्ण भाव से योगदान करें।
धन्यवाद।
यदि कोई मन्त्र या आरती वगेरा मैं भी लिख दूं तो क्या मैं यहाँ लिख सकता हूँ i

ABHAY
16-01-2011, 04:51 AM
मन वाणी में वो शक्ति कहाँ
सुख-वरण प्रभु, नारायण, हे, दु:ख-हरण प्रभु, नारायण, हे,
तिरलोकपति, दाता, सुखधाम, स्वीकारो मेरे परनाम,
प्रभु, स्वीकारो मेरे परनाम...

मन वाणी में वो शक्ति कहाँ, जो महिमा तुम्हरी गान करें,
अगम अगोचर अविकारी, निर्लेप हो, हर शक्ति से परे,
हम और तो कुछ भी जाने ना, केवल गाते हैं पावन नाम ,
स्वीकारो मेरे परनाम, प्रभु, स्वीकारो मेरे परनाम...

आदि मध्य और अन्त तुम्ही, और तुम ही आत्म अधारे हो,
भगतों के तुम प्राण, प्रभु, इस जीवन के रखवारे हो,
तुम में जीवें, जनमें तुम में, और अन्त करें तुम में विश्राम,
स्वीकारो मेरे परनाम, प्रभु, स्वीकारो मेरे परनाम...

चरन कमल का ध्यान धरूँ, और प्राण करें सुमिरन तेरा,
दीनाश्रय, दीनानाथ, प्रभु, भव बंधन काटो हरि मेरा,
शरणागत के (घन)श्याम हरि, हे नाथ, मुझे तुम लेना थाम,
स्वीकारो मेरे परनाम, प्रभु, स्वीकारो मेरे परनाम...

ABHAY
16-01-2011, 04:53 AM
भये प्रगट कृपाला
भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी .
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी ..

लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी .
भूषन वनमाला नयन बिसाला सोभासिन्धु खरारी ..

कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता .
माया गुन ग्यानातीत अमाना वेद पुरान भनंता ..

करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता .
सो मम हित लागी जन अनुरागी भयौ प्रकट श्रीकंता ..

ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै .
मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै ..

उपजा जब ग्याना प्रभु मुसुकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै .
कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ..

माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा .
कीजे सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा ..

सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा .
यह चरित जे गावहि हरिपद पावहि ते न परहिं भवकूपा ..

बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार .
निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार ..

ABHAY
16-01-2011, 04:56 AM
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..

जो सुख पाऊँ राम भजन में
सो सुख नाहिं अमीरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..

भला बुरा सब का सुन लीजै
कर गुजरान गरीबी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..

आखिर यह तन छार मिलेगा
कहाँ फिरत मग़रूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..

प्रेम नगर में रहनी हमारी
साहिब मिले सबूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..

कहत कबीर सुनो भयी साधो
साहिब मिले सबूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..

ABHAY
16-01-2011, 04:57 AM
राम से बड़ा राम का नाम
राम से बड़ा राम का नाम
अंत में निकला ये परिणाम, ये परिणाम
राम से बड़ा राम का नाम ....

सिमरिये नाम रूप बिनु देखे
कौड़ी लगे ना दाम
नाम के बांधे खिंचे आयेंगे
आखिर एक दिन राम
राम से बड़ा राम का नाम ....

जिस सागर को बिना सेतु के
लांघ सके ना राम
कूद गये हनुमान उसी को
लेकर राम का नाम
राम से बड़ा राम का नाम ....

वो दिलवाले डूब जायेंगे और वो दिलवाले क्या पायेंगे
जिनमें नहीं है नाम
वो पत्थर भी तैरेंगे जिन पर
लिखा हुआ श्री राम.
राम से बड़ा राम का नाम ....

ABHAY
16-01-2011, 04:59 AM
दर्शन दो घनश्याम नाथ
दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी अँखियाँ प्यासी रे..
मन मंदिर में ज्योत जला दो घट घट वासी रे...


मंदिर मंदिर मूरत तेरी फिर भी न दीखे सूरत तेरी .
युग बीते ना आई मिलन की पूरनमासी रे ..
दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरि अँखियाँ प्यासी रे ..

द्वार दया का जब तू खोले पंचम सुर में गूंगा बोले .
अंधा देखे लंगड़ा चल कर पँहुचे काशी रे ..
दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरि अँखियाँ प्यासी रे ..

पानी पी कर प्यास बुझाऊँ नैनन को कैसे समजाऊँ .
आँख मिचौली छोड़ो अब तो घट घट वासी रे ..
दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरि अँखियाँ प्यासी रे ..

ABHAY
16-01-2011, 05:00 AM
मन तरपत हरि दर्शन को आज
हरि ॐ, हरि ॐ, हरि ॐ, हरि ॐ

मन तरपत हरि दर्शन को आज,
मोरे तुम बिन बिगरे सगरे काज

बिनति करत हू, रखियो लाज ......

मन तरपत हरि दर्शन को आज

तुमरे द्वार का मैँ हू जोगी,

हमरी ओर नजर कब होगी

सुनो मोरे ब्याकुल मन का बाज.......

मन तरपत हरि दर्शन को आज

बिन गुरु ग्यान कहा से पाऊ,

दिजो दान हरि गुन गाऊ

सब गुनी जन पे तुमरा राज.....

मन तरपत हरि दर्शन को आज

मुरली मनोहर आस ना तोडो,

दुःख भंजन मोरा साथ ना छोडो

मोहे दर्शन भीक्षा दे दो
आज दे दो आज

मुरली मनोहर मोहन गिरधर

हरि ॐ हरि ॐ

ABHAY
16-01-2011, 05:01 AM
नाम जपन क्यों छोड़ दिया
नाम जपन क्यों छोड़ दिया

क्रोध न छोड़ा झूठ न छोड़ा
सत्य बचन क्यों छोड दिया

झूठे जग में दिल ललचा कर
असल वतन क्यों छोड दिया

कौड़ी को तो खूब सम्भाला
लाल रतन क्यों छोड दिया

जिन सुमिरन से अति सुख पावे
तिन सुमिरन क्यों छोड़ दिया

खालस इक भगवान भरोसे
तन मन धन क्यों ना छोड़ दिया

नाम जपन क्यों छोड़ दिया ॥

ABHAY
16-01-2011, 05:03 AM
सखिन्ह मध्य सिय सोहति कैसे...
संग सखीं सुदंर चतुर गावहिं मंगलचार।
गवनी बाल मराल गति सुषमा अंग अपार॥२६३॥

सखिन्ह मध्य सिय सोहति कैसे। छबिगन मध्य महाछबि जैसें॥
कर सरोज जयमाल सुहाई। बिस्व बिजय सोभा जेहिं छाई॥१॥

तन सकोचु मन परम उछाहू। गूढ़ प्रेमु लखि परइ न काहू॥
जाइ समीप राम छबि देखी। रहि जनु कुँअरि चित्र अवरेखी॥२॥

चतुर सखीं लखि कहा बुझाई। पहिरावहु जयमाल सुहाई॥
सुनत जुगल कर माल उठाई। प्रेम बिबस पहिराइ न जाई॥३॥

सोहत जनु जुग जलज सनाला। ससिहि सभीत देत जयमाला॥
गावहिं छबि अवलोकि सहेली। सियँ जयमाल राम उर मेली॥४॥

ABHAY
16-01-2011, 05:07 AM
पायो जी मैंने, राम रतन धन पायो ..
पायो जी मैंने, राम रतन धन पायो ..

वस्तु अमोलिक, दी मेरे सतगुरु, किरपा करि अपनायो

जनम जनम की पूंजी पाई, जग में सभी खोवायो

खरचै न खूटै, जाको चोर न लूटै, दिन दिन बढ़त सवायो

सत की नाव, खेवटिया सतगुरु, भवसागर तर आयो

मीरा के प्रभु गिरिधर नागर, हरष हरष जस गायो...

ABHAY
16-01-2011, 05:08 AM
घूँघट का पट खोल रे
घूँघट का पट खोल रे,
तोहे पिया मिलेंगे।

घट घट रमता राम रमैया,
कटुक बचन मत बोल रे॥

रंगमहल में दीप बरत है,
आसन से मत डोल रे॥

कहत कबीर सुनो भाई साधों,
अनहद बाजत ढोल रे॥

ABHAY
16-01-2011, 05:09 AM
मंगल मुरत मारुतिनंदन हे बजरंगबली
जै श्री हनुमान जै श्री हनुमान

मंगल मूरती मारुत नंदन, सकल अमंगल मूल निकंदन |

पवनतनय संतन हितकारी, ह्रदय विराजत अवध बिहारी | |

जै जै जै बजरंगबली ...३

महावीर हनुमान गौसाई,

महावीर हनुमान गौसाई,

तुम्हरी याद भली ......

जै जै जै बजरंगबली .....२

साधु संत के हनुमत प्यारे, भक्त ह्रदय श्री राम दुलारे .....२

राम रसायन पास तुम्हारे, सदा रहो तुम राम द्वारे,

तुम्हारी कृपा से हनुमत वीरा .....२

सगली विपत्त टली .......

जै जै जै बजरंगबली .....२

महावीर हनुमान गौसाई....२,

तुम्हरी याद भली .......

जै जै जै बजरंगबली ...२

जय जय श्री हनुमान २...

जै जै जै बजरंगबली. ..



तुम्हरी शरण महा सुखदाई, जय जय हनुमान गौसाई ...२

तुम्हरी महिमा तुलसी गाई, जगजननी सीता महा माई,

शिव शक्ती की तुम्हरे ह्रदय, ज्योत महान जली ...जै जै जै बजरंगबली ...२

महावीर हनुमान गौसाई....२

तुम्हरी याद भली.......

जै जै जै बजरंगबली....२

जय जय श्री हनुमान ......२

जै जै जै बजरंगबली. ....