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View Full Version : क्या आपको भारत पर गर्व है?


amit_tiwari
22-11-2010, 09:34 AM
मुझे व्यक्तिगत रूप से आज के भारत का नागरिक होने पर कोई गर्व नहीं है और ना ही इसका कोई कारण समझ आता है |
निशांत भाई की कही बात को ही और आगे बढ़ाते हुए मैं यही कहूँगा कि आज जब बाकि सारे देश अपनी सफलता का ओर्केस्ट्रा बजा रहे हैं तब हम मात्र भूतकाल की पिपहरी फूंक रहे हैं |

निकम्मा नेतृत्व कफ़न चुरा के पैसे कम रहा है, प्रशासन से जुड़े लोग फ़्लैट में घोटाला कर रहे हैं, धार्मिक वर्ग राजनीति करके इच्छापूर्ति कर रहे हैं, युवा अपनी संकृति का klpd करके क्या क्या कर रहे हैं ये किसी को बताने की जरुरत नहीं है और हर बात पर निरूपा राय की तरह रोने वाला आम नागरिक वर्ग हर छोटे से छोटे मौके का फायदा उठा कर जुगाड़ बना रहा है |
जो लोग चौराहे में सिपाही के पांच रुपये लेने पर भागीरथ बन जाते हैं वही बीएड में अपने बेटे को एडमिशन दिलाने के एक-डेढ़ लाख आराम से देने को तैयार हैं | शायद देश के बाकी हिस्सों के लोग परिचित ना हों किन्तु इस समय यूपी में बीएड भर्ती के नाम पर जो घोटाला गबन खुले आम आम जनता द्वारा किया जा रहा है वो बोफोर्स या तेलगी मामले को बौना बना दे | ५-५ साल के तीन बच्चों वाले स्कुल के नाम पर ५ बीएड मास्टर २१ हजार की तनख्वाह उड़ा रहे हैं | कोई इस घोटाले की कीमत आंके तो सही, शायद गिनती ख़त्म हो जाये |

देश में व्यापर बढ़ रहा है,,,,, किसका? मोबाइल का? टीवी का? सबसे सस्ती कही जाने वाली दाल रोटी भी आज लोग सहन नहीं कर सकते और सरकार प्रचार करा रही है की पीली मटर दाल खाओ | ऐसे देश का नागरिक होने पर क्या गर्व करूँ |

देश के लोग बाहर जा कर नाम कमा रहे हैं !!! हाँ ये सच है, जो कुछ काबिल लोग यहाँ कुछ भी करने में असमर्थ थे वो बाहर अवसर मिलते ही प्रतिस्पर्धा को जीत लेते हैं! ये उनकी म्हणत और काबिलियत है किन्तु इस देश में रहते हुए किसी घाट नहीं लगते | सबसे अधिक क्षमता होते हुए भी भारतीय सबसे कम वेतन पर बाहर नौकरी पते हैं ( यूरोपीय समकक्षों की तुलना में ) हर साल नस्ली भेदभाव झेलते हैं, मार खाते हैं | इसलिए नहीं की हम उतने गोरे नहीं हैं, इसलिए क्यूंकि हम गरीब देश से आते हैं |
घाट से याद आया पतितपावनी को साफ़ करने के नाम पर कितने करोड़ फूंके ये किसी को याद आया? क्या गंगा साफ़ हुई? क्या सिर्फ नेताओं ने इसमें पैसा खाया? गंगा को मैया कहते हैं और उसी मैया के नाम का पैसा खा गए ऐसी है हमारी तात्कालिक सभ्यता !!!

मुझे शर्म आती है ऐसे तात्कालिक भारत पर !!!

anjaan
22-11-2010, 09:58 AM
मुझे व्यक्तिगत रूप से आज के भारत का नागरिक होने पर कोई गर्व नहीं है और ना ही इसका कोई कारण समझ आता है |
निशांत भाई की कही बात को ही और आगे बढ़ाते हुए मैं यही कहूँगा कि आज जब बाकि सारे देश अपनी सफलता का ओर्केस्ट्रा बजा रहे हैं तब हम मात्र भूतकाल की पिपहरी फूंक रहे हैं |

निकम्मा नेतृत्व कफ़न चुरा के पैसे कम रहा है, प्रशासन से जुड़े लोग फ़्लैट में घोटाला कर रहे हैं, धार्मिक वर्ग राजनीति करके इच्छापूर्ति कर रहे हैं, युवा अपनी संकृति का klpd करके क्या क्या कर रहे हैं ये किसी को बताने की जरुरत नहीं है और हर बात पर निरूपा राय की तरह रोने वाला आम नागरिक वर्ग हर छोटे से छोटे मौके का फायदा उठा कर जुगाड़ बना रहा है |
जो लोग चौराहे में सिपाही के पांच रुपये लेने पर भागीरथ बन जाते हैं वही बीएड में अपने बेटे को एडमिशन दिलाने के एक-डेढ़ लाख आराम से देने को तैयार हैं | शायद देश के बाकी हिस्सों के लोग परिचित ना हों किन्तु इस समय यूपी में बीएड भर्ती के नाम पर जो घोटाला गबन खुले आम आम जनता द्वारा किया जा रहा है वो बोफोर्स या तेलगी मामले को बौना बना दे | ५-५ साल के तीन बच्चों वाले स्कुल के नाम पर ५ बीएड मास्टर २१ हजार की तनख्वाह उड़ा रहे हैं | कोई इस घोटाले की कीमत आंके तो सही, शायद गिनती ख़त्म हो जाये |

देश में व्यापर बढ़ रहा है,,,,, किसका? मोबाइल का? टीवी का? सबसे सस्ती कही जाने वाली दाल रोटी भी आज लोग सहन नहीं कर सकते और सरकार प्रचार करा रही है की पीली मटर दाल खाओ | ऐसे देश का नागरिक होने पर क्या गर्व करूँ |

देश के लोग बाहर जा कर नाम कमा रहे हैं !!! हाँ ये सच है, जो कुछ काबिल लोग यहाँ कुछ भी करने में असमर्थ थे वो बाहर अवसर मिलते ही प्रतिस्पर्धा को जीत लेते हैं! ये उनकी म्हणत और काबिलियत है किन्तु इस देश में रहते हुए किसी घाट नहीं लगते | सबसे अधिक क्षमता होते हुए भी भारतीय सबसे कम वेतन पर बाहर नौकरी पते हैं ( यूरोपीय समकक्षों की तुलना में ) हर साल नस्ली भेदभाव झेलते हैं, मार खाते हैं | इसलिए नहीं की हम उतने गोरे नहीं हैं, इसलिए क्यूंकि हम गरीब देश से आते हैं |
घाट से याद आया पतितपावनी को साफ़ करने के नाम पर कितने करोड़ फूंके ये किसी को याद आया? क्या गंगा साफ़ हुई? क्या सिर्फ नेताओं ने इसमें पैसा खाया? गंगा को मैया कहते हैं और उसी मैया के नाम का पैसा खा गए ऐसी है हमारी तात्कालिक सभ्यता !!!

मुझे शर्म आती है ऐसे तात्कालिक भारत पर !!!

देखिए भारत बहुत ही विशाल देश है.. 1170 मिलियन लोग रहते है यहा पर.. इस कारण इसकी अपनी समस्याए है.. जिसको हम लोग बाकी देशो से compare नही कर सकते... भारत दुनिया का सबसे बड़ा प्रजातांत्रिक देश है और प्रजातंत्र की कुछ अपनी problems होती है. हमारे yaha भी समस्याऐं है.. और सरकार karya कर रही है.. कई सारे योजनाए ला रही है.. धीरे . धीरे . भारत praghati कर रहा है .. ऐसे में मैं मानता हू हमे साथ मिलकर सरकारऔर देश की प्रगती में योगदान देना चाईए.. ना की उसकी बुराई करनी चाईए..

देश के कुछ problems है.. लेकिन इसके लिए हम सब ज़िम्मेदार है..

माफी चाऊँगा मगर क्या आपने अपने आपसे कभी पूछा है.. आप देश के लिए क्या कर रहे है..

किसी भी चीज़ की बुराई करना आसान है..

आप तो युवा है..और आपको अगर देश में समस्या ही समस्या नज़र आती है तो आयें इस सिस्टम में, पॉलिटिक्स में, administrative सेवा में और सुधारिये इस देश को..

आज का युवा तो MBA, Engg, करके विदेश में settle होना चाहता है विदेश जाता है तो ओर्कूट और facebook par waha ki photos laga kar fakra karta hai..

और antha mein एक acchi नौकरी और एक accha jiwansathi चाहता है.. उसे देश से कोई मतलब नही रहा

बस यार दोस्तो में कहता है यार I hate पॉलिटिक्स.. इस देश का कुछ नही हो सकता

amit_tiwari
22-11-2010, 10:15 AM
देखिए भारत बहुत ही विशाल देश है.. 1170 मिलियन लोग रहते है यहा पर.. इस कारण इसकी अपनी समस्याए है.. जिसको हम लोग बाकी देशो से compare नही कर सकते... भारत दुनिया का सबसे बड़ा प्रजातांत्रिक देश है और प्रजातंत्र की कुछ अपनी problems होती है. हमारे yaha भी समस्याऐं है.. और सरकार karya कर रही है.. कई सारे योजनाए ला रही है.. धीरे . धीरे . भारत praghati कर रहा है .. ऐसे में मैं मानता हू हमे साथ मिलकर सरकारऔर देश की प्रगती में योगदान देना चाईए.. ना की उसकी बुराई करनी चाईए..

देश के कुछ problems है.. लेकिन इसके लिए हम सब ज़िम्मेदार है..

माफी चाऊँगा मगर क्या आपने अपने आपसे कभी पूछा है.. आप देश के लिए क्या कर रहे है..

किसी भी चीज़ की बुराई करना आसान है..

आप तो युवा है..और आपको अगर देश में समस्या ही समस्या नज़र आती है तो आयें इस सिस्टम में, पॉलिटिक्स में, administrative सेवा में और सुधारिये इस देश को..

आज का युवा तो mba, engg, करके विदेश में settle होना चाहता है विदेश जाता है तो ओर्कूट और facebook par waha ki photos laga kar fakra karta hai..

और antha mein एक acchi नौकरी और एक accha jiwansathi चाहता है.. उसे देश से कोई मतलब नही रहा

बस यार दोस्तो में कहता है यार i hate पॉलिटिक्स.. इस देश का कुछ नही हो सकता

बन्धु मैंने मात्र राजनीति की बात नहीं कही है और ना ही मैंने कोई आन्दोलन खड़ा करने को कहा है | मैं बस अपने दैनिक जीवन में शुचिता की बात कर रहा हूँ | भाड़ में जाएँ नेता और चूल्हे में जाए अधिकारी पर कम से कम जन सामान्य को लाइन पर आये |
मैं किसी से अपेक्षा नहीं करता की अपना परिवार त्याग कर देश के लिए समाजसेवा करे | किन्तु जितना एक सामान्य नागरिक कर सकता है उतना तो करे! रोज ट्रैफिक नियमों का पालन करे, अपने दरवाज़े के सामने की सार्वजानिक संपत्ति का ध्यान रखे | ऐसी छोटी छोटी चीजें | क्या यह कुछ बड़ा त्याग है ? एक बार सोच के देखें मात्र इतने से ही कितना अंतर आ जायेगा |
रही बात मेरी तो मैं अपने जीवन में सामान्य रूप से जितना संभव हो सकता है उतने दायित्व निभा ही रहा हूँ| मैंने अपना व्यक्तिगत आयकर सर्वशुद्ध रूप से दिया है, मेरी गाड़ी में प्रदूषण का स्तर मानक के अनुरूप है, मैं सर्विस टैक्स भी देता हूँ और जो भी मुझ पर देय हों, हाल ही में विधिक कार्यवाहियों में जहां रिश्वत देकर मेरा कार्य जल्दी हो सकता था वहाँ मैंने १ मॉस अतिरिक्त लगाया है और राजनीतिक रूप से मैं लोक परित्राण का समर्थन करता हूँ और सक्रीय भी हूँ | इससे अधिक करने का अभिप्राय क्या पिछले सन्देश में था ?

khalid
22-11-2010, 10:20 AM
अटल भाई की बात को मैँ आगे बढाता हुँ
अटल भाई खोट देश मेँ नहीँ यहाँ के लोग मेँ हैँ
कोई भी देश बुरा नहीँ होता हैँ
उसे अच्छा या बुरा रहने वाले बनातेँ हैँ
बात अगर करेँ तो सबसे ज्यादा मुसीबत का जड हैँ रिश्वत कोई भी नौकडी चाहिए तो पहले रिश्वत दो
तभी आपको मिलेगा
दुसरा हैँ हराम खोरी यानी बगैर मेहनत का सब चीजे मिले या मेहनत कम हो पैसा ज्यादा बने
तीसरा हैँ जातिवाद
सभी जाति के लोग को उनके धर्म गुरु शोषन करतेँ हैँ
चाहे शारिरीक हो मानसीक हो
अब एक ऍसा कारण जिसके लिए हम सभी जिम्मेदार हैँ अगर आज के टाईम मेँ कोई पंचायत चुनाव भी लडता हैँ एक दो लाख से कुछ नहीँ होता उसे भी खर्च करने के लिए काफी मात्रा मेँ रुपया खर्ज करना होता हैँ वो रुपया जाता कहाँ हैँ आम जनता के बीच चाहे वो रुपया ले या दारु पीए या पेटरोल पर खर्ज करे आखिर कोई इतना रुपया खर्च करेगा तो वो कमाऐगा भी कमाई होगा कहाँ से योजना के रुपया खाऐगा या जनता को कोई भी काम करवाना होगा तो रिश्वत लेकर करेगा
और एक बात अपने कानुन मेँ लचक होना
सर फोड दो दस हजार
किसी के इज्जत के साथ खेले एकलाख
किसी का मर्डर करो दो तीन लाख
सब से ज्यादा देश के कानुन को सख्त करने की जरुरत हैँ
दुसरा रिश्वत को जड से खत्म करने की जरुरत हैँ
तीसरा जिनका हक हैँ उन्हेँ मिलना चाहिए
चौथा शिक्षा मेँ सबको समान अवसर मिलेँ
राज्य को बढाने मेँ केन्द्र सरकार को समान अवसर दे
और भी कई बात हैँ
पता नहीँ मैँने सही लिखा या गलत

anjaan
22-11-2010, 10:29 AM
बन्धु मैंने मात्र राजनीति की बात नहीं कही है और ना ही मैंने कोई आन्दोलन खड़ा करने को कहा है | मैं बस अपने दैनिक जीवन में शुचिता की बात कर रहा हूँ | भाड़ में जाएँ नेता और चूल्हे में जाए अधिकारी पर कम से कम जन सामान्य को लाइन पर आये |
मैं किसी से अपेक्षा नहीं करता की अपना परिवार त्याग कर देश के लिए समाजसेवा करे | किन्तु जितना एक सामान्य नागरिक कर सकता है उतना तो करे! रोज ट्रैफिक नियमों का पालन करे, अपने दरवाज़े के सामने की सार्वजानिक संपत्ति का ध्यान रखे | ऐसी छोटी छोटी चीजें | क्या यह कुछ बड़ा त्याग है ? एक बार सोच के देखें मात्र इतने से ही कितना अंतर आ जायेगा |
रही बात मेरी तो मैं अपने जीवन में सामान्य रूप से जितना संभव हो सकता है उतने दायित्व निभा ही रहा हूँ| मैंने अपना व्यक्तिगत आयकर सर्वशुद्ध रूप से दिया है, मेरी गाड़ी में प्रदूषण का स्तर मानक के अनुरूप है, मैं सर्विस टैक्स भी देता हूँ और जो भी मुझ पर देय हों, हाल ही में विधिक कार्यवाहियों में जहां रिश्वत देकर मेरा कार्य जल्दी हो सकता था वहाँ मैंने १ मॉस अतिरिक्त लगाया है और राजनीतिक रूप से मैं लोक परित्राण का समर्थन करता हूँ और सक्रीय भी हूँ | इससे अधिक करने का अभिप्राय क्या पिछले सन्देश में था ?


जनसेवा के लिए अपना परिवार त्याग करने की ज़रूरत नही होती.. अगर इस तरह से आज़ादी से पहले लोग सोचते तो शायद हम ghulaam ही रहते..

बस मैं यह कहना चाहता हू की आज का युवा देश के प्रति अपने कर्तव्य भूल गया है और बस पैसे कमाना ही उनका मकसद हो गया है..

छोटी छोटी चीज़ो से भारत जैसे बड़े देश में परिवर्तन नही आते और अगर हम ज़्यादा कुछ नही कर सकते तो हमे अपने वतन की बुराई करने का कोई हक़ नही है..

भारत तो हमारी माता है और माता कैसी भी हो हमेशा पुत्र के लिए और आदरणिय ही होती है.. और पुत्र को अपनी माता पर कभी शर्मिंदा नही होना चाहिए..

amit_tiwari
22-11-2010, 10:33 AM
अटल भाई की बात को मैँ आगे बढाता हुँ
अटल भाई खोट देश मेँ नहीँ यहाँ के लोग मेँ हैँ
कोई भी देश बुरा नहीँ होता हैँ
उसे अच्छा या बुरा रहने वाले बनातेँ हैँ


:iagree:
तभी मैंने बोल्ड में लिखा तात्कालिक भारत |

अभी कुछ दिन पहले टीवी पर हो रही एक चर्चा में एक सज्जन ने बड़ी सच्ची लाइन कही थी की 'आज लोग राम को मानते हैं, राम की नहीं मानते | कुरआन को मानते हैं लेकिन कुरआन की नहीं मानते' |
अगर यह सच नहीं होता तो राधा कृष्ण को पूजने वाले पश्चिमी उत्तर-प्रदेश में ही सबसे ज्यादा ओनर किलिंग ना हो रही होती | धिक्कार है ऐसे लोगों पर, शायद राधा कृष्ण भी ऐसे ढोंगियों के द्वारा पूजे जाने पर शर्मिंदा होते होंगे |

anjaan
22-11-2010, 10:37 AM
अटल भाई की बात को मैँ आगे बढाता हुँ
अटल भाई खोट देश मेँ नहीँ यहाँ के लोग मेँ हैँ
कोई भी देश बुरा नहीँ होता हैँ
उसे अच्छा या बुरा रहने वाले बनातेँ हैँ
बात अगर करेँ तो सबसे ज्यादा मुसीबत का जड हैँ रिश्वत कोई भी नौकडी चाहिए तो पहले रिश्वत दो
तभी आपको मिलेगा
दुसरा हैँ हराम खोरी यानी बगैर मेहनत का सब चीजे मिले या मेहनत कम हो पैसा ज्यादा बने
तीसरा हैँ जातिवाद
सभी जाति के लोग को उनके धर्म गुरु शोषन करतेँ हैँ
चाहे शारिरीक हो मानसीक हो
अब एक ऍसा कारण जिसके लिए हम सभी जिम्मेदार हैँ अगर आज के टाईम मेँ कोई पंचायत चुनाव भी लडता हैँ एक दो लाख से कुछ नहीँ होता उसे भी खर्च करने के लिए काफी मात्रा मेँ रुपया खर्ज करना होता हैँ वो रुपया जाता कहाँ हैँ आम जनता के बीच चाहे वो रुपया ले या दारु पीए या पेटरोल पर खर्ज करे आखिर कोई इतना रुपया खर्च करेगा तो वो कमाऐगा भी कमाई होगा कहाँ से योजना के रुपया खाऐगा या जनता को कोई भी काम करवाना होगा तो रिश्वत लेकर करेगा
और एक बात अपने कानुन मेँ लचक होना
सर फोड दो दस हजार
किसी के इज्जत के साथ खेले एकलाख
किसी का मर्डर करो दो तीन लाख
सब से ज्यादा देश के कानुन को सख्त करने की जरुरत हैँ
दुसरा रिश्वत को जड से खत्म करने की जरुरत हैँ
तीसरा जिनका हक हैँ उन्हेँ मिलना चाहिए
चौथा शिक्षा मेँ सबको समान अवसर मिलेँ
राज्य को बढाने मेँ केन्द्र सरकार को समान अवसर दे
और भी कई बात हैँ
पता नहीँ मैँने सही लिखा या गलत


मैं मानता हू हमारे देश में लाख खराबी है. लेकिन फिर भी हमे इस पेर गर्व होनाचाईए ..

एक राष्ट्रवाद की feeling होनी चाईए ..

इतिहास में भी हम देखे तो इस राष्ट्रवाद ki feeling ने बड़े बड़े तकता पलट किए नयी क्रांति लाई

1789.. french revolution..
1776 american independece..

आज भारत को उसी राष्ट्रवाद की ज़रूरत है..

amit_tiwari
22-11-2010, 10:39 AM
जनसेवा के लिए अपना परिवार त्याग करने की ज़रूरत नही होती.. अगर इस तरह से आज़ादी से पहले लोग सोचते तो शायद हम ghulaam ही रहते..

बस मैं यह कहना चाहता हू की आज का युवा देश के प्रति अपने कर्तव्य भूल गया है और बस पैसे कमाना ही उनका मकसद हो गया है..

छोटी छोटी चीज़ो से भारत जैसे बड़े देश में परिवर्तन नही आते और अगर हम ज़्यादा कुछ नही कर सकते तो हमे अपने वतन की बुराई करने का कोई हक़ नही है..

भारत तो हमारी माता है और माता कैसी भी हो हमेशा पुत्र के लिए और आदरणिय ही होती है.. और पुत्र को अपनी माता पर कभी शर्मिंदा नही होना चाहिए..

भाई मेरे आप प्रायोगिक नहीं हो रहे... या संभवतः अभी वैश्विक परिस्थिति को समझ नहीं रहे |

भारत और किसी भी अन्य विकसित देश में मात्र दो ही अंतर हैं; १- धन की सार्वजानिक अनुपलब्धता (जिसे आपने लाल लें में धता बता दिया ), २- जन सामान्य का अनुशासित ना होना( इसे आपने नीली लाइन में धो दिया) |

मात्र भावनात्मक बातें करने से कुछ हासिल नहीं होता, आजादी मिल गयी साथ साल भी हो गए अब किसी को भगत सिंह बन्ने की आवश्यकता नहीं है बस सामान्य रह कर अपना दायित्व निबाह कर भी सब हो सकता है | इच्छाशक्ति ही कम हो तो...

khalid
22-11-2010, 10:43 AM
मैं मानता हू हमारे देश में लाख खराबी है. लेकिन फिर भी हमे इस पेर गर्व होनाचाईए ..

एक राष्ट्रवाद की feeling होनी चाईए ..

इतिहास में भी हम देखे तो इस राष्ट्रवाद ki feeling ने बड़े बड़े तकता पलट किए नयी क्रांति लाई

1789.. French revolution..
1776 american independece..

आज भारत को उसी राष्ट्रवाद की ज़रूरत है..

मैँने तो देश को बुरा नहीँ कहा है मित्र
देशवासी के बारे मेँ कहा है
देश सभी अच्छे हैँ मित्र

ndhebar
22-11-2010, 07:27 PM
ज्यादा लम्बी लम्बी बातें मुझे समझ नहीं आती
मैं बस एक ही बात समझता हूँ हमारे देश में इमानदार वही है जिसे बेईमानी का मौका नहीं मिला
मुख्यतः ये प्रजाति विलुप्त हो गयी है या फिर अपनी विलुप्तता की ओर प्रकाश गति से अग्रसर है
बाते करना अलग बात है, हिन्दुस्तान में कहने की आजादी है जो चाहे कह लीजिये

sam_shp
23-11-2010, 04:39 AM
मुझे व्यक्तिगत रूप से आज के भारत का नागरिक होने पर कोई गर्व नहीं है और ना ही इसका कोई कारण समझ आता है |
निशांत भाई की कही बात को ही और आगे बढ़ाते हुए मैं यही कहूँगा कि आज जब बाकि सारे देश अपनी सफलता का ओर्केस्ट्रा बजा रहे हैं तब हम मात्र भूतकाल की पिपहरी फूंक रहे हैं |

निकम्मा नेतृत्व कफ़न चुरा के पैसे कम रहा है, प्रशासन से जुड़े लोग फ़्लैट में घोटाला कर रहे हैं, धार्मिक वर्ग राजनीति करके इच्छापूर्ति कर रहे हैं, युवा अपनी संकृति का klpd करके क्या क्या कर रहे हैं ये किसी को बताने की जरुरत नहीं है और हर बात पर निरूपा राय की तरह रोने वाला आम नागरिक वर्ग हर छोटे से छोटे मौके का फायदा उठा कर जुगाड़ बना रहा है |
जो लोग चौराहे में सिपाही के पांच रुपये लेने पर भागीरथ बन जाते हैं वही बीएड में अपने बेटे को एडमिशन दिलाने के एक-डेढ़ लाख आराम से देने को तैयार हैं | शायद देश के बाकी हिस्सों के लोग परिचित ना हों किन्तु इस समय यूपी में बीएड भर्ती के नाम पर जो घोटाला गबन खुले आम आम जनता द्वारा किया जा रहा है वो बोफोर्स या तेलगी मामले को बौना बना दे | ५-५ साल के तीन बच्चों वाले स्कुल के नाम पर ५ बीएड मास्टर २१ हजार की तनख्वाह उड़ा रहे हैं | कोई इस घोटाले की कीमत आंके तो सही, शायद गिनती ख़त्म हो जाये |

देश में व्यापर बढ़ रहा है,,,,, किसका? मोबाइल का? टीवी का? सबसे सस्ती कही जाने वाली दाल रोटी भी आज लोग सहन नहीं कर सकते और सरकार प्रचार करा रही है की पीली मटर दाल खाओ | ऐसे देश का नागरिक होने पर क्या गर्व करूँ |

देश के लोग बाहर जा कर नाम कमा रहे हैं !!! हाँ ये सच है, जो कुछ काबिल लोग यहाँ कुछ भी करने में असमर्थ थे वो बाहर अवसर मिलते ही प्रतिस्पर्धा को जीत लेते हैं! ये उनकी म्हणत और काबिलियत है किन्तु इस देश में रहते हुए किसी घाट नहीं लगते | सबसे अधिक क्षमता होते हुए भी भारतीय सबसे कम वेतन पर बाहर नौकरी पते हैं ( यूरोपीय समकक्षों की तुलना में ) हर साल नस्ली भेदभाव झेलते हैं, मार खाते हैं | इसलिए नहीं की हम उतने गोरे नहीं हैं, इसलिए क्यूंकि हम गरीब देश से आते हैं |
घाट से याद आया पतितपावनी को साफ़ करने के नाम पर कितने करोड़ फूंके ये किसी को याद आया? क्या गंगा साफ़ हुई? क्या सिर्फ नेताओं ने इसमें पैसा खाया? गंगा को मैया कहते हैं और उसी मैया के नाम का पैसा खा गए ऐसी है हमारी तात्कालिक सभ्यता !!!

मुझे शर्म आती है ऐसे तात्कालिक भारत पर !!!


मित्र जिस देश के हवा से आपकी सांस चल रही है, जिस देश की मिट्टी से आपको अनाज का दाना मिल रहा है....उसी सरजमीन के नागरिक होने का आपको कोई फक्र या नाज नहीं है ??????.....तो फिर छोड क्यूँ नहीं देते ऐसे देश को...
हिन्दुस्तान की मिट्टी हम सब की माँ है और आपको उसी माँ का बेटा कहेलाने मे शर्म आती है ???....शर्म तो माँ को आयेगी ,बेटा कहकर बुलानेमे....
हिंदुस्तान की आज जो भी हालत है इसके लिये हम सब जिम्मेदार है...लेकिन हमारी हालत के लिये भारत जिम्मेदार नहीं है....हम सब खुद हमारी हालत के लिये जिम्मेदार है.....
यह नेता ,गुंडे-बदमास,हिपोक्रेट्स,जातिवाद ,नाफखोरी ,संग्रहखोरी ,लांचरुस्वत/भ्रष्टाचार.....हम लोग या इंसान की ही देन है...जब तक ऐसे गैर कानूनी कार्य से हमारा नुकशान नहीं है तब तक कोई तकलीफ या खराबी नहीं है लेकिन इससे हमें जरा सी भी खरोच आती है तो पूरी सिस्टम मे खराबी दिखती है.
अगर सरकार मे कोई खराबी है तो सरकार को गाली दो या उस सरकार को मार भगाओ...अगर नफ़रत करनी है तो उनसे कीजिये जो देश की इस हालत के जिम्मेदार है....
लेकिन यह करना हम मे से किसी के लिये भी मुमकिन नहीं होगा क्युंकी जब अपना खुद का काम होगा तो जल्दी करवाने के लिये हम ही कीसी आला अधिकारी को लांच देते है....कोई चीज सस्ती चाहिये या मिलेगी तो चोरी या स्मगलिंग का माल लेने से पीछे नहीं हटेंगे....बिजली की चोरी, टेक्स की चोरी भी तो हम ही करते है तो सरकार पीछे क्यूँ हटेगी....???????..........
परदेश मे भी ऐसे सभी गलत कार्य होते है जो भारत मे होते है.....लेकिन वहाँ का नागरिक जागरूक है...अपने हक्क के लिये अकेला ही लड़ने को तैयार होता है और....क्या हम ऐसा करते है ??? क्यूँ नहीं करते ???
परदेश की बाते सभी को अच्छी लगती है...जैसे की पडोशी की बीवी चाहे वैश्या क्यूँ ना हो लेकिन वो अप्सरा जैसी दिखती है...लेकिन पहले अच्छी दिखने वाली खुद की पवित्र और आदर्श पत्नी खराब दिखती है क्युंकी उसके चहेरे पर जलने के दाग है....उसका चहेरा क्यूँ ???कैसे ???किसने ???कब ??? जला वो कोई नहीं पूछता....
कठोर भाषा के प्रयोग के लिये माफ़ी चाहता हूँ ....लेकिन मै मेरी मिट्टी मेरी माँ के खिलाफ कोई भी गलत बात नहीं सुन सकता...

amit_tiwari
23-11-2010, 07:13 AM
मित्र जिस देश के हवा से आपकी सांस चल रही है, जिस देश की मिट्टी से आपको अनाज का दाना मिल रहा है....उसी सरजमीन के नागरिक होने का आपको कोई फक्र या नाज नहीं है ??????.....तो फिर छोड क्यूँ नहीं देते ऐसे देश को...
हिन्दुस्तान की मिट्टी हम सब की माँ है और आपको उसी माँ का बेटा कहेलाने मे शर्म आती है ???....शर्म तो माँ को आयेगी ,बेटा कहकर बुलानेमे....
हिंदुस्तान की आज जो भी हालत है इसके लिये हम सब जिम्मेदार है...लेकिन हमारी हालत के लिये भारत जिम्मेदार नहीं है....हम सब खुद हमारी हालत के लिये जिम्मेदार है.....
यह नेता ,गुंडे-बदमास,हिपोक्रेट्स,जातिवाद ,नाफखोरी ,संग्रहखोरी ,लांचरुस्वत/भ्रष्टाचार.....हम लोग या इंसान की ही देन है...जब तक ऐसे गैर कानूनी कार्य से हमारा नुकशान नहीं है तब तक कोई तकलीफ या खराबी नहीं है लेकिन इससे हमें जरा सी भी खरोच आती है तो पूरी सिस्टम मे खराबी दिखती है.
अगर सरकार मे कोई खराबी है तो सरकार को गाली दो या उस सरकार को मार भगाओ...अगर नफ़रत करनी है तो उनसे कीजिये जो देश की इस हालत के जिम्मेदार है....
लेकिन यह करना हम मे से किसी के लिये भी मुमकिन नहीं होगा क्युंकी जब अपना खुद का काम होगा तो जल्दी करवाने के लिये हम ही कीसी आला अधिकारी को लांच देते है....कोई चीज सस्ती चाहिये या मिलेगी तो चोरी या स्मगलिंग का माल लेने से पीछे नहीं हटेंगे....बिजली की चोरी, टेक्स की चोरी भी तो हम ही करते है तो सरकार पीछे क्यूँ हटेगी....???????..........
परदेश मे भी ऐसे सभी गलत कार्य होते है जो भारत मे होते है.....लेकिन वहाँ का नागरिक जागरूक है...अपने हक्क के लिये अकेला ही लड़ने को तैयार होता है और....क्या हम ऐसा करते है ??? क्यूँ नहीं करते ???
परदेश की बाते सभी को अच्छी लगती है...जैसे की पडोशी की बीवी चाहे वैश्या क्यूँ ना हो लेकिन वो अप्सरा जैसी दिखती है...लेकिन पहले अच्छी दिखने वाली खुद की पवित्र और आदर्श पत्नी खराब दिखती है क्युंकी उसके चहेरे पर जलने के दाग है....उसका चहेरा क्यूँ ???कैसे ???किसने ???कब ??? जला वो कोई नहीं पूछता....
कठोर भाषा के प्रयोग के लिये माफ़ी चाहता हूँ ....लेकिन मै मेरी मिट्टी मेरी माँ के खिलाफ कोई भी गलत बात नहीं सुन सकता...

:bravo::bravo::bravo::bravo::bravo:

अरे शाम भाई, कैसन हो !!!
कोई ना चर्चा में नरम गरम चलता है | फिकर नाट |

चलो काम की बात पे आते हैं |

एक शेर है छोटा मिनी साइज़ का :

दूर इशारों से बात नहीं होती...
आंसू बहाने से बरसात नहीं होती...
ये ज़िन्दगी है ख्वाब नहीं मेरे दोस्त...
आँखें बंद करने से रात नहीं होती |

आपने मुझसे कहा की मुझे फक्र नहीं है तो मैं छोड़ दूँ.. तालियाँ आपको जानकार ख़ुशी होगी की आधा छोड़ दिया है, मात्र ५ माह ही रुकना है यहाँ अब |

अब मेरा कहना है की आपको इतना नाज़ है तो आइये यहाँ | आपका जो भी बिजनेस वहाँ है वो यहाँ भी हो सकता है | क्या बेटे को किसी काउंटी की जगह उड़ीसा क्रिकेट असोशियेशन से खिलाएंगे ?

सरजमीं में उगा अनाज ..... हंसी आती है.. भाई पैसे दो यहाँ ऑस्ट्रेलिया का आलू और जापान का आटा भी मिल जायेगा | मैं वहाँ का नागरिक भी हो गया फिर तो ...:party:

भैया मोरे बातें करना बेहद से बेहद आसान है... और खैर आपको यहाँ की समस्याएं बताने से फायदा भी क्या है . . .

मैं भी बाहर सेटल हो कर कभी चार पांच साल में जब आऊंगा बच्चो के साथ तो मैं भी मेरा भारत महान कह के दायित्व निभा लूँगा |

बहुत अच्छा होता अगर आपने मेरे और खालिद भाई के कुछ उत्तर मन से पढ़े होते उसमें वही सब लिखा है |

क्या होता है देश? किस जगह को माँ कहते हैं ? इसी माँ के एक हिस्से में नक्सली आजादी आजादी चिल्ला रहे हैं दुसरे में माओवादी, तीसरे में पाकिस्तानी कुत्ते ... देखिये इसी माँ के टुकड़े करने की बात कर रहे हैं... आपको उस पर नाज़ है... तो कब जा रहे हैं इस माँ को बचाने ??? कौन सा देशप्रेमी यहाँ से जा रहा है उनसे लड़ने ??? और प्लीज़ कोई ये मत कहना मेरे चाचा, मामा में कोई फ़ौज पुलिस में था या है, मेरे पिता और दादा दोनों इन्ही से हैं और इसीलिए मैंने इस कडवी हकीकत को और ज्यादा करीब से देखा है |

कोई अनुमान भी है आपको की राजनीति का अपराधीकरण और अपराध का राजनीतिकरण किस खतरनाक स्तर तक बढ़ चुका है |
किसी ने ध्यान दिया की आखिर क्यूँ किरण बेदी जैसी हस्ती ने अपनी नौकरी छोड़ दी ?
क्या कोई यहाँ उनसे बड़ा देशभक्त या काबिल होने का दावा करने वाला है? उनके CNBC के इंटरव्यू देखे जहां आँखों में आंसू आ गए थे ?

ऐसी ही बातें चुनावों में भी होती हैं ना ??? एक साहब हेलिकोप्टर में बैठ कर आते हैं विकास की गंगा बहाने की बातें करते हैं और फिर उड़ जाते हैं !!!

बातें.. बाते.. और सिर्फ बातें |

आँखें बंद करने से ना समस्या सुलझती है और ना ख़त्म होती है... बड़ा बड़ा बोल्ड में लिखा था तात्कालिक भारत... इमोशनल होकर तालियाँ मिल सकती हैं गुरु लेकिन झेलना हम लोगों को ही पड़ता यहाँ जो रोज़ रहते हैं जो सरकारी ऑफिस के चक्कर लगाते हैं जो ट्रेफिक में अपना समय बर्बाद करते हैं जो बिजली के आने का इन्तेजार करते हैं ना की एक पर्यटकों को |

हम कर रहे हैं काम, कोई भगत सिंह बन के नहीं, सामान्य जीवन जीते हुए कार्य कर रहे हैं और उसका असर भी आएगा | नहीं भी आया तो कम से कम कार्य करने का सुकून होगा सिर्फ बातें करने की खुशफहमी नहीं |

-अमित

arvind
23-11-2010, 05:45 PM
मै ऊपरवाले का शुक्रगुजार हूँ कि उन्होने मुझे भारतवर्ष जैसे महान देश का नागरिक होने का मौका दिया है। क्योंकि भारत एक ऐसा देश है, जहां आज भी सही मायनों मे मानवीय मूल्यो कि सबसे ज्यादा कद्र है। जहां प्रेम और भाईचारा की एक से बढ़कर एक मिशाले मौजूद है।

हाँ कुछ नेता, अधिकारी, अपराधी और असामाजिक तत्वो जैसे वाईरस आजकल समाज मे बहुत ज्यादा हो गए है, जिससे मन जरूर कुछ खिन्न हो जाता है। सच तो ये है कि जिस देश के नागरिक जागरूक नहीं होंगे, उस देश मे ऐसे वाईरस बहुत तेजी से फैलते है। लेकिन "कॉमन मैन" को जगाने के लिए एक मसीहा चाहिए, जैसे पहले हुआ करते थे - जसे गांधी, सुभाष, भगत सिंह इत्यादि, इनके पीछे-पीछे सारा देश एक जूट होकर निकल पड़ा, और अंतत: अँग्रेजी वाईरस का खात्मा हुआ था। इस समय भी ऐसे ही मसीहा कि जरूरत है देश को, आज हर कोई सोचता है कि कुछ होना चाहिए..... कोई आवाज उठाने वाला सुभाष या भगत सिंह की जरूरत है.... लेकिन मै तो खुद कुछ करूंगा नहीं, मेरा बेटा भी इंजीनियर बनेगा फिर विदेश मे कमाने जाएगा, इसीलिए उसे मै कुछ नहीं कह सकता हूँ। चलो मेरे घर ना सही, मेरे पड़ोसी के घर मे ही एक मसीहा पैदा हो जाय तो कितना अच्छा होगा।

जहां तक मेरा विचार है, बहुत सारे वाईरस होने के बावजूद, देश मे तरक्की हुई है, लेकिन यह अपेक्षित नहीं है, इसके लिए हमे जापान से सीख लेनी चाहिए, जो द्वितीय विश्व-युद्ध मे पूरी तरह बर्बाद होने के बाद जिस जिजीविषा के साथ वहाँ के लोगो ने अपने देश-प्रेम और इच्छा शक्ति के बल पर जापान का पुन:निर्माण कर विश्व के अग्रणी देशो मे शामिल कराया, यह कबीले-तारीफ है।

amit_tiwari
24-11-2010, 08:09 PM
आज हर कोई सोचता है कि कुछ होना चाहिए..... कोई आवाज उठाने वाला सुभाष या भगत सिंह की जरूरत है.... लेकिन मै तो खुद कुछ करूंगा नहीं, मेरा बेटा भी इंजीनियर बनेगा फिर विदेश मे कमाने जाएगा, इसीलिए उसे मै कुछ नहीं कह सकता हूँ। चलो मेरे घर ना सही, मेरे पड़ोसी के घर मे ही एक मसीहा पैदा हो जाय तो कितना अच्छा होगा।


:bravo:

सवा लाख की लाइन है बंधू |||

पर उपदेश कुशल बहुतेरे !!!

aksh
24-11-2010, 10:47 PM
अपनी मां को गाली देने से मुश्किल कोई अन्य काम नहीं है अगर आप सचमुच में उसे मां मानते हो और मां को गाली देने से ज्यादा कोई आसान काम भी नहीं है क्योंकि पता है की मां कुछ कहने वाली नहीं है.

मैंने किसी जापानी, किसी जर्मन, किसी रूसी या किसी अमरीकन को अपने देश की बुराई करते हुए नहीं सुना है. पर भारत के लोग कुछ भी कर सकते हैं. मैं एक सच्ची घटना सुनाना चाहता हूँ.

"मैं हाथरस का रहने वाला हूँ और दिल्ली में अपना काम होने की वजह से वीकली हाथरस से दिल्ली आता जाता था. और अक्सर अलीगढ स्टेशन से मैं ट्रेन लिया करता था. उस ट्रेन से ज्यादातर लोग वही जाया करते हैं जिनको दिल्ली नौकरी करने या काम के सिलसिले में सुबह जाकर शाम को लौट आना होता है. ट्रेन कर किराया काफी कम था और सरकार ने सुबह सुबह ही करीब तीन या चार ट्रेन उस समय चला रखी थीं. किराया भी कम था और mst (मंथली सीजन टिकट) वाले लोगों को और भी कम पड़ता था. मैं हमेशा की तरह अपने आप में मस्त चाय की चुस्कियां, अख़बार और मूंगफली के मजे लेता हुआ जा रहा था कि तभी मेरे कानों में दो लड़कों का वार्तालाप पड़ा जो "इस देश में कुछ नहीं रखा है", "मैं तो कहीं भी बाहर चला जाऊंगा", "यहाँ पर कुछ भी ठीक नहीं है", यहाँ पर सब कुछ बेकार है" जैसे जुमले बार निकाल रहे थे. मैं सब कुछ जैसे तैसे बर्दाश्त ही कर रहा था और उनके इस वार्तालाप में कूदने से अपने आप को रोके हुए था. तभी डब्बे में कुछ अफरा तफरी सी मची और मैंने देखा कि वो दोनों लड़के उठ कर गेट की तरफ जाने लगे पर टिकट चैकर के हत्थे चढ़ ही गए. और उन दोनों के पास ही टिकट नहीं था."

मुझे ये घटना ने अन्दर तक झकझोर दिया कि अभी कुछ देर तर सिस्टम को कोसने वाले ये दोनों लड़के जो ट्रेन में सुविधाओं की कमी का बखान भी कर रहे थे. ट्रेन की मामूली कीमत की टिकट खरीदने के अपने फर्ज से अनजान कितनी बड़ी बड़ी गालियाँ इस सिस्टम को दे रहे थे. बाहर की तारीफ करने वाले ये लड़के अगर बाहर जाते भी तो वहां पर पूरा टिकट लेते और वहां के क़ानून और सिस्टम को सहयोग करते, पर यहाँ पर सिस्टम को कोसने के अलावा कुछ काम ही नहीं है.

अपने मुंह से ये शब्द निकलने से पहले कि " देश ने मेरे लिए किया ही क्या है? " ये सोच लेना चाहिए कि "मैंने इस देश के लिए क्या किया है ?"

मैं भारत में ही पला बढ़ा और भारत में ही काम कर रहा हूँ. आज तक मन में ये नहीं आया कि बाहर जाकर कुछ काम करूं. ( जो लोग बाहर जाकर काम करते हैं उनके प्रति कोई दुर्भावना नहीं है क्योकि उनमें से भी ज्यादातर लोग अपने देश का पूरा ख्याल वहां रहकर भी करते हैं ). मुझे भारत में बहुत संभावनाएं नजर आतीं हैं और मुझे भी हर सच्चे भारतवासी की तरह अपने देश से बेइंतहा मोहब्बत हैं, प्यार है.

amit_tiwari
25-11-2010, 08:08 AM
Get a life Man !!!

If someone don't have facts i don't have words.

amol
25-11-2010, 12:06 PM
काफी अच्छी बहस चल रही है| चलिए मैं भी अपनी बात उठा देता हूँ यहाँ|

मुझे भी आज के भारत पर कोई खास नाज़ और फक्र नहीं है| और सही मायनो में कहा जाये तो हम लोग विश्व स्थर पर बड़ी बुरी हालत में हैं| मैं बाकि सदस्यों की तरह भावनात्मक बातें नहीं कहूँगा, केवल जो तथ्य और सबूत मेरे पास है उसे पेश करूंगा

और एक बात यह भारत माता, जन्मभूमि, आन्दोलन, देश सेवा, देश प्रेम यह सब काफी हिंदी फिल्म टाइप लगता है| याद रखिये बड़ी बड़ी बातें और वादे करने के लिए हमारे यहाँ काफी neta भरे हुए है|

और मुझे आज के भारत पर गर्व क्यों नहीं है मैं पॉइंट wise अपने विचार रखूंगा|

यहाँ सब काफी पड़े लिखे और बुद्धिजीवी लोग है इसलिए आशा करता हूँ सब लोग प्रक्टिकल बातें करेंगे|

बाकि की बातें अगले पोस्ट में|

amol
25-11-2010, 12:34 PM
Human Development Index (HDI) -- यह एक विश्व के १६९ देशो की लिस्ट है जो की इस बात पर आधारित है की इन देशो में कितनी प्रगति हुई है| भारत इस लिस्ट में ११९वे स्थान पर आता है| इसका अर्थ यह हुआ की यहाँ मानव विकास बहुत ही धीमी गति से होता है|
एक और रिपोर्ट World Map of Happiness -- इसके अनुसार भारत १६७ वे नंबर पर आता है| इस रिपोर्ट के अनुसार भारत की बड़ी जनसख्या भूख गरीबी से बदहाल से उन्हें खाने के लिए रोटी नहीं और पीने के लिए साफ़ पानी तक नहीं है| बिजली, रोज़गार तो दूर की बात है|
जो थोरी सी भी प्रगति हो रही है वो केवल बड़े शहरो में हो रही है| अभी भी भारत के ५२ प्रतिशत लोग कृषि से ही जुड़े है और उनको हालत में कई दशको से कोई अच्छा बदलाव नहीं आया| एक तरफ मुंबई में बड़ी बड़ी बिल्डिंग्स बन रही है, लेकिन दूसरी तरफ गाँव में किसान वही प्राचीन तरीके से खेती कर रहा है, जिस तरह से आज से हज़ार साल पहले खेती होती थी|
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=3997&stc=1&d=1290674027

laddi
25-11-2010, 07:50 PM
मैंने सभी के विचार पड़े मुझे भी यहाँ इटली के हालात के बारे में लिखना है कल तक लिख दूँगा
वैसे मुझे भी इंडिया में सब कुछ उल्टा पुल्टा ही नज़र आता है

Prince
25-11-2010, 08:26 PM
get a life man !!!

If someone don't have facts i don't have words.

आपने कौन से तीर मार रखें हैं तथ्यों के अपने इस सूत्र पर ???? जो किसी के जवाब पर इतनी तीखी प्रतिक्रिया करने का हक़ है आपको. मेरे विचार से आपने भी कोई बहुत बड़े तथ्य पेश नहीं किये हैं. जो कुछ भी अक्ष जी ने लिखा है मैं उससे काफी हद तक सहमत हूँ. और ये मेरे विचार हैं मैं किसी के ऊपर अपने विचार थोप नहीं रहा बल्कि अपने विचार रख रहा हूँ.

जो लोग बिल सिर्फ इसलिए नहीं लेते कि कुछ पैसे टैक्स के बच जायेंगे, या बाहर जाकर नौकरी करना बेहतर समझते हैं क्योकि उनको यहाँ पर अपने लिए संघर्ष नजर आता है या फिर दुसरे देश की तारीफ़ सिर्फ इसलिए करते हैं क्योकि अपने देश को गाली देना एक फैशन बन कर रह गया है उनके लिए. मैं पूछना चाहता हूँ उन डॉक्टर्स से जो इस देश की सरकार से सब्सीडी लेकर पढ़े और डॉक्टर बनकर बाहर चले गए नोट कमाने के लिए क्या उनका अपने देश के प्रति कोई फर्ज नहीं बनता ?

कोई भी देश के नेता कभी भी बाहर से नहीं आते वो सभी उसी देश में ही पैदा होते हैं या वहीँ रहकर पले बढे हुए होते हैं जहाँ की जनता के वो नेता होते हैं इसलिए उनके अन्दर वो सभी गुण होते हैं जो हम सभी के अन्दर पाए जाते हैं. धोका, मक्कारी और दगाबाजी अगर जनता का चरित्र बन गया है तो नेता ईमान दर कहाँ से लायेंगे ?

आज जो लोग भारत के बारे में सिर्फ निगेटिव भोलते हैं उक्को बताना चाहता हूँ कि अब भारत सिर्फ आचार मुरब्बे बनाने वाला देश नहीं है आज भारत एक बहुत बड़ा ऑटोमोबाइल हब बन चुका है और भविष्य में और भी बड़ा बनने जा रहा है. भारत ने संचार के क्षेत्र में, कृषि के क्षेत्र में और स्टील के क्षेत्र में कितनी तरक्की की है क्या आप उसे नजर अंदाज कर सकते हो ? अनिल जी ने कौन से गलत बात कही थी जो उनको इतना बदतमीजी वाला जवाब दिया गया ? क्या सूत्रधार अपने आप को दुनिया का सबसे श्रेष्ट व्यक्ति मान कर चलता है ?. क्या उनसे भिन्न मत रखने वालों के साथ इस तरह का व्यवहार जायज है ?. विनम्रता के साथ भी ये बातें कही जा सकती थीं पर क्योकि सूत्रधार ने किसी भी व्यक्ति के साथ विनाम्त्र नहीं बरती इसलिए मैं भी उनके साथ विनम्र नहीं होना चाहता.

Prince
25-11-2010, 08:33 PM
human development index (hdi) -- यह एक विश्व के १६९ देशो की लिस्ट है जो की इस बात पर आधारित है की इन देशो में कितनी प्रगति हुई है| भारत इस लिस्ट में ११९वे स्थान पर आता है| इसका अर्थ यह हुआ की यहाँ मानव विकास बहुत ही धीमी गति से होता है|
एक और रिपोर्ट world map of happiness -- इसके अनुसार भारत १६७ वे नंबर पर आता है| इस रिपोर्ट के अनुसार भारत की बड़ी जनसख्या भूख गरीबी से बदहाल से उन्हें खाने के लिए रोटी नहीं और पीने के लिए साफ़ पानी तक नहीं है| बिजली, रोज़गार तो दूर की बात है|
जो थोरी सी भी प्रगति हो रही है वो केवल बड़े शहरो में हो रही है| अभी भी भारत के ५२ प्रतिशत लोग कृषि से ही जुड़े है और उनको हालत में कई दशको से कोई अच्छा बदलाव नहीं आया| एक तरफ मुंबई में बड़ी बड़ी बिल्डिंग्स बन रही है, लेकिन दूसरी तरफ गाँव में किसान वही प्राचीन तरीके से खेती कर रहा है, जिस तरह से आज से हज़ार साल पहले खेती होती थी|
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=3997&stc=1&d=1290674027
मित्र अमोल मैं आपसे पूरी तरह सहमत नहीं हूँ. आपने कहा कि आज भी हमारे यहाँ पर उसी तरह से खेती होती है जैसी कि हजार साल पहले होती थी. हजार साल से मतलब में सिर्फ एक हजार साल ले लेता हूँ.

१. क्या एक हजार साल पहले खाद थी ?

२. क्या एक हजार साल पहले मिटटी की जांच होती थी ?.

३. क्या एक हजार साल पहले बिजली की मोटर थी ?

४. क्या एक हजार साल पहले ट्रैक्टर था ?

५. क्या एक हजार साल पहले हरित क्रांति आ चुकी थी.

कृपया अपने तथ्यों की जांच कर लें और फोरम पर स्वस्थ बहस को बढ़ावा दें. धन्यवाद.

aksh
25-11-2010, 08:56 PM
get a life man !!!

If someone don't have facts i don't have words.

मित्र अमित ! मैं भी आपकी बातों से इत्तेफाक नहीं रखता और मानता हूँ कि आपकी तरह मैं भी अपनी एक स्वतंत्र राय व्यक्त करने का हक़ रखता हूँ. वो आपको पसंद आये तो मेरी खुशकिस्मती और अगर ना आये तो मेरे बदकिस्मती नहीं है. बल्कि मुझे इस बात से कोई फरक नहीं पड़ता कि आप को मेरी प्रविष्टि कैसी लगी क्योकि मेरे विचार किसी और को पसंद आयें ये कोई जरूरी नहीं है. मैं सबके विचारों की कदर करता हूँ. फिर वो व्यक्ति कितना भी नकारात्मक या सकारात्मक विचार रखता हो. आखिर सभी के विचार किसी भी बिंदु पर एक जैसे तो नहीं ही हो सकते. धन्यवाद.

amol
25-11-2010, 09:22 PM
मित्र अमोल मैं आपसे पूरी तरह सहमत नहीं हूँ. आपने कहा कि आज भी हमारे यहाँ पर उसी तरह से खेती होती है जैसी कि हजार साल पहले होती थी. हजार साल से मतलब में सिर्फ एक हजार साल ले लेता हूँ.

१. क्या एक हजार साल पहले खाद थी ?

२. क्या एक हजार साल पहले मिटटी की जांच होती थी ?.

३. क्या एक हजार साल पहले बिजली की मोटर थी ?

४. क्या एक हजार साल पहले ट्रैक्टर था ?

५. क्या एक हजार साल पहले हरित क्रांति आ चुकी थी.

कृपया अपने तथ्यों की जांच कर लें और फोरम पर स्वस्थ बहस को बढ़ावा दें. धन्यवाद.

मैंने जो बात कही वो किसी भी बात को कहने एक स्पेशल तरीका होता है जिसको अतिशयोक्ति अलंकार कहते है| अलंकार को अंग्रेजी में figures ऑफ़ स्पीच कहते है| वैसे इसे पूर्ण रूप से अतिशयोक्ति भी नहीं कहा जा सकता|

मैं आपके कमेन्ट के जवाब में वर्ल्ड बैंक के एक कथन को quote करूंगा..


Slow agricultural growth is a concern for policymakers as some two-thirds of India’s people depend on rural employment for a living. Current agricultural practices are neither economically nor environmentally sustainable and India's yields for many agricultural commodities are low. Poorly maintained irrigation systems and almost universal lack of good extension services are among the factors responsible. Farmers' access to markets is hampered by poor roads, rudimentary market infrastructure, and excessive regulation.
—World Bank: "India Country Overview 2008"



भारत सरकार के २००८ की annual रिपोर्ट के anusaar 52.5% गाँव में अभी बिजली नहीं पहुच पाई है.और अभी में हमारे गाँव में कोई शाहरुख़ खान नहीं पंहुचा है जो बिजली पैदा कर दे और मोटर चलने लगे|

और एक बात... अभी भी ग्रामीण भारत में कृषि के लिए infrastructure जैसे पक्के रोड, बिजली, खाद इत्यादि का घोर अभाव है. जो किसान क़र्ज़ के दबा हुआ है वो ट्रक्टर और महेंगे खाद कहा से लायेगा|

With a small patch of land that will not permit a big tractor to manoeurve, without enough capital to buy costly implements, not even to buy fertilizers and pesticides, without perennial irrigational facilities how can he adopt himself to modern conditions? His ignorance, lack of education and heavy indebtedness keep him firmly rooted to a state of helplessness, while a huge revolution is taking place in front of his eyes.

यह बातें मैंने इन कुछ किताबो को refer कर के लिखी है ::

Bottelier, Pieter What India (2007) : “Can Learn from China and Vice Versa”, China & World Economy, Volume 15, Number 3, May-June , pp. 52-69(18)

David Rindos (1984) : “The Origins of Agriculture: An Evolutionary Perspective”
Academic Press,

Kulshreshtha, S. (1996): “Indian agriculture and GATT and WTO: Some Reflections - India and WTO” : Udhayam Offset, Madras

Aggarwal G.C (1995) : “Fertilizer and irrigation management for energy conservation in crop production” : Fuel and Energy Abstracts, Volume 36, Number 5, , pp. 383-383(1), Elsevier Publisher


सभी सदस्यों से निवेदन है की पुख्ता जानकारी के बिना कोई भी टिपण्णी ना करे| इससे बेवजह सूत्र अपनी दिशा से भटक जाता है|

amit_tiwari
25-11-2010, 10:34 PM
I am sorry for posting in english, I am on mobile.

@Prince: Boy Get a life!!! 555 Google the slangs and learn their meaning.

@Aksh: I am really sick and tired of reading same comment this is our mother, that is mother. I mean WTF man, can anyone describe what is a Nation exactly? German call their nation father so are they sick? No, calling mother is just a symbol. I do agree that we can have differences on any topic but when we discuss, we must discuss like adults not Pujari of some mandir. I love you for being human, for answering on thread and for grooming this platform but I hate you for silly answers. Isn't that simple? We are adults and we are not here for any claim, name or fame nor I have any personal negative feeling for you. I shall applause more than anyone when you will answer any thoughtful post of your ever and I'll criticise you hard when I'll find weak post. That's how we all learn, me, you or anyone. Everyone of us are here to get something positive and that is possible only through honesty in nature, behaviour and response. We'll talk on this later someday.

@ Amol: I like your attitude man. But I do wanna say that tell your decision but never tell your reason. Hope you know what I mean.

-Amit

amol
25-11-2010, 10:44 PM
@ Amol: I like your attitude man. But I do wanna say that tell your decision but never tell your reason. Hope you know what I mean.

-Amit


I have already told my decision in one of the previous posts. And no one can deny the fact that one should always give appropriate reasons to support one's decision.

laddi
26-11-2010, 12:13 AM
मैं यहाँ इटली में जो इंडिया की एम्बेसी है उसके बारे में बताना चाहता हूँ
जब भी यहाँ किसी इल्लीगल इंडियन को पासपोर्ट की जरूरत होती है उससे कई पापड़ बिल्वाते हैं यह अधिकारी
सबसे जरूरी घर का एक कागज़ बनवाने को कहते हैं जिससे यह साबित हो सके की आप इटली में रह रहे हो जब के यह कागज़ सिर्फ लीगल इंडियन ही बनवा सकता है क्योकि यह पुलिस स्टेशन से बनता है और अगर वोह वहां जायेगा तो वोह उसके फिंगर प्रिंट ले लेंगे जिस का मतलब है की वोह इटली से ५ या १० साल के लिए निष्काषित है
लेकिन जब येही काम बाहर खड़े किसी एजेंट से ५०० या ६०० यूरो में करवा कर कर अन्दर दे दिया जाता है तो काम हो जाता है यह सब अधिकारीयों को भी पता है की यह असली नहीं है पर वोह कुछ नहीं कहते क्योंकि इसमें उनका भी हिस्सा होता है
ऐसे और भी बहुत से काम हैं जिन में यह बहुत परेशान करते हैं यह सिर्फ एक नमूना है
इसके विपरीत येही काम पाकिस्तान वालों के लिए उनकी एम्बेसी बड़ी आसानी से कर देती है उनको सिर्फ पाकिस्तानी होने का प्रूफ देना होता है
और जब इटली की सरकार वर्क परमिट के लिए पेपर खोलती है तब यह और भी मुश्किलें खड़ी कर देते है जैसा की २००९ में हुआ था किसी को भी पासपोर्ट आसानी से नहीं दे रहे थे उधर डेट निकली जा रही थी अगर दे भी रहे थे तो सिर्फ एक रसीद जब की पेपर भरने के लिए पासपोर्ट की जरूरत होती है
जबकि पाकिस्तान वालो के अधिकारी बड़ी आसानी में यह काम कर रहे थे उन्हें मालूम है की जो वोह कमाएंगे अपने ही देश में जायेगा देश की तरक्की होगी लेकिन हमारे अधिकारिओं को तो अपने से मतलब है देश जाये भाड़ में
और भी ऐसे किस्से हैं में समय समय पर अपडेट करता रहूँगा

aksh
26-11-2010, 01:05 AM
I am sorry for posting in english, I am on mobile.

@Aksh: I am really sick and tired of reading same comment. but I hate you for silly answers. We'll talk on this later someday.

-Amit

Dear Amit,

In your response as above, you have given example of germans calling their nation as their "father" and not "mother". Similarly we call our nation as our
"mother" not "father".

I am sure that like all Germans who have a very special feelings towards their fatherland we all Indian have a very special feelings towards our motherland.
The feeling is same the only difference is they call it "father" and we call it
"mother".

Does this mean that Germans respect their mother any less ? or we Indians respect our fathers any less ? in my view the answers is "NO".

Nothing wrong about the feelings except the fact that some may still not have that feelings whether he or she is a German or an Indian. But for me these types of people are still not hatable because they are human beings.

You may have a different view on the subject, you may have superior skills of conversation and you may have superior knowledge of the subject than me or any other participating member at the forum. But that definitely does not mean that the other members of the forum who call their nation mother and
and thus respects their nation are less important to the forum. They are all
equally important to the forum and we respect their views alongwith the
views expressed by your goodself.

Similarly that does not mean that you can term the response given by any of the member of the forum to be silly. that is not acceptable in any society.

The now the most important thing.
==========================

You might have hated me for my week posts but I do not hate you. Instead I feel pity on you for your mean views, rigidity and disrespect towards your fellow members of the forum. I do not endorse your views expressed towards
the quality of posts the other members are doing. This is certainly not the way two adults behave and talk ! Grow up !

So it is no wondor that you do not love your country because when you cannot love people who are perceived by you as week how can you love your
country having so many weeknesses. But do not worry there are people like me who will always try to remove these weeknesses. From our posts, from our system and from our nation.

ndhebar
26-11-2010, 05:01 AM
country having so many weeknesses. But do not worry there are people like me who will always try to remove these weeknesses. From our posts, from our system and from our nation.

इस सन्दर्भ में रामायण से कुम्भकर्ण का उदहारण प्रशांगिक है :
जब उससे पूछा गया की ये जानते हुए भी की रावन ने गलत कार्य किया है फिर भी तुम उसका साथ देगो
उसका जवाब था "हाँ", रावन चाहे लाख बुरा सही पर है तो मेरा भाई.
उसी तरह अपने देश में लाख बुराई सही पर है तो अपना देश
पर अनिल भाई परिणाम से डर लगता है कहीं अपना परिणाम भी कुम्भकर्ण जैसा ही ना हो क्योकि यहाँ तो घर घर में रावन हैं और राम ढूंढे नहीं मिलते

ABHAY
26-11-2010, 07:29 AM
इस सन्दर्भ में रामायण से कुम्भकर्ण का उदहारण प्रशांगिक है :
जब उससे पूछा गया की ये जानते हुए भी की रावन ने गलत कार्य किया है फिर भी तुम उसका साथ देगो
उसका जवाब था "हाँ", रावन चाहे लाख बुरा सही पर है तो मेरा भाई.
उसी तरह अपने देश में लाख बुराई सही पर है तो अपना देश
पर अनिल भाई परिणाम से डर लगता है कहीं अपना परिणाम भी कुम्भकर्ण जैसा ही ना हो क्योकि यहाँ तो घर घर में रावन हैं और राम ढूंढे नहीं मिलते

मित्र आप चिंता न करे हम है न राम भगवान बिसनु का अवतार हम करेंगे रावन का बिनास हा आया

ABHAY
26-11-2010, 07:37 AM
मित्र अमोल मैं आपसे पूरी तरह सहमत नहीं हूँ. आपने कहा कि आज भी हमारे यहाँ पर उसी तरह से खेती होती है जैसी कि हजार साल पहले होती थी. हजार साल से मतलब में सिर्फ एक हजार साल ले लेता हूँ.

१. क्या एक हजार साल पहले खाद थी ?

२. क्या एक हजार साल पहले मिटटी की जांच होती थी ?.

३. क्या एक हजार साल पहले बिजली की मोटर थी ?

४. क्या एक हजार साल पहले ट्रैक्टर था ?

५. क्या एक हजार साल पहले हरित क्रांति आ चुकी थी.

कृपया अपने तथ्यों की जांच कर लें और फोरम पर स्वस्थ बहस को बढ़ावा दें. धन्यवाद.

भाई मैं आपके बात से सहमत भी हू और नहीं भी कारन ये की आपही का बिचार लेते है हजार साल पहले की खेती आपको पता होना था की आज से कही ज्यादा बेहतर तकनीक पहले थी खेती से लेकर सबकुछ तक ! क्या आज के ज़माने में सिर्फ कहने मात्र से कुछ होता है क्या पहले होता था इसका साबुत आपको मिलेगा राज्ग्रीह में एक जलासंद का गुफा है जिसे आजतक हमारी तकनीक नहीं खोल पाए है क्या कारण है इसका मतलब तो साफ है की आज के तकनीक से कही जादा पहले की तकनीक थी ! जब गुफा में इस तरह की तकनीक थी तो आप सोच सकते है की खेती करने की क्या तकनीक रही होगी !

aksh
26-11-2010, 10:55 AM
इस सन्दर्भ में रामायण से कुम्भकर्ण का उदहारण प्रशांगिक है :
जब उससे पूछा गया की ये जानते हुए भी की रावन ने गलत कार्य किया है फिर भी तुम उसका साथ देगो
उसका जवाब था "हाँ", रावन चाहे लाख बुरा सही पर है तो मेरा भाई.
उसी तरह अपने देश में लाख बुराई सही पर है तो अपना देश
पर अनिल भाई परिणाम से डर लगता है कहीं अपना परिणाम भी कुम्भकर्ण जैसा ही ना हो क्योकि यहाँ तो घर घर में रावन हैं और राम ढूंढे नहीं मिलते

प्रिय अनुज,

आपकी बातों से मैं भी काफी चिंतित हुआ हूँ. पर मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि हम लोगों में से ही एक नेता निकलेगा जो हमको कुशल नेतृत्व देगा और देश को आगे ले जाएगा.

यहाँ पर मुझे अपने पूर्व राष्ट्रपति और वैज्ञानिक श्री एपीजे अब्दुल कलाम जी के शब्द याद आते हैं जो कहा करते हैं कि आदमी को अपनी सरकार के सकारात्मक पहलुयों को भी देखना और सराहना चाहिए. हमारे लोग ख़राब नहीं हैं पर हम नकारात्मकता से इतने घिरे हुए हैं कि हमको कुछ भी ठीक होने की उम्मीद नजर नहीं आती है.

जो लोग यहाँ पर बिना गुटखा खाए पांच मिनट भी नहीं गुजार सकते वो यूरोप और दुसरे देशों में जैसे कि आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और सिंगापूर में जाकर वहां की साफ़ सफाई की तारीफ़ करते नहीं थकते और वहां के क़ानून का पूरी तरह पालन करते हैं लेकिन भारत में आते ही बस सड़क पर पीक मारना चालू और सफाई के लिए सरकार को दोष देना चालू.

ndhebar
26-11-2010, 12:17 PM
प्रिय अनुज,

आपकी बातों से मैं भी काफी चिंतित हुआ हूँ.

आप चिंता ना करें बड़े भाई
मैं सबसे पहले स्पष्ट कर दूँ की कुम्भकर्ण का उदहारण मैंने अपने सन्दर्भ में ही दिया है

kuram
26-11-2010, 03:25 PM
आपको क्या चाहिए रेगिस्तान या बर्फ़बारी , मैदान या पहाड़ी , बाढ़ या सूखा , टॉप दस में शामिल अमीर या दस रूपये पर गुजारा करने वाला गरीब, नैनो टेक्नोलोजी या फिर अब भी हल से जुता बैल. हिन्दू या मुस्लिम या पारसी या सिख या इसाई ??? जो भी आप देखना चाहे इस देश में मिलेगा.
बहुत अच्छा इतिहास. लेकिन आज के भारत पर तो शर्म आ सकती है गर्व नहीं. एक से एक बेईमान और घोटालेबाज लोग समझ में नहीं आता किस पर भरोसा करे. अभी तो गर्व नहीं कर सकता.

madhavi
27-11-2010, 06:20 AM
* भारत जैसे बड़े देश में सुधार तभी हो सकता है अगर यहाँ का हर वासी यह सोचे कि मैं अपने को सुधार लूँ, दूसरा सुधरे या ना सुधरे !
* आम तौर पर हर व्यक्ति यही सोचता है कि अकेले मेरे सुधरने से क्या होगा !
* मेरे विचार में भारत में पिछले 20-25 सालों में जो उपभोक्तावाद सुरसा के मुख की तरह बढ़ा है, वह भारत की समस्याओं का एक प्रमुख कारण है।

* आज भारत को जो सबसे ज्यादा खोखला कर रहा है वो है
1 आरक्षण
2 सबसीडी
आरक्षण का काभ अकुशल को मिलता है और सबसीडी का लाभ धनी को !

madhavi
27-11-2010, 06:29 AM
आज भारत को जो सबसे ज्यादा खोखला कर रहा है वो है
1 आरक्षण
2 सबसीडी
आरक्षण का लाभ अकुशल को मिलता है और सबसीडी का लाभ धनी को !

Kalyan Das
01-12-2010, 05:55 PM
एक अमेरिकी की कहानी उसी की जुबानी ......
"जब हम बच्चे थे तो हमसे कहा जाता था की लंच या डिनर में कुछ भी खाना बर्बाद मत करो ! भारत के भूखे बच्चों के ख्याल करो !
और अब मैं अपने बच्चों से कहता हूँ अपना होम्वोर्क पूरा करो, भारतीय बच्चों का ख्याल करो ! अगर तुमने ठिकसे पढ़ाई नहीं की, तो वे तुम्हे भूखे मार देंगे !!"

Hamsafar+
01-12-2010, 05:58 PM
एक अमेरिकी की कहानी उसी की जुबानी ......
"जब हम बच्चे थे तो हमसे कहा जाता था की लंच या डिनर में कुछ भी खाना बर्बाद मत करो ! भारत के भूखे बच्चों के ख्याल करो !
और अब मैं अपने बच्चों से कहता हूँ अपना होम्वोर्क पूरा करो, भारतीय बच्चों का ख्याल करो ! अगर तुमने ठिकसे पढ़ाई नहीं की, तो वे तुम्हे भूखे मार देंगे !!"

:bravo::bravo::bravo::bravo:

Hamsafar+
01-12-2010, 05:59 PM
आज भारत को जो सबसे ज्यादा खोखला कर रहा है वो है
1 आरक्षण
2 सबसीडी
आरक्षण का लाभ अकुशल को मिलता है और सबसीडी का लाभ धनी को !

GREAT ANSWER 101% RIGHT
:bravo::bravo:

madhavi
01-12-2010, 06:55 PM
आज भारत में जो भी (तथाकथित) जनहित कार्य होता है वो सिर्फ़ और सिर्फ़ वोट पाने के लिए या फ़िर धन कमाने के लिए होता है।
एक राज्य के (उप)मुख्यमन्त्री कहते हैं कि धान/ गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1600 रुपए प्रति 100 किलो किसान को मिलना चाहिए। यही व्यक्ति कहता है कि आम जन को चावल/ आटा 4 रुपए प्रति किलो मिलना चाहिए। : bang head :

madhavi
01-12-2010, 07:02 PM
हरियाणा में वृद्धावस्था पेंशन और पीले राशन कार्ड का राशन लेने बहुत व्यक्ति कार में आते हैं।

madhavi
01-12-2010, 07:10 PM
हरियाणा में पेंशन आदि की बन्दरबांट तो समय पर होती है लेकिन अध्यापकों का वेतन कई कई महीने नहीं दिया जाता।

YUVRAJ
01-12-2010, 08:01 PM
चलता है dear ...;) ...फिर भी हमें भारत पर गर्व है...:bang-head:

हरियाणा में पेंशन आदि की बन्दरबांट तो समय पर होती है लेकिन अध्यापकों का वेतन कई कई महीने नहीं दिया जाता।

jai_bhardwaj
02-12-2010, 12:08 AM
जीवन में मैंने जो चाहा, प्रभु ! न्यूनाधिक वह मुझे मिला
जीवन के झंझावातों में यह नश्वर तन अबतक है खिला
प्रभु ! देखो अपनी नगरी से, यह भारत कैसा दिखता है
पुनर्जन्म की इच्छा में , 'जय' इतना ही कह सकता है
यदि कुसुमित बगिया सा दिखे, तो भँवरा मुझे बना देना
यदि गोबर सा यह दिखता हो, तो गुबरैला मुझे बना देना

alfiealvins
02-12-2010, 08:55 PM
India is the best.I have proud on my country.In india people live together with different religions,regional languages.Hindi is the national language of india.T aj Mahal is the best wonder in india.I love my india.

Kalyan Das
04-12-2010, 10:08 AM
इस सन्दर्भ में रामायण से कुम्भकर्ण का उदहारण प्रशांगिक है :
जब उससे पूछा गया की ये जानते हुए भी की रावन ने गलत कार्य किया है फिर भी तुम उसका साथ देगो
उसका जवाब था "हाँ", रावन चाहे लाख बुरा सही पर है तो मेरा भाई.
उसी तरह अपने देश में लाख बुराई सही पर है तो अपना देश
पर अनिल भाई परिणाम से डर लगता है कहीं अपना परिणाम भी कुम्भकर्ण जैसा ही ना हो क्योकि यहाँ तो घर घर में रावन हैं और राम ढूंढे नहीं मिलते

हम तो बिभीषण बनके राम जी के शरण लेने के बजाए कुम्भकर्ण बनके रावण के साथ रहना और युद्ध करके मरना पसंद करेंगे !!
किसी भारतीय सैनिक के मुंह हे सुने हुए दो लाइन हमेशा याद आते हैं !!
भगवा, सफ़ेद, हरा !
जीवन चक्र मेरा !!
भगवा, सफ़ेद, हरा !
जीवन चक्र मेरा !!

ABHAY
06-12-2010, 11:27 AM
:india:हा मुझे भारत पर गर्व है क्योकि भारत में ही ये हो सकता है:india:
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4563&stc=1&d=1291620394

libya
12-12-2010, 05:55 PM
मुझे भारत पर गर्व है
पर भारतीयों पर गर्व ????????????????

अगर भारत में एक भी भारतीय को आप खोज लेगे तो मेरी तरफ से आप को इनाम दिया जायेगा

आप को सिर्फ भारत में दूसरों कि पहचान पूछनी है अगर कोई अपनी पहचान में अपने आप को भारतीय कहे तो आप को इनाम और उसको सम्मान दिला देगी . .

VIDROHI NAYAK
12-12-2010, 06:44 PM
हाँ हमें गर्व है इस भुखमरी पर...
हमें गर्व है अत्धिक संवेदनाओ पर...
हमें गर्व है अनियंत्रित भ्रष्टाचार पर..
हमें गर्व है हमारे शीर्ष नेताओ पर...
हमें गर्व है मांओ की सुखी छाती पर...
हमें गर्व है अशिक्षा पर...
हमें गर्व है कागजी योजनाओं पर...
और न जाने क्या क्या
हमें हर चीज़ पर गर्व है भाई...पर ...फिर भी हम कहीं सर उठाने लायक नहीं है ! बस इस बात का भी तो गर्व है !

krantikari
01-02-2011, 06:32 AM
हमारा देश हर तरफ से समस्याओं से घिरा हुआ है, ये समस्याएं आर्थिक भी है और सामाजिक भी. राजनितिक मुद्दे तो हर समस्या का आधार ही बन कर रह गए हैं. परन्तु मेरी नज़र में भारत की सबसे बड़ी समस्या भारतीयों का अपने देश के सन्दर्भ लापरवाही से भरा हुआ नजरिया है. हर कोई भ्रष्टाचार की धूनी रमा रहा है, तो कोई विदेशों की महिमा के गीत गा रहा है, युवाओं को नशे में धुत्त रहने और रटे-रटाये रस्ते पर चलने के आलावा कोई काम ही नहीं है.

आज हर भारतवासी, भारतीय होने से पहले मराठी, मद्रासी, बंगाली, पंजाबी और हरयाणवी हो गया है. सरहदों पर लकीरें खींचने में फिरंगी कामयाब रहे और अब घर के आँगन में लकीर खींचने के लिए मतलबी राजनीतिज्ञ तत्पर हैं. हम क्या कर रहे हैं....युवा वर्ग होने के नाते अपने राष्ट्र के लिए लाखों जिम्मेदारियां बनती हैं, पर हमारे पास अपनी बेनाम ज़िन्दगी जीने के अलावा कोई काम ही नहीं है.

ऐसे में हम किस बात पर गर्व करे.

भ्रष्टाचार
सामाजिक समस्याएं
आर्थिक समस्याएं
राजनितिक समस्याएं
आतंकवाद
धार्मिक समस्याएं.
सिर्फ उस अमर बेल कि शाखाएं मात्र हैं जो हमारे देश को दिन रात ख़त्म करने में अग्रसर है. हमें इसकी जड़ तक जाना चाहिए और इस अमरबेल कि जड़ कुछ और है. यानि सब समस्याओं का आधार कुछ और है. और वो आधार है हमारा सोचने का नजरिया और हमारे दिलों से पल पल मिटती भारतीयता.

अब फैसला हमारा है. हमें तय करना है कि हमें हमारी जिम्मेदारियां कैसे निभानी है या हमेशा कि तरह आँखें मूँद कर चलते रहना है.

जब तक हमारी आखें बाद रहेगी तब तक ऐसे देश और इसके देशवासियों पर गर्व करना व्यर्थ है.

जय हिंद. जय भारत.

Kumar Anil
02-02-2011, 09:40 AM
हमारा देश हर तरफ से समस्याओं से घिरा हुआ है, ये समस्याएं आर्थिक भी है और सामाजिक भी. राजनितिक मुद्दे तो हर समस्या का आधार ही बन कर रह गए हैं. परन्तु मेरी नज़र में भारत की सबसे बड़ी समस्या भारतीयों का अपने देश के सन्दर्भ लापरवाही से भरा हुआ नजरिया है. हर कोई भ्रष्टाचार की धूनी रमा रहा है, तो कोई विदेशों की महिमा के गीत गा रहा है, युवाओं को नशे में धुत्त रहने और रटे-रटाये रस्ते पर चलने के आलावा कोई काम ही नहीं है.

आज हर भारतवासी, भारतीय होने से पहले मराठी, मद्रासी, बंगाली, पंजाबी और हरयाणवी हो गया है. सरहदों पर लकीरें खींचने में फिरंगी कामयाब रहे और अब घर के आँगन में लकीर खींचने के लिए मतलबी राजनीतिज्ञ तत्पर हैं. हम क्या कर रहे हैं....युवा वर्ग होने के नाते अपने राष्ट्र के लिए लाखों जिम्मेदारियां बनती हैं, पर हमारे पास अपनी बेनाम ज़िन्दगी जीने के अलावा कोई काम ही नहीं है.

ऐसे में हम किस बात पर गर्व करे.

भ्रष्टाचार
सामाजिक समस्याएं
आर्थिक समस्याएं
राजनितिक समस्याएं
आतंकवाद
धार्मिक समस्याएं.
सिर्फ उस अमर बेल कि शाखाएं मात्र हैं जो हमारे देश को दिन रात ख़त्म करने में अग्रसर है. हमें इसकी जड़ तक जाना चाहिए और इस अमरबेल कि जड़ कुछ और है. यानि सब समस्याओं का आधार कुछ और है. और वो आधार है हमारा सोचने का नजरिया और हमारे दिलों से पल पल मिटती भारतीयता.

अब फैसला हमारा है. हमें तय करना है कि हमें हमारी जिम्मेदारियां कैसे निभानी है या हमेशा कि तरह आँखें मूँद कर चलते रहना है.

जब तक हमारी आखें बाद रहेगी तब तक ऐसे देश और इसके देशवासियों पर गर्व करना व्यर्थ है.

जय हिंद. जय भारत.

अक्षरशः सहमत ।

ndhebar
02-02-2011, 10:17 AM
हम तो बिभीषण बनके राम जी के शरण लेने के बजाए कुम्भकर्ण बनके रावण के साथ रहना और युद्ध करके मरना पसंद करेंगे !!
किसी भारतीय सैनिक के मुंह हे सुने हुए दो लाइन हमेशा याद आते हैं !!
भगवा, सफ़ेद, हरा !
जीवन चक्र मेरा !!
भगवा, सफ़ेद, हरा !
जीवन चक्र मेरा !!

अक्षरशः सहमत ।

आपसी द्वन्द दिख रहा है बंधू

झटका
18-04-2011, 09:57 AM
मुझे दुःख इस बात का होता है की आधे अधूरे ज्ञान के आधार पर कुछ लोग अपने देश की बुराई करने में गर्व महसूस करतें हैं
बुराई करना बहुत आसान है पर यदि उन्ही हाथों में सता दे दी जाए तो उनकी हवा निकल जायेगी ये मै गारंटी से कह सकता हूँ ....ये सता चलाना इतना आसान नहीं है वो भी आदर्श सिद्धांतो पर ...नेतागन भी इंसान की तरह ही सोचतें है परन्तु क्या उस स्तिथि को कोई समझा सकता है जहां पर आपको ये कहा जाए की सभी को आप खुश करके दिखा दीजिये .
आप किसी सिस्टम से , किसी नियम से , किसी विचार से असहमत हो सकतें हैं ...लेकिन तब मुर्खता करने लगतें हैं जब उसे गाली देने लगतें हैं

मै अपने देश पर गर्व करता हूँ
इस आधार पर नहीं की मैंने बहुत चीजें पढ़ या समझ रखीं हैं
केवल इसीलिए की मुझे अपने देश से भावनात्मक रूप से लगाव है और मै इसकी उस तरह बुराई नहीं कर सकता जैसे कुछ लोग करतें हैं

bharat
07-05-2011, 03:24 AM
भारत पर गर्व या शर्म????????? भारत क्या है? कोन है? देश तो देशवासियों से मिलकर ही बनता है! देशवासियों के बिना देश का क्या वजूद! तो जो लोग ये बोल रहे हैं कि गर्व नहीं है या शर्म आती है, इसका मतलब तो उन्हें खुद पर शर्म आती है या गर्व नहीं है! देश की बुराई करके खुद को गोरवान्वित महसूस करने वाले यदि नागरिक हों तो देश का विकास थोडा धीमा तो होगा ही! यही बात पाकिस्तान या अफगानिस्तान में बोल्दी होती तो टाइपिंग ख़तम होने से पहले ही खेल ख़त्म हुआ समझो!
उस आजादी पर गर्व करो जिसका नाजायज फायदा उठाया जा रहा है आज भारत देश में!
उन वीरों पर गर्व करो जो मर गए देश को आजाद करवाने के लिए, ये जाने बिना कि आने वाले समय में ऐसे लोग भी पैदा होंगे जो देश को बुरा भला बताने में गर्व महसूस करेनेगे!

सच तो ये है कि भारत पर गर्व वाक्य ही गलत है! हम या आप कोन होते हैं ये कहने वाले कि इस देश में ये अच्छाई है तो इसलिए इस देश पर गर्व है! आप खुद के भारतीय होने पर गर्व करो! न की भारत पर!

और अगर इतना ही बुरा लगता है तो या तो बदल दो हालात को या छोड़ दो!

bharat
07-05-2011, 03:25 AM
देश के अन्दर हो रहे गलत कामों के बारे में बात करो या लिखो! देश पर नहीं!
दिग्विजय मत बनो!

amit_tiwari
07-05-2011, 04:55 AM
भारत पर गर्व या शर्म????????? भारत क्या है? कोन है? देश तो देशवासियों से मिलकर ही बनता है! देशवासियों के बिना देश का क्या वजूद! तो जो लोग ये बोल रहे हैं कि गर्व नहीं है या शर्म आती है, इसका मतलब तो उन्हें खुद पर शर्म आती है या गर्व नहीं है! देश की बुराई करके खुद को गोरवान्वित महसूस करने वाले यदि नागरिक हों तो देश का विकास थोडा धीमा तो होगा ही! यही बात पाकिस्तान या अफगानिस्तान में बोल्दी होती तो टाइपिंग ख़तम होने से पहले ही खेल ख़त्म हुआ समझो!
उस आजादी पर गर्व करो जिसका नाजायज फायदा उठाया जा रहा है आज भारत देश में!
उन वीरों पर गर्व करो जो मर गए देश को आजाद करवाने के लिए, ये जाने बिना कि आने वाले समय में ऐसे लोग भी पैदा होंगे जो देश को बुरा भला बताने में गर्व महसूस करेनेगे!

सच तो ये है कि भारत पर गर्व वाक्य ही गलत है! हम या आप कोन होते हैं ये कहने वाले कि इस देश में ये अच्छाई है तो इसलिए इस देश पर गर्व है! आप खुद के भारतीय होने पर गर्व करो! न की भारत पर!

और अगर इतना ही बुरा लगता है तो या तो बदल दो हालात को या छोड़ दो!

भाई मेरे लिखने से पहले पढना भी ज़रूरी होता है| मैं आपकी सुविधा के लिए अपनी पहली पोस्ट को उधृत कर रहा हूँ जिसमें मैंने दो वाक्यांश बोल्ड में लिखे थे | इतना तो आप भी जानते होंगे कि बोल्ड में लिखे शब्दों का अर्थ होता है की लेखक उन शब्दों पर अधिक जोर देना चाहता है |


मुझे व्यक्तिगत रूप से आज के भारत का नागरिक होने पर कोई गर्व नहीं है और ना ही इसका कोई कारण समझ आता है |
निशांत भाई की कही बात को ही और आगे बढ़ाते हुए मैं यही कहूँगा कि आज जब बाकि सारे देश अपनी सफलता का ओर्केस्ट्रा बजा रहे हैं तब हम मात्र भूतकाल की पिपहरी फूंक रहे हैं |

निकम्मा नेतृत्व कफ़न चुरा के पैसे कम रहा है, प्रशासन से जुड़े लोग फ़्लैट में घोटाला कर रहे हैं, धार्मिक वर्ग राजनीति करके इच्छापूर्ति कर रहे हैं, युवा अपनी संकृति का klpd करके क्या क्या कर रहे हैं ये किसी को बताने की जरुरत नहीं है और हर बात पर निरूपा राय की तरह रोने वाला आम नागरिक वर्ग हर छोटे से छोटे मौके का फायदा उठा कर जुगाड़ बना रहा है |
जो लोग चौराहे में सिपाही के पांच रुपये लेने पर भागीरथ बन जाते हैं वही बीएड में अपने बेटे को एडमिशन दिलाने के एक-डेढ़ लाख आराम से देने को तैयार हैं | शायद देश के बाकी हिस्सों के लोग परिचित ना हों किन्तु इस समय यूपी में बीएड भर्ती के नाम पर जो घोटाला गबन खुले आम आम जनता द्वारा किया जा रहा है वो बोफोर्स या तेलगी मामले को बौना बना दे | ५-५ साल के तीन बच्चों वाले स्कुल के नाम पर ५ बीएड मास्टर २१ हजार की तनख्वाह उड़ा रहे हैं | कोई इस घोटाले की कीमत आंके तो सही, शायद गिनती ख़त्म हो जाये |

देश में व्यापर बढ़ रहा है,,,,, किसका? मोबाइल का? टीवी का? सबसे सस्ती कही जाने वाली दाल रोटी भी आज लोग सहन नहीं कर सकते और सरकार प्रचार करा रही है की पीली मटर दाल खाओ | ऐसे देश का नागरिक होने पर क्या गर्व करूँ |

देश के लोग बाहर जा कर नाम कमा रहे हैं !!! हाँ ये सच है, जो कुछ काबिल लोग यहाँ कुछ भी करने में असमर्थ थे वो बाहर अवसर मिलते ही प्रतिस्पर्धा को जीत लेते हैं! ये उनकी म्हणत और काबिलियत है किन्तु इस देश में रहते हुए किसी घाट नहीं लगते | सबसे अधिक क्षमता होते हुए भी भारतीय सबसे कम वेतन पर बाहर नौकरी पते हैं ( यूरोपीय समकक्षों की तुलना में ) हर साल नस्ली भेदभाव झेलते हैं, मार खाते हैं | इसलिए नहीं की हम उतने गोरे नहीं हैं, इसलिए क्यूंकि हम गरीब देश से आते हैं |
घाट से याद आया पतितपावनी को साफ़ करने के नाम पर कितने करोड़ फूंके ये किसी को याद आया? क्या गंगा साफ़ हुई? क्या सिर्फ नेताओं ने इसमें पैसा खाया? गंगा को मैया कहते हैं और उसी मैया के नाम का पैसा खा गए ऐसी है हमारी तात्कालिक सभ्यता !!!

मुझे शर्म आती है ऐसे तात्कालिक भारत पर !!!

अगर फिर भी मेरी पोस्ट का मर्म ना समझ पायें तो क्षमा करें मैं कोई सहायता नहीं कर सकता |

bharat
07-05-2011, 05:46 AM
अगर फिर भी मेरी पोस्ट का मर्म ना समझ पायें तो क्षमा करें मैं कोई सहायता नहीं कर सकता |

तत्कालीन और आज का..ऐसे शब्दों का तात्पर्य मैं भी समझता हूँ! आपने कुछ भी लिखा वो आपके विचार थे! लेकिन इसमें देश को सम्भोदित किया जाना मेरी समझ में नहीं आया! देश जब देशवासियों से मिलकर बना है तो आप देशवासियों की कमी निकालिए! देश का कसूर ये कि उसे ऐसे देशवासी मिले??????\

क्या आप किसी देश के बारे में बता सकते हैं जहाँ भारतीयों को कम वेतन मिलता है, सिर्फ इसलिए कि वो भारतीय हैं या बाहर के हैं?मैं नहीं मानता! भारतीय या एशिया के लोगों को यूरोप और अमेरिका में मेहनती के रूप में देखा जाता है!यदि भारतीय डॉक्टर वापिस आ जायें तो अमेरिका और यूरोप में डॉक्टर्स की कमी पड़ जाएगी! नस्लीय हमलों के लिए विदेशों को दोष नहीं दिया जा सकता,जबकि देश के अन्दर भी उत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीय के नाम पर झगडे हो रहे हैं! आपसे स्पस्टीकरण नहीं चाहिए!कुछ देशवासियों को बुरा बोला जा सकता है, लेकिन देश को बुरा बोलना गलत सन्देश देता है! वो भी तब जबकि आपका सन्देश पूरी दुनिया में कहीं भी कोई भी पढ़ सकता है! आप कुछ भी बोलिए लेकिन कृपया देश को बुरा मत बोलिए!

prashant
07-05-2011, 12:46 PM
तत्कालीन और आज का..ऐसे शब्दों का तात्पर्य मैं भी समझता हूँ! आपने कुछ भी लिखा वो आपके विचार थे! लेकिन इसमें देश को सम्भोदित किया जाना मेरी समझ में नहीं आया! देश जब देशवासियों से मिलकर बना है तो आप देशवासियों की कमी निकालिए! देश का कसूर ये कि उसे ऐसे देशवासी मिले??????\

क्या आप किसी देश के बारे में बता सकते हैं जहाँ भारतीयों को कम वेतन मिलता है, सिर्फ इसलिए कि वो भारतीय हैं या बाहर के हैं?मैं नहीं मानता! भारतीय या एशिया के लोगों को यूरोप और अमेरिका में मेहनती के रूप में देखा जाता है!यदि भारतीय डॉक्टर वापिस आ जायें तो अमेरिका और यूरोप में डॉक्टर्स की कमी पड़ जाएगी! नस्लीय हमलों के लिए विदेशों को दोष नहीं दिया जा सकता,जबकि देश के अन्दर भी उत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीय के नाम पर झगडे हो रहे हैं! आपसे स्पस्टीकरण नहीं चाहिए!कुछ देशवासियों को बुरा बोला जा सकता है, लेकिन देश को बुरा बोलना गलत सन्देश देता है! वो भी तब जबकि आपका सन्देश पूरी दुनिया में कहीं भी कोई भी पढ़ सकता है! आप कुछ भी बोलिए लेकिन कृपया देश को बुरा मत बोलिए!


वाह वाह भारत भाई आप सच मुच में वर्तमान भारत के मनोज कुमार है/
मैं आपकी बात से सहमत हूँ/
देश तो देशवासियों से बनाता है/
i proud to be an indian.
अब हमारे देश में दिग्विजय जैसे नेता जो सहीदों का अपमान और आतंकवादियों का सम्मान करने की बात करें तो इसमें देश की क्या गलती है/
भाई देश में सभी को अपना विचार रखने का अधिकार है तो इस अधिकार के नाते देश की बजाओ कौन माई का लाल रोकेगा/

amit_tiwari
07-05-2011, 08:12 PM
तत्कालीन और आज का..ऐसे शब्दों का तात्पर्य मैं भी समझता हूँ! आपने कुछ भी लिखा वो आपके विचार थे! लेकिन इसमें देश को सम्भोदित किया जाना मेरी समझ में नहीं आया! देश जब देशवासियों से मिलकर बना है तो आप देशवासियों की कमी निकालिए! देश का कसूर ये कि उसे ऐसे देशवासी मिले??????\


चलो बंधू साढ़े पांच महीने के बाद ये सूत्र सही प्रश्न पर आया |
आपने कहा देशवासियों की बुराई करो, मैंने कहता हूँ देश क्या है ???
कोई मुझे बतायेगा की आखिर देश है क्या? देश जमीन का कोई टुकड़ा नहीं होता, यदि है तो इस हिसाब से रामायण का भारत हमारे भारत से अलग है |
देश की वैधानिक परिभाषा के अनुसार चार तत्वों का होना देश के अस्तित्व की प्राथमिक ज़रूरत है;
१-जनसँख्या(देशवासी)
२-भूमि(निश्चित भूमि)
3-संप्रभुता(अधिकार जो आर्थिक, वैधानिक और संवैधानिक रूप से सर्वोच्च हो)
४-राज्य(शासन करने वाली संस्था)

संप्रभुता एक गुण है अतः वो ना अच्छा है ना बुरा है किन्तु यदि अन्य तीन में से दो अनिवार्य तत्व दूषित हैं तो क्या कहूँ ???
ये मेरी मनगढ़ंत परिभाषा नहीं है, ये ugc की अनुमोदित परिभाषा है जिसे pg और phd में प्रयोग करते हैं | आप चेक कर लें | यदि आपको इस पर विश्वास नहीं तो बताइये किसे देश कहेंगे आप?
मेरे कहने का अर्थ पहले दिन से ये था की देश कोई एक व्यक्ति नहीं है जिसकी हम बुराई कर सकते हैं, देश के दो अनिवार्य तत्व हमसे मिल कर बनते हैं और यदि आप कहते हैं देशवासी बुरे हैं तो आप खुद ही देश की बुराई कर रहे हैं | रही बात जमीन की तो कभी सिक्किम की तरफ जा कर देखिएगा... शाम के चार बजे के बाद वहाँ बाहरी लोग(जो लोग पूर्वोत्तर के निवासी नहीं लगते) जा भी नहीं सकते | जबकि वह हिस्सा भी हमारे नक़्शे के अनुसार देश है |

[i][color=teal]
क्या आप किसी देश के बारे में बता सकते हैं जहाँ भारतीयों को कम वेतन मिलता है, सिर्फ इसलिए कि वो भारतीय हैं या बाहर के हैं?मैं नहीं मानता! भारतीय या एशिया के लोगों को यूरोप और अमेरिका में मेहनती के रूप में देखा जाता है!यदि भारतीय डॉक्टर वापिस आ जायें तो अमेरिका और यूरोप में डॉक्टर्स की कमी पड़ जाएगी! नस्लीय हमलों के लिए विदेशों को दोष नहीं दिया जा सकता,जबकि देश के अन्दर भी उत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीय के नाम पर झगडे हो रहे हैं! आपसे स्पस्टीकरण नहीं चाहिए!कुछ देशवासियों को बुरा बोला जा सकता है, लेकिन देश को बुरा बोलना गलत सन्देश देता है! वो भी तब जबकि आपका सन्देश पूरी दुनिया में कहीं भी कोई भी पढ़ सकता है! आप कुछ भी बोलिए लेकिन कृपया देश को बुरा मत बोलिए!

Please don't mind but अगर आप नहीं मानते तो इसका अर्थ इतना ही है की आप जानते नहीं हैं | गल्फ रीजन में भारतीय समेत सारे सबकोंटीनेंट के लोग आधा वेतन पाते हैं, जबकि उसी काम के लिए अमेरिकी और यूरोपीय दुगना वेतन पाते हैं| आप किसी भी व्यक्ति से पूछ सकते हैं जो वहाँ रहता हो, मेरा घर भी वही हैं इसलिए मैं दावा कर सकता हूँ |
अमेरिका और यूरोप में भी हम सस्ते श्रम के रूप में उपलब्ध हैं | यदि भारतीय डॉक्टर वापस आ जाएँ तो यकीनन वापस आ जाएँ तो शायद वहाँ डॉक्टरों की कमी हो जाए, लेकिन चाहे प्रलय आ जाये वो वहाँ से नहीं टरेंगे | अभी आस्ट्रेलिया में कितने पिटे, कौन वापस आ गया? सिर्फ भारत का होने के कारण पिट रहे हैं फिर भी नहीं वापस आ रहे |
आपको पता है वो फीलिंग जब आप किसी दुसरे देश में अपने पासपोर्ट के साथ पासपोर्ट कंट्रोल की लाइन में खड़े हों और आपको यूरोपीय देश के पासपोर्ट होल्डर से कम तरजीह मिले??? उस वक़्त समझ में आता है कि विकासशील होने का अर्थ क्या होता है!
मुझे पता है और मुझे ये बात कचोटती है इसलिए चाहे जितने छोटे स्तर पर हो लेकिन मैं वन्दे मातरम करूँगा, सिर्फ कहूँगा नहीं | खुशफहमी से अच्छी वास्तविक कठोरता है |
यदि मैं किसी अंतर्राष्ट्रीय मंच पर हूँ तो अवश्य ही ऐसा नहीं कहूँगा किन्तु मैं समझता हूँ की मैं यहाँ अपने भाइयों, अपने दोस्तों के बीच में हूँ और मेरा कहने का उद्देश्य उस अंतरात्मा को झकझोरना था जो यह मानती तो है कि देश महान था और अब गर्त में जा रहा है किन्तु करने के नाम पर सिर्फ 'वन्दे मातरम्' ही करती है | वन्दे मातरम् सिर्फ कहने की लाइन नहीं है, इसे जीने का मकसद बनाना पड़ेगा, मरने का जरिया बनाना पड़ेगा तब जा के वो गौरव मिलेगा जिसका ख्वाब देखना चाहते हैं |

amit_tiwari
08-05-2011, 02:01 AM
शायद आप लोगों ने इस वीडियो को देखा हो.. किन्तु ना देखा हो तो...

Kk02qPlnS2E


मेरी पहली प्रविष्टि का उद्देश्य यही था की देशप्रेम सिर्फ कहने की चीज़ नहीं होती, इसे जिया भी जा सकता है |

एक रोमांचित करने वाली घटना मुझे याद है, कुछ २ साल पहले छब्बीस जनवरी का फंक्शन शूट करने के लिए एक दोस्त के साथ फतेहगढ़ की जेल में गया था | एक चैनल का प्रोग्राम था और मैं कैमरा ओपरेटर के तौर पर गया था | सुबह ६ बजे सभी कैदी झंडारोहण की तैयारी में लगे थे | मेरे दोस्त ने हँसते हुए कह दिया की जरुर सभी को जबरदस्ती उठाया गया होगा इस सबके लिए | और पास से गुजर रहे एक कैदी ने बड़ी सरलता से उत्तर दिया "साहब आप तो पढ़े लिखे लगते हैं, कैदी और आतंकवादी में अंतर समझते होंगे" मैंने उस दिन समझा किई कैसे ये देश इतने साल से टिका है, क्यूँ किसी ने लिखा की

कुछ बात है की हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहां हमारा |

मैं इतिहास का छात्र हूँ लेकिन भविष्य देखना चाहता हूँ | ये समय कठिन है, दुनिया की इकोनोमी ढह रही है और ऐसे बदलते संतुलन में यदि अपनी पहचान बनानी या कम से कम बचानी भी है तो उसके लिए अब वन्दे मातरम को जीना पड़ेगा... यकीन मानिए समय बहुत ज्यादा संवेदनशील है |हम सिर्फ कह कर काम नहीं चला सकते, अब हमें ही निकल कर आगे आना होगा और करना पड़ेगा.... कल से नहीं आज से.. अभी से | मत देखिये किसी नेता का मुंह, मत इन्तेजार कीजिये किसी अद्भुत शक्ति के अवतार का |
अपने मोहल्ले, कालोनी में जैसे चिट फंड कमिटी डालते हैं वैसे लड़कों के, युवकों की टोलियाँ बनाइये, दस दस रुपैये का फोरम भर कर पूछिये अपने प्रशासन से की हर साल क्षेत्र के विकास को मिलने वाले सांसद के ५ पांच करोड़ और विधायक के १ करोड़ का क्या हुआ? कहाँ लगा वो रूपया ??? मजबूर कीजिए उन्हें उत्तर देने पर |
कोई नहीं करता तो खुद अकेले ही करिए, सिर्फ एक आसान सा १० रुपैये का फॉर्म भरना है और पूछिये मत की किसने और किया | एक अन्ना हजारे से कुछ नहीं होगा, यहाँ हर गली रावण हैं, हमें हर छत पर एक हनुमान चाहिए | शायद तब हम ज्यादा जोर से कह सकेंगे वन्दे मातरम् |

ये मैं सिर्फ आपके लिए नहीं कह रहा, ये सभी से अपील है | यदि भ्रष्टाचार है तो चलो सामने लाते हैं, फोरम में अपने शहर के लोग देखिये उनसे सहयोग लीजिये वरना आप अकेले ही शुरू करिए, आस पास वाले साथ देंगे खुद ही |
सिर्फ प्लान मत बनाइये, सिर्फ सोचने से सिर्फ असफलता ही मिलती है |
सिर्फ कहिये मत वन्दे मातरम्, इसे जीते हैं चलो |

रही बात अमित तिवारी के देश की बुराई करने की.... मेरी इतनी औकात ही नहीं... जिस देश को गोरी, गजनी नहीं लूट पाए, जिसे देख कर मुगलों का दिल यही लग गया, जिसे उगते सूरज वाले अँगरेज़ नहीं झुका पाए उसे कुछ कहने की मेरी औकात ही नहीं |
पहले दिन भी मेरा उद्देश्य झकझोरना था जो शायद इतने समय के बाद ही सही लेकिन हो गया |

लेकिन... ऊपर की विनती कायम है, चलो जीते हैं वन्दे मातरम् | इस वन्दे मातरम् को सिर्फ कहने के लिए भगत सिंह, लाला लाजपत राय और ना जाने कितने अनजान गुमनाम शहीदों ने अपना खून बहाया | इसके हर हर्फ़ में उनके खून के कतरे हैं | इतने पाकीज़ा शब्द को कहने से पहले हमें खुद को उसके लायक बनाना होगा | हमें कमाना होगा ये अधिकार | सोच लेते हैं की हम वन्दे मातरम् तभी कहेंगे अब जब हम खुद को इस पाकीज़ा लफ्ज़ के लायक बना लेंगे |

bharat
08-05-2011, 02:50 AM
चलो बं...., वैधानिक और संवैधानिक रूप से सर्वोच्च हो)
४-राज्य(शासन करने वाली संस्था)

संप्रभुता एक गुण है अतः वो ना अच्छा है ना बुरा है किन्तु यदि अन्य तीन में से दो अनिवार्य तत्व दूषित हैं तो क्या कहूँ ??.....



Please don't mind but अगर आप नहीं मानते तो इसका अर्थ इतना ही है की आप जानते नहीं हैं | गल्फ रीजन में भारतीय ....
मुझे पता है और मुझे ये बात कचोटती है इसलिए चाहे जितने छोटे स्तर पर हो लेकिन मैं वन्दे मातरम करूँगा, सिर्फ.... रहा है किन्तु करने के नाम पर सिर्फ 'वन्दे मातरम्' ही करती है | वन्दे मातरम् सिर्फ कहने की लाइन नहीं है, इसे जीने का मकसद बनाना पड़ेगा, मरने का जरिया बनाना पड़ेगा तब जा के वो गौरव मिलेगा जिसका ख्वाब देखना चाहते हैं |


ओहो अब समझा! गल्फ देशों को आधार मानकर आपने यहाँ एक लेख लिख डाला भारत के लोगों की सच्चाई पर!
वाह जनाब!
गल्फ के देशों में जाने वाले भारतीय उनकी तरह है, जैसे बिहार के मेहनती लोग उत्तर भारत में आते हैं! कम वेतन पाते हैं! (इस पर कमेन्ट न करें, धन्यवाद)
एशियाई देशों में ऐसा ही होता है!
यदि कोई बात कि है आपने तो पुरे संसार के संधर्ब में कीजिये! यूरोपीय और अमरीकी जगहों पर म्हणत करने वालों को पैसा ज्यादा मिलता है! हो सकता है कि एक मैनेजेर की तनख्वाह उसी बेंक के सफाई कर्मचारी से कम हो!

शायद आप नहीं जानते कि आस्ट्रेलिया संसार के सबसे ठन्डे लोगों का एक देश है!आस्ट्रेलिया के लोग सबसे भले और प्यार करने वाले लोगों में से एक हैं! आस्ट्रेलिया में रहने वाले सभी भारतियों से यदि आप पूछो तो वो भी यही कहेंगे कि अगर ऐसे कोई पिटता है तो अपनी कमी में पिटता है! बाहर जाकर उस देश के लोगों कि इज्ज़त भी करनी चाहिए! और फिर कुछ ग्रुप यदि भारतियों को पसंद नहीं भी करते तो उसमे पुरे आस्ट्रेलिया देश का कोई कसूर नहीं है!

यदि व्यक्ति इस लायक है कि अपनी बात को पेश कर सके तो इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि भारत का है या अमेरिका का! दुसरे देशों में नस्लवाद एक बहुत संवेदनशील मुद्दा है! (गल्फ की बात नहीं कर रहा!) यदि इस बारे में शिकायत भी कर दी जाये तो चाहे कितना ही बड़ा आदमी क्यूँ न हो, घुटने नीचे रखवा सकते हैं उसके! यदि कमी खुद में हो तो दूसरों को दोष नहीं दिया करते! एक ज्ञान से भरे इंसान की हर जगह इज्ज़त है! (कृपया गल्फ का उदाहरण न दें!)


और यदि गल्फ के देशों में भी भारतियों को विकासशील या पिच्च्दा हुआ माना जाता है तो दया आती है उनपर जो वहां बसे हुए हैं! इसमें भारत कि कोई कमी नहीं, कमी उन लोगों कि है जो ऐसी जगह रह रहे हैं, आवाज उठाने से डरते हैं! डरपोक और कायर आदमी का काल कभी नहीं कटता! पैसे के लिए जीवन में कष्ट सहना भरता ही नहीं अपितु लगभग सभी देशों के नागरिकों के जीवन में शुमार है! बात भारत कि कि जाये तो ऐसे उदाहरण दें जो सिर्फ इसी देश में होते हैं!
अमेरिका और यूरोप में पढ़े लिखे लोगों की कद्र है! फर्क नहीं पड़ता कि वो किसी भी देश का हो!

bharat
08-05-2011, 02:52 AM
अंत में यही कहूँगा!
यदि कोई इंसान अपने देश के लिए कुछ अच्छा न कर पाए, तो कम से कम ऐसा भी कुछ न करे जिससे देश का नाम खराब हो!

amit_tiwari
08-05-2011, 08:35 PM
ओहो अब समझा! गल्फ देशों को आधार मानकर आपने यहाँ एक लेख लिख डाला भारत के लोगों की सच्चाई पर!
वाह जनाब!
गल्फ के देशों में जाने वाले भारतीय उनकी तरह है, जैसे बिहार के मेहनती लोग उत्तर भारत में आते हैं! कम वेतन पाते हैं! (इस पर कमेन्ट न करें, धन्यवाद)
एशियाई देशों में ऐसा ही होता है!
यदि कोई बात कि है आपने तो पुरे संसार के संधर्ब में कीजिये! यूरोपीय और अमरीकी जगहों पर म्हणत करने वालों को पैसा ज्यादा मिलता है! हो सकता है कि एक मैनेजेर की तनख्वाह उसी बेंक के सफाई कर्मचारी से कम हो!

शायद आप नहीं जानते कि आस्ट्रेलिया संसार के सबसे ठन्डे लोगों का एक देश है!आस्ट्रेलिया के लोग सबसे भले और प्यार करने वाले लोगों में से एक हैं! आस्ट्रेलिया में रहने वाले सभी भारतियों से यदि आप पूछो तो वो भी यही कहेंगे कि अगर ऐसे कोई पिटता है तो अपनी कमी में पिटता है! बाहर जाकर उस देश के लोगों कि इज्ज़त भी करनी चाहिए! और फिर कुछ ग्रुप यदि भारतियों को पसंद नहीं भी करते तो उसमे पुरे आस्ट्रेलिया देश का कोई कसूर नहीं है!

यदि व्यक्ति इस लायक है कि अपनी बात को पेश कर सके तो इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि भारत का है या अमेरिका का! दुसरे देशों में नस्लवाद एक बहुत संवेदनशील मुद्दा है! (गल्फ की बात नहीं कर रहा!) यदि इस बारे में शिकायत भी कर दी जाये तो चाहे कितना ही बड़ा आदमी क्यूँ न हो, घुटने नीचे रखवा सकते हैं उसके! यदि कमी खुद में हो तो दूसरों को दोष नहीं दिया करते! एक ज्ञान से भरे इंसान की हर जगह इज्ज़त है! (कृपया गल्फ का उदाहरण न दें!)


और यदि गल्फ के देशों में भी भारतियों को विकासशील या पिच्च्दा हुआ माना जाता है तो दया आती है उनपर जो वहां बसे हुए हैं! इसमें भारत कि कोई कमी नहीं, कमी उन लोगों कि है जो ऐसी जगह रह रहे हैं, आवाज उठाने से डरते हैं! डरपोक और कायर आदमी का काल कभी नहीं कटता! पैसे के लिए जीवन में कष्ट सहना भरता ही नहीं अपितु लगभग सभी देशों के नागरिकों के जीवन में शुमार है! बात भारत कि कि जाये तो ऐसे उदाहरण दें जो सिर्फ इसी देश में होते हैं!
अमेरिका और यूरोप में पढ़े लिखे लोगों की कद्र है! फर्क नहीं पड़ता कि वो किसी भी देश का हो!








अमेरिका का उदाहरण हद से ज्यादा पुराना हो चुका है, मेरा खुद का ऑफिस न्यूयार्क में हैं और मैं वह का हालत अच्छे से जानता हूँ, रही आस्ट्रेलिया की बात तो वहां भी मेरी पार्टनरशिप में एक कंपनी रजिस्टर्ड है तो मेरे ख्याल से मैं वहाँ के बारे में भी थोडा बहुत जानता हूँ | खैर आप मेरे ख्याल से आप सिर्फ विरोध करने के लिए विरोध कर रहे हैं, संवाद में आपकी कोई इच्छा नहीं है इसलिए कुछ भी कहना व्यर्थ है |
इस थ्रेड को पुनर्जीवित करने के लिए धन्यवाद |

bharat
11-05-2011, 01:00 AM
अमेरिका का उदाहरण हद से ज्यादा पुराना हो चुका है, मेरा खुद का ऑफिस न्यूयार्क में हैं और मैं वह का हालत अच्छे से जानता हूँ, रही आस्ट्रेलिया की बात तो वहां भी मेरी पार्टनरशिप में एक कंपनी रजिस्टर्ड है तो मेरे ख्याल से मैं वहाँ के बारे में भी थोडा बहुत जानता हूँ | खैर आप मेरे ख्याल से आप सिर्फ विरोध करने के लिए विरोध कर रहे हैं, संवाद में आपकी कोई इच्छा नहीं है इसलिए कुछ भी कहना व्यर्थ है |
इस थ्रेड को पुनर्जीवित करने के लिए धन्यवाद |

आपकी पिछले वाली पोस्ट पढ़कर मेरे मन में भी यही लिखने का विचार आया था जब आप भारत की बात छोड़कर विदेशों के उदाहरण देने लग गए थे! पर मैंने लिखा नहीं!
और जैसा की आपने कहा की आप का ऑफिस न्यू-योर्क और ऑस्ट्ररेलिया में भी कुछ है, तो अब इस बारे में और बात तो कहने का औचित्य ही नहीं बनता, मुझे ऐसा नहीं लगा था क्यूंकि मैंने ऐसा कभी होते नहीं देखा और न ही मेरे साथ हुआ था!
शायद आपने ऐसा कुछ अनुभव किया हो व्यक्तिगत रूप से, तो उसके लिए कुछ कह नहीं सकता! खैर, भारत पर शर्म न करें! बुराई हर जगह होती है! देश को इस तरह अपमानित न करें! आपसे विनती है!

prashant
11-05-2011, 07:43 PM
i proud to be an Indian.