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View Full Version : प्रदूषण मुक्त कैसे होगी गंगा?


rajnish manga
23-07-2014, 10:46 PM
प्रदूषण मुक्त कैसे होगी गंगा?



गंगा नदी हम सब के लिए अमृत के रूप में गंगोत्री हिमनद से अवतरित होती है.ये अमृत ऋषिकेश के बाद से जहर बनना शुरू हो जाता है, और ये सिलसिला ऋषिकेश,कानपुर से लेकर कोलकाता तक जारी रहता है,जब गंगा के किनारे लगे परमाणु बिजलीघर,रासायनिक खाद और चमड़े के कारखाने जहर रूपी अपना औद्योगिक कचरा गंगा में छोड़ते हैं. प्रेदेश की बड़ी चीनी मीलों का स्क्रैप हर साल गंगा नदी में बहाकर गंगाजल को ख़राब किया जाता है.गंगा तट पर बसे शहरों के नालों की गंदगी का जहर जाकर गंगा नदी में मिल रहा है.कूड़ा-करकट.इंसान व् पशुओं के मृत शरीर तथा प्लास्टिक कचरे के जहर ने भी गंगाजल को प्रदूषित किया है.कई त्योहारों पर हानिकारक रंगो से युक्त देवी-देवताओं की प्रतिमाएं गंगा में प्रवाहित कर उसे प्रदूषित किया जाता है.गंगा में दो करोड़ नब्बे लाख लीटर से ज्यादा प्रदूषित कचरा हर रोज गिर रहा है.गंगाजल में आक्सीजन का स्तर सामान्य तीन डिग्री से बढ़कर असामान्य रूप से छः डिग्री पर जा पहुंचा है.

rajnish manga
23-07-2014, 10:49 PM
विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तर-प्रदेश में बहुत सी बिमारियों का कारण जहर बन चूका गंगाजल है.आज गंगा-जल पीने व् नहाने के योग्य नहीं रहा.कई वैज्ञानिकों के अनुसार गंगा का पानी फसलों की सिंचाई करने के योग्य भी नहीं है.अपने तुच्छ स्वार्थ में अंधे लोभी लालची मनुष्य ने जड़ी-बूटियों के स्पर्श से अमृत बनकर बहती मां गंगा की कीमत नहीं समझी.अब प्रकृति भी शायद हमारे बीच से मां गंगा को लुप्त करना चाहती है.संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार गंगा को हिमालय पर जल देने वाली हिमनदी सन 2030 ई तक समाप्त हो सकती है,फिर गंगा वर्षा के ऊपर आश्रित होकर एक बरसाती नदी बनकर रह जायेगी.गंगा भारत के सभ्यता व् संस्कृति की पहचान है.भारत सरकार ने सन 2008 ई में गंगा को भारत की राष्ट्रिय नदी घोषित किया और इलाहाबाद-हल्दिया के बीच गंगा नदी जलमार्ग को राष्ट्रिय जलमार्ग घोषित किया.

गंगा को बचाने के लिए और प्रदूषणमुक्त करने के लिए सबसे पहले सन 1985 ई में समाजसेवी एम् सी मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की कि गंगा के किनारे किनारे लगे कारखानों और गंगा के किनारे बसे शहरों से निकलने वाली गंदगी को गंगा में बहाने से रोका जाये.सुप्रीम कोर्ट के दबाब से जागी सरकार ने गंगा की सफाई के लिए सन 1985 ई में गंगा एक्शन प्लान शुरू किया.इस योजना के अंतर्गत गंगा के किनारे बने कारखानो का जहरीला पानी और गंगा के किनारे बसे शहरों का गन्दा पानी साफ करने का प्लांट लगाया जाने लगा,इससे गंगा के पानी की शुद्धता में कुछ सुधार हुआ.बीस सालों में 1200 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च करने पर भी गंगा निर्मलीकरण अभियान असफल रहा.मेरे विचार से इस प्लान की असफलता की वजह यह रही कि गंगा में निरंतर गिर रहे कारखानो के जहरीले पानी और शहरों के सीवर के गंदे पानी को गंगा में बहने से पूर्णत:रोका नहीं जा सका.आज भी गंगा नदी के प्रदूषित होने की मुख्य वजह यही है.गंगा के किनारे बसे शहरों में सीवर का गन्दा पानी जितना निकल रहा है,उस हिसाब से सीवेज ट्रीटमेंट की व्यवस्था हमारे पास नहीं है.उदहारण के लिए वाराणसी शहर में लगभग तीन सौ एम्एलडी गन्दा पानी निकल रहा है,जबकि गंदे जल की शोधन की हमारी व्यवस्था प्रतिदिन सिर्फ लगभग 100 एम्एलडी सीवेज ट्रीटमेंट की है.सरल शब्दों में इसका यह अर्थ हुआ कि लगभग 200 एम्एलडी सीवर का गन्दा जल प्रतिदिन गंगा नदी में मिलकर गंगा जल को प्रदूषित कर रहा है.यही हाल गंगा नदी के किनारे बसे अन्य दूसरे शहरों का भी है.

rajnish manga
23-07-2014, 10:51 PM
गंगा के पानी को शुद्ध करने का सबसे कारगर तरीका है गंगा नदी के बहाव को तेज किया जाये,जबकि इसके ठीक विपरीत टिहरी में भागीरथी नदी पर बांध बना कर पानी के तेज बहाव को बहुत हद तक रोक दिया गया है,बहुत समय से साधू-संत इसका विरोध कर रहे हैं,विरोध करने वाले साधू-संतों से नेता बड़ी बेशर्मी से पूछते हैं कि आप को बिजली चाहिए या गंगा में पानी? गंगा के बहाव के साथ पहाड़ों से कटकर आने वाली मिटटी गंगा की गहराई को कम करते हुए जमीनी पानी से उसका नाता तोड़ती जा रही है.अत:जहाँ पर जरुरत महसूस हो वहाँ पर हर वर्ष गंगा नदी में खुदाई करा कर गंगा की गहराई पर धयान दिया जाये,भूमि का पानी और गंगा का पानी दोनों का मेल रहेगा तो पानी की शुद्धता जरुर बढ़ेगी.

अब स्वच्छ गंगा अभियान के तहत कूड़े-करकट को शहर से दूर एक बड़े कुंड में जमा किया जाने लगा है,सफाई का यह जैविक तरीका बहुत कारगर है.गंगा निर्मलीकरण अभियान से लोगों में जागरूकता बढ़ रही है.मिडिया भी जनमानस को,स्थानीय प्रशासन को और राज्य व् केंद्र सरकार को भी भली-भांति गंगा निर्मलीकरण के लिए प्रेरित कर रही है.गंगा की सफाई के लिए मूल रूप से प्रयास केंद्र व् राज्य सरकारों को ही करना होगा, क्योंकि गंगा की सफाई के सभी संसाधन उन्ही के पास है,बस उनमे दृढ इच्छाशक्ति का अभाव है. कई त्योहारों पर गंगा जी में बहाई जाने वाली हानिकारक रंगों से युक्त देवी-देवताओं की प्रतिमाओं के विसर्जन पर रोक लगाने के लिए कोर्ट से लेकर सरकार तक सभी गम्भीरता से विचार कर रहे हैं.

rajnish manga
23-07-2014, 10:54 PM
समय के अनुसार परम्पराएं बदलती रहतीं हैं और आवश्यक होने पर बदलना भी चाहिए.ज्यादा अच्छा तो ये है कि त्योहारों पर पंडालों में हम देवी-देवताओं की ऐसी प्रतिमाये रखें,जो धातु की हों,और जिन्हे गंगा में विसर्जित करने की जरुरत ही न पड़े. हर साल वही प्रतिमाएं पंडाल में रखी और पूजी जाये.अंत में सभी लोगों से मेरा विनम्र निवेदन है कि आप सब लोग माँ गंगा के जल को निर्मल करने में अपना सहयोग दें और हर व्यक्ति ये प्रण करे कि वो व्यक्तिगत रूप से गंगा जी में कोई भी कूड़ा-करकट या पोलिथिन का थैला प्रवाहित नहीं करेगा.धरती पर गंगा का अवतरण कठिन तपस्या करके भगीरथ ने किया था और आज के समय में तपस्यारत सभी साधू-संतों को गंगा को निर्मल करने के लिए भगीरथ बनना पड़ेगा और आम जनता यानि हम सब को भी भगीरथ बनकर व् कठिन से कठिन प्रयास करके भी गंगा की रक्षा करनी है.

हमने गंगा में गंदगी और कचरा फेंककर गंगा के अस्तित्व को ही खतरे में डाल दिया है. अत: गंगा निर्मलीकरण के लिए हम सबको आज का भगीरथ बनाना ही पड़ेगा.गंगा को धरती पर लाने वाला भगीरथ हम नहीं बन सकते, परन्तु धरती पर माँ गंगा को स्वच्छ रखने वाले और धरती से माँ गंगा को लुप्त होने से बचाने वाले भगीरथ हम सब लोग जरुर बन सकते हैं. माँ गंगा सदियों से मनुष्य जीवन के चारों पुरुषार्थों-धर्म, अर्थ, काम व् मोक्ष की प्राप्ति में सहायक रही हैं और आज भी हैं. गंदगी और कूड़े कचरे के रूप में माँ गंगा करोड़ों लोगों का पाप और दबाब झेलते हुए भी करोड़ों लोगों को कहीं भूमि सिंचित कर तो कही पीने का जल प्रदान कर अन्न और जल प्रदान कर रही हैं. गंगा में स्नान कर लोग अपने पापों का नाश करते हैं.अधिकतर लोग यही चाहते हैं कि मरने के बाद गंगा के किनारे उनका अंतिम संस्कार हो और उनकी अस्थियां गंगा में विसर्जित कर दी जाएँ .हिंदुओं के समस्त पूजा-पाठ व् धार्मिक संस्कारों में गंगाजल का प्रयोग होता है,इसीलिए गंगाजल को पवित्र और आवश्यक मानकर घर-घर में रखा जाता है.माँ गंगा न सिर्फ हमारी आस्था की केंद्र हैं, बल्कि वो दुनिया भर में हमारी पहचान भी हैं. देश-विदेश में लोग आज भी ये गीत गुनगुनाते हैं-

होठों पे सच्चाई रहती हैं,जहाँ दिल में सफाई रहती हैं
हम उस देश के वासी हैं, जिस देश में गंगा बहती हैं

https://encrypted-tbn1.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcQICcTIlmDHjU_Gq2GJYIMbGFoGiCcrX KxMwEOqjPmyW-0p5gUBVA

(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी)

Dr.Shree Vijay
26-07-2014, 11:48 AM
सभी प्रबुद्धजनों के दिल में बस यही एक ख्याल आता हें की "प्रदूषण मुक्त कैसे होगी गंगा और भारत की अन्य सभी नदिया ?"
ईस ज्वलंत समस्या पर पर सूत्र बनाने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद......

rajnish manga
02-08-2014, 10:57 PM
सूत्र पसंद करने के लिये व इसमें व्यक्त किये गये विचारों से सहमति व्यक्त करने के लिये बिंदुजी, रफ़ीक जी और डॉ. श्री विजय के प्रति मैं अपना हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ.

rajnish manga
02-08-2014, 11:00 PM
गंगा न होगी तो हम भी न होंगे
के.एन. गोविन्दाचार्य

भारत के पौराणिक साहित्य से लेकर यहां की लोककथाओं तक में ऐसे कई प्रसंग मिल जाएंगे, जिसमें गंगा की अविरल धारा को उसी तरह त्रिकाल सत्य माना गया है, जैसे सूर्य और चंद्रमा को। लोग गंगा की धारा को अटूट सत्य मानकर कसमें खाते थे, आशीर्वाद देते थे। विवाह के समय मांगलिक गीतों में गाया जाता था, ‘जब तक गंग जमुन की धारा, अविचल रहे सुहाग तुम्हारा।’ क्या आज इस गीत का कोई औचित्य रह गया है?

अतीत का विश्वास आज टूट चुका है। गंगा की अविरल धारा खंडित हो चुकी है। भागीरथी, धौलीगंगा, ऋषिगंगा, बाणगंगा, भिलंगना, टोंस, नंदाकिनी, मंदाकिनी, अलकनंदा, केदारगंगा, दुग्धगंगा, हेमगंगा, हनुमानगंगा, कंचनगंगा, धेनुगंगा आदि वो नदियां हैं, जो गंगा की मूल धारा को जल देती हैं या देती थीं। हरिद्वार में आने से पहले जिन 27 प्रमुख नदियों से गंगा को पानी मिलता था, उनमें से 11 नदियां तो धरा से ही विलुप्त हो चुकी हैं और पांच सूख गई हैं। ग्यारह के जलस्तर में भी काफी कमी हो गई है।

rajnish manga
02-08-2014, 11:01 PM
युगों-युगों से भारत की सभ्यता और संस्कृति की प्रतीक रही गंगा भविष्य में भी बहती रहेगी, या घोर कलियुग के आगमन का संकेत देते हुए विलुप्त हो जाएगी, इस बारे में अभी कुछ कहना मुश्किल है। लेकिन इस समय जो परिस्थितियां बन रही हैं, उसे देखते हुए संतोष व्यक्त नहीं किया जा सकता। गंगा की समस्याएं अनगिनत हैं लेकिन उन सभी के मूल में मनुष्य है, जिसका उद्धार करने के लिए वह पृथ्वी पर अवतरित हुई थी। मनुष्य ने पिछले दो सौ वर्षों से अपनी तथाकथित तरक्की के लिए जो उपभोगवादी रास्ता चुना है, वह अभी तो बहुत हरा-भरा और लुभावना दिख रहा है, लेकिन अंततः वह उस रेगिस्तान की ओर जाता है, जहां विनाश के सिवाय कुछ भी नहीं है।

गंगा नदी भारत के बहुत बड़े भूभाग का हजारों वर्षों से पालन-पोषण करती आ रही है। हमारे पूर्वजों ने गंगाजल को इस तरह इस्तेमाल किया कि गंगा के अस्तित्व पर कभी कोई संकट नहीं आया। लेकिन आज गंगाजल के संयमित उपभोग की बजाए उसके दोहन और शोषण पर जोर है जिसके चलते स्वर्ग से लायी गई इस अमृतधारा के विलुप्त होने का खतरा बढ़ गया है। जितनी जल्दी इंसान को यह समझ आ जाये कि ‘गंगा न रहेगी तो हम भी नहीं रहेंगे’ उतना ही अच्छा होगा।
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rajnish manga
09-08-2014, 12:27 AM
गंगा बचे तो बचे कैसे?
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गंगा समग्र यात्रा के दौरान कानपुर में उमा भारती ने कहा था कि उनकी पार्टी की सरकार बनने पर दो काम उनकी प्राथमिकता में होंगे। एक यह कि कानपुर के गंगा-जल को आचमन के योग्य बनाएंगे। और दूसरा, गौ हत्या पर काफी सख्त कानून बनाया जाएगा। लेकिन यहां हम बात केवल गंगा की कर रहे हैं। गंगा को लेकर बड़े-बड़े वादे करने वाले अब सत्ता में हैं।

कानपुर से ही बात शुरू करते हैं। इन पंक्तियों के लेखक का दावा है कि कानपुर में गंगा-जल है ही नहीं। तो फिर आचमन-योग्य किस चीज को बनाया जाएगा? कानपुर गंगा पथ का ऐसा अभागा शहर है जहां नाव पतवार से नहीं, बांस से चलती है। यहां की गंगा में तो टीबी अस्पताल के नाले जैसे कई नालों की गाद और टिनरीज का लाल-काला पानी है, जिसमें बांस गड़ा-गड़ा कर नाव को आगे बढ़ाया जाता है। हरिद्वार में आधे से ज्यादा गंगा-जल दिल्ली को पीने के लिए हर की पैड़ी में डाल दिया जाता है। इसके बाद बिजनौर में मध्य गंगा नहर से भारी मात्रा में पानी सिंचाई के लिए ले लिया जाता है। बचा-खुचा पानी नरौरा लोअर गंग नहर में डाल कर उत्तर प्रदेश के हरित प्रदेश में पहुंचा दिया जाता है।

rajnish manga
09-08-2014, 12:33 AM
वास्तव में गंगा नरौरा में आकर ही खत्म हो जाती है। अदालत की लगातार फटकार और लोगों के दबाव में नरौरा के बाद बहुत थोड़ा-सा पानी आगे बढ़ता है। नरौरा, जहां नहर नदी की तरह दिखाई देती है और नदी नहर की तरह। नाममात्र के इस गंगा-जल को कानपुर पहुंचने से ठीक पहले बैराज बना कर शहर को पानी पिलाने के लिए रोक लिया जाता है। चूंकि शहर में पानी की किल्लत रहती है इसलिए यहां से एक बूंद पानी भी आगे नहीं बढ़ पाता। इसके बाद इलाहाबाद के संगम में और बनारस की आस्था के स्नान में गंगा-जल को छोड़ कर सबकुछ होता है। वास्तव में आस्थावान लोग जिसमें गंगा समझ कर डुबकी लगाते हैं वह मध्यप्रदेश की नदियों- चंबल और बेतवा- का पानी होता है, जो यमुना में मिलकर गंगा को आगे बढ़ता है। तो अगर नई सरकार का मन कानपुर में आचमन करने का है तो गंगा को वहां पहुंचाना होगा और उसके लिए बड़ी इच्छाशक्ति की जरूरत है।

नई सरकार आने के बाद से गंगा को लेकर नदी विकास की बातें प्रमुखता से कही गई हैं। तट विकसित होंगे, पार्किंग बनेंगी, घाट बनेंगे, पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए लाइट ऐंड साउंड कार्यक्रम होगा, परिवहन होगा, गाद हटाई जाएगी, मछली पालन भी होगा। लेकिन इस सब में मूल तत्त्व गायब है, गंगा में पानी कहां से आएगा इस पर कोई बात नहीं हो रही। जहाजरानी मंत्रालय की ओर से ग्यारह बैराज बनाने का विचार सामने आया है। इसकी सार्थकता पर सरकार के भीतर ही सवाल उठने लगे हैं। तो फिर किया क्या जाए?

rajnish manga
09-08-2014, 12:34 AM
पहले कदम के रूप में निजी और उद्योगों के नालों को बंद करने का कदम उठाना चाहिए, ये नाले सरकारी नालों की अपेक्षा काफी छोटे होते हैं लेकिन पूरे गंगा पथ पर इनकी संख्या हजारों में है। रही बात बड़े और सरकारी नालों की, तो उन्हें बंद करने का वादा नहीं नीयत होनी चाहिए। वास्तव में उत्तरकाशी, हरिद्वार, कानपुर, इलाहाबाद, बनारस और गाजीपुर जैसे शहरों की सीवेज व्यवस्था ही ऐसे डिजाइन की गई है, जिसमें गंगा मुख्य सीवेज लाइन का काम करती है। अब इन शहरों में पूरी सीवेज व्यवस्था को नए सिरे से खड़ा करना होगा ताकि गंगा इससे अछूती रहे। नए सीवेज सिस्टम के लिए बनारस भविष्य में एक मॉडल का काम कर सकता है।

वाराणसी को तीन पाइपलाइन मिलनी थी, पीने के पानी के अलावा वर्षाजल निकासी और सीवेज की पाइपलाइन डाली जानी थी। शहर खोदा गया, सीवेज के पाइप डाले गए, लेकिन सीवेज संयंत्र के लिए जरूरी जमीन का अधिग्रहण नहीं हो सका।

वाराणसी में हर रोज पैदा होने वाले चालीस करोड़ लीटर एमएलडी सीवेज में से मात्र सौ एमएलडी साफ हो पाता है, बाकी सारा गंगा को भेंट हो जाता है। सरकार के लिए वाराणसी की गलियों की ऐतिहासिकता बचा कर रखते हुए इस काम को कर पाना बड़ी चुनौती है।

rajnish manga
09-08-2014, 12:35 AM
दूसरा बेहद जरूरी कदम यह है कि कानपुर के चमड़ा-कारखानों को तुरंत वैकल्पिक जगह उपलब्ध कराई जाए। अदालत ने भी कई बार इन कारखानों को हटाने का आदेश दिया है, लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति न होने के चलते यह अब तक संभव नहीं हो सका। अकेले उत्तर प्रदेश में 442 बड़े और मंझोले चमड़ा कारखाने हैं। जब सरकार चीन को बिजनेस पार्क के लिए जगह दे सकती है तो इन कारखानों को क्यों नहीं?

तीसरा कदम है रिवर पुलिसिंग का। हर दो किलोमीटर पर एक गंगा चौकी हो, जहां जल-पुलिस की तैनाती हो, जिसमें स्थानीय मछुआरों को रोजगार दिया जाए। रिवर पुलिस लोगों को गंगा में कचरा डालने से रोकेगी। अर्थदंड लगाने जैसे अधिकार भ्रष्टाचार को बढ़ावा देंगे, इसलिए रिवर पुलिस की भूमिका जागरूकता फैलाने और स्थानीय प्रशासन के बीच सेतु बनाने की होनी चाहिए।

गंगा संरक्षण की दिशा में चौथा उपाय मोटर से चलने वाली छोटी नाव पर रोक के रूप में होना चाहिए। रोजगार के नाम पर लाखों की संख्या में डीजल आधारित मोटरबोट गंगा में चलती हैं। नावों में लगाई जाने वाली ये सेकेंडहैंड मोटरें बड़ी संख्या में बांग्लादेश से तस्करी कर लाई जाती हैं। अत्यधिक पुरानी होने के चलते इनसे काला धुआं और तेल की परत निकलती है, जिसमें मछलियां और उनके अंडे जीवित नहीं रह पाते। इन नावों में डीजल की जगह केरोसिन का उपयोग होता है। एक तर्क यह दिया जाता है कि जब छोटे जहाज और स्टीमर गंगा में चल सकते हैं तो इन गरीबों की नाव रोकने की क्या तुक है। पर गंगा में स्टीमर और फेरी मुख्यत: बिहार और बंगाल में ही चलते हैं जहां गंगा में पानी की समस्या नहीं है। बनारस तक के क्षेत्र में, जहां गंगा अस्तित्व के लिए ही जूझ रही है, वहां यह बंद होना चाहिए। वहां गैस से चलने वाले स्टीमर की इजाजत दी जा सकती है।

rajnish manga
09-08-2014, 12:36 AM
पांचवां और बेहद महत्त्वपूर्ण विषय है आस्था को ठेस पहुंचाए बिना पूजन सामग्री के निपटान का। गंगा पथ पर बसे घरों की समस्या यह है कि वे पूजा के फूलों और पूजन सामग्री का क्या करें। मजबूरी में लोग उसे नदी में डालते हैं, क्योंकि कहीं और फेंकने से आस्था को ठेस पहुंचती है। एक उपाय यह है कि हर रोज नगर निगम इस पूजन सामग्री को लोगों के घरों से इकट्ठा करें। इस काम के लिए कूड़ा उठाने वाली गाड़ियों का उपयोग न किया जाए। इस इकट्ठा की गई पूजन सामग्री का उपयोग खाद बनाने में हो सकता है। मूर्ति विसर्जन पर पूर्णत: रोक छठा कदम है, जिसके लिए दृढ़ इच्छाशक्ति चाहिए। सातवां निर्णय तुरंत लागू किया जा सकता है, कि मौजूदा सीवेज शोधन संयंत्र अपनी पूर्ण क्षमता से काम करें। अभी तो आधे से भी कम संयंत्र चालू हालत में हैं, ये भी अपने दावे के अनुरूप नहीं चलते। सिर्फ उत्तर प्रदेश में पैंतालीस बड़े नाले गंगा में गिरते हैं, छोटे नालों की तो गिनती ही नहीं है। अकेले बनारस में तीस छोटे-बड़े नाले गंगा में मिलते हैं। बिजली की भारी कमी के चलते भी सीवेज प्लांट नहीं चलते।

rajnish manga
09-08-2014, 12:38 AM
यह हालत खासकर उत्तर प्रदेश में है जहां इन संयंत्रों का चालू रहना बेहद जरूरी है। साथ ही यह पक्का किया जाए कि भविष्य में कोई नया प्लांट नहीं लगाया जाएगा। हमारे देश की स्थिति लंदन से अलग है। हमारे यहां सीवेज जमीन के भीतर नहीं इकट्ठा होता जिसे शोधित कर उपयोग में लाया जा सके। हमारे यहां तो बहते हुए नालों को ही सीवेज ट्रीटमेंट सेंटर बनाने की जरूरत है और उस शोधित पानी को भी गंगा में या सिंचाई में उपयोग में न लाया जाए। एक बानगी देखिए। वाराणसी के पास सारनाथ से सटे कोटवा गांव में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाया गया। पहले पहल शहर के गंदे नाले का पानी खेतों में डाला गया तो लगा दूसरी हरित क्रांति हो गई। फसल चार से दस गुना तक बढ़ी।

मगर अब स्थानीय लोग खुद इन खेतों की सब्जियों को हाथ नहीं लगाते, क्योंकि वे देखने में तो चटक हरी, बड़ी और सुंदर होती हैं मगर उनमें कोई स्वाद नहीं होता, और कुछ ही घंटों में कीड़े पड़ जाते हैं। यही हाल अनाज का भी है, सुबह की रोटी शाम को खाइए तो बदबू आएगी। कई सालों तक उपयोग करने के बाद बीएचयू के एक अध्ययन में यह सामने आया कि शोधित पानी सोने की शक्ल में जहर है। इन साग-सब्जियों में कैडमियम, निकिल, क्रोमियम जैसी भारी धातुएं पाई जाती हैं।

rajnish manga
09-08-2014, 12:39 AM
लोकलुभावन घोषणाओं और गंभीर पहल के बीच का फर्क समझते हुए उमा भारती को अगले कदम के रूप में हरिद्वार और ऋषिकेश के आश्रमों को नोटिस देना चाहिए कि वे एक समय-सीमा के भीतर अपने सीवेज का वैकल्पिक इंतजाम कर लें। इनके भक्तों पर गंगा को निर्मल बनाने और निर्मल रखने की इनकी अपील का असर तब पड़ेगा, जब ये खुद इस पर अमल करेंगे। अब तक तो गंगा आंदोलन में शामिल सभी आश्रमों के मुंह से निर्मल गंगा की बात ऐसे ही लगती है जैसे हम पेड़ काटते हैं, उसका कागज बनाते हैं और फिर उस पर लिखते हैं ‘वृक्ष बचाओ’।

अविरल गंगा के रास्ते की बाधा हटाने का नौवां कदम होना चाहिए हर बैराज के ठीक पहले डिसिल्टिंग का। गंगा पर बने हर बैराज के पहले कई किलोमीटर तक भारी गाद जमा हो गई है; फरक्का बैराज के पहले जमा गाद ने गंगा की सहायक नदियों पर भी काफी प्रतिकूल प्रभाव डाला है। साथ ही गंगा में रेत खनन पर जारी रोक को तुरंत हटाना चाहिए। रेत खनन न होने से कई जगह नदी का स्तर उठ गया है, जो आने वाले मानसून में बाढ़ का सबब हो सकता है। रेत खनन विशेषज्ञ की देखरेख में किया जाए, क्योंकि गाद हटाने के नाम पर रेत माफिया कब से गंगा पर नजर गड़ाए हुए हैं। वास्तव में यह रेत खनन नहीं रेत चुगान होना चाहिए। बालू के क्षेत्र को नियंत्रित किया जाना जरूरी है।

rajnish manga
09-08-2014, 12:45 AM
दसवां और सबसे महत्त्वपूर्ण काम। गंगा में गंदगी डालने को कार्बन क्रेडिट जैसा मामला नहीं बनाना चाहिए। किसी भी उद्योग पर गंदगी डालने पर जुर्माना न लगाया जाए, हर हाल में यह पक्का करना चाहिए कि गंदगी न डाली जाए, जुर्माने वाली व्यवस्था से सिर्फ भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। कई बड़े उद्योगों का गणित यह है कि जुर्माना देना सरल है, वैकल्पिक व्यवस्था करना महंगा है। इसलिए वे जुर्माने को मलबा निपटान की अपनी लागत में जोड़ कर चलते हैं।

एक प्यारी छोटी-सी मछली होती है हिल्सा। फरक्का बनने से पहले वह गंगा में ही पाई जाती थी। खारे पानी की यह मछली अंडे देने मीठे पानी में उत्तराखंड तक आती थी। कानपुर का जल आचमन के लायक हुआ या नहीं, इस पर वैज्ञानिक बहस करते रहेंगे। पर जिस दिन कानपुर में हिल्सा नजर आई, समझें वह नई मंत्री का इस्तकबाल करने आई है। क्या नए शासन में इतनी इच्छाशक्ति है?

जन कल्याण एवम् देश हित के लिये
अभय मिश्र (जनसत्ता) से साभार उद्धरित