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View Full Version : गुण और कला


Pavitra
04-09-2014, 02:08 PM
अक्सर लोग गुण और कला को एक ही समझ लेते हैं , पर मुझे लगता है की इनमे अंतर है। गुण यानि वो जो कि हमारे अंदर स्वाभाविक रूप से मौजूद होते हैं , जैसे ईमानदारी , सत्यवादिता , निष्ठां। और कलाएं वो जिन्हे हम सीख सकते हैं , जैसे - कुकिंग , डांसिंग।

मैं जानना चाहती हूँ कि क्या वास्तव में इनमे कोई अंतर है या ये एक ही हैं , क्यूंकि जब हम किसी कला में पारंगत हो जाते हैं तो वो ही कला हमारा गुण कही जाती है , पर वास्तव में क्या उसे गुण कहना सही है ?

:think:

Dr.Shree Vijay
05-09-2014, 10:18 AM
अक्सर लोग गुण और कला को एक ही समझ लेते हैं , पर मुझे लगता है की इनमे अंतर है। गुण यानि वो जो कि हमारे अंदर स्वाभाविक रूप से मौजूद होते हैं , जैसे ईमानदारी , सत्यवादिता , निष्ठां। और कलाएं वो जिन्हे हम सीख सकते हैं , जैसे - कुकिंग , डांसिंग।

मैं जानना चाहती हूँ कि क्या वास्तव में इनमे कोई अंतर है या ये एक ही हैं , क्यूंकि जब हम किसी कला में पारंगत हो जाते हैं तो वो ही कला हमारा गुण कही जाती है , पर वास्तव में क्या उसे गुण कहना सही है ?

:think:


प्रिय लावण्या जी, आपने एक सुंदर विषय कों चुना हें, हम चाहते हैं कि आप इस सुन्दर शुरुआत को और आगे बढ़ाएं, चाहे एक एक पोस्ट की कड़ी के रूप में.........

rafik
05-09-2014, 11:31 AM
गुण वो जो हमारे अन्दर मौजूद हो ,और उन गुणों को उजागर करना एक कला होती है इस प्रकार गुण-कला एक सिक्के के दो पहलू है
जेसे=> पेट्रोल के बिना गाड़ी नहीं चलती है वेसे ही गुण बिन कला ,कला बिन गुण,नहीं चल सकते !

Pavitra
07-09-2014, 02:32 PM
गुण वो जो हमारे अन्दर मौजूद हो ,और उन गुणों को उजागर करना एक कला होती है इस प्रकार गुण-कला एक सिक्के के दो पहलू है
जेसे=> पेट्रोल के बिना गाड़ी नहीं चलती है वेसे ही गुण बिन कला ,कला बिन गुण,नहीं चल सकते !


आपने बहुत सही कहा की गुणों को उजागर करना भी एक कला है। और मैं ये भी मानती हूँ कि कला में महारत हासिल कर हम उसको ही अपना एक गुण बना सकते हैं। पर आजकल लोग ये कहते हुए मिलते हैं कि वह व्यक्ति बड़ा गुणवान है , क्या अच्छा खाना बनाता है। तब मेरे मैं में एक विचार आता है कि क्या वास्तव में इसको गुण कहा जाये या कहें कि वह व्यक्ति पाक कला में निपुण है। लोग गुण और कला को लेकर कंफ्यूज हैं ???

emptymind
07-09-2014, 05:14 PM
एक छोटी सी अवधारणा मेरे खाली दिमाग से -

सीखना एक गुण है और सिखाना इक कला

emptymind
07-09-2014, 05:23 PM
बहुत ही सूक्ष्म रूप से विचार करने पर खाली दिमाग मे ये बात आई है -

जो प्रकृतिक रूप से किसी भी वस्तु मे पाई जाए वो गुण है - जैसे जल मे शीतलता, आग मे उष्णता, मनुष्य मे मनुष्यता आदि।

और कला वो है जो साधना से प्राप्त होती है। अगर आप अच्छे पकवान बनाते है तो यह आपकी कला है। नाच तो सभी लेते है, मगर एक अच्छे नृत्यकार वो है, जो वर्षो-वर्ष तक साधना करके एक कुशल नृत्यकार बनते है।

Pavitra
07-09-2014, 09:35 PM
एक छोटी सी अवधारणा मेरे खाली दिमाग से -

सीखना एक गुण है और सिखाना इक कला


:bravo:
आजकल लोगों के दिमाग में इतना कुछ भरा होता है कि दिमाग कुछ सोच ही नहीं पाता , आपका दिमाग खाली है तभी आप ये बेहतरीन विचार सोच सके। Thank u

Pavitra
07-09-2014, 09:40 PM
बहुत ही सूक्ष्म रूप से विचार करने पर खाली दिमाग मे ये बात आई है -

जो प्रकृतिक रूप से किसी भी वस्तु मे पाई जाए वो गुण है - जैसे जल मे शीतलता, आग मे उष्णता, मनुष्य मे मनुष्यता आदि।

और कला वो है जो साधना से प्राप्त होती है। अगर आप अच्छे पकवान बनाते है तो यह आपकी कला है। नाच तो सभी लेते है, मगर एक अच्छे नृत्यकार वो है, जो वर्षो-वर्ष तक साधना करके एक कुशल नृत्यकार बनते है।


मेरा विचार भी यही है कि गुण स्वाभाविक रूप से या प्राकृतिक रूप से मनुष्य में विद्यमान होते हैं और कला कोई भी व्यक्ति थोड़े से अभ्यास से सीख सकता है।

rajnish manga
07-09-2014, 10:21 PM
इस रोचक सूत्र में लावण्या जी ने विचार विमर्श का अच्छा विषय चुना है. प्रतिक्रिया स्वरूप रफ़ीक जी, डॉ श्री विजय और श्रीमान empty mind द्वारा अपने अपने विचार रखे गये जिनके आधार पर हमारे विषय 'गुण और कला' के परस्पर अंतर व समानता पर प्रकाश डाला गया है. सूत्रधार के द्वारा भी प्रस्तुत किये गये विचारों की समीक्षा की गई. एक जटिल विषय स्पष्ट होकर सामने आया. आप सभी महानुभाव का बहुत बहुत धन्यवाद

Pavitra
07-09-2014, 10:31 PM
इस रोचक सूत्र में लावण्या जी ने विचार विमर्श का अच्छा विषय चुना है. प्रतिक्रिया स्वरूप रफ़ीक जी, डॉ श्री विजय और श्रीमान empty mind द्वारा अपने अपने विचार रखे गये जिनके आधार पर हमारे विषय 'गुण और कला' के परस्पर अंतर व समानता पर प्रकाश डाला गया है. सूत्रधार के द्वारा भी प्रस्तुत किये गये विचारों की समीक्षा की गई. एक जटिल विषय स्पष्ट होकर सामने आया. आप सभी महानुभाव का बहुत बहुत धन्यवाद


:iagree:
जी बिल्कुल , आप सभी के विचारों के माध्यम से मेरे विचारों को भी स्पष्टता मिली।

Deep_
08-09-2014, 05:58 PM
रोचक वार्तालाप! मुझे भी अपनी छोटी सी बात रखने का मौका दिजीए!

गुण वह है जो जन्मजात होते है, कला महेनत करके सिखनी पडती है!
गुण हंमेशा साथ रहेते है, कला कभी कभी छूट भी जाती है, (समय, नोकरी वगेरह की मजबुरी से)
गुण किसी को दिए नही सकते, कला सिखाई जा सकती है!

emptymind
08-09-2014, 10:24 PM
:bravo:
आजकल लोगों के दिमाग में इतना कुछ भरा होता है कि दिमाग कुछ सोच ही नहीं पाता , आपका दिमाग खाली है तभी आप ये बेहतरीन विचार सोच सके। Thank u

मेरा विचार भी यही है कि गुण स्वाभाविक रूप से या प्राकृतिक रूप से मनुष्य में विद्यमान होते हैं और कला कोई भी व्यक्ति थोड़े से अभ्यास से सीख सकता है।


इस रोचक सूत्र में लावण्या जी ने विचार विमर्श का अच्छा विषय चुना है. प्रतिक्रिया स्वरूप रफ़ीक जी, डॉ श्री विजय और श्रीमान empty mind द्वारा अपने अपने विचार रखे गये जिनके आधार पर हमारे विषय 'गुण और कला' के परस्पर अंतर व समानता पर प्रकाश डाला गया है. सूत्रधार के द्वारा भी प्रस्तुत किये गये विचारों की समीक्षा की गई. एक जटिल विषय स्पष्ट होकर सामने आया. आप सभी महानुभाव का बहुत बहुत धन्यवाद

:thinking:unused खाली दिमाग का ये गुण है या कलाकारी ?

पूज्य गुरुजन से लेकर, पिताजी तक हमारे खाली दिमाग का लोहा मान चुके है।
कहते है - इसके खोपड़ी मे दिमाग की जगह किडनी है,
और दिमाग तो घुटने के जोड़ो के बीच मे कही ढूँढना पड़ेगा।
हीहीही।

Pavitra
08-09-2014, 11:04 PM
:thinking:unused खाली दिमाग का ये गुण है या कलाकारी ?

पूज्य गुरुजन से लेकर, पिताजी तक हमारे खाली दिमाग का लोहा मान चुके है।
कहते है - इसके खोपड़ी मे दिमाग की जगह किडनी है,
और दिमाग तो घुटने के जोड़ो के बीच मे कही ढूँढना पड़ेगा।
हीहीही।

वैसे मानना पड़ेगा कि खाली दिमाग का sense of humour बहुत अच्छा होता है .

Pavitra
08-09-2014, 11:06 PM
रोचक वार्तालाप! मुझे भी अपनी छोटी सी बात रखने का मौका दिजीए!

गुण वह है जो जन्मजात होते है, कला महेनत करके सिखनी पडती है!
गुण हंमेशा साथ रहेते है, कला कभी कभी छूट भी जाती है, (समय, नोकरी वगेरह की मजबुरी से)
गुण किसी को दिए नही सकते, कला सिखाई जा सकती है!


मुझे ख़ुशी हुई यह देख कर कि आप सभी लोगों ने मेरे विचार के साथ Agree किया और मुझे प्रोत्साहित किया।

soni pushpa
09-09-2014, 02:02 AM
:iagree:
जी बिल्कुल , आप सभी के विचारों के माध्यम से मेरे विचारों को भी स्पष्टता मिली।



[QUOTE=Dr.Shree Vijay;526871]
प्रिय लावण्या जी, आपने एक सुंदर विषय कों चुना हें, हम चाहते हैं कि आप इस सुन्दर शुरुआत को और आगे बढ़ाएं, चाहे एक एक पोस्ट की कड़ी के रूप में.........[/QUOTE बहु अच विषय



प्रिय लावण्या जी इतने अछे विषय को चुनने के लिए सबसेपहले आपको मै धन्यवाद देना चाहूंगी. इस विषय ने सबको एकबार सोचने के लिए मजबूर कर ही दिया की सच में हमने तो कभी सोचा ही नही की कला और गुण एक हैं या अलग अलग हैं ...

जहा तक मेरा मानना है की गुण ईश्वर की दी हुई एक अंदरूनी शक्ति है और कला अधिकतर हम इन्सान सीखते हैं और कुछ समय के अभ्यास के बाद किसी कला में पारंगत हो सकते हैं ... इसलिए कला और गुण दोनो अलग हैं.. जैसेकी गुण के कई स्वरुप हम देखते हैं दया, ममता पूज्य भाव, त्याग , वात्सल्य भावना ये सब गुण है एकदूजे के लिए निस्वार्थता ये भी एक गुण है . और कला में आते है नृत्य कला, पाक कला , लेखन कला , हस्त कला आजकल मार्शल आर्ट कला भी है.. बांसुरी बजने की कला ये सब कलाएं है और गुण वो है जो इश्वर द्वारा दिए गए हैं .. गुणों में पारंगत नही होना पड़ता बल्कि ये तो इश्वर की देन है हम इंसानों को ...

Pavitra
12-09-2014, 03:30 PM
गुण और कला में जो अंतर है वो अब स्पष्ट हो चुका है।

परन्तु मेरी एक और जिज्ञासा अभी तक जीवित है , वो ये कि अक्सर कहा जाता है कि - " वह व्यक्ति बहुत ही सीधा है " , यानि कि सीधेपन को एक तारीफ के रूप में कहा जाता है , जैसे वह व्यक्ति का कोई गुण हो। सीधापन यानि भोलापन।

अब मेरी जिज्ञासा है कि ये सीधापन क्या होता है , इसकी क्या परिभाषा है ? और आज के ज़माने में सीधा होना क्या वास्तव में एक गुण है ? अगर आज के युग में आप दुनिया को न समझो तो दुनिया आसानी से आपका फायदा उठा लेती है , लोग धोखा दे देते हैं। तो यही सीधापन हमारे लिए एक कमज़ोरी बन जाता है।

मैं चाहती हूँ कि आप सभी लोग अपने अनुसार "सीधेपन" को परिभाषित करें और यह भी स्पष्ट करें कि क्या वास्तव में आज के दौर में सीधा होना अच्छा है या नहीं।

Pavitra
17-09-2014, 11:12 PM
गुण और कला में ज़्यादा महत्वपूर्ण तो गुण ही होते हैं , पर फिर भी आज के ज़माने में कला में पारंगत होना ज़्यादा महत्वपूर्ण समझा जाता है।

emptymind
18-09-2014, 02:07 PM
गुण और कला में जो अंतर है वो अब स्पष्ट हो चुका है।

परन्तु मेरी एक और जिज्ञासा अभी तक जीवित है , वो ये कि अक्सर कहा जाता है कि - " वह व्यक्ति बहुत ही सीधा है " , यानि कि सीधेपन को एक तारीफ के रूप में कहा जाता है , जैसे वह व्यक्ति का कोई गुण हो। सीधापन यानि भोलापन।

अब मेरी जिज्ञासा है कि ये सीधापन क्या होता है , इसकी क्या परिभाषा है ? और आज के ज़माने में सीधा होना क्या वास्तव में एक गुण है ? अगर आज के युग में आप दुनिया को न समझो तो दुनिया आसानी से आपका फायदा उठा लेती है , लोग धोखा दे देते हैं। तो यही सीधापन हमारे लिए एक कमज़ोरी बन जाता है।

मैं चाहती हूँ कि आप सभी लोग अपने अनुसार "सीधेपन" को परिभाषित करें और यह भी स्पष्ट करें कि क्या वास्तव में आज के दौर में सीधा होना अच्छा है या नहीं।

फिर से दिमाग का उपयोग करना पड़ेगा..... :thinking:
सीधेपन कि परिभाषा - जो छल-कपट से परे है। न तो वो छल-कपट करता है और ना ही दूसरे के छल- कपट को समझ पाता है और हर जगह ठगा जाता है

Pavitra
19-09-2014, 11:51 PM
फिर से दिमाग का उपयोग करना पड़ेगा..... :thinking:
सीधेपन कि परिभाषा - जो छल-कपट से परे है। न तो वो छल-कपट करता है और ना ही दूसरे के छल- कपट को समझ पाता है और हर जगह ठगा जाता है

तो फिर सीधेपन को गुण मानना तो गलत हुआ। जो दूसरे के छल कपट को भी ना समझ पाये , ठगा जाये तो फिर तो ये बेवकूफी हुई।
लोग तारीफ़ में क्यों इस " सीधेपन " का प्रयोग करते हैं।

आज के ज़माने में समझदार होना गुण कहलाना चाहिए। समझदार व्यक्ति दूसरे का बुरा नहीं करेगा , क्यूंकि उसमें समझ होगी कि दूसरे का बुरा करने से मुझे कोई लाभ नहीं होगा और कभी न कभी तो मुझे मेरे किये का फल मिलेगा ही। सीधापन आज के ज़माने में गुण की श्रेणी में नहीं आना चाहिए।

emptymind
20-09-2014, 11:44 AM
तो फिर सीधेपन को गुण मानना तो गलत हुआ। जो दूसरे के छल कपट को भी ना समझ पाये , ठगा जाये तो फिर तो ये बेवकूफी हुई।
लोग तारीफ़ में क्यों इस " सीधेपन " का प्रयोग करते हैं।

आज के ज़माने में समझदार होना गुण कहलाना चाहिए। समझदार व्यक्ति दूसरे का बुरा नहीं करेगा , क्यूंकि उसमें समझ होगी कि दूसरे का बुरा करने से मुझे कोई लाभ नहीं होगा और कभी न कभी तो मुझे मेरे किये का फल मिलेगा ही। सीधापन आज के ज़माने में गुण की श्रेणी में नहीं आना चाहिए।

:iagree::iagree:

rajnish manga
20-09-2014, 08:32 PM
लावण्या जी ने विचार विमर्श हेतु एक अच्छा विषय रखा और सभी से इस विषय पर विचार आमंत्रित किये. विचार विमर्श में रफ़ीक जी, डॉ श्री विजय, श्रीमान empty mind, दीप जी व पुष्प सोनी जी ने हाग लिया और बड़े सुंदर विचार प्रस्तुत किये. ‘गुण तथा कला’ विषय पर तर्क-सम्मत निष्कर्ष निकाले गये.

मोटे तौर पर यह स्वीकार किया गया कि गुण व्यक्ति में जन्मजात होते हैं जबकि कलाओं का विधिवत विकास किया जाता है – सीख कर अथवा साधना के रास्ते पर चल कर. कुछ गुणों को हम यत्नपूर्वक कला में तब्दील कर भी कर सकते हैं.

इसी कड़ी में दूसरा विचार यह प्रस्तुत किया गया कि किसी मनुष्य का ‘सीधापन’ वास्तव में गुण है या कुछ और. भाई empty mind ने बताया कि सीधा व्यक्ति वह है जिसमे छल कपट नहीं होता. यही कारण है कि उसे कोई भी आसानी से ठग लेता है. इस पर लावण्या जी ने निष्कर्ष निकाला कि सीधापन किसी व्यक्ति का गुण न होकर कमजोरी है.ऐसा व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के गुण-दोष की समीक्षा नहीं कर पाता इसलिये ठगा जाता है. तात्पर्य यह है कि सीधापन किसी व्यक्ति का गुण नहीं, दोष है और यह उसकी बेवकूफ़ी है.

rajnish manga
20-09-2014, 08:38 PM
यहाँ पर मैं कुछ कहना चाहता हूँ. वह यह कि आज के युग में सीधा या निष्कपट होना एक दुर्लभ गुण है. निष्कपट व्यक्ति दूसरे को धोखा नहीं देगा भले ही उसके सीधेपन का फ़ायदा औरों द्वारा उठाया जाये. मगर इसका मतलब यह नहीं है कि सीधापन किसी सीधे व्यक्ति का का गुण न हो कर दुर्गुण करार दिया जाये और उसकी बराबरी बेवकूफी से की जाये. आप मुझे यह बतायें कि हमारे आसपास जो अपराध देखने में आते हैं क्या अपराध की उन सभी वारदातों में शिकार हुये व्यक्ति सीधे थे या सीधेपन से ग्रस्त बेवकूफ थे.

आप यह मानेंगे कि तमाम खराबियों के, अपराधियों के, कातिलों के, उग्रवादियों के, षड्यंत्रकारियों के यह दुनिया चल रही है. बड़े बड़े आक्रांता भी अपनी मनमानी अधिक समय तक नहीं चला सके. और इसके पीछे कौन है? इसके पीछे हैं सच्चाई व अच्छाई, अच्छे लोग और अच्छी सोच. यदि संसार से अच्छाई खत्म हो जाये तो संसार का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा. अंत में कहूँगा कि सीधापन दोष नहीं एक गुण है और इसे गुण के रूप में ही समादृत किया जाना चाहिए. आप सभी मित्रों का हार्दिक धन्यवाद.

Pavitra
22-09-2014, 02:13 PM
यहाँ पर मैं कुछ कहना चाहता हूँ. वह यह कि आज के युग में सीधा या निष्कपट होना एक दुर्लभ गुण है. निष्कपट व्यक्ति दूसरे को धोखा नहीं देगा भले ही उसके सीधेपन का फ़ायदा औरों द्वारा उठाया जाये. मगर इसका मतलब यह नहीं है कि सीधापन किसी सीधे व्यक्ति का का गुण न हो कर दुर्गुण करार दिया जाये और उसकी बराबरी बेवकूफी से की जाये. आप मुझे यह बतायें कि हमारे आसपास जो अपराध देखने में आते हैं क्या अपराध की उन सभी वारदातों में शिकार हुये व्यक्ति सीधे थे या सीधेपन से ग्रस्त बेवकूफ थे.

आप यह मानेंगे कि तमाम खराबियों के, अपराधियों के, कातिलों के, उग्रवादियों के, षड्यंत्रकारियों के यह दुनिया चल रही है. बड़े बड़े आक्रांता भी अपनी मनमानी अधिक समय तक नहीं चला सके. और इसके पीछे कौन है? इसके पीछे हैं सच्चाई व अच्छाई, अच्छे लोग और अच्छी सोच. यदि संसार से अच्छाई खत्म हो जाये तो संसार का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा. अंत में कहूँगा कि सीधापन दोष नहीं एक गुण है और इसे गुण के रूप में ही समादृत किया जाना चाहिए. आप सभी मित्रों का हार्दिक धन्यवाद.



रजनीश जी आपने इस चर्चा को एक नया ही मोड़ दिया और मेरी जिज्ञासा भी आपका उत्तर देख कर थोड़ी शांत हुई है।
अब जो बात दिमाग में आई है वो ये कि सीधा होना और साफ़ दिल होना क्या एक ही बात होती हैं ? जैसा की आपने कहा कि अगर दुनिया से अच्छाई ख़त्म हो जाये तो दुनिया का अस्तित्व ही नहीं रहेगा , तो अगर कोई व्यक्ति चालाक हो या कहना उचित होगा कि अगर कोई व्यक्ति चतुर हो तब भी तो वो साफ़ दिल , और अच्छा हो सकता है। जैसे - बीरबल , बीरबल सीधे नहीं थे , उनकी गिनती तो चतुर लोगों में होती है। परन्तु वो बहुत ही अच्छे और साफ़ दिल थे। एक और उदाहरण लें तेनालीरमन का।

निश्चित ही सीधापन एक गुण है , तभी तो सब लोग तारीफ में कहते हैं कि " वह व्यक्ति बहुत सीधा है " …।पर मुझे वास्तव में जिज्ञासा यह थी कि हमारे पास ऐसे कई शब्द हैं जैसे - मासूम , निश्छल , सच्चा , अच्छा , सरल तो फिर ये सीधापन शब्द ही क्यों ज़्यादा प्रयोग में आता है। और वास्तव में जब लोग किसी को सीधा कहते हैं तो किस बात से प्रभावित होकर कहते हैं ?

Pavitra
23-09-2014, 11:37 PM
" वाक्पटुता " को कला की श्रेणी में रखना उचित होगा या इसे गुण की श्रेणी में रखा जाना चाहिए ?

Pavitra
23-09-2014, 11:41 PM
क्या बात बनाना सीखा जा सकता है ?
अक्सर लोगों को बात करने में दिक्कत होती है , उन्हें समझ ही नहीं आता कि क्या बात करें , किस विषय पर बात करें कि सामने वाला व्यक्ति प्रभावित हो ? और अगर प्रभावित ना भी हो तो कम से कम हमारा बुरा प्रभाव तो न पड़े उसपे या वो बोर तो न हो हमारी बातों से।

तो बात बनाने का जो ये कौशल होता है लोगों में वो जन्मजात होता है ? या लोग आस-पास के माहौल से सीखते हैं ?

ये गुण है या कला ?

Rajat Vynar
24-09-2014, 12:26 PM
" वाक्पटुता " को कला की श्रेणी में रखना उचित होगा या इसे गुण की श्रेणी में रखा जाना चाहिए ?
‘वाक्पटुता’ न ही गुण है और न ही कला क्योंकि यह बात मनुष्य के दिमाग के ‘प्रोसेसर’ पर निर्भर करती है. मस्तिष्क जितना तेज़ी से काम करता है, उतनी ही वह ‘वाक्पटु’ माना जाता है. इसे iq भी कहते हैं. अतः वाक्पटुता को सीखा नहीं जा सकता.

Pavitra
24-09-2014, 02:07 PM
‘वाक्पटुता’ न ही गुण है और न ही कला क्योंकि यह बात मनुष्य के दिमाग के ‘प्रोसेसर’ पर निर्भर करती है. मस्तिष्क जितना तेज़ी से काम करता है, उतनी ही वह ‘वाक्पटु’ माना जाता है. इसे iq भी कहते हैं. अतः वाक्पटुता को सीखा नहीं जा सकता.



जिस चीज़ को हम सीख न सकें तो वो फिर हमारे अंदर जन्मजात हुई , है न ?
यानि अगर कोई व्यक्ति बात करने में माहिर हो तो वो एक तरह से गॉड गिफ्टेड क्वालिटी ही कही जाएगी न ?

तो फिर तो वाक्पटुता गुण ही हुई.....

emptymind
24-09-2014, 11:17 PM
जिस चीज़ को हम सीख न सकें तो वो फिर हमारे अंदर जन्मजात हुई , है न ?
यानि अगर कोई व्यक्ति बात करने में माहिर हो तो वो एक तरह से गॉड गिफ्टेड क्वालिटी ही कही जाएगी न ?

तो फिर तो वाक्पटुता गुण ही हुई.....
ये तो बहुत सिम्पल है भाई लोग.....
वाक (बोलना) गुण है,
और वाक्पटु (बोलने मे निपुण) होना कला।
:egyptian::egyptian:

Rajat Vynar
25-09-2014, 05:20 PM
जिस चीज़ को हम सीख न सकें तो वो फिर हमारे अंदर जन्मजात हुई , है न ?
यानि अगर कोई व्यक्ति बात करने में माहिर हो तो वो एक तरह से गॉड गिफ्टेड क्वालिटी ही कही जाएगी न ?

तो फिर तो वाक्पटुता गुण ही हुई.....

पवित्रा जी, सामाजिक परिवेश के अनुरूप मनुष्य के गुण बदल सकते हैं, यथा- दयालु और कृपालु व्यक्ति कठोर बन सकता है. वाक्पटुता नहीं बदलती. अतः वाक्पटुता गुण नहीं.

Pavitra
25-09-2014, 11:36 PM
ओह! अब तो और भी confuse हो गयी हूँ मैं। …

Rajat Vynar
26-09-2014, 12:01 AM
ओह! अब तो और भी confuse हो गयी हूँ मैं। …
इसमें भ्रमित होने जैसी बात ही नहीं है क्योंकि मनुष्य अपने प्रिय रिश्तेदारों की बात ज़रूर मानता है. जैसे- बहन इत्यादि.. और नोस्त्रेदामस ने एक बार कहा था कि ‘ईश्वर(God) द्वारा आशीर्वादप्राप्त (blessed) उनके गणों (clan) का कभी बुरा मत सोचना (curse).’क्या यह पर्याप्त है?

emptymind
26-09-2014, 07:55 PM
ओह! अब तो और भी confuse हो गयी हूँ मैं। …
"खाली दिमाग" को ये समस्या नहीं है।
:egyptian::egyptian:

Pavitra
26-09-2014, 10:23 PM
इसमें भ्रमित होने जैसी बात ही नहीं है क्योंकि मनुष्य अपने प्रिय रिश्तेदारों की बात ज़रूर मानता है. जैसे- बहन इत्यादि.. और नोस्त्रेदामस ने एक बार कहा था कि ‘ईश्वर(God) द्वारा आशीर्वादप्राप्त (blessed) उनके गणों (clan) का कभी बुरा मत सोचना (curse).’क्या यह पर्याप्त है?

रजत जी , इस बात का मेरे प्रश्न से कैसे सम्बन्ध हुआ ये नहीं समझ पायी मैं। :( ……
:thinking:

Pavitra
26-09-2014, 10:29 PM
"खाली दिमाग" को ये समस्या नहीं है।
:egyptian::egyptian:


वैसे मेरा दिमाग भी ज़्यादा भरा हुआ नहीं है पर फिर भी जो थोड़ा बहुत भरा है , काश वो खाली ही होता तो कोई भी समस्या नहीं आती :(

Pavitra
01-10-2014, 11:48 PM
विनम्रता इंसान में जन्मजात होती है या हम इसे अभ्यास से अपने जीवन में ला सकते हैं ?

मुझे लगता है , विनम्रता इंसान में परिस्थितियों के वजह से आती है , जब परिस्थितियों के कारण इंसान में विवेक जागृत होता है तब विनम्रता आती है।

kuki
02-10-2014, 09:57 PM
पवित्रा,मैं मानती हूँ विनम्रता इंसान के स्वभाव में होती है। हम जब बच्चे होते हैं और अपने आस-पास का जो माहौल देखते हैं ,उसके अनुरूप ही हमारा स्वभाव बनता है। हम वैसी ही भाषा सीखते हैं जो हमारे इर्द-गिर्द लोग बोलते हैं। हम वैसा ही व्यव्हार करना सीखते हैं जो हम अपने आस-पास होते देखते हैं। किसी इंसान के अंदर परिस्थितियों की वजह से जो विनम्रता आती वो स्थाई नहीं होती ,परिस्थिति फिर से बदलने पर विनम्रता भी बदल जाती है। मेरा ऐसा मानना है.

Pavitra
02-10-2014, 10:22 PM
पवित्रा,मैं मानती हूँ विनम्रता इंसान के स्वभाव में होती है। हम जब बच्चे होते हैं और अपने आस-पास का जो माहौल देखते हैं ,उसके अनुरूप ही हमारा स्वभाव बनता है। हम वैसी ही भाषा सीखते हैं जो हमारे इर्द-गिर्द लोग बोलते हैं। हम वैसा ही व्यव्हार करना सीखते हैं जो हम अपने आस-पास होते देखते हैं। किसी इंसान के अंदर परिस्थितियों की वजह से जो विनम्रता आती वो स्थाई नहीं होती ,परिस्थिति फिर से बदलने पर विनम्रता भी बदल जाती है। मेरा ऐसा मानना है.


आपने सही कहा कि परिस्थितियों की वजह से जो विनम्रता आती है वो स्थायी नहीं होती , पर मैंने यहाँ पर ये भी कहा कि जब विवेक जागृत होता है तब जो विनम्रता आती है वो स्थायी होती है।

soni pushpa
10-10-2014, 01:16 PM
बहुत ही सुन्दर विषय है और इसपर हुई बहस भी लाजवाब है ... सबने अपने मंतव्य रखे इसपर ,जो की एक सामाजिक जागरूकता का नमूना कहा जा सकता है की सभी सदस्य इस विषय में रूचि ले रहे हैं पवित्रा जी ...

वाक्पटुता गुण नही बल्कि एक चतुराई है जिसमे स्वार्थ होता हैapne कार्य सिध्धि के लिए लोग मीठा बोल लेते है जब काम पूरा हो जाता है कौन तुम कौन हम ये तक नही जानते eise log जबकि भले कडवा bolane wale लोग पर सच्ची बात कहते हैं वो एक अच्छा गुण कहा जा सकता है .

rajnish manga
10-10-2014, 11:16 PM
यह परिचर्चा न सिर्फ रोचक रही बल्कि सार्थक विचार विमर्श के चलते लाभदायक निष्कर्षों तक लाने वाली भी साबित हुई. इसमें भाग लेने वाले सभी सदस्यों, जिनमें पवित्रा जी, पुष्पा सोनी जी, कुकी जी और रजत जी शामिल हैं, का हार्दिक धन्यवाद.

Rajat Vynar
12-10-2014, 01:44 PM
बहुत ही सुन्दर विषय है और इसपर हुई बहस भी लाजवाब है ... सबने अपने मंतव्य रखे इसपर ,जो की एक सामाजिक जागरूकता का नमूना कहा जा सकता है की सभी सदस्य इस विषय में रूचि ले रहे हैं पवित्रा जी ...

वाक्पटुता गुण नही बल्कि एक चतुराई है जिसमे स्वार्थ होता हैapne कार्य सिध्धि के लिए लोग मीठा बोल लेते है जब काम पूरा हो जाता है कौन तुम कौन हम ये तक नही जानते eise log जबकि भले कडवा bolane wale लोग पर सच्ची बात कहते हैं वो एक अच्छा गुण कहा जा सकता है .
सोनी पुष्पा जी, क्षमा चाहूँगा- इस सम्बन्ध में कृपया पढ़ें मेरा सूत्र ‘गूढ़ शब्दों के मूढ़ अर्थ’ http://myhindiforum.com/showthread.php?p=533075#post533075

Pavitra
12-10-2014, 11:48 PM
आप सभी लोगों का आभार कि आपने मेरी जिज्ञासाओं का समाधान किया। आगे भी आप सभी का साथ ऐसे ही प्राप्त होता रहे।

soni pushpa
13-10-2014, 10:22 PM
आप सभी लोगों का आभार कि आपने मेरी जिज्ञासाओं का समाधान किया। आगे भी आप सभी का साथ ऐसे ही प्राप्त होता रहे।


जी जरुर पवित्रा जी , आपके द्वारा दिए गए विषय ही इतने रोचक हैं की लोग खींचे चले आते हैं

Pavitra
06-11-2014, 02:54 PM
ज्ञानी होने में और बुद्धिमान होने में क्या फर्क है ?
ज्ञानी होना या बुद्धिमान होना व्यक्ति का गुण है ? यानि क्या ये हमारे अंदर जन्मजात होता है या हम अभ्यास द्वारा इसे सीख/प्राप्त कर सकते हैं ?

rajnish manga
06-11-2014, 09:47 PM
पवित्रा जी, इससे पहले कि मैं इस विषय पर कोई टिप्पणी दूँ, मैं एक कहानी सुनाना चाहता हूँ. मैं सोचता हूँ कि आपने भी यह कहानी अवश्य पढ़ी होगी. कहानी की आउटलाइन इस प्रकार है:

चार प्रतिभासंपन्न युवक गुरुकुल में अपनी पढ़ाई समाप्त करके अपने नगर की ओर जा रहे थे. रास्ते में जंगल पड़ता था. जब वो जंगल से हो कार गुज़र रहे थे तो रास्ते में उन्हें कुछ हड्डियाँ दिखाई दीं. उन चारों ने सोचा कि क्यों न अपनी अपनी सीखी हुई विद्या की परीक्षा कर ली जाये. चारों युवक अपनी अपनी विद्या में पारंगत थे. पहले युवक ने इधर उधर पड़ी हुई हड्डियों को ऊपर से नीचे की ओर जंचा कर रख दिया और कहा कि यह किसी पशु की हड्डियाँ है. दूसरे युवक ने उन हड्डियों को देख कर अपनी विद्या के बल पर बता दिया कि जिस जानवर की ये हड्डियाँ हैं उसे मरे हुए दो महीने बीत चुके हैं. तीसरे युवक ने हड्डियों की जांच करने के बाद अपनी विद्या के बल पर यह घोषित किया कि ये हड्डियाँ तो किसी शेर की है.

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rajnish manga
06-11-2014, 09:48 PM
अब चौथे युवक की बारी थी. वह संजीवनी विद्या में पारंगत था. उसने कहा कि वह अपनी विद्या के बल पर इस शेर को जीवित कर सकता है. उसके दूसरे साथियों ने उसे ऐसा करने से मना किया. उसने कहा कि यदि शेर जीवित हो गया तो वह हम सब को खा जायेगा. चौथे युवक ने उनकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया. वह कहने लगा कि जीवित होने के बाद जब शेर को पता चलेगा कि मैंने उसे जीवनदान दिया है तो वह उन्हें कुछ नहीं कहेगा.

इसके बाद पहले, दूसरे और तीसरे युवक ने कहा कि भाई पहले हमें सुरक्षित दूरी पर चले जाने दो, उसके बाद शेर को जीवित करना. वह उनकी बात मान गया. जब काफी समय गुज़र गया तो चौथे युवक ने संजीवनी विद्या का अनुष्ठान शुरू किया. अनुष्ठान की समाप्ति पर शेर जीवित हो कर उठ खड़ा हुआ. उसने अपने सामने उस युवक को देखा. उसे बड़ी भूख लगी थी. उसने आव देखा न ताव, झट युवक को ही झपट्टा मार कर गिरा दिया और मार दिया. उसे खा कर शेर ने अपनी भूख शांत की.

इस कथा का सार यही है कि आपके पास कितना भी ज्ञान क्यों न आ जाये, यदि आपके पास विवेक और बुद्धिमानी नहीं है तो वह ज्ञान किसी काम का नहीं है. समय और काल के अनुसार अपने ज्ञान का प्रयोग करना ही बुद्धिमानी है.

rajnish manga
06-11-2014, 10:02 PM
जिस प्रकार खाली थ्योरी का ज्ञान आ जाने से किसी व्यक्ति या उसके समाज को कोई लाभ नहीं मिलता जब तक कि उसे देश, काल, परिस्थिति के अनुसार काम में न लाया जाये. तो अब हम देखते हैं कि यह व्यवहारिक पक्ष तो जैसे-जैसे व्यक्ति का विकास होता है और जैसे-जैसे उसे विपरीत या भिन्न-भिन्न परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, वैसे वैसे उसमे विवेक जागृत होता है और उसकी बुद्धि में पैनापन आता जाता है. इसका कोई समयबद्ध प्रारूप नहीं हो सकता.

Pavitra
19-01-2015, 10:01 PM
लेखन एक कला है या गुण ?

Deep_
19-01-2015, 10:25 PM
आपके पास कितना भी ज्ञान क्यों न आ जाये, यदि आपके पास विवेक और बुद्धिमानी नहीं है तो वह ज्ञान किसी काम का नहीं है. समय और काल के अनुसार अपने ज्ञान का प्रयोग करना ही बुद्धिमानी है.
व्यक्तिगत तौर पर मै रजनीश जी के ईस बोल्ड कीए गए वाक्य से सहमत हुं। मै कभी कभी किताबों और अंतरजाल के पृष्ठों को देख कर अचंबित रह जाता हुं। कितना ज्ञान हमारी चारो और बिखरा हुआ रहेता है।

लेकिन यह ज्ञान-बुध्धिमानी किसी काम की नहीं अगर ईसे उपयोग न किया जा सके। ईससे मानवजीवन को खुशी, सुख और सहुलियत प्रदान न किया जा सके।

मै अगर बहुत बुध्धिमान हुं तो ईसका लाभ मेरे दोस्तों को, पडोसीयों को, घरवालों को या किसी ना किसी को होता ही रहेना चाहीए। (ये ओर बात है की वे ईतने खुशनसीब नहीं है! :laughing: )

soni pushpa
20-01-2015, 12:59 PM
लेखन एक कला है या गुण ?



sabse pahle apka dhanywad pavitraa ji ...

जहाँ तक मेरा मानना है की लेखन जब बुध्धि से विचार करके लिखा जाय , या कही से पढ़कर लेखन हो तब वह कला है . और जब कोई लेखक अपने मन की भावनाओं को अन्तः स्फुरित विचारों को सबके साथ लेखन के माध्यम से बांटता है . तब वो गुण बन जाता है.. ( क्यूंकि गुण इन्सान की आन्तरिक अभिव्यकि के होते हैं और बाह्य अभिव्यक्ति में कला को सिखा जा सकता है जबकि गुण जन्मजात पाए जाते हैं )

Pavitra
20-01-2015, 09:23 PM
मै अगर बहुत बुध्धिमान हुं तो ईसका लाभ मेरे दोस्तों को, पडोसीयों को, घरवालों को या किसी ना किसी को होता ही रहेना चाहीए। (ये ओर बात है की वे ईतने खुशनसीब नहीं है! :laughing: )


आपके घरवाले , पडोसी, दोस्त खुशनसीब हों या न हों , पर हम सभी जरूर खुशनसीब हैं जो आपका ज्ञान यहाँ हम ग्रहण कर पा रहे हैं । :d

emptymind
20-01-2015, 09:26 PM
लेखन कला है।

Pavitra
20-01-2015, 09:27 PM
sabse pahle apka dhanywad pavitraa ji ...

जहाँ तक मेरा मानना है की लेखन जब बुध्धि से विचार करके लिखा जाय , या कही से पढ़कर लेखन हो तब वह कला है . और जब कोई लेखक अपने मन की भावनाओं को अन्तः स्फुरित विचारों को सबके साथ लेखन के माध्यम से बांटता है . तब वो गुण बन जाता है.. ( क्यूंकि गुण इन्सान की आन्तरिक अभिव्यकि के होते हैं और बाह्य अभिव्यक्ति में कला को सिखा जा सकता है जबकि गुण जन्मजात पाए जाते हैं )

जी पर आपको नहीं लगता कि ये गुण ही होना चहिये , अब देखिये ना लिख तो सभी लोग लेते हैं पर हर कोई अपने लेखन से दूसरों पर प्रभाव नहीं छोड पाता , तो मुझे लगता है कि कुछ लोग जन्मजात इस कौशल के साथ ही पैदा होते हैं ।

Pavitra
20-01-2015, 09:31 PM
लेखन कला है।


मैं भी सहमत हूँ कि लेखन कला है , पर हर कोई इस कला में पारंगत नहीं हो पाता । कुछ लोग बचपन से ही बहुत प्रवीण होते हैं इस कला में , कुछ लोगों में ये कौशल God gifted होता है । तो इस लिहाज से आपको नहीं लगता कि इसे गुण मानना ज्यादा उचित होगा?

emptymind
20-01-2015, 09:41 PM
मैं भी सहमत हूँ कि लेखन कला है , पर हर कोई इस कला में पारंगत नहीं हो पाता । कुछ लोग बचपन से ही बहुत प्रवीण होते हैं इस कला में , कुछ लोगों में ये कौशल God gifted होता है । तो इस लिहाज से आपको नहीं लगता कि इसे गुण मानना ज्यादा उचित होगा?
:iagree:
आपकी बात मे दम है,
पर अपना दिमाग थोड़ा कम है।

Deep_
20-01-2015, 10:13 PM
आपके घरवाले , पडोसी, दोस्त खुशनसीब हों या न हों , पर हम सभी जरूर खुशनसीब हैं जो आपका ज्ञान यहाँ हम ग्रहण कर पा रहे हैं । :d
:dance: Tacking as a compliment!

अब मुल विषय पर आतें है।

लेखन के अपने कारण है। कोई किताबें लिखता है, कोई कविता, कोई कहानी, कोई खबरें, कोई कोई तो खातावही भी लिखतें होंगे! ईनमें से कुछ पढ़ने में मज़ा आता है, कुछ में जानकारीयां मिलती है, कुछ मजबुरी में जबरन पढ़ना पडता है।

मेरे विचार से प्रोफेशनली लिखना कला ही कही जाएगी ना? कविता और कहानी सुझना ही अपने आप में एक गुण है ना?

Pavitra
20-01-2015, 10:22 PM
मेरे विचार से प्रोफेशनली लिखना कला ही कही जाएगी ना? कविता और कहानी सुझना ही अपने आप में एक गुण है ना?

गुण है या कला है? आपने तो और confuse कर दिया .....:thinking::thinking::thinking:

अब आप ही सोचिये कि कविता लिखने क कौशल हर किसी के पास नहीं होता , चलिये कहानी तो अपने मन से बना के कुछ भी लिख दो अच्छा या बुरा , पर कविता लिखना आसान नहीं है । तो आपको नहीं लगता कि लेखन गुण हुआ क्युँकि हमें- कैसे लिखें ये तो सिखाया जा सकता है पर क्या लिखें(जो कि सबसे महत्वपूर्ण है) ये नहीं सिखाया जा सकता , ये तो हमें खुद ही सोचना पडता है ।

तो मेरे हिसाब से ये गुण ही हुआ ।

Deep_
20-01-2015, 10:34 PM
शायद लेखन भी चित्रकला, नाटयकला, नृत्यकला आदी ६३ (लेखन को जोड़ कर ६४) कला की तरह कला और गुण का समन्वय ही है।

Pavitra
20-01-2015, 10:39 PM
शायद लेखन भी चित्रकला, नाटयकला, नृत्यकला आदी ६३ (लेखन को जोड़ कर ६४) कला की तरह कला और गुण का समन्वय ही है।


:laughing: हाँ यही कहना उचित रहेगा ।

Rajat Vynar
22-01-2015, 11:05 AM
:laughing: हाँ यही कहना उचित रहेगा ।

:iagree:

Rajat Vynar
22-01-2015, 11:07 AM
गुण है या कला है? आपने तो और confuse कर दिया .....:thinking::thinking::thinking:

अब आप ही सोचिये कि कविता लिखने क कौशल हर किसी के पास नहीं होता , चलिये कहानी तो अपने मन से बना के कुछ भी लिख दो अच्छा या बुरा , पर कविता लिखना आसान नहीं है । तो आपको नहीं लगता कि लेखन गुण हुआ क्युँकि हमें- कैसे लिखें ये तो सिखाया जा सकता है पर क्या लिखें(जो कि सबसे महत्वपूर्ण है) ये नहीं सिखाया जा सकता , ये तो हमें खुद ही सोचना पडता है ।



:iagree:

rajnish manga
22-01-2015, 05:38 PM
अब आप ही सोचिये कि कविता लिखने क कौशल हर किसी के पास नहीं होता , चलिये कहानी तो अपने मन से बना के कुछ भी लिख दो अच्छा या बुरा , पर कविता लिखना आसान नहीं है ।

...... तो मेरे हिसाब से ये गुण ही हुआ ।


तकरीबन एक महीना पहले मुझे एक (अंग्रेजी के कवि) मित्र ने अंग्रेजी में कविता लिखने के लिए उत्साहित व प्रेरित किया लेकिन आज तक यह संभव न हो सका. मैं आपकी बात से एकदम सहमत हूँ, पवित्रा जी.

Pavitra
22-01-2015, 06:36 PM
तकरीबन एक महीना पहले मुझे एक (अंग्रेजी के कवि) मित्र ने अंग्रेजी में कविता लिखने के लिए उत्साहित व प्रेरित किया लेकिन आज तक यह संभव न हो सका. मैं आपकी बात से एकदम सहमत हूँ, पवित्रा जी.


जी , मैं समझती हूँ , क्योंकि मैं भी बहुत बार प्रयास कर चुकी हूँ , कविता और गजल लिखने का पर आजतक लिख ना सकी ।
पर फिर खुद को ये सोच कर सान्त्वना दे देती हूँ कि जो हम लिख रहे हैं उसमें भी तो रचनात्मक्ता की आवश्यक्ता होती ही है , ये लेखन भी आसान कार्य नहीं ।

Rajat Vynar
22-01-2015, 08:15 PM
Apko kavita aur gazal likhna nahi ata jankar heart attack hote hote bacha. Rote rote bura hal ho gaya, pavitraji..

Pavitra
22-01-2015, 09:21 PM
Apko kavita aur gazal likhna nahi ata jankar heart attack hote hote bacha. Rote rote bura hal ho gaya, pavitraji..


Thank god , aapko heart attack hote hote bach gaya , warna hume yaha ":D" <--- aise wale thread kase parhne ko milte .....:P
aur pls roiye nahi ......:P

this is for u -

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Rajat Vynar
23-01-2015, 09:55 AM
Aansoo pochne men aap hamesha awwal rahi hain. napkin lekar daud kar ati hain. kabhi kabhi to mujhe shak hota hai aap kisi napkin banane wali company men kam karti hain. note- i've already read your post before edit.. :lol:

Pavitra
23-01-2015, 02:50 PM
Oh God.....it means u were online at tht time..... Lol :laughing:
Nywys asterisks ke middle me formal rpl se better tha pic k sath rpl kiya jaye..... Thts why I edited.......

Arvind Shah
23-01-2015, 03:37 PM
बहुत ही कन्फ्युज करने वाला विषय है गुण और कला !!

मुझे जो बात समझ में आई वो ये है —

सामान्य से परे जो भी विशेष किया जाता है वो कला है । मतलब हर सामान्य व्यक्ति ये नही कर पाता ।

.... और ये जो सामान्य से परे विशेष करने की योग्यता है वो उस व्यक्ति का गुण है !!

Rajat Vynar
23-01-2015, 08:46 PM
Oh God.....it means u were online at tht time..... Lol :laughing:
Nywys asterisks ke middle me formal rpl se better tha pic k sath rpl kiya jaye..... Thts why I edited.......
pic to mujhe dikhi nahi. magar isse kya hoga? mujhe itna sadma pahuncha hai jitna PK movie ki heroin ko movie ke end men pk ke wapas jate waqt pahuncha tha..

Pavitra
23-01-2015, 11:48 PM
pic to mujhe dikhi nahi. magar isse kya hoga? mujhe itna sadma pahuncha hai jitna PK movie ki heroin ko movie ke end men pk ke wapas jate waqt pahuncha tha..

pic apko dikhi nahi to apko kase pata k mane "napkin" hi send ki h??? lol..... :D
mujhe nahi pata tha k apko itna sadma lagega , warna main kavita likhne ke liye try zarur karti .... :P

Pavitra
23-01-2015, 11:50 PM
बहुत ही कन्फ्युज करने वाला विषय है गुण और कला !!

मुझे जो बात समझ में आई वो ये है —

सामान्य से परे जो भी विशेष किया जाता है वो कला है । मतलब हर सामान्य व्यक्ति ये नही कर पाता ।

.... और ये जो सामान्य से परे विशेष करने की योग्यता है वो उस व्यक्ति का गुण है !!

बहुत बहुत धन्यवाद अरविन्द जी ....... :)

Rajat Vynar
24-01-2015, 09:09 AM
pic apko dikhi nahi to apko kase pata k mane "napkin" hi send ki h??? lol..... :D
mujhe nahi pata tha k apko itna sadma lagega , warna main kavita likhne ke liye try zarur karti .... :P
Ab to ap hamari padosan ho gayi hain, aansoo pochne men apko koi dikkat nahi aayegi. :lol:

Pavitra
24-01-2015, 12:37 PM
Padosan???? :surprise:

Rajat Vynar
25-01-2015, 01:46 PM
ap friend list men to hain nahi, isliye padosan hi to huin na? lol.. btw apka question geneva samjhaute ka ullanghan hai.. aur ek writer dwara varsh 2015 ke liye mahilaon hetu banaye gaye niyamon ke virudh bhi hai.. lol

Bagula Bhagat
30-01-2015, 08:41 AM
‘गुण स्वाभाविक रूप से या प्राकृतिक रूप से मनुष्य में विद्यमान होते हैं और कला कोई भी व्यक्ति थोड़े से अभ्यास से सीख सकता है।‘- पवित्रा
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‘गुण ईश्वर की दी हुई एक अंदरूनी शक्ति है और कला अधिकतर हम इन्सान सीखते हैं और कुछ समय के अभ्यास के बाद किसी कला में पारंगत हो सकते हैं..’- सोनी पुष्पा
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‘गुण व्यक्ति में जन्मजात होते हैं जबकि कलाओं का विधिवत विकास किया जाता है – सीख कर अथवा साधना के रास्ते पर चल कर.’- रजनीश मंगा
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बगुला भगत का मस्तिष्क इन विचारों को पढ़कर बहुत ही भ्रमित हो गया है. यदि ऐसा है तो काम गुण है या कला? यह तो मनुष्य में जन्मजात होता है, फिर इसे कला क्यों कहा जाता है?

Rajat Vynar
30-01-2015, 11:04 AM
‘गुण स्वाभाविक रूप से या प्राकृतिक रूप से मनुष्य में विद्यमान होते हैं और कला कोई भी व्यक्ति थोड़े से अभ्यास से सीख सकता है।‘- पवित्रा
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‘गुण ईश्वर की दी हुई एक अंदरूनी शक्ति है और कला अधिकतर हम इन्सान सीखते हैं और कुछ समय के अभ्यास के बाद किसी कला में पारंगत हो सकते हैं..’- सोनी पुष्पा
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‘गुण व्यक्ति में जन्मजात होते हैं जबकि कलाओं का विधिवत विकास किया जाता है – सीख कर अथवा साधना के रास्ते पर चल कर.’- रजनीश मंगा
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बगुला भगत का मस्तिष्क इन विचारों को पढ़कर बहुत ही भ्रमित हो गया है. यदि ऐसा है तो काम गुण है या कला? यह तो मनुष्य में जन्मजात होता है, फिर इसे कला क्यों कहा जाता है?
:laughing: