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View Full Version : तिलक क्यूँ लगाया जाता है


soni pushpa
06-09-2014, 04:31 PM
कुछ फैशन और कुछ ,आज कल के कुमकुम चन्दन में हुई मिलावट की वजह से और हमारी संस्कृति में और अन्य संस्कृतियों के समावेश से तिलक लगाने की परम्परा में कमी आने लगी है, किन्तु आज भी हरेक अछे कार्यो की शुरुवात हम हिन्दू ,.. तिलक से ही करते हैं .. पर सब नही जानते की इस तिलक का लगाना क्यों आवश्यक है या इसके क्या मायने हैं ... सो दोस्तों आज तिलक के बारे में हम कुछ जानेंगे पर ये ब्लॉग मैंने खुद से नही लिखा . कही मैंने पढ़ा और जानने योग्य लगा सो आप सबके साथ सेर कर रही हूँ ...

------पूजा और भक्ति का एक प्रमुख अंग तिलक है। भारतीय संस्कृति में पूजा-अर्चना, संस्कार विधि, मंगल कार्य, यात्रा गमन, शुभ कार्यों के प्रारंभ में माथे पर तिलक लगाकर उसे अक्षत से विभूषित किया जाता है।

उत्तर भारत में आज भी तिलक-आरती के साथ आदर सत्कार-स्वागत कर तिलक लगाया जाता है।

तिलक मस्तक पर दोनों भौंहों के बीच नासिका के ऊपर प्रारंभिक स्थल पर लगाए जाते हैं जो हमारे चिंतन-मनन का स्थान है- यह चेतन-अवचेतन अवस्था में भी जागृत एवं सक्रिय रहता है, इसे आज्ञा-चक्र भी कहते हैं।

इसी चक्र के एक ओर दाईं ओर अजिमा नाड़ी होती है तथा दूसरी ओर वर्णा नाड़ी है।

इन दोनों के संगम बिंदु पर स्थित चक्र को निर्मल, विवेकशील, ऊर्जावान, जागृत रखने के साथ ही तनावमुक्त रहने हेतु ही तिलक लगाया जाता है।

इस बिंदु पर यदि सौभाग्यसूचक द्रव्य जैसे चंदन, केशर, कुमकुम आदि का तिलक लगाने से सात्विक एवं तेजपूर्ण होकर आत्मविश्वास में अभूतपूर्ण वृद्धि होती है, मन में निर्मलता, शांति एवं संयम में वृद्धि होती है।

rajnish manga
07-09-2014, 12:38 PM
‘तिलक क्यों लगाया जाता है?’ इस विषय पर आपने बहुत अच्छी जानकारी हमसे शेयर की है. मैं मानता हूँ कि मेरी तरह ही अन्य अनेक पाठकों को भी इस बारे में अधिक जानकारी नहीं है. आपका बहुत बहुत धन्यवाद, पुष्पा सोनी जी.

तिलक लगाने का ज़िक्र आते ही मुझे निम्नलिखित दोहा याद आ गया:

‘चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर।
तुलसी दास चंदन घिसें, तिलक देत रघुबीर’।

और साथ ही गोस्वामी तुलसीदास के जीवन का निम्नलिखित प्रसंग ध्यान में आ गया.

तुलसी दास भगवान की भक्ति में लीन होकर लोगों को राम कथा सुनाया करते थे। एक बार काशी में रामकथा सुनाते समय इनकी भेंट एक प्रेत से हुई। प्रेत ने इन्हें हनुमान जी से मिलने का उपाय बताया। तुलसी दास जी हनुमान जी को ढूंढते हुए उनके पास पहुंच गए और प्रार्थना करने लगे कि राम के दर्शन करवा दें।

हनुमान जी ने तुलसी दास जी को बहलाने की बहुत कोशिश की लेकिन जब तुलसी दास नहीं माने तो हनुमान जी ने कहा कि राम के दर्शन चित्रकूट में होंगे। तुलसी दास जी ने चित्रकूट के रामघाट पर अपना डेरा जमा लिया।

एक दिन मार्ग में उन्हें दो सुंदर युवक घोड़े पर बैठे नजर आए, इन्हें देखकर तुलसी दास जी सुध-बुध खो बैठे। जब युवक इनके सामने से चले गए तब हनुमान जी प्रकट हुए और बताया कि ये राम और लक्ष्मण जी थे। तुलसी दास जी पछताने लगे कि वह अपने प्रभु को पहचान नहीं पाए। तुलसी दास जी को दुखी देखकर हनुमान जी ने सांत्वना दी कि कल सुबह आपको फिर राम-लक्ष्मण के दर्शन होंगे।

प्रात:काल स्नान-ध्यान करने के बाद तुलसी दास जी जब घाट पर लोगों को चंदन लगा रहे थे तभी बालक के रूप में भगवान राम इनके पास आए और कहने लगे कि बाबा हमें चंदन नहीं दोगे।

हनुमान जी को लगा कि तुलसी दास जी इस बार भी भूल न कर बैठें इसलिए तोते का रूप धारण कर गाने लगे

‘चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर।
तुलसी दास चंदन घिसें, तिलक देत रघुबीर’।

तुलसी दास जी बालक बने श्री राम को निहारते रहे।

soni pushpa
08-09-2014, 10:01 PM
आदरणीय, रजनीश जी ,.. आपने इतनी सुन्दर कहानी लिखकर इस ब्लॉग को और आगे बढाया बहुत बहुत धन्यवाद ... ये कहानी बचपन में सुनी थी मैंने , पुरानी यादें ताज़ा हो गईं आपकी कहानी की वजह से. वो ही प्यारा सा बचपन और उसकी यादें . बहुत बहुत आभार रजनीश जी ... आपको ये ब्लॉग अच्छा लगा .

Dr.Shree Vijay
08-09-2014, 10:16 PM
सुंदर सात्विक जानकारी.........

sachinasati23
22-09-2014, 12:32 PM
yes it's true.