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View Full Version : ज़िन्दगी गुलज़ार है


Pavitra
22-09-2014, 04:04 PM
~ज़िन्दगी गुलज़ार है~

Pavitra
22-09-2014, 04:05 PM
ज़िन्दगी बहुत खूबसूरत है। ये हम सब जानते हैं। ज़िन्दगी हमें कितना कुछ देती है , सुख , अनुभव , सीख। ज़िन्दगी सबसे अच्छी शिक्षक होती है। इंसान जितना अपनी ज़िन्दगी से सीखता है उतना शायद कोई और उसे नहीं सीखा सकता।

पर फिर भी हमारी ज़िन्दगी में कभी कभी ऐसे पल आते हैं जब हमें लगता है कि अब सब ख़त्म हो गया। अब ज़िन्दगी जीने का कोई फायदा नहीं। जब हम ज़िन्दगी से निराश हो जाते हैं। जब हमें लगने लगता है कि हमने ज़िन्दगी से कुछ नहीं पाया।

पर क्या सच में ऐसा हो सकता है कि ज़िन्दगी ने हमें कुछ न दिया हो?

ज़िन्दगी के ऐसे ही अच्छे - और कम अच्छे पहलुओं (कम अच्छे इसलिए क्यूंकि मुझे लगता है कि ज़िन्दगी बुरा किसी के साथ नहीं करती ) की चर्चा करने के लिए ये सूत्र शुरू किया गया है।

Pavitra
22-09-2014, 04:08 PM
ऐसा क्या करें कि हमारी ज़िन्दगी बहुत बहुत खूबसूरत हो जाये?

रिश्ते , प्रेम , शोहरत , संतुष्टि , सब कुछ मिले हमें।

Pavitra
22-09-2014, 04:13 PM
My Hindi Forum पर अब तक का मेरा अनुभव कहता है कि यहाँ पर बुद्धिजीवी लोग हैं जो हमारा मार्गदर्शन कर सकते हैं , हमारी समस्याओं का समाधान ढूंढने में हमारी मदद कर सकते हैं।

इस सूत्र में मैं अपनी समझ के हिसाब से तो पोस्ट करुँगी ही , पर अगर जीवन से जुडी आपकी कोई समस्या हो तो आप यहाँ सभी के साथ बाँट सकते हैं , क्या पता आपकी समस्या का समाधान मिल जाये , और बाकि सदस्यों को उस समस्या और समाधान के माध्यम से कुछ सीख मिल जाये।

Pavitra
22-09-2014, 04:19 PM
हमारी ज़िन्दगी में जो चीज़ हमें सबसे ज़्यादा प्रभावित करती है वो हैं "रिश्ते".

तो सबसे पहले मैं ज़िन्दगी के इस पहलू से ही चर्चा शुरू करती हूँ।

Pavitra
22-09-2014, 04:22 PM
रिश्ते कभी कच्ची डोर की तरह कमज़ोर होते हैं तो कभी ज़ंज़ीर की तरह मजबूत कि अगर तोड़ने का प्रयास किया भी जाये तो भी तोडना असंभव होता है।

ये सब हमारी आपसी समझ पर निर्भर करता है , रिश्ते में मौजूद प्रेम पर , और एक दूसरे पर जो विश्वास होता है हमें उस पर निर्भर करता है।

Pavitra
22-09-2014, 04:25 PM
पर जो चीज़ सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण होती है किसी भी रिश्ते में वो होती है - रिश्ता बनाये रखने की इच्छा

अगर रिश्ता बनाये रखने की इच्छा है आपमें तो फिर परिस्थितियां चाहें कितनी भी विपरीत क्यों न हों , रिश्ता कायम रहता ही है। 100 खामियों के बावजूद रिश्ता बना ही रहता है।

और अगर ये इच्छा ख़त्म हो गयी तो चाहे 100 बहाने क्यों न हों साथ रहने के, रिश्ता निभ ही नहीं सकता।

rajnish manga
22-09-2014, 10:58 PM
एक विलक्षण चर्चा का आरम्भ करने के लिये आपको बधाई देना चाहता हूँ, पवित्रा जी. इसका शीर्षक भी विशेष रूप से आकर्षक है जो हमें याद दिलाता है की जीवन एक वरदान है, एक कभी न खत्म होने वाला वसंतोत्सव है. मानव जीवन है तो समाज भी है. समाज है तो आपसी रिश्ते भी हैं, रिश्ते हैं तो उन्हें समाज की बेहतरी के किये बनाए रखने की ज़रूरत भी है. इसके लिए चाहिए परस्पर विश्वास और एक-दूसरे के लिए आदर व स्नेह की भावना. 'जीओ और जीने दो' का महामंत्र जन-जीवन में गुंजायमान हो. हम अपनी उन्नति के लिए किसी अन्य व्यक्ति का मार्ग न अवरुद्ध करें बल्कि सबको आगे बढ़ने ने का बराबर अवसर मिले अर्थात् सामूहिक विकास का मार्ग अपनाया जाये. परिवार तथा समाज, व्यवसाय अथवा उद्योग सब जगह इसी विचारधारा का बोलबाला हो तो कोई कारण नहीं की 'गुलज़ार ज़िन्दगी' का हमारा सपना पूरा न हो.

bindujain
23-09-2014, 05:01 AM
ऐसा क्या करें कि हमारी ज़िन्दगी बहुत बहुत खूबसूरत हो जाये?

रिश्ते , प्रेम , शोहरत , संतुष्टि , सब कुछ मिले हमें।

आपको क्या मिले इस पर ध्यान देंगे तो आपको कुछ नहीं मिलेगा
आप ये सब देना शुरू कीजिये
आप पाएंगे ये सारी चीजे आपको मिलाने लगी है
किसी ने कहा है
भागती फिरती थी दुनियां जब तालाब करते थे हम
जबसे हमने इसको छोड़ा आने को बेकरार है

Pavitra
23-09-2014, 11:08 AM
आपको क्या मिले इस पर ध्यान देंगे तो आपको कुछ नहीं मिलेगा
आप ये सब देना शुरू कीजिये
आप पाएंगे ये सारी चीजे आपको मिलाने लगी है
किसी ने कहा है
भागती फिरती थी दुनियां जब तालाब करते थे हम
जबसे हमने इसको छोड़ा आने को बेकरार है





आपसे सहमत हूँ मैं, जो पाने की अभिलाषा हो वो देना शुरू करें तो अपने आप हमें वो ही चीज़ मिलना शुरू हो जाएगी।

पर इस स्वार्थी दुनिया में आज सभी पाने की ही अभिलाषा रखते हैं इसलिए मैंने लिखा था कि - ऐसा क्या करें जो ये सब हमें मिले।

Pavitra
23-09-2014, 11:26 AM
हम अक्सर दूसरों से उम्मीद करते हैं कि वो हमें समझे , पर ये नहीं देखते कि हम भी तो उसको समझने का प्रयास नहीं कर रहे , जब हम उसे नहीं समझना चाहते तो उससे क्यों उम्मीद करें कि वो हमें समझे।

इसलिए अगर हम चाहते हैं कि दूसरे लोग हमें समझें तो हमें भी उन्हें समझने का प्रयास करना चाहिए।

soni pushpa
23-09-2014, 05:36 PM
हम अक्सर दूसरों से उम्मीद करते हैं कि वो हमें समझे , पर ये नहीं देखते कि हम भी तो उसको समझने का प्रयास नहीं कर रहे , जब हम उसे नहीं समझना चाहते तो उससे क्यों उम्मीद करें कि वो हमें समझे।

इसलिए अगर हम चाहते हैं कि दूसरे लोग हमें समझें तो हमें भी उन्हें समझने का प्रयास करना चाहिए।

आपसे सहमत हूँ मैं, जो पाने की अभिलाषा हो वो देना शुरू करें तो अपने आप हमें वो ही चीज़ मिलना शुरू हो जाएगी।

पर इस स्वार्थी दुनिया में आज सभी पाने की ही अभिलाषा रखते हैं इसलिए मैंने लिखा था कि - ऐसा क्या करें जो ये सब हमें मिले।

पवित्रा जी आपने अपने नाम की तरह बहुत पवित्र बात कही है , और इन रिश्तों की वजह से जो हमे मिले , प्रेम शोहरत और संतुष्टि उसको रिश्तों से जोड़ा है आपने. कुछ हद तक सही है की रिश्तों की वजह से येसब मिलता है लोगो को, पर मेरा मानना है की , रिश्ते तो रिश्ते हैं जो निभाने पड़ते है कई बार, और कई बार हम जीते है इन रिश्तों को वो इतने गहरे हो जाते हैं .... और कई बार देखने के लिए हम अलग होते है किन्तु हमेशा जाने अनजाने भी वो रिश्ते हमसे जुड़े रहते हैं जीवन भर ...

आपने सबसे पहले रिश्तोको लेकर कुछ कहने को कहा है ना , तो मै कहूँगी की कई बार खून के रिश्ते , दिल के रिश्तो से छोटे हो जाते हैं क्यूंकि हम देखते हैं, सुनते हैं की समाज में मकान को लेकरऔर धन को लेकर bhai _bhai कोर्ट तक जाते हैं तब खून के रिश्तों का खून हो जाता है ,और कहीं--- एक अनजान परायो के लिए इतना कुछ करते देखे गए हैं जो की अपनो से बढ़कर बन जाते हैं . और दिल में बस जाते है और साथ ही लोग उसके लिए बहुत आदर सम्मान की भावना रखते है और अपनों से ज्यदा उन्हें मानते हैं क्यूंकि, दुःख के समय में एइसे भले इन्सान ने उनका साथ दिया होता है ...इसलिए ही कहीं रिश्ते लोहे की जंजीर जितने मजबूत होते है तो कही मोमबत्ती की तरह पिघल जाते हैं .
दूसरी वजह ये भी है की दिल के रिश्ते हम खुद बनाते हैं जबकि दुसरे रिश्ते हमे वंशानुगत मिलते हैं या फिर किसी के द्वारा हमे दिए जाते हैं ,जेइसे की वर कन्या----- वर कन्या का विवाह पहले के ज़माने में और आज भी कहीं कहीं माँ बाप की मरजी से होता है औरहोता था तब ये रिश्ता निभाया जाता था न की इसे दिल से अपनाया जाता था ये न कहूँगी की हरेक के लिए ये बात लागु होती है पर हर जगह हर दिल नही मिल पाते .
अब करें बात समाज की तो चूँकि हम एक सामाजिक प्राणी हैं इन्सान हैं समाज के बिना तो हमारा वजूद ही नही जन्म से लेकर मृत्यु तक हमें समाज का साथ चहिये होता है एकेले इन्सान खुद को तनहा पाकर जी नही सकता वो कही न कही से कोई तो रिश्ता बना ही लेता है भले वो दुनिया में अकेला ही क्यों न हो कोई दोस्त बना लिए कोई bhai या बहन बना लेते हैं एइसे रिश्तो के बिना जी नही सकते हम और रिश्तो से हम अपने आप बंधे चले जाते हैं ... सबसे बड़ा उदहारण हम सब ही हैं -- हैं की नही? अब हम सबके बिच एक अनोखा सा रिश्ता बन ही गया है न क्यूँ की सब इंतजार करते हैं की हैं कि हमारे ये दोस्त आये क्यों नही... फिर आये और लिखा तो उसके रिप्लाई में लिखना और बहस करना ये सब अब और कुछ नही तो वाचक और लेखक का रिश्ता बन ही गया न ? ये जस्ट मेने एक उदाहरण ही दिया बाकि इससे हम समझ सकते है की भले जो भी हो कच्चे या मजबूत पर बिन रिश्तों के इन्सान नही जी सकता फिर भले उन रिश्तो से हमे कुछ मिले या न मिले ...
अगला शब्द होगा " शोहरत " तब आगे और लिखूंगी पवित्रा जी . अब अगले वाचक की लेखनी का इंतज़ार रहेगा ...

Rajat Vynar
23-09-2014, 07:55 PM
पर जो चीज़ सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण होती है किसी भी रिश्ते में वो होती है - रिश्ता बनाये रखने की इच्छा

अगर रिश्ता बनाये रखने की इच्छा है आपमें तो फिर परिस्थितियां चाहें कितनी भी विपरीत क्यों न हों , रिश्ता कायम रहता ही है। 100 खामियों के बावजूद रिश्ता बना ही रहता है।

और अगर ये इच्छा ख़त्म हो गयी तो चाहे 100 बहाने क्यों न हों साथ रहने के, रिश्ता निभ ही नहीं सकता।
रिश्तों के सम्बन्ध में पहले से एक विद्वान लेखिका ने बहुत अच्छी बात कही है. इसलिए उसका एक अंश यहाँ पर उद्घृत करना ही पर्याप्त होगा-
‘‘हम में से बहुत से लोग अपना पहला सम्बन्ध जो समुचित रूप से हमारे लिए ठीक प्रतीत होता है, उससे बँध जाते हैं और उसे सच्चा प्यार के ढाँचे में दबा-दबा कर बैठाने का प्रयत्न करते हैं. वस्तुतः यह एक गलत बात नहीं है- यह मानना कि रिश्ते का व्यापक उद्देश्य स्वीकार करना और अनुकूल बनाना हैं. लेकिन किसी भी चीज़ को जब आप बहुत अधिक दबाते हैं तो कुछ देर बार वह फट जाती है. विज्ञान का कुछ फण्डा होता है. इसलिए मुझसे मत पूछिए- क्यों?’’
क्या इसके आगे भी इस विषय पर कोई चर्चा आवश्यक है?

Rajat Vynar
23-09-2014, 07:58 PM
आपसे सहमत हूँ मैं, जो पाने की अभिलाषा हो वो देना शुरू करें तो अपने आप हमें वो ही चीज़ मिलना शुरू हो जाएगी।

पर इस स्वार्थी दुनिया में आज सभी पाने की ही अभिलाषा रखते हैं इसलिए मैंने लिखा था कि - ऐसा क्या करें जो ये सब हमें मिले।
लावण्या जी, सबसे पहले आपके नए उपनाम पवित्रा जी के रूप में आपका स्वागत है. ध्वनि-ज्योतिष के अनुसार आपके नए नाम में पे, रे, अव् जैसे कई धनात्मक और सकारात्मक कंपन है. इस टिप्पणी के बारे में मेरा कथन यह है कि यह एक असम्भव नियम है. ‘कुछ पाने’ के बदले उसके समतुल्य ‘कुछ और’ देने का प्रस्ताव भी मान्य होना चाहिए. अतः अपवाद नियमों को भी साथ में लागू किया जाना चाहिए. हमें विस्मृत नहीं करना चाहिए कि देश में पहले से ही धारा 37 लागू है!

Rajat Vynar
23-09-2014, 08:05 PM
हम अक्सर दूसरों से उम्मीद करते हैं कि वो हमें समझे , पर ये नहीं देखते कि हम भी तो उसको समझने का प्रयास नहीं कर रहे , जब हम उसे नहीं समझना चाहते तो उससे क्यों उम्मीद करें कि वो हमें समझे।

इसलिए अगर हम चाहते हैं कि दूसरे लोग हमें समझें तो हमें भी उन्हें समझने का प्रयास करना चाहिए।
समझें या न समझें कोई बात नहीं लेकिन इज्ज़त तो उसी तरह पूर्ववत ‘कायदे से’ करना चाहिए न?

Pavitra
23-09-2014, 10:33 PM
पवित्रा जी आपने अपने नाम की तरह बहुत पवित्र बात कही है , और इन रिश्तों की वजह से जो हमे मिले , प्रेम शोहरत और संतुष्टि उसको रिश्तों से जोड़ा है आपने. कुछ हद तक सही है की रिश्तों की वजह से येसब मिलता है लोगो को, पर मेरा मानना है की , रिश्ते तो रिश्ते हैं जो निभाने पड़ते है कई बार, और कई बार हम जीते है इन रिश्तों को वो इतने गहरे हो जाते हैं .... और कई बार देखने के लिए हम अलग होते है किन्तु हमेशा जाने अनजाने भी वो रिश्ते हमसे जुड़े रहते हैं जीवन भर ...

आपने सबसे पहले रिश्तोको लेकर कुछ कहने को कहा है ना , तो मै कहूँगी की कई बार खून के रिश्ते , दिल के रिश्तो से छोटे हो जाते हैं क्यूंकि हम देखते हैं, सुनते हैं की समाज में मकान को लेकरऔर धन को लेकर bhai _bhai कोर्ट तक जाते हैं तब खून के रिश्तों का खून हो जाता है ,और कहीं--- एक अनजान परायो के लिए इतना कुछ करते देखे गए हैं जो की अपनो से बढ़कर बन जाते हैं . और दिल में बस जाते है और साथ ही लोग उसके लिए बहुत आदर सम्मान की भावना रखते है और अपनों से ज्यदा उन्हें मानते हैं क्यूंकि, दुःख के समय में एइसे भले इन्सान ने उनका साथ दिया होता है ...इसलिए ही कहीं रिश्ते लोहे की जंजीर जितने मजबूत होते है तो कही मोमबत्ती की तरह पिघल जाते हैं .
दूसरी वजह ये भी है की दिल के रिश्ते हम खुद बनाते हैं जबकि दुसरे रिश्ते हमे वंशानुगत मिलते हैं या फिर किसी के द्वारा हमे दिए जाते हैं ,जेइसे की वर कन्या----- वर कन्या का विवाह पहले के ज़माने में और आज भी कहीं कहीं माँ बाप की मरजी से होता है औरहोता था तब ये रिश्ता निभाया जाता था न की इसे दिल से अपनाया जाता था ये न कहूँगी की हरेक के लिए ये बात लागु होती है पर हर जगह हर दिल नही मिल पाते .
अब करें बात समाज की तो चूँकि हम एक सामाजिक प्राणी हैं इन्सान हैं समाज के बिना तो हमारा वजूद ही नही जन्म से लेकर मृत्यु तक हमें समाज का साथ चहिये होता है एकेले इन्सान खुद को तनहा पाकर जी नही सकता वो कही न कही से कोई तो रिश्ता बना ही लेता है भले वो दुनिया में अकेला ही क्यों न हो कोई दोस्त बना लिए कोई bhai या बहन बना लेते हैं एइसे रिश्तो के बिना जी नही सकते हम और रिश्तो से हम अपने आप बंधे चले जाते हैं ... सबसे बड़ा उदहारण हम सब ही हैं -- हैं की नही? अब हम सबके बिच एक अनोखा सा रिश्ता बन ही गया है न क्यूँ की सब इंतजार करते हैं की हैं कि हमारे ये दोस्त आये क्यों नही... फिर आये और लिखा तो उसके रिप्लाई में लिखना और बहस करना ये सब अब और कुछ नही तो वाचक और लेखक का रिश्ता बन ही गया न ? ये जस्ट मेने एक उदाहरण ही दिया बाकि इससे हम समझ सकते है की भले जो भी हो कच्चे या मजबूत पर बिन रिश्तों के इन्सान नही जी सकता फिर भले उन रिश्तो से हमे कुछ मिले या न मिले ...
अगला शब्द होगा " शोहरत " तब आगे और लिखूंगी पवित्रा जी . अब अगले वाचक की लेखनी का इंतज़ार रहेगा ...


soni pushpa जी , आपने बिलकुल वही बातें लिखी हैं जो मैं सोचती हूँ , और जिनके विषय में मैं आगे के पोस्ट्स में लिखने वाली थी। मैं भी यही मानती हूँ कि रिश्ते खून के ही नहीं होते , अपितु जो कुछ रिश्ते जो हम स्वयं बनाते हैं वो हमारे लिए कभी कभी रक्त-संबंधों से बढ़कर हो जाते हैं।
असल में रिश्तों में जो चीज़ सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण होती है , वो है "प्रेम" ……जहां हमें प्रेम मिलता है , हम वहीँ चले जाते हैं , जिससे प्रेम मिलता है उसके ही हो जाते हैं।
बहुत बार हमारे सगे भाई-बहनों से ज़्यादा प्रिय हमें हमारे दोस्त हो जाते हैं।

तो रिश्तों में प्रेम ही सबसे महत्वपूर्ण है। बिना प्रेम के रिश्ते निभाए तो जा सकते हैं परन्तु रिश्तों को जीया नहीं जा सकता।

Pavitra
23-09-2014, 10:46 PM
लावण्या जी, सबसे पहले आपके नए उपनाम पवित्रा जी के रूप में आपका स्वागत है. ध्वनि-ज्योतिष के अनुसार आपके नए नाम में पे, रे, अव् जैसे कई धनात्मक और सकारात्मक कंपन है. इस टिप्पणी के बारे में मेरा कथन यह है कि यह एक असम्भव नियम है. ‘कुछ पाने’ के बदले उसके समतुल्य ‘कुछ और’ देने का प्रस्ताव भी मान्य होना चाहिए. अतः अपवाद नियमों को भी साथ में लागू किया जाना चाहिए. हमें विस्मृत नहीं करना चाहिए कि देश में पहले से ही धारा 37 लागू है!


रजत जी , एक बार फिर से मुझे आपकी बात समझने में परेशानी हो रही है। कुछ पाने के बदले में कुछ और देना ??? धारा 37 ???
मेरा IQ level अभी average के आंकड़े को भी नहीं छू पाया है और आप above average level की बातें लिख रहे हैं। थोड़ा detail में लिखा कीजिये जिससे मेरे छोटे से दिमाग पर ज़्यादा ज़ोर न पड़े। :P

Pavitra
23-09-2014, 11:08 PM
रिश्तों के सम्बन्ध में पहले से एक विद्वान लेखिका ने बहुत अच्छी बात कही है. इसलिए उसका एक अंश यहाँ पर उद्घृत करना ही पर्याप्त होगा-
‘‘हम में से बहुत से लोग अपना पहला सम्बन्ध जो समुचित रूप से हमारे लिए ठीक प्रतीत होता है, उससे बँध जाते हैं और उसे सच्चा प्यार के ढाँचे में दबा-दबा कर बैठाने का प्रयत्न करते हैं. वस्तुतः यह एक गलत बात नहीं है- यह मानना कि रिश्ते का व्यापक उद्देश्य स्वीकार करना और अनुकूल बनाना हैं. लेकिन किसी भी चीज़ को जब आप बहुत अधिक दबाते हैं तो कुछ देर बार वह फट जाती है. विज्ञान का कुछ फण्डा होता है. इसलिए मुझसे मत पूछिए- क्यों?’’
क्या इसके आगे भी इस विषय पर कोई चर्चा आवश्यक है?

समझें या न समझें कोई बात नहीं लेकिन इज्ज़त तो उसी तरह पूर्ववत ‘कायदे से’ करना चाहिए न?



1- बहुत ही अच्छी बात कही है उन लेखिका ने , हम अक्सर ऐसे लोगों के साथ रिश्ते निभाने का प्रयास करते हैं जो असल में हमारे लिए बने ही नहीं होते। हमें जो भी मिलता है उसे ही भाग्य समझकर अपना लेते हैं , स्वीकार कर लेते हैं , उसके अनुरूप खुद को और अपने अनुरूप उसको बदलने का प्रयास करते हैं , ज़बरदस्ती उस रिश्ते को सच्चा प्यार का टैग भी लगा देते हैं। एक अभिनय सा करने लगते हैं , उसके सामने , दुनिया के सामने और अपने सामने भी कि हम बहुत खुश हैं। पर झूठ की नींव पर टिकी इमारत ज़्यादा समय तक नहीं टिक सकती। तो ज़बरदस्ती झूठी सांत्वना पर चलने वाला रिश्ता कैसे लम्बे समय तक टिक सकता है ? ज़बरदस्ती के रिश्ते एक दिन ताश के पत्तों के महल की भाँती बिखर जाते हैं।


2- इज़्ज़त एक ऐसी चीज़ है जिसे कमाना पड़ता है। इस काबिल बनना पड़ता है कि लोग आपकी इज़्ज़त करें। इज़्ज़त मांगी नहीं जा सकती , ज़बरदस्ती हासिल भी नहीं की जा सकती। इज़्ज़त पाने के लिए तो वास्तव में इज़्ज़त पाने के काबिल बनना पड़ता है।

Pavitra
23-09-2014, 11:26 PM
ये सूत्र सिर्फ ज़िन्दगी के विषय में बात करने के लिए ही नहीं अपितु ज़िन्दगी से जुडी हमारी समस्याओं और जिज्ञासाओं के निदान के लिए भी शुरू किया गया है।

तो इसलिए मैं ही अपनी एक जिज्ञासा के साथ इसे प्रारम्भ करती हूँ। आशा है कि आप सभी इस सूत्र में हिस्सा लेंगे और अपने विचारों के माध्यम से समस्याओं - जिज्ञासाओं का समाधान करेंगे।

Pavitra
23-09-2014, 11:26 PM
हम सभी जीवन जी रहे हैं , पर वास्तव में इस जीवन का उद्देश्य क्या है ?
हम क्या प्राप्त करना चाहते हैं ?
जीवन में सबसे आवश्यक क्या है ?

Deep_
24-09-2014, 07:55 AM
हम सभी जीवन जी रहे हैं , पर वास्तव में इस जीवन का उद्देश्य क्या है ? हम क्या प्राप्त करना चाहते हैं ? जीवन में सबसे आवश्यक क्या है ?
पवित्रा जी।
अगर में कहुं, आपने आते ही फोरम पर धुम मचा दी है तो अतिशयोक्ति नही होगी. आपके नए सुत्र और पुराने सुत्रो पर आपका योगदान भी प्रशंसा-पात्र है। में समझता हुं, मेरे बाकी मित्र भी ईस बात से सहमत होंगे।

मेरे मतानुसार जीवन क्या है, जीवन का उद्देश्य क्या होना चाहीए ईस के बारे में वेद-ग्रंथ में जो लिखा है वही सत्य होगा। चाहे हम जिस धर्म के हो, हमारे लिए धर्मग्रंथ बने हुए है जहां विद्वानो ने मंथन कर के जीवन का पुरा नीचोड लिखा है।

समय, काल के परिवर्तन के साथ हम भी बदल जातें है। आज ईस अत्याधुनीक युग में यह सब सोचने का समयभी नही मिलता। हमारी प्रायोरीटी बदल जाती है। हमे उलझन में डालने वाली बहुत सी चीजें यहां उपलब्ध है। हमारे पास ईतने सारे ओप्शन है, ईतने सारे मार्ग, जानकारीयां, उदाहरण, ट्युटोरीयल उपलब्ध है कि हम समझ ही नही पाते के सही-गलत क्या है! वास्तव में सही-गलत की परिभाषा भी बदल गई है!

फिर बी कोई फर्क नहि पडना चाहीए अगर समय बदल गया है, क्यों की वेद-उपनिषद लिखनेवालों को यह भी सोचा ही होगा। समय भी क्या चीज़ है। ईश्वर न करे लेकिन अगर फिर से कीसी कारणवश यह सब समाप्त हो जाए....शुरुआत तो शुरु से ही होगी! वही...आदिमानवो से एन्ड्रोईड तक :giggle:

में आपके प्रश्नो से भटक नही रहा....लेकिन में यही सोचता हुं। ग्रंथो में जो लिखा है, जीवन माया है, उसका उदेश्य सबका भला करना है, हमे सिर्फ पुण्य एवं ज्ञान प्राप्त करना चाहीए और आखरी प्रश्न का उत्तर है..सबसे आवश्यक ईन सब प्रश्नोको मनमें जगाए रखना है!

:think:

Rajat Vynar
24-09-2014, 08:40 AM
पवित्रा जी।
अगर में कहुं, आपने आते ही फोरम पर धुम मचा दी है तो अतिशयोक्ति नही होगी.
धूम क्यों नहीं मचेगी? Our foursome is kind of inevitable! क्यों, पवित्रा जी? :egyptian:

Rajat Vynar
24-09-2014, 08:58 AM
रजत जी , एक बार फिर से मुझे आपकी बात समझने में परेशानी हो रही है। कुछ पाने के बदले में कुछ और देना ??? धारा 37 ???
मेरा IQ level अभी average के आंकड़े को भी नहीं छू पाया है और आप above average level की बातें लिख रहे हैं। थोड़ा detail में लिखा कीजिये जिससे मेरे छोटे से दिमाग पर ज़्यादा ज़ोर न पड़े। :P

पवित्रा जी, आप कहतीं हैं- ‘जो पाने की अभिलाषा हो वो देना शुरू करें’. यह हमारे देश की प्राचीनतम वस्तु-विनिमय व्यवस्था (barter system) के विरुद्ध है क्योंकि यदि किसी के पास कोई चीज़ पहले से है तो वह चीज़ वह दूसरे से लेना क्यों पसंद करेगा? उदाहरण के लिए यह कल्पना कीजिए कि आप, मैं और सोनी जी किसान हैं. सोनी जी के पास तरबूज का खेत है, आपके पास केले का और मेरे पास खरबूजे का. अब यह स्पष्ट है कि जिसके पास तरबूज का खेत है वह तरबूज के बदले तरबूज तो लेगा नहीं. तरबूज के बदले केला या खरबूजा लेना चाहेगा. इसीलिए तो मैंने कहा कि ‘कुछ पाने’ के बदले उसके समतुल्य ‘कुछ और’ देने का प्रस्ताव भी मान्य होना चाहिए.

Pavitra
24-09-2014, 02:24 PM
पवित्रा जी।
अगर में कहुं, आपने आते ही फोरम पर धुम मचा दी है तो अतिशयोक्ति नही होगी. आपके नए सुत्र और पुराने सुत्रो पर आपका योगदान भी प्रशंसा-पात्र है। में समझता हुं, मेरे बाकी मित्र भी ईस बात से सहमत होंगे।

मेरे मतानुसार जीवन क्या है, जीवन का उद्देश्य क्या होना चाहीए ईस के बारे में वेद-ग्रंथ में जो लिखा है वही सत्य होगा। चाहे हम जिस धर्म के हो, हमारे लिए धर्मग्रंथ बने हुए है जहां विद्वानो ने मंथन कर के जीवन का पुरा नीचोड लिखा है।

समय, काल के परिवर्तन के साथ हम भी बदल जातें है। आज ईस अत्याधुनीक युग में यह सब सोचने का समयभी नही मिलता। हमारी प्रायोरीटी बदल जाती है। हमे उलझन में डालने वाली बहुत सी चीजें यहां उपलब्ध है। हमारे पास ईतने सारे ओप्शन है, ईतने सारे मार्ग, जानकारीयां, उदाहरण, ट्युटोरीयल उपलब्ध है कि हम समझ ही नही पाते के सही-गलत क्या है! वास्तव में सही-गलत की परिभाषा भी बदल गई है!

फिर बी कोई फर्क नहि पडना चाहीए अगर समय बदल गया है, क्यों की वेद-उपनिषद लिखनेवालों को यह भी सोचा ही होगा। समय भी क्या चीज़ है। ईश्वर न करे लेकिन अगर फिर से कीसी कारणवश यह सब समाप्त हो जाए....शुरुआत तो शुरु से ही होगी! वही...आदिमानवो से एन्ड्रोईड तक :giggle:

में आपके प्रश्नो से भटक नही रहा....लेकिन में यही सोचता हुं। ग्रंथो में जो लिखा है, जीवन माया है, उसका उदेश्य सबका भला करना है, हमे सिर्फ पुण्य एवं ज्ञान प्राप्त करना चाहीए और आखरी प्रश्न का उत्तर है..सबसे आवश्यक ईन सब प्रश्नोको मनमें जगाए रखना है!

:think:

:hello: :thanks:
ये आप सभी का प्रोत्साहन , सहयोग और आप सब से मिली प्रेरणा है जिसकी वजह से मैं फोरम पर थोड़ा बहुत योगदान दे पा रही हूँ। आप सभी आगे भी इसी तरह प्रेरित करते रहे यही अभिलाषा है।

मेरी जिज्ञासा के विषय में अपने विचार प्रकट करने के लिए हार्दिक धन्यवाद , मेरा मानना भी यही है कि जीवन का उद्देश्य तो मानव-कल्याण ही होना चाहिए।

Pavitra
24-09-2014, 02:31 PM
धूम क्यों नहीं मचेगी? our foursome is kind of inevitable! क्यों, पवित्रा जी? :egyptian:




जी बिलकुल। …। वैसे ये तो पक्की बात है कि जब तक कोई कमेंट न करे तो लिखने में मज़ा ही नहीं आता। … इसलिए ऐसे ही एक्टिविटी जारी रखिये।

Pavitra
24-09-2014, 02:38 PM
पवित्रा जी, आप कहतीं हैं- ‘जो पाने की अभिलाषा हो वो देना शुरू करें’. यह हमारे देश की प्राचीनतम वस्तु-विनिमय व्यवस्था (barter system) के विरुद्ध है क्योंकि यदि किसी के पास कोई चीज़ पहले से है तो वह चीज़ वह दूसरे से लेना क्यों पसंद करेगा? उदाहरण के लिए यह कल्पना कीजिए कि आप, मैं और सोनी जी किसान हैं. सोनी जी के पास तरबूज का खेत है, आपके पास केले का और मेरे पास खरबूजे का. अब यह स्पष्ट है कि जिसके पास तरबूज का खेत है वह तरबूज के बदले तरबूज तो लेगा नहीं. तरबूज के बदले केला या खरबूजा लेना चाहेगा. इसीलिए तो मैंने कहा कि ‘कुछ पाने’ के बदले उसके समतुल्य ‘कुछ और’ देने का प्रस्ताव भी मान्य होना चाहिए.


रजत जी मैं Economis की ही student हूँ तो Barter system(वस्तु विनिमय) समझती हूँ। पर आपको नहीं लगता कि हर जगह ये बात लागू नहीं हो सकती। अब देखिये लोग कहते हैं कि अगर आप चाहते हो कि दूसरे लोग आपको सम्मान दें तो पहले आप को उन्हें सम्मान देना होगा , अगर आप चाहते हैं कि लोग आपसे प्यार से बात करें तो आपको भी दूसरे से प्यार से ही बात करनी होगी। …।ऐस थोड़े ही होता है कि - जैसे मेरा स्वभाव क्रोधी हो और मैं आपसे गुस्से से बात करूँ और बदले में आप मुझे सम्मान दें।

kuki
24-09-2014, 04:11 PM
पवित्रा,मैं काफी हद तक तुमसे सहमत हूँ पर पूरी तरह से नहीं। मैं मानती हूँ की अगर हम किसी को सम्मान और प्यार देंगे तो ही बदले में हमें सम्मान और प्यार मिलेगा ,लेकिन हर बार ऐसा हो ये ज़रूरी नहीं होता। कई बार लोग आपकी अच्छाई को ,आपकी विनम्रता को आपकी कमज़ोरी मान लेते हैं और आपको हलके में लेने लगते हैं। इसलिए हमें देखना चाहिए की सामने वाला कौन है और कैसा है वैसा ही व्यव्हार करना चाहिए ,क्यूंकि अगर सामने वाले के पास तरबूज़ है तो वो आपको तरबूज़ ही देगा न केला नहीं।

Rajat Vynar
24-09-2014, 09:31 PM
पवित्रा,मैं काफी हद तक तुमसे सहमत हूँ पर पूरी तरह से नहीं। मैं मानती हूँ की अगर हम किसी को सम्मान और प्यार देंगे तो ही बदले में हमें सम्मान और प्यार मिलेगा ,लेकिन हर बार ऐसा हो ये ज़रूरी नहीं होता। कई बार लोग आपकी अच्छाई को ,आपकी विनम्रता को आपकी कमज़ोरी मान लेते हैं और आपको हलके में लेने लगते हैं। इसलिए हमें देखना चाहिए की सामने वाला कौन है और कैसा है वैसा ही व्यव्हार करना चाहिए ,क्यूंकि अगर सामने वाले के पास तरबूज़ है तो वो आपको तरबूज़ ही देगा न केला नहीं।
वाह, क्या बात कही आपने, कुकी जी- ‘जिसके पास तरबूज है तो वह तरबूज ही देगा, केला नहीं’. आपने एक बार फिर अपनी बुद्धिमानी से सिद्ध कर दिया कि आपमें विलक्षण प्रतिभा है और आप विषय में व्याप्त गहराई को समझती हैं. एक मेरी बहन है जो ज्योतिषी है, उसकी एक बात मुझे पसंद नहीं- जबरदस्ती अपना ‘दैवीय’ ज्ञान अपने दोस्तों में बाँटती रहती है. कुकी जी की विलक्षण प्रतिभा के लिए एक बार फिर १०१ पॉइंट नगद और ५१ पॉइंट उधार इनाम (उधार इनाम पर भुगतान होने तक १० प्रतिशत का ब्याज) मेरी ओर से. पहली बार इनाम में उधार और उधार इनाम पर ब्याज की परंपरा चलाकर हमने एक नया कीर्तिमान बनाया है.

Pavitra
24-09-2014, 09:47 PM
पवित्रा,मैं काफी हद तक तुमसे सहमत हूँ पर पूरी तरह से नहीं। मैं मानती हूँ की अगर हम किसी को सम्मान और प्यार देंगे तो ही बदले में हमें सम्मान और प्यार मिलेगा ,लेकिन हर बार ऐसा हो ये ज़रूरी नहीं होता। कई बार लोग आपकी अच्छाई को ,आपकी विनम्रता को आपकी कमज़ोरी मान लेते हैं और आपको हलके में लेने लगते हैं। इसलिए हमें देखना चाहिए की सामने वाला कौन है और कैसा है वैसा ही व्यव्हार करना चाहिए ,क्यूंकि अगर सामने वाले के पास तरबूज़ है तो वो आपको तरबूज़ ही देगा न केला नहीं।

kuki ji , Exceptions are always there .....अपनी छोटी सी ज़िन्दगी से मैंने ये सीखा है , कि हर चीज़ हर बार हर परिस्थिति या हर व्यक्ति पर लागू नहीं हो सकती है।
कभी कभी हम दूसरों को सम्मान देते हैं तब हमें सम्मान मिलता है , तो कभी कभी किसी के लिए कितना भी कर लो पर बदले में सिर्फ तिरस्कार ही मिलता है।

इसलिए मुझे लगता है कि कोई Universal Formula नहीं हो सकता रिश्ते जीने का , हाँ ये जो कुछ बातें मैंने कही हैं ऊपर उसके माध्यम से रिश्ते निभाने का प्रयास अवश्य हो सकता है। पर पुनः दुहराना चाहूंगी कि रिश्ते व्यक्तियों पर निर्भर करते हैं , तो हमें रिश्ते निभाने का तरीका हमेशा बदलते रहना होता है , व्यक्ति के हिसाब से।

Pavitra
24-09-2014, 09:54 PM
पवित्रा,मैं काफी हद तक तुमसे सहमत हूँ पर पूरी तरह से नहीं। मैं मानती हूँ की अगर हम किसी को सम्मान और प्यार देंगे तो ही बदले में हमें सम्मान और प्यार मिलेगा ,लेकिन हर बार ऐसा हो ये ज़रूरी नहीं होता। कई बार लोग आपकी अच्छाई को ,आपकी विनम्रता को आपकी कमज़ोरी मान लेते हैं और आपको हलके में लेने लगते हैं। इसलिए हमें देखना चाहिए की सामने वाला कौन है और कैसा है वैसा ही व्यव्हार करना चाहिए ,क्यूंकि अगर सामने वाले के पास तरबूज़ है तो वो आपको तरबूज़ ही देगा न केला नहीं।

वाह, क्या बात कही आपने, कुकी जी- ‘जिसके पास तरबूज है तो वह तरबूज ही देगा, केला नहीं’. आपने एक बार फिर अपनी बुद्धिमानी से सिद्ध कर दिया कि आपमें विलक्षण प्रतिभा है और आप विषय में व्याप्त गहराई को समझती हैं. एक मेरी बहन है जो ज्योतिषी है, उसकी एक बात मुझे पसंद नहीं- जबरदस्ती अपना ‘दैवीय’ ज्ञान अपने दोस्तों में बाँटती रहती है. कुकी जी की विलक्षण प्रतिभा के लिए एक बार फिर १०१ पॉइंट नगद और ५१ पॉइंट उधार इनाम (उधार इनाम पर भुगतान होने तक १० प्रतिशत का ब्याज) मेरी ओर से. पहली बार इनाम में उधार और उधार इनाम पर ब्याज की परंपरा चलाकर हमने एक नया कीर्तिमान बनाया है.


Kuki ji आपके पोस्ट्स सच में ज्ञान वर्धक और व्यवहारिक होते हैं। उनमें समाज की सच्चाई होती है। इसलिए ऐसे ही आगे भी अपने विचार हमसे बांटती रहिएगा।

रजत जी , जिस तरह से आजकल kuki ji पोस्ट कर रही हैं मुझे लगता है बहुत जल्दी ही आप तो Zero पॉइंट्स पर आजायेंगे। क्यूंकि उनका हर एक पोस्ट इनाम के काबिल होगा और आप इसी तरह points इनाम में देते रहे तो आपके पास तो कुछ बचेगा भी कि नहीं , कह नहीं सकते। ......LOL :laughing:

emptymind
24-09-2014, 11:41 PM
हम सभी जीवन जी रहे हैं , पर वास्तव में इस जीवन का उद्देश्य क्या है ?
पाइसा
हम क्या प्राप्त करना चाहते हैं ?
पाइसा
जीवन में सबसे आवश्यक क्या है ?
पाइसा

पता नहीं किसने कहा था, पर क्या खूब कहा था - वाह-वाह।
आप भी सुनिये-

पैसा खुदा तो नहीं है....
मगर खुदा से कम भी नहीं है।

अगर मेरी बात समझ मे ना आए तो दिमाग पर ज़ोर ना दे, क्योंकि मेरा तो ......
हीहीही, समझ गए ना?

Rajat Vynar
25-09-2014, 01:49 PM
पाइसा

पाइसा

पाइसा

पता नहीं किसने कहा था, पर क्या खूब कहा था - वाह-वाह।
आप भी सुनिये-

पैसा खुदा तो नहीं है....
मगर खुदा से कम भी नहीं है।

अगर मेरी बात समझ मे ना आए तो दिमाग पर ज़ोर ना दे, क्योंकि मेरा तो ......
हीहीही, समझ गए ना?
वाह-वाह, अपने खाली दिमाग से क्या ऊँची बात कही आपने. आपका उत्तर पढ़कर लावारिस फिल्म का एक पुराना गीत याद आ गया-
हे हे चार पैसे क्या मिले..
क्या मिले भई क्या मिले..
वो ख़ुद को समझ बैठे ख़ुदा..
वो ख़ुदा ही जाने अब होगा तेरा अंजाम क्या..
काहे पैसे पे..
काहे पैसे पे इतना ग़ुरूर करे है..
ग़ुरूर करे हैयही पैसा तो..
यही पैसा तो अपनों से..दूर करे है..
दूर करे है..
काहे पैसे पे..
सोने-चाँदी के ऊँचे महलों में..
दर्द ज़्यादा है चैन थोड़ा है..
दर्द ज़्यादा है चैन थोड़ा है..
इस ज़माने में पैसे वालों ने प्यार छीना है..
दिल को तोड़ा है..
प्यार छीना है दिल को तोड़ा है..
पैसे की अहमियत से तो इन्कार नहीं है..
पैसा ही मगर सब कुछ सरकार नहीं है..
इन्साँ-इन्साँ है, पैसा-पैसा है..
दिल हमारा भी तेरे जैसा है..
भला पैसा तो बुरा भी है..
ये ज़हर भी है ये नशा भी है..
ये ज़हर भी है ये नशा भी है..
ये नशा कोई..ये नशा कोई धोखा ज़रूर करे है..
यही पैसा तो अपनों से..दूर करे है.. दूर करे है..
अरे चले कहाँ..
ऐ पैसे से क्या-क्या तुम यहाँ ख़रीदोगे..
हे दिल ख़रीदोगे या के जाँ ख़रीदोगे..
बाज़ारों में प्यार कहाँ बिकता है..
दुकानों पे यार कहाँ बिकता है..
फूल बिक जाते हैं ख़ुश्बू बिकती नहीं..
जिस्म बिक जाते हैं रूह बिकती नहीं..
चैन बिकता नहीं ख़्वाब बिकते नहीं..
दिल के अरमान बेताब बिकते नहीं..
अरे पैसे से क्या-क्या..
हे दिल ख़रीदोगे या के जाँ ख़रीदोगे..
हे इन हवाओं का मोल क्या दोगे..
इन घटाओं का मोल क्या दोगे..
अरे इन ज़मीनों का मोल हो शायद..
आसमानों का मोल क्या दोगे..
आसमानों का मोल क्या दोगे..
पास पैसा है तो है ये..
दुनिया हसीं.. दुनिया हसीं..
हो ज़रूरत से ज़्यादा तो..मानों यक़ीं..
मानों यक़ीं..ये दिमाग़ों में..
ये दिमाग़ों में..पैदा फ़ितूर करे है..
यही पैसा तो अपनों से..
दूर करे है.. दूर करे है..
आपने अपने खाली दिमाग से ज्ञान का सिक्का जमा दिया और हम सब अपने भरे दिमाग से सोचते ही रह गए! आपके ज्ञान भरे उत्तर के लिए 11 पॉइंट नगद इनाम मेरी ओर से. अब यह कहकर हड़ताल न करियेगा कि ‘सभी को आप बड़ा-बड़ा इनाम बाँटते है और मुझे इतना कम?’ बहुधा यही होता है हमारे देश में. बड़ा-बड़ा फंड जान-पहचान, खास लोगों और रिश्तेदारों में बंट जाता है!

Rajat Vynar
25-09-2014, 03:54 PM
रजत जी मैं economis की ही student हूँ तो barter system(वस्तु विनिमय) समझती हूँ। पर आपको नहीं लगता कि हर जगह ये बात लागू नहीं हो सकती। अब देखिये लोग कहते हैं कि अगर आप चाहते हो कि दूसरे लोग आपको सम्मान दें तो पहले आप को उन्हें सम्मान देना होगा , अगर आप चाहते हैं कि लोग आपसे प्यार से बात करें तो आपको भी दूसरे से प्यार से ही बात करनी होगी। …।ऐस थोड़े ही होता है कि - जैसे मेरा स्वभाव क्रोधी हो और मैं आपसे गुस्से से बात करूँ और बदले में आप मुझे सम्मान दें।
पवित्रा जी, कहीं आपका आशय यह तो नहीं सामने वाले के गुण-दोषों के आधार पर ही यह निर्णय लेना चाहिए कि उसका सम्मान किया जाए या नहीं? और जहाँ तक सम्मान की बात है आप किस प्रकार के सम्मान की बात कर रही हैं? Respect, Regard, Revere or Venerate? थोडा स्पष्ट कीजिये?

Rajat Vynar
25-09-2014, 05:10 PM
kuki ji आपके पोस्ट्स सच में ज्ञान वर्धक और व्यवहारिक होते हैं। उनमें समाज की सच्चाई होती है। इसलिए ऐसे ही आगे भी अपने विचार हमसे बांटती रहिएगा।

रजत जी , जिस तरह से आजकल kuki ji पोस्ट कर रही हैं मुझे लगता है बहुत जल्दी ही आप तो zero पॉइंट्स पर आजायेंगे। क्यूंकि उनका हर एक पोस्ट इनाम के काबिल होगा और आप इसी तरह points इनाम में देते रहे तो आपके पास तो कुछ बचेगा भी कि नहीं , कह नहीं सकते। ......lol :laughing:
क्या फर्क पड़ता है अगर जीरो पॉइंट हो जाए? यहाँ का जमा करके दूसरे बैंक में तो जमा नहीं कर पाऊँगा. यहीं का कमाया, यहीं गवांया. आप ये देखिए कि कुकी जी ने कितनी ऊँची बात कही है! मैं यह मानता हूँ कि यहाँ पर कुकी जी का कद छोटा है, लेकिन सही बात तो ये है कि उनका कद बहुत मोटा है! आप तो ये बात खुद जानती होंगी.. और फिर पॉइंट कहीं बाहर थोड़े ही बांटे जा रहे है. अपने ही लोगों में ही तो बांटे जा रहे है. तरबूज के गुणों को कुकी जी ने काफी गहराई से समझा है-
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आजकल तरबूज की पूरे अमेरीका में धूम मची है। सभी बड़े होटलों में ब्रेकफास्ट के समय इसका उपलब्ध रहना लगभग अनिवार्य माना जा रहा है। इसका बड़ा कारण पिछले पांच वर्षो में कुछ नये शोधों द्वारा तरबूज के नये फायदों का खुलासा होना है। डा भीमू पटेल, टेक्सास के फ्रूट एवं वेजिटेबल विभाग के डायरेक्टर हैं। उनका कहना है कि बेजोड़ चीज है तरबूज।
नये शोध नेदिखाया है कि तरबूज में वियाग्रा दवा जैसा गुणहै
अगर यौन शक्ति में कमी है, इरेक्शन की समस्या है या यौन इच्छा का अभाव है, तो रोज पांच बार तरबूज खाने की सलाह दी गयी है। न्यूट्रीशन मेडिकल जरनल एवं साइंस डेली पत्रिका में छपे शोध के अनुसार तरबूज में सिटूलीन नामक जैव रसायन होता है, जो शरीर में जाकर अरजीनीन नामक एमीनो एसिड में परिवर्तित हो जाता है। अरजीनीन की सही मात्रा शरीर में रहे, तो नाइट्रिक आक्साइड प्रचुर मात्रा में बनता है। नाइट्रिक आक्साइड को 1992 में मालिक्यूल आफ डिकेड कहा गया था। यह पाया गया था कि हमारी रक्त वाहिनियों की आंतरिक सतह इंडोथेलियम से यह साबित होता है। यदि यह सही मात्रा में शरीर में रहे, तो हार्ट की बीमारी न हो, रक्तचाप ठीक रहे, अर्थराइटिस से निजात मिले और कई तरह के कैंसरों से बचाव हो। तरबूज खाने से नाइट्रिक एसिड की मात्रा संतुलित हो जाती है। यौन अंगों में नाइट्रिक एसिड बनने से वहां रक्त प्रवाह सही हो जाता है, यही है वियाग्रा जैसा प्रभाव। सिटूलीन की अधिकता से शरीर की प्रतिरोधात्मक शक्ति बढ़ती है और शरीर का जहर बाहर निकल जाता है।
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गर्मी के दिनों में तरबूज का सेवन करना बेहद फायदेमंद होता है।
यह मोटापे और मधुमेह को भी रोकने का काम करता है। अर्जीनाइन नाइट्रिकऑक्साइड को बढावा देता है, जिससे रक्त धमनियों को आराम मिलता है। तरबूज काबीज देसी वियाग्रा का काम करता है।गर्मियों में शरीर को ठंडा रखने के वालातरबूज खाने से सेक्स क्षमता किसी वियाग्रा से कम नहीं होती। शोधकर्ताओं केमुताबिक तरबूज में वह सभी गुण मौजूद हैं जो सेक्स क्षमता बढ़ाने के लिएशरीर पर असर डालते हैं।यह फल गुणो की खान है और शरीर के लिए वरदान स्वरूपहै।
पानी से भरपूर तरबूज गर्मी के लिए सबसे फायदेमंद है। इसमें 92 प्रतिशतपानी होता है।यह हमारे शरीर को गर्म मौसम से लड़ने की ताकत भी देता है।मीठे स्वाद के अलावा भी इसमें बहुत सारे गुण होते हैं जो हमारे लिएफायदेमंद हैं।
तरबूज़ में सिट्रुलिन नामक न्यूट्रिन होता है जो शरीर में जाने के बादअर्जीनाइन में बदल जाता है। अर्जीनाइन एक एम्यूनो इसिड होता है जो शरीर कीरोग प्रतिरोधक क्षमता बढाता है और खून का का संचलन सही करता है।
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*जिन व्यक्तियों को कब्ज की शिकायत रहती है, उनके लिए तरबूज का सेवन करना अच्छा रहता है, क्योंकि इसके खाने से आँतों को एक प्रकार की चिकनाई मिलती है।
* इसका सेवन उक्त रक्तचाप को बढ़ने से भी रोकता है।
* खाना खाने के उपरांत तरबूज का रस पीने से भोजन शीघ्र पच जाता है। इससे नींद भी अच्छी आती है। इसके रस से लू लगने का अंदेशा भी नहीं रहता।
* मोटापा कम करने वालों के लिए यह उत्तम आहार है।
* पोलियो रोगियों को तरबूज का सेवन करना बहुत लाभकारी रहता है, क्योंकि यह खून को बढ़ाता है और उसे साफ भी करता है। त्वचा रोगों में भी यह फायदेमंद है।
* तपती गर्मी में जब सिरदर्द होने लगे तो तरबूज के आधा गिलास रस को मिश्री मिलाकर पीना चाहिए।
* पेशाब में जलन हो तो ओस या बर्फ में रखे हुए तरबूज का रस निकालकर सुबह शकर मिलाकर पीने से लाभ होता है।
* गर्मी में नित्य तरबूज का ठंडा-ठंडा शरबत पीने से शरीर को शीतलता तो मिलती ही है, चेहरे पर गुलाबी-गुलाबी आभा भी दमकने लगती है। इसके लाल गूदेदार छिल्कों को हाथ-पैर, गर्दन व चेहरे पर रगड़ने से सौंदर्य निखरता है।
* सूखी खाँसी में तरबूज खाने से खाँसी का बार-बार चलना बंद होता है।
* तरबूज की फाँकों पर कालीमिर्च पावडर, सेंधा व काला नमक बुरककर खाने से खट्टी डकारें आना बंद होती हैं।
* धूप में चलने से ज्वर आया तो फ्रिज का ठंडा-ठंडा तरबूज खाने से फायदा होता है।
* तरबूज का गूदा लें और इसे "ब्लैक हैडस" के प्रभावित एरिया पर आहिस्ता-आहिस्ता रगड़ें। १० मिनट उपरांत चेहरे को गुनगुने पानी से साफ कर लें।
* अपचन, भूख बढ़ाने तथा खून की कमी में यह प्रयोग काम में लाएँ। एक बड़े तरबूज में थोड़ा-सा छेद करके २०० ग्राम चीनी भर दें। ४-५ दिन तक उस तरबूज को दिन में धूप में तथा रात में चन्द्रमा की रोशनी में रखें। उसके बाद अंदर से पानी निचोड़ लें और छानकर काँच की साफ बोतल में भर लें। यह तरल पदार्थ चौथाई कप की मात्रा में दिन में दो से तीन मर्तबा पीने से उपरोक्त तकलीफों में अत्यंत लाभ होता है।
* पागलपन, दिमागी गर्मी, हिस्टीरिया, अनिद्रा रोगों में तरबूज का गूदा ४० मिनट के लिए सिर पर रखना फायदेमंद होता है।
* तरबूज में विटामिन ए, बी, सी तथा लौहा भी प्रचुर मात्रा में मिलता है, जिससे रक्त सुर्ख व शुद्ध होता है।
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गर्मी का आकर्षक और आवश्*यक फल तरबूज शरीर में पानी की कमी को पूरा करता है। इसमें एंटी ऑक्*सीडेंट भी होता है और यही नहीं रिसर्च के अनुसार तरबूज पेट के कैंसर, हृदय रोग और मधुमेह से बचाता है। तरबूज में 92% पानी और 6% शक्*कर होती है, यह विटामिन ए, सी और बी6 का सबसे बडा़ स्*त्रोत है। इसमें बीटा कैरोटीन होता है जो कि हृदय रोग के रिस्*क को कम कर के सेल रिपेयर करता है। तरबूज के फायदे- 1. तरबूज में लाइकोपिन पाया जाता है, लाइकोपिन हमारी त्वचा को जवान बनाए रखता है। ये हमारे शरीर में कैंसर को होने से भी रोकता है। 2. तरबूज में विटामिन ए और सी अच्छी मात्रा में पाया जाता है। विटामिन सी हमारे शरीर के प्रतिरक्षा तन्त्र को मजबूत बनाता है और विटामिन ए हमारे आँखों के स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी होता है। 3. तरबूज और उसके बीजों की गिरी शरीर को पुष्ट बनाती है। तरबूज खाने के बाद उसके बीजों को धो सुखा कर रख लें जिन्हें बाद में भी खाया जा सकता है। 4. अपचन, भूख बढ़ाने तथा खून की कमी होने पर भी तरबूज बहुत लाभदायक सिद्ध होता है । एक बड़े तरबूज में थोड़ा-सा छेद करके उसमें एक ग्राम चीनी भर दें। फिर दिन तक उस तरबूज को धूप में तथा रात में चंद्रमा की रोशनी में रखें। उसके बाद अंदर से पानी निचोड़ लें और छानकर काँच की साफ बोतल में भर लें। यह तरल पदार्थ चौथाई कप की मात्रा में दिन में दो से तीन मर्तबा पीने से उपरोक्त तकलीफों में अत्यंत लाभकारी होता है। 5. तरबूज की फाँकों पर काली मिर्च पाउडर, सेंधा व काला नमक बुरककर खाने से खट्टी डकारें आना बंद होती हैं। 6. तरबूज का गूदा लें और इसे "ब्लैकहेड्स" के प्रभावित जगह पर आहिस्ता-आहिस्ता रगड़ें। एक ही मिनट उपरांत चेहरे को गुनगुने पानी से साफ कर लें। 7. तरबूज खाते समय इस बात का ध्यान रखें कि इसे खाने के बाद 1 घंटे तक पानी न पियें अन्यथा लाभ के स्*थान पर शरीर को हानि पहुंच सकती है। तरबूज ताजा काट कर खायें। बहुत पहले का कटा तरबूज भी नुकसान पहुंचाता है।
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तरबूज के उपर्युक्त गुणों को देखते हुए यह स्पष्ट है कि तरबूज के बड़े और आकर्षक आकार पर न जाकर तरबूज के गुणों को ही प्राथमिकता देनी चाहिए. यह सब तो तरबूज का सकारात्मक पहलू है, लेकिन इसका नकारात्मक पहलू भी है और यह बात बहुत कम लोग जानते हैं. एक कॉफी शॉप में दो लोग आपस में बात कर रहे थे कि तरबूज की खेती से ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती है और गर्मी के महीने में मात्र कुछ धनवान लोगों को ठंडा करने के लिए ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा देना कहाँ का न्याय है? कुछ लोग ठन्डे हो जाएँ और बाकी सभी गर्म? तरबूज के भारी दाम को देखते हुए जो लोग तरबूज खरीदने में सक्षम हैं वही तो गर्मी के महीने में ठन्डे-ठन्डे तरबूज का आनंद ले सकते हैं. वैसे तो सरकार को चाहिए कि गरीबों के लिए ‘तरबूज फंड’ बनाए जिससे गरीब भी तरबूज खरीद सकें, लेकिन ग्लोबल वार्मिंग घटाने के लिए मैंने तरबूज की खेती के खिलाफ प्रचार करना शुरू किया और यह बड़ी खुशी कि बात है कि कुछ किसानों ने हमारी बात की गहराई को समझा और तरबूज की खेती कम कर दी.
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टिप्पणी- लाल रंग से लिखा हुआ सभी कॉपी-पेस्ट है.

Rajat Vynar
25-09-2014, 08:23 PM
1- बहुत ही अच्छी बात कही है उन लेखिका ने , हम अक्सर ऐसे लोगों के साथ रिश्ते निभाने का प्रयास करते हैं जो असल में हमारे लिए बने ही नहीं होते। हमें जो भी मिलता है उसे ही भाग्य समझकर अपना लेते हैं , स्वीकार कर लेते हैं , उसके अनुरूप खुद को और अपने अनुरूप उसको बदलने का प्रयास करते हैं , ज़बरदस्ती उस रिश्ते को सच्चा प्यार का टैग भी लगा देते हैं। एक अभिनय सा करने लगते हैं , उसके सामने , दुनिया के सामने और अपने सामने भी कि हम बहुत खुश हैं। पर झूठ की नींव पर टिकी इमारत ज़्यादा समय तक नहीं टिक सकती। तो ज़बरदस्ती झूठी सांत्वना पर चलने वाला रिश्ता कैसे लम्बे समय तक टिक सकता है ? ज़बरदस्ती के रिश्ते एक दिन ताश के पत्तों के महल की भाँती बिखर जाते हैं।


देखिए, पवित्रा जी.. लेखिका की बात तो ठीक ही प्रतीत होती है, क्योंकि यदि दूसरा पक्ष आपकी भावनाओं को स्वीकार न करे और किसी भी हालत में सच्चा प्यार के ढाँचे में ढलने के लिए तैयार न हो तो? ...इसके आगे अपडेट के लिए प्रतीक्षा करें.

emptymind
25-09-2014, 08:57 PM
वाह-वाह, अपने खाली दिमाग से क्या ऊँची बात कही आपने. आपका उत्तर पढ़कर लावारिस फिल्म का एक पुराना गीत याद आ गया-
..............
आपने अपने खाली दिमाग से ज्ञान का सिक्का जमा दिया और हम सब अपने भरे दिमाग से सोचते ही रह गए! आपके ज्ञान भरे उत्तर के लिए 11 पॉइंट नगद इनाम मेरी ओर से. अब यह कहकर हड़ताल न करियेगा कि ‘सभी को आप बड़ा-बड़ा इनाम बाँटते है और मुझे इतना कम?’ बहुधा यही होता है हमारे देश में. बड़ा-बड़ा फंड जान-पहचान, खास लोगों और रिश्तेदारों में बंट जाता है!
रजत जी, मुझे अभी-अभी हंसने के लिए नाइट्र्स ऑक्साइड का डोज़ लेना पड़ा।
लगता है आप भी मेरी तरह ही होते जा रहे है। जब मैंने तीन बार पाइसा, पाइसा, पाइसा बोला, तो कम से से 11 रुपये तो दे देते। फोकटिया 11 पॉइंट्स का क्या करूंगा।

कोई बात नहीं, हमे कोई फोकट मे जहर भी दे तो, हम वो भी नहीं छोड़ते।
11 पॉइंट्स accepted।
:gm::gm:

Pavitra
25-09-2014, 11:21 PM
जिज्ञासा - दोस्ती क्या है ?
किन लोगों को दोस्त की श्रेणी में रखना चाहिए। आपके हिसाब से कौन सी खूबियां एक व्यक्ति में होनी चाहिए एक दोस्त बनने के लिए ?

Pavitra
25-09-2014, 11:28 PM
पाइसा

पाइसा

पाइसा

पता नहीं किसने कहा था, पर क्या खूब कहा था - वाह-वाह।
आप भी सुनिये-

पैसा खुदा तो नहीं है....
मगर खुदा से कम भी नहीं है।

अगर मेरी बात समझ मे ना आए तो दिमाग पर ज़ोर ना दे, क्योंकि मेरा तो ......
हीहीही, समझ गए ना?


उच्च विचार …।अब कहने को बचा ही क्या , आपने एक ही बार शब्द में सारे प्रश्नों का उत्तर दे दिया। .
:p :p :p

Pavitra
25-09-2014, 11:35 PM
पवित्रा जी, कहीं आपका आशय यह तो नहीं सामने वाले के गुण-दोषों के आधार पर ही यह निर्णय लेना चाहिए कि उसका सम्मान किया जाए या नहीं? और जहाँ तक सम्मान की बात है आप किस प्रकार के सम्मान की बात कर रही हैं? respect, regard, revere or venerate? थोडा स्पष्ट कीजिये?

रजत जी , मैं सोचती हूँ कि अगर सामने वाला व्यक्ति बुरा है तो हमें उसके साथ बुरा नहीं बनना चाहिए , बल्कि उसके साथ और भी अच्छा व्यवहार करना चाहिए जिससे उसको समझ आये कि उसमें और हम में क्या फर्क है ? किसी बुरे के लिए अपनी अच्छाई छोड़ना समझदारी नहीं है।

हाँ कुछ लोग बहुत ही बुरे होते हैं तो उनके साथ तो चाहे कितना अच्छा कर लो उन्हें कोई फर्क ही नहीं पड़ता , उल्टा वो आपकी अच्छाई को आपकी कमज़ोरी ही समझते हैं।

और मैं रेस्पेक्ट वाले सम्मान की ही बात कर रही थी।

Deep_
26-09-2014, 11:37 AM
जिज्ञासा - दोस्ती क्या है ?
किन लोगों को दोस्त की श्रेणी में रखना चाहिए। आपके हिसाब से कौन सी खूबियां एक व्यक्ति में होनी चाहिए एक दोस्त बनने के लिए ?

बाप रे! ईतना सोच के कोई अगर दोस्ती करता तो हो चुका बंटाधार! :giggle:
पवित्राजी, जैसे शादी का जोड़ा बनना उपर से तय है, मेरे विचार से दोस्त भी 'उपर वाला' ही बनाता है। एसा नही हो सकताकी एक बौध्धिक विचारशील व्यक्ति का मित्र कोई पगला सा व्यक्ति हो? आप ही देख ही लो उदाहरण....ईस फोरम पर लेखकों के साथ मेरी और मेरे ही जैसे 'एम्प्टी माईन्ड' की दोस्ती आपके सामने मौजुद है :laughing:

वैसे आपका प्रश्न बहुत अच्छा लगा...काश एक दोस्त एसा हो जिसकी सारी खुबी-खामी हमें अच्छी लगे।

emptymind
26-09-2014, 07:52 PM
जिज्ञासा - दोस्ती क्या है ?
इस सवाल का जवाब ...... :thinking:
अरे "राजश्री पिक्चर्स" की फिल्म "दोस्ती" देख लीजिये ना।
----------------------------------------
दोस्ती नाम है
शरारत का, मुस्कुराहट का,
उम्रभर की चाहत का।
दोस्ती एक अहसास है,
न भूल सको वो ख्वाब है।
कभी यादों में, कभी ख्वाबों में,
वो हर कहीं *मिल जाता है।
कोई आए या ना आए,
दोस्त हर मुसीबत में
दौड़ा चला आता है।
दोस्ती जुनून है,
जिसे पाकर मिलता है
असीम सुख।
दोस्ती सुकून है,
जो हमें हर तकलीफ से
निज़ात दिलाता है।
दु:ख की तपन में दोस्त
शीतल बयार बन आता है।
कभी छेड़छाड़, कभी इकरार,
हर दिन की तकरार,
मगर दिलों में है प्यार।
दोस्ती इसी का नाम है सरकार।
(लेखक का नाम - मुझे पता नहीं है)

emptymind
26-09-2014, 08:27 PM
किन लोगों को दोस्त की श्रेणी में रखना चाहिए। आपके हिसाब से कौन सी खूबियां एक व्यक्ति में होनी चाहिए एक दोस्त बनने के लिए ?
एक समान प्रकृति (nature) वाले लोग ही दोस्ती खूब चलती है।
जैसे:-
शराबी लोग की दोस्ती शराबी से,
नशेड़ियों की दोस्ती नशेड़ियों से,
साहित्य प्रेमी लोगो को साहित्य प्रेमी से,
.....
और मेरे जैसे लोगो की दोस्ती खाली दिमाग वालों से।

अपवाद वश असमान प्रकृति वालों मे भी दोस्ती हो जाती है - and its very rare example.

rajnish manga
26-09-2014, 09:43 PM
इस सवाल का जवाब ......
दोस्ती नाम है
शरारत का, मुस्कुराहट का,
उम्रभर की चाहत का।

....कोई आए या ना आए,
दोस्त हर मुसीबत में
दौड़ा चला आता है।

....दु:ख की तपन में दोस्त
शीतल बयार बन आता है।
कभी छेड़छाड़, कभी इकरार,
हर दिन की तकरार,
मगर दिलों में है प्यार।
दोस्ती इसी का नाम है सरकार।



इस छोटी सी कविता के माध्यम से आपने अच्छे दोस्त की सभी विशेषतायें बता दी हैं. आपका धन्यवाद, मित्र.

Pavitra
26-09-2014, 10:07 PM
बाप रे! ईतना सोच के कोई अगर दोस्ती करता तो हो चुका बंटाधार! :giggle:
पवित्राजी, जैसे शादी का जोड़ा बनना उपर से तय है, मेरे विचार से दोस्त भी 'उपर वाला' ही बनाता है। एसा नही हो सकताकी एक बौध्धिक विचारशील व्यक्ति का मित्र कोई पगला सा व्यक्ति हो? आप ही देख ही लो उदाहरण....ईस फोरम पर लेखकों के साथ मेरी और मेरे ही जैसे 'एम्प्टी माईन्ड' की दोस्ती आपके सामने मौजुद है :laughing:

वैसे आपका प्रश्न बहुत अच्छा लगा...काश एक दोस्त एसा हो जिसकी सारी खुबी-खामी हमें अच्छी लगे।


सच कहा आपने कि जैसे शादी का जोड़ा ऊपर से बनके आता है वैसे ही दोस्त भी भगवन ही हमारी किस्मत में लिख देते हैं।

पर दुःख तब होता है जब वो साथ सिर्फ कुछ पलों का होता है।

Pavitra
26-09-2014, 10:13 PM
इस सवाल का जवाब ...... :thinking:
अरे "राजश्री पिक्चर्स" की फिल्म "दोस्ती" देख लीजिये ना।
----------------------------------------
दोस्ती नाम है
शरारत का, मुस्कुराहट का,
उम्रभर की चाहत का।
दोस्ती एक अहसास है,
न भूल सको वो ख्वाब है।
कभी यादों में, कभी ख्वाबों में,
वो हर कहीं *मिल जाता है।
कोई आए या ना आए,
दोस्त हर मुसीबत में
दौड़ा चला आता है।
दोस्ती जुनून है,
जिसे पाकर मिलता है
असीम सुख।
दोस्ती सुकून है,
जो हमें हर तकलीफ से
निज़ात दिलाता है।
दु:ख की तपन में दोस्त
शीतल बयार बन आता है।
कभी छेड़छाड़, कभी इकरार,
हर दिन की तकरार,
मगर दिलों में है प्यार।
दोस्ती इसी का नाम है सरकार।
(लेखक का नाम - मुझे पता नहीं है)

एक समान प्रकृति (nature) वाले लोग ही दोस्ती खूब चलती है।
जैसे:-
शराबी लोग की दोस्ती शराबी से,
नशेड़ियों की दोस्ती नशेड़ियों से,
साहित्य प्रेमी लोगो को साहित्य प्रेमी से,
.....
और मेरे जैसे लोगो की दोस्ती खाली दिमाग वालों से।

अपवाद वश असमान प्रकृति वालों मे भी दोस्ती हो जाती है - and its very rare example.


बहुत बहुत शुक्रिया इतनी अच्छी पंक्तियों के लिए।

सही कहा आपने कि दोस्ती सामान प्रकृति वाले लोगों की ही लम्बे समय तक चलती है , असमान प्रकृति वाले लोगों की दोस्ती सिर्फ तभी चल सकती है जब आपसी समझ और रिश्ते में प्यार हो , क्यूंकि दो लोग जो एक दूसरे से अलग हों उनमें कुछ भी common नहीं होता , तो उन्हें ज़्यादा careful रहना पड़ता है रिश्ता बचाये रखने के लिए।

पर हाँ प्यार तो किसी भी रिश्ते में हो उस रिश्ते को बचा ही लेता है। तो रिश्ता चाहे दोस्ती का हो या कोई और हर रिश्ते में प्यार का होना बहुत ज़रूरी है।

Pavitra
26-09-2014, 10:17 PM
इस छोटी सी कविता के माध्यम से आपने अच्छे दोस्त की सभी विशेषतायें बता दी हैं. आपका धन्यवाद, मित्र.


:iagree::iagree::iagree:

Rajat Vynar
28-09-2014, 09:23 PM
सच कहा आपने कि जैसे शादी का जोड़ा ऊपर से बनके आता है वैसे ही दोस्त भी भगवन ही हमारी किस्मत में लिख देते हैं।



Denied.

Pavitra
28-09-2014, 11:37 PM
Denied.


I strongly believe ......

मेरा अनुभव कहता है कि दोस्त हम बनाते नहीं हैं , दोस्त हमें मिलते हैं। भगवान खुद तय करते हैं कि किससे कब हमारी दोस्ती होगी और कब तक वो रहेगी।

rafik
29-09-2014, 01:41 PM
रोहित आठवीं कक्षा का छात्र था। वह बहुत आज्ञाकारी था, और हमेशा औरों की मदद के लिए तैयार रहता था। वह शहर के एक साधारण मोहल्ले में रहता था , जहाँ बिजली के खम्भे तो लगे थे पर उनपे लगी लाइट सालों से खराब थी और बार-बार कंप्लेंट करने पर भी कोई उन्हें ठीक नहीं करता था। रोहित अक्सर सड़क पर आने-जाने वाले लोगों को अँधेरे के कारण परेशान होते देखता , उसके दिल में आता कि वो कैसे इस समस्या को दूर करे। इसके लिए वो जब अपने माता-पिता या पड़ोसियों से कहता तो सब इसे सरकार और प्रशाशन की लापरवाही कह कर टाल देते।
ऐसे ही कुछ महीने और बीत गए फिर एक दिन रोहित कहीं से एक लम्बा सा बांस और बिजली का तार लेकर और अपने कुछ दोस्तों की मदद से उसे अपने घर के सामने गाड़कर उसपे एक बल्ब लगाने लगा। आस-पड़ोस के लोगों ने देखा तो पुछा , ” अरे तुम ये क्या कर रहे हो ?”
“मैं अपने घर के सामने एक बल्ब जलाने का प्रयास कर रहा हूँ ?” , रोहित बोला।
“अरे इससे क्या होगा , अगर तुम एक बल्ब लगा भी लोगे तो पुरे मोहल्ले में प्रकाश थोड़े ही फ़ैल जाएगा, आने जाने वालों को तब भी तो परेशानी उठानी ही पड़ेगी !” , पड़ोसियों ने सवाल उठाया।
रोहित बोला , ” आपकी बात सही है , पर ऐसा कर के मैं कम से कम अपने घर के सामने से जाने वाले लोगों को परेशानी से तो बचा ही पाउँगा। ” और ऐसा कहते हुए उसने एक बल्ब वहां टांग दिया।
रात को जब बल्ब जला तो बात पूरे मोहल्ले में फ़ैल गयी। किसी ने रोहित के इस कदम की खिल्ली उड़ाई तो किसी ने उसकी प्रशंशा की। एक-दो दिन बीते तो लोगों ने देखा की कुछ और घरों के सामने लोगों ने बल्ब टांग दिए हैं। फिर क्या था महीना बीतते-बीतते पूरा मोहल्ला प्रकाश से जगमग हो उठा। एक छोटे से लड़के के एक कदम ने इतना बड़ा बदलाव ला दिया था कि धीरे-धीरे पूरे शहर में ये बात फ़ैल गयी , अखबारों ने भी इस खबर को प्रमुखता से छापा और अंततः प्रशाशन को भी अपनी गलती का अहसास हुआ और मोहल्ले में स्ट्रीट-लाइट्स को ठीक करा दिया गया।




जैसा की गाँधी जी ने कहा है , हमें खुद वो बदलाव बनना चाहिए जो हम दुनिया में देखना चाहते हैं, तभी हम अँधेरे में रौशनी की किरण फैला सकते हैं।

Pavitra
29-09-2014, 10:35 PM
हर दिन एक जैसा सा नहीं हो सकता , हर व्यक्ति एक जैसा नहीं हो सकता। हम हर रोज़ ये उम्मीद करें कि हमारा दिन सर्वश्रेष्ठ होगा तो ये संभव नहीं है। ठीक उसी तरह अगर हम हर व्यक्ति से उम्मीद करें कि वो हमसे बहुत अच्छा व्यवहार करेगा या हमारे लिए कुछ भी करने को तैयार होगा तो भी ये संभव बात नहीं है। क्यूंकि ऐसा होना असंभव ही है।

ज़िन्दगी है तो उतार-चढ़ाव भी आएंगे ही , अच्छे दिन हैं तो बुरे भी मिलेंगे ही...... अच्छे लोगों का साथ मिला है तो बुरे लोगों से सामना भी होगा ही।

जब हमें ये बात पता है कि अच्छा और बुरा हमारी ज़िन्दगी का हिस्सा है तो फिर हम क्यों निराश होते हैं जब हमें सफलता नहीं मिलती , क्यों गुस्सा होते हैं जब काम हमारे मनमाफिक नहीं होता , क्यों दुखी होते हैं जब जिससे हम प्यार करते हैं वो ही हमें छोड़ देता है।

सवाल तो बहुत हैं पर जवाब सिर्फ एक - अपेक्षा या उम्मीद (Expectations) …वो कहते हैं न Expectations always hurt

इसलिए उम्मीद करना छोड़िये , जो जैसे आये उसे वैसे ही स्वीकार कीजिये , क्यूंकि जो होना है या हो रहा है वो तो बदलने वाला है नहीं परन्तु हम अपना नजरिया और परिस्थितियों और व्यक्तियों के प्रति अपना व्यवहार बदल कर खुद को परेशान या दुखी करने से बचा सकते हैं।

Pavitra
01-10-2014, 10:55 PM
ज़िन्दगी में ज़्यादा समस्याएं इसलिए आती हैं क्यूंकि हम दूसरों को स्वीकार करने के बजाय उनसे उम्मीदें रखने लगते हैं। इसलिए जो जैसा है उसको वैसे ही स्वीकार करें , दूसरों को बदलने जायेंगे तो कभी खुश नहीं रह पाएंगे। दूसरों को बदलना आसान भी नहीं है , और किस किस को बदलेंगे , हर इंसान पर हमारा ज़ोर नहीं चल सकता। परन्तु हमारे ऊपर हमारा वश है , इसलिए दूसरों को बदलने की जगह अपने नज़रिये को बदलिये।

Stop Expecting Start Accepting

Pavitra
01-10-2014, 11:04 PM
अक्सर हमारे लिए लोगों की गलतियों को माफ़ कर देना और उन गलतियों भूलना आसान नहीं होता। कुछ लोग माफ़ कर देते हैं पर भूल नहीं पाते।
पर एक चीज़ हमें ध्यान रखनी चाहिए , हमारी प्राथमिकता हमारी ख़ुशी है। अगर दूसरों की गलतियों को याद रखेंगे , और माफ़ करके भूलेंगे नहीं तो हम अंदरूनी तौर पर हमेशा वहीँ अटके रहेंगे। इसलिए लोगों को माफ़ करिये , इसलिए नहीं कि वो माफ़ी के काबिल हैं बल्कि इसलिए क्यूंकि आप खुश रहना चाहते हैं।

Rajat Vynar
02-10-2014, 08:06 PM
ज़िन्दगी में ज़्यादा समस्याएं इसलिए आती हैं क्यूंकि हम दूसरों को स्वीकार करने के बजाय उनसे उम्मीदें रखने लगते हैं। इसलिए जो जैसा है उसको वैसे ही स्वीकार करें , दूसरों को बदलने जायेंगे तो कभी खुश नहीं रह पाएंगे। दूसरों को बदलना आसान भी नहीं है , और किस किस को बदलेंगे , हर इंसान पर हमारा ज़ोर नहीं चल सकता। परन्तु हमारे ऊपर हमारा वश है , इसलिए दूसरों को बदलने की जगह अपने नज़रिये को बदलिये।

stop expecting start accepting
बात तो आपने बहुत अच्छी कही है किन्तु यह सत्य है कि आपकी बात एक विख्यात लेखिका के नीचे लिखे हुए कथन का विस्तार मात्र है जिसका उल्लेख पहले भी अन्यत्र किया जा चुका है-
‘हम में से बहुत से लोग अपना पहला सम्बन्ध जो समुचित रूप से हमारे लिए ठीक प्रतीत होता है, उससे बँध जाते हैं और उसे सच्चा प्यार के ढाँचे में दबा-दबा कर बैठाने का प्रयत्न करते हैं. वस्तुतः यह एक गलत बात नहीं है- यह मानना कि रिश्ते का व्यापक उद्देश्य स्वीकार करना और अनुकूल बनाना हैं. लेकिन किसी भी चीज़ को जब आप बहुत अधिक दबाते हैं तो कुछ देर बार वह फट जाती है. विज्ञान का कुछ फण्डा होता है. इसलिए मुझसे मत पूछिए- क्यों?’

Rajat Vynar
02-10-2014, 08:25 PM
अक्सर हमारे लिए लोगों की गलतियों को माफ़ कर देना और उन गलतियों भूलना आसान नहीं होता। कुछ लोग माफ़ कर देते हैं पर भूल नहीं पाते।
पर एक चीज़ हमें ध्यान रखनी चाहिए , हमारी प्राथमिकता हमारी ख़ुशी है। अगर दूसरों की गलतियों को याद रखेंगे , और माफ़ करके भूलेंगे नहीं तो हम अंदरूनी तौर पर हमेशा वहीँ अटके रहेंगे। इसलिए लोगों को माफ़ करिये , इसलिए नहीं कि वो माफ़ी के काबिल हैं बल्कि इसलिए क्यूंकि आप खुश रहना चाहते हैं।
आप अपनी इस बात पर किस आधार पर परिचर्चा चाहतीं हैं- ‘इण्डियन फिल्मी मोरल कोड’ के अनुरूप या ‘इण्डियन पब्लिक मोरल कोड’ के अनुरूप? थोड़ा भ्रमित हूँ, कृपा करके भ्रम दूर कीजिए तो इस विषय पर व्यापक परिचर्चा आरम्भ की जाए. 40 पन्ने से कम नहीं आएगा और ५००० पॉइंट्स विशेष परिचर्चा-शुल्क भी लगेगा. :laughing:

Pavitra
02-10-2014, 10:18 PM
आप अपनी इस बात पर किस आधार पर परिचर्चा चाहतीं हैं- ‘इण्डियन फिल्मी मोरल कोड’ के अनुरूप या ‘इण्डियन पब्लिक मोरल कोड’ के अनुरूप? थोड़ा भ्रमित हूँ, कृपा करके भ्रम दूर कीजिए तो इस विषय पर व्यापक परिचर्चा आरम्भ की जाए. 40 पन्ने से कम नहीं आएगा और ५००० पॉइंट्स विशेष परिचर्चा-शुल्क भी लगेगा. :laughing:



रजत जी मुझे न तो ‘इण्डियन फिल्मी मोरल कोड’ का ज्ञान है और न ही ‘इण्डियन पब्लिक मोरल कोड’ का, तो आप जिस तरह से भी चर्चा आगे बढ़ाना चाहें बढ़ा सकते हैं।
:)

Rajat Vynar
03-10-2014, 05:25 PM
रजत जी मुझे न तो ‘इण्डियन फिल्मी मोरल कोड’ का ज्ञान है और न ही ‘इण्डियन पब्लिक मोरल कोड’ का, तो आप जिस तरह से भी चर्चा आगे बढ़ाना चाहें बढ़ा सकते हैं।
:)
लीजिए, आपके अनुरोध पर चर्चा आगे बढ़ाई जाती है. ‘इंडियन फिल्मी मोरल कोड’ को जानने के लिए एक पुस्तक के कुछ अंश को ही यहाँ पर उद्घृत करना पर्याप्त होगा-
रोमांचक (thriller) फ़िल्मों में आपने देखा होगा कि कहानी की समापना के समय नायक खलनायक को जान से मारने से पहले दस या पन्द्रह मिनट तक खलनायक को फुटबाल की तरह उछाल-उछालकर उसकी बहुत पिटाई करता है। पिटाई में खलनायक का दोनों हाथ और दोनों पैर तोड़ दिए जाते है। उसकी नाक घूँसा मार तोड़ दी जाती है और उसके नाक से खून बहने लगता है। उसकी एक आँख लोहे के गर्म छड़ (rod) से फोड़ दी जाती है और खलनायक दर्द के कारण छटपटाकर बुरी तरह बिलबिलाकर चिल्लाता है और तड़पने लगता है। इस प्रकार खलनायक का कचूमर बुरी तरह निकालने के बाद उसे गोली न मारकर उसके कलेजे में बल्लम, भाला या तलवार भोंक दी जाती है। आपके मन में ज़रूर यह सवाल उठ रहा होगा कि ऐसा क्यों? क्योंकि साधारण सा फण्डा यह है कि सीधे-सीधे खलनायक को गोली मार दीजिए। खलनायक मर गया तो कहानी ख़त्म! एक खलनायक को मारने के लिए इतना समय व्यर्थ करने से क्या लाभ? इसका उत्तर यह है कि हम खलनायक को सम्पूर्ण कहानी में तरह-तरह का अन्याय करता हुआ दिखाते हैं जिसके दर्शकों के मन में खलनायक के प्रति आक्रोश (resentment) की भावना भरती चली जाती है। कहानी के अन्त में जब खलनायक कहानी की नायिका को भी जान से मार देता है तो उस समय दर्शकों का शत-प्रतिशत (100%) आक्रोश अपनी चरम सीमा पर पहुँच जाता है क्योंकि कहानी के नायक को भावनात्मक (emotive) हानि (loss) हुई है। इस भावनात्मक हानि की क्षतिपूर्ति (compensation) केवल कहानी के ख़लनायक को अचानक जान से मारकर नहीं की जा सकती। यही कारण है कि कभी-कभी नायक खलनायक की आँखों के सामने उसके लड़के को जो कहानी में सह-खलनायक (henchman) भी होता है, बर्बरता (barbarity) के साथ पीटता है फिर उसे तड़पा-तड़पाकर जान से मार देता है। खलनायक की आँखों के सामने उसका लड़का छटपटाकर दम तोड़ देता है और खलनायक फटफटाकर रह जाता है। इसे ही खलनायक के कारण नायक को हुई भावनात्मक हानि (emotive loss) के समतुल्य (equivalent) प्रतिशोध (vengeance) लेना कहते हैं क्योंकि खलनायक ने कहानी की नायिका को जान से मार दिया है। अतः यह स्पष्ट है कि प्रतिशोध भावनात्मक हानि के समतुल्य अथवा उससे अधिक होना चाहिए। यदि प्रतिशोध की मात्रा नायक को हुई भावनात्मक हानि से कम हुई तो दर्शकों को आनन्द की अनुभूति नहीं होती। इसी प्रकार यदि कहानी के खलनायक को अचानक मार दिया जाए तो दर्शकों का आक्रोश पूरी तरह से समाप्त नहीं होगा और दर्शकों को ऐसा आभास होगा जैसे उन्हें ठग लिया गया है या लूट लिया गया है। अतः जब खलनायक को धीरे-धीरे करके तड़पा-तड़पाकर कुत्ते की मौत मारा जाता है तो दर्शकों को अत्यधिक प्रसन्नता का आभास होता है और उनके कलेजे में लगी आग धीरे-धीरे ठण्डी होने लगती है। इस प्रकार दर्शकों का आक्रोश धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है। अन्त में जब खलनायक मर जाता है तो दर्शकों को ऐसा आभास होता है जैसे कहानी का नायक नहीं, वे स्वयं खलनायक का कचूमर बुरी तरह निकालकर उसे कुत्ते की मौत मारकर आ रहे हों। याद कीजिए- आपने दर्शकों के मन में खलनायक के प्रति आक्रोश की भावना को कैसे भरा था? इसके लिए खलनायक को नायक के प्रति थोड़ा-थोड़ा करके अन्याय करता हुआ दिखाया गया था। अब चूँकि दर्शकों के मन में खलनायक के प्रति आक्रोश की भावना को थोड़ा-थोड़ा करके भरा गया था, इसलिए दर्शकों का यह आक्रोश खलनायक को एकाएक मारकर समाप्त नहीं किया जा सकता। इसके लिए यह आवश्यक होता है कि खलनायक को बहुत आराम से, धीरे-धीरे करके, तरह-तरह से तड़पा-तड़पाकर इस प्रकार मारा जाए जिससे दर्शकों के कलेजे में लगी आग ठण्डी हो जाए और उनका आक्रोश समाप्त हो जाए। निःसंदेह इस प्रक्रिया में दस-पन्द्रह-बीस मिनट का समय तो लगेगा ही! इसी बात को न्यायसंगत (justifiable) निष्कर्ष (illation) कहते हैं।
--’वाह! क्या बात कही आपने। हमने तो एक-एक शब्द रट लिया। हमने एक अभूतपूर्व कहानी सोची है उसमें नायिका नायक के साथ बहुत अन्याय करती है। कहानी का अन्त कैसे किया जाए- यह सोचकर हम महीनों से परेशान थे। अब हमें सब समझ में आ गया। कहानी का नायक नायिका को फुटबाल की तरह उछाल-उछाल कर...’
अरे, रुकिए तो! यह आप क्या करने जा रहे हैं? कहानी की नायिका है, कोई खलनायक नहीं! इस तरह से आप कहानी की नायिका का दुःखद अन्त करके कहानी समाप्त करेंगे?
--‘आप चुप रहिए। नायिका ने नायक को जान से मारने की कोशिश की है। दर्शकों में बड़ा आक्रोश है! अब हम नायिका को कुतिया की मौत मरता हुआ दिखाएँगे तब जाकर दर्शकों का आक्रोश समाप्त होगा!’
बिल्कुल गलत। कहानी की नायिका नायक के साथ जितना भी अन्याय करे, वह द्वन्द्व (conflict) की श्रेणी में आता है। दर्शकों का आक्रोश नायिका के प्रति कभी नहीं रहता। अतः इस द्वन्द्व का उचित निराकरण (obviation) करना ही कहानी का उद्देश्य होगा। उदाहरण के लिए वर्ष 1999 में लोकार्पित तमिल् फ़िल्म पडैयप्पा (படையப்பா) में कहानी की दो नायिका हैं- नीलाम्बरी (रम्या किरुष्णन्) और वसुन्धरा (सौन्दर्या)। कहानी की नायिका नीलाम्बरी ज़िद्दी (stubborn) स्वभाव (nature) की है और धनवान होने के कारण श्रेष्ठता मनोग्रन्थि (superiority complex) की भावना से प्रभावित है। नीलाम्बरी पडैयप्पा (रजनीकान्त्) से पागलपन की हद तक (insanely) प्रेम करती है, किन्तु रजनीकान्त को नीलाम्बरी की नौकरानी वसुन्धरा से प्रेम हो जाता है। इस प्रकार पडैयप्पा वसुन्धरा से विवाह कर लेता है। कहानी के अन्त में नीलाम्बरी पडैयप्पा को मशीनगन से गोली मारने का प्रयत्न करती है किन्तु पडैयप्पा झुककर अपने आप को बचा लेता है। उसी समय एक साँड नीलाम्बरी को मारने के लिए दौड़ता है किन्तु पडैयप्पा अपना भाला फेंककर साँड से नीलाम्बरी की जान बचा लेता है। ज़िद्दी स्वभाव की नीलाम्बरी यह कहकर कि ’वह अपने दुश्मन द्वारा दिए गए जीवन की भीख पर ज़िन्दा नहीं रहेगी और उससे अगले जन्म में बदला लेगी’, अपने ऊपर मशीनगन चलाकर आत्महत्या कर लेती है। नीलाम्बरी के मृत शरीर के पास आकर पडैयप्पा दुःख भरे स्वर में एक बार फिर अपने शब्दों को दोहराता है- ’जितने भी जन्म हों- हद से अधिक लालच करने वाला आदमी और हद से अधिक गुस्सा करने वाली औरत के अच्छा जीने का इतिहास ही नहीं है!’ यहीं पर फ़िल्म समाप्त हो जाती है। देखा आपने? इसे कहते हैं- प्यार में दुश्मनी का खास अन्दाज़। पडैयप्पा ने नीलाम्बरी के साथ कोई मारपीट नहीं की जबकि नीलाम्बरी उसे जान से मारने आई थी और अपनी जान बचाने के बाद नीलाम्बरी ने हाथ में मशीनगन होते हुए भी पडैयप्पा को फिर से गोली मारने का प्रयास नहीं किया। यहाँ पर यह बता दें कि नीलाम्बरी पडैयप्पा से पागलपन की हद तक प्रेम करती थी, जिसका पूरा फायदा उसे मिला और पडैयप्पा की दुश्मन होने के वावजूद भी दर्शकों के मन में नीलाम्बरी के प्रति आक्रोश का कोई भाव उत्पन्न नहीं हुआ। अतएव यह स्पष्ट है कि प्रत्येक कहानी के लिए कहानी की आवश्यकता के अनुरूप अलग-अलग समापना (denouement) लिखी जाती है।
यहाँ पर यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि खलनायक से भावनात्मक हानि के समतुल्य प्रतिशोध लेने का अर्थ यह नहीं होता कि यदि खलनायक ने नायक की बहन या नायिका से बलात्कार किया है तो कहानी के अन्त में नायक को खलनायक की बहन अथवा लड़की से बलात्कार करके भावनात्मक हानि के समतुल्य प्रतिशोध लेने की आवश्यकता है क्योंकि ऐसा करने पर नायक का चरित्र (character) गिर जाएगा। अतः भावनात्मक हानि की क्षतिपूर्ति किसी भी हालत में नायक के सदाचरण हानि (moral loss) से नहीं की जा सकती।
पुस्तक के उपरोक्त अनुच्छेदों को पढ़ने से यह स्पष्ट है कि ‘इंडियन फिल्मी मोरल कोड’ में जहाँ पर कहानी के खलनायक को माफ़ी देने का कोई सवाल ही नहीं है, वहीँ पर कहानी की नायिका को पूर्ण माफ़ी देने का प्रावधान (provision) किया गया है.रही बात ‘इंडियन पब्लिक मोरल कोड’ की तो उसके बारे में तो बात करते भी हमें उल्टी आती है, क्योंकि इसमें हर प्रकार के विवाद का निपटारा बिना किसी नैतिक नियम के अनुरूप मात्र स्वार्थ के आधार पर निर्दयतापूर्वक किया जाता है. सर्वमान्य एक ही सूत्र है- ‘अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता.’ यही कारण है कि हमारा समाज जब फिल्मों में एक नया ‘मोरल कोड’ देखता है तो उसे पसन्द करता है.

Pavitra
03-10-2014, 10:41 PM
लीजिए, आपके अनुरोध पर चर्चा आगे बढ़ाई जाती है. ‘इंडियन फिल्मी मोरल कोड’ को जानने के लिए एक पुस्तक के कुछ अंश को ही यहाँ पर उद्घृत करना पर्याप्त होगा-
रोमांचक (thriller) फ़िल्मों में आपने देखा होगा कि कहानी की समापना के समय नायक खलनायक को जान से मारने से पहले दस या पन्द्रह मिनट तक खलनायक को फुटबाल की तरह उछाल-उछालकर उसकी बहुत पिटाई करता है। पिटाई में खलनायक का दोनों हाथ और दोनों पैर तोड़ दिए जाते है। उसकी नाक घूँसा मार तोड़ दी जाती है और उसके नाक से खून बहने लगता है। उसकी एक आँख लोहे के गर्म छड़ (rod) से फोड़ दी जाती है और खलनायक दर्द के कारण छटपटाकर बुरी तरह बिलबिलाकर चिल्लाता है और तड़पने लगता है। इस प्रकार खलनायक का कचूमर बुरी तरह निकालने के बाद उसे गोली न मारकर उसके कलेजे में बल्लम, भाला या तलवार भोंक दी जाती है। आपके मन में ज़रूर यह सवाल उठ रहा होगा कि ऐसा क्यों? क्योंकि साधारण सा फण्डा यह है कि सीधे-सीधे खलनायक को गोली मार दीजिए। खलनायक मर गया तो कहानी ख़त्म! एक खलनायक को मारने के लिए इतना समय व्यर्थ करने से क्या लाभ? इसका उत्तर यह है कि हम खलनायक को सम्पूर्ण कहानी में तरह-तरह का अन्याय करता हुआ दिखाते हैं जिसके दर्शकों के मन में खलनायक के प्रति आक्रोश (resentment) की भावना भरती चली जाती है। कहानी के अन्त में जब खलनायक कहानी की नायिका को भी जान से मार देता है तो उस समय दर्शकों का शत-प्रतिशत (100%) आक्रोश अपनी चरम सीमा पर पहुँच जाता है क्योंकि कहानी के नायक को भावनात्मक (emotive) हानि (loss) हुई है। इस भावनात्मक हानि की क्षतिपूर्ति (compensation) केवल कहानी के ख़लनायक को अचानक जान से मारकर नहीं की जा सकती। यही कारण है कि कभी-कभी नायक खलनायक की आँखों के सामने उसके लड़के को जो कहानी में सह-खलनायक (henchman) भी होता है, बर्बरता (barbarity) के साथ पीटता है फिर उसे तड़पा-तड़पाकर जान से मार देता है। खलनायक की आँखों के सामने उसका लड़का छटपटाकर दम तोड़ देता है और खलनायक फटफटाकर रह जाता है। इसे ही खलनायक के कारण नायक को हुई भावनात्मक हानि (emotive loss) के समतुल्य (equivalent) प्रतिशोध (vengeance) लेना कहते हैं क्योंकि खलनायक ने कहानी की नायिका को जान से मार दिया है। अतः यह स्पष्ट है कि प्रतिशोध भावनात्मक हानि के समतुल्य अथवा उससे अधिक होना चाहिए। यदि प्रतिशोध की मात्रा नायक को हुई भावनात्मक हानि से कम हुई तो दर्शकों को आनन्द की अनुभूति नहीं होती। इसी प्रकार यदि कहानी के खलनायक को अचानक मार दिया जाए तो दर्शकों का आक्रोश पूरी तरह से समाप्त नहीं होगा और दर्शकों को ऐसा आभास होगा जैसे उन्हें ठग लिया गया है या लूट लिया गया है। अतः जब खलनायक को धीरे-धीरे करके तड़पा-तड़पाकर कुत्ते की मौत मारा जाता है तो दर्शकों को अत्यधिक प्रसन्नता का आभास होता है और उनके कलेजे में लगी आग धीरे-धीरे ठण्डी होने लगती है। इस प्रकार दर्शकों का आक्रोश धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है। अन्त में जब खलनायक मर जाता है तो दर्शकों को ऐसा आभास होता है जैसे कहानी का नायक नहीं, वे स्वयं खलनायक का कचूमर बुरी तरह निकालकर उसे कुत्ते की मौत मारकर आ रहे हों। याद कीजिए- आपने दर्शकों के मन में खलनायक के प्रति आक्रोश की भावना को कैसे भरा था? इसके लिए खलनायक को नायक के प्रति थोड़ा-थोड़ा करके अन्याय करता हुआ दिखाया गया था। अब चूँकि दर्शकों के मन में खलनायक के प्रति आक्रोश की भावना को थोड़ा-थोड़ा करके भरा गया था, इसलिए दर्शकों का यह आक्रोश खलनायक को एकाएक मारकर समाप्त नहीं किया जा सकता। इसके लिए यह आवश्यक होता है कि खलनायक को बहुत आराम से, धीरे-धीरे करके, तरह-तरह से तड़पा-तड़पाकर इस प्रकार मारा जाए जिससे दर्शकों के कलेजे में लगी आग ठण्डी हो जाए और उनका आक्रोश समाप्त हो जाए। निःसंदेह इस प्रक्रिया में दस-पन्द्रह-बीस मिनट का समय तो लगेगा ही! इसी बात को न्यायसंगत (justifiable) निष्कर्ष (illation) कहते हैं।
--’वाह! क्या बात कही आपने। हमने तो एक-एक शब्द रट लिया। हमने एक अभूतपूर्व कहानी सोची है उसमें नायिका नायक के साथ बहुत अन्याय करती है। कहानी का अन्त कैसे किया जाए- यह सोचकर हम महीनों से परेशान थे। अब हमें सब समझ में आ गया। कहानी का नायक नायिका को फुटबाल की तरह उछाल-उछाल कर...’
अरे, रुकिए तो! यह आप क्या करने जा रहे हैं? कहानी की नायिका है, कोई खलनायक नहीं! इस तरह से आप कहानी की नायिका का दुःखद अन्त करके कहानी समाप्त करेंगे?
--‘आप चुप रहिए। नायिका ने नायक को जान से मारने की कोशिश की है। दर्शकों में बड़ा आक्रोश है! अब हम नायिका को कुतिया की मौत मरता हुआ दिखाएँगे तब जाकर दर्शकों का आक्रोश समाप्त होगा!’
बिल्कुल गलत। कहानी की नायिका नायक के साथ जितना भी अन्याय करे, वह द्वन्द्व (conflict) की श्रेणी में आता है। दर्शकों का आक्रोश नायिका के प्रति कभी नहीं रहता। अतः इस द्वन्द्व का उचित निराकरण (obviation) करना ही कहानी का उद्देश्य होगा। उदाहरण के लिए वर्ष 1999 में लोकार्पित तमिल् फ़िल्म पडैयप्पा (படையப்பா) में कहानी की दो नायिका हैं- नीलाम्बरी (रम्या किरुष्णन्) और वसुन्धरा (सौन्दर्या)। कहानी की नायिका नीलाम्बरी ज़िद्दी (stubborn) स्वभाव (nature) की है और धनवान होने के कारण श्रेष्ठता मनोग्रन्थि (superiority complex) की भावना से प्रभावित है। नीलाम्बरी पडैयप्पा (रजनीकान्त्) से पागलपन की हद तक (insanely) प्रेम करती है, किन्तु रजनीकान्त को नीलाम्बरी की नौकरानी वसुन्धरा से प्रेम हो जाता है। इस प्रकार पडैयप्पा वसुन्धरा से विवाह कर लेता है। कहानी के अन्त में नीलाम्बरी पडैयप्पा को मशीनगन से गोली मारने का प्रयत्न करती है किन्तु पडैयप्पा झुककर अपने आप को बचा लेता है। उसी समय एक साँड नीलाम्बरी को मारने के लिए दौड़ता है किन्तु पडैयप्पा अपना भाला फेंककर साँड से नीलाम्बरी की जान बचा लेता है। ज़िद्दी स्वभाव की नीलाम्बरी यह कहकर कि ’वह अपने दुश्मन द्वारा दिए गए जीवन की भीख पर ज़िन्दा नहीं रहेगी और उससे अगले जन्म में बदला लेगी’, अपने ऊपर मशीनगन चलाकर आत्महत्या कर लेती है। नीलाम्बरी के मृत शरीर के पास आकर पडैयप्पा दुःख भरे स्वर में एक बार फिर अपने शब्दों को दोहराता है- ’जितने भी जन्म हों- हद से अधिक लालच करने वाला आदमी और हद से अधिक गुस्सा करने वाली औरत के अच्छा जीने का इतिहास ही नहीं है!’ यहीं पर फ़िल्म समाप्त हो जाती है। देखा आपने? इसे कहते हैं- प्यार में दुश्मनी का खास अन्दाज़। पडैयप्पा ने नीलाम्बरी के साथ कोई मारपीट नहीं की जबकि नीलाम्बरी उसे जान से मारने आई थी और अपनी जान बचाने के बाद नीलाम्बरी ने हाथ में मशीनगन होते हुए भी पडैयप्पा को फिर से गोली मारने का प्रयास नहीं किया। यहाँ पर यह बता दें कि नीलाम्बरी पडैयप्पा से पागलपन की हद तक प्रेम करती थी, जिसका पूरा फायदा उसे मिला और पडैयप्पा की दुश्मन होने के वावजूद भी दर्शकों के मन में नीलाम्बरी के प्रति आक्रोश का कोई भाव उत्पन्न नहीं हुआ। अतएव यह स्पष्ट है कि प्रत्येक कहानी के लिए कहानी की आवश्यकता के अनुरूप अलग-अलग समापना (denouement) लिखी जाती है।
यहाँ पर यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि खलनायक से भावनात्मक हानि के समतुल्य प्रतिशोध लेने का अर्थ यह नहीं होता कि यदि खलनायक ने नायक की बहन या नायिका से बलात्कार किया है तो कहानी के अन्त में नायक को खलनायक की बहन अथवा लड़की से बलात्कार करके भावनात्मक हानि के समतुल्य प्रतिशोध लेने की आवश्यकता है क्योंकि ऐसा करने पर नायक का चरित्र (character) गिर जाएगा। अतः भावनात्मक हानि की क्षतिपूर्ति किसी भी हालत में नायक के सदाचरण हानि (moral loss) से नहीं की जा सकती।
पुस्तक के उपरोक्त अनुच्छेदों को पढ़ने से यह स्पष्ट है कि ‘इंडियन फिल्मी मोरल कोड’ में जहाँ पर कहानी के खलनायक को माफ़ी देने का कोई सवाल ही नहीं है, वहीँ पर कहानी की नायिका को पूर्ण माफ़ी देने का प्रावधान (provision) किया गया है.रही बात ‘इंडियन पब्लिक मोरल कोड’ की तो उसके बारे में तो बात करते भी हमें उल्टी आती है, क्योंकि इसमें हर प्रकार के विवाद का निपटारा बिना किसी नैतिक नियम के अनुरूप मात्र स्वार्थ के आधार पर निर्दयतापूर्वक किया जाता है. सर्वमान्य एक ही सूत्र है- ‘अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता.’ यही कारण है कि हमारा समाज जब फिल्मों में एक नया ‘मोरल कोड’ देखता है तो उसे पसन्द करता है.


तो आप ये कहना चाहते हैं कि किसी भी इंसान को ऐसे ही माफ़ कर देना सही नहीं है ? इंसान को उसकी गलती का उचित दंड अवश्य मिलना चाहिए ?

वैसे अगर आपके कहने का तात्पर्य यही है तो शुक्रिया , आप सही हैं कि गलती की सज़ा तो अवश्य ही मिलनी चाहिए , पर ये काम अगर हम भगवान पर ही छोड़ दें तो ? न्याय तो होता ही है सभी के साथ पर वो न्याय करने का अधिकार हमें किसने दिया ? वो न्याय भगवान पर ही छोड़ना श्रेयस्कर है।

Rajat Vynar
05-10-2014, 04:27 PM
तो आप ये कहना चाहते हैं कि किसी भी इंसान को ऐसे ही माफ़ कर देना सही नहीं है ? इंसान को उसकी गलती का उचित दंड अवश्य मिलना चाहिए ?

वैसे अगर आपके कहने का तात्पर्य यही है तो शुक्रिया , आप सही हैं कि गलती की सज़ा तो अवश्य ही मिलनी चाहिए , पर ये काम अगर हम भगवान पर ही छोड़ दें तो ? न्याय तो होता ही है सभी के साथ पर वो न्याय करने का अधिकार हमें किसने दिया ? वो न्याय भगवान पर ही छोड़ना श्रेयस्कर है।
हमने ऊपर ‘इंडियन फिल्मी मोरल कोड’ को दर्शाने के लिए एक पुस्तक का अंश उद्घृत किया और बाद में यह भी बताया कि आजकल समाज में प्रचलित ‘इंडियन पब्लिक मोरल कोड’ क्या है. ‘इंडियन फिल्मी मोरल कोड’ उत्कृष्ट होने के कारण मैं इस कोड को ही मानता हूँ क्योंकि ‘इंडियन फिल्मी मोरल कोड’ में जहाँ पर कहानी के खलनायक को माफ़ी देने का कोई सवाल ही नहीं है, वहीँ पर कहानी की नायिका को पूर्ण माफ़ी देने का प्रावधान (provision) किया गया है, क्योंकि कहानी की नायिका नायक के साथ जितना भी अन्याय करे, वह द्वन्द्व(conflict)की श्रेणी में आता है। कहानी की नायिका यदि स्वंय खलनायक (antagonist) भी हो तो भी ‘इंडियन फिल्मी मोरल कोड’ के अनुरूप उसके साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया जा सकता जैसा कि एक खलनायक के साथ किया जाता है. इस बात को तमिल फिल्म पडैयप्पा में बखूबी दिखाया गया है.

soni pushpa
05-10-2014, 05:08 PM
पवित्रा जी ,, आपकी बात से मै सहमत हूँ , गलती सबसे होती है कोई छोटी गलती करते हैं तो कोई बड़ी गलतियाँ करते है, पर इन्सान को कभी कभी अपने साथ हुई छोटी गलती भी कचोटती है और हर पल हमे मन ही मन जलाते रहती है . और कई बार हम किसी की की गई बड़ी गलती को भी माफ़ कर देते है . जब छोटी गलती हमें सताते रहती है इसका मतलब है की हमने उस गलती को मन से लगा लिया है . और इस वजह से हम इन्सान दुखी होते रहते हैं , और जब हम किसी की बड़ी गलती से परेशां नही होते तब इसका मतलब है की गलती बड़ी थी फिर भी उसे दिल से नही लगाया गया , और हलकी फुलकी बात मानकर उसे जाने दिया. और इन्सान के लिए ये ही अच्छा है क्यूंकि किसी भी बात को जहन से लगाकर हम इन्सान दुनिया में जी नही सकते . क्यूंकि मन से लगाया तो सेहत और रिश्ते ख़राब होते हैं और रिश्ते चाहे जो भी हो हम रिश्तो के बिना जी नही सकते. दूजे ये की खुद के स्वास्थ्य पर भी किसी बात से (जलते रहने से ) असर होता ही है , आपके स्वाभाव में भी एक चिडचिडापन आ जाता है जिसकी असर आपके व्यवहार पर पड़ती है सो किसी की गलती या दुर्व्यवहार को मन बड़ा रखकर माफ़ करने में ही लाभ है इसमे आपका बढ़पन दिखेगा . आप खुश रहोगे, और समाज में एक सकारात्मक उर्जा का विकास होगा आपके एइसे व्यवहार से.

Pavitra
07-10-2014, 10:27 PM
पवित्रा जी ,, आपकी बात से मै सहमत हूँ , गलती सबसे होती है कोई छोटी गलती करते हैं तो कोई बड़ी गलतियाँ करते है, पर इन्सान को कभी कभी अपने साथ हुई छोटी गलती भी कचोटती है और हर पल हमे मन ही मन जलाते रहती है . और कई बार हम किसी की की गई बड़ी गलती को भी माफ़ कर देते है . जब छोटी गलती हमें सताते रहती है इसका मतलब है की हमने उस गलती को मन से लगा लिया है . और इस वजह से हम इन्सान दुखी होते रहते हैं , और जब हम किसी की बड़ी गलती से परेशां नही होते तब इसका मतलब है की गलती बड़ी थी फिर भी उसे दिल से नही लगाया गया , और हलकी फुलकी बात मानकर उसे जाने दिया. और इन्सान के लिए ये ही अच्छा है क्यूंकि किसी भी बात को जहन से लगाकर हम इन्सान दुनिया में जी नही सकते . क्यूंकि मन से लगाया तो सेहत और रिश्ते ख़राब होते हैं और रिश्ते चाहे जो भी हो हम रिश्तो के बिना जी नही सकते. दूजे ये की खुद के स्वास्थ्य पर भी किसी बात से (जलते रहने से ) असर होता ही है , आपके स्वाभाव में भी एक चिडचिडापन आ जाता है जिसकी असर आपके व्यवहार पर पड़ती है सो किसी की गलती या दुर्व्यवहार को मन बड़ा रखकर माफ़ करने में ही लाभ है इसमे आपका बढ़पन दिखेगा . आप खुश रहोगे, और समाज में एक सकारात्मक उर्जा का विकास होगा आपके एइसे व्यवहार से.


बिलकुल सही बात कही आपने, मन में अगर कड़वाहट रहेगी तो ज़िन्दगी खुशहाल बन ही नहीं सकती।

Pavitra
09-10-2014, 02:26 PM
आजकल हम देखते हैं कि लोगों में कुंठा , हताशा बहुत ज़्यादा आ गयी है। क्या कारण है कि लोग कुंठित हो जाते हैं. छोटी छोटी बातों पे गुस्सा होना या चिड़चिड़ाना ?

Pavitra
09-10-2014, 02:35 PM
मुझे लगता है इंसान Frustrate तब होता है जब कोई कार्य उसकी मर्ज़ी के अनुसार नहीं होता है। अर्थात जब भी कुछ ऐसा होता है जो या तो उसने Expect न किया हो या फिर उसकी इच्छा के विपरीत हो तो व्यक्ति Frustrate हो जाता है।

Pavitra
09-10-2014, 02:38 PM
इस कुंठा से बचने के उपाय क्या हैं ?
ऐसा क्या किया जाये जिससे हम कुंठित होने से बच सकें।

Pavitra
09-10-2014, 02:47 PM
अगर व्यक्ति Expectations कम रखे , जो हो रहा है उसको स्वीकार करे। जो हो रहा है हम न तो उसको बदल सकते हैं और न ही होने से रोक सकते हैं। पर एक चीज़ है जो हमारे नियंत्रण में होती है , हमारा " व्यवहार " …।
हम अपने व्यवहार को बदल सकते हैं , परिस्थितियां नहीं बदलेंगी पर उन परिस्थितयों का हमारे ऊपर क्या असर हो ये हम निर्धारित कर सकते हैं।

Pavitra
09-10-2014, 02:53 PM
अक्सर लोग सकारात्मक सोच(Positive Thinking) की बात करते हैं।
क्या है ये सकारात्मक सोच ?
क्या लाभ है सकारात्मक सोच का ?
क्या हमेशा सकारात्मक सोच संभव हो सकती है ?
हम कैसे विपरीत परिस्थितियों में भी सकारात्मक सोच रख सकते हैं ?

Pavitra
09-10-2014, 02:58 PM
सकारात्मक सोच का अर्थ ये नहीं है कि मेरे साथ सब कुछ अच्छा ही होगा। बल्कि सकारात्मक सोच का अर्थ है कि जो भी मेरे साथ होगा उससे मेरा कुछ न कुछ तो अच्छा होगा ही।

Pavitra
09-10-2014, 03:11 PM
हमारे साथ सब कुछ अच्छा - अच्छा ही हो ये तो संभव नहीं है। ज़िन्दगी है तो उतार-चढाव तो आएंगे ही। आज अगर हम खुश हैं तो कल गम मिलने ही हैं , और अगर कल गम मिले थे तो आज ख़ुशी नहीं मिलेगी ऐसा भी नहीं होता।

अगर ज़िन्दगी के ECG में Up-Downs नहीं होंगे तो हम जीवित हैं ये कैसे पता चलेगा।

Pavitra
12-10-2014, 11:53 PM
सकारात्मक सोच के बहुत से फायदे हैं , सकारात्मक सोच वाला व्यक्ति आत्मविश्वास से भरा होता है। उसे भरोसा होता है कि वो हर परिस्थिति का सामना कर सकता है। चित्त स्थिर होने की वजह से निर्णय लेने में उसे आसानी होती है। सकारात्मक सोच हमारे मस्तिष्क के साथ-साथ हमारे शरीर पर भी असर डालती है। जीवन में सकारात्मकता हो तो चहरे की आभा निश्चित तौर पर बढ़ती है , शरीर भी स्वस्थ्य होने लगता है।
मानसिक क्लेश दूर होते हैं , और बड़ी समस्याओं से भी आसानी से निपटने की ऊर्जा बानी रहती है।

Pavitra
13-10-2014, 12:00 AM
हमेशा सकारात्मक सोच संभव है , हम विपरीत परिस्थितियों में भी सकारात्मक सोच सकते हैं। इसके लिए ज़रूरत है तो थोड़े से अभ्यास की। अपने विचारों को थोड़ी-थोड़ी देर में जाँचिए कि आप क्या सोच रहे हैं ? जो सोच रहे हैं वो कल्पना मात्र है या उसका आपके जीवन से कोई सम्बन्ध हो सकता है ? अक्सर हम फालतू बातें ही सोचते रहते हैं , जैसे अगर ऐसा हो गया तो ? या ऐसा नहीं हुआ तो ? जो काम हुआ ही नहीं है अभी तक उसके बारे में सोच कर क्यों अपनी energy waste करना ?

खुद से प्यार करना शुरू कीजिये और अपने बारे में अच्छे विचार रखिये , अपने बारे में अच्छा सोचिये। अपनी तारीफ कीजिये , क्यूंकि आपकी बुराई करने के लिए तो दूसरे तैयार ही बैठे हैं।

ndhebar
13-10-2014, 02:58 AM
खुद से प्यार करना शुरू कीजिये और अपने बारे में अच्छे विचार रखिये , अपने बारे में अच्छा सोचिये। अपनी तारीफ कीजिये , क्यूंकि आपकी बुराई करने के लिए तो दूसरे तैयार ही बैठे हैं।

मैं इस पंक्तियों से शत फ़ीसदी सहमत हूँ और अपने जीवन में इन्हें अमल में भी लाता हूँ.

abhisays
13-10-2014, 04:28 AM
बहुत ही सही बातें शेयर कि हैं, पवित्रा जी आपने. इंसान इनको अगर अपने जीवन में फॉलो करे तो वाकई में ज़िन्दगी गुलज़ार बन जाए.

rajnish manga
13-10-2014, 07:24 AM
धन्यवाद पवित्रा जी. मैं आपकी बात से सहमत हूँ. सकारात्मक सोच ही वह mechanism है जो हमें जीवन में आने वाले हिचकोलों के बीच अक्षुण्ण बनाये रखता है. आपने सकारात्मक सोच व सकारात्मक उर्जा का सुन्दर विवेचन किया है तथा यह भी बताया कि हम किस प्रकार अभ्यास द्वारा इसे अपने व्यक्तित्व में उतार सकते हैं. मैं मानता हूँ कि सही सोच वाला व्यक्ति स्वयं भी स्वस्थ, सकारात्मक तथा प्रफुल्ल रहता है व अन्य व्यक्तियों, अपने परिवार और समाज को भी अधिक मजबूत करने व रहने लायक बनाता है.

emptymind
13-10-2014, 05:22 PM
इस कुंठा से बचने के उपाय क्या हैं ?
ऐसा क्या किया जाये जिससे हम कुंठित होने से बच सकें।
जैसी मर्ज वैसी दवा..... एक उदाहरण के साथ।

राम सेवक एक कार्यालय मे चपरासी के पद पर कार्यरत था। वह अपने अफसर से बड़ा त्रस्त रहता था। कितना भी अच्छे से काम करे, लेकिन अफसर उसे हमेशा प्रताड़ित करता रहता था। हर दिन बार-बार होने वाले प्रताड़ना से उसका मन अब कुंठित रहने लगा था। नौकरी करना भी मजबूरी थी। कार्यस्थल पर होने वाले प्रताड़ना से कुंठित होकर अब वो चिड़चिड़ा रहने लगा था और यह कुंठा घर मे बीवी बच्चो पर निकालने लगा।

उसके एक सहकर्मी मित्र सुरेश, जो की उसका पड़ोसी भी था, ने यह सब भाँप लिया। सुरेश ने जब राम सेवक से जानना चाहा कि - बात क्या है? तो उसने सब बता दिया और बोला की समझ मे नहीं आ रहा है की क्या करू?

तब सुरेश ने राम सेवक से कहा कि कल जब ऑफिस जाये तो अपने अफसर कि एक फोटो मांग कर लाये।

राम सेवक ने पूछा - अफसर का फोटो.... वो किस लिए?
सुरेश - पहले ले कार तो आओ, फिर देखो....

इसके साथ सुरेश ने अपनी पूरी प्लानिंग राम सेवक को बता दिया।

दूसरे दिन राम सेवक ऑफिस पहुंचा। थोड़ी देर बाद अफसर भी आ गए। अफसर ने आवाज देकर राम सेवक से पानी मंगवाया। राम सेवक पानी लेकर गया। सुबह का समय था, अफसर का बढ़िया मुड देखकर पानी रखते हुए राम सेवक - हुजूर, एक बात कहनी है।
अफसर (तल्खी के साथ) - क्या है बोलो?
राम सेवक - हुजूर, आप बहुत अच्छे अधिकारी है, आपके जैसा अफसर के अधीन मैंने कभी काम नहीं किया है? मै चाहता हूं, कि आपके जैसे अधिकारी कि तस्वीर अपने घर मे उचित स्थान पर रखकर, सुबह शाम दर्शन करू, इससे मेरा जीवन धन्य हो जाएगा।
राम सेवक कि चापलूसी से खुश होकर अफसर ने अपनी एक तस्वीर उसे दे दी। सुरेश के बताए अनुसार तस्वीर को फ्रेम कराकर घर मे एक टेबल पर रख दिया।

उसके बाद से राम-सेवक के व्यवहार मे बहुत परिवर्तन आ गया। अब वो घर आकर बहुत खुश रहता है, चिड़चिड़ापन भी खत्म हो गया, अब वो कुंठित भी नहीं रहता है, सब से हँसकर और अच्छे से बात करता है। हालांकि अफसर अभी भी वही है और बिलकुल वैसा ही है।

असल मे राम सेवक, हर रोज ऑफिस जाने से पहले और ऑफिस से आने के बाद अफसर के तस्वीर कि जूतो, चप्पलों और घुस्सो से जी भर कर पिटाई करता है, जिससे उसकी भडांस निकाल जाती है और वो अब कुंठा से उबर चुका है।

Rajat Vynar
13-10-2014, 05:44 PM
खुद से प्यार करना शुरू कीजिये और अपने बारे में अच्छे विचार रखिये , अपने बारे में अच्छा सोचिये। अपनी तारीफ कीजिये
मज़ाक कर रहीं हैं आप, पवित्रा जी? अरे, ये तो बड़ी बुरी बीमारी के लक्षण है. पढ़िए मेरा सूत्र ‘आत्मरतिक/Narcissist’- http://myhindiforum.com/showthread.php?p=533335#post533335

rajnish manga
13-10-2014, 08:36 PM
जैसी मर्ज वैसी दवा..... एक उदाहरण के साथ।

राम सेवक एक कार्यालय मे चपरासी के पद पर कार्यरत था। वह अपने अफसर से बड़ा त्रस्त रहता था।
.....
उसके बाद से राम-सेवक के व्यवहार मे बहुत परिवर्तन आ गया। अब वो घर आकर बहुत खुश रहता है, चिड़चिड़ापन भी खत्म हो गया, अब वो कुंठित भी नहीं रहता है, सब से हँसकर और अच्छे से बात करता है। हालांकि अफसर अभी भी वही है और बिलकुल वैसा ही है।

असल मे राम सेवक, हर रोज ऑफिस जाने से पहले और ऑफिस से आने के बाद अफसर के तस्वीर कि जूतो, चप्पलों और घुस्सो से जी भर कर पिटाई करता है, जिससे उसकी भडांस निकाल जाती है और वो अब कुंठा से उबर चुका है।

महोदय emptymind साहब, आपने अपनी बात समझाने के लिये जो प्रसंग प्रस्तुत किया है वह न सिर्फ अत्यंत रोचक है बल्कि मन की भड़ास निकालने का (वक्ते-ज़रूरत) अच्छा व लोकतांत्रिक तरीका है. धन्यवाद.

Pavitra
13-10-2014, 10:35 PM
जैसी मर्ज वैसी दवा..... एक उदाहरण के साथ।

राम सेवक एक कार्यालय मे चपरासी के पद पर कार्यरत था। वह अपने अफसर से बड़ा त्रस्त रहता था। कितना भी अच्छे से काम करे, लेकिन अफसर उसे हमेशा प्रताड़ित करता रहता था। हर दिन बार-बार होने वाले प्रताड़ना से उसका मन अब कुंठित रहने लगा था। नौकरी करना भी मजबूरी थी। कार्यस्थल पर होने वाले प्रताड़ना से कुंठित होकर अब वो चिड़चिड़ा रहने लगा था और यह कुंठा घर मे बीवी बच्चो पर निकालने लगा।

उसके एक सहकर्मी मित्र सुरेश, जो की उसका पड़ोसी भी था, ने यह सब भाँप लिया। सुरेश ने जब राम सेवक से जानना चाहा कि - बात क्या है? तो उसने सब बता दिया और बोला की समझ मे नहीं आ रहा है की क्या करू?

तब सुरेश ने राम सेवक से कहा कि कल जब ऑफिस जाये तो अपने अफसर कि एक फोटो मांग कर लाये।

राम सेवक ने पूछा - अफसर का फोटो.... वो किस लिए?
सुरेश - पहले ले कार तो आओ, फिर देखो....

इसके साथ सुरेश ने अपनी पूरी प्लानिंग राम सेवक को बता दिया।

दूसरे दिन राम सेवक ऑफिस पहुंचा। थोड़ी देर बाद अफसर भी आ गए। अफसर ने आवाज देकर राम सेवक से पानी मंगवाया। राम सेवक पानी लेकर गया। सुबह का समय था, अफसर का बढ़िया मुड देखकर पानी रखते हुए राम सेवक - हुजूर, एक बात कहनी है।
अफसर (तल्खी के साथ) - क्या है बोलो?
राम सेवक - हुजूर, आप बहुत अच्छे अधिकारी है, आपके जैसा अफसर के अधीन मैंने कभी काम नहीं किया है? मै चाहता हूं, कि आपके जैसे अधिकारी कि तस्वीर अपने घर मे उचित स्थान पर रखकर, सुबह शाम दर्शन करू, इससे मेरा जीवन धन्य हो जाएगा।
राम सेवक कि चापलूसी से खुश होकर अफसर ने अपनी एक तस्वीर उसे दे दी। सुरेश के बताए अनुसार तस्वीर को फ्रेम कराकर घर मे एक टेबल पर रख दिया।

उसके बाद से राम-सेवक के व्यवहार मे बहुत परिवर्तन आ गया। अब वो घर आकर बहुत खुश रहता है, चिड़चिड़ापन भी खत्म हो गया, अब वो कुंठित भी नहीं रहता है, सब से हँसकर और अच्छे से बात करता है। हालांकि अफसर अभी भी वही है और बिलकुल वैसा ही है।

असल मे राम सेवक, हर रोज ऑफिस जाने से पहले और ऑफिस से आने के बाद अफसर के तस्वीर कि जूतो, चप्पलों और घुस्सो से जी भर कर पिटाई करता है, जिससे उसकी भडांस निकाल जाती है और वो अब कुंठा से उबर चुका है।

:laughing::laughing::laughing::laughing::laughing: :laughing:

सटीक प्रसंग चुना आपने। और इसके माध्यम से एक और तरीका सीखा हमने कुंठा मिटाने का - अगर किसी चीज़ को स्वीकार करने में परेशानी हो तो खुद की प्रतिक्रिया का तरीका बदलें , खुद को परेशान करने की जगह थोड़ी सी भड़ास निकाल लेने से भी कुंठा खत्म हो जाती है।

jaise "Jab we met" movie mein Kareena phone par apne bf ko gaali dekar aur shahid kapoor apni gf ka photo jalaa kar apni bhadaas nikaalte hain aur frustration kam karte hain . ....:giggle:

Pavitra
13-10-2014, 10:36 PM
मज़ाक कर रहीं हैं आप, पवित्रा जी? अरे, ये तो बड़ी बुरी बीमारी के लक्षण है. पढ़िए मेरा सूत्र ‘आत्मरतिक/Narcissist’- http://myhindiforum.com/showthread.php?p=533335#post533335

achha :( okay main chk krti hu

Pavitra
13-10-2014, 11:23 PM
मज़ाक कर रहीं हैं आप, पवित्रा जी? अरे, ये तो बड़ी बुरी बीमारी के लक्षण है. पढ़िए मेरा सूत्र ‘आत्मरतिक/Narcissist’- http://myhindiforum.com/showthread.php?p=533335#post533335

रजत जी खुद से प्यार करने या खुद की तारीफ करने का मतलब ये नहीं कि हम आत्ममोही हो गए हैं। आप तो मेरी साधारण सी बात को बहुत ही बड़े स्तर पर ले गए।
:giggle:

Pavitra
14-10-2014, 11:04 PM
जीवन में आशावादी होना बहुत ज़रूरी है। जब तक जीवन में आशा रहती है तब तक जीवन जीवंत रहता है , और जिस दिन आशा मर जाती है उस दिन चाहे सांसें चल रही हों पर जीवन समाप्त हो जाता है।

Pavitra
14-10-2014, 11:18 PM
निराशा जीवन में नकारात्मकता भर देती है।

Rajat Vynar
15-10-2014, 09:16 AM
रजत जी खुद से प्यार करने या खुद की तारीफ करने का मतलब ये नहीं कि हम आत्ममोही हो गए हैं। आप तो मेरी साधारण सी बात को बहुत ही बड़े स्तर पर ले गए।
:giggle:
इसके लिए हिंदी में एक मुहावरा है- बात को बतंगड बनाना. :giggle:आप लोगों को बुरा लगता हो तो बोलिए, यह गीत गाता हुआ हिंदी फोरम छोड़ के अभी चल देता हूँ- 'छोड़ के हिंदी फोरम हम विदेशी हो गए...'

emptymind
15-10-2014, 02:00 PM
जीवन में आशावादी होना बहुत ज़रूरी है। जब तक जीवन में आशा रहती है तब तक जीवन जीवंत रहता है , और जिस दिन आशा मर जाती है उस दिन चाहे सांसें चल रही हों पर जीवन समाप्त हो जाता है।

निराशा जीवन में नकारात्मकता भर देती है।
इस मुद्दे पर मेरा नजरिया बिलकुल स्पष्ट है -

१. ऋण कृत्वा, घृतम पीवेत:
२. टेंशन लेने का नहीं - देने का
३. क्या लेकर आए थे, क्या लेकर जाओगे
४. पूत सपूत तो क्या संचय - पूत कपूत तो क्या संचय
५. आज मेरे जीवन का सबसे बेहतरीन दिन है - जियो (पियो) जी भर के।

ये सोच आपको कभी निराशा के तरफ नहीं ले जाएगी।

और अंत मे -
दिमाग का इस्तेमाल सेहत के लिए हानिकारक है
अत: खोपड़ी खाली (emptymind) रखे।

Pavitra
15-10-2014, 10:24 PM
इसके लिए हिंदी में एक मुहावरा है- बात को बतंगड बनाना. :giggle:आप लोगों को बुरा लगता हो तो बोलिए, यह गीत गाता हुआ हिंदी फोरम छोड़ के अभी चल देता हूँ- 'छोड़ के हिंदी फोरम हम विदेशी हो गए...'

अरे नहीं रजत जी , आपकी किसी भी बात का हमें बुरा नहीं लगता ,और मुझे नहीं लगता कि किसी को भी बुरा लगता होगा।
आपके विचार वास्तव में ही ज्ञानप्रद होते हैं , और अब अगर हम सभी बिना बहस के ही एक दूसरे की बात स्वीकार कर लेंगे तो हमारी अपनी समझ कभी विकसित नहीं हो पायेगी।
इसलिए आगे भी आपसे अनुरोध है कि मेरे ब्लॉग्स पर अपने विचार रखते रहिएगा , और मेरे किसी भी कमेंट का बुरा नहीं मानियेगा , और फोरम छोड़ने का विचार भी अपने दिमाग में मत लाइयेगा।

Rajat Vynar
16-10-2014, 12:11 PM
अगर हम सभी बिना बहस के ही एक दूसरे की बात स्वीकार कर लेंगे तो हमारी अपनी समझ कभी विकसित नहीं हो पायेगी।


मैं आपके विचारों से सहमत हूँ. इंसान की समझदानी विकसित होने में समीक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है.

Pavitra
16-10-2014, 11:19 PM
अक्सर लोग कहते हैं कि अपने विचारों पर ध्यान दीजिये क्यूंकि हम जैसा सोचते हैं , वैसे ही बन जाते हैं।

मैं इस बात पर सौ फ़ीसदी यकीन करती हूँ।

हमारी सोच ही होती है जो हमारा भाग्य निर्धारित करती है।

इसलिए आप ज़िन्दगी में जो पाना चाहते हैं उसे पाने के लिए ऐसा सोचना शुरू कर दीजिये कि वो आपको मिल चुका है , और देखिएगा एक दिन वास्तव में वो आपके पास होगा।

Pavitra
16-10-2014, 11:23 PM
अपने विचारों पर ध्यान दीजिये , क्यूंकि आपके विचार आपके शब्द बन जाते हैं।

अपने शब्दों पर ध्यान दीजिये , क्यूंकि आपके शब्द आपकी क्रिया बन जाते हैं।

अपनी क्रियाओं पर ध्यान दीजिये , क्यूंकि आपकी क्रियाएँ आपकी आदतें बन जाती हैं।

अपनी आदतों पर ध्यान दीजिये , क्यूंकि आपकी आदतें आपका चरित्र बन जाती हैं।

अपने चरित्र पर ध्यान दीजिये , क्यूंकि आपका चरित्र आपका भाग्य बन जाता है।

Pavitra
16-10-2014, 11:25 PM
अगर आप अपना भाग्य बदलना चाहते हैं तो अपने विचार बदलना शुरू कीजिये।

अपनी किस्मत , अपने हाथ।

Pavitra
21-10-2014, 11:26 PM
जिज्ञासा : अक्सर हमारे साथ ऐसा होता है कि हम बहुत कोशिश करते हैं कोई रिश्ता बचाने की , पर फिर भी उस रिश्ते को बचा नहीं पाते। वास्तव में हम निर्णय नहीं कर पाते कि हमारे लिए सही क्या है ? उस व्यक्ति को छोड़ देना या निरंतर प्रयास करते रहना कि रिश्ता दोबारा जुड़ जाये।

मैं व्यक्तिगत तौर पर कोई भी रिश्ता ख़त्म करने में विश्वास नहीं करती , मुझे लगता है कि या तो रिश्ता जोड़ो ही नहीं और अगर रिश्ता बन गया है तो फिर उसको अंतिम सांस तक निभाना चाहिए। परन्तु आजकल ऐसा बहुत कम देखने में आता है कि लोग रिश्ते अंतिम सांस तक निभाएं। और आजकल बढ़ते Divorce cases इस बात के सूचक हैं कि लोगों के लिए रिश्तों की आज कोई ख़ास अहमियत नहीं रह गयी है।

मेरी जिज्ञासा यह है कि यह निर्णय कैसे लें और कब लें कि रिश्ता बनाये रखना है या ख़त्म करना है ?

Pavitra
28-10-2014, 10:54 PM
आजकल हम सभी एक दूसरे की नक़ल करने में व्यस्त रहते हैं। हम अपनी वास्तविकता भूल चुके हैं और सामने वाला जैसे काम करता है हम भी उसकी देखा देखी वैसे ही काम करने लगते हैं।

जैसे - उसने मुझे मेरे जन्मदिन पर शुभकामनाएं नहीं दी तो मैं भी उसको शुभकामनाएं नहीं दूंगा , या वो हमें कभी फ़ोन करते हैं जो मैं उन्हें फ़ोन करूँ ? , उसने मुझसे आगे बढ़ कर खुद से बात नहीं की तो मैं भी खुद से क्यों बात करूँ उसके साथ ?

इस नक़ल करने की आदत के कारण ही आजकल ज़्यादा दूरियां पैदा होती हैं रिश्तों में।

हम अगर एक दूसरे की नक़ल करना छोड़ दें , और बिना किसी अहं के रिश्ते निभाने लगें , रिश्तों में पहल करने लगें , खुद से पहले दूसरों के बारे में सोचने लगें तो ज़िन्दगी की ज़्यादातर समस्याएं तो समाप्त ही हो जाएँगी।

rafik
29-10-2014, 10:51 AM
आजकल हम सभी एक दूसरे की नक़ल करने में व्यस्त रहते हैं। हम अपनी वास्तविकता भूल चुके हैं और सामने वाला जैसे काम करता है हम भी उसकी देखा देखी वैसे ही काम करने लगते हैं।
जैसे - उसने मुझे मेरे जन्मदिन पर शुभकामनाएं नहीं दी तो मैं भी उसको शुभकामनाएं नहीं दूंगा , या वो हमें कभी फ़ोन करते हैं जो मैं उन्हें फ़ोन करूँ ? , उसने मुझसे आगे बढ़ कर खुद से बात नहीं की तो मैं भी खुद से क्यों बात करूँ उसके साथ ?

https://scontent-a-sin.xx.fbcdn.net/hphotos-xfa1/v/t1.0-9/1921876_677659768944003_88568636_n.jpg?oh=61ef9ea3 6d04fea0b236a7ada4134a46&oe=54F7C13D

soni pushpa
29-10-2014, 09:52 PM
very tru....bhai

rafik
30-10-2014, 10:03 AM
लोहे की दुकान में अपने पिता के साथ काम कर रहे एक बालक ने अचानक ही अपने पिता से
पुछा – “पिताजी इस दुनिया में मनुष्य की क्या कीमत होती है ?”पिताजी एक छोटे से बच्चे से ऐसा गंभीर सवाल सुन कर हैरान रह गये. फिर वे बोले “बेटे एक मनुष्य की कीमत आंकना बहुत मुश्किल है, वो तो अनमोल है.” बालक – क्या सभी उतना ही कीमती और महत्त्वपूर्ण हैं ?
पिताजी – हाँ बेटे. बालक कुछ समझा नही उसने फिर सवाल किया – तो फिर इस दुनिया मे कोई गरीब तो कोई अमीर क्यो है? किसी की कम रिस्पेक्ट तो कीसी की ज्यादा क्यो होती है? सवाल सुनकर पिताजी कुछ देर तक शांत रहे और फिर बालक से स्टोर रूम में पड़ा एक लोहे का रॉड
लाने को कहा. रॉड लाते ही पिताजी ने पुछा – इसकी क्या कीमत होगी? बालक – 200 रूपये.
पिताजी – अगर मै इसके बहुत से छोटे-छटे कील बना दू तो इसकी क्या कीमत हो जायेगी ?
बालक कुछ देर सोच कर बोला – तब तो ये और महंगा बिकेगा लगभग 1000 रूपये का .
पिताजी – अगर मै इस लोहे से घड़ी के बहुत सारे स्प्रिंग बना दूँ तो? बालक कुछ देर गणना करता रहा और फिर एकदम से उत्साहित होकर बोला ” तब तो इसकी कीमत बहुत ज्यादा हो जायेगी.”
फिर पिताजी उसे समझाते हुए बोले – “ठीक इसी तरह मनुष्य की कीमत इसमे नही है
की अभी वो क्या है, बल्की इसमे है कि वो अपने आप को क्या बना सकता है.” बालक अपने पिता की बात समझ चुका था .
Friends अक्सर हम अपनी सही कीमत आंकने मे गलती कर देते है. हम अपनी present status को देख कर अपने आप को valueless समझने लगते है. लेकिन हममें हमेशा अथाह
शक्ति होती है. हमारा जीवन हमेशा सम्भावनाओ से भरा होता है.
हमारी जीवन मे कई बार स्थितियाँ अच्छी नही होती है पर इससे हमारी Value कम नही होती है. मनुष्य के रूप में हमारा जन्म इस दुनिया मे हुआ है इसका मतलब है हम बहुत special और important हैं . हमें हमेशा अपने आप को improve करते रहना चाहिये और अपनी सही कीमत प्राप्त करने की दिशा में बढ़ते रहना चाहिये.

Pavitra
30-10-2014, 02:30 PM
लोहे की दुकान में अपने पिता के साथ काम कर रहे एक बालक ने अचानक ही अपने पिता से
पुछा – “पिताजी इस दुनिया में मनुष्य की क्या कीमत होती है ?”
पिताजी उसे समझाते हुए बोले – “ठीक इसी तरह मनुष्य की कीमत इसमे नही है
की अभी वो क्या है, बल्की इसमे है कि वो अपने आप को क्या बना सकता है.” बालक अपने पिता की बात समझ चुका था .
Friends अक्सर हम अपनी सही कीमत आंकने मे गलती कर देते है. हम अपनी present status को देख कर अपने आप को valueless समझने लगते है. लेकिन हममें हमेशा अथाह
शक्ति होती है. हमारा जीवन हमेशा सम्भावनाओ से भरा होता है.
हमारी जीवन मे कई बार स्थितियाँ अच्छी नही होती है पर इससे हमारी Value कम नही होती है. मनुष्य के रूप में हमारा जन्म इस दुनिया मे हुआ है इसका मतलब है हम बहुत special और important हैं . हमें हमेशा अपने आप को improve करते रहना चाहिये और अपनी सही कीमत प्राप्त करने की दिशा में बढ़ते रहना चाहिये.

Thank u so much Rafik ji .....बहुत सही कहा आपने , हम सभी को भगवान ने एक जैसे बनाया है , पर जो व्यक्ति वक़्त रहते ये समझ लेता है कि उसको दिए गए जीवन का उद्देश्य क्या है और ये समझते हुए जब वो अपनी योग्यता बढ़ाने के लिए प्रयास करना प्रारम्भ कर देता है तभी से उसका विकास प्रारम्भ हो जाता है।
ये जीवन हमें खाने , पीने , सोने के लिए नहीं बल्कि एक मनुष्य के रूप में निरंतर खुद का विकास करने के लिए मिला है।

आपकी ये कहानी पढ़ कर मुझे मेरे एक मित्र की याद गयी जिसके मार्गदर्शन से मैं अपने जीवन के उद्देश्य तलाश रही हूँ।

rafik
31-10-2014, 03:20 PM
http://3.bp.blogspot.com/-z3wVG_RFbws/UCE5ysBrhdI/AAAAAAAABDk/cFrG5bArQM8/s320/12325805-woman-hand-with-glass-of-water-isolated-on-white-background.jpg

एक प्रोफ़ेसर ने अपने हाथ में पानी से भरा एक glass पकड़ते हुए class शुरू की . उन्होंने उसे ऊपर उठा कर सभी students को दिखाया और पूछा , ” आपके हिसाब से glass का वज़न कितना होगा?”


’50gm….100gm…125gm’…छात्रों ने उत्तर दिया.


” जब तक मैं इसका वज़न ना कर लूँ मुझे इसका सही वज़न नहीं बता सकता”. प्रोफ़ेसर ने कहा. ” पर मेरा सवाल है:


यदि मैं इस ग्लास को थोड़ी देर तक इसी तरह उठा कर पकडे रहूँ तो क्या होगा ?”


‘कुछ नहीं’ …छात्रों ने कहा.


‘अच्छा , अगर मैं इसे मैं इसी तरह एक घंटे तक उठाये रहूँ तो क्या होगा ?” , प्रोफ़ेसर ने पूछा.


‘आपका हाथ दर्द होने लगेगा’, एक छात्र ने कहा.


” तुम सही हो, अच्छा अगर मैं इसे इसी तरह पूरे दिन उठाये रहूँ तो का होगा?”


” आपका हाथ सुन्न हो सकता है, आपके muscle में भारी तनाव आ सकता है , लकवा मार सकता है और पक्का आपको hospital जाना पड़ सकता है”….किसी छात्र ने कहा, और बाकी सभी हंस पड़े…


“बहुत अच्छा , पर क्या इस दौरान glass का वज़न बदला?” प्रोफ़ेसर ने पूछा.


उत्तर आया ..”नहीं”


” तब भला हाथ में दर्द और मांशपेशियों में तनाव क्यों आया?”


Students अचरज में पड़ गए.


फिर प्रोफ़ेसर ने पूछा ” अब दर्द से निजात पाने के लिए मैं क्या करूँ?”


” ग्लास को नीचे रख दीजिये! एक छात्र ने कहा.


” बिलकुल सही!” प्रोफ़ेसर ने कहा.


Life की problems भी कुछ इसी तरह होती हैं. इन्हें कुछ देर तक अपने दिमाग में रखिये और लगेगा की सब कुछ ठीक है.उनके बारे में ज्यदा देर सोचिये और आपको पीड़ा होने लगेगी.और इन्हें और भी देर तक अपने दिमाग में रखिये और ये आपको paralyze करने लगेंगी. और आप कुछ नहीं कर पायेंगे.


अपने जीवन में आने वाली चुनातियों और समस्याओं के बारे में सोचना ज़रूरी है, पर उससे भी ज्यादा ज़रूरी है दिन के अंत में सोने जाने से पहले उन्हें नीचे रखना.इस तरह से, आप stressed नहीं रहेंगे, आप हर रोज़ मजबूती और ताजगी के साथ उठेंगे और सामने आने वाली किसी भी चुनौती का सामना कर सकेंगे .

soni pushpa
04-11-2014, 01:00 AM
पवितत्रा जी ,' आपने जेइसे की कहा की आजकल हम दूसरों की नक़ल करने लगे हैं अपनी वास्तविकता को भूल चुके है जेइसे की उसने मुझे जन्म दिन की शुभ कामनाएं न दी तो मैक्यों दूँ वो फोन नही करते तो मै फोन क्यों करू ' ... यहाँ मेरा मानना है की ये ये नक़ल नही अपितु अहंकार है जब इन्सान में नम्रता होती है तब वो कोई बोले न बोले फिर भी उसे बुलाता है , दुसरो की खुशियों में बधाइयाँ देता है ., या खेइरियत पूछने के लिए ही सही फोन करता है , किन्तु जब ईगो याने की अहंकार आड़े आता है तब इन्सान चाहते हुए भी अपने ईगो में धीरे धीरे और अनजाने में ही सही आपने रिश्तों से दूर होते जाता है या भले रिश्ते रह जाते हैं किन्तु अपनापन खो ही देता है फिर सिरफ़ दिखावट के रिश्ते रह जाते हैं , और तब एइसे रिश्तों में जान नही होती बस लोग निभाने के लिए रिश्ते निभाए जाते हैं .
अब रही दूसरो के नकल को छोड़ने की बात तो मै फिर कहूँगी की नम्रता और अपनापन दो एईसी चीज़े हैं जो इन्सान को आपकी और आकर्षित किये बिना नही रहती. कोई अकडू इन्सान भी जब सामने वाले से नम्रता से भरा अपनापन पाता है तब झुकने पर मजबूर हो जाता है ... किन्तु .... कई लोगो का अहंकार इतना ज्यदा होता है की उन्हें दूसरों की नम्रता मुर्खता दिखती है इसलिए इतना जरुर कहना चाहूंगी यहाँ की अपने अहंकार को भले आगे न बढ़ने दो किन्तु आपने सम्मान को स्वाभिमान को बनाये रखो इतना झुकना भी अच्छा नही की लोग आपको मुर्ख समझने लगे ...... हाँ प्यार , अपनापन , सौहार्द्य की भावना बहुत अच्छा गुण हैं पर तब, जब सामने वाले इन्सान में उसे समझने की शक्ति हो न की वो जिसके लिए आप प्यार, सम्मान , अपनेपन की भावना रखते हो आपको बुध्धिहीन समझे .

अंत में पवित्रा जी आपको बधाई देना चाहूंगी इतने अछे विषय को यहाँ रखने के लिए .

Pavitra
13-11-2014, 09:12 PM
अक्सर हमारी शिकायत रहती है कि - " वो मुझे प्यार नहीं करते या मुझ पर भरोसा नहीं उन्हें"…वास्तविकता यह है कि हम हमेशा दूसरे से यह अपेक्षा रखते हैं कि वो हमें प्यार करे , वो हमें ट्रस्ट करे। और जब हमें दूसरे व्यक्ति से वो अपेक्षित व्यवहार नहीं मिलता तो हम निराश होते हैं और दूसरे व्यक्ति को ही दोष देते हैं।

आप कभी बैंक जाएं और वहां जाकर पैसे मांगें तो क्या आपको पैसे मिलेंगे ? बिल्कुल मिलेंगे पर सिर्फ तब जब आपने वहां पैसे जमा किये हुए हों , वो भी सिर्फ उतने ही जितने आपने जमा किये होंगे। आपको overdraft भी सिर्फ तब मिलेगा जब आपकी बैंक को आपके ऊपर भरोसा हो कि आप वो एक्स्ट्रा पैसे लौटा सकते हैं।

ठीक इसी तरह अगर आप प्यार,विश्वास, और अच्छा व्यवहार चाहते हैं तो पहले आपको दूसरों को वो सब देना होगा। उन्हें प्यार दीजिये , जिससे आपको बदले में प्यार मिल सके। उनपर विश्वास कीजिये , उनसे अच्छा व्यवहार कीजिये और अपने लिए भी वैसा ही व्यवहार बदले में पाइए।

जब तक बैंक अकाउंट में पैसा डिपॉज़िट नहीं करेंगे तो ज़रूरत के समय पैसा मिल कैसे सकेगा ?

Pavitra
13-11-2014, 09:35 PM
हम अक्सर सोचते हैं कि मैं तो सभी के साथ अच्छा करता हूँ पर फिर भी मुझे बदले में अच्छाई नहीं मिलती , उल्टा बुरा ही हो जाता है। बहुत बार हमारा भगवान के ऊपर से विश्वास उठ जाता है कि भगवान के घर न्याय नहीं है , अच्छा करने पर भी बुरा फल मिला।

भगवान जब हमें इस दुनिया में भेजते हैं तो हमें बराबर मात्रा में अच्छाई और बुराई देते हैं या कह लीजिये बराबर मात्रा में पाप और पुण्य देते हैं। या हमारे पूर्व जन्म के कर्मों के आधार पर पाप और पुण्य देकर भेजते हैं। अब ज़िन्दगी एक पाइप की तरह है , जिसमें ये पुण्य और पाप भरे हुए होते हैं। अब जब हम कोई अच्छा कार्य करते हैं तो हमारे उस पाइप में वो अच्छाई जमा हो जाती है , अब जब एक तरफ से अच्छाई अंदर जाती है तो दूसरी तरफ से पाइप भरा होने के कारण बुराई बाहर निकल आती है। और हम सोचते हैं कि हमारे साथ अन्याय हुआ हमने अच्छा कर्म किया पर बदले में बुरा फल मिला। वहीँ जब हम कोई बुरा कर्म करते हैं तो वो पाप के रूप में उस पाइप में जमा हो जाती है अब जब बुराई अंदर जाती है तो दूसरी तरफ से अच्छाई बहार निकल आती है , और हम खुश हो जाते हैं कि बुरे कर्म का अच्छा फल मिला यानि अब से बुरे कर्म ही करने हैं। और ये क्रम यूँही लगातार चलता रहता है।

ज़िन्दगी में अगर अच्छे कर्म करने पर बुरा फल मिले तो निराश न हों , क्यूंकि आपके हर अच्छे कर्म के साथ उस पाइप में एक पुण्य अंदर जाता है और दूसरी तरफ से एक बुराई बहार आ जाती है। इसलिए अच्छे कर्म करते रहिये , और आपके हर पुण्य के साथ आपके पाप बाहर चले जायेंगे। और एक दिन आपके अकाउंट में सिर्फ पुण्य ही पुण्य , अच्छाई ही अच्छाई बचेगी और जब आप अच्छे कर्म करेंगे , तो उस पाइप में पुण्य अंदर जायेगा और दूसरी तरफ से पुण्य या अच्छाई ही बाहर आएगी।

Pavitra
20-11-2014, 10:25 PM
अगर मन का हो तो अच्छा
लेकिन अगर मन का ना हो तो और भी अच्छा
क्यूंकि वो भगवान के मन का होता है

Pavitra
25-11-2014, 02:58 PM
हम सभी अपनी ज़िन्दगी अपने हिसाब से जीना चाहते हैं। हर रोज़ प्लानिंग करते हैं कि आज क्या करना है , कल क्या करना है। कभी कभी तो हम अपनी पूरी ज़िन्दगी की ही प्लानिंग कर लेते हैं। और फिर एक दिन सब कुछ बिलकुल अपोजिट हो जाता है हमारी प्लानिंग के , हम सोचते रह जाते हैं कि हमने तो पूरी कोशिश की सब कुछ अपनी प्लानिंग के अनुसार करने की फिर ये सब कुछ उल्टा कैसे हो गया ???

तब याद आता है कि ये ज़िन्दगी जो हम जी रहे हैं ये तो हमारी है ही नहीं , ये तो किसी और की दी हुई है , तो जब ज़िन्दगी किसी और की है तो फिर मर्ज़ी हमारी कैसे हो सकती है , मर्ज़ी भी तो किसी और की ही चलेगी न।

हम चाहें कितनी ही प्लानिंग क्यों न कर लें , एक दिन भगवान आते है और कहते हैं कि तेरी ज़िन्दगी मेरी प्लानिंग के हिसाब से चलेगी तेरी प्लानिंग के हिसाब से नहीं। और तेरी ज़िन्दगी की प्लानिंग तो मैं पहले ही कर चुका हूँ। तू तो बस वो कर जो मैं तुझसे करवाना चाहता हूँ।

और बाद में हमें समझ आता है कि जो हुआ अच्छा ही हुआ। हमारी नज़र बहुत छोटी है , हम देख नहीं पाते कि हमारे लिए क्या अच्छा है और क्या नहीं ? अरे हम तो कल क्या होगा ये भी नहीं जान सकते तो भविष्य में क्या होगा ये कैसे जान सकते हैं ? वो भगवान हैं उनकी नज़र व्यापक है वो जानते हैं कि हमारे लिए क्या अच्छा है इसलिए ज़िन्दगी में जो हो रहा है उसे होने दें , जो परिस्थिति जैसे आपके सामने आये उसे वैसे ही स्वीकार कर लें और स्वीकार करते हुए निर्णय लें। परिस्थिति से लड़ेंगे तो सिर्फ दुःख मिलेगा।

rajnish manga
26-11-2014, 09:11 PM
..... इसलिए ज़िन्दगी में जो हो रहा है उसे होने दें , जो परिस्थिति जैसे आपके सामने आये उसे वैसे ही स्वीकार कर लें और स्वीकार करते हुए निर्णय लें। परिस्थिति से लड़ेंगे तो सिर्फ दुःख मिलेगा।

यदि हम प्रारब्ध को ही सब कुछ मान कर चलते हैं तो हम निपट भाग्यवादी ही तो कहलायेंगे. फिर परिस्थिति को बदलने के लिये प्रयास करने की क्या ज़रुरत है. व्यक्ति हो, समाज हो या देश हो, फिर तो किसी को प्रयास करने की ज़रुरत नहीं है. हम अपनी दुर्दशा, अपने आसपास की गन्दगी और भृष्टाचार को दूर करने के लिये कोई कोशिश क्यों करें ? श्री कृष्ण के वचन - "कर्मण्ये वाधिकारस्ते ...." को भी छोड़ देना चाहिये. उच्च शिक्षा या कहें कि फिर तो शिक्षा की भी जरुरत नहीं है. कम्पटीशन की तैयारी भी बेमानी है, बिमारी का इलाज बेमानी है, चुनावों में व्यक्तियों की परख करना बेमानी है. फिर तो हमारे आसपास कोई दाभोलकर दिखाई नहीं देना चाहिये. राम भली करेंगे.

soni pushpa
27-11-2014, 12:15 AM
[size="3"]हम सभी अपनी ज़िन्दगी अपने हिसाब से जीना चाहते हैं। हर रोज़ प्लानिंग करते हैं कि आज क्या करना है , कल क्या करना है। कभी कभी तो हम अपनी पूरी ज़िन्दगी की ही प्लानिंग कर लेते हैं। और फिर एक दिन सब कुछ बिलकुल अपोजिट हो जाता है हमारी प्लानिंग के , हम सोचते रह जाते हैं कि हमने तो पूरी कोशिश की सब कुछ अपनी प्लानिंग के अनुसार करने की फिर ये सब कुछ उल्टा कैसे हो गया ???
हमारी नज़र बहुत छोटी है , हम देख नहीं पाते कि हमारे लिए क्या अच्छा है और क्या नहीं ? अरे हम तो कल क्या होगा ये भी नहीं जान सकते]

[QUOTE=Pavitra;540597][size="3"]हम सभी अपनी ज़िन्दगी अपने हिसाब से जीना चाहते हैं। हर रोज़ प्लानिंग करते हैं कि आज क्या करना है , कल क्या करना है। कभी कभी तो हम अपनी पूरी ज़िन्दगी की ही प्लानिंग कर लेते हैं। और फिर एक दिन सब कुछ बिलकुल अपोजिट हो जाता है हमारी प्लानिंग के , हम सोचते रह जाते हैं कि हमने तो पूरी कोशिश की सब कुछ अपनी प्लानिंग के अनुसार करने की फिर ये सब कुछ उल्टा कैसे हो ग




कर्म की व्याख्या हर किसी इन्सान ने अपने अपने विचारो अनुसार की है किन्तु जहाँ तक मेने सुना है समझा है पवित्रा जी की आप कितनेभी पुण्य कर्म करो फिर भी पाप कर्म का फल भुगतना तो पड़ता ही है इन्सान को . यदि पाप करके फिर १०० गरीब को खाना खिला दिया तो उस इन्सान का पाप कभी धुल नही सकता एक न एक दिन उसे उसके पापों की सजा मिलती ही है फिर वो चाहे किसी भी रूप में क्यों न हो. कहते हैं न की अनजाने में किये पाप की सजा भी भुगतनी ही पड़ती है जिसका सबसेबड़ा उदहारण है भगवन रामचंद्र जी के पिता दसरथ जी जिन्होंने श्रवण कुमार को अनजाने में मृग समझकर तीर चलाया और उसकी मृत्यु के कारन राजा दसरथ बने थे जिसकी सजा उन्हें मिली और पुत्र वि योग में ही उनके प्राण गए .. जब त्रेता युग में पाप से छुटकारा पुण्यों द्वारा नही हो पाता था तो सोचिये अभी तो कलियुग है keise मानव छूट सकता है अपने पापो की सजा से .

और अब बात आती है जब जो मिले उसमे संतुष्ट रहना की ..प्रारब्ध समझकर चुपचाप सह लेना .यहाँ में इतना कहूँगी की एईसी स्थिति मानव की तब आती है जब वो संसार के सभी मोहमाया से विलग हो गया हो , या फिर कोई साधू या संत हो जो हर दुःख और ख़ुशी में एक जेइसा रह सकता है क्यूंकि सांसारिक मानव के लिए सर्वथा त्याग असंभव है क्यूंकि उसपर हजारो जिम्मेदारियां है कर्त्तव्य है उसके और कई चीजे और परिस्थियाँ उसके जीवन के लिए बेहद जरुरी होतीं हैं जेइसे की घर का मुखिया है उसे बच्चो की परिवार की देखभाल के लिए सबका ख्याल रखना जरुरी है वो ये कहकर नही बैठ सकता की जो है उसमे खुश रहो हमे जो भगवन देगा उसमे चला लो एइसा सर्वथा असंभव है जीवन के लिए,, क्यूंकि हम समाज में देखते हैं की हम अपने लिए बाद में जीते है अपनो के लिए पहले जीते हैं हमे कोई चीज़ न मिले चलेगा किन्तु अपनों को कुछ उनकी आवश्यकतानुसार नही दे सकते तब बहुत दुःख होता है इन्सान को ... और कर्म को तो हरेक युग में पहले रखा गया है भगवन कृष्णा ने अर्जुन का साथ तब दिया जब उसने खुद युध्द करने को तेयार हुआऔर हाँ कही.
हाँ आप यदि कर्म करते हो और साथ साथ भगवन का सहारा लेते हो तब आपके भाग्य की रेखा अवश्य चमकती है क्यूंकि मेहनत और लगन से काम करने वाले का साथ भगवन देते ही है .

कही सुना पढ़ा होगा आप सबने भी की, दिल से और लगन से यदि आप मेहनत कुछ मांगोगे तो सारी कायनात उसे आपको मिलाने में लग जाती है. आपकी की गई मेहनत कभी विफल नही जाती किन्तु भगवन भी उसका ही साथ देते हैं जो खुदका साथ देता है .

kuki
27-11-2014, 03:08 PM
मैं रजनीश जी और सोनी पुष्पा जी की इस बात से सहमत हूँ की ज़िन्दगी में कर्म करना आवश्यक है। हम एक समाज में रहते हैं जहाँ हमें अपने साथ -साथ अपनों का भी ध्यान रखना पड़ता हैं और उसके लिए प्रयास भी करने पड़ते हैं। हम सब कुछ भगवान के ऊपर छोड़ कर नहीं रह सकते। अगर हमें खाना खाना है तो हमें कमाना भी पड़ेगा और बनाना भी पड़ेगा। हाँ लेकिन कर्म के साथ भाग्य का भी जीवन में बहुत महत्व है ,क्योंकि कई बार हम अपने जीवन में कोई चीज बहुत शिद्दत से पाना चाहते हैं और उसके लिए प्रयास भी बहुत करते हैं मगर वो चीज हमें नहीं मिल पाती। हर इंसान अपने जीवन में सर्वश्रेष्ठ पाना चाहता है ,मगर हर किसी को सवश्रेष्ठ मिलता नहीं है और यही भाग्य होता है। भगवान श्रीकृष्ण ने भी गीता में कहा है की" तुम सिर्फ कर्म करो फल की इच्छा मत करो" ,इसलिए हमें हमेशा अपनी तरफ से सर्वश्रेष्ठ प्रयास करने चाहियें और अच्छे कर्म करने चाहिए ताकि हमें अच्छा फल मिले।

Pavitra
27-11-2014, 09:14 PM
कर्म तो मुख्य हैं जीवन में , और भाग्यवादी होकर भी नहीं जीना चाहिए। यहाँ मैंने उन बातों को भगवान के ऊपर छोड़ने के लिए कहा है जो हमारे वश में नहीं होती।
हर बार ज़िन्दगी वैसे नहीं चलती जैसे हम चलाना चाहते हैं। बहुत बार हम शिद्दत से ही चाहते हैं चीज़ों को पर फिर भी हमें वो मिलती नहीं। आप कह सकते हैं कि चाहत में कहीं कमी होगी इसलिए ही नहीं मिली पर ऐसा नहीं होता।

अब जो चीज़ मिली नहीं उसके बारे में सोच कर दुखी होते रहने से बेहतर है कि किस्मत मान कर उसे स्वीकार किया जाये।

emptymind
28-11-2014, 09:23 PM
कर्म तो मुख्य हैं जीवन में , और भाग्यवादी होकर भी नहीं जीना चाहिए। यहाँ मैंने उन बातों को भगवान के ऊपर छोड़ने के लिए कहा है जो हमारे वश में नहीं होती।
हर बार ज़िन्दगी वैसे नहीं चलती जैसे हम चलाना चाहते हैं। बहुत बार हम शिद्दत से ही चाहते हैं चीज़ों को पर फिर भी हमें वो मिलती नहीं। आप कह सकते हैं कि चाहत में कहीं कमी होगी इसलिए ही नहीं मिली पर ऐसा नहीं होता।

अब जो चीज़ मिली नहीं उसके बारे में सोच कर दुखी होते रहने से बेहतर है कि किस्मत मान कर उसे स्वीकार किया जाये।
:thinking:
अगर आपके मन के अनुसार सारे कार्य हो रहे है, यह तो बहुत ही अच्छी बात है, लेकिन अगर मन मे अनुसार नहीं हो रहा है, ये तो और भी अच्छी बात है, क्योंकि अगर आपके मन के अनुसार नहीं हो रहा है तो ये तो भगवान की मर्जी है, और भगवान की मर्जी से अच्छी बात और क्या हो सकता है।
:think:

Pavitra
28-11-2014, 10:04 PM
:thinking:
अगर आपके मन के अनुसार सारे कार्य हो रहे है, यह तो बहुत ही अच्छी बात है, लेकिन अगर मन मे अनुसार नहीं हो रहा है, ये तो और भी अच्छी बात है, क्योंकि अगर आपके मन के अनुसार नहीं हो रहा है तो ये तो भगवान की मर्जी है, और भगवान की मर्जी से अच्छी बात और क्या हो सकता है।
:think:


आपने शायद मेरा ये पोस्ट नहीं देखा। …मैं भी आपकी ही सोच की समर्थक हूँ।

http://myhindiforum.com/showpost.php?p=540385&postcount=98

Pavitra
19-01-2015, 09:43 PM
आज हम कितने भयभीत हो चुके हैं , इतने भयभीत कि किसी का छोटा सा सन्देश भी हमें मजबूर कर देता है ऐसे काम करने के लिये जिसके बारे में हमें अच्छे से पता है कि ये मूर्खतापूर्ण है। ऐसा हो ही नहीं सकता फिर भी भय इतना होता है मन में कि हम अपने विवेक को उपेक्षित कर देते हैं ।

अक्सर आपके पास ऐसे सन्देश आते होंगे कि - "इस सन्देश को नौ लोगों को भेजें आपको कोई अच्छी खबर मिलेगी , और अगर आप नहीं भेजेंगे तो कुछ बुरा होगा" ।

और आप में से कुछ लोग इस भय से कि कहीं आपके साथ कुछ बुरा ना हो जाये , ऐसे सन्देशों को आगे भेज भी देते होंगे। हम नहीं सोचते कि कैसे कोइ एक सन्देश हमारी किस्मत बना या बिगाड सकता है ? हम नहीं सोचते कि जाने-अन्जाने हम अन्धविश्वास को बढावा दे रहे हैं । सोचिये कि आपने तो वो सन्देश आगे नौ लोगों को भेज दिया पर जिन नौ लोगों को आपने वो सन्देश भेजा है , वो आगे उस सन्देश को नौ और लोगों को नहीं भेज पाये तब? उनके मन में एक भय बैठ जायेगा , कि अब उनके साथ जरूर कुछ बुरा होगा । और क्या पता वो भय उनके लिये आगे जाकर अवसाद का कारण बन जाये ? क्या तब ये गुनाह नहीं होगा , क्या उनके उस अवसाद की एक वजह आप नहीं होंगे?

हम कितने विवेकहीन हो गये हैं , बिना सोचे कि कोई एक सन्देश हमारे जीवन में क्या होगा और क्या नहीं , अच्छा होगा या बुरा , ये कैसे निर्धारित कर सकता है , हम भेड्चाल का हिस्सा बन जाते हैं और अन्जाने में अन्धविश्वास को बढावा देते हैं ।

एक बात हमेशा याद रखिये अगर आप सही हैं तो कोई भी आपका अहित नहीं कर सकता और अगर आप गलत हैं तो कोई भी आपके लिये मददगार नहीं हो सकता । इसलिये बिना किसी भय के जीवन जियें , अच्छे कर्म करें और किसी का भी अहित न सोचें (उनका भी नहीं जिन्होंने आपका अहित किया हो) याद रखें What goes around Comes around , इसलिये सिर्फ खुद के कर्मों क ध्यान रखें , बाकि यहाँ न्याय सभी के साथ होता ही है , चाहे जल्दी या कुछ देर से ।

और हाँ ना ही खुद ऐसे सन्देश लोगों को भेजें , और ना ही दूसरों को भेजने दें ।

rajnish manga
20-01-2015, 04:07 PM
....बिना सोचे कि कोई एक सन्देश हमारे जीवन में क्या होगा और क्या नहीं, अच्छा होगा या बुरा, ये कैसे निर्धारित कर सकता है, हम भेड्चाल का हिस्सा बन जाते हैं और अन्जाने में अन्धविश्वास को बढावा देते हैं ।

और हाँ ना ही खुद ऐसे सन्देश लोगों को भेजें , और ना ही दूसरों को भेजने दें ।

आपने बहुत सटीक बात लिखी है, पवित्रा जी. धन्यवाद. ऐसे किसी भी सन्देश पर आँख मूँद कर विश्वास करना अनुचित है. मैंने तो कई बार ढोंगी साधुओं को भिक्षा न देने पर श्राप देने की धमकी देते भी सुना है. इनसे किसी प्रकार भयभीत नहीं होना चाहिए.

Pavitra
20-01-2015, 09:15 PM
आपने बहुत सटीक बात लिखी है, पवित्रा जी. धन्यवाद. ऐसे किसी भी सन्देश पर आँख मूँद कर विश्वास करना अनुचित है. मैंने तो कई बार ढोंगी साधुओं को भिक्षा न देने पर श्राप देने की धमकी देते भी सुना है. इनसे किसी प्रकार भयभीत नहीं होना चाहिए.

जी बिल्कुल , सोचिये जो साधू होकर भी अपने क्रोध पर काबू ना रख सके , जिसके खुद के जीवन से लालच ना खतम हुआ हो उसका श्राप हमारा क्या बिगाड सकता है ?
इसलिये ऐसे अन्धविश्वास से हमें मुक्त होना ही चाहिये।

Pavitra
24-01-2015, 12:11 AM
First Deserve then Desire

इन्सान की अनन्त इच्छाएँ होती हैं । हर इन्सान जीवन में सब कुछ पा लेना चाहता है , बहुत अमीर होना चाहता है , असल में सबसे अमीर होना चाहता है , बहुत सफल , बहुत प्रसिद्ध , बहुत ऊँचा जाना चाहता है । हमारी इतनी बडी-बडी इच्छाएँ होती हैं , पर क्या कभी हम सोचते हैं कि जो हम पाना चाहते हैं , उसे पाने की काबिलियत हमारे पास है भी कि नहीं? बिना किसी योग्यता के अगर हम सिर्फ सपने देखेंगे तो हमें सिर्फ निराशा ही मिलेगी । जो हम पाना चाहते हैं , उसे पाने से पहले खुद को इस काबिल बनाइये कि आप उसे सम्भाल सकें । जीवन में चमत्कार होते हैं , पर जीवन सिर्फ चमत्कारों के भरोसे नहीं चलता । भविष्य को जानने का सबसे अच्छा तरीका है कि हम खुद अपने भविष्य की रचना करें । सिर्फ चमत्कार की उम्मीद ना करके , प्रयास भी करें । और याद रखें हमें वही मिलता है जो हम पाने के लायक होते हैं , तो अगर आप जीवन से कुछ ज्यादा चाहते हैं तो पहले लायक बनें फिर इच्छा करें ।

मन्जिलें उन्हें मिलती हैं जिनके कदमों में जान होती है,
पन्खों से कुछ नहीं होता हौसलों से उडान होती है

soni pushpa
25-01-2015, 12:14 AM
धन्यवाद पवित्रा जी ..आपकी बात से मै पूरी तरह से सहमत हूँ पवित्रा जी ,.. कल्पना कीउड़ान लेने से कोई सच में ऊपर नही पहुँच जाता . कभी जीवन के अनुभव हमे सिखलाते हैं , कभी हमारी मेहनत और कभी हमारे बड़ों का साथ और मार्गदर्शन और सबसे बड़ी बात हमारी मेहनत हमे आगे बढ़ा सकती है . और हमारे सपनो को साकार करने में हम समर्थ हो पाते हैं .. मन की दृढ़ता . मेहनत , और ज्ञान ये सब जीवन में आगे बढ़ने और सपने पुरे करने के सच्चे साधन हैं बाकि चमत्कार तो करोडो में से शायद एक के साथ होते होंगे हर कोई इतने नसीबो वाला नही होता की उन्हें beithe-- beithe सब मिल जाय ...
पर हाँ साथ इतना कहना जरुर चाहूंगी कि , जो इंसान सपने देखता है वो ही उन्हें पूरा करने के लिए आगे बढ़ता है , मेहनत करता है. और उसके ही सपने पुरे करने में भगवअन साथ देते हैं क्यूंकि श्री मद भगवदगीता के सिध्धांत के अनुसार भगवानश्री कृष्ण ने खुद कहा है की तुम कर्म करो फल मुझपर छोड़ो . इसलिए सपने जरुर देखो सपने होंगे तो ही जीवन आगे बढेगा ... चमत्कार या अन्धविश्वास को दूर ही रखना चहिये खुद से नही तो जो सपने आपको जीवन में आगे बढ़ने वाले होते हैं वो ही सपने आपके जीवन को बर्बाद कर सकते है क्युकी एक उदहारण दूंगी यहाँमै की किसी झूठे ज्योतिष की बातो में आकार कोई अपना सारा बैंक बैलेंस दान में दे दे या किसी भगवन के आशीर्वाद प्राप्त होंगे एइसा समझ के इंसान घरबार छोड़ करके रात दिन अनावश्यक अन्धविश्वासी कर्मकाण्ड में लगा रहे .

Rajat Vynar
26-01-2015, 05:21 PM
आज हम कितने भयभीत हो चुके हैं , इतने भयभीत कि किसी का छोटा सा सन्देश भी हमें मजबूर कर देता है ऐसे काम करने के लिये जिसके बारे में हमें अच्छे से पता है कि ये मूर्खतापूर्ण है। ऐसा हो ही नहीं सकता फिर भी भय इतना होता है मन में कि हम अपने विवेक को उपेक्षित कर देते हैं ।



ऐसे सन्देशों से डरता कौन है, पवित्रा जी? मैं तो विस्मित रह जाता हूँ ऐसे सन्देश पढ़कर और सोचने लगता हूँ इस पर कविता लिखूँ, लघुकथा लिखूँ या बच्चों की कहानी? या फिर पुरानी लिखी बच्चों की कहानी में संशोधन कर दूँ। लेकिन लेखनकला की कसौटी पर कसने से पता चलता है कि ऐसे संदेश कोशिश करने पर भी कहीं फिट नहीं होते। :laughing:

Rajat Vynar
29-01-2015, 11:32 AM
first deserve then desire

इन्सान की अनन्त इच्छाएँ होती हैं । हर इन्सान जीवन में सब कुछ पा लेना चाहता है , बहुत अमीर होना चाहता है , असल में सबसे अमीर होना चाहता है.
हमारी इच्छा तो बहुत छोटी सी है, पवित्रा जी. बस यही देश के किसी चौराहे पर अपना स्टैचू खड़ा हो! :laughing:

Pavitra
30-01-2015, 02:08 PM
हमारी इच्छा तो बहुत छोटी सी है, पवित्रा जी. बस यही देश के किसी चौराहे पर अपना स्टैचू खड़ा हो! :laughing:


आपकी इच्छा अवश्य पूरी हो .......तथास्तु ।
:)

Pavitra
04-02-2015, 12:46 AM
एक दिन मैंने जलते हुए "दीये" को देखा तो मन में विचार आया कि ये दीया कितना उदार है खुद जल कर दूसरों को रौशनी दे रहा है । फिर अचानक मेरा ध्यान गया और पाया कि कितनी गलत हूँ मैं , मैं जिस दीये की प्रशँसा कर रही हूँ वास्तव में वो सही हकदार नहीं है इस प्रशँसा का , क्योंकि असल में दीया तो जलता ही नहीं है । जलती तो "बाती" है । और इस छोटे से अवलोकन से मुझे अहसास हुआ कि कितनी निस्स्वार्थ है ये बाती जो खुद जल रही है किसी और के लिये । आज हम सभी नाम , शोहरत पाना चाहते हैं....प्रेम की बडी बडी बातें करते हैं पर क्या हम प्रेम में ये कर सकते हैं जो बाती करती है अपने दीये के लिये.... ये बाती , ये खुद जल रही है और नाम किसका हो रहा है - नाम हो रहा है "दीये" का......कोई नहीं कहता कि बाती जल रही है , कोई बाती के त्याग को नहीं तवज्जो देता , सब कहते हैं कि दीया जल रहा है , पर फिर भी बाती बिना किसी नाम की इच्छा के , बिना किसी पहचान की इच्छा के अपनी जिन्दगी तक त्याग देती है ।

यही है प्रेम .....वास्तविक प्रेम .....जहाँ हम बिना कुछ प्राप्ति की इच्छा के, अपने प्रिय के लिये अपना सब कुछ त्यागने की हिम्मत रखते हैं। बाती अपने दीये के लिये अपना जीवन त्यागती है , अपना अहं(नाम) त्यागती है , अपनी पहचान त्यागती है , खुद अपना अस्तित्व खो कर उस दीये का मान बढाती है । बिना बाती के दीये का कोइ मोल नहीं होता , उसका कोइ महत्व ही नहीं है बाती के बिना । और इसके बदले बाती कुछ भी नहीं चहती , अपने इस छोटे से जीवन काल में बाती सिर्फ दीये के लिये जीती है और उसी के आगोश में मरती है ।

rajnish manga
04-02-2015, 09:23 AM
मिटटी, बर्तन या बोतल में रखे हुए तेल अथवा रुई की बटी हुयी बाती का इतिहास व संस्कृति कुछ और होती है एवम् एक दूसरे को आत्मसात करने के बाद उनकी संस्कृति कुछ और मुखर हो जाती है. दिये का ज़िक्र करते ही हमारे मन में जो तस्वीर उभर कर आती है वह तेल तथा बाती से युक्त होती है. दिवाली पर हम बाजार से दिये ले कर आते हैं उनका तब तक कोई मूल्य नहीं होता जब तक नेह और बाती उसमे न डाले जायें और उसे प्रज्ज्वलित न किया जाये. प्रकाशित होना व प्रकाश देना ही दिये की संस्कृति है, उद्देश्य है. दिये और तेल के बिना मिटटी का दिया ठूंठ के समान है जिसकी कोई कीमत नहीं. अतः यह कहना उपयुक्त नहीं है की नाम दिये का होता है और जलना बाती को पड़ता है जिसका कोई नाम भी नहीं लेता. दिया है तो बाती है, बाती है तो दिया है.

यही मनुष्य के शरीर के साथ होता है. पंचतत्व के साथ आत्मा का मिलन होने पर शरीर काम करता है जिसे हम अलग अलग नाम दे देते हैं. शरीर स्वयं में कुछ नहीं हैं. स्थूल शरीर तो एक माध्यम भर है मिटटी के एक दिए की तरह.

Rajat Vynar
04-02-2015, 11:24 AM
आपकी इच्छा अवश्य पूरी हो .......तथास्तु ।
:)

अब आप कह रही हैं तो सच ही होगा.

Pavitra
04-02-2015, 02:18 PM
खुद को कर बुलन्द

जिन्दगी में परेशानियाँ बता कर नहीं आती। कब जाने क्या होने वाला हो हमारे साथ , कोई नहीं जानता । ये हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम उन परेशानियों को अपने ऊपर हावी होने दें या खुद परेशानियों पर काबू पा लें ।

दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं एक वो जो परेशानी आने पर शिकायत करते हैं, कमजोर हो जाते हैं और दूसरे वो जो परेशानी आने पर भी अपने हौसले से उन पर विजय पा लेते हैं । ऐसी ही एक कहानी बिल्कुल एक आम इन्सान की , जिसकी सोच और हौसला उसे खास बना देता है -

tzbo5YpJDvQ

soni pushpa
04-02-2015, 04:53 PM
दिए और बाती को लेकर आपने बहुत अच्छी चर्चा यहाँ रखी है धन्यवाद .... सही है की बाती बिन दिया नही जल सकता पर बाती भी बिना दिए के नही जल सकती याने दोनों एकदूजे के पूरक है एक नही तो दूजा अधुरा है जैसे मानव जीवन है हर जगह हम देख सकते हैं प्रेम और पैसा , , दिया और बाटी अँधेरा, उजाला याने की इन सब चीजो की अ पनी अपनी जगह अलग ही महत्ता है...

प्रेम है पैसा नही तो भी जिन्दा रहेगा keise इंसान /. दिन रात उजाला रहा सूर्य चमकते रहा तो लोग आराम कुब करेंगे और लगातार रात रही तो मानव सूर्य की रौशनी के बिना keise जियेगा बस यही है दिए और बाती का राजकी दोनों एकदूजे के लिए बने है

Pavitra
04-02-2015, 09:13 PM
दिए और बाती को लेकर आपने बहुत अच्छी चर्चा यहाँ रखी है धन्यवाद ....

बस यही है दिए और बाती का राजकी दोनों एकदूजे के लिए बने है

बहुत बहुत शुक्रिया सोनी पुष्पा जी यहाँ विचार रखने के लिये....... :)

Pavitra
20-02-2015, 02:48 PM
हम अक्सर दुनिया को दो भागों में बाँट देते हैं - अच्छी और बुरी ।
पर क्या वास्तव में ये उचित है? शायद नहीं ।
आपको बहुत से ऐसे लोग मिल जायेंगे जो किसी से भी मिलते ही उसके प्रति धारणा बना लेते हैं - यह व्यक्ति अच्छा है या यह व्यक्ति बुरा है । लोगों की इस आदत को उचित नहीं कहा जा सकता , क्योंकि अच्छे से अच्छे व्यक्ति में भी कुछ ना कुछ बुराई तो अवश्य ही होती है । और बुरे से बुरे व्यक्ति में भी कुछ अच्छाई जरूर मिल जायेगी । जो व्यक्ति आपके साथ अच्छा है जरूरी नहीं कि वो सभी के साथ अच्छा हो , और जिसने आपके साथ बुरा व्यवहार किया वो व्यक्ति सभी के लिये बुरा है ऐसा भी नहीं होता ।

पर हमारी आदत बन चुकी है कि हम, लोगों को दो shades में बाँट देते हैं - Black and white .....पर असल में पूरी दुनिया Grey color के लोगों से भरी हुई है.....जैसे Grey color के विभिन्न shades होते हैं , उसी तरह यहाँ लोगों के भी विभिन्न shades होते हैं | जिसके व्यक्तित्व में white color यानि अच्छाई ज्यादा और Black color यानि बुराई कम होती है वो Light grey color ......और जिसमें black color ज्यादा और white color कम होता है वो Dark Grey color का व्यक्ति होता है ।

https://www.google.co.in/search?q=different+shades+of+grey&rlz=1C1KAFB_enIN566IN566&es_sm=93&tbm=isch&imgil=_Am6WCW3AP1iGM%253A%253Buf5S0YV-ByBocM%253Bhttp%25253A%25252F%25252Fjobsrecruitmen t.tk%25252Ffifty-shades-of-grey-by-opi&source=iu&pf=m&fir=_Am6WCW3AP1iGM%253A%252Cuf5S0YV-ByBocM%252C_&usg=__NT7DK0PDHAm4qNkXKJ2EqSyxdHE%3D&biw=1366&bih=635#imgdii=_&imgrc=0b5MA4zVmxaLfM%253A%3BXqh_UKWlHBGZTM%3Bhttps %253A%252F%252Fproxish.files.wordpress.com%252F201 3%252F01%252Fgrey-scale.jpeg%3Bhttps%253A%252F%252Fproxish.wordpress .com%252F2013%252F01%252F29%252Flearning-outcome-1-compter-graphics%252F%3B508%3B347


इसलिये लोगों को black या white की श्रेणी में ना रखते हुए , समझें कि कोई भी व्यक्ति सिर्फ अच्छा या सिर्फ बुरा नहीं हो सकता । हर व्यक्ति में दोनों तरह के गुण होते हैं , हाँ मात्रा में अन्तर जरूर होता है -किसी में ज्यादा अच्छाई और कम बुराई होगी तो किसी में कम अच्छाई और ज्यादा बुराई । पर हर व्यक्ति में दोनों तरह के रंग होते हैं ।

दूसरों में सदा गुण देखें क्योंकि दूसरों के जिस गुण पर आप ध्यान देते हैं , वो धीरे-धीरे आप में आने लगता है।

Deep_
20-02-2015, 05:40 PM
हम अक्सर दुनिया को दो भागों में बाँट देते हैं - अच्छी और बुरी ।.....
https://proxish.files.wordpress.com/2013/01/grey-scale.jpeg
.....वो धीरे-धीरे आप में आने लगता है।

मेरा दिमाग आज-कल के 'भड़काउ' समाचार और घटनाओं से खराब हो चुका है। कभी कभी मुझे लगता है की जब अंत में ईन्सान हैवान बन जाएगा, उसके साथ हाद्से हो जाएंगे, जब वह गन पोईन्ट पर या तलवार की धार के आगे खड़ा होगा.....क्या वह यह सब सोच पाएगा?

हाल ही में आईएस द्वारा कई लोगों के सामुहीक कत्लेआम हुआ, तीसरे ही दीन ४० लोगों को जिंदा जलाया गया। यह सब मुझे हेरान-परेशान किए हुए है।

ईन्सान क्या चाहता है आखिर? क्या कोई भी एक धर्म पुरी दुनिया पर छा जाने से शांति हो जाएगी?

Pavitra
20-02-2015, 11:36 PM
मेरा दिमाग आज-कल के 'भड़काउ' समाचार और घटनाओं से खराब हो चुका है। कभी कभी मुझे लगता है की जब अंत में ईन्सान हैवान बन जाएगा, उसके साथ हाद्से हो जाएंगे, जब वह गन पोईन्ट पर या तलवार की धार के आगे खड़ा होगा.....क्या वह यह सब सोच पाएगा?

हाल ही में आईएस द्वारा कई लोगों के सामुहीक कत्लेआम हुआ, तीसरे ही दीन ४० लोगों को जिंदा जलाया गया। यह सब मुझे हेरान-परेशान किए हुए है।

ईन्सान क्या चाहता है आखिर? क्या कोई भी एक धर्म पुरी दुनिया पर छा जाने से शांति हो जाएगी?


देखिये हमारी सोच एक दिन में नहीं बनती ....हमें अपनी सोच को सही दिशा देने के लिये प्रयास करते रहना पड्ता है.....आपने जो उदाहरण दिया कि गन पोइन्ट पर खडा इन्सान क्या ये सब सोच सकेगा , तो मैं मानती हूँ कि शायद नहीं ....मृत्यु को सामने देख कोई भी सामान्य इन्सान ऐसे विचार ला ही नहीं सकता.....पर जीवन की छोटी-छोटी परेशानियों के समय जरूर इन्सान मेरी कही बात सोच सकता है.......आप खुद को ही देखिये , या मैं अपना ही उदाहरण ले लूँ , क्या हम बहुत अच्छे लोग हैं? क्या हमारे अन्दर सिर्फ और सिर्फ अच्छाइयाँ हैं??? क्या हम कभी कभी बुरा व्यव्हार नहीं कर देते? कभी कभी हम भी किसी का दिल दुखा देते हैं .....हमारी भी कुछ आदतें बहुत खराब होंगी जिन्हें हम बदलना चाहते होंगे......तो जैसे हम हमारे लिये सोचते हैं कि मैं अच्छा/अच्छी व्यक्ति हूँ , हाँलांकि मुझमें ये बुराई है पर कोई बात नहीं , कुछ अच्छाई भी तो है ।ऐसे ही हम दूसरों के लिये भी समझें और धारणा बनाते समय थोडा लचीला रुख अपनायें ।

और अब आपके आखिरी सवाल का जवाब - शायद हास्यास्पद लगे , या किताबी बात ....पर एक धर्म है जो अगर पूरी दुनिया पर छा जाये तो निश्चित ही शान्ति हो जायेगी ........"मानवता का धर्म" ।

soni pushpa
22-02-2015, 06:36 PM
"मानवता का धर्म " ये बहुत अच्छी बात कही आपने पवित्रा जी ,, आज दुनिया भर में मानवता के नाम पर सिर्फ औपचारिकता रह गई है/ जब लोग मिलते हैं तब बहुत ही अपनापन बताते हैं अच्छी अच्छी बातें करते हैं, किन्तु जैसे ही खुद के स्वार्थ की बात आई नहीं की मानवता नाम के शब्द को मानो भूल ही जाते हैं लोग . मानवता की मक्क्मता इंसान के जहन में तब तक नहीं आएगी जब तक खुद को वो स्वार्थ से परे रखना नहीं सीखेगा .
दूसरो के प्रति थोड़ी सी मानवता भी यदि मन में है तो हम कम से कम किसी का भी बुरा नहीं चाहेंगे और यदि हमारी वजह से किसी का भी दिल दुखता है तो हमे इस बात का खेद जरुर होगा की ये हमसे गलत हो गया . पर आज जहाँ सारे विश्व या मानव समाज में मानवता की बात हो रही है वहां यदि इस महँ शब्द का प्रादुर्भाव हो जाय ,सबके मन मानवता से भर जाय तब तो दुनिया में कोई दुखी न रहेगा,क्यूंकि एक का दुःख सबका दुःख होगा किसी एक की समस्या के सभी सहभागी होकर समस्या का अंत कर देंगे .. इतनी महानता है " मानवता का धर्म " शब्द की .
पवित्रा जी आपकी बात से मै पूरी तरह् से सहमत हूँ .

Pavitra
14-03-2015, 11:31 PM
Take time to do what makes your "soul" Happy


हम पूरा दिन काम करते हैं , काम करते हैं जिससे आजीविका कमा सकें , और अपनी जरूरतों को पूरा कर सकें। असल में अपने शरीर को सुविधायें देने के लिये ही हम काम करते हैं जिससे कि हम अपने शरीर को आराम दे सकें । अच्छा कमाएँ जिससे अपने लिये सारी सुख-सुविधाएँ एकत्रित कर सकें । गाडी , घर , अच्छा खाना , कपडे , आदि । पर अपने शरीर के आराम के लिये हम भूल जाते हैं कि सिर्फ शरीर के लिये काम करते रहने से कुछ नहीं होगा , क्योंकि शरीर चाहे कितने ही आराम में क्यों ना हो , जब तक हमारी आत्मा सुकून में नहीं होगी तब तक हमें सुख मिल ही नहीं सकता। मैं नहीं कहती कि आप अपने शरीर के लिये कार्य करना बन्द कर दें , जरूर करें पर अपनी आत्मा की अनदेखी ना करें । क्योंकि आपकी आत्मा आपके व्यक्तित्व का सबसे मूल्यवान हिस्सा है , और इसलिये इसका सुकून में रहना बहुत जरूरी है।

हर रोज कुछ समय जरूर निकालें ऐसे कार्यों के लिये जिन्हें करने में आपकी आत्मा को खुशी और सन्तुष्टि मिलती हो। हो सकता है आपका पेशा कुछ और हो और आप खुद को किसी और काम को करते वक्त खुश पाते हों । तो तलाश करें कि ऐसे कौन से कार्य हैं जो आपको खुशी देते हैं और उन कार्यों के लिये वक्त जरूर निकालें ।

soni pushpa
15-03-2015, 03:04 AM
take time to do what makes your "soul" happy


हम पूरा दिन काम करते हैं , काम करते हैं जिससे आजीविका कमा सकें , और अपनी जरूरतों को पूरा कर सकें। असल में अपने शरीर को सुविधायें देने के लिये ही हम काम करते हैं जिससे कि हम अपने शरीर को आराम दे सकें । अच्छा कमाएँ जिससे अपने लिये सारी सुख-सुविधाएँ एकत्रित कर सकें । गाडी , घर , अच्छा खाना , कपडे , आदि । पर अपने शरीर के आराम के लिये हम भूल जाते हैं कि सिर्फ शरीर के लिये काम करते रहने से कुछ नहीं होगा , क्योंकि शरीर चाहे कितने ही आराम में क्यों ना हो , जब तक हमारी आत्मा सुकून में नहीं होगी तब तक हमें सुख मिल ही नहीं सकता। मैं नहीं कहती कि आप अपने शरीर के लिये कार्य करना बन्द कर दें , जरूर करें पर अपनी आत्मा की अनदेखी ना करें । क्योंकि आपकी आत्मा आपके व्यक्तित्व का सबसे मूल्यवान हिस्सा है , और इसलिये इसका सुकून में रहना बहुत जरूरी है।

हर रोज कुछ समय जरूर निकालें ऐसे कार्यों के लिये जिन्हें करने में आपकी आत्मा को खुशी और सन्तुष्टि मिलती हो। हो सकता है आपका पेशा कुछ और हो और आप खुद को किसी और काम को करते वक्त खुश पाते हों । तो तलाश करें कि ऐसे कौन से कार्य हैं जो आपको खुशी देते हैं और उन कार्यों के लिये वक्त जरूर निकालें ।




take time to do what makes your "soul" happy


हम पूरा दिन काम करते हैं , काम करते हैं जिससे आजीविका कमा सकें , और अपनी जरूरतों को पूरा कर सकें। असल में अपने शरीर को सुविधायें देने के लिये ही हम काम करते हैं जिससे कि हम अपने शरीर को आराम दे सकें । अच्छा कमाएँ जिससे अपने लिये सारी सुख-सुविधाएँ एकत्रित कर सकें । गाडी , घर , अच्छा खाना , कपडे , आदि । पर अपने शरीर के आराम के लिये हम भूल जाते हैं कि सिर्फ शरीर के लिये काम करते रहने से कुछ नहीं होगा , क्योंकि शरीर चाहे कितने ही आराम में क्यों ना हो , जब तक हमारी आत्मा सुकून में नहीं होगी तब तक हमें सुख मिल ही नहीं सकता। मैं नहीं कहती कि आप अपने शरीर के लिये कार्य करना बन्द कर दें , जरूर करें पर अपनी आत्मा की अनदेखी ना करें । क्योंकि आपकी आत्मा आपके व्यक्तित्व का सबसे मूल्यवान हिस्सा है , और इसलिये इसका सुकून में रहना बहुत जरूरी है।

हर रोज कुछ समय जरूर निकालें ऐसे कार्यों के लिये जिन्हें करने में आपकी आत्मा को खुशी और सन्तुष्टि मिलती हो। हो सकता है आपका पेशा कुछ और हो और आप खुद को किसी और काम को करते वक्त खुश पाते हों । तो तलाश करें कि ऐसे कौन से कार्य हैं जो आपको खुशी देते हैं और उन कार्यों के लिये वक्त जरूर निकालें ।




बहुत अछि बात कही पवित्रा जी ,,, सच बात है की जीवन यापन के लिए हमे न चाहते हुए भी वो काम करने पड़ते है जो सही मायनों में हमे पसंद नहीं होते पर करने पड़ते हैं क्यूंकि जीने के लिए जरुरी हैं उन्हें करना पर जिस विषय, वस्तु या कार्य में आपको रूचि हो,आपको आत्मिक शांति मिलती है उसके लिए अपने सारे समय में से कुछ पल जरुर रखने चाहिए ...
और मेरा मानना है की सात्विक प्रवत्ति हम इंसानों में ज्यादातर होती है तामसी प्रवत्ति इंसानों को क्षणिक सुख देती है जबकि सात्विक प्रव्रत्ति इंसान को आंतरिक सुख का अनुभव कराती है यहाँ मै अपनी बात को जरा सविस्तार बताना चाहूंगी की तामसी प्रवव्र्त्ति जिसमे जुआ खेला शराब पीना ये सब आता है अब जुआ खेलने वाले को जो ख़ुशी मिलेगी वो तबतक ही जब तक वो खेल रहे होते हैं किन्तु यदि इंसान की प्रव्रत्ति सात्विक है तो उसमे वो किसी दुखी की सहायता करेगा , भगवन की आराधना करेगा जिससे उसका सुख क्षणिक नहीं होगा उसके आत्मा को आनंद की प्राप्ति होगी और वो ख़ुशी उसके चहरे पर दिखाई देगी (और कई कार्य होते है जिसकी चर्चा यदि यहाँ करेंगे तो बात बहुत लामी हो जाएगी इसलिए मैंने सिर्फ कुछ उदहारण दिए है )

अब रही समय निकलने की बात पवित्रा जी , .. तो इतना कहना जरुर चाहूंगी यहाँ की यदि इन्सान चाहे तो क्या नहीं कर सकता ? और यहाँ तो खुद की ख़ुशी की बात है और ख़ुशी देने वाले काम में थकावट नहीं होती क्यूंकि उसे हम मन से करते है. हाँ सिर्फ आलस न करें खुद के लिए लोग बस, .तब देखे की जीवन उसे कितना आनंद देता है और ये ही नहीं मन की ख़ुशी का प्रभाव आपके व्यवहार में पड़ता है ,आपके परिवार में पड़ता है और आपके आसपास के लोगो को भी आपका व्यवहार प्रभावित करता है सो बहुत जरुरी है की स्वयं को खुश रखे अपने पसंदीदा अछे कार्यो . के द्वारा ,..

Rajat Vynar
15-03-2015, 07:24 PM
Take time to do what makes your "soul" Happy



Sorry for my chutzpah. मेरी दिव्यदृष्टि में तो "soul" की जगह कुत्ता दिखाई दे रहा है! कहीं आप एक कुत्ता पालने की बात तो नहीं कर रहीं?

Deep_
15-03-2015, 08:50 PM
Take time to do what makes your "soul" Happy
हम पूरा दिन काम करते हैं.....तो तलाश करें कि ऐसे कौन से कार्य हैं जो आपको खुशी देते हैं और उन कार्यों के लिये वक्त जरूर निकालें ।

ज़रुर! कोन नहीं चाहेगा आत्मसंतुष्टी? लेकिन मेरे पास ईतना समय ही नहीं होता। दोस्त लोग कहते है की 'समय निकालना' पड़ता है। शायद कोई क्लास हो जो सीखा पाए की समय कैसे निकालते है। अगर हो भी तो उस क्लास के लिए समय कैसे निकाले?!:bang-head:

काम, नौकरी से अगर कुछ दो-चार पल बचा भी लें, उस से मन नहीं भरता। उल्टा गुस्सा आता है की यह क्या बात हुई!

फिर गुलज़ार जी का गीत गुनगुना कर वापस काम में लग जाता हुं....दिल ढुंढता है फिर वही, फुर्सत के रात-दीन!

Pavitra
15-03-2015, 09:56 PM
Sorry for my chutzpah. मेरी दिव्यदृष्टि में तो "soul" की जगह कुत्ता दिखाई दे रहा है! कहीं आप एक कुत्ता पालने की बात तो नहीं कर रहीं?

"जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि".....अब समझदार को इशारा काफी ....आशा है आप समझदार होंगे...... :giggle:

Pavitra
15-03-2015, 10:01 PM
ज़रुर! कोन नहीं चाहेगा आत्मसंतुष्टी? लेकिन मेरे पास ईतना समय ही नहीं होता। दोस्त लोग कहते है की 'समय निकालना' पड़ता है। शायद कोई क्लास हो जो सीखा पाए की समय कैसे निकालते है। अगर हो भी तो उस क्लास के लिए समय कैसे निकाले?!:bang-head:

काम, नौकरी से अगर कुछ दो-चार पल बचा भी लें, उस से मन नहीं भरता। उल्टा गुस्सा आता है की यह क्या बात हुई!

फिर गुलज़ार जी का गीत गुनगुना कर वापस काम में लग जाता हुं....दिल ढुंढता है फिर वही, फुर्सत के रात-दीन!


मुझे लगता है कि हम सभी पेशे से लेखक नहीं हैं फिर भी हम यहाँ आकर अपनी भावनाएँ लिखते हैं , शायद ये इसलिये ही है क्योंकि हमें लेखन सुकून देता है । तो हम वो वक्त निकाल ही रहे हैं ना अपनी आत्मसन्तुष्टि के लिये ....... :)

Deep_
15-03-2015, 10:30 PM
मुझे लगता है कि हम सभी पेशे से लेखक नहीं हैं फिर भी हम यहाँ आकर अपनी भावनाएँ लिखते हैं , शायद ये इसलिये ही है क्योंकि हमें लेखन सुकून देता है । तो हम वो वक्त निकाल ही रहे हैं ना अपनी आत्मसन्तुष्टि के लिये ....... :)
:iagree:

rajnish manga
15-03-2015, 11:47 PM
उक्त विषय पर अच्छा आदान प्रदान हो रहा है और इस चर्चा के कई सकारात्मक पहलू भी पढ़ने में आये हैं. देखने में आ रहा है कि कुछ सम्मानित सदस्य जान बूझ कर एक गंभीर चर्चा को सस्ती लतीफेबाजी में ले जाने की कोशिश कर रहे है. यह बात केवल यहाँ ही नहीं बल्कि कई अन्य सूत्रों पर भी महसूस की जा रही है. लेकिन यह सोच कर कि शायद सम्मानित सदस्य अपनी एप्रोच में बदलाव लायेंगे, इस बात का ज़िक्र नहीं किया गया. लेकिन अब विषय पर बोलना आवश्यक हो गया है. नीचे दो सदस्यों के डायलॉग दिए जा रहे हैं, जिससे स्थिति साफ़ हो जायेगी.
>>>>
पवित्रा जी:

....... जब तक हमारी आत्मा सुकून में नहीं होगी तब तक हमें सुख मिल ही नहीं सकता। मैं नहीं कहती कि आप अपने शरीर के लिये कार्य करना बन्द कर दें , जरूर करें पर अपनी आत्मा की अनदेखी ना करें । क्योंकि आपकी आत्मा आपके व्यक्तित्व का सबसे मूल्यवान हिस्सा है , और इसलिये इसका सुकून में रहना बहुत जरूरी है।

हर रोज कुछ समय जरूर निकालें ऐसे कार्यों के लिये जिन्हें करने में आपकी आत्मा को खुशी और सन्तुष्टि मिलती हो। हो सकता है आपका पेशा कुछ और हो और आप खुद को किसी और काम को करते वक्त खुश पाते हों । तो तलाश करें कि ऐसे कौन से कार्य हैं जो आपको खुशी देते हैं और उन कार्यों के लिये वक्त जरूर निकालें ।

रजत जी:

मेरी दिव्यदृष्टि में तो "soul" की जगह कुत्ता दिखाई दे रहा है! कहीं आप एक कुत्ता पालने की बात तो नहीं कर रहीं?

पवित्रा जी:

"जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि".....अब समझदार को इशारा काफी ....आशा है आप समझदार होंगे......


>>>>
रजत जी को मैं परामर्श देना चाहता हूँ की यदि उनके पास चर्चित विषय पर कोई स्तरीय सामग्री उपलब्ध नहीं है तो चर्चा को चुटकुलों में या लतीफेबाजी में भटकाने का प्रयास न करें. बेहतर होगा की वे इनसे परहेज़ रखें. लतीफ़ों को वह हास्य की किसी अन्य रचना में प्रयोग करें.

दूसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात की ओर आप सब लोगों का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ, वह यह कि सम्मानित महिला सदस्यों के साथ चर्चा करते समय शालीनता बनाये रखी जाये. उनके प्रति किसी प्रकार की अभद्रता को स्वीकार नहीं किया जाएगा. यह सभी सदस्यों का कर्तव्य है कि वे अन्य सदस्यों और विशेष रूप से महिला सदस्यों से मर्यादित व्यवहार करें. धन्यवाद.

Pavitra
15-03-2015, 11:53 PM
उक्त विषय पर अच्छा आदान प्रदान हो रहा है और इस चर्चा के कई सकारात्मक पहलू भी पढ़ने में आये हैं. देखने में आ रहा है कि कुछ सम्मानित सदस्य जान बूझ कर एक गंभीर चर्चा को सस्ती लतीफेबाजी में ले जाने की कोशिश कर रहे है. यह बात केवल यहाँ ही नहीं बल्कि कई अन्य सूत्रों पर भी महसूस की जा रही है. लेकिन यह सोच कर कि शायद सम्मानित सदस्य अपनी एप्रोच में बदलाव लायेंगे, इस बात का ज़िक्र नहीं किया गया. लेकिन अब विषय पर बोलना आवश्यक हो गया है. नीचे दो सदस्यों के डायलॉग दिए जा रहे हैं, जिससे स्थिति साफ़ हो जायेगी.
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पवित्रा जी:

....... जब तक हमारी आत्मा सुकून में नहीं होगी तब तक हमें सुख मिल ही नहीं सकता। मैं नहीं कहती कि आप अपने शरीर के लिये कार्य करना बन्द कर दें , जरूर करें पर अपनी आत्मा की अनदेखी ना करें । क्योंकि आपकी आत्मा आपके व्यक्तित्व का सबसे मूल्यवान हिस्सा है , और इसलिये इसका सुकून में रहना बहुत जरूरी है।

हर रोज कुछ समय जरूर निकालें ऐसे कार्यों के लिये जिन्हें करने में आपकी आत्मा को खुशी और सन्तुष्टि मिलती हो। हो सकता है आपका पेशा कुछ और हो और आप खुद को किसी और काम को करते वक्त खुश पाते हों । तो तलाश करें कि ऐसे कौन से कार्य हैं जो आपको खुशी देते हैं और उन कार्यों के लिये वक्त जरूर निकालें ।

रजत जी:

मेरी दिव्यदृष्टि में तो "soul" की जगह कुत्ता दिखाई दे रहा है! कहीं आप एक कुत्ता पालने की बात तो नहीं कर रहीं?

पवित्रा जी:

"जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि".....अब समझदार को इशारा काफी ....आशा है आप समझदार होंगे......


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रजत जी को मैं परामर्श देना चाहता हूँ की यदि उनके पास चर्चित विषय पर कोई स्तरीय सामग्री उपलब्ध नहीं है तो चर्चा को चुटकुलों में या लतीफेबाजी में भटकाने का प्रयास न करें. बेहतर होगा की वे इनसे परहेज़ रखें. लतीफ़ों को वह हास्य की किसी अन्य रचना में प्रयोग करें.

दूसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात की ओर आप सब लोगों का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ, वह यह कि सम्मानित महिला सदस्यों के साथ चर्चा करते समय शालीनता बनाये रखी जाये. उनके प्रति किसी प्रकार की अभद्रता को स्वीकार नहीं किया जाएगा. यह सभी सदस्यों का कर्तव्य है कि वे अन्य सदस्यों और विशेष रूप से महिला सदस्यों से मर्यादित व्यवहार करें. धन्यवाद.



आपका बहुत बहुत धन्यवाद रजनीश जी .....मैं भी इन्तजार में ही थी कि किसी और की तरफ से भी कुछ पहल हो , अन्यथा मुझे भी फिर समान स्तर पर उतर कर जवाब देना होता ..... मेरी कही बात के लिये मैं भी क्षमा प्रार्थी हूँ पर आशा है मुझे मेरी गलती पर माफ किया जायेगा....... और रजत जी भी कुछ सुधार करेंगे अपने व्यवहार में......

soni pushpa
16-03-2015, 01:20 AM
आपका बहुत बहुत धन्यवाद रजनीश जी .....मैं भी इन्तेजार में ही थी कि किसी और की तरफ से भी कुछ पहल हो , अन्यथा मुझे भी फिर समान स्तर पर उतर कर जवाब देना होता ..... मेरी कही बात के लिये मैं भी क्षमा प्रार्थी हूँ पर आशा है मुझे मेरी गलती पर माफ किया जायेगा....... और रजत जी भी कुछ सुधार करेंगे अपने व्यवहार में......







आपका बहुत बहुत धन्यवाद रजनीश जी .....मैं भी इन्तेजार में ही थी कि किसी और की तरफ से भी कुछ पहल हो , अन्यथा मुझे भी फिर समान स्तर पर उतर कर जवाब देना होता ..... मेरी कही बात के लिये मैं भी क्षमा प्रार्थी हूँ पर आशा है मुझे मेरी गलती पर माफ किया जायेगा....... और रजत जी भी कुछ सुधार करेंगे अपने व्यवहार में......

आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद की आज आपने ये बातें यहाँ कहीं हैं किसी भी साईट की गरिमा, साहित्य की गरिमा, और लेखन कला की गरिमा तब ही बढती है जब हम यहाँ आने वाले खुद इसका सम्मान करें . इस फोरम के कुछ माननीय लेखक गन से कहना चाहूंगी की , की अगर आप कुछ भी लिखते हो तो वो एइसा हो की लोग पढ़ें तो उससे उनका ज्ञान बढे , आपके लिखने का कोई अर्थ हो . और पाठक गन उसे ध्यान से पढ़ें, न की आपके लिखे ब्लॉग तो हो ५ पेज के पर उसमे से 5 अक्षर भी लोग न पढ़े तो व्यर्थ में लिखने का क्या अर्थ ???आप मेहनत करते हो जबकि कोई उस और देखना भी पसंद नहीं करता की आपने क्या लिखा है .
मेरा कहना है की आप आपने दिमाग को बेकार की बातें लिखने के लिए जितना दौड़iते हो उतना यदि अच्छी अच्छी बातों के लिए दौड़ोगे तो आपकी मेहनत व्यर्थ न जाएगी हमारे पाठकों को उनके अमूल्य समय की कीमत मिलेगी .

रजनीश जी को धन्यवाद देना चाहूंगी की महिला सम्मान का उन्होंने इतना ख्याल रखा है और अपने इस हिंदी फोरम की और महिला लेखकों की गरिमा को बनाएं रखने की,gujarish की है लेखकों से .

Pavitra
17-03-2015, 02:29 PM
Everybody is gifted but some people never open their packages

भगवान ने हम सभी को बहुत सी खूबियों से नवाजा है, हम सभी के पास कुछ ना कुछ विशेष गुण होता है । कुछ लोग अपने उस गुण को पहचान लेते हैं और उसे तराश लेते हैं और कुछ लोग ताउम्र अज्ञान रहते हैं अपनी खूबियों से। ये जीवन हमें इसलिये ही मिला है कि हम इसे समझें , खुद को जानें और एक बेहतर व्यक्तित्व की तलाश कर उसे तराशें ।

Pavitra
19-04-2015, 12:02 AM
अच्छाई की महक

हम अक्सर ऐसे लोगों से मिलते हैं जो अपनी तारीफ करते हुए थकते नहीं हैं । वो कितने अच्छे हैं या कितने गुणी हैं ये वे लोग खुद ही बखानते रहते हैं । शायद वे लोग हमें नहीं ,खुद को ही ये विश्वास दिला रहे होते हैं कि वे अच्छे हैं ।

अच्छाई इत्र की तरह होती है । अच्छाई की अपनी ही महक है जो आप चाहें या ना चाहें आप से दूसरों तक और दूसरों से आप तक पहुँच ही जाती है। इसलिये यदि आप अच्छे हैं तो ये आपको बताने की जरूरत नहीं है , आपकी अच्छाई लोगों तक अपने आप ही पहुँचेगी , और अगर आप बार बार अपनी अच्छाई बता कर खुद को विश्वास दिलाना चाहते हैं कि आप अच्छे हैं तो ये हमेशा ध्यान रखें कि वास्तविकता ज्यादा दिन तक छुपी नहीं रह सकती । आप कुछ समय तक वो होने का नाटक कर सकते हैं जो आप नहींं हैं लेकिन अपनी असलियत हम ज्यादा दिन तक नहीं छुपा सकते ।

Deep_
19-04-2015, 07:11 PM
अच्छाई की महक

हम अक्सर ऐसे लोगों से मिलते हैं जो अपनी तारीफ करते हुए थकते नहीं हैं ....आप कुछ समय तक वो होने का नाटक कर सकते हैं जो आप नहींं हैं लेकिन अपनी असलियत हम ज्यादा दिन तक नहीं छुपा सकते ।

पवित्रा जी बहुत दिनों बाद आपकी यह पोस्ट पढने में अच्छा लगा।

वैसे आज-कल सेल्फ मार्केटींग का ज़माना है। लोग अपने गुण खुद ही गाते फिरते है...चाहे वह ओफिस हो, चौपाल हो या फेसबुक हो। मज़े की बात तो यह है की ओर (दुसरे) लोगों को भी यह पता होता है की वास्तविकता क्या है...लेकिन गुणगान करनेवाले बेशर्मी पर उतर आए है। :giggle:

Pavitra
20-04-2015, 11:12 PM
पवित्रा जी बहुत दिनों बाद आपकी यह पोस्ट पढने में अच्छा लगा।

वैसे आज-कल सेल्फ मार्केटींग का ज़माना है। लोग अपने गुण खुद ही गाते फिरते है...चाहे वह ओफिस हो, चौपाल हो या फेसबुक हो। मज़े की बात तो यह है की ओर (दुसरे) लोगों को भी यह पता होता है की वास्तविकता क्या है...लेकिन गुणगान करनेवाले बेशर्मी पर उतर आए है। :giggle:


आपका बहुत बहुत शुक्रिया ......:)

यही तो खास बात है कि सामने वाले को भी असलियत पता होती है पर फिर भी आत्ममुग्ध लोग अपनी तारीफ करते नहीं थकते .....:giggle:

soni pushpa
23-04-2015, 02:35 PM
आपका बहुत बहुत शुक्रिया ......:)

यही तो खास बात है कि सामने वाले को भी असलियत पता होती है पर फिर भी आत्ममुग्ध लोग अपनी तारीफ करते नहीं थकते .....:giggle:


सबसे पहले आपको बहुत बहुत धन्यवाद पवित्रा जी की आपने इतना सही विषय यहाँ रखा है और इसपर हम सब अपने अपने विचार प्रकट कर सकेंगे ...

कई लोग स्वाभाव की वजह से खुद की तारीफों के पुल बांधते हैं तो कई लोग खुद को सबके बिच में अपना स्थान बनाने के लिए एइसा करते हैं और कई लोग सिर्फ और सिर्फ किसी को निचा दिखाने के लिए खुद को महान जताते हैं .... और.. कुछ समय के लिए सच में लोगो के लिए वो महान बन भी जाते है तारीफ भी मिलती है उन्हें समाज से . और कई बार बिना वजह किसी को निचा भी दिखा देते हैं एइसे लोग किन्तु जैसे की हमेशा से कहा गया है अंत में जीत सत्य की ही होती है, और अछे की ही जीत होती है और एइसे समय में झूटे दिखावेदार लोगो की पोल खुल ही जाती है और वो और ज्यदा लोगो की नजरो से गिर जाते हैं .इससे तो अच्छा ये होता है की आप जो हो वो ही रहो झूठ का सहारा लेकर खुद की तारीफ और महानता बताने का कोई अर्थ नहीं क्यूंकि एक न एक दिन सच तो सामने आना ही है

दीप जी ने कहा आजकल खुद की तारीफ करके लोग सेल्फ मार्केटिंग करते हैं किन्तु ज्यदातर देखा गया है एइसे लोग हमेशा मजाक के पात्र बन जाते हैं लोग भले सामने कुछ न कहे पीछे से उनका मजाक ही बनता है .

Deep_
23-04-2015, 09:29 PM
दीप जी ने कहा आजकल खुद की तारीफ करके लोग सेल्फ मार्केटिंग करते हैं किन्तु ज्यदातर देखा गया है एइसे लोग हमेशा मजाक के पात्र बन जाते हैं लोग भले सामने कुछ न कहे पीछे से उनका मजाक ही बनता है .

आपकी बात सही है पुष्पा जी। पर मज़ाक भी कितनी बार उडाया जा सकता है? उनको भी पता ही है कि मेरा मज़ाक उडाया जाएगा। लेकिन उनकी प्रायोरिटी सेल्फ मार्केटींग होती है...ना की उनका स्वाभिमान। :bang-head:

soni pushpa
23-04-2015, 09:43 PM
आपकी बात सही है पुष्पा जी। पर मज़ाक भी कितनी बार उडाया जा सकता है? उनको भी पता ही है कि मेरा मज़ाक उडाया जाएगा। लेकिन उनकी प्रायोरिटी सेल्फ मार्केटींग होती है...ना की उनका स्वाभिमान। :bang-head:


जब स्वाभिमान ही खो दिया तो बाकि क्या रह गया ? दीप जी,.. इन्सान की प्रायोरिटी उसका स्वाभिमान है न,.. ना की सेल्फ मार्केटिंग ..और यदि आपमें गुण हैं तो वो छुपे तो रहेंगे ही नहीं सब को पता चल ही जाता है की कौन कैसा इंसान है फिर एईसी सेल्फ मार्केटिंग कौन से काम की ?

Pavitra
03-05-2015, 03:32 PM
लोग कहते हैं कि जो दुख में आपका साथ दे वही आपका सच्चा मित्र होता है क्योंकि सुख में तो सभी साथ रहते हैं पर दुख में ही पता चलता है कि वास्तव में हमारे साथ कौन है .......मुझे लगता है बदलती दुनिया के साथ इस विचार में भी परिवर्तन आया है । आज के समय में आपको आपके दुख में दुखी होने वाले लोग तो शायद फिर भी मिल जाएँ परन्तु आपकी खुशी में खुश होने वाले लोग मिलना बहुत ही मुश्किल है । तो अगर आपकी जिन्दगी में ऐसे लोग हैं जो आपकी खुशी में अपनी खुशी तलाशते हैं या आपको खुश देख कर खुश होते हैं तो उन्हें सम्भाल के रखिये .......ऐसे व्यक्ति और ऐसे रिश्ते ही हमारी वास्तविक सम्पत्ति हैं ।

Pavitra
29-05-2015, 11:33 PM
जब बात रिश्ते में बँधने की होती है तो हम हमेशा उस व्यक्ति का चुनाव करते हैं जिसे हम पसन्द करते हों या जिसे हम प्यार करते हों। बहुत ही कम ऐसा होता है जब हम ये देखते हों कि जिसको हम पसन्द कर रहे हैं क्या वो भी हमें पसन्द करता है? और अगर करता है तो क्या उसी स्तर से पसन्द करता है जिस स्तर से हम उसे पसन्द करते हैं ?

रिश्ता कभी उस व्यक्ति से नहीं जोडना चाहिये जिसे हम पसन्द करते हों , रिश्ता हमेशा उस व्यक्ति से जोडना चाहिये जो हमें पसन्द करता हो , क्योंकि जो व्यक्ति हमें पसन्द करता है उसके साथ जीवन बिताना ज्यादा आसान होता है। जब हम उस व्यक्ति का चुनाव करते हैं जिसे हम पसन्द करते हैं तब उस व्यक्ति की खुशियाँ हमारी जिम्मेदारी हो जाती हैं , उसकी देख-भाल , उसकी चिन्ता सब हमारी जिम्मेदारी रहती है । जबकि जब हम उस व्यक्ति का चुनाव करते हैं जो हमें पसन्द करता है , हमसे प्यार करता है तब हमारी खुशियाँ उस व्यक्ति की जिम्मेदारी रहती हैं ।


यूँ तो रिश्ते दोनों ओर से ही निभाए जाते हैं , पर फिर भी कहीं ना कहीं एक पक्ष ज्यादा समर्पित होता है और दूसरा उस पर आश्रित , अगर पसन्दगी दोनों ओर से समान मात्रा में हो तो श्रेष्ठ परन्तु यदि ऐसा ना हो तो हमेशा उसी व्यक्ति का चुनाव करें जिसकी पसन्द आप हों , क्योंकि चाहे हम कितनी ही कोशिश क्यों ना कर लें पर जीवन के एक पडाव पर आकर हम खुद को कमजोर महसूस करते हैं , जब हमारे अन्दर इतना सामर्थ्य नहीं होता कि हम रिश्ते जोडे रखने का प्रयास कर सकें और तब हमें समझ आता है कि - जिन्दगी सच में गुलजार होती अगर हम उनके साथ होते जो हमारा साथ पाने के लिये हमेशा प्रयासरत रहते हैं ।

rajnish manga
30-05-2015, 10:05 PM
परस्पर रिश्तों की पड़ताल व उनका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण अद्वितीय है. व्यवहारिक पक्षों पर भी आपने अच्छे तर्क प्रस्तुत किये हैं जिसके लिए आपको धन्यवाद देना चाहता हूँ.

Pavitra
11-07-2015, 03:20 PM
इन्सान की पहचान उसके द्वारा किये गये बडे बडे कारनामों से नहीं बल्कि उसके द्वारा की जाने वाली छोटी छोटी हरकतों से होती है । हम कई बार सोचते हैं कि हम चाहे कुछ भी करें , कौन देख रहा है या क्या फर्क पडता है ......पर सच तो ये है कि हम जो भी काम करते हैं वो लोगों की निगाहों में आता ही है और हमारी छवि को प्रभावित करता है । हमारी वास्तविक छवि उन कभी कभी किये जाने वाले बडे कारनामों से नहीं बनती बल्कि उन छोटी हरकतों से बनती है जो हम अपने दैनिक जीवन में करते हैं , क्योंकि उस समय हम अपने वास्तविक रूप में होते हैं ।

manishsqrt
11-07-2015, 04:53 PM
पवित्र जी इस थ्रेड को शुरू करने के लिए धन्यवाद, आपके बातो में ही शायद आपके सवालों का जवाब भी है. जाहिर है की जिंदगी अगर सीख देती है तो उसके लिए परीक्षा भी लेती ही होगी, बस यही जवाब है.मन जा सकता है की सीख देती है इसी लिए कठिनाइय आती है उसी सीख की झांच करने के लिए, उस परीक्षा में असफल होने पर वापस और कठिनाइय आती है ताकि उस सीख को हम आत्मसात करले.जिंदगी ऐसे तो कुछ नहीं देती पर हा वही अनुभव और ज्ञान देती है, हमारा मन्ना है की यदि जिंदगी को खुबसूरत बनाना हो तो एक आम नजरिया अपनाइए, चिन्ताओ से बचने के लिए ये फार्मूला सर्वोत्तम है, जहा हम घटनाओ को ज्यादा तवज्जो देते है वही चिंताए आती है, इसी से बचने के लिए नजरिया आम होना चाहिए.