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View Full Version : यह है 'भगवान' का अर्थ?


Teach Guru
08-10-2014, 10:21 PM
ईश्वर (शिव) और भगवान (विष्णु) दैवत्व के
दो अलग-अलग पहलुओं का प्रतिनिधित्व के हैं
वेदों में भगवान का कोई उल्लेख नहीं मिलता।

Teach Guru
08-10-2014, 10:21 PM
इनमें विभिन्न तरीकों से सृष्टि रचीयता के
विचार पर मंथन किया गया है लेकिन भगवान
जैसी कोई निश्चित अवधारणा नहीं है,
जैसी कि पुराणों में पाई जाती है।

Teach Guru
08-10-2014, 10:21 PM
वेद 4000 साल पुराने हैं और पुराण 2000 साल
पुराने। वेदों में विधि-विधान को महत्व
दिया गया है, जबकि पुराणों के काल तक आते-
आते एक सर्वशक्तिमान के
प्रति आस्था को अधिक महत्व दिया जाने
लगा था और इस सर्वशक्तिमान को भगवान
कहा जाने लगा था।

Teach Guru
08-10-2014, 10:22 PM
मगर बौद्ध तथा जैन धर्म में 'भगवान' शब्द
का प्रयोग उपाधि के तौर पर किया जाता है। ये
दोनों ही मठ आधारित व्यवस्थाएं हैं, जिनमें
ईश्वर की अवधारणा नहीं है।

Teach Guru
08-10-2014, 10:22 PM
उनका उद्देश्य तो सांसारिकता की बेड़ियों से
मुक्ति पाना है। जो ऐसा करने में सफल हो जाते
हैं, वे भगवान कहलाते हैं। अत: जैन महावीर
को भगवान कहते हैं और बौद्ध बुद्ध को। इन
दोनों धर्मों के अनुसार भगवान के पास कैवल्य
ज्ञान होता है और वे आम आदमी की तरह भय
और वासना के जाल में नहीं उलझे होते।
यहां 'भगवान' ज्ञानियों में
ज्ञानी को कहा जाता है।

Teach Guru
08-10-2014, 10:23 PM
इधर हिंदू धर्म में आम तौर पर विष्णु
को भगवान कहकर संबोधित किया जाता है,
जो राम और कृष्ण के रूप में संसार से बंधे रहते
हैं। हिंदू धर्म में भगवान क्या मायने रखते हैं,
यह समझने का एक अच्छा तरीका है यज्ञ
नामक वैदिक अनुष्ठान को समझना।

Teach Guru
08-10-2014, 10:23 PM
यज्ञ का आधार है यह विश्वास
कि सभी जीवों को भूख लगती है। यज्ञ ऐसे
भूखे जीवों के बीच आदान-प्रदान को सुगम
बनाता है। यज्ञ कराने वाला यजमान
देवों का आह्वान कर उन्हें 'खिलाता' है,
ताकि देव भी बदले में उसकी क्षुधा शांत करें।

Teach Guru
08-10-2014, 10:23 PM
कोई 2500 साल पहले मठीय व्यवस्थाओं के
उदय के साथ ही लोगों ने यह सोचना शुरू
किया कि क्या क्षुधा के ही पार चले जाना संभव
है। बुद्ध ने क्षुधा को वासना बताया। जैन धर्म
के 'जिन" ने क्षुधा को एक बंधन के रूप में देखा,
जो जीवधारियों को ऊंचे मुकाम पाने से
रोकता है।

Teach Guru
08-10-2014, 10:24 PM
हिंदुओं ने एक ऐसी हस्ती की कल्पना की,
जो क्षुधा पर विजय पा चुका है और जो देवों से
भी बड़ा है। ये थे 'महा-देव' जिन्हें ईश्वर और
शिव भी कहा गया। मगर चूंकि शिव
को कभी क्षुधा की अनुभूति नहीं होती थी,
सो उनके पास किसी यज्ञ में भाग लेने का कोई
कारण नहीं था।

Teach Guru
08-10-2014, 10:24 PM
यज्ञ में भाग लेने के लिए
जरूरी था कि क्षुधा अनुभव करने वालों के साथ
कोई समानुभूति हो। यह समानुभूति विष्णु
को थी। इस प्रकार ईश्वर (शिव) और भगवान
(विष्णु) दैवत्व के दो अलग-अलग पहलुओं
का प्रतिनिधित्व करते हैं।

Teach Guru
08-10-2014, 10:24 PM
'भगवान' शब्द की उत्पत्ति 'भाग' से हुई है।
प्रत्येक प्राणी विश्व के आनंद में अपना भाग
या हिस्सा चाहता है। अक्सर हमें लगता है
कि हमारे हिस्से में कम आया और दूसरों के
हिस्से में ज्यादा। जब हमें अपने धन
का बंटवारा करना होता है, तो हम नहीं जानते
कि कौन कितने हिस्से का हकदार है। केवल
भगवान ही जानते हैं कि कर्म के आधार पर
किसे कितना भाग मिलना चाहिए। वे सही 'भाग"
तय करने में समर्थ हैं, इसीलिए 'भगवान' हैं।

Teach Guru
08-10-2014, 10:25 PM
योनि को 'भग' भी कहा जाता है। भग का अर्थ
कामना तथा भाग्य भी होता है। दूसरे शब्दों में
कहें, तो 'भग' से तात्पर्य भौतिक संसार से है,
जो सभी भौतिक आनंदों, कामनाओं और भाग्य
को धारणा करने वाला गर्भ है। भगवान इस
भौतिक संसार से, भाग्य से और संसार में
उपलब्ध ऐंद्रिक सुखों बंधे हैं। वे इससे अलग
नहीं हो जाते। वे शिव, बुद्ध या महावीर
की तरह संन्यासी नहीं हैं।

Teach Guru
08-10-2014, 10:26 PM
भागवत (भगवान को पूजने वाले) का सबसे
प्राचीन पुरालेखीय उल्लेख मध्यप्रदेश के
विदिशा में 100 ईसा पूर्व के गरुड़ स्तंभ पर
ब्राह्मी में लिखा मिलता है, जो वासुदेव
(विष्णु-कृष्ण) को समर्पित है। भगवान का यह
भक्त था तक्षशिला के यवण राजा अंतलिखित
द्वारा भागभद्र के दरबार में भेजा गया एक
भारतीय-ग्रीक दूत। इसका नाम
था हेलियोडोरस।
साभारः मिड-डे

Dr.Shree Vijay
09-10-2014, 10:20 PM
प्रिय दिनेश जी इस नए ज्ञानवर्धक विषय पर सूत्र शुरू करने की हार्दिक बधाई हों.........

soni pushpa
10-10-2014, 01:25 PM
ruchipuran or gyan vardhak sutra .... bahut bahut dhanywad teach guruji

rajnish manga
10-10-2014, 08:57 PM
हिन्दू धर्म की विभिन्न अवधारणाओं, जिनके बारे में सामान्य जन को अधिक जानकारी नहीं है, के बारे में इस सूत्र में अच्छी जानकारी दी जा रही है. हमें अगली कड़ियों का इंतज़ार रहेगा.