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View Full Version : दिल की बात


Arjoo hot
29-11-2010, 03:24 PM
जब कोई ख्याल दिल से टकराता है ॥
दिल ना चाह कर भी, खामोश रह जाता है ॥
कोई सब कुछ कहकर, प्यार जताता है॥
कोई कुछ ना कहकर भी, सब बोल जाता है ॥

YUVRAJ
29-11-2010, 03:29 PM
वाह क्या बात है। :clap::clap::clap:
जब कोई ख्याल दिल से टकराता है ॥
दिल ना चाह कर भी, खामोश रह जाता है ॥
कोई सब कुछ कहकर, प्यार जताता है॥
कोई कुछ ना कहकर भी, सब बोल जाता है ॥

YUVRAJ
29-11-2010, 03:31 PM
काश!
आए याद उनको कि दुनिया में हम भी हैं।
आया हमें ख़्याल और आकर चला गया॥

Arjoo hot
29-11-2010, 03:41 PM
जब कोई ख्याल दिल से टकराता है ॥
दिल ना चाह कर भी, खामोश रह जाता है ॥
कोई सब कुछ कहकर, प्यार जताता है॥
कोई कुछ ना कहकर भी, सब बोल जाता है ॥
__________________

YUVRAJ
29-11-2010, 03:43 PM
क्या जानिए ख़्याल कहां है नजर कहां।
तेरी खबर के बाद फिर अपनी खबर कहां॥

khalid
29-11-2010, 03:57 PM
डटे रहो भाई जी
अच्छा मुकाबला कर सकते हो आप

kamesh
29-11-2010, 04:29 PM
जब कोई ख्याल दिल से टकराता है ॥
दिल ना चाह कर भी, खामोश रह जाता है ॥
कोई सब कुछ कहकर, प्यार जताता है॥
कोई कुछ ना कहकर भी, सब बोल जाता है ॥
__________________
न जी भर के देखा न कुछ बात की

बड़ी आरजू थी मुलाकात की

YUVRAJ
29-11-2010, 04:31 PM
ख़त में लिखवाकर उन्हें भेजा, तो मतला दर्द का।
दर्दे दिल अपना जताना कोई, हमसे सीख जाए॥

kamesh
29-11-2010, 05:48 PM
तुम्हे देखने की आरजू थी

क्या ये आरजू ,आरजू ही रह जाएगी

मोत से भी की है मेने आरजू

थोडा और मोहलत दे देना

ताकि दिल की हसरत हो जाये पूरी

Kumar Anil
29-11-2010, 07:52 PM
तुम्हे देखने की आरजू थी

क्या ये आरजू ,आरजू ही रह जाएगी

मोत से भी की है मेने आरजू

थोडा और मोहलत दे देना

ताकि दिल की हसरत हो जाये पूरी


खुदा करे ये आरजू पूरी हो , आमीन । बहुत दिन बाद पुरान दोस्त मिले हैँ , अखाड़ेबाजी का शौक पूरा कर लो ।अपन तो भैया तमाशबीन हैँ करतब तो तुम्हीँ दिखाओगे क्योँकि बिना गुलाटी मारे रह नहीँ पाओगे ।

Bholu
30-11-2010, 07:39 PM
Aarjo ji namsty
hum dil se aapka sewagat krta hai
aapne badi der laga di av se es forum par aane me
filal apko koi jarorat ho forum par toh yaad karna
hum aap ki jarorat ka sath jaror dege

jai_bhardwaj
30-11-2010, 11:52 PM
सिमटना, सिकुड़ना, झिझकना, सहमना
खुदा जाने मुझको ये क्या हो रहा है
बहुत कुछ है कहने को ऐ मेरे मौला!
मगर जाने क्यों मुझको डर लग रहा है

Kumar Anil
02-12-2010, 11:03 PM
दिल की बात

फोरम को न जाने क्या हो गया ,
रसातल मेँ न जाने क्योँ हो गया ।
नियामक हैँ इसके कहीँ सो रहे ,
हिन्दी को रोमन मेँ ये बो रहे ।
चिन्तन था मौलिक , बुद्धि प्रखर थी ,
कहाँ खो गये वो कहाँ सो गये ।
निशाँत का जलवा जय की कलम ,
इन नवेलोँ के आगे हो गयी है कलम ।
फोरम के खातिर कुछ मानक बनाओ ,
फूहड़ता को प्रविष्टि मेँ न गिनती कराओ ।
बत्तीसी निकाले जगधर हमारा ,
कूड़ा गजोधर का पढ़ता है प्यारा ।
बत्तीसी दिखाओ गिनती बढ़ाओ ,
अपने को आगे कुछ ऐसे भगाओ ,
प्रविष्टी का कोरम हो गया है पूरा ,
फोरम का उद्देश्य मगर रह गया अधूरा ।
तमगोँ की रेवड़ी बँटती यहाँ है ,
मुझको बताओ क्या फायदा है ।
चिन्तन को प्यारे फिर से सजाओ ,
हिन्दी की कक्षा फिर से लगाओ ,
सूत्र सार्थक हो तब ही बनाओ ,
प्रविष्टि के नाम पर न दुकाने चलाओ ।

jai_bhardwaj
03-12-2010, 12:07 AM
मित्र अनिल,
विचारोत्तेजक अभिव्यक्ति पढ़ कर हर्ष हुआ /
मैं आपके अवसाद को तनिक क्षीण करने की चेष्टा कर रहा हूँ /
मित्रवर! इस फोरम के सिद्धांत बहुत कुछ भारतीय परिवेश और भारतीय सोच पर टिके हुए हैं / अपने इस फोरम में हम हिन्दी (देवनागरी लिपि) में लिखना पढ़ना चाहते हैं और सचमुच हम ऐसा ही कर रहे हैं / कुछ नवागत सदस्य , मोबाइल (ऐसे जिनमे हिंदी से लिख पाना संभव नहीं है) से फोरम का भ्रमण करने वाले सदस्य, अत्यंत धीमी इन्टरनेट गति के माध्यम से फोरम में घूमने वाले सदस्य और हाँ ! कुछ तकनीकी परेशानियों से पीड़ित सदस्य ही रोमन में या फिर अंगरेजी में लिखते हैं / हमें ऐसे सदस्यों की मजबूरी समझनी ही पड़ती है /अब देखिये .. सभी सदस्यों की सोच एक जैसी तो नहीं हो सकती है , न / अपने इस फोरम में दोनों ही प्रकार की भाषाओं और विधाओं (अंगरेजी एवं हिन्दी-देवनागरी और रोमन) में लिखने की स्वतन्त्रता है किन्तु हिन्दी भाषा के प्रेमी सदस्य भला ऐसे रोमन लिखने वाले सदस्यों से कैसे विचलित हो सकते हैं ? हमें तो सभी को साथ लेकर चलना है !! कोई कंधा छोटा है कोई बड़ा तो क्या साथ छोड़ दें !! नहीं मित्र नहीं !! ऐसा तो हमारा स्वभाव नहीं है / जब वे रोमन लिखना नहीं छोड़ सकते तो हम हिंदी लिखना कैसे छोड़ सकते हैं /
सभी नियामक और प्रभारी अपने अपने कार्य में परिपक्व हैं निरंतर क्रियाशील हैं / कुछ नए नए विचारों - विषयों और फोरम के उत्कर्ष के लिए हम सभी निरंतर चर्चा कर रहे हैं / तमगों की रेवड़ियां सदस्यों को फोरम में(नियंत्रित किन्तु) स्वचालित पद्धति के अनुसार प्राप्त हो रही हैं /
साफ़ सुथरे और सार गर्भित सूत्रों और प्रविष्टियों की हमें भी आवश्यकता है और हम निरंतर स्वयं को ऐसे ही वातावरण में पाते हैं किन्तु यदि बगीचे में खिले हुए गुलाबों के मध्य कोई एक दो खरपतवार के पौधे खड़े हों तो उनसे हमें घृणा नहीं करनी चाहिए बल्कि गुलाबों पर प्यार बरसाना चाहिए / गुलाब दीर्घजीवी हैं किन्तु खरपतवार...? अल्पजीवी !
मुझे आपसे कुछ बहुउद्देशीय सूत्रों की प्रतीक्षा है /
धन्यवाद /

jai_bhardwaj
03-12-2010, 12:18 AM
लगी दिल की न बुझ पाए, उसे सावन कहूँ कैसे,
कली मन की न खिल पाए,उसे मधुबन कहूँ कैसे
विकलता की हवा का विष, तुम्हे भी छू गया है तो
मुझे फिर बन्धु ! बतलाओ, तुम्हे चन्दन कहूँ कैसे !!
गड़ा कर आँख में आँखे, सच्चाई जो न कह पाए
जमी हो धुन्ध चेहरे पर , उसे दरपन कहूँ कैसे !!
बंधा धागे में प्रिय अपना, जिसे सुनकर ना आ जाए
धड़कता तो है दिल लेकिन, उसे धड़कन कहूँ कैसे !!
यहाँ इस स्वार्थ के युग में, निभाया साथ तो अब तक,
नियति की वक्रता बतला, तुझे दुश्मन कहूँ कैसे !!
उठाकर शव स्वयं अपना, स्वयं अपने ही कंधे पर
विवश ढोना पड़े जिसको, उसे जीवन कहूँ कैसे !!

amit_tiwari
03-12-2010, 01:21 AM
दिल की बात

फोरम के खातिर कुछ मानक बनाओ ,
फूहड़ता को प्रविष्टि मेँ न गिनती कराओ ।
बत्तीसी निकाले जगधर हमारा ,
कूड़ा गजोधर का पढ़ता है प्यारा ।
बत्तीसी दिखाओ गिनती बढ़ाओ ,
अपने को आगे कुछ ऐसे भगाओ ,

==================
==================

सूत्र सार्थक हो तब ही बनाओ ,
प्रविष्टि के नाम पर न दुकाने चलाओ ।

अनिल भाई, काफी प्रसन्नता हुई जानकर आपके विचार |
बाकी जो आपको कहना है और जो मैं प्रतिक्रिया देना चाहता हूँ, आप समझ गए होंगे |
बहुतायत में सूत्र ऐसे बन रहे हैं जिनका उद्देश्य नहीं और प्रविष्टियाँ ऐसी हो रही हैं जिनका अर्थ नहीं |




किन्तु यदि बगीचे में खिले हुए गुलाबों के मध्य कोई एक दो खरपतवार के पौधे खड़े हों तो उनसे हमें घृणा नहीं करनी चाहिए बल्कि गुलाबों पर प्यार बरसाना चाहिए / गुलाब दीर्घजीवी हैं किन्तु खरपतवार...? अल्पजीवी !
मुझे आपसे कुछ बहुउद्देशीय सूत्रों की प्रतीक्षा है /
धन्यवाद /

भाई बीच में हमेशा कि तरह टांग अडाने के लिए खेद है किन्तु यह आप स्वयं जानते हैं कि गुलाब ही एक दो हैं खर-पतवार ज्यादा हो रहा है ! हमें पता है आप कह नहीं सकते किन्तु विश्वास है कि आप मंतव्य समझ रहे हैं |

ये खरपतवार अल्पजीवी है किन्तु ये बगिया में इतना कचरा ना कर दे कि कल को साफ़ करना ही असंभव हो जाये |

==============================
==============================
फोरम के एक कर्ताधर्ता से भी मैंने इस विषय में कहा था किन्तु उन्हें उचित समय की प्रतीक्षा है, मेरा बस इतना कहना है कि No matter how fast you code, if it has bug your program will not run.

kamesh
03-12-2010, 07:51 AM
दिल की बात

फोरम को न जाने क्या हो गया ,
रसातल मेँ न जाने क्योँ हो गया ।
नियामक हैँ इसके कहीँ सो रहे ,
हिन्दी को रोमन मेँ ये बो रहे ।
चिन्तन था मौलिक , बुद्धि प्रखर थी ,
कहाँ खो गये वो कहाँ सो गये ।
निशाँत का जलवा जय की कलम ,
इन नवेलोँ के आगे हो गयी है कलम ।
फोरम के खातिर कुछ मानक बनाओ ,
फूहड़ता को प्रविष्टि मेँ न गिनती कराओ ।
बत्तीसी निकाले जगधर हमारा ,
कूड़ा गजोधर का पढ़ता है प्यारा ।
बत्तीसी दिखाओ गिनती बढ़ाओ ,
अपने को आगे कुछ ऐसे भगाओ ,
प्रविष्टी का कोरम हो गया है पूरा ,
फोरम का उद्देश्य मगर रह गया अधूरा ।
तमगोँ की रेवड़ी बँटती यहाँ है ,
मुझको बताओ क्या फायदा है ।
चिन्तन को प्यारे फिर से सजाओ ,
हिन्दी की कक्षा फिर से लगाओ ,
सूत्र सार्थक हो तब ही बनाओ ,
प्रविष्टि के नाम पर न दुकाने चलाओ ।
मन रे तू कहे न धीर धरे
वो नेर्मोही मोह न जाने जिन का मोह करे

वह क्या बात कही है सर जी आप ने

Kumar Anil
03-12-2010, 11:28 AM
[QUOTE=amit_tiwari;22286]अनिल भाई, काफी प्रसन्नता हुई जानकर आपके विचार |
बाकी जो आपको कहना है और जो मैं प्रतिक्रिया देना चाहता हूँ, आप समझ गए होंगे |
बहुतायत में सूत्र ऐसे बन रहे हैं जिनका उद्देश्य नहीं और प्रविष्टियाँ ऐसी हो रही हैं जिनका अर्थ नहीं |

तिवारी जी शुक्रिया मेरी पीड़ा मेँ सहभागिता के लिए ।मित्र आपका कथन शत प्रतिशत सत्य है कि सोद्देश्यपूर्ण सूत्र मेँ अर्थपूर्ण प्रविष्टि ही की जानी चाहिए । निशाँत जी के सूत्र चरित्रहीन के मामिँक विश्लेषण मे डूबने के लिए उसके साथ तादात्म्य स्थापित करने के लिए मैँ प्रायः हर दूसरे तीसरे उसे पढ़ता अवश्य हूँ मगर आज वो अनर्गल प्रलाप भरे सूत्रोँ के धक्के खाकर अन्तिम पृष्ठ पर अपनी नियति पर आँसू बहा रहा है । आप जैसे विवेकशील मेरी मनःस्थिति का स्वतः अनुमान कर सकते हैँ । कतिपय सदस्योँ को अपनी पोस्ट मेँ अप्रासंगिक रूप से ही ही हा हा मात्र लिखकर प्रविष्टि बढ़ाते हुए पाया , निश्चय ही कालान्तर मेँ इसके दुष्परिणाम हमारे सम्मुख होँगे ।प्रेम के सम्बन्ध मेँ सूत्रधार उसे सेक्स बता रहा है । प्रेम की व्यापकता को कितने संकीर्ण अर्थ मेँ प्रस्तुत किया जा रहा है बल्कि मैँ तो देख रहा हूँ कि इन मायावी शब्दोँ के माध्यम से फोरम मेँ विकार पैदा करने का एक सतत् कार्यक्रम जारी हो गया है ।

teji
03-12-2010, 11:49 AM
[QUOTE=amit_tiwari;22286]निशाँत जी के सूत्र चरित्रहीन के मामिँक विश्लेषण मे डूबने के लिए उसके साथ तादात्म्य स्थापित करने के लिए मैँ प्रायः हर दूसरे तीसरे उसे पढ़ता अवश्य हूँ मगर आज वो अनर्गल प्रलाप भरे सूत्रोँ के धक्के खाकर अन्तिम पृष्ठ पर अपनी नियति पर आँसू बहा रहा है ।


मैं पर्वतारोही हूँ।
शिखर अभी दूर है।
और मेरी साँस फूलनें लगी है।

मुड़ कर देखता हूँ
कि मैनें जो निशान बनाये थे,
वे हैं या नहीं।
मैंने जो बीज गिराये थे,
उनका क्या हुआ?

किसान बीजों को मिट्टी में गाड़ कर
घर जा कर सुख से सोता है,

इस आशा में
कि वे उगेंगे
और पौधे लहरायेंगे ।
उनमें जब दानें भरेंगे,
पक्षी उत्सव मनानें को आयेंगे।

लेकिन कवि की किस्मत
इतनी अच्छी नहीं होती।
वह अपनें भविष्य को
आप नहीं पहचानता।

हृदय के दानें तो उसनें
बिखेर दिये हैं,
मगर फसल उगेगी या नहीं
यह रहस्य वह नहीं जानता ।

teji
03-12-2010, 12:03 PM
[QUOTE=amit_tiwari;22286]कतिपय सदस्योँ को अपनी पोस्ट मेँ अप्रासंगिक रूप से ही ही हा हा मात्र लिखकर प्रविष्टि बढ़ाते हुए पाया

हम जीवन के महाकाव्य हैं

केवल छ्न्द प्रसंग नहीं हैं।


कंकड़-पत्थर की धरती है
अपने तो पाँवों के नीचे


हम कब कहते बन्धु! बिछाओ
स्वागत में मखमली गलीचे
रेती पर जो चित्र बनाती
ऐसी रंग-तरंग नहीं है।


तुमको रास नहीं आ पायी
क्यों अजातशत्रुता हमारी


छिप-छिपकर जो करते रहते
शीतयुद्ध की तुम तैयारी
हम भाड़े के सैनिक लेकर
लड़ते कोई जंग नहीं हैं।


कहते-कहते हमें मसीहा
तुम लटका देते सलीब पर


हंसें तुम्हारी कूटनीति पर
कुढ़ें या कि अपने नसीब पर
भीतर-भीतर से जो पोले
हम वे ढोल-मृदंग नहीं है।


तुम सामुहिक बहिष्कार की
मित्र! भले योजना बनाओ


जहाँ-जहाँ पर लिखा हुआ है
नाम हमारा, उसे मिटाओ
जिसकी डोर हाथ तुम्हारे
हम वह कटी पतंग नहीं है।

amit_tiwari
03-12-2010, 12:41 PM
तिवारी जी शुक्रिया मेरी पीड़ा मेँ सहभागिता के लिए ।मित्र आपका कथन शत प्रतिशत सत्य है कि सोद्देश्यपूर्ण सूत्र मेँ अर्थपूर्ण प्रविष्टि ही की जानी चाहिए । निशाँत जी के सूत्र चरित्रहीन के मामिँक विश्लेषण मे डूबने के लिए उसके साथ तादात्म्य स्थापित करने के लिए मैँ प्रायः हर दूसरे तीसरे उसे पढ़ता अवश्य हूँ मगर आज वो अनर्गल प्रलाप भरे सूत्रोँ के धक्के खाकर अन्तिम पृष्ठ पर अपनी नियति पर आँसू बहा रहा है । आप जैसे विवेकशील मेरी मनःस्थिति का स्वतः अनुमान कर सकते हैँ । कतिपय सदस्योँ को अपनी पोस्ट मेँ अप्रासंगिक रूप से ही ही हा हा मात्र लिखकर प्रविष्टि बढ़ाते हुए पाया , निश्चय ही कालान्तर मेँ इसके दुष्परिणाम हमारे सम्मुख होँगे ।प्रेम के सम्बन्ध मेँ सूत्रधार उसे सेक्स बता रहा है । प्रेम की व्यापकता को कितने संकीर्ण अर्थ मेँ प्रस्तुत किया जा रहा है बल्कि मैँ तो देख रहा हूँ कि इन मायावी शब्दोँ के माध्यम से फोरम मेँ विकार पैदा करने का एक सतत् कार्यक्रम जारी हो गया है ।

[/quote]

क्या कुछ होना बचा है बन्धु?

हर इमेल बॉक्स में ५० प्रतिदिन की संख्या में आने वाली स्पैम पर सूत्र ! भीख मांगने की कला (???) पर सूत्र ! व्यक्तिगत संदेशों वाले विषयों पर सूत्र और उन पर बधाइयों का ऐसा तांता जैसे तीन पुश्तों से बाँझ के घर जुड़वां बच्चे पैदा हो गए |

अब भी ना चेते तो ...

मैं पर्वतारोही हूँ।
शिखर अभी दूर है।
और मेरी साँस फूलनें लगी है।

[/QUOTE]

Get a life.

YUVRAJ
03-12-2010, 01:37 PM
अमित भाई जी,
पतंगे की जिंदगी की चिंता न करें और दिल से सहयोगपूर्ण भाव से सहयोग करें। आपसे काफी उम्मीदें अभी भी जिंदा हैं। पैकिंग को तो एक न एक दिन डस्टबीन का रुख करना ही होगा। अन्दर का समान ही काम आना है। जब तक लोगों का दिल करे पैकिंग को सजाने दें, डिस्प्ले में।
अब जो संस्कार मिले हैं उन्हें लोग छोड़ने से रहे। आपसे क्या छिपा है और कनवा राजा वाली कहावत भी हमें तो आप जैसे को बतानी नहीं पड़ेगी।
शायद आप जैसा न लिख सकूँगा इस लिये वक्तव्य को दिल पर न लें।

Kumar Anil
03-12-2010, 01:42 PM
मित्र अनिल,
विचारोत्तेजक अभिव्यक्ति पढ़ कर हर्ष हुआ /
मैं आपके अवसाद को तनिक क्षीण करने की चेष्टा कर रहा हूँ /
मित्रवर! इस फोरम के सिद्धांत बहुत कुछ भारतीय परिवेश और भारतीय सोच पर टिके हुए हैं / अपने इस फोरम में हम हिन्दी (देवनागरी लिपि) में लिखना पढ़ना चाहते हैं और सचमुच हम ऐसा ही कर रहे हैं / कुछ नवागत सदस्य , मोबाइल (ऐसे जिनमे हिंदी से लिख पाना संभव नहीं है) से फोरम का भ्रमण करने वाले सदस्य, अत्यंत धीमी इन्टरनेट गति के माध्यम से फोरम में घूमने वाले सदस्य और हाँ ! कुछ तकनीकी परेशानियों से पीड़ित सदस्य ही रोमन में या फिर अंगरेजी में लिखते हैं / हमें ऐसे सदस्यों की मजबूरी समझनी ही पड़ती है /अब देखिये .. सभी सदस्यों की सोच एक जैसी तो नहीं हो सकती है , न / अपने इस फोरम में दोनों ही प्रकार की भाषाओं और विधाओं (अंगरेजी एवं हिन्दी-देवनागरी और रोमन) में लिखने की स्वतन्त्रता है किन्तु हिन्दी भाषा के प्रेमी सदस्य भला ऐसे रोमन लिखने वाले सदस्यों से कैसे विचलित हो सकते हैं ? हमें तो सभी को साथ लेकर चलना है !! कोई कंधा छोटा है कोई बड़ा तो क्या साथ छोड़ दें !! नहीं मित्र नहीं !! ऐसा तो हमारा स्वभाव नहीं है / जब वे रोमन लिखना नहीं छोड़ सकते तो हम हिंदी लिखना कैसे छोड़ सकते हैं /
सभी नियामक और प्रभारी अपने अपने कार्य में परिपक्व हैं निरंतर क्रियाशील हैं / कुछ नए नए विचारों - विषयों और फोरम के उत्कर्ष के लिए हम सभी निरंतर चर्चा कर रहे हैं / तमगों की रेवड़ियां सदस्यों को फोरम में(नियंत्रित किन्तु) स्वचालित पद्धति के अनुसार प्राप्त हो रही हैं /
साफ़ सुथरे और सार गर्भित सूत्रों और प्रविष्टियों की हमें भी आवश्यकता है और हम निरंतर स्वयं को ऐसे ही वातावरण में पाते हैं किन्तु यदि बगीचे में खिले हुए गुलाबों के मध्य कोई एक दो खरपतवार के पौधे खड़े हों तो उनसे हमें घृणा नहीं करनी चाहिए बल्कि गुलाबों पर प्यार बरसाना चाहिए / गुलाब दीर्घजीवी हैं किन्तु खरपतवार...? अल्पजीवी !
मुझे आपसे कुछ बहुउद्देशीय सूत्रों की प्रतीक्षा है /
धन्यवाद /

आदरणीय जय जी उर्फ भाईजी , सादर प्रणाम
अगर हमारे वार्तालाप हिन्दी मेँ हो सकते हैँ तो हम उसे देवनागरी मेँ लिपिबद्ध करने मेँ क्योँ असहज महसूस करते हैँ । जहाँ तक मोबाईल से भ्रमण का प्रश्न है मैँ स्वयँ उसी का सफलतापूर्वक प्रयोग करता हूँ । हाँ उर्दू लफ्जोँ मेँ नुक्ते का टकंण करने मेँ असमर्थ रहा । दो भिन्न सदस्योँ को एक साथ उद्धृत कर उत्तर देने मेँ भी तकनीकी अज्ञानतावश असमर्थ रहा किन्तु यह कुछ विवशताओँ के बावजूद बहुत मुफीद है । जहाँ तक रोमन का प्रश्न है कम से कम आपकी बात , विचार , भाव स्पष्ट तो होने चाहिए । आपको अशुद्ध वर्तनी , अशुद्ध शब्द और वाक्य विन्यास से युक्त प्रविष्टियोँ के अधिसँख्य दृष्टान्त मिल जायेँगे जो पढ़ते वक्त कचोटते हैँ । यदि ससमय उनकी एडिटिंग हो जाये तो कितना अच्छा रहे और सदस्य विशेष भी अपनी गलती का अहसास कर अगली बार उस दोष से मुक्त होने का सम्भव प्रयास करेगा । आप गुलाबोँ के मध्य खरपतवार दिखा रहे हैँ परन्तु मुझे तो खरपतवारोँ की नर्सरी मेँ कुछ असहज , किँकर्तव्यविमूढ़ , व्याकुल गुलाब सूखे की मार से बचने के लिए बस बाट जोहते दिखायी दे रहे हैं । वे उन क्षणोँ को कोस रहेँ हैँ जब उन्होने अपने हिस्से का खाद और पानी उन नामुरादोँ को पिलाकर अपने वजूद के लिए ही चुनौती तैयार कर ली । आप मेरे अग्रज हैँ और अनुकरणीय भी । मैँ आपके लेखन का तो प्रशंसक था ही अब यह भी देख रहा हूँ कि शाँतचित्त हो चीजोँ को सुलझाने मेँ भी सिद्धहस्त हैँ । आपके पदेन दायित्वोँ की विवशता का भी भान है मुझे । मुझे आशा ही नहीँ वरन् पूर्ण विश्वास है कि आप जैसे कुशल प्रशासक शीघ्र ही किसी जादुई कीटनाशक से इन खरपतवारोँ को समूल नष्ट कर इस उपवन को महका देँगे ।

YUVRAJ
03-12-2010, 01:44 PM
वाह क्या खूब… :cheers:
आपकी रचना बहुत ही सुन्दर है तेजी…:clap::clap::clap:



हम जीवन के महाकाव्य हैं

केवल छ्न्द प्रसंग नहीं हैं।


कंकड़-पत्थर की धरती है
अपने तो पाँवों के नीचे


हम कब कहते बन्धु! बिछाओ
स्वागत में मखमली गलीचे
रेती पर जो चित्र बनाती
ऐसी रंग-तरंग नहीं है।


तुमको रास नहीं आ पायी
क्यों अजातशत्रुता हमारी


छिप-छिपकर जो करते रहते
शीतयुद्ध की तुम तैयारी
हम भाड़े के सैनिक लेकर
लड़ते कोई जंग नहीं हैं।


कहते-कहते हमें मसीहा
तुम लटका देते सलीब पर


हंसें तुम्हारी कूटनीति पर
कुढ़ें या कि अपने नसीब पर
भीतर-भीतर से जो पोले
हम वे ढोल-मृदंग नहीं है।


तुम सामुहिक बहिष्कार की
मित्र! भले योजना बनाओ


जहाँ-जहाँ पर लिखा हुआ है
नाम हमारा, उसे मिटाओ
जिसकी डोर हाथ तुम्हारे
हम वह कटी पतंग नहीं है।

YUVRAJ
03-12-2010, 01:52 PM
:clap::clap::clap::clap::clap:........:bravo:
बहुत ही सही और उचित सलाह पर सभी सदस्यों पर यह दबाव न बनाया जाये, साथ ही साथ साहित्यिक और देवनागरी से जरूरी है कि एक भयमुक्त समाज का निर्माण किया जाये। जो की अभी शैशव काल में है मित्र अनिल जी।
हार्दिक धन्यवाद।
आदरणीय जय जी उर्फ भाईजी , सादर प्रणाम
अगर हमारे वार्तालाप हिन्दी मेँ हो सकते हैँ तो हम उसे देवनागरी मेँ लिपिबद्ध करने मेँ क्योँ असहज महसूस करते हैँ । जहाँ तक मोबाईल से भ्रमण का प्रश्न है मैँ स्वयँ उसी का सफलतापूर्वक प्रयोग करता हूँ । हाँ उर्दू लफ्जोँ मेँ नुक्ते का टकंण करने मेँ असमर्थ रहा । दो भिन्न सदस्योँ को एक साथ उद्धृत कर उत्तर देने मेँ भी तकनीकी अज्ञानतावश असमर्थ रहा किन्तु यह कुछ विवशताओँ के बावजूद बहुत मुफीद है । जहाँ तक रोमन का प्रश्न है कम से कम आपकी बात , विचार , भाव स्पष्ट तो होने चाहिए । आपको अशुद्ध वर्तनी , अशुद्ध शब्द और वाक्य विन्यास से युक्त प्रविष्टियोँ के अधिसँख्य दृष्टान्त मिल जायेँगे जो पढ़ते वक्त कचोटते हैँ । यदि ससमय उनकी एडिटिंग हो जाये तो कितना अच्छा रहे और सदस्य विशेष भी अपनी गलती का अहसास कर अगली बार उस दोष से मुक्त होने का सम्भव प्रयास करेगा । आप गुलाबोँ के मध्य खरपतवार दिखा रहे हैँ परन्तु मुझे तो खरपतवारोँ की नर्सरी मेँ कुछ असहज , किँकर्तव्यविमूढ़ , व्याकुल गुलाब सूखे की मार से बचने के लिए बस बाट जोहते दिखायी दे रहे हैं । वे उन क्षणोँ को कोस रहेँ हैँ जब उन्होने अपने हिस्से का खाद और पानी उन नामुरादोँ को पिलाकर अपने वजूद के लिए ही चुनौती तैयार कर ली । आप मेरे अग्रज हैँ और अनुकरणीय भी । मैँ आपके लेखन का तो प्रशंसक था ही अब यह भी देख रहा हूँ कि शाँतचित्त हो चीजोँ को सुलझाने मेँ भी सिद्धहस्त हैँ । आपके पदेन दायित्वोँ की विवशता का भी भान है मुझे । मुझे आशा ही नहीँ वरन् पूर्ण विश्वास है कि आप जैसे कुशल प्रशासक शीघ्र ही किसी जादुई कीटनाशक से इन खरपतवारोँ को समूल नष्ट कर इस उपवन को महका देँगे ।

Kumar Anil
03-12-2010, 01:58 PM
और उन पर बधाइयों का ऐसा तांता जैसे तीन पुश्तों से बाँझ के घर जुड़वां बच्चे पैदा हो गए |

क्या उपमा दी है मान गये गुरु आपके पाण्डित्य को ।मेरा सलाम कुबूल करेँ ।

amit_tiwari
03-12-2010, 09:35 PM
और उन पर बधाइयों का ऐसा तांता जैसे तीन पुश्तों से बाँझ के घर जुड़वां बच्चे पैदा हो गए |

क्या उपमा दी है मान गये गुरु आपके पाण्डित्य को ।मेरा सलाम कुबूल करेँ ।

उपमा क्या भाई क्रोध है ! आक्रोश है और फिर भी शब्दों को दबा रहे हैं क्यूंकि अरविन्द भाई का नाम है |

सब जान समझ गए हम, अब क्या कहें विधाता !
कल जो लिखते थे गंध, आज बन रहे हैं ज्ञाता !!!

धर्म, लाज, सम्बन्ध और कुल के वो हर्ता
मूछें मोड़, सीना तान बन रहे दुःख हर्ता !!!

प्रेम, भाव, संस्कार का जो एक लेश भी ये पाते!
बिना किसी के कहे शर्म से खुद ही मर जाते !

jai_bhardwaj
03-12-2010, 10:20 PM
हम जमीं के चाँद तारों में रहे मसरूफ यूं,
आसमां के चाँद तारे, बेरहम हँसते रहे !!
हमने जैसे ही कलम की नोक कागज़ पे रखी
हम इधर रोते रहे कागज़ कलम हँसते रहे !!

Sikandar_Khan
03-12-2010, 10:54 PM
खुद को श्रेष्ठ बताकर दूसरे को कमजोर समझना ये कहां कि बुद्धिमानता है ।
फोरम के हर एक सदस्य का फोरम के लिए महत्वपूर्ण है बिना सभी के सहयोग से कोई भी अकेला कुछ नही कर सकता है
एक या दो गुलाब से माला नही बनाई जा सकती है ।

jai_bhardwaj
03-12-2010, 11:42 PM
मुझे आशा ही नहीँ वरन् पूर्ण विश्वास है कि कुशल प्रशासक शीघ्र ही किसी जादुई कीटनाशक से इन खरपतवारोँ को समूल नष्ट कर इस उपवन को महका देँगे ।



अनिल भाई, राम राम /
आज ताजमहल देखने में अद्वितीय अवश्य प्रतीत होता है किन्तु क्या किसी ने ऐसे भव्य भवनों की नींव में लगे टेढ़े मेढ़े और बदरंग पत्थरों को देखा और सराहा है ?
हम जब भी किसी मंदिर के शीर्ष में लगे त्रिशूल की चमक से चमत्कृत हो रहे हों तो हमें उसी मंदिर की सीढ़ियों के विषय में भी सोचना होगा !
आप और अमित भाई ने सर्वथा उचित ही कहा है कि अभी इस पटल का वह स्वरुप नहीं आया है जिसकी कल्पना हम सभी ने की है ..... और सच कहूं तो उस कल्पना का पांच प्रतिशत अंश भी अभी नहीं दिख रहा है यहाँ ... / हम फिर से यही कहेंगे कि हम सभी (प्रबंधन व सदस्य) एक ही प्रयास कर रहे हैं कि हम अपनी कल्पना को साकार कर सकें किन्तु हम यह भी जानते हैं कि यह कार्य चुटकियों का नहीं है क्योंकि '' रोम एक दिन में नहीं निर्मित हुआ था/' हमें आप सभी का सहयोग एवं अथक धैर्य वांछित है /
मित्र, नया नया नलकूप लगाने पर आरम्भ में कई दिनों तक बालू मिश्रित पानी आता है किन्तु कुछ दिनों के उपरान्त बालू का अंश मात्र नहीं रह जाता है / कुछ दिनों के बाद तो हम बालूमिश्रित जल प्राप्ति के दिनों को भूल भी जाते हैं / हम निरंतर स्वच्छता की तरफ अग्रसर हैं / पूर्ण स्वच्छ और कल्पना के मूर्त रूप में समय कितना लगेगा, यह भविष्य की कोख में है / धन्यवाद /

amit_tiwari
04-12-2010, 12:27 AM
हम फिर से यही कहेंगे कि हम सभी (प्रबंधन व सदस्य) एक ही प्रयास कर रहे हैं कि हम अपनी कल्पना को साकार कर सकें

आमीन

मेरा विचार है कि इस चर्चा को यहीं पर विराम दे दिया जाये, कम से कम कुछ समय के लिए अवश्य |
वर्तमान प्रबंधन पर अभी मुझे व्यक्तिगत रूप से विश्वास है कि सब जल्दी पटरी पर आ जायेगा |



इस विषय से इतर भाई, एक बात कहना चाहूँगा |
आपके हस्ताक्षर, व्यक्तिगत ब्यौरे में शमशान, मृत्यु,कफ़न आदि ही है | आप जैसे आशावादी व्यक्ति के साथ ये निराशाजनक उपमान कुछ अजीब लगते हैं !!!

Kumar Anil
04-12-2010, 06:10 AM
आमीन

मेरा विचार है कि इस चर्चा को यहीं पर विराम दे दिया जाये, कम से कम कुछ समय के लिए अवश्य |
वर्तमान प्रबंधन पर अभी मुझे व्यक्तिगत रूप से विश्वास है कि सब जल्दी पटरी पर आ जायेगा |



इस विषय से इतर भाई, एक बात कहना चाहूँगा |
आपके हस्ताक्षर, व्यक्तिगत ब्यौरे में शमशान, मृत्यु,कफ़न आदि ही है | आप जैसे आशावादी व्यक्ति के साथ ये निराशाजनक उपमान कुछ अजीब लगते हैं !!!

भाई जी मैँ भी इनसे सहमत हूँ ।

teji
04-12-2010, 07:39 AM
एक अच्छी पोस्ट अन्धेरी रात में
नदी के उस पार किसी दहलीज़ पर
टिमटिमाते दीपक की ज्योति है
दिल के उदास काग़ज़ पर
भावनाओं का झिलमिलाता मोती है
जहाँ लफ़्ज़ों में चाहत के सुर बजते है

ये वो साज़ है
इसे तनहाइयों में पढ़ो
ये खामोशी की आवाज़ है
एक बेहतर पोस्ट हमारे जज़्बात में

उम्मीद की तरह घुलकर
कभी हँसाती, कभी रुलाती है
रिश्तों के मेलों में बरसों पहले बिछड़े
मासूम बचपन से मिलाती है
एक संजीदगी से भरी पोस्ट
हमारे सब्र को आज़माती है

पोस्ट को ग़ौर से पढ़ो
इसके हर पन्ने पर
ज़िन्दगी मुस्कराती है

teji
04-12-2010, 07:43 AM
प्राची के वातायन पर चढ़
प्रात किरन ने गाया,
लहर-लहर ने ली अँगड़ाई
बंद कमल खिल आया,

मेरी मुस्कानों से मेरा
मुख न हुआ उजियाला,

आशा के मैं क्या तुमको राग सुनाऊँ।
क्या गाऊँ जो मैं तेरे मन को भा जाऊँ।

Kumar Anil
04-12-2010, 10:26 AM
एक अच्छी पोस्ट अन्धेरी रात में
नदी के उस पार किसी दहलीज़ पर
टिमटिमाते दीपक की ज्योति है
दिल के उदास काग़ज़ पर
भावनाओं का झिलमिलाता मोती है
जहाँ लफ़्ज़ों में चाहत के सुर बजते है

ये वो साज़ है
इसे तनहाइयों में पढ़ो
ये खामोशी की आवाज़ है
एक बेहतर पोस्ट हमारे जज़्बात में

उम्मीद की तरह घुलकर
कभी हँसाती, कभी रुलाती है
रिश्तों के मेलों में बरसों पहले बिछड़े
मासूम बचपन से मिलाती है
एक संजीदगी से भरी पोस्ट
हमारे सब्र को आज़माती है

पोस्ट को ग़ौर से पढ़ो
इसके हर पन्ने पर
ज़िन्दगी मुस्कराती है

आपकी दो स्तरीय रचनायेँ पूर्व मेँ पढ़ चुका हूँ जो मेरे जेहन मेँ अभी तक हैँ । मोहतरमा बहुत उम्दा पोस्ट लेकर दिल के तार झँकृत करने को आप फिर हाजिर हैँ , शुक्रिया । कितनी सुन्दर पँक्ति है कि बरसोँ पहले बिछड़े मासूम बचपन से मिलाती है । काश , ऐसा सम्भव हो कि हम अपने मासूम बचपन से एक मुलाकात कर जीवन के निश्छल अनमोल क्षणोँ को फिर से जी सकेँ । एक व्यक्तिगत टिप्पणी करना चाहूँगा कि आपके व्यक्तित्व मेँ अल्हड़ता और सँजीदगी का अद्भुत सामंजस्य है जो बिरला ही देखने को मिलता है ।

jai_bhardwaj
04-12-2010, 10:19 PM
इस विषय से इतर भाई, एक बात कहना चाहूँगा |
आपके हस्ताक्षर, व्यक्तिगत ब्यौरे में शमशान, मृत्यु,कफ़न आदि ही है | आप जैसे आशावादी व्यक्ति के साथ ये निराशाजनक उपमान कुछ अजीब लगते हैं !!!

लोचनों में नीर अब तक आ गया है
मोह है जो अश्रु बन कर छा गया है
किन्तु वो झर न सका है दृग-पटल से
ज्ञान उसको वहीं पर ठहरा गया है !!

क्या जगत का सार है? सोचा हृदय ने
मानवों सा क्या किया है अधम 'जय' ने
मैं - हमारा, तुम - तुम्हारा की डगर चल
सत्य के पथ को कहीं बिसरा गया है!!

अधिकार व कर्त्तव्य के ही संतुलन में
खेल, कौतुक, मोद, भोजन व शयन में
माँ-पिता, भ्राता-बहन, व तनय - दारा
इन सभी में ही हृदय भरमा गया है!!

तन शिथिल होता रहा हर बीते पल में
वे नहीं दिखते जो संग थे बीते कल में
हम जिस किसी को देखते हैं वह मिटेगा
मृत्यु का यह सच मुझे अब भा गया है !!
:cheers::bike::cheers::bike:

ABHAY
04-12-2010, 10:39 PM
जाते जाते क्या कहे कोई नहीं है दिलदार
एक मिली भी तो इस तरह छोर गई मालूम नहीं
जब तक है सासे याद करता रहूँगा दोस्तों !

amit_tiwari
05-12-2010, 12:25 AM
तन शिथिल होता रहा हर बीते पल में
वे नहीं दिखते जो संग थे बीते कल में
हम जिस किसी को देखते हैं वह मिटेगा
मृत्यु का यह सच मुझे अब भा गया है !!
:cheers::bike::cheers::bike:

अगर कुछ बिगड़ा है भाई तो सुधर सकता है, कुछ गलत हुआ है तो प्रायश्चित भी हो सकता है किन्तु मृत्यु तो बस हर चीज का अंत ही है |
यदि संभव हो तो इस भाव को दूर ही रखें, यह मेरा व्यक्तिगत अनुरोध है |

अमित

teji
05-12-2010, 08:06 AM
आपके व्यक्तित्व मेँ अल्हड़ता

तुसी ऐसा क्यू लगता है. anyways शुक्रिया मेरे पोस्ट्स को appreciate करने के लिए. मैंने एक ओर थ्रेड बनाया है हर तस्वीर इक कविता है (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=1514), ये भी तुसी देखना.

Kumar Anil
06-12-2010, 04:27 PM
तुसी ऐसा क्यू लगता है. Anyways शुक्रिया मेरे पोस्ट्स को appreciate करने के लिए. मैंने एक ओर थ्रेड बनाया है हर तस्वीर इक कविता है (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=1514), ये भी तुसी देखना.

आप बुलायेँ और हम न आयेँ , ऐसे तो आसार नहीँ ।

Kumar Anil
07-12-2010, 04:19 PM
[QUOTE=Kumar Anil;22422]


मैं पर्वतारोही हूँ।
शिखर अभी दूर है।
और मेरी साँस फूलनें लगी है।

मुड़ कर देखता हूँ
कि मैनें जो निशान बनाये थे,
वे हैं या नहीं।
मैंने जो बीज गिराये थे,
उनका क्या हुआ?

किसान बीजों को मिट्टी में गाड़ कर
घर जा कर सुख से सोता है,

इस आशा में
कि वे उगेंगे
और पौधे लहरायेंगे ।
उनमें जब दानें भरेंगे,
पक्षी उत्सव मनानें को आयेंगे।

लेकिन कवि की किस्मत
इतनी अच्छी नहीं होती।
वह अपनें भविष्य को
आप नहीं पहचानता।

हृदय के दानें तो उसनें
बिखेर दिये हैं,
मगर फसल उगेगी या नहीं
यह रहस्य वह नहीं जानता ।

तेजी जी , पर्वतारोही के सन्दर्भ मेँ मैँ आपसे अंशमात्र भी सहमत नहीँ । शिखर पर आरोहण करने वाला कभी पीछे पलटकर अपने पदचिन्होँ पर दृष्टिपात नहीँ करता । वह तो सकारात्मक सोच के साथ अपने लक्ष्य के लिए प्रतिबद्ध होकर ऊँचाईयोँ को स्पर्श करने को आतुर होता है । उसके द्वारा बनाये गये पदचिन्ह तो केवल उसका अनुसरण करने वालोँ के लिए ही अपना अस्तित्व बनाते हैँ ।

amit_tiwari
07-12-2010, 04:59 PM
[QUOTE=teji;22433]

तेजी जी , पर्वतारोही के सन्दर्भ मेँ मैँ आपसे अंशमात्र भी सहमत नहीँ । शिखर पर आरोहण करने वाला कभी पीछे पलटकर अपने पदचिन्होँ पर दृष्टिपात नहीँ करता । वह तो सकारात्मक सोच के साथ अपने लक्ष्य के लिए प्रतिबद्ध होकर ऊँचाईयोँ को स्पर्श करने को आतुर होता है । उसके द्वारा बनाये गये पदचिन्ह तो केवल उसका अनुसरण करने वालोँ के लिए ही अपना अस्तित्व बनाते हैँ ।

अरे भाई तेजी ने छपा था मात्र, ये रामधारी सिंह दिनकर जी की रचना है, उसके बाद वाली देवेन्द्र सिंह की है |

teji
07-12-2010, 05:43 PM
[QUOTE=Kumar Anil;25158]

अरे भाई तेजी ने छपा था मात्र, ये रामधारी सिंह दिनकर जी की रचना है, उसके बाद वाली देवेन्द्र सिंह की है |


यह दोनों कविता मैंने amit_tiwari के लिए यहाँ छापी थी. और मेनू लगता है वो इसका मतलब अच्छी तरह समज गए है


निशाँत जी के सूत्र चरित्रहीन के मामिँक विश्लेषण मे डूबने के लिए उसके साथ तादात्म्य स्थापित करने के लिए मैँ प्रायः हर दूसरे तीसरे उसे पढ़ता अवश्य हूँ मगर आज वो अनर्गल प्रलाप भरे सूत्रोँ के धक्के खाकर अन्तिम पृष्ठ पर अपनी नियति पर आँसू बहा रहा है ।

पर्वतारोही poem.

कतिपय सदस्योँ को अपनी पोस्ट मेँ अप्रासंगिक रूप से ही ही हा हा मात्र लिखकर प्रविष्टि बढ़ाते हुए पाया

हम जीवन के महाकाव्य हैं poem.

amit_tiwari
08-12-2010, 01:16 AM
यह दोनों कविता मैंने amit_tiwari के लिए यहाँ छापी थी. और मेनू लगता है वो इसका मतलब अच्छी तरह समज गए है



कमाल करते हो तेजी जी ! अब कोई हमारे लिए कविता लिखे और हम समझें भी नहीं तो लानत है बन्दा होने पे !!!
पर तुस्सी तादाद से मुतास्सिर हो और हम सिर्फ तदबीर से वास्ता रखना चाहते हैं !!!

sagar -
09-04-2011, 05:39 PM
दिल की बात का क्या कहना, छुप के
अश्क बहा लेना
आँख मूँदकर कुछ ना कहना, दिल का
दर्द छुपा लेना
http://3.bp.blogspot.com/_ed-NHf9mEc0/R7v12aGonyI/AAAAAAAAABg/Xmv7K0ULFis/s320/123919nqbdnpq35j.gif

Kumar Anil
11-04-2011, 11:41 AM
मुखौटे ओढ़े वो लोग / असहाय हो जाते हैँ /
जब उसका मालिक / अचानक नमूदार हो उठता है /
उसकी फरियाद पर कहीँ / गुम होना पड़ता है /
सुनो मुखौटोँ से /
दूर तलक न जा पाओगे /
कैसे खुद को छिपा पाओगे / तुम्हारा शून्य नज़र आयेगा /
रिक्तता का बोध करायेगा /
आज नहीँ तो कल /
लड़खड़ा जाओगे /
जब जिरह होगी तुमसे /
और तुम /
ख़ामोश रह जाओगे /

rafik
25-04-2014, 04:05 PM
एक शाम हम घुमने निकले,दिल मे कुछ अरमान थे ।
एक तरफ झाडिया थी,दूसरी तरफ श्मशान थे ।
मेरा पैर हड्डी लगा,हड्डी के बयान थे ।
चलने वाले जरा सम्भल कर चल,हम भी कभी इन्सान थे ।