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View Full Version : गायत्री उपासना-शंकाएँ एवं समाधान


DevRaj80
17-12-2014, 05:15 PM
गायत्री उपासना-शंकाएँ एवं समाधान

DevRaj80
17-12-2014, 05:15 PM
गायत्री मंत्र अपने आप में पूर्ण है। उसमें तीन ॐ पाँच ॐ बीज संपुट आदि लगाने की कोई आवश्यकता नहीं हैं। ऐसे प्रयोग तो तांत्रिक प्रयोगों में जहाँ तहाँ आते है सर्वसाधारण को उस जंजाल भटकाने की आवश्यकता नहीं है।

DevRaj80
17-12-2014, 05:16 PM
हर धर्म का एक मुख्य मंत्र होता है जैसे मुसलमानों में कलमा, ईसाइयों में बपतिस्मा जैनों में नमो ओंकार तिब्बतियों में ॐ मीठा पधे हुँ आदि। इसी प्रकार भारतीय धर्म में एक ही गुरु मंत्र है गायत्री।

DevRaj80
17-12-2014, 05:16 PM
यह कहना भी बेतुका है कि हर जाति की एक-एक अलग गायत्री है। ब्राह्मणों की अलग, क्षत्रियों की अलग वैश्यों की अलग कायस्थों की अलग। यह जाति पाँति की ऊँच-नीच की बीमारी अध्यात्म क्षेत्र में उस गहराई तक प्रविष्ट नहीं होने देना चाहिये जहाँ तत्त्व ज्ञान, धर्म और ईश्वर एक है। इन्हें बिरादरी बाद में नहीं फँसाया जा सकता।

DevRaj80
17-12-2014, 05:16 PM
कइयों का कथन है गायत्री गुप्त मंत्र है। इसे कान में कहना चाहिये यह बात कदाचित तांत्रिक मंत्रों के संबंध में लागू भी होती है। पर वेद मंत्रों को तो सस्वर पढ़ने का विधान है। इसके संबंध में ऐसा कोई प्रतिबंध लागू नहीं हो सकता। छिपकर कानाफूसी के रूप में एकांत में दुरभि संधियों संबंधी चर्चा होती है गायत्री मंत्र में ऐसा कुछ नहीं जो गुप्त रखना पड़े और जिसे किसी दूसरे को न सुनने दिया जाय।

DevRaj80
17-12-2014, 05:17 PM
कई व्यक्ति कहते है, गायत्री में पुलिंग शब्दों का प्रयोग हुआ है, फिर उसे माता कैसे कहा जाता है? यह समझना चाहिये कि शक्तियों का व्यापक और निराकार रूप स्त्री पुरुष के झंझट से कहीं ऊँचा है। अग्नि, पवन आदि शब्दों में स्त्रीलिंग पुलिंग दोनों का ही प्रयोग होता है। भगवान की प्रार्थना का प्रसिद्ध श्लोक है-

DevRaj80
17-12-2014, 05:17 PM
त्वमेव माता च पिता त्वमेव तुम्हीं माता हो तुम्हीं पिता। सविता पुलिंग हो सकता है पर उनकी शक्ति सावित्री तो स्त्रीलिंग हुई। शास्त्रों के अलंकारिक रूपों को प्राणियों के मध्य पाये जाने वाले नर-मादा भेद में नहीं घसीट लेना चाहिये।

DevRaj80
17-12-2014, 05:17 PM
इसी प्रकार गायत्री के एक मुख दो हाथ, पाँच मुख दस भुजाओं का किसी जीवधारी का स्वरूप मानकर भ्रम में न पड़ना चाहिये। नारी की नर की तुलना में अधिक उत्कृष्टता मानते हुये नारी के प्रति नर का भोग्या रूपी कुदृष्टि वाला स्वरूप हटे इसलिए उसे नारी का माता का रूप दिया गया है। हाथ में कमंडल और पुस्तक होने का तात्पर्य ज्ञान और विज्ञान की ओर संकेत है।

DevRaj80
17-12-2014, 05:18 PM
गायत्री की साधना :- - त्रिदेवों की परम उपास्य- गायत्री महाशक्ति

DevRaj80
17-12-2014, 05:18 PM
देवताओं के त्रिदेव प्रमुख हैं। ब्रह्मा, विष्णु, महेश की उत्पादक, पोषक, संहारक शक्ति के द्वारा ही इस विश्व को जीवन, विकास एवं परिवर्तन की प्रक्रिया चल रही है। इन तीन देवों की अपनी निज की क्षमता नहीं वरन् वह आद्यशक्ति भगवती से ही उधार ली गई है। चन्द्रमा की चमक अपनी नहीं, वह सूर्य की आभा से चमकता है और उस आभा का प्रतिबिम्ब हमें चन्द्रमा की चंद्रिका के रूप में परिलक्षित होता है।

इस तथ्य का उपरोक्त पुराण में कतिपय कथा उपाख्यानों द्वारा इस प्रकार प्रतिपादन किया गया है-

DevRaj80
17-12-2014, 05:19 PM
इस संदर्भ में कुछ प्रमाण इस प्रकार है -

ये स्तुर्वान्त जगन्मातर्भवतीमम्बिकेति च। जगत्मयीति मायेति सर्वतेषां प्रसिद्धचति॥

जो आपकी जगत्माता- जगत् की माता, अम्बिका जगतमयी और इसी अनादि कारण शक्ति के रूप में स्तुति किया करते हैं, उनके समस्त कार्य सिद्ध हो जाया करते हैं।

DevRaj80
17-12-2014, 05:19 PM
सर्वशक्तिः पराविष्णो ऋग्यजुः साम संचिता। सैषा त्रयीतपत्यंहो जगतश्च हिनस्ति या॥

सैष विष्णुः स्थितिः स्थित्यां जगतः पालननोतः। ऋग्यजुः सामभूतोऽन्तः सवितुर्द्विज! तिष्ठति॥

सम्पूर्ण संसार को सृजन पालन एवं संहारात्मक रूप से प्रकट करने वाली भगवती अपरा स्वयं सर्वतन्त्र, स्वतन्त्र शक्ति है, सर्वशक्ति विष्णु की पराशक्ति एवं ऋग्यजुः और साम संज्ञा वाली है। यही त्रयी रूप में संसार में प्रकाशित होकर सृष्टिस्थिति और संहार करती है।

DevRaj80
17-12-2014, 05:19 PM
मासि मासि खेर्या यस्तत्र तत्रहि सा परा। त्रयी मयी विष्णु शक्तिरनस्थानं करोतिवै॥

ऋचः स्तुवन्ति पूर्वाह्ने मध्याह्ने च यजूँषि वैः। वृहद्रथन्तरादीनि सामान्यंगक्षये रविम्॥

अंग सैषा त्रयी विष्णो ऋग्यजुः साम संज्ञिताः। विष्णु शक्ति खथानं सदादित्ये करोति सा॥

ब्रह्मा द्वारा रजोगुण धारण करने से सृजन, विष्णु द्वारा सत्व गुण के धारण करने से जगत् का पालन तथा सर्ग के अन्त में इस सम्पूर्ण विश्वाण्ड को अपने में लीन करने यह त्रिमूर्ति स्वरूप वाली है और सविता में ऋग्यजुः और सामभूत होकर यह निवास किया करती हैं। पूर्वाह्न में ऋक्, मध्याह्न में यजुः और सायंकाल में वृद्धद्रथन्तरादि साम श्रुतियां सूर्य स्तुति किया करती है। यही आदित्य में निवास करने वाली वेदत्रयी है।

DevRaj80
17-12-2014, 05:20 PM
न केवलं रवेः शक्तिर्वैष्णवी सा त्रयीमयी। ब्रह्माऽथ पुरुषो रुद्रस्त्रयमेतत्त्रयी मयम्॥

एवं सा सात्विकी शक्तिर्वैष्णवी या त्रयीमयी। आम सप्तगणस्थं तं भास्वन्तमधितिष्ठति॥

यह केवल रवि की शक्ति विष्णु स्वरूपिणी ही नहीं है प्रत्युत ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र इन तीनों से युक्त एवं त्रयीमयी है। इस प्रकार से यह त्रयीमयी आद्या शक्ति अपने सातों गणों में अवस्थित सूर्यदेव में समाविष्ट हैं।

देवी भागवत पुराण में भगवती गायत्री महाशक्ति की महत्ता का सविस्तार वर्णन है। उसे समस्त देवताओं का उपास्य और समस्त मन्त्रों का शिरोमणि बताया गया है।

rajnish manga
31-12-2014, 11:39 AM
सूत्र में गायत्री महामंत्र के विषय में गहन जानकारी दी गयी है. धन्यवाद, देवराज जी.

soni pushpa
20-01-2015, 02:33 PM
न केवलं रवेः शक्तिर्वैष्णवी सा त्रयीमयी। ब्रह्माऽथ पुरुषो रुद्रस्त्रयमेतत्त्रयी मयम्॥

एवं सा सात्विकी शक्तिर्वैष्णवी या त्रयीमयी। आम सप्तगणस्थं तं भास्वन्तमधितिष्ठति॥

यह केवल रवि की शक्ति विष्णु स्वरूपिणी ही नहीं है प्रत्युत ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र इन तीनों से युक्त एवं त्रयीमयी है। इस प्रकार से यह त्रयीमयी आद्या शक्ति अपने सातों गणों में अवस्थित सूर्यदेव में समाविष्ट हैं।

देवी भागवत पुराण में भगवती गायत्री महाशक्ति की महत्ता का सविस्तार वर्णन है। उसे समस्त देवताओं का उपास्य और समस्त मन्त्रों का शिरोमणि बताया गया है।
गायत्री देवी माता के मंत्र और उनके स्वरुप की बहुत अच्छी जानकारी दी आपने ..
बहुत बहुत धन्यवाद देवराज जी