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View Full Version : मकर संक्रांति और पोंगल ..


DevRaj80
12-01-2015, 05:09 PM
मकर संक्रांति

मकर संक्रान्ति (अंग्रेज़ी: Makar Sankranti) भारत के प्रमुख त्यौहारों में से एक है। यह पर्व प्रत्येक वर्ष जनवरी के महीने में समस्त भारत में मनाया जाता है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण होता है, जब उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है। परम्परा से यह विश्वास किया जाता है कि इसी दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। यह वैदिक उत्सव है। इस दिन खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। गुड़–तिल, रेवड़ी, गजक का प्रसाद बाँटा जाता है। इस त्यौहार का सम्बन्ध प्रकृति, ऋतु परिवर्तन और कृषि से है। ये तीनों चीज़ें ही जीवन का आधार हैं। प्रकृति के कारक के तौर पर इस पर्व में सूर्य देव को पूजा जाता है, जिन्हें शास्त्रों में भौतिक एवं अभौतिक तत्वों की आत्मा कहा गया है। इन्हीं की स्थिति के अनुसार ऋतु परिवर्तन होता है और धरती अनाज उत्पन्न करती है, जिससे जीव समुदाय का भरण-पोषण होता है। यह एक अति महत्त्वपूर्ण धार्मिक कृत्य एवं उत्सव है। लगभग 80 वर्ष पूर्व उन दिनों के पंचांगों के अनुसार, यह 12वीं या 13वीं जनवरी को पड़ती थी, किंतु अब विषुवतों के अग्रगमन (अयनचलन) के कारण 13वीं या 14वीं जनवरी को पड़ा करती है।

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DevRaj80
12-01-2015, 05:10 PM
धर्म ग्रंथों में उल्लेख

मकर संक्रान्ति का उद्गम बहुत प्राचीन नहीं है। ईसा के कम से कम एक सहस्त्र वर्ष पूर्व ब्राह्मण एवं औपनिषदिक ग्रंथों में उत्तरायण के छ: मासों का उल्लेख है में 'अयन' शब्द आया है, जिसका अर्थ है 'मार्ग' या 'स्थल। गृह्यसूत्रों में 'उदगयन' उत्तरायण का ही द्योतक है जहाँ स्पष्ट रूप से उत्तरायण आदि कालों में संस्कारों के करने की विधि वर्णित है। किंतु प्राचीन श्रौत, गृह्य एवं धर्म सूत्रों में राशियों का उल्लेख नहीं है, उनमें केवल नक्षत्रों के संबंध में कालों का उल्लेख है। याज्ञवल्क्यस्मृति में भी राशियों का उल्लेख नहीं है, जैसा कि विश्वरूप की टीका से प्रकट है। 'उदगयन' बहुत शताब्दियों पूर्व से शुभ काल माना जाता रहा है, अत: मकर संक्रान्ति, जिससे सूर्य की उत्तरायण गति आरम्भ होती है, राशियों के चलन के उपरान्त पवित्र दिन मानी जाने लगी। मकर संक्रान्ति पर तिल को इतनी महत्ता क्यों प्राप्त हुई, कहना कठिन है। सम्भवत: मकर संक्रान्ति के समय जाड़ा होने के कारण तिल जैसे पदार्थों का प्रयोग सम्भव है। ईसवी सन के आरम्भ काल से अधिक प्राचीन मकर संक्रान्ति नहीं है।

DevRaj80
12-01-2015, 05:10 PM
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DevRaj80
12-01-2015, 05:11 PM
संक्रांति का अर्थ

'संक्रान्ति' का अर्थ है सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में जाना, अत: वह राशि जिसमें सूर्य प्रवेश करता है, संक्रान्ति की संज्ञा से विख्यात है।राशियाँ बारह हैं, यथा मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक , धनु, मकर, कुम्भ, मीन। मलमास पड़ जाने पर भी वर्ष में केवल 12 राशियाँ होती हैं। प्रत्येक संक्रान्ति पवित्र दिन के रूप में ग्राह्य है। मत्स्यपुराण ने संक्रान्ति व्रत का वर्णन किया है। एक दिन पूर्व व्यक्ति (नारी या पुरुष) को केवल एक बार मध्याह्न में भोजन करना चाहिए और संक्रान्ति के दिन दाँतों को स्वच्छ करके तिल युक्त जल से स्नान करना चाहिए। व्यक्ति को चाहिए कि वह किसी संयमी ब्राह्मण गृहस्थ को भोजन सामग्रियों से युक्त तीन पात्र तथा एक गाय यम, रुद्र एवं धर्म के नाम पर दे और चार श्लोकों को पढ़े, जिनमें से एक यह है- 'यथा भेदं' न पश्यामि शिवविष्ण्वर्कपद्मजान्। तथा ममास्तु विश्वात्मा शंकर:शंकर: सदा।।', अर्थात् 'मैं शिव एवं विष्णु तथा सूर्य एवं ब्रह्मा में अन्तर नहीं करता, वह शंकर, जो विश्वात्मा है, सदा कल्याण करने वाला है। दूसरे शंकर शब्द का अर्थ है- शं कल्याणं करोति। यदि हो सके तो व्यक्ति को चाहिए कि वह ब्राह्मण को आभूषणों, पर्यंक, स्वर्णपात्रों (दो) का दान करे। यदि वह दरिद्र हो तो ब्राह्मण को केवल फल दे। इसके उपरान्त उसे तैल-विहीन भोजन करना चाहिए और यथा शक्ति अन्य लोगों को भोजन देना चाहिए। स्त्रियों को भी यह व्रत करना चाहिए। संक्रान्ति, ग्रहण, अमावस्या एवं पूर्णिमा पर गंगा स्नान महापुण्यदायक माना गया है और ऐसा करने पर व्यक्ति ब्रह्मलोक को प्राप्त करता है। प्रत्येक संक्रान्ति पर सामान्य जल (गर्म नहीं किया हुआ) से स्नान करना नित्यकर्म कहा जाता है, जैसा कि देवीपुराण में घोषित है- 'जो व्यक्ति संक्रान्ति के पवित्र दिन पर स्नान नहीं करता वह सात जन्मों तक रोगी एवं निर्धन रहेगा; संक्रान्ति पर जो भी देवों को हव्य एवं पितरों को कव्य दिया जाता है, वह सूर्य द्वारा भविष्य के जन्मों में लौटा दिया जाता है।

DevRaj80
12-01-2015, 05:12 PM
पुण्यकाल
मकर संक्रांति के अवसर पर पतंग बेचने वाल

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प्राचीन ग्रंथ में ऐसा लिखित है कि केवल सूर्य का किसी राशि में प्रवेश मात्र ही पुनीतता का द्योतक नहीं है, प्रत्युत सभी ग्रहों का अन्य नक्षत्र या राशि में प्रवेश पुण्यकाल माना जाता है[11]। हेमाद्रि[12] एवं काल निर्णय[13] ने क्रम से जैमिनि एवं ज्योति:शास्त्र से उद्धरण देकर सूर्य एवं ग्रहों की संक्रान्ति का पुण्यकाल को घोषित किया है- 'सूर्य के विषय में संक्रान्ति के पूर्व या पश्चात् 16 घटिकाओं का समय पुण्य समय है; चन्द्र के विषय में दोनों ओर एक घटी 13 फल पुण्यकाल है; मंगल के लिए 4 घटिकाएँ एवं एक पल; बुध के लिए 3 घटिकाएँ एवं 14 पल, बृहस्पति के लिए चार घटिकाएँ एवं 37 पल, शुक्र के लिए 4 घटिकाएँ एवं एक पल तथा शनि के लिए 82 घटिकाएँ एवं 7 पल।

DevRaj80
12-01-2015, 05:13 PM
सूर्य जब एक राशि छोड़कर दूसरी में प्रवेश करता है तो उस काल का यथावत् ज्ञान हमारी माँसल आँखों से सम्भव नहीं है, अत: संक्रान्ति की 30 घटिकाएँ इधर या उधर के काल का द्योतन करती हैं। सूर्य का दूसरी राशि में प्रवेश काल इतना कम होता है कि उसमें संक्रान्ति कृत्यों का सम्पादन असम्भव है, अत: इसकी सन्निधि का काल उचित ठहराया गया है। देवीपुराण में संक्रान्ति काल की लघुता का उल्लेख यों है- 'स्वस्थ एवं सुखी मनुष्य जब एक बार पलक गिराता है तो उसका तीसवाँ काल 'तत्पर' कहलाता है, तत्पर का सौवाँ भाग 'त्रुटि' कहा जाता है तथा त्रुटि के सौवें भाग में सूर्य का दूसरी राशि में प्रवेश होता है। सामान्य नियम यह है कि वास्तविक काल के जितने ही समीप कृत्य हो वह उतना ही पुनीत माना जाता है।' इसी से संक्रान्तियों में पुण्यतम काल सात प्रकार के माने गये हैं- 3, 4, 5, 7, 8, 9 या 12 घटिकाएँ। इन्हीं अवधियों में वास्तविक फल प्राप्ति होती है। यदि कोई इन अवधियों के भीतर प्रतिपादित कृत्य न कर सके तो उसके लिए अधिकतम काल सीमाएँ 30 घटिकाओं की होती हैं; किंतु ये पुण्यकाल-अवधियाँ षडशीतिएवं विष्णुपदीको छोड़कर अन्य सभी संक्रान्तियों के लिए है।

DevRaj80
12-01-2015, 05:13 PM
आज के ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जाड़े का अयन काल 21 दिसम्बर को होता है और उसी दिन से सूर्य उत्तरायण होते हैं। किंतु भारत में वे लोग, जो प्राचीन पद्धतियों के अनुसार रचे पंचांगों का सहारा लेते हैं, उत्तरायण का आरम्भ 14 जनवरी से मानते हैं। वे इस प्रकार उपयुक्त मकर संक्रान्ति से 23 दिन पीछे हैं। मध्यकाल के धर्मशास्त्र ग्रंथों में यह बात उल्लिखित है, यथा हेमाद्रि ने कहा है कि प्रचलित संक्रान्ति से 12 दिन पूर्व ही पुण्यकाल पड़ता है, अत: प्रतिपादित दान आदि कृत्य प्रचलित संक्रान्ति दिन के 12 दिन पूर्व भी किये जा सकते हैं।

DevRaj80
12-01-2015, 05:14 PM
पुण्यकाल के नियम

संक्रान्ति के पुण्यकाल के विषय में सामान्य नियम के प्रश्न पर कई मत हैं। शातातप, जाबाल एवं मरीचि ने संक्रान्ति के धार्मिक कृत्यों के लिए संक्रान्ति के पूर्व एवं उपरान्त 16 घटिकाओं का पुण्यकाल प्रतिपादित किया है; किंतु देवीपुराण एवं वसिष्ठ ने 15 घटिकाओं के पुण्यकाल की व्यवस्था दी है। यह विरोध यह कहकर दूर किया जाता है कि लघु अवधि केवल अधिक पुण्य फल देने के लिए है और 16 घटिकाओं की अवधि विष्णुपदी संक्रान्तियों के लिए प्रतिपादित है। संक्रान्ति दिन या रात्रि दोनों में हो सकती है। दिन वाली संक्रान्ति पूरे दिन भर पुण्यकाल वाली होती है। रात्रि वाली संक्रान्ति के विषय में हेमाद्रि, माधव आदि में लम्बे विवेचन उपस्थित किए गये हैं। एक नियम यह है कि दस संक्रान्तियों में, मकर एवं कर्कट को छोड़कर पुण्यकाल दिन में होता है, जबकि वे रात्रि में पड़ती हैं। इस विषय का विस्तृत विवरण तिथितत्त्व और धर्मसिंधु में मिलता है।

DevRaj80
12-01-2015, 05:15 PM
ग्रहों की संक्रान्ति

मकर संक्रांति के अवसर पर रंगोली बनाते हुए

ग्रहों की भी संक्रान्तियाँ होती हैं, किन्तु पश्चात्कालीन लेखकों के अनुसार 'संक्रान्ति' शब्द केवल रवि-संक्रान्ति के नाम से ही द्योतित है, जैसा कि स्मृतिकौस्तुभमें उल्लिखित है। वर्ष भर की 12 संक्रान्तियाँ चार श्रेणियों में विभक्त हैं-

दो अयन संक्रान्तियाँ- मकर संक्रान्ति, जब उत्तरायण का आरम्भ होता है एवं कर्कट संक्रान्ति, जब दक्षिणायन का आरम्भ होता है।

दो विषुव संक्रान्तियाँ अर्थात मेष एवं तुला संक्रान्तियाँ, जब रात्रि एवं दिन बराबर होते हैं।

वे चार संक्रान्तियाँ, जिन्हें षडयीतिमुख अर्थात् मिथुन, कन्या, धनु एवं मीन कहा जाता है

तथा
विष्णुपदी या विष्णुपद अर्थात् वृषभ, सिंह, वृश्चिक एवं कुम्भ नामक संक्रान्तियाँ।

DevRaj80
12-01-2015, 05:16 PM
संक्रांति के प्रकार

'ये बारह संक्रान्तियाँ सात प्रकार की, सात नामों वाली हैं, जो किसी सप्ताह के दिन या किसी विशिष्ट नक्षत्र के सम्मिलन के आधार पर उल्लिखित हैं; वे ये हैं- मन्दा, मन्दाकिनी, ध्वांक्षी, घोरा, महोदरी, राक्षसी एवं मिश्रिता।

घोरा रविवार, मेष या कर्क या मकर संक्रान्ति को,

ध्वांक्षी सोमवार को,

महोदरी मंगल को,

मन्दाकिनी बुध को,

मन्दा बृहस्पति को,

मिश्रिता शुक्र को एवं

राक्षसी शनि को होती है।

DevRaj80
12-01-2015, 05:17 PM
इसके अतिरिक्त कोई संक्रान्ति यथा मेष या कर्क आदि क्रम से मन्दा, मन्दाकिनी, ध्वांक्षी, घोरा, महोदरी, राक्षसी, मिश्रित कही जाती है, यदि वह क्रम से ध्रुव, मृदु, क्षिप्र, उग्र, चर, क्रूर या मिश्रित नक्षत्र से युक्त हों। 27 या 28 नक्षत्र निम्नोक्त रूप से सात दलों में विभाजित हैं-

ध्रुव (या स्थिर) – उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपदा, रोहिणी

मृदु – अनुराधा, चित्रा, रेवती, मृगशीर्ष

क्षिप्र (या लघु) – हस्त, अश्विनी, पुष्य, अभिजित

उग्र – पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपदा, भरणी, मघा

चर – पुनर्वसु, श्रवण, धनिष्ठा, स्वाति , शतभिषक

क्रूर (या तीक्ष्ण) – मूल, ज्येष्ठा, आर्द्रा, आश्लेषा

मिश्रित (या मृदुतीक्ष्ण या साधारण) – कृत्तिका, विशाखा . ऐसा उल्लिखित है कि ब्राह्मणों के लिए मन्दा, क्षत्रियों के लिए मन्दाकिनी, वैश्यों के लिए ध्वांक्षी, शूद्रों के लिए घोरा, चोरों के लिए महोदरी, मद्य विक्रेताओं के लिए राक्षसी तथा चाण्डालों, पुक्कसों तथा जिनकी वृत्तियाँ (पेशे) भयंकर हों एवं अन्य शिल्पियों के लिए मिश्रित संक्रान्ति श्रेयस्कर होती है

DevRaj80
12-01-2015, 05:18 PM
संक्रान्ति का देवीकरण

आगे चलकर संक्रान्ति का देवीकरण हो गया और वह साक्षात्* दुर्गा कही जाने लगी। देवीपुराण में आया है कि देवी वर्ष, अयन, ऋतु, मास, पक्ष, दिन आदि के क्रम से सूक्ष्म विभाग के कारण सर्वगत विभु रूप वाली है। देवी पुण्य तवं पाप के विभागों के अनुसार फल देने वाली है। संक्रान्ति के काल में किये गये एक कृत्य से भी कोटि-कोटि फलों की प्राप्ति होती है। धर्म से आयु, राज्य, पुत्र, सुख आदि की वृद्धि होती है, अधर्म से व्याधि, शोक आदि बढ़ते हैं। विषुव संक्रान्ति के समय जो दान या जप किया जाता है या अयन में जो सम्पादित होता है, वह अक्षय होता है। यही बात विष्णुपद एवं षडशीति मुख के विषय में भी है।

DevRaj80
12-01-2015, 05:18 PM
आजकल के पंचांगों में मकर संक्रान्ति का देवीकरण भी हो गया है। वह देवी मान ली गयी है। संक्रान्ति किसी वाहन पर चढ़ती है, उसका प्रमुख वाहन हाथी जैसे वाहन पशु हैं; उसके उपवाहन भी हैं; उसके वस्त्र काले, श्वेत या लाल आदि रंगों के होते हैं; उसके हाथ में धनुष या शूल रहता है, वह लाह या गोरोचन जैसे पदार्थों का तिलक करती है; वह युवा, प्रौढ़ या वृद्ध है; वह खड़ी या बैठी हुई वर्णित है; उसके पुष्पों, भोजन, आभूषणों का उल्लेख है; उसके दो नाम सात नामों में से विशिष्ट हैं; वह पूर्व आदि दिशाओं से आती है और पश्चिम आदि दिशाओं को चली जाती है और तीसरी दिशा की ओर झाँकती है; उसके अधर झुके हैं, नाक लम्बी है, उसके 9 हाथ है। उसके विषय में अग्र सूचनाएँ ये हैं- संक्रान्ति जो कुछ ग्रहण करती है, उसके मूल्य बढ़ जाते हैं या वह नष्ट हो जाता है; वह जिसे देखती है, वह नष्ट हो जाता है, जिस दिशा से वह जाती है, वहाँ के लोग सुखी होते हैं, जिस दिशा को वह चली जाती है, वहाँ के लोग दुखी हो जाते हैं।

DevRaj80
12-01-2015, 05:18 PM
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DevRaj80
12-01-2015, 05:19 PM
संक्रांति पर दान पुण्य

पूर्व पुण्यलाभ के लिए पुण्यकाल में ही स्नान दान आदि कृत्य किये जाते हैं। सामान्य नियम यह है कि रात्रि में न तो स्नान किया जाता है और न ही दान। पराशर में आया है कि सूर्य किरणों से पूरे दिन में स्नान करना चाहिए, रात्रि में ग्रहण को छोड़कर अन्य अवसरों पर स्नान नहीं करना चाहिए। यही बात विष्णुधर्मसूत्र में भी है। किंतु कुछ अपवाद भी प्रतिपादित हैं। भविष्यपुराण में आया है कि रात्रि में स्नान नहीं करना चाहिए, विशेषत: रात्रि में दान तो नहीं ही करना चाहिए, किंतु उचित अवसरों पर ऐसा किया जा सकता है, यथा ग्रहण, विवाह, संक्रान्ति, यात्रा, जनन, मरण तथा इतिहास श्रवण में। अत: प्रत्येक संक्रान्ति पर विशेषत: मकर संक्रान्ति पर स्नान नित्य कर्म है।

दान निम्न प्रकार के किये जाते हैं-

मेष में भेड़, वृषभ में गायें, मिथुन में वस्त्र, भोजन एवं पेय पदार्थ, कर्कट में घृतधेनु, सिंह में सोने के साथ वाहन, कन्या में वस्त्र एवं गौएँ, नाना प्रकार के अन्न एवं बीज, तुला-वृश्चिक में वस्त्र एवं घर, धनु में वस्त्र एवं वाहन, मकर में इन्घन एवं अग्नि, कुम्भ में गौएँ जल एवं घास, मीन में नये पुष्प। अन्य विशेष प्रकार के दानों के विषय में देखिए स्कन्दपुराण , विष्णुधर्मोत्तर, कालिका. आदि

DevRaj80
12-01-2015, 05:20 PM
उपवास

मकर संक्रांति के अवसर पर पतंग उडाते हुए, वाराणसी

मकर संक्रान्ति के सम्मान में तीन दिनों या एक दिन का उपवास करना चाहिए। जो व्यक्ति तीन दिनों तक उपवास करता है और उसके उपरान्त स्नान करके अयन पर सूर्य की पूजा करता है, विषुव एवं सूर्य या चन्द्र के ग्रहण पर पूजा करता है तो वह वांछित इच्छाओं की पूर्णता पाता है। आपस्तम्ब में आया है कि जो व्यक्ति स्नान के उपरान्त अयन, विषुव, सूर्यचंद्र-ग्रहण पर दिन भर उपवास करता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है। किंतु पुत्रवान व्यक्ति को रविवार, संक्रान्ति एवं ग्रहणों पर उपवास नहीं करना चाहिए। राजमार्तण्ड में संक्रान्ति पर किये गये दानों के पुण्य-लाभ पर दो श्लोक हैं- 'अयन संक्रान्ति पर किये गये दानों का फल सामान्य दिन के दान के फल का कोटिगुना होता है और विष्णुपदी पर वह लक्षगुना होता है; षडशीति पर यह 86000 गुना घोषित है[36]। चंद्र ग्रहण पर दान सौ गुना एवं सूर्य ग्रहण पर सहस्त्र गुना, विषुव पर शतसहस्त्र गुना तथा आकामावै[ की पूर्णिमा पर अनन्त फलों को देने वाला है। भविष्यपुराण ने अयन एवं विषुव संक्रान्तियों पर गंगा-यमुना की प्रभूत महत्ता गायी है।

DevRaj80
12-01-2015, 05:21 PM
तिल संक्राति

देश भर में लोग मकर संक्रांति के पर्व पर अलग-अलग रूपों में तिल, चावल, उड़द की दाल एवं गुड़ का सेवन करते हैं। इन सभी सामग्रियों में सबसे ज़्यादा महत्व तिल का दिया गया है। इस दिन कुछ अन्य चीज़ भले ही न खाई जाएँ, किन्तु किसी न किसी रूप में तिल अवश्य खाना चाहिए। इस दिन तिल के महत्व के कारण मकर संक्रांति पर्व को "तिल संक्राति" के नाम से भी पुकारा जाता है। तिल के गोल-गोल लड्डू इस दिन बनाए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि तिल की उत्पत्ति भगवान विष्णु के शरीर से हुई है तथा उपरोक्त उत्पादों का प्रयोग सभी प्रकार के पापों से मुक्त करता है; गर्मी देता है और शरीर को निरोग रखता है। मंकर संक्रांति में जिन चीज़ों को खाने में शामिल किया जाता है, वह पौष्टिक होने के साथ ही साथ शरीर को गर्म रखने वाले पदार्थ भी हैं।

DevRaj80
12-01-2015, 05:21 PM
सूर्य के उत्तरायण होने का पर्व

जितने समय में पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक चक्कर लगाती है, उस अवधि को "सौर वर्ष" कहते हैं। पृथ्वी का गोलाई में सूर्य के चारों ओर घूमना "क्रान्तिचक्र" कहलाता है। इस परिधि चक्र को बाँटकर बारह राशियाँ बनी हैं। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना "संक्रान्ति" कहलाता है। इसी प्रकार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने को "मकर संक्रान्ति" कहते हैं।

मकर संक्राति के अवसर पर गंगा स्नान करते श्रद्धालु

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सूर्य का मकर रेखा से उत्तरी कर्क रेखा की ओर जाना 'उत्तरायण' तथा कर्क रेखा से दक्षिणी मकर रेखा की ओर जाना 'दक्षिणायन' है। उत्तरायण में दिन बड़े हो जाते हैं तथा रातें छोटी होने लगती हैं। दक्षिणायन में ठीक इसके विपरीत होता है। शास्त्रों के अनुसार उत्तरायण देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन देवताओं की रात होती है। वैदिक काल में उत्तरायण को देवयान तथा दक्षिणायन को पितृयान कहा जाता था। मकर संक्रान्ति के दिन यज्ञ में दिये हव्य को ग्रहण करने के लिए देवता धरती पर अवतरित होते हैं। इसी मार्ग से पुण्यात्माएँ शरीर छोड़कर स्वर्ग आदि लोकों में प्रवेश करती हैं। इसलिए यह आलोक का अवसर माना जाता है। इस दिन पुण्य, दान, जप तथा धार्मिक अनुष्ठानों का अनन्य महत्त्व है और सौ गुणा फलदायी होकर प्राप्त होता है। मकर संक्रान्ति प्रत्येक वर्ष प्रायः 14 जनवरी को पड़ती है।

DevRaj80
12-01-2015, 05:25 PM
खिचड़ी संक्रान्ति

चावल व मूंग की दाल को पकाकर खिचड़ी बनाई जाती है। इस दिन खिचड़ी खाने का प्रचलन व विधान है। घी व मसालों में पकी खिचड़ी स्वादिष्ट, पाचक व ऊर्जा से भरपूर होती है। इस दिन से शरद ऋतु क्षीण होनी प्रारम्भ हो जाती है। बसन्त के आगमन से स्वास्थ्य का विकास होना प्रारम्भ होता है। इस दिन गंगा नदी में स्नान व सूर्योपासना के बाद ब्राह्मणों को गुड़, चावल और तिल का दान भी अति श्रेष्ठ माना गया है। महाराष्ट्र में ऐसा माना जाता है कि मकर संक्रान्ति से सूर्य की गति तिल–तिल बढ़ती है, इसीलिए इस दिन तिल के विभिन्न मिष्ठान बनाकर एक–दूसरे का वितरित करते हुए शुभ कामनाएँ देकर यह त्योहार मनाया जाता है।

DevRaj80
12-01-2015, 05:26 PM
संक्रान्ति दान और पुण्यकर्म का दिन

संक्रान्ति काल अति पुण्य माना गया है। इस दिन गंगा तट पर स्नान व दान का विशेष महत्त्व है। इस दिन किए गए अच्छे कर्मों का फल अति शुभ होता है। वस्त्रों व कम्बल का दान, इस जन्म में नहीं; अपितु जन्म–जन्मांतर में भी पुण्यफलदायी माना जाता है। इस दिन घृत, तिल व चावल के दान का विशेष महत्त्व है। इसका दान करने वाला सम्पूर्ण भोगों को भोगकर मोक्ष को प्राप्त करता है, ऐसा शास्त्रों में कहा गया है। उत्तर प्रदेश में इस दिन तिल दान का विशेष महत्त्व है। महाराष्ट्र में नवविवाहिता स्त्रियाँ प्रथम संक्रान्ति पर तेल, कपास, नमक आदि वस्तुएँ सौभाग्यवती स्त्रियों को भेंट करती हैं। बंगाल में भी इस दिन तिल दान का महत्त्व है। राजस्थान में सौभाग्यवती स्त्रियाँ इस दिन तिल के लड्डू, घेवर तथा मोतीचूर के लड्डू आदि पर रुपय रखकर, "वायन" के रूप में अपनी सास को प्रणाम करके देती है तथा किसी भी वस्तु का चौदह की संख्या में संकल्प करके चौदह ब्राह्मणों को दान करती है।
पतंग

पतंग उड़ाने का दिन
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यह दिन सुन्दर पतंगों को उड़ाने का दिन भी माना जाता है। लोग बड़े उत्साह से पतंगें उड़ाकर पतंगबाज़ी के दाँव–पेचों का मज़ा लेते हैं। बड़े–बड़े शहरों में ही नहीं, अब गाँवों में भी पतंगबाज़ी की प्रतियोगिताएँ होती हैं।

DevRaj80
12-01-2015, 05:26 PM
पुण्यकाल के शुभारम्भ का प्रतीक

मकर संक्रान्ति के आगामी दिन जब सूर्य की गति उत्तर की ओर होती है, तो बहुत से पर्व प्रारम्भ होने लगते हैं। इन्हीं दिनों में ऐसा प्रतीत होता है कि वातावरण व पर्यावरण स्वयं ही अच्छे होने लगे हैं। कहा जाता है कि इस समय जन्मे शिशु प्रगतिशील विचारों के, सुसंस्कृत, विनम्र स्वभाव के तथा अच्छे विचारों से पूर्ण होते हैं। यही विशेष कारण है, जो सूर्य की उत्तरायण गति को पवित्र बनाते हैं और मकर संक्रान्ति का दिन सबसे पवित्र दिन बन जाता है।
खगोलीय तथ्य

सन 2012 में मकर संक्रांति 15 जनवरी यानी रविवार की थी। राजा हर्षवर्द्धन के समय में यह पर्व 24 दिसम्बर को पड़ा था। मुग़ल बादशाह अकबर के शासन काल में 10 जनवरी को मकर संक्रांति थी। शिवाजी के जीवन काल में यह त्योहार 11 जनवरी को पड़ा था।
आखिर ऐसा क्यों?

सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करने को 'मकर संक्रांति' कहा जाता है। साल 2012 में यह 14 जनवरी की मध्यरात्रि में था। इसलिए उदय तिथि के अनुसार मकर संक्रांति 15 जनवरी को पड़ी थी। दरअसल हर साल सूर्य का धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश 20 मिनट की देरी से होता है। इस तरह हर तीन साल के बाद सूर्य एक घंटे बाद और हर 72 साल में एक दिन की देरी से मकर राशि में प्रवेश करता है। मतलब 1728 (72 गुणा 24) साल में फिर सूर्य का मकर राशि में प्रवेश एक दिन की देरी से होगा और इस तरह 2080 के बाद 'मकर संक्रांति' 15 जनवरी को पड़ेगी।

DevRaj80
12-01-2015, 05:27 PM
ज्योतिषीय आकलन


ज्योतिषीय आकलन के अनुसार सूर्य की गति प्रतिवर्ष 20 सेकेंड बढ़ रही है। माना जाता है कि आज से 1000 साल पहले मकर संक्रांति 31 दिसंबर को मनाई जाती थी। पिछले एक हज़ार साल में इसके दो हफ्ते आगे खिसक जाने की वजह से 14 जनवरी को मनाई जाने लगी। अब सूर्य की चाल के आधार पर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि 5000 साल बाद मकर संक्रांति फ़रवरी महीने के अंत में मनाई जाएगी।

DevRaj80
12-01-2015, 05:27 PM
विभिन्न राज्यों में मकर संक्रांति

मकर संक्रान्ति भारत के भिन्न-भिन्न लोगों के लिए भिन्न-भिन्न अर्थ रखती है। किन्तु सदा की भॉंति, नानाविधी उत्सवों को एक साथ पिरोने वाला एक सर्वमान्य सूत्र है, जो इस अवसर को अंकित करता है। यदि दीपावली ज्योति का पर्व है तो संक्रान्ति शस्य पर्व है, नई फ़सल का स्वागत करने तथा समृद्धि व सम्पन्नता के लिए प्रार्थना करने का एक अवसर है।

DevRaj80
12-01-2015, 05:28 PM
उत्तर प्रदेश में मकर-सक्रांति

उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से दान का पर्व है. इलाहाबाद में यह पर्व माघ मेले के नाम से जाना जाता है. 14 जनवरी से इलाहाबाद मे हर साल माघ मेले की शुरुआत होती है. 14 दिसम्बर से 14 जनवरी का समय खर मास के नाम से जाना जाता है. और उत्तर भारत मे तो पहले इस एक महीने मे किसी भी अच्छे कार्य को अंजाम नही दिया जाता था. मसलन विवाह आदि मंगल कार्य नहीं किए जाते थे पर अब तो समय के साथ लोग काफ़ी बदल गए है. 14 जनवरी यानी मकर संक्रान्ति से अच्छे दिनों की शुरुआत होती है. माघ मेला पहला नहान मकर संक्रान्ति से शुरू होकर शिवरात्रि तक यानी आख़िरी नहान तक चलता है. संक्रान्ति के दिन नहान के बाद दान करने का भी चलन है.समूचे उत्तर प्रदेश में इस व्रत को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है और इस दिन खिचड़ी सेवन एवं खिचड़ी दान का अत्यधिक महत्व होता है. इलाहाबाद में गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम पर प्रत्येक वर्ष एक माह तक माघ मेला लगता है.

DevRaj80
12-01-2015, 05:28 PM
उत्तराखंड में मकर-सक्रांति

उत्तराखंड के बागेश्वर में बड़ा मेला होता है. वैसे गंगा स्नान रामेश्वर, चित्रशिला व अन्य स्थानों में भी होते हैं. इस दिन गंगा स्नान करके, तिल के मिष्ठान आदि को ब्राह्मणों व पूज्य व्यक्तियों को दान दिया जाता है. इस पर्व पर भी क्षेत्र में गंगा एवं रामगंगा घाटों पर बड़े मेले लगते है.

DevRaj80
12-01-2015, 05:28 PM
महाराष्ट्र में मकर-सक्रांति

महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएं अपनी पहली संक्रांति पर कपास, तेल, नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं. ताल-गूल नामक हलवे के बांटने की प्रथा भी है. लोग एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं और देते समय बोलते हैं :- `तिल गुड़ ध्या आणि गोड़ गोड़ बोला` अर्थात तिल गुड़ लो और मीठा मीठा बोलो। इस दिन महिलाएं आपस में तिल, गुड़, रोली और हल्दी बांटती हैं.

DevRaj80
12-01-2015, 05:29 PM
पंजाब में लोहड़ी


मकर संक्रान्ति भारत के अन्य क्षेत्रों में भी धार्मिक उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है। पंजाब में इसे 'लोहड़ी' कहते हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों में नई फ़सल की कटाई के अवसर पर मनाया जाता है। पुरुष और स्त्रियाँ गाँव के चौक पर उत्सवाग्नि के चारों ओर परम्परागत वेशभूषा में लोकप्रिय नृत्य भांगड़ा का प्रदर्शन करते हैं। स्त्रियाँ इस अवसर पर अपनी हथेलियों और पाँवों पर आकर्षक आकृतियों में मेहंदी रचाती हैं।

DevRaj80
12-01-2015, 05:29 PM
बंगाल में मकर-सक्रांति
गुड़ और तिल से बनी गजक

पश्चिम बंगाल में मकर सक्रांति के दिन देश भर के तीर्थयात्री गंगासागर द्वीप पर एकत्र होते हैं, जहाँ गंगा बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। एक धार्मिक मेला, जिसे 'गंगासागर मेला' कहते हैं, इस समारोह की महत्त्वपूर्ण विशेषता है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस संगम पर डुबकी लगाने से सारा पाप धुल जाता है। बंगाल में इस पर्व पर स्नान पश्चात तिल दान करने की प्रथा है. यहां गंगासागर में हर साल विशाल मेला लगता है. मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं. मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा जी ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए व्रत किया था. इस दिन गंगा सागर में स्नान-दान के लिए लाखों लोगों की भीड़ होती है. लोग कष्ट उठाकर गंगा सागर की यात्रा करते हैं.

DevRaj80
12-01-2015, 05:30 PM
कर्नाटक में मकर-सक्रांति

कर्नाटक में भी फ़सल का त्योहार शान से मनाया जाता है। बैलों और गायों को सुसज्जित कर उनकी शोभा यात्रा निकाली जाती है। नये परिधान में सजे नर-नारी, ईख, सूखा नारियल और भुने चने के साथ एक दूसरे का अभिवादन करते हैं। पंतगबाज़ी इस अवसर का लोकप्रिय परम्परागत खेल है।

DevRaj80
12-01-2015, 05:30 PM
गुजरात में मकर-सक्रांति

गुजरात का क्षितिज भी संक्रान्ति के अवसर पर रंगबिरंगी पंतगों से भर जाता है। गुजराती लोग संक्रान्ति को एक शुभ दिवस मानते हैं और इस अवसर पर छात्रों को छात्रवृतियाँ और पुरस्कार बाँटते हैं।

DevRaj80
12-01-2015, 05:30 PM
केरल में मकर-सक्रांति

केरल में भगवान अयप्पा की निवास स्थली सबरीमाला की वार्षिक तीर्थयात्रा की अवधि मकर संक्रान्ति के दिन ही समाप्त होती है, जब सुदूर पर्वतों के क्षितिज पर एक दिव्य आभा ‘मकर ज्योति’ दिखाई पड़ती है।

DevRaj80
12-01-2015, 05:30 PM
तमिलनाडु में मकर-सक्रांति

तमिलनाडु में इस त्योहार को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाया जाता है.पहले दिन भोगी-पोंगल, दूसरे दिन सूर्य-पोंगल, तीसरे दिन मट्टू-पोंगल अथवा केनू-पोंगल, चौथे व अंतिम दिन कन्या-पोंगल. इस प्रकार पहले दिन कूड़ा करकट इकट्ठा कर जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है. पोंगल मनाने के लिए स्नान करके खुले आंगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनाई जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं. इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है. उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं. असम में मकर संक्रांति को माघ-बिहू या भोगाली-बिहू के नाम से मनाते हैं. राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएं अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद लेती हैं. साथ ही महिलाएं किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन व संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं. अन्य भारतीय त्योहारों की तरह मकर संक्रांति पर भी लोगों में विशेष उत्साह देखने को मिलता है.

DevRaj80
12-01-2015, 05:31 PM
मकर संक्रांति पर खान-पान
तिल के लड्डू

http://hi.bharatdiscovery.org/w/images/thumb/2/2c/Til-ke-ladoo-recipe.jpg/250px-Til-ke-ladoo-recipe.jpg

मकर संक्रांति में सूर्य का दक्षिणायन से उत्तरायण में आने का स्वागत किया जाता है। शिशिर ऋतु की विदाई और बसंत का अभिवादन तथा अगहनी फ़सल के कट कर घर में आने का उत्सव मनाया जाता है। उत्सव का आयोजन होने पर सबसे पहले खान-पान की चर्चा होती है। मकर संक्रांति पर्व जिस प्रकार देश भर में अलग-अलग तरीक़े और नाम से मनाया जाता है, उसी प्रकार खान-पान में भी विविधता रहती है। किंतु एक विशेष तथ्य यह है कि मकर संक्राति के नाम, तरीक़े और खान-पान में अंतर के बावजूद सभी में एक समानता है कि इसमें व्यंजन तो अलग-अलग होते हैं, किन्तु उनमें प्रयोग होने वाली सामग्री एक-सी होती है।[48] यह महत्त्वपूर्ण पर्व माघ मास में मनाया जाता है। भारत में माघ महीने में सबसे अधिक सर्दी पड़ती है, अत: शरीर को अंदर से गर्म रखने के लिए तिल, चावल, उड़द की दाल एवं गुड़ का सेवन किया जाता है। मकर संक्रांति में इन खाद्य पदार्थों के सेवन का यह भौतिक आधार है। इन खाद्यों के सेवन का धार्मिक आधार भी है। शास्त्रों में लिखा है कि माघ मास में जो व्यक्ति प्रतिदिन विष्णु भगवान की पूजा तिल से करता है और तिल का सेवन करता है, उसके कई जन्मों के पाप कट जाते हैं। अगर व्यक्ति तिल का सेवन नहीं कर पाता है तो सिर्फ तिल-तिल जप करने से भी पुण्य की प्राप्ति होती है। तिल का महत्व मकर संक्रांति में इस कारण भी है कि सूर्य देवता धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। मकर राशि के स्वामी शनि देव हैं, जो सूर्य के पुत्र होने के बावजूद सूर्य से शत्रु भाव रखते हैं। अत: शनि देव के घर में सूर्य की उपस्थिति के दौरान शनि उन्हें कष्ट न दें, इसलिए तिल का दान व सेवन मकर संक्रांति में किया जाता है। चावल, गुड़ एवं उड़द खाने का धार्मिक आधार यह है कि इस समय ये फ़सलें तैयार होकर घर में आती हैं। इन फ़सलों को सूर्य देवता को अर्पित करके उन्हें धन्यवाद दिया जाता है कि "हे देव! आपकी कृपा से यह फ़सल प्राप्त हुई है। अत: पहले आप इसे ग्रहण करें तत्पश्चात प्रसाद स्वरूप में हमें प्रदान करें, जो हमारे शरीर को उष्मा, बल और पुष्टता प्रदान करे।"

DevRaj80
12-01-2015, 05:31 PM
अन्य राज्यों का खान-पान

मकर संक्रांति पर भारत के विभिन्न राज्यों में अपना-अपना खान-पान है-

बिहार तथा उत्तर प्रदेश

बिहार एवं उत्तर प्रदेश में खान-पान लगभग एक जैसा होता है। दोनों ही प्रांत में इस दिन अगहनी धान से प्राप्त चावल और उड़द की दाल से खिचड़ी बनाई जाती है। कुल देवता को इसका भोग लगाया जाता है। लोग एक-दूसरे के घर खिचड़ी के साथ विभिन्न प्रकार के अन्य व्यंजनों का आदान-प्रदान करते हैं। बिहार और उत्तर प्रदेश के लोग मकर संक्राति को "खिचड़ी पर्व" के नाम से भी पुकारते हैं। इस प्रांत में मकर संक्राति के दिन लोग चूड़ा-दही, गुड़ एवं तिल के लड्डू भी खाते हैं। चूड़े एवं मुरमुरे की लाई भी बनाई जाती है।

DevRaj80
12-01-2015, 05:31 PM
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़

मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में मकर संक्रांति के दिन बिहार और उत्तर प्रदेश की ही तरह खिचड़ी और तिल खाने की परम्परा है। यहाँ के लोग इस दिन गुजिया भी बनाते हैं।

DevRaj80
12-01-2015, 05:31 PM
दक्षिण भारत

दक्षिण भारतीय प्रांतों में मकर संक्राति के दिन गुड़, चावल एवं दाल से पोंगल बनाया जाता है। विभिन्न प्रकार की कच्ची सब्जियों को लेकर मिश्रित सब्ज़ी बनाई जाती है। इन्हें सूर्य देव को अर्पित करने के पश्चात सभी लोग प्रसाद रूप में इसे ग्रहण करते हैं। इस दिन गन्ना खाने की भी परम्परा है।

DevRaj80
12-01-2015, 05:32 PM
पंजाब एवं हरियाणा

पंजाब एवं हरियाणा में इस पर्व में विभिन्न प्रकार के व्यंजनों में मक्के की रोटी एवं सरसों के साग को विशेष तौर पर शामिल किया जाता है। इस दिन पंजाब एवं हरियाणा के लोगों में तिलकूट, रेवड़ी और गजक खाने की भी परम्परा है। मक्के का लावा, मूँगफली एवं मिठाईयाँ भी लोग खाते हैं।

DevRaj80
12-01-2015, 05:33 PM
विभिन्न प्रांतों में मकर संक्रांति

DevRaj80
12-01-2015, 05:33 PM
सूर्य का उत्तरायण या दक्षिणायण होना ऋतुओं के एक चक्र को परे हटा कर एक नये ऋतु-चक्र के आगमन का कारण होता है। सूर्य का दक्षिणायण होना मानव की तमसकारी प्रवृतियों के उत्कट होने का द्योतक है। समस्त प्रकृति और प्राकृतिक गतिविधियाँ एक तरह से ठहराव की स्थिति में आ जाती हैं। सकारात्मक वृत्तियाँ निष्प्रभावी सी हो जाती हैं या कायिक-मानसिक दृष्टि से सुषुप्तावस्था की स्थिति हावी रहती है। इस के उलट सूर्य का उत्तरायण होना कायिक, मानसिक तथा प्राकृतिक रूप से सकारात्मक वृत्तियों के प्रभावी होने का द्योतक है। मानव-मन के चित्त पर सद्-विचारों का प्रभाव काया पर तथा मानवीय काया का सुदृढ़ नियंत्रण समस्त क्रियाकलाप पर स्पष्ट दीखने लगता है।

DevRaj80
12-01-2015, 05:33 PM
अतः, सूर्य का उत्तरायण होना उत्साह और ऊर्जा के संचारित होने का काल है। यही कारण है कि यह समय सूर्य की खगोलीय स्थिति पर निर्भर होने के कारण सौर-तिथि विशेष के सापेक्ष नियत होता है। संक्षेप में कहें तो 'मकर-संक्रान्ति’ सूर्य के दक्षिणी गोलार्द्ध से उत्तरी गोलार्द्ध में स्थानान्तरित हो कर स्थायी होने का परिचायक है। पूरे भारतवर्ष में यह पर्व सोत्साह मनाया जाता है। भाषायी रूप से इसका नाम चाहे जो हो, किन्तु, पर्व की मूल अवधारणा मनस-उत्फुल्लता, चैतन्य-चित्त और कृषि-प्रयास को ही इंगित करती है।

DevRaj80
12-01-2015, 05:34 PM
उत्तर प्रदेश

उत्तर प्रदेश में इस दिन को 'खिचड़ी’ के नाम से जानते हैं। पवित्र नदियों, जैसे कि गंगा, में प्रातः स्नान कर दान-पुण्य किया जाता है। तिल का दान मुख्य होता है। तिल आर्युवेद के अनुसार गर्म तासीर का होता है। अतः तिल के पकवान-मिष्टान्न का विशेष महत्त्व है। प्रयाग क्षेत्र में संगम के घाट पर एक मास तक चलने वाला 'माघ-मेला’ विशेष आकर्षण हुआ करता है। वाराणसी, हरिद्वार और गढ़-मुक्तेश्वर में भी स्नान का बहुत ही महत्त्व है। जो लोग नदियों में स्नान नहीं करते वे भी प्रातः काल उपवास रखते हुए स्नान करते हैं और 'ऊँ विष्णवै नमः’ कह कर तिल, गुड़, अदरक, नया चावल, उड़द की छिलके वाली दाल, बैंगन, गोभी, आलू और क्षमतानुसार धन का दान करते हैं जो कि इस पर्व का प्रमुख कर्म है। इसके बाद ही सुबह की चाय या नाश्ता होता है। दोपहर को भोजन में निश्चित तौर पर सबके घर में नये चावल-दाल की स्वादिष्ट खिचड़ी का भोजन होता है। यह कहते हुए -'खिचड़ी के चार यार, दही पापड़ घी अचार’! खिचड़ी के साथ इन चारों की उपस्थिति शुभ मानी जाती है। मिष्ठान्न में तिल और गुड़ के बने विशेष पकवान खाए जाते हैं जिनमें तिल के लड्डू, बर्फी और तिलकुट प्रमुख हैं।

DevRaj80
12-01-2015, 05:35 PM
बिहार

बिहार में भी पवित्र नदियों के स्नान और दान-पुण्य की परंपरा है। मिथिलांचल और बज्जिका क्षेत्र (मुज़फ़्फ़रपुर मण्डल) में इस दिन 'दही-चूड़ा’ खाने का विशेष महत्त्व है, और खिचड़ी का सेवन तो है ही! बिहार में इस दिन अगहनी धान से प्राप्त चावल और उड़द की दाल से खिचड़ी बनाई जाती है। कुल देवता को इसका भोग लगाया जाता है। लोग एक-दूसरे के घर खिचड़ी के साथ विभिन्न प्रकार के अन्य व्यंजनों का आदान-प्रदान करते हैं। साथ में गन्ना खाने की भी परिपाटी है। लोग चूड़ा-दही, गुड़ एवं तिल के लड्डू भी खाते हैं। चूड़े, मुरमुरे और गया के तिलकुट घर में आते हैं।
मकर संक्रांति से एक माह पूर्व (१४ दिसंबर से १४ जनवरी) तक मलमास माना जाता है। इन दिनों मांगलिक कार्य नहीं होते। मकर संक्रांति के दिन मलमास के अंत पर भव्य मेला लगता है। मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन शरीर का त्याग करने वालों का पुनर्जन्म नहीं होता, भगवान अपने चरणों में शरण देते हैं। महाभारत में भीष्म ने इसी दिन अपने शरीर का त्याग किया था। मगध, विशेष कर राजगीर की पहाड़ियाँ अपने आँचल में कई महाभारतकालीन प्रसंगों को सँजो कर रखे हुए हैं। सूर्योपासना की अद्भुत पद्धति मगध की ही देन है। मकर संक्रांति के दिन राजगीर के गर्म कुंड में स्नान कर आबाल-वृद्ध नवजीवन प्राप्त करते हैं।

DevRaj80
12-01-2015, 05:36 PM
बंगाल

गंगा-सागर, जहाँ पतित-पाविनी गंगा का समुद्र से महा-मिलन होता है, में बहुत बड़ा मेला लगता है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु इकट्ठा होते हैं और सूर्य देव को अर्घ्य देकर मकर राशि में उनके प्रवेश और उत्तरायण का स्वागत करते हैं। ऐसा माना जाता है कि 'सारे तीर्थ बार-बार, गंगासागर एक बार'। कुम्भ के मेले के बाद गंगासागर का मेला ही देश का दूसरे स्थान पर सबसे प्रसिद्ध मेला है। गंगासागर के मेले के पीछे पौराणिक कथा है कि मकर संक्रांति के दिन गंगाजी स्वर्ग से उतरकर भगीरथ के पीछे -पीछे चलकर कपिलमुनि के आश्रम में जाकर सागर में मिल गई। गंगा के पावन जल से ही राजा सगर के साठ हजार श्रापित पुत्रों का उद्धार हुआ था। यह कल्पना कर के अनेक यात्री स्वयं को भावुक महसूस करते हैं। यों तो सवा दो लाख की आबादी वाला यह सागर द्वीप पूरे साल सूना पड़ा रहता है लेकिन मकर संक्रांति के आते ही पूरा गंगासागर रोशनी में नहा उठता है।
गंगासागर का एक और मुख्य आकर्षण है यहाँ कपिल मुनि का विशाल मंदिर। इस मंदिर में कपिल मुनि के अलावा भागीरथी, राम और सीता की भी मूर्तियाँ विद्यमान हैं, जिन्हें जयपुर राजा के संरक्षण में गुरु संप्रदाय ने प्रतिष्ठित किया था। अब रामनंदी सम्प्रदाय के लोगों ने इससे अपना आराध्य स्थल बना लिया है। स्नान के बाद कपिल मुनि के मंदिर में पूजा-अर्चना भी की जाती है। इस दिन किसान अपनी फसलों की भी पूजा करते हैं। तिल का दान जो इस पर्व का मुख्य कर्म है, यहाँ भी किया जाता है।

DevRaj80
12-01-2015, 05:36 PM
तमिलनाडु

मकर-संक्रान्ति पर्व को तमिलनाडु में 'पोंगल’ के नाम से जानते हैं, जोकि एक तरह का पकवान है। पोंगल चावल, मूँगदाल और दूध के साथ गुड़ डाल कर पकाया जाता है। यह एक तरह की खिचड़ी ही है। तमिलनाडु में पोंगल सूर्य, इन्द्र देव, नयी फसल तथा पशुओं को समर्पित पर्व है जोकि चार दिन का हुआ करता है और अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इसकी कुल प्रकृति उत्तर भारत के 'नवान्न’ से मिलती है।
पर्व का पहला दिन भोगी पोंगल के रूप में मनाते हैं। भोगी इन्द्र को कहते हैं। इस तड़के प्रातः काल में कुम्हड़े में सिन्दूर डाल कर मुख्य सड़क पर पटक कर फोड़ा जाता है। आशय यह होता है कि इन्द्र बुरी दृष्टि से परिवार को बचाये रखे। घरों और गलियों में सफाई कर जमा हुए कर्कट को गलियों में ही जला डालते हैं। पर्व का दूसरा दिन सुरियन पोंगल के रूप में जाना जाता है। यह दिन सूर्य की पूजा को समर्पित होता है। इसी दिन नये चावल और मूँगदाल को गुड़ के साथ दूध में पकाया जाता है। तीसरा दिन माडु पोंगल कहलाता है। माडु का अर्थ 'गाय’ या 'गऊ’ होता है। गाय को तमिल भाषा में पशु भी कहते हैं। इस दिन कृषि कार्य में प्रयुक्त होने वाले पशुओं को ढंग-ढंग से सजाते हैं। और पशुओं से सम्बन्धित तरह-तरह के समारोह आयोजित होते हैं। यह दिन हर तरह से विविधता भरा दिन होता है। इस दिन को मट्टू पोंगल भी कहते हैं। आखिरी दिन अर्थात् चौथा दिन कनिया पोंगल के नाम से जाना जाता है। इस दिन कन्याओं की पूजा होती है। आम्र-पलल्व और नारियल के पत्तों से दरवाजे पर तोरण बनाया जाता है। महिलाएँ इस दिन घर के मुख्य द्वारा पर कोलम यानी रंगोली बनाती हैं। आखिरी दिन होने से यह दिन बहुत ही धूमधाम के साथ मनाते हैं। लोग नये-नये वस्त्र पहनते है और उपहार आदि का आदान-प्रदान करते हैं।

DevRaj80
12-01-2015, 05:36 PM
आंध्र प्रदेश

आंध्र में इस पर्व को पेड्डा पांडुगा कहते हैं, यानि बहुत ही बड़ा उत्सव! पहले दिन को भोगी पोंगल कहते हैं, दूसरा दिन संक्रान्ति कहलाता है। तीसरे दिन को कनुमा पोंगल कहते हैं जबकि चौथा दिन मुक्कनुमा पोंगल के नाम से जाना जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह फसलों की कटाई का त्योहार है। आम की पत्तियों और गेंदे के फूलों से सजे घरों, पतंगों, मुर्गो की लड़ाई, साँडों की लड़ाई और अन्य ग्रामीण खेलों के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में हर ओर उत्सव का वातावरण दिखाई देता है। अधिकतर गावों में महिलाएँ घरों के बाहर गाय के गोबर, फूलों और आम के पत्तों से रंगीन मुग्गू या रंगोली बनाती हैं। फसलों में बैलों के योगदान के लिए उनकी पूजा की जाती है।
पर्व के मौके पर महिलाएँ नए चावल, गुड़ और दूध से 'चक्कर पोंगल' या चावल की खीर बनाती हैं। भोगी अग्नि में लोग पहले दिन कृषि और घर की पुरानी चीजों और कचरे का अलाव जलाते हैं। महिलाएँ, पुरुष और बच्चे उत्साह के साथ रस्मों में भाग लेते नजर आते हैं। हैदराबाद और अन्य शहरों में आसमान पतंगों से भर जाता है। हैदराबाद की गलियों में बच्चों को पतंगबाजों की कटी पतंगों को लूटने के लिए दौड़ते देखा जा सकता है।

DevRaj80
12-01-2015, 05:36 PM
महाराष्ट्र

महाराष्ट्र में मकर-संक्रान्ति को तिलगुल पर्व के नाम से जाना जाता है। नाम के अनुसार ही इस दिन तिल और गुड़ का विशेष महत्त्व है। लोग एक-दूसरे को 'तिल-गुळ घ्या, गोड़-गोड़ बोला’ यानि 'तिल-गुड़ लीजिये, मीठा-मीठा बोलिये’ कह कर शुभकामनाएँ देते हैं। नवविवाहित महिलाओं के लिए यह पर्व विशेष महत्व रखता है। जिन स्त्रियों की शादी के बाद पहली मकर संक्रांति होती है वह अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना करते हुए खुशहाल दांपत्य जीवन के लिए कपास, तेल व नमक अन्य सुहागिन स्त्रियों को दान देती हैं। सधवा महिलाओं द्वारा हल्दी-कुंकुम की रस्म भी मनायी जाती है, जिसके अनुसार एक स्थान की सभी सुहागिनें जुट कर एक-दूसरे को सिन्दूर लगाती हैं और सदा-सुहागिन रहने का आशीष लेती-देती हैं। इस अवसर पर तिल और गुड़ से बना एक विशेष प्रकार का हलवा खाया जाता है। नये-नये वस्त्र पहनना आज की विशेष परिपाटी है। महाराष्ट्र में पतंग उड़ाने की परिपाटी है। आकाश पतंगों से भर जाता है। मराठी समाज में मान्यता है कि मकर संक्रांति से माघ सप्तमी तक सूर्य देव रथ पर सवार होकर सूरज की किरणों के साथ सुख-समृद्धि फैलाते हैं। इसलिए महाराष्ट्र में सात दिन तक मुख्य रूप से सूर्य देव की पूजा होती है।

DevRaj80
12-01-2015, 05:37 PM
कर्नाटक

मकर संक्रांति को कर्नाटक में सुग्गी कहा जाता है. इस दिन यहाँ लोग स्नान के बाद संक्रांति देवी की पूजा करते हैं जिसमें सफेद तिल खास तौर पर चढ़ाए जाते हैं। पूजा के बाद ये तिल लोग एक दूसरे को भेंट करते हैं। इस प्रदेश में यह पर्व सम्बन्धियों और रिश्तेदारों या मित्रों से मिलने-जुलने के नाम समर्पित है। यहाँ इस दिन पकाये जाने वाले पकवान को एल्लु कहते हैं, जिसमें तिल, गुड़ और नारियल की प्रधानता होती है। उत्तर भारत में इसी तर्ज़ पर काली तिल का तिलवा बनाते और खाते हैं। पूरे कर्नाटक प्रदेश में एल्लु और गन्ने को उपहार में लेने और देने का रिवाज़ है। इस पर्व को इस प्रदेश में संक्रान्ति ही कहते हैं। यहाँ भी चावल और गुड़ का पोंगल बना कर खाते हैं और उसे पशुओं को खिलाया जाता है। यहाँ 'एल्लु बेल्ला थिन्डु, ओल्ले मातु आडु’ यानि 'तिल-गुड़ खाओ और मीठा बोलो’ कह कर सभी अपने परिचितों और प्रिय लोगों को एक दूसरे को शुभकामनाएँ देते हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में बैलों और गायों को सुसज्जित कर उनकी शोभा यात्रा निकाली जाती है। नये परिधान में सजे नर-नारी, ईख, सूखा नारियल और भुने चने के साथ एक दूसरे का अभिवादन करते हैं। पतंग बाज़ी इस अवसर का लोकप्रिय परम्परागत खेल है।

DevRaj80
12-01-2015, 05:37 PM
गुजरात

गुजरात में मकर संक्रांति का पर्व उत्तरायण पर्व के नाम से जाना जाता है क्योंकि सूर्य इस दिन दक्षिणायन से उत्तरायण होता है। इस पर्व को यहाँ पतंग महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। स्नानादि कर बाल-वृद्ध, स्त्री-पुरुष सभी मैदान या छत पर पतंग और लटाई ले कर निकल पड़ते हैं। पतंगबाजी गुजरात प्रदेश की पहचान बन चुकी है और प्रदश के कई जगहों पर इसकी प्रतियोगिताएँ होती हैं। अब तो पतंगबाजी की अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताएँ भी आयोजित होने लगी हैं। पूरे गुजरात प्रदेश में पतंग उड़ाना शुभ माना जाता है। लोग सुबह से लेकर शाम तक पतंगबाजी में मस्त रहते हैं। खिचड़ी, गजक, तिल के लड्डू खाते हुए छोटे-बड़े सभी पतंग उड़ाते हैं। पतंग उड़ाने के साथ पतंग को काटने की भी प्रतिस्पर्धा होती है। पतंग कटने पर लोग ढोल एवं थाली बजाकर अपनी खुशी का इजहार करते हैं। मकर संक्रांति के दिन पूरा आसमान रंग-बिरंगे और आकर्षक पतंगों से गुलजार रहता है। खान-पान में एक विशेष प्रकार की सब्जी बनायी जाती है जिसे "उधीयु" कहा जाता है। इसे बहुत सी सब्जियों को मिलाकर बनाया जाता है। घर के मुखिया अपने परिवारिक सदस्यों को कुछ न कुछ उपहार देते हैं। तिल-गुड़ के तिलवे या लड्डू को मुख्य रूप से खाते हैं।

DevRaj80
12-01-2015, 05:37 PM
पंजाब

इस समय पंजाब प्रदेश में अतिशय ठंढ पड़ती है। यहाँ इस पर्व को 'लोहड़ी’ कहते हैं जो कि मकर संक्रान्ति की पूर्व संध्या को मनाते हैं। इस दिन अलाव जला कर उसमें नये अन्न और मूँगफलियाँ भूनते हैं और खाते-खिलाते हैं। ठीक दूसरे दिन की सुबह संक्रान्ति का पर्व मनाया जाता है। जिसे 'माघी’ कहते हैं। पंजाब के सिक्खों में ऐतिहासिक कारणों से भी संक्रांति का विशेष महत्व है- श्री गुरुगोविंद सिंह जी के प्राय: सभी साथियों ने हताश होकर उन्हें छोड़ दिया था, तब माई भागो नामक एक वीर महिला की प्रेरणा से उनमें से ४० ने महासिंह नामक सरदार के नेतृत्व में फिर उनके साथ चलने का संकल्प लिया। जब मुगल सेना ने अकेले गुरुजी को घेर लिया था, तब उस पर हमलाकर इन वीरों ने ही गुरुजी की प्राणरक्षा की थी। इस युद्ध में माईभागो सहित उन सबको वीरगति प्राप्त हुई। १७०५ ई. की मकर संक्रांति को खिदराना के ढाब नामक स्थान पर हुए उस संग्राम का साक्षी वह तालाब आज भी मुक्तसर कहलाता है। संक्रांति के दिन यहाँ बहुत बड़ा मेला लगता है और चालीस मुक्तों की याद में यहाँ हर वर्ष श्रद्धालु पवित्र मुक्तसर सरोवर में स्नान करते हैं, लंगर होता है तथा दान पुण्य के काम होते हैं। यह दिन श्री हरिमंदिर साहिब, अमृतसर का स्थापना दिवस होने के कारण भी पंजाब के जन जीवन में बहुत महत्व रखता है।

DevRaj80
12-01-2015, 05:37 PM
असम (अहोम)

इस पर्व को भोगली बिहू या माघ बिहू के नाम से जाना जाता है। बिहू असम प्रदेश का बहुत ही लोकप्रिय और उत्सवभरा पर्व है। इस दिन कन्याएँ विशेष नृत्य करती हैं जिसे बिहू ही कहते हैं। भोगली शब्द भोग से आया है, जिसका अर्थ है खाना-पीना और आनन्द लेना। खलिहान धन-धान्य से भरा होने का समय आनन्द का ही होता है। रात भर खेतों और खुले मैदानों में अलाव जलता है जिसे मेजी कहते हैं। उसके गिर्द युवक-युवतियाँ ढोल की आनन्ददायक थाप पर बिहू के गीत गाते हैं और बिहू नृत्य होता है जो कि असम प्रदेश की पहचान भी है। संक्रांति के पहले दिन को ''उरूका'' कहा जाता है और उसी रात को गाँव के लोग मिलकर खेती की जमीन पर खर के मेजी बनाकर विभिन्न प्रकार के व्यंजनों के साथ भोज करते हैं। उसमें ''कलाई की दाल'' खाना जरूरी होता है। कलाई की दाल इस क्षेत्र की प्रमुख फसल है। इसी रात आग जलाकर लोग रात भर जागते रहते हैं और सुबह सूर्य उगने से पहले नदी, तालाब या किसी कुंड में स्नान करते हैं। स्नान के बाद खर से बने हुए मेजी को जला कर ताप लेने का रिवाज है। उसके बाद नाना तरह के पेठा, दही, चिवड़ा खाकर दिन बिताते हैं। घरों में महिलाएँ स्वादिष्ट मिठाइयाँ बनाती हैं। इसमें विशेष रूप से बनाई जाने वाली मिठाई पीठा शामिल है जिसे लाल बोरा धान, नारियल और तिल से बनाया जाता है।

DevRaj80
12-01-2015, 05:38 PM
उड़ीसा

उड़ीसा के नागफेनी गाँव में प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के दिन चौदह जनवरी को रथयात्रा का आयोजन पिछली शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों से किया जा रहा है। नागफेनी के ऐतिहासिक जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र एवं बहन सुभद्रा सहित भगवान मकर ध्वज की मूर्ति है। मकर संक्रांति के दिन भगवान मकरध्वज के विशेष पूजा होती है और रथ यात्रा निकाली जाती है। नागफेनी में होने वाले मेला में भाग लेने वाले श्रद्धालु कोयल नदी में स्नान कर मंगल कामना करते हैं, गरीबों के बीच दान करते हैं और इसके बाद दही चूड़ा, गुड़, तिलकुट आदि का सेवन करते हैं।
भगवान मकरध्वज के नाम पर, मकर संक्रांति को दोस्ती के पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। महिलाएँ एक दूसरे को उपहार देकर दोस्ती की नई शुरूआत करती हैं। जिन लोगों को दोस्त बनाया जाता है उनका व्यक्तिगत नाम नहीं लिया जाता है। दोस्त का एक नाम 'मकर' रखा जाता है। इसी नाम से एक दूसरे को पुकारा जाता है। माना जाता है कि इस दिन की गयी दोस्ती गहरी होती है।
मकर संक्रांति के दिन सूर्योदय से पूर्व औषधि स्नान की भी परंपरा उड़ीसा में है। लोग प्रातः उठकर एक बर्तन में सरसों तेल, तिल और हल्दी मिलाकर शरीर पर लगाते हैं। इसके बाद नदी अथवा पवित्र सरोवर में डुबकी लगाते हैं। खिचड़ी और तिल-गुड के साथ ही इस दिन यहाँ कच्चे चावल की खिचड़ी बनाकर इष्ट देवता एवं सूर्य देव को भोग लगाया जाता है। इसके बाद लोग खिचड़ी खाते हैं।

DevRaj80
12-01-2015, 05:38 PM
केरल

केरल में संक्रांति के दिन अत्तुकल पोंगल मनाया जाता है। अत्तुकल भगवती मंदिर पर महिलाएँ ईंटों और लकडि़यों के चूल्हों पर पूजा में चढ़ाया के लिये प्रसाद बनाती हैं। भारी संख्या में महिलाओं की भागीदारी होने के कारण इसका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया गया है। संक्रांति के दिन सबरीमलै पर अयप्पा देवता का भी बड़ा ही महात्म्य है। उनकी पूजा-प्रक्रिया चालीस दिनों तक चलती है। चालीसवाँ दिन संक्रान्ति के दिन होता है जिसे बहुत ही धूमधाम से मनाते हैं। यहाँ पर एक पहाड़ी पर से मकर ज्योति को देखना शुभ माना जाता है। लोगों का विश्वास है कि मकर ज्*योति एक तारा है जिसके दिव्*य एवं आलौकिक प्रकाश में पूजन-अर्चना करने से जीवन में खुशियां आती हैं। सारे दुख दूर हो जाते हैं।

DevRaj80
12-01-2015, 05:38 PM
संक्रांति के अवसर पर केरल के मंदिरों में रोशनी की सजावट की जाती है और लोग वहाँ दिया जलाने पहुँचते हैं। पशुओं की सजावट और उनकी दौड़ तथा प्रतिद्वंदिता आदि अनेक प्रकार के खेल खेले जाते हैं। इस दिन पोंगल नामक एक विशेष प्रकार की खीर बनाई जाती है जो मिट्टी के बर्तनमें नये धान से तैयार चावल मूँग दाल और गुड़ से बनती है। पोंगल तैयार होनेके बाद सूर्य देव की विशेष पूजा की जाती है और उन्हें प्रसाद रूप में यह पोंगल व गन्ना अर्पण किया जाता है, साथ ही फसल देने के लिए कृतज्ञता व्यक्त की जाती है।

इस तरह से देखें तो मकर-संक्रान्ति का पर्व पूरे भारत में सोल्लास मनाया जाता है। दूसरे, यह भी देखा जाता है कि तिल, नये चावल, गुड़ और गन्ने का विशेष महत्त्व है। सर्वोपरि, भारत के पशुधन की महत्ता को स्थापित करता यह पर्व इस भूमि का पर्व है।

Nand Kumar
12-01-2015, 09:16 PM
very nice infothanks to share

rajnish manga
12-01-2015, 09:58 PM
मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर पर्व के महात्म्य तथा इसके विभिन्न रूपों की सुंदर व्याख्या प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद, देवराज जी.

DevRaj80
13-01-2015, 04:27 PM
very nice infothanks to share

मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर पर्व के महात्म्य तथा इसके विभिन्न रूपों की सुंदर व्याख्या प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद, देवराज जी.

:thanks::thanks::thanks: