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View Full Version : Muhobbat


Shikha sanghvi
15-01-2015, 04:49 PM
Muhobbat

Muhobbat kya hai..kaise hoti hai..kaha se shuru hoti hai.kaha khatam hoti hai..ye koi nahi janta or na hi jaan payega...

Muhobbat to rab ka diya vo tohfa hai jiski vajah se insan ki pahechan hai. Muhobbat ke kai rang hai, kai roop hai. muhobbat maa-bete, pita-putra, maa-beti,pita-putri, bhai-bahen, bahen-bahen, bhai-bhai, premi-premika, husband-wife.....is tarah sab alag alag rishte me usi tarah se hoti hai.

Muhobbat ek aisi dastan hai jo kabhi khatam hi nahi hoti. Muhobbat ke kai pahelu hai...or sabki nazar me muhobbat ke alag rang hai.

Muhobbat vo aag ka dariya hai jisme log jalkar bhasm ho jate hai.Apno ke liye apna sabkuch nyochhavar kar dete hai aisi hai ye muhobbat.

Dosto, aaj hum baat karenge aisi muhobbat ki jo ek ladka or ladki ke bich hoti hai..

Jab hum kisi ko har pal apni nazar ke samne pate hai, vo door hote huye bhi aapke dil pe raj karte hai, uski hi soch se aapke din ki shuruaat hoti hai or shaam bhi dhalti hai, uski ek khushi ke liye khud lakho gum zelne ko taiyar rahete hai, uski pyari si hansi ke liye apni jaan pe khel jate hai, uske har sapne ko pura karna uska maksad ban jata hai......to ise hum muhobbat kahete hai...

Muhobbat ki aisi kai kahaniya hoti hai, kisi ki muhobbat ko uski manzil mil jati hai, to kisi ki muhobbat adhuri hi rahe jati hai, kisi ki muhobbat ki dastan shuru hi nahi hoti to kisi ki muhobbat ki kahani sabse alag hoti hai...dono ki rahe alag hote huye bhi ekdusre ke dil me vahi muhobbat raheti hai...na milna, na bichhadna, na baate karna, na saath waqt bitana..par fir bhi muhobbat beinteha raheti hai...kya hua...? ajib lagta hai na ye baate sunkar...par hum such kahe rahe hai...

Muhobbat humari zindgi me roshni ki kirne lekar aati hai, ajib si shakti ka sanchar karti hai. Ek pal ke liye sochiye readers.....kya humare jivan me muhobbat na hoti to ye jivan jivan kahelata? nahi...humari life animals ki tarah hi hoti....ye pyar, tyag, sayam, samarpan ye sab ek insan hi kar sakta hai. Muhobbat sirf muhobbat hoti hai...or uske rang me har koi rang jata hai.

Shikha

saru4d
19-01-2015, 11:47 AM
Nice thoughts

Shikha sanghvi
20-01-2015, 08:45 AM
Thank you so much dipuji
Thank you so much saru4d ji

soni pushpa
20-01-2015, 01:19 PM
bahut sundar lekhan .. शिखाजी आपमें मुझे एक बहुत अच्छी लेखिका नजर आ रही है. आपने जिस तरह से अपनी भावनाओ को यहाँ प्रकट किया है सच में बहुत अछे से किया है .. बस यूँ ही आगे बढ़ाते रहें वो दिन दूर नही जब आप पाठकों के मन में छा जाओगे . सब आपकी रचनाओं का इंतज़ार करेंगे मेरी तरह.

rajnish manga
20-01-2015, 04:29 PM
शिखा जी द्वारा जारी किये गए इस सूत्र में बहुत सुन्दर तरीके से विषय की व्याख्या की गयी है. उनका लेखन रोचक भी है और प्रभावशाली भी है. टिप्पणियाँ देख कर आभास हो जाता है कि अन्य सदस्य भी बड़े मनोयोग से इसे पढ़ रहे हैं.

Shikha sanghvi
21-01-2015, 03:00 PM
bahut sundar lekhan .. शिखाजी आपमें मुझे एक बहुत अच्छी लेखिका नजर आ रही है. आपने जिस तरह से अपनी भावनाओ को यहाँ प्रकट किया है सच में बहुत अछे से किया है .. बस यूँ ही आगे बढ़ाते रहें वो दिन दूर नही जब आप पाठकों के मन में छा जाओगे . सब आपकी रचनाओं का इंतज़ार करेंगे मेरी तरह.

Thank you so much pushpaji......
Ye to aap sab ka pyar hai Jo Hume encourage karta hai....or ye Ehesas dilata hai ki hum likhte rahe...

Shikha sanghvi
21-01-2015, 03:03 PM
शिखा जी द्वारा जारी किये गए इस सूत्र में बहुत सुन्दर तरीके से विषय की व्याख्या की गयी है. उनका लेखन रोचक भी है और प्रभावशाली भी है. टिप्पणियाँ देख कर आभास हो जाता है कि अन्य सदस्य भी बड़े मनोयोग से इसे पढ़ रहे हैं.


Thank you so much rajnishji.....Hume bahot khushi hai ki humara lekhan sabke dil ko chhuta hai...or such kahe to humari koshish bhi yahi raheti hai

rajnish manga
25-01-2015, 08:00 AM
1. Muhobbat ek aisi dastan hai jo kabhi khatam hi nahi hoti. Muhobbat ke kai pahelu hai...or sabki nazar me muhobbat ke alag rang hai.

शिखा जी की उपरोक्त पंक्तियाँ पढ़ कर मुझे लता जी का गाया एक गीत याद आ गया जिसके बोल नीचे लिख रहा हूँ:

अजीब दास्तान है ये, कहाँ शुरू कहाँ ख़तम
ये मंजिलें हैं कौन सी, न वो समझ सके न हम

(फिल्म: दिल अपना और प्रीत पराई)

2. Muhobbat vo aag ka dariya hai jisme log jalkar bhasm ho jate hai.Apno ke liye apna sabkuch nyochhavar kar dete hai aisi hai ye muhobbat.

उपरोक्त के सन्दर्भ में मिर्ज़ा ग़ालिब का एक शे'र याद आता है:

ये इश्क़ नहीं आसां बस इतना समझ लीजे
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है

धन्यवाद.

DevRaj80
26-01-2015, 03:29 PM
muhobbat

muhobbat kya hai..kaise hoti hai..kaha se shuru hoti hai.kaha khatam hoti hai..ye koi nahi janta or na hi jaan payega...

Muhobbat to rab ka diya vo tohfa hai jiski vajah se insan ki pahechan hai. Muhobbat ke kai rang hai, kai roop hai. Muhobbat maa-bete, pita-putra, maa-beti,pita-putri, bhai-bahen, bahen-bahen, bhai-bhai, premi-premika, husband-wife.....is tarah sab alag alag rishte me usi tarah se hoti hai.

Muhobbat ek aisi dastan hai jo kabhi khatam hi nahi hoti. Muhobbat ke kai pahelu hai...or sabki nazar me muhobbat ke alag rang hai.

Muhobbat vo aag ka dariya hai jisme log jalkar bhasm ho jate hai.apno ke liye apna sabkuch nyochhavar kar dete hai aisi hai ye muhobbat.

Dosto, aaj hum baat karenge aisi muhobbat ki jo ek ladka or ladki ke bich hoti hai..

Jab hum kisi ko har pal apni nazar ke samne pate hai, vo door hote huye bhi aapke dil pe raj karte hai, uski hi soch se aapke din ki shuruaat hoti hai or shaam bhi dhalti hai, uski ek khushi ke liye khud lakho gum zelne ko taiyar rahete hai, uski pyari si hansi ke liye apni jaan pe khel jate hai, uske har sapne ko pura karna uska maksad ban jata hai......to ise hum muhobbat kahete hai...

Muhobbat ki aisi kai kahaniya hoti hai, kisi ki muhobbat ko uski manzil mil jati hai, to kisi ki muhobbat adhuri hi rahe jati hai, kisi ki muhobbat ki dastan shuru hi nahi hoti to kisi ki muhobbat ki kahani sabse alag hoti hai...dono ki rahe alag hote huye bhi ekdusre ke dil me vahi muhobbat raheti hai...na milna, na bichhadna, na baate karna, na saath waqt bitana..par fir bhi muhobbat beinteha raheti hai...kya hua...? Ajib lagta hai na ye baate sunkar...par hum such kahe rahe hai...

Muhobbat humari zindgi me roshni ki kirne lekar aati hai, ajib si shakti ka sanchar karti hai. Ek pal ke liye sochiye readers.....kya humare jivan me muhobbat na hoti to ye jivan jivan kahelata? Nahi...humari life animals ki tarah hi hoti....ye pyar, tyag, sayam, samarpan ye sab ek insan hi kar sakta hai. Muhobbat sirf muhobbat hoti hai...or uske rang me har koi rang jata hai.

Shikha


क्या बात है शिखा जी

rajnish manga
03-02-2015, 09:48 PM
स्त्री के प्रेम की अभिव्यक्ति
प्रभा खेतान की आत्मकथा 'अन्या से अनन्या' के आधार पर
(इन्टरनेट से साभार)

प्रेम के संबंध में बायरन ने लिखा है- ‘‘पुरुष का प्रेम पुरुष के जीवन का एक हिस्सा भर होता है। लेकिन स्त्री का तो यह सम्पूर्ण अस्तित्व ही होता है।’’ इसका अर्थ यही हैकि स्त्री जब किसी से प्रेम करती है तो वह सिर्फ ईमानदार ही नहीं होती बल्कि उसमें समर्पण का भाव भी होता है। इस भावना के कारण ही वह भविष्य का सुनहरा सपना देखती है। ऐसा ही प्रेम प्रभा खेतान ने किया। उन्होंने कहा ‘‘प्रेम कोई योजना नहीं हुआ करता और न ही यह सोच समझकर किया जाने वाला प्रयास है। इसे मैं नियति भी मानूँगी क्योंकि इसके साथ आदमी की पूरी परिस्थिति जुड़ी होती है।’’ अतः सोच समझकर लाभ-हानि देखकर प्यार नहीं होता और न ही अकेलेपन को भरने के लिए। प्रभा खेतान का प्यार भी जीवन के खालीपन को भरने का माध्यम नहीं था बल्कि उनका सम्पूर्ण अस्तित्व था, जिसकी ओर बायरन ने इशारा किया है।

rajnish manga
03-02-2015, 09:53 PM
बाइस साल की उम्र में प्रभा खेतान का पेशे से चिकित्सक और उम्र में अठारह साल बड़े डाॅक्टर सर्राफ से जो रिश्ता बना, उसे ‘प्रेम’ कहते हैं। निस्वार्थ, निश्छल प्रेम। जिन रूढ़ परम्परावादियों को इस आत्मकथा में वासना और व्यभिचार नज़र आता है उन्हें ‘प्रेम’ और ‘व्यभिचार’ शब्द का अर्थ समझ लेना चाहिए। मैत्रेयी पुष्पा ने लिखा है ‘‘मेरी दृष्टि में ‘प्रेम’ शब्द और ‘व्यभिचार’ शब्द को अलग-अलग देखा जाय तो दोनों एक-दूसरे के विपरीत आचरण में दिखते हैं। प्रेम जहाँ निश्छलता, विश्वास और ईमानदारी भरा लगाव है वहीं व्यभिचार कपट चोरी और बेईमानी है। लेकिन सामाजिक विडम्बना यह है कि अक्सर ही प्रेम को व्यभिचार से जोड़ दिया जाता है।’’

rajnish manga
03-02-2015, 09:55 PM
किसी भी रिश्ते को निभाने का भाव स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों में कमजोर होता है। अधिकांश आत्मकथा और हिंदी कथा साहित्य में ऐसे अनेको उदाहरण हैं जो इस तथ्य की प्रामाणिकता सिद्ध करते हैं। चूँकि स्त्रियाँ ज्यादातर संवेदनशील होती हैं इसलिए इस तरह के संबंध की प्रतिक्रिया से ज्यादा आहत भी होती हैं। प्रभा खेतान के इस प्रेम-संबंध में कहीं भी चालाकी नहीं है, वह समझदारी या यूँ कहे कि वह दुनियादारी भरी समझ नहीं है जिसकी वजह से उनपर ऊँगलियाँ उठती रहीं। एक नज़र के आकर्षण से उत्पन्न प्रेम को आत्मसात कर जिंदगी भर का जोखि़म उठाने वाली स्त्री चालाक तो नहीं हो सकती। हाँ ! निश्छलता और मासूमियत की प्रतिमूर्ति जरूर थी। उन्होंने लिखा ‘‘जिस राह पर मैं चल पड़ी हूँ वह गलत-सही जो भी हो पर वहाँ से वापस मुड़ना संभव नहीं। इसे ही प्रेम कहते है।’’ अतः निर्णय पर कायम रहना और संबंध को निभाने का जज्बा होना चाहिए तभी प्रेम किया जा सकता है।

rajnish manga
03-02-2015, 10:00 PM
डॉ. सर्राफ ने प्रभा खेतान से कभी प्रेम किया ही नहीं, उनके लिए यह क्षणों का आकर्षण था, जिसे उन्होंने स्वयं स्वीकारा भी. लेकिन प्रभा खेतान के लिए उनका प्रेम उनका पूरा बजूद था, उनका अस्तित्व था जिसे वे पीड़ा सहकर भी अंत तक कायम रखती हैं। उनका कथन इस बात का प्रमाण है-

‘‘वेदना की कड़ी धूप में
खड़ी हो जाती हूँ क्यों
बार-बार ?
प्यार का सावन लहलहा जाता है मुझे
किसने सिखाया मुझे यह खेल
जलो ! जलते रहो !
लेकिन प्रेम करो और जीवित रहो’’

rajnish manga
03-02-2015, 10:03 PM
यातना की भट्टी में जलकर, सारी उपेक्षा सहकर, प्रेम करने और अन्त तक अपने निर्णय पर कायम रहने का साहस प्रभा खेतान ने ही दिखाया। इनके प्रेम में कहीं भी सयानापन नहीं, कपट नहीं, निश्छल मन से सबकुछ देने का भाव दिखता है और अपनी आत्मकथा में सबकुछ स्वीकार कर लेने का साहस भी। चूँकि बात प्रेम की हो रही है तो एक प्रेमिका की आकांक्षा को जानना जरूरी है, जो खलील जिब्रान की महबूबा ने अपने महबूत कवि के लिए की थी ‘‘मैं चाहती हूँ कि तुम मुझे उस तरह प्यार करो जैसे एक कवि अपने ग़मग़ीन ख्यालात को करता है। मैं चाहती हूँ, तुम मुझे उस मुसाफिर की याद की तरह याद रखो जिसकी सोंच में पानी से भरा तालाब है, जिसका पानी पीते हुए उसने अपनी छवि उस पानी में देखी हो। मेरी इच्छा है, तुम उस माँ की तरह मुझे याद रखो, जिसका बच्चा दिन की रौशनी देखने से पहले मौत के अंधेरे में डूब गया हो। मेरी आरजू है कि तुम मुझे उसे रहमदिल बादशाह की तरह याद करो जिसकी क्षमा घोषणा से पहले कै़दी मर गया हो।’’

rajnish manga
03-02-2015, 10:06 PM
प्रभा खेतान ने कभी ऐसे ही प्रेम की कल्पना की थी। लेकिन अफसोस, डॉ. सर्राफ से ऐसा प्यार उन्हें नहीं मिला। समय के साथ उन्हें ये आभास होने लगा था कि “मैंने और डॉ. साहब ने जिस चाँद को साथ-साथ देखा था वह नकली चाँद था”। प्यार को निभाने का जो उत्साह प्रभा खेतान में था वह डॉ. सर्राफ में दिखा ही नहीं। निष्कपटता, निश्छलता प्रेम की कसौटी है। इसमें लेने का नहीं, देने का भाव होना चाहिए। लेखिका ने तो अपना हर कर्तव्य निभाया लेकिन डॉ. सर्राफ ने इस रिश्ते के प्रति अपनी कोई जिम्मेदारी नहीं निभाई। घनानंद के शब्दों में कहें तो-

‘‘तुम कौन धौं पाटी पढ़े हो लला
मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं।’’

पूरी आत्मकथा में एक निष्ठा व आस्था व्यक्त हुई है जिसके कारण उन्हें पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर बहुत कुछ झेलना पड़ा। उनका अन्तर्मन उनसे पूछता है ‘‘आखिर मैं क्यों नहीं अपने लिए जीती ? मैं क्यों एक परजीवी की तरह जी रही हूँ। किसलिए?

rajnish manga
03-02-2015, 10:07 PM
हिसाब लगाऊँ तो एक महीने में चैबीस घंटे से अधिक समय मैं और डॉ. साहब साथ नहीं रहते फिर भी उनके प्रति यह कैसा दुर्निवार आकर्षण है जो खत्म नहीं हो रहा ? डॉ. साहब को मेरी पीड़ा का अहसास क्यों नहीं होता ?’’ साधारणतः किसी भी संबंध में जब इतने तनाव हो तो उन्हें खत्म करना ही उचित है लेकिन ये संबंध ऐसा था जो न पूरी तरह से जुड़ा और न टूट ही पाया। क्योंकि लेखिका अपने निर्णय को खारिज नहीं करना चाहती थीं। उन्हें भले ही प्यार नहीं मिला लेकिन जितनी शिद्दत से उन्होंने निभाया वह अद्भुत है। तू नहीं और सही, और नहीं और सही वाला भाव यदि इनमें होता तो शायद सफल उद्योगपति के साथ आदर्श महिला भी होती क्योंकि मरे हुए संबंध को विवाह के नाम पर निभाना हमारे समाज को स्वीकार है, लेकिन आजीवन किसी से निश्छल प्रेम करना, महापाप। ये निर्णय तो पाठकों का है कि वे इस प्रेम-संबंध को किस तरह देखना चाहते हैं।

rajnish manga
03-02-2015, 10:08 PM
प्रेम एक ऐसा अहसास है, जिसे करने वाला ही जानता है। हिन्दी की प्रतिष्ठित लेखिका कुसुम अंसल ने लिखा है - ‘‘प्रेम एक इच्छा है, एक इच्छा जो विशेष इच्छा के रुप में प्रत्येक हृदय में बहती तरंगित होती है। यह इच्छा मात्र स्त्री-पुरुष ही नहीं वृक्ष की जड़ और फूलों में भी होती है, श्वास और वायु में भी होती है। प्रेम स्त्री-पुरष के मध्य घटित होता है जिसे शायद शरीर के पाँच तत्व भी चाहें तो ढूँढ नहीं पाते। प्रेम को हवा की तरह ओढ़ा जा सकता है, समुद्र सा लपेटा जा सकता है और पर्वतों की तरह बाहों के बंधन में आलिंगित किया जा सकता है। प्रेम हमारा वायदा है अपने आपसे से किया हुआ जिसे हमें निभाना होता है। मुझे लगता था प्रेम कोई प्रक्रिया या प्रोसेस नहीं है ,जिसमें शरीरों का जुड़ना या बिछुड़ना शामिल होता है, प्रेम तो बीज की तरह अंकुरित होता है, और फूल सा खिलता है। यह मनुष्य के भीतर सूक्ष्म सी मानवीय चेतना है जो ऊपर उठकर अजन्मा शाश्वत में बदल जाती है।’’ अतः प्रभा खेतान का प्रेम एक ऐसा ही सूक्ष्म अहसास है जो वाद-विवाद, नैतिकता-अनैतिकता की परवाह किये बिना सिर्फ मन की आवाज सुनता है।
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Pavitra
04-02-2015, 12:18 AM
वास्तव में प्रेम वही होता है जहाँ वो चाहे हमारे पास ना हो पर हमेशा हमारे साथ होता है , वास्तविक प्रेम वो है जो हमें रूपान्तरित करे , हमें और बेहतर बना सके। साथ वक्त गुजारना , घूमना या पूरा दिन बातें करते रहना ये तो एक तरह से प्रेम का सबसे निम्नतम रूप है , प्रेम तो वो है जहाँ साथ रहना जरूरी नहीं होता बल्कि दूर रहकर भी मानसिक तौर से पास रहना जरूरी होता है ।

रजनीश जी आपके दिये उदाहरणों से मुझे भी एक प्रेम कहानी याद आई - इमरोज और अमृता प्रीतम की प्रेम कहानी , जिसमें इमरोज ने निस्स्वार्थ भाव से अमृता को अपनाया और उनके दर्द को बाँटा ही नहीं बल्कि उसे अपना बना लिया ।

Shikha sanghvi
04-02-2015, 10:55 PM
Sahi kaha pavitra Aapne...or rajnishji ne bhi bahot acchhe se samjaya....ki suchha pyar kya hota hai...

Such hai....Jo door hokar bhi humesha paas rahe...door hote Huye bhi har pal unka hi khayal rahe vahi suchha pyar hota hai

rajnish manga
08-02-2015, 09:01 AM
.... वास्तविक प्रेम वो है जो हमें रूपान्तरित करे , हमें और बेहतर बना सके।

रजनीश जी आपके दिये उदाहरणों से मुझे भी एक प्रेम कहानी याद आई - इमरोज और अमृता प्रीतम की प्रेम कहानी , जिसमें इमरोज ने निस्स्वार्थ भाव से अमृता को अपनाया और उनके दर्द को बाँटा ही नहीं बल्कि उसे अपना बना लिया ।

आपके कथन से मैं शब्दशः सहमत हूँ. इमरोज़ व अमृता का प्रेम एक आदर्श प्रेम है जिसे अमृता ने अपनी कविताओं के माध्यम से बखूबी व्यक्त किया. उधर इमरोज़ ने अपने स्वतंत्र अस्तित्व को अमृता के अस्तित्व में ही विलीन कर दिया था. वे अमृता के जीवन में माँ, मित्र और नर्स का मिलाजुला रूप बन कर रहे.


sahi kaha pavitra aapne...or rajnishji ne bhi bahot acchhe se samjaya....ki suchha pyar kya hota hai...

Such hai....jo door hokar bhi humesha paas rahe...door hote huye bhi har pal unka hi khayal rahe vahi suchha pyar hota hai

उपरोक्त सूत्र में प्रेम के विभिन्न रूपों के बीच सच्चा प्रेम क्या है इस विषय पर बहुत सुंदर विचार व प्रतिक्रियाएं पढ़ने को मिलीं. कथाकार प्रभा खेतान के जीवन प्रसंग को पढ़ने व उसे पसंद करने के लिए पवित्रा जी, शिखा जी व रजत जी का बहुत बहुत धन्यवाद.

Shikha sanghvi
11-02-2015, 09:51 PM
Rajnishji,......Hume vo link chahiye jaise download karke hum likhe English Mai aise hi par vo type hindi Mai ho

Shikha sanghvi
11-02-2015, 09:51 PM
Kya aap humari help karo ge?