PDA

View Full Version : जयपुर लिट्रेचर फेस्टिवल 2015 : 21 जनवरी से साहित


soni pushpa
21-01-2015, 10:50 AM
पाल थरु और नायपॉल होंगे जयपुर साहित्य महोत्सव के आकर्षण

राजस्थान के जयपुर में 21 जनवरी से आयोजित 5 दिवसीय साहित्यिक महाकुंभ में साहित्य प्रेमी एलिजाबेथ गिलबर्ट के साथ 'सेल्फी, द आर्ट ऑफ द मेमोयर' अमीश त्रिपाठी व विवेक ओबरॉय के साथ 'द कनफ्लिक्*ट ऑफ धर्मा इन द महाभारत' जैसे सत्रों का आनंद ले सकेगें। इसके साथ ही एक ऐतिहासिक सत्र का भी आयोजन किया जा रहा है जिसमें साहित्य की दुनिया के दिग्गज पॉल थरू और वी एस नायपॉल एक ही मंच पर साथ नजर आएंगे
दुनिया के सबसे लोकप्रिय साहित्य मेलों में से एक जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल 2015 का बहुप्रतीक्षित कार्यक्रम वेबसाइट पर जारी कर दिया गया है।

द राइटर एड द वर्ल्ड सत्र में फारूख ढोंढी के साथ हिस्सा लेंगे जबकि पॉल थरू 'ए हाउस फॉर मिस्टर बिस्वास' सत्र में हनीफ कुरैशी और अमित चौधरी के साथ हिस्सा लेंगे। 'माई अदर लाइफ, ए नॉवलिस्ट अफेयर विद नॉन फिक्शन' शीर्षक के एकल सत्र में पॉल थरू लेखन शैली बदलने के बारे में बात करेंगे।

rajnish manga
21-01-2015, 05:29 PM
बहुत सुंदर प्रयास. समाचार पत्रों में तो हम jlf को फॉलो कर रहे हैं, लेकिन फोरम पर इसकी रिपोर्टिंग देख कर बहुत अच्छा लगा. कृपया अपडेट्स देते रहें. आपक बहुत बहुत धन्यवाद, सोनी जी.

soni pushpa
22-01-2015, 05:54 PM
ji rajnish ji koshish rahegi updets dete rahne ki ...

rajnish manga
22-01-2015, 07:53 PM
जयपुर साहित्य उत्सव 2015 में जावेद अख्तर


https://encrypted-tbn1.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcRoKvZPTUn5UH7W6iFmtVmcEiclMo9Ft yIcNOcvtsKlSuhu-4zlag



हिंदी फिल्मों के बेहतरीन गीतकार जावेद अख्तर की जयपुर साहित्य उत्सव में शिरकत बहुत मजेदार रही. उन्होंने हिंदी फिल्मों में गीत व संगीत के गिरते स्तर पर अपनी चिंता प्रगट की. उन्होंने उपस्थित श्रोताओं से कहा कि वे भी इस गिरावट के लिए ज़िम्मेदार हैं. जावेद ने जनता से, विशेष रूप से युवा पीढ़ी के श्रोताओं से, अपील की कि वे अपने-अपने तरीके से बेहतर गीत और संगीत की मांग को उचित माध्यमों और मंचों से उठाते रहें.

जयपुर साहित्य उत्सव को एक गीतात्मक शुरुआत देते हुये जाने माने गीतकार व कहानीकार-स्क्रीन-स्क्रिप्ट लेखक जावेद साहब ने ‘गाता जाये बंजारा- उर्दू, हिंदी, हिन्दुस्तानी के गीत’ सत्र में कहा कि हिंदी फिल्मों में शुरुआत से ही गाने फिल्मों का एक अभिन्न अंग रहे हैं. यहाँ तक कि पहली बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ में भी लगभग 50 गीत शामिल थे. यह पिछली शताब्दी के तीसरे दशक के अंतिम भाग की बात है. फिल्मों से पहले भी लोक मंचों पर रामलीला व कृष्णलीला प्रस्तुत की जाती थी जिसमें गीत संगीत एक प्रमुख अंग होते थे. नाटकों में अन्य नाटकों की तरह ‘हीर रांझा’ नाटक भी इसी शैली का पोषण करता था. पारसी थिएटर के नाटकों में भी गीत संगीत का भरपूर महत्व होता था.

rajnish manga
22-01-2015, 08:01 PM
जयपुर साहित्य महोत्सव 2015 में जावेद अख्तर


https://encrypted-tbn2.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcSmoAtqkpQk3Nnir_i8kzNbfEAz0SZqh GZBkZWPokJmLO6XpDgN


Javed Akhtar & Shabana Azmi at JLF 2015

rajnish manga
22-01-2015, 08:04 PM
जयपुर साहित्य महोत्सव 2015 में जावेद अख्तर

इसी के बाद आने वाली फिल्म ‘इन्द्रसभा’ में लगभग 70 गीत रखे गए थे. इस शुरुआती दौर के बाद सिनेमा के रूप व प्रारूप में परिवर्तन आये. गीत और संगीत के स्तर में बदलाव आया और वे लोकप्रियता के मामले में नया इतिहास लिखने लगे. अन्य देशों में बेहतर शायर हो सकते हैं लेकिन गीतों के मामले में हम सर्वश्रेष्ठ हैं.

एक रोचक घटना का ज़िक्र करते हुए उन्होंने बताया कि एक बार प्रख्यात शायर फैज़ अहमद फैज़ उनके घर किसी कार्यक्रम में आये थे. जब वो अपना कलाम सुना रहे थे तो उनकी आवाज़ में कुछ ढीलापन व सुस्ती थी. एक श्रोता, जिसे मजा न आ रहा था, ऊँची आवाज में कहा, “काश, फैज़ साहब जितना अच्छा लिखते हैं उतना ही अच्छा गा भी सकते.” इस पर फैज़ साहब ने फ़ब्ती कसी, “क्या सभी चीजे मुझे ही करनी पड़ेंगी? भाई, तुम भी तो कुछ करोगे या नहीं?”

rajnish manga
22-01-2015, 08:15 PM
महोत्सव में जावेद अख्तर, गुलज़ार व प्रसून जोशी

https://encrypted-tbn0.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcTcr9vmNtp3nE5TIpPBI-frAOFUyiyCqA1RRNCiNfT-oyu7EQ-B

सन 2011 में आयोजित महोत्सव में जावेद अख़्तर और गुलज़ार ने हिंदी फ़िल्मों में गानों के गिरते स्तर पर चिंता जताई. भारत में हिंदी फ़िल्मों के मौजूदा स्तर को लेकर जाने माने गीतकार और कवि संतुष्ट नहीं है. जयपुर में जारी साहित्य उत्सव में जावेद अख़्तर और गुलज़ार गीतों की सूरत को लेकर चिंतित नजर आए. जावेद अख़्तर तो काफ़ी तल्ख़ थे,कहने लगे तमीज़ और तहज़ीब कम हो रही है. गुलज़ार का कहना था कि जैसा समाज है वैसे ही गीत हैं. इस उत्सव में भारी भीड़ उमड़ रही है. अदब के इस मेले में साहित्य तनहा नहीं है. उसके साथ गीत संगीत,कथा वाचन, शेर-ओ-शायरी और बहुत कुछ हैं.

उत्सव में शनिवार को देसी विदेशी उपन्यास और कथा कहानियों पर चर्चा हुई तो शायर और गीतकार सिनेमा के पर्दे पर उतरे गीतों पर बहस करते रहे. इन गीतकारों ने सिनेमा के नग़मों के इतिहास, यात्रा और प्रगति पर चर्चा की. जावेद अख़्तर ने कहा कि फ़िल्मो में रोमांस और ग़म के नग़मे कम हुए है.''आप देखे ग़म के गाने हैं ही नहीं,क्या रोमांस और ग़म कम हो गए है. एक कच्चापन आ गया है. जिसकी वजह से कोमल भाव और कोमल गानों की कमी आ गई है, समाज में एक ठहराव आ गया है,ये ठीक नहीं है.'' गुलज़ार कह रहे थे कि कुछ तो तकनीक की वजह से भी हुआ है. क्योंकि फ़िल्मो के लिए अलग अलग 'फोर्मेट' आ गए है. मगर जावेद इससे सहमत नहीं थे,कहने लगे अगर ऐसा है तो फिर 'आइटम सोंग्स' पर ये लागू क्यों नहीं है.

rajnish manga
22-01-2015, 08:18 PM
महोत्सव में जावेद अख्तर, गुलज़ार व प्रसून जोशी

गीतकार प्रसून जोशी का कहना था कि पहले हम बहुत अलग ढंग से सोचते थे. ''दरसल पहले अभिभावक बच्चों को उन इलाक़ो की तरफ़ जाने नहीं देते जहाँ मुन्नी बदनाम हुई. अब प्रजातांत्रीकरण हो गया है. ये काम बाज़ार ने किया है. बाज़ार ने दरवाज़े खोल दिए हैं.'' जावेद ने बेलाग कहा, ''दरसल तमीज़ कम हो गई है. पहले के गाने कितने अच्छे होते थे. हमारी फ़िल्मों का अपना एक व्याकरण है, इनका अपना एक पारंपरिक ढांचा है, उसे तोड़ा न जाए. ''जावेद ने मंच को निहारा और अपने संग बैठे गुलज़ार और प्रसून को देख कर सभागार में लोगो की जानिब मुख़ातिब हुए और बोले, ''जहां तक हम तीनों की ज़िम्मेदारी है आप बेफ़िक्र रहें, ना जाने हमें कितनी फिल्में छोड़नी पड़ती हैं, ना जाने कितनी जगह झगड़ा होता है, लोग कहते हैं ये बद दिमाग़ है, अहंकारी है,ये ना जाने अपने को क्या समझते हैं, एक शब्द बदलने में इनको ना जाने क्या तकलीफ़ हो रही है.'' तभी बग़ल में बैठे गुलज़ार ने कहा बिलकुल सही कह रहे है.

जावेद और आगे बढ़े और कहा,''आप चाहे हम पर कोई इल्ज़ाम लगा दें, मगर ये कोईनहीं कह सकता कि हम तीनों ने कभी अश्लील या द्विअर्थी शब्द इस्तेमाल किये हों. मगर अब हमें आपका भी साथ चाहिए. आप अच्छे गीत संगीत को सराहें, बुरे कोपनाह न दें. थोड़ा आप भी तो हाथ बढ़ाएं, ये लड़ाई हम लड़ ज़रूर रहे हैं, लेकिन आपके बग़ैर जीत नहीं पाएंगे.''समाज का एक बड़ा हिस्सा इन गीतकारों केलिखे नग़मे गुनगुनाता रहा है.पर क्या समाज नग़मो की सुन्दरता बरक़रार रखनेकी इनकी सलाह पर भी उतना ही ग़ौर करेगा.

rajnish manga
22-01-2015, 10:00 PM
JLF 2015 से कुछ समाचार

भारत में जन्मे ब्रिटिश लेखक फारुख ढोंढी और बीबीसी के पूर्व पत्रकार मार्क टली के एक सत्र में सदारत करते हुए हिंदी फिल्मों के गीतकार तथा स्क्रिप्ट राइटर प्रसून जोशी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि किसी पुस्तक के निगेटिव पहलुओं के बारे में चर्चा करने में कोई बुरी बात नहीं है. लेकिन उस पुस्तक का सर्कुलेशन रोक देना कहाँ तक उचित होगा? वह पीरामल मुरुगन की पुस्तक के सन्दर्भ में बोल रहे थे.

उपरोक्त विषय पर चर्चा में भाग लेते हुए मार्क टली ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अकाट्य (absolute) नहीं हो सकती. असली साहित्य और किसी व्यक्ति या समूह की धार्मिक, यौनिक तथा सांस्कृतिक मान्यताओं का अपमान करने के अधिकार में बारीक अंतर होता है जिस का ध्यान रखा जाना चाहिए.

एक अन्य सत्र में बोलते हुए समारोह के प्रोड्यूसर संजोय र्रॉय ने अनेकत्व (plurality of thought) की जरुरत पर बल दिया. उन्होंने कहा कि लेखक इसलिए नहीं लिखता कि वह किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना चाहता है या किसी को खुश करना चाहता है. वह तो एक बेहतर कल की उम्मीद में अपने विचारों को कागज़ पर उतारता है. एकाधिक मत जरुरत हमारे जैसे देश के लिए अत्यंत अधिक है जहाँ हर जगह असमानता और विषमता दिखाई पड़ती है और जहाँ प्रगति की और जाने का एकमात्र ज़रिया ज्ञान, सुलझे हुआ दृष्टिकोण और शिक्षा का समुचित प्रसार है.

पाँच दिन के इस महोत्सव में अलग अलग क्षेत्रों से आये हुए लगभग 300 वक्ता अपनी बात को सामने रखेंगे. उनके विषय लैंगिक से ले कर इतिहास, कला व साहित्य से ले कर सिनेमा तक फैले हुए हैं.

Pavitra
22-01-2015, 10:08 PM
मैं इस बात से सहमत हूँ कि आजकल गानों क स्तर बहुत गिर गया है , लेकिन फिर भी इस बात की खुशी है कि आज भी अच्छे गाने लिखे और सुने जा रहे हैं ।ये बहस बहुत दिनों से जारी है कि आजकल अच्छे गाने नहीं लिखे जाते , मैने इसी बहस को देखते हुए फोरम पर एक सूत्र भी शुरु किया था जिसमें सिर्फ नये गानों क सन्कलन है जिनके बोल अर्थपूर्ण हैं - http://myhindiforum.com/showthread.php?t=14105।
ये सच है कि आजकल बहुत कम ऐसे गाने होते हैं जिनके बोल अर्थपूर्ण हों , पर ऐसे गानों का पूर्ण अभाव भी नहीं है । आजकल हर तरह का सन्गीत मौजूद है , अब ये हम पर निर्भर करता है कि हम क्या सुनना चाहते हैं । पहले के जमाने में भी Item Songs होते थे , और ऐसा भी नहीं था कि सभी गानोंं के बोल अच्छे ही हों , पर ऐसे गानों की संख्या कम थी , आजकल ऐसे गानों की संख्या बढ गयी है ।

पर फिर भी मेरा मनना है कि आज भी हमारे पास बहुत अच्छे lyricist मौजूद हैं , और बहुत अच्छे गाने भी लिखे जा रहे हैं , बस अब ये हमारी पसन्द पर निर्भर करता है कि हम क्या सुनना चाहते हैं।

rajnish manga
22-01-2015, 10:37 PM
फ़िल्मी गीतों के स्तर को ले कर हुई चर्चा के सन्दर्भ में आपने बहुत संतुलित विचार रखे हैं, जिसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ, पवित्रा जी. मैं मानता हूँ कि हर नयी पीढ़ी कुछ नया, कुछ नया चाहती है. यह भी सच है कि आज हम एक वैश्विक गाँव का हिस्सा हैं जहाँ अन्य संस्कृतियों, विशेष रूप से पाश्चात्य संस्कृति का अधिक प्रभाव है. इन्टरनेट व टीवी का हमारे जीवन में व्यापक असर है. आज लोकप्रियता की बात करें तो मुझे साउथ के कलाकार धनुष का गया गीत 'कोलावेरी डी' और साउथ कोरिया के कलाकार का 'गंगनम नृत्य' याद आता है. इन दोनों ही चीजों की रिकॉर्ड तोड़ लोकप्रियता हुई लेकिन उतनी ही जल्दी ये लोगों के ज़हन से उतर भी गए.

soni pushpa
23-01-2015, 10:53 PM
बहुत बहुत धन्यवाद रजनीश जी आपने इस सूत्र को आगे बढाया , मै आपकी आभारी हूँ .. बहुत सी बातें जानने को मिली हम सबको इस फेस्टिवल के बारे में . पुनः हार्दिक धन्यवाद .

Pavitra
24-01-2015, 12:33 AM
आज लोकप्रियता की बात करें तो मुझे साउथ के कलाकार धनुष का गया गीत 'कोलावेरी डी' और साउथ कोरिया के कलाकार का 'गंगनम नृत्य' याद आता है. इन दोनों ही चीजों की रिकॉर्ड तोड़ लोकप्रियता हुई लेकिन उतनी ही जल्दी ये लोगों के ज़हन से उतर भी गए.

आप बिल्कुल सही कह रहे हैं , वास्तव में देखा जाये तो गाने सिर्फ वही जहन में रहते हैं जिनके बोल अर्थपूर्ण हों , गाने की धुन और गाने की uniqueness सिर्फ कुछ ही समय तक गानों को popular बना सकती हैं ।

rajnish manga
24-01-2015, 06:54 AM
बहुत बहुत धन्यवाद रजनीश जी आपने इस सूत्र को आगे बढाया , मै आपकी आभारी हूँ .. बहुत सी बातें जानने को मिली हम सबको इस फेस्टिवल के बारे में . पुनः हार्दिक धन्यवाद .

बहुत बहुत धन्यवाद, पुष्पा सोनी जी. किसी भी सफ़र में महत्व पहले कदम का है. यदि पहला कदम न उठाया गया हो तो दूसरा कदम उठाना मुश्किल है.

rajnish manga
24-01-2015, 07:06 AM
आप बिल्कुल सही कह रहे हैं , वास्तव में देखा जाये तो गाने सिर्फ वही जहन में रहते हैं जिनके बोल अर्थपूर्ण हों , गाने की धुन और गाने की uniqueness सिर्फ कुछ ही समय तक गानों को popular बना सकती हैं ।


मैं आपकी बात से सहमत हूँ, पवित्रा जी. यही कारण है कि पुराने गानों की लोकप्रियता को देखते हुए और लोगों के दिलों तक पहुँचने की उनकी क्षमता के कारण ही आज की फिल्मों तथा विज्ञापनों में भी उनका प्रयोग किया जाता है चाहे कुछ बदलाव के साथ ही हो. आजकल एक विज्ञापन में "ये मेरा दीवानापन है .... " गीत का बदले हुए रूप में अच्छा उपयोग किया गया है.

rajnish manga
24-01-2015, 09:32 AM
जयपुर साहित्य महोत्सव में विजय शेषाद्रि

महोत्सव में भाग ले रहे विदेशी मेहमानों में एक प्रमुख नाम विजय शेषाद्रि का है जो भारतीय मूल के हैं हैं और अमरीका में रहते हैं. शेषाद्रि अंग्रेजी के जाने-माने कवि हैं और पुलित्ज़र पुरस्कार विजेता हैं. अंग्रेजी साहित्य जगत में इसका अत्यंत महत्व है विशेष रूप से नॉन-फ़िक्शन साहित्य के क्षेत्र में.

शेषाद्रि से जब किसी ने यह कहा कि भारत में काव्य-साहित्य के प्रति लोगों का रुझान कम होता जा रहा है. वे इसका क्या कारण समझते है? तो शेषाद्रि का कहना था कि वे भारत के साहित्यिक माहौल के बारे में अधिक कुछ नहीं जानते, अतः इस विषय में कुछ नहीं बता सकते. हाँ, यदि अमरीका का संबंध है, वहाँ काव्य-साहित्य की गरिमापूर्ण स्थिति है. वहाँ काव्य-साहित्य के प्रति लोगों की समझ तथा उसके प्रति रुझान बढ़ा है.

‘इस बारे में स्थिति इतनी अनुकूल है कि मैं कह सकता हूँ कि बारहवीं शताब्दी में पर्शिया (फ़ारस या ईरान) में काव्य-साहित्य के प्रति समाज के हर तबके में जो उत्साह और लगाव था, ठीक उसी प्रकार का उत्साह और लगाव आज अमरीकी समाज में काव्य-साहित्य के प्रति देखने को मिलता है.’ उन्होंने कहा कि अमरीकी संदर्भ में वर्तमान समय काव्य-साहित्य का “स्वर्णिम युग” है.

हम आपको बता दें कि बारहवीं शताब्दी में पर्शिया या बड़े बड़े विद्वान् हो चुके हैं जिनमें सूफ़ी साहित्य के रचयिता शेख़ सादी व उमर ख़य्याम और उनसे पहले मौलाना रूमी थे. विश्व की सभी प्रमुख भाषाओं में इनकी रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं. ये सभी विश्व-विख्यात विभूतियाँ है. हम कह सकते हैं कि सैंकड़ों वर्षों भी उनकी चमक कम नहीं हुई है.

soni pushpa
24-01-2015, 02:56 PM
पुनः बहुत अभारी हु रजनीश जी ....धन्यवाद आपने इस सूत्र के क्रम को बहुत अच्छे से संभाला है ...

rajnish manga
24-01-2015, 10:59 PM
जयपुर साहित्य महोत्सव 2015


https://encrypted-tbn0.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcToi43wjBLTKY-M2HIy3Z9y6PNRN63FNrrlCLQgT7UdjpRAxA8P

ज.सा.म. 2015 में गीतकार स्क्रिप्ट राइटर प्रसून जोशी

अपने गीतों के लिए विख्यात तथा राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार प्रसून जोशी ने इस बार पुनः महोत्सव में शिरकत की. दिल्ली के साथ उनके रोमांस की बात चली तो उन्होंने बताया कि बचपन से ही दिल्ली उनका एक भाग रहा है. उन्होंने रात बिरात भागम-भाग में यहाँ फ़िल्में देखी हैं. ढाबों के खाने का आनंद लिया है. अपनी जवानी के दिनों में उन्होंने अपनी लाइफ़ को खूब एन्जॉय किया है. ‘नो वन किल्ड जैसिका’ फिल्म जो 2011 में प्रदर्शित हुई थी, में दिल्ली के बारे में उनका एक गीत था- यह दिल्ली है मेरे यार. उसके बाद आयी फिल्म ‘दिल्ली-6’ में भी उन्होंने दिल्ली की संस्कृति को समेटने की अच्छी कोशिश की थी. उन्होंने अपनी रचनाओं यथा- माँ, ससुराल गेंदा फूल तथा सीखो ना नैनों की भाषा पिया- आदि का काव्य पाठ कर श्रोताओं का मनोरंजन किया.

जोशी का प्रारम्भिक समय उत्तराखंड में व्यतीत हुआ. वे बताते हैं कि उन्होंने बीटल्स का नाम भी बहुत बाद में सुना था. वे शास्त्रीय, लोक व पारंपरिक संगीत से अवश्य परिचित थे लेकिन उनमे इतना शब्द सामर्थ्य नहीं था कि अपने आपको गीतकार के रूप में ले पाते. यह रुझान तो प्रोफ़ेशनल जीवन में आने के बाद ही विकसित हुआ. 43 वर्षीय जोशी ने अपने नए प्रोजेक्ट के बारे में भी जानकारी दी. उन्होंने बताया की आज कल वे एक पौराणिक विभूति पर बनने वाली फिल्म पर काम कर रहे हैं. निर्माणाधीन फिल्म “मर्गेरिटा, विद ए स्ट्रॉ ” के लिए भी गीत लिख रहे हैं. इस फिल्म में अभिनेत्री कल्कि कोयेचिन प्रमुख भूमिका में दिखाई देंगी.

rajnish manga
26-01-2015, 02:41 PM
जयपुर साहित्य महोत्सव 2015
ज.सा.म. 2015 में फिल्मकार विशाल भारद्वाज

फिल्म "हैदर" पर उठे विवाद पर:
सच कहूँ तो मुझे इस फिल्म के सन्दर्भ में उठे विवाद का कुछ तो आभास पहले से था क्योंकि कश्मीर की पृष्ठभूमि पर कोई फिल्म बने और कोई विवाद न खड़ा हो यह हो ही नहीं सकता. लेकिन यह विवाद इतने व्यापक स्तर पर खड़ा होगा, यह मुझे नहीं पता था. फिल्म के द्वारा कोई राजनैतिक सन्देश देने की मेरी मंशा नहीं थी बल्कि मैं तो वहां जो हो रहा है, वही दिखाना चाहता था.

कश्मीरी पंडितों की स्थिति पर कुछ नहीं कहा:
दरअसल, यह फिल्म (हैदर) कश्मीरी पंडितों के बारे में नहीं थी. ऐसा नहीं कि कश्मीरी पंडितों को अपना घरबार छोड़ कर जो भटकना पड़ रहा है, उसकी मुझे तकलीफ़ नहीं है. मैं तो केवल यह कहना चाहता हूँ कि फिल्म में जिस कहानी को पेश किया गया है, उसमे इस समुदाय की मुश्किलों पर ध्यान फोकस करने की गुंजाईश नहीं थी.

गुलज़ार साहब से रिश्तों के बारे में:
गुलज़ार साहब से मेरे बड़े घनिष्ट संबंध हैं. कभी तो यह पिता-पुत्र के रिश्तों की तरह दिखाई देते हैं कभी गुरू-शिष्य की तरह. लेकिन मेरा मानना है कि उनसे मेरा संबंध रूहानी अधिक है.

rajnish manga
26-01-2015, 03:12 PM
जयपुर साहित्य महोत्सव 2015
ज.सा.म. 2015 में विवाद

अन्य वर्षों की तरह इस वर्ष भी महोत्सव विवाद मुक्त नहीं रहा. इस बार विवाद उठा है राष्ट्रगीत को ले कर. बुधवार, 21 जनवरी को इसके उद्घाटन समारोह में 'जन-गण-मन' जो प्रस्तुति की गयी, उस पर विवाद उठाया गया है, जिसको ले कर एक सज्जन (श्री मधुसुदन सिंह राठौड़) न्यायालय की शरण में चले गए है. उनका आरोप है कि राष्ट्रगीत के गायन की मर्यादा का उल्लंघन किया गया है. एक तो इसकी धुन का ध्यान नहीं रखा गया, दूसरे, इसे गाने में 44 सैकेंड का अतिरिक्त समय लिया गया. परम्परा के अनुसार राष्ट्रगीत को गाने में ठीक 52 सैकेंड का समय लगना चाहिए. शिकायत Prevention of Insult to National Honour Act 1971 की विभिन्न धाराओं के अंतर्गत की गयी है. मुख्य दण्डाधिकारी के आदेश पर पुलिस आरोप की जांच कर रही है.

rajnish manga
26-01-2015, 04:02 PM
जयपुर साहित्य महोत्सव 2015
ज.सा.म. 2015 में शशि थरूर

लोकसभा में कांग्रेस पार्टी के सांसद व प्रसिद्ध लेखक शशि थरूर, जो पत्नी सुनंदा पुष्कर की मौत के बाद पुलिस पूछताछ के बाद पहली बार किसी समारोह में आये, भी महोत्सव में शिरकत कर रहे थे. उन्होंने वहां उपस्थित लोगों से विभिन्न विषयों पर बातचीत की. अवसर था थरूर की नयी पुस्तक "INDIA SHASTRA: Reflections on the Nation of Our Times" (इंडिया शास्त्र: राष्ट्र की वर्तमान स्थिति पर विमर्श) के विमोचन का. पुस्तक में थरूर के 100 लेखों का संग्रह प्रस्तुत किया गया है जिसमें उन्होंने मोदी सरकार के सत्तारूढ़ होने के बाद तक के समय की समीक्षा की है.

शशि थरूर ने कई विषयों को ले कर मोदी सरकार की आलोचना की लेकिन आम जनता के मुद्दों से जुड़ाव के कारण सरकार के प्रदर्शन को ले कर उसकी प्रशंसा भी की. धर्म परिवर्तन तथा अन्य विवादास्पद मुद्दों पर बोलने वाले मंत्रियों सांसदों व समूहों (जैसे वीएचपी आदि) पर मोदी कोई बयान नहीं दे रहे हैं. हिन्दुत्ववादी शक्तियों के इस रवैये से विदेशी निवेशक दूर जा सकते हैं. उन्होंने कहा कि 'स्वच्छ भारत अभियान' जिसे पीएम ने बड़े गाजे-बाजे के साथ शुरू किया था और जिसे जनता ने बहुत पसंद भी किया था सिर्फ एक सालाना फोटो सेशन बन कर ही न गुज़र जाये. आखिर हम इतना कूड़ा कहाँ डंप करेंगे. इसके लिए केंद्र स्तर पर व्यापक योजना बनाई जानी चाहिए.

थरूर की पुस्तक को खरीदने के लिए लोगों में ज़बदस्त उत्साह देखने को मिला. उनके हस्ताक्षर वाली प्रति खरीदने के लिए उपस्थित समुदाय में बहुत जोश था.

rajnish manga
26-01-2015, 06:48 PM
जयपुर साहित्य महोत्सव2015
ज.सा.म. 2015 में एक और विमोचन

जहाँ शशि थरूर की पुस्तक की एक सौ प्रतियां एक घंटे के अंदर अंदर ही बिक चुकी थीं और जिस काउंटर पर थरूर अपनी पुस्तक पर हस्ताक्षर कर रहे थे, वहाँ लोगों में होड़ लगी थी. वहीँ हिंदी पुस्तकों की खरीद के प्रति लोगों में अधिक उत्साह देखने में नहीं मिल रहा था. हम बात कर रहे हैं एक हिंदी पुस्तक के विमोचन समारोह की. पुस्तक का नाम है "कुछ धुंधली तस्वीरें" जिसके लेखक हैं विश्वजीत पृथ्वीजीत सिंह और जिसके विमोचन के लिए उपस्थित थे हिंदी के प्रख्यात साहित्यकार, लेखक और कवि अशोक वाजपेयी. इस समारोह में गिनती के लोग दिखाई दे रहे थे.

हिंदी के एक अन्य प्रमुख लेखक भी वहां उपस्थित थे. उन्होंने अपनानाम न लिखने की शर्त पर अपना विचार रखते हुए कहा कि यह सिर्फ ब्रैंड मार्केटिंग का कमाल है. थरूर की पुस्तक खरीदने वालों को न तो किताबों से कोई ख़ास लगाव है और न ही इससे कोई वास्ता है कि थरूर ने अपनी पुस्तक में क्या लिखा है? सच्चाई तो यह है कि वे युवा लड़के-लड़कियों में अपनी अपील के कारण बहुत लोकप्रिय हो गए हैं, विशेष रूप से अपनी पत्नी सुनंदा पुष्कर की मृत्यु से जुड़े विवाद के बाद. उन्होंने महोत्सव के बारे में कहा कि यहाँ पर आप अपने पसंदीदा व मशहूर लेखकों से आसानी से मिल सकते हैं और उनसे बात कर सकते हैं.

विमोचन स्थल पर ही कॉलेज की एक छात्रा शशि थरूर की पुस्तक हाथ में लिए खड़ी थी. पूछने पर वाल बोली कि मैं उनसे (थरूर से) मिल कर आयी हूँ. वह कितने क्यूट हैं !! मैं पिछले वर्ष भी यहाँ आयी थी और झुम्पा लाहिरी से मिली थी और उनकी किताब “The lowland” खरीद कर ले गयी थी. मैंने उनके साथ एक सेल्फी भी खींची थी.

“तो आपने उनकी किताब पढ़ ली?”

“नहीं, मुझे किताब पढ़ने का समय ही नहीं मिला.”

इस बार भी लेखको या बॉलीवुड के लोगों के साथ सेल्फी खिंचवाने की होड़ लगी थी.

soni pushpa
26-01-2015, 10:26 PM
बहुत बहुत अच्छी जानकारियाँ मिली आपकी वजह से रजनीश जी अपने कहा था आगे की शुरुवात हो तब ही वो कार्य आगे बढ़ता है पर हरेक कार्य को गति चहिये जिसे(गति) आपने पूरा किया है रजनीश जी और ये सूत्र बड़ा रोचक हो गया . बहुत बहुत धन्यवाद .

rajnish manga
29-01-2015, 08:59 PM
जयपुर साहित्य महोत्सव2015
ज.सा.म. 2015 में वहीदा रहमान

https://encrypted-tbn3.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcQhDspA20AnHtMIBNuAcdHoOA_Hm_VRJ VDkN0wGQWKtzD2BF26b

वहीदा रहमान के सत्र के दौरान हल्की बूंदाबांदी के बीच युवा साहित्य प्रेमी बिना छाते के ही उनकी जिंदगी से जुड़े किस्से सुनते रहे। जैसे ही वहीदा मंच पर आई तो उनकी फिल्म का गाना 'चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो' बजा। सत्र में मौजूद लोगों ने वहीदा रहमान का तालियों की गड़गड़ाहट के साथ स्वागत किया। इस सत्र का नाम था- मुझे जीने दो, वहीदा रहमान के साथ वार्तालाप. इसमें वहीदा रहमान के साथ फिल्म इतिहासकार नसरीन मुन्नी कबीर और लेखक व फिल्मकार अर्शिया सत्तार उपस्थित थी. वहीदा ने बताया कि देवानंद उनके फेवरेट हीरो हैं।

वहीदा रहमान ने बताया कि 1956 में जब उनकी पहली फिल्म सीआईडी रिलीज हुई थी, उस वक्त वह फिल्म उद्योग में काफी जिद्दी लड़की हुआ करती थीं। उन्होंने उस समय गुरु दत्त और सीआईडी के निर्देशक राज खोसला द्वारा नया नाम रखने की बात को अस्वीकार कर दिया. उन्हें लगता था की इस नाम में दर्शकों के लिए खिंचाव नहीं है (अर्थात यह नाम सेक्सी नहीं है). उन लोगों ने दिलीप कुमार, मधुबाला, मीना कुमारी, समेत कई कलाकारों के उदाहरण दिए. लेकिन वहीदा किसी कीमत पर नाम बदलने पर तैयार नहीं हुईं.

rajnish manga
29-01-2015, 09:02 PM
जयपुर साहित्य महोत्सव2015
ज.सा.म. 2015 में वहीदा रहमान

गुरुदत्त के बारे में उन्होंने बताया कि ‘ वे एक महान फ़िल्मकार थे. उनके साथ मेरे संबंध बेहतरीन रहे, उन्होंने ही मुझे सी आई डी फिल्म में ब्रेक दिया. लेकिन उनके साथ काम करना आसान नहीं था. वे एक-एक सीन के 50-50 री-टेक तक ले लिया करते थे. गुरुदत्त के साथ मैंने ‘कागज़ के फूल’ (1959) तथा ‘प्यासा’(1957) तथा ‘चोदह्वीं का चाँद’ नामक फिल्मों में भी काम किया.

अपने फिल्मी सफर का जिक्र करते हुए कहा कि 'साहब, बीबी और गुलाम' में जब उनको सेकेंड लीड रोल के लिए ऑफर आया तो उन्होंने उसे ठुकरा दिया था। उस समय गुरुदत्त साहब ने उनसे कहा था कि आप एक बड़ी अदाकारा बन गई हो आप सेकेंड लीड रोल मत करो। यह पूछे जाने पर कि ‘साहब बीवी और गुलाम’ फिल्म के लिए वे इस रोल के लिए कैसे राजी हो गईं. इस पर उन्होंने बताया, “दरअसल, मैं लीड रोल ही करना चाहती थी लेकिन निर्माताओं ने मन कर दिया. उनका कहना था कि मैं लडकी जैसी दिखती हूँ जबकि इस रोल के लिए मैच्योर अभिनेत्री की जरुरत थी. अंततः मैं साइड रोल के लिए राजी हो गयी. यह रोल भी मुझे बहुत पसंद था.

उपरोक्त फिल्मों के बाद वे देवानंद की ‘गाइड’ फिल्म को अपने करियर में मील का पत्थर मानती हैं. 50 वर्ष पहले बनी फिल्म अपने ज़माने से कहीं आगे की कहानी थी. वे अपने को इस फिल्म की नायिका रोज़ी के निकट पाती हैं.

गुजरे जमाने की अदाकारा नंदा को अपना सबसे अच्छा मित्र बताया। नए सितारों में अभिषेक बच्चन उनके दोस्त हैं।

soni pushpa
31-01-2015, 02:34 AM
wow जो बातें हमे पता न थी रजनीश जी वो आपके द्वारा लिखी गई जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल से पता चली बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय रजनीश जी ,...मै आपकी बहुत अभारी हूँ की इस सूत्र को आपने आगे बढाकर इतनी विस्तृत जानकारियों से हमे अवगत कराया