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View Full Version : ज़ोरॉस्ट्रा या ज़रथुस्त्र


rajnish manga
12-03-2015, 04:37 PM
ज़ोरॉस्ट्रा या ज़रथुस्त्र
ज़न्दअवेस्ता के रचयिता व पारसी धर्म के प्रवर्तक



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एक बार पर्शिया का राजा विशतस्या, जब युद्ध जीतकर लौट रहा था, तो वह जरथुस्त्र के निवास के निकट जा पहुंचा। उसने इस रहस्यदर्शी संत के दर्शन करने की सोची। राजा ने जरथुस्त्र के पास जाकर कहा, ‘’मैं आपके पास इसलिए अया हूं कि शायद आप मुझे सृष्टि और प्रकृति के नियम के विषय में कुछ समझा सकें। मैं यहां पर अधिक समय तो नहीं रूक सकता हूं, क्योंकि मैं युद्ध स्थल से लौट रहा हूं। और मुझे जल्दी ही अपने राज्य में वापस पहुंचना है, क्योंकि राज्य के महत्वपूर्ण मसले महल में मेरी प्रतीक्षा कर रहे है।

rajnish manga
12-03-2015, 05:10 PM
ज़रथुस्त्र राजा की और देखकर मुस्कुराया और जमीन से गेहूँ का एक दाना उठा कर राजा को दे दिया और उस गेहूँ के दाने के माध्यम से यह बताया कि ‘’गेहूँ के इस छोटे से दाने से, सृष्टि के सारे नियम और प्रकृति की सारी शक्तियां समाई हुई है।

राजा तो ज़रथुष्ट्र के इस उत्तर को समझ ही न सका, और जब उसने अपने आसपास खड़े लोगों के चेहरे पर मुस्कान देखी तो वह गुस्से के मारे आग-बबूला हो गया। और उसे लगा कि उसका उपहास किया गया है, उसने गेहूँ के उस दाने को उठाकर जमीन पर पटक दिया। और ज़रथुस्त्र से उसने कहा, "मैं मूर्ख था जो मैंने अपना समय खराब किया, और आप से पर मिलने चला आया।"

वर्ष आए और गए। वह राजा एक अच्छे प्रशासक और योद्धा के रूप में खूब सफल रहा। और खूब ही ठाठ-बाट और ऐश्वर्य का जीवन जी रहा था। लेकिन रात को यह सोने के लिए अपने बिस्तर पर जाता तो उसके मन में बड़े ही अजीब-अजीब से विचार से विचार उठने लगते और उसे परेशान करते; मैं इस आलीशान महल में खूब ठाठ बाट और ऐश्वर्य से जीवन जी रहा हूं, लेकिन आखिरकार मैं कब तक इस समृद्धि, राज्य, धन-दौलत से आनंदित होता रहूंगा। और जब मैं मर जाऊँगा तो फिर क्या होगा। क्या मेरे राज्य की शक्ति, मेरा घन-दौलत, संपति मुझे बीमारी से और मृत्यु से बचा सकेंगी। क्या मृत्यु के साथ ही सब कुछ समाप्त हो जाता है?

rajnish manga
12-03-2015, 05:15 PM
राजमहल में एक भी आदमी राजा के इन प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सका। लेकिन इसी बीच ज़रथुस्त्र की प्रसिद्धि चारों और फैलती चली गई। इसलिए राजा ने अपने अहंकार को एक तरफ रखकर, घन दौलत के साथ एक बड़ा काफिला ज़रथुष्ट्र के पास भेजा और साथ ही अनुरोध भरा निमंत्रण पत्र लिखा कि ‘’मुझे बहुत अफसोस है, जब मैं अपनी युवावस्था में आपसे मिला था, उस समय मैं जल्दी में था और आपसे लापरवाही से मिला था। उस समय मैं आपसे अस्तित्व के गूढ़तम प्रश्नों की व्याख्या जल्दी करने के लिए कहा था। लेकिन अब मैं बदल चुका हूं, और जिसका उत्तर नहीं दिया जा सकता, उस असंभव उत्तर की मांग भी मैं नहीं करता। लेकिन अभी भी मुझे सृष्टि के नियम और प्रकृति की शक्तियों को जानने की गहन जिज्ञासा है। जिस समय मैं युवा था। उस समय से ज्यादा जिज्ञासा है यह सब जानने की। मेरी आपसे प्रार्थना है कि आप मेरे महल में आएं। और अगर आपका महल में आना संभव न हो, तो आप अपने सबसे अच्छे शिष्यों में से किसी एक शिष्य को भेज दें, ताकि वह मुझे जो कुछ भी इन प्रश्नों के विषय में समझाया जा सकता हो, समझा सके।

rajnish manga
12-03-2015, 05:27 PM
थोड़े दिनों के बाद वह काफिला और संदेशवाहक वापस लौट आये। उन्होंने राजा को बताया कि वे ज़रथुस्त्र से मिले। ज़रथुस्त्र ने अपने आशीष भेजे है। लेकिन आपने उनको जो खजाना भेजा था, वह उन्होंने वापस लोटा दिया है। ज़रथुस्त्र ने उस खजानें को यह कहकर वापस कर दिया है कि उसे तो खजानों का खजाना मिल चुका है। और साथ ही ज़रथुस्त्र ने एक पत्ते में लपेट कर एक छोटा सा उपहार राजा के लिए भेजा है। और संदेशवाहक ने कहा कि वे राजा से जाकर कह दें कि इसमे ही वह शिक्षक है जो कि उसे सब कुछ समझा सकता है।

राजा ने ज़रथुस्त्र के भेजे हुए उपहार को खोला और फिर उसमें से उसी गेहूँ के दाने को पाया—गेहूँ का वही दाना जिसे ज़रथुस्त्र ने पहले भी फेंक दिया था। राजा ने सोचा कि जरूर इस दाने में कोई रहस्य या चमत्कार, इसलिए राजा ने एक सोने के डिब्बे में उस दाने को रखकर अपने खजाने में रख दिया। हर रोज वह उस गेहूँ के दाने को इस आशा के साथ देखता कि एक दिन जरूर कुछ चमत्कार घटित होगा, और गेहूँ का दाना किसी ऐसी चीज में या किसी ऐसे व्यक्ति में परिवर्तित हो जाएगा जिससे कि वह सब कुछ सीख जाएगा जो कुछ भी वह जानना चाहता है।

rajnish manga
12-03-2015, 05:44 PM
महीने बीते, और फिर वर्ष पर वर्ष बीतते चले गए। लेकिन कुछ भी चमत्कार नहीं हुआ। अंतत: राजा ने अपना धैर्य खो दिया और फिर से बोला, ‘’ऐसा मालूम होता है, कि ज़रथुस्त्र ने फिर से मुझे धोखा दिया है। या तो वह मेरा उपहास कर रहा है। या फिर वह मेरे प्रश्नों के उत्तर जानता ही नहीं। लेकिन मैं उसे दिखा दूँगा कि मैं बिना उसकी किसी मदद के भी प्रश्नों के उत्तर खोज सकता हूं।‘’ फिर उस राजा ने भारतीय रहस्यदर्शी के पास अपने काफिले को भेजा। जिसका नाम तशंग्रगाचा था। उसके पास संसार के कौने-कौने से शिष्य आते थे, और फिर से उसने उस काफिले के साथ वहीं संदेशवाहक और वहीं खजाना भेजा जिसे उसने ज़रथुस्त्र के पास भेजा था।

कुछ महीनों के पश्चात संदेशवाहक उस भारतीय दार्शनिक को अपने साथ लेकिन वापस लौटे। लेकिन उस दार्शनिक ने राजा से कहा, ‘’मैं आपका शिक्षक बन कर सम्मानित हुआ, लेकिन यह मैं साफ-साफ बता देना चाहता हूं कि मैं खास करके आपके देश में इसलिए आया हूं ताकि मैं ज़रथुस्त्र के दर्शन कर सकूँ।‘’

इस पर राजा सोने का वह डिब्बा उठा लाया जिसमें गेहूँ का दाना रखा हुआ था। और वह उसे बताने लगा, ‘’मैंने ज़रथुस्त्र से कहा था कि मुझे कुछ समझाए-सिखाएं। और देखो, उन्होंने यह क्या भेज दिया है, मेरे पास। यह गेहूँ का दाना वह शिक्षक है जो मुझे सृष्टि के नियमों और प्रकृति की शक्तियों के विषय में समझाएगा। क्या यह मेरा उपहास नहीं?

rajnish manga
12-03-2015, 10:22 PM
वह दार्शनिक बहुत देर तक उस गेहूँ के दाने की तरफ देखता रहा, और उस दाने की तरफ देखते-देखते जब वह ध्यान में डूब गया तो महल में चारों और एक गहन मौन छा गया। कुछ समय बाद वह बोला, ‘’मैंने यहां आने के लिए जो इतनी लंबी यात्रा की उसके लिए मुझे कोई पश्चाताप नहीं है, क्योंकि अभी तक तो मैं विश्वास ही करता था, लेकिन अब मैं जानता हूं कि ज़रथुस्त्र सच में ही एक महान सदगुरू है। गेहूँ का यह छोटा सा दाना हमें सचमुच सृष्टि के नियमों और प्रकृति की शक्तियों के विषय में सिखा सकता है, क्योंकि गेहूँ का यह छोटा सा दाना अभी और यहीं अपने में सृष्टि के नियम और प्रकृति की शक्ति को अपने में समाएँ हुए है। आप गेहूँ के इस दाने को सोने के डिब्बे में सुरक्षित रखकर पूरी बात को रहे समझ नहीं पा रहे हैं।

अगर आप इस छोटे से गेहूँ के दाने को जमीन में बो दें, जहां से यह दाना संबंधित है, तो मिट्टी का संसर्ग पाकर, वर्षा-हवा-धूप, और चाँद-सितारों की रोशनी पाकर, यह और अधिक विकसित हो जाएगा। जैसे कि व्यक्ति की समझ और ज्ञान की विकास होता है, तो वह अपने अप्राकृतिक जीवन को छोड़कर प्रकृति और सृष्टि के निकट आ जाता है। जिससे कि वह संपूर्ण ब्रह्मांड के अधिक निकट हो सके। जैसे अनंत-अनंत ऊर्जा के स्रोत धरती में बोए हुए गेहूँ के दाने की और उमड़ते है, ठीक वैसे ही ज्ञान के अनंत-अनंत स्रोत व्यक्ति की और खुल जाते हैं ।

Deep_
13-03-2015, 08:57 PM
रोचक और जानने योग्य प्रसंग!

rajnish manga
14-03-2015, 10:15 PM
रोचक और जानने योग्य प्रसंग!

सूत्र पसंद करने के लिए आपका धन्यवाद, दीप जी.

abhisays
16-03-2015, 05:16 AM
बहुत ही ज्ञानवर्धक और रोचक सूत्र शुरू के लिए धन्यवाद रजनीश जी.

rajnish manga
16-03-2015, 09:55 AM
बहुत ही ज्ञानवर्धक और रोचक सूत्र शुरू के लिए धन्यवाद रजनीश जी.

सूत्र पसंद करने के लिए अभिषेक जी व पवित्रा जी का बहुत बहुत धन्यवाद.

rajnish manga
19-03-2015, 09:51 PM
पारसी धर्म ईरान क बहुत पुराना धर्म है। ये ज़न्द अवेस्ता नाम के धर्मग्रंथ पर आधारित है। इसके प्रस्थापक महात्मा ज़रथुष्ट्र हैं, इसलिये इस धर्म को ज़रथुष्ट्री धर्म (Zoroastrianism) भी कहते हैं।

अवेस्ता : ज़न्द अवेस्ता के अब कुछ ही अंश मिलते हैं । इसके सबसे पुराने भाग ऋग्वेद के तुरन्त बाद के काल के हो सकते हैं । इसकी भाषा अवेस्तन भाषा है, जो संस्कृत भाषा से बहुत, बहुत मेल खाती है ।

पारसी धर्म की शिक्षा हैः हुमत, हुख्त, हुवर्श्त जो संस्कृत में सुमत, सूक्त, सुवर्तन अथवा सुबुद्धि, सुभाष, सुव्यवहार हुआ।

प्राचीन फारस (आज का ईरान) जब पूर्वी यूरोप से मध्य एशिया तक फैला एक विशाल साम्राज्य था, तब पैगंबर जरथुस्त्र ने एक ईश्वरवाद का संदेश देते हुए पारसी धर्म की नींव रखी।

जरथुस्त्र व उनके अनुयायियों के बारे में विस्तृत इतिहास ज्ञात नहीं है। कारण यह कि पहले सिकंदर की फौजों ने तथा बाद में अरब आक्रमणकारियों ने प्राचीन फारस का लगभग सारा धार्मिक एवं सांस्कृतिक साहित्य नष्ट कर डाला था। आज हम इस इतिहास के बारे में जो कुछ भी जानते हैं, वह ईरान के पहाड़ों में उत्कीर्ण शिला लेखों तथा वाचिक परंपरा की बदौलत है।

rajnish manga
19-03-2015, 09:54 PM
सातवीं सदी ईस्वी तक आते-आते फारसी साम्राज्य अपना पुरातन वैभव तथा शक्ति गँवा चुका था। जब अरबों ने इस पर निर्णायक विजय प्राप्त कर ली तो अपने धर्म की रक्षा हेतु अनेक जरथोस्ती धर्मावलंबी समुद्र के रास्ते भाग निकले और उन्होंने भारत के पश्चिमी तट पर शरण ली।

यहाँ वे 'पारसी' (फारसी का अपभ्रंश) कहलाए। आज विश्वभर में मात्र सवा से डेढ़ लाख के बीच जरथोस्ती हैं। इनमें से आधे से अधिक भारत में हैं।

फारस के शहंशाह विश्तास्प के शासनकाल में पैंगबर जरथुस्त्र ने दूर-दूर तक भ्रमण कर अपना संदेश दिया। उनके अनुसार ईश्वर एक ही है (उस समय फारस में अनेक देवी-देवताओं की पूजा की जाती थी)। इस ईश्वर को जरथुस्त्र ने 'अहुरा मजदा' कहा अर्थात 'महान जीवन दाता'।

अहुरा मजदा कोई व्यक्ति नहीं है, बल्कि सत्व है, शक्ति है, ऊर्जा है। जरथुस्त्र के दर्शनानुसार विश्व में दो आद्य आत्माओं के बीच निरंतर संघर्ष जारी है। इनमें एक है अहुरा मजदा की आत्मा, 'स्पेंता मैन्यू'। दूसरी है दुष्ट आत्मा 'अंघरा मैन्यू'। इस दुष्ट आत्मा के नाश हेतु ही अहुरा मजदा ने अपनी सात कृतियों यथा आकाश, जल, पृथ्वी, वनस्पति, पशु, मानव एवं अग्नि से इस भौतिक विश्व का सृजन किया।

वे जानते थे कि अपनी विध्वंसकारी प्रकृति तथा अज्ञान के चलते अंघरा मैन्यू इस विश्व पर हमला करेगा और इसमें अव्यवस्था, असत्य, दुःख, क्रूरता, रुग्णता एवं मृत्यु का प्रवेश करा देगा।

rajnish manga
19-03-2015, 09:57 PM
मनुष्य, जो कि अहुरा मजदा की सर्वश्रेष्ठ कृति है, की इस संघर्ष में केन्द्रीय भूमिका है। उसे स्वेच्छा से इस संघर्ष में बुरी आत्मा से लोहा लेना है। इस युद्ध में उसके अस्त्र होंगे अच्छाई, सत्य, शक्ति, भक्ति, आदर्श एवं अमरत्व। इन सिद्धांतों पर अमल कर मानव अंततः विश्व की तमाम बुराई को समाप्त कर देगा।

पैगंबर जरथुस्त्र के उपदेशों के अनुसार विश्व एक नैतिक व्यवस्था है। इस व्यवस्था को स्वयं को कायम ही नहीं रखना है, बल्कि अपना विकास तथा संवर्द्धन भी करना है। जरथोस्ती धर्म में जड़ता की अनुमति नहीं है।

विकास की प्रक्रिया में बुरी ताकतें बाधा पहुँचाती हैं, परंतु मनुष्य को इससे विचलित नहीं होना है। उसे सदाचार के पथ कर कायम रहते हुए सदा विकास की दिशा में बढ़ते रहना है।

जीवन के प्रत्येक क्षण का एक निश्चित उद्देश्य है। यह कोई अनायास शुरू होकर अनायास ही समाप्त हो जाने वाली चीज नहीं है। सब कुछ ईश्वर की योजना के अनुसार होता है।

सर्वोच्च अच्छाई ही हमारे जीवन का उद्देश्य होना चाहिए। मनुष्य को अच्छाई से, अच्छाई द्वारा, अच्छाई के लिए जीना है।

जरथोस्ती धर्म में मठवाद, ब्रह्मचर्य, व्रत-उपवास, आत्म दमन आदि की मनाही है। ऐसा माना गया है कि इनसे मनुष्य कमजोर होता है और बुराई से लड़ने की उसकी ताकत कम हो जाती है।

निराशावाद व अवसाद को तो पाप का दर्जा दिया गया है। जरथुस्त्र चाहते हैं कि मानव इस विश्व का पूरा आनंद उठाए, खुश रहे। वह जो भी करे, बस एक बात का ख्याल अवश्य रखे और वह यह कि सदाचार के मार्ग से कभी विचलित न हो।

rajnish manga
19-03-2015, 09:58 PM
भौतिक सुख-सुविधाओं से संपन्न जीवन की मनाही नहीं है, लेकिन यह भी कहा गया है कि समाज से तुम जितना लेते हो, उससे अधिक उसे दो। किसी का हक मारकर या शोषण करके कुछ पाना दुराचार है। जो हमसे कम सम्पन्न हैं, उनकी सदैव मदद करना चाहिए।

जरथोस्ती धर्म में दैहिक मृत्यु को बुराई की अस्थायी जीत माना गया है। इसके बाद मृतक की आत्मा का इंसाफ होगा। यदि वह सदाचारी हुई तो आनंद व प्रकाश में वास पाएगी और यदि दुराचारी हुई तो अंधकार व नैराश्य की गहराइयों में जाएगी, लेकिन दुराचारी आत्मा की यह स्थिति भी अस्थायी है। आखिर जरथोस्ती धर्म विश्व का अंतिम उद्देश्य अच्छाई की जीत को मानता है, बुराई की सजा को नहीं।

अतः यह मान्यता है कि अंततः कई मुक्तिदाता आकर बुराई पर अच्छाई की जीत पूरी करेंगे। तब अहुरा मजदा असीम प्रकाश के रूप में सर्वसामर्थ्यवान होंगे। फिर आत्माओं का अंतिम फैसला होगा।

फारस शब्द बदलकर, पारस बना और पारस से पारसी। फारस देश के रहने वाले व्यक्ति ही पारसी कहलाए। ईरान देश का ही प्राचीन नाम फारस था। इस प्रकार हम कह सकते है कि फारस देश का रहने वाला, फारस देश से संबंध रखने वाला या फारस का। आदि पारसी शब्द के अर्थ है।

वैदिक संस्कृति और पारसी धर्मपारसी धर्म एवं हिंदूओं की वैदिक सभ्यता में गहरी समानता है। अग्नि की महत्ता एवं पूजा तथा यज्ञ परंपरा का दोनों में ही समान रूप से प्रचलन रहा है। हिंदुओं के प्रथम वेद ऋग्वेद के प्रथम मंडल के प्रथम सूक्त के प्रथम मंत्र में ही अग्नि का आह्वान किया गया है। दोनों में ही अग्नि को देव शक्ति के रूप में पूजा गया है। वैदिक ऋषियों का दैनिक कार्य यज्ञ करना था। पारसी धर्म में भी यज्ञ का वैसा ही महत्व है जैसा कि वैदिक धर्म में। पारसी धर्म में अग्नि की उपासना धार्मिक कार्यों में प्रमुख अंग है। अग्नि उनके यहां सदा जलती रहती है। रात-दिन आठों पहर, चौंसठ घड़ी। इससे यह प्रकट होता है कि वैदिक आर्य और पारसी दोनों ही आर्यों की संतानें हैं.