rajnish manga
25-03-2015, 01:12 PM
ये रास्ता कोई और है ...
साभार: आलोक पढ़ारकर
(इन्टरनेट से)
पिछले कुछ दिनों से यह शेर बड़ी शिद्दत से याद आ रहा है-
कभी लौट आएं तो पूछना ज़रा देखना उन्हें गौर से
जिन्हें रास्ते में खबर हुई, के ये रास्ता कोई और है
एक कहानी भी याद आ रही है, बहुत पहले विख्यात संगीतकार हेमन्त कुमार की एक कहानी पढ़ी थी धर्मयुग में, शायद उनके निधन पर पत्रिका ने श्रद्धांजलि स्वरूप प्रकाशित की थी। कहानी का सार कुछ यूं था कि हेमन्त दा की कामवाली एक बार उनके पास अपने बेटे को लेकर आती है और उनसे अनुरोध करती है कि वे उसका गाना सुनकर उसे फिल्म नगरी में पांव जमाने के कुछ गुर बता दें। दादा उसका गाना सुनते हैं और फिर उसे फटकारते हुए भगा देते हैं। कामवाली हक्काबक्का रह जाती है, उसे भरोसा है कि उसका बेटा बहुत अच्छा नहीं तो भी ठीक-ठाक तो गाता ही है। दादा की फटकार का राज आखिर में खुलता है जब वह एक रोज यह बताते हैं कि वह नहीं चाहते थे कि उसका लड़का फिल्म नगरी के दलदल में आकर अपनी प्रतिभा और भविष्य का कबाड़ा करे। दादा आने वाले समय को देख रहे थे और नहीं चाहते थे कि कोई युवा केवल अपनी प्रतिभा के बल पर फिल्म नगरी में संगीतकार बनने के संघर्ष से गुजरे। उन्होंने देखा था कि तमाम प्रतिभाशाली लोगों के साथ फिल्म नगरी में कैसा बर्ताव हुआ है।
साभार: आलोक पढ़ारकर
(इन्टरनेट से)
पिछले कुछ दिनों से यह शेर बड़ी शिद्दत से याद आ रहा है-
कभी लौट आएं तो पूछना ज़रा देखना उन्हें गौर से
जिन्हें रास्ते में खबर हुई, के ये रास्ता कोई और है
एक कहानी भी याद आ रही है, बहुत पहले विख्यात संगीतकार हेमन्त कुमार की एक कहानी पढ़ी थी धर्मयुग में, शायद उनके निधन पर पत्रिका ने श्रद्धांजलि स्वरूप प्रकाशित की थी। कहानी का सार कुछ यूं था कि हेमन्त दा की कामवाली एक बार उनके पास अपने बेटे को लेकर आती है और उनसे अनुरोध करती है कि वे उसका गाना सुनकर उसे फिल्म नगरी में पांव जमाने के कुछ गुर बता दें। दादा उसका गाना सुनते हैं और फिर उसे फटकारते हुए भगा देते हैं। कामवाली हक्काबक्का रह जाती है, उसे भरोसा है कि उसका बेटा बहुत अच्छा नहीं तो भी ठीक-ठाक तो गाता ही है। दादा की फटकार का राज आखिर में खुलता है जब वह एक रोज यह बताते हैं कि वह नहीं चाहते थे कि उसका लड़का फिल्म नगरी के दलदल में आकर अपनी प्रतिभा और भविष्य का कबाड़ा करे। दादा आने वाले समय को देख रहे थे और नहीं चाहते थे कि कोई युवा केवल अपनी प्रतिभा के बल पर फिल्म नगरी में संगीतकार बनने के संघर्ष से गुजरे। उन्होंने देखा था कि तमाम प्रतिभाशाली लोगों के साथ फिल्म नगरी में कैसा बर्ताव हुआ है।