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View Full Version : बीफ़ बैनः पोषण पर क्या पड़ेगा असर?


dipu
06-04-2015, 07:24 PM
बीफ़
महाराष्ट्र और हरियाणा जैसे राज्यों में बीफ़ पर प्रतिबंध को क़ानूनी बनाना और शायद इसे लागू करना आसान हो सकता है, लेकिन आहार विशेषज्ञों का कहना है कि बीफ़ जितना प्रोटीन पाने के लिए लोगों को उसकी तुलना में कहीं ज़्यादा खर्च करना पड़ेगा.
आहार विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि सब जगह बीफ़ का सस्ता और आसानी से उपलब्ध विकल्प सब जगह सहजता से नहीं मिलेगा.
बीफ़ में प्रोटीन ज़्यादा
दूध
हैदराबाद में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ न्यूट्रिशन के पूर्व निदेशक डॉक्टर बी सेसीकरन ने बीबीसी को बताया, "अगर कोई सिर्फ़ एक स्रोत से सबसे अधिक प्रोटीन चाहता है तो यह है बीफ़. इसमें अन्य मांस और यहां तक कि सब्ज़ियों से भी ज़्यादा प्रोटीन मिलता है."
'मैं क्या खाऊं ये मैं तय करूंगा, सरकार नहीं'
वह कहते हैं, "हालांकि शाकाहारी और मांसाहारी स्रोतों में भी इसका विकल्प मौजूद है, लेकिन यह बीफ़ के मुक़ाबले काफ़ी महंगा पड़ता है."
इंडियन डायटेटिक्स एसोसिएशन की अध्यक्ष डॉक्टर शीला कृष्णास्वामी कहती हैं, "बीफ़ प्रोटीन और आयरन का सबसे बढ़िया स्रोत है. लेकिन चिकन, मछली, दालों और मूंगफली भी प्रोटीन के दूसरे स्रोत हैं, जो से मिलने वाले प्रोटीन की कमी की पूरा सकते हैं. जैसे हरी और पत्ती वाली सब्जियों, मुनक्का, और अंजीर में पर्याप्त आयरन होता है."
'बीफ़ खाना सांप्रदायिक नहीं है'
क्यूआ न्यूट्रिशन के सह संस्थापक और मुख्य आहार विशेषज्ञ रेयान फ़र्नांडो कहते हैं, "सब्जी में पाए जाने वाले प्रोटीन के मुक़ाबले अलग-अलग मांस में प्रोटीन का प्रतिशत अलग-अलग होता है. मान लीजिए एक किलो बीफ़ से आपको 30 प्रतिशत प्रोटीन मिलता है, तो एक किलो सब्जी से आपको लगभग 15 से 20 प्रतिशत प्रोटीन ही मिलेगा."
बीफ़ फ़ूड
फ़र्नांडो के अनुसार, "अगर आप सब्जी का विकल्प चुनते हैं तो आपको प्रोटीन वाले अन्य स्रोतों को भी भोजन में शामिल करना पड़ेगा."
नकारात्मक पक्ष
डॉक्टर सेसीकरन और डॉक्टर कृष्णास्वामी दोनों ही इस बात पर जोर देते हैं कि बीफ़ जैसा रेड मीट खाने का सबसे बड़ा नकारात्मक पक्ष है, उसमें कोलेस्ट्राल और संतृप्त वसा (सैचुरेटेड फ़ैट) ज़्यादा होती है.
उदाहरण के लिए एक खिलाड़ी, जो शाकाहारी है, के लिए फर्नांडो का सुझाव है कि उसे अधिक मात्रा में प्रोटीन वाली सब्जियां खानी चाहिए.
'प्राचीन काल में हिन्दू गोमांस खाते थे'
रेड मीट
डॉक्टर सेसीकरन का कहना है, "अंडे या दूध भी प्रोटीन के बेहतरीन स्रोत हैं और सफेद मांस के मुक़ाबले यह अधिक महंगे भी नहीं होते. सोयाबीन भी प्रोटीन का सबसे बढ़िया स्रोत है."
"पोषक तत्वों के विकल्पों को इस या उस तरीक़े से पूरा किया जा सकता है लेकिन सामाजिक-सांस्कृतिक परम्पराएं, सदियों से चले आ रहे रीति रिवाज़ रातों रात नहीं बदल सकते. क़ानून लाकर आचार-व्यवहार में बदलाव लाना संभव नहीं है. इससे असंतोष पैदा होता है."
विकल्प की कमी
सब्जी
उदाहरण के लिए सेसीकरन कहते हैं कि, "बीफ़ खाए जाने वाले राज्य केरल में यदि प्रतिबंध लग जाए तो लोगों के लिए मछली का विकल्प चुनना संभव है. लेकिन पूर्वोत्तर के राज्यों में, जहां पर्याप्त मछली नहीं मिलती, लोगों के लिए चिकन का विकल्प चुनना मुश्किल होगा."
10 राज्यों में क़ानूनन होती है गो-हत्या
डॉ. कृष्णास्वामी के अनुसार, "शायद, प्रोटीन के अन्य स्रोतों का आदी होने में लोगों को कुछ समय लगेगा. इससे लंबे समय में, लोगों की सेहत प्रभावित नहीं होगी."

Deep_
06-04-2015, 08:04 PM
सवाल प्रोटीन का नहीं है बल्के भुख का, खाद्य समस्या का है। एक तरफ गाय एक समुदाय की धार्मिक भावनाओं से जुड़ी हुई है...तो एक तरफ शायद ज़रुरत से जुड़ी हुई है। खाद्य समस्या की पुर्ति के लिए किसानो की मांगे, आवश्यकताएं पुरी कर के उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए। साथ साथ डेम तालाब बनाना और बारिश के पानी को ज़मीन में उतारने के प्रयोग भी किए जाने चाहिए।

soni pushpa
15-04-2015, 11:39 AM
सवाल प्रोटीन का नहीं है बल्के भुख का, खाद्य समस्या का है। एक तरफ गाय एक समुदाय की धार्मिक भावनाओं से जुड़ी हुई है...तो एक तरफ शायद ज़रुरत से जुड़ी हुई है। खाद्य समस्या की पुर्ति के लिए किसानो की मांगे, आवश्यकताएं पुरी कर के उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए। साथ साथ डेम तालाब बनाना और बारिश के पानी को ज़मीन में उतारने के प्रयोग भी किए जाने चाहिए।

इस सन्दर्भ में मै बस इतना कहना चाहूंगी की गौ माता हमारी धार्मिक भावनाओं से जुडी हैं और इसकी हत्या को हिन्दू धर्म के अनुसार पाप माना जाता है तो प्रोटीन प्राप्ति के लिए यदि गौ हत्या हो रही है तो हम हर हिन्दू को प्रोटीन प्राप्ति के अन्य मार्ग की तरफ ध्यान देना और प्रोटीनयुक्त वस्तुओं का उत्पादन बढ़ने की और ध्यान देना चाह्हिये ताकि हम पाप से भी बचें और प्रजा के लिए प्रोटीन युक्त भोजन की व्यवस्था हो और हमारा समाज स्वस्थ रहे बिना गौ हत्या के . क्यूंकि हरेक चीजों के विकल्प है ही इस दुनिया में यदि प्रोटीनयुक्त चीजों के उत्पादन में बढ़ोतरी होती है तो गौ हत्या से बचा जा सकता है और जब गौ रहेंगी तब तो दुनिया को दूध, दही मख्खन चीज़ पनीर जैसी चीज़े मिलेंगी न ?
ओए मेरा मानना है की गौ हत्या के बाद यदि आपको प्रोटीन मिलता है और आप जीना चाहते हो तो मै एइसे जीने की बजाय भूखे रहना या मरना ही पड़े तो वो भी सही मानती हूँ अपितु की गौ को खाकर हम जियें .
गौ को जिसतरह मारकर बीफ बनता है उसे यदि आप देखेंगे तो आप भी बीफ़ खाना बंद कर देंगे क्यूंकि बहुत भयंकर रीत है बीफ बनाने की गाय को अतिशय कष्ट देकर उसे मारा जाता है सो कृपया मेरी तो सभी से ये ही विनती है की दुनिया में पेट भरने के लिए हजारो चीज़े हैं वो खाकर पेट भरिये आपके पेट के लिए किसी भी जीव की हत्या न कीजिये ..
कभी गाय की आँखों में झांककर देखिएगा कितनी ममता कितनी करुना होती है गाय की आँखों में. माँ है वो हमारी हम हिन्दू होकर गौ हत्या का पाप कैसे कर सकते हैं???

manishsqrt
06-06-2015, 07:54 PM
Hum aisa mehsoos nahi karte ki beef par pratibandh lagane se bharat ke logo ke swasth par jara sa bhi asar padega.wajah ye hai ki shakahar hamesha se sabse achcha aahar mana gaya hai, vigyan aur dharm dono ke hisab se, ek gae mar kar shayad sirf chand logo ka hi pet bhar paegi jaisa ki beef khane wale tark dete hai, par jinda rah kar wahi gae saikado logo ka pet bhar sakti hai apne doodh se, aur yadi wo gae budhi bhi hai tab bhi khane pine ki chizo ka itana bhav nahi ho gaya ki iske liye uske pran liye jae.gair hindu dharm jis bhookh ka bahana leke ye adharm karte hai unke tark puri tarah se nirarthak hai.khane pine ke liye abhi bhi kafi anaj paida hota hai, aur dhyan de musalmano ka ye tark ki unme bhi pran hota hai uske liye bata du gehu ya chawal sukhne ke baad hi grahan kiye jate hai, aise hi koi bhi anaj ya dale bhi, isi tarah fal me pran nahi hota vriksh me hota hai.