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View Full Version : शाकाहार


soni pushpa
12-04-2015, 03:06 AM
तोला मांस की कीमत
मगध के सम्राट श्रेणिक ने एक बार अपनी राजसभा में पूछा, 'देश की सबसे सस्ती खाद्य वस्तु क्या है?' सभी सदस्य सोच में पड़ गए. चावल गेंहू आदि तो प्रकृति का पूरा सहयोग मिलने पर भी काफी मेहनत से ही मिल पाते हैं. शिकार के शौक़ीन एक दरबारी ने सोचा कि मांस ही ऐसी चीज़ है जिसे आसानी से प्राप्त किया जा सकता है. उसने यही बात मुस्कुराते हुए कही, तो सबने उसकी हाँ में हाँ मिला दी, लेकिन मगध का प्रधानमंत्री अभय कुमार चुप रहा. श्रेणिक ने उसे भी अपना विचार प्रकट करने को कहा. अभय कुमार ने कहा, 'मैं इससे सहमत नहीं. मैं कल अपने विचार आपके समक्ष रखूँगा.' रात होने पर प्रधानमन्त्री सीधा सामंत के महल पर पहुंचा, जिसने सबसे पहले अपना प्रस्ताव रखा था. उसने द्वार खटखटाया. सामंत ने दरवाज़ा खोला. इतनी रात को प्रधानमंत्री को देखकर वह घबरा गया.
प्रधानमंत्री ने कहा, 'शाम को महाराज श्रेणिक बीमार हो गए हैं. उनकी स्थिति ीक नहीं है. राजवैद्य ने कहा की किसी बड़े आदमी के ह्रदय का दो तोला मांस मिल जाये तो उनके प्राण बच सकते हैं. आप महाराज के विश्वासपात्र हैं, इसलिए मैं आपके पास आपके ह्रदय का दो तोला मांस लेने आया हूँ. इसके लिए आप जो भी मूल्य लेना चाहें, ले सकते हैं. कहे तो लाख स्वर्ण मुद्रा भी दे सकता हूँ.' यह सुनते ही सामंत के होश फाख्ता हो गए. उसने समझा, अब तो मेरी मृत्यु तय है. उसने प्रधानमंत्री के पैर पकड़ के कहा, 'मुझे क्षमा कर दें, ऐसा कैसे संभव है? आप एक काम करें मुझसे एक लाख स्वर्ण मुद्राएँ ले जाएँ और किसी दुसरे सामंत के ह्रदय का मांस खरीद लीजिए.' मुद्राएँ लेकर प्रधान मंत्री बारीबारी सभी सामंतो के द्वार पहुंचा. उसने सबसे राजा के लिए ह्रदय का दो टोला मांस माँगा, लेकिन कोई भी राजी नहीं हुआ. सबने अपने बचाव के लिए एक लाख स्वर्ण मुद्राएँ दे दी.
सवेरे होने पर प्रधानमन्त्री राजा के पास गया, उसने धन से भरी थैली राजा के सामने रख दी. लाखों स्वर्ण मुद्राएँ देख श्रेणिक ने पुछा, 'ये कहाँ से आयीं?' प्रधान मंत्री ने उन्हें सारी बात बताई फिर कहा, 'देखा आपके सामंत अपना जीवन बचाने के लिए किस तरह धन खर्च करने तैयार हैं. अब आप सोच सकते हैं कि मांस कितना सस्ता है? हर प्राणी खुद के जीवन को तो अनमोल समझता है, लेकिन दुसरे के जीवन की कीमत नहीं समझता.' श्रेणिक ने प्रधानमंत्री अभय कुमार को खूब शाबाशी दी और सही बात के लिए एक लाख स्वर्ण मुद्राएँ भी दी.
किसी भी जीव का मांस खाने के पहले कृपया सोचे – आप अपने हृदयका दो तोल मांस देसकते हैं क्या ?











आज पूरी दुनिया में मांसाहार बढ़ते जा रहा है और लाखो पशुओं की बलि इंसानों के लिए दी जा रही है गौ हत्या तो पाप है ही किन्तु मेरा मानना है की जब किसी भी जीव को मारा जाता है तब जरुर उसे दर्द होता ही होगा तो क्यों निर्दोष जानवरों की जान लेकर खुद के पेट को श्मशान बनाना . हमें छोटी सी चोट लगती है तब कितना दर्द होता है न तो सोचिये जब किसी जानवर को काटा जाता होगा तब उसे कितना दर्द होता होगा? हम इन्सान तो चिल्ला सकते हैं अपने दुःख को सबको बता सकते हैं लेकिन जानवर बेचारे न बोल सकते है न समझा सकते है अपने दर्द को ..

दुनिया में पेट भरने के लिए भगवान ने बहुत सारी चीज़े बनाई है तो हम उससे भी पेट भर सकते हैं न ? क्यूँ बेचारे एक अबोल मासूम प्राणी को मारकर थोड़े से स्वाद के लिए एक हत्या का पाप आपने सर लें ?

कहानी का सार : शाकाहारी बने + सभी को शाकाहारी बनाये

Arvind Shah
13-04-2015, 01:20 AM
आपका बहुत—बहुत धन्यवाद पुष्पाजी ! आपने मुक प्राणियों की वेदना को कहानी के रूप में प्रस्तुत किया और शाकाहारी बनने के लिए प्रेरणा दी ! मैं आपकी बात का भरपुर समर्थन करता हूं !!

soni pushpa
13-04-2015, 10:15 AM
आपका बहुत—बहुत धन्यवाद पुष्पाजी ! आपने मुक प्राणियों की वेदना को कहानी के रूप में प्रस्तुत किया और शाकाहारी बनने के लिए प्रेरणा दी ! मैं आपकी बात का भरपुर समर्थन करता हूं !!



दिन ब दिन बढ़ते पशु हत्या और मांसाहांर के बढ़ते उपयोग से त्रसित मन ने ये लेख लिखने को प्रेरित किया था मुझे. गौ माता के मांस को किस प्रकार से निकाला जाता है उस लेख क पढ़ने के बाद ह्रदय द्रवित हो गया .
आभार अरविन्द जी

Rajat Vynar
14-04-2015, 09:57 AM
इस रचना पर टिप्पणी अन्यत्र लगाई जा चुकी है।

soni pushpa
01-06-2015, 10:04 PM
इस रचना पर टिप्पणी अन्यत्र लगाई जा चुकी है।

bahut bahut dhanywad .. rajat ji ..

rajnish manga
02-06-2015, 02:02 PM
:bravo:

कहानी मनोरंजक भी है और शिक्षाप्रद भी. इसे हम सब के साथ शेयर करने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद, बहन पुष्पा जी.

soni pushpa
03-06-2015, 05:19 PM
:bravo:

कहानी मनोरंजक भी है और शिक्षाप्रद भी. इसे हम सब के साथ शेयर करने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद, बहन पुष्पा जी.

आज के समाज में खानपान के बदलाव को देखते यह ब्लॉग लिख डाला कहानी के साथ शायद कुछ पशुवों की जाने बच पाय ..टिपण्णी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद भाई जी ...

Dark Saint Alaick
04-06-2015, 09:21 PM
धन्यवाद, पुष्पाजी। सूत्र में ऎसी और भी कहानियां प्रस्तुत कर इसे आगे बढ़ाएं, मसलन - सबसे बड़ा उदाहरण गांधीजी प्रस्तुत करते हैं, जब वे डॉक्टर्स के कहने पर भी लन्दन के सर्द माहौल में मांसाहारी सूप ग्रहण करने से इंकार कर देते हैं। उनके बाद जॉर्ज बर्नार्ड शॉ, जो कहते हैं, मेरा पेट कब्रिस्तान नहीं है, मैं घास-फूस खाकर ही संतुष्ट हूं। खोजें, अनेकानेक उदाहरण मिलेंगे।

Dark Saint Alaick
04-06-2015, 09:25 PM
इस सदी का सबसे बड़ा उदाहरण देख्नना हो, तो हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी। नवरात्र के व्रत के दिनों में उन्होंने अमेरिका की यात्रा की और कई दिन निराहार रह कर वह सब कुछ किया, जो उनसे पहले के कई पीएम भरे पेट भी नहीं कर पाए थे। धन्यवाद।

soni pushpa
05-06-2015, 09:43 PM
[QUOTE=Dark Saint Alaick;551484]इस सदी का सबसे बड़ा उदाहरण देख्नना हो, तो हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी। नवरात्र के व्रत के दिनों में उन्होंने अमेरिका की यात्रा की और कई दिन निराहार रह कर वह सब कुछ किया, जो उनसे पहले के कई पीएम भरे पेट भी नहीं कर पाए थे। धन्यवाद।[/QUOT


Dark Saint Alaickजी , सबसे पहले तो आपने जो सलाह दी है वो मेरे लिए आगे लेख लिखने में बहुत सहायक होगी बहुत अच्छा लगा आपसे मिली इस टिपण्णी को पढ़कर जी सही कहा आपने इस विषय पर और भी आगे लिखा जा सकता है .
मैं चाहूंगी की आप सब इस सूत्र को अपने अपने उदाहरण द्वारा आगे बढ़ाएं और मांसाहार के कम करने में सहायक बने मैं भी और कहानियों द्वारा अपना प्रयास जारी रखूंगी .
आपकी सभी रचनाएँ बेहद अछि होती हैं ..... बहुत बहुत आभारी हूँ धन्यवाद संत जी

manishsqrt
07-06-2015, 05:49 PM
Is katha me ek bahut bada sandesh hai aur wo ye ki manushya kitna bada swarthi ho gaya hai, jahir hai mans nahi waran anya ka mans bahut sasta hai, jivo par daya na karne wale baudhik roop se kitne andhe hai iska andaza laga pana asambhav hai, sochiye jise is baat ka bhi abhas nahi ki uske andar waisa hi jeev hai jaisa ki us pashu me jiska mans khake wo khush ho raha hai uski aatma kitni mar gai hogi.shakahar ke raste pe aae bina duniya ka kalyan asambhav hai, khaan paan hamare soch vichar aur bhavna ko niyantrit karte hai ye ek satya hai.pashu khane wale mansahari pashu jaisa vuavahar hi to karenge, mai shakari pashuo ko aise manushyo se jyada samman karta hu.

soni pushpa
07-06-2015, 07:01 PM
is katha me ek bahut bada sandesh hai aur wo ye ki manushya kitna bada swarthi ho gaya hai, jahir hai mans nahi waran anya ka mans bahut sasta hai, jivo par daya na karne wale baudhik roop se kitne andhe hai iska andaza laga pana asambhav hai, sochiye jise is baat ka bhi abhas nahi ki uske andar waisa hi jeev hai jaisa ki us pashu me jiska mans khake wo khush ho raha hai uski aatma kitni mar gai hogi.shakahar ke raste pe aae bina duniya ka kalyan asambhav hai, khaan paan hamare soch vichar aur bhavna ko niyantrit karte hai ye ek satya hai.pashu khane wale mansahari pashu jaisa vuavahar hi to karenge, mai shakari pashuo ko aise manushyo se jyada samman karta hu.


बहुत बहुत धन्यवाद मनीष जी आपकी बातें सही में यथार्थ से जुडी हुईं हैं ...किन्तु स्वाद और सेहत का बहाना देकर लोगो को मन नहीं करता की मांसाहार का त्याग करें वें कई लोग यह भी तर्क देते हैं की यदि मांसाहार बंद हो जायेगा तो शाकाहार के लिए भोजन सामग्री कम होगी और संतुलन बिगड़ जायेगा इसलिए यदि लोग मांसाहार करते हैं तो अच्छा है इससे बैलेंस बना रहेगा खाद्य सामग्री का , किन्तु एकबार शुरू तो कर के देखो आपको शाकाहारी चीज़े भी मिलेंगी ही और उसका उत्पादन बढाकर देखो जिसमे दालेंसब तरह की , चावल, सब्जिया आतीं है फल आते हैं जब उसका उत्पादन बढेगा अपने आप खाद्य सामग्री की आपूर्ति संभव हो सकेगी अब रही स्वाद की बातें तो आज अभी अभी कही पढ़ा मैंने की मांसाहार वालो को उनके जेईसी चीज़े शाकाहारी वस्तु में मिल सकती है जो की इस प्रकार से है ....

soni pushpa
07-06-2015, 07:02 PM
[मांसाहारी भोजन का विकल्प तलाश रहे शाकाहारी लोगों के बीच ऐसे व्यंजन तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं जो शाकाहारी होने के बावजूद स्वाद और पोषक तत्वों के मामले में मांसाहारी भोजन जैसे लगते हैं।

इन व्यंजनों को आम बोलचाल की भाषा में ‘मॉक मीट’ कहा जाता है।

जे.पी. वसंत कॉन्टिनेंटल के एक्जीक्यूटिव शेफ अनुराग माथुर ने कहा, ‘मुझे लगता है कि मॉक मीट परोसने का चलन बढ़ रहा है। यह मांसाहारी भोजन का केवल विकल्प नहीं है, बल्कि स्वस्थ विकल्प है क्योंकि यह प्रोटीन और अन्य पोषक तत्वों के मामले में लगभग समान ही होता है।’

माथुर ने कहा, ‘वर्षों तक मांस खाने के बाद शाकाहारी बन रहे लोग, वे लोग जो नैतिक कारणों से मांस नहीं खाते लेकिन इसे खाने का अनुभव लेना चाहते हैं और वे लोग भी जो मांसाहारियों की भीड़ में अलग-थलग नहीं दिखना चाहते, उनके लिए मॉक मीट अच्छा विकल्प है।’ उन्होंने कहा कि चीनी रेस्तरां में मॉक मीट के लिए सोयाबीन के पनीर का इस्तेमाल सर्वाधिक किया जाता है

दुसित देवरना में एक नए छोटे रेस्तरां ‘ची नी’ की भोजन सूची में शाकाहारी झींगे और शाकाहारी केकड़ों के व्यंजन देखे जा सकते हैं।

नारियल, बैंगन और मशरूम भी मांसाहारी भोजन के अन्य लोकप्रिय विकल्प हैं।

शांगरी ला इरोज होटल की शेफ सुकांता दास ने कहा कि मॉक मीट देखने में नियमित मांसाहारी भोजन जैसा लगता है लेकिन इसमें मांस के स्थान पर सोयाबीन, मशरूम, विभिन्न प्रकार की दालों और अन्य ताजा सब्जियों का इस्तेमाल किया जाता है। (भाषा)

internetpremi
23-10-2015, 05:52 PM
आपके विचारों से सहमत हूँ।
आजीवन शाकाहारी रहा हूँ।
यहाँ तक कि १९९५ में जब मेरा , किसी प्रोजेक्ट के सिलसिले में, कोरिया में पोस्टिंग हुआ था, वहाँ भी मैं तीन महीने रहकर, माँस को नहीं छुआ।
दूध, डबल रोटी, चावल, गेंहूँ , सब्जियाँ और फल से काम चलाया।
कोरिया में लोग सोचते रह जाते थे कि यह भारत वासी अभी तक कैसे जिन्दा रहने में कामयाब हुआ है, जब वह "ढंग का खाना" खाता ही नहीं!
कोरिया के लोग सब कुछ खाते हैं यहाँ तक कि सड्क पर घूमती बिल्लियों और कुत्तों को भी खा जाते हैं और मैंने एक बार वहाँ एक आदमी को एक मछली को कच्चा चबाते हुए भी देखा था।
साँप का मांस तो speciality माना जाता है।

मानता हूँ कि इस बात पर तर्क - वितर्क हो सकता है।
सालों से यह वाद विवाद चलता आ रहा है और मुझे नहीं लगता कि कभी इस पर शाकाहारियों और मांसाहारियों के बीच समझौता होगा।
मेरे कई दोस्त माँसाहारी हैं और मेरा उनके साथ live and let live, या mutual tolerance का policy है|
पर एक बात मुझे कभी हज़्म नहीं होगी और वह है शिकार के लिए जानवरों को मारना और उसे क्रीडा समझना, और किसी जानवर को किसी धार्मिक अवसर पर बली चढाना। जिन लोगों को इसका शौक है, उनसे मेरी दोस्ती संभव नहीं।

आगे भी लिखते रहिए। लम्बे अरसे से मैं यहाँ से गायब था। अब लौटा हूँ और धीरे धीरे मैं पुराने सूत्रों पर पधार रहा हूँ।
शुभकामनाएं
GV

rajnish manga
23-10-2015, 10:03 PM
आपके कोरिया प्रवास के बारे में पढ़ा. वहाँ के खानपान के बारे में आपने अच्छी जानकारी दी है. अभी तक मैं यह सोचता था कि सिर्फ चीन में ही कुत्तों तथा अन्य कई तरह के जानवरों का माँस खाया जाता है.

मैं आपसे सहमत हूँ कि शाकाहारी और माँसाहारी तबको के बीच आपसी बहस जारी रहेगी. इस बीच हो सकता है बहुत से शाकाहारी लोग मांस खाना शुरू कर दें और माँसाहारी पाला बदल कर शाकाहारी हो जायें. ऐसे बहुत से तबके हैं जिनकी धार्मिक मान्यताएं अहिंसा पर आधारित हैं लेकिन इनके बहुत से सदस्य छुप छुप कर मुर्गा मीट खा लेते हैं. इसके स्थान पर पाश्चात्य देशों में अब बहुत से लोग शाकाहार की ओर झुक रहे हैं.

इन विचारों को शेयर करने के लिए आपका धन्यवाद, जीवी साहब.

soni pushpa
23-10-2015, 10:06 PM
[QUOTE=internetpremi;555849]आपके विचारों से सहमत हूँ।
आजीवन शाकाहारी रहा हूँ।
यहाँ तक कि १९९५ में जब मेरा , किसी प्रोजेक्ट के सिलसिले में, कोरिया में पोस्टिंग हुआ था, वहाँ भी मैं तीन महीने रहकर, माँस को नहीं छुआ।
दूध, डबल रोटी, चावल, गेंहूँ , सब्जियाँ और फल से काम चलाया।
कोरिया में लोग सोचते रह जाते थे कि यह भारत वासी अभी तक कैसे जिन्दा रहने में कामयाब हुआ है, जब वह "ढंग का खाना" खाता ही नहीं!
कोरिया के लोग सब कुछ खाते हैं यहाँ तक कि सड्क पर घूमती बिल्लियों और कुत्तों को भी खा जाते हैं और मैंने एक बार वहाँ एक आदमी को एक मछली को कच्चा चबाते हुए भी देखा था।
साँप का मांस तो speciality माना जाता है।

मानता हूँ कि इस बात पर तर्क - वितर्क हो सकता है।
सालों से यह वाद विवाद चलता आ रहा है और मुझे नहीं लगता कि कभी इस पर शाकाहारियों और मांसाहारियों के बीच समझौता होगा।
मेरे कई दोस्त माँसाहारी हैं और मेरा उनके साथ live and let live, या mutual tolerance का policy है|
पर एक बात मुझे कभी हज़्म नहीं होगी और वह है शिकार के लिए जानवरों को मारना और उसे क्रीडा समझना, और किसी जानवर को किसी धार्मिक अवसर पर बली चढाना। जिन लोगों को इसका शौक है, उनसे मेरी दोस्ती संभव नहीं।

आगे भी लिखते रहिए। लम्बे अरसे से मैं यहाँ से गायब था। अब लौटा हूँ और धीरे धीरे मैं पुराने सूत्रों पर पधार रहा हूँ।
शुभकामनाएं

शाकाहार सूत्र पर आपने बहुत सही विचार रखे हैं जी हाँ फार ईस्ट में सांप तक खा जाते हैं लोग और न जाने क्या क्या खाते हैं कई बार देखा सुना है टीवी में और किताबों में पढ़ा है पर मांसाहार का असर सेहत के साथ मानसिकता पर भी बहुत पड़ता है एईसी चीज़े (कुत्ते बिल्ली का मांस ) खाने से दिमाग भी इतना ही चलता है इनका सात्विकता नहीं रह जाती
आपकी वापसी पर आपका स्वागत है . आपसे मिले पहले कमेंट्स से मुझे आगे लिखने का प्रोत्साहन मिला है बहुत बहुत धन्यवाद विश्वनाथ जी

soni pushpa
23-10-2015, 10:09 PM
[QUOTE=rajnish manga;555856][size=3]आपके कोरिया प्रवास के बारे में पढ़ा. वहाँ के खानपान के बारे में आपने अच्छी जानकारी दी है. अभी तक मैं यह सोचता था कि सिर्फ चीन में ही कुत्तों तथा अन्य कई तरह के जानवरों का माँस खाया जाता है.

मैं आपसे सहमत हूँ कि शाकाहारी और माँसाहारी तबको के बीच आपसी बहस जारी रहेगी. इस बीच हो सकता है बहुत से शाकाहारी लोग मांस खाना शुरू कर दें और माँसाहारी पाला बदल कर शाकाहारी हो जायें. ऐसे बहुत से तबके हैं जिनकी धार्मिक मान्यताएं अहिंसा पर आधारित हैं लेकिन इनके बहुत से सदस्य छुप छुप कर मुर्गा मीट खा लेते हैं. इसके स्थान पर पाश्चात्य देशों में अब बहुत से लोग शाकाहार की ओर झुक रहे हैं.

इन विचारों को शेयर करने के लिए आपका धन्यवाद, जीवी साहब



जी भाई बहुत सही कहा आपने धन्यवाद भाई ..

internetpremi
24-10-2015, 04:42 PM
Thanks for keeping the discussion going.
The debate on food habits of various nationalities and religious/cultural and racial groups will be never - ending and may never be settled to the satisfaction of all concerned.

Let me tell you a little more about my experiences in Korea. I was posted there at the Shipbuilding Yards of Samsung Heavy industries for three months in 1993.

Being warned that maintaining one's vegetarian habits will be very difficult there, I had carried a whole suitcase of Indian provisions and spices and masaalas and did my own cooking with locally available vegetables and fruits, bread, milk and cooking oil.

During frequent parties that my Korean friends would often invite me too, I used to practically starve and eat only ice cream and fruit juices if available and munch on bread slices or cookies/biscuits and nuts if available.

These Koreans are notorious for their food habits. Nothing is forbidden. Anything that walks, runs, crawls, flies or swims is edible and they even pick up fresh live fishes or crabs from glass water tanks in restaurants and order it to be cooked and served to them. They have a simple criterion. "If it moves, you can eat it."

The westerners (Americans mostly) were disgusted with their eating habits and often criticised them for eating dogs and cats. In America, these animals are household pets and lovingly cared for. The Americans were truly horrified to see Koreans eating these animals.

I often used to see some graffiti on the walls of public toilets, scribbled by these American Expatriates (soldiers and technical experts mostly) making fun of the local Koreans for their food habits. Since they did not want to create unpleasantness by talking to the Koreans, they would often resort to these crude methods of making their disgust known.

The Koreans were just not bothered about what the rest of the world thinks of their food habits.
I knew this was a sensitive subject to discuss with them and I avoided any discussion or giving my opinion for the first few weeks till one of them who spoke better English than the others finally agreed to discuss this subject with me.

His opinions were very revealing. He was talking sense.

It was his opinion that the Americans and Europeans were being totally illogical in their stand.
He told me, that I, as an Indian vegetarian, was more logical in my views and he respected it. Since I avoided all meat as a matter of dietary policy or principle, that was okay. Each community draws a line somewhere and sticks to this "Lakshman Rekha".

But once the west was willing to eat an animal, how could they decide which animal was okay to eat and which was not as long as the flesh was edible.

When cows, goats, pigs, chickens and fish could be killed and eaten without mercy, why stop with those animals? What is wrong with eating dogs and cats? They are also animals like the others. He claimed that dog meat and cat meat and snake meat was highly nutritive, and tasty and some believed that the meat had medicinal value too. Besides they did not eat their pet dogs and cats. They chose only stray dogs and cats or chose to breed them for food. As far as snakes were considered no one kept a snake as a pet. The same American would kill a snake if he encountered one. So what if the Korean went further and also ate it? At least Koreans don't do wild life Game Hunting like the Americans and Europeans do. Whatever the Korean kills , he eats.

I was convinced by his argument that every society is okay as long as they have chosen to draw the line somewhere and stick to it. We should not be quarelling on this issue. We, Indian vegetarians have drawn the line at grains, vegetables and fruits and dairy products like milk/curd/butter/ghee. Vegans draw the line even closer and avoid all animal products like milk and eggs too. Orthodox Jains avoid onions/garlic and any vegetable that grows under the ground. Most non vegetarians draw the line after including sheep/goats/cows/chickens and fish. Muslims and Jews exclude the pig. Hindu Non vegetarians exclude the cow. The entire world prohibits human flesh.

"So, why does the rest of the world have a problem with the line that we draw for ourselves and do not impose on others" asked the Korean.

I shook his hand and thanked him for explaining to me. I had no answer to his question.

Regards
GV

Due to shortage of time I wrote this in English. Writing in Hindi would have taken me much longer. Please pardon me.

soni pushpa
27-10-2015, 12:22 AM
sorry for late reply ,... gv ji ...aapke mitra ki bahas aapni jagah sahi hai jaise dunia ke harek rang harek vichhaar vibhinnata liye hote hain veise hi nonveg khane ke liye logo ke aapne aapne vichaar hain kintu jahan tak mera manana hai yadi aap shakahari ho to pure shhkahari hi rahiye bina kisi jiv ki hatya kiye bhi ham apna pet bhar sakte hain to kyu khud ke pet me shmshaan banana na ?

internetpremi
27-10-2015, 09:31 AM
आप से सहमत हूँ। हम शाकाहारी थे, और रहेंगे भी।
पर हम माँसाहारियों की आलोचना नहीं करेंगे।

दोनों पक्षों का तर्क मजबूत है और यह मामला दुनिया की किसी भी अदालत में तय नहीं हो सकता।

विवाद केवल शाकाहारी और माँसाहारियों के बाच नहीं है

माँसाहारी खुद आपस में भिड रहे हैं
सूअर, गाय, कुता/बिल्ली खाएं या न खाएं?

शाकाहारी भी बंट गए हैं।
क्या प्याज / लेहसुन खाना ठीख है? और आलू ? ह्मे आलू बहुत पसन्द है।
दक्षिण भारत के कुछ ब्राह्मण लौकी नहीं खाते. कुछ परिवारों में बैंगन वर्जित है
त्योहारों के अवसर पर ’प्याज’ वर्जित है।

आप कहाँ कहाँ रोक लगाएंगे? और किस किस पर? और कब?

आखिर हमने तय कर लिया कि इस प्रश्न पर कोई अन्तिम और सही निर्णय कभी संभव नहीं ।
जैसे अन्ग्रेज़ी में "live and let live" कहते हैं वैसे हम " eat and let eat" की नीति अपनाते हैं

इस चर्चे में भाग लेने का अवसर के लिए धन्यवाद।
शुभकामनाएं
GV

soni pushpa
28-10-2015, 12:32 AM
[QUOTE=internetpremi;555975]आप से सहमत हूँ। हम शाकाहारी थे, और रहेंगे भी।
पर हम माँसाहारियों की आलोचना नहीं करेंगे।

दोनों पक्षों का तर्क मजबूत है और यह मामला दुनिया की किसी भी अदालत में तय नहीं हो सकता।

विवाद केवल शाकाहारी और माँसाहारियों के बाच नहीं है

माँसाहारी खुद आपस में भिड रहे हैं
सूअर, गाय, कुता/बिल्ली खाएं या न खाएं?

शाकाहारी भी बंट गए हैं।
क्या प्याज / लेहसुन खाना ठीख है? और आलू ? ह्मे आलू बहुत पसन्द है।
दक्षिण भारत के कुछ ब्राह्मण लौकी नहीं खाते. कुछ परिवारों में बैंगन वर्जित है
त्योहारों के अवसर पर ’प्याज’ वर्जित है।

आप कहाँ कहाँ रोक लगाएंगे? और किस किस पर? और कब?

आखिर हमने तय कर लिया कि इस प्रश्न पर कोई अन्तिम और सही निर्णय कभी संभव नहीं ।
जैसे अन्ग्रेज़ी में "live and let live" कहते हैं वैसे हम " eat and let eat" की नीति अपनाते हैं

इस चर्चे में भाग लेने का अवसर के लिए धन्यवाद।
शुभकामनाएं


ji sahi kaha is bahas ka koi aant hai hi nahi kintu bat ho rahi thi ki ho sake to mansahaar ka tyag kiya jaay taki kai nirdodh jivon ki hatya na ho unke dard ka ehsas insaan karen kyunki jab insaanon ke ek hatho me jara si cut hoti hai tab bhi kitne din tak wo dawai lagate hain patti bandhate hain or dard sahate hain jabki chhota sa cut saha nahi jata to jo achhe bhale janavar hain unhe sirf aapna pet bharane ke liye maar dala jay kat dala jay to sochiye unka dard kitna asahy hota hoga n? बहुत बहुत धन्यवाद इस लेख पर अपने विचार रखने के लिए g.v. जी

rajnish manga
26-09-2016, 02:48 PM
शाकाहार पर एक सुंदर कविता:
(साभार: योगेश शर्मा / इन्टरनेट से)

कंद-मूल खाने वालों से
मांसाहारी डरते थे।।
पोरस जैसे शूर-वीर को
नमन 'सिकंदर' करते थे॥
चौदह वर्षों तक खूंखारी
वन में जिसका धाम था।।
मन-मन्दिर में बसने वाला
शाकाहारी राम था।।

चाहते तो खा सकते थे वो
मांस पशु के ढेरो में।।
लेकिन उनको प्यार मिला
'शबरी' के जूठे बेरो में॥

चक्र सुदर्शन धारी थे
गोवर्धन पर भारी थे॥
मुरली से वश करने वाले
'गिरधर' शाकाहारी थे॥

पर-सेवा, पर-प्रेम का परचम
चोटी पर फहराया था।।
निर्धन की कुटिया में जाकर
जिसने मान बढाया था॥

सपने जिसने देखे थे
मानवता के विस्तार के।।
नानक जैसे महा-संत थे
वाचक शाकाहार के॥

soni pushpa
26-09-2016, 10:19 PM
Behad sundar kavita hai bhai sach mansahaar ke bina bhi jiya ja sakta hai kyuun akhir log dujo ki jan lekar apne pet bharte hain ..

Sheyaring ke liye bahut bahut dhanywad bhai.