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View Full Version : क्या है विकिलिक्स मे???


arvind
04-12-2010, 02:53 PM
अमेरिका की रातों की नींद उड़ गई है। एक भूत है जिसने अमेरिका को परेशान कर रखा है। इस भूत से दुनिया का सबसे ताक़तवर इंसान भी दहशत में हैं। ये भूत इंटरनेट से निकलेगा और अमेरिका के कई राज़ फाश हो जाएंगे, ये भूत ऐसी- ऐसी सच्चाईंयां दुनिया के सामने रखनेवाला है जो अमेरिका के दोहरे चेहरे को बेनकाब कर देगा। इसीलिए अमेरिका को सता रहा है 40 लाख पन्नों के इस भूत का डर।

पिछले महीने ही इंटरनेट से निकले 4 लाख पन्नों के भूत ने अमेरिका के होश उड़ा दिए थे। विकिलीक्स नाम की वेबसाइट ने ऐसे- ऐसे राज़ खोले थे जिससे अमेरिका को दुनिया के सामने शर्मिंदा होना पड़ा था और अब विकिलीक्स एक बार फिर कुछ राज़ फाश करनेवाला है। अमेरिका को डर है कि 40 लाख पन्नों के इस खुलासे से उसके कई देशों से रिश्ते ख़राब हो सकते हैं। विकिलीक्स ने अमेरिका की नाक में दम कर रखा है।

ओबामा की रातों की नींद उड़ चुकी है। अभी ज़्यादा दिन नहीं हुए जब 4 लाख पन्नों का राज़ विकिलीक्स ने खोला था। इराक़ की सच्चाई जब गुनाहों के दस्तावेज़ से बाहर निकली थी तो अमेरिका के पास इसका जवाब नहीं था। और अब तो विकिलीक्स चंद दिनों में ही 40 लाख पन्नों का राज़ फाश करनेवाला है। इसकी भनक से ही अमेरिका के होश उड़ गए हैं और शायद उन्हें ये पता चल गया है कि विकिलीक्स किस तरह के दस्तावेज़ लेकर दुनिया के सामने आनेवाला है। लिहाज़ा अमेरिका ने पहले ही तैयारी शुरू कर दी है। अमेरिका को लगता है कि 40 लाख पेज के इन गोपनीय दस्तावेज़ों से उसके संबंध कई देशों से ख़राब हो सकते हैं और इसमें भारत भी शामिल है।

तो आईये जानते है इसकी पूरी कहानी।

arvind
04-12-2010, 02:55 PM
अमेरिका हर देश के नेताओं से संपर्क में है और सबको सतर्क कर रहा है कि नए खुलासे से अमेरिका के इन देशों से संबंध ख़राब हो सकते हैं। अमेरिकी विदेश विभाग ने भारत के साथ ही जर्मनी, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, फ्रांस और अफ़गानिस्तान को भी इस खुलासे से चेताया है। हालांकि अमेरिका नहीं चाहता कि विकिलीक्स इन दस्तावेज़ों का खुलासा करे। लेकिन ऑस्ट्रेलियाई मूल के जूलियन एसेंज जो विकिलीक्स के एडिटर हैं उन्होंने हाल ही में इराक वॉर लॉग्स में सनसनीखेज़ खुलासे किए थे और इस बार भी वे रुकने वाले नहीं। अमेरिका के एक सीनियर आर्मी ऑफिसर ने भी चेतावनी दी है कि अगर ये खुलासे होते हैं तो कई लोगों की जान को ख़तरा पैदा हो सकता है और अमेरिकी सेना और उसके साथ काम कर चुके लोगों पर हमले हो सकते हैं। अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन का मानना है नए खुलासे से ब्रिटेन, तुर्की, डेनमार्क, इस्त्राइल और नॉर्वे से कूटनीतिक संबंधों पर गलत असर पड़ सकता है। ज़ाहिर है अमेरिका नए खुलासे के बाद अपनी जवाबदेही से डरा हुआ है और उसे पता है कि नए खुलासे में कुछ ऐसा है जो उसके दुनिया को देखने के दोहरे नज़रिये को सामने ला सकता है और इससे उसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काफी कुछ खोना पड़ सकता है।

arvind
04-12-2010, 02:57 PM
जानना ज़रुरी है उस शख़्स के बारे में जिसने ओबामा की नाक में दम कर रखा है। जो दुनिया के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति को सामने से चुनौती दे रहा है और ओबामा दुनिया के सामने गुहार लगा रहे हैं। वे शख़्स हैं जुलियन एसेंज, विकिलीक्स की स्थापना करनेवाला शख़्स। एसेंज का कहना है कि जब मैं 14 साल का था मैंने सॉफ्टवेयर प्रोटेक्शन सिस्टम को समझने और उसे तोड़ने में लग गया था, फिर मैं एक एक्टिविस्ट कम्प्यूटर हैकर बन गया। अंतरिक्ष यान प्रक्षेपण के दौरान एक युद्धविरोधी प्रदर्शन के तौर पर नासा का कम्प्यूटर हैक कर लिया गया, प्रक्षेपण रद्द करना पड़ा। 6 साल तक मुकदमा चला, मैंने युद्ध के बारे में जानना शुरू कर दिया। इसके बाद जुलियन एसेंज ने हैकर्स और विशेषज्ञों की एक टीम के साथ विकिलीक्स डॉट ओआरजी नाम की वेबसाइट की स्थापना की। यह एक ऐसी वेबसाइट है जिस पर कोई भी अपनी पहचान बताए बगैर गोपनीय दस्तावेज़ों को अपलोड कर सकता है।

arvind
04-12-2010, 02:58 PM
दुनिया में ये अपनी तरह की पहली वेबसाइट थी। एक साल के भीतर इस वेबसाइट के डेटाबेस में 12 लाख दस्तावेज़ जमा हो चुके थे। दस्तावेज़ों में बैंकों में फ़र्ज़ीवाड़े से लेकर व्यापार जगत, सरकार और यूएस मिलिट्री के राज़ दफ़्न थे। लेकिन 2009 तक मीडिया में विकिलीक्स को गंभीरता से तब तक नहीं लिया गया जब विकिलीक्स ने यूएस मिलिट्री से जुड़ा एक विडियो जारी किया। वीडियो एनक्रिप्टेड फॉर्म में था जिसे कई देशों में बैठे एक्सपर्ट्स ने डिक्रिप्ट किया। लेकिन इस बीच मई 2010 में वीडियो को विकिलीक्स तक भेजनेवाले यूएस आर्मी के इंटेलिजेंस एनालिस्ट ब्राडली मैनिंग को गिरफ़्तार कर लिया गया। यह पहली बार है जब विकिलीक्स को जानकारी भेजनेवाला सीआईए की गिरफ़्त में है। जुलियन एसेंज के लिए अच्छी ख़बर नहीं थी, उन पर अमेरिका में मुकदमा चल सकता है। लेकिन एसेंज रुके नहीं और उन्होंने अक्टूबर में 4 लाख पन्नों के साथ सबसे बड़ा खुलासा किया जिसमें इराक में अमेरिकी सैनिकों की करतूतों का पूरा हिसाब था। ऐसे में अमेरिका का डरना लाज़मी है। उसके राज़ फाश करनेवाली वेबसाइट विकिलीक्स अब 40 लाख पन्नों का खुलासा करनेवाली है।

teji
04-12-2010, 05:08 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=4410&stc=1&d=1291468049

भूल वायदे सरकारे जनता के, नींद चैन की सोते हैं
उनसे छीन प्रशासन अपना, कलम की शक्ति दिखलाना है
अब फिर इनके कर्त्तव्यों की, स्मृति हमें दिलाना है,

इनकी काली करतूतों का, पर्दाफाश करना है
विश्व को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है
अब हमको संकल्पित होकर, प्रगति शिखर पर चढ़ना है

arvind
04-12-2010, 05:37 PM
एक महीने पहले जब विकिलिक्स ने 4 लाख पन्नों के दस्तावेज़ जारी किए थे जिसमें इराक की एक- एक सच्चाई दर्ज थी, जिसमें बताया गया था कि किस तरह से अमेरिकी सैनिकों ने इराक में अत्याचार किया, क़त्लेआम किया, मनमानी की और अमेरिकी सेना इस पर खामोश रही। अमेरिका विकिलीक्स से ऐसे ही नहीं डर रहा। अभी तो महीना ही पूरा हुआ है जब सैनिक दस्तावेज़ों के लीक होने का सबसे बड़ा मामला सामने आया था। विकिलीक्स ने इराक में अमेरिका की करतूतों के जो राज़ खोले उसने पूरी दुनिया को हैरत में डाल दिया। इराक वॉर लॉग्स के नाम से जारी हुए 3 लाख 91 हजार 832 दस्तावेजों में इराक में मौजूद अमेरिकी सैनिकों के गुनाहों का सारा कच्चा चिट्ठा मौजूद है। दस्तावेजों के मुताबिक अमेरिकी सैनिकों ने इराकी कैदियों से सच उगलवाने के लिए हैवानियत की तमाम हदें पार कर दीं।

arvind
04-12-2010, 05:39 PM
पूछताछ के नाम पर कैदियों को गंदी गालियां दी गई, उन पर खौलता पानी डाला गया, कोड़े मारे गए, बिजली के झटके दिए गए, बलात्कार किया गया और जब पूछताछ करने को कुछ बचा नहीं तो उन्हें गोली मार दी गई। ये सब सिर्फ अमेरिकी सैनिकों ने नहीं किया, ये इराकी पुलिस और सेना ने भी किया जिसे अमेरिकी सेना ने ट्रेनिंग दी थी। विकिलीक्स के चीफ एडीटर जूलियन एसेंज ने तब इसे सीधे तौर पर युद्ध अपराध का मामला बताया था। विकिलीक्स के चार लाख दस्तावेज मई 2004 से मार्च 2009 के बीच इराक में जुल्म और हैवानियत की वे कहानी बयां करते हैं जिससे अब तक दुनिया अनजान थी। पहली बार इराक में हुई मौतों की पूरी तफसील सामने आई। इन पांच सालों में इराक में (109,032 ) 1लाख नौ हजार और 32 लोगों की मौतें हुई। इनमें (66,081 ) 66 हजार 81 सिविलियन यानी बेगुनाह इराकी और 23 हजार 984 (23,984 ) दुश्मन यानी अमेरिकी कब्जे के खिलाफ लड़ रहे विद्रोही शामिल थे।

madhavi
04-12-2010, 06:59 PM
इसके अलावा 15 हजार एक सौ छियानवे(15,196 ) होस्ट नेशन फोर्सेज यानी इराकी सेना और पुलिस के लोग और तीन हजार सात सौ 71 (3,771 ) दोस्त यानी अमेरिकी ब्रिटिश सैनिक इस दौरान इराक में मारे गए। इन दस्तावेजों से पहली बार यह पता चला है कि अमेरिकी सैनिक सिर्फ कत्ल नहीं करते थे वे अपने एक एक गुनाह का हिसाब और ब्योरा भी पूरी तफ्सील के साथ रखते थे। ये दस्तावेज बताते हैं कि इन पांच सालों में हुई मौतों में सबसे बड़ी तादाद सिविलियन्स यानी बेगुनाह इराकी नागरिकों की थी। इस साल जुलाई में विकिलीक्स की ओर से जारी अफगानिस्तान के आंकड़ों के मुकाबले ये तादाद पांच गुनी ज्यादा थी। इराक में अमेरिका के गुनाह और हैवानियत की ये कहानी यहीं खत्म नहीं होती। दस्तावेज बताते हैं कि इराकी कैदियों से हुए जुल्म के दस्तावेज जब जब अमेरिकी कमांडरों को भेजे गए तो हर बार उन्होंने सिर्फ चार अल्फाज़ लिखे 'आगे कोई जांच नहीं'।

madhavi
04-12-2010, 07:02 PM
4 लाख पन्नों ने अमेरिका को हिलाकर रख दिया। ज़ाहिर है 40 लाख पन्नों का आनेवाला अगला खुलासा अमेरिका को दुनिया के कई देशों से दूर कर सकता है और यही अमेरिका का असली डर है। इराक में क़त्लेआम को अंजाम देने के लिए अमेरिकी सैनिकों ने सभी नियमों को ताक पर रख दिया था और इसका खुलासा किया था विकिलीक्स ने। अब विकिलीक्स जो खुलासा करनेवाला है ज़ाहिर है वह अमेरिका के होश तो उड़ाएगा ही। सद्दाम हुसैन की तानाशाही को खत्म करने के नाम पर इराक में दाखिल हुए अमेरिका ने वही किया जिसकी मुखालफत के नाम पर वे इस जंग में शामिल हुआ था। विकिलीक्स के दस्तावेजों से पहली बार उन 15 हजार इराकियों की मौत की खबर सामने आई है जो अब तक सरकारी रिपोर्ट में गुमशुदा के तौर पर दर्ज थे। सिगैक्ट यानी सिग्निफिकेंट एक्शन इन द वार के नाम से जारी ये दस्तावेज बताते हैं कि इराक में अमेरिकी सैनिकों के कदम रखने के बाद से हर दिन कम से कम 31 इराकी नागरिक की मौत हुई। ये वह सवाल है जिससे अमरीका अब तक बचने की कोशिश करता आया है।

madhavi
04-12-2010, 07:05 PM
अमेरिका की दलील यह है कि वह अफगानिस्तान और इराक में अपने सैनिकों और सूत्रों की जान पर आए खतरे से परेशान है। लेकिन हकीकत कुछ और ही है। हालिया खुलासे में अमेरिकी सेना के ऐसे- ऐसे गुनाह सामने आए हैं जिन्हें जानकर दुनिया सन्न रह गई है। फरवरी 2007 में एपाचे हेलीकॉप्टर में मौजूद अमेरिकी सैनिकों ने दो इराकी विद्रोहियों को सरेंडर करने का मौका सिर्फ इसलिए नहीं दिया क्योंकि जैसा कि अमेरिकी सेना के अफसर ने फाइल में नोटिंग दर्ज करते हुए लिखा कि वे लोग वाजिब निशाना हैं और वे हेलिकॉप्टर के सामने सरेंडर नहीं कर सकते। इसी तरह चेक प्वाइंट पर शक की बिनाह पर निहत्थे इराकियों को गोली मारने के कई मामलों का खुलासा पहली बार हुआ है। यही नहीं ब्लैकवाटर नाम की जिस प्राइवेट सिक्योरिटी एजेंसी के गार्ड्स पर 2007 में 14 बेगुनाह इराकियों के कत्ल का इल्जाम लगा है। उस बदनाम एजेंसी के कई नए गुनाह भी अब सामने आए हैं। उन दस्तावेजों की अहमियत यह है कि पहली बार यह पता चला है कि अमेरिकी सेना की ट्रेनिंग का इराकी सेना और पुलिस पर क्या असर हुआ है ?

madhavi
04-12-2010, 07:08 PM
अगस्त 2006 के एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी सेना की 101st एयरबोर्न इकाई को यह जानकारी मिली कि कत्ल के एक आरोपी को दियाला जेल की पुलिस ने हथकड़ी लगाकर दीवार से लटका दिया। उसके ऊपर खौलता पानी डाला और लोहे के रॉड से उसकी पिटाई की। कैदी ने अपने साथ हुए जुल्म की दास्तां अमेरिकी अफसर को बताई लेकिन अमेरिकी सेना के अफसर ने शिकायत की फाइल पर लिख दिया कि इस मामले में 'आगे कोई जांच नहीं'। अफगानिस्तान में 30 हजार सेना भेजने के महज नौ दिन बाद नार्वे की राजधानी ओस्लो में बराक ओबामा ने कबूल किया शांति का नोबेल पुरस्कार। इराक और अफगानिस्तान में जंग लड़ रही सेना के कमांडर इन चीफ को दिया गया अमन का सबसे बड़ा अवार्ड। यह सच है कि इराक में अमरीकी सैनिक मर रहे हैं। बीते सात साल में इराक में 4 हजार सैनिक खो चुका है अमेरिका। लेकिन एक सच और भी है इस सात साल में सात लाख से ज्यादा इराकी मारे गए हैं।

madhavi
04-12-2010, 07:11 PM
विकिलीक्स के दस्तावेजों से यह साफ है कि जम्हूरियत और अवाम की खुशहाली के लिए वह इराक या अफगानिस्तान में मौजूद नहीं। दरअसल ये मुल्क उसके लिए नए जंगी सामानों की बेशकीमती लैबोरेटर्री है, यहां वे नए हथियारों का इस्तेमाल ही नहीं करते, उनका परीक्षण भी करते हैं। इस तरह सालों से चल रहा है अमन और जम्हूरियत के नाम पर जंग का कारोबार। इराक की लड़ाई एक सोची समझी साज़िश थी। अमेरिका के लिए इराक को ज़मीन थी जो उसके वर्ल्ड नम्बर वन के तमगे को बरकरार रखने में मदद कर सकती थी। युद्ध की सैकड़ों दास्तानों से भरा अमेरिकी इतिहास यही कहता है कि युद्ध उसके लिए कारोबार है। इराक में 1991 से लड़ते रहने के बावजूद अभी भी अमेरिकी सैनिक वहां क्या कर रहे हैं, क्या वजह है कि अमेरिका इराक से बाहर नहीं निकलना चाहता ? इसके पीछे भी अमेरिका का कारोबारी दिमाग़ काम कर रहा है।

madhavi
04-12-2010, 07:14 PM
दरअसल दुनिया के 40 देशों के एजेंट इराक में तेल के ठेकों को पाना चाहते थे। इसीलिए युद्ध ख़त्म होने के साथ ही अमेरिका ने तेल कुओं को क़ब्ज़े में लिया और आनन- फानन में नया तेल क़ानून पास किया। ये 26 जनवरी 2007 को किया गया। यहीं से इराक अमेरिका के लिए पैसा बनाने की मशीन बन गया। अमेरिकी तेल कंपनियां इराक के तेल कुओं से 100 से 300 फीसदी तक मुनाफा कमा रही हैं। इन कम्पनियों ने एक तरह से विश्व तेल बाज़ार पर एकाधिकार जमा लिया है और जब चाहते हैं तब कच्चे तेल के दामों में बढोत्तरी कर देते हैं। अमेरिकी कम्पनियों से हासिल होने वाला राजस्व अमेरिका की अर्थव्यवस्था की इमारत गढ़ता है। साथ में अमेरिका ने ख़ुद अपनी उर्जा की ज़रुरत को बढ़ा रखा है। इसकी भी पूर्ति इराक के कुओं से होती है। बात यहीं नहीं थमती, इराकी ज़मीन पर अमेरिकी लड़ाई का कनेक्शन अमेरिकी सांसदों की जेब से भी है।

madhavi
04-12-2010, 07:17 PM
इराक में जितने टैंक उड़ते हैं, जितनी सैनिकों की वर्दियां फटती हैं, जितनी गोलियां चलती हैं, सांसदों की जेब उतनी ही वज़नी होती चली जाती है। हथियार और युद्धक विमान बनानेवाली दुनिया की पांच सबसे बड़ी कंपनियां बोइंग, नारथार्प, ग्रेमेन, लाकहीड मार्टिन और रेथियोर अमेरिका की हैं और इन कम्पनियों का बिज़नेस इराक जैसे युद्ध से ही चलता है। अगर युद्ध नहीं होगा तो कम्पनियां दीवालिया भी हो सकती हैं। ज़ाहिर है युद्ध जारी रखने के लिए हथियार बनानेवाली ये कम्पनियां अमेरिकी सांसदों तक पहुंच बनाती हैं। एक आकलन के मुताबिक युद्ध के बाद इन कम्पनियों के मुनाफे में 600 फीसदी तक बढ़त दर्ज की गई है। 2002 में ये कम्पनियां 1 अरब डॉलर के घाटे में चल रही थीं जबकि 2007 में उन्होंने 13 अरब डॉलर का कारोबार किया। समझा जा सकता है कि अमेरिका दुनिया में विनाश की पृष्ठभूमि रचकर अपनी अर्थव्यवस्था को मज़बूत करता है।

madhavi
04-12-2010, 07:22 PM
खुलासों की एक और फेहरिस्त विकिलीक्स की ओर से सामने आई है। दस्तावेजों में दुनिया भर में फैले अमेरिकी दूतावास का अपनी सरकार से हुए खतोकिताबात की तफसील दी हुई है। 2लाख 50 हजार दस्तावेजों की फेहरिस्त को अभी से कूटनीति की दुनिया का 9- 11 करार दिया जा रहा है।

सबसे पहले हम आपको यह बताना चाहते हैं कि डाक्यूमेंट है क्या ? तीन अहम दस्तावेज जिनकी वजह से अमेरिका को सबसे ज्यादा शर्मिंदगी उठानी पड़ रही है और जिसकी वजह से दमिश्क से दिल्ली तक हिल रही हैं सरकारें। अब हम आपको बताते हैं कि जिन 2 लाख पचास हजार डाक्यूमेंट्स के लीक होने की बात सामने आ रही है वह है कैसा ? खत में उपर लिखा है नो फार्न यानी उसे किसी गैर अमेरिकी को नहीं भेजा जा सकता। नीचे लिखा है सिपडीस यानी सीक्रेट इंटरनेट प्रोटोक़ॉल डिस्ट्रीब्यूशन। यह दुनिया भर में फैले अमेरिकी दूतावासों का खास इंटरनेट नेटवर्क है। सीक्रेट खत में टिमकेन ने जर्मनी की सरकार को दी गई धमकी का जिक्र किया है।

madhavi
04-12-2010, 07:34 PM
खत से पता चलता है कि अमेरिका ने जर्मनी पर दबाव डाला था कि अगर खालिद अल मसरी मामले में जर्मनी की अदालत ने सीआईए के अफसरों के खिलाफ वारंट की तामील के लिए दबाव डाला तो उसकी कीमत जर्मनी की सरकार को चुकानी पड़ सकती है। अल मसरी नाम के अलकायदा के आतंकवादी को पकड़ने की नीयत से गलती से सीआईए ने जर्मनी के एक नागरिक खालिद अल मसरी को जर्मनी से अगवा कर लिया और उसे अफगानिस्तान ले जाकर वहां उसे यातना दी। बाद में जब सच सामने आया तो सीआईए ने उसे रिहा तो कर दिया लेकिन जर्मनी की सरकार को खामोश रहने या फिर कीमत चुकाने की धमकी दी। खत से ये राज खुला है कि अमेरिकी सरकार सिर्फ ईरान या उत्तर कोरिया जैसे देशों को ही नहीं, नाटो के अपने मित्र देशों को भी धमकाने से बाज नहीं आती।

amit_tiwari
05-12-2010, 12:20 AM
arvind भाई का विषय chunaav aur maadhavi ji का yogdaan ! achchi pathneey samagri एकत्रित की है आप दोनों ने |

माधवी जी एक व्यक्तिगत सुझाव है की विवादित साईट के लिंक को सीधे ना देकर आप गूगल सर्च का लिंक दें तो उचित रहेगा | एक ना एक दिन इस डोमेन को भी ब्लोक किया जायेगा और साथ में गूगल उससे रिलेटेड पेज भी पिंग करके उड़ा देगा !!!!

madhavi
05-12-2010, 03:51 AM
http://en.wikipedia.org/wiki/WikiLeaks

jitendragarg
05-12-2010, 06:18 AM
A request to all the members:

Kindly don't post any controversial video, official website links or pictures related to this topic, and please try to keep the discussion to be as neutral on the subject as possible. US government is desperate to ban all the supporters of this controversial website.

:cheers:

ndhebar
05-12-2010, 09:07 AM
Everything is fair in love and war
और युद्ध जब दुनिया की सबसे दुर्लभ वस्तु के लिए हो तो नामुंकिन कुछ भी नहीं
इराक के बारे में जो दस्तावेज विकिलीक्स ने पेश किये हैं, मेरे लिए वो कतई चौकाने वाले नहीं है

amit_tiwari
05-12-2010, 09:47 AM
विकीलीक्स से अलग भी ये कौन सा सही है |
अमेरिकी गवर्नमेंट के अधिकारी, अमेरिकी फ़ौज के अधिकारी, नागरिक जब इन देशों में जाते हैं तो ब्लैकवाटर कंपनी की सिक्योरिटी लेते हैं | ये कंपनी एक प्राइवेट अमेरिकी कंपनी है जिसे इराक और बग़दाद में सुरक्षा प्रदान करने की अनुमति दी गयी है !!! Wtf कोई सरकार दुसरे देश में अपनी कंपनी को कैसे अनुमति दे सकती है?? और कहते हैं हम लोकतंत्र स्थापित कर रहे हैं | और फिर इतनी फ़ौज के होते हुए किसी सिक्योरिटी कंपनी की क्या जरुरत? क्या खुद की फ़ौज अपने ही नागरिकों और अधिकारीयों को नहीं बचा सकती???
इस कंपनी के सिक्योरिटी वालों को भी वहाँ पर फ़ौज की तरह शूट करने, सर्च करने के अधिकार दिए गए हैं और कई बार ये बातें सामने आई हैं की कैसे इस कंपनी के लोगों ने लोगों को सिर्फ शक के आधार प्र मारा है |
असली बात ये की अमेरिकी अधिकारीयों को सुरक्षा देने के एवज में ये अमेरिकी सरकार से २००९ के प्रारंभ तक ही १० बिलियन डॉलर ले चुकी थी और इस कंपनी में तत्कालीन राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का शेयर होने की बातें भी आयीं |

गेम समझ में आया बंधू !!!

madhavi
05-12-2010, 02:12 PM
एक और खुफिया दस्तावेज। दस्तावेज में 4 नवंबर 2009 के केबल में बहरीन के शाह हमद और अमेरिकी जेनरल डेविड पेट्राउस के बीच बातचीत का पूरा ब्योरा दर्ज है। इस केबल में ये सनसनीखेज खुलासा हुआ है कि सऊदी अरब, यूएई और ईजिप्ट की तरह बहरीन ने भी ईरान के एटमी कार्यक्रम को रोकने के लिए उस पर हमला करने की दरख्वास्त अमेरिका से की थी। लेकिन जिस खबर से बहरीन की शाह की गद्दी हिल सकती है वो यह है कि अमेरिका के कहने पर बहरीन ने आंतरिक सुरक्षा के नाम पर अपना पुलिस दस्ता अफगानिस्तान में अमेरिकी अड्डे लेदरनेक पर भेजा है। ये दस्ता पिछले साल के 16 दिसंबर से काम भी कर रहा है। एक और सनसनीखेज खुलासा है। अब तक दुनिया इस बात से अनजान थी कि बहरीन ने ईसा एयरबेस अमेरिका के हवाले कर दिया है ताकि काबुल या बगदाद की ओर उड़ान भरनेवाले अमेरिकी अवाक्स विमान यहां से तेल भर कर आगे की उड़ान पर जा सकें।

madhavi
05-12-2010, 02:15 PM
अगला दस्तावेज 31 जुलाई 2009 का है। दस्तावेज सभी ढाई लाख दस्तावेजों में सबसे सनसनीखेज खुलासे करनेवाला है। इसे जारी किया है अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने। इस केबल में न्यूयार्क, जेनेवा और वियेना में मौजूद यूएनओ के दफ्तर में सेक्रेटरी जनरल से लेकर अंडर सेक्रेटरी स्तर तक के अधिकारी के बारे में पूरी जानकारी जुटाने का हुक्म दिया गया है। यही नहीं एशिया से लेकर अफ्रीका और यूरोप के 33 राजधानियों में मौजूद अमेरिकी दूतावासों को केबल में हुक्म दिया गया है कि उन देशों के नेताओं के बारे मे तमाम अहम जानकारियां जैसे सेलफोन नंबर, बिजनेस कार्ड, क्रेडिट कार्ड, ईमेल अकाउंट अमेरिका के एनएसए यानी नेशनल सिक्योरिटी एजेंसी को भेजें।

madhavi
05-12-2010, 02:18 PM
दूतावासों की इस फेहरिस्त में 20वें नंबर पर दिल्ली भी है। साफ है कि दिल्ली में मौजूद अमेरिकी दूतावास को भी भारत सरकार के बारे में जानकारी जुटाने का आदेश दिया गया है। पिछले एक हफ्ते से दुनिया भर के देशों से माफी मांग रहे अमेरिका के लिए परेशानी अभी खत्म नहीं, शुरू ही हुई है। विकिलीक्स के खुलासे के बाद अब सीक्रेट और टॉप सीक्रेट फाइल को रखने का तरीका सारी दुनिया में बदलने वाला है। क्योंकि इस खुलासे से ये साफ हो गया है कि आज भी कागज पर मौजूद खुफिया दस्तावेज कंप्यूटर की फ्लॉपी या डीवीडी में मौजूद फाइल से कहीं ज्यादा महफूज है।

जहां अमेरिकी प्रेसीडेंट बराक ओबामा ने संसद भवन में सिक्योरिटी काउंसिल में भारत की दावेदारी को कबूल किया, वहीं विकिलीक्स के खुलासे से पता चला है कि अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन की नज़र में भारत स्वंयभू दावेदार है। उसे यूएनओ में किसी देश का समर्थन हासिल नहीं है और जब बात यूएनओ की हो रही है तो आपको बता दें कि हिलेरी क्लिंटन ने अमेरिकी खुफिया एजेंसी को यूएनओ की जासूसी करने को कहा था। 65 साल के बाद क्या यूएनओ के दफ्तर अब अमेरिका से कहीं बाहर बनाए जाएंगे, क्या हिलेरी क्लिंटन को अमेरिकी विदेश मंत्री के पद से इस्तीफा देना होगा ?

madhavi
05-12-2010, 02:22 PM
विकिलीक्स के खुलासे में सबसे सनसनीखेज खुलासा दुनिया की सबसे अहम एजेंसी के बारे में है। इस खुलासे के मुताबिक अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने खुफिया एजेंसी सीआईए को यूएनओ के तमाम बड़े अधिकारियों जैसे सेक्रेटरी जनरल से लेकर अंडर सेक्रेटरी रैंक तक के अधिकारियों पर नज़र रखने के आदेश दिए थे। इसके तहत यूएनओ के आला अधिकारियों के सुरक्षित और गुप्त फोन नंबर से लेकर उनकी सुरक्षा के लिए किए गए उपाय, उनके पर्सनल कंप्यूटर का कोड, यहां तक कि उनकी डीएनए सैंपल और फिंगर प्रिंट की जानकारी भी जुटाने को कहा गया था।

इसी तरह के आदेश दुनिया के 270 देशों में मौजूद अमरेकी दूतावास के अधिकारियों को भी दिए गए थे। उन्हें उन देशों के तमाम बड़े नेताओं और अधिकारियों के बारे में सभी अहम जानकारियां जुटाने को कहा गया था। इन जानकारियों में दफ्तर, नाम, पद, बिजनेस कार्ड, टेलीफोन नंबपर, सेलफोन, पेजर, फैक्स नंबर, इंटरनेट, इंट्रानेट के यूआऱएल, क्रेडिट कार्ड नंबर, वर्क शेड्यूल, हवाई उड़ानों के फ्रिक्वेंट फ्लायर अकाउंट नंबर, यहां तक कि आंखों के बायोमेट्रिक स्कैन तक जुटाने को कहा गया था।

madhavi
05-12-2010, 02:34 PM
विकिलीक्स से जारी केबल के मुताबिक अमेरिका और ब्रिटेन आतंकवादियों से बचाने के नाम पर पाकिस्तान के लैब्स में मौजूद संवर्धित यूरेनियम को पाकिस्तान से बाहर ले जाने के लिए वहां की सरकार पर पिछले तीन साल से लगातार दबाव डालते आए हैं। हालांकि उन्हें कामयाबी नहीं मिली। एक केबल में सउदी अरब के शाह अब्दुल्ला की पाकिस्तान की नाकामी का ठीकरा पाकिस्तानी प्रेसीडेंट आसिफ अली जरदारी पर फोड़ते हुए ये टिप्पणी दी हुई है कि जब दिमाग सड़ जाता है तो सारे जिस्म पर असर पड़ता है। खुलासे के मुताबिक दो साल पहले अब्दुल्ला की अमेरिकी जेनरल डेविड पेट्राउस से हुई मुलाकात में अब्दुल्ला ने अमेरिका को सांप के फन को कुचलने की गुहार लगाई। ये सांप है ईरान।

बहरीन और अबूधाबी के शासक ने भी इस दौरान ईरान की एटमी ताकत को खत्म करने के लिए अमेरिका से इरान पर हमला करने की अपील की। विकिलीक्स के खुलासे के मुताबिक अमेरिका और दक्षिण कोरिया एकीकृत कोरिया की हसरत को पूरा करने के लिए अरसे से चीन को नई व्यापारिक सुविधाएं देने की लालच दे रहे थे। इस खुलासे में यह बात भी सामने आई है कि ग्वांटानामो बे के अड्डे को खत्म करने के लिए बीते सालों में अमेरिका मित्र देशों से यहां मौजूद कैदियों को रखने की गुजारिश करता आया है। इसके तहत स्लोवेनिया के पीएम को बराक ओबामा से मिलने का मौका दिए जाने से लेकर बेल्जियम को यह कहकर मनाना शामिल है कि दहशतगर्दों को अपने यहां रखने से बेल्जियम को यूरोप में प्रतिष्ठा मिलेगी।

madhavi
05-12-2010, 02:38 PM
विकिलीक्स ने पहले भी कई खुलासे किए हैं लेकिन अमेरिकी दूतावास के खुफिया दस्तावेजों का इस खुलासे को कूटनीति की दुनिया का नाइन इलेवन करार दिया जा रहा है। ब्रिटेन के शाही परिवार से लेकर नेल्सन मंडेला तक, कर्नल गद्दाफी से लेकर राबर्ट मुगाबे तक निकोलस सरकोजी से मेदवदेव तक के बारे में इस खुलासे में ऐसी जानकारियां सामने आई हैं कि अमेरिका के लिए सफाई देना मुश्किल हो रहा है। अमेरिका के लिए सबसे ज्यादा परेशानी की बात यह है कि इस खुलासे के सामने आने के बाद दुनिया के हर देश में अमेरिकी दूतावास के हर अधिकारी और कर्मचारी को दुनिया शक की निगाह से देखेगी।

madhavi
05-12-2010, 02:41 PM
दस्तावेजों में दुनिया के नामचीन शख्सियतों के बारे में कई भद्दी टिप्पणियां की गई हैं। आलम यह है कि जहां विकिलीक्स के खुलासे से दुनिया की कई सरकारें हिल गई हैं वहीं विकिलीक्स के बवंडर में बुरी तरह उलझ गया है अमेरिका। अगर 9- 11 न हुआ होता तो शायद विकिलीक्स का यह खुलासा भी न होता। नाइन इलेवन के बाद अमेरिकी सरकार ने खुफिया सूचनाओं को एक जगह इकट्ठा करने की नीयत से नेटवर्क की एक अलग महफूज व्वयस्था तैयार की। सिप्रनेट नाम के दुनिया के इस सबसे महफूज नेटवर्क से दुनिया भर में मौजूद अमेरिकी दूतावासों को जोड़ा गया। अब होता ये था कि सिपडीस के नाम से मार्क किया गया हर डिस्पैच अपने आप ही हर अमेरिकी दूतावास के खुफिया नेटवर्क में डाउनलोड हो जाता था।

madhavi
05-12-2010, 02:47 PM
इसी का नतीजा था कि बगदाद में अमेरिकी दूतावास में काम कर रहा 22 साल का ब्रैडली मैनिंग लेडी गागा के सीडी पर बगैर किसी मुश्किल के तमाम दस्तावेज डाउनलोड करता रहा और अमेरिकी सरकार को किसी खतरे की भनक तक नहीं लगी। और अब अमेरिका की परेशानी यह है कि दुनिया भर के दूतावासों से आई खुफिया केबल में कई ऐसी बातें कही गई हैं जिसकी सफाई देने में अमेरिका के पसीने छूट रहे हैं। रोम में मौजूद अमेरिकी राजूदत के मुताबिक इटली के पीएम सिल्वियो बर्लसकोनी बेफिक्र, निकम्मे और यूरोप का नेता होने के पूरी तरह से नाकाबिल हैं।

arvind
06-12-2010, 04:39 PM
पेरिस में मौजूद अमरीकी राजदूत के मुताबिक फ्रांसीसी प्रेसीडेंट निकोलस सरकोजी हैं नंगा बादशाह। रूस के प्रेसीडेंट दिमीत्री मेदवेदेव को कमजोर, अनिश्चित और प्रधानमंत्री पुतिन का अरदली करार दिया गया है। पुतिन अल्फा डॉग हैं तो मेदवेदेव हैं बैटमेन के रॉबिन। इसी तरह जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्कल के बारे में कहा गया है कि उनमें जोखिम लेने का माद्दा नहीं और न ही उनमें किसी तरह की रचनात्मकता है। ईरान के प्रेसीडेंट महमूद अहमदीनेजाद को हिटलर कहा गया है तो अफगानिस्तान के हामिद करजई को व्यामोह में जकड़ा इंसान करार दिया गया है। राबर्ट मुगाबे को सनकी बूढ़ा बताया गया है।

arvind
06-12-2010, 04:40 PM
अमेरिका की परेशानी यह है कि दुनिया भर में मौजूद उसके दूतावास खास तौर पर इस्लामी आतंकवाद पर नजर रख रहे थे। विकिलीक्स के ढाई लाख खुलासों में सबसे बड़ी तादाद उन खतों की है जिनमें मुस्लिम देशों के नेताओं के बारे में अमेरिकियों की बेबाक राय दर्ज है। अब जैसे- जैसे खुलासे सामने आते जाएंगे पाकिस्तान, इराक, ईरान, सीरिया, सऊदी अरब और यमन जैसे देशों में इसकी बेहद तीखी प्रतिक्रिया होनी तय है। इन खुलासों में दर्ज राय इतनी बेबाक है कि इस खुलासे को दुनिया भर में कूटनीति का नाइन इलेवन करार दिया जा रहा है। इन खुलासों में जर्मनी जैसे दोस्त देश से लेकर इराक जैसे दुश्मन देशों में मौजूद उन तमाम लोगों के नाम साफ साफ मौजूद हैं जिनसे अमेरिका को जाहिर तौर पर अलग अलग वक्त पर खुफिया जानकारी हासिल हुई।

arvind
06-12-2010, 04:41 PM
इससे एशिया से लेकर यूरोप तक में कई देशों की सरकार का गिरना तय माना जा रहा है। अब सरकार और विपक्ष में बैठे वे नाम सामने आने शुरू हो गए हैं जिन्होंने 1966 से अक्टूबर 2010 के बीच अमेरिकी सरकार को किसी तरह की अहम खुफिया जानकारी दी थी। सवाल यह है कि क्या इस खुलासे का भारत पर भी असर पड़ेगा। जवाब है कि अब तक सामने आए ढाई लाख दस्तावेजों में सिर्फ कान्फिडेंशियल और सीक्रेट दस्तावेज ही सामने आए हैं। लेकिन विकिलीक्स का दावा है कि उसके पास 97 हजार टॉप सीक्रेट दस्तावेज हैं। और इन टॉप सीक्रेट दस्तावेजों में ईराक, जापान और चीन के बाद सबसे ज्यादा 3038 खुफिया दस्तावेज नई दिल्ली में मौजूद अमेरिकी दूतावास के हैं।

arvind
06-12-2010, 04:42 PM
इशारा साफ है कि भारत में पक्ष और विपक्ष में मौजूद कई सफेदपोश नाम अब बेनकाब होने वाले हैं। अमेरिका और भारत के बीच रिश्ते की हकीकत तो खुलनेवाली है ही, दोनों देशों के बीच हुए एटमी करार सहित कई संवेदनशील और खुफिया जानकारी अब सामने आनेवाली है। विकिलीक्स के मुखिया जूलियन असांजे का कहना है कि उसका मकसद अमेरिकी सरकार की आपराधिक गतिविधियों और मानव अधिकार के हनन की जानकारी दुनिया के सामने लाना है। लेकिन इस खुलासे का नतीजा सिर्फ अमेरिकी सरकार पर नहीं दुनिया भर की सरकारों पर, इन देशों के अपने पड़ोसी मुल्कों से रिश्ते और सबसे ज्यादा अमेरिका से उनके रिश्ते पर पड़ना तय है।

arvind
06-12-2010, 04:43 PM
अब बात करते हैं उस शख्स की जिसकी वजह से ये खुलासा सामने आया है। उस शख्स का नाम है ब्रेडली मैनिंग। 1993 में एक फ़िल्म आई थी शिंडलर्स लिस्ट। ये फ़िल्म उस जर्मन व्यापारी ऑस्कर शिंडलर की कहानी थी जिसने दूसरे विश्व युद्ध के शुरू होने के कुछ सालों बाद ही आर्मी को सामान सप्लाई करने के लिए एक फैक्ट्री खोली और एक हज़ार से ज़्यादा शरणार्थी यहूदियों को अपना मज़दूर बताते हुए एक लिस्ट तैयार की। उन्हें सेफ कैंप तक पहुंचाया। ये कहानी 1939 की थी लेकिन तब से अब तक लगता नहीं की दुनिया की तस्वीर बदली है। युद्ध अपराध आज भी होते हैं और उसकी तस्दीक करते हैं विकिलीक्स से जारी वीडियो और दस्तावेज़।

arvind
06-12-2010, 04:44 PM
विकिलीक्स ने अफगानिस्तान और इराक की जो असल तस्वीर दुनिया के सामने पेश की उसके पीछे भी एक ऑस्कर शिंडलर था लेकिन वह (109,032 ) 1 लाख नौ हज़ार 32 लोगों की लिस्ट नहीं बना सका। आज का वह ऑस्कर शिंडलर है ब्रेडली मानिंग जो यूएस मिलिट्री का एक सिपाही था वह अमेरिकी सेना में इंटेलीजेंस एनालिस्ट था जो उस वक़्त इराक़ में कॉन्टिजेंसी ऑपरेटिंग स्टेशन हैमर में तैनात था। ब्रेडली मानिंग ने अमेरिका के सिक्रेट इंटरनेट प्रोटोकॉल डिस्ट्रिब्यूशन सिपडिस के ज़रिए 2 लाख 60 हज़ार दस्तावेज़ डाउनलोड किया। एनक्रिप्टेड वीडियो डाउनलोड किया और उसे विकिलीक्स को भेज दिया। विकिलीक्स ने जब ये वीडियो इंटरनेट पर जारी किया तो दुनिया में सनसनी फैल गई।

arvind
06-12-2010, 04:45 PM
वीडियो में साफ तौर पर दिखाया गया था कि किस तरह अमेरिकी अपाचे हेलिकॉप्टर से रॉयटर के फोटोग्राफर पर गोली चलाकर उसे मार दिया गया। इसके अलावा वीडियो में यह भी सच्चाई थी कि अमेरिकी सैनिक विद्रोहियों को सरेंडर नहीं करने देते थे उन्हें मार दिया जाता था। मानिंग ने दुनिया तक सच्चाई पहुंचा दी थी लेकिन इस बीच उससे एक ग़लती हो गई। उसने अपने एक हैकर दोस्त एंड्रियन लोमो को चैट पर पूरी कहानी बता दी। मानिंग को ये भरोसा महंगा पड़ा। एंड्रियन लोमो ने चैट लॉग को अमेरिकी सेना के अधिकारियों तक पहुंचा दिया और मई 2010 में यूएस आर्मी क्रिमिनल इनवेस्टिगेशन कमांड ने उसे हिरासत में ले लिया। करीब एक महीने तक मानिंग को बिना किसी आरोप के सेना की जेल में रखा गया। 5 जुलाई 2010 को उस पर आरोप तय किया गया।

arvind
06-12-2010, 04:45 PM
यूनिफॉर्म कोड ऑफ मिलिट्री जस्टिस के आर्टिकल 92 और आर्टिकल 134 के तहत गोपनीय दस्तावेज़ को अपने निजी कम्प्यूटर पर लोड करने और अनअथॉराइज़्ड सॉफ़्टवेयर इंस्टाल करने का आरोप लगा। एंड्रियन लोमो ने ही यह राज़ भी खोला कि किस तरह से मानिंग ने यूएस इंटेलिजेंस के कम्प्यूटर से दस्तावेज़ों को डाउनलोड किया। दरअसल यूएस मिलिट्री बेस में पेन ड्राइव या एक्सटर्नल स्टोरेज डिवाइस ले जाना मना है। लेकिन सीडी पर पाबंदी नहीं थी। लिहाज़ा मानिंग ने इसका फायदा उठाया और ब्लैंक सीडी पर लेडी गागा का कवर लगाकर बेस में चला जाता था। इसी सीडी में वह दस्तावेज़ों को डाउनलोड करता और जब तक कॉपी की प्रक्रिया चलती रहती। वह सिर हिला- हिलाकर लेडी गागा के गाने को गुनगुनाता रहता।

arvind
06-12-2010, 04:46 PM
इससे ऐसा लगता था कि वे लेडी गागा का एलबम सुन रहा है, लेकिन दरअसल वह अमेरिका के गोपनीय दस्तावेज़ों को इसी बहाने बाहर भेजने की तैयारी कर रहा था। आर्मी की हिरासत के बाद अब ब्रेडली मानिंग सीआईए की गिरफ़्त में है। ये पता नहीं है कि उसे कहां रखा गया है लेकिन माना जाता है कि वह एफबीआई की निगरानी में किसी जेल में बंद है। उसकी रिहाई के लिए पूरे अमेरिका में आए दिन प्रदर्शन होते हैं। लोग सड़कों पर उतरते हैं और लोगों से अपील करते हैं कि वे मानिंग के समर्थन में बाहर निकलें। इसके अलावा सेना और सरकार से जुड़े कई रिटायर्ड अधिकारी भी इस मुहिम का हिस्सा बन चुके हैं। लेकिन अमेरिकी सरकार पर इसका कोई फर्क पड़ता नहीं दिख रहा। मानिंग अभी भी सीआईए की गिरफ़्त में है।

amit_tiwari
06-12-2010, 07:32 PM
यूनिफॉर्म कोड ऑफ मिलिट्री जस्टिस के आर्टिकल 92 और आर्टिकल 134 के तहत गोपनीय दस्तावेज़ को अपने निजी कम्प्यूटर पर लोड करने और अनअथॉराइज़्ड सॉफ़्टवेयर इंस्टाल करने का आरोप लगा। एंड्रियन लोमो ने ही यह राज़ भी खोला कि किस तरह से मानिंग ने यूएस इंटेलिजेंस के कम्प्यूटर से दस्तावेज़ों को डाउनलोड किया। दरअसल यूएस मिलिट्री बेस में पेन ड्राइव या एक्सटर्नल स्टोरेज डिवाइस ले जाना मना है। लेकिन सीडी पर पाबंदी नहीं थी। लिहाज़ा मानिंग ने इसका फायदा उठाया और ब्लैंक सीडी पर लेडी गागा का कवर लगाकर बेस में चला जाता था। इसी सीडी में वह दस्तावेज़ों को डाउनलोड करता और जब तक कॉपी की प्रक्रिया चलती रहती। वह सिर हिला- हिलाकर लेडी गागा के गाने को गुनगुनाता रहता।

दरअसल अमरीकियों को द्वितीय विश्व युद्ध के बाद तकदीर से दुनिया का नेतृत्व करने का मौका मिल गया किन्तु इनकी अगली पीढ़ियों ने लगता है जैसे दिमाग का प्रयोग करना बंद कर दिया | जब डेटा इतना सेंसिटिव है तो cd राइटिंग ही ब्लोक होनी चाहिए थी, या फिर क्लासिफाइड डेटा को रीड ओनली रख सकते थे |

भारत पर विकिलीक्स का असर: माइनस ज़ीरो | यहाँ के लोगों का नाम आ भी गया तो क्या नया होगा?? बेशरम तो पहले से हैं, कह देंगे साहब ये सब झूठ है |

अरविन्द भाई आपसे और माधवी जी से अनुरोध है की इस सूत्र को चलते रहें | इसमें कमेन्ट कम आयेंगे पर फिर भी | ये दस सूत्रों के बराबर एक है , आप दोनों को धन्यवाद

jitendragarg
07-12-2010, 11:18 AM
I have read extensively on this topic for last two days, and even got a chance to see the video and the war logs, leaked by the wikileaks site. Finally I have to agree with USA on this one. Whatever mentioned in the video or war logs is totally normal. In all, its just a hype from the media, which is exactly the reason why these logs weren't made public in first place.

I will write my complete take on the whole scenario later, explaining the whole comment I just made. Till then i would like to hear more about your take on this topic.

:cheers:

P.S.

Once again, a reminder, kindly don't post links or videos, of anything related to the topic, as this might result in serious issues for us. Just keep it to the discussion.

ndhebar
07-12-2010, 11:37 AM
भारत पर विकिलीक्स का असर: माइनस ज़ीरो | यहाँ के लोगों का नाम आ भी गया तो क्या नया होगा?? बेशरम तो पहले से हैं, कह देंगे साहब ये सब झूठ है |

अरविन्द भाई आपसे और माधवी जी से अनुरोध है की इस सूत्र को चलते रहें | इसमें कमेन्ट कम आयेंगे पर फिर भी | ये दस सूत्रों के बराबर एक है , आप दोनों को धन्यवाद

:bravo::bravo::iagree:

ndhebar
07-12-2010, 07:54 PM
ब्रेकिंग न्यूज

विकिलीक्स के संपादक जुलियन एसेंज आज लन्दन में गिरफ्तार हो गए
उनपर बलात्कार का चार्ज है

amit_tiwari
08-12-2010, 01:39 AM
i have read extensively on this topic for last two days, and even got a chance to see the video and the war logs, leaked by the wikileaks site. Finally i have to agree with usa on this one. Whatever mentioned in the video or war logs is totally normal. In all, its just a hype from the media, which is exactly the reason why these logs weren't made public in first place.

I will write my complete take on the whole scenario later, explaining the whole comment i just made. Till then i would like to hear more about your take on this topic.

:cheers:

P.s.

Once again, a reminder, kindly don't post links or videos, of anything related to the topic, as this might result in serious issues for us. Just keep it to the discussion.

जीतेन्द्र जी मैं सुनना चाहूँगा उन कारणों को इस मुद्दे पर अमेरिका को सही ठहरा सकते हैं |
मुझे युद्ध की आतंरिक स्थितियों का ज्ञान नहीं है किन्तु इतना तो अवश्य है की मैं गोली चलने से पहले सोचूंगा की सामने वाला जंग लड़ने कैमरा ले के नहीं जाएगा |
वो विडियो मैंने भी देखा !!!
जिस बहाने को ले के अमरीकी लड़ने गए वो सिरे से झूठा निकला, ऊपर से वहाँ के लोगों को किसी प्राइवेट कंपनी (ब्लैकवाटर) के भाड़े के टट्टुओं (अधिकांश फिलीपीनी) से मरवा रहे हैं !

अंत में बस इतना कहना है कि जज्बातों के रीचार्ज कूपन नहीं होते दोस्त, ये एक बार ख़त्म हो जाएँ तो बस ख़त्म हो जाते हैं | अगर किसी का स्कूल में पढता बच्चा बम से मारा जाये तो बीस हजार मील दूर का सॉरी नहीं सुनेगा जिसके साथ में निशाना १ मीटर से चूकने का बहाना हो |
ये अमरीकी अपनी मिसाइलों के निशाने को मीटर की अन्शता में नापते हैं लेकिन पिज्जा खाकर सड़े इनके दिमाग ये नहीं समझते की किसी जगह डेढ़ टन बारूद गिराने में १ मीटर की दूरी कितना मायने रखती है |

खैर फिर भी आपकी दलीलों का इन्तेजार रहेगा |

ब्रेकिंग न्यूज

विकिलीक्स के संपादक जुलियन एसेंज आज लन्दन में गिरफ्तार हो गए
उनपर बलात्कार का चार्ज है

ये तो होना ही था और मुझे पूरा विश्वास है कि इससे जुलियन को भी आश्चर्य नहीं हुआ होगा किन्तु अब बहुत देर हो चुकी है !!!
इस उधारी की खाने वाले बदतमीज़ देश को अपनी वाजिब औकात पर जल्दी आना ही होगा | आ ही जायेगा !!!

madhavi
08-12-2010, 03:41 AM
विकिलीक्स के प्रधान संपादक जूलियन पॉल असांजे को लंदन में पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया है। यौन उत्पीड़न के मामले को लेकर स्वीडन ने अंसाजे के ख़िलाफ़ वारंट जारी किया था। ग़ौरतलब है कि असांजे पर स्वीडन में रेप, यौन उत्पीड़न और कई ग़ैरक़ानूनी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप है। असांजे की वेबसाइट ने 250000 गोपनीय अमेरिकी दस्तावेज़ लीक किए थे। तब से अमेरिका असांजे के पीछे पड़ा हुआ है। अमेरिका की विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने असांजे की इस हरकत को दुनिया पर हमला तक क़रार दिया था।

madhavi
08-12-2010, 03:46 AM
असांज लंदन के थाने में स्वयं आए थे जब उन्हें गिरफ्तार किया गयाविकीलीक्स के संस्थापक जूलियन असांज को लंदन में गिरफ़्तार कर लिया गया है.ब्रिटेन की पुलिस का कहना है कि असांज को लंदन के एक थाने में उस समय गिरफ़्तार किया गया जब वो तय कार्यक्रम के अनुसार पुलिस से मिलने पहुंचे थे.असांज के ख़िलाफ़ स्वीडन के आग्रह पर यूरोपीय गिरफ़्तारी वारंट जारी किया गया था. स्वीडन में असांज के ख़िलाफ़ बलात्कार समेत चार मामले हैं.

असांज आज दिन में कोर्ट में पेश भी होंगे.विकीलीक्स पिछले कुछ दिनों से अमरीका के गुप्त कूटनीतिक रिपोर्टें लीक कर रहा है जिससे अमरीका को भारी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ रहा है.असांज के वकील ब्रिटेन के मार्क स्टीफ़न्स ने बीबीसी को बताया था कि असांज ब्रिटेन की पुलिस से बात करने के इच्छुक थे लेकिन उन्हें स्वीडन की क़ानून व्यवस्था पर यकीन नहीं है.

वकील का कहना था कि स्वीडन के अधिकारियों ने बड़े अजीबोगरीब तरीके से व्यवहार किया है और उनके मुवक्किल पर लगा गए आरोपों के बारे में ये तक नहीं बताया कि इस मामले के सबूत किस तरह के हैं.असांज के वकील का कहना था कि विकीलीक्स आने वाले दिनों में इंटरनेट पर अमरीकी कूटनीतिक रिपोर्टों से जुड़ी और जानकारियां पेश करेगा.

madhavi
08-12-2010, 03:51 AM
हाफ़िज़ सईद की गतिविधियों को लेकर बड़े सवाल उठाए जाते रहे हैंविकीलीक्स पर जारी दस्तावेज़ों के अनुसार मुंबई में नवंबर, 2008 को हुए चरमपंथी हमलों से पहले कर पाकिस्तान के कहने पर चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जमात-उद-दावा पर प्रतिबंध को रोके रखा.

जमात-उद-दावा चरमपंथी संगठन लश्करे तैबा का प्रतिनिधि संगठन है. और लश्करे तैबा वह संगठन है जिस पर मुंबई में हुए चरमपंथी हमलों का आरोप है.यह जानकारी अमरीकी राजनयिक संदेशों से प्राप्त हुई है. इस संदेश को अमरीकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने मंज़ूरी दी है.दस अगस्त, 2010 को जारी संदेश के अनुसार जमात-उद-दावा की गतिविधियाँ जारी थीं और यह इन गतिविधियों को चलाने के लिए धन भी एकत्रित कर रहा था. लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि संयुक्त राष्ट्र की ओर से प्रतिबंध लगाने के बाद पाकिस्तान सरकार ने संगठन की संपत्ति ज़ब्त करने के लिए क्या क़दम उठाए.

इन गोपनीय संदेशों को पाकिस्तान में अमरीकी दूतावास और संयुक्त राष्ट्र स्थित अमरीकी दूतावास को भेजा गया था.समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार इस संदेश में लिखा है, "मुंबई हमलों से पहले जमात-उद-दावा और इसके प्रमुख हाफ़िज़ सईद पर प्रतिबंध लगाने के हमारे अनुरोधों पर पाकिस्तान के कहने पर चीन रोक लगाता रहा."यूं तो सुरक्षा परिषद 15 सदस्यों की उच्चाधिकार प्राप्त समिति है लेकिन चूंकि चीन इस परिषद का स्थाई सदस्य है और उसे 'वीटो पॉवर' हासिल है, उसकी मंज़ूरी के बिना सुरक्षा परिषद कोई फ़ैसला नहीं ले सकता.

अमरीकी विदेश मंत्रालय की ओर से भेजे गए इस संदेश में पाकिस्तान और संयुक्त राष्ट्र दोनों जगह अमरीकी राजनयिकों को निर्देश दिए गए थे कि वे पाकिस्तान से जमात-उद-दावा और हाफ़िज़ सईद की गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाएँ.इसी संदेश में यह भी कहा गया है कि पाकिस्तानी अधिकारियों को सूचित कर दिया जाए कि संयुक्त राष्ट्र के अल-क़ायदा, तालिबान सूची से जमात-उद-दावा और हाफ़िज़ सईद का नाम हटाए जाने के प्रस्ताव का अमरीका विरोध करेगा.

हिलेरी क्लिंटन ने अपने संदेश में शीर्ष अमरीकी अधिकारियों को निर्देश दिए थे कि वे जमात-उद-दावा और हाफ़िज़ सईद पर से प्रतिबंध हटाए जाने के प्रस्ताव को वीटो कर दें.जमात-उद-दावा और सईद की ओर से प्रतिबंध हटाने का आवेदन पेश करने वाले वकीलों ने तर्क दिया था कि इन दोनों पर प्रतिबंध लगाने का कोई आधार नहीं है.

लेकिन हिलेरी क्लिंटन ने अपने संदेश में कहा था, "अमरीकी प्रशासन को उपलब्ध जानकारियों के आधार पर हम जानते हैं कि लश्करे तैबा और जमात-उद-दावा के लिए कई वरिष्ठ नेता काम करते हैं, जिसमें हाफ़िज़ सईद शामिल हैं वे लश्करे तैबा को नियंत्रित करते हैं और उनके सदस्यों को दिशा निर्देश देते हैं."

इस अमरीकी संदेश के अनुसार लश्करे तैबा और जमात-उद-दावा दोनों एक ही संगठन का हिस्सा हैं जिसका नाम 'मरकज़-उद-दावावाल-इरशाद' बताया गया है.अमरीका विकीलीक्स पर दस्तावेज़ जारी करने को एक आपराधिक कार्य बताता रहा है और इससे बेहद नाराज़ है.जमात-उद-दावा और लश्करे तैबा पर जारी इन दस्तावेज़ों की प्रामाणिकता पर अमरीकी प्रशासन ने कोई टिप्पणी नहीं की है.

madhavi
08-12-2010, 05:02 AM
मुंबई पर आतंकी हमलों के बाद एक ओर जहां पाकिस्तान भारत के सामने अपने को पाक साफ करने में लगा हुआ था वहीं दूसरी ओर मुंबई हमलों को अंजाम देनेवाला लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को मारने की योजनाओं पर काम कर रहे थे. यह खुलासा विकीलीक्स के खुलासे में हुआ है जिसमें अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन और अन्य एजंसियों के बीच संदेशों का लेन देन हुआ है.

19 जून 2009 को प्रसारित इस केबल में अमेरिकी विदेशी मंत्री हिलेरी क्लिंटन के आफिस से मुख्य सुरक्षा अधिकारी और विभिन्न दूतावासों को भेजे गये संदेश में इस सूचना का जिक्र किया गया है. प्रसारित केबल जून 2009 में लश्कर के आतंकी भारत में तीन प्रमुख गतिविधियों को अंजाम देना चाहते थे. इसमें शफीक खान और हुसैन नामक व्यक्तियों का जिक्र है जिसमें शफीक खान लश्कर के आतंकी के तौर पर चिन्हित किया गया है. इन योजनाओं में सबसे अहम योजना गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की संभावित हत्या सबसे प्रमुख थी. इसके साथ ही बातचीत में एक आतंकी शिविर की स्थापना और किसी अज्ञात कार्य के लिए एक कार की व्यवस्था करने का भी जिक्र आता है. इन सभी आतंकी गतिविधियों को हुसैन नामक आदमी अंजाम देनेवाला था जो कि भारत में समीर नाम के आदमी के संपर्क में था.

संदेश में यह भी बात सामने आ रही है कि पाकिस्तान में शफीक काफा नामक आदमी दक्षिण भारत के तीन राज्यों में संभावित आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए जो ट्रेनिंग कैम्प बनाना चाहता है उसके लिए वह जगह के बारे में जानकारी जुटा रहा था. ऐसा समझा जाता है कि दक्षिण भारत में इन हमलों के लिए लश्कर श्रीलंका स्थित अपने "संपर्को" का इस्तेमाल कर सकता था. केबल से यह जानकारी भी सामने आती है कि इस काम के लिए लश्कर ने दो से तीन महीने का समय निर्धारित किया था.

pooja 1990
08-12-2010, 05:25 AM
ab kya hoga congress ka. pr

arvind
08-12-2010, 03:22 PM
दरअसल मुझे तो ऐसा लगता है कि अमेरिका अपनी चौधराहट के चक्कर मे अंदर से धीरे-धीरे खोखला होता जा रहा है, जिस तरह भारत, चीन, जैसे तेजी से प्रगति की ओर बढ़ते हुये देशो को सोवियत संघ जैसा बनाना चाहता है, और उसके लिए पाकिस्तान जैसे चिरकुट देश को मोहरा बनाकर लाखो करोड़ो डालर की सहायता कर रहा है। जिस तरह अपने समर्थक देशो को बरगला कर अपने साथ उन्हे भी युद्ध के मैदान मे बलि का बकरा बना कर अपना सिर्फ उल्लू सीधा कर रहा है, उसमे निश्चित रूप से अंतिम अमेरिका को ही मुह की खानी पड़ेगी। जैसा की विकिलिक्स के खुलासे से तस्वीर काफी हद तक साफ भी हो चुकी है। इन सब पर अमेरिकी प्रशासन ने पानी की तरहा पैसा बहाया है, उसका खामियाजा भी दिखने लगा है।

अमेरिका में हर महीने औसतन करीब 15 बैंक दिवालिया हो रहे हैं जिनमें छोटे और मध्यम बैंकों की संख्या सबसे ज्यादा है। इस साल, 2010 में अभी तक 118 अमेरिकी बैंक दिवालिया हो चुके हैं। अमेरिका में बढ़ती बेरोजगारी के चलते बैंकों का भुगतान न हो पाने की वजह से ऐसे मामले बढ़ रहे हैं। जुलाई में 22 अमेरिकी बैंक तो इस साल अप्रैल में सर्वाधिक 23 अमेरिकी बैंक दिवालिया हुए। पिछले साल 140 अमेरिकी बैंकों को कारोबार समेटना पड़ा था।

एक बाजार विश्लेषक जिन मिएका ने मंदी के दौर को देखते हुए आगामी सितंबर में एक और झटके की भविष्यवाणी की है। उनकी यह भविष्यवाणी तकनीकी रूझानों पर आधारित है। उल्लेखनीय है कि अमेरिका में जून में खत्म हुए वित्तीय वर्ष में दिवालियापन के लिए आवेदनों की संख्या 20 प्रतिशत बढ़कर 15.7 लाख तक पहुंच गई। दिवालिया होने वाली कंपनियों की संख्या 8 प्रतिशत बढ़कर 59,608 पर पहुंच गई।

अमेरिकी अदालतों के प्रशासनिक कार्यालय में उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, 30 जून, 2010 को समाप्त वर्ष में केंद्रीय अदालतों में दीवालिया घोषित करने हेतु कुल 15,72,597 मामले दर्ज किए गए, जबकि 2009 में यह संख्या 13,06,315 थी। ऐसा तब हो रहा है जब इस साल कई बड़ी कंपनियों ने बेहतर वित्तीय निष्पादन दर्ज किए हैं। जून में समाप्त हुए वर्ष में बैंकरप्सी के लिए किए गए आवेदन 2006 के बाद से सबसे अधिक हैं। 2006 में यह संख्या 14.80 लाख थी।

laddi
08-12-2010, 03:54 PM
एक उम्दा जानकारी लेकिन कोई कुछ नहीं कर सकता
जिसकी लाठी उसकी भेंस
पर एक बात और भी है हमारे पंजाबी में कहावत है सौ दिन चोर दा एक दिन साध दा

arvind
08-12-2010, 04:48 PM
एक उम्दा जानकारी लेकिन कोई कुछ नहीं कर सकता
जिसकी लाठी उसकी भेंस
पर एक बात और भी है हमारे पंजाबी में कहावत है सौ दिन चोर दा एक दिन साध दा

हमलोगो को करने के लिए कुछ बचा भी नहीं है, आप खुद ही देख लीजिये, विकिलिक्स के खुलासे के बाद अमेरिका कैसे अपना मुह छिपाता फिर रहा है, आज- कल तो सूचना तकनीक का जमाना है, देखिये कैसा बिलबिला रहा है सिर्फ सूचनाओ के सार्वजनिक हो जाने से। न गृह-युद्ध, न शीत युद्ध, न छद्म युद्ध, न ही कोई सामरिक युद्ध - बस सिर्फ जानकारी लीक हुई, और अमेरिका की ऐसी की तैसी हो रही है। दोस्त दुश्मन बन रहे है, खाने और दिखने वाले दाँत भी बाहर आ गया है। आगे-आगे देखिये - और क्या-क्या होता है।

jitendragarg
08-12-2010, 06:34 PM
जीतेन्द्र जी मैं सुनना चाहूँगा उन कारणों को इस मुद्दे पर अमेरिका को सही ठहरा सकते हैं |
मुझे युद्ध की आतंरिक स्थितियों का ज्ञान नहीं है किन्तु इतना तो अवश्य है की मैं गोली चलने से पहले सोचूंगा की सामने वाला जंग लड़ने कैमरा ले के नहीं जाएगा |
वो विडियो मैंने भी देखा !!!
जिस बहाने को ले के अमरीकी लड़ने गए वो सिरे से झूठा निकला, ऊपर से वहाँ के लोगों को किसी प्राइवेट कंपनी (ब्लैकवाटर) के भाड़े के टट्टुओं (अधिकांश फिलीपीनी) से मरवा रहे हैं !

अंत में बस इतना कहना है कि जज्बातों के रीचार्ज कूपन नहीं होते दोस्त, ये एक बार ख़त्म हो जाएँ तो बस ख़त्म हो जाते हैं | अगर किसी का स्कूल में पढता बच्चा बम से मारा जाये तो बीस हजार मील दूर का सॉरी नहीं सुनेगा जिसके साथ में निशाना १ मीटर से चूकने का बहाना हो |
ये अमरीकी अपनी मिसाइलों के निशाने को मीटर की अन्शता में नापते हैं लेकिन पिज्जा खाकर सड़े इनके दिमाग ये नहीं समझते की किसी जगह डेढ़ टन बारूद गिराने में १ मीटर की दूरी कितना मायने रखती है |

खैर फिर भी आपकी दलीलों का इन्तेजार रहेगा |

Ek ek karke aapke sare sawalon ke jawaab deta hoon.

1) Kaun sa reporter ak-47 upyog karta hai, koi nahi! agar aap us video me sirf camera footage dekhenge to aapko pata chalega, ki firing start karne se pehle, unhone control team ko report kiya ki logon ke haath me ak-47 hai. agar wo reporter tha to camera ki jagah gun kyun?

2) 1m kaafi jyada badi baat hoti hai, accuracy ke maamle me.. perfect shot sirf sniper rifles se hi jate hai. helicopter perfect nahi hote, na hi machine gun. aur kisi terrorist ki 1m ki duri me ek civilian kyun khada hoga. to ye bolna ki 1m ki doori bahut kam hai, bewakoofi hai. air strike ke case me 50m ka range okay maana jata hai! aur waise bhi usse kam doori pe civilian hai, to usko hostage gina jata hai, aur hostage ke case me kabhi gun fire nahi ki jati. ye military ka code hai, usko koi government nahi badal sakti.

3) maana ki un logon ne galat wajah se yudh kiya, par us par saalon pehle hi behas ho chuki hai. jab finally UN ne anumati de di, to aap kuch nahi kar sakte.

4) doosre deshon ki help lena galat nahi hai, ye sirf travel ke paise aur samay bachane ke liye kiya jata hai. aur waise bhi, agar kuch log marte hai, to unki jagah doosri team bhejne me kaafi time lagta, jisse unki mehnat par paani phir jata. maare koi bhi, agar terrorist ko maar rahe to sahi hai, kuch gala nahi!

5)yudh ke case me log marte hai, koi badi baat nahi! kargil me bhi mare the, usse pehle bhi, aur aage bhi. sirf jajbaton se jung nhi jeeti jati. agar aapka bacha terrorists ke adde se 10 meter door khada hai, to usme aapki galti hai. haan agar rifle ki goli 1meter door chale to maayne badal jate hai, par aisa to hua hi nahi!

6) aur jahan tak war logs ki baat hai. to usme friendly fire ki jo baat ki hai, wo sare case raat me hue hai, aur hamesha alag alag deshon me.. do deshon ki army aapas me itna coordinate nhi kar sakti, isliye aise case normal hi hote hai! unko chupa ke isliye rakha gaya, taaki dono deshon me aapas me ladaayi na ho, warna, wahin iraq me america aur england aapas me lad rahe hote.

ye saare leaked kaagaz isliye chupaye gaye the, taaki media faaltu hawa na de.. aur wahi hua bhi! jung me jo bhi hota hai, usse hat kar kuch nahi hua, iraq me.. kam se kam videos aur warlogs ke hisaab se to nhi.

haan, us bande ko giraftaar karna jisne leak kiya wo thoda jyada ho gaya. par dekha jaye to usme bhi kuch galat nahi! duniya ki shanti bhang karna, aur confidential kaagazon ko leak karna galat hai, to uski saza to usko milni hi chahiye..

madhavi
08-12-2010, 07:42 PM
जितेन्द्र जी
आप तकनीकी सलाहकार हैं हिन्दी फ़ोरम के तो आपको हिन्दी को देवनागरी में लिखना चाहिए।
आपकी बात
haan, us bande ko giraftaar karna jisne leak kiya wo thoda jyada ho gaya. par dekha jaye to usme bhi kuch galat nahi! duniya ki shanti bhang karna, aur confidential kaagazon ko leak karna galat hai, to uski saza to usko milni hi chahiye..
अगर उस बन्दे का अपराध दुनिया की शान्ति भंग करना है तो उस पर यौन शोषण जैसा अपराध क्यों लगाया गया? जो अपराध बनता है(अगर बनता है तो ) वही लगाना चाहिए था !

jitendragarg
09-12-2010, 08:14 AM
जितेन्द्र जी
आप तकनीकी सलाहकार हैं हिन्दी फ़ोरम के तो आपको हिन्दी को देवनागरी में लिखना चाहिए।
आपकी बात
haan, us bande ko giraftaar karna jisne leak kiya wo thoda jyada ho gaya. par dekha jaye to usme bhi kuch galat nahi! duniya ki shanti bhang karna, aur confidential kaagazon ko leak karna galat hai, to uski saza to usko milni hi chahiye..
अगर उस बन्दे का अपराध दुनिया की शान्ति भंग करना है तो उस पर यौन शोषण जैसा अपराध क्यों लगाया गया? जो अपराध बनता है(अगर बनता है तो ) वही लगाना चाहिए था !

main pehle bhi likh chuka hoon, ki hindi me type karne me mujhe thoda problem hota hai, isliye bade post me english me hi type kar leta hoon. par phir bhi koshish karta hoon, ki jahan tak ho sake hindi me hi type karoon.

jahan tak us bande ki giraftaari ka sawal hai, to wo galat hi kiya gaya. haan, agar sahi aarop lagaya jata, to theek tha, par jo bhi ho aise logon ko khula chhodna galat hai. phokat me vishv yudh ki tayyari karwa raha tha wo vyakti.

amit_tiwari
09-12-2010, 09:50 AM
1) kaun sa reporter ak-47 upyog karta hai, koi nahi! Agar aap us video me sirf camera footage dekhenge to aapko pata chalega, ki firing start karne se pehle, unhone control team ko report kiya ki logon ke haath me ak-47 hai. Agar wo reporter tha to camera ki jagah gun kyun?



वो कंधे पे लटकी ak-47 नहीं नहीं slr कैमरा है | ak-47,56 दोनों में में बॉडी के पीछे एक शोल्डर बेस होता है |जो वहाँ है ही नहीं !
उन दोनों के साथ जो बन्दे थे उनका कह रहे हैं? कारगिल की शूटिंग में बरखा दत्ता को सिक्युरिटी वालों के साथ आपने नहीं देखा ???
राइटर्स जैसी संस्था ने आतंकवादियों को कवरेज करने के लिए भेजा था ?



2) 1m kaafi jyada badi baat hoti hai, accuracy ke maamle me.. Perfect shot sirf sniper rifles se hi jate hai. Helicopter perfect nahi hote, na hi machine gun. Aur kisi terrorist ki 1m ki duri me ek civilian kyun khada hoga. To ye bolna ki 1m ki doori bahut kam hai, bewakoofi hai. Air strike ke case me 50m ka range okay maana jata hai! Aur waise bhi usse kam doori pe civilian hai, to usko hostage gina jata hai, aur hostage ke case me kabhi gun fire nahi ki jati. Ye military ka code hai, usko koi government nahi badal sakti.



जिससे गोली चलायीं वो भी स्नाइपर ही थी, अपाचे हेलिकोप्टर में वीडियो कैमरे, नाईट विज़न, के साथ लैस कोई दुनाली बन्दूक तो नहीं होगी ?



3) maana ki un logon ne galat wajah se yudh kiya, par us par saalon pehle hi behas ho chuki hai. Jab finally un ne anumati de di, to aap kuch nahi kar sakte.


un ने भारत को भी अनुमति नहीं दी तो फिर ? हमारे पास भी एटोमिक हथियार हैं ? हमले के लिए तैयार ???




4) doosre deshon ki help lena galat nahi hai, ye sirf travel ke paise aur samay bachane ke liye kiya jata hai. Aur waise bhi, agar kuch log marte hai, to unki jagah doosri team bhejne me kaafi time lagta, jisse unki mehnat par paani phir jata. Maare koi bhi, agar terrorist ko maar rahe to sahi hai, kuch gala nahi!


ये पॉइंट समझ नहीं आया ! आतंकी मारे जाने की आलोचना करने के लिए सूत्र है ही नहीं |



5)yudh ke case me log marte hai, koi badi baat nahi! Kargil me bhi mare the, usse pehle bhi, aur aage bhi. Sirf jajbaton se jung nhi jeeti jati. Agar aapka bacha terrorists ke adde se 10 meter door khada hai, to usme aapki galti hai. Haan agar rifle ki goli 1meter door chale to maayne badal jate hai, par aisa to hua hi nahi!


सॉरी बॉस आपको जमीनी हकीकत का १% भी अंदाज़ा नहीं है |
ये महाभारत का युद्ध नहीं है जहां दोनों पार्टी खुल के सामने खड़ी होती हैं और लडती हैं | सिविल वार और गृह युद्धों में कभी दिनों के हिसाब से लड़ाई नहीं होती, अमेरिका किसी जंग के मैदान में नहीं एक शहर में है जहां लोग रहते हैं, वहाँ स्कूल चलते हैं अस्पताल हैं लोगों की दुकाने हैं, क्या वहाँ आतंकियों से लड़ने से पहले लोगों को खली कराया गया है? क्या चाहते हैं की बीमार अस्पताल ना जाएँ? बच्चे स्कूल ना जाएँ? लोग अपने घरों की छतों पे कोई सिग्नेचर बनायें की यहाँ लोग हैं आतंकी नहीं?
मैं कभी युद्ध में नहीं रहा किन्तु आवासीय क्षेत्रों में होने वाली मुठभेड़ों का मुझे बहुत अनुभव है, निजी कारणों से, स्थितियां कभी शूट एट साईट वाली नहीं होतीं | कभी सुबह आपको ऑफिस जाते टाइम कोई पकड़ के खड़ा हो जाये तो गोली खाना पसंद करेंगे?

क्या यार !!!

जो करे वो गलत नहीं और जो पोल खोले वो गलत है !
पहले अफगानिस्तान, फिर ईराक अब इरान की घेराबंदी ! एक एक करके तो ऐसे भी मार रहा है, विश्वयुद्ध ये नहीं हो रहा ?

जंग जज्बातों से नहीं जीती जाती पर होती किसलिए है ?
किस बहाने से ईराक में गए थे?
कौन से वीपन मिले?
और किसने मास डिस्ट्रक्शन किया ?
किस युद्ध में प्राइवेट सिक्युरिटी एजेंसी के लोग प्रयोग किये जाते है ?
क्यूँ किसी प्राइवेट कंपनी के लोगों को सेना के अधिकार दे दिए वो भी किसी और देश में ?
यदि फ़ौज की इतनी कमिं है तो अपने देश में उन फिलिपीनों को क्यूँ नहीं तैनात कर देते ?
उस कंपनी को ही दस बिलियन डालर का क्यूँ ठेका दिया गया जिसके शेयर होल्डर्स अल गोर और बुश हैं | और इस बात को छिपाया क्यूँ गया ? इससे भी विश्व युद्ध होना संभव है ?
जो फ़ौज वहाँ बैठ के अपने ही लोगों की हिफाजत नहीं कर सकती, उसे एक प्राइवेट कंपनी की मदद लेनी पड़ती है वो वहाँ लोकतंत्र का घंटा स्थापित करेगी?
जिसने इनके पांच हजार लोग मार दिए उस लादेन को पकड़ने का बता नहीं बनता इस सद्चरित्र फ़ौज का ?
सद्दाम और उसके लोग तो कबके मारे गए अब वहाँ ये क्या कर रहे हैं ?
क्या वो इमेज आप भूल गए जब लोगों ने सद्दाम का पुतला गिराए जाने पर खुश हो रहे थे? फिर अब विरोध क्यूँ ? कभी सोचा !
खुद वन्दे मातरम करने वाले लोग दुसरे देश के लोगों का विरोध कर रहे हैं क्यूंकि वो अपने देश में घुसे दबंगों को मारते हैं ?
किसे सहन होगा की कोई बीस हज़ार मील से आ के उनकी गलियों, शहरों में खड़ा हो जाये, उन्हें गालियाँ दें, उनकी तलाशी ले |
किसने ये हक़ दिया?
क्या अमेरिका विश्व सरकार है ?

माधवी जी ने अंत में बड़ी अच्छी बात कही की यदि वह व्यक्ति इतना बड़ा दोषी है तो उस पर वही चार्ज लगायें ! बहाने बनाने की क्या जरुरत है !
शायद आपने विकिलीक्स का फेसबुक पेज नहीं पढ़ा ! वहां देखिये लोग कैसे बता रहे हैं की सिर्फ शक के आधार पर लोगों के परिवार के परिवार गम हो गए ! कही खबर नहीं, कोई उत्तर नहीं |
ये गड़बड़झाला नहीं है ?

अंततः इतना अवश्य जोड़ना चाहूँगा की मेरा विरोध विचारों पर होता है व्यक्ति से नहीं |

-अमित

VIDROHI NAYAK
12-12-2010, 12:33 AM
नमस्कार अरविन्द जी ...
आपको सतत धन्यवाद इस जानकारी को हम तक पहुंचाने के लिए ! आपको हार्दिक शुभकामनायें !

arvind
25-01-2011, 10:13 AM
अरविन्द जी कृपया विकिलिक्स के भारतीय व्यक्तियो के स्विस बैंक में खता होने के खुलासे के साथ साथ भारतीय केन्द्रीय सरकार की इस विषय पर चुप्पी पर भी प्रकाश डालिए !
इसका एक ही कारण है - हमाम मे सभी नंगे है।

अरे भाई, अब स्विस बैंक के खाताधारी हमारे-आपके जैसे फटीचर तो नहीं होंगे और ना ही एक नंबर या दो नंबर का काम करने वाले होंगे, वो सब तो दस नंबरी हो होंगे। कुछ नाम बताता हूँ - मधु कोडा मामा, ए राजा मौसा, विनोद सिन्हा चाचा, सुखराम दादा, इत्यादि जैसे लोगो का ही खाता होने की संभावना हो सकती है, क्योंकि इनके पास इतने पैसे है की अपने देश के बैंको की हैसियत ही नहीं है की इतने पैसे अपने यहा रख सके और ना ही इनके सॉफ्टवेर के बैलेन्स वाले फील्ड मे इतने अंक समा सकते है, सो स्विस बैंक तो है ही।

अब देश के महान हस्तियो के बारे मे सरकार कैसे कुछ बोल सकती है, फिर चुनाव का खर्चा कहा से आएगा, पार्टी फंड का क्या होगा, बिना कमाए धमाए हेलीकाप्टर और महंगी गाड़ियो मे घूमने को कैसे मिलेगा? काहे किसी की वाट लगाने पार तुले हो भाई।

और विकिलिक्स वालो का क्या है - मेरे जैसे निट्ठल्ले है, किसी ने कुछ सुचनाए इनको थमा दिया, बस फिर क्या है - लग गए वाट लगाने मे।

VIDROHI NAYAK
25-01-2011, 10:32 AM
तो अब क्या? क्या शांत रहना चाहिए ! हमारी इतनी सामर्थ तो नहीं की चिल्लाने के सिवा कुछ कर पायें...! तो ?

arvind
25-01-2011, 10:40 AM
तो अब क्या? क्या शांत रहना चाहिए ! हमारी इतनी सामर्थ तो नहीं की चिल्लाने के सिवा कुछ कर पायें...! तो ?
तो सबसे पहले अपनी सामर्थ्य बढ़ानी होगी, हमे अपने ताकत को पहचानना होगा। और सबसे बड़ी बात - तन-मन-धन से बलिदान के लिए तैयार रहना होगा। पानी मे लाठी मार कर पानी को अलग नहीं किया जा सकता है।

ndhebar
27-01-2011, 09:06 AM
तो सबसे पहले अपनी सामर्थ्य बढ़ानी होगी, हमे अपने ताकत को पहचानना होगा। और सबसे बड़ी बात - तन-मन-धन से बलिदान के लिए तैयार रहना होगा।

यही तो समस्या की जड़ है बंधू
सभी चाहते हैं की आन्दोलन शुरू हो, राम एक बार फिर पैदा लें पर हमारे यहाँ नहीं पडोसी के यहाँ

VIDROHI NAYAK
27-01-2011, 09:41 AM
मुझे ये समझ नहीं आता की जो एक अच्छी जिंदगी के लिए ज़द्दोजेहद कर रहा हो वो कैसे इस विषय में सामर्थ्य बढेगा? यह मात्र अपने विषय में नहीं अपितु लगभग सभी के साथ ऐसा है ! अब देखिये न उत्सव ने अपनी सामर्थ्य बढ़ाई पर क्या मिला उसको? मीडिया ने उसे मानसिक रोगी करार दिया ! अब ऐसे में हम किसी से क्या उम्मीद कर सकते हैं ? मान लीजिए की अगर वो जहाँ तलवार को मरने के लिए खड़ा था वहीँ से अगर नारेबाजी या कोई अन्य अहिंसक प्रतिरोध करता तो कौन ध्यान देता उस पर? मेरा प्रश्न यही है की आप सामर्थ्य को कैसे परिभाषित करेंगे ?
धन्यवाद

arvind
27-01-2011, 05:06 PM
मुझे ये समझ नहीं आता की जो एक अच्छी जिंदगी के लिए ज़द्दोजेहद कर रहा हो वो कैसे इस विषय में सामर्थ्य बढेगा? यह मात्र अपने विषय में नहीं अपितु लगभग सभी के साथ ऐसा है ! अब देखिये न उत्सव ने अपनी सामर्थ्य बढ़ाई पर क्या मिला उसको? मीडिया ने उसे मानसिक रोगी करार दिया ! अब ऐसे में हम किसी से क्या उम्मीद कर सकते हैं ? मान लीजिए की अगर वो जहाँ तलवार को मरने के लिए खड़ा था वहीँ से अगर नारेबाजी या कोई अन्य अहिंसक प्रतिरोध करता तो कौन ध्यान देता उस पर? मेरा प्रश्न यही है की आप सामर्थ्य को कैसे परिभाषित करेंगे ?
धन्यवाद
दरअसल उत्सव शर्मा के बारे मे ज्यादा जानकारी मेरे पास नहीं है, अत: अभी उसपर मै टिप्पणी कर पाने मे असमर्थ हूँ, परंतु जैसे ही कुछ पता चलेगा तब मै अवश्य लिखुंगा।

VIDROHI NAYAK
27-01-2011, 09:12 PM
आपकी प्रतीक्षा है !

ndhebar
28-01-2011, 02:00 PM
अब देखिये न उत्सव ने अपनी सामर्थ्य बढ़ाई पर क्या मिला उसको? मीडिया ने उसे मानसिक रोगी करार दिया ! अब ऐसे में हम किसी से क्या उम्मीद कर सकते हैं ? मान लीजिए की अगर वो जहाँ तलवार को मरने के लिए खड़ा था वहीँ से अगर नारेबाजी या कोई अन्य अहिंसक प्रतिरोध करता तो कौन ध्यान देता उस पर?

सवाल ये भी है की तलवार दोषी है या नहीं ये कौन फैसला करेगा
क्या उत्सव को इसका फैसला करने का हक़ है ?
फिर हथियार लेकर हमला कर देना उसकी विक्षिप्तता ही दिखाता है और कुछ नहीं

arvind
28-01-2011, 02:24 PM
सवाल ये भी है की तलवार दोषी है या नहीं ये कौन फैसला करेगा
क्या उत्सव को इसका फैसला करने का हक़ है ?
फिर हथियार लेकर हमला कर देना उसकी विक्षिप्तता ही दिखाता है और कुछ नहीं
उत्सव शर्मा पहली बार तब चर्चा मे आया था जब उसने हरियाणा के पूर्व डीजी पुलिस एस. पी. एस. राठौर पर हमला किया था और दूसरी बार आरुषि के पिता डॉ तलवार पर। सवाल यह उठता है कि उत्सव शर्मा कौन होता है किसी को दोषी करार देने वाला या किसी दोषी को सजा देने वाला?

राठौर को अदालत सजा सुना चुकी है। यह बूढ़ा शख्स एक किशोरवय की लड़की के यौन उत्पीड़न का दोषी है। उस लड़की के पिता ने जब पुलिस में एफआईआर करानी चाही तो राठौर ने पुलिस की वर्दी के जोर उसके पूरे घर को बर्बाद कर दिया। लड़की को चंडीगढ़ के स्कूल ने राठौर के दबाव पर स्कूल से निकाल दिया। लड़की ने खुदकुशी कर ली। भाई पर इतने मुकदमे पुलिस ने दर्ज किए कि उसे जेल जाना पड़ा। पिता को बेइज्जत होना पड़ा।

उस डीजी को हरियाणा में मेडल पर मेडल मिलते रहे। नेता अपनी सभाओं में उसका गुणगान करते रहे और पंचकूला का एक परिवार इंसाफ के लिए भटकता रहा। हालांकि उसे कोर्ट से ही इंसाफ मिला लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। राठौर ससम्मान नौकरी से रिटायर हो चुका था। पैसे और रसूख के दम पर अदालत की सजा महज एक रस्म अदायगी बनकर रह गई। ऐसे में उत्सव शर्मा जैसे लोगों को अगर खून नहीं खौलेगा तो क्या होगा। उसने जो कुछ किया वह ठीक ही था। उसे आप चाहे ताजा घटना के बाद सनकी या पागल करार दे दें तो भी राठौर या डॉ. तलवार जैसे लोगों के प्रति पैदा हो रही नफरतों को रोका नहीं जा सकेगा।

आरुषि तलवार के पिता डॉ. राजेश तलवार ने गाजियाबाद की एक अदालत में अर्जी लगाई कि उनकी बेटी की हत्या की जांच फिर से कराई जाए। यानी फिर से वही लकीर पीटने की कहानी और कई साल तक फैसले के इंतजार में केस को उलझाने की कोशिश। आरुषि और डॉ. तलवार के नौकर हेमराज की हत्या के फौरन बाद नोएडा पुलिस ने डॉ. राजेश तलवार को बतौर मुलजिम गिरफ्तार कर लिया था। लेकिन अचानक नोएडा पुलिस खलनायक साबित हो गई। केस सीबीआई को सौंपा गया। अब सीबीआई की चार्जशीट कह रही है कि नोएडा पुलिस के जांच की दशा सही थी। डॉ. तलवार पर शक पैदा होता है।

अदालत का जो भी फैसला आए या फिर जांच एजेंसियां कुछ भी कहें समाज ने इस केस में डॉ. राजेश तलवार के प्रति जो धारणा बना ली है उसे अदालत और जांच एजेंसियां बदल नहीं सकतीं। उत्सव शर्मा जैसे लोगों का गुस्सा इन धारणाओं की वजह से ही भड़का है। यह भारतीय न्याय व्यवस्था और जांच एजेंसियों के प्रति पैदा होती नफरत का भी नतीजा है।

अभी बिनायक सेन को अदालत द्वारा सजा सुनाने के बाद भारतीय मीडिया और यहां के तथाकथित बुद्धिजीवियों की जो सांप-छछूंदर वाली स्थिति रही है, उसे देखते हुए बहुत जल्द बड़ी तादाद में उत्सव और बिनायक पैदा होंगे। इस समर्थन को इस नजरिए से न देखा जाए कि मेरे जैसे लोग हिंसा को अब कारगर हथियार मानने लगे हैं। नहीं, ऐसा नहीं है। यह हिंसा नहीं, उन असंख्य भारतीय के जज्बातों का समर्थन है जो इन दिनों तमाम वजहों से बहुत आहत महसूस कर रहा है।

arvind
28-01-2011, 03:40 PM
उत्सव शर्मा का प्रोफाइल
नाम : उत्सव शर्मा
पिता का नाम : प्रो. एस. के. शर्मा (बीएचयू)
मां का नाम : प्रो. (डॉ.) इंदिरा शर्मा, मनो चिकित्सक (बीएचयू)
एजुकेशन : ग्रेजुएट इन फाइन आर्ट्स, बीएचयू विजुअल आर्ट्स फैकेल्टी में 2006 का गोल्ड मेडलिस्ट. बीएफए के बाद उत्सव ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन (अहमदाबाद) में एफएफए में एडमिशन लिया.
एक्स्ट्रा कैरिकुलर : स्पोर्ट्स में भी बेहतरीन.

उत्सव बेसिकली बचपन में बहुत कॉमिक्स पढ़ता था. अभी ये शौक कम नहीं हुआ है. उत्सव को कॉमिक्स में सबसे अच्छी बात लगती है.. वो है फेल्योर सिस्टम को बचाने वाले सुपर हीरोज. बिलकुल राज कॉमिक्स के ‘डोगा’ की तरह. हां भाई, वही जो कुत्ते वाला माक्स पहनता है. गैरकानूनी ढंग से हथियार रखता है. कुत्ते उसके दोस्त हैं और वो कानून हाथ में लेकर कानून की रक्षा करता है. क्योंकि उसका अपना ही एक कानून है. वो कानून के बंधन में नहीं इसलिए क्विक जस्टिस पर विश्वास करता है.

अपने देश में न्याय व्यवस्था का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि यहां न्याय जब मिलता है, जब न्याय का मतलब नहीं रह जाता. अपराधी तब जेल के अंदर जाते हैं जब वो भीहड़ में पांच साल डकैती करते हैं. 15 साल संसद या विधान सभा में बैठकर लूटते हैं. बाद में सजा सुनाई जाती है. मगर तब तक ज्यादातर किए गए अपराध को सरकार माफ कर देती है. जो छोटे-मोटे अपराध बचते हैं, उनमें वो पांच-छह साल की जेल काटकर मैदान में आ जाते हैं. कुछ तो पिछड़े प्रदेशों के मुख्यमंत्री तक बन जाते हैं. जब कि निचली अदालत उनके खिलाफ उम्र कैद की सजा तक सुना चुकी होती है. राडिया टेप की वर्डिंग्स में बोले तो ‘यहां सब कुछ फिक्स होता है’. ऐसे में ऊपरी अदालत में न्याय भी फिक्स है.

उत्सव क़ा अपराध यही है कि उसने डोगा की तरह कानून हाथ में लेकर न्याय करने की कोशिश की है. उसे मनोरोगी कहा जा सकता है. वो शायद है भी. मगर मनोरोगी उसे बनाया किसने…??? उसके पैरेंट्स ने?? उसके फ्रेंड्स ने?? उसकी कलात्मक अभिरुचि ने??? कामिक्स ने??? ना, ये कहना गलत होगा… उसे मनोरोगी बनाया है अपने देश के सिस्टम ने. जी हां, वो भी एक स्टुपिड कॉमन मैन है जिसके अंदर एक आग है. वो न्याय चाहता है मगर जल्दी. समय से और अनफिक्ड. वरना ऐसी बहुत सी फिल्में जिसमें हीरो अपने तरह से न्याय पाने के मैसेज देते हैं. अमिताभ बच्चन की ‘आखिरी रास्ता’ की तरह. उत्सव का विषाद उसकी नजर में आखिरी रास्ता ही है. ये भी कहना गलत नहीं होगा कि उत्सव की नजर अब शीलू रेप के आरोपी और कानपुर में अनुष्का के रेप एंड मर्डर केस के आरोपियों पर हो…

VIDROHI NAYAK
28-01-2011, 07:23 PM
अरविन्द जी मै आपकी बात से पूर्णतयः सहमत हूँ और उत्सव के मनोभाव को समझते हुए उसके पक्ष में हूँ !

ndhebar
31-01-2011, 12:28 PM
आप लाख तर्क दे दें पर अपराधी को समाप्त करने के लिए अपराध के रास्ते को मैं सही नहीं मानता
अगर उत्सव शर्मा इतना ही काबिल था तो कुछ बनता ताकि एक रुचिका या एक आरूषी को सही समय पर इन्साफ मिल पाता
सिस्टम को बदलने के लिए सिस्टम में आना चाहिए ना की हथियार उठाया और निकल पड़े समाज सुधार के अभियान पर
इस तरह से आपको हो सकता है क्षणिक प्रशंशा या सफलता मिल जाये पर दीर्घकाल में नुकसान ही होगा

VIDROHI NAYAK
31-01-2011, 12:41 PM
आप लाख तर्क दे दें पर अपराधी को समाप्त करने के लिए अपराध के रास्ते को मैं सही नहीं मानता
अगर उत्सव शर्मा इतना ही काबिल था तो कुछ बनता ताकि एक रुचिका या एक आरूषी को सही समय पर इन्साफ मिल पाता
सिस्टम को बदलने के लिए सिस्टम में आना चाहिए ना की हथियार उठाया और निकल पड़े समाज सुधार के अभियान पर
इस तरह से आपको हो सकता है क्षणिक प्रशंशा या सफलता मिल जाये पर दीर्घकाल में नुकसान ही होगा
ढेबर जी..आप इस सिस्टम की तो बात मत ही करिये...कोई इसे बदल नहीं पाया बल्कि इसने ही लोगों को बदला है! ऐसे में कम से कम इस बुरे सिस्टम में एक की बढोत्तरी तो नहीं हुई न !

ndhebar
31-01-2011, 01:20 PM
ढेबर जी..आप इस सिस्टम की तो बात मत ही करिये...कोई इसे बदल नहीं पाया बल्कि इसने ही लोगों को बदला है! ऐसे में कम से कम इस बुरे सिस्टम में एक की बढोत्तरी तो नहीं हुई न !
कोई भी सिस्टम बुरा नहीं होता
बुरे होते हैं उसे चलाने वाले और जब तक उसमें अच्छे लोग नहीं आयेंगे, फिर सिस्टम क्या अपने आप बदलेगा

Sikandar_Khan
19-03-2011, 03:49 AM
विकिलीक्स ने एक और खुलासा किया है। इससे साफ जाहिर होता है कि भारत में सरकार बनाने-बिगाड़ने के खेल और मंत्रालयों के बंटवारे में अमेरिका की खासी दिलचस्पी होती है। अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन और दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास के बीच हुई बातचीत के केबल के मुताबिक, जब यूपीए की दूसरी बार सरकार बना रही थी तो अमेरिका प्रणव मुखर्जी को वित्त मंत्री के रूप में नहीं देखना चाहता था। इस अहम पद के लिए अमेरिका की पसंद पी.चिदंबरम और योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया थे। अमेरिका वाणिज्य मंत्रालय कमलनाथ से लेकर आनंद शर्मा को दिए जाने को लेकर भी आशंकित था।

Sikandar_Khan
19-03-2011, 03:51 AM
विकिलीक्स के मुताबिक, प्रणव मुखर्जी को वित्त मंत्री बनाए जाने के बाद सितंबर, 2009 में अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने आश्चर्य जताते हुए दिल्ली में अपने दूतावास से जानकारी मांगी थी कि उन्हें वित्त मंत्री क्यों बनाया गया ? क्लिंटन ने यह भी पूछा था, ' प्रणव किस औद्योगिक घराने के करीबी हैं और अपनी नीतियों से किसे फायदा पहुंचाएंगे ? बजट में प्रणव मुखर्जी की प्राथमिकताएं क्या होंगी ?' .

Sikandar_Khan
19-03-2011, 05:11 AM
अमेरिका ने अब विकिलीक्स के इस खुलासे पर टिप्पणी करने से इंकार कर दिया है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मार्क टोनर ने कहा कि वह विकिलीक्स के खुलासे पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे। विकिलीक्स ने गुरुवार को खुलासा किया था कि 2008 के भारत-अमेरिका के बीच परमाणु समझौते के मुद्दे पर हुए विश्वास मत से करीब पांच दिनों पहले कांग्रेस नेता कैप्टन सतीश शर्मा के करीबी नचिकेता कपूर अमेरिकी दूतावास के एक कर्मचारी से मिला था और उसने रुपयों से भरे दो बक्से दिखाए थे। कपूर ने दूतावास कर्मी से कहा था की राष्ट्रीय लोकदल के चार सांसदों को 10-10 करोड़ रुपये की रकम दी जा चुकी है।

Sikandar_Khan
19-03-2011, 05:16 AM
14 सिंतबर 2009 के केबल के मुतिबक, अमेरिकी विदेश मंत्री ने भारत में नई सरकार की आर्थिक नीतियां तय करने वाले महत्वपूर्ण व्यक्तियों के बारे में दूतावास से कई सवाल पूछे थे। हिलेरी जानना चाहतीं थीं ,' अहलूवालिया की वित्त मंत्री न बनाने की क्या प्रतिक्रिया है, क्या उनके प्रधानमंत्री से बेहतर संबंध हैं ? उन्होंने यह भी पूछा कि मुखर्जी के रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर डी . वी . सुब्बाराव से कैसे संबंध हैं? सुब्बाराव, चिदंबरम को हटाने के बारे में क्या सोचते हैं? प्रणव मुखर्जी प्रधानमंत्री के आर्थिक सुधार कार्यक्रम को लेकर क्या सोचते हैं ? अमेरिका से द्विपक्षीय संबंध और अमेरिका-चीन संबंध को लेकर उनके क्या विचार हैं ?'

Sikandar_Khan
19-03-2011, 05:21 AM
क्लिंटन ने यह भी पूछा था , ' आनंद शर्मा को वाणिज्य मंत्री क्यों बनाया गया ?
उनकी महत्वाकांक्षाएं क्या-क्या हैं ? कमलनाथ को भूतल परिवहन मंत्रालय में शिफ्ट क्यों किया गया ?
मंत्रालय बदलने पर कमलनाथ क्या सोचते हैं ?
आनंद शर्मा के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और प्रणव मुखर्दी से कैसे संबंध हैं ?'