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View Full Version : ये कैसी भक्ति है ?


soni pushpa
11-07-2015, 11:15 AM
सच कहूँ तो हम इंसान हमेशा भगवान से दया की भीख मांगते रहते हैं उनका आशीर्वाद चाहते हैं किन्तु सच तो ये है की हम इंसान ही कभी भगवान् की मूर्तियों पर जरा सी भी दया नहीं करते.. मैंने देखा कई बार मंदिरों में भगवव न की मूर्ति को कभी भी नहलाते हुए स्नान करते हुए वो स्नान इतना भयंकर होता है की लगता है की स्नान नहीं ये कोई मन के बवंडर का प्रतिसाद है पानी के अन्दर न जाने क्या क्या मिला हुआ होता है की पानी का रंग ही धूमिल हो जाता है फिर स्नान तक ही हम इंसानों की श्रध्धा सिमित नहीं आगे भगवांन की मूर्ति पर चन्दन को एइसे मला जाता है मानो पत्थर पर चटनी बनाई जा रही हो तिलक की कोई सीमा ही नहीं रखते लोग मूर्ति की नाक से लेकर सर की मांग तक का लम्बा तिलक और उस पर अक्षत (चावल)की वर्षा फिर वो चावल के दाने मूर्ति के सर पे जा रहे हैं या आखो में कुछ नहीं पता उसके बाद जब प्रसाद चढाते है हम तब मैंने देखा है की गणपति बाप्पा की sundh में इस तरह दबाके लड्डू भरते हैंकि दो दिन तक वो वहीं फंसा रहता है और उस लड्डू की वजह से रात भर बाप्पा के ऊपर हजारे कीड़े मकोड़े बैठते हैं और उस लड्डू का आनंद उठाते हैं और गणपति बाप्पा को न दिन का चैन न रात की नींद मिलती है ..



अगरबत्ती के पकेट्स प्रसाद के डब्बे सब मंदिर में इस तरह से फेंकते हैं लोग मनो मंदिर न हुआ कूड़ा दान हुआ ... और एक बात की जब जब बड़े त्यौहार होते हैं तब तब तो मानो भगवान की शामत आ जाती है . मैंने एक बार देखा था शिवरात्रि का दिन था सब एक बार में ही पुण्य कमा लेना च हते हो इस तरह से शिवलिंग के पास घेरे में पूजा कर रहे थे ठीक है पूजा करते तो कोई बात न थी किन्तु एकदूजे को धक्के देकर हर कोई पहले पुण्य कमाना चाहता था पर चलो ये भी माना की ठीक है पुण्य कमाना कोई बुरी बात नहीं ये उनकी श्रध्धा है , किन्तु शिवलिंग के सामने ३ से ४ लाइन जब गोलाकार में बन गई तब लोगो ने ५ वि लाइन बनाकर सबके ऊपर से शिवलिंग पर नारियल फेकना शुरू का दिया तब मेरे मन में एक सवाल उठा ये किसी भक्ति है? हम क्यों इतने बावले हो जाते हैं हम क्यों इतने अन्धविश्वासी हो जाते हैं ? हम क्यों सारा पुण्य शॉर्टकट में कमा लेना चाहते हैं हम ये क्यूँ नहीं देख पाते की जिस मूर्ति पर हम इस तरह के अत्याचार कर रहे हैं उसकी प्राणप्रतिष्ठा की जाती है और जब हम एईसी पूजा करते हैं तब हम पुण्य के बदले पाप तो नहीं कर रहे ये हमें जरुर सोचना चहिये



मैं मानती हूँ की ये सब आपकी श्रध्धा है और समय आभाव भी कई बार एईसी पूजा की वजह बन जाता है किन्तु यदि आपके पास समय नहीं आप जब घर में हो शांत चित्त से सच्चे मन से भगवान का नाम लो वो शायद भगवन जल्दी सुनेंगे ..न की एईसी पूजा से .

दूसरी बात " अन्धविश्वास "...इस वजह से भी लोग बड़े त्योहारों में उमड़ पड़ते हैं मंदिरों में और पूजा के समय एईसी भूलें करते रहते हैं पर आपनी पूजा में आप अन्धविश्वास को जरा भी स्थान ना दे .. आपको यदि शिवलिंग पर दूध चढ़ाना ही है तो थोडा सा भगवन पर चढ़कर बाकि का गरीब के बच्चे को दें . मंदिरों में जब देखे की वहां फ्रूट्स याने की फलों का ढेर लग गया है तो आप आपने लाये फल गरीबों में बाटे..क्यूंकि वो जिन्दा भगवन ह तो है उसमे परमात्मा ह का ही वास है आपके पास यदि पैसा ज्यदा है तो किसी जरूरतमंद विद्यार्थी को फ़ीस के पैसे दें ताकि उसका भविष्य उज्जवल हो ...



अंत में इतना कहूँगी की पूजा एइसे कीजिये की जिसमे अन्धविश्वास का कोई स्थान न हो ...

rajnish manga
12-07-2015, 01:35 PM
सच कहूँ तो हम इंसान हमेशा भगवान से दया की भीख मांगते रहते हैं उनका आशीर्वाद चाहते हैं किन्तु सच तो ये है की हम इंसान ही कभी भगवान् की मूर्तियों पर जरा सी भी दया नहीं करते
...... स्नान इतना भयंकर होता है की लगता है की स्नान नहीं ये कोई ..बवंडर हो ....
...... भगवांन की मूर्ति पर चन्दन को एइसे मला जाता है मानो पत्थर पर चटनी बनाई जा रही हो.

...... डब्बे सब मंदिर में इस तरह से फेंकते हैं लोग मनो मंदिर न हुआ कूड़ा दान हुआ ... और .......एकदूजे को धक्के देकर हर कोई पहले पुण्य कमाना चाहता था
..... सबके ऊपर से शिवलिंग पर नारियल फेकना शुरू का दिया तब मेरे मन में एक सवाल उठा ये किसी भक्ति है?
..... हम ये क्यूँ नहीं देख पाते की जिस मूर्ति पर हम इस तरह के अत्याचार कर रहे हैं उसकी प्राणप्रतिष्ठा की जाती है और जब हम एईसी पूजा करते हैं तब हम पुण्य के बदले पाप तो नहीं कर रहे ये हमें जरुर सोचना चहिये

...... आपको यदि शिवलिंग पर दूध चढ़ाना ही है तो थोडा सा भगवन पर चढ़कर बाकि का गरीब के बच्चे को दें . मंदिरों में जब देखे की वहां फ्रूट्स याने की फलों का ढेर लग गया है तो आप आपने लाये फल गरीबों में बाटे..क्यूंकि वो जिन्दा भगवन ह तो है उसमे परमात्मा ह का ही वास है आपके पास यदि पैसा ज्यदा है तो किसी जरूरतमंद विद्यार्थी को फ़ीस के पैसे दें ताकि उसका भविष्य उज्जवल हो ...

अंत में इतना कहूँगी की पूजा एइसे कीजिये की जिसमे अन्धविश्वास का कोई स्थान न हो ...


मुझे आपके निरीक्षण की तारीफ़ करनी पड़ेगी, बहन पुष्पा जी. आपने बहुत गौर से मंदिरों में भक्तों के व्यवहार को देखा है और एक एक बात को नोट किया है तथा इसे बड़े रोचक तरीके से बताया है. मूर्तियों का जलाभिषेक हो या मूर्तियों पर चन्दन का लेप अथवा तिलक लगाना हो या फिर देवता को अक्षत चढ़ाना हो, या फिर देवता को भोग लगाना हो, इन सब क्रियाकलाप में हर जगह भक्ति कम और दुर्दशा अधिक दिखाई देती है. इस संबंध में मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ. इस व्यवहार के पीछे भक्तों का अतिउत्साह होता है या उनका मनमानापन, कहना मुश्किल है. हाँ, यह अवश्य है कि किसी तटस्थ पर्यवेक्षक को यह अगर हास्यास्पद नहीं तो अजीब ज़रूर लगेगा. हम लोग न तो मंदिर को साफ़-सुथरा बनाये रखने की ओर ध्यान देते हैं और न पूजापाठ के दौरान संयत रह पाते हैं. मैं आपको बताना चाहता हूँ कि यह किसी एक मंदिर की नहीं बल्कि कमोबेश हर मंदिर का यही हाल है. सिर्फ उन मंदिरों में जहां वालंटियर्स तैनात रहते हैं और जहाँ प्रसाद भी कीमत देकर खरीदना पड़ता है, वहाँ आम तौर पर व्यवस्था व सफ़ाई देखने को मिलती है.

यदि भक्तजन यह समझ लें कि उनके द्वारा चढ़ाया गया दूध अंततः नालियों में ही जाना है, तो इसे ज़रूरतमंद बच्चों में वितरित कर देना कहीं अधिक श्रेष्ठ व पुण्य देने वाला होगा. ऐसा ही भगवान् को भोग लगाने के पश्चात् बचे हुये फलों व अन्य खाद्य पदार्थों का वितरण भी हो जाये तो बहुत अच्छा हो. जरुरत इस बात की है कि भक्ति में दिखावा न हो और ऐसा कुछ न किया जाये जिससे अंधविश्वास को बढ़ावा मिले. सामर्थ्यवान भक्तों को चाहिए कि वे समय निकाल कर मानवता की निस्वार्थ सेवा में भी तत्पर हो कर अपने तन-मन-धन का सदुपयोग करते हुये पुण्य के भागी बने. यही ईश्वर की सच्ची भक्ति होगी.

soni pushpa
12-07-2015, 04:58 PM
[QUOTE=rajnish manga;553008]मुझे आपके निरीक्षण की तारीफ़ करनी पड़ेगी, बहन पुष्पा जी. आपने बहुत गौर से मंदिरों में भक्तों के व्यवहार को देखा है और एक एक बात को नोट किया है तथा इसे बड़े रोचक तरीके से बताया है. मूर्तियों का जलाभिषेक हो या मूर्तियों पर चन्दन का लेप अथवा तिलक लगाना हो या फिर देवता को अक्षत चढ़ाना हो, या फिर देवता को भोग लगाना हो, इन सब क्रियाकलाप में हर जगह भक्ति कम और दुर्दशा अधिक दिखाई देती है. इस संबंध में मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ. इस व्यवहार के पीछे भक्तों का अतिउत्साह होता है या उनका मनमानापन, कहना मुश्किल है. हाँ, यह अवश्य है कि किसी तटस्थ पर्यवेक्षक को यह अगर हास्यास्पद नहीं तो अजीब ज़रूर लगेगा. हम लोग न तो मंदिर को साफ़-सुथरा बनाये रखने की ओर ध्यान देते हैं और न पूजापाठ के दौरान संयत रह पाते हैं. मैं आपको बताना चाहता हूँ कि यह किसी एक मंदिर की नहीं बल्कि कमोबेश हर मंदिर का यही हाल है. सिर्फ उन मंदिरों में जहां वालंटियर्स तैनात रहते हैं और जहाँ प्रसाद भी कीमत देकर खरीदना पड़ता है, वहाँ आम तौर पर व्यवस्था व सफ़ाई देखने को मिलती है.

यदि भक्तजन यह समझ लें कि उनके द्वारा चढ़ाया गया दूध अंततः नालियों में ही जाना है, तो इसे ज़रूरतमंद बच्चों में वितरित कर देना कहीं अधिक श्रेष्ठ व पुण्य देने वाला होगा. ऐसा ही भगवान् को भोग लगाने के पश्चात् बचे हुये फलों व अन्य खाद्य पदार्थों का वितरण भी हो जाये तो बहुत अच्छा हो. जरुरत इस बात की है कि भक्ति में दिखावा न हो और ऐसा कुछ न किया जाये जिससे अंधविश्वास को बढ़ावा मिले. सामर्थ्यवान भक्तों को चाहिए कि वे समय निकाल कर मानवता की निस्वार्थ सेवा में भी तत्पर हो कर अपने तन-मन-धन का सदुपयोग करते हुये पुण्य के भागी बने. यही ईश्वर की सच्ची भक्ति होगी. [/size] [/font]


सबसे पहले इस लेख को इतना ध्यान से पढ़ने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद भाई ,... कई बार लोगों के क्रिया कलाप भक्ति को लेकर इतने अजीब होते हैं की न चाहते हुए भी उस और ध्यान चला जाता है और भगवन की मूर्ति पर दूर से फेकते नारियल को देखकर मन दुखित होता है की यदि आपके पास समय नहीं है इतना की आप मंदिर में कुछ पलों तक का इंतजार नहीं कर सकते तो मंदिर जाना ही नहीं चहिये अपितु घर में ही वो नारियल भगवन को चढ़ा दें ताकि शिवप्रतिमा खंडित होने से बचे इस तरह के भक्ति भाव शायद भगवन को भी महंगे पड़ते हैं और आप पुण्य के बदले पाप के भागिदार बनते हो ये सब बातें एइसे दृश्य देखने के बाद मेरे मन में आई और बस यह बात आप सबसे शेयर कर दी ..
आपने सही कहा सामर्थ्यवान भक्त इसी तरह से गरीब लाचार और दुखियों की सेवा से भगवन की पूजा का पुण्य प्राप्त कर सकते हैं
.पुनः आभार के साथ धन्यवाद भाई .

internetpremi
23-10-2015, 05:06 PM
एक चुटकुला :
गरीबों और अमीरों के बीच क्या अन्तर है?

उत्तर: गरीब मन्दिर के बाहर भीख माँगते हैं और अमीर मन्दिर के अन्दर।

==========

आपके विचारों से सहमत हूँ।
मेरी राय में भी, दूध, नारियल, चावल, घी, वगैरह की बरबादी नहीं होनी चाहिए
चाहे तो शास्त्रों की औपचारिकताएं पूरी करने के लिए, एक या दो चमच दूध/घी/शहद वगैरह प्रसाद चढाकर, बाकी मन्दिरों में गरीब भक्तों मे बाँट दिया जाए.

यू एस ए में मन्दिर बहुत कम हैं और भीड भी बहुत कम। पर साफ़ होते हैं और भक्तों की अनुशासन में कोई कमी नहीं।
यहाँ भारत में कई मन्दिरों में जाने में मुझे हिचक होती है। यू एस ए में खुशी खुशी से जाता हूँ।

gv

rajnish manga
23-10-2015, 05:50 PM
एक चुटकुला :
गरीबों और अमीरों के बीच क्या अन्तर है?

उत्तर: गरीब मन्दिर के बाहर भीख माँगते हैं और अमीर मन्दिर के अन्दर।

==========

आपके विचारों से सहमत हूँ।
मेरी राय में भी, दूध, नारियल, चावल, घी, वगैरह की बरबादी नहीं होनी चाहिए
चाहे तो शास्त्रों की औपचारिकताएं पूरी करने के लिए, एक या दो चमच दूध/घी/शहद वगैरह प्रसाद चढाकर, बाकी मन्दिरों में गरीब भक्तों मे बाँट दिया जाए.

यू एस ए में मन्दिर बहुत कम हैं और भीड भी बहुत कम। पर साफ़ होते हैं और भक्तों की अनुशासन में कोई कमी नहीं।
यहाँ भारत में कई मन्दिरों में जाने में मुझे हिचक होती है। यू एस ए में खुशी खुशी से जाता हूँ।

gv

आपके चुटकले और मंदिर व्यवस्था पर टिप्पणी ने मुझे बहुत प्रभावित किया. आपके विचारों का मैं पूरी तरह समर्थन करता हूँ. यही कारण है कि विशेष पर्वों के अवसर पर मैं मंदिर जाना अवॉयड करता हूँ या उस समय जाना पसंद करता हूँ जब भीड़ भाड़ न हो.

soni pushpa
24-10-2015, 12:04 PM
[QUOTE=internetpremi;555847]एक चुटकुला :
गरीबों और अमीरों के बीच क्या अन्तर है?

उत्तर: गरीब मन्दिर के बाहर भीख माँगते हैं और अमीर मन्दिर के अन्दर।

==========

आपके विचारों से सहमत हूँ।
मेरी राय में भी, दूध, नारियल, चावल, घी, वगैरह की बरबादी नहीं होनी चाहिए
चाहे तो शास्त्रों की औपचारिकताएं पूरी करने के लिए, एक या दो चमच दूध/घी/शहद वगैरह प्रसाद चढाकर, बाकी मन्दिरों में गरीब भक्तों मे बाँट दिया जाए.

यू एस ए में मन्दिर बहुत कम हैं और भीड भी बहुत कम। पर साफ़ होते हैं और भक्तों की अनुशासन में कोई कमी नहीं।
यहाँ भारत में कई मन्दिरों में जाने में मुझे हिचक होती है। यू एस ए में खुशी खुशी से जाता हूँ

बहुत बहुत धन्यवाद विश्वनाथ जी इस सूत्र पर आपने अमूल्य विचार रखने के लिए .. भक्ति अछि है किन्तु उसके अतिरेक से भगवन को कष्ट न हो ये भी हमें देखना चाहिए हम जानते हैं की हमारे शास्त्रों में पूजा के लिए कई नियम है तो भावुक होकर उस नियमो का उल्लंघन करना कदापि उचित नहीं लगता मुझे हमारे ऋषि मुनियों ने शायद इसी वजह से नियम बनाये हैं किन्तु आज के समय में इंसान बस भाग रहा है हर बात में उसे जल्दी है पूजा भी करनी है उसे और समय भी नहीं एइसे समय में या तो मंदिरे में जाकर भगवन पर नारियल न फेके या फिर आपने घर में शांति से पूजा करे क्यूंकि भगवन तो हर जगह है जरुरत है तो सिर्फ सच्चे दिल से उन्हें पुकारने की १५ रूपए के एक नारियल या १०० तोले सोने की चैन से ही भगवन रिझते हैं एइसा तो नहीं न ?

रही बात विदेशो की तो वहां जनसँख्या कम होने की वजह से और साक्षरता की वजह से लोग अनुशासन में रहते हैं . हमारे यहाँ लोगो के मन भावुकता से भरे होते हैं और आपनी भावुकता में वो पूजा के नियम भूल जाते हैं.. शायद इसलिए ही भगवान भी सब सह लेते हैं

Rajat Vynar
24-10-2015, 12:40 PM
एइसे समय में या तो मंदिरे में जाकर भगवन पर नारियल न फेके या फिर आपने घर में शांति से पूजा करे क्यूंकि भगवन तो हर जगह है जरुरत है तो सिर्फ सच्चे दिल से उन्हें पुकारने की

कदाचित् आपकी दृष्टि में देवी-देवताओँ की होने वाली चल प्रतिष्ठा, अचल प्रतिष्ठा और सिद्धपीठ इत्यादि में कोई अन्तर नहीं?

rajnish manga
24-10-2015, 03:14 PM
कहा जाता है कि भगवान् भाव के भूखे हैं. एक सरल हृदय किंतु आस्थावान भक्त को टेक्नीकेलिटीज़ में जाने की ज़रूरत नहीं पड़ती. हाँ, विद्वान्, खोजी व तार्किक व्यक्ति के लिए अध्ययन करने के वास्ते और भारतीय दर्शन को समझने के लिए विपुल साहित्य उपलब्ध है.

soni pushpa
25-10-2015, 12:35 PM
कदाचित् आपकी दृष्टि में देवी-देवताओँ की होने वाली चल प्रतिष्ठा, अचल प्रतिष्ठा और सिद्धपीठ इत्यादि में कोई अन्तर नहीं?

pratishthha koi bhi or kisi bhi tarah ki ho rajat ji sabme ek bat ka dhyan rakhna bahut jaruri hota hai ki hamare dwara ki hui puja se (jaise ki maine pahale likha hai ki shivling par sabke mathe se hokar nariyal bhagwan par ko samrpit kiya gaya ) bhagwan ki murti ko lage nahi etna dhyan rakhna behad jaruri hai .

टिपण्णी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

Rajat Vynar
25-10-2015, 03:40 PM
शायद आप अभी मेरी बात ठीक से समझ नहीं पाईं। ईश्वर के सर्वव्यापी होने के सिद्धान्त को सभी जानते हैं, किन्तु घर पर बने मन्दिर में पूजा करने के फल में और सिद्धपीठ मंदिर में पूजा करने के फल में अन्तर होता है। यही कारण है यदि स्वयं विष्णु भगवान आकर भक्तों के घर में बने मन्दिर में बैठ जाएँ और रोज़ सुबह-शाम अपने हाथ से भक्तों को प्रसाद खिलाएँ तो भी भक्तगण तब तक तृप्त नहीं होंगे जब तक उन्हें तिरुपति के मंदिर के दर्शन का टिकट न मिल जाए। घर के मंदिर में खुद भगवान बैठे हैं जैसी बातों पर कौन यकीन करेगा? लोग तो तभी यकीन करेंगे जब आप तिरुपति में दर्शन करके बड़े साइज़ वाला लड्डू प्रसाद के रूप में उनके हाथ में न थमा दें। नहीं तो आपको लोग नास्तिक और ईश्वर विरोथी ही समझेंगे। अतः दर्शन का टिकट पाने के लिए भक्तगण संघर्ष करते ही रहेंगे।

भगवान के ऊपर नारियल इत्यादि फेंके जाने की घटना से आप व्यथित लग रही हैं, किन्तु हम तो यही समझते हैं कि यह तो भगवान की इच्छा है। भगवान को ज़रा भी भक्तों के नारियल फेंकने से कष्ट होता तो वे स्वयं इस पद्धति को परिवर्तित करके भक्तों को दर्शन देते। भगवान कोई मनुष्प तो हैं नहीं जो उन्हें नारियल जैसी छोटी वस्तु से चोट लग जाए, क्योंकि ईश्वर को सर्वशक्तिमान कहा गया है। हम मनुष्य भगवान के ऊपर हिमालय पर्वत फेंक कर भी उन्हें चोट नहीं पहुँचा सकते।

Deep_
25-10-2015, 04:15 PM
सही बात है पुष्पा जी। में एक ओर बात जोड़न चाहूंगा की कभी भी नारियल या फुल को मुर्ति की ओर फैंकना नहीं चाहिए। आप फुलों को उछाल कर अर्पित कर सकते है। नारियल भी केवल अग्नि में आहुति के समय उछाल सकतें है अगर अग्नि बहुत तेज हो।

रही बात शिवलिंग पर दूध चढाने की तो खास कर के omg फिल्म के रिलीझ के बाद कई एसे विडीयो और लेखनी सामने आई जो कुछ यह कहती थी.....

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ईश्वर तो मा-बाप है। मां-बाप को बच्चे चाहे गलती से या जानबुज कर उन्हें चोट पहुंचाएंगे फिर भी वह नाराज कभी नहीं होंगे। ईश्वर तो सर्वव्यापी है ही, चाहे कोई माने न माने, समज़े न समज़े, देख पाए या न देख पाए।

soni pushpa
25-10-2015, 11:42 PM
शायद आप अभी मेरी बात ठीक से समझ नहीं पाईं। ईश्वर के सर्वव्यापी होने के सिद्धान्त को सभी जानते हैं, किन्तु घर पर बने मन्दिर में पूजा करने के फल में और सिद्धपीठ मंदिर में पूजा करने के फल में अन्तर होता है। यही कारण है यदि स्वयं विष्णु भगवान आकर भक्तों के घर में बने मन्दिर में बैठ जाएँ और रोज़ सुबह-शाम अपने हाथ से भक्तों को प्रसाद खिलाएँ तो भी भक्तगण तब तक तृप्त नहीं होंगे जब तक उन्हें तिरुपति के मंदिर के दर्शन का टिकट न मिल जाए। घर के मंदिर में खुद भगवान बैठे हैं जैसी बातों पर कौन यकीन करेगा? लोग तो तभी यकीन करेंगे जब आप तिरुपति में दर्शन करके बड़े साइज़ वाला लड्डू प्रसाद के रूप में उनके हाथ में न थमा दें। नहीं तो आपको लोग नास्तिक और ईश्वर विरोथी ही समझेंगे। अतः दर्शन का टिकट पाने के लिए भक्तगण संघर्ष करते ही रहेंगे।

भगवान के ऊपर नारियल इत्यादि फेंके जाने की घटना से आप व्यथित लग रही हैं, किन्तु हम तो यही समझते हैं कि यह तो भगवान की इच्छा है। भगवान को ज़रा भी भक्तों के नारियल फेंकने से कष्ट होता तो वे स्वयं इस पद्धति को परिवर्तित करके भक्तों को दर्शन देते। भगवान कोई मनुष्प तो हैं नहीं जो उन्हें नारियल जैसी छोटी वस्तु से चोट लग जाए, क्योंकि ईश्वर को सर्वशक्तिमान कहा गया है। हम मनुष्य भगवान के ऊपर हिमालय पर्वत फेंक कर भी उन्हें चोट नहीं पहुँचा सकते।


आपकी बात का जवाब आपकी ही टिपण्णी में है रजत जी ..धन्यवाद