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View Full Version : कुछ सीख देने वाली कहानियाँ (inspiring stories)


Sikandar_Khan
08-12-2010, 07:09 PM
प्रस्तुत है एक अन्य कथानक ..........

कभी यों होता कि उनके आफिस से आने का समय हो जाता और मैं घर जाना चाहती थी किन्तु रफ्फो फूफू मेरा हाथ ना छोडती / अब मैं उन्हें कैसे समझाऊँ कि मेरे यहाँ आने से वो कितने खफा होते हैं / ऐसे वक्त में फिर साजिदा की अम्मी बुदबुदा उठातीं, " नामुराद कमबख्त बला की तरह चिपट गयी है बेचारी की जान को.... वह भी तो घर बाहार वाली है / हर वक्त तेरी वहशतनाक सूरत कहाँ तक देखे / "

( पूरी कहानी नहीं है अतः तनिक प्रकाश डालना चाहूँगा रफ्फो फूफू पर ..." रफ्फो फूफू को प्रथम बार देख कर मेरी चीख ही निकल गयी थी / खौफ के मारे मेरे हाथ पैर ठन्डे पड़ गए थे / मेरे सामने एक चुड़ैल खड़ी थी / उसका मुँह चील कौवों ने नोच खाया था / आँखों की जगह सुर्ख गड्ढे थे और नाक से ठोडी तक कहीं गोश्त और खाल न थी / ............... बगैर होंठो की हिलती हुई बत्तीसी देख कर मेरे पसीने छूट जाते थे / .......... अब जरा मैंने इत्मीनान से उन्हें देखा / उसके स्याह ( काले )बाल और सुडौल जिस्म पच्चीस तीस बरस से ज्यादा का ना था / गुलाबी गुलाबी सी रंगत थी / उनके हाथ तो इतने खूबसूरत थे कि ऐसे गुलाबी सुडौल हाथ केवल चुगताई की तस्वीरों में नजर आते हैं / ............ मेरे दिल में उनका एहतिराम (सम्मान ) बढ़ता ही जा रहा था / मैं सोचने लगी, ' ऐसे लोग दुनिया में कितने कम होते हैं जिनके चेहरे जल गए हों किन्तु दिल स्याह न पडा हो '/..... एक दिन मैं जब चलना चाहती थी तो उन्होंने मेरी साड़ी पकड़ ली और बोली, " तुम्हारी साड़ी बहुत महक रही है /"
- यह सेंट उन्होंने लाकर दिया है /
-नहीं.... हमसे मत छिपाओ ... यह तो प्यार की खुशबू है /' उनकी चिर परिचित बत्तीसी फ़ैल गयी /
- आपको इस खुशबू की बड़ी पहचान है ... तब तो हम भी आपका दुपट्टा सूघेंगे / ' मैंने उनका दुपट्टा थामना चाहा तो वे लरज कर पीछे हट गयी और बोली , " हमसे ऐसा मजाक मत करना वरना हम खफा हो जायेंगे / ")

घर आती तो वे खफा होते / उन्हें जाने क्यों रफ्फो फूफू इतनी बुरी लगती थी / अब तो मेरी सभी लापरवाहियों का इल्जाम रफ्फो फूफू पर लगाते / एक दिन मैं उनसे लड़ पडी, " आप तो उनसे ऐसे जलते हैं जैसे वो आपकी रकीब (प्रतिद्विन्दी) हो "/
उन्हें भी गुस्सा आ गया , " मैं खूब समझता हूँ ऐसी औरतों को / अब कोई मर्द तो उसकी सूरत पर थूकेगा भी नहीं इसलिए आपको अपने जाल में फांस रही है /"
"आप मुझे ज़लील औरत समझते है /" बेबसी के मारे मैं रो पडी /
उसदिन हम दोनों खूब लड़े / मगर यह हमारी पहली लड़ाई थी इसलिए उन्होंने मुझे फ़ौरन मना लिया / मैंने उसी दिन रफ्फो फूफू से कभी ना मिलने की कसम खा ली थी / आखिर उन्हें हथियार डालना पडा और तीन दिनों के बाद वह खुद मुझे जीने तक छोड़ने आये जो रफ्फो फूफू के सहन में खुलता था /

मुझे डर था कि तीन दिनों तक ना आने से रफ्फो फूफू ने ना जाने अपना क्या हाल किया होगा ( आज कल वो मेरे साथ थी दोपहर का खाना खाती थी अन्यथा अगली दोपहर तक भूखी ही रहती थी /) मुझसे बहुत खफा होंगी किन्तु वे हस्बे-आदत (स्वभावानुसार) उसी बेताबी से मेरी ओर दौड़ी /
- रफ्फो फूफू, मैं तीन दिन तक तुम्हारे पास नहीं आ सकी/ बात यह हुई कि......
-ऊँह, बात कुछ भी हो' ...उन्होंने मेरी बात काटते हुए कहा , " मैं जानती हूँ कि कोई आखिर मुझे क्यों पसंद करेगा / तुम्हारे मियाँ भी मुझसे मिलने पर खफा होते होंगे ?"
-नहीं, अल्लाह.... आप कैसी बातें करती हैं," मैंने हैरानी से यह बात कही और सोचने लगी कि इन्हें किसने बताया /
-मुझे इतना बेवकूफ मत समझो , नूरी! " आज वे कुछ अधिक संजीदा ( गंभीर ) हो रही थी ," मैंने हिमाकत में हमेशा चलती हवाओं को पकड़ने की कोशिश की है /"
- रफ्फो फूफू! मुझे मुआफ कर दीजिये! " मेरे अन्दर इससे अधिक कुछ कहने की ताब ना थी /
-मुआफी काहे की चन्दा! उन्होंने बड़े प्यार से मेरे कंधे पर हाथ रखा, " क्या मैं यह बात नहीं जानती कि तुम्हारे मियाँ क्या चाहते होंगे..... मुझे तुम इसी लिए अच्छी लगती हो कि कोई तुम्हे इतना चाहता है/"
-रफ्फो फूफू!' मैं चिल्ला पडी / " वह कौन जालिम था जिसने तुम्हारी आँखों में तेज़ाब दाल दिया था /" मैं सचमुच रो पडी थी / रफ्फो फूफू का दिन सचमुच कितना सरल और साफ़ था /
- पागल! यह तुमसे किसने कहा कि किसी ने मेरी आँखों में तेज़ाब डाला है ? अरे ... मैंने तो खुद अपनी आँखे फोडी हैं /"
-सच ?" मैं उछल पडी इस हकीकत से /
-हाँ! ' उनका पूरा बदन काँप रहा था , "तुम ज़रा सोचो कि जो हमारी जान भी हो और हमारी रूह भी, जिसकी मुहब्बत पर हमें अपने वजूद की तरह यकीन हो , वह अचानक बदल जाए .. तो.." उनकी आँखों के गड्ढों में जैसे खून उतरने को था, " नज़्म मेरी आँखों में बार बार झाँकता था/ रफ्फो! क्या बात है! तुम्हारी आँखों के अन्दर मेरी सूरत ही नज़र आती है /उसकी यह बात सुनकर मेरा जी चाहता कि मैं अपनी आँखों को कस कर बंद कर लूँ ताकि वह फिसल ना जाए / और फिर नज़्म मुझसे बदल गया......... / एक करोडपति की दौलत ने उसे खीच लिया / मुझे लोगों के कहने पर यकीन ना आता था / फिर उसने खुद आकर मुझसे कहा कि उसके अब्बाजान जबरदस्ती उसकी शादी वहाँ करवा रहे रहे हैं / यह सुन कर मैं चुप रही / मैंने उसकी दुल्हन के लिए खुद कपडे तैयार किये / रात रात भर जाग कर आँगन में गीत गाये/ जो चीज हमारे लिए नहीं उसके लिए हम क्यों रोयें? फिर दरवाजे पर शहनाईयाँ गूँज उठी जो हमेशा से मेरे कानों में बसी हुई थी /मैंने कितने हज़ार बार यह ख्वाब देखा था कि घर रोशनियों से जगमगा रहा है / आँगन में मीरासिने गा रही हैं / और नज़्म की बहने अपने जगमगाते दुपट्टे उसके सेहरे पर डाले उसे मसनद की तरफ ला रही हैं / तभी कोइ जोर से चिल्लाया.. " नज़्म की दुल्हन कहाँ है ?" और पान बनाते बनाते मैं रुक गयी / उसके बाद मैं अपने घर की तरफ तेजी से भागी / फिर सभी मुझे ढूँढने निकलें कि मैं नज़्म की दुल्हन देखूं / नज़्म खुद आया /
"मैं तुम्हारी दुल्हन नहीं देखूँगी / कहीं उसने मेरी आँखों में तुम्हे देख लिया तो ?" मैंने नज़्म से कहा /
यह सुन कर नज़्म चला गया मगर उसकी दुल्हन खुद अन्दर आ गयी / मैं घबरा कर भाई जान की डिस्पेंसरी में भागी और तेज़ाब की बोतल अपने चेहरे पर उड़ेल ली / " उफ्फ्फाह ... मुझे किस कदर सुकून मिला था उस दिन .." रफ्फो फूफू ने इत्मीनान से कहा ," जैसे मेरी जलती हुई आँखों में किसी ने बर्फ की डलियाँ (टुकड़े) रख दी हों जैसे कलेजे की आग पर किसी ने ठंडा पानी डाल दिया हो /"
- मगर रफ्फो फूफू, आँखे इतनी सस्ती तो नहीं होती कि एक सख्स के लिए बंद कर ली जाएँ " मैंने आखिर पूँछ ही लिया /
- मुझे आँखे जलाने से कोई तकलीफ नहीं हुई चन्दा! " उन्होंने बड़ी मुहब्बत से मेरे हाथ थाम लिए, " मैं अब भी अपना हर काम कर लेती हूँ, और फिर वह आँखे मेरी कहाँ रही थी जिनमे नज़्म बसा था /"
मैंने उनके ठंडे गुलाबी हाथ पकड़ लिए /" जाने नज़्म साहब आपके हाथ कैसे भूल सके होंगे ? सच्ची रफ्फो फूफू! मैं तो आपके हाथो पर मरती हूँ /"
-हाय अल्ला! यूँ न कहो भई! " वह खुश हो गयीं " कहीं यह हाथ मैं तुम्हे न दे दूं /"
फिर हम दोनों हँस पड़े /

(साभार: "बे-मसरफ हाथ" द्वारा: "जीलानी बानो" )
__________________

Sikandar_Khan
08-12-2010, 07:12 PM
A man came home from work late, tired & irritated, to find his 5 years old son waiting for him at the door.

"Daddy, may I ask you question?"

"Yes sure, what is it?" replied the man.

"Daddy, how much do you make an hour?"

"That's none of your business. Why do you ask such a thing?" the man said angrily.

"I just wanted to know, please tell me , how much do oyu make an hour?" pleaded the little boy.

"If you must know, I make $20 an hour".

"oh, the little boy replied, wih his head down.Then looking up he said, "Daddy, can I please burrow $10".

The father was furious."If this is the only reason you asked so that you can burrow some money to buy a silly toy some other nonsense, then you march straight to your room & go to bed & think about why you are being so selfish.

"I work long hard hours everyday & dont have time for this childish behaviour.

The little boy quietly went to his room & shut the door.

The man sat down & started getting even angrier about the little boy's question."How dare he ask me scuh questions only to get some money?".

After about half an hour or so the man calmed down & started to think that he may have been a little hard on his son. May be there is something he really needed to buy that & so he reall didnt ask for money very often.

The man went to the door of the little boy's room & opened the door."Are you alseep , son?". he asked.

"No. Daddy. I am awake". replied the boy.

"I have been thiking, may be I was too hard on you earlier". said the man."It's been a long day & I took out my aggravation on you.Here's the $10 you asked for".

The little boy stood set uo straight, smiling,"Oh, thank you Daddy!" he yelled.

Then, reaching under his pillow he pulled out some crumbled up bills.

The man seeing that the boy already had money, started to get angry again.

The little boy slowly counted out his money, then looked up at his father.

"Why do you want more money, if you already have some?". The father grumbled.

"Because I didnt have enough, but now I do."The little boy replied."Daddy , I have $20 no. Can I buy an hour of your time?.Please come home early tomorrow.I would like to have dinner with you".


Share this story with someone you like....but even better share $20 worth of time with someone you love.

Its just a short reminder to all of you working so hard in life. We should not let time slip through our fingers
without having spent time with those who really matter to us, those close to our hearts.

Sikandar_Khan
08-12-2010, 07:26 PM
चाहत के नज़रिए में अक्सर ऐसा होता है ,की हर किसी को सच्चा चाहनेवाला नहीं मिलता और जिस मिलता है , वो उसकी सच्चाई को सम्जहने में बहुत देर कर जाते है , तब तक चाहनेवाले के दिल से चाहत का नज़रिए करवट बदल लेता क्यों चाहेंवाले को ये एहसास होता है , की वो मोहरा बन चूका है , और उसका पूरा नजरिया अपनी ही चाहत के लिए बदल जाता है ,क्योकि उसकी चाहत को समझने के लिए लोग वक़्त नहीं देते जिसे वो चाहता वो भी उसको वक़्त नहीं देते और लड़का एक चाहत की खातीर अपनी ज़िन्दगी को मौत के हवाले कर देने तक के लिए राज़ी हो जाता है , तब कही हमारी आखे खुलती है , मगर तब तक सब कुछ बिखर चूका होता है .
अब सोचिये की एक लड़के ने यदि एक लड़की को चाह और यदि लड़की उसकी चाहत को नहीं समझ पाई और लड़के ने जान दे दी ,
इस चाहत के सामने उस माँ का 9 महीने का प्यार और उस लड़के को पाल पोसकर बड़ा करने तक का माँ -बाप का प्यार इतना छोटा कैसे हो जाता है की लड़का जान दे देता है , क्या प्यार जान से बड़ा है , या उस माँ -बाप का प्यार की कोई अहमियत नहीं इस प्यार
के सामने ?

ABHAY
08-12-2010, 07:30 PM
क्या बात है बहुत ही अच्छा सूत्र है भाई मजा आ गया लगे रहे :party:

pooja 1990
08-12-2010, 08:33 PM
Ama miya maja aa gaya.lage raho barkat karoge

khalid
08-12-2010, 08:42 PM
अच्छा सुत्र हैँ सिकन्दर भाई कृप्या और आगे बढाऐँ

Kumar Anil
10-12-2010, 04:28 PM
"Daddy , I have $20 no. Can I buy an hour of your time?.Please come home early tomorrow.I would like to have dinner with you".
We should not let time slip through our fingers
without having spent time with those who really matter to us, those close to our hearts.

दिल को दस्तक देने वाली इस भावप्रवण , सुंदर , मार्मिक पोस्ट ने झिँझोड़ डाला । काश इस शिक्षाप्रद लघुकथा से हम कुछ सीख ले सकेँ । सिकन्दर भाई , आपको इसके लिए ढेरोँ बधाई ।

Sikandar_Khan
10-12-2010, 05:55 PM
क्या बात है बहुत ही अच्छा सूत्र है भाई मजा आ गया लगे रहे :party:

ama miya maja aa gaya.lage raho barkat karoge

अच्छा सुत्र हैँ सिकन्दर भाई कृप्या और आगे बढाऐँ

"daddy , i have $20 no. Can i buy an hour of your time?.please come home early tomorrow.i would like to have dinner with you".
We should not let time slip through our fingers
without having spent time with those who really matter to us, those close to our hearts.

दिल को दस्तक देने वाली इस भावप्रवण , सुंदर , मार्मिक पोस्ट ने झिँझोड़ डाला । काश इस शिक्षाप्रद लघुकथा से हम कुछ सीख ले सकेँ । सिकन्दर भाई , आपको इसके लिए ढेरोँ बधाई ।
आप सभी का हार्दिक आभार मित्रों

Sikandar_Khan
10-12-2010, 07:10 PM
काँच की बरनी और दो कप चाय जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी - जल्दी करने की इच्छा होती है , सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है , और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम
पड़ते हैं , उस समय ये बोध कथा , " काँच की बरनी और दो कप चाय " हमें याद आती है ।

दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं .

उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी ( जार ) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने
की जगह नहीं बची ... उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ .
आवाज आई ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे - छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये धीरे
- धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समा गये , फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्या अब बरनी भर गई है , छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ
... कहा अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले - हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया , वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई , अब छात्र अपनी नादानी पर
हँसे ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? हाँ
.. अब तो पूरी भर गई है .. सभी ने एक स्वर में कहा .. सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली , चाय भी रेत के बीच स्थित
थोडी़ सी जगह में सोख ली गई .

प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया –


इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो ..

टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान , परिवार , बच्चे , मित्र , स्वास्थ्य और शौक हैं , छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी , कार , बडा़ मकान आदि हैं , और
रेत का मतलब और भी छोटी - छोटी बेकार सी बातें , मनमुटाव , झगडे़ है .. अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती , या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते , रेत जरूर आ सकती थी ... ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है ... यदि तुम छोटी - छोटी बातों के पीछे
पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा ... मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है । अपने बच्चों के साथ खेलो , बगीचे में पानी डालो , सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ , घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको , मेडिकल चेक - अप करवाओ ... टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो , वही महत्वपूर्ण है ... पहले तय करो कि क्या जरूरी है
... बाकी सब तो रेत है .
छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे .. अचानक एक ने पूछा , सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि " चाय के दो कप " क्या हैं ? प्रोफ़ेसर मुस्कुराये , बोले .. मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया .
इसका उत्तर यह है कि , जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे , लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये ।


दोस्तों मैने ये कहानी पङी तो मुझे लगा की आप सब के साथ भी ईस कहानी को बाँटू उम्मीद है आप सब को भी ये कहानी पसंद आऐगी ।।

Sikandar_Khan
10-12-2010, 07:12 PM
मासूम सज़ा

एक दिन बादशाह अकबर ने दरबार में आते ही दरबारियों से पूछा – किसी ने आज मेरी मूंछें नोचने की जुर्रत की। उसे क्या सज़ा दी जानी चाहिए।

दरबारियों में से किसी ने कहा – उसे सूली पर लटका देना चाहिए, किसी ने कहा उसे फाँसी दे देनी चाहिए, किसी ने कहा उसकी गरदन धड़ से तत्काल उड़ा देनी चाहिए।

बादशाह नाराज हुए। अंत में उन्होंने बीरबल से पूछा – तुमने कोई राय नहीं दी!
बादशाह धीरे से मुस्कराए, बोले - क्या मतलब?
जहाँपनाह, ख़ता माफ हो, इस गुनहगार को तो सज़ा के बजाए उपहार देना चाहिए – बीरबल ने जवाब दिया। जहाँपनाह, जो व्यक्ति आपकी मूँछें नोचने की जुर्रत कर सकता है, वह आपके शहजादे के सिवा कोई और हो ही नहीं सकता जो आपकी गोद में खेलता है। गोद में खेलते-खेलते उसने आज आपकी मूँछें नोच ली होंगी। उस मासूम को उसकी इस जुर्रत के बदले मिठाई खाने की मासूम सज़ा दी जानी चाहिए – बीरबल ने खुलासा किया।

बादशाह ने ठहाका लगाया और अन्य दरबारी बगलें झांकने लगे।

Sikandar_Khan
10-12-2010, 07:20 PM
A Glass Of Milk
One day, a poor boy who was selling goods from door to door to pay his
way through school, found he had only one thin dime left,
and he was hungry. He decided he would ask for a
meal at the next house.
However, he lost his nerve when a lovely young woman opened the door.
Instead of a meal he asked for a drink of water.
She thought he looked hungry so brought him a large glass of milk.

He drank it slowly, and then asked, "How much do I owe you?"
"You don't owe me anything," she replied. "Mother has taught us never
to accept pay for a kindness."
He said..... "Then I thank you from my heart."
As Howard Kelly left that house, he not only felt
stronger physically,
but his faith in God and man was strong also. He
had been ready to give up and quit.

Year's later that young woman became critically ill. The local doctors
were baffled. They finally sent her to the big
city, where they called
in specialists to study her rare disease. Dr. Howard Kelly was called in
for the consultation. When he heard the name of
the town she came from,
a strange light filled his eyes. Immediately he rose and went down the
hall of the hospital to her room.

Dressed in his doctor's gown he went in to see her. He recognized her
at once.
He went back to the consultation room determined
to do his best to save
her life. From that day he gave special attention to the case.

After a long struggle, the battle was won. Dr. Kelly requested the
business office to pass the final bill to him for approval. He looked
at it, then wrote something on the edge and the
bill was sent to her room.
She feared to open it, for she was sure it would
take the rest of her life
to pay for it all. Finally she looked, and
something caught her attention on the side of the bill.

She read these words....."Paid in full with one
glass of milk" (Signed)
Dr. Howard Kelly.

Video Master
10-12-2010, 09:08 PM
सिकंदर भाई बहुत अच्छा सूत्र शुरू किया है ....
बहुत अच्छी प्रस्तुति दी
में भी कोशिश करुगा की मैं भी अपना योगदान दे सकू धन्यवाद

Sikandar_Khan
11-12-2010, 07:51 AM
सिकंदर भाई बहुत अच्छा सूत्र शुरू किया है ....
बहुत अच्छी प्रस्तुति दी
में भी कोशिश करुगा की मैं भी अपना योगदान दे सकू धन्यवाद

रोहित जी
आपका हार्दिक आभार

Sikandar_Khan
11-12-2010, 07:24 PM
इक बूढी , इक बूढा और इक छोटा सा कमरा .................

आज के व्यस्त माहौल से कुछ समय निकला है ,
और इक अजीज के घर डेरा डाला है .
पंहुचा दरवाजे पर तो गजब का सत्कार हुआ ,
नास्ते पानी का बेहतरीन व्यवहार हुआ .
भाभी जी ने मुस्कुरा कर नमस्कार किया ,
भतीजी भतीजों ने झुक कर प्रणाम किया .
हालचाल के सिलसिले की शुरुआत हुई ,
कुछ पुरानी यादों की भी बात हुई .
पर मेरा ध्यान तो उनके बंगले पर था ,
उसके कंगूरों और आँगन के जंगले पर था .
थकहार कर मैंने उनसे पूँछ ही डाला ,
क्या तुमने था कही पर डाका डाला .
तो मुस्कुराकर महाशय जी बोले ,
की मेरे हिस्से में आये थे इतने ही धेले .
उनसे ही यह घर बनवाया है ,
कालीन और सब साज से सजवाया है .
देखो कितनी मेहनत से डिजाईन करवाया था ,
बड़े मुश्किल से बाबूजी को पटाया था .
इतना सुनते ही मेरे मन में इक बात आई ,
उनके माँ -बाबू जी की हमे याद आई .
बस मैं झट से बोला की बाबूजी से मिलवाओ ,
जरा माता जी के भी दर्शन करवाओ .
इतना सुनकर भाभी जी ने मेरी और चाय बढाई ,
और बोली की मिल लेना अभी तो आप आये है भाई .
पर मैं "अंजना " हूँ अपनी जिद का पक्का था ,
अब उनसे ही मिलने का इरादा कर रखा था .
हार कर मित्र मुझे बंगले के पीछे ले जाते है ,
और इक छोटा सा कमरा मुझे दिखाते है .
उक कमरे में इक बूढा इक टूटी चारपाई पर लेटा है ,
ना कोई साज है न कोई सज्जा का रेता है .
इक बुढिया बूढ़े के पैर दबाती है ,
नम आँखों को अपने अंचल से छुपाती है .
इतना देखकर सारा नज़ारा साफ़ हुआ ,
धन का भूत मेरे सिर से ख़ाक हुआ .
हे रे मानुष !! तू अपने कर्मो पे शर्मा तो जरा !
इक बूढी , इक बूढा और इक छोटा सा कमरा .................इक छोटा सा कमरा

Sikandar_Khan
13-12-2010, 06:43 PM
चाणक्य एक जंगल में झोपड़ी बनाकर रहते थे। वहां अनेक लोग उनसे परामर्श और ज्ञान प्राप्त करने के लिए आते थे। जिस जंगल में वह रहते थे, वह पत्थरों और कंटीली झाडि़यों से भरा था। चूंकि उस समय प्राय: नंगे पैर रहने का ही चलन था, इसलिए उनके निवास तक पहुंचने में लोगों को अनेक कष्टों का सामना करना पड़ता था। वहां पहुंचते-पहुंचते लोगों के पांव लहूलुहान हो जाते थे।

एक दिन कुछ लोग उस मार्ग से बेहद परेशानियों का सामना कर चाणक्य तक पहुंचे। एक व्यक्ति उनसे निवेदन करते हुए बोला, ‘आपके पास पहुंचने में हम लोगों को बहुत कष्ट हुआ। आप महाराज से कहकर यहां की जमीन को चमड़े से ढकवाने की व्यवस्था करा दें। इससे लोगों को आराम होगा।’ उसकी बात सुनकर चाणक्य मुस्कराते हुए बोले, ‘महाशय, केवल यहीं चमड़ा बिछाने से समस्या हल नहीं होगी। कंटीले व पथरीले पथ तो इस विश्व में अनगिनत हैं। ऐसे में पूरे विश्व में चमड़ा बिछवाना तो असंभव है। हां, यदि आप लोग चमड़े द्वारा अपने पैरों को सुरक्षित कर लें तो अवश्य ही पथरीले पथ व कंटीली झाडि़यों के प्रकोप से बच सकते हैं।’ वह व्यक्ति सिर झुकाकर बोला, ‘हां गुरुजी, मैं अब ऐसा ही करूंगा।’

इसके बाद चाणक्य बोले, ‘देखो, मेरी इस बात के पीछे भी गहरा सार है। दूसरों को सुधारने के बजाय खुद को सुधारो। इससे तुम अपने कार्य में विजय अवश्य हासिल कर लोगे। दुनिया को नसीहत देने वाला कुछ नहीं कर पाता जबकि उसका स्वयं पालन करने वाला कामयाबी की बुलंदियों तक पहुंच जाता है।’ इस बात से सभी सहमत हो गए।

Sikandar_Khan
13-12-2010, 06:47 PM
एक छोटा सा गाँव था गाँव का नाम क्या था इससे हमारी कहानी का कोई लेना देना नहीं है | ये एक न्यायी राजा के राज्य का हिस्सा था | राज्य व राजा का नाम भी हमारी कहानी का हिस्सा नहीं है | अब चलते हैं मतलब की बात पर | इस गाँव में एक किसान के घर एक होनहार बालक का जन्म हुआ | किसान ने उसकी प्रतिभा को देखकर उसे काशी पढ़ने भेज दिया | समय बीतता गया और एक दिन वो बालक एक युवा आचार्य बनकर पुनः गाँव वापस आया |
एक दिन प्रातः काल आचार्य जी स्नानादि करने के पश्चात सूर्य-अर्घ्य दे रहे थे | अर्घ्य देते समय उन्होंने बुदबुदाते हुए प्रार्थना की-
“प्रीती बड़ी माता की, और भाई का बल ;
ज्योति बड़ी किरणों की, और गंगा का जल ||”
आचार्य जी का इतना कहना क्या के पास से गुजरती धोबन ने अपने गधे को एक जोरदार डंडा मारा और कहा -
“चल गधे ! एक गधे की बात को क्या सुनता है !” आस पास खड़े लोग हंस पड़े |


आचार्य जी ठहरे पढ़े-लिखे विद्वान और एक अदना सी धोबन ने खुले आम गधा कह कर अपमान कर दिया | अत्यंत मर्माहत से आचार्य ने ना कुछ खाया ना पिया दिन भर गुमसुम से एकान्तवास लिए सोचते रहे | जाने कब रात हुई, जाने कब फिर सुबह हुई पता ना चला | पौ फटने को थी तब तक कुछ निर्णय लेते हुए जल्दी से नित्य क्रियाओं से निवृत्त हुए और चल पड़े राजप्रासाद की ओर | दोपहर चढ़े आचार्य जी राजा के सम्मुख प्रस्तुत थे | राजा ने जब विद्वान का परिचय जाना तो ससम्मान आसान दिया और पधारने का कारण जानना चाहा | आचार्य जी ने अपनी पीड़ा कह सुनाई | राजा ने कहा “यदि उस गँवार नारी ने आपका असम्मान किया है तो उसे दंड जरूर मिलेगा |”
धोबन को राजदरबार में बुला-भेजा गया | दूसरे दिन फिर सभा लगी |
राजा ने धोबन से पूछा “क्या तुमने आचार्य जी को गधा कहा ? ”
धोबन ने जवाब दिया “नहीं सरकार मैं इतने बड़े विद्वान को भला गधा कैसे कह सकती हूँ |”
आचार्य जी बोले “क्या तुमने अपने गधे को मारते हुए ‘चल गधे ! एक गधे की बात को क्या सुनता है !’ नहीं कहा था |
धोबन : जी वो तो आपकी बात सुन के कहा था |
राजा : कौन सी बात ?
धोबन : आप आचार्य जी से ही पूछ लीजिए |
राजा : आचार्य जी क्या आप अपनी बात दोहराएँगे ?
आचार्य जी : “प्रीती बड़ी माता की, और भाई का बल ; ज्योति बड़ी किरणों की, और गंगा का जल ||
राजा : बात तो बिलकुल सही है | माँ से ज्यादा स्नेह किसी का नहीं हो सकता | भाई के समान कोई दूसरा बल नहीं होता | सूर्य की किरणों से ज्यादा कोई रौशनी नहीं दे सकता | और गंगा सा कोई जल संसार में नहीं | इसमें गधे जैसी कौन सी बात है | तुमने तो इस बात पर आचार्य जी को गधे के समान कह कर बड़ी मानहानि की |
धोबन : महाराज आचार्य जी की बात सिर्फ सत्य प्रतीत होती है परन्तु है नहीं |
राजा : अच्छा ! तो सही क्या है ?
धोबन : महाराज !
“प्रीति बड़ी त्रिया (स्त्री) की ; (क्योंकि बात अगर पिता और पुत्र में फंसे तो माँ पुत्र का कभी साथ नहीं देगी परन्तु पत्नी किसी भी हाल में साथ होगी)
और बाहों का बल | (जब बैरी अकेले में घेर लेगा तो भाई जब जानेगा तब जानेगा लेकिन वहाँ अपनी बाहों का बल ही काम आएगा )
ज्योति बड़ी नैनो की, (जब आँख ही ना हों तो क्या सूरज की किरणों की रौशनी और क्या अमावस का अँधेरा सब बराबर है )
और मेघा का जल | (गंगा जी पवित्र भले ही हैं लेकिन वे ना तो जन-जन की प्यास बुझा सकती हैं ना ही सभी खेतों में फसलों की सिंचाई कर सकती हैं)
बस यही सोच कर मैंने कहा ‘चल गधे ! एक गधे की बात को क्या सुनता है !’ क्योंकि इनका यह पुस्तकीय ज्ञान हमारे लिए सही बिलकुल भी मिथ्या है जिसकी जरूरत मेरे गधे को भी नहीं है |
राजा : आचार्य जी, अब आप क्या कहते हैं ?
आचार्य : महाराज मुझे इस बात की समझ आज हुई है कि सिर्फ पुस्तकीय ज्ञान संपूर्ण ज्ञान नहीं होता | अभी बहुत कुछ शेष है जो मुझे अपने बुजुर्गों और व्यवहारिक जीवन का ज्ञान रखने वाले अनपढ़ परन्तु बुद्धिमान लोगों से सीखना शेष है |
पाठकों कहानी तो यहाँ समाप्त होती है लेकिन इसमें छिपी दसियों सीख समझने के बावजूद कहीं अधिक और गहराई में दबा देखता हूँ | आशा है आप उन चीजों को भी खोज पायेंगे |

munneraja
14-12-2010, 03:42 PM
आहा सूत्र है
...............

Sikandar_Khan
14-01-2011, 06:45 PM
एक लड़का लड़की को देखने के लिए हर
रोज़ उसके CD के शोरूम से एक नई CD खरीदता था ,
एक दिन लड़के को लगा की लड़की उसे कभी नहीं चाहेगी और वो मर गया .
कुछ दिन लड़का शोरूम पे नहीं आया
तब वो लड़की उसके घर गयी , तो पता चला की वो मर
गया है , तब लड़के की माँ ने उस लड़की को लड़के का कमरा
दिखाया , लड़की ने देखा की वो cd's भी सील्पैक थी , तब
लड़की बहुत रोई क्योकि लड़की हर रोज़ उसमे एक लव लैटर
रखती थी .......

Kumar Anil
15-01-2011, 03:06 AM
एक लड़का लड़की को देखने के लिए हर
रोज़ उसके cd के शोरूम से एक नई cd खरीदता था ,
एक दिन लड़के को लगा की लड़की उसे कभी नहीं चाहेगी और वो मर गया .
कुछ दिन लड़का शोरूम पे नहीं आया
तब वो लड़की उसके घर गयी , तो पता चला की वो मर
गया है , तब लड़के की माँ ने उस लड़की को लड़के का कमरा
दिखाया , लड़की ने देखा की वो cd's भी सील्पैक थी , तब
लड़की बहुत रोई क्योकि लड़की हर रोज़ उसमे एक लव लैटर
रखती थी .......

क्या दर्दनाक मँजर रहा होगा , सोचकर ही रुह फना हो जाती है ।
शायद इसीलिये भावनाओँ को अभिव्यक्त करना अत्यन्त आवश्यक है । आन्तरिक संवेगोँ , संवेदनाओँ को यदि शब्द या स्पर्श के माध्यम से परिभाषित न किया जाये तो वो बेमानी होती हैँ । उसके कोई मायने नहीँ होते । बिना प्रसार के वो मृतप्राय होती हैँ ।

Bond007
15-01-2011, 04:43 PM
एक लड़का लड़की को देखने के लिए हर
रोज़ उसके CD के शोरूम से एक नई CD खरीदता था ,
एक दिन लड़के को लगा की लड़की उसे कभी नहीं चाहेगी और वो मर गया .
कुछ दिन लड़का शोरूम पे नहीं आया
तब वो लड़की उसके घर गयी , तो पता चला की वो मर
गया है , तब लड़के की माँ ने उस लड़की को लड़के का कमरा
दिखाया , लड़की ने देखा की वो cd's भी सील्पैक थी , तब
लड़की बहुत रोई क्योकि लड़की हर रोज़ उसमे एक लव लैटर
रखती थी .......

भाई क्यों रुलाते हो बच्चो को, इस तरह की कहानियाँ सुनाकर|:suicide:

khalid
15-01-2011, 05:14 PM
भाई क्यों रुलाते हो बच्चो को, इस तरह की कहानियाँ सुनाकर|:suicide:

आपको कौन सुना रहा हैँ
आपको तो पढने को कह रहेँ हैँ

Sikandar_Khan
15-01-2011, 05:17 PM
भाई क्यों रुलाते हो बच्चो को, इस तरह की कहानियाँ सुनाकर|:suicide:

भाई ये ही सच है

Bond007
15-01-2011, 06:16 PM
भाई ये ही सच है

जानता हूँ, कहानियां कहीं न कहीं सच्चाई से प्रेरित होती हैं|


आपको कौन सुना रहा हैँ
आपको तो पढने को कह रहेँ हैँ

बात तो एक ही है; कान इधर से पकड़ लो या उधर से|:rulez:
खैर,........... लगे रहो सब के सब खिंचाई करने में|:beating:

Sikandar_Khan
22-01-2011, 04:59 PM
२ चिडियों की एक प्रेम कहानी
एक दिन मेल चिड़िया ने बोला :की
मुझे छोड़ कर कही तुम उड़ तो
नही जाओगे .
फीमेल चिड़िया :उड़ जाउंगी तो तुम
पकड़ लेना .
मेल चिड़िया :बोला मैं तुम्हे
पकड़ सकता हु पर फिर पा नही
सकता फीमेल चिड़िया की आँखों में
आंसू आ गये और उस ने अपने पंख
तोड़ दिए और बोली ,'अब हम हमेशा
साथ रहेंगे .एक दिन जोर से तूफ़ान
आने वाला था तो मेल चिड़िया उड़
ने लगा .तभी फीमेल चिड़िया ने
कहा तुम उड़ जाओ मैं उड़ नही
सकती .मेल चिड़िया बोला :अपना
ख्याल रखना कह कर उड़ गया .जब
तूफ़ान थमा तो मेल चिड़िया
वापस उस पेड़ पर आया तो देखा की
फीमेल चिड़िया मर चुकी है और
डाली पर लिखा था ,'काश वो १ बार
तो कहता की मैं तुम्हे नही छोड़
सकता . तो शायद मैं तूफ़ान से
पहले न मरती

Sikandar_Khan
22-01-2011, 05:12 PM
.दोस्तों ये छोटी सी कहानी तीन दोस्तों की है
एक का नाम - ज्ञान
दूसरे का नाम - धन
तीसरे का नाम - विस्वास
तीनो बहुत आचे दोस्त थे और तीनो में प्यार भी बहुत था .
एक दिन ऐसा वक़्त आया की तीनो को जुदा होना पड़ा ,
तीनो एक दुसरे से सवाल किये की कौन कहाँ जाएगा ...
ज्ञान बोला - मैं मंदिर ,मस्जिद ,चर्च , गुरूद्वारे और
विद्यालय जाउंगा .
धन ने कहा - मैं महल और अमीरों के पास जाउंगा ,
लेकिन विस्वास चुप था दोनों ने वजह पूछी तो विस्वास ठंडी आह भर कर कहा - मैं एक बार चला गया तो फिर कभी वापस नहीं आउंगा .सोच लीजिये ..

Kumar Anil
22-01-2011, 05:23 PM
.दोस्तों ये छोटी सी कहानी तीन दोस्तों की है
एक का नाम - ज्ञान
दूसरे का नाम - धन
तीसरे का नाम - विस्वास
तीनो बहुत आचे दोस्त थे और तीनो में प्यार भी बहुत था .
एक दिन ऐसा वक़्त आया की तीनो को जुदा होना पड़ा ,
तीनो एक दुसरे से सवाल किये की कौन कहाँ जाएगा ...
ज्ञान बोला - मैं मंदिर ,मस्जिद ,चर्च , गुरूद्वारे और
विद्यालय जाउंगा .
धन ने कहा - मैं महल और अमीरों के पास जाउंगा ,
लेकिन विस्वास चुप था दोनों ने वजह पूछी तो विस्वास ठंडी आह भर कर कहा - मैं एक बार चला गया तो फिर कभी वापस नहीं आउंगा .सोच लीजिये ..

इस लघुकथा मेँ जीवन का सार निहित है । इस शिक्षाप्रद कथा को शेयर करवाने का शुक्रिया । आशा है कि आप ज्ञान की सलिल सरिता मेँ आगे भी डुबकी लगवायेँगे ।

YUVRAJ
22-01-2011, 05:35 PM
vaah kya baat likhi bhai Sikandar ji ...:clap:...:clap:...:clap:...:bravo:

bhoomi ji
22-01-2011, 05:35 PM
.दोस्तों ये छोटी सी कहानी तीन दोस्तों की है
एक का नाम - ज्ञान
दूसरे का नाम - धन
तीसरे का नाम - विस्वास
तीनो बहुत आचे दोस्त थे और तीनो में प्यार भी बहुत था .
एक दिन ऐसा वक़्त आया की तीनो को जुदा होना पड़ा ,
तीनो एक दुसरे से सवाल किये की कौन कहाँ जाएगा ...
ज्ञान बोला - मैं मंदिर ,मस्जिद ,चर्च , गुरूद्वारे और
विद्यालय जाउंगा .
धन ने कहा - मैं महल और अमीरों के पास जाउंगा ,
लेकिन विस्वास चुप था दोनों ने वजह पूछी तो विस्वास ठंडी आह भर कर कहा - मैं एक बार चला गया तो फिर कभी वापस नहीं आउंगा .सोच लीजिये ..

क्या बात है

कम शब्दों मैं बहुत कुछ कह गए हो............

Sikandar_Khan
22-01-2011, 05:38 PM
इस लघुकथा मेँ जीवन का सार निहित है । इस शिक्षाप्रद कथा को शेयर करवाने का शुक्रिया । आशा है कि आप ज्ञान की सलिल सरिता मेँ आगे भी डुबकी लगवायेँगे ।

vaah kya baat likhi bhai sikandar ji ...:clap:...:clap:...:clap:...:bravo:

क्या बात है

कम शब्दों मैं बहुत कुछ कह गए हो............


हौसला अफजाई के लिए आप सभी का शुक्रिया

Kumar Anil
22-01-2011, 05:39 PM
२ चिडियों की एक प्रेम कहानी
एक दिन मेल चिड़िया ने बोला :की
मुझे छोड़ कर कही तुम उड़ तो
नही जाओगे .
फीमेल चिड़िया :उड़ जाउंगी तो तुम
पकड़ लेना .
मेल चिड़िया :बोला मैं तुम्हे
पकड़ सकता हु पर फिर पा नही
सकता फीमेल चिड़िया की आँखों में
आंसू आ गये और उस ने अपने पंख
तोड़ दिए और बोली ,'अब हम हमेशा
साथ रहेंगे .एक दिन जोर से तूफ़ान
आने वाला था तो मेल चिड़िया उड़
ने लगा .तभी फीमेल चिड़िया ने
कहा तुम उड़ जाओ मैं उड़ नही
सकती .मेल चिड़िया बोला :अपना
ख्याल रखना कह कर उड़ गया .जब
तूफ़ान थमा तो मेल चिड़िया
वापस उस पेड़ पर आया तो देखा की
फीमेल चिड़िया मर चुकी है और
डाली पर लिखा था ,'काश वो १ बार
तो कहता की मैं तुम्हे नही छोड़
सकता . तो शायद मैं तूफ़ान से
पहले न मरती

बहुत ही सुन्दय मार्मिक कथा जिसने दिल को छू लिया । शायद पुरुषोँ की मानसिकता दर्शाती है ये । व्यवहारिक जीवन मेँ भी वह छलिया प्यार का झाँसा देकर निश्छल स्त्री का शोषण करते हुये उसकी कोमल भावनाओँ के साथ खेलता है । समर्पण , त्याग , बलिदान , दया और प्यार तो कोई औरतोँ से सीखे । प्रेमचन्द ने कहा था कि यदि स्त्रियोँ के नैसर्गिक गुण पुरुषोँ मेँ आ जायेँ तो वह महान हो जायेगा ।

abhisays
22-01-2011, 07:33 PM
.दोस्तों ये छोटी सी कहानी तीन दोस्तों की है
एक का नाम - ज्ञान
दूसरे का नाम - धन
तीसरे का नाम - विस्वास
तीनो बहुत आचे दोस्त थे और तीनो में प्यार भी बहुत था .
एक दिन ऐसा वक़्त आया की तीनो को जुदा होना पड़ा ,
तीनो एक दुसरे से सवाल किये की कौन कहाँ जाएगा ...
ज्ञान बोला - मैं मंदिर ,मस्जिद ,चर्च , गुरूद्वारे और
विद्यालय जाउंगा .
धन ने कहा - मैं महल और अमीरों के पास जाउंगा ,
लेकिन विस्वास चुप था दोनों ने वजह पूछी तो विस्वास ठंडी आह भर कर कहा - मैं एक बार चला गया तो फिर कभी वापस नहीं आउंगा .सोच लीजिये ..


बिलकुल लाख टके की बात. :hi::hi:

ABHAY
23-01-2011, 12:20 PM
सिकंदर भाई बहुत खूब :bravo::bravo::bravo:

Sikandar_Khan
25-01-2011, 05:07 PM
व्यकित ने पूछा - अच्छाई क्या है ?
जानकार ने कहा- जिस मे बुराई का समावेश
कम है उसे अच्छाई कहते है.
फ़िर बुराई क्या है ?
जानकार ने कहा- जिस मे अच्छाई का समावेश
कम है उसे बुराई कहते है.
व्यकित ने पूछा - तो क्या दुनियां मिलावटी है
जानकार ने कहा- नही तो मिलावटी बिल्कुल नही.
व्यकित ने पूछा - फ़िर इसे क्या कहेगे ?
जानकार ने कहा - दुनियां मे ऐसी बहुत सी बाते,
रिश्ते, दर्द, और फ़र्ज़ ये सभी एक दूसरे के पूरक है
यदि इनके पूरक नही होगे तो इनका भी कोई महत्व
नही होगा इस लिये अपने स्वभाव को दुनियां के
अनुसार बनाओ मगर उसमे घुल मत जाना वरना
लोग तुम्हारी पहचान को वो नाम नही देगे जिसके
तुम वाकई मे हकदार हो.

Bond007
03-02-2011, 02:49 PM
.दोस्तों ये छोटी सी कहानी तीन दोस्तों की है
एक का नाम - ज्ञान
दूसरे का नाम - धन
तीसरे का नाम - विस्वास
...
...

विस्वास ठंडी आह भर कर कहा - मैं एक बार चला गया तो फिर कभी वापस नहीं आउंगा .सोच लीजिये ..

मार्मिक और शिक्षाप्रद|:bravo:

Sikandar_Khan
15-02-2011, 12:15 PM
लालची बुढिया !!
किसी गावं में एक सास और बहू रहती थी . सास बहुत दुस्ट थी और अपने बहू को बहुत सताती थी . बहू बेचारी सीधी साधी सास के अत्याचारों को सहती रहती थी . एक दिन तीज का त्यौहार था बहू अपने पति की लम्बी उम्र के लिए ब्रत थी . मुहल्ले की सभी औरते अच्छे अच्छे पकवान बना रही थी . नए नए कपड़े पहन कर और सज सवार कर मन्दिर जाने की तैयारी कर रही थी .


पर सास ने अपनी बहू से कहा - अरे कलमुही तू बैठे बैठे यहाँ क्या कर रही है जा खेत में मक्का लगा है , कौवे और तोते फसल नस्ट कर रहे है जा कर उन्हें उडा. बहू ने कहा माँ आज मेरा ब्रत है मै तो पूजा की तैयारी कर रही थी, आज मुझे मन्दिर जाना है . सास ने कहा - तू सज सज सवर कर मन्दिर जा कर क्या करेगी, कौन सा जग जित लेगी , बहू को गालिया देने लगी .


बहू बेचारी क्या करती मन मार कर जाना पड़ा लेकिन उसे रोना आ रहा था उसकी आँखे भर आई , वह और औरतों को मन्दिर जाते देख रही थी , औरतें मंगल गीत गा रही थी . उसके सब अरमान पलकों से टपक रहे थे . वह आज सजना चाहती थी , अपने पति के नाम की चुडिया पहनना चाहती थी , माग में अपने पति के नाम का सिंदूर लगाना चाहती थी और वह साड़ी पहनना चाहती थी जो उसके पति ने उसे अपनी पहली कमाई पर दिया था, आज उसके लिए मंगल कामना इश्वर के चरणों में जा कर करना चाहती थी . वह अन्दर ही अन्दर रो रही थी और खेत की तरफ़ जा रही थी , खेत पर पंहुच कर , को - कागा - को , यहाँ ना आ , मेरा ना खा - कही और जा जा कहती जा रही थी .


उसी समय पृथिवी पर शंकर और पार्वती जी भ्र्मद करने निकले थे , पार्वती जी को बहू का रोना देख कर ह्रयद भर आया और उन्होंने शिव जी से कहा की नाथ देखिये तो कोई अबला नारी रो रही है . रूप बदल कर शंकर और पार्वती जी बहू के पास पंहुचे और पूछा की बेटी क्या बात है ? क्यू रो रही हो ? क्या कस्ट है तुम्हे तो वह बोली की मै अपनी किस्मत पर रो रही हूँ . आज तीज का ब्रत है गाव की सारी औरते पूजा पाठ कर रही है और मेरी सास ने मुझे यहाँ कौवे उड़ने के लिए भेज दिया है और मै अभागी यहाँ कौवे उडा रही हूँ . भोले बाबा को बहू पर दया आ गई उन्होंने बहू को ढेर सारे गहने और चंडी और सोने के सिक्के दे कर कर कहा की तुम धर जाओ और अपनी पूजा करो , मै तुम्हरे खेत की देख भाल करूँगा .जब बहू धर पहुँची तो बहू के पास इतना धन देख कर आश्चय चकित रह गई . बहू ने सारी बात सास को बता दी . सास बहू से अच्छे से बोली अच्छा तू जा कर पूजा कर ले और अगले साल मै जाउंगी खेत की रखवाली करने जाउनी .


अगले साल जब तीज आई बुढिया तैयार हो कर खेत पर पहुँच गई और खूब तेज तेज रोने लगी , ठीक उसी समय शंकर और पार्वती उधर से गुजर रहे थे और उन्होंने ने पूछा की क्या बात है तो उस बुढिया ने बताया की मेरी बहू मुझे बहुत परेशान करती है और उसने आज भी उसने मुझे खेत की रखवाली के लिए भेज दिया जबकि आज मेरा ब्रत है . भगवान शंकर उस बुढिया को समझ गए और उन्होंने ने कहा तुम घर जाओ , तो बुढिया ने कहा की आपने मुझे कुछ दिया नही तो भोले बाबा ने कहा की धर जाओ तुम्हे मिल जायेगा . जब वह घर पहुची तो उसके पुरे शरीर में छाले पड़ गए . बुढिया बहू को गलिया देने लगी . बहू ने पूछा तो बुढिया ने पुरी कहानी बताई , तब बहू ने कहा की भगवान हमेशा सरल, सच्चे और भोले भाले लोगों की ही सहायता करते है , लालची लोगो की नही .

Bholu
18-02-2011, 11:30 AM
बहुत बढिया एक शिक्षाप्रद कहानी के लिये

kalpna
22-02-2011, 11:14 AM
नीम के पेड़ की कहानी बताये
या मालूम है आपको ?

arvind
22-02-2011, 11:23 AM
नीम के पेड़ की कहानी बताये
या मालूम है आपको ?
हो सकता है की कुछ लोगो को मालूम हो.....
अगर आप बता देंगी तो सभी लोग जान जाएँगे, इसीलिए आप यहा जरूर बताए।

Sikandar_Khan
22-02-2011, 01:27 PM
एक व्यक्ति अपनी मधुर वाणी के कारण बहुत जाना जाता था और वो अपने
दुश्मनों के साथ भी बड़ी नम्रता से पेश आता था |
एक दिन उसके मित्र ने उससे शिकायत की - तुम अपने दुश्मनों के साथ भी
मित्रों जैसा व्यवहार करते हो ,
जब कि तुम्हे उन लोगो को खत्म कर देना चाहिए |
पहले मित्र ने मधुर वाणी में कहा " क्या मै उन्हें अपना दोस्त बनाकर अपने दुश्मनों
को खत्म नहीं कर सकता ?"

Sikandar_Khan
22-02-2011, 01:37 PM
एक गिरगिट ने दुसरे से कहा-
तुम कितनी जल्दी रंग बदल लेते हो ?
दूसरा गिरगिट बोला - मै तो गिरगिट हूँ
मुझसे भी पहले कोई रंग बदलता है
जिसे हम इंसान कहते हैं .

Sikandar_Khan
22-02-2011, 02:02 PM
एक दिन धागे ने सुई से कहा - मेरे बिना तेरा क्या वजूद है ?
सुई बोली - किसी के बिना किसी का वजूद पूरा - अधुरा नहीं होता
ये सिर्फ सोच है , क्योकि बहुत कुछ एक -दुसरे पर निर्भर करता है
वो कौन है जो ज़िन्दगी में आये और मौत के आगोश में न जाये तो ऐसी
ज़िन्दगी भला कौन जीता है- इसका जवाब देना फिर उसके बाद अपने वजूद के झूठे भरम का दम भरना .
क्योंकि मेरा काम आपस में जोड़ते जाना है मै सिर्फ जोड़ने के लिए हूँ
इसलिए धागे का पक्का होना जरुरी है, कच्चे धागे मेरे यकीन को संभाल नहीं सकते .

sagar -
22-02-2011, 02:05 PM
एक से बढकर एक कहानिया कुछ ना कुछ सीख देने वाली हे !

Sikandar_Khan
22-02-2011, 02:34 PM
शहर मे कुछ लोग अपने-अपने धर्म को लेकर आपस मे झगड रहे थे वे एक दूसरे के धर्म पर तरह-तरह के आरोप मढ रहे थे उस झगडे मे सबसे खास बात यह थी कि वहां सभी धर्म के अलग-अलग व्यकित मौजूद थे और हर व्यकित अपने धर्म को श्रेष्ठ बतला रहे थे.
एक महात्मा जब उधर से गुजर रहे थे तो उन्होने वो नज़ारा देखा और उस भीड के ओर बढे और लोगो को बढी मुशिकल से शांत किया उन्होने उस भीड मे सभी धर्मो के लोग थे और हर कोई अपने ही धर्म को श्रेष्ठ बता रहे थे जैसे वो कोई धर्म न हो कोई वस्तु हो गई महात्मा ने कहा- तुम लोग एक दूसरे
के धर्म पर आरोप लगा रहे हो बल्कि मेरी नज़र से तुम लोग किसी भी धर्म के लायक नही हो क्योकि जो अपने धर्म की श्रेष्ठ के लिये दूसरे धर्म पे आरोप
लगाये उसका स्वयं का कोई धर्म नही क्योकि कोई भी धर्म ये नही कहता कि उस ऐसा रुप दो, उसे विवाद का विषय बनाओ फ़िर वो धर्म कहा रहा वो मूलस्वरुप से हट गया तुम लोग धर्म के मूल अर्थ को नही जानते तुम्हे
धर्म के नाम पर लडना आता है जब अच्छा रुप अपने धर्म को नही दे सकते तो ये बुरा रुप भी तुम्हे देने का कोई हक नही है,अपने धर्म की श्रेष्ठता की
पहचान क्या कोई ऐसे देता है हर धर्म अपने आप मे स्वतंत्र है जब तक वो अपनी गरिमा मे है अर्थात हिसात्मक रुप न लिये हो क्योकि धर्म कभी विवादी नही होता धर्म की मूल भावना है शांन्ति पूजा एक दूसरे के प्रति समर्पण भाव से समझ रखना अर्थात अन्य धर्मो को भी सम्मानित नज़र से देखना सम्मानित नज़र से अभिप्राय यह है कि हत धर्म को उतना ही
महत्व देना जितना की हम अपने धर्म को देते है और उसे मानवता के धर्म का रुप देना क्योकि सबसे बडा अगर कोई धर्म है तो मानवता का धर्म, धर्म का अर्थ ही होता है धारण करना समस्त सभ्यता और संस्क्रति के साथ, आप लोगो का ये करना तो दूर रहा आपने उसे दूसरा ही रुप दे दिया ये कोई रास्ता है धर्म को साबित करने का, महात्मा जी के इतना कहते ही सभी लोगो के सर शर्म से झुक गये चूंकि उस भीड मे हर धर्म के लोग होने के कारण महात्मा जी ने सभी को उनकी धर्म की भाषा मे ही समझाया सभी को मूल भाषा मे समझाने के बाद महात्मा जी ने पूछा - अब बतलाओ
मै किस धर्म का हूं बताइये मै किस धर्म का हूं सभी के सर शर्म से झुक गये।
महात्मा ने अन्त मे कहा- सिर मत झुकाओ, थोडा सा अपनी समझ और सोचने के ढंग के प्रति अपने आप को उस ओर जाग्रत करो तभी तुम अपने धर्म के प्रति उपलब्ध हो पाओगे क्योकि सबसे बडा धर्म इन्सानियत का धर्म जो कि आदमी को आदमी से जोडता है जब आदमी , आदमी से जुडेगा तो देश जुडेगा वो हमारे धर्म की असल पहचान होगी इतना कहकर महात्मा दूसरी दिशा की ओर प्रस्थान कर गये.

आज हमारी देश की एकता पर कई अपने और बेगानो की नज़र है जो नही चाहते की भारत एक जुट हो इस लिये सावधान रहियेगा

Sikandar_Khan
22-02-2011, 02:55 PM
बाढ़ के बाद

रात का समय था फ़िर भी चारो तरफ़ बाढ़ के पानी का भयानक और डरावना शोर था।
भिखुआ रात से पेड़ के ऊपर बैठा हुआ था, उसके बगल में ही पंडित जी भी बैठे थे पेड़ की डाल पर।
गाँव तो अब दिखता ही नहीं था, केवल मकानों के छप्पर और बड़े-बड़े पेड़ों की ऊपरी डाल ही नज़र आती थी। और नज़र आता था तो बिजली के उन खंभों का तार जिनमे बिजली तो आती नहीं थी पर बिल जरुर आता था।
तभी अचानक पेड़ पर ऊपर कुछ सरसराता महसूस हुआ, नीचे झाँक कर देखा तो एक सांप नज़र आया। शायद वो बेचारा भी अपनी जान इस पानी से बचने के लिए ऊपर चढ़ा आ रहा है, यही सोच कर भिखुआ ने थोड़ा सांप रास्ता दे दिया.
सांप ऊपर आकर उसके बगल में बैठ गया। वो ख़ुद भी सहमा दिख रहा था तो किसी को क्या काटता? पंडित जी नींद में थे पर इतने शोर में सो कैसे पाते ? सो वो ऊँघ रहे थे वरना अभी चिल्ला पड़ते सांप-सांप.

अचानक धडाम की आवाज से मैं सहम गया, ललुआ के मकान की दीवार ढह गई थी ये उसीके गिरने की आवाज थी॥
पंडित जी भी उठ गए और देखने लगे इधर उधर.
जब भिखुआ के साथ सांप देखा तो इशारे से बोले तेरे पीछे सांप है. भिखुआ बोला कोई बात नही, मुझसे पूछ कर बैठा है।
पंडित जी मुस्कुरा दिए।
भिखुआ के पास थोड़े चने थे, वो अपनी गठरी निकाल कर खाने को हुआ।
पर साथ में कोई और भी भूखा हो तो अकेले कैसे खा ले?
सो उसने पंडित जी से पूछा की वो खायेंगे?
पंडित जी भूखे तो थे मगर एक छोटी जाति वाले के हाथ से कैसे खा लेते?
लेकिन दो दिन से पेड़ पर भूखे बैठे थे टंगे हुए से.. और कोई चारा भी नही था।
फ़िर उन्होंने सोचा की खा लेते हैं कौन यहाँ पर देख रहा है? क्यूंकि अब भूख जवाब दे रही थी।
सो उन्होंने भिखुआ के साथ वो चने खा लिए और दोनों की भूख काफी हद तक शांत हो गई॥ और जहाँ पेट में थोड़ा अन्न जाता है फ़िर नींद भी आ ही जाती है।
तो दोनों ही सो गए और सांप बेचारा उन दोनों को देखता रहा और एक तरह से पहरा देता रहा।
सुबह चिडियों की आवाज़ ने उन दोनों की नींद खोली॥ देखा तो दूर से गाँव के लड़के केले के तने का बेडा (एक तरह का नाव) लिए उनकी तरफ़ ही आ रहे थे..पंडित जी ने शोर मचाया और जिसे सुनकर लड़के इसी तरफ़ आ गए।
जैसे ही बेडा पास आया पंडित जी लपक कर उसमे सवार हो गए और आदेश देते हुए बोले-" चलो रे॥"लड़को ने पूछा भी की क्या भिखुआ को नही लेंगे?
वो बोले दूसरी बार में ले लेना॥और चल दिए..बेडा दूर जा चुका था.. भिखुआ और सांप साथ बैठे उसे जाते देख रहे थे।
भिखुआ सोच रहा था की शुक्र है सांप में जाति प्रथा नही है।
और सांप सोच रहा था अच्छा हुआ मैं मनुष्य नही हूँ।

Sikandar_Khan
22-02-2011, 03:02 PM
गरीब की बेटी की शादी
आज उसके यहां खुशी का माहौल था। सभी के चेहरे दमक रहे थे। माता-पिता, चाचा-चाची, दादा-दादी, भाई-बंधु, बुआ सभी के चेहरे में अजीब तरह की चमक थी। चमक हो भी क्यों न, जब परिवार के किसी सदस्य को पहली बार सरकारी नौकरी मिली हो। वह भी केंद्र सरकार की नौकरी।
खुशियां चहुंदिश से बरस रही थीं और मैं भी आनंदित हो रहा था, लेकिन यहां की खुशी मुझे कुछ 'अजीब' तरह की लग रही थी जैसे सभी की व्यक्तिगत रूप से मनोकामनाएं पूरी होने वाली हों। मैं यह सोच ही रहा था तभी मेरे कानों में आवाज आई कि अब 'चौधरी' के तो भाग ही खुल गए। रातों-रात लाटरी लग गई। वह भी लाखों रुपयों की? यह आवाज लड़के (जिसे नौकरी लगी) की बुआ की ओर से आई। मेरी जिज्ञासा शांत नहीं हुई। मैं उधेड़बुन में था कि 'चौधरी' की तरफ से मुझे बुलावा आया। मुझे आश्चर्य हुआ, क्योंकि आज तक तो नहीं बुलाया गया। खैर मैं उनके पास पहुंचा तो अच्छे कपड़े पहने हुए वहां लोगों की मंडली जमी हुई थी। लड़के के रिश्ते को लेकर कुछ लोग दूसरे शहर से आए थे। चौधरी जी को सूझ नहीं रहा था कि अब क्या कहें क्या नहीं। अब इसलिए क्योंकि लड़की वालों के यहां चौधरी के लड़के की बात काफी दिनों से चल रही थी। रिश्ता लगभग तय था। केवल लेन-देन की बात थी। लड़के वाला दो लाख कह रहा था और लड़की वाले 1.5 लाख पर बात तय करने की गुहार लगा रहे थे। लेकिन, अब स्थिति में काफी बदलाव आया था। लड़के को नौकरी मिल गई वो भी केंद्र सरकार की। सो, चौधरी के भाई ने कहा कि अभी तो लड़के की नौकरी लगी है जरा उससे पूछ लें, उसकी शादी की इच्छा है या नहीं। इसके बाद आपको खबर दी जाएगी। लड़की वाले चले गए। शायद उन्हे पता चल गया था कि यहां बात बनने वाली नहीं है।
खैर, लड़की वाले चले गए, लेकिन लड़के वाले उधेड़ बुन में थे कि इस लड़के की क्या कीमत रखी जाए। गांव के प्रमुख लोगों के साथ चौधरी जी व उसके नजदीकी रिश्तेदारों की देर रात तक बैठक हुई। तय हुआ कि लड़के की कीमत 20 से 30 लाख के बीच रखी जाए। ज्यादा से ज्यादा रकम लड़की वालों से लेने की कोशिश की जाए। रकम तय होने के बाद ही लड़की व उसके परिवार के बारे में जानकारी की जाए। प्राथमिकता पैसे को दी जाए।
तब मुझे पता चला कि अजीब खुशी का रहस्य क्या है। चौधरी जी जो पांच हजार रुपये दस हजार रुपये लोगों से उधारी लेते थे आज 25 लाख के आदमी बनने जा रहे थे। एक लड़की वाले ने 25 लाख की बोली लगाई थी। सबसे ज्यादा बोली। सो लड़का उसी का हुआ।
इधर, लड़के की शादी की तैयारी हो रही थी उधर चौधरी जी के रिश्तेदारों में शीत युद्ध जारी था। संयुक्त परिवार के कर्ताधर्ता सदस्यगण अपना-अपना हिसाब लगा रहे थे कि लड़के की पढ़ाई लिखाई में उन्होंने कब क्या-क्या खर्च किए। कौन-कौन सी जमीन बेची गई। कब लड़के को आने-जाने का भाड़ा दिया गया। मैं इस द्वंद्व को देख रहा था और सोच रहा था कि लड़के के नौकरी से पूर्व संयुक्त परिवार और अब के संयुक्त परिवार में कितना अंतर आ गया। बड़े-छोटे का सम्मान भी चला गया। चौधरी जी जो हमेशा दहेज विरोधी बयान देते थे। दूसरे के बेटी के लिए जब लड़के का हाथ मांगने जाते थे तो किस तरह लच्छेदार बातों से लड़के वालों को दहेज की कुरीति के बारे में बताते थे। ..और आज 25 लाख में बिक गए थे। खुशी थी कि 25 लाख नगद आ रहे हैं।
..उधर, लड़की वाले दहेज के इंतजाम में लगे थे। बिना किसी समस्या के उन लोगों ने 20 लाख रुपये का घर अपने बेटी-दामाद को बेटी के नाम से दे दिया और चौधरी जी..फिर से दहेज विरोधी खेमे में शामिल हो गए। रिश्तेदार कट गए।..और मैं सोच रहा था कि गरीब की योग्य बेटी की शादी किसी योग्यवर से कैसे हो?

ndhebar
23-02-2011, 10:41 AM
एक व्यक्ति अपनी मधुर वाणी के कारण बहुत जाना जाता था और वो अपने
दुश्मनों के साथ भी बड़ी नम्रता से पेश आता था |
एक दिन उसके मित्र ने उससे शिकायत की - तुम अपने दुश्मनों के साथ भी
मित्रों जैसा व्यवहार करते हो ,
जब कि तुम्हे उन लोगो को खत्म कर देना चाहिए |
पहले मित्र ने मधुर वाणी में कहा " क्या मै उन्हें अपना दोस्त बनाकर अपने दुश्मनों
को खत्म नहीं कर सकता ?"

बहुत अच्छे सिकंदर भाई
पर आजकल उल्टी रीत है ज्यादा मीठा बोलने वाले को दुर्जन समझा जाता है

Bholu
23-02-2011, 12:43 PM
बहुत अच्छे सिकंदर भाई
पर आजकल उल्टी रीत है ज्यादा मीठा बोलने वाले को दुर्जन समझा जाता है

लेकिन ज्यादा मीठा बोलने वाले को तो ढीला बोला जाता है

Sikandar_Khan
27-02-2011, 01:13 AM
दंभी

एक पढ़ा-लिखा दंभी व्यक्ति नाव में सवार हुआ। वह घमंड से भरकर नाविक से पूछने लगा, ‘‘क्या तुमने व्याकरण पढ़ा है, नाविक?’’

नाविक बोला, ‘‘नहीं।’’

दंभी व्यक्ति ने कहा, ‘‘अफसोस है कि तुमने अपनी आधी उम्र यों ही गँवा दी!’’

थोड़ी देर में उसने फिर नाविक से पूछा, “तुमने इतिहास व भूगोल पढ़ा?”

नाविक ने फिर सिर हिलाते हुए ‘नहीं’ कहा।

दंभी ने कहा, “फिर तो तुम्हारा पूरा जीवन ही बेकार गया।“

मांझी को बड़ा क्रोध आया। लेकिन उस समय वह कुछ नहीं बोला। दैवयोग से वायु के प्रचंड झोंकों ने नाव को भंवर में डाल दिया।

नाविक ने ऊंचे स्वर में उस व्यक्ति से पूछा, ‘‘महाराज, आपको तैरना भी आता है कि नहीं?’’

सवारी ने कहा, ‘‘नहीं, मुझे तैरना नही आता।’’

“फिर तो आपको अपने इतिहास, भूगोल को सहायता के लिए बुलाना होगा वरना आपकी सारी उम्र बरबाद होने वाली है क्योंकि नाव अब भंवर में डूबने वाली है।’’ यह कहकर नाविक नदी में कूद तैरता हुआ किनारे की ओर बढ़ गया।


मनुष्य को किसी एक विद्या या कला में दक्ष हो जाने पर गर्व नहीं करना चाहिए।

Bholu
27-02-2011, 12:27 PM
दंभी

एक पढ़ा-लिखा दंभी व्यक्ति नाव में सवार हुआ। वह घमंड से भरकर नाविक से पूछने लगा, ‘‘क्या तुमने व्याकरण पढ़ा है, नाविक?’’

नाविक बोला, ‘‘नहीं।’’

दंभी व्यक्ति ने कहा, ‘‘अफसोस है कि तुमने अपनी आधी उम्र यों ही गँवा दी!’’

थोड़ी देर में उसने फिर नाविक से पूछा, “तुमने इतिहास व भूगोल पढ़ा?”

नाविक ने फिर सिर हिलाते हुए ‘नहीं’ कहा।

दंभी ने कहा, “फिर तो तुम्हारा पूरा जीवन ही बेकार गया।“

मांझी को बड़ा क्रोध आया। लेकिन उस समय वह कुछ नहीं बोला। दैवयोग से वायु के प्रचंड झोंकों ने नाव को भंवर में डाल दिया।

नाविक ने ऊंचे स्वर में उस व्यक्ति से पूछा, ‘‘महाराज, आपको तैरना भी आता है कि नहीं?’’

सवारी ने कहा, ‘‘नहीं, मुझे तैरना नही आता।’’

“फिर तो आपको अपने इतिहास, भूगोल को सहायता के लिए बुलाना होगा वरना आपकी सारी उम्र बरबाद होने वाली है क्योंकि नाव अब भंवर में डूबने वाली है।’’ यह कहकर नाविक नदी में कूद तैरता हुआ किनारे की ओर बढ़ गया।


मनुष्य को किसी एक विद्या या कला में दक्ष हो जाने पर गर्व नहीं करना चाहिए।

बहुत बढिया मित्र लगे रहो

Bhuwan
01-03-2011, 12:03 PM
मित्र सिकंदर जी, बहुत अच्छी कहानियां प्रस्तुत की हैं.:bravo:

Sikandar_Khan
01-03-2011, 12:11 PM
मित्र सिकंदर जी, बहुत अच्छी कहानियां प्रस्तुत की हैं.:bravo:

मित्र भूवन जी
हार्दिक आभार
प्रयास करेँगे आगे भी आपके लिए कुछ ला सकेँ

Sikandar_Khan
01-03-2011, 08:12 PM
दुख का कारण

एक व्यापारी को नींद न आने की बीमारी थी। उसका नौकर मालिक की बीमारी से दुखी रहता था। एक दिन व्यापारी अपने नौकर को सारी संपत्ति देकर चल बसा। सम्पत्ति का मालिक बनने के बाद नौकर रात को सोने की कोशिश कर रहा था, किन्तु अब उसे नींद नहीं आ रही थी। एक रात जब वह सोने की कोशिश कर रहा था, उसने कुछ आहट सुनी। देखा, एक चोर घर का सारा सामान समेट कर उसे बांधने की कोशिश कर रहा था, परन्तु चादर छोटी होने के कारण गठरी बंध नहीं रही थी।

नौकर ने अपनी ओढ़ी हुई चादर चोर को दे दी और बोला, इसमें बांध लो। उसे जगा देखकर चोर सामान छोड़कर भागने लगा। किन्तु नौकर ने उसे रोककर हाथ जोड़कर कहा, भागो मत, इस सामान को ले जाओ ताकि मैं चैन से सो सकूँ। इसी ने मेरे मालिक की नींद उड़ा रखी थी और अब मेरी। उसकी बातें सुन चोर की भी आंखें खुल गईं।

Sikandar_Khan
01-03-2011, 08:43 PM
शब्द

एक किसान की एक दिन अपने पड़ोसी से खूब जमकर लड़ाई हुई। बाद में जब उसे अपनी गलती का अहसास हुआ, तो उसे ख़ुद पर शर्म आई। वह इतना शर्मसार हुआ कि एक साधु के पास पहुँचा और पूछा, ‘‘मैं अपनी गलती का प्रायश्चित करना चाहता हूँ।’’ साधु ने कहा कि पंखों से भरा एक थैला लाओ और उसे शहर के बीचों-बीच उड़ा दो। किसान ने ठीक वैसा ही किया, जैसा कि साधु ने उससे कहा था और फिर साधु के पास लौट आया। लौटने पर साधु ने उससे कहा, ‘‘अब जाओ और जितने भी पंख उड़े हैं उन्हें बटोर कर थैले में भर लाओ।’’ नादान किसान जब वैसा करने पहुँचा तो उसे मालूम हुआ कि यह काम मुश्किल नहीं बल्कि असंभव है। खैर, खाली थैला ले, वह वापस साधु के पास आ गया। यह देख साधु ने उससे कहा, ‘‘ऐसा ही मुँह से निकले शब्दों के साथ भी होता है।’’

Sikandar_Khan
01-03-2011, 11:31 PM
समाधान

एक बूढा व्यक्ति था। उसकी दो बेटियां थीं। उनमें से एक का विवाह एक कुम्हार से हुआ और दूसरी का एक किसान के साथ।

एक बार पिता अपनी दोनों पुत्रियों से मिलने गया। पहली बेटी से हालचाल पूछा तो उसने कहा कि इस बार हमने बहुत परिश्रम किया है और बहुत सामान बनाया है। बस यदि वर्षा न आए तो हमारा कारोबार खूब चलेगा।

बेटी ने पिता से आग्रह किया कि वो भी प्रार्थना करे कि बारिश न हो।

फिर पिता दूसरी बेटी से मिला जिसका पति किसान था। उससे हालचाल पूछा तो उसने कहा कि इस बार बहुत परिश्रम किया है और बहुत फसल उगाई है परन्तु वर्षा नहीं हुई है। यदि अच्छी बरसात हो जाए तो खूब फसल होगी। उसने पिता से आग्रह किया कि वो प्रार्थना करे कि खूब बारिश हो।

एक बेटी का आग्रह था कि पिता वर्षा न होने की प्रार्थना करे और दूसरी का इसके विपरीत कि बरसात न हो। पिता बडी उलझन में पड गया। एक के लिए प्रार्थना करे तो दूसरी का नुक्सान। समाधान क्या हो ?

पिता ने बहुत सोचा और पुनः अपनी पुत्रियों से मिला। उसने बडी बेटी को समझाया कि यदि इस बार वर्षा नहीं हुई तो तुम अपने लाभ का आधा हिस्सा अपनी छोटी बहन को देना। और छोटी बेटी को मिलकर समझाया कि यदि इस बार खूब वर्षा हुई तो तुम अपने लाभ का आधा हिस्सा अपनी बडी बहन को देना।

Sikandar_Khan
01-03-2011, 11:37 PM
दूरदर्शी

एक आदमी सोना तोलने के लिए सुनार के पास तराजू मांगने आया। सुनार ने कहा, ‘‘मियाँ, अपना रास्ता लो। मेरे पास छलनी नहीं है।’’ उसने कहा, ‘‘मजाक न कर, भाई, मुझे तराजू चाहिए।’’

सुनार ने कहा, ‘‘मेरी दुकान में झाडू नहीं हैं।’’ उसने कहा, ‘‘मसखरी को छोड़, मै तराजू मांगने आया हूँ, वह दे दे और बहरा बन कर ऊटपटांग बातें न कर।’’

सुनार ने जवाब दिया, ‘‘हजरत, मैंने तुम्हारी बात सुन ली थी, मैं बहरा नहीं हूँ। तुम यह न समझो कि मैं गोलमाल कर रहा हूँ। तुम बूढ़े आदमी सुखकर काँटा हो रहे हो। सारा शरीर काँपता हैं। तुम्हारा सोना भी कुछ बुरादा है और कुछ चूरा है। इसलिए तौलते समय तुम्हारा हाथ काँपेगा और सोना गिर पड़ेगा तो तुम फिर आओगे कि भाई, जरा झाड़ू तो देना ताकि मैं सोना इकट्ठा कर लूं और जब बुहार कर मिट्टी और सोना इकट्ठा कर लोगे तो फिर कहोगे कि मुझे छलनी चाहिए, ताकि ख़ाक को छानकर सोना अलग कर सको। हमारी दुकान में छलनी कहां? मैंने पहले ही तुम्हारे काम के अन्तिम परिणाम को देखकर दूरदर्शिता से कहा था कि तुम कहीं दूसरी जगह से तराजू मांग लो।’’

जो मनुष्य केवल काम के प्रारम्भ को देखता है, वह अन्धा है। जो परिणाम को ध्यान में रखे, वह बुद्धिमान है। जो मनुष्य आगे होने वाली बात को पहले ही से सोच लेता है, उसे अन्त में लज्जित नहीं होना पड़ता।

Bholu
04-03-2011, 07:53 AM
दूरदर्शी

एक आदमी सोना तोलने के लिए सुनार के पास तराजू मांगने आया। सुनार ने कहा, ‘‘मियाँ, अपना रास्ता लो। मेरे पास छलनी नहीं है।’’ उसने कहा, ‘‘मजाक न कर, भाई, मुझे तराजू चाहिए।’’

सुनार ने कहा, ‘‘मेरी दुकान में झाडू नहीं हैं।’’ उसने कहा, ‘‘मसखरी को छोड़, मै तराजू मांगने आया हूँ, वह दे दे और बहरा बन कर ऊटपटांग बातें न कर।’’

सुनार ने जवाब दिया, ‘‘हजरत, मैंने तुम्हारी बात सुन ली थी, मैं बहरा नहीं हूँ। तुम यह न समझो कि मैं गोलमाल कर रहा हूँ। तुम बूढ़े आदमी सुखकर काँटा हो रहे हो। सारा शरीर काँपता हैं। तुम्हारा सोना भी कुछ बुरादा है और कुछ चूरा है। इसलिए तौलते समय तुम्हारा हाथ काँपेगा और सोना गिर पड़ेगा तो तुम फिर आओगे कि भाई, जरा झाड़ू तो देना ताकि मैं सोना इकट्ठा कर लूं और जब बुहार कर मिट्टी और सोना इकट्ठा कर लोगे तो फिर कहोगे कि मुझे छलनी चाहिए, ताकि ख़ाक को छानकर सोना अलग कर सको। हमारी दुकान में छलनी कहां? मैंने पहले ही तुम्हारे काम के अन्तिम परिणाम को देखकर दूरदर्शिता से कहा था कि तुम कहीं दूसरी जगह से तराजू मांग लो।’’

जो मनुष्य केवल काम के प्रारम्भ को देखता है, वह अन्धा है। जो परिणाम को ध्यान में रखे, वह बुद्धिमान है। जो मनुष्य आगे होने वाली बात को पहले ही से सोच लेता है, उसे अन्त में लज्जित नहीं होना पड़ता।

क्या? दिमाग की सोच थी:crazyeyes:

Sikandar_Khan
24-03-2011, 09:56 AM
किताबी कीड़े ना बने


एक छोटा सा गाँव था गाँव का नाम क्या था इससे हमारी कहानी का कोई लेना देना नहीं है | ये एक न्यायी राजा के राज्य का हिस्सा था | राज्य व राजा का नाम भी हमारी कहानी का हिस्सा नहीं है | अब चलते हैं मतलब की बात पर | इस गाँव में एक किसान के घर एक होनहार बालक का जन्म हुआ | किसान ने उसकी प्रतिभा को देखकर उसे काशी पढ़ने भेज दिया | समय बीतता गया और एक दिन वो बालक एक युवा आचार्य बनकर पुनः गाँव वापस आया |
एक दिन प्रातः काल आचार्य जी स्नानादि करने के पश्चात सूर्य-अर्घ्य दे रहे थे | अर्घ्य देते समय उन्होंने बुदबुदाते हुए प्रार्थना की-
“प्रीती बड़ी माता की, और भाई का बल ;
ज्योति बड़ी किरणों की, और गंगा का जल ||”
आचार्य जी का इतना कहना क्या के पास से गुजरती धोबन ने अपने गधे को एक जोरदार डंडा मारा और कहा -
“चल गधे ! एक गधे की बात को क्या सुनता है !” आस पास खड़े लोग हंस पड़े |

आचार्य जी ठहरे पढ़े-लिखे विद्वान और एक अदना सी धोबन ने खुले आम गधा कह कर अपमान कर दिया | अत्यंत मर्माहत से आचार्य ने ना कुछ खाया ना पिया दिन भर गुमसुम से एकान्तवास लिए सोचते रहे | जाने कब रात हुई, जाने कब फिर सुबह हुई पता ना चला | पौ फटने को थी तब तक कुछ निर्णय लेते हुए जल्दी से नित्य क्रियाओं से निवृत्त हुए और चल पड़े राजप्रासाद की ओर | दोपहर चढ़े आचार्य जी राजा के सम्मुख प्रस्तुत थे | राजा ने जब विद्वान का परिचय जाना तो ससम्मान आसान दिया और पधारने का कारण जानना चाहा | आचार्य जी ने अपनी पीड़ा कह सुनाई | राजा ने कहा “यदि उस गँवार नारी ने आपका असम्मान किया है तो उसे दंड जरूर मिलेगा |”
धोबन को राजदरबार में बुला-भेजा गया | दूसरे दिन फिर सभा लगी |
राजा ने धोबन से पूछा “क्या तुमने आचार्य जी को गधा कहा ? ”
धोबन ने जवाब दिया “नहीं सरकार मैं इतने बड़े विद्वान को भला गधा कैसे कह सकती हूँ |”
आचार्य जी बोले “क्या तुमने अपने गधे को मारते हुए ‘चल गधे ! एक गधे की बात को क्या सुनता है !’ नहीं कहा था |
धोबन : जी वो तो आपकी बात सुन के कहा था |
राजा : कौन सी बात ?
धोबन : आप आचार्य जी से ही पूछ लीजिए |
राजा : आचार्य जी क्या आप अपनी बात दोहराएँगे ?
आचार्य जी : “प्रीती बड़ी माता की, और भाई का बल ; ज्योति बड़ी किरणों की, और गंगा का जल ||
राजा : बात तो बिलकुल सही है | माँ से ज्यादा स्नेह किसी का नहीं हो सकता | भाई के समान कोई दूसरा बल नहीं होता | सूर्य की किरणों से ज्यादा कोई रौशनी नहीं दे सकता | और गंगा सा कोई जल संसार में नहीं | इसमें गधे जैसी कौन सी बात है | तुमने तो इस बात पर आचार्य जी को गधे के समान कह कर बड़ी मानहानि की |
धोबन : महाराज आचार्य जी की बात सिर्फ सत्य प्रतीत होती है परन्तु है नहीं |
राजा : अच्छा ! तो सही क्या है ?
धोबन : महाराज !
“प्रीति बड़ी त्रिया (स्त्री) की ; (क्योंकि बात अगर पिता और पुत्र में फंसे तो माँ पुत्र का कभी साथ नहीं देगी परन्तु पत्नी किसी भी हाल में साथ होगी)
और बाहों का बल | (जब बैरी अकेले में घेर लेगा तो भाई जब जानेगा तब जानेगा लेकिन वहाँ अपनी बाहों का बल ही काम आएगा )
ज्योति बड़ी नैनो की, (जब आँख ही ना हों तो क्या सूरज की किरणों की रौशनी और क्या अमावस का अँधेरा सब बराबर है )
और मेघा का जल | (गंगा जी पवित्र भले ही हैं लेकिन वे ना तो जन-जन की प्यास बुझा सकती हैं ना ही सभी खेतों में फसलों की सिंचाई कर सकती हैं)
बस यही सोच कर मैंने कहा ‘चल गधे ! एक गधे की बात को क्या सुनता है !’ क्योंकि इनका यह पुस्तकीय ज्ञान हमारे लिए सही बिलकुल भी मिथ्या है जिसकी जरूरत मेरे गधे को भी नहीं है |
राजा : आचार्य जी, अब आप क्या कहते हैं ?
आचार्य : महाराज मुझे इस बात की समझ आज हुई है कि सिर्फ पुस्तकीय ज्ञान संपूर्ण ज्ञान नहीं होता | अभी बहुत कुछ शेष है जो मुझे अपने बुजुर्गों और व्यवहारिक जीवन का ज्ञान रखने वाले अनपढ़ परन्तु बुद्धिमान लोगों से सीखना शेष है |

Sikandar_Khan
01-04-2011, 09:25 PM
जैसा करे वैसा भरे

बात तो पुरानी ही है। एक बहू अपनी सास को टूटी कठौती में खाना देती थी। संयोग से एक दिन सास के हाथ से कठौती छूट गयी और फर्श पर गिर कर टूट गयी। बुढ़िया का बेटा उसी वक्त कहीं बाहर से घर आया। उसने अपनी माँ को कठौती टूटने पर एक जोर की डाँट लगाई। बुढ़िया इस मामूली से नुक्सान पर बेटे से झिड़की की उम्मीद न रखती थी। बेचारी रो पड़ी। उधर बहू बहुत खुश थी कि अच्छा हुआ, आज बेटे ने माँ की हरकतों को देख कर स्वयं ही उसे बुरा-भला कहा।

जब माँ ने बेटे से डाँटने की वजह पूछी तो उसने आँखे भर कर कहा- “माँ, मैंने तुम्हें उस कठौती के फूटने पर डाँटा क्योंकि तुमने कठौती नहीं एक परंपरा तोड़ दी। वह कठौती घर में तब तक रहनी चाहिए थी, जब तक मेरी पुत्रवधु घर न आ जाती। तुम्हारी बहू जिस तरह तुम्हें तुच्छता से खाना देती है, वह मेरी बहू भी देखती। और कल वह वही कठौती अपनी सास के लिए बरतती। उस समय मेरी पत्नी को सीख मिलती कि “जैसा करै वैसा भरै।”

कहते हैं, यह सारी बात उस समय उस आदमी की पत्नी भी सुन रही थी। उसे अपना दुःखपूर्ण भविष्य सामने नजर आ गया। बस फिर क्या था, उसी दिन से उसने सास के प्रति अपना व्यवहार ठीक कर लिया।

Ranveer
03-04-2011, 02:51 PM
कर्म के आगे खुद भगवान भी झुके




एक बार की बात है, भगवान और देवराज इंद्र में इस बात पर बहस छिड़ गई कि दोनों में से श्रेष्ठ कौन हैं? उनका विवाद बढ़ गया तब इंद्र ने यह सोचकर वर्षा करनी बंद कर दी कि यदि वे बारह वर्षों तक पृथ्वी पर वर्षा नहीं करेंगे तो भगवान पृथ्वीवासियों को कैसे जीवित रख पाएंगे।

इंद्र की आज्ञा से मेघों ने जल बरसाना बंद कर दिया। किंतु किसानों ने सोचा कि यदि यह लड़ाई बारह वर्षों तक चलती रही तो वे अपना कर्म ही भूल बैठेंगे। उनके पुत्र भी सब कुछ भूल जाएंगे। अतः उन्हें अपना कर्म करते रहना चाहिए। यह सोचकर उन्होंने कृषि कार्य शुरू कर दिया। वे अपने-अपने खेत जोतने लगे।

तभी मिट्टी के नीचे छिपा कर मेढ़क बाहर आया और किसानों को खेती करते देख आश्चर्यचकित होकर बोला- “इंद्र देव और भगवान में श्रेष्ठता की लड़ाई छिड़ी हुई है। इसी कारण इंद्र देव ने बारह वर्षों तक पृथ्वी पर वर्षा न करने का निश्चय किया है। फिर भी आप लोग खेत जोत रहे हैं! यदि वर्षा ही न हुई तो खेत जोतने का क्या लाभ?”

किसान बोले-“मेढ़क भाई! यदि उनकी लड़ाई वर्षों तक चलती रही तो हम अपनी कर्म ही भूल जाएंगे। इसलिए हमें अपना कर्म तो करते ही रहना चाहिए।”

मेढ़क ने सोचा- ‘तो मैं भी टर्राता हूं, नहीं तो मैं भी टर्राना भूल जाऊंगा। तब वह भी टर्राने लगा।’ उसने टर्राना शुरू किया तो मोर ने भी इंद्र एवं भगवान के मध्य लड़ाई की बात कही। मेढ़क बोला-“मोर भाई! हमें तो अपना कर्म करते ही रहना चाहिए, चाहे दूसरे अपने कार्य भूल जाएं।

क्योंकि यदि हम अपने कर्म भूल जाएंगे तो आने वाली पीढ़ी को कैसे मालूम होगा कि उन्हें क्या कर्म करने हैं। अतः सबको अपना कर्म करने चाहिएं। फल क्या और कब मिलता है, यह ईश्वर पर छोड़ देना चाहिए।” मेढ़क की बात सुनकर मोर भी पिहू-पिहू बोलने लगा।

देवराज इंद्र ने जब देखा कि सभी प्राणी अपने-अपने कार्य में लगे हैं तो उन्होंने सोचा कि ‘शायद इन्हें ज्ञात नहीं है कि मैं बारह वर्षों तक नहीं बरसूंगा। इसलिए ये अपने कर्म कर रहे हैं। मुझे जाकर इन्हें सत्य बताना चाहिए।’

यह सोचकर वे पृथ्वी पर आए और किसानों से बोले-“ये क्या कर रहे हो?”

किसान बोले- “भगवन! हमारा कर्म ही ईश्वर है। आप अपना कार्य करें अथवा न करें, हमें तो अपना कर्म करते ही रहना है।”

किसानों की बात सुन देवराज इंद्र ने अपनी जिस छोड़ते हुए बादलों को आदेश दिया कि वे पृथ्वी पर घनघोर वरसे।

Sikandar_Khan
12-08-2011, 09:34 AM
किसी गांव में मित्रशर्मा नामक एक ब्राह्मण रहता था। एक बार वह अपने यजमान से एक बकरा लेकर अपने घर जा रहा था। रास्ता लंबा और सुनसान था। आगे जाने पर रास्ते में उसे तीन ठग मिले। ब्राह्मण के कंधे पर बकरे को देखकर तीनों ने उसे हथियाने की योजना बनाई।

एक ने ब्राह्मण को रोककर कहा, “पंडित जी यह आप अपने कंधे पर क्या उठा कर ले जा रहे हैं। यह क्या अनर्थ कर रहे हैं? ब्राह्मण होकर कुत्ते को कंधों पर बैठा कर ले जा रहे हैं।”ब्राह्मण ने उसे झिड़कते हुए कहा, “अंधा हो गया है क्या? दिखाई नहीं देता यह बकरा है।”
पहले ठग ने फिर कहा, “खैर मेरा काम आपको बताना था। अगर आपको कुत्ता ही अपने कंधों पर ले जाना है तो मुझे क्या? आप जानें और आपका काम।”

थोड़ी दूर चलने के बाद ब्राह्मण को दूसरा ठग मिला। उसने ब्राह्मण को रोका और कहा, “पंडित जी क्या आपको पता नहीं कि उच्चकुल के लोगों को अपने कंधों पर कुत्ता नहीं लादना चाहिए।” पंडित उसे भी झिड़क कर आगे बढ़ गया।

आगे जाने पर उसे तीसरा ठग मिला। उसने भी ब्राह्मण से उसके कंधे पर कुत्ता ले जाने का कारण पूछा। इस बार ब्राह्मण को विश्वास हो गया कि उसने बकरा नहीं बल्कि कुत्ते को अपने कंधे पर बैठा रखा है। थोड़ी दूर जाकर, उसने बकरे को कंधे से उतार दिया और आगे बढ़ गया।

इधर तीनों ठग ने उस बकरे को मार कर खूब दावत उड़ाई। इसीलिए कहते हैं कि किसी झूठ को बार-बार बोलने से वह सच की तरह लगने लगता है।
ये कहानी काफ़ी सही है ! यह हमे सीख देती है की हमे किसी भी अनजान की बातों पर जल्दी यक़ीन नही करना चाहिए.

Sikandar_Khan
25-09-2011, 01:48 AM
शत्रुओं के परस्पर विवाद से लाभ

किसी नगर में द्रोण नाम का एक निर्धन ब्राह्मण रहा करता था। उसका जीवन भिक्षा पर ही आधारित था। अतः उसने अपने जीवन में न कभी उत्तम वस्त्र धारण किए थे और न ही अत्यंत स्वादिष्ट भोजन किया था। पान-सुपारी आदि की तो बात ही दूर है। इस प्रकार निरंतर दुःख सहने के कारण उसका शरीर बड़ा दुबला-पतला हो गया था।

ब्राह्मण की दीनता को देखकर किसी यजमान ने उसको दो बछड़े दे दिए। किसी प्रकार मांग-मांगकर उसने जन बछड़ों को पाला-पोसा और इस प्रकार वे जल्दी ही बड़े और हृष्ट-पुष्ट हो गए। ब्राह्मण उनको बेचने की सोच रहा था तभी उन दोनों बछड़ों को देखकर एक दिन किसी चोर ने सोचा कि आज उसको उन बछड़ों को चुरा लेना चाहिए नहीं तो ये ब्राह्मण उनको बेच देगा। अतः उनको बांधकर लाने के लिए रस्सी आदि लेकर वह रात्रि में घर से निकल पड़ा।

इस प्रकार सोचकर वह चोरी करने जा रहा था कि आधे मार्ग में उसको एक भयंकर व्यक्ति दिखाई दिया। उस व्यक्ति के प्रत्येक अंग से भयंकरता का आभास हो रहा था. उसे देखकर चोर घबराकर एक बार तो वापस जाना का विचार कर बैठा, किन्तु फिर भी उसने साहस करके उससे पूछ ही लिया, “आप कौन हैं?” “मैं तो सत्यवचन नामक ब्रह्मराक्षस हूं, किन्तु तुम कौन हो?” “मैं क्रूरकर्मा नामक चोर हूं। मैं उस दरिद्र ब्राह्मण के दोनों बछड़ों को चुराने के उद्देश्य से घर से चला हूं।” राक्षस बोला-“मित्र! मैं छः दिनों से भूखा हूं। इसलिए चलो आज उसी ब्राह्मण को खाकर मैं अपनी भूख मिटाऊंगा।

अच्छा ही हुआ कि हम दोनों के कार्य एक-से ही हैं, दोनों को जाना भी एक ही स्थान पर हैं।” इस प्रकार वे दोनों ही उस ब्राह्मण के घर जाकर एकान्त स्थान पर छिप गए। और अवसर की प्रतीक्षा करने लगे। जब ब्राह्मण सो गया तो उसको खाने के लिए उतावले राक्षस से चोर ने कहा, “आपका यह उतावलापन अच्छा नहीं है। मैं जब बछड़ों को चुराकर यहां से चला जाऊँ तब आप उस ब्राह्मण को खा लेना।”

राक्षस बोला, “बछड़ों के रम्भाने से यदि ब्राह्मण की नींद खुल गई तो मेरा यहां आना ही व्यर्थ हो जाएगा।” “और ब्राह्मण को खाते समय कोई विघ्न पड़ गया तो मैं बछड़ों को फिर किस प्रकार चुरा पाऊंगा। इसलिए पहले मेरा काम होना दीजिए।” इस प्रकार उन दोनों का विवाद बढ़ता ही गया था। कुछ समय बाद दोनों जोर-जोर से चिल्लाने लगे तो उससे ब्राह्मण की नींद खुल गई।

उसे जगा हुआ देखकर चोर उसके पास गया और उसने कहा, “ब्राह्मण! यह राक्षस तुम्हें खाना चाहता है।” यह सुनकर राक्षस उसके पास जाकर कहने लगा, “ब्राह्मण! यह चोर तुम्हारे बछड़ों को चुराकर ले जाना चाहता है।”

एक क्षण तक तो ब्राह्मण विचार करता रहा, फिर उठा और चारपाई से उतरकर उसने इष्ट देवता का स्मरण किया। उसने मंत्र-जप किया और उसके प्रभाव से उसने राक्षस को निष्क्रिय कर दिया। फिर उसने लाठी उठाई और उससे चोर को मारने के लिए दौड़ा तो वह भाग गया। इस प्रकार उसने अपने बछड़े भी बचा लिए।

sagar -
25-09-2011, 07:40 AM
अच्छी कहानिया हे :bravo::bravo:

abhisays
25-09-2011, 08:14 AM
बहुत ही ज्ञान्पर्धक कहानी है. :cheers:

Sikandar_Khan
13-02-2012, 05:07 PM
कोयल , पंख और कीड़े


एक जंगल में एक कोयल अपने सुर में गा रही थी। तभी एक किसान वहाँ से एक बक्सा लेकर गुजरा जिसमें कीड़े भरे हुये थे। कोयल ने गाना छोड़ दिया और उसने किसान से पूछा - "इस बक्से में क्या है और तुम कहाँ जा रहे हो?'

किसान ने उत्तर दिया कि बक्से में कीड़े भरे हुये हैं जिन्हें वह पंख के बदले शहर में बेचने जा रहा है। यह सुनकर कोयल ने कहा - "मेरे पास बहुत से पंख हैं जिनमें से एक पंख तोड़कर मैं आपको दे सकती हूँ। इससे मेरा बहुत समय बच जाएगा और आपका भी।'

किसान ने कोयल को कुछ कीड़े निकालकर दिए जिसके बदले में कोयल ने अपना एक पंख तोड़कर दिया। अगले दिन भी यही हुआ। फिर ऐसा रोज ही होने लगा। एक दिन ऐसा भी आया जब कोयल के सभी पंख समाप्त हो गए।

सभी पंख समाप्त हो जाने के कारण कोयल उड़ने में असमर्थ हो गयी और कीड़े पकड़कर खाने लायक भी नहीं बची। वह बदसूरत दिखने लगी, उसने गाना बंद कर दिया और जल्द ही भूख से मर गयी।

Kunal Thakur
19-02-2012, 06:59 AM
बहुत ही सीख देने वाली कहानियां हैं :) जारी रखे हजूर