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View Full Version : एडल्ट साइट्स : स्वयं का मूल्याँकन


amit_tiwari
10-12-2010, 12:58 AM
थोडा विवादित विषय प्रारंभ करने जा रहा हूँ किन्तु क्यूंकि यह युवाओं का फोरम है और विषय भी सामयिक है अतः मैं समझता हूँ की यह कंटेंट सामायिक है !

भारत में तेजी से बढ़ते इन्टरनेट प्रयोग के साथ एक नयी समस्या उभर कर सामने आ रही है जो की है 'वयस्क वेबसाइट्स' की |
पुरुष की प्राकृतिक मनोदशा, उपलब्धता और अधिकांश रूप से मुफ्त में उपलब्ध होने के कारण इसका जितना प्रचार हो रहा है उतना शायद ही किसी का हुआ हो | उस पर भी कोढ़ में खाज वाली स्थिति होती है जब उसके संपर्क में अधिकांशतः नवयुवा, युवावर्ग आता है | हर चीज़ देखने को आतुर यह आयु कब इसकी आदी हो जाती है उन्हें पता ही नहीं चलता |
पाठकों के मन में आ रहा होगा की इस परपंच का तात्पर्य क्या है ! ऐसा ही प्रश्न हारवर्ड विश्वविद्यालय के दो रिसर्चरों के मन में आई जिन्होंने अपना रिसर्च पेपर सात जून २०१० को The Ninth Workshop on the Economics of Information Security में रखा |
क्यूंकि यह एक ऐसा अँधा कुआं है जिसका राज सरलता से नहीं जाना जा सकता अतः इन दोनों रिसर्चरों ने खुद उसमें कदम रखा और अपनी वास्तविक साईट बनायीं |

इनके रिसर्च पेपर और अपने अभी तक के इन्टरनेट अनुभव के आधार पर इस महिषासुर के कुछ कुप्रभाव लिखता हूँ;

१- नवयुवा जो अपना ध्यान अपने स्वस्थ्य, परिवार, पढाई और मानसिक विकास में लगा सकता वह इसमें चला जाता है | यह एक ऐसा दुष्प्रभाव है जो अभी क्या आने वाले समय को खोखला कर रहा है | उन्नीस बीस साल के लड़के अपना जाने कितना समय इन अंधी साइट्स को देते हैं, और जाने कितना समय उनका विचार करने में लगाते हैं इसकी कल्पना ही भयावह है |

२- इतनी तरक्की और शिक्षा के बाद भी देश की राजधानी में ये आलम है कि औसतन रोज़ एक बलात्कार होता है, क्या यह कुंठित मानसिकता में बढ़ोत्तरी नहीं है ?
कितनी पशुता और क्रूरता भर रही है मन में !
हर नुक्कड़ पर मंदिर उसमें माथा टेकते हजारो सज्जन, हर तरफ धर्म कि गंगा और फिर भी नारी कि पूजा करने वाले देश में रोज़ एक बलात्कार ! इस दर से तो एक दिन हर घर भुक्तभोगी होगा | क्या यही स्थिति हम चाहते हैं !!!

३- इन साइट्स में दिखने वाली वस्तु नहीं जीवित मनुष्य होते हैं | देह व्यापार, खरीद फरोक्त, अपहरण, जबरन फिल्माया जाना, धोके से फिल्माया जाना और ना जाने क्या क्या |||
और ऐसी साइट्स को पालने, चलाने, सहयोग करने वाले हम आपमें ही छुपे बैठे लोग होते हैं जो ज्ञान, मान सम्मान कि दिन रात गंगा बहते हैं किन्तु इनके घ्रणित और सड़े हुए मस्तिष्क इस हद तक गिरे रहते हैं कि मित्र मित्र कहते कहते एक दिन आपके ही घर को निशाना बना दें |

४- यह कोई छिपी बात नहीं है कि इन साइट्स को ऑफिस में भी देखा जाता है, कुछ सर्वे इसे कुल कर्योत्पदक समय का दस प्रतिशत तक बताते हैं, यह सही हो या गलत किन्तु हानि होती ही है |

५- इन साइट्स का ट्रैफिक पाइरेसी और वायरस वाली साइट्स के साथ शेयर होता है | ये तीनों नेटवर्क एक दुसरे के साथ ट्रैफिक शेयर करते हैं जो आपस में मिल कर इन्टरनेट का अपराधीकरण कर रहे है | कोई इंजीनियर प्रोग्रामर दिन रात मेहनत करके एक प्रोग्राम बनाता है और उसे पाइरेसी वाले फ़ोकट में उतार देते हैं , कोई अपनी गाढ़ी कमाई से एक कंप्यूटर लाता है और उसे ये वायरस डाल कर ख़राब कर देते हैं | आखिर में हम करते तो अपना नुक्सान ही हैं |

६- जैसा कि इस रिसर्च पेपर में सिद्ध किया है कि ऐसी सामग्री फ्री में देने वाली साईट अपनी कमाई पेड वेबसाईट को ट्रैफिक भेज कर कमाती हैं और उससे भी बड़ा हिस्सा आता है प्रयोग करने वाले के कंप्यूटर में वाइरस डाल कर | प्रयोक्ता समझता है कि उसने कुछ डाउनलोड नहीं किया तो उसका कुछ नहीं गया किन्तु वास्तविकता यह है कि किसी फ्लैश विडियो को चला कर, किसी PDF फ़ाइल को खोल कर यहाँ तक कि किसी वर्ड फ़ाइल से भी आपके सिस्टम में वाइरस आ सकता है |

तो अगली बार ऐसी किसी गली का रुख करते समय रुक कर सोचियेगा कि आप किसी लड़की से उसका सम्मान छीन रहे हैं, किसी की दिन रात की मेहनत चुरा रहे हैं, खुद को धोखा दे रहे हैं और अपने सिस्टम की MBE कर रहे हैं |


-अमित

pooja 1990
10-12-2010, 03:37 AM
thanks..amit ji.

amol
10-12-2010, 05:34 AM
अमित जी नमस्कार, पहले तो आपको धन्यवाद एक बहुत ही ज्वलंत मुद्दा उठाने के लिए. आपने तो एडल्ट वेबसाइट के उपर तो अपने विचार रख दिए. कुछ पॉइंट्स तो मुझे काफी अच्छे लगे.

लेकिन पहली बात जो मैं कहना चाहता हूँ, हमें एडल्ट वेबसाइट और पोर्न वेबसाइट के बीच अंतर भी पता होना चाहिए.

अगर कोई वेबसाइट सेक्स education दे रहा है और इस से जुडी ही युवाओं की भ्रांतियों को दूर कर रहा है तो उसे एडल्ट वेबसाइट तो कहेंगे मगर पोर्न वेबसाइट नहीं. और मेरी नज़र में इस हिसाब से एडल्ट वेबसाइट में कोई बुराई नहीं है.

रही बात पोर्न वेबसाइट की तो मैं उसके पूरी तरह से खिलाफ हूँ. खिलाफ तो मैं सिगरेट, पान, तम्बाकू, वेश्य्वृति, शराब इत्यादि के भी हूँ क्योकि युवा वर्ग को जितना नुक्सान पोर्न वेबसाइट से है शायद उससे कही ज्यादा इन चीजों से.

amol
10-12-2010, 05:42 AM
१- नवयुवा जो अपना ध्यान अपने स्वस्थ्य, परिवार, पढाई और मानसिक विकास में लगा सकता वह इसमें चला जाता है | यह एक ऐसा दुष्प्रभाव है जो अभी क्या आने वाले समय को खोखला कर रहा है | उन्नीस बीस साल के लड़के अपना जाने कितना समय इन अंधी साइट्स को देते हैं, और जाने कितना समय उनका विचार करने में लगाते हैं इसकी कल्पना ही भयावह है |




१९ २० साल की आयु ऐसी ही होती है, इस उम्र में लोगो के सही मार्गदर्शन के अभाव में भटकने के चांस काफी रहते है... जैसे

१. शराब
२. जुआ
३. सिगरेट
४. तम्बाकू
५. वेश्यालय
६. इन्टरनेट पोर्न

तो सवाल यह है की सभी चीजें गलत है और सब के साथ एक वार्निंग भी आती है के बेटा इसका सेवन करोगे तो नुक्सान होगा. ऐसा भी पोर्न वेबसाइट के साथ होता है उसपर एक वार्निंग आती है और नहीं आती तो आनी चाइये की बेटा यह देखोगे तो इसके लॉन्ग term नुक्सान होंगे.

amol
10-12-2010, 05:47 AM
२- इतनी तरक्की और शिक्षा के बाद भी देश की राजधानी में ये आलम है कि औसतन रोज़ एक बलात्कार होता है, क्या यह कुंठित मानसिकता में बढ़ोत्तरी नहीं है ?
कितनी पशुता और क्रूरता भर रही है मन में !
हर नुक्कड़ पर मंदिर उसमें माथा टेकते हजारो सज्जन, हर तरफ धर्म कि गंगा और फिर भी नारी कि पूजा करने वाले देश में रोज़ एक बलात्कार ! इस दर से तो एक दिन हर घर भुक्तभोगी होगा | क्या यही स्थिति हम चाहते हैं !!!


मैं तो मानता हूँ पोर्न वेबसाइट से इस तरह के कुंठित मानसिकता वाले लोगो की ***** शांत होती है. और फिर बलात्कार कम होते है.

और आप इस चीज़ के पूरी ज़िम्मेदारी पोर्न वेबसाइट पर कैसे डाल रहे है. क्या इंटरनेट आने से पहले ऐसा नही होता था?

amol
10-12-2010, 05:51 AM
३- इन साइट्स में दिखने वाली वस्तु नहीं जीवित मनुष्य होते हैं | देह व्यापार, खरीद फरोक्त, अपहरण, जबरन फिल्माया जाना, धोके से फिल्माया जाना और ना जाने क्या क्या |||
और ऐसी साइट्स को पालने, चलाने, सहयोग करने वाले हम आपमें ही छुपे बैठे लोग होते हैं जो ज्ञान, मान सम्मान कि दिन रात गंगा बहते हैं किन्तु इनके घ्रणित और सड़े हुए मस्तिष्क इस हद तक गिरे रहते हैं कि मित्र मित्र कहते कहते एक दिन आपके ही घर को निशाना बना दें |

उन जीवित लोगो के प्रति मुझे पूरी हमदर्दी है पता नही किस मजबूरी में ऐसा काम करते है, वैसे अपने भारत मैं तो इस तरह के काम पर प्रतिबंध है जो बहुत ही अच्छी बात है.

amol
10-12-2010, 05:57 AM
४- यह कोई छिपी बात नहीं है कि इन साइट्स को ऑफिस में भी देखा जाता है, कुछ सर्वे इसे कुल कर्योत्पदक समय का दस प्रतिशत तक बताते हैं, यह सही हो या गलत किन्तु हानि होती ही है |

आपके इस पॉइंट में कोई खास दम नज़र नही आता, उत्पादन तो अन्य काफ़ी चीज़ों से के कारण भी घट जाती है, जैसे जब क्रिकेट मॅच आ रहा होता है, election रिज़ल्ट्स का टाइम होता है.

और मुझे नही लगता कोई भी आदमी अपने ऑफीस में बैठ कर इस तरह के वेबसाइट देखेगा. अगर वो बंदा उस कंपनी का मालिक ही हो तो बात अलग है.

amol
10-12-2010, 06:07 AM
५- इन साइट्स का ट्रैफिक पाइरेसी और वायरस वाली साइट्स के साथ शेयर होता है | ये तीनों नेटवर्क एक दुसरे के साथ ट्रैफिक शेयर करते हैं जो आपस में मिल कर इन्टरनेट का अपराधीकरण कर रहे है | कोई इंजीनियर प्रोग्रामर दिन रात मेहनत करके एक प्रोग्राम बनाता है और उसे पाइरेसी वाले फ़ोकट में उतार देते हैं , कोई अपनी गाढ़ी कमाई से एक कंप्यूटर लाता है और उसे ये वायरस डाल कर ख़राब कर देते हैं | आखिर में हम करते तो अपना नुक्सान ही हैं |

आपका यह पॉइंट काफ़ी जोरदार है. पॉर्न, पाइरसी और हॅकिंग वाले वेबसाइट्स का काफ़ी पुराना रिश्ता रहा है. और इस तरह के वेबसाइट अपने pc में खोलना मतलब वाइरसस को खुला आमंत्रण देना.

amol
10-12-2010, 06:15 AM
मेरा conclusion यह है

User should be given a warning message for the first time before they enter inside the these kinds of websites. If a child still wants to enter, its their and their parents problem.

The IT deparment of India should make sure that these websites are following all the IT laws, if they are not following IT laws, they should be banned and case must be filed and necessary actions should be taken. Government should have separate cyber police to monitor these websites.

It’s impossible that these kinds of sites will ever cause some kind of public disorder. It never has, and never will be.

amol
10-12-2010, 06:25 AM
The Indian Penal Code, 1860 section 293 also specifies, in clear terms, the law against Sale etc. of obscene objects to minors.
Chapter XI

"67. Publishing of information which is obscene in electronic form. - Whoever publishes or transmits or causes to be published in the electronic form, any material which is lascivious or appeal to the prurient interest or if its effect is such as to tend to deprave and corrupt persons who are likely, having regard to all relevant circumstances, to read, see or hear the matter contained or embodied in it, shall be punished on first conviction with imprisonment of either description for a term which may extend to five years and with fine which may extend to one lakh rupees and in the event of a second or subsequent conviction with imprisonment of either description for a term which may extend to ten years and also with fine which may extend to two lakh rupees."

आज से करीब ४-५ साल पहले चेन्नई के एक पोर्न वेबसाइट चलाने वाले को पुलिस ने पकड़ा था उसे तो २ साल की जेल हुई और उस वेबसाइट में जितने लोग काम करते थे या उससे जुड़े थे उन्हें भी ६ ६ महीने की सजा हुई. तो ऐसा है की अपना भारत का कानून भी काफी कड़ा है इस मामले में और बुरी चीज़ का अंत तो होता ही है एक न एक दिन.

amit_tiwari
10-12-2010, 09:38 AM
लेकिन पहली बात जो मैं कहना चाहता हूँ, हमें एडल्ट वेबसाइट और पोर्न वेबसाइट के बीच अंतर भी पता होना चाहिए.

अगर कोई वेबसाइट सेक्स education दे रहा है और इस से जुडी ही युवाओं की भ्रांतियों को दूर कर रहा है तो उसे एडल्ट वेबसाइट तो कहेंगे .


क्या मेरे किसी शब्द से आपको लगा कि मैंने वयस्क शिक्षा प्रदान करने वाली साईट कि बुरे की? भाव समझिये, मैं शब्दों को अति संतुलित और सामान्य रखना चाहता हूँ ताकि सभी को पढने में सुगम लगे, इस छिपी हुई बुराई को मैं कमरों से निकाल कर ड्राइंग रूम में लाना चाहता हूँ और उसके लिए आप जैसे जागरूक युवाओं की आवश्यकता है |

. ऐसा भी पोर्न वेबसाइट के साथ होता है उसपर एक वार्निंग आती है और नहीं आती तो आनी चाइये की बेटा यह देखोगे तो इसके लॉन्ग term नुक्सान होंगे.

वार्निंग को किसने आज तक देखा ? रोड पे धीरे चलने का संकेत होता है फिर भी एक्सीडेंट होते हैं, सिगरेट पर ना पीने के संकेत होता है किन्तु फिर भी कैंसर होते हैं पी पी के |
सिगरेट पीकर खुद पीने वाला मरता है, अन्य व्यसनों में भी यही है किन्तु यह एक ऐसा व्यसन है कि हर एक प्रतिभागी अपराधी है उस गिरोह को पालने का जो ये सब कराते हैं |
आखिर ऐसा जघन्य कार्य करने वाले किसी मंदिर के पुजारी तो नहीं होते? ये एक जगह से निकला पैसा, पाइरेसी में लगता है, पाइरेसी के लिए अन्य अपराधियों का सहारा लिया जाता है इस प्रकार से यह एक कुचक्र चलाता है |

मैं तो मानता हूँ पोर्न वेबसाइट से इस तरह के कुंठित मानसिकता वाले लोगो की ***** शांत होती है. और फिर बलात्कार कम होते है.

और आप इस चीज़ के पूरी ज़िम्मेदारी पोर्न वेबसाइट पर कैसे डाल रहे है. क्या इंटरनेट आने से पहले ऐसा नही होता था?

ऐसा क्या ? हत्यारों को ह्त्या करने कि छूट दी जाये कि भाई तमन्ना पूरी करो, चोरों को घरों के ताले तोड़ के दे दिए जाएँ ?
क्या आपने अभी टाइम्स का हुआ सर्वेक्षण पढ़ा जिसमें साफ़ साफ़ दिया है कि रेप के मात्र ३० प्रतिशत मामलों में ही अपराधी का पहला अपराध होता है, यदि आपका तर्क सही है तो साईट क्या वास्तव में करने वालों कि कुंठा पहले अपराध के बाद समाप्त हो जाती फिर क्यूँ सत्तर प्रतिशत मामलों में वाही पुनः अपराध करते हैं |
इन्टरनेट आने से पहले होता था, किन्तु हम जानकारी, उसकी उपलब्धता और साक्षरता बढ़ने पर इन्सबके कम या समाप्त होने की आशा करें तो गलत है ?
क्या सुधार कि आकांक्षा करने कि जगह पर हम आंख मुंड कर बैठ जाएँ कि ये पहले भी होता था !!! मैं पुनः उसी आंकड़े को दोहराना चाहूँगा कि हर रोज़ एक बलात्कार हो रहा है औसतन और यह औसत बढ़ रहा है, ऐसे में कब तक अपना घर सुरक्षित रखेंगे? जिनके साथ यह हादसा हुआ वो भी सामान्य ही थी, किसी कि बहन, किसी कि बेटी उनके मत्थे पर नहीं लिखा था कि उनके साथ ऐसा होगा | कल्पना कीजिए क्या बीतिती होगी ऐसे व्यक्ति क्या पुरे परिवार पर |


उन जीवित लोगो के प्रति मुझे पूरी हमदर्दी है पता नही किस मजबूरी में ऐसा काम करते है, वैसे अपने भारत मैं तो इस तरह के काम पर प्रतिबंध है जो बहुत ही अच्छी बात है.

प्रतिबन्ध ???
बॉस इण्डिया नेपाल पकिस्तान और बंगलादेश से कितना ह्युमन ट्रैफिकिंग गल्फ, यूरोप, थाईलैंड को होती है इसका अनुमान भी है ???
उड़ीसा के गरीब परिवारों से पांच किलो चावल के बदले लडकियाँ खरीद ली जाती हैं ये ख़बरें आपने कभी नहीं देखीं ?
थोडा सामायिक चर्चाओं पर निगाह डालिए, नाल्को के कैम्प में रहे डॉक्टरों के विवरण पढ़िए ! वहाँ पता लगेगी इस सबकी घ्रणित सच्चाई | ये गिरोह चलाने वाले उनका इलाज तक नहीं होने देते, जानते हुए भी कि ये मर जाएँगी, ये जानते हुए भी कि इनसे लोग मारे जायेंगे |


आपके इस पॉइंट में कोई खास दम नज़र नही आता, उत्पादन तो अन्य काफ़ी चीज़ों से के कारण भी घट जाती है, जैसे जब क्रिकेट मॅच आ रहा होता है, election रिज़ल्ट्स का टाइम होता है.

और मुझे नही लगता कोई भी आदमी अपने ऑफीस में बैठ कर इस तरह के वेबसाइट देखेगा. अगर वो बंदा उस कंपनी का मालिक ही हो तो बात अलग है.

नील्सन कंपनी का सर्वे देखिये जो इसकी पोल खोलता है और खैर इसकी भी क्या जरुरत है, कई mnc कर्मचारी यहाँ होंगे वो खुद जानते हैं |
क्रिकेट, रिजल्ट्स से इसकी तुलना करके विषय का मजाक ना बनाइये, ये सार्वजानिक गतिविधियाँ हैं जिनसे मनोरंजन होता है, लोग एक दिन देखते हैं थोड़ी देर बात करते हैं और भूल जाते हैं | कम से कम विषय कि समानता तो देखिये, इतनी अपेक्षा मैं आपसे कर ही सकता हूँ |

आपका यह पॉइंट काफ़ी जोरदार है. पॉर्न, पाइरसी और हॅकिंग वाले वेबसाइट्स का काफ़ी पुराना रिश्ता रहा है. और इस तरह के वेबसाइट अपने pc में खोलना मतलब वाइरसस को खुला आमंत्रण देना.

समस्या के कुछ पहलु अभी देने शेष हैं, थोडा फुर्सत निकाल कर विस्तार से लिखता हूँ |

मेरा conclusion यह है

user should be given a warning message for the first time before they enter inside the these kinds of websites. If a child still wants to enter, its their and their parents problem.

मुझे ये कन्क्ल्युजन कम पलायनवादिता अधिक लगी अमोल भाई |
भला कौन बच्चा अपने माँ बाप को बता कर ऐसी साईट पर आता है! क्या है कोई ऐसा?
उन्होंने तो पढने के लिए लेकर दिया अब कमरे में बैठा लाल क्या कर रहा है उसकी जिम्मेवारी उन पर?
एक बहुत पुरानी पंक्ति है कि आपकी स्वतंत्रता आपकी नाक तक ही होती है, यदि किसी चीज़ से बाकी सबको फर्क पड़ता है तो उसे फैलाना अपराध है |
सामजिक समस्या पर वकील कि तरह देखना उचित नहीं है कि इस इस से यह प्रत्यक्ष दुष्प्रभाव होता है बस |
इसे कैसे आप सिगरेट आदि बुराइयों के साथ मिला देते हैं क्या कभी नुक्कड़ के पान वाले के पास ऐसी सामग्री लटकी देखि है? क्या लोग पार्क में बैठ कर देखते करते हैं?
सामान्य मनुष्य, एक पिता, एक पुत्र हो कर देखिये | यदि आपको अपने किसी बड़े को दो में से एक चीज़ जाहिर करने को कही जाये तो क्या बताना पसंद करेंगे सिगरेट पीना या ऐसी लत का शिकार होना ?
व्यक्तिगत ना लें मैं सिर्फ आपको उस परिस्थिति से साकार करना चाहता हूँ |

the indian penal code, 1860 section 293 also specifies, in clear terms, the law against sale etc. Of obscene objects to minors.
Chapter xi



आज से करीब ४-५ साल पहले चेन्नई के एक पोर्न वेबसाइट चलाने वाले को पुलिस ने पकड़ा था उसे तो २ साल की जेल हुई और उस वेबसाइट में जितने लोग काम करते थे या उससे जुड़े थे उन्हें भी ६ ६ महीने की सजा हुई. तो ऐसा है की अपना भारत का कानून भी काफी कड़ा है इस मामले में और बुरी चीज़ का अंत तो होता ही है एक न एक दिन.

हर मामले में पुलिस, क़ानून को पड़ना चाहिए किन्तु कभी तो हम भी पहल कर सकते हैं |हर एक कंप्यूटर के बगल में एक सिपाही नहीं खड़ा हो सकता ! यदि हम अपनी आदत सुधारे, यदि हम अपने चरित्र को प्रबल करें, यदि हम अपने को संयमित करें तो ये ट्रैफिक रुकेगा | इस धंधे पर भी मांग और आपूर्ति का नियम लगता है, यदि मांग नहीं होगी तो पूर्ति कहाँ ?

ऐसे लोगों को साल दो साल कि सज़ा से पूर्ति नहीं होगी, इनका सामाजिक तिरस्कार और दंड की तीव्रता इतनी अधिक हो कि रूह काँप जाये |
ऐसे कुछ व्यक्तियों की पहचान उत्तर भारत में भी हुई है और उनके सहयोगियों का पता किया जा रहा है और क्रिया कर्म भी शीघ्र ही होगा किन्तु अभी थोडा छानबीन चल रही है ताकि एकसाथ काफी नुक्सान इन्हें पहुचाया जाए |

अंततः अमोल बंधू मेरे विचार में आप हर विषय को काफी तुलनात्मक दृष्टि से देखते हैं जो विषय को जीवंत बना देता है | मुझे आपके अगले उत्तर की प्रतीक्षा रहेगी |

ndhebar
10-12-2010, 09:48 AM
क्या बात है भाई इतनी रात को बैठ कर आर्टिकल लिख रहे हो
कहीं वो वाली साईट तो नहीं खोल रखी है

amit_tiwari
10-12-2010, 10:01 AM
क्या बात है भाई इतनी रात को बैठ कर आर्टिकल लिख रहे हो
कहीं वो वाली साईट तो नहीं खोल रखी है

ये असल में बंधू आर्टिकल नहीं स्पीच थी जो पिछले माह एक मल्टीमीडिया संसथान के समारोह के लिए लिखी थी, बस मित्रों से बांटने का मन किया तो यहाँ हिंदी में अनुवाद करके चिपका दी |

दिन और रात की बात आईटी+आउट्सोर्सिंग वाले से ? राम राम राम कलियुग पक्का टपक गया है |

arvind
10-12-2010, 10:07 AM
देश मे जितने भी घोटाले अभी तक हुये है, उन सब को एक साथ जोड़ दिया तब भी ये मुद्दा उन सब पर दस गुणा भारी पड़ेगा, क्योंकि घोटालो मे तो धन की हानि होती है, जो पूरा किया जा सकता है, मगर यह तो पूरे समाज और संस्कृति को तबाह कर रहा है।

amol
10-12-2010, 10:13 AM
क्या मेरे किसी शब्द से आपको लगा कि मैंने वयस्क शिक्षा प्रदान करने वाली साईट कि बुरे की? भाव समझिये, मैं शब्दों को अति संतुलित और सामान्य रखना चाहता हूँ ताकि सभी को पढने में सुगम लगे, इस छिपी हुई बुराई को मैं कमरों से निकाल कर ड्राइंग रूम में लाना चाहता हूँ और उसके लिए आप जैसे जागरूक युवाओं की आवश्यकता है |



मैं आपके इस प्रयास का स्वागत करता हूँ. आईये चर्चा को आगे बढ़ाते है.

ndhebar
10-12-2010, 10:17 AM
अभी जरा एक ठो क्लाइंट से निपट लूँ
फिर मिलता हूँ

amit_tiwari
10-12-2010, 10:20 AM
देश मे जितने भी घोटाले अभी तक हुये है, उन सब को एक साथ जोड़ दिया तब भी ये मुद्दा उन सब पर दस गुणा भारी पड़ेगा, क्योंकि घोटालो मे तो धन की हानि होती है, जो पूरा किया जा सकता है, मगर यह तो पूरे समाज और संस्कृति को तबाह कर रहा है।

सत्य वचन |

एक बात जो मैं व्यक्तिगत रूप से जोड़ना चाहूँगा कि इसके लती तब tak अपराधी नहीं हैं जब तक इसके दुष्प्रभाव ना समझें, अपनी नव्युवावस्था में मुझे भी सभी कि तरह एक समय चस्का लगा हुआ था किन्तु नियमित काउंसिलिंग और व्यक्तिगत संयम से इस आदत पर काफी लम्बे समय पहले काबू पाया | किसी कुचक्र में पड़ना उतना गलत नहीं है जितना उसकी हानियाँ समझ कर भी पड़े रहना है |
प्रयास करें, संयम रखें थोडा सा प्रयत्न करें फिर देखें कैसे आप इससे ऊपर उठेंगे और यदि मेरे एक भी शब्द का विश्वास कर सकें तो मैं वचन दे सकता हूँ की आप अपने को अधिक मुक्त, स्वस्थ और आत्मविश्वास से भरा हुआ पाएंगे |
संयम ही तो हर सफलता की कुंजी है, योग ध्यान, तपस्या बस संयम के ही अलग अलग नाम हैं, एक बार प्रयास करिए और चमत्कारिक फल पाएंगे |

amol
10-12-2010, 10:20 AM
[QUOTE=amit_tiwari;29298]वार्निंग को किसने आज तक देखा ? रोड पे धीरे चलने का संकेत होता है फिर भी एक्सीडेंट होते हैं, सिगरेट पर ना पीने के संकेत होता है किन्तु फिर भी कैंसर होते हैं पी पी के |[QUOTE]

बहुत सही बात कही है आपने, ना हम रोड पर चलना छोड़ सकते है और ना ही सिगरेट पीना. वैसे ही कुछ लोग है जिनको मज़ा आता है इस तरह के websites पर तो यह उनकी मर्ज़ी है. सबको पता रहता है सिगरेट पीके जल्दी मर जायेंगे लेकिन फिर भी पीते है. जिस तरह संसार से सिगरेट को गायब नहीं कर सकते वैसे ही इन्टरनेट पर इस तरह के वेबसाइट हमेशा ही रहेंगे. और यह हरेक individual पर depend करता है की वो इसे देखे के ना देखे. जैसे की सिगरेट पिए की ना पिए.

amol
10-12-2010, 10:25 AM
हर एक प्रतिभागी अपराधी है उस गिरोह को पालने का जो ये सब कराते हैं |
आखिर ऐसा जघन्य कार्य करने वाले किसी मंदिर के पुजारी तो नहीं होते? ये एक जगह से निकला पैसा, पाइरेसी में लगता है, पाइरेसी के लिए अन्य अपराधियों का सहारा लिया जाता है इस प्रकार से यह एक कुचक्र चलाता है |


तो ऐसे मामले में हम लोग james बोंड की तरह तो नहीं बनकर उनको पकड़ तो नहीं सकते. केवल हम लोगो के हाथ में इतना ही है की हम इस तरह के वेबसाइट कभी भूल कर भी ना visit करे और अपने मित्रो और रिश्तेदारों को भी आगाह करते रहे.

amol
10-12-2010, 10:29 AM
मैं पुनः उसी आंकड़े को दोहराना चाहूँगा कि हर रोज़ एक बलात्कार हो रहा है

यह stat कुछ समाज में नहीं आया, मेरे पास जो डाटा है.




According to the data compiled by the National Crime Record Bureau (NCRB), a total of 20,737 rape cases were registered in 2007 against 19,384 in 2006, while the figure was 18,359 in 2005 and 18,233 in 2004 against 15,847 in 2003.

The data tabled in Parliament pointed out that the maximum number of cases were registered in Madhya Pradesh and West Bengal.

Madhya Pradesh had 3,010 rape cases in 2007 against 2,900 in 2006. West Bengal accounted for 2,106 rape cases in 2007 against 1,731 in 2006.

While the number of such crimes was on the rise in almost all states, Delhi has witnessed a reverse trend in the past two years.

arvind
10-12-2010, 10:37 AM
कोई भी अपराध पूरी तरह से खत्म होना प्रायोगिक रूप से असंभव है, हाँ लेकिन उसे कम तो जरूर किया जा सकता है.... मगर इसके लिए कई स्तर पर मोर्चा खोलना होगा - सरकारी स्तर से लेकर व्यक्ति स्तर तक। कानून को प्रभावी एवं सख्ती से लागू करना होगा। यह सही है की कोई भी व्यक्ति कोई भी साईट कुछ हजार रुपये खर्च करके आसानी से शुरू कर सकता है, और कंटैंट का क्या है - उसके लिए तो मेहनत की जरूरत ही नहीं है, बस खाली पोस्ट करने की सुविधा दे दीजिये, फिर देखिये.... लेकिन इसे भी आसान है, इसे रोकना.... अगर "सक्षम" सरकारी विभाग चाह ले तो मिन्टो मे उस साईट के ip address को ब्लॉक कर सकती है, तब ऐसे साईट चलाने वाले कुछ नहीं कर पाएंगे और उनकी सारी की सारी तैयारी धरी रह जाएगी।

Hamsafar+
10-12-2010, 12:11 PM
इस तरह की साइटें जहा से भी चलाई जा रही हों, पर हमारे देश में इनको आसानी से देखा जा सकता है, एषा क्यों, ??? भारतीय कानून में जब ये गुनाह है तो भारतीय कानून इन साइटों पर प्रतिबन्ध क्यों नहीं लगता ??
जब हम अपने टेलीविसन पर चेनल सर्च करते है तो इंटरनेट पर भी, अब उसमे कुछ जिंगा लाला हुर्र फुर्र हो जाये तब.
कहने का मतलब इंटरनेट कनेक्सन तो भारत सरकार के दूरसंचार केंद्र से ही कनेक्ट है , तो दूरसंचार विभाग के माध्यम से ये सब क्यों दीखता है बोले तो जिंगा लाला हुर्र फुर्र !

pooja 1990
10-12-2010, 04:26 PM
क्या फायदा आप लोगो के जिरह करने से. मैं मोबाइल से नेट use करती हु. वो भी काफी सस्ते मोबाइल samsung 3310 से.

और google पर search करने पर काफी मात्र में अदुल्ट साईट मिल जाती है जो मोबाइल को support करती है. जिनसे आप 3gp mp4 40 or 50 mb से ज्यादा की विडियो डाउनलोड कर सकते है.

इन पर indian goverment को रोक लगानी चाहिए

thanks

amit_tiwari
10-12-2010, 04:37 PM
तो ऐसे मामले में हम लोग james बोंड की तरह तो नहीं बनकर उनको पकड़ तो नहीं सकते. केवल हम लोगो के हाथ में इतना ही है की हम इस तरह के वेबसाइट कभी भूल कर भी ना visit करे और अपने मित्रो और रिश्तेदारों को भी आगाह करते रहे.

यही मैं कहना चाहता हूँ कि सरकार को जो करना है वो करे, करे या ना करे पर हम अपनी तरफ से इतनी जागरूकता ले आयें कि स्वयं ही ना जाएँ |

कोई भी अपराध पूरी तरह से खत्म होना प्रायोगिक रूप से असंभव है, हाँ लेकिन उसे कम तो जरूर किया जा सकता है.... मगर इसके लिए कई स्तर पर मोर्चा खोलना होगा - सरकारी स्तर से लेकर व्यक्ति स्तर तक। कानून को प्रभावी एवं सख्ती से लागू करना होगा। यह सही है की कोई भी व्यक्ति कोई भी साईट कुछ हजार रुपये खर्च करके आसानी से शुरू कर सकता है, और कंटैंट का क्या है - उसके लिए तो मेहनत की जरूरत ही नहीं है, बस खाली पोस्ट करने की सुविधा दे दीजिये, फिर देखिये.... लेकिन इसे भी आसान है, इसे रोकना.... अगर "सक्षम" सरकारी विभाग चाह ले तो मिन्टो मे उस साईट के ip address को ब्लॉक कर सकती है, तब ऐसे साईट चलाने वाले कुछ नहीं कर पाएंगे और उनकी सारी की सारी तैयारी धरी रह जाएगी।


सत्य वचन बन्धु, मैं बिना किसी संकोच के सहमत हूँ कि किसी भी प्रकार के अपराध को शत प्रतिशत समाप्त करना असंभव है किन्तु जैसे चोरी, डकैती और हत्यारों को एक सामाजिक तिरस्कार मिलता है वैसा ही इस केस में भी होना चाहिए | ऐसी साईट को चलने वाले, सहयोग देने वाले घी चुपड़ी बातों से सबके प्रिय बने बैठे रहते हैं और प्रोत्साहन पाते हैं |
उनके इस सपोर्ट को ख़त्म करना है, इतना और इस कदर धिक्कारना है कि ऐसी साइटों के पोषक सर उठा के अपने घर में भी ना रह सकें |

इस तरह की साइटें जहा से भी चलाई जा रही हों, पर हमारे देश में इनको आसानी से देखा जा सकता है, एषा क्यों, ??? भारतीय कानून में जब ये गुनाह है तो भारतीय कानून इन साइटों पर प्रतिबन्ध क्यों नहीं लगता ??
जब हम अपने टेलीविसन पर चेनल सर्च करते है तो इंटरनेट पर भी, अब उसमे कुछ जिंगा लाला हुर्र फुर्र हो जाये तब.
कहने का मतलब इंटरनेट कनेक्सन तो भारत सरकार के दूरसंचार केंद्र से ही कनेक्ट है , तो दूरसंचार विभाग के माध्यम से ये सब क्यों दीखता है बोले तो जिंगा लाला हुर्र फुर्र !

भारतीय क़ानून आईटी के मामले में कितना लचर है यह किस्से छिपा है भाई |
कुछ अप्रत्यक्ष प्राविधान हैं पुलिस के पास जो लागु हो सकते हैं किन्तु मेला, दैनिक जाम, वीआइपी द्युति, चुनाव, बिजली छपे इन्ही से फुर्सत मिले तो कुछ और करें |

fullmoon
10-12-2010, 09:48 PM
अमित जी,

एक ज्वलंत विषय इस फोरम में उठाने के लिए आप बधाई के पात्र हैं.
आपके और अमोल जी के मध्य हुआ वार्तालाप बहुत ही रोचक है.
आप के लेख से मैं पूरी तरह से सहमति रखता हूँ.
इसी प्रकार के विषयों पर स्वस्थ बहस की आपसे सदैव आशा रहेगी.

ndhebar
11-12-2010, 09:46 AM
यही मैं कहना चाहता हूँ कि सरकार को जो करना है वो करे, करे या ना करे पर हम अपनी तरफ से इतनी जागरूकता ले आयें कि स्वयं ही ना जाएँ|

मैंने तो छोड़ दिया और काफी हद तक खुश और संतुष्ट भी हूँ.......................
लोगों से बस यही कहूँगा की

ऐसी चीजे आपको मानसिक स्तर पर कमजोर और बीमार बनाती है
इससे बचें और अपनी उर्जा सकारात्मक कार्यों में लगाएं, आपको आतंरिक ख़ुशी मिलेगी

धन्यवाद

Kalyan Das
11-12-2010, 10:31 AM
मैंने तो छोड़ दिया और काफी हद तक खुश और संतुष्ट भी हूँ.......................
लोगों से बस यही कहूँगा की

ऐसी चीजे आपको मानसिक स्तर पर कमजोर और बीमार बनाती है
इससे बचें और अपनी उर्जा सकारात्मक कार्यों में लगाएं, आपको आतंरिक ख़ुशी मिलेगी

धन्यवाद

सौ चूहा खाके अब बिल्ली चली हज को !! हा हा हा हा
मज़ाक कर रहा हूँ दोस्त !!

abhisays
11-12-2010, 10:39 AM
एडल्ट साइट्स से बचने का सबसे अच्छा तरीका है की आप उसे अपने PC पर खुलने ही ना दो. ना इस तरह के साईट PC पर खुलेंगे और ना ही आपके घर में और आपके ऑफिस में कोई इनको access कर पायेगा.

अगर आप IE इस्तेमाल करते है तो. इन settings को आप enable कर सकते है.

◦Go to Tools > Internet Options > Content
◦In the “Content Advisor” section click on “Enable”
You are now in the Content Advisor. From here you can set your settings.
◦Use “Ratings” Tab – Set rating levels for: language, nudity, sex and violence

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=5607&stc=1&d=1292049192


firefox के लिए आप FoxFilter इस्तेमाल कर सकते है. FoxFilter भी इस तरह के वेबसाइट को ब्लाक कर देता है.

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=5608&stc=1&d=1292049397


और भी कुछ खास softwares है जिनका आप उपयोग इस तरह के वेबसाइट को ब्लाक करने के लिए कर सकते है.

We-Blocker (http://www.we-blocker.com/)
CyberSitter (http://www.cybersitter.com/)
CyberPatrol (http://www.cyberpatrol.com)
NetNanny (http://www.netnanny.com)

Kalyan Das
11-12-2010, 10:50 AM
बॉस इण्डिया नेपाल पकिस्तान और बंगलादेश से कितना ह्युमन ट्रैफिकिंग गल्फ, यूरोप, थाईलैंड को होती है इसका अनुमान भी है ???
उड़ीसा के गरीब परिवारों से पांच किलो चावल के बदले लडकियाँ खरीद ली जाती हैं ये ख़बरें आपने कभी नहीं देखीं ?


मित्र माफ़ी चाहूंगा, आपके सूत्र में कुछ शब्द जोड़ रहा हूँ !!
किसी देस या राज्य का नाम उल्लेख करके, सरे आम बदनाम करना आपको शोभा नहीं देता !!
रही बात article या स्पीच की, तो क्या आप जानते हैं, जो लोग ऐसे अच्छे अच्छे article लिखते है, वो पढने सुनने में तो बहुत अच्छा लगता है !!
पर विडम्बना ये है की वही लोग दिन में सफ़ेद चेहरे लेके घूमते हैं !! समाज में अच्छे हैसियत, रुतवा, सम्मानित पद रखते हैं और रात के अंधेरों में बिना कॉलगर्ल के उन्हें नींद नहीं आती !!
और "कॉलगर्ल", आपके वर्णित उपरोक्त कन्याओं में नहीं आते !! क्यूंकि ये प्राणी (कॉलगर्ल) भी दिन के उजाले में सफ़ेद चेहरों में से जाने जाते हैं !!
स्पष्टीकरण :
मेरा ये कथन किसी व्यक्ति विशेष पर व्यक्तिगत आक्षेप नहीं है !! एक सार्वजनिक सच्चाई है !!

amit_tiwari
11-12-2010, 06:28 PM
क्या फायदा आप लोगो के जिरह करने से. मैं मोबाइल से नेट use करती हु. वो भी काफी सस्ते मोबाइल samsung 3310 से.

और google पर search करने पर काफी मात्र में अदुल्ट साईट मिल जाती है जो मोबाइल को support करती है. जिनसे आप 3gp mp4 40 or 50 mb से ज्यादा की विडियो डाउनलोड कर सकते है.

इन पर indian goverment को रोक लगानी चाहिए

thanks

जिरह नहीं यह समर्थन जुटाने की मुहीम है, जो जानते हैं की ये गलत है उन्हें रोकने को उकसाने की पहल है और जो नहीं जानते उन्हें बताने की जिद |
कुछ दिन प्रेम से मना कर रहे हैं बाद में पूजा करेंगे |

अमित जी,

एक ज्वलंत विषय इस फोरम में उठाने के लिए आप बधाई के पात्र हैं.
आपके और अमोल जी के मध्य हुआ वार्तालाप बहुत ही रोचक है.
आप के लेख से मैं पूरी तरह से सहमति रखता हूँ.
इसी प्रकार के विषयों पर स्वस्थ बहस की आपसे सदैव आशा रहेगी.

मैंने तो छोड़ दिया और काफी हद तक खुश और संतुष्ट भी हूँ.......................
लोगों से बस यही कहूँगा की

ऐसी चीजे आपको मानसिक स्तर पर कमजोर और बीमार बनाती है
इससे बचें और अपनी उर्जा सकारात्मक कार्यों में लगाएं, आपको आतंरिक ख़ुशी मिलेगी

धन्यवाद

सामान्यतया मैंने अपने सूत्रों में धन्यवाद नहीं देता किन्तु इस विचार का समर्थन करने के लिए धन्यवाद |
मेरा आग्रह है की जो जरा भी मन में ऐसा विचार ला रहे हैं की वो छोड़ें या ना छोड़ें वो यहाँ प्रण करके कुछ दिन सब्र करके देखें, परिणाम उन्हें स्वयं पता लग जायेगा |

एडल्ट साइट्स से बचने का सबसे अच्छा तरीका है की आप उसे अपने PC पर खुलने ही ना दो. ना इस तरह के साईट PC पर खुलेंगे और ना ही आपके घर में और आपके ऑफिस में कोई इनको access कर पायेगा.

अगर आप IE इस्तेमाल करते है तो. इन settings को आप enable कर सकते है.

◦Go to Tools > Internet Options > Content
◦In the “Content Advisor” section click on “Enable”
You are now in the Content Advisor. From here you can set your settings.
◦Use “Ratings” Tab – Set rating levels for: language, nudity, sex and violence

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=5607&stc=1&d=1292049192


firefox के लिए आप FoxFilter इस्तेमाल कर सकते है. FoxFilter भी इस तरह के वेबसाइट को ब्लाक कर देता है.

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=5608&stc=1&d=1292049397


और भी कुछ खास softwares है जिनका आप उपयोग इस तरह के वेबसाइट को ब्लाक करने के लिए कर सकते है.

We-Blocker (http://www.we-blocker.com/)
CyberSitter (http://www.cybersitter.com/)
CyberPatrol (http://www.cyberpatrol.com)
NetNanny (http://www.netnanny.com)

उपयोगी जानकारी बंधू |:cheers::cheers:

सौ चूहा खाके अब बिल्ली चली हज को !! हा हा हा हा
मज़ाक कर रहा हूँ दोस्त !!

वैसे मुझे नहीं लगा भाई की यह मजाक था या मजाक का सूत्र है, ये तंज अधिक लगा |
यदि हम कभी किसी समय कुछ गलत कर जाएँ तो क्या सिर्फ जीवन भर उसे इस लिए करते रहें क्यूंकि हमने उसे एक बार किया ?
कम से कम मैं ऐसी बिल्ली बनने को जीवन भर तैयार हूँ |

मित्र माफ़ी चाहूंगा, आपके सूत्र में कुछ शब्द जोड़ रहा हूँ !!
किसी देस या राज्य का नाम उल्लेख करके, सरे आम बदनाम करना आपको शोभा नहीं देता !!
रही बात article या स्पीच की, तो क्या आप जानते हैं, जो लोग ऐसे अच्छे अच्छे article लिखते है, वो पढने सुनने में तो बहुत अच्छा लगता है !!
पर विडम्बना ये है की वही लोग दिन में सफ़ेद चेहरे लेके घूमते हैं !! समाज में अच्छे हैसियत, रुतवा, सम्मानित पद रखते हैं और रात के अंधेरों में बिना कॉलगर्ल के उन्हें नींद नहीं आती !!
और "कॉलगर्ल", आपके वर्णित उपरोक्त कन्याओं में नहीं आते !! क्यूंकि ये प्राणी (कॉलगर्ल) भी दिन के उजाले में सफ़ेद चेहरों में से जाने जाते हैं !!
स्पष्टीकरण :
मेरा ये कथन किसी व्यक्ति विशेष पर व्यक्तिगत आक्षेप नहीं है !! एक सार्वजनिक सच्चाई है !!

मेरे किसी राज्य के बारे में कहे गए शब्द आक्षेप या अपमान नहीं हैं, ये सत्य है जो मैंने खुद देखा है | मैंने अपने परा स्नातक के प्रोजेक्ट में दो पत्रकारों के साथ उस प्रदेश का दौरा किया है जहां लोगों ने स्वयं ये बातें बताई हैं, सिर्फ बतायीं ही नहीं इस प्रकार के दो पिताओं से मिल चुका हूँ |
यदि मुझे ज्वर है तो उस बीमारी को कहना मेरा अपमान नहीं है, हाँ उसे जान के उसका इलाज करने की जगह मुंह छिपा लेना अवश्य शत्रुता निभाना है |
मुझे इस पूर्वाग्रह का कारण भी नहीं समझ में आता कि जिसका भी समाज में कोई सम्मानजनक स्थान है वो शत प्रतिशत व्यभिचारी ही है | पांच दस प्रतिशत ऐसे लोग होंगे किन्तु सभी को एक लाइन में खड़ा कर देना किसी अस्सी के दशक की ठाकुर टाइप फिल्म का सीन अधिक प्रतीत होता है |
सामाजिक स्थिति में ऊपर के तबके में बैठे अधिकतर लोग अथक परिश्रम और बुद्धि के बल पर वहाँ पहुंचे हैं जिनका विवेक सामान्य से अधिक है और जिन्हें अपनी प्रतिष्ठा अधिक प्यारी होती है |
मैं आपकी भावनाओं को समझता हूँ कि आपका आक्षेप व्यक्तिगत नहीं था किन्तु क्यूंकि मैं बाकी सबकी तरफ से उत्तर नहीं दे सकता अतः अपने ऊपर से ही उत्तर देना चाहूँगा |
आर्टिकल लिखने वाली बात आपकी इस सीमा तक सही है की मैं इससे पैसे बनाता हूँ, ये मेरा हुनर है की मैं उत्तेजक लिख और बोल सकता हूँ और अपने किसी हुनर से पैसे बनाना मेरा अधिकार है किन्तु इस विषय पर बोलने और करने में अंतर होने वाली बात पर मेरे ऊपर संदेह आप कर सकते हैं ? खुद से सोच कर देख लीजिये की क्या कभी अपनी किसी प्रविष्टि में मैंने ऐसा लिखा है की जन सामान्य को अच्छा लगा हो ? मुझे पता है कि यहाँ काफी लोगों को मैं घमंडी, अक्खड़ लगता हूँ और मुझे इसकी १ प्रतिशत परवाह भी नहीं है | मैं वही कहता हूँ जो मैं करता हूँ, किसी फोरम में जनसमर्थन बनाना मेरा उद्देश्य कभी नहीं रहा |

अपवाद हर क्षेत्र में हैं और उन अपवादों की आड़ लेकर यदि समस्या से मुंह छिपाना और जो सुधार करना चाहते हैं उनका मजाक बनाना आपको उचित लगता है तो मुझे इस पर कुछ नहीं कहना, बस एक छोटा सा प्रयोग स्वयं करके देख लीजिये, दस सज्जन लोगों की सभा में ऐसी किसी बात का समर्थ करके देखिये आपको उत्तर स्वयमेव मिल जायेगा |

-अमित

pooja 1990
11-12-2010, 08:54 PM
yaha par likne or use khud use karne me bahut bada dil chahiye.muje to kai safedposh chehre najar aaye .kisi ko bura laga ho to sorry.amit ji ko thanks kahna chahugi .good bye.

Kalyan Das
12-12-2010, 02:37 PM
मेरे किसी राज्य के बारे में कहे गए शब्द आक्षेप या अपमान नहीं हैं, ये सत्य है जो मैंने खुद देखा है | मैंने अपने परा स्नातक के प्रोजेक्ट में दो पत्रकारों के साथ उस प्रदेश का दौरा किया है जहां लोगों ने स्वयं ये बातें बताई हैं, सिर्फ बतायीं ही नहीं इस प्रकार के दो पिताओं से मिल चुका हूँ |
यदि मुझे ज्वर है तो उस बीमारी को कहना मेरा अपमान नहीं है, हाँ उसे जान के उसका इलाज करने की जगह मुंह छिपा लेना अवश्य शत्रुता निभाना है |


यदि मेरे परिवार में किसीको एड्स हो गया है, तो क्या में दुनिया के सामने धिन्दोरा पीटूं , ये जानते हुए की एड्स रोगी दुनिया में और भी हैं और ये जान्ने के बाद समाज में उसका क्या हर्स होगा !




मुझे इस पूर्वाग्रह का कारण भी नहीं समझ में आता कि जिसका भी समाज में कोई सम्मानजनक स्थान है वो शत प्रतिशत व्यभिचारी ही है | पांच दस प्रतिशत ऐसे लोग होंगे किन्तु सभी को एक लाइन में खड़ा कर देना किसी अस्सी के दशक की ठाकुर टाइप फिल्म का सीन अधिक प्रतीत होता है |


आपको नहीं लगता की प्रति शत कुछ कम हो गया है !! मेरे ख्याल से वास्तविक संख्या इससे कहीं गुना ज्यादा है !!




मुझे पता है कि यहाँ काफी लोगों को मैं घमंडी, अक्खड़ लगता हूँ और मुझे इसकी १ प्रतिशत परवाह भी नहीं है |



हमने अब तो ऐसा कुछ नहीं कहा !!



दस सज्जन लोगों की सभा में ऐसी किसी बात का समर्थ करके देखिये आपको उत्तर स्वयमेव मिल जायेगा |

-अमित

सज्जन ???
कैसे पता चलेगा कौन सज्जन है !! चेहरों से ???
अक्सर चेहरा धोखा देता है ज़नाब !!

ndhebar
12-12-2010, 03:00 PM
सौ चूहा खाके अब बिल्ली चली हज को !! हा हा हा हा
मज़ाक कर रहा हूँ दोस्त !!

मुझे जरा भी बुरा नहीं लगा भाई मेरे
अपना अतीत कोई नहीं बदल सकता पर वर्तमान बदल कर भविष्य बेहतर जरूर बना सकता है

एडल्ट साइट्स से बचने का सबसे अच्छा तरीका है की आप उसे अपने PC पर खुलने ही ना दो. ना इस तरह के साईट PC पर खुलेंगे और ना ही आपके घर में और आपके ऑफिस में कोई इनको access कर पायेगा.

अगर आप IE इस्तेमाल करते है तो. इन settings को आप enable कर सकते है.

◦Go to Tools > Internet Options > Content
◦In the “Content Advisor” section click on “Enable”
You are now in the Content Advisor. From here you can set your settings.
◦Use “Ratings” Tab – Set rating levels for: language, nudity, sex and violence

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=5607&stc=1&d=1292049192

अभिषेक जी सामान्यतः मैं i e ही इस्तमाल करता हूँ
आपकी जानकारी उपयोगी है.

सज्जन ???
कैसे पता चलेगा कौन सज्जन है !! चेहरों से ???
अक्सर चेहरा धोखा देता है ज़नाब !!

कल्याण भाई आप विषय से भटककर टिप्पणी कर रहे हैं
अगर आपके पास विषय से सम्बंधित तथ्य है तो पेश करें अन्यथा शांतिपूर्वक दूसरों की बात पढ़ें

Kalyan Das
12-12-2010, 03:04 PM
कल्याण भाई आप विषय से भटककर टिप्पणी कर रहे हैं
अगर आपके पास विषय से सम्बंधित तथ्य है तो पेश करें अन्यथा शांतिपूर्वक दूसरों की बात पढ़ें

नाराज़ क्यूँ हो रहें हैं, निशांत भाई ??
कहा ना मज़ाक कर रहा था !! आप तो सिरिअस हो गए !!

abhisays
12-12-2010, 03:40 PM
नाराज़ क्यूँ हो रहें हैं, निशांत भाई ??
कहा ना मज़ाक कर रहा था !! आप तो सिरिअस हो गए !!

इस तरह के विषयों को कृपया हलके और मजाक में ना ले. यहाँ हम सभी सिरिअस है

amit_tiwari
12-12-2010, 06:33 PM
यदि मेरे परिवार में किसीको एड्स हो गया है, तो क्या में दुनिया के सामने धिन्दोरा पीटूं , ये जानते हुए की एड्स रोगी दुनिया में और भी हैं और ये जान्ने के बाद समाज में उसका क्या हर्स होगा !



मुझे इस लाइन पर आश्चर्य है | भगवान् ना करें किन्तु यदि ऐसी अनहोनी हो जाये तो क्या उसका इलाज नहीं करेंगे ? एड्स कोई स्वयं में शर्मनाक स्थिति तो नहीं है ? यदि कोई इस बीमारी को अवैध संबंधों से जोड़ कर देखता है तो उसकी अज्ञानता है, इसके लिए कोई क्यूँ उसे छिपा कर घुमे ?

मेरे विचार में इस विषय पर जागरूकता होनी चाहिए ना की इसे छिपाने का प्रयास होना चाहिए |



आपको नहीं लगता की प्रति शत कुछ कम हो गया है !! मेरे ख्याल से वास्तविक संख्या इससे कहीं गुना ज्यादा है !!



नहीं, मेरे विचार से मैंने यह प्रतिशत कुछ ज्यादा लिख दिया |
पिछले माह मुझे कुछ ऐसे व्यक्तियों से मिलने का मौका मिला जो संपत्ति और पद में देश के टॉप १०० में आते हैं किन्तु उनके साथ डिनर टेबल पर बैठने का अनुभव अपने परिवार के साथ से अधिक नहीं था, इतने सरल, इतने सहज की लगता ही नहीं की ये इतने बड़े पद पर हैं |
पद की अपनी विवशताएँ होतीं हैं किन्तु मनुष्य तो वही होता है |



हमने अब तो ऐसा कुछ नहीं कहा !!


हाहाहा वो बस मेरे मुंह से निकल गया, आपकी बात पर नहीं कहा था | वैसे भी सत्य है |



सज्जन ???
कैसे पता चलेगा कौन सज्जन है !! चेहरों से ???
अक्सर चेहरा धोखा देता है ज़नाब !!

मेरी परिचित लाइन है, खग ही जाने खग की भाषा |

और मेरा उत्तर यदि बुरा ना लगे तो मैं कहना चाहूँगा की आप यहाँ कुछ ऐसे व्यक्तियों को भी जानते हैं जो अतिनिक्रिष्ट कार्य में संलग्न हैं, मेरे अनुमान से आप जानते हैं की वो ये करते हैं किन्तु फिर भी आपका उनसे दुआ सलाम चलता रहता है | यदि आपको संदेह हो तो व्यक्तिगत सन्देश में पूछ लीजिये |

-अमित

jeet
17-12-2010, 12:50 AM
:clap::clap::clap::clap::clap::clap::clap:

madhavi
17-12-2010, 05:29 AM
|
पिछले माह मुझे कुछ ऐसे व्यक्तियों से मिलने का मौका मिला जो संपत्ति और पद में देश के टॉप १०० में आते हैं किन्तु उनके साथ डिनर टेबल पर बैठने का अनुभव अपने परिवार के साथ से अधिक नहीं था, इतने सरल, इतने सहज की लगता ही नहीं की ये इतने बड़े पद पर हैं |
-अमित
अज़ीम प्रेमजी, विप्रो की जीवन शैली भी शायद ऐसी ही है।

madhavi
17-12-2010, 05:38 AM
" कई बार ऐसा भी होता है कि किसी को कीचड़ से निकालते हुए अपने कपड़े भी कीचड़ से भर जाते हैं "

prashant
17-12-2010, 11:25 PM
[SIZE="3"]कोई भी अपराध पूरी तरह से खत्म होना प्रायोगिक रूप से असंभव है, हाँ लेकिन उसे कम तो जरूर किया जा सकता है....

आप के इस बात में दम है.

मगर इसके लिए कई स्तर पर मोर्चा खोलना होगा - सरकारी स्तर से लेकर व्यक्ति स्तर तक। कानून को प्रभावी एवं सख्ती से लागू करना होगा। यह सही है की कोई भी व्यक्ति कोई भी साईट कुछ हजार रुपये खर्च करके आसानी से शुरू कर सकता है, और कंटैंट का क्या है - उसके लिए तो मेहनत की जरूरत ही नहीं है, बस खाली पोस्ट करने की सुविधा दे दीजिये, फिर देखिये.... लेकिन इसे भी आसान है, इसे रोकना.... अगर "सक्षम" सरकारी विभाग चाह ले तो मिन्टो मे उस साईट के ip address को ब्लॉक कर सकती है, तब ऐसे साईट चलाने वाले कुछ नहीं कर पाएंगे और उनकी सारी की सारी तैयारी धरी रह जाएगी।




सरकार अपने हिसाब से काम करती ही है.लेकिन इन्टरनेट एक ऐसी जगह
जहाँ पर हर समस्या का समाधान मिलाता है.आपने कहा है की सरकार को
साईट के ip address को ब्लॉक कर देना चाहते है.परन्तु यदि आप
प्रोक्सी सर्वर का इस्तेमाल करें तो वह साईट आप के कंप्यूटर पर खुल जायेगी.
कंप्यूटर की ९९.९९% समस्या हल के योग्य होती है.

अभी मैं आप को एक तजा उधाहरण देता wikileak का इस साईट को ना
जाने अमेरिकन सरकार ने कितनी बार हैक कर के इस साईट को बंद किया है.लेकिन
आप अभी भी wikileak को ओपन कर सकते हैं.

वैसे भी यदि भारत की सरकार किसी साईट को बंद करती है तो वह सिर्फ
भारत के सर्वर के लिए ही बंद होती है.लेकिन साईट चलाने वाले इतने
बेवकूफ नहीं होते है.उनके पास हमेशा बेकउप प्लान होता है.वे किसी
दूसरे देश का सर्वर इस्तेमाल कर के उस साईट को फिर से शुरू कर देती
है और उस साईट को आप प्रोक्सी सर्वर के इस्तेमाल से खोल सकते है.

prashant
18-12-2010, 12:44 AM
मैंने पढ़ा है की देह व्यापर दुनिया का सबसे पुराना व्यापार है.पहले हम बाजारू
औरतों को भी इज्जत से गणिका और वैश्या बुलाते थे.लेकिन आज हम उन्हें
भी रंडी या रांड(ये शब्द लिखने के लिए मैंने अपने सिने पर ५ तन का पत्थर रखा है.)बोला जाता है.
इस शब्दों के सुनने मात्र से अलग भावना आती है और इन शब्दों के अंतर से
हम यह कह सकते हैं की समाज के विचार में कितना बड़ा परिवर्तन आया है.
यानि हम कह सकते हैं की समाज के विचारों की MBE एक हो गयी है और
कोई विचार एकाएक नहीं बदलता है उसे बदलने में वर्षों लग जाते हैं.यहाँ बात
हम सेक्स से सम्बंधित विषयों की कर रहे हैं.इस सन्दर्भ में मैं एक बात कहना
चाहूँगा की हम पूरी दुनिया को नहीं सुधर सकते और ना ही सुधार पायेंगें.
क्योंकि ऐसा जरुरी नहीं की हर व्यक्ति के विचार आपस में मिले यदि ऐसा
होता तो यह दुनिया स्वर्ग हो जाती और यहाँ पर साक्षात् भगवान बसते.
कहते हैं ना मनुष्य का मन चंचल होता है.जो एक जगह नहीं टिकता है.

सेक्स की इक्षा हर प्राणी में होती है.दुनिया का कोई ऐसा प्राणी नहीं जिसने
सेक्स का अनुभव नहीं किया हो.यदि मैं झूट बोल रहा हूँ तो आप मेरा मार्गदर्शन
करना.अब इसकी पूर्ति व्यक्ति दो प्रकार से करता है.सीधे तरीके से या फिर उलटे
तरीके अपनाता है और उल्टा तरीका व्यक्ति को हमेशा पसंद आता है क्योकि
सीधे तरीके में बहुत मेहनत और संयम की आवस्यकता होती है.जोकि हर
प्राणी मात्र के लिए संभव नहीं है.

जैसा की मैंने कहा की सेक्स की इक्षा हर प्राणी
में होती है और इस आधुनिक युग में जहाँ सब कुछ इलेक्ट्रोनिक मीडिया पर
टिका हुआ है.इसमे सेक्स से सम्बंधित सामग्री आसानी से उपलब्द हो जाती है.जहाँ पर मेहनत और खतरा ना के बराबर है.जिसके कारन ज्यादा से ज्यादा
व्यक्ति नेट पर पोर्न देखने में गुजारता है.तो एक प्रशन आता है की क्या इक्षा
के पूर्ति का ये साधन गलत और असामाजिक है.तो इस बात पर हर व्यक्तियों
का अपना अपना मत है.जो समय और स्थिति के अनुरूप उचित और सार्थक
लगा है.यदि हम कुरीति ढूढने जाएँ तो हम हर विषय में दोष ढूढ सकते हैं.
बस हमें इतना ध्यान देना चाहिए ही किसी भी विषय वास्तु में अति नहीं होनी
चाहिए.क्योकि की "अति सर्वत्र वर्जयेत" अत: जो भी करें सीमा में रह कर करें.
ध्यान दें की आप के द्वारा किये कार्य से कोई दुखी तो नहीं हो रहा है या फिर
कोई हनी तो नहीं हो रही है.

सेक्स का बाजार नेट पर देखा जाये तो सबसे बड़ा है.अभी हाल में मैं एक
समाचार आई थी सेक्स.कॉम दुनिया की सबसे मंहगी बिकने वाली साईट है
और जब मैंने सबसे मंहगे बकने वाली साईट की लिस्ट देखी ६ मे से तीन तो
पोर्न से सम्बंधित साईट का समावेश था.जोकि यह बताता है की दुनिया में नेट
पर पोर्न देखने वालों की संख्या लाखों में नहीं कडोरो में है.तो क्या वे सभी
व्यक्ति रेपिस्ट का बदमाश होते हैं.ऐसे भी हमारे देश से पोर्न साईट का संचालन
बहुत कम ही होता होगा.सभी बड़ी साईट US या पश्चिमी देशों के ही होते हैं.
जहाँ पर इन बातों पर हल्ल्ला मचाना उचित नहीं समझा जाता है.यदि सरकार
अपने तरफ से बेन भी करती है तो उपयोगकर्ताओं के पास साईट खोलने और
पोर्न देखने की के और भी विकल्प मौजूद हैं.जहाँ तक रेप की बात है ऐसा काम
सिर्फ वही व्यक्ति कर सकता है जिसे संवेदना के रूप में सिर्फ मांस का लोथड़ा
(दिल) मिला हो.क्योकि की रेप करने के लिए जिगर नहीं पत्थर चाहिए.

आज के अधुनिंक माता पिता,जिन्हें इस विषय में मालूम है,उन्हें चाहिए की वे
अपने बच्चों के हरकत पर नजर रखें और उन्हें दुत्कारने की जगह सही और
गलत अंतर समझाए.क्योकि किसी महापुरुष ने कहा है की परिवार समाज की
इकाई होती है.जैसा हमारा परिवार हो,वैसा हमारा समाज होगा,वैसा ही हमारा
राज्य और देश होगा.

अमित जी मैंने आप का लिखा हुआ आर्टिकल,स्पीच,व्याख्या,प्रवचन या फिर
समाज को सुधारने की मुहीम आप जो भी कह लें.अच्छा लगा....मैं एक सवाल
आप से पूछना चाहता हूँ क्या आप ये काम सिर्फ virtually करते हैं या
physically तौर पर भी भाग लेते हैं?


नोट:- इस पोस्ट में मैंने सिर्फ अपना मत रखा है.मैंने किसे के विचार
और मत को बदलने की कोशिश नहीं की है.फिर भी यदि किसी सदस्य को ऐसा
प्रतीत होता की उसके विचार को बदलने या कटाने की कोशीश की गयी है या
फिर मेरे कोई शब्द अनुचित लगे हो तो मैंन उसके लिए क्षमा चाहता हूँ.

धन्यवाद

madhavi
18-12-2010, 05:00 AM
प्रशान्त भाई ने एक शब्द 'वैश्या' प्रयोग किया है जबकि सही शब्द होना चाहिए 'वेश्या'

madhavi
18-12-2010, 05:20 AM
अश्लीलता हमारे मन में होती है !
आप देखें कि हम इस दुनिया को चार भागों में बांट सकते हैं
1 नंगे रहने वालों की दुनिया जैसे अफ़्रीका में कुछ स्थान हो सकते हैं- यहां अभी नंगे रहते हैं एक साथ भाई बहन पिता पुत्री ससुर बहू या अन्य सम्बन्धी ! तो क्या इनमें नग्नता का कोई प्रभाव इनके रिश्तों पर होता है?
2 पश्चिमी देश -यहाँ भी काफ़ी खुलापन है ! तो क्या इन लोगों में आपस में कोई अश्लीलता का भाव उत्पन्न होता है? हाँ हमारे देश से या किसी अन्य पूर्वी देश से कोई वहां जा कर उन लोगों को देखता है तो अवश्य उसके मन में भाव उभरता है कि यह नग्नता है।
3 पूर्वी देश जैसे भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका इत्यादि।
भारत में महिलाएँ साड़ी पहनती हैं तो उनका पेट, कमर नंगी रहती है, क्या हमारा मन इसे अश्लील कहता है?
नहीं !
4 वह स्थान जहाँ पर स्त्रियाँ अब भी परदे में रहती है जैसे बुरके में ! मध्य-पूर्वी एशिया के कुछ देशों में बुरके का प्रचलन है और वहां पर स्त्री के हाथ और पैर भी अगर दिख जाएं तो इसे अश्लीलता माना जाता है।
अब बुरके वाली तो साड़ी पहने महिला को यही कहेगी कि यह नग्न-प्रदर्शन है।
साड़ी वाली यह कहेगी कि बिकनी में नग्नता है।
बिकनी वाली कहेगी कि Nude colony में रहने वाली महिला नग्न है।
लेकिन अफ़्रीका में किसी स्थान पर अगर सभी नग्न रहते हैं तो उस स्थान पर रहने वाली नग्न महिला को कोई नग्न (अश्लील) नहीं कहेगा/ मानेगा।

prashant
18-12-2010, 09:44 AM
प्रशान्त भाई ने एक शब्द 'वैश्या' प्रयोग किया है जबकि सही शब्द होना चाहिए 'वेश्या'

माधवी बहन तृती सुधारने के लिए.यदि आप जैसे सदस्यों का साथ रहा तो
जो मेरे बिगरी हुई हिंदी है वो जल्दी ही पटरी पर आ जायेगी.ये मैं अपने मन से
कह रहा हूँ इसमे कुछ भी अन्यथा नहीं है.
धन्यवाद.:party:

arvind
18-12-2010, 09:48 AM
सरकार अपने हिसाब से काम करती ही है.लेकिन इन्टरनेट एक ऐसी जगह
जहाँ पर हर समस्या का समाधान मिलाता है.आपने कहा है की सरकार को
साईट के ip address को ब्लॉक कर देना चाहते है.परन्तु यदि आप
प्रोक्सी सर्वर का इस्तेमाल करें तो वह साईट आप के कंप्यूटर पर खुल जायेगी.
कंप्यूटर की ९९.९९% समस्या हल के योग्य होती है.

अभी मैं आप को एक तजा उधाहरण देता wikileak का इस साईट को ना
जाने अमेरिकन सरकार ने कितनी बार हैक कर के इस साईट को बंद किया है.लेकिन
आप अभी भी wikileak को ओपन कर सकते हैं.

वैसे भी यदि भारत की सरकार किसी साईट को बंद करती है तो वह सिर्फ
भारत के सर्वर के लिए ही बंद होती है.लेकिन साईट चलाने वाले इतने
बेवकूफ नहीं होते है.उनके पास हमेशा बेकउप प्लान होता है.वे किसी
दूसरे देश का सर्वर इस्तेमाल कर के उस साईट को फिर से शुरू कर देती
है और उस साईट को आप प्रोक्सी सर्वर के इस्तेमाल से खोल सकते है.
आपने बहुत ही तकनीकी बाते कही है। हरेक जगह, चाहे वो बैंक हो, कार्यालय हो, आपका घर हो या कोई भी जगह - हर जगह आप सुरक्षा के लिए यथासंभव बेहतर प्रणाली का उपयोग करते है, फिर भी उस सुरक्षा घेरा को पार करके कोई चिन्दी चोर आपका माल उड़ा ले जाता है, तो क्या बाकी लोग यही यह सबक लेते कि कितना भी सुरक्षा कर लो चोरी तो होनी है........ नहीं ना।

मैंने यह भी कहा है कि किसी भी अपराध को शत प्रतिशत नियंत्रित नहीं किया जा सकता। अगर मान ले कि इस समय पूरे विश्व मे जितने भी अश्लील या पॉर्न साईट चल रहे है, अगर 10% भी इस विधि से अनुपलब्ध हो जाये तो कुछ तो कमी आएगी ही, क्योंकि सारे साईट चलाने वाले wikileaks वालो की तरह संगठित और कम्प्युटर एक्सपर्ट नहीं होते। A** का हश्र देख लीजिये - backup अभी तक restore नहीं हो पाया है। बहुत सारे लोग वैसे भी है, जो प्रोक्सी साईट के बारे मे जानते भी नहीं है। अगर किसी एक विधि से अगर एक भी व्यक्ति को हम बचा लेते है, तो मै उस विधि को सफल ही समझता हूँ।

prashant
18-12-2010, 09:58 AM
अश्लीलता हमारे मन में होती है !
आप देखें कि हम इस दुनिया को चार भागों में बांट सकते हैं
1 नंगे रहने वालों की दुनिया जैसे अफ़्रीका में कुछ स्थान हो सकते हैं- यहां अभी नंगे रहते हैं एक साथ भाई बहन पिता पुत्री ससुर बहू या अन्य सम्बन्धी ! तो क्या इनमें नग्नता का कोई प्रभाव इनके रिश्तों पर होता है?
2 पश्चिमी देश -यहाँ भी काफ़ी खुलापन है ! तो क्या इन लोगों में आपस में कोई अश्लीलता का भाव उत्पन्न होता है? हाँ हमारे देश से या किसी अन्य पूर्वी देश से कोई वहां जा कर उन लोगों को देखता है तो अवश्य उसके मन में भाव उभरता है कि यह नग्नता है।
3 पूर्वी देश जैसे भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका इत्यादि।
भारत में महिलाएँ साड़ी पहनती हैं तो उनका पेट, कमर नंगी रहती है, क्या हमारा मन इसे अश्लील कहता है?
नहीं !
4 वह स्थान जहाँ पर स्त्रियाँ अब भी परदे में रहती है जैसे बुरके में ! मध्य-पूर्वी एशिया के कुछ देशों में बुरके का प्रचलन है और वहां पर स्त्री के हाथ और पैर भी अगर दिख जाएं तो इसे अश्लीलता माना जाता है।
अब बुरके वाली तो साड़ी पहने महिला को यही कहेगी कि यह नग्न-प्रदर्शन है।
साड़ी वाली यह कहेगी कि बिकनी में नग्नता है।
बिकनी वाली कहेगी कि nude colony में रहने वाली महिला नग्न है।
लेकिन अफ़्रीका में किसी स्थान पर अगर सभी नग्न रहते हैं तो उस स्थान पर रहने वाली नग्न महिला को कोई नग्न (अश्लील) नहीं कहेगा/ मानेगा।


मैं आपकी बात से पूर्णत: सहमत हूँ.

कहते हैं ना जैसे हमारे विचार होते हैं.वैसे ही हमारी रचना होती.
यदि कोई गलत सोचेगा तो उसे सब कुछ गलत ही लगेगा.
यदि कोई व्यक्ति कहे की फलाने ने मुझे बिगाड़ दिया.तो मुझे उस पर हंसी
आती है.मैं यह सोचता हूँ की क्या यह आदमी इतना शरीफ था की इसे
दूसरा कोई बिगाड़ सके या फिर यह अपनी गलती /कायरत छुपाने के लिए दूसरे
को दोषी ठहराते है.यह बहुत बड़ी विडम्बना है की हम अपनी गलती का कारन
अधिकाशंतः हमेशा दूसरों को ही मानते है.हम अपने आप में नहीं देखते
की हमारे अंदर बिगडने की क्षमता कितनी है.

prashant
18-12-2010, 10:11 AM
आपने बहुत ही तकनीकी बाते कही है। हरेक जगह, चाहे वो बैंक हो, कार्यालय हो, आपका घर हो या कोई भी जगह - हर जगह आप सुरक्षा के लिए यथासंभव बेहतर प्रणाली का उपयोग करते है, फिर भी उस सुरक्षा घेरा को पार करके कोई चिन्दी चोर आपका माल उड़ा ले जाता है, तो क्या बाकी लोग यही यह सबक लेते कि कितना भी सुरक्षा कर लो चोरी तो होनी है........ नहीं ना।

अरविन्द जी मेरे कहने का तात्पर्य नेट से सम्बंधित था.ऐसे भी सिर्फ ताला लगा देने से घर की सुरक्षा तो नहीं हो जाती.यह तो बस मन को दिलशा दिलाने का एक जरिया है जिससे हम यह सोचते है की अब घर सुरक्षित है.

मैंने यह भी कहा है कि किसी भी अपराध को शत प्रतिशत नियंत्रित नहीं किया जा सकता। अगर मान ले कि इस समय पूरे विश्व मे जितने भी अश्लील या पॉर्न साईट चल रहे है, अगर 10% भी इस विधि से अनुपलब्ध हो जाये तो कुछ तो कमी आएगी ही, क्योंकि सारे साईट चलाने वाले wikileaks वालो की तरह संगठित और कम्प्युटर एक्सपर्ट नहीं होते। A** का हश्र देख लीजिये - backup अभी तक restore नहीं हो पाया है। बहुत सारे लोग वैसे भी है, जो प्रोक्सी साईट के बारे मे जानते भी नहीं है। अगर किसी एक विधि से अगर एक भी व्यक्ति को हम बचा लेते है, तो मै उस विधि को सफल ही समझता हूँ।

A** का उधाहरण दिया है जो अभी तक ठीक नहीं हो पाई है.लेकिन आप उनके दूसरे साईट को क्यूँ नहीं देखते जो १५ से २० दिन के अंदर ठीक हो गया.जैसे K**,FSI इस तरह की उनकी बहुत साडी साईट बिगर गयी थी.सभी ठीक हो गए है.वैसे भी A** सिर्फ फोरम सेक्सन बिगाड़ा हुआ है.बाकि A**.com तो अभी भी मज़े से चल रहा है.सायद इसके पीछे का कारन यह है की फोरम साईट पर बहुत ही कम सदस्य थे.जिससे उन्हें फोरम साईट को चलने में रूचि बहुत कम लगती है.वरना से साईट भी अन्य साईट की तरह ठीक हो गयी होती.

arvind
18-12-2010, 10:36 AM
मैंने पढ़ा है की देह व्यापर दुनिया का सबसे पुराना व्यापार है.पहले हम बाजारू
औरतों को भी इज्जत से गणिका और वैश्या बुलाते थे.लेकिन आज हम उन्हें
भी रंडी या रांड(ये शब्द लिखने के लिए मैंने अपने सिने पर ५ तन का पत्थर रखा है.)बोला जाता है.
इस शब्दों के सुनने मात्र से अलग भावना आती है और इन शब्दों के अंतर से
हम यह कह सकते हैं की समाज के विचार में कितना बड़ा परिवर्तन आया है.
यानि हम कह सकते हैं की समाज के विचारों की mbe एक हो गयी है और
कोई विचार एकाएक नहीं बदलता है उसे बदलने में वर्षों लग जाते हैं.यहाँ बात
हम सेक्स से सम्बंधित विषयों की कर रहे हैं.इस सन्दर्भ में मैं एक बात कहना चाहूँगा की हम पूरी दुनिया को नहीं सुधर सकते और ना ही सुधार पायेंगें.
क्योंकि ऐसा जरुरी नहीं की हर व्यक्ति के विचार आपस में मिले यदि ऐसा
होता तो यह दुनिया स्वर्ग हो जाती और यहाँ पर साक्षात् भगवान बसते.
कहते हैं ना मनुष्य का मन चंचल होता है.जो एक जगह नहीं टिकता है.
उक्त पंक्तिया आपके नकारात्मक सोच के दर्शाती है, आचार्य बिनोबा भावे, मदर टेरेसा, बाबा आमटे, स्वामी विवेकानंद आदि नाम को आज दुनिया सिर्फ इसीलिए याद करती है कि इन लोगो आपके जैसा नहीं सोचा था और निस्वार्थ भाव से दुनिया और समाज के लिए सम्पूर्ण जीवन लगा दिया।
सेक्स की इक्षा हर प्राणी में होती है.दुनिया का कोई ऐसा प्राणी नहीं जिसने सेक्स का अनुभव नहीं किया हो.यदि मैं झूट बोल रहा हूँ तो आप मेरा मार्गदर्शन
करना.अब इसकी पूर्ति व्यक्ति दो प्रकार से करता है.सीधे तरीके से या फिर उलटे
तरीके अपनाता है और उल्टा तरीका व्यक्ति को हमेशा पसंद आता है क्योकि
सीधे तरीके में बहुत मेहनत और संयम की आवस्यकता होती है.जोकि हर
प्राणी मात्र के लिए संभव नहीं है.

जैसा की मैंने कहा की सेक्स की इक्षा हर प्राणी
में होती है और इस आधुनिक युग में जहाँ सब कुछ इलेक्ट्रोनिक मीडिया पर
टिका हुआ है.इसमे सेक्स से सम्बंधित सामग्री आसानी से उपलब्द हो जाती है.जहाँ पर मेहनत और खतरा ना के बराबर है.जिसके कारन ज्यादा से ज्यादा
व्यक्ति नेट पर पोर्न देखने में गुजारता है.तो एक प्रशन आता है की क्या इक्षा
के पूर्ति का ये साधन गलत और असामाजिक है.तो इस बात पर हर व्यक्तियों
का अपना अपना मत है.जो समय और स्थिति के अनुरूप उचित और सार्थक
लगा है.यदि हम कुरीति ढूढने जाएँ तो हम हर विषय में दोष ढूढ सकते हैं.
बस हमें इतना ध्यान देना चाहिए ही किसी भी विषय वास्तु में अति नहीं होनी
चाहिए.क्योकि की "अति सर्वत्र वर्जयेत" अत: जो भी करें सीमा में रह कर करें.
ध्यान दें की आप के द्वारा किये कार्य से कोई दुखी तो नहीं हो रहा है या फिर
कोई हनी तो नहीं हो रही है.
जी बहलाने के लिए गालिब ख्याल अच्छा है। अगर इसी काम मे आपके बच्चे भी लग जाएँगे, तब आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी।
सेक्स का बाजार नेट पर देखा जाये तो सबसे बड़ा है.अभी हाल में मैं एक समाचार आई थी सेक्स.कॉम दुनिया की सबसे मंहगी बिकने वाली साईट है
और जब मैंने सबसे मंहगे बकने वाली साईट की लिस्ट देखी ६ मे से तीन तो
पोर्न से सम्बंधित साईट का समावेश था.जोकि यह बताता है की दुनिया में नेट
पर पोर्न देखने वालों की संख्या लाखों में नहीं कडोरो में है.तो क्या वे सभी
व्यक्ति रेपिस्ट का बदमाश होते हैं.ऐसे भी हमारे देश से पोर्न साईट का संचालन
बहुत कम ही होता होगा.सभी बड़ी साईट us या पश्चिमी देशों के ही होते हैं.
जहाँ पर इन बातों पर हल्ल्ला मचाना उचित नहीं समझा जाता है.यदि सरकार
अपने तरफ से बेन भी करती है तो उपयोगकर्ताओं के पास साईट खोलने और
पोर्न देखने की के और भी विकल्प मौजूद हैं.जहाँ तक रेप की बात है ऐसा काम
सिर्फ वही व्यक्ति कर सकता है जिसे संवेदना के रूप में सिर्फ मांस का लोथड़ा
(दिल) मिला हो.क्योकि की रेप करने के लिए जिगर नहीं पत्थर चाहिए.
दोस्त आपके पास समय है, अब आप अच्छे साहित्य या अच्छे ब्लोग्स पढ़कर जब आप आप साहित्यकार या ब्लॉगर नहीं बन सकते तो पॉर्न साईट्स देखकर रेपिस्ट कैसे बन सकते है। मगर एक बात अगर किसी को अच्छा साहित्यकार बनाना होगा तो वो अच्छे साहित्य ही पढ़ेगा, और जिसे अच्छा रेपिस्ट बनाना है, वो पॉर्न साईट्स ही देखेगा।
आज के अधुनिंक माता पिता,जिन्हें इस विषय में मालूम है,उन्हें चाहिए की वे अपने बच्चों के हरकत पर नजर रखें और उन्हें दुत्कारने की जगह सही और
गलत अंतर समझाए.क्योकि किसी महापुरुष ने कहा है की परिवार समाज की
इकाई होती है.जैसा हमारा परिवार हो,वैसा हमारा समाज होगा,वैसा ही हमारा
राज्य और देश होगा.
बात मे वजन है।
अमित जी मैंने आप का लिखा हुआ आर्टिकल,स्पीच,व्याख्या,प्रवचन या फिर समाज को सुधारने की मुहीम आप जो भी कह लें.अच्छा लगा....मैं एक सवाल आप से पूछना चाहता हूँ क्या आप ये काम सिर्फ virtually करते हैं या
physically तौर पर भी भाग लेते हैं?
इसका जवाब अमित जी से बेहतर कोई नहीं दे सकता है, परंतु, आपके द्वारा यह प्रश्न पुछना उचित नहीं है, यह किसी के निजी व्यक्तित्व पर सीधा दखलंदाजी है।

नोट:- इस पोस्ट में मैंने सिर्फ अपना मत रखा है.मैंने किसे के विचार और मत को बदलने की कोशिश नहीं की है.फिर भी यदि किसी सदस्य को ऐसा
प्रतीत होता की उसके विचार को बदलने या कटाने की कोशीश की गयी है या
फिर मेरे कोई शब्द अनुचित लगे हो तो मैंन उसके लिए क्षमा चाहता हूँ.
धन्यवाद
उफ्फ्फ्फ.... , फिर क्षमा......

amit_tiwari
18-12-2010, 11:09 AM
मैंने पढ़ा है की देह व्यापर दुनिया का सबसे पुराना व्यापार है.पहले हम बाजारू
औरतों को भी इज्जत से गणिका और वैश्या बुलाते थे.लेकिन आज हम उन्हें
भी रंडी या रांड(ये शब्द लिखने के लिए मैंने अपने सिने पर ५ तन का पत्थर रखा है.)बोला जाता है.
इस शब्दों के सुनने मात्र से अलग भावना आती है और इन शब्दों के अंतर से


अमित जी मैंने आप का लिखा हुआ आर्टिकल,स्पीच,व्याख्या,प्रवचन या फिर
समाज को सुधारने की मुहीम आप जो भी कह लें.अच्छा लगा....मैं एक सवाल
आप से पूछना चाहता हूँ क्या आप ये काम सिर्फ virtually करते हैं या
physically तौर पर भी भाग लेते हैं?


नोट:- इस पोस्ट में मैंने सिर्फ अपना मत रखा है.मैंने किसे के विचार
और मत को बदलने की कोशिश नहीं की है.फिर भी यदि किसी सदस्य को ऐसा
प्रतीत होता की उसके विचार को बदलने या कटाने की कोशीश की गयी है या
फिर मेरे कोई शब्द अनुचित लगे हो तो मैंन उसके लिए क्षमा चाहता हूँ.

धन्यवाद

प्रशांत भाई सबसे पहले आपकी विस्तृत सोच के लिए साधुवाद | खुला मन ही विचारों को ग्रहण करता है |

भाई मेरी एक बात पर गौर करना | आप अपनी पूरी पोस्ट फिर से पढ़ लीजिये, आपको एक बात अखरेगी !!! आपने समस्याएं गिनायीं हैं, और मैं समाधान की बात कर रहा हूँ |
आपकी बात सही है कि पोर्न का मार्केट बड़ा है, रेप पहले भी होते थे, सांस्कृतिक फर्क है और अधिकांश वेबसाईट अमेरिका या कनाडा से चलायी जाती हैं जहां इनके नियम अलग हैं | ये सब एक सीमा तक ठीक है किन्तु अब क्या ? मेरा मन नहीं स्वीकार करता कि मैं चुप चाप बैठ जाऊं |
मेरी आँखों को, मेरी सोच को सिर्फ एक समाधान दिखा, आत्म नियंत्रण !!! इतना तो कर ही सकते हैं, इसके लिए ना किसी कानून कि जरुरत है ना कुछ ! है ना ?
मेरे सूत्र का अर्थ सिर्फ इतना है कि जो भी खुद को उस आदत से निकलना चाहते हैं वो एक बार प्रयास करें, सहयोग हम देंगे | मैं व्यक्तिगत रूप से गारंटी लेता हूँ कि व्यस्त रहने के इतने उपाय बता दूंगा कि दिन के चौबीस घंटे कम लगने लगेंगे |

आपकी पोस्ट का यदि बिन्दुवार उत्तर देना चाहूँ तो
१- आपकी बात सही है कि विचार एक जैसे नहीं होते किन्तु कुछ सत्य सत्य होते हैं|
सुबह आसमान में निकलने वाली चीज़ को हम संतरा नहीं कहते और कोई कहे तो उसे वैचारिक मतभेद नहीं कहा जायेगा | पोर्न को कोई भी सभ्य समाज किसी प्रकार से स्वीकार नहीं करता | खुद उसे चलाने वाले भी कोढियों की भाँति अपने चरित्र के रिसते घावों को छुपा के घूमते हैं | क्या कोई मिला ऐसा जो अपने विसिटिंग कार्ड में पोर्न रैकेट संचालक लिखा के घुमाता हो ?

२-हानि !!! हो रही है ना | चारित्रिक हानि हो रही है |
हमेशा ही तो कहा जाता है कि यदि धन गया तो कुछ नहीं गया, तन गया तो कुछ गया और मन गया तो सब गया |
क्या एक पूरी पीढ़ी के चारित्रिक पतन से बड़ी हानि भी कुछ हो सकती है ?
दिन भर इन्द्रिय सुख के पीछे पड़ा रहने वाला मन यदि कुछ साध पाता तो तपस्या, एकाग्र और ध्यान जैसे शब्द ही नहीं आये होते |
मन की दृढ़ता, एकाग्रता के विषय में एक गुरु गोविन्द सिंह जी की लाइन याद आ रही है की

'कपड़ों में पैबंद लगे हैं
तलवारें टूटी हैं
फिर भी दुश्मन काँप रहा है
आखिर लश्कर किसका है ??'

चिड़ियों को बाज़ से लड़ाने का माद्दा रखने वाला मन अब क्यूँ नहीं मिलता ? भगत सिंह की पिक्चर देख के ताली ठोंकने वाले हज़ार मिल जाते हैं लेकिन तेईस साल की उम्र में क्रांति को समझने वाले क्यूँ नहीं मिलते ?
मेरा देश महान, वन्दे मातरम कहने वाले हजार मिल जायेंगे किन्तु जब उसी सूत्र में लिख दो की भाई देश क्या है तो उत्तर देने वाला एक क्यूँ नहीं मिलता ?
ये सब कोई सिरफिरे पागल नहीं थे, ये बौद्धिक प्राणी थे, भगत सिंह फांसी वाली रात को भी रुसी क्रन्तिकारी की जीवनी को पढ़ रहे थे? क्यूँ ?
कोचिंग में रट्टा लगा के नंबर मिल जाते हैं किन्तु देश, जाति, धर्म इन सबकी संकल्पना समझने वाले क्यूँ नहीं मिलते? क्यूंकि वो धीरज, वो धैर्य वो साहस नहीं रहा जो इतना पढने, इतना अन्वेषण करने, इतनी गवेषणा करने को उत्सुक हो | क्यूँ ? क्यूंकि उसे अरस्तु को नहीं पढना, बगल में शीला की जवानी चल रही है |
हम कहते हैं की विज्ञान के बड़े दुष्प्रभाव आ रहे हैं! आयेंगे ही क्यूंकि विज्ञान एक शक्ति है और इसको नियंत्रित करने वाला जो सामाजिक विज्ञान था उसे भूल गए | मार्क्स, हीगल, अरस्तु, टोलस्टोय, सुकरात इन सबका नाम ही विलुप्त हो गया | 90 प्रतिशत बीए किये युवकों को इनके बीच का अंतर ही नहीं पता |
जिस पीढ़ी को समाजवाद, पूंजीवाद और लोकतंत्र में अंतर ही नहीं पता वो क्या नेताओं का चुनाव खाक करेगी ?
कहीं भी लोकतंत्र की चर्चा करो तो हजारों बुद्धजीवी पैदा हो जायेंगे जो कहेंगे सब सरकार करे, सबको सामान अवसर मिले संपत्ति बराबर बँटे | यदि ऐसे लोगों को बेवकूफ ना कहें तो क्या कहें जो लोकतंत्र में साम्यवाद डाल रहे हैं !!! उन्हें पता ही नहीं कि आखिर दोनों में अंतर क्या है |
यही सबसे बड़ा विज्ञान है | सामाजिक विज्ञान | और ये हर पीढ़ी को अपने लिए बनाना पड़ता है जो अब नहीं बनता और इसीलिए ये दुर्गति हो रही है, चाहे पूरब हो या पश्चिम |

३-ये एक छोटी सी ग़लतफ़हमी है कि अमेरिका में कोई पोर्न वेबसाईट चलाने की छूट है | असल में वहाँ पर अलग अलग प्रान्तों के अनुसार नियम हैं और कुछ प्रान्त वयस्क वेबसाईट चलाने की छूट इस शर्त पर देते हैं कि साईट में जाने से पहले एक एडल्ट डिक्लेरेशन नोटिस होगा | जो वैसे भी ना के बराबर होता किन्तु फिर भी वहाँ इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के रूप में देखा जाता है | मियामी के बीच तो ऐसे भी 85 प्रतिशत भारतियों के लिए असहनीय हैं |

४- माता पिता को मैं फिर भी इस दोष से दूर रखना चाहूँगा | कल को हम आप भी पिता होंगे और हम अपने बच्चे को कभी भी ऐसे साईट पर जाने लायक संस्कार नहीं देना चाहेंगे, कोई भी नहीं देता | बुरे से बुरा पिता भी अपनी संतान को अच्छा बनता ही देखना चाहेगा |

मेरा प्रश्न : सच कहूँ तो ये मुझे समझ में कम आया | वर्चुअली और फिजिकली से आपका तात्पर्य मैं कम समझ पाया | यदि आपका प्रश्न है कि क्या मैं सिर्फ सूत्र बनाने के लिए ये सब लिख रहा हूँ या सच में इस सबके खिलाफ हूँ ? तो मेरा उत्तर है कि हाँ मैं सच में इस सबके खिलाफ हूँ | ये मेरा नाम वास्तविक है, मेरा चित्र यहाँ वास्तविक है और "amit tiwari' की वर्ड कुछ विशेस शब्दों के साथ हर सर्च इंजन में मुझे ही दिखाता है इसलिए मैं यहाँ कुछ कह के उन शब्दों कि जिम्मेवारी से बच नहीं सकता |
यदि आपके मन में कोई ऐसा भौतिक संगठन का विचार है तो कृपया बताइए, मैं सहयोग करने वाला पहला व्यक्ति होऊंगा |
किन्तु विचार सिर्फ विचार ना रहे, कार्य हो |

मैं पुनः कहना चाहूँगा कि मुझे समस्या नहीं दिखती, मुझे सिर्फ समाधान दिखता है और मैं वही चाहता हूँ |

इस समस्या के कारण बहुत हैं, ये पूरी मेरे जीवन काल में समाप्त नहीं हो सकती किन्तु यदि दस बच्चे इस आदत से अपने को बचा लें और ऐसे पांच कुकर्मियों को जलील कर सकूँ तो इस सूत्र का बनाना सफल हो जायेगा |

अश्लीलता हमारे मन में होती है !
आप देखें कि हम इस दुनिया को चार भागों में बांट सकते हैं
1 नंगे रहने वालों की दुनिया जैसे अफ़्रीका में कुछ स्थान हो सकते हैं- यहां अभी नंगे रहते हैं एक साथ भाई बहन पिता पुत्री ससुर बहू या अन्य सम्बन्धी ! तो क्या इनमें नग्नता का कोई प्रभाव इनके रिश्तों पर होता है?

अब बुरके वाली तो साड़ी पहने महिला को यही कहेगी कि यह नग्न-प्रदर्शन है।
साड़ी वाली यह कहेगी कि बिकनी में नग्नता है।
बिकनी वाली कहेगी कि Nude colony में रहने वाली महिला नग्न है।
लेकिन अफ़्रीका में किसी स्थान पर अगर सभी नग्न रहते हैं तो उस स्थान पर रहने वाली नग्न महिला को कोई नग्न (अश्लील) नहीं कहेगा/ मानेगा।

माधवी जी नमस्कार |
आपको पढना अच्छा लगता है, इसलिए नहीं कि काफी अवसरों पर हम एक पक्ष में खड़े नज़र आते हैं बल्कि इसलिए क्यूंकि विचारों का अनूठापन अद्भुत होता है |

आपने बहुत ही तकनीकी बाते कही है। हरेक जगह, चाहे वो बैंक हो, कार्यालय हो, आपका घर हो या कोई भी जगह - हर जगह आप सुरक्षा के लिए यथासंभव बेहतर प्रणाली का उपयोग करते है, फिर भी उस सुरक्षा घेरा को पार करके कोई चिन्दी चोर आपका माल उड़ा ले जाता है, तो क्या बाकी लोग यही यह सबक लेते कि कितना भी सुरक्षा कर लो चोरी तो होनी है........ नहीं ना।

मैंने यह भी कहा है कि किसी भी अपराध को शत प्रतिशत नियंत्रित नहीं किया जा सकता। अगर मान ले कि इस समय पूरे विश्व मे जितने भी अश्लील या पॉर्न साईट चल रहे है, अगर 10% भी इस विधि से अनुपलब्ध हो जाये तो कुछ तो कमी आएगी ही, क्योंकि सारे साईट चलाने वाले wikileaks वालो की तरह संगठित और कम्प्युटर एक्सपर्ट नहीं होते। A** का हश्र देख लीजिये - backup अभी तक restore नहीं हो पाया है। बहुत सारे लोग वैसे भी है, जो प्रोक्सी साईट के बारे मे जानते भी नहीं है। अगर किसी एक विधि से अगर एक भी व्यक्ति को हम बचा लेते है, तो मै उस विधि को सफल ही समझता हूँ।

भाई वो साईट कभी अप होगी भी नहीं !!!

अगर हुई तो फिर से डाउन होगी |

फिर अप हुई तो फिर डाउन होगी |

amit_tiwari
18-12-2010, 11:17 AM
A** का उधाहरण दिया है जो अभी तक ठीक नहीं हो पाई है.लेकिन आप उनके दूसरे साईट को क्यूँ नहीं देखते जो १५ से २० दिन के अंदर ठीक हो गया.जैसे K**,FSI इस तरह की उनकी बहुत साडी साईट बिगर गयी थी.सभी ठीक हो गए है.वैसे भी A** सिर्फ फोरम सेक्सन बिगाड़ा हुआ है.बाकि A**.com तो अभी भी मज़े से चल रहा है.सायद इसके पीछे का कारन यह है की फोरम साईट पर बहुत ही कम सदस्य थे.जिससे उन्हें फोरम साईट को चलने में रूचि बहुत कम लगती है.वरना से साईट भी अन्य साईट की तरह ठीक हो गयी होती.

ये एक तकनीकी कारण है बन्धु, उसके सुरक्षा उपाय ऐसे भी खुले पड़े थे | किन्तु तरकश अभी खाली कहाँ है | होगा उनका भी होगा कुछ ना कुछ | थोडा अभी अपना घर मजबूत करने का प्रयास है फिर इन ससुरों को इनके घर में घुस के मारेंगे | :cheers::cheers:

prashant
18-12-2010, 05:01 PM
ये एक तकनीकी कारण है बन्धु, उसके सुरक्षा उपाय ऐसे भी खुले पड़े थे | किन्तु तरकश अभी खाली कहाँ है | होगा उनका भी होगा कुछ ना कुछ | थोडा अभी अपना घर मजबूत करने का प्रयास है फिर इन ससुरों को इनके घर में घुस के मरेंगे | :cheers::cheers:

मैं आप की इस बात से १००% सहमत हूँ....:cheers:

YUVRAJ
18-12-2010, 05:07 PM
अपना घर kahane ka kya arth hai bhai ji ??? aagrah hai ki samajhane ka kasht kare....:cheers:
ये एक तकनीकी कारण है बन्धु, उसके सुरक्षा उपाय ऐसे भी खुले पड़े थे | किन्तु तरकश अभी खाली कहाँ है | होगा उनका भी होगा कुछ ना कुछ | थोडा अभी अपना घर मजबूत करने का प्रयास है फिर इन ससुरों को इनके घर में घुस के मरेंगे | :cheers::cheers:

prashant
18-12-2010, 05:14 PM
उक्त पंक्तिया आपके नकारात्मक सोच के दर्शाती है, आचार्य बिनोबा भावे, मदर टेरेसा, बाबा आमटे, स्वामी विवेकानंद आदि नाम को आज दुनिया सिर्फ इसीलिए याद करती है कि इन लोगो आपके जैसा नहीं सोचा था और निस्वार्थ भाव से दुनिया और समाज के लिए सम्पूर्ण जीवन लगा दिया।

वह आप का ये विचार बहुत ही अच्छा है.तो फिर देर किस बात की तो फिर बनाते है एक ऐसा ग्रुप जो ऐसे साईट की MBE कर दे.मुझे आशा है की अमित जी इसमे हमारी जरुर सहायता करेंगें.

जी बहलाने के लिए गालिब ख्याल अच्छा है। अगर इसी काम मे आपके बच्चे भी लग जाएँगे, तब आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी।

यदि ऐसा है तो हर ख्वाब देखने वाले को इस तरह से बोल कर उसकी बोलती बंद कर देनी चाहिए.:)

दोस्त आपके पास समय है, अब आप अच्छे साहित्य या अच्छे ब्लोग्स पढ़कर जब आप आप साहित्यकार या ब्लॉगर नहीं बन सकते तो पॉर्न साईट्स देखकर रेपिस्ट कैसे बन सकते है। मगर एक बात अगर किसी को अच्छा साहित्यकार बनाना होगा तो वो अच्छे साहित्य ही पढ़ेगा, और जिसे अच्छा रेपिस्ट बनाना है, वो पॉर्न साईट्स ही देखेगा।

इस बात पर आप के साथ मेरा थोडा मतभेद है.क्योकि यदि ये संभव होता तो अधिकाशं जवान जनता पर अभी केस चल रहा होता.

बात मे वजन है।

धन्यवाद...




उफ्फ्फ्फ.... , फिर क्षमा......

:sorry: मांगने के लिए :sorry: ..... :rolling:

amit_tiwari
18-12-2010, 05:16 PM
अपना घर kahane ka kya arth hai bhai ji ??? aagrah hai ki samajhane ka kasht kare....:cheers:

अपना घर से अर्थ है अपना मन | पहले हमें अपना, अपनी आयु वर्ग के लोगों का, जो हमसे छोटे हैं उनका मन दृढ करना पड़ेगा, थोडा संबल देना होगा |
इस बुराई की जड़ सबसे पहले हमारे मन की कमी है, एक बार इसे ख़त्म कर लिया तो इन ससुरों को ख़त्म करने में कितना समय लगेगा ?
जैसे सुबह का सूरज निकलते ही अँधेरा लंगोटी छोड़ के भागता है वैसे ही ये भी भागेंगे |:gm:

YUVRAJ
18-12-2010, 05:20 PM
:clap:
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:clap:
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:clap:
अपना घर से अर्थ है अपना मन | पहले हमें अपना, अपनी आयु वर्ग के लोगों का, जो हमसे छोटे हैं उनका मन दृढ करना पड़ेगा, थोडा संबल देना होगा |
इस बुराई की जड़ सबसे पहले हमारे मन की कमी है, एक बार इसे ख़त्म कर लिया तो इन ससुरों को ख़त्म करने में कितना समय लगेगा ?
जैसे सुबह का सूरज निकलते ही अँधेरा लंगोटी छोड़ के भागता है वैसे ही ये भी भागेंगे |:gm:

amit_tiwari
18-12-2010, 05:22 PM
:sorry: मांगने के लिए :sorry: ..... :rolling:

ग्रुप है ना बन्धु | यह सूत्र है लोगों को अपने साथ लेने के ही लिए, अधिकाधिक लोगों को अपने साथ जोड़ें, जिनके मन में संशय है उन्हें समझाना, इसके दुष्प्रभाव, इससे बचने के बाद हो सकने वाले फायदे के बारे में बताएं |
अरे तन की भूख के पीछे भागे तो क्या भागे, मिटटी का पुतला है कुछ दिनों में फीका पड़ जायेगा |
वासना रखनी ही है तो मन की रखें, चलिए साम्यवाद के ऊपर रिसर्च करें, लोकतंत्र कैसे साम्यवाद से अलग है ये सोचें, अरस्तु ने ऐसा क्या कह दिया की सब उसका नाम जानते हैं ये सोचें, हीगल को उल्टा भूत क्यूँ कहते हैं ये सोचें, जानें की अभी किस वैज्ञानिक ने बूढ़े चूहे को पूरी तरह से जवान कर दिया | बूझें कि क्या समय से पार भी कुछ है !!!
अपार विषय, अद्भुत संकल्पनाएँ जीवन छोटा है और सीखने को जाने कितना |||
है ना ???
यदि और कुछ है मन में तो बताएं अवश्य |

YUVRAJ
18-12-2010, 05:26 PM
ahaa haa haa haa :lol:
par kute ki dum ko sidha karana aap hi janate ho bhai ji ....;)
hats off 4 U buddy....:cheers:
अपना घर से अर्थ है अपना मन | पहले हमें अपना, अपनी आयु वर्ग के लोगों का, जो हमसे छोटे हैं उनका मन दृढ करना पड़ेगा, थोडा संबल देना होगा |
इस बुराई की जड़ सबसे पहले हमारे मन की कमी है, एक बार इसे ख़त्म कर लिया तो इन ससुरों को ख़त्म करने में कितना समय लगेगा ?
जैसे सुबह का सूरज निकलते ही अँधेरा लंगोटी छोड़ के भागता है वैसे ही ये भी भागेंगे |:gm:

madhavi
18-12-2010, 06:01 PM
सोचिए अगर समाज में वेश्याएँ ना हो तो !!
सामान्यतया सेक्स की भूख उतनी ही उठती है जितनी पेट की भूख !
भारतीय समाज में नारी यह भूख दबा जाती है या नारी पहले ही इस भूख को मार देती है या नारी की यह भूख मार दी जाती है।
जैसे घर में रसोई होती है, वहाँ नाना प्रकार के व्यंजन बनते भी हैं फ़िर भी बाज़ार का कुछ खाने की इच्छा होती है उसी प्रकार घर में पत्नी के होते हुए(या अविवाहित अवस्था में भी) बाहर का कुछ चखने की इच्छा पुरुष के मन में होती है किसी के मन में कम और किसी के मन में ज्यादा। अगर वेश्या यह इच्छा पूरी ना करे तो क्या होगा?
यौन दुराचार बढ़ेगा।

madhavi
18-12-2010, 06:24 PM
मेरे विचार से व्यस्क साइट भी किसी व्यक्ति की यौन इच्छा का कुछ हद तक सन्तुष्टिकरण करती है।
भारतीय सिनेमा और टी वी इन व्यस्क साईट्स से कहीं अधिक खतरनाक हैं।
आप सोचिए हिन्दी फ़िल्म मर्डर, आशिक बनाया आपने' के दृश्य(कपड़े उतारने वाले और चूमा-चाटी) अगर कोई 15-16 साल के बालक बालिका देखें(देखते ही है) तो उनके मन में यही प्रश्न उठेगा कि आगे क्या???
sS4Y8fJqTUc
उनके मन में यह जिज्ञासा बनी रहेगी कि इस सब के बाद क्या होता है?
व्यस्क साईट पर आकर अगर वही बालक बालिका यह सब देखता है तो उसे सब पता तो चल जाता है।
और फ़िर फ़िल्मों तक लगभग सबकी पहुंच है, 90% से ज्यादा भारतीय बच्चे इन फ़िल्मों को देखते हैं। इनमें सभी प्रकार के बच्चे होते हैं पढ़े लिखे और अनपढ़ !
जबकि इन्टरनेट को देखने वाले लगभग सभी बच्चे(समस्त बच्चों का 5-7%?) पढ़े लिखे होते हैं जिनमें ठीक-गलत, अच्छे-बुरे की समझ होती है।
टीवी से स्थिति और बुरी होती जा रही है। जहाँ तक मेरी जानकारी है सभी व्यस्क फ़िल्में टीवी पर आती है। एक भारतीय चैनल आज ही रात को दस बजे मर्डर फ़िल्म दिखा रहा है।
जरा सोचें और बताएँ कि क्या ज्यादा खतरनाक है !

madhavi
18-12-2010, 06:27 PM
और यह देखिए
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madhavi
18-12-2010, 06:39 PM
और यह भी देखिए
cazLqUA-o9w
कहने को तो इस गीत में ज्यादा अश्लीलता नज़र नहीं आती।
लेकिन गहराई से सोच कर देखें
आयु भेद खत्म अदाकारा अपने पिता की आयु के पुरुष से नैन मटक्का कर रही है अपने आयु वर्ग के पुरूष को नज़र अंदाज़ कर रही है।
15-16 साल के बालक बालिकाएं इस बात को कम समझेंगे कि ये लोग शुद्ध व्यव्सायिक कारणों से यह सब कर रहें है। वे तो यही सोचेंगे कि बहू अपने ससुर के साथ …
जब यह फ़िल्म बनी थी तब उनका रिश्ता ससुर बहू का नहीं था लेकिन कितने लोगों को इस बात का पता है।

madhavi
18-12-2010, 06:40 PM
इस फ़ोरम के सचालक/प्रबन्धक अगर चाहें तो वीडियो के लिन्क हटा सकते हैं।

Kalyan Das
18-12-2010, 06:47 PM
जब यह फ़िल्म बनी थी तब उनका रिश्ता ससुर बहू का नहीं था लेकिन कितने लोगों को इस बात का पता है।

माधवी जी,
अमिताभ जी से ये प्रश्न पूछा गया था, की दुबारा अगर आपके बहु के साथ डांस करने का मौका मिले तो करेंगे ??
अमिताभ जी ने जवाब दिए थे, "क्यूँ नहीं, जरुर करूंगा !! मुझे खुसी होगी !"

amit_tiwari
18-12-2010, 11:43 PM
सोचिए अगर समाज में वेश्याएँ ना हो तो !!
सामान्यतया सेक्स की भूख उतनी ही उठती है जितनी पेट की भूख !
भारतीय समाज में नारी यह भूख दबा जाती है या नारी पहले ही इस भूख को मार देती है या नारी की यह भूख मार दी जाती है।
जैसे घर में रसोई होती है, वहाँ नाना प्रकार के व्यंजन बनते भी हैं फ़िर भी बाज़ार का कुछ खाने की इच्छा होती है उसी प्रकार घर में पत्नी के होते हुए(या अविवाहित अवस्था में भी) बाहर का कुछ चखने की इच्छा पुरुष के मन में होती है किसी के मन में कम और किसी के मन में ज्यादा। अगर वेश्या यह इच्छा पूरी ना करे तो क्या होगा?
यौन दुराचार बढ़ेगा।

:rolling:
:rolling:

मुझे यह तर्क थोडा बचकाना लगा |
यदि ऐसा है तो नब्बे प्रतिशत पुरुष बाहर मुंह मार रहे हैं | मैं भी पुरुष हूँ, मेरा कार्य ही है बाहर रहना, लोगों से मिलते रहना aur मेरा अनुभव तो रहा है की मात्र १०-१५ प्रतिशत ही ऐसे हैं |
क्या कोई और पुरुष सदस्य तस्दीक करेगा की उसके ९० प्रतिशत मित्र-सम्बन्धी वेश्याओं की सेवा का उपभोग कर रहे हैं ?

मेरे विचार से व्यस्क साइट भी किसी व्यक्ति की यौन इच्छा का कुछ हद तक सन्तुष्टिकरण करती है।
भारतीय सिनेमा और टी वी इन व्यस्क साईट्स से कहीं अधिक खतरनाक हैं।

टीवी से स्थिति और बुरी होती जा रही है। जहाँ तक मेरी जानकारी है सभी व्यस्क फ़िल्में टीवी पर आती है। एक भारतीय चैनल आज ही रात को दस बजे मर्डर फ़िल्म दिखा रहा है।
जरा सोचें और बताएँ कि क्या ज्यादा खतरनाक है !
सोचिए अगर समाज में वेश्याएँ ना हो तो !!
सामान्यतया सेक्स की भूख उतनी ही उठती है जितनी पेट की भूख !
भारतीय समाज में नारी यह भूख दबा जाती है या नारी पहले ही इस भूख को मार देती है या नारी की यह भूख मार दी जाती है।
जैसे घर में रसोई होती है, वहाँ नाना प्रकार के व्यंजन बनते भी हैं फ़िर भी बाज़ार का कुछ खाने की इच्छा होती है उसी प्रकार घर में पत्नी के होते हुए(या अविवाहित अवस्था में भी) बाहर का कुछ चखने की इच्छा पुरुष के मन में होती है किसी के मन में कम और किसी के मन में ज्यादा। अगर वेश्या यह इच्छा पूरी ना करे तो क्या होगा?
यौन दुराचार बढ़ेगा।

मेरे विचार से व्यस्क साइट भी किसी व्यक्ति की यौन इच्छा का कुछ हद तक सन्तुष्टिकरण करती है।
भारतीय सिनेमा और टी वी इन व्यस्क साईट्स से कहीं अधिक खतरनाक हैं।
आप सोचिए हिन्दी फ़िल्म मर्डर, आशिक बनाया आपने' के दृश्य(कपड़े उतारने वाले और चूमा-चाटी) अगर कोई 15-16 साल के बालक बालिका देखें(देखते ही है) तो उनके मन में यही प्रश्न उठेगा कि आगे क्या???
उनके मन में यह जिज्ञासा बनी रहेगी कि इस सब के बाद क्या होता है?
व्यस्क साईट पर आकर अगर वही बालक बालिका यह सब देखता है तो उसे सब पता तो चल जाता है।
और फ़िर फ़िल्मों तक लगभग सबकी पहुंच है, 90% से ज्यादा भारतीय बच्चे इन फ़िल्मों को देखते हैं। इनमें सभी प्रकार के बच्चे होते हैं पढ़े लिखे और अनपढ़ !
जबकि इन्टरनेट को देखने वाले लगभग सभी बच्चे(समस्त बच्चों का 5-7%?) पढ़े लिखे होते हैं जिनमें ठीक-गलत, अच्छे-बुरे की समझ होती है।
टीवी से स्थिति और बुरी होती जा रही है। जहाँ तक मेरी जानकारी है सभी व्यस्क फ़िल्में टीवी पर आती है। एक भारतीय चैनल आज ही रात को दस बजे मर्डर फ़िल्म दिखा रहा है।
जरा सोचें और बताएँ कि क्या ज्यादा खतरनाक है !

और यह भी देखिए
cazLqUA-o9w
कहने को तो इस गीत में ज्यादा अश्लीलता नज़र नहीं आती।
लेकिन गहराई से सोच कर देखें
आयु भेद खत्म अदाकारा अपने पिता की आयु के पुरुष से नैन मटक्का कर रही है अपने आयु वर्ग के पुरूष को नज़र अंदाज़ कर रही है।
15-16 साल के बालक बालिकाएं इस बात को कम समझेंगे कि ये लोग शुद्ध व्यव्सायिक कारणों से यह सब कर रहें है। वे तो यही सोचेंगे कि बहू अपने ससुर के साथ …
जब यह फ़िल्म बनी थी तब उनका रिश्ता ससुर बहू का नहीं था लेकिन कितने लोगों को इस बात का पता है।

माधवी जी,
अमिताभ जी से ये प्रश्न पूछा गया था, की दुबारा अगर आपके बहु के साथ डांस करने का मौका मिले तो करेंगे ??
अमिताभ जी ने जवाब दिए थे, "क्यूँ नहीं, जरुर करूंगा !! मुझे खुसी होगी !"


इस बात को पुनः मैं अपनी पिछली पोस्ट की चारित्रिक ह्रास वाली बात से जोड़ना चाहूँगा | टीवी या फिल्मों के इन भांडों को नायक का दर्जा कैसे मिला ?
राजनीतिक या बौद्धिक वर्ग से नेतृत्व आने की जगह शादी बारातों में नाच के पैसे कमाने वाले आज इतने महत्वपूर्ण कैसे हो गए ?
उत्तर स्पष्ट है, सत्ता खाली नहीं रहती | जब बौद्धिक वर्ग निकम्मा हो गया तो भांडों ने कब्ज़ा जमा लिया |

और पिछली पीढ़ी को मैं इस जिम्मेवारी से मुक्त करते हुए कहना चाहूँगा की अब यह हम पर है की कब तक हम इनकी सुनेंगे बनिस्पत कुछ वास्तविक नेतृत्व तलाशने के |


इस फ़ोरम के सचालक/प्रबन्धक अगर चाहें तो वीडियो के लिन्क हटा सकते हैं।
इन लिंक्स से मुझे क्षोभ हुआ | हम सभी इन गानों को pahchante हैं और इनके लगाने की आवश्यकता नहीं थी |

madhavi
19-12-2010, 05:09 AM
Amit Tiwari : मुझे यह तर्क थोडा बचकाना लगा |
यदि ऐसा है तो नब्बे प्रतिशत पुरुष बाहर मुंह मार रहे हैं | मैं भी पुरुष हूँ, मेरा कार्य ही है बाहर रहना, लोगों से मिलते रहना aur मेरा अनुभव तो रहा है की मात्र १०-१५ प्रतिशत ही ऐसे हैं |
क्या कोई और पुरुष सदस्य तस्दीक करेगा की उसके ९० प्रतिशत मित्र-सम्बन्धी वेश्याओं की सेवा का उपभोग कर रहे हैं ?
अमित जी,

90% पुरुष बाहर मुंह नहीं मार रहे हैं तो 50% तक तो मार ही रहे हैं और शेष में से 50% से ज्यादा मारना चाहते हैं लेकिन चाह कर भी नहीं मार सकते सामाजिक प्रतिष्ठा के कारण या ऐसे ही अन्य कारणों से !
इस संख्या में मैं सिर्फ़ वेश्या गमन की बात नहीं कर रही अपितु पर स्त्री गमन की बात कर रही हूँ। इसमें वो पुरुष भी शामिल हैं जो सीधा वेश्यागमन नहीं करते, महिला मित्र पालते हैं और यौनानंद लेते हैं या किसी अन्य तरीके से पर-स्त्री गमन करते हैं।

madhavi
19-12-2010, 05:16 AM
अमित तिवारी : इन लिंक्स से मुझे क्षोभ हुआ | हम सभी इन गानों को pahchante हैं और इनके लगाने की आवश्यकता नहीं थी |
मेरे विचार से अमित जी तकनीकी रूप से सक्षम हैं कि मेरे लिखे को उद्ध्हरित करते समह इन लिंक्स की पुनरावृति को रोक सकते थे।

madhavi
19-12-2010, 05:21 AM
90% ना सही लेकिन 75% से ज्यादा पुरुषों ने अपने जीवन में कभी ना कभी पर-स्त्री गमन(पूर्ण या अपूर्ण) किया होगा। और शेष 25 % में से 50 % से अधिक ने अपने मन में पर-स्त्री की चाह अवश्य की होगी।

prashant
19-12-2010, 06:31 AM
:rolling:
:rolling:

इस बात को पुनः मैं अपनी पिछली पोस्ट की चारित्रिक ह्रास वाली बात से जोड़ना चाहूँगा | टीवी या फिल्मों के इन भांडों को नायक का दर्जा कैसे मिला ?
राजनीतिक या बौद्धिक वर्ग से नेतृत्व आने की जगह शादी बारातों में नाच के पैसे कमाने वाले आज इतने महत्वपूर्ण कैसे हो गए ?
उत्तर स्पष्ट है, सत्ता खाली नहीं रहती | जब बौद्धिक वर्ग निकम्मा हो गया तो भांडों ने कब्ज़ा जमा लिया |



क्या इस वार्तालाप का कोई नतीजा आनेवाला है?अमित जी आप के कुछ शब्दों से ऐसा लगता है की आप अपनी बात सबों पर थोपने की कोशिश कर रहे हैं.सभी को अपनी वैचारिक स्वतंत्रता की छूट है.वैसे भी इस सूत्र का नाम "एडल्ट साइट्स : स्वयं का मूल्याँकन" सभी अपनी तरफ से मूल्यांकन कर रहे हैं.लेकिन जो बात आप के पक्ष में उसी में आप को रूचि है.किसी भी बात का निष्कर्ष पक्ष-विपक्ष के मत को जाने बिना नहीं हो सकता है.

YUVRAJ
19-12-2010, 11:17 AM
चरित्र को बनाए रखना आसान है, उस के भ्रष्ट हो जाने के बाद उसे सुधारना कठिन है।

YUVRAJ
19-12-2010, 11:58 AM
अहा हा हा हा हा ... :lol:

सही सलाह है ...:bravo: पर जब सेंसरबोर्ड ने पास कर दिया तो अमित भाई जी कैसे और क्या कर सकते हैं ...;)


मेरे विचार से अमित जी तकनीकी रूप से सक्षम हैं कि मेरे लिखे को उद्ध्हरित करते समह इन लिंक्स की पुनरावृति को रोक सकते थे।

amit_tiwari
19-12-2010, 08:47 PM
अमित तिवारी : इन लिंक्स से मुझे क्षोभ हुआ | हम सभी इन गानों को pahchante हैं और इनके लगाने की आवश्यकता नहीं थी |
मेरे विचार से अमित जी तकनीकी रूप से सक्षम हैं कि मेरे लिखे को उद्ध्हरित करते समह इन लिंक्स की पुनरावृति को रोक सकते थे।

Yeah i guess i quoted twice. My pad is so bad sometimes.

Amit Tiwari : मुझे यह तर्क थोडा बचकाना लगा |
यदि ऐसा है तो नब्बे प्रतिशत पुरुष बाहर मुंह मार रहे हैं | मैं भी पुरुष हूँ, मेरा कार्य ही है बाहर रहना, लोगों से मिलते रहना aur मेरा अनुभव तो रहा है की मात्र १०-१५ प्रतिशत ही ऐसे हैं |
क्या कोई और पुरुष सदस्य तस्दीक करेगा की उसके ९० प्रतिशत मित्र-सम्बन्धी वेश्याओं की सेवा का उपभोग कर रहे हैं ?
अमित जी,

90% पुरुष बाहर मुंह नहीं मार रहे हैं तो 50% तक तो मार ही रहे हैं और शेष में से 50% से ज्यादा मारना चाहते हैं लेकिन चाह कर भी नहीं मार सकते सामाजिक प्रतिष्ठा के कारण या ऐसे ही अन्य कारणों से !
इस संख्या में मैं सिर्फ़ वेश्या गमन की बात नहीं कर रही अपितु पर स्त्री गमन की बात कर रही हूँ। इसमें वो पुरुष भी शामिल हैं जो सीधा वेश्यागमन नहीं करते, महिला मित्र पालते हैं और यौनानंद लेते हैं या किसी अन्य तरीके से पर-स्त्री गमन करते हैं।

90% ना सही लेकिन 75% से ज्यादा पुरुषों ने अपने जीवन में कभी ना कभी पर-स्त्री गमन(पूर्ण या अपूर्ण) किया होगा। और शेष 25 % में से 50 % से अधिक ने अपने मन में पर-स्त्री की चाह अवश्य की होगी।

I will not say anything about man-woman relation and their trends cuz this will lead to an endless discussion but i, personally, don't find any healthy logic behind comparing relations to prostitution. At least for the sake of womanhood don't do this.
A man is biologically more eager for sex. Its natural, thats what initiate a relation, a family a society and our human race. Why human race, male in any damn species is eager for reproduction. Whats wrong in this?

This point is close for me, i'll not say anything regarding this issue.

क्या इस वार्तालाप का कोई नतीजा आनेवाला है?अमित जी आप के कुछ शब्दों से ऐसा लगता है की आप अपनी बात सबों पर थोपने की कोशिश कर रहे हैं.सभी को अपनी वैचारिक स्वतंत्रता की छूट है.वैसे भी इस सूत्र का नाम "एडल्ट साइट्स : स्वयं का मूल्याँकन" सभी अपनी तरफ से मूल्यांकन कर रहे हैं.लेकिन जो बात आप के पक्ष में उसी में आप को रूचि है.किसी भी बात का निष्कर्ष पक्ष-विपक्ष के मत को जाने बिना नहीं हो सकता है.

Dude! I did not initiated this thread to know if porn is right or wrong. I started this thread to help/assist those who want to get rid of one leathal, time consuming, health ruining bad habit. Am i clear?
I am certain about my points validity. In last good one and half year i have traveled to all major countries and NOWHERE i got single percentage of professional porn acceptance. Even in the most bold region like Miami, people hate professional porn actors or actresses. Then how can i accept that porn should be welcome here in our country? Give me one good reason. You were talking about high selling price of porn sites. Do you have even one percent idea what kind of people buy these sites?
I am only answering people's point here. In fact i am not getting answer of any question/point raised by me.

arvind
19-12-2010, 09:12 PM
सदस्यो से आग्रह है कि पहले सुत्र का मन्तव्य समझे फिर उसी के अनुसार प्रतिक्रिया दे, वर्ना सुत्र अपने मकसद से भटक जायेगा।

YUVRAJ
20-12-2010, 12:25 AM
Arvind G ...kya aap bata sakate hai ki sutr ka मकसद kya hai ?सदस्यो से आग्रह है कि पहले सुत्र का मन्तव्य समझे फिर उसी के अनुसार प्रतिक्रिया दे, वर्ना सुत्र अपने मकसद से भटक जायेगा।

arvind
20-12-2010, 09:31 AM
arvind g ...kya aap bata sakate hai ki sutr ka मकसद kya hai ?
आठवे पेज तक पढ़ने के बाद मुझे तो अभी तक इसका मकसद समझ मे ही नहीं आया... आपही कुछ प्रकाश डालिए।

YUVRAJ
20-12-2010, 10:20 AM
koi baat nahi मन्तव्य hi samajha de...aur bina samajhe aapne jo bhi likha hai shayad na likhate.
आठवे पेज तक पढ़ने के बाद मुझे तो अभी तक इसका मकसद समझ मे ही नहीं आया... आपही कुछ प्रकाश डालिए।

munneraja
20-12-2010, 01:42 PM
चरित्र को बनाए रखना आसान है, उस के भ्रष्ट हो जाने के बाद उसे सुधारना कठिन है।
यह एक बेहतरीन पंक्ति है
मैं इसमें थोडा सा बदलाव करना चाहता हूँ
"चरित्र को बनाए रखना कठिन जरूर है लेकिन उस के भ्रष्ट हो जाने के बाद उसे सुधारना दुष्कर है।"

ndhebar
20-12-2010, 02:34 PM
यह एक बेहतरीन पंक्ति है
मैं इसमें थोडा सा बदलाव करना चाहता हूँ
"चरित्र को बनाए रखना कठिन जरूर है लेकिन उस के भ्रष्ट हो जाने के बाद उसे सुधारना दुष्कर है।"

कौन कहता है कि आसमां में छेद हो नहीं सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालों यारों।

कठिन बहुत कुछ है असंभव कुछ भी नहीं

madhavi
20-12-2010, 07:35 PM
अमित जी का कथन : A man is biologically more eager for sex. Its natural, thats what initiate a relation, a family a society and our human race. Why human race, male in any damn species is eager for reproduction. Whats wrong in this?
अब अमित जी ने खुद स्वीकार किया कि यौन पुरुष की प्राथमिक आवश्यकता है।


कइयों को यह सुलभ है और कई इसे अन्य तरीकों से प्राप्त करते हैं, व्यस्क साईट भी एक तरीका है यौन तृप्ति का।

madhavi
20-12-2010, 08:06 PM
यह एक बेहतरीन पंक्ति है
मैं इसमें थोडा सा बदलाव करना चाहता हूँ
"चरित्र को बनाए रखना कठिन जरूर है लेकिन उस के भ्रष्ट हो जाने के बाद उसे सुधारना दुष्कर है।"

क्या अपनी यौनेच्छाओं पर काबू रखना ही चरित्र-निर्माण है?
अपने दैनिक कार्यों को ईमानदारी से करना सबसे बड़ा चरित्र-निर्माण है ! अगर आपको पराई वस्तु की लालसा नहीं, अपने परिश्रम द्वारा अर्जित धन, सुख-साधन से संतोष है तो आपका चरित्र बेदाग है।

VIDROHI NAYAK
20-12-2010, 08:30 PM
माध्वी जी सही कहा आपने की यौनेच्छाओं ही नहीं अपितु अपनी प्रत्येक 'अति इछाओ' को नियंत्रित कर ही चरित्र का निर्माण हो सकता है ! किसी भी प्रकार की लालसा जो अपने सम्पूर्ण होने के लिए आत्मिक, सामाजिक बंधनों को दरकिनार करती है वह चारित्रिक पतन तो करती ही है !

YUVRAJ
20-12-2010, 09:15 PM
:clap::clap::clap::clap:....:bravo:
aap sabhi vayask hai aur kya sahi hai kya nahi behatar samajhate hai.:cheers:

क्या अपनी यौनेच्छाओं पर काबू रखना ही चरित्र-निर्माण है?
अपने दैनिक कार्यों को ईमानदारी से करना सबसे बड़ा चरित्र-निर्माण है ! अगर आपको पराई वस्तु की लालसा नहीं, अपने परिश्रम द्वारा अर्जित धन, सुख-साधन से संतोष है तो आपका चरित्र बेदाग है।

माध्वी जी सही कहा आपने की यौनेच्छाओं ही नहीं अपितु अपनी प्रत्येक 'अति इछाओ' को नियंत्रित कर ही चरित्र का निर्माण हो सकता है ! किसी भी प्रकार की लालसा जो अपने सम्पूर्ण होने के लिए आत्मिक, सामाजिक बंधनों को दरकिनार करती है वह चारित्रिक पतन तो करती ही है !

aksh
20-12-2010, 11:35 PM
देश मे जितने भी घोटाले अभी तक हुये है, उन सब को एक साथ जोड़ दिया तब भी ये मुद्दा उन सब पर दस गुणा भारी पड़ेगा, क्योंकि घोटालो मे तो धन की हानि होती है, जो पूरा किया जा सकता है, मगर यह तो पूरे समाज और संस्कृति को तबाह कर रहा है।

मित्र अरविन्द जी, नमस्कार ! हो सकता है कि पोर्न साइट्स की वजह से बलात्कार की घटनाओं में बढ़ोत्तरी हो रही हो पर ऐसा इसलिए भी हो सकता है कि जनसँख्या में भी बेहताशा बृद्धि हुयी है और सामाजिक असंतुलन भी बढ़ता जा रहा है. मैंने मित्र अमित जी द्वारा लिखा गया पूरा लेख पढ़ा और मुझे विचार के तौर पर इसने बहुत ही प्रभावित किया परन्तु साथ ही साथ आपका ये निष्कर्ष भी आ गया कि बाकी सब समस्याओं से दस गुनी बड़ी ये समस्या है ये आपका कथन मुझे कुछ उचित प्रतीत नहीं हुआ. समस्या वाकई बहुत ही गंभीर है और इस पर जितना संभव है रोक लगनी चाहिए पर सारी समस्याओं की जड़ इसको बता देना ठीक नहीं है.

क्या पोर्न साइट्स के प्रचलन से पहले बलात्कार नहीं होते थे ???

क्या पोर्न साइट्स के प्रचलन से पहले लोग जुआ, नशे और अन्य व्यसनों के शिकार नहीं थे ???

क्या गरीबी, अशिक्षा, सामजिक असंतुलन जैसी समस्याओं को जो हमारे देश में हर समस्या की जड़ साबित हुयी हैं हम किसी भी दृष्टि से छोटी समस्या मान सकते हैं ???

मैं A * F पर पहले एक सदस्य की तरह ही गया था और वहां पहला आकर्षण शायद पोर्न ही रहा होगा पर समय बाद मैंने वहां जाना बंद कर दिया. कुछ दिन बाद दोबारा गया तो देखा को फोरम चल रही है जिसका मैं भी सदस्य बन गया. मैं कभी भी उसके उस नकारात्मक पहलू की तरफ गया ही नहीं क्योंकि मैं शिक्षित हूँ और मुझे पता है कि इसमें मेरा भला नहीं हैं. मैंने कभी कोई चित्र नहीं डाला और ना ही कभी किसी चित्र की तारीफ़ की क्योंकि मैंने कभी उस चीज को ठीक से ध्यान से देखा ही नहीं क्योंकि मुझे पता था कि यहाँ पर सिर्फ और सिर्फ गंदगी है और कुछ भी नहीं. आप और हम मिले तो उसी फोरम के उस विभाग में जहाँ पर आप और मैं गर्व से जाना पसंद करते थे. उस साईट पर पोर्न भी उपलब्ध था पर वो मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ सका ये इस बात का द्योतक है कि अगर समाज को सही रूप से चलाने के लिए सभी चीजों की एक निश्चित मात्रा में आवश्यकता होती है. पर कुछ चीजें जैसे कि शराब, पोर्न साइट्स ये मस्तिष्क पर गलत प्रभाव डाल सकती हैं इसकी जानकारी देना एक बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य है जो कि हर हाल में किया जाना चाहिए. समाज से गरीबी हटाना, सबको शिक्षित बनाना, नारी सशक्तिकरण, नारी जागरण और अपराधियों का सुधार जैसे कार्य होते रहने चाहिए जिससे इन चीजों से पड़ने वाले किसी भी संभावित दुष्प्रभाव को समाप्त किया जा सके और लोग आप और मेरी तरह भी इन साइट्स पर जाकर भी इनके दुष्प्रभावों से अछूते रह सकें. मेरे ख्याल से ज्यादातर सदस्य इस तरह की समस्याओं के समाधान के विशेषज्ञ नहीं हैं और मैं भी इसका अपवाद नहीं हूँ. फिर भी अपने अनुभव के आधार पर इतना कह सकता हूँ कि भारत में दो किस्म के अपराधी खास तौर पर पाए जाते हैं

a ) एक तो वो हैं जो मुंह में चांदी की चम्मच लेकर पैदा होते हैं और वो समाज के उच्च वर्ग से आते हैं ( दिल्ली में हुए कुछ हाई प्रोफाइल मर्डर और रेप इसके उदाहरण हैं ). इस तरह के अपराधी अनाप शनाप पैसा, रूतबा, बेख़ौफ़ जिंदगी जीने के तरीके और संस्कारों के अभाव की वजह से पैदा होते हैं और ये किसी पोर्न साईट के मोहताज नहीं हैं. मेरे विचार से ऐसे अपराधी कुछ भी करने से पहले सोचते नहीं हैं और धीरे धीरे ये लोग नौकरी के नाम पर, काम के नाम पर और अपने साम्राज्य को फ़ैलाने के लिए किसी भी नाम पर अन्य लोगों को अपराध की दुनिया में धकेलने से नहीं डरते. जो लोग इनकी नौकरियां करके अपराधी बनते हैं वो कोई पोर्न साईट देखकर इनके पास नहीं आते बल्कि वो सामाजिक और आर्थिक अन्याय के सताए हुए लोग होते हैं और इन बड़े रसूख वालों की नौकरी करना और अपराध के रास्ते पर चलना इनकी मजबूरी बन जाती हैं.

मेरे विचार से इस तरह के दबंग समाज के लिए बड़ा खतरा हैं क्योंकि यही वो लोग हैं जो कभी ब्यूटी कोंटेस्ट के नाम पर और कभी मोडलिंग के लिए ट्रेनिंग के नाम पर इस तरह के धंधों में लिप्त हो जाते हैं जो इनको अपराध की नयी नयी ऊँचाइयों पर ले जाते हैं. इसलिए इस तरह के दबंग अपने समाज के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं क्योंकि ये न्यायपालिका तक को काफी हद तक प्रभावित कर सकने की क्षमता रखते हैं. ( यहाँ पर ये साफ़ कर देना चाहता हूँ कि महंगे वकील कर पाने की क्षमता सिर्फ इनके पास होना भी न्याय की प्रक्रिया को प्रभावित करता है ) ये लोग हर तरह का अवराध करते हैं और साफ़ बच निकलते हैं.

b ) दुसरे तरह के अपराधी वो हैं जो दबे कुचले अशिक्षित, राजनेताओं और दबंगों द्वारा बहलाए और फुसलाये लोगों का है जो आर्थिक रूप से इतने कमजोर वर्ग से आते हैं कि इनके पास अपराधी बनकर छोटे मोटे हाथ मार कर अपना काम चलाने के अलावा कोई और चारा नहीं होता. ये वर्ग एक सामजिक शोषण और अव्यवस्था का शिकार है क्योंकि इसको अपनी स्थिति बदलने के अवसर बहुत ही कम मिलते हैं और अगर मिलते हैं तो अक्सर दूसरी समस्याओं के चलते इनको अपराध ही सबसे सरल और अच्छा रास्ता दिखाई देता है सफलता पाने का. और ये पोर्न देखकर अपराधी नहीं बनते बल्कि अपराधी बनने के बाद पोर्न का आनंद लेते हैं. ये वो तबका है जो अक्सर दबंगों द्वारा अपने कामों के लिए इस्तेमाल होता है अब वो चाहें उनके काम धंधे हों या फिर राजनितिक इस्तेमाल हो.

मेरे विचार से अगर पोर्न की वजह से अपराध में बढ़ोत्तरी होती तो भारत का सुप्रीम कोर्ट उन सभी अखबारों पर पाबंदी लगा चुका होता जो रोज ही दर्जनों नंगी फोटो छापते हैं अपने अखबारों में जो पोर्न के स्तर तक गिर चुकी हैं.

इसलिए बड़े ही आदर के साथ कहना चाहता हूँ मित्र कि पोर्न एक समस्या तो है पर ये सबसे बड़ी समस्या नहीं है और उन अपराधों का सबसे बड़ा या एक मात्रा कारण नहीं हैं जिनके साथ इसको जोड़ा जा रहा है. पोर्न का घोर विरोधी हूँ में जब एक अख़बार समूह के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गयी थी तो एक प्रार्थना पत्र उसमें मेरा भी था. पर इसको देश की दुर्गति के सबसे बड़े कारण के रूप में मैं नहीं देख पा रहा हूँ. मुझे लग रहा है कि आपने शायद बात को कुछ ज्यादा ही बड़ा चड़ा कर अतिश्योक्ति में बात की है. धन्यवाद.

amit_tiwari
21-12-2010, 03:50 AM
Only a short note to Mr. Arvind :

Now you see what i said earlier! Or should i say anything more?
It was your hope that we should give everyone chance to improve. I think now you know reformation is right or my way Re-Formation!!!

One line for Mr. Abhishek : Wait for right time has been really long, its too late now my friend.

arvind
21-12-2010, 10:59 AM
मित्र अरविन्द जी, नमस्कार ! हो सकता है कि पोर्न साइट्स की वजह से बलात्कार की घटनाओं में बढ़ोत्तरी हो रही हो पर ऐसा इसलिए भी हो सकता है कि जनसँख्या में भी बेहताशा बृद्धि हुयी है और सामाजिक असंतुलन भी बढ़ता जा रहा है. मैंने मित्र अमित जी द्वारा लिखा गया पूरा लेख पढ़ा और मुझे विचार के तौर पर इसने बहुत ही प्रभावित किया परन्तु साथ ही साथ आपका ये निष्कर्ष भी आ गया कि बाकी सब समस्याओं से दस गुनी बड़ी ये समस्या है ये आपका कथन मुझे कुछ उचित प्रतीत नहीं हुआ. समस्या वाकई बहुत ही गंभीर है और इस पर जितना संभव है रोक लगनी चाहिए पर सारी समस्याओं की जड़ इसको बता देना ठीक नहीं है.

....................

इसलिए बड़े ही आदर के साथ कहना चाहता हूँ मित्र कि पोर्न एक समस्या तो है पर ये सबसे बड़ी समस्या नहीं है और उन अपराधों का सबसे बड़ा या एक मात्रा कारण नहीं हैं जिनके साथ इसको जोड़ा जा रहा है. पोर्न का घोर विरोधी हूँ में जब एक अख़बार समूह के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गयी थी तो एक प्रार्थना पत्र उसमें मेरा भी था. पर इसको देश की दुर्गति के सबसे बड़े कारण के रूप में मैं नहीं देख पा रहा हूँ. मुझे लग रहा है कि आपने शायद बात को कुछ ज्यादा ही बड़ा चड़ा कर अतिश्योक्ति में बात की है. धन्यवाद.
अक्स जी, आपने मेरे जिस उद्धरण के बारे मे जवाब लिखा है, हो सकता है वो अतिशयोक्ति हो....
गुणीजनो/विद्वानो ने भी कहा है कि.....
धन की हानि - कुछ नहीं गया।
तन की हानि - बहुत कुछ गया
चरित्र की हानि - सब कुछ गया।
अभी कुछ दिनो पहले की बात है - श्री नितीश कुमार जी ने राजस्व बढ़ाने के लिए बिहार मे लगभग हर गाव मे शराब की दुकान खोलने की अनुमति दे दी। राजस्व बढ़ा या नहीं, ये तो अलग बात है, परंतु हरेक गाव मे शराबियों की संख्या जरूर बढ़ गयी। हाँ, एक बात जरूर कहूँगा की सारा गाव शराबी नहीं हो गया, क्योंकि जो अच्छे चरित्र के लोग होते है, उनपर किसी भी खराब माहौल का असर नहीं पड़ता है, परंतु वो अच्छे चरित्र वाले लोग भी न चाहते हुये भी उन शराबियों का सामना करते ही है, उनके घर के माँ-बहनो और बच्चो को भी उन शराबियों से परेशानी जरूर होती है। आने वाली पीढ़ी भी जो टीन-एज है - ज्यादा से ज्यादा शराबी बनेगी, क्योंकि माहौल भी है और उपलब्ध भी है।

अब परिस्थिति को उलट दीजिये, यानि गाव मे शराब कि दुकान है ही नहीं, तब सोचिए।

उपरोक्त उदाहरण के द्वारा मै यह बताना चाहता हूँ कि अगर साधन उपलब्ध न हो तो बहुत सारे लोग दलदल मे जाने से बच सकते है।

VIDROHI NAYAK
21-12-2010, 11:36 AM
उपरोक्त उदाहरण के द्वारा मै यह बताना चाहता हूँ कि अगर साधन उपलब्ध न हो तो बहुत सारे लोग दलदल मे जाने से बच सकते है।


आपकी बात से सहमति है परन्तु हम किसी विशेष वस्तु को हानि की द्रष्टि से ही क्यों देखें ? जबकि हम जानते है की संसार में प्रत्येक इंसान छोटी छोटी खुशियो के सहारे ही जी रहा है ...आपको क्या लगता है की १२ घंटे घोर परिश्रम करने वाला मजदूर क्या सिर्फ परिश्रम के सहारे ही जी रहा है? आप उसके लिए कौन सी छोटी खुशी सोच सकते हैं? कम कपड़ो में उसका परिवार या भूखे बच्चे? माना की वो उन सब के लिए जी रहा है परन्तु क्या है उसका मनोरंजन? क्या टेलिविज़न सभी के पास हो सकता है? ऐसे में क्या अगर वो दिन भर के लिए कुछ मदिरा पी लेता है तो क्या हर्ज है? आखिर इससे सस्ता और सुगम मनोरंजन उसके लिए और हो भी क्या सकता है ? अब हम इस में दोष आर्थिक असमानता को देंगे ...ऐसे ही हर चीज़ ...या कहिये हर बुराई एक चक्रिक रूप से आपस में बंधी है या ये कहिये की एक दूसरे के लिए उत्तरदाई है !अब किसी १० टायर के ट्रक में एक टायर को पंचर करने से ट्रक नहीं गिरेगा ...और कुछ हमारा सिस्टम या ये कहिये इस भारत की दुर्दशा कुछ ऐसे ही है ! भूखे पेट चरित्र का निर्माण नहीं हो सकता और चरित्र के बिना व्यक्ति का ...और व्यक्ति के विकास में धन का बहुत बड़ा योगदान है ! ऐसे में हुई न चक्र की बात? शराब के बिना और भी व्यवसन है जो गंभीर और घातक है ...क्या चरस ,भांग आदि गावों में आसानी से उपलब्ध नहीं होती ? या इनका शारीर पर कम असर होता है? ...तो हम किसी चीज़ का नकारात्मक पहलु ही क्यों देखें?
आज से कुछ साल पहले तक स्त्री को बिकनी में देखकर ही हो हल्ला मचता था पर आज यह आम है अब इस मानसिक विस्त्रता को आप किस रूप में देखेंगे...बुराई या अच्छाई? तब लड़कियों कुछ आज़ाद थी या आज?
कुल मिलकर मित्र यह एक चक्र है और प्रत्येक सवाल एक दूसरे का उत्तरदाई है ![/b]

chhotu
21-12-2010, 12:00 PM
चाहे मैं गाओ में पला और चाहे मैंने पढाई भी कम की हो लेकिन आज भी भारत को देखना हो तो गाओ जरूर जाओ i
हम जिस देश में रहते हैं उस देश की संस्कृति सबसे बड़ी मानी जाती है और सबसे ज्यादा बड़ी बात होती है संस्कृति का पालन करना, कोई आदमी यदि संस्कृति का अपमान करके खुद को बड़ा दिखने की कोशिश करता है तो वह ढोंगी है. चरित्र तो व्यक्तिगत मामला है, संस्कृति सार्वजानिक मामला है और संकृति का दोषी आदमी समाज का दोषी होता है, देश का दोषी होता है i
यदि चरित्र में कोई खोट आया है तो कभी भी सुधर जायेगा लेकिन संस्कृति में खोट पैदा हो गया तो न देश बचेगा न समाज और ना ही आदमी i

पहले संस्कृति बचाओ, अपना देश बचाओ

arvind
21-12-2010, 12:10 PM
आपकी बात से सहमति है परन्तु हम किसी विशेष वस्तु को हानि की द्रष्टि से ही क्यों देखें ? जबकि हम जानते है की संसार में प्रत्येक इंसान छोटी छोटी खुशियो के सहारे ही जी रहा है ...आपको क्या लगता है की १२ घंटे घोर परिश्रम करने वाला मजदूर क्या सिर्फ परिश्रम के सहारे ही जी रहा है? आप उसके लिए कौन सी छोटी खुशी सोच सकते हैं? कम कपड़ो में उसका परिवार या भूखे बच्चे? माना की वो उन सब के लिए जी रहा है परन्तु क्या है उसका मनोरंजन? क्या टेलिविज़न सभी के पास हो सकता है? ऐसे में क्या अगर वो दिन भर के लिए कुछ मदिरा पी लेता है तो क्या हर्ज है? आखिर इससे सस्ता और सुगम मनोरंजन उसके लिए और हो भी क्या सकता है ? अब हम इस में दोष आर्थिक असमानता को देंगे ...ऐसे ही हर चीज़ ...या कहिये हर बुराई एक चक्रिक रूप से आपस में बंधी है या ये कहिये की एक दूसरे के लिए उत्तरदाई है !अब किसी १० टायर के ट्रक में एक टायर को पंचर करने से ट्रक नहीं गिरेगा ...और कुछ हमारा सिस्टम या ये कहिये इस भारत की दुर्दशा कुछ ऐसे ही है ! भूखे पेट चरित्र का निर्माण नहीं हो सकता और चरित्र के बिना व्यक्ति का ...और व्यक्ति के विकास में धन का बहुत बड़ा योगदान है ! ऐसे में हुई न चक्र की बात? शराब के बिना और भी व्यवसन है जो गंभीर और घातक है ...क्या चरस ,भांग आदि गावों में आसानी से उपलब्ध नहीं होती ? या इनका शारीर पर कम असर होता है? ...तो हम किसी चीज़ का नकारात्मक पहलु ही क्यों देखें?
आज से कुछ साल पहले तक स्त्री को बिकनी में देखकर ही हो हल्ला मचता था पर आज यह आम है अब इस मानसिक विस्त्रता को आप किस रूप में देखेंगे...बुराई या अच्छाई? तब लड़कियों कुछ आज़ाद थी या आज?
कुल मिलकर मित्र यह एक चक्र है और प्रत्येक सवाल एक दूसरे का उत्तरदाई है ![/b]
भाई साहब, अगर भूखे पेट चरित्र का निर्माण नहीं हो सकता है, तो अपने कम कपड़ो मे भूखे बच्चे के लिए, बजाय, कपड़े और खाना देने के, कोई पिता अगर शराब पीता है तो उसका चरित्रवान होना असंभव है। चरित्र किसी पैसे वालो की दासी नहीं है। और आपसे ये किसने कहा की शराब पीना सस्ता और सुगम "मनोरंजन" का साधन है।

भले दस ट्रक वाले ट्रक का एक टायर पंचर हो जाने से कोई खास फर्क नहीं पड़ता है, परंतु सड़ी मछ्ली को तालाब से निकाल देना ही तालाब और अन्य मछलियों के लिए अच्छा रहता है।

एक बात कहूँगा.... गलत रास्ते बहुत ही सुगम होते है और सही रास्ता बहुत कठिन।

YUVRAJ
21-12-2010, 02:47 PM
vaah ...kyaa baat hai Arvind bhai ji ...:clap:...:clap:...:clap:...:clap:
भाई साहब, अगर भूखे पेट चरित्र का निर्माण नहीं हो सकता है, ...............
.........................
........................... परंतु सड़ी मछ्ली को तालाब से निकाल देना ही तालाब और अन्य मछलियों के लिए अच्छा रहता है।

एक बात कहूँगा.... गलत रास्ते बहुत ही सुगम होते है और सही रास्ता बहुत कठिन।

chhotu
21-12-2010, 03:55 PM
आज जो सिक्का हम कमा रहे हैं वो कैसा कमा रहे हैं ? उस से हमें क्या मिल रहा है ? आलस्य, विलास, परिचिंता और अहंकार i ऐसी कमाई का क्या फायदा जो हमें इस प्रकार की चीजे देता हो, ऐसी चीजें जो ना सिर्फ हमें बल्कि हमारे आश्रितों के मन तक को दूषित कर देता हो i
मैं यहाँ कम ही आता हूँ, क्यूंकि मेरे पास साधन ही इतने हैं लेकिन यहाँ आकर देखता हूँ तो मन में एक दुःख होता है कि प्रेम कहीं खो गया है और अहंकार के मद में एक दुसरे को नीचा दिखने की लालसा लिए एक्के दुक्के लोग यहाँ बेकार में सभी को लपेट रहे हैंi कितने लोग ऐसे हैं जो एक दुसरे को जानते हैं ? जब जानते ही नहीं तो बेवजह एक दुसरे को दोषी ठहराने से क्या मिलने वाला है ?

चलिए कौन बता सकते हैं कि विवाह की परिभाषा क्या है ? ध्यान रहे यहाँ इन्द्रिय सुख की बात नहीं हो i परिभाषा छोटी और अपने में पूरी हो i

arvind
21-12-2010, 04:46 PM
आज जो सिक्का हम कमा रहे हैं वो कैसा कमा रहे हैं ? उस से हमें क्या मिल रहा है ? आलस्य, विलास, परिचिंता और अहंकार i ऐसी कमाई का क्या फायदा जो हमें इस प्रकार की चीजे देता हो, ऐसी चीजें जो ना सिर्फ हमें बल्कि हमारे आश्रितों के मन तक को दूषित कर देता हो i
मैं यहाँ कम ही आता हूँ, क्यूंकि मेरे पास साधन ही इतने हैं लेकिन यहाँ आकर देखता हूँ तो मन में एक दुःख होता है कि प्रेम कहीं खो गया है और अहंकार के मद में एक दुसरे को नीचा दिखने की लालसा लिए एक्के दुक्के लोग यहाँ बेकार में सभी को लपेट रहे हैंi कितने लोग ऐसे हैं जो एक दुसरे को जानते हैं ? जब जानते ही नहीं तो बेवजह एक दुसरे को दोषी ठहराने से क्या मिलने वाला है ?

चलिए कौन बता सकते हैं कि विवाह की परिभाषा क्या है ? ध्यान रहे यहाँ इन्द्रिय सुख की बात नहीं हो i परिभाषा छोटी और अपने में पूरी हो i
भाई छोटु जी, यहा पर बहुत सारे सदस्य एक-दूसरे से मिल चुके है और फोन से भी संपर्क मे रहते है, और तो और, इस फोरम पर मिलकर विभिन्न विषयो पर अपने विचार भी शेयर करते है। बहुत सदस्य तो इसी फोरम के माध्यम से अच्छे मित्र भी बन चुके है। फिर आप कैसे कह सकते है की एक-दूसरे को जानते तक नहीं। और रही बात एक-दूसरे को बेवजह दोषी ठहराने की तो अगर गलत बात को कोई गलत कहता है तो क्या यह आपके नजर मे गलत है? पहले किसी भी फोरम को अच्छी तरह से समझने की कोशिश कीजिये, फिर सबंधित सूत्र मे सबंधित चर्चा कीजिये। अब जैसे ये सूत्र है - "एडल्ट साइट्स : स्वयं का मूल्याँकन", और आप यहा विवाह की परिभाषा पूछ रहे है। क्या इस तरह से सूत्र अपने चर्चा के विषय से भटक नहीं जाएगा? आप इसके लिए सबंधित सूत्र मे जाकर इस प्रश्न को पूछ सकते है, और अगर सबंधित सूत्र नहीं है तो संबन्धित विभाग मे जाकर नया सूत्र बना सकते है।

VIDROHI NAYAK
21-12-2010, 06:58 PM
अरविन्द जी...प्रथम तो अगर शराब किसी न किसी रूप से आनंद न देती या ये कहो ये मानसिक स्वतंत्रता न देती तो इतने शराबी न होते !
और ये मानसिक स्वतंत्रता और ये आनंद क्या मनोरंजन नहीं ? शायद आप न पीते हों परन्तु जो पीते उनके लिए तो ये आनंद की ही बात है न ! अब यह तो अलग बात हुई की कौन अपनी स्वतंत्रता का कैसा उपयोग करता है ! अक्सर देखा जाता है की मनुष्य का आतंरिक स्वाभाव नशे में बहार आता है और उसकी प्रवत्तिया उसके आचरण के बारे में दर्शाती हैं ! हमने अक्सर यह भी देखा है की सारे शराबी नशे के बाद बहकते नहीं ...सारे अभद्रता नहीं करते !
जहाँ तक व्यक्तिगत खुशी का सवाल है तो मनुष्य जीना चाहता है और जीने के लिए उसे किसी न किसी चीज़ से आसक्त तो रहना ही पड़ता है ! विरक्ति तो उससे निर्वाण की और ले जायेगी या ये कहो की वह मोक्ष को प्राप्त हो जायेगा और एक गरीब इंसान के लिए इससे बेहतर क्या हो सकता है ! जिस ठण्ड को हम हवाला देकर अपनी राज़ईओ में दुबके रहते हैं उसी ठण्ड में कोई कम वस्त्रों में शारीरिक परिश्रम कर रहा होता है ...
मुझे एक प्रसंग याद आता है ...स्वामी रामकृष्ण परमहंस का ! कहा जाता है की स्वामी जी को विशेष वस्तु से लगाव नहीं था परन्तु स्वादिष्ट भोजनो के प्रति वो बहुत आसक्त रहते थे ! उनके शिष्य इस बात से बहुत आहात थे और प्रायः इस बात का विरोध करते थे ! उनका मानना था की स्वामी जी इस बात से अपनी छवि धूमिल करते हैं ! आखिर हार मानकर उन्होंने इस बात की शिकायत स्वामी जी की पत्नी से की ! उनकी पत्नी के पूछने स्वामी जी ने स्पष्टीकरण दिया ! उनका कह्नना था की जब मैंने सब कुछ त्याग ही दिया है तो मेरे जीवन का क्या महत्व? तब कैसा जीवन? इस जीवन को बचाने के लिए ही मुझे किसी न किसी एक वस्तु यानी भोजन से आसक्त रहना ही पड़ता है ! जिस दिन मै खाने से मुह मोड लूं समझ लेना मेरा वक्त नजदीक आ गया है ! और वास्तव में ऐसा हुआ भी ! उनके भोजन छोड़ने के ३ दिन के उपरान्त ही उनकी म्रत्यु हो गई या ये कहिये की वो निर्वाण को प्राप्त हो गए !
अरविन्द जी यह उदाहरण मात्र यही बताने के लिए है की जीवन के लिए आसक्ति कितनी ज़रुरी है ! और एक गरीब इंसान के लिए छोटी छोटी खुशिया ही आसक्ति का कारन बनती है !
अरविन्द जी यहाँ एक मछली ही नहीं गन्दी है वरन एक ही साफ़ है !अब ऐसे में क्या आप सारी मछलियो को मारने की बात करते हैं? या आप कुछ ऐसा उपाए करना चाहेंगे की मछलियो की नस्ल ही साफ़ हो जाए ! अब चोरिये मछलियो के बारे में ...इन मनुष्यों का क्या? क्या सभी को नष्ट कर देंगे या उनका विचार बदलना चाहेंगे ?
अरविन्द जी इस चक्रवात में कहाँ से शुरुवात की जाए यही समझना है हमें !
और यह शुरुवात किसी एक खराब मछली को निकालने से ही नहीं होगी !

prashant
21-12-2010, 07:05 PM
हम्मम्मम अब जोड़दार बहस हो रहा है............अब लगता है की कोई निष्कर्ष निकल कर ही रहेगा.
मैं थोडा लेट हो गया.मैं कब से कहना चाहता हूँ की की इस फोरम पर सभी सदस्य वयस्क है.सब को अपना सही गलत सोचने की समझ सकती है.अब प्रवचन देने से कोई लाभ नहीं है.मेरे हिसाब से सभी अपने अपने तर्क पर सही हैं.हर विषय के सही और गलत पासे होते हैं.

Prince
21-12-2010, 09:45 PM
भाई छोटु जी, यहा पर बहुत सारे सदस्य एक-दूसरे से मिल चुके है और फोन से भी संपर्क मे रहते है, और तो और, इस फोरम पर मिलकर विभिन्न विषयो पर अपने विचार भी शेयर करते है। बहुत सदस्य तो इसी फोरम के माध्यम से अच्छे मित्र भी बन चुके है। फिर आप कैसे कह सकते है की एक-दूसरे को जानते तक नहीं। और रही बात एक-दूसरे को बेवजह दोषी ठहराने की तो अगर गलत बात को कोई गलत कहता है तो क्या यह आपके नजर मे गलत है? पहले किसी भी फोरम को अच्छी तरह से समझने की कोशिश कीजिये, फिर सबंधित सूत्र मे सबंधित चर्चा कीजिये। अब जैसे ये सूत्र है - "एडल्ट साइट्स : स्वयं का मूल्याँकन", और आप यहा विवाह की परिभाषा पूछ रहे है। क्या इस तरह से सूत्र अपने चर्चा के विषय से भटक नहीं जाएगा? आप इसके लिए सबंधित सूत्र मे जाकर इस प्रश्न को पूछ सकते है, और अगर सबंधित सूत्र नहीं है तो संबन्धित विभाग मे जाकर नया सूत्र बना सकते है।

अरविन्द जी. आपने कितनी आसानी से छोटू जी को कह दिया कि विवाह की परिभाषा सूत्र के विषय से हट कर हो जायेगी. मैं पूरा थ्रेड रीड किया है और देखा है कि किसी और सदस्य ने आपके लिए कोई व्यक्तिगत नोट भेजा था जिसका इस थ्रेड से कोई वास्ता नहीं था. ये व्यक्तिगत नोट एक निजी सन्देश की तरह भी भेजा जा सकता था. उनको तो कोई जवाब नहीं दिया आपने ??? क्या पता छोटू जी की बात का इस थ्रेड से कोई ताल्लुक हो ?? अगर बुरा लगे तो माफ़ कर दीजिये. जो लगा बता दिया.

Prince
21-12-2010, 09:48 PM
हम्मम्मम अब जोड़दार बहस हो रहा है............अब लगता है की कोई निष्कर्ष निकल कर ही रहेगा.
मैं थोडा लेट हो गया.मैं कब से कहना चाहता हूँ की की इस फोरम पर सभी सदस्य वयस्क है.सब को अपना सही गलत सोचने की समझ सकती है.अब प्रवचन देने से कोई लाभ नहीं है.मेरे हिसाब से सभी अपने अपने तर्क पर सही हैं.हर विषय के सही और गलत पासे होते हैं.

बहुत सही बात कही है दोस्त. सभी विचार काफी मजबूत और सही लगते हैं. किसी को भी गलत नहीं कहा जा सकता.

VIDROHI NAYAK
21-12-2010, 10:10 PM
चलिए कौन बता सकते हैं कि विवाह की परिभाषा क्या है ? ध्यान रहे यहाँ इन्द्रिय सुख की बात नहीं हो i परिभाषा छोटी और अपने में पूरी हो i

मित्र छोटू मेरे हिसाब से विवाह एक सम्पूर्णता है...बस एक सम्पूर्णता ...शारीरिक और आत्मिक ! अर्ध को पूर्ण करने का प्रयास ! और पूर्ण से फिर अर्ध को ज़न्म देने का प्रयास ! एक सामाजिक व्यस्था !
विवाह मात्र शारीरिक ही नहीं आत्मिक मिलन भी है और यही आत्मिक मिलन सम्पूर्णता का अंतिम चरण है !
कुल मिलाकर कम शब्दों में कहा जा सकता है की यह एक सामाजिक व्यस्था है जो संसार और मनुष्य के पूरण हेतु अति आवश्यक है !

ndhebar
21-12-2010, 10:10 PM
विद्रोही जी मैं आपकी सारी नहीं पर तक़रीबन बातों से सहमत हूँ
असहमति सिर्फ इस बात पर है

"यहाँ एक मछली ही नहीं गन्दी है वरन एक ही साफ़ है !अब ऐसे में क्या आप सारी मछलियो को मारने की बात करते हैं? या आप कुछ ऐसा उपाए करना चाहेंगे की मछलियो की नस्ल ही साफ़ हो जाए ! अब छोरिये मछलियो के बारे में ...इन मनुष्यों का क्या? क्या सभी को नष्ट कर देंगे या उनका विचार बदलना चाहेंगे ?"

पर अगर आपकी नजर में सारे लोग ही गंदे हो चुके हैं तो बहस किस बात पर
अंत में आपका हस्ताक्षर
( वैचारिक मतभेद संभव है )

VIDROHI NAYAK
21-12-2010, 10:18 PM
विद्रोही जी मैं आपकी सारी नहीं पर तक़रीबन बातों से सहमत हूँ
असहमति सिर्फ इस बात पर है

"यहाँ एक मछली ही नहीं गन्दी है वरन एक ही साफ़ है !अब ऐसे में क्या आप सारी मछलियो को मारने की बात करते हैं? या आप कुछ ऐसा उपाए करना चाहेंगे की मछलियो की नस्ल ही साफ़ हो जाए ! अब छोरिये मछलियो के बारे में ...इन मनुष्यों का क्या? क्या सभी को नष्ट कर देंगे या उनका विचार बदलना चाहेंगे ?"

पर अगर आपकी नजर में सारे लोग ही गंदे हो चुके हैं तो बहस किस बात पर
अंत में आपका हस्ताक्षर
( वैचारिक मतभेद संभव है )
मित्र शायद मै कुछ ज्यादा मछलियो को गन्दी कह गया ....उसके लिए माफ़ी चाहूँगा ! पर खराब का प्रतिशत अच्छे से ज्यादा है और इस बात से आप भी सहमति होंगे !दूसरी बात मेरी नज़र में कोई गन्दा नहीं है ...बस हम उस मजबूरी को नज़रंदाज़ कर देते हैं जो उसे बुरा बनाता है ! कोई भी ज़न्म से ही बुरा नहीं होता और इसी वज़ह से किसी को भी बुरा नहीं कहता !मुझे उससे ज्यादा उसकी मजबूरी बुरी लगती है ! बस यहाँ तो मै अरविन्द जी को कुछ चक्रवात के विषय में समझाने का प्रयास कर रहा था !
धन्यवाद !

YUVRAJ
22-12-2010, 07:17 AM
:clap:...:clap:...:clap:...:clap:...:bravo:
:iagree:
हम्मम्मम अब जोड़दार बहस हो रहा है............अब लगता है की कोई निष्कर्ष निकल कर ही रहेगा.
मैं थोडा लेट हो गया.मैं कब से कहना चाहता हूँ की की इस फोरम पर सभी सदस्य वयस्क है.सब को अपना सही गलत सोचने की समझ सकती है.अब प्रवचन देने से कोई लाभ नहीं है.मेरे हिसाब से सभी अपने अपने तर्क पर सही हैं.हर विषय के सही और गलत पासे होते हैं.
:iagree:
बहुत सही बात कही है दोस्त. सभी विचार काफी मजबूत और सही लगते हैं. किसी को भी गलत नहीं कहा जा सकता.
यार आपने तो विवाह को क्षेत्रवाद में बाँध दिया ... सारी दुनियाँ इसे इस नजर से नहीं देखती/
मित्र छोटू मेरे हिसाब से विवाह एक सम्पूर्णता है...बस एक सम्पूर्णता ...शारीरिक और आत्मिक ! अर्ध को पूर्ण करने का प्रयास ! और पूर्ण से फिर अर्ध को ज़न्म देने का प्रयास ! एक सामाजिक व्यस्था !
विवाह मात्र शारीरिक ही नहीं आत्मिक मिलन भी है और यही आत्मिक मिलन सम्पूर्णता का अंतिम चरण है !
कुल मिलाकर कम शब्दों में कहा जा सकता है की यह एक सामाजिक व्यस्था है जो संसार और मनुष्य के पूरण हेतु अति आवश्यक है !
जनाब आप किसी के हस्ताक्षर से परेशान क्यू होने लगे ???:boring:
विद्रोही जी मैं आपकी सारी नहीं पर तक़रीबन बातों से सहमत हूँ
असहमति सिर्फ इस बात पर है

"यहाँ एक मछली ही नहीं गन्दी है वरन एक ही साफ़ है !अब ऐसे में क्या आप सारी मछलियो को मारने की बात करते हैं? या आप कुछ ऐसा उपाए करना चाहेंगे की मछलियो की नस्ल ही साफ़ हो जाए ! अब छोरिये मछलियो के बारे में ...इन मनुष्यों का क्या? क्या सभी को नष्ट कर देंगे या उनका विचार बदलना चाहेंगे ?"

पर अगर आपकी नजर में सारे लोग ही गंदे हो चुके हैं तो बहस किस बात पर
अंत में आपका हस्ताक्षर
( वैचारिक मतभेद संभव है )

arvind
22-12-2010, 09:30 AM
अरविन्द जी...प्रथम तो अगर शराब किसी न किसी रूप से आनंद न देती या ये कहो ये मानसिक स्वतंत्रता न देती तो इतने शराबी न होते !
और ये मानसिक स्वतंत्रता और ये आनंद क्या मनोरंजन नहीं ? शायद आप न पीते हों परन्तु जो पीते उनके लिए तो ये आनंद की ही बात है न ! अब यह तो अलग बात हुई की कौन अपनी स्वतंत्रता का कैसा उपयोग करता है ! अक्सर देखा जाता है की मनुष्य का आतंरिक स्वाभाव नशे में बहार आता है और उसकी प्रवत्तिया उसके आचरण के बारे में दर्शाती हैं ! हमने अक्सर यह भी देखा है की सारे शराबी नशे के बाद बहकते नहीं ...सारे अभद्रता नहीं करते !
जहाँ तक व्यक्तिगत खुशी का सवाल है तो मनुष्य जीना चाहता है और जीने के लिए उसे किसी न किसी चीज़ से आसक्त तो रहना ही पड़ता है ! विरक्ति तो उससे निर्वाण की और ले जायेगी या ये कहो की वह मोक्ष को प्राप्त हो जायेगा और एक गरीब इंसान के लिए इससे बेहतर क्या हो सकता है ! जिस ठण्ड को हम हवाला देकर अपनी राज़ईओ में दुबके रहते हैं उसी ठण्ड में कोई कम वस्त्रों में शारीरिक परिश्रम कर रहा होता है ...
मुझे एक प्रसंग याद आता है ...स्वामी रामकृष्ण परमहंस का ! कहा जाता है की स्वामी जी को विशेष वस्तु से लगाव नहीं था परन्तु स्वादिष्ट भोजनो के प्रति वो बहुत आसक्त रहते थे ! उनके शिष्य इस बात से बहुत आहात थे और प्रायः इस बात का विरोध करते थे ! उनका मानना था की स्वामी जी इस बात से अपनी छवि धूमिल करते हैं ! आखिर हार मानकर उन्होंने इस बात की शिकायत स्वामी जी की पत्नी से की ! उनकी पत्नी के पूछने स्वामी जी ने स्पष्टीकरण दिया ! उनका कह्नना था की जब मैंने सब कुछ त्याग ही दिया है तो मेरे जीवन का क्या महत्व? तब कैसा जीवन? इस जीवन को बचाने के लिए ही मुझे किसी न किसी एक वस्तु यानी भोजन से आसक्त रहना ही पड़ता है ! जिस दिन मै खाने से मुह मोड लूं समझ लेना मेरा वक्त नजदीक आ गया है ! और वास्तव में ऐसा हुआ भी ! उनके भोजन छोड़ने के ३ दिन के उपरान्त ही उनकी म्रत्यु हो गई या ये कहिये की वो निर्वाण को प्राप्त हो गए !
अरविन्द जी यह उदाहरण मात्र यही बताने के लिए है की जीवन के लिए आसक्ति कितनी ज़रुरी है ! और एक गरीब इंसान के लिए छोटी छोटी खुशिया ही आसक्ति का कारन बनती है !
अरविन्द जी यहाँ एक मछली ही नहीं गन्दी है वरन एक ही साफ़ है !अब ऐसे में क्या आप सारी मछलियो को मारने की बात करते हैं? या आप कुछ ऐसा उपाए करना चाहेंगे की मछलियो की नस्ल ही साफ़ हो जाए ! अब चोरिये मछलियो के बारे में ...इन मनुष्यों का क्या? क्या सभी को नष्ट कर देंगे या उनका विचार बदलना चाहेंगे ?
अरविन्द जी इस चक्रवात में कहाँ से शुरुवात की जाए यही समझना है हमें !
और यह शुरुवात किसी एक खराब मछली को निकालने से ही नहीं होगी !
मै इस बात से पूर्णत सहमत हूँ कि शराब पीने के बाद बहुत ही मजा का अहसास होता है, क्या सिर्फ इसीलिए हमे शराब और शराबी की सराहना करनी चाहिए? मित्र, ऐसे और भी बहुत से काम है जिसे बहुत सारे लोग करके आनंद की प्राप्ति करते है, जैसे - हत्या, बलात्कार, लूट, नशापान, इत्यादि, तो क्या आप इसे इसीलिए उचित ठहराने की कोशिश करेंगे, क्योंकि बहुत सारे लोग ऐसा कर रहे है।

आपने बात उठाई थी, एक गरीब की, जिसके बच्चो के तन पर कपड़े नहीं है और भूखे पेट है, और वो मनोरंजन के लिए शराब पीता है। तो आप खुद ही आपने आप से पूछिए, या सोचिए की अगर आप उस गरीब के जगह रहते, तो बजाय अपने बच्चो को रोटी और कपड़ा देने के आप शराब पीते, क्या आपकी आत्मा नहीं धिक्कारेगी। क्या शराब पीने के पहले आपको अपने बच्चो के भूखे और नंगे चेहरे नहीं नजर आएंगे।

भईया, कम से कम उदाहरण तो सही ढंग का चुनिये। आपने स्वामी रामकृष्ण परमहंस का उदाहरण लिया है, वो भी शराब और शराबी के पक्ष को सही ठहराने के लिए। स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने भूख के संबंध मे ऐसा निर्णय लिया था, न कि शराब के व्यसन के लिए। स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने कभी शराब या शराबी के लिए कोई आदर्श पेश नहीं किया। भूख, प्यास, और सांस जीवन की परमावश्यकता है, इसके बगैर जिंदा रहना मुश्किल है, जैसा की स्वामी रामकृष्ण परमहंस के साथ हुआ।

एक बात और कहना चाहूँगा, जहा शराब कुछ देर के लिए आनंद के सागर मे डुबो के रखता है, वही इसकी कितनी हानिया है, उसपर भी जरा एक बार नजर दौड़ा लीजिएगा।

दोस्त, जो गलत है, उसके पक्ष मे कितना भी उदाहरण दे दीजिये वो गलत ही रहेगा।

arvind
22-12-2010, 09:44 AM
अरविन्द जी. आपने कितनी आसानी से छोटू जी को कह दिया कि विवाह की परिभाषा सूत्र के विषय से हट कर हो जायेगी. मैं पूरा थ्रेड रीड किया है और देखा है कि किसी और सदस्य ने आपके लिए कोई व्यक्तिगत नोट भेजा था जिसका इस थ्रेड से कोई वास्ता नहीं था. ये व्यक्तिगत नोट एक निजी सन्देश की तरह भी भेजा जा सकता था. उनको तो कोई जवाब नहीं दिया आपने ??? क्या पता छोटू जी की बात का इस थ्रेड से कोई ताल्लुक हो ?? अगर बुरा लगे तो माफ़ कर दीजिये. जो लगा बता दिया.
उफ्फ, फिर माफी...... मुझे सख्त नफरत है माफी मांगने वालो से...... अपनी बात भी दृढ़ता से नहीं कह पाते।

प्रिंस बाबू, अगर एक सदस्य ने गलती कि है, तो उसका देखादेखी आप भी गलती करेंगे, तो फिर आपमे और उसमे अंतर क्या रह जाएगा? क्या बचकानी बात करते हो यार?

और जहा तक आप जिस व्यक्तिगत नोट कि बात कर रहे है, कृपया उसे फिर से पढ़ ले, उक्त नोट अमित जी ने मुझे और अभिषेक जी को लिखा है और वो भी इस सूत्र के संदर्भ मे ही है।
only a short note to mr. Arvind :

now you see what i said earlier! Or should i say anything more?
It was your hope that we should give everyone chance to improve. I think now you know reformation is right or my way re-formation!!!

one line for mr. Abhishek : wait for right time has been really long, its too late now my friend.

chhotu
22-12-2010, 11:01 AM
भाई छोटु जी, यहा पर बहुत सारे सदस्य एक-दूसरे से मिल चुके है और फोन से भी संपर्क मे रहते है, और तो और, इस फोरम पर मिलकर विभिन्न विषयो पर अपने विचार भी शेयर करते है। बहुत सदस्य तो इसी फोरम के माध्यम से अच्छे मित्र भी बन चुके है। फिर आप कैसे कह सकते है की एक-दूसरे को जानते तक नहीं। और रही बात एक-दूसरे को बेवजह दोषी ठहराने की तो अगर गलत बात को कोई गलत कहता है तो क्या यह आपके नजर मे गलत है? पहले किसी भी फोरम को अच्छी तरह से समझने की कोशिश कीजिये, फिर सबंधित सूत्र मे सबंधित चर्चा कीजिये। अब जैसे ये सूत्र है - "एडल्ट साइट्स : स्वयं का मूल्याँकन", और आप यहा विवाह की परिभाषा पूछ रहे है। क्या इस तरह से सूत्र अपने चर्चा के विषय से भटक नहीं जाएगा? आप इसके लिए सबंधित सूत्र मे जाकर इस प्रश्न को पूछ सकते है, और अगर सबंधित सूत्र नहीं है तो संबन्धित विभाग मे जाकर नया सूत्र बना सकते है।

अरविन्द भाई जी, क्या मैं यहाँ मैं अपनी बात नहीं कह सकता या सिर्फ बड़े लोगों को ही यहाँ अपनी बात कहने की अनुमति है ? मुझे आश्चर्य के साथ दुःख भी है कि एक प्रभारी होकर भी आप इस प्रकार का बर्ताव करते हैं i किसी को आप ताड़ी पीने वाला बोल देते हैं i क्या छोटे लोगों को फोरम पर अपने विचार रखने की वास्तव में ही इजाजत नहीं है ? क्या फोरम के करता धर्ता इस बारे में कुछ स्पष्ट करेंगे ?
जहां तक मैं समझता हूँ विवाह एक वयस्क विषय है, सिर्फ एक वयस्क विषय और प्रिंस भाई जी ने बिलकुल सही कहा कि अभी तो मेरी बात पूरी भी नहीं हुई और आपने निर्णय दे दिया i
मैं कम पढ़ा लिखा जरूर हूँ लेकिन भोंदू नहीं हूँ जो ये भी नहीं जनता कि मुझे किस विषय पर अपने विचार कहाँ रखने चाहिए i हाँ ये जरूर है कि मेरे हिज्जे गलत हो सकते हैं क्योंकि मैं धीरे धीरे इस लिंक से हिंदी लिखना सीख रहा हूँ i
क्या कोई बताएगा कि मैं अपने विचार यहाँ लिख सकता हूँ या नहीं ?

amit_tiwari
22-12-2010, 11:27 AM
मैं थोडा लेट हो गया.मैं कब से कहना चाहता हूँ की की इस फोरम पर सभी सदस्य वयस्क है.सब को अपना सही गलत सोचने की समझ सकती है.अब प्रवचन देने से कोई लाभ नहीं है.मेरे हिसाब से सभी अपने अपने तर्क पर सही हैं.हर विषय के सही और गलत पासे होते हैं.

आपको मैं दूसरी बार कह रहा हूँ कि ना तो मैंने किसी को इस प्रवचन का निमंत्रण भेजा है और ना ही यह सूत्र विषय की वैधता जांचने के लिए है | एक बार अंग्रेजी में लिखा था दूसरी बार हिंदी में लिख रहा हूँ | यदि अभी भी मेरी बातों का अर्थ ना समझ आये तो भाषा का विकल्प दें |

अरविन्द जी. आपने कितनी आसानी से छोटू जी को कह दिया कि विवाह की परिभाषा सूत्र के विषय से हट कर हो जायेगी. मैं पूरा थ्रेड रीड किया है और देखा है कि किसी और सदस्य ने आपके लिए कोई व्यक्तिगत नोट भेजा था जिसका इस थ्रेड से कोई वास्ता नहीं था. ये व्यक्तिगत नोट एक निजी सन्देश की तरह भी भेजा जा सकता था. उनको तो कोई जवाब नहीं दिया आपने ??? क्या पता छोटू जी की बात का इस थ्रेड से कोई ताल्लुक हो ?? अगर बुरा लगे तो माफ़ कर दीजिये. जो लगा बता दिया.

वो नोट मेरा था और मैंने वो अरविन्द जी को यहाँ इसलिए लिखा कि सभी पढ़ें | मैंने अरविन्द जी से कहा था कि कतिपय लोगों के होते हुए इस फोरम का भी वही हाल होगा, वही अराजकता होगी जो पहले थी और मेरी बातों को सही सिद्ध करने के लिए सभी धर्मभीरुओं का हार्दिक धन्यवाद |


विद्रोही जी मैं आपकी सारी नहीं पर तक़रीबन बातों से सहमत हूँ
असहमति सिर्फ इस बात पर है

"यहाँ एक मछली ही नहीं गन्दी है वरन एक ही साफ़ है !अब ऐसे में क्या आप सारी मछलियो को मारने की बात करते हैं? या आप कुछ ऐसा उपाए करना चाहेंगे की मछलियो की नस्ल ही साफ़ हो जाए ! अब छोरिये मछलियो के बारे में ...इन मनुष्यों का क्या? क्या सभी को नष्ट कर देंगे या उनका विचार बदलना चाहेंगे ?"

पर अगर आपकी नजर में सारे लोग ही गंदे हो चुके हैं तो बहस किस बात पर
अंत में आपका हस्ताक्षर
( वैचारिक मतभेद संभव है )


भाई रहने दें, आप तार्किक रहते हुए तर्क कर सकते हैं किन्तु कुतर्कों का कुछ नहीं कर सकते |
koi faayda भी नहीं है समय व्यर्थ करने का |


चलिए कौन बता सकते हैं कि विवाह की परिभाषा क्या है ? ध्यान रहे यहाँ इन्द्रिय सुख की बात नहीं हो i परिभाषा छोटी और अपने में पूरी हो i

है तो सूत्र से अलग किन्तु अब आपने चुनौती ही दे डाली तो ठीक है ; विवाह कौन सा ?
ईसाई विवाह ? वो तो खुद उसे एक आवश्यक बुराई कहते हैं या मुस्लिम विवाह जहां वो एक आर्थिक समझौता है या फिर हिन्दू विवाह जहां वह एक सामाजिक संस्कार है ? एक मिनट हिन्दू विवाह में कौन सा प्रकार | प्राकवैदिक काल में ही आठ प्रकार के विवाह थे | कौन से विवाह की परिभाषा चाहिए ? आजकल हिन्दुओं में होने वाले विवाह में हमारे आठ में से कितने विवाहों की कतरन शामिल है ये बताऊँ ? या विवाह के किस चरण का कौन सा काल कहाँ प्रारंभ हुआ ये बताऊँ ? क्या पाणिग्रहण को पहली बार करने वाले का नाम जानना है या फिर आजकल के विवाहों के प्रमुख तत्व जयमाल का प्रादुर्भाव कहाँ से हुआ यह बताना पड़ेगा |
थोडा प्रश्न स्पष्ट करें ताकि मुझ मंदबुद्धि को सटीक उत्तर देने में सुविधा हो |

amit_tiwari
22-12-2010, 11:35 AM
I don't understand why this thread is still open even after so much of flaming.

Can't this forum have 1 driving moderator???

naman.a
22-12-2010, 11:44 AM
नमस्कार,
सबसे पहले अमित भाई को साधुवाद, जिन्होंने एक ऐसे विषय को चुना जिसमे समाज को जागरूकता की आवश्यकता हैं.

केवल पोर्न साईट को इसका जिम्मेदार मानना अनुचित होगा क्योकि इन्टरनेट का प्रादुर्भाव तो अभी कुछ वर्षो पहले ही हुआ हैं और उससे भी कम समय इसके सभी वर्गों तक ये पहुचने में हुआ हैं. कुछ हद तक ही ये साईट जिम्मेदार हैं क्योकि आज का युवा वर्ग पूरी तरह से इस वश में हो गया हैं पर पूर्ण रूप से इन्हें जिम्मेदार नहीं कह सकते.

मूल रूप से अपनी संस्कृति और धर्म के प्रति अज्ञानता और पश्चातीय अविद्या का प्रचार-प्रसार ही इन सब कुकृत्यो का कारण हैं.

मेरे विचार में समाज को अपने संस्कारो और धर्म के प्रति जागरूकता पैदा करना ही इसका उपाय हो सकता हैं .

arvind
22-12-2010, 12:20 PM
अरविन्द भाई जी, क्या मैं यहाँ मैं अपनी बात नहीं कह सकता या सिर्फ बड़े लोगों को ही यहाँ अपनी बात कहने की अनुमति है ? मुझे आश्चर्य के साथ दुःख भी है कि एक प्रभारी होकर भी आप इस प्रकार का बर्ताव करते हैं i किसी को आप ताड़ी पीने वाला बोल देते हैं i क्या छोटे लोगों को फोरम पर अपने विचार रखने की वास्तव में ही इजाजत नहीं है ? क्या फोरम के करता धर्ता इस बारे में कुछ स्पष्ट करेंगे ?
जहां तक मैं समझता हूँ विवाह एक वयस्क विषय है, सिर्फ एक वयस्क विषय और प्रिंस भाई जी ने बिलकुल सही कहा कि अभी तो मेरी बात पूरी भी नहीं हुई और आपने निर्णय दे दिया i
मैं कम पढ़ा लिखा जरूर हूँ लेकिन भोंदू नहीं हूँ जो ये भी नहीं जनता कि मुझे किस विषय पर अपने विचार कहाँ रखने चाहिए i हाँ ये जरूर है कि मेरे हिज्जे गलत हो सकते हैं क्योंकि मैं धीरे धीरे इस लिंक से हिंदी लिखना सीख रहा हूँ i
क्या कोई बताएगा कि मैं अपने विचार यहाँ लिख सकता हूँ या नहीं ?
:bang-head::bang-head::bang-head::bang-head:
अब क्या कहू........ ????

arvind
22-12-2010, 12:38 PM
i don't understand why this thread is still open even after so much of flaming.

Can't this forum have 1 driving moderator???
मेरा भी यही कहना है की इस सूत्र को तुरंत बंद कर देना चाहिए।

amit_tiwari
22-12-2010, 01:33 PM
:bang-head::bang-head::bang-head::bang-head:
अब क्या कहू........ ????

फ़राज़ के एक ठो शेर कह दो गुरु :

वफ़ा की आज भी वो ही कद्र है फ़राज़
फकत मिट चुके हैं टूट कर चाहने वाले

और दो लाइन मेरी कि

चलो कहीं और बनाते हैं मयखाना दिलबर
यहाँ ना पीने का शऊर है, ना पिलाने वाले

arvind
22-12-2010, 02:29 PM
फ़राज़ के एक ठो शेर कह दो गुरु :

वफ़ा की आज भी वो ही कद्र है फ़राज़
फकत मिट चुके हैं टूट कर चाहने वाले

और दो लाइन मेरी कि

चलो कहीं और बनाते हैं मयखाना दिलबर
यहाँ ना पीने का शऊर है, ना पिलाने वाले
सही कह रहे हो "खरपुट" भाई..... कबीर दास जी भी तो यही कह गए है -

आवत गारी एक है, उलटत होय अनेक
कहैं कबीर न उलटियो, रही एक की एक ।

पढना गुनना चातुरी, यह तो बात सहल्ल
काम दहन मन बस करन , गगन चढन मुसकल्ल ।

munneraja
22-12-2010, 03:53 PM
क्या कोई बताएगा कि मैं अपने विचार यहाँ लिख सकता हूँ या नहीं ?
सभी सदस्य अपनी विवाद रहित प्रविष्टियाँ कर सकते हैं

prashant
22-12-2010, 04:09 PM
अब ज्ञान की बातें हो रही है.....मैंने पहले ही कहा था की हम दुनिया को नहीं सुधार सखते और ना ही हमें ऐसी कोशिश करनी चाहिए.......आज बहुत सारे लोग ऐसे हैं की उन्हें अपने पडोशी के हल चल खबर नहीं और नेट पर हम प्रवचन कर रहे हैं आत्म शुध्धि और संस्कार पर...........मैं मनाता हूँ की पोर्न से लगत प्रभाव पडता है.लेकिन इससे कोई रेप के लिए प्रेरित होता है इस मुद्दे पर सब की एक राय नहीं है...... और ये बात सही भी नहीं है.............

chhotu
22-12-2010, 05:22 PM
विवाह = जिसका निर्वाह कठिनता से हो
क्योंकि इसका निर्वाह सामाजिक मान्यताओं, नियम कायदों और आपसी सामंजस्य से किया जाता है और इसको बनाये रखने के लिए बहुत म्हणत की जाती है i यही संसार के सभी समाजों का शाश्वत सत्य है i

chhotu
22-12-2010, 05:24 PM
मनुष्य में तीन प्रकार की भूख होती है i पहली दिमाग की भूख, दूसरी पेट की भूख और तीसरी पेट के नीचे की भूख (काम)i
दिमाग की भूख में मनुष्य में अहंकार नहीं होता क्योंकि अहंकार के होते हुए मनुष्य ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता है i दिमाग की भूख जब दिल के साथ जुडती है तो प्यार का प्रादुर्भाव होता है, निश्छल और निष्कपट i
पेट की भूख में मनुष्य पहले खाने की जुगत करता है i खाने की जुगत में यदि वह सफल नहीं हो पाटा है तो सारे नियम, कायदे कानून और चरित्र सभी एक तरफ धरे रह जाते हैं और मनुष्य किसी भी हद तक जा कर अपने खाने की जुगत लगाता है i सूत्र के विषय को देखा जाये तो गन्दी साइटों की बजाय भूख ज्यादा बड़ी समस्या है i यदि समाज का नैतिक पतन नहीं करना हो तो इसका समाधान ज्यादा जरूरी है i यदि पेट भरा हो और अन्ते में सिक्का जोर मरता हो तो व्यभिचार पनपता है और अहंकार जनम लेता है i
पेट के नीचे की भूख अर्थात काम :- विवाह का सीधा सम्बन्ध काम से है i बिना विवाह के काम व्यभिचार कहलाता है i

chhotu
22-12-2010, 05:25 PM
समाज में काम की महत्ता के कारन विवाह आवश्यक हुआ i काम योग है और भोग भी है i
काम योग या तपस्या इस तरह से है :- काम की सम्पूर्णता प्राप्त करने के लिए स्त्री और पुरुष एक दुसरे को सहयोग करते हुए जब अंतिम अवस्था पर पहुचते हैं तो (१) मनुष्य विचार शून्य हो जाता है (२) मनुष्य अहंकार शून्य हो जाता है और (३) मनुष्य काल शून्य हो जाता है अर्थात समय रुक जाता है i यदि कोई मनुष्य यह सब प्राप्त करना चाहे तो कठिन तप के बिना संभव नहीं है i इसलिए यह एक योग या तप है i
यदि मनुष्य काम इस पराकाष्टा को चोबिसों घंटे प्राप्त करना चाहता है तो प्रेम से प्रभु भक्ति इस योग को चोबिसों घंटे मनुष्य को प्रदान करती है i जिस प्रकार से भक्ति के लिए एक इष्ट चाहिए होता है उसी प्रकार से काम योग के लिए एक ही साथी चाहिए होता है i यदि इष्ट में निरंतर बदलाव करेंगे तो किसी भी इष्ट को हम सिद्ध नहीं कर पाएंगे उसी तरह से काम में भी यदि हम स्त्री या पुरुष को बदल बदल कर काम करेंगे तो भी काम योग से प्राप्त सिद्धि को भंग कर लेंगे i यदि प्राकृतिक रूप से काम को नहीं करके अप्रकृत रूप से काम को करेंगे तो हम न सिर्फ काम योग भंग करेंगे बल्कि अनेक रोगों को निमंत्रण देंगे i

chhotu
22-12-2010, 05:26 PM
यदि इस सूत्र के विषय को देखा जाये तो गन्दी साईट से ज्यादा खतरनाक तो मनुष्य के पेट की भूख है i भारतीय सभ्यता और परम्परा आज भी भारत के घरो में जिन्दा है, इसीलिए यहाँ के युवा या हो रहे युवा गलत रस्ते पर नहीं जाते हैं i उनको आज भी अपने से बड़ो और परंपरा का लिहाज है i यहाँ साधन भी उतने पर्याप्त नहीं हैं जितने और देशो में है i
सिक्के कमाने की होड़ में आदमी ये भूल जाता है कि वह क्या कमा रहा है ? खोता या खरा ? वो अपना घर बार भूल जाता है i उसके पास अपने लोगों और यहाँ तक कि अपने बच्चो तक को देने के लिए टाइम नहीं होता है i तो वो बच्चे सभ्यता और परम्परा कैसे सीखेंगे, कुटेव सीखेंगे i किसी भी समाज की उन्नति बिना किसी बाधा के चलती रहे इसके लिए सभ्यता और परम्परा कहीं ज्यादा जरूरी हैं i

chhotu
22-12-2010, 05:28 PM
इन गन्दी साइटों से तो फिर भी बचा जा सकता है, उन फिल्मो का क्या करेंगे जो इन साइटों से भी खतरनाक हैं और सिनेमाघरों में सभी के लिए आराम से उपलब्ध हैं i कहते हैं फिल्मे समाज का आइना होती है, ऐसी फिल्मे समाज को सुधरेंगी या बिगड़ेंगी ?
यदि इस सूत्र के विषय को देख कर विचार रखने हैं तो मैंने रख दिए हैं i मेरे विचार अच्छे लगे या बुरे यह आप बताएँगे और रही सूत्र के निर्माता अमित भाई जी की जो यह कहते हैं कि उन्होंने यह सूत्र किसी विशेष कारन से बनाया था तो उनकी वो ही जाने i मुझे तो ये ही समझ नहीं आता कि यदि कोई उनके सूत्र में जवाब देता है तो वो झल्लाते क्यों हैं ?

chhotu
22-12-2010, 05:29 PM
एक और बात मैं यहाँ कहना चाहूँगा कि सूत्र के निर्माता ने इस सूत्र के शुरू में जाने किन किन कंपनियों के सर्वे का उदाहरण दिया है i इस प्रकार के सर्वे मैंने छत के नीचे और सड़क के किनारे बनते देखे हैं i मेरे ही चार साथी जो सेकेंडरी हायर सेकेंडरी हैं और पार्ट टाइम काम के तलाश में जुगत भिड़ते रहते हैं, वो जानी मानी कम्पनी के सर्वे करने वाले एजेंट के यहाँ से एक एक रुपये या पचास पैसे प्रति फोरम के हिसाब से सर्वे करते हैं i यदि बीस प्रश्न का एक सर्वे दस मिनिट में पूरा होता हो तो एक घंटे में छः और दस घंटे में साठ सर्वे पूरे हुए i इस तरह तो पूरे दिन में तीस या साठ रुपये के लिए काम करेंगे तो वो शहर में रहते हुए कमरे का किराया भी नहीं निकल पाएंगे, गाओ में क्या भेजेंगे i इसलिए दस बीस फोरम लोगों से भरवा कर बाकी के फोरम चरों जने मिल कर अलग अलग पेनो की सहायता से लोगों के भरे फोरम को देखकर बाकी के फोरम अपनी लेखनी बदल कर भरकर जमा करवाते हैं और एक नहीं कईयों बार देखा है i ऐसे सर्वे किस काबिल हैं जो ये दावा करते हैं कि ९० प्रतिशत लोगो का कहना ये है जबकि सच में दस प्रतिशत लोगों से अधिक का कहना भी नहीं होता है i कितने लोग तो सर्वे के फोरम देखते ही भगा देते हैं i उनको क्या पड़ी किसी सर्वे में भाग लेने की i उनको कोनसा तमगा मिलना है i यदि सच देखना है तो धरातल पर देखिये आकाश में नहीं इ

Prince
22-12-2010, 07:57 PM
उफ्फ, फिर माफी...... मुझे सख्त नफरत है माफी मांगने वालो से...... अपनी बात भी दृढ़ता से नहीं कह पाते।

प्रिंस बाबू, अगर एक सदस्य ने गलती कि है, तो उसका देखादेखी आप भी गलती करेंगे, तो फिर आपमे और उसमे अंतर क्या रह जाएगा? क्या बचकानी बात करते हो यार?

और जहा तक आप जिस व्यक्तिगत नोट कि बात कर रहे है, कृपया उसे फिर से पढ़ ले, उक्त नोट अमित जी ने मुझे और अभिषेक जी को लिखा है और वो भी इस सूत्र के संदर्भ मे ही है।

मुझे आप जैसी मानसिकता वाले लोगों पर तरस आता है जो दूसरों को गलत कहते हुए नहीं थकते. आपको बुरा लगता हो तो उसके लिए हम अपने संस्कार छोड़ दें क्या ?. मैंने माफ़ी इसीलिये मांगी थी कि मुझे पता था कि आप लोग इस बात का बुरा अवश्य ही मानेंगे. ये विशुद्ध भारतीय परंपरा है जनाब कोई नफरत के लायक चीज नहीं हैं. अपनी बात को पुर जोर तरीके से रखने के लिए हरेक व्यक्ति की अपनी शैली होती है और उसको अपनी शैली में बात करने का हक़ होना चाहिए. किसी को गलत ठहराने का इतना ही शौक है तो घर बैठिये फोरम पर क्या कर रहे हो भाई ?. जम कर दूसरों की गलतियाँ बताने वाले ये क्यों भूल जाते हैं कि जब इंसान हैं तो गलती तो करेंगे ही आपको जज बनने की जरुरत क्या है ?. फोरम के सदस्य मिलकर एक बात पर चर्चा कर रहे हैं तो जरूरी तो नहीं कि सभी आपके हाँ में हाँ मिलाएं ताकि आपको अच्छा लगे.

अरविन्द जी आप ज्ञानी हैं कृपया मुझे मेरी इन तीन बातों का दिल पर हाथ रख कर जबाब दे दें.

१. बहस के लिए मुद्दा आया है, बहस चल रही है और आपको पता है कि जो आप कह रहे
हैं सिर्फ वही सही है या फिर आपकी हाँ में हाँ मिलाने वाले दोस्त सही हैं और बाकी सब
गलत है तो फिर बहस की शुरुआत ही क्यों की जाती है ? क्यों सूत्र बनाया है ?
२. अगर जो व्यक्तिगत नोट आपको सूत्र पर मिला वो उचित है तो फिर व्यक्तिगत सन्देश क्या
होता है ?. उसमें जिक्र है कि आपको कोई बात पहले ही बताई गयी थी वही हो रहा है तो
ये बात आम सदस्यों को कैसे पता होगी ?
३. बहस को व्यक्तिगत सन्देश के द्वारा कर लीजिये कोई भी गलत आदमी आपकी बहस में
अपनी गलत विचारधारा लेकर नहीं घुस पायेगा क्योंकि वहां पर सिर्फ वही लोग होंगे जिनको
आप सन्देश देंगे. यहाँ ओपन फोरम पर तो कुछ मेरे जैसे मंद बुद्धि बालक भी हैं जो गलत
बात को अपना समर्थन यूं ही दे देते हैं.

आपके मन करने पर अपनी सभ्यता कैसे छोड़ दूं भाई ? कुछ भी बुरा लगे तो माफ़ कर देना दोस्त. उफ़ ! ये नफरत की लाठी छोड़ क्यों नहीं देते ??

" तुम्ही तुम हो क्या तुम हो ? हमीं हम हैं तो क्या हम हैं ?"

VIDROHI NAYAK
22-12-2010, 08:38 PM
" तुम्ही तुम हो क्या तुम हो ? हमीं हम हैं तो क्या हम हैं ?"
अत्यंत सुन्दर बात कही आपने ...

gulluu
22-12-2010, 09:16 PM
सभी माननीय सदस्यों से अनुरोध है कि व्यक्तिगत आक्षेपों से बच कर सूत्र के विषय पर चर्चा करें ताकि कुछ ज्ञानवर्धक जानकारी हासिल हो सके बाकि सदस्यों को .

YUVRAJ
22-12-2010, 09:23 PM
आहा हा हा हा हा ....:lol:
सभी वयस्क हैं .... ...:cheers:
:bang-head: और इस बात को अच्छी तरह से समझनें की समझ रखतें हैं/
सभी माननीय सदस्यों से अनुरोध है कि व्यक्तिगत आक्षेपों से बच कर सूत्र के विषय पर चर्चा करें ताकि कुछ ज्ञानवर्धक जानकारी हासिल हो सके बाकि सदस्यों को .

abhisays
23-12-2010, 05:57 AM
लगभग सभी लोगो ने इसपर अपने विचार रखे है, और मुझे ऐसा लग रहा है की चर्चा दिशाहीन हो गयी है. चर्चा का मुद्दा केवल इतना था की एडल्ट साइट्स से समाज को कितना नुक्सान हो रहा है. लेकिन इसमें काफी और भी बातें जोड़ दी गयी.

हमारे यहाँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है की कोई भी किसी के उपर व्यक्तिगत टिपण्णी करे.

Critique of a post is welcome but it should not be an outlandish blasting of the author. Critique should always be directed towards the post and not the author.

फिलहाल मैं इस सूत्र को बंद कर रहा हूँ.

धन्यवाद.