soni pushpa
15-09-2015, 12:35 PM
गणपति जी जो विघ्नहर्ता , बुध्धि दाता, दुःख हर्ता सरल सकल मनोरथ पूरण करने वाले , सदैव भक्तों का साथ देने वाले ऐसे भक्तवत्सल भगवान को कोटि कोटि वंदन .
.श्रीगणेश चतुर्थी को पत्थर चौथ और कलंक चौथ के नाम भी जाना जाता है। यह प्रति वर्ष भाद्रपद मास को शुक्ल चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। चतुर्थी तिथि को श्री गणपति भगवान की उत्पत्ति हुई थी इसलिए इन्हें यह तिथि अधिक प्रिय है। जो विघ्नों का नाश करने वाले और ऋद्धि-सिद्धि के दाता हैं। इसलिए इन्हें सिद्धि विनायक भगवान भी कहा जाता है।
गणपति के सुन्दर स्वरुप में शांत मुद्रा मन को शीतलता प्रदान करती है .. कहते हैं की १०० सालों पहले लोकमान्य तिलक जी ने गणेश पर्व शुरू करके स्वतंत्रता संग्राम में लोगो को एक साथ किया और योजनायें की और अपनी लड़ाई लड़ी . किन्तु तब से ही ये परम्परा बन गई अब तो हम देखते हैं की भारतदेश ही क्या विदेशों में भी भगवान गणपति जी के लिए अपार आस्था है .. भगवान गणपति जी को किसी भी चीज़ से बनाया जाय फिर चाहे वो केले के पेड़ के पत्ते हो या पान के पत्ते हो या पीपल के पत्ते हो या मिटटी हो या काष्ट का टुकड़ा हो सब जगह गणपति बनाकर आसानी से उनकी पूजा की जा सकती है .
भगवन गणेश की पूजा सर्व प्रथम की जाती है यह कहानी सर्व विदित है ही की दरवाजे पर गणेश जी थे और उन्होंने भगवान शंकर को अन्दर प्रवेश के लिए मना किया क्रोधित होकर भगवान ने पुत्र का सर धड़ से अलग कर डाला इतने मा पारवती जी आइन और कहा ये क्या किया आपने ये आपका ही पुत्र तो है और माता पार्वती का विलाप सुनकर भगवान शंकर ने आदेश दिया की अभी ही जाओ और जो सामने मिले उसका सिर लाकर इस धड से जोड़ दो शंकर भगवन के पार्षद गए और सामने देखा एक हाथी आ रहा था उन्होंने उसका सिर लाकर गणेशजी के धड से जोड़ दिया तब माता ने कहा मेरे बच्चे की पूजा अब कौन करेगा एइसे को कौन मानेगा तब शंकर भगवन ने कहा की आज से संसार के प्रथम पूजनीय गणपति ही होंगे और सभी देवों से पहले गणपति जी की पूजा ही होगी यहाँ तक की मेरी पूजा भी बिना गणपति की पूजा के अधूरी मानी जाएगी इस वरदान की प्राप्ति की वजह से ही गणपति जी प्रथम पूजनीय है
हरेक शुभकारी कार्य बिना गणपति के शुरू नहीं करते हम हिन्दू .
.श्रीगणेश चतुर्थी को पत्थर चौथ और कलंक चौथ के नाम भी जाना जाता है। यह प्रति वर्ष भाद्रपद मास को शुक्ल चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। चतुर्थी तिथि को श्री गणपति भगवान की उत्पत्ति हुई थी इसलिए इन्हें यह तिथि अधिक प्रिय है। जो विघ्नों का नाश करने वाले और ऋद्धि-सिद्धि के दाता हैं। इसलिए इन्हें सिद्धि विनायक भगवान भी कहा जाता है।
गणपति के सुन्दर स्वरुप में शांत मुद्रा मन को शीतलता प्रदान करती है .. कहते हैं की १०० सालों पहले लोकमान्य तिलक जी ने गणेश पर्व शुरू करके स्वतंत्रता संग्राम में लोगो को एक साथ किया और योजनायें की और अपनी लड़ाई लड़ी . किन्तु तब से ही ये परम्परा बन गई अब तो हम देखते हैं की भारतदेश ही क्या विदेशों में भी भगवान गणपति जी के लिए अपार आस्था है .. भगवान गणपति जी को किसी भी चीज़ से बनाया जाय फिर चाहे वो केले के पेड़ के पत्ते हो या पान के पत्ते हो या पीपल के पत्ते हो या मिटटी हो या काष्ट का टुकड़ा हो सब जगह गणपति बनाकर आसानी से उनकी पूजा की जा सकती है .
भगवन गणेश की पूजा सर्व प्रथम की जाती है यह कहानी सर्व विदित है ही की दरवाजे पर गणेश जी थे और उन्होंने भगवान शंकर को अन्दर प्रवेश के लिए मना किया क्रोधित होकर भगवान ने पुत्र का सर धड़ से अलग कर डाला इतने मा पारवती जी आइन और कहा ये क्या किया आपने ये आपका ही पुत्र तो है और माता पार्वती का विलाप सुनकर भगवान शंकर ने आदेश दिया की अभी ही जाओ और जो सामने मिले उसका सिर लाकर इस धड से जोड़ दो शंकर भगवन के पार्षद गए और सामने देखा एक हाथी आ रहा था उन्होंने उसका सिर लाकर गणेशजी के धड से जोड़ दिया तब माता ने कहा मेरे बच्चे की पूजा अब कौन करेगा एइसे को कौन मानेगा तब शंकर भगवन ने कहा की आज से संसार के प्रथम पूजनीय गणपति ही होंगे और सभी देवों से पहले गणपति जी की पूजा ही होगी यहाँ तक की मेरी पूजा भी बिना गणपति की पूजा के अधूरी मानी जाएगी इस वरदान की प्राप्ति की वजह से ही गणपति जी प्रथम पूजनीय है
हरेक शुभकारी कार्य बिना गणपति के शुरू नहीं करते हम हिन्दू .