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View Full Version : बच्चो की कवितायेँ


Hamsafar+
15-12-2010, 11:56 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=5978&stc=1&d=1292399754

उल्लू

उल्लू होता सबसे न्यारा,
दिखे इसे चाहे अँधियारा ।
लक्ष्मी का वाहन कहलाए,
तीन लोक की सैर कराए ।

हलधर का यह साथ निभाता,
चूहों को यह चट कर जाता ।
पुतली को ज्यादा फैलाए,
दूर-दूर इसको दिख जाए ।

पीछे भी यह देखे पूरा,
इसको पकड़ न पाए जमूरा ।
जग में सभी जगह मिल जाता,
गिनती में यह घटता जाता ।

ज्ञानीजन सारे परेशान,
कहाँ गए उल्लू नादान।।

.......दीनदयाल शर्मा

Hamsafar+
15-12-2010, 11:58 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=5980&stc=1&d=1292399983
प्यारा कुत्ता

मेरा प्यारा कुत्ता कालू ।
बालों से लगता है भालू ।।

प्यार करे तो पूँछ हिलाए ।
पैरों में लमलेट हो जाए ।।

दिन में सोता रहता हरदम ।
पूरी रात न लेता है दम ।।

खड़के से चौकस हो जाए ।
इधर-उधर नजरें दौड़ाए ।।

चोरों पर यह पड़ता भारी ।
सच्ची सजग है चौकीदारी ।।

.......दीनदयाल शर्मा

Hamsafar+
15-12-2010, 12:02 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=5982&stc=1&d=1292400121

मधुमक्खी

मधुमक्खी कितनी प्यारी तुम ।
मेहनत से न डरती हो तुम ।।

फूलों से रस चूस-चूस कर ।
कितना मीठा शहद बनाती ।।

भांति-भांति के फूलों पर तुम ।
सुबह-सवेरे ही मंडराती ।।

वैद्य और विद्वान तुम्हारे ।
मधु के गुण गाते हैं सारे ।।

ख़ुद न चखती खाती हो तुम ।
मधुमक्खी मुझे भाती हो तुम ।।

.......दीनदयाल शर्मा

Hamsafar+
15-12-2010, 12:10 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=5985&stc=1&d=1292400618

होली है

रंगों का त्यौहार जब आए,
टाबर टोली के मन भाए,
काला, पीला, लाल गुलाबी,
रंग आपस में खूब रचाए.

मित्र मण्डली भर पिचकारी,
कपड़े रंग से तर कर जाए,
मिलजुल खेलें जीजा साली,
गाल मले गुलाल लगाए.

भाभी देवर हंस हंस खेले,
सारे दुःख क्षण में उड़ जाए,
शक्लें सबकी एकसी लगती,
कौनसा सा कौन पहचान न पाए,
बुरा न माने इस दिन कोई,
सारे ही रंग में रच जाए,

Hamsafar+
15-12-2010, 12:12 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=5986&stc=1&d=1292400716

चिड़िया होता

पापा गर मैं चिड़िया होता
बिन पेड़ी छत पर चढ जाता
मेरा बस्ता मुझसे भारी
उससे पीछा भी छुड़ जाता
होमवर्क ना करना पड़ता
जिससे मैं कितना थक जाता
धुआं, धूल और बस के धक्के
पापा फिर मैं कभी न खाता
कोई मुझको पकड़ न पाता
दूर कहीं पर मैं उड़ जाता।।

Nitikesh
17-12-2010, 09:58 AM
यह कदम का पेड़

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=6110&stc=1&d=1292565486


http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=6111&stc=1&d=1292565486

Nitikesh
17-12-2010, 09:59 AM
नमस्कार हमसफ़र बही कैसे हैं आप?

Hamsafar+
17-12-2010, 10:00 AM
स्वागत है ड्रैकुला भाई आपका, बहुत समय बाद मुलाकात हुई, आपका स्वागत है !

Nitikesh
17-12-2010, 10:09 AM
धन्यवाद हमसफ़र भाई.
हाँ आज कल मैं परीक्षा के व्यस्त था.

Nitikesh
17-12-2010, 10:32 PM
शक्ति और क्षमा


क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल
सबका लिया सहारा
पर नर व्याघ सुयोधन तुमसे
कहो कहाँ कब हारा?

क्षमाशील हो ॠपु-सक्षम
तुम हुये विनीत जितना ही
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही

अत्याचार सहन करने का
कुफल यही होता है
पौरुष का आतंक मनुज
कोमल होकर खोता है

क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल है
उसका क्या जो दंतहीन
विषरहित विनीत सरल है

तीन दिवस तक पंथ मांगते
रघुपति सिंधु किनारे
बैठे पढते रहे छन्द
अनुनय के प्यारे प्यारे

उत्तर में जब एक नाद भी
उठा नही सागर से
उठी अधीर धधक पौरुष की
आग राम के शर से

सिंधु देह धर त्राहि-त्राहि
करता आ गिरा शरण में
चरण पूज दासता गृहण की
बंधा मूढ़ बन्धन में

सच पूछो तो शर में ही
बसती है दीप्ति विनय की
संधिवचन सम्पूज्य उसीका
जिसमे शक्ति विजय की

सहनशीलता, क्षमा, दया को
तभी पूजता जग है
बल का दर्प चमकता उसके
पीछे जब जगमग है


कवि: रामधारी सिंह "दिनकर"


मेरे स्कूल के समय की पसंदीदा कविता में से एक.

ABHAY
22-01-2011, 10:26 AM
शेर और कुत्ते की कहानी । बताना आपको कैसी लगी..…
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=8383&stc=1&d=1295677533
आओ बच्चो सुनो कहानी
न बादल न इसमें पानी

इक कुत्ता जंगल में रहता
और स्वयं को राजा कहता

मैं सबकी रक्षा करता हूँ
और न किसी से मैं डरता हूँ

बिन मेरे जंगल है अधूरा
असुरक्षित पूरा का पूरा

मुझ पर पूरा बोझ पड़ा है
मेरे कारण हर कोई खड़ा है

मै न रहूँ , न रहेगा जंगल
मुझसे ही जंगल में मंगल

सारे उसकी बातें सुनते
पर सुन कर भी चुप ही रहते

समझे स्वयं को सबसे स्याना
था अन्धों में राजा काना

ABHAY
22-01-2011, 10:27 AM
पर यह अहम भी कब तक रहता
कब तक कोई यह बातें सुनता

इक दिन टूट गया अहँकार
जंगल में आ गई सरकार

बना शेर जंगल का राजा
खाता-पीता मोटा-ताजा

शेर ने कुत्ते को बुलवाया
और प्यार से यह समझाया

छोड़ दो तुम झूठा अहँकार
और आ जाओ मेरे द्वार

बिन तेरे नहीं जंगल सूना
यह तो फलेगा फिर भी दूना

पर कुत्ते को समझ न आई
उसने अपनी दम हिलाई

ABHAY
22-01-2011, 10:28 AM
मैं यहाँ पहले से ही रहता
हर कोई मुझको राजा कहता

कौन हो तुम यहाँ नए नवेले
अच्छा यही, वापिस राह ले ले
—————————————-

ले लिया उसने शेर से पंगा
मच गया अब जंगल में दंगा

भागे यहाँ-वहाँ बौखलाया
खुद को भी कुछ समझ न आया

जो अन्धो में राजा काना
समझता था बस खुद को स्याना

अब तो वही बना नादान
शेर के हाथ में उसकी जान
—————————————

छुप कर गया शेर के पास
बोला मैं जानवर हूँ खास

न बदनाम करो अब मुझको
राजा मैं मानूँगा तुझको

बख़्श दो मुझको मेरी जान
नहीं करूँगा मैं अभिमान
—————————————-

शेर ने कुत्ते को माफ कर दिया
और अपना मन साफ कर दिया

तोड़ा कुत्ते का अभिमान
और बख़्श दी उसको जान