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View Full Version : महँगी दालें


rajnish manga
23-08-2016, 03:05 PM
महँगी दालें
(समस्या और समाधान)

पिछले एक डेढ़ साल में हमारे देश ने विभिन्न क्षेत्रों में नए व प्रभावी क़दम उठाये गए हैं ताकि आम जनता की मुश्किलों को कम किया जा सके. महंगाई कम करने के लिये भी सरकार प्रतिबद्ध नज़र आती है. लेकिन प्याज की किल्लत और बढ़ी हुयी कीमतों पर बड़ी कठिनाई से काबू पाया जा सका. लेकिन वाह रे हमारी आम जनता. जैसे ही एक मुसीबत खत्म होती है, तुरंत ही दूसरी उठ खड़ी होती है. उसके बाद टमाटर की असामान्य रूप से बढ़ती कीमतों ने परेशान कर दिया. लगता है सरकार का इस पर कोई नियंत्रण ही नहीं है. अब प्याज और टमाटर कुछ कुछ काबू में आ रहे हैं.

इन सब के बीच यदि किसी वस्तु की कीमतों ने निरंतर लोगों को दिक्कत में डाले रखा है तो वह है दालों की कीमतें. चने को छोड़ कर कोई भी दाल 150 रुपये प्रति किलो से कम नहीं है. अरहर की दाल ने तो सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए और अपनी कीमत 200 रूपए से ऊपर बनाए रखी. अभी भी स्थिति में कोई अधिक बदलाव नहीं आया है. ऊँची कीमतों का एक कारण यह था कि पिछले साल खराब मानसून की वजह से दालों का उत्पादन औसत से कम रहा. अब कहीं कहीं सरकार ने सस्ती दालें बेचने के इंतज़ाम किये हैं लेकिन वह बहुत कम हैं, अधिकाँश जनता तक ऐसी कोई सुविधा नहीं पहुँच सकी है. अतः स्थिति जस की तस है.

इस बार अच्छे मानसून के कारण उम्मीद है कि दालों के उत्पादन में सुधार होगा व कीमतें नीचे आएँगी. दूसरी और सरकार ने कुछ अफ्रीकी देशों से ऐसे समझोते किये हैं कि वहाँ के किसान भारत के लिये अपनी जमीनों पर दालों का उत्पादन करेंगे और उनको भारत भेजेंगे. इसके लिये वहाँ के किसानों को minimum दरों का आश्वासन भी दिया गया है ताकि उनका मुनाफा प्रतिशत सुरक्षित रखा जा सके. इस कदम का असर देखने में कुछ समय लग जायेगा.

अब सवाल ये उठता है कि यदि दूसरे देशों के किसानों द्वारा दाल पैदा करने के लिये ऐसा फार्मूला स्वीकार किया जा सकता है कि जिससे उन्हें भारत सरकार द्वारा प्रायोजित उपक्रम में कोई नुक्सान ना उठाना पड़े, तब अपने किसानों को यदि कुछ अधिक फ़ायदा पहुंचा कर और सूखे आदि की स्थिति में या अन्य प्राकृतिक आपदा की स्थिति में अच्छे मुआवज़े का प्रावधान रख कर देश में ही दलहन की पैदावार क्यों नहीं बधाई जा सकती. दूसरे, उन इलाकों में भी किसानों को दाल की खेती की और प्रेरित किया जा सकता है जहाँ दालों का उत्पादन नहीं होता या बहुत कम होता है.

हमें विश्वास है कि उक्त दिशा में कारगर क़दम उठाये जाने से काफी हद तक समस्या पर काबू पाया जा सकता है.

आपके विचार आमंत्रित हैं.

rajnish manga
23-08-2016, 03:13 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=33871&stc=1&d=1471947158

rajnish manga
23-08-2016, 03:13 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=33872&d=1471947156

rajnish manga
23-08-2016, 03:17 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=33876&stc=1&d=1471947440

rajnish manga
23-08-2016, 03:19 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=33877&d=1471947439

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=33878&d=1471947439

soni pushpa
23-08-2016, 11:59 PM
सटीक लेख .. भाई सच इतनी महंगाई में गरीब की जिंदगी और मुश्किल हो गई है सिर्फ डाल चावल खाने वालों के लिए तो ये एक बड़ी समस्या बन गई है न दो वक़्त की रोटी नसीब नहीं उधर सब्जियों के भाव भी कोई कम नहीं बेचारा गरीब इंसान खाय तो क्या खाय .

थैंक्स भाई